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સરસ્વતિઓંન મનાલાલ રાધા
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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सायमः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप तम्ब होता है । इसमें सूत्र-पंख्या-१-८४ से 'ता' के 'आ' का 'अ'; २-५६ से 'न' का 'ब'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति: १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुसार होकर तम्बं रूप मिद्ध हो जाता है।
विरहाग्निः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप विरहगी होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'श्रा' का 'श्र; २-७८ से 'न' का लोप; २-८८ से 'ग' का द्वित्व 'ग' और ३-१६ से प्रथमा के एक वचन में स्त्री लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर ह्रस्व स्वर दीघ होकर विरहग्गी रूप सिद्ध हो जाता है।
आस्थमा संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप असं होता है। इसमें सूत्र-पंख्या-१-८४ से 'पा' का 'अ'; २-४८ से 'य' का लोप; २-८८ से 'स' का द्वित्व 'स्म'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यष्टको भान पर पानी माशि और १२३ से प्राप्त 'म् का अनुस्वार होकर अस्सं रूप सिद्ध हो जाता है।
मुनीन्द्रः-संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप मणिन्दो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से ६ की 'इ'; १-२२८ से 'न' का 'ण'; २-७ से '' का लोप; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुणिन्दो रुप सिद्ध हो जाता है।
तीर्थम्: संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप तित्थं होता है । इसमें सूत्र संख्या-१-८४ से 'ई की ''; २-E से 'र' का लोप; २८ से 'थ' का द्वित्व 'थ्य'; २-४ से प्राप्त 'थ्' का 'न, ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म् प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर नित्यं रूप सिद्ध हो जाता है।
गुरुल्ला: संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप गुहल्जावा होता है। इसमें सूत्र-मख्या-१८४ से 'क' का 'उ'; १-२३१ से 'प' का 'व'; ३-४ से प्रथमा के बहुवचन में पुल्लिग में 'जस' प्रत्यय का लोप; ३-१२ से लुप्त 'जस्' के पूर्व में रहे हुए 'अ' का 'आ' होकर गुरुल्लापा रूप सिद्ध हो जाता है ।
वर्ण:-संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप चुण्णो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'अ' का 'उ': RAE से 'र' का लोप; २-८ से 'ण' का 'एण'; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'मि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर चुण्णो रूप सिद्ध हो जाता है।
नरेन्दः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप नरिन्दो होता है। इसमें सूत्र-संख्या-१-८४ से 'ए' की 'इ':२-७ से 'र' का लोप और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मारन्नो रूप सिद्ध हो जाता है।
मलेच्छः-संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप मिलिन्छो होता है। इस में सूत्र-मंख्या-२१-६० से 'ल' के पूर्व में याने 'म्' में 'इ' की प्राप्ति; १-८४ से 'ए' की 'इ'; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन