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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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प्रथमा के एक वचन में स्त्री लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ 'ई' होकर भिउडी रूप सिद्ध हो जाता है । । ११०॥ .
पुरुषे रोः ॥ १-१११ ॥ पुरुषशब्दे रोरुत इभवति ।। पुरिसो । पउरिसं !!
अर्थः-पुरुष शब्द में रु' में रहे हुए 'उ' की 'इ' होती है। जैसे-पुरुषः= पुरिसो । पौरुषम् = परिसं॥
पुरिसो शब्द की सिद्धि सूय संख्या १-४२ में की गई है। .: पौलषं संस्कृत शब है। इसका प्राकृत रूप परिसं होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१६२ से 'श्री का 'प्र'; १-१९१ से 'क' के 'उ' की 'इ'; १-२६० से 'ष' का 'स'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर परिसं रूप सिद्ध हो जाता है।
. ईतुते ॥ १-११२ ॥ . . चुतशब्दे आदेरुत ईत्वं भवति ॥ छीअं ॥ अर्थ:-जुत शब्द में रहे हुए आदि 'उ' की 'ई' होती है । जैसे-नुतम् = छीअं ।
सतमं संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप छीअं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'क्ष' का 'छ'; १.११२ से 'उ' की ई'; १-१७७ से 'त्' का लोप; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'छी' रूप सिद्ध हो जाता है । ।। ११२॥
.. उत्सुभग-मुसले वा ॥ १.११३ ॥ अनयोरादेरुत उतू वा भवति ॥ महवो सुइयो । मसल मुसल।।
अर्थः-सुभग और मुसल इन दोनों शब्दों में रहे हुए श्रादि 'उ' का विकल्प से दीर्घ 'इ' होता है। जैसे-सुभगः सूहयो और सुहो । मुसलम् = मूसलं और मुसलं ॥
सुभगः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप सूहबो और सुहनों होते हैं । इनमें सूत्र संख्या १-११३ से धादि 'उ' का विकल्प से 'अ'; १-१८७ से 'भ' का 'ह'; ५-१६२ से प्रथम रूप में 'ऊ' होने पर 'ग' का