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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
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माहात्म्य मूल संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप माहप्पो और माह होते हैं इनमें सूत्र-संख्या १-८४ 'हा' के 'आ'का ''; २.७८ से 'कालोप; २५१ से म' का आदेश 'प'; २-८१ से प्राप्त 'प'मा दिय१.३३ सेविका का पुल्लिगता का निधारण; ३-२ से प्रथमा के एक क्चर में सि' के स्थान पर 'ओ' होकर माहपो रूप सिद्ध हो जाता है। और जब १-३३ से नपुंसक विकल्प रूप से होने पर ३.२५ से स स्थान पर म' पर ए. १-२३ ५' का अनुस्वार होकर माहव्यं रूप सिद्ध हो जाता है।
दु:ख मूल संस्कृत शब्द हैं। इसके प्राकृत रूप दुक्खा और दुखाई होते हैं। इनमें सत्र संख्या १-१३ से दुर के 'र' का अर्थात विसर्ग का लोप; २-८९ से 'न' का द्विस्व 'रयत'; २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' का 'क'; १.३३ से वैकल्पिक रूप से पुल्लिगत्व की प्राप्ति ३.४ से प्रथमा और द्वितीया के बहुचन के प्रत्यय 'जस्-शस' का लोप; ३.१२ से वीर्घना प्राप्त होकर दुक वा रूप सिद्ध हो जाता है। १-३३ से नपुंसकता के विकल्प में ३-२६ से अंतिम स्वर की बोर्धता के साथ 'ड' प्रत्यय की प्राप्ति होकर टुक्रवाईप सिद्ध हो जाता है।
भाजन मूल संकृत रूप है। इसके प्राकृत रूप भायणा और भायणाई होते हैं। इनमें भूत्र-संख्या १.१७७ से 'ज' का लोप; १-१८० से 'अ' का '4'; १-२२८ से 'न' का ''; १.३३ से विकल्प रूप से पुल्लिगत्व को प्राप्ति; ३-४ से प्रथमा द्वितीया के बहुवचन के प्रत्यय 'जम्' शास्' का लोप; २-१२ से अंतिम स्वर को पता प्राप्त होकर भाराणा रूप सिद्ध हो जाता है । १-३३ से नपुसकत्व के विकल्प में ३.२६ से अंतिम स्वर को रोघता के साप '' प्रत्यय को प्राप्ति होकर भायणाई रूप सिद्ध हो जाता है।
नेत्र मूल संस्कृत शब्द है। इसके प्राकृत रूप नेता और नेताई होते हैं। इसमें सूत्र संख्या २-७१ से का लोप; २-८९ से शेष 'त' का द्विस्व 'त'; १-३३ से विकल्प रूप से पुल्लिगत्व की प्राप्ति; ३-४ से प्रयमा द्वितीया के बलुवचन के प्रत्यय 'जस्' 'शस्' का लोप, ३-१२ से अंतिम स्वर को दोघंता प्राप्त होकर नेता रूप सिव हो जाता है। १.३३ से नपुसकत्व के विकल्प में ३.२६ से अंतिम स्वर की दीर्घता के साथ ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर मेसाई रूप सिद्ध हो जाता है।
कमल मूल संस्कृत शब्द है । इसके प्राकृत रूप कमला और कमलाई होते हैं। इनमें सूत्र संख्या १.३३ से विकल्प रूप से पुल्लिगस्य की प्राप्ति; ३.४ से प्रथमा-द्वितीया के बहुवचन के प्रत्यय 'अस्' और 'शस्' का लोप; 1-१२ से अंतिम स्वर को वोधता प्राप्त होकर कमला रूप सिद्ध हो जाता है । १-३३ से नपुसकत्व के विकल्प में ३.२६ से अंतिम स्वर को दोपता के साथ 'ई' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कमलाई रूप सिम हो जाता है ॥ ३३ ।।
गुणाधाः क्लीवे वा ॥ १-३४ ॥ गुणादयः क्लीवे वा प्रयोक्तव्याः ॥ गुणाई गुणा ॥ विहवेहि गुमगाई मग्गन्ति | देवाणि देवा । बिन्दूई । बिन्दुणो । खग्गं खम्गो । मण्डलग्गं मण्डलग्गो । कररुहे. कररुहो । रुवखाई रुपखा । इत्यादि ।। इति गुणादयः ।।