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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
तोन्तरि ॥१.६०॥ अन्तर शब्दे तस्य अत एत्वं भवति ।। अन्तः पुरम् । अन्ते उरं ॥ अन्तवारी । भन्ते पारी । क्वचित्र भवति । अन्तग्गयं । अन्ती-वीसम्भ-निवेसिप्राणं ।।
अर्थ:-तर-सत में 'त' के 'अ' का 'ए' होता है । जमें-अन्तः पुरम् = अन्ते उर। अन्तरवारो- बन्ने भारी ।। कहीं कहीं पर 'अन्तर' के 'त' के 'अ' का 'ए' नहीं भी होता है । जैसे-अन्तर्गतम् = मन्तगयं ॥ भन्तरविशम्भ-निषेसितानाम अम्तो-बीसम्भ-निवेसिआण ।।
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अन्तःपुरम् संस्कृत शम्ब है । इसका प्राकृत रूप अन्ते उर होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१५ से 'र' अथवा 'विसर्ग' का लोप १-६० से 'त' के 'अ' का 'ए', १ .१७७ से प्' का लोए, ३-५ से प्रपमा से एकवधान में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के समान पर 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति, १-२३ से 'म्' का मनुस्वार होकर 'अन्तेजरं' रूप सिद्ध हो जाला है।
अन्तश्चारी संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप अन्तेारी होता है । इसमें सूत्र संस्था १-११ से 'म का लोप, १.६० से 'a' _ 'अ' का 'ए'; १-१७७ में 'म्' का लोय; ३-१९ से अपमा के एक पवन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्य स्वर को वीर्घता होकर अन्तेआरी रूप सिड हो जाता है।
अन्तर्गतम् संस्कृत शम्न है। इसका प्राकृत रूप अन्तग्गय होता है । इसमें सूत्र संख्या १-१ से '' का लोप; २-८५ से 'ग' का द्वित्व 'ग'; १-१५१ से वितोय 'त' का लो५; ११८० से '' के शेष 'म' का 'प'; ३-२५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म' प्रत्यय की प्राप्तिः १-२३ से प्राप्त 'म्' का अनुश्वार होकर अन्तग्गयं रूप सिद्ध हो जाता है।
अन्तर-षिश्रम्भ-निवसितानाम् संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप अन्तो-दोसम्भ-निवेसिा होता है। इसमें सूत्र संख्या १३७ से 'अन्तर' के 'र' का गी; २.७१ से '' के 'र' का लोप; १.२६० से 'श' का 'स'; १-४३ से "व' की 'को दोध है; १-१७७ से 'त' का लोप: ५-६ से पछी बहुवचन के प्रत्यय 'बा' पाने 'माम्' के स्थान पर 'ब' को प्राप्ति। ३.१२ से प्राप्त 'ल' के पहिले के समर 'म' का बोध स्वर 'भा'; १-२७ मे '' पर अनुस्वार का आगम होकर अन्तो-वीसम्भ-निवेसिआण रूप सिद्ध हो जाता है।
श्रोत्सदमे ॥ १-६१॥ पम शब्दे आदेरत मोत्वं भवति ॥ पोम्मं ॥ पद्म-छम-(२-११२) इति विश्लेषे न भवति । पउमं॥
अर्थ:-पय शङव में प्रारि 'अ' का 'ओ' होता है । जैसे-पपम् = पोम । किन्तु सत्र संकमा २-११२ से विलेप अवस्था में आवि 'अ' का 'ओ' नहीं होता है। जैसे-पपम् -पउमं ।।