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* त्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित #
खतः संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप लुडिओ और खडिओ होते हैं। इनमें सूत्र संपर १-५३ से अदि- 'अ' का 'म्' सहित विकल्प से ''; १-१७७ से 'त्' का लोप ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में 'सि' प्रस्थय के स्थान पर 'ओ' होकर क्रम से खुडिओ और खण्डिओ रूप सिद्ध हो जाते हैं ।। ५३ ।।
गवये वः ॥
१-५४ ॥
वय शब्दे वकाराकारस्य उत्वं भवति || गउओ । गज्या ॥
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अर्थः गवय शब्द में 'ब' के 'अ' का उ' होता है। जैसे- गवयः = गउओ और गउआ ||
गवयः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप गडओ होता है इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'व्' और 'य्' का लोप: १-५४ सेप्त 'ब' के 'अ' का 'उ' ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिंग में सि' प्रस्थय के स्थान पर 'भी' होकर 'ओ' रूप सिद्ध हो जाता है ।
प्रथम शब्दे पकार थकारयोरकारस्य
या संस्कृत हूँ । इसका प्राकृत रूप गउबा होता है। इसमें सूत्र संख्या १-१७७ से 'व्' और 'य्' का लोप: १०५४ से लुप्त 'व' के 'अ' का 'उ'; और सिद्ध-हेम-व्याकरण के २-४-१८ से सूत्र 'आत्' से प्रथमः के एक वचन में स्त्रीलिंग में 'लि' प्रमम के स्थान पर 'का' होकर गजआ रूप सिद्ध हो जाता है । । ५४ ।
प्रथमे पथो वा ॥ १-५५ ॥
युगपत् क्रमेण च उकारों वा भवति ।। पुदुमं
पुर्व पदुमे पढमं ||
अर्थ:-प्रथम शब्द में 'प' के और 'प' के 'अ' का 'उ' विकल्प से एक साथ भी होता है और क्रम से भी होता है। जैसे- प्रथमम् (एक साथ का उदाहरण) पुमं (म के उदाहरण -) पुढमं और पढ़नं । ( विकल्प का उदाहरण) पढमं ।
पहने। इनमें सूत्र
कर 'उ' विकल्प से;
प्रथमम् । संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप धार होते हैं। पुर्म एवमं पर्म और संख्या २०७९ से हू' का लोपः १-२१५ से 'च' का 'ढ' १-५५ से 'प' और प्राप्त ' के 'अ' युगपद् रूप से और क्रम मे २-२५ से प्रथमा के एकवचन में नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' को प्राप्ति १.२३ से प्राप्त ''प्रश्यप का अनुस्वार होकर पुडुमं, पुड, पडसं, और पढ़ कर सिद्ध हो जाते हैं ।। ५५ ।।
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ज्ञो पत्वे भिज्ञादों ॥ १-५६ ॥
अभि एवं प्रकारेषु ज्ञस्य त्वे कृते ज्ञस्यैव अत उत्वं भवति || अहिए । सम्बत् । कयष्णुः । श्राममण्णु ॥ एत्व इति किंम् | अहिज्जी । सब्वज्जी ।। श्रभिज्ञादावितिकिम् । प्राज्ञः । पण्णी | ये शस्त्र रात्वे उत्वं दृश्यतेते अभिज्ञादयः ॥