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* प्राकृत व्याकरण *
होता है। जैसे-कृशा=कासा और किसा ।। म दुकम =माउाक और मउभं । म दुत्वम माउर्क और मउराणं ।।
कृशा संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप कासा और किसा होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१२७ से 'ऋ' का विकल्प से 'आ'; १-२६० से 'श' का 'स' होकर प्रथम रूप कासा सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' की 'इ' और शेष पूर्ववत् होकर किसा रूप सिद्ध हो जाता है ।
मुलुकम् संस्कृत विशेषण है । इसके प्राकृत रूप माउवक और मउभं होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-१२७ से 'ऋ' का विकल्प से 'आ'; १-१७७ से 'द्' का लोप; २-८६ से 'क' का द्वित्व 'क'; ३-२५ मे प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसफ लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्तिः और १-२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर मारकर्क रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; ६-१७७ से 'द्' और '' का लोप और शेष पूर्व रूपवत् होकर मर रूप सिद्ध हो जाता है।
में
मृदुत्वं संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप माइक्कं और मउत्तणं होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-१९७ से '' का 'आ'; १-१४५ से 'द्' का लोप; २-२ से 'स्व' के स्थान पर विकल्प से 'क' का श्रादेश; २-८८ से प्राप्त 'क' का द्वित्य 'क'; ३.२५. से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर भाउक्क रूप सिद्ध हो जाता है । द्वितीय रूप में सूत्र संख्या १-६२६ से 'ऋ' का 'अ'; १.१८७ से 'द्' का लोप; २-१५४ से 'स्व' के स्थान पर विकल्प से 'तण' का आदेश; और शेष पूर्व रूप वत होकर म उत्तर्ण रूप सिद्ध हो जाता है ।
इस्कृपादौ ॥ १-१२८ ॥ कृपाइत्यादिषु शब्देषु श्रादेऋत इत्वं भवति ।। किचा । हिययं । मिट्ठ रसे एव । अन्यत्र मई । दिटुं । दिट्ठी । सिद्ध सिट्टी गिट्टी गिएठी। पिच्छी । मिऊ । मिङ्गो । भिगारी। सिङ्गारो। सिपाली । धिणा । घुसिणं । विद्ध-कई । समिद्धी । इदी । गिद्धी । किसी । किसाण । किस।। किन्छ। तिप्प । किमिश्रो । नियो। किच्चा । किई | धिई । कियो । किषिणो। किवाणं । विचुनी। वितं । वित्ती हि । वाहितं । बिहियो । विसी । इसी । विहो । छिहा । सह। उकिट्ठ। निसंसो ।। क्वचित्र भवति । रिद्धी कृपा । हृदय । मृष्ट । दृष्ट । दृष्टि । सृष्ट । सृष्टि । गृष्टि । पृथ्वी । भृगु । भृङ्ग । भृङ्गार | शृङ्गार । शृगाल । घृणा । घुसण । बद्ध कधि । समृद्धि। ऋद्धि । गृद्धि । कृश । कृशानु । कृसरा कृछ । तप्त । कृषित । नृप । कृत्या । कृति । धृति । कुप । कपण । कृपाण । पश्चिक । वृत्त । वृत्ति । हत । ध्याहृत । वृहित । वसी । ऋपि । वितृष्ण । स्पृहा । सकृत । उत्कृष्ट ! नृशंस !
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