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प्रितोद हिन्दी
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पड़ी और सं
अनुस्वार के स्थान पर बैकल्पिक रूप से हलन्त '' व्यजन को प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक बच में अकारान्त पुस्लिय में प्रिय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर फंसे दोनों सिद्ध हो जाते है ।
अन्तरम् संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप अन्तर और अंतर होते हैं। इनमें सूत्र- १-२५ से हल जन 'नू' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति १-३० से प्राप्त अनुस्वार के स्थान पर वैकल्पिक रूप से हन्त '' व्यञ्जन की प्राप्ति ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से 'म्' का अनुचार होडर कर से दोनों रूप असारं और अंतरं वि हो जाते हैं।
पन्थः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप पत्यो और पंथी होते हैं इन सू-१-२५ से 'न्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्तिः १-३० से प्राप्त अनुस्वार के स्थान पर वैकल्पिक रूप '' यमन की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में कापुर में प्रत्यय स्थान पर सिं के 'अ)' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों रूप पन्थो और पंथी सिद्ध हो जाते हैं।
चन्द्रः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप बन्यो और दो होते हैं इन-१-२५ से ह व्यञ्जन 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति १-३० से प्राप्त अनुस्वार के स्थान पर वैकल्पिक हा सेहत 'न्' को प्राप्ति २-८० से हम ''जन का लोप और ३-२ में प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों चन्द्र और यंत्रों सिद्ध हो जाते है।
बान्धवः संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप वो और बंधवो होते है । इनमें सूत्र संख्या १-८४ से '' में स्थित 'आ' के स्थान पर 'अ' की प्राप्ति १-२५ सेशन 'न्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति १-३० से प्राप्त स्वार के स्थान पर वैकल्पिक रूप से हलन्त '' जन की प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय को प्राप्ति होकर से दोनों क्रम रू पन्धवो और बंध सिद्ध हो जाते हैं।
कम्पते संस्कृतक किया पद का रूप है। इसके कम्प और कंपड होते। इनमें सू संख्या १-२२ को वृत्ति से हल न व्यन के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति १-३० से प्राप्त अदवार के स्थान हलन्त पर वैकल्पिक रूप से इन्त ""जन की प्राप्ति और ३-१३९ से वर्तमान काल के प्रथम पुरुष के एक द से 'से' प्रत्यय के स्थान पर 'क' प्रत्यय की प्राप्ति होकर कम से दोनों रूप कम्पड़ और रइ सिद्ध हो जाते
कांक्षति संस्कृत क्रियापद का रूप है। इसके प्राकृत (आदेश प्राप्त रूप वम् और बंकई होते हैं। इनमें सूत्र संख्या ४-१९२ से संस्कृत धातु 'का' के स्थान पर प्राकृत में 'बम्फू' को आदेश प्राप्तिः १-२३ को वृति से हलन्त 'म्' व्यञ्जन के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति १-३० सेअनुस्वार के स्थान पर वैकल्पिक