________________
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
[८५
माज्ञः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप 'पग्णो' होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; १-८४ से 'पा' के 'आ' का 'अ' २-४२ से'' का 'ण'; २-८९ से प्राप्त 'ण' का द्विस्व ''; ३-२ से प्रथा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर 'पojो लिया बात है ।। ५६ ॥
एच्छय्यादौ ।। १-५७ ॥ शम्यादिषु आदेरस्य एत्वं भवति ॥ सेज्जा । सुन्दरं । गेन्दुभं । एत्थ ।। शय्या । सौन्दर्य । कन्दुक । अत्र ॥ मार्षे पुरं कम्मं ।
अर्थः-शम्या आदि शब्दों में आदि 'अ' का 'ए होता है । जैसे-शय्या = सेग्ला । सौन्वयम् = तुन्वर । कन्भुकम् = गैन्युअं । अत्र-रत्य ।। आर्ष में आरि 'मा' का 'ए' मो देखा जाता है। जैसे-पुरा कर्म = पुरे कम्म ।।
शय्या संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप सेना होता है । इसमें सब संख्पा १-५७ से 'शा' के आदि 'अ' का 'ए'; १-२६० से 'या' का 'स'; २-२४ से 'व्य' का 'ज'; २.८९ से प्राप्त 'ज' का हिस्व 'ज'; और सिख हेम व्याकरण के २-४-१८ से आकारान्त स्त्रोसिस में प्रथमा के एक बबन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ना' होकर सेजा रूप सिद्ध हो जाता है।
सौन्दर्यम संस्कृत शम्न हैं। इसका प्राकृत रूप सुन्वेरं होता है। इसमें सम संख्या १-१६. से 'ओ' का 'च१-५७ से 'द' के 'ब' का 'ए'; २-६३ से 'य' का '; ३.२५ से नपुसकसिंग में प्रथमा के एक पवन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' को प्राप्ति, और १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर सुन्दरं रूप सिद्ध हो जाता है।
कन्चकम् संस्कृत शग है | इसका प्राकृत रूप गेन्चुभं होता है । इसमें सूत्र संस्था १-१८२ से आणि 'क' का 'ग'; १-५७ से प्राप्त 'ग' के 'अ' का 'ए'; १-१७७ से द्वितीय 'क' का लोप; ३-२५ से नपुसक लिय में प्रपमा के एक वचन में 'स' प्रत्यय के स्थान पर 'म' को प्राप्ति; मौर १-२३ से प्राप्त '' का मनुस्वार होकर गेन्दुरुप सिद्ध हो जाता है।
'एत्थ' को सिहि १-४० में की गई हैं।
पुराकर्म संस्कृत शम्म है। इसका आर्य प्राकृत रूप पुरे काम होता है । इसमें मूत्र संख्या १-५७ को पत्ति से 'आ' का 'ए'२-७९ से '' का लोप; २-८९ से 'म' का विस्व R'; ३-२५ से प्रथमा के एक वबम में मपुसक लिंग में "सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त 'म्'का अनुस्वार होकर 'पुरेकम्म' रूप सिखो जाता है ।। ५७॥
वल्ल्युत्कर-पर्यन्ताश्चय वा ॥ १-५८ ॥ एषु आदेरस्य एत्वं वा भवति ॥ चेल्ली वल्ली । उकेरो उक्करो। परन्तो पज्जन्तो। अच्छेरं अच्छरिश्र अच्छअरं अच्छरिज अच्वरी ॥
.