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* प्राकृत व्याकरण *
चक्यू पावई = अखि । प्रथम रूप प्रयमा बहुवचन के पुल्लिा का है: जबकि दूसरा रूप प्रजमा बहुवचन के नपुंसक लिग का है इसी प्रकार नयणा और नयणा: लोअणा और लोअण्णाई; ये शब्द भी आंख याचक है । इसमें प्रथम रुप तो प्रथमा बहुवचन में पुस्लिग का है; और द्वितीय रूप प्रयमा बहुवचन में मसक लिंग का है।
वसन आदि के उधाहरण इस प्रकार -वयणा और यणाई; अर्थात वचन : प्रथम रूप पुल्लिा में प्रयमा बहुवचन का है और द्वितीय रूप नपुसक लिंग में प्रयगा बहुवचन का है । विजणा, विनए अति विद्युत से । प्रथम म पुलिलग में तृतीया एक वचन का है; और द्वितोष रूप स्त्रीलिंग में तृतीया एक वचन का है । कुलो कुलं अर्थात् कुदम्य । प्रथम प पुल्लिा में प्रयमा एक बचन का है और द्वितीय रूप नसा लिा में प्रथमा एक बचन का है । छन्दो-छन्वं अर्थात् छन्द । यह भी कम से पुलिला और नसोक तथा प्रथमा एक बचन के का है।
माहप्पो माहापं अर्थात् माहात्म्य । यहाँ पर भी क्रम से पुल्लिग और मसर लिंग है; तथा प्रथमा एक धधन के रूप है । वुक्खा दुषलाई अर्थात् विविध दुःख । य भी ऋम से पुल्लिग और नपुसक लिंग में लिखे गये है। तथा प्रथमा बहुवचन के रूप है । भापणा भायणाई = भाजन बर्तन। प्रथम रूप पुल्लिंग में और द्वितीय रूप नपुंसक लिग में है। दोनों को विक्षित प्रथमा बहुमान हैं । यो उपरोक्त बचन आदि शब्द विकल्प से पुल्लिग भी होते हैं और नपुसकॉलग भी । किन्तु नेत्ता और मेताई अर्थात् आंख तथा कमला और कमला अर्थात् कमल इत्यादि शबयों के लिंग संस्कृत के समान ही होते हैं। अतः यहां पर बचन आदि के साय इनको गणना नहीं की गई है।
___ अद्य संस्कृत अव्यय है । इसका प्राकृत रूप अब होता है। इसमें सूब-सा २-२४ से '' का ज; ८९ से प्राप्त 'ज' को विरष 'उज' की प्राप्ति होकर 'अ' रूप सिद्ध हो जाता है।
"वि अग्यय की सिद्धि सम-संख्या १-६ में की गई है।
सा संस्कृत सर्वनाम स्त्रीलिंग शब्द इसका प्राकृत र 'सा' हो होता है। 'सा' सर्वनाम का मल शग 'त' है। इसमें पत्र संख्या ३.८६ से 'तद्' को 'स आदेश हुआ। ३.८७ का पति में उल्लिखित 'हेम व्याकरण २-४-१८ से 'आत्' सूत्र से स्त्रीलिंग में 'स' का 'सा होता है । तत्पश्चात् ३.३३ से प्रसमा के एक बचन में 'सि' प्रत्यय के योग से 'सा' रूप सिद्ध होता है।
झापत्ति संस्कृत क्रिया पर है। इसका प्राकृत का सबह होता है। इसमें सूत्र संख्या १.२६० से 'श' का 'स'; १-२३1 से 4 का 'क'; ३-१३९ से ति' के स्थान पर 'इ' की प्राप्ति होकर प्रथम पुरुष के एक बचन में वर्तमाम काल का रूप 'सवाई सिद्ध हो जाता है।
तक संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत कर ते होता है। इसमें सत्र संख्या ३-९९ से 'तर' के स्थान पर 'ते मादेश होकर तश्व सिद्ध हो जाता है।
अक्षिणी संस्कृत शब्द है । इसका प्राकृत रूप अन्छो होता है ! इसमें सूत्र संख्या २.१७ से '' '' २.८९ से प्राप्त 'छका द्विस्व 'छछ' की प्राप्ति २-९- से प्राप्त पूर्व'छके स्थान पर की प्राप्तिा .१-३३ से