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में प्राकृत व्याकरण *
अर्थ:-स्वनि और थिख्यक शब्दों के आदि 'अ' का 'उ' होता है। जैसे-ध्वनि = भुणी । विवावी। 'सुणओं रूप कैसे हुआ ? उत्तर-इसका मूल शव भिन्न है। और यह जनक है । इससे 'सुपओ पतला है । और 'श्वन शब्द के प्राकृत रूप 'सा' और 'सागो' एसे दो होते हैं।
ध्यान: संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप सपो होता है । इसमें सूत्र संस्था २०१५ से 'क' का 'स'; १.५२ आदि 'अ'का'क'; १.२२८ से 'म' का ''; ३-१९ से स्त्रोनिग में प्रथमा के एक बडन में सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य स्वर हुन्ध 'इ' को दो ।' होकर झुणी कप सिद्ध हो जाता है।
'वीमुंशय की सिद्धि सूत्र संख्या १२४ में की गई है।
शुनकः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप सुणी होता है । इसमें सूत्र संख्या १.२६० से 'श' का ''; १-२२८ से 'न' का 'ण'; १-१५७ से 'क' का लोप; ३-२ से पुल्लिग में प्रथमा के एकवचन में 'सिं प्रत्यय के स्थान पर 'ओ होकर सुणओ रूप सिद्ध हो जाता है।
इधन् संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप मा होता है । इसमें सूत्र संख्या १.१७७ से 'ब' का लोप; १-९६० से 'श्' का 'स्'; १-११ से अन्त्य व्यञ्जन 'म्' का लोए, और ३-४९ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'आ' की प्राप्ति होकर 'सा' म सिद्ध हो जाता है।
इवन संस्कृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप सागी होता है। इसमें पत्र संख्या १-१७७ से 'व' का लोप, १-२६० से 'श' का 'स', ३-५६ से 'म्' के स्थान पर 'माण' आवेधा की प्राप्ति १.४ से 'स' के 'अ' के साप में 'माण' के 'R' को संबि, और ३-२ से प्रथमा के एकवचन में पुल्लिा में सि प्रत्यय के क्यान पर मो होकर साणो रूप सिद्ध हो जाता है।
वन्द्र-खण्डिते या वा ॥ १-५३ ॥ अनयोरादेरस्य णकारेण सहितस्प उत्वं वा भवति ।। बुन्द्र वन्द्र ! खुडिओ । खण्डिो ।
अर्थः-वन शम्म में आदि 'अ' का विकल्प से 'व' होता है। सूत्रानुसार यहाँ पर 'ग' सो दिखलाई नहीं देता है । परन्तु प्राकृत व्याकरण की हस्त लिखित पाटन की प्रति में 'बन्द' के स्थान पर 'बण्ड' लिखा हमा। अतः 'R' और खण्डित में 'ण' के साथ 'आवि-अ' का विकल्प से होता है। से वनम.का बुन और वन्द्रं । सग्निसः कारिओ और पण्डिओ।
‘बन्धम, संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप बुग्न और चन्द्र होते हैं। इनमें सूत्र संस्था १-५३ से मावि-'अ' का विकल्प से 'अ'; ३-२५ से प्रथमा के एक बधम में नपुसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर '' की प्राप्ति १.२३ से प्राप्त 'म्' का मनुस्वार होकर वुन और पन्द्र रूप तिब हो जाते है।