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*प्राकत व्याकरण *
आली संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप आली ही होता है।
हृस्वः संयोगे ॥ १-८४॥ दीर्घस्य यथादर्शनं संयोगे पर हस्वो भवति ।। श्रात् । श्राम्रम् । अम्बं ।। ताम्रम् । तम्बं । विरहाग्निः । विरहग्गी ॥ पास्यम् । अस्स ।। ईद । मुनीन्द्रः । मुणिन्दो || तीर्थम् । तित्थं ॥ ऊन् । गुरुवापाः गुरुलावा || चूर्णः। चुण्णो ॥ एत् । नरेन्द्रः । नरिन्दों ॥ म्लेच्छः। मिलिच्छो । दिद्विक्क- थण-पई ।। ओत् अधरोष्ठः । अहरु। नीलोलालम् । नीलुप्पल ॥ संयोग इतिकिम् : प्रायास । ईससे । ऊसवो ॥
___ अर्थ:--दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो; उस दीर्घ स्वर का ह्रस्व स्वर हो जाया करता है। 'ओ' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों का उदाहरण; जिनमें कि 'आ' का 'अ' हुना है। उदाहरण इस प्रकार है:- श्रानम् = अम्बं ।। साम्रम् = सम्यं ॥ विरहाग्निः = विरहगी । प्रास्यम्-अस्सं । इत्यादि ।।
ईस्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ई' की 'इ हुई है । जैसे कि मुनीन्द्रः = मुणिन्दो ।। तीर्थम् = तित्यं ॥ इत्यादि ॥ 'ऊ' स्वर क आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'क' का 'ज' हुआ है। जैसे कि-गुरुल्लापाःगुरुल्लावा ॥ चूर्णः चुरो । इत्यादि । 'ए' स्वरके आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'ए' का 'इ' हुआ है। जसे कि नरेन्द्रः- नरिन्दो ।। म्लेच्छः = मिलिच्छो । रष्टैक स्तन वृत्तम् दिढिक्का-थण-वट्ट ॥
'श्री' स्वर के आगे संयुक्त अक्षर वाले शब्दों के उदाहरण; जिनमें कि 'श्री' का 'उ' हुआ है। जैसे कि-अधरोष्ठः- श्रहरु? । नीलोत्पलम् नीलुप्पल !!
संयोग अर्थात् 'संयुक्त अझर' ऐसा क्यों कहा गया है ? उतर:-यदि दीर्घ स्वर के आगे संयुक्त अक्षर नहीं होगा तो उस दीर्घ स्वर का हस्व स्वर नहीं होगा । जैसे-श्राकाशम् = पाया । ईश्वर ईसरो। और उत्सवः ऊसवो । वृशि में यथा दर्शनं शब्द लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि यदि शब्दों में दीर्घ का ह्रस्व किया हुआ देखा जाये तो शस्त्र कर देना; और यदि दीर्घ का हस्व नहीं किया हुआ देखा जाये तो सस्त्र नहीं करना; जैसे-ईश्वरः = ईसरो; और उत्सवः = ऊसवो। इनमें 'ई' और 'ॐ' दीर्घ है, किन्तु इन्हें हस्व नहीं किया गया है।
आमम्:-संस्कृत शब्द है ।इसका प्राकृत रूप अम्धं होता है। इसमें सूत्र संख्या-१-८४ से 'श्रा' का 'श्र'; २-५६ से 'न' का 'म्ब'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसकलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से प्राप्त " का अनुस्वार होकर अम्ब रूप सिद्ध हो जाता है।