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* प्राकृत व्याकरण *
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एसा शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या १-३३ में की गई है।
गरिमा-संस्कृत रूप है। इसका मूल शब्द गरिमन् है। इसमें सूत्र संख्या ११५ से "न्” का लोप होहर "आ" होता हूँ । यो गरिमा रूप सिद्ध हो जाता है ।
एस:- शब्द की सिद्धि सूत्र संख्या- १-३२ में की गई है।
महिमा:- सस्कृत रूप है। इसका मूल शब्द महिमन् है । इसमें सूत्र संख्या १-१५ से '' का लोप होकर "आ" होता है वो महिमा रूप सिद्ध हो जाता है ।
निर्लज्जत्वम्:- संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप मिल्लज्जिमा होता है। इस सूत्र संख्या-२-७९ से "र" का लोप; २-८९ से "ल" का द्वित्व "हल''; २-१५४ से स्वम के स्थान पर 'डिमा" अर्थात् "इमा" का आदेश १-१० से 'ज' में स्थित "अ" का लोप होकर "ज" में "इमा" मित्र कर मारून सिद्ध हो जाता है।
धूर्तम्: संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप वृतिमा होता है । इसमें सूत्र संख्या - २०७२ से "इ" का लोप; २००७ है ""'-""क" का "हुम्ब उ"; २-६५४ से "स्वप्" के स्थान पर "हिमा" अर्थात् "इमा का आदेश १-१० से "त" में स्थित "अ" का लोप होकर ' त्" में "इमा" मिलकर धुतिमा रूप सिद्ध हो जाता है।
अञ्जलिः संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप ( एसा) अञ्जली और (एस) अञ्जली होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १- ३५ से अन्जली विकतर से स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों लिंगों में प्रयुक्त किये जाने का विधान हूं। अतः ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिंग में और स्त्रीलिंग में दोनों लिंगों में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर अन्य हस्व स्वर का दीर्घ स्वर हो जाता है; यों (एला) अजली और (एस) अञ्जली सिद्ध हो जाते हैं।
पुष्ठम् संस्कृत शब्द हैं। इसके प्राकृत रूप पिट्ठी और पिट्ठ होते हैं। इसमें सूत्र संख्या १-९२९ से २-९० से प्राप्त पूर्व' का '' १-४६ से से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि'
की 'इ' २०३४ से 'ष्ठ' का 'ठ' २-८९ से प्राप्त 'ठ' का द्वित्व 'ठ'; '' में स्थित 'अ' की '' १-३५ से स्त्रोलिंग में होने पर और ३-१९ के स्थान पर अन्त्य स्वर 'इ' को दोघं 'ई' होकर पिठी रूप सिद्ध हो जाता है । १-२५ से विकल्प से नपुंसक होने की दशा में ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति १-२३ से 'म' का अनुस्वार होकर पिठ्ठे रूप सिद्ध हो जाता हूँ
अच्छी-शब्द सूत्र संख्या १-३३ में सिद्ध किया जा चुका है।
अक्षम् संस्कृत शब्व है। इसका प्राकृत रूप अच्छि होता है। इसमें सूत्र संख्या २-१७ से 'क्ष' का ''; २-८९ से द्विख 'छ्छ' की प्राप्ति; २९० से प्राप्त पूर्व 'छ' का ' १-३५ से विकल्प से स्त्रीलिंग नहीं होकर नपुंसक लिंग होने पर ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'म्' की प्राप्ति; १-२३. से प्राप्त 'म्' का अनुस्वार होकर 'अच्छे' रूप सिद्ध हो जाता है।