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* प्राकृत व्याकरणं
ऋषिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप इसी होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' की 'इ'; १-२६० से 'घू' का 'स्' और २-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान वर अन्त्य ह्रस्व स्वर ''का दीर्घ स्वर 'ई' होकर इसी रूप सिद्ध हो जाता है ।
विशेष है। इसका भाव तप विरहो होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'त्' का लोप; १-६२८ से 'ऋ' की 'इ': २०७५ से 'शा' का 'ह' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर इन्हीं रूप सिद्ध हो जाता है।
स्पृहा संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप लिहा होता है। इसमें सूत्र संख्या ६-१३ से 'स्प' का 'छ', 'और १-१२५ से 'ऋ' की 'इ' होकर बिहा रूप सिद्ध हो जाता है ।
सकृत् संस्कृत अव्यय है । इसको प्राकृत रूप स होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'क' का लोप: १-१२८ से 'ऋ' की 'इ' १-११ से अन्त्य व्यन 'तू' का लोप होकर सह रूप सिद्ध हो जाता है ।
उत्कृष्टम् संस्कृत बिशेषण है। इसका प्राकृत रूप उक्कट्ठ होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२८ से 'ऋ' की 'इ'; २०७७ से 'तू' का लोप २-८ह से 'क' का द्वित्व 'क्क '; २-३४ से 'ष्ट' का 'ठ'; ०-८६ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व ठठ २ ६० से प्राप्त पूर्व 'ठ' का '८'३ ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति और १०२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर कई रूप सिद्ध हो जाता है ।
दर्शसः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप निसंसी होता है। इसमें सूत्र संख्या १९२८ से 'ऋ' की '५' १-२६० से 'श' का 'स' और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ख' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मिसो रूप सिद्ध हो जाता है ।
ऋद्धिः संस्कृत रूप है । इसका प्राकृत रूप रिद्धी होता है। इसमें सत्र संख्या १-१४० से 'ऋ' स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य जाता है ।। १२८ ॥
१-१२६ ॥
पृष्ठ शब्देऽनुत्तरपदे ऋत इद् भवति वा ॥ पिडी पट्टी | पिट्टि परिहविचं ॥ अनुत्तर पद इति कि । मवि ॥
की 'रि'; और ३-१६ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर 'ई' होकर रिद्धी रूप सिद्ध हो
पृष्ठे वानुत्तरपदे ॥
अर्थ-यदि पृष्ठ' शब्द किसी अन्य शब्द के अन्त में नहीं जुड़ा हुआ हो; अर्थात् स्वतंत्र रूप से रहा हुआ हो अथवा संयुक्त शब्द में आदि रूप से रहा हुआ हो तो 'पृष्ठ' शब्द में रही हुई 'आ' को 'इ' विकल्प से होती है । जैसे- पृष्ठिः = पिट्टी और पट्टी । पृष्ठ-परिस्थापितम, पिट्ठि परिविष्ां ।