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* प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
'पाउसो' रूप की सिदि सूत्र-संस्था १-१९ में की गई है। 'सरो ' रूष की सिद्धि सूत्र-संख्या?-१८ में की गई है।
_ 'एषा संस्कृत सर्वनाम रूप है । इसका प्राकृत रूप-(पुल्लिग में) एस होता है। इसमें सूत्र-संख्या ३.८५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में पुल्लिग में मूल-संस्कृत सर्वनाम रूप 'एतत् के स्थान पर 'सि' प्रत्यय का योग होने पर 'एस' मावेश होकर 'एस' रूप सिद्ध हो जाता है ।
तरणिः संस्कृत स्त्रीलिग बाला रूप है । इसका प्राकृत (पुलिस में) पतरणो होता है । इसमें सूत्रसंख्या १-३१ से 'तरणि' शन को स्त्रीलिंगत्व में पुल्लिपर को प्राप्ति और ३-१९ से प्रवमा विभक्ति एक बधम में इकारान्त पुल्लिग में 'स प्रत्यय के स्थान पर अन्त्य हब स्वर को दोघं स्वर 'ई' को प्राप्ति होकर लरणी रूप सिद्ध हो जाता है । -३१।।
स्नमदाम-शिरो-नमः ॥ १-३२ ॥ दामन शिरस् नभस् वजितं सकारान्तं नकारान्तं च शब्दरूप 'सि प्रयोक्तव्यम् । सान्तम् । जसो । पत्रा । तमी । ते श्री । उग ।। नान्तम् । जम्मो । नम्मी । मम्मो || अदाम शिरो नम इति किम् । दामं । सिरं । नई । यच सेयं वयं सुमणं सम्म चम्ममिति दृश्यते तद् बहुलाधिकारात् ।
__ अर्थ: वामन्, शिरस् और नमस् इन संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त जिन संस्कृत शब्दों के मन में हलन्त 'R' अथवा हलन्त 'न्' है; एसे सकारान्त अथवा नकारान्त संस्कृत शब्दों का प्राकृत मान्तर करने पर इनके सिप में परिवर्तन हो जाता है। तबन्सार य नयु सरु लिग से पुरिजा बन जाते हैं । जैसे-सहारान्त शाओं के उगाहरन यशस् - जसो; पयसम्पओ; तमस्-तमो; तेजस् :: ते यो; उरस् : उरी; इत्यारि । नकारान्त शम्दों के उराहरणजन्मन = जम्मो; नर्मन - नम्मो और मनन् - मम्मी; इत्यारि ।
प्रश्न-दामन्, शिरम और मभस् शशे का लिग परिवर्तन क्यों नहीं होता है ?
उत्तर-पे शब्द प्राकृत भाषा में भी नमक लिंग व ले ही रहते हैं। आएव इनको त लिए परिवर्तन वाले विधान से पृथक हो रखना पड़ा है। जैसे-वामन = दाम; शिरस् = सिरं और नभस् = नहं। अन्य शर भी ऐसे पाये जाते हैं। जिनके लिंग में परिवर्तन नहीं होता है। इसका कारण 'बहुलं' सूत्रानुसार हो समाम लेना साहिय । जैसे-श्रेयस् = सेमं; वयस् = वर्ष सुमनस् = सुमणं; शर्म = सम्म और धर्म = चम्म; इस्यादि। ये शारक्ष सकारान्त अथवा नकारान्त हैं और संस्कृत भाषा में इनका लिंग नपुसक लिग है। तदनुसार माकृत-रूपान्तर में भी इनका लिग नपुंसक लिग हो रहा है। इनमें लिंग का परिवर्तन नहीं हुआ है। इसका कारण बालम्' सूत्र हो जानना चाहिये । भाषा के प्रवलित और बदमाय प्रवाह को पारगतो पता न हो सकते हैं। जसा शम्द की सिद्धि सूत्र-संस्था १-११ में की गई है।