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*प्रियोदय हिन्दी व्याख्या सहित *
साक्षातू संस्कृत अव्यय रूप है । इसका प्राकृत रूप सक्कं होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-८४ से 'सा' में स्थित 'आ' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति; २-३ से 'भ' के स्थान पर '' की प्राप्ति; २-८९ से प्राप्त स्' को विस्व 'खल की प्राप्ति २-९० से प्राप्त पूर्व 'ख' के स्थान पर 'ई'को प्राप्ति; १-४ से अपना १-८४ से पदस्थ द्वितीय '' के स्थान पर 'अ' को प्राप्ति और १-२४ को वृत्ति से अन्त्य हलन्त व्यञ्जन 'त' के स्थान पर 'म' की प्राप्ति एवं १-२३ से प्राप्त म्' के स्थान पर अनुरवार की प्राप्ति होकर सारखे रूप सिम हो जाता है।
यत् संस्कृत अस्पय रूप है । इसका प्राकृत रूप में होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२४५ से 'य' के स्थान पर 'ज' की प्राप्ति और १-२४ से अन्स्य हलन्त घ्यजन 'त्' के स्थान पर हलन्त 'म्' को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त 'म' के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर जं रूप सिद्ध हो जाता है।
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तत् संस्कृत अध्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप होता है । इसमें सूत्र-संख्या १-२४ मे अन्य हलन ध्यञ्जन 'त्' के स्थान पर हलन्स 'म्' की प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त 'म्' के स्थान पर अनुस्वार को प्राप्ति होकर त रूप सिद्ध हो जाता है।
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व संस्कृत अध्यय रूप है । इसका प्राकृत रूप ची होता है । इसमें पत्र-संख्या ३-४३ से हस्थ स्वर 'इ' को दीर्घ स्वर 'ई' की प्राप्तिः २-७१ से द्वितीय 'व' का लोप; १-२६० से लोप हए 'व' के पश्चात शेष रहेगए 'ष'को 'स' की प्राप्ति: १-५२ से प्राप्त व्यञ्जन 'स' में स्थित 'म' के स्थान पर की प्राप्ति; १-२४ मे अन्त्य हलन्त स्यम्जन 'क' के स्थान पर हलन्स म' को प्राप्ति भीर १-२३ से प्राप्त हलन्त 'म'. स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर या रूप सिद्ध हो जाता है।
पृथक् संस्कृत अध्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप पिह होता । इसमें सूत्र संख्या 1-१३७
से के स्थान पर 'इ' को प्राप्ति १-१८७ से 'प' के स्थान पर 'ह' की प्राप्ति, ९-२४ से अन्त्य हलात सम्मान के स्थान पर हलन्त 'म'को प्राप्ति और १-२३ से प्राप्त हलन्त 'म' के स्थान पर मनुस्वार की प्राप्ति होकर पिहं सप सिद्ध हो मला है।
सम्यक संस्कृत अव्यय रूप है। इसका प्राकृत रूप सम्म होता है । इसमें टूर्व संध्या २-७८ से '' का लोप २-८९ मे लोप पए '' के पश्चात् कोष रहे एए 'म' को शिल्य 'आम' की प्राप्ति; १-२४ से सन्य हलन्त ध्यजन क्के स्थान पर हलन्त 'म'को प्राप्ति और १-२६ से प्राप्त हलन्त 'म स्थान पर अनुवार को प्राप्ति होकर सम्म स्प सिद्ध हो जाता है।
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Deewanimlner..
ऋषक संस्कृत अस्थय रूप है। इसका प्राकृत रूप हं होता है । इसमें सूत्र-सल्या १-१२८ से '' स्थल पर '' की प्राप्ति, १.१८७ से 'प' के स्थान पर हैं' की प्राप्ति, १-६४ से मत्स्य 'क' के स्थान पर म' की माप्ति और १-२३ सेम् के स्थान पर अनुस्वार की प्राप्ति होकर कई रूप सिब हो जाता है।