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Meaniwand
* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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प्रथमा के एक वचन में नमक निंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त म्' का अनुस्वार होकर सखायं रूप सिद्ध हो जाता है । ॥ ४ ॥
उः साम्ना-स्तावके ॥ १-७५ ॥ अनयोरादेरात उत्वं भवति ।। सुबहा । युवओ ||
अर्थः-सारना और स्तावक शटलों में प्रादि 'श्रा' का 'उ' होता है। जैसे-मास्ना - सुरहा। स्तावकः = थुवयो।
सास्नाः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप सुण्डा होता है । इसमें सूत्र-संख्या२-७५ से 'स्ना' का रहा, १-७५ से आदि आ का ; सिद्ध हेन व्याकरण के २-४-१८ से स्त्रीलिंग श्राकारान्त शडझें में प्रथमा के एक बचन में 'या' प्रत्यय की प्राप्ति होकर मुण्हा रूप सिद्ध हो जाता है।
स्तावकः संस्कृल विशेषण है। इसका प्राकृत रूप थुप्रो होता । इसमें सूत्र-संख्या-२-४५ से 'स्त' का 'थ'; १-४५. से अदि 'स्पा' का 'उ'; १-१७७ मे 'क' का लोप; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुलिं तग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'नो' प्रत्यय को प्राप्ति होकर शुवो रूप सिद्ध हो जाता है । ।। ७५॥
ऊद्रासारे ॥ १-७६ ।। श्रासार शब्दे आदेरात ऊद्वा भवति । ऊसारो । आसारो ॥
अर्थ:-प्रासार शब्द में आदि 'श्रा' का विकला से होता है। जैसे-आसार:- ऊसारी और आसारो॥
___ आसारः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप ऊपारो और श्रासारो होते है। इनमें सूत्र संख्या १.७६ से आदि 'आ' का विकल्प से 3 और १२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर कम से असारो और आसारी रूप सिद्ध हो जाते है । ७६ ॥
पायर्या यां यः श्वश्वाम् ॥१-७७ ॥ आर्या शन्दे श्वश्र्या वाच्यायां यस्यात ऊर्भवति ॥ अज्जू ॥ श्वरर्वामिति किम् । अजा ॥ ____ अर्थ:-श्रार्या शब्द का अर्थ जब 'सासु' होवे तो आर्या के 'या' के 'श्रा' का 'ऊ' होता है। जैसे-श्रार्या = अजू-(सासु)। श्वन-याने सासु ऐसा क्यों कहा गया है ? उत्तर-जब भार्या का अर्थ सामु नहीं होगा; तब 'या' के 'श्रा' का 'ऊ' नहीं होंगा । जैसे-आर्या-अज्जा ।। (सावी)।