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* प्राकृत व्याकरण
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१-२६० से '' के स्थान पर 'स्' को प्राप्ति; १-१७७ से 'कृ' का लोप और ३-५ से द्वितीया विभक्ति के एक वचन में 'म' प्रत्यय की प्राप्ति; १-२३ से 'म्' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर कप से दोनों हर के अं और फि सिद्ध हो जाते।
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सिंहः संस्कृत रूप हैं। इसके प्राकृत रूप सी और सिंघों होते हैं। इनमें से प्रथम रूप में सूत्रसं १-९२ से ह्रस्व वर 'इ' के स्थान पर दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्तिः १-२९ से अनुस्वार का लोप और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुलिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'ओ' प्रत्यय की प्राप्ति होकर प्रथम रूप first fसद्ध हो जाता है ।
द्वितीय रूप- ( सिंह: : ) सिंघी में सूत्र संख्या १-२६४ से अनुस्वार के पश्चात् रहे हुए 'ह' के स्थान पर 'घ' को प्राप्ति और ३-२ से प्रथमा विभक्ति के एक वचन में अकारान्त पुल्लिंग में 'सि' प्रत्यय के स्थान पर 'क्ष' प्रत्यय को प्राप्ति होकर द्वितीय रूप सिंघा भी सिद्ध हो जाता है || १-२९ ॥
वर्गेन्त्यो वा ॥ १-३० ॥
अनुस्वारस्य बर्गे परे प्रत्यासत्ते स्तस्यैव वर्गस्यान्त्यो वा भवति ॥ पङ्को पैको । सो
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संखो । अङ्गणं अंगणं । लक्षणं लंघणं । कञ्चु कंचुओ । लञ्छणं लचर्ण । अञ्जि अंजियं । समा संझा | कण्ट कंटओ । उक्कण्ठा उक्कंठा । कण्डं कडं । सपढो संढो । अन्तरं अंतरं । पन्थी पंथी | चन्दो चंदो बन्धवो बंधवो । कम्पइ कंपड़ । वम्फइ बंकर । कलम्बो कलंबो | आरम्भ आरंभ || वर्ग इति किम् । संस । संहरइ || नित्यमिच्छन्त्यन्ये ॥
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अर्थ - प्राकृत भाषा के किस शव में यदि अनुस्वार रहा हुआ हो और उस अनुस्वार के आगे यदि कोई aita - (वर्ग-वर्ग-वर्ग-तवर्ग कर पवर्ग का) अक्षर आया हुआ हो तो जिस वर्ग का अक्षर माया हुआ हो; उसी वर्ग का परचम अक्षर उस अवार के स्थान पर वैकल्पिक रूप से हो जाया करता हूं। जैसे- वर्ग को उदाहरण:- पपङ्को अथवा पंफोः शङ्कः = सो अथवा संखो; अङ्गणम् = अङ्गणं अथवा अंगणं लङ्घनम् =रुणं अथवा लंघणंव के उदहरण:-शुकः कचुओ अपना कंचुओ; लाञ्छनम् = लञ्छणं अथवा लंछणं अनि अथवा अंजिश । सन्ध्या सभा अथवा संशो वर्ग के उदाहरण - कण्टकः कष्टओ अथवा कंटो; उत्कण्ठा उक्कण्ठा अथवा उक्कंठा काण्डम् = कडं अथवा कर्ज षण्ढः = सण्डो अथवा सहो । तवर्ग के उदाहरण अन्तरम् = अन्तर अथवा अंतरं; पंथः पत्यो अथवा पंथो चन्द्रः = धन्वो अथवा चंदोः बान्धवः बन्धवो अथवा बंधयो । कम्पते कम्पर अयथा कंपइ कांति वम् अथवा बंद, लंबः = कलम्बो अथवा फलंदो और आरंभ: = आरम्भो अथवा नारंभ इत्यादि ।
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प्रश्नः - अनस्वार के आगे वर्गीय अक्षर आने पर ही अनुस्वार के स्थान पर वैकल्पिक रूप से उसी अक्षर के वर्ग का पंचम अक्षर हो जाता है; ऐसा उल्लेख क्यों किया गया ?