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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित -
सप्तपणे वा ॥ १-४६॥ सप्तपणे द्वितीयस्यात इत्व वा भवति ।। छत्तिवएणो । छत्तत्रएणो || अर्थः-सप्तपर्ण शम्ब में द्वितीय 'अ' को 'इ' विकल्प से होती है। बस-सप्तपर्णः - छत्तिवानो और बसवण्णो।।
सप्तपर्णः संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप छत्तिषण्मो और छत्तवष्णो होते हैं। इनमें सूत्र संख्या-1-२६५ से 'स' का 'छ। २-७७ से 'क' का लोग, २: शेर बहा द्विल'.'.-४. महिला की माने 'स' के 'अ' को ''विकरूप से; १-२३१ सेप' काव२-१ से 'र'का लोग, २-८९ से 'म'का विस्व'-'; और ३-२ स पुस्लिग में प्रथमा के एक यवन में सि' प्रत्यय के स्पान पर 'ओ' होकर कम से उत्तिवण्णो और छत्तषणो रूप सिब हो जाते हैं। ॥ ४९।।।
मयटय इ वा ॥ १-५० ॥ मयट प्रत्यये श्रादेरतः स्थाने अइ इत्यादेशो भवति वा । विषमयः । विसमाभो । विसममओ।
अर्थ:- 'मयट्' प्रस्पय में मावि 'म' के स्थान पर 'अ' एसा आवेश विकल्प से हुमा करता है । जैसेविषमयः-विसमाओ और विसमओ ।।
विषमयः संस्कृत शव है । इसके प्राकृत रूप विसमड़ओ और विसपओ होते हैं । इनमें म ना १-२६० से 'व का 'स'; १-५० से 'मय' में 'म' के 'अ' के स्थान पर 'अ' आदेश की विकता से प्राप्ति; १-१७७ 'म्' का लोप; और ३-२ से पुल्लिग में प्रवपा के एक बच्चन में सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्ररपय को प्राप्ति होकर कम से घिसमईओ और विसमओ रूप सिब हो जाते हैं।
ई हरे वा ॥ १-५१ ॥ हर शब्दे श्रादेरत ईर्वा भवति । हीरो हरी ॥ अर्थ:-हर शम्ब में आदि के 'न की '६" विकल्प से होती है । जैसे-हर हीरो और हरी ॥
हरः संस्कृत शम्य है । इसके प्राकृत रूप हीरा और हरी होते हैं । इनमें प्रम संख्या १.५१ में मावि '' को विकल्प से ; मौर ३.९ से पुल्लिग में प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' होकर कम से हीरो और हरो रूप सिद्ध हो जाते हैं ।। ५१।।
धनि-विष्वचोरुः ॥ १-५२ ॥ अनयोरादेरस्य उत्वं भवति ॥ झुणी । बीसु॥ कथं सुणभो । शुनक इति प्रकृत्यन्तरस्य ।। अन् शन्दस्य तु साणो इति प्रयोगौ भवतः॥