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* प्राकृत व्याकरण *
सकार के साय में रहे हुए 'र' के लोप के उदाहरण । जैसे-उRः = ऊतो । विस्रम्भः-वीसम्मो ॥ यही र 'स' के पूर्व में रहे साए मार का दोहा है!
सकार के साथ में रहे हुए 'व' के लोप के उदाहरण । जैसे-विकस्वर; - विकास रो। नि: यः = नोसो । यहाँ पर 'स' के पूर्व में रहे हए स्वर का दीर्घ हुआ है।
सकार के साथ में रहे हए 'स' के लोप के उदाहरण । जैसे -निस्सह =नोसहो यहां पर 'स' के पूर्व में रहे हए स्वर का वीर्घ हुआ है।
यहाँ पर वर्ण के लोए होने पर इसी व्याकरण के पार द्वितीय के सूत्र संख्या ८९ के अनुसार शेष वर्ण को विस्य वर्ण की प्राप्ति होनी चाहिये यो; किन्तु इसी याकरण के पान द्वितीय के सूत्र-संख्या ९२ के अरसार द्वित्वप्राप्ति का निषेध कर दिया गया है। अतः वित्त का अभाव जानना।
पश्याति संस्कृत क्रिया पर है। इसका प्राकृत रूप पास होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से य का लोग १-४३ से 'प' के 'अ' का 'आ'; १-२६० से '' का 'स'; ३-१३९ से प्रथम पुरुष में वर्तमान काल के एक घर में "ति' के स्थान पर 'इ' होकर पासइ रूप सिद्ध हो जाता है।
कश्यपः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप कासबो होता है। इसमें सूब-संख्या-२-७८ से 'य' का लोप; १-२६० से श' का 'स'; १.४३ सेक'के 'अ'का 'आ'; १-२३१ से 'व' का 'ब'; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में "विसर्ग' अथवा 'सि' के स्थान पर 'ओ' होकर कासको रूप सिद्ध हो जाता है ।
आषश्यकम् संस्कृत शम्य है। इसका प्राकृत रूप आवासयं होता है। इसमें प्रत्र-संख्या-२.७८ से 'य' का लोप; १.२६० से 'श' का 'स'; १-४३ से व' के 'अ' का 'आ'; १-७७ से 'क' का लोप; १-१८० से 'क' के शेष 'अ' का ''; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसक लिग में 'सिं प्रत्यय के स्थान पर 'म्'; १-२३ से 'म' का अनुस्वार होकर आषासयं रूप सिद्ध हो जाता है।
विश्राम्यति संस्कृत क्रियापद है । इसका प्राकृत रूप वोसमा होता है। हमारे सत्र -संख्या-२-७९ से 'र' का लोप; १-२६० से 'या' का 'स'; १.४३ से वि' को 'इ' को दोर्ष '; १-८४ से 'सा' के 'आ'; का 'अ' २-७८ से' ' का लोप; ३-१३९ से प्रथम पुरुष में वर्तमान काल के एक वचन में 'ति' के स्थान पर 'ह' होकर पीसमड़ रूप सिद्ध हो जाता है।
विश्वामः संस्कृत शब्द हैं। इसका प्राकृत रूप वीसामो होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ सं 'र' का लोपः १-२६० से 'श' का 'स'; १-४३ से 'वि' को 'इ' को दीर्घ 'ई'; ३.२ से प्रयमा के एक वचन में 'सि' अथवा विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर विसामो रूप सिद्ध हो जाता है।
मिश्रम् संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप मोसं होता है । इसमें सत्र-संख्या २.७९ से '' का लोप; १-४३ से की दीर्घ ''; १-२६० से 'श' का 'स'; ३-२५ से प्रषमा के एक बयान में नपुंसक लिंग में 'स' के स्थान पर 'म्'; १-२३ से 'म् का अनुस्वार होकर मास कप सिद्ध हो जाता है।