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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थानपर 'म' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर क्रम से उल्लं और ओलं रूप सिद्ध हो जाते है। तृतीय रूप में १-६४ से 'श्रा' का ''; और शेष साधनिका ऊपर के समान ही जानना । यो अल्लं रूप सिद्ध हो जाता है।
___आईमः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप श्रद्द होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'श्रा' का 'अ'; २-४६ से दोनों 'र' का लोप; २-८६ शेष 'द' का द्वित्व , ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्' अनुस्वार होकर रूप सिद्ध हो जाता है।
बाष्पः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप 'बाह' होता है । इसमें सूत्र-संख्या-२-७० से 'घ्प' का 'ह' होकर बाह रूप सिद्ध हो जाता है।
सलिला संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप सलिल ही होता है।
प्रवाहन संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप पवहेण होता है। इसमें सूत्र-संख्या-२-७ से 'र' का लोक; ३८ से 'श्री' का '
अ ६ से तृतीचा विमसि के पुल्लिग में एक वचन के प्रत्यय 'टा' के स्थान पर 'रण' प्रत्यय की प्राप्ति; और ३-१४ से 'ण' प्रत्यय के पूर्व में रहे हुए 'ह' के 'म' का 'ए' होकर पक्षहण रूप सिद्ध हो जाता है।
___ आर्षयतिः संस्कृत अकर्मक क्रिया पद है। इसका प्राकृत रूप ‘उल्लेइ' होता है । इसमें सत्र-संख्या१-८२ से 'या' का 'उ'; २-७७ से 'द्' का लोप, १-२५४ से 'र' का 'ल'; २-१ से प्राप्त 'ल' का द्वित्व 'ल्ल'; १-१४७ से 'यू' का लोप; ३-१५८ से शेष विकरण 'अ' का 'ए; ३.१३६ से वर्तमान काल में प्रथम पुरुष के एक वचन में 'ति' प्रत्यय के स्थान पर 'इ' प्रत्यय होकर उल्लेह रूप सिद्ध हो जाता है ।।२।।
ओदाल्यां पंक्तौ ॥१-८३ ॥ आली शब्दे पङक्ति वाचिनि आत प्रोत्वं भवति ।। ओलो ॥ पङ क्तावितिकिम् । आली सखी ॥
अर्थ:-भाली' शब्द का अर्थ जब पंक्ति हो; तो उस समय में पाली के 'आ' का 'ओ' होता है। जैसे पाली-(पंक्ति-अर्थ में-) ओली । 'पवित' ऐमा उल्लेख क्यों किया ? उत्तर-जब 'माली' शब्द का अर्थ पंक्तिवाचक नहीं होकर 'सखी' वाचक होता है तब उसमें 'ओ' का 'श्री' नहीं होता है। जैसे-श्राली (सखी अर्थ में) पाली ॥
आली संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप 'ओखी' होता है । इसमें सूत्र-संख्या-१-५३ से 'या' का 'ओ' होकर आली रूप सिद्ध हो जाता है।