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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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तीर्थे हे ॥ १-१०४॥ तीर्थ शब्दे हे सति ईत ऊत्वं भवति ॥ तूहं ।। इइति किम् । तित्थ ।।
अर्थ: तीर्थ शब्द में 'थ' का 'ह' फरने पर तीर्थ में रही हुई 'ई' का 'ऊ' होता है । जैसे-तीर्थम् = तूह | 'ह' ऐसा कथन क्यों किया गया है ? उत्सर-जहां पर तीर्थ में रई हुए 'थ' का 'ह' नहीं किया जायगा; वहां पर 'ई' का 'ऊ' नहीं होगा । जैसे-तीर्थम् = तित्थं ।
तीर्थम् संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप तूहं होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-१०४ से 'ई' का ''-७२ से 'र्थ' का 'ह'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर सूह रूप सिद्ध हो जाता है। 'तित्य' शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८४ में की गई है।
एत्पीयूषापीड-बिभीतक कीदृशेदृशे ॥ १-१०५ ॥ एषु ईत एत्वं भवति ॥ पेऊस । भामेलो । बहेडो । केरिसो । एरिसो॥
अर्थः-पीयूष, अपीड, बिमीतक, कीदृश, और ईदृश शब्दों में रही हुई 'ई' की 'ए' होती है। जैसे पीयूपम् = पेऊस; आपीड:-श्रामेलो; बिभीत्तकः = बहेडो; कीदृशः = करिसो; ईदृशः= एरिमो ।।
पीयूरम् - संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप पेऊस होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-१.५ से 'ई' की 'ए'; १-१७७ से 'य' का लोप; १-२६. से ष' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर जसं रूप सिद्ध हो जाता है।
__ पापीडः संस्कृत शब्द है । इस का प्राकृत रूप पामेलो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-२३४ से 'प' का 'म'; १-१०५ से 'ई' की 'ए'; १-२०२ से 'टु' का 'ल'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थाच पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर आमेलो रूप सिद्ध हो जाता है।
बहेडो की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८८ में की गई है।
कीदृशः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप करिसो होता है। इसमें सूत्र-संस्त्या १.१०५ से 'ई' की 'ए'; १-१४२ से 'ड' की 'रि'; १-२६० से 'श' का 'स'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्रो' प्रत्यय होकर करितो रुप सिद्ध हो जाता है।
विशः संस्कृत विशेषण है इसका प्राकृत रूप एरिसो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-१०५ से