Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
ऋणंचय
प्राचीन चरित्रकोश
ऋद्धि
गायों के साथ गृह दिया (ऋ. ५. ३०. १२, १४)। २. वृद्धा देखिये। रुशम किस देश को अथवा किन लोगों को कहा गया है। ऋतंभर-एक राजर्षि । जाबाली ऋषि के कथनायह कह नहीं सकते । यह मंत्रद्रष्टा था (ऋ. ९. १०८. नुसार मन से इसने गाय की सेवा की अतएव इसे सत्यवान
नामक पुत्र हुआ (पन. पा. २८)। ऋत--अंगिरसपुत्र देवों में से एक ।
ऋतसेन--मार्गशीर्ष माह में सूर्य के साथ साथ घूमने२. (स. निमि.) विजय जनक का पुत्र । इसका पुत्र वाला एक गंधर्व ।।
ऋतस्तुभ--अश्वियों ने इस ऋषि की रक्षा की (ऋ. ३. रुद्र सावणि मन का नामांतर (मत्स्य. ९)। १.११२.२०)। ४. चक्षुमनु तथा नवला का पुत्र!
ऋतायन--शल्य के पिता का नाम । ५. आभूतरजस नामक देवों में से एक ।
ऋतु--फाल्गुन माह में सूर्य के साथ घमनेवाला एक ६. तुपिल नामक देवों में से एक।
यक्ष। ७. सुम्ब नामक देवों में से एक ।
२. प्रतर्दन नामक देवताओं में से एक। ८. यह युधिष्ठिर के राजसूय में उपस्थित था (म. स. ऋतुजित्--(सू. निमि.) विष्णु के मतानुसार यह
| अंजनपुत्र है तथा भागवत मतानुसार पुरुजित् । ऋतजित्-दूसरे मरुद्गुणों में से एक ।
ऋतुधामन्--चौथे मेरु सावर्णि मन्वन्तर का इंद्र। ऋतंजय- एक व्यास (व्यास देखिये)।
ऋतुध्वज--ऋतध्वज देखिये। ऋतधामन्--(सो. वृष्णि.) कंक को कर्णिका से उत्पन्न
ऋतुपर्ण--यह भंगाश्विन का पुत्र तथा शफाल का पुत्र । कृष्ण का चचेरा भाई।
राजा होगा (बौ. श्री. २०.१२)। 'ऋतुपर्णकयोवधि२. रुद्रसावर्णि मन्वन्तर में होनेवाला इन्द्र। भंग्याश्विनौ' उल्लेख है (आप. श्री. २१.२०.३)। ३. तेरहवें मनु का नामान्तर (मत्स्य. ९)।
२. (स. इ.) अयुतायुपुत्र (वायु. ८९; ब्रह्म.८.८०%; ऋतध्वज-(सो. काश्य.) यह शत्रुजित् का पुत्र। ह. वं. १.१५)। गोलब ने कुंबलय नामक अश्व दे कर इसे अपने आश्रम का यह अक्षविद्या में अत्यंत निपुण था। नल का सारथि -कष्ट दूर करने के लिये कहा । एकबार सूकर रूप से आये वाप्णय इसके पास सारथि बन कर रहा था (म. व. ५७. हुए पातालकेतु के पीछे लग कर एक गड्ढे में गिर कर २३)। अज्ञातवासकाल में नल बाहुक नाम धारण कर के पाताल में गया । वहाँ पातालकेतु द्वारा भगा कर लाई गई इसी के पास सारथि रूप में रहा । इसका सच्चा सारथी विश्वावसु गंधर्व की कन्या मदालसा थी। उसके साथ जीवल (म. व. ६४.८)। इस ने नल को अपनी इसका विवाह होकर उसे लेकर यह घर आया । तदनंतर | अक्षविद्या दी तथा नल ने भी अपनी अश्वविद्या यमुना के तट पर रहने वाले पातालकेतु के भाई तालकेतु | इसे दी (म. व. ७०)। यह वीरसेन पुत्र नल राजा का ने इसे धोखा दे कर यज्ञ की दक्षिणा के रूप में इसके गले मित्र था। इसे आर्तपर्णि नामक पुत्र था (ब्रह्म.८.८०; ह. का कंटा माग लिया । तथा इसे अपने आश्रम में रख कर | वं. १.१५.२०)। इसका पुत्र सुदास (भा. ९.९)। इसे मदालसा को सूचित किया कि ऋतध्वज मर चुका है तथा सर्वकाम या सर्वकर्मा नाम से नल पुत्र था (वायु. ८८. चिन्ह के तौर पर मृत्यु के समय उसने यह कंठा दिया | १७४)। ऐसा बताया । मदालसा सती हो गई । ऋतध्वज ने अवि- ऋतुमंत-मणिभद्र तथा पुष्यजनी का पुत्र । वाहित रहने का निश्चय किया । परंतु पुत्र की इच्छा
ऋतेयु--(सो. पूरु.) रौद्राश्व तथा घृताची के दशनुसार अश्वतर नाग ने सरस्वती से गानविद्या प्राप्त कर
पुत्रों में ज्येष्ठ । इसे औचेयु नामांतर प्राप्त है । इसे तक्षकशंकर को प्रसन्न किया तथा उससे पहले के ही समान परंतु
कन्या ज्वलना से अंतिभार हुआ (ऋचेयु देखिये)। योगी मदालसा कन्या के तौर पर मांग कर ऋतध्वज को दी। ऋतुध्वज को उससे विक्रान्त, सुबाहु, शत्रुमर्दन तथा अलर्क |
ऋथु-क्षत्रिय होते हुये भी यह ब्राहाण तथा ऋषि 'नामक चार पुत्र हुए तथा मदालसा ने उन्हें योगमार्ग का हो गया था ( वायु. २. २९.११४)। उपदेश दिया (मार्क. १८.३४, १९.८८ प्रतर्दन देखिये) ऋद्धि-वैश्रवण की पत्नी ।
९७