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* प्राकृत व्याकरण *
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अर्थ:-हली उरकर, पोराचर्य में आदि 'म' का विकल्प से 'ए' होता है। जैसे- वल्ली = बेल्ली और वल्ली | उत्करः = उनके रो और उक्करो। पर्यन्तःप्रेरन्तो और पज्जन्तो । आश्चर्यम् अच्छरं अन्हरिअं इत्यादि ।
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वल्ली संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप वेल्ली और बल्ली होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-५८ से आदि 'क' का विकल्प से 'ए' और ३-१९ से स्त्रीलिंग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्य स्वर दीर्घ का दीर्घ ही होकर 'वेल्ली' और वल्ली रूप सिद्ध हो जाते हैं ।
उत्करः संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप उक्तेरो बौर उश्करी होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'तू' का लोप २-८९ से 'क' का द्वित्व 'क' १-५८ से 'क' के 'म' का विकल्प से 'ए' ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर उक्करो और उक्करी रूप सिद्ध होते हैं 1
पर्यन्तः संस्कृत शब्द हूँ। इसके प्राकृत रूप पेरतो और पजस्तो होते हैं। इनमें सूत्र सं १-५८ से 'प' के 'अ' का ए' २०६५ से ''कार'; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर पेरन्तो रूप सिद्ध हो जाता है। द्वितीय का पजस्तो में सूत्र संख्या २-२४ से '' का 'ज'; २-८९ से प्राप्त 'ज' का विम' ३-२ से प्रथमा के एक बचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर जन्ती रूप सिद्ध हो जाते हैं।
आश्चर्यम् संस्कृत शव है। इसके प्राकृत रूप अच्छे अच्छरिवं, अच्छसर, अरिवर्ज और अच्छरी होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-८४ से 'आ' का 'अ' २-२१ से 'इ'छ' २८९ से प्राप्त 'छ' का हिस्वा 'छ' २-९० स े प्राप्त पूर्व 'छ' का ' २-६६ से 'मैं' का 'र' १-५८ से 'छ' के 'अ' का विकल्प से 'ए' ३-२५ मे प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्तिः १-२३ से प्राप्त 'म' का अनुस्वार होकर अच्छे रूप सिद्ध हो जाता है । २-६७ से पक्ष में 'यं' का विकल्प से 'रिज'; 'अर' 'रिज', मोर 'अ' ३ - २५ से प्रथमा के एक वचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति एवं १ - २३ से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर कम से अच्छुरिअं अच्छअरे, अच्छरिर्ज और अच्छरी रूप सिद्ध हो जाते हैं ॥ ५८ ॥
ब्रह्मचर्ये वः ॥ १-५६ ॥
शब्दे च अत एत्वं भवति || बम्हचेर ॥
अर्थ:- शब्द में 'च' '' का 'ए' होता है। जैसे
वेरं ॥
लोय; २-७४ से' 'प्र' का 'ह' २-६३ से '' का ''; दवन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' बम्हयेरं रूप सिद्ध हो जाता है ।। ५९ ।।
ब्रहमचर्यम्, संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप बरं होता है। इसमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र्' का १-५९ से 'च' के 'अ' का 'ए' ३ २५ से प्रथमा के एक प्रत्यय की प्राप्ति १-२३ से 'म्' का यनुस्वार होकर
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