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* प्राकृत व्याकरण *
'ध'; और द्वितीय रूप में 'ऊ' नहीं होने पर १.१७७ से 'ग' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'श्री' प्रत्यय की प्राप्ति होकर क्रम से सहषो और सुहा रूप सिद्ध हो जाता है।
मुसलं संस्कृत शब्द है। इसके काकृत रूप मृसलं और मसले होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-११३ से आदि 'उ' का विकल्प से दीर्घ 'ऊ'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्रोप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से मूसलं और मुसलं रूप सिद्ध हो जाते हैं ।। ११३ ।।
अनुत्साहोत्सन्ने सच्छे ॥ १.११४ ॥ उत्साहोत्समवर्जिते शब्दे यो त्सच्छौ तयोः परयोरादेरुत ऊद् भवति ॥ स । ऊसुत्री। ऊसयो । ऊसित्तो । ऊसरइ ।। छ । उद्गताः शुका यस्मात् सः असुप्रो । ऊससह ।। अनुत्साहोत्सम इति किम् । उच्छाहो | उच्छनी ।।
___ अर्थः-उत्साह और उत्सन्न इन दो शब्दों को छोड़ करके अन्यकिसी शब्द में 'स' अथवा 'कछ' श्रावे; तो इन 'स' अथवा 'च्छ' वाले शब्दों के आदि 'त' का '' होता है । 'रस' के उदाहरण इस प्रकार है:___ उत्सुकः= असुओ। उत्सवः ऊसवो । उसिक्तः = ऊसित्तो । उत्सरति = उसरह । 'च्छ' के उदाहरण इस प्रकार है:-जहाँ से तोता-- पक्षी विशेष ) निकल गया हो वह 'उच्छुक' होता है। इस प्रकार उच्छुकः- उसुश्री। उच्छ वसति = ऊससइ ।। उत्साह और उत्सम इन दोनों शब्दों का निषेध क्यों किया? उत्तरः-इन शब्दों में 'स' होने पर भी श्रादि 'उ' का 'ऊ' नहीं होता है अत: दीर्घ 'क' की उत्पत्ति का इन शब्दों में प्रभाव ही जानना जैसे-उत्साहः उच्छाहो । उत्सनः उच्छन्नो ।।
उत्सुकः संस्कृत विशेषण है । इसका प्राकृत रूप असुश्रो होता है । इसमें सूत्र संख्या १-११४ से श्रादि 'उ' का '5'; २-४७ से 'त्' का लोप; १-१७७ से 'क्' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर उसओ रूप सिद्ध हो जाता है।
ऊसवो शब्द की सिद्धि सूत्र-संख्या १-८४ में की गई है।
उत्तिक्त: संस्कृत विशेषण है ! इसका प्राकृत रूप ऊसित्तो होता है। इसमें सूत्र-संख्या १-११४ से आदि 'उ' का 'ऊ'; २-४७ से 'तू' और 'क' का लोप, २-८८ से शेष द्वितीय 'त' का द्वित्व 'त्त'; और २-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय होकर ऊसित्तो रूप सिद्ध हो जाता है।