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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित
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नि:स्पः संस्कृत शब्न है। इसका प्राकृत रुप कोसो होता है । इसमें सूत्र संख्या २.७७ से "निः' में रहे हए विसर्ग अर्थात 'स' का लोप; १-४३ से 'नि' के हस्व 'ई' को दीर्घ ; १-१७७ से 'ब' का लोपः ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'ओं की प्राप्ति होकर नीसो रूप सिद्ध हो जाता है।
निस्सहः संस्कृत शम्म है । इसका प्राकृत रूप नीसहो होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७७ से आरि 'स' का लोग; १.४३ से नि' में रही हुई हस्व को दी "; ३-२ सप्रथमा के एकवचन में पुस्लिप में 'सि' अथवा 'विस' के स्थान पर 'भो' होकर नीसही रूप सिद्ध हो जाता है।
अतः समृद्ध्यादौ वा ॥ १-४४ ॥ समृद्धि इत्येवमादिपु शब्देषु श्रादेरकारस्य दीर्घो वा भवनि । सामिद्धी समिद्धी । पासिद्धी पसिद्धी । पायर्ड पयर्ड । पाडिया पडिवमा | पासुत्तो पमुत्तो । पाडिसिद्धी पडिसिद्धी । सारिच्छो सरिच्छो । माणसी मणंसी | माणसिणी भणसिणी । आहिसआई अहिश्राई । पारोहो परोहो । पायासू पवार । पाडिप्फद्वी पडिफद्धी ॥ समृद्धि । प्रसिद्धि । प्रकट । प्रतिपन । प्रसुत । प्रतिसिद्धि । सहक्ष | मनस्विन् । मनस्विनी । अभियाति । प्ररोह । प्रवासिन् । प्रतिस्पर्द्धिन् ॥ आकृतिगणोयम् । तेन ! अस्पर्शः । श्राफंसो ॥ परकीयम् । पारकरं । पारक्कं ।। प्रवचनं । पावयणं ।। चतुरन्तम् । चाउरन्तं इत्यापि भवति ।।
अर्थः-समृद्धि आदि इन शब्दझे में आदि में रहे हुए 'अ' का विकल्प से दरोर्घ अर्थात् 'श' होता है जैसे-समृद्धि - सामिडी और समिद्धो । प्रसिद्धि - पासिद्धि और पसिढी । प्रकट = पापा और पया । पतिपत: पारिवा और पिया ।यों आगे भी दोष शब्दों में समझ सेना चाहिये।
त्ति में 'माकृति गगोऽयम्' कह कर यह तात्पर्य समझाया है कि जिस प्रकार में बाहरण पिये पये है। बस ही अन्य शारों में भी मावि 'अ' का शीर्ष 'मा' आवश्यकतानुसार समझ लेना । जैसे कि-अस्पर्श - अाफसो. परकीयम् पारकर और धारक || प्रवचनम् = पावपणं ॥ चतुरन्तम् पाउरन्तं स्यादि रूप से 'ब' का 'मा' जाम सेना।
समृद्धिः संस्कृत शम्य है । इसके प्राकृत रुप सामिडो और समिद्धी होते है। इनमें सूत्र संस्था (-२२८ 'कृ' को '; १-४ से विकल्प से कादि ''का 'मा', ३-१९ से प्रपमा के एक वचन में स्त्रीलिप में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व '' दीर्घ होकर सामिली और समिदी रूप सिड हो जाते है।
प्रसिद्धिः संस्कृत शम्न है। इसके प्राकृत रूप पासिखी मोर पतिकी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या २.७९ से '' का लोप; १.४४ से आदि 'अ का 'या' विकल्प से होता है । ३-१९ से प्रथमा के एक पचन में स्त्रीलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्परन पर 'हरब-इ' दीर्घ ' होकर पासिही और पसिद्धी कप सिद्ध हो जाते हैं।