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सरस्पति न भरावा * प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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प्रसीद संस्कृत अकर्मक क्रिया है। इसका प्राकूल रूप पमित्र होता है । इममें सूत्र-संख्या-२-६ से 'र' का लोप; १-१०१ से दीर्घ ई की वस्त्र 'इ'; १-१७७ से 'द' का लोप; होकर पसिअ रूप सिद्ध हो जाता है।
गृहीतम् संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप गहिवं होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१२६ से 'ऋ' का 'अ'; १-१०१ से दीर्घ 'ई' की हरख 'इ'; १-१७७ से 'तू' का लोप; ३-२५ से प्रत्रमा के गक वचन में नपुंसक लिंग में 'मि प्रत्येव के पान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर गहिरं रूप सिद्ध हो जाता है ।
घल्मीकः संस्कृत शहा है। इसका प्राकृत रूप वम्मिओ होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७ से 'ल' का लोप; २-८८ से 'म्' का द्वित्व म्म'; १-१०१ से दीर्घ 'ई' की हस्य 'द'; १-१७७ से 'क' का लोप; : और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'तिः प्रत्यय के स्थान पर श्रो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प.मओ रूप सिद्ध हो जाता है।
सहामीम् संस्कृत अव्यय है। इसका प्राकृत रूप त्याणि होता है । इसमें सूत्र मख्या १-१७७ से । 'द्'का लोप; १-१८२ से से शेष 'श्रा' का 'या'; १२८ से 'न' का 'ण'; १-१०१ से दीर्घ 'ई' की हस्व'इ';
और -२३ से 'म्' का अनुस्वार होकर 'तयाणि रूप सिद्ध हो जाता है। . पाणी, अलीअं, ओअइ. करीसो शब्दों की सिद्धि ऊपर की जा चुकी है।
उपनीतः संस्कृत विशेषण है। इसके प्राकृत रूप उवणीश्रो और उरिणो होते हैं। इनमें सूत्रसंख्या -२३. से पका 'च'; १-२२८ से न' का 'ण'; :-१७५ से 'त्' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एक : वचत में पुल्लिंग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर प्रो प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'उचणीओ रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय रूप में १-१०१ से दीर्घ 'ई' की ट्रस्व इ' होकर उवाणिओ रूप सिद्ध हो जाता है ! ॥ ॥
उज्जीणे ॥ १.१०२ ।। जीर्ण शब्दे ईत उद् भवति ।। जुएण- सुरा ।। क्वचिन्न भवति । बिएणे भोप्रणमते ॥
अर्थ:-जीर्ण शब्द में रही हुई 'ई' का 'उ' होता है। जैसे-जीर्ण-सुरा-जुएण-सुरा । कहीं कहीं पर इस 'जीर्ण' में रही हुई 'ई' का '' नहीं होता है । किन्तु दीर्घ 'ई' की ह्रस्व 'इ देखी जाती है। जैसे-जीर्ण भोजन-मात्रे- जिगणे भोअरणमत्त ।।
जीर्ण संस्कृत विशेषण है। इसका प्राकृत रूप जुएण होता है । इसमें सूत्र संख्या :-१०२ से 'ई' का 'उ'; २-७ से 'र' का लोप; और २.८६ से 'ण' का द्वित्व एए' होकर 'गुण्ण रूप सिद्ध हो जाता है।
सुरा संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप भी सुरा ही होता है।