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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
प्रश्न:-संस्कृत शम्न है । इसके प्राकृत रूप पाहा और पाहो होते हैं । इनमें सूत्र संख्या २-७९ से 'र' का लोप; २-७५ से 'इन' का 'ह' आदेश; १-३५ से स्त्रीलिंग विकल्प से होने पर प्रथमा के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर सिम हेम व्याकरण के २-४.१८ के सूत्रानुसार 'आ' प्रत्यय प्राप्त होकर पण्हा रूप सिद्ध हो जाता है । एवं लिंग में वैकल्पिक विधान होने से पुल्लिा में ३-२ से प्रथमा के एक वचन में 'सि' के स्थान पर 'मो' प्रस्पर की प्राप्ति होकर पण्हो रूप सिद्ध हो जाता है।
चीर्यम्:-संस्कृत शम्न है । इसके प्राकृत रूप चोरिजा और वोरिज होते हैं । इसमें सूत्र-संख्या-1-१५९ से "ओ' का ओ'; २-१०७ से 'इ का आगम होकर 'र' में मिलने पर 'रि' हुआ । १-१५० से 'य' का लोप; सिद्ध हेम व्याकरण के २-४-१८ से स्त्रीलिंग वाचक 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति १-११ से अन्य 'म्' का सोपा होकर चोरिआ रूप सिद्ध हो जाता है । चूसरे रूप में सूत्र १-३५ में जहाँ स्त्रीलिंग नहीं गिना बाया; अति मपुंसकलिग में ३-२५ से प्रपमा एक घघन में नपुंसक लिंग का 'म्' प्रत्यय; १-२३ से 'म'का अनुस्वार होकर चोरिअंकप सिब हो जाता है।
कुक्षिः संस्कृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप कुनछी है । इसमें सूत्रसंख्या-२-१७ से '' का "छ"; २-८९ से प्राप्त 'छ' का विस्व 'छ छ'; २-९० से प्राप्त पूर्व छ' का ''१-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण ३-१९ से प्रपा एक वचन में "सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' की दीर्घ स्वर '' होकर कुच्छी रूप सिद्ध हो जाता है।
बलि:-संस्कृत शम्ब है। इसका प्राकृत रूप बली होता है। इसमें सब संस्था-१-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण ३-१९स प्रघमा एक पनन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'स्व स्वर' की दीर्घस्बर होकर पली प सिद्ध हो जाता है।
निधिः-संस्कृत शाब है । इसका प्राकृत रूप निही होता है । इसमें सूत्र संख्या-१-१८५ से ''पका 'ह'; १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण; ३-१ से प्रथमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हस्व स्वर 'इ' को रोष
होकर निहीं रूप सिद्ध हो जाता है।
विधिः-संस्कृत शम है। इसका प्राकृत रूप विही होता है। इसमें मूत्र संसपा-१-१८७ से 'क' का ही १-३५ से स्त्रीलिंग का निर्धारण ३-१९ से प्रयमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर इस '' का '' होकर विही रूप सिद्ध हो जाता है।
रश्मि:-संस्कृत पाय है। इसका प्राकृत रूप रस्ती हो जाता है । इसमें भूत्र-संध्या-२-७८ से 'म का लोप; १-२६० से '' का 'स': २.८९ से 'स्' का द्विव 'रस'; ३-१९ से प्रथमा एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर हसबकी बोध होकर रस्सी रूप सिब हो जाता है।
शन्थिः संस्कृत शाम हैं। इसका प्राकृत रूप गच्छी होता है। इस सूत्र संख्या ४.१२० से प्रतिके स्थान