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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
परित
संस्पर्शः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप संफासो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-५३ से 'स्प' का 'क'; २-७९ से 'र' का लोप; १-४३ से 'फ' के 'अ' का 'या'; १.२६० से 'श' का 'स'; ३-२ से प्रथमा के एक पचन में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर 'संफासी रूप सिख हो जाता है।
अश्वः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप आसो होता है । इसमें सूत्र-संख्या १.१७. से'' का लोप १-४३ से अवि 'अ' का 'आ'; १-२६० से 'श' का 'स'; ३-२ से प्रथमा पुल्लिग एक वचन में 'सि' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर 'भासो रूप सिद्ध हो जाता है।
विश्वसिति संस्कृत क्रियापद है। इसका प्राकृत रूप वोतसइ होता है। इसमें सत्र संख्या १.१७७ से '' का लोप; १-२६० से 'श' का 'स'; १०४३ से 'वि' के 'इ' को बोर्ड 'ई'; ४-२३९ से 'सि' के '' का '; ३.३३९ से प्रथम पुरुष में वर्तमान काल में एक वन में 'ति' के स्थान पर '' होकर पीससड़ रूप सिख हो जाता है।
विश्वासः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत प बोसासो होता है । इसमें सूत्र-संस्था १-१७७ से 'व' का लोप; १-२६० से 'श' का 'स'; १-४३ से '' को दोध 'ई; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होगा सासोए सहा जाता है।
दुशासनः संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृप्त रूप दूसासणो होता है । इसमें सूत्र-संल्या २-७७ से 'श्' का लोप; १-४३ से '3' का वीर्ष १-२६० से 'श' का 'स'; १-२२८ से 'म' का 'ण'; ३-२ से प्रपमा पुल्लिग एक बचम में 'ति' अथवा विसर्ग के स्थान पर 'ओ' होकर दूसासको रूप सिद्ध हो जाता है।
मणासिला की सिद्धि सूत्र संख्या १.२६ में की गई है।
शिव्या संस्कृत शम्ब है। इसका प्राकृत रूप सीसा होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७८ से '' का लोप; १-२६० से 'श' और 'ब' का 'स'; १-४३ से '' की वीर्घ 'ई'; ३-२ से प्रथमा के एक वचन में पुल्लिा में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर सोशो रूप सिद्ध हो जाता है।
पुष्यः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप तसो होता है । इसम सूत्र-संख्या २-७८ से '' का लोप; १.२६० से 'क' का 'स'; १-४३ से'' का वो 'क'; ३-२ से प्रथमा के एक वचम में पुल्लिा में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ होकर पूसो रूप सिद्ध हो जाता है।
मनुष्यः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप मणूसो होता है । इसमें सूत्र-संख्या २-७८ से 'म्' का लोप; १-२६० से 'ब'कास'; १४३ से 'उ' का दीर्घ 'क'; १-२२८ में '' का 'ण' और ३-२ से प्रषमा के एकवचन में पुल्लिा में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ' होकर मणूमो रूप सिद्ध हो जाता है।
फर्यकः संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप कासओ होता है। इसमें सूत्र-संख्या २-७९ से 'का लोप; १-४३ से आदि 'क' के 'अ' का 'मा'; १-२६० से कास'; १-१७७ से 'क' का सोप; ३-२ से प्रथमा के एक बयान में पुस्लिग में 'सि' अथवा 'विसर्ग' के स्थान पर 'ओ होकर कासओ कप सिद्ध हो जाता है।