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* प्राकृत व्याकरण *
पयस् संस्कृत शम्व है । इसका प्राकृत रूप 'पओ' होता है। इसमें सूत्र-संरूपा १.१७३ से यू' का लोग १-११ से 'स्' का लोप; १-३२ से नपुंसक लिंगत्व से पुल्लिगरव का निधारण; ३.२ से प्रथमा विभक्ति के एक पचन में 'ओ' प्रस्पय की प्राप्ति होकर 'पओं' स्प सिद्ध होता है।
तमो शम्ब की सिद्धि सूत्र-संख्या १-११ में की गई है।
तेजस् संस्कृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप तेश्रो' होता है। इसमें सूत्र-संस्था १-१७७ से 'ज' का लोर, १-११ से अन्य स्' का लोप; १.३२ से पुस्लिगस्य का निर्धारण; और ३.२ से प्रयमा के एक यमन में 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर 'तओ रूप सिद्ध होता है।
उरस संकृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप 'उर' होता है। इसमें सत्र संख्या १.११ से अगत्य 'स' का लोप; १-३२ से पुर्तिलगत्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एक पचन में 'सो' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'उरी रूप सिंह होता है।
जम्मो दाद की सिद्धि सूत्र संख्या १-११ में की गई है।
नर्मन् सस्कृत शग्य है । इसका प्राकृत कर नामो होता है इसमें मूत्र संख्या २.७१ से 'र' का लोप २-८९ से 'म'का द्वित्व 'मम'; १.११ से अस्पन' का लोप; १.३२ से पुस्तित्वका निर्धारण; और ३.२से प्रथम के एक वचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर "मम्मी का सिद्ध होता है।
भर्मन् संस्कृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप मम्मो होता है । इसमें सूत्र संख्या २-७९ से र' का लोप; २०८९ से द्वितीय 'म' को द्विस्व 'म्म' की प्राप्ति; १-१ से 'न' का लोप; १-३२ से पुल्लिपस्व का निर्धारण; और ३-२ से प्रथमा के एक वचन में 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर 'मम्मी' रूप सिद्ध होता है।
दामन संस्कृत शम्न है । इसका प्राकृत रूप काम होता है। इसमें सूत्र-संख्या १- १ से'' का लोप; ३-२५ से प्रयमा के एक वमन में नपुंसक होने मे 'म्' प्रत्यय को प्राप्तिः ५.२३ से प्रारत प्रत्यय 'म'का अनुस्वार होकर रामं रूप सिद्ध होता है।
शिरम् संस्कृत पास है इसका प्राकृत का सिर होता है । इप्समें सूत्र संख्या १-२६० से 'श' का 'स'; १.११ से अत्य 'स' का लोप; ३-२५ से प्रयमा एक वचन में नपुंसक होने से 'भ' प्रत्यय की प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म' का अनुस्वार होकर सिरं कप सिद्ध होता है।
नमस संस्कृत शब्द है। इसका प्राकृत रूप नहं होता है। इसमें सूत्र-संख्या १.१८७ से 'म' का ह'; १-११ से 'स्' का लोप; ३.२५ से प्रयना के एक यवन में नपुंसक होने से 'म' प्रत्यय को प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्पप म' का अनुस्वार होकर 'नह" रूप सिद्ध हो जाता है।
श्रेयस् संगकृत शबा है । इसका प्राकृत रूप से होता है । इसमें सूत्र-संख्या १.२६० से '' का '' २-७९ से '' का लोप: १-११ से 'स' का लोप: ३-२५ ले प्रथमा एक वचन में नपुसक होने से 'म' प्रत्यय को प्राप्ति; और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' का अनुस्वार होकर सर्य' रूप सिद्ध हो जाता है।