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करेमि अथवा हि करेमि सम्मुख सम अथवा मंहं शिशुरूप के अथवा किंतु और सिसोही अमवासियो इत्यादि ।
* प्राकृत व्याकरण *
मांस संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूपमा और मंतं होते हैं
इनसे
सूत्र संख्या १-२९ से'' पर थित अनुस्वार का लोप १-२५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लि 'म्' की प्राप्ति और १.२३ से प्राप्त प्रस्थय 'म्' के स्थान पर अरवार की प्राप्ति होकर प्रथम रूपमा सिद्ध हो जाता है
द्वितीय रूप - (ateम् = ) मंसं में सूत्र संख्या १७० से अनुस्वार का लोप नहीं होने की स्थिति में 'मां' में स्थित दीर्घ स्वर 'आ' के स्थान पर स्वर 'अ' को प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप से भी सिद्ध हो जाता है ।
मांसल संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप मासले और मंसलं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप मं सूत्र संख्या १-२९ से 'मां' पर स्थित अनुस्वार का लोप; ३- २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसक लिंग मे' प्रत्यय की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त प्रत्यय 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्रथम रूप मास सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप (मांस)
में स्थित बीधे स्वर 'बा' के स्थान पर दुख मंस भी सिद्ध हो जाता है ।
में सूत्र संख्या १-७० से अनुस्वार का लोप नहीं होने की स्थिति में 'मां' र 'अ' की प्राप्ति और दोष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर
कांस्यम संस्कृत रूप है। इसके प्राकृत रूप कास और कंसं होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १-२९ से 'क' पर स्थित अनुस्वार का कोप २७८ से 'व्' का लोपः ३ २५ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त नपुंसकलिंग में 'म्' प्रत्यय को प्राप्ति और १२३ के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर प्रथम
रूप फार्स सिद्ध हो जाता है।
द्वितीय रूप- (कांस्यम् = ) कंसं में सूत्र संख्या १-७० से अनुस्वार का लोप नहीं होने की स्थिति में 'को' में स्थित दीर्घ स्वर 'बा' के स्थान पर दूश्य स्वर 'अ' की प्राप्ति और शेष साधनिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप से भी सिद्ध हो जाता है।
पांसुः संस्कृत रूप है । इसके प्राकृत रूप पासू और पंसू होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्र संख्या १.२९ से 'प' पर स्थित अनुस्वार का छोप और ३-१९ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में उकारान्त पुलिय में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर स्व स्वर '' को दीर्घ स्वर 'क' की प्राप्ति होकर प्रथम रूप पालू सिद्ध हो जाता है।
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द्वितीय रूप (पांसु ) ) पंसू में सूत्र संख्या १-७० से अनुस्वार का लोप नहीं होने की स्थिति में 'पा' मं स्थित दीर्घं स्वर 'आ' के स्थान पर हुस्वर 'अ' की प्राप्ति और शेष साधतिका प्रथम रूप के समान ही होकर द्वितीय रूप पंसू भी सिद्ध हो जाता है।