Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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ऋभु
प्राचीन चरित्रकोश
ऋभु यह मानव थे। परंतु तप, यश इ. करके इन्होंने देवत्व प्राप्त किया । परंतु देव इन्हें अपने में शामिल नहीं करते थे । अन्त में प्रजापति के कथनानुसार ऋभुओं को सूर्य के साथ सोमपान करने का मान मिला। फिर भी इनमें मनुष्यत्व का गंध आता है कह कर देव ऋभुओं का अत्यंत तिरस्कार करने लगे (पे, आ. १. १०) एक ब्रह्ममानस पुत्र ( भा. ४.८ ) । इसका शिष्य निदाच निदाघ को तत्वज्ञान का उपदेश किया है ( विष्णु. २.१६ नारद . १.४९ ) । चाक्षुष तथा वैवस्वत मन्वन्तर के देवों ऋभु हैं । ऋभुगीता नामक सत्ताईस अध्यायों का एक वेदान्तविषयक ग्रंथ है (C.C.)।
ऋभु ने
ऋभुदास -- ऋजु देखिये ।
।
ऋश्यांग का विभांडक का पुत्र एकबार ज विभांडक गंगास्नान के लिये गया था तब उवंशी उसे दृष्टिगोचर हुई तत्काल कामविकार उत्पन्न हो कर उसका रेत पानी में गिरा। इतने में पानी पीने के लिये शाप से हिरनी बनी हुई एक देवकन्या वहाँ आई तथा पानी के साथ वह रेत उसके पेट में गया। उससे वह उत्पन्न हुआ (म.वं. ११० ) । संपूर्ण आकार मानव के समान परंतु सिरपर ऋत्य नामक मृग के समान सींग था, इसलिये इसे ऋश्यशृंग नाम प्राप्त हुआ ( म. व. ११०.१७ ) इसका जन्म होते ही इसकी माता शापमुक्त हो कर स्वर्ग गई तब अनाथ ऋश्यरंग का पालन-पोषण विभांडक ने किया तथा इसे वेदवेदांगों में परंगत किया । मृगयोनि का होने के कारण यह दरपोंक था तथा आश्रम के बाहर कहीं भी न जाता था। विभांडक ने भी उसे ऐसी ही आज्ञा दे रखी थी । इससे इसने पिता को छोड़ अन्य पुरुष न देखा था (म. व. ११०.१८)। इसी समय अंगदेश के चित्ररथ (म. व. ११०.१८ ) । इसी समय अंगदेश के चित्ररथ नामक राजा की गलती से वहाँ अवर्षण हुआ। चित्ररथ दशरथ का मित्र था। वह ब्राह्मणों से असत्य व्यवहार करता था अतः ब्राह्मणों ने इसका त्याग किया। तब उसके देश में अवर्षण हुआ तथा लोगों को अत्यधिक पष्ट होने लगे | तब इन्द्र को वर्षा के लिये मजबूर करनेवाले बड़े बड़े तपस्वियों से इसने पूछा। उनमें से एक ने कहा कि, ब्राह्मण तुमसे कुपित हैं, उनके क्रोध का निराकरण करो। तब उसे पता चला कि ऋश्यशृंग यदि अपने देश में आयेगा तो चारों ओर मुख का साम्राज्य छा जायेगा। ऋश्यशृंग को लाने के लिये जब उसने मंत्रियों से चर्चा की तब वेश्याओं की सहायता छोड अन्य मार्ग ही उन्हें न सूझता था । वेश्याओं से पूछने पर एक वृद्ध वेश्या ने वह
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ऋषभ
कार्य स्वीकार किया तथा कुछ तरुण वेश्याओं को लेकर विभांडक के अनुपस्थिति में उसके आश्रम में जाने का निश्चय किया। इस के लिये एक नौका पर आश्रम तैय्यार कर वह नौका आश्रम के पास खड़ी कर उसने बड़ी युक्ति से अपनी लड़कियों द्वारा अपने पाश में बांध लिया। श्यांगने का वेश्याओं को मुनिकुमार समझ कर उनसे व्यवहार किया। दूसरी बार गंग को लेकर अंग देश में आयी तर अंग देश में बहुत वर्षा हुई। रोमपाद ने अपनी शान्ता नामक कन्या इसे दी तथा काफी उपहार दिया। विभांडक पुत्र को ढूंढते हुये वहाँ आया तब रोमपाद द्वारा दिये गये उपहार देखकर इसका क्रोध शांत हो गया। इसने एक पुत्र का जन्म होने तक रांग को वहाँ रहने की अनुमति दी तथा स्वयं वापस गया। त्याग भी एक पुत्र के वन के बाद शान्ता के साथ अपने आश्रम वापस गया (म. व. ११०.११३. वा. रा. बा. ९०१० ) । दशरथ के पुत्रकामेष्टि यज्ञ में रोमपाद की मध्यस्थिता से दशरथ ने इसे यज्ञ का अध्वर्यु बनाया । उससे दशरथ को रामलक्ष्मणादि पुत्र हुए (बा. रा. बा. ११ ) | यह ऋश्यशृंग सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक होगा (भा. ८.१२: विष्णु. ३.२ ) । कौशिकी नदी के किनारे ऋयचंग का आश्रम था । वहाँ वनवास के समय धर्मराज आये । तत्र लोमश ने ऋव्यांग की उपरोक्त जानकारी धर्मराज को बताई है। वहाँ दशरथ वा लेख नहीं है (शृंग देखिये ) 1 इसके द्वारा रचित ग्रंथ १ स्यांगसंहिता, २ऋशंगस्मृति स्यशृंगमृति का उल्लेख विज्ञानेश्वर, हेमाद्रि, हलायुध आदि ने किया है (C. C.)। आचार, अशीच आज तथा प्रायश्चित्त आदि के बारे में इसके विचार मिताक्षरा, अपरार्क, स्मृतिचंद्रिका द अर्थ में प्राप्य है। मिताक्षरा में (या २.११९) का ग्रंथों में प्राप्य हैं। मिताक्षरा में (याज्ञ. २.११९ ) शंख का मानकर दिया गया लोक(७२४) य का मानकर दिया है। इस ठोक में दिया गया है कि नष्ट हुई सम्मिलित संपत्ति अगर किसी हिस्सेदार ने पुनः प्राप्त की तो उसका एक चतुर्थांश उसे प्राप्त होता है तथा बाकी बचे
हुए में अन्य लोगों का हिस्सा होता है। स्मृतिचन्द्रि का में (१.३२ ) इसका एक गद्य परिच्छेद दिया गया है।
ऋषभ -- (स्वा. प्रिय.) नाभि तथा मेरुदेवी का पुत्र । माता का नाम सुदेवी भी था ( भा. २.७.१० ) । यज नामक इंद्र ने इसे अपनी कन्या जयंती दी थी तथा उससे इस राजा को सौ पुत्र हुये | उन में श्रेष्ठ भरत है । उन में से ८१ पुत्र कर्ममार्गाचरण करनेवाले ऋषि बने तथा कवि,