Book Title: Smruti Sandarbha
Author(s): Nagsharan Sinh
Publisher: Nag Prakashan Delhi
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति-सन्दः श्रीमान महाभिः प्रणीतः धर्मशास्त्र संग्रह THE SMRTI-SANDARBHA (A COLLECTION OF DHARMASÄSTRAS) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति - सन्दर्भ सप्तम् भाग विषयानुक्रमणी तथा श्लोकानुक्रमणी नाग शरण सिंह NAG PUBLISHERS मान: प्रकाशक: ११ए/ यू. ए. जवाहर नगर, दिल्ली- ११०००७ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This publication has been brought out with the financial assistance from Rashtriya Sanskrit Sansthan, New Delhi नाग प्रकाशक (१) ११ ए / यू. ए. जवाहर नगर, दिल्ली- ७ ( २ ) ८ ए / यू. ए. ३ जवाहर नगर, दिल्ली- ११०००७ (३) जलालपुर माफी (चुनार - मिर्जापुर ) उ० प्र० ISBN 81-7081-263-1 प्रथम संस्करण १६६३ मूल्य : रु०८२-०० श्री नागशरण सिंह द्वारा नाग प्रकाशक, जवाहर नगर, दिल्ली से प्रकाशित तथा अमर प्रिंटिंग प्रेस, विजय नगर, दिल्ली से मुद्रित । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ विषयानुक्रमणी तथा श्लोकानुक्रमणी Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुस्मृति १. सृष्टियुत्पत्ति वर्णनम् विषय श्लोक १-८ सृष्टि की रचना का वर्णन, जल से सृष्टि की रचना हुई सर्वप्रथम मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा आदि सप्तर्षि, देवता, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, पिशाचादि की उत्पत्ति जरायुज, अण्डज्ज, उद्भिज, स्वेदज, वनस्पति आदि की उत्पत्ति समय का वर्णन चार वर्ण और उनके कर्म आचार-वर्णन ३७-४१ ४२-४७ ६४-७४ ८७-६१ १०८-१११ २. धर्मतत्त्वविचारवर्णनम् : १२ धर्म का वर्णन और धर्म का स्वरूप १-१२ अर्थ और काम में जिसकी आसक्ति न हो वही धर्म को समझ सकते हैं और धर्म के जिज्ञासुओं को वेद से प्रमाण लेना चाहिए ३-१७ ब्रह्मचर्य वर्णनम् : १५ देश और परम्परा के अनुरूप आचार द्विजातियों के दस संस्कार का वर्णन, गर्भाधान मे उपनयन तक २६-७७ कर्तव्याकर्तव्य वर्णनम् : २१ सन्ध्या और गायत्री का महत्त्व १०१-१०४ स्वाध्याय की विधि १०७-११५ विद्या फल का अधिकारी १५६-१६२ विद्यार्थी और ब्रह्मचारी १७३-२२१ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-१६ मनुस्मृति ३. स्नातकविवाहकर्म वर्णनम् : ३५ विद्याभ्यास का काल १-२ विवाह प्रकरण और कन्या के लक्षण विवाह के भेद, राक्षस, आसुर, पैशाच और गान्धर्व चार असत् विवाह तथा ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य चार सद्विवाह २१-३६ पाणिग्रहण संस्कार सवर्णों के ही साथ हो असवर्ण के साथ नहीं ऋतुकाल में सहवास से गृहस्थ को भी ब्रह्मचारी संज्ञा ४५-५० संस्कृति का विकास ५६-६२ गृहस्थ पञ्चमहायज्ञा : ४१ गृहस्थ के पञ्चयज्ञ का विधान गृहस्थाश्रम की मान्यता ७८-८५ बलिवेश्यवदेवः : ४३ बलिवैश्वदेव विधि अतिथि वर्णनम् : ४५ अतिथि सत्कार विधि १०१-१०८ गृहस्थ के लिए अतिथि को खिलाकर भोजन करने का वर्णन ११५-११८ श्राद्धवर्णनम् : ४६ गोलक और कुण्डकादि निन्दित सन्तान १७३-१७४ भोजन करने का नियम २३८-२३६ ४. गृहस्थाश्रम वर्णनम् : ६१ गृहस्थाश्रम का वर्णन श्राद्ध और यज्ञ में ब्राह्मण-भोजन ३०-३१ उपनयन संस्कार के अनन्तर स्नातक के रहन-सहन और व्यवहार के नियम ३५-११० विशेष नियम तथा गृहस्थ की शिक्षा १११-१३५ धर्माचरण और नियम १७७ दान. धर्म और श्राद्ध ५. अभक्ष्य वर्णनम् : ८५ अकाल मृत्यु? २६. १-४ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५-२० मनुस्मृति अभक्ष्य (जिन चीजों का भोजन नहीं करना चाहिए उनका वर्णन) आमिष खाने का दोष भल्याभक्ष्य वर्णनम् : ८६ योऽत्ति यस्य यदा मांसमुभयोः पश्यतान्तरम् । एकस्य क्षणिका प्रीतिरन्यः प्राविमुच्यते ॥ हिंसा-निषध और आमिष खाने का पाप ४५-५० जो मांस नहीं खाता है उसको अश्वमेध का फल ५३-५४ प्रेत-शुधि वर्णनम् : ६० अशोष (सूतक) ५८-७८ सूतक में कोई काम न करने का वर्णन जिन पर अशोच नहीं लगता है उनका वर्णन ६३-६५ द्रव्य-शुद्धि वर्णनम् : ६५ परम शुद्धि १०६-१११ शरीर-शुद्धि वर्णनम् : ६७ अशुद्धि १३३ मार्जन से शुद्धि करने की विधि १३५ जूठन से शुद्धि १४०-१४१ स्त्री-धर्म वर्णनम् : ६६ सवा प्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया । सुसंस्कृतोपस्करया व्यये चामुक्तहस्तया ॥ पतिव्रता स्त्रियों का माहात्म्य १५४-१६६ ५० वर्ष की उम्र तक गृहस्थाश्रम ६. वानप्रस्थाश्रम वर्णनम् : १०१ वानप्रस्थाश्रम जब पौत्र हो जाय तब वन में निवास करे बानप्रस्थाश्रमी के नियम । मुन्यन्न शाक-पात से हवन करने का निर्देश वानप्रस्थ के रहन-सहन के नियम ६-३२ बायु के तृतीय भाग समाप्त कर संन्यासाश्रम का निर्देश १६६ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संन्यासाश्रम वर्णनम : १०४ संन्यास का विधान गृहस्थाश्रम में न्याय धर्म से जीवन-यापन की श्रेष्ठता ब्राह्मण को संन्यास का धर्म ७. राज्यशासनधमं वर्णनम् : ११० राज्यसत्ता तथा शासनसत्ता वर्णन शासक के आचरण का निर्देश राजदण्ड की आवश्यकता शासक का विनयाधिकार शासक के दस कामज दोष और आठ क्रोध से उत्पन्न होने वाले दोषों से बचने का निर्देश सचिवों की योग्यता और उनके साथ राज्यकार्य के परामर्श की विधि राजदूत दुर्ग निर्माण शत्रु से युद्ध का वर्णन राष्ट्रसंग्रह और राष्ट्र-निर्माण राज्य कर्मचारियों की वृत्ति का माप वाणिज्य कर, राज्यशासन नीति ८. राज्यधर्म दण्डविधानवर्णनम् : १३१ सचिव वर्ग और मंत्री के साथ राजकाज देखने की विधि अट्ठारह व्यवहार का वर्णन 'ऋणादानादि' व्यवहार में धर्म की रक्षा मन की भावना के चिह्न व्यवहार की जानकारी और साक्षी के चरित्र राजधर्म दण्डविधाने साक्षिवर्णनम् : १३८ साक्षी के विशेष निर्देश पृथक्-पृथक् स्थानों पर असत्य साक्षिवाद का पाप वृथा शपथ करने से पाप असत्य साक्षी के दण्ड का विधान अपराधी को बिना दण्ड दिये छोड़ने से राजा को नरक गमन मनुस्मृति ४० ८६ ६६ १८ १६-२० ३५-४४ ४५-४७ ૪ ६६ ७० ६० ११३-११७ १२४-१२६ १२७-२२६ २-३ ४-८ १५ २६ ४८-७५ ७५-६६ ६७-१०१ १०१-११८ १२१-१२४ १२५-१३१ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० मनुस्मृति द्रव्यपरिमाणनिरूपण वर्णनम् : १४३ तौल (माप) बनाने की विधि १३२ ऋण लेने पर ब्याज की दर १३६ किसी वस्तु के रखने पर चा वृद्धि में वृद्धि का सन्तुलन राजधर्म दण्डविधानवर्णनम् : १५५ जो कन्या नहीं है उसे कन्या कहकर विवाह करने वाले को दण्ड २२५-२२६ पाणिग्रहण संस्कार कन्या का ही होता है स्त्री का नहीं २२७-२२८ वेतन वण्ड वर्णनम् : १५२-२२६ सीमा दण्ड वर्णनम् : १५५ ग्राम सीमा का निर्णय २६५ वाक्पारुष्य (अपशब्द गाली देने) का व्यवहार २६६ दण्डपारुष्य (मार-पीट) के अपराध २७८-३०० चौरवण्ड वर्णनम् : १५६ स्तेन चोरी ३०१-३४४ राजधर्म दण्ड विधान वर्णनम् : १६२ परस्त्री-गमन की परिभाषा (संग्रहण) परस्त्री गमन का दण्ड ३८६ कर लगाना और तुला, तराजू, गज, बांटों का निरीक्षण ३९८-४२० ६. शक्तिस्वरूपास्त्रीरक्षाधर्मवर्णनम् : १६६ मात जाति शक्तिरूपा है इसे दृष्टिगत रखना पुरुष का प्रधान धर्म और कर्तव्य है । किसी भी रूप में शक्ति का ह्रास अवाञ्छनीय है । स्त्री की रक्षा से धर्म और सन्तान की रक्षा होती है पुत्र प्रत्युक्तिं सभिः पूर्वजैश्च महर्षिभिः । विश्वजन्यमिमं पुण्यमपन्यासं निबोधत ॥ भः पुत्रं विजानन्ति श्रुति द्वधं तु भर्तरि । आहुचत्पावकं केचिदपरे क्षेत्रिणं विदुः ।। क्षेत्र भूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् । क्षेत्रबीजसमागात्संभवः सर्वदेहिनाम् ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ मनुस्मृति स्त्रीधर्मपालन वर्णनम : १७३ नियोग निर्णय ५८-६३ नियोग उसका ही होगा जिसका वाक्य दान करने पर भावी पति स्वर्गगत (मर जाय) हो जाय । विवाह में कन्या की अवस्था और वर की अवस्था का वर्णन और विवाह-काल ६४-६६ स्त्री-पुरुष धर्म का वर्णन (विवाह रति का धर्म बताता है।) १०२-१०३ दायभाग वर्णनम् : १७६ दाय विभाग की सूची और दाय विभाजन का काल सम्पत्तिश्राद्धयोरधिकारित्व वर्णनम् : १८१ अपुत्रक का धन दौहित्र को कन्या को पुत्र समझकर धन देने का निश्चय होने के अनन्तर यदि औरस पुत्र हो जाय तो धन विभाग का निर्णय १३४ पुत्रार्थ सम्पत्ति विभाग वर्णनम् : १८३ बारह प्रकार के पुत्रों के लक्षण । ६ दायाद और ६ अदायाद हैं १५८-१८१ ऐश्वर्याधिकारिपुत्र वर्णनम् । १८६ दायधन के विभाजन के अवान्तर प्रकार संसृष्टि के धन का बंटवारा १८२-२१५ अनेक दण्ड वर्णनम् : १६० राजा को द्यूत कर्म करने वाले को राष्ट्र से हटाने का वर्णन भ्रष्टाचारी मंत्रियों का दण्डविधान २३४ महापाप चार हैं-ब्रह्म-हत्या, गुरुतल्प-गमन, सुरापान और स्वर्ण स्तेयी २३५ पापों का वर्णन और प्रायश्चित्त २३६ राजधर्म दण्ड वर्णनम् : १६३ प्रजा-पालन से राजा को स्वर्ग प्राप्ति २५६ साहसिक (मारपीट करने वाले) को दण्ड २६७ राजः धर्मपालन वर्णनम् : १६७ कर लेने का समय २२० ३०२ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुस्मृति वर्णानां कर्मविधि वर्णनम् : १६६ ब्राह्मण क्षत्रिय दोनों की मिली-जुली शक्ति से राष्ट्रनिर्माण शूद्र को अपने कार्य से ही मोक्ष १०. वर्णानां भेदान्तर विवेक वर्णनम् : २०० वर्ण भेदान्तरेण स्वनेकवर्ण वर्णनम : २०१ स्त्री-पुरुष के वर्णभेद से सन्तान की भिन्न-भिन्न जातियों का वर्णन अर्थात् अनुलोम सन्तान और प्रतिलोम सन्तान का वर्णन | अनुलोम और प्रतिलोम की वृत्ति का भी वर्णन चतुर्वर्णानां वृत्ति वर्णनम् : २०६ चातुर्वण्यं के लिए अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय-निग्रह धर्म है बृति जीविक वर्णनम् : २०६ ब्राह्मणधर्म जाति विभागानुसार कार्य ११. धर्मप्रतिरूपक वर्णनम् : २१३ यज्ञ होम सोम यज्ञ के सम्बन्ध में स्नातकों का सम्मान | प्रायश्चित्तों का यज्ञ के लिए धन एकत्र कर यज्ञ में न लगाने वाले की काक योनि इत्यादि में गति darfe धनं हरतोति फलम् : २१५ यज्ञ का वर्णन, यज्ञ की दक्षिणा जानकर पाप करने वाले का प्रायश्चित स्तेयफल वर्णनम् : २१७ चोरी करने वाले को पृथक्-पृथक् पदार्थ के चोरी करने से शरीर में चिह्न होते हैं जैसे सुवर्ण चोर का दूसरे जन्म में कुनखी होना इत्यादि प्रायश्चिस वर्णनम् - अगम्यागमन वर्णन : २१८ महापाप आदि का प्रायश्चित्त बालघाती, कृतघ्न शुद्ध नहीं होता .0 ३२२ ३३४ १-६२ ६३ ७५ ७६-१३१ १-२४ ३० ४६ ४८ ५५-१६० १९१ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रायश्चित्त वर्णनम् : २३१ सान्तपन व्रत, कृच्छ्र व्रत, चान्द्रायण आदि का वर्णन तपमहस्वफल वर्णनम् : २३४ तपस्या से पाप नाश अक्षर प्रणव को जप करने से सर्वपाप क्षय १२. कर्मणा शुभाशुभफल वर्णनम् : २३७ वाचिक, शारीरिक और मानसिक कर्म का वर्णन वाणी के पाप से पक्षियों का जन्म, शरीर के पाप से स्थावर योनि और मन के पाप से शारीरिक दुःख होते हैं । सत्त्व रजस् और तमस् तीन गुणों से नाना प्रकार के पाप तीनों गुणों का सामान्य जीवों में लक्षण जिन कर्मों के करने से संकोच और लज्जा होती है। तमोगुण है जिस से संसार में ख्याति होती है उसे राजस् कहते तामसी कर्म की गति राजसी कर्म की गति सात्त्विक कर्म की गति कृतकर्मफल वर्णनम् : २४२ ब्राह्मणत्व हरने से ब्रह्मराक्षस की गति पृथक्-पृथक् वस्तुओं की चोरी करने से भिन्न-भिन्न गति चोरों को असि पत्र आदि नरक के दुःख प्रवृत्ति और निवृत्ति कर्मों का वर्णन धर्मनिर्णय कर्तृक पुरुष वर्णनम् : २४६ स्वराज्य की यथार्थ परिभाषा राज्य शासन, राष्ट्र और सेना के लिए वेदधर्म की आवश्यकता ब्राह्मण को तपस्या और ब्रह्मविद्या से मोक्ष घर्म की व्यवस्था कौन दे सकता है दस हजार पुरुषों की तुलना में एक आत्मज्ञानी का अधिक मान्य है आत्म ज्ञान अध्यात्म जीवन का निरूपण मनुस्मृति २२३-२३१ २४२ २६६ ४-६ १०-२६ ३४ ३५ ३६ ४२-४४ ४७ ४५-४६ ६० ६१ ७५ ८८ ६ १ ६७-१०० १०४ १०८ ११३ ११६.१२६ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारदीय मनुस्मृति १. व्यवहार दर्शन विधिः : २५० विषय उस समय सब मनु प्रजापति आदि जिस समय राज्य कर रहे सत्यवादी थे और जब धर्म का ह्रास हुआ तो नियन्त्रण के लिए व्यवहार की प्रतिष्ठा की गई । इसी के लिए राजा दण्ड नीति का धारण करने वाला बनाया गया व्यवहार के निर्णय में साक्षी और लेख दो बातें रक्खी गईं । जब दो पक्षों में विवाद हो तो साक्षी और लेख का विधान हुआ जितने प्रकार के व्यवहार और वाद-विवाद होते हैं उनका वर्णन विवाद का मौलिक कारण काम और क्रोध विवाद के निर्णय की विधि अर्थ शास्त्र और धर्मशास्त्र के बीच मतभेद में धर्मशास्त्र की मान्यता कोई भी सन्देह हो तो राजा द्वारा निर्णय कराये जाने का विधान विनयन का प्रकार लेख और गवाही (साक्षी) की सत्यता की जांच राजा को व्यवहार के निर्णय में सहायता के लिए संसद (जूरी) का विधान सभासद् (निर्णय सभा के ) का नियम । ठीक बात को छिपाकर या बढ़ाकर बोलने का पाप सभासद को बात बढ़ाने और छिपाने में पाप का संस्पर्श सभा का वर्णन २. ऋणादानं प्रथमं विवादपदम् : २५८ ऋण के सम्बन्ध में समय चले जाने पर भी पुत्र को बाप का ऋण चुका देना चाहिए श्लोक १-२ ३-६ ६-२० २१ २५-३२ ३३-३४ ४० ४४-५० ५१-६४ ६८-७२ ७३ ७४ ५० १ ८-६ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारदीय मनुस्मृति २४ ४३ स्त्री पति का ऋण नहीं देवे जो जिसका धन लेने वाला होता है उसे देना चाहिए निर्धन, अपुत्री स्त्री को ले जाने वाले को उसके ऋण देना चाहिए पुत्र-पति के अभाव में राजा का अधिकार पति के प्रेम से दी हुई वस्तु को कोई नहीं ले सकता है कोन कुटुम्ब में स्वतन्त्र है और कौन परतन्त्र है छल से कमाया धन काला धन न्याय का धनागम ५०-५१ प्रत्येक जाति की अपनी-अपनी वृत्ति ५६-६४ तीन प्रकार के लिखित, साक्षी, भोग का प्रमाण ६५-७७ धरोहर का प्रमाण स्त्रीधन के रक्षा का विवरण मृत पुरुष का प्रमाण ८०-८६ रुपये का वृद्धि (व्याज का प्रकार) चक्रवृद्धि का वर्णन ८७-६४ धनी को ऋणी का लेख बतलाना चाहिए 8--१०० प्रतिभू (जामिन) का वर्णन १०३ लेख, लेखक के प्रकार, कितने प्रकार के होते हैं ११२-१२२ जो साक्षी के योग्य नहीं है --अशुद्ध साक्षी १३४ शुद्ध साक्षी । साक्षी विषय १३५-१५२ असाक्षी १६३-१६७ उभय पक्ष (जिसकी स्वीकृति को मान लेने पर) एक भी साक्षी हो सकता है १७१ झूठे साक्षी के मुख के चिह्न, (आकार आदि चेष्टा से) १७२-१७७ झूठ साक्षी का पाप १५६-१८८ सत्य साक्षी का माहात्म्य १६०-२०० सत्य साक्षी की महिमा २०३ तम साक्षी के सम्बन्ध में शाप ऋषि और देवताओं पर भी लगता है २१८ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारदीय मनुस्मृति ३. उपनिधिकं द्वितीयं विवाद पदम् : २७८ औपनिधि निक्षेप का वर्णन ( धरोहर ) । ४. सभ्य समुत्थानं तृतीयं विवाद पदम् : २७६ सम्भूय समुत्थान (Partnership) वाणिज्य व्यवसायी साझेदार होकर व्यापारादि करते हैं - उसे सम्भूय समुत्थान कहते हैं ५. वत्ताप्रदानिकं चतुर्थ विवाद पदम् : २८१ दत्ता प्रदानिक जो नियम के विरुद्ध दिया है वह वापिस करने का निदान क्या अदेय क्या वापिस लेना । आपत्ति पर भी जो किसी को समर्पण कर दिया वह फिर नहीं दिया जाता ६. अभ्युपेत्याशुश्रूषा पञ्चमं विवाद पदम् : २८२ शुश्रूषक ५ प्रकार, काम करने वाले ४ प्रकार कर्म के भेद - शुद्ध कर्म करने वाला आचार्य की शुश्रूषा आदि दास के प्रकार स्वामी के साथ उपकार करने वाला दासत्व से छुटकारा पाता है संन्यास से वापिस आने पर गृहस्थाश्रम में पुनः प्रवेश बलात् दास बनाये हुए के छुटकारे का उपाय ७. वेतनस्यानपाकर्म षष्ठं विवाद पदम् : २८६ बकरी भेड़ पालने वाले अनुचरों पर विवाद अनुचित सहवास का दण्ड ८. अस्वामिविक्रयः सप्तमं विवाद पदम् : २८८ जिस धन पर अधिकार नहीं है उसके बेचने के विषय में, पृथ्वी में जो धन गड़ा है उस पर अधिकार अस्वामि विक्रय धन चोरी के धन के तुल्य है चोरी का धन लेने वाला दण्ड का भागी पृथ्वी पर पड़ा या गड़ा धन राजा का होता है ६. विक्रीयासम्प्रदानमष्टमं विवादपदम् : २८६ बेचकर न देने का विवाद ११. १-८ १-१६ ५ २ ५ १३-२३ २४-२६ २८ ३३ ३६ १४-१८ १६-२३ २ ५ ६ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ सौदा करके क्रेता को न देने से स्थायी सम्पत्ति में हानि देनी पड़ती है । जङ्गम वस्तु न देने से उसका जो लाभ हो सो क्रेता को देना पड़ता है सौदा करने के बाद मूल्य देने पर उपरोक्त नियम लागू होता है अन्यथा नहीं १०. क्रीत्वानुशयो नवमं विवादपदम् : २६१ क्रेता खरीदने के पीछे ठीक न समझे तो उसी दिन वापिस देवे यदि दो दिन बाद वापिस दे तो ३० वां हिस्सा दे, अधिक दिन होने उसका दूना दे । चार दिन बाद वह सौदा खरीददार का होता है खरीददार गुण दोष भली प्रकार देखकर सौदा ले तब यह सौदा वापिस नहीं हो सकता गाय को तीन दिन परीक्षा कर देखे, मोती हीरा इत्यादि ७ दिन, द्विपद १५ दिन, स्त्री १ माह और बीजों की १० दिन तक परीक्षा का नियम है । पहने हुए कपड़े वापिस नहीं हो सकते धातु लोहा सोना इत्यादि की अग्नि में परीक्षा, सोना घटता नहीं, रजत दो पल, कांसा शीशा आठ प्रतिशत, तांबा पांच प्रतिशत घटता है जितना काटकर बेचा जाता है। काषाय वस्त्र खरीदने का विषय नारदीय मनुस्मृति ११. समयस्यानपाकर्म दशमं विवादपदम् : २६२ समय का अनपाकरण (पाखण्डी से राजा बचकर रहे ) प्रवृत्ति भी हो तो भी बचना चाहिए १२. क्षेत्रविवाद एकादश विवादपदम् : २६३ ग्राम्य सीमा का निर्णय तथा ग्राम के गोपालों तथा वृद्ध लोगों से सीमा का निर्णय सीमा के विषय में झूठ कहने वाले को साहस का ड पुल बनाने पर विचार ४ १० १ ४ ५-८ १० १२-१३ १५ १ ७ १-४ ७-८ १४-१७ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारदीय मनुस्मृति कोई यदि किसी के बाहर जाने पर उसके खेत पर अधिकार कर ले तो लौटने पर उसे वापिस दे देवे खेत तीन पुस्त होने पर छूट नहीं सकता किसी के खेत में गाय जाय उसका निर्णय हाथी घोड़े किसी के खेत में चले जायें तो अपराध नहीं किसी के खेत में गाय चर जाय तो उसकी क्षतिपूर्ति निर्णय १३. स्त्रीपुंसयोगो द्वादशं विवादपदम् : २६७ पाणिग्रहण होने पर स्त्री मानी जाती है सगोत्र कन्या और वर का विवाह नहीं हो सकता गुण-दोष न देखकर विवाह होने पर त्याग दूसरा पति करने का नियम कन्यादान करने वाले अधिकारियों का वर्णन स्त्री संग्रहण के दण्ड व्यभिचार दण्ड पशुयोनि गमन दण्ड स्त्री गमन निषेध का वर्णन स्त्री की निर्वासन की दशा का वर्णन निर्दोष स्त्री-त्याग का दण्ड अन्य पति का विधान वर्णसंकर का वर्णन वर्णसंकरों की पृथक्-पृथक् जाति १४. दायविभागस्त्रयोदशं विवादपदम् : ३०८ दाय विभाजन का समय जिस धन का विभाजन नहीं हो सकता स्त्री धन का विवरण सम विभाग अविवाहिता बहिन का पिता द्वारा विभाग की मान्यता जो लोग पैतृक धन के अनधिकारी हैं सम्मिलित कुटुम्ब के भाइयों का विभाग १३ २०-२१ २४ २७-२८ २८-३० ३३-३४ २-३ ७ -१५ १६ २०-२२ ६२-६८ ७०-७५ ७६ ८३-८८ ६१-६५ ६७ ६६-१०० १०५ १०६-११८ १-४ ६-७ 5-E १३ १५-१६ २०-२१ २३-२५ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ स्त्रियों की रक्षा का विधान असंस्कृत कन्या का पितृधन से सत्कार एक साथ रहने वाले भाई एक दूसरे के साक्षी नहीं होते बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन पुत्राभाव में कन्या का अधिकार तीन प्रकार के साहस १५. साहसं चतुर्दशं विवादपदम् : ३१३ उत्तम साहस उत्तम साहस का वध, सर्वस्व हरण महा साहसी का दण्ड चोरी चुराई हुई वस्तु का वर्णन १६. वाग्दण्डपारुष्यं पञ्चदशं षोडशञ्च विवादपदम् : ३१५ वाक्पारुष्य दण्डपारुष्य (भद्दी गाली और अश्लील) तीन प्रकार का दण्ड दूसरे पर पत्थर फेंकना दण्ड पारुष्य दण्ड पारुष्य का दण्ड जाति परत्व दण्ड का तारतम्य जिस अङ्ग द्वारा पाप हुआ उसका छेदन दण्ड पारुष्य में अपराधी को दण्ड १७. द्यूतसमाह्वयंसप्तवशं विवादपदम् : .८ जूआ की परिभाषा जुआ खेलने के अभियोग में साक्षियों का वर्णन मिथ्या साक्षिकों को दण्ड नारदीय मनुस्मृति ३१-३२ ३३ ३६ ४२-४५ ४७ प्रकीर्ण विवाद की परिभाषा शास्त्र निषिद्ध मार्गगामी को दण्ड अन्याय से व्यवस्था की हुई का राजा द्वारा भंग राजा द्वारा सर्वस्वहरण पर आजीविका त्याग १८. प्रकीर्णकमष्टादशं विवादपदम् : ३१६ २ ५ ७ & ११ १२-२० १-३ ४ ५-१३ १४-१७ २३-२४ २५-२७ ४ ५-६ १-४ 6) 5-ε १२ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारदीय मनुस्मृति १५ १६-१७ १८ २०-३० ४७-४८ ५२ ५३-५८ ६०-६४ ७०-७५ ७६-६० ६२ ६४-६५ राजा के दण्ड न देने पर क्षति दण्ड देने से राजा निर्दोष राजा की महिमा और आज्ञा पालन राजा का धर्म माङ्गलिक आठ चीजों का वर्णन उनकी प्रदक्षिणा का वर्णन प्रगट-अप्रगट चोरों का वर्णन चारों चोरों को दण्ड चोरों के सहवासियों को दण्ड भिन्न-भिन्न प्रकार की चोरी का दण्ड जिस-जिस अङ्ग द्वारा चोरी उसका छेदन आघात करने को शरीर के स्थान ब्राह्मण को फांसी नहीं लगाना और देश से बहिष्कृत करना दुष्टों को दण्ड और अङ्गों पर निशान गुप्त पापों का यमराज द्वारा दण्ड दण्डों का प्रकार अर्थदण्ड के मान की व्यवस्था १६. दिव्य प्रकरणम् : ३३० पांच प्रकार के दिव्यों का वर्णन सत्य असत्य तुला वर्णन तुला निर्णय तुला का विषय जल परीक्षा विष परीक्षा विष पान का वर्णन विशेष - नारदीय-स्मृति में अध्यायक्रम नहीं रहने से प्रकरण ही लिखा गया है। १०१-१०६ १०८ १११ ६, २१ २१, ३.१ ३२,३८ ३९, ४५ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्रिस्मृति १. आत्मशुद्धिवर्णनम् : ३३६ अत्रि के प्रति पाप मुक्त्यर्थ ऋषियों का प्रश्न प्राणायाम विधि तथा उससे लाभ ४-१० गायत्री मन्त्र प्रणव-विधान २. सर्वपाप विमुक्तिः, गायत्रीमन्त्रवर्णनम् : ३३८ मन, वाणी और कर्म से किए हुए पापों की मुक्ति कुष्माण्डसूक्त आदि से पापों का शोधन अघमर्षण सूक्त से स्नान उपांशु जप माहात्म्य १०-११ गायत्री जप माहात्म्य १२-१६ ३. पूर्वाध्यायरूपं, सर्वपाप प्रायश्चित्तम् : ३३६ वेदाभ्यास का माहात्म्य पुराण, इतिहास का माहात्म्य शतरुद्री आदि सूक्तों का माहात्म्य दान माहात्म्य १६-१७ सुवर्ण, तिलादि दान माहात्म्य ४. रहस्यपाप प्रायश्चित्तमगम्यागमन प्रायश्चित्तम् : ३४२ रहस्य पापों का प्रक्षालन ५. विविध प्रकरण वर्णनम् : ३४४ भोजन के समय मण्डल का विधान अन्न देने के अधिकारियों का वर्णन भोज्यान्न के भिन्न-भिन्न अधिकारियों का वर्णन भोजन और जलपान का नियम २०-२३ १८-२३ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्रिस्मृति २६-२८ ३२-३३ भोजन के समय पाद प्रक्षालन भोजन के नियम सूतक स्नान विधि शुद्धि विधान सूतक दिन निर्णय सूतक के विषय में वर्णन कन्या ऋतुमती होने पर शुद्धि विधान जन्म के दिन ग्रहण होने पर पूजा विधि स्वर्गसुख प्राप्ति फलवर्णनम : ३५१ दान से स्वर्ग गति की प्राप्ति ४१-४२ ४३-४६ ४७.७० १-५ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्रिसंहिता धर्मशास्त्रोपदेश वर्णनम् : ३५२ १ - ७ १२ २३ विषय श्लोक संहिता श्रवण माहात्म्य गुरु के सत्कार न करने से कुक्कुरयोनि प्राप्ति शास्त्र अपमान से पशुयोनि स्वकर्तव्यनिष्ठ की प्रशंसा प्रत्येक वर्ष के कर्म १३-२० विद्वानों के कार्य में मुखों की नियुक्ति करने पर क्षति विद्वत्पूजा वर्णन राजा के पञ्च यज्ञ-दुष्ट को दण्ड, सज्जन पूजा, न्याय से कोषवृद्धि , निष्पक्ष न्याय, राष्ट्र वृद्धि २८ शौच लक्षण ३१-३५ ब्राह्मण कर्तव्य ३६-३६ दान माहात्म्य ४०-४१ इष्टापूर्ति के लक्षण ४३.४४ नियम की अपेक्षा यम का सेवन ४७ नियम जिनको उद्देश्यकर स्नान किया जाता है उसका फल ५०-५१ गया श्राद्ध तथा गया श्राद्ध का माहात्म्य ५२-५८ आहार शुद्धि, स्थान शुद्धि, वस्त्र शुद्धि आदि का निर्देश ५६-८१ सूतक आशौच आदि का प्रायश्चित ८३-१११ कृच्छ, सान्तपन, चान्द्रायण व्रत का विधान १११-१३५ स्त्री को जप व्रत का निषेध केवल पति परायणता १३५-१३८ लोहपात्र में भोजन करने से पतित Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्रिसंहिता भिक्षुक की परिभाषा महापातकियों की गणना शुद्धिप्रकरणम् : ३६७ विभिन्न पापों का प्रायश्चित और शुद्धि का पृथक् वर्णन शुद्धिस्पर्शादि प्रायश्चित्तम् : ३७१ कृच्छ्र व्रत और शौच के विभिन्न प्रकार पतित अन्न चाण्डाल अन्न, कन्या अन्न, राजान्न भक्षण दोष वर्णन श्राद्ध में भोजन शुद्धि वर्णन अंगुली से दातौन का निषेध शौच, मैथुन, स्नान, भोजन में मौन रखना ३७३ प्रायश्चित्तम् : २३२ चाण्डालका जल पीने से पञ्चगव्य से शुद्धि जल शुद्धि का वर्णन २३७ रजस्वला स्पर्श, भिन्न-भिन्न पापों का प्रायश्चित्त एवं अशौच वर्णन २३८- २८० स्पर्शास्पर्श एवं उच्छिष्ट भोजन का वर्णन २८२-२६० उर्ध्वमुखी गोदान माहात्म्य विद्यादान माहात्म्य दानपात्र का वर्णन दान फल वर्णनम् : ३८२ श्राद्धफलवर्णनम् : ३८४ श्राद्ध में भोजन कराने योग्य ब्राह्मणों का वर्णन श्राद्ध करने का माहात्म्य, न करने से पाप श्राद्ध माहात्म्य एवं श्राद्ध का समय १ १६५ १६६ १६७-२०६ २०६ - २०६ निन्द्यब्राह्मण वर्जनवर्णनम् : ३८६ ब्राह्मण की संज्ञा देव ब्राह्मण, विप्र ब्राह्मण, शूद्र ब्राह्मण, म्लेच्छ ब्राह्मण, विप्र चाण्डाल आदि श्राद्ध में वर्ज्य ब्राह्मण २६१-३०५ ३०६-३१० ३१४ ३२१ २३१ ३३७-३३८ ३३६-३४१ ३४२-३५४ ३५५-३६० ३६१-३६८ ३७२-३८० ३८४ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अत्रिसंहिता ३६० विद्वान् होने पर भी पतित ब्राह्मण की पूजा नहीं की जाती ३८५-३८६ खरीदी हुई स्त्री के पुत्र श्राद्ध करने योग्य नहीं होते हैं ३८७ धर्मफलवर्णनम् : ३८८ दीपक की छाया, बकरी की धूलि की शुद्धि स्नान के स्थानों का वर्णन ३६१ पिण्डदान के स्थान एवं समय का वर्णन ३६४ अत्रि संहिता का माहात्म्य विशेष—इस संहिता में भी नारदी-स्मृति की तरह छोटे-छोटे प्रकरण हैं। الله الله الله प्रथम विष्णुस्मृति १. शोनकम्प्रति राज्ञः प्रश्नोक्तिः, शौनकस्योत्तरम् : ३८६ शौनक के प्रति ऋषियों का प्रश्न कि अन्तकाल में ध्यान करने से मोक्ष होता है १-३ युधिष्ठिरस्य पितामहं प्रति प्रश्नः, भीष्मस्य पुरातन वार्ताकपनमोङ्कारवर्णनं, विष्णोः प्रसादन विधि वर्णनम्, ईश्वरवर्णनम्, वरप्राप्तिवर्णनम्, नारायणवर्णनञ्च भीष्म के प्रश्न पर विष्णु भगवान् का उत्तर, नारायण नाम का माहात्म्य ४-१८ द्वादशाक्षर मन्त्र का माहात्म्य १००-१११ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति १. सृष्ट्युत्पत्तिवर्णनम् : ४०१ ब्रह्मा की उत्पत्ति से सृष्टि रचना, वराह द्वारा पृथिवी उद्धार, देव सृजन, जब विष्णु अन्तर्धान हो गये तब कश्यप से पृथिवी ने पूछा मेरी गति क्या होगी ? पृथिवी द्वारा विष्णुस्तुति । २ सवर्णाश्रम वृत्तिधर्म वर्णनम : ४०७ वर्णाश्रम की रचना उनके मन्त्रों द्वारा श्मशान तक की क्रिया, वृत्ति, जाति पर विचार । ३. राजधर्म वर्णनम् : ४०८ राजधर्म, ब्राह्मणों से कर नहीं लेने का वर्णन । ४. राजधर्म वर्णनम् : ४१२ प्रजा के सुख से सुखी और दुःख से दुःखी रहने से राजा को स्वर्ग प्राप्ति । ५. राजधर्मविधाने दण्डवर्णनम् : ४१३ महापातक और उनके दण्ड का वर्णन, पापियों के दण्ड का वर्णन, दूसरी योनि का वर्णन, विवाद का वर्णन, कूट साक्षियों का वर्णन, तीन पुस्ततक भोगने पर जगह का वर्णन, चोर, परस्त्रीगामी, लम्पट जिसके राज्य में न हों उस राजा का इन्द्रत्व वर्णन । ६. ऋणदान वर्णनम् : ४२१ ऋणी धनी का व्यवहार और उसकी व्यवस्था का वर्णन, स्वर्ण की द्विगुण की वृद्धि, अन्न की त्रिगुण की वृद्धि इनके निर्णय शास्त्र साक्षी। सम्पत्ति लेने वाले को ऋणदान आवश्यक । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ ७. सलेख साक्षिवर्णनम् : ४२३ लिखित का वर्णन, राज साक्षी, गवाही, असाक्षिक वर्णन, संदेहास्पद लेख का निर्णय | विष्णुस्मृति ८. वजितसाक्षि लक्षणवर्णनम् : ४२४ जो साक्षी में निषेध हैं उनका वर्णन, कूट साक्षियों का वर्णन, शुद्ध साक्षियों के कहने पर निर्णय करना । जिस विवाद में कूट साक्षी होना निश्चित हो जाय वह विवाद समाप्त कर देना । ६. समयक्रियावर्णनम् : ४२६ समय क्रिया राजद्रोहादि में शपथ कराने का विवरण, अभियुक्त को दिव्य कराने की प्रक्रिया, सचैल स्नान कराकर तब देवता और ब्राह्मण के आगे शपथ करावे | १०. घट (तुला) धर्म वर्णनम् : ४२७ घट या तुला- इसमें पुरुष को बिठावे और उससे यह कहलावे कि ब्रह्म हत्यारे को झूठी गवाही देने में जो नरक होते हैं वह इस तुला में बढ़ें उसके प्रार्थना के मन्त्र बोले । यदि तुला में तौल बढ़ जावे तो उसको सच्चा समझे, यदि घट जावे तो उसे झूठा समझे । ११. अग्नपरीक्षा वर्णनम् : ४२८ अग्निपरीक्षा - सोलह अङ्ग ुल के सात मण्डल बनावे और उन मण्डलों को दो हाथ के सूत्रों से वेष्टित कर देवे । पचास पल लोहे को आग में गरम करके उसे हाथ में लेकर सात मण्डलों पर चले फिर लोहे को नीचे रख देवे । जिसका हाथ न जले वह अनपराधी यदि जल जावे तो अपराधी । इसके नीचे अग्नि के मन्त्र लिखे हैं । १२. उदकपरीक्षा वर्णनम् : ४३० उदक (जल में परीक्षा) वहां पर एक आदमी धनुष से एक तीर पानी में डा । वह आदमी कूदकर उस तीर को लावे । जो पानी के नीचे न दिखलाई दे वह शुद्ध, जो दिखाई दे वह अशुद्ध और मन्त्र वहीं लिखे हैं । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति १३. विषपरीक्षा वर्णनम् : ४३१ विष की परीक्षा - हिमालय के विष को सात जौं के बराबर घी में भिगोकर उसे दिखलावे । जिस पर जहर न चढ़े उसे शुद्ध । इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं । १४. कोषप्रकरण वर्णनम् : ४३१ कोषमान - किसी उम्र देवता के स्नान का उदक तीन अञ्जुली वह पीवे । दोतीन सप्ताह तक उसके घर में कोई रोग, मरण हो जाय तो उसे अशुद्ध समझे । इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं । १५. द्वादश पुत्र वर्णनम् : ४३२ बारह प्रकार के पुत्र - सबसे पहले औरस, क्षेत्रज, पुत्रिकापुत्र, भाई और पिता के न होने पर लड़की, पुनर्भव, कानीन, गूढ़ोत्पन्न, सहोढ़, दत्तक, क्रीत, स्वयं उपागत, अपविद्ध, परित्यक्त ये बारह प्रकार के पुत्र बतलाये गये हैं । इस अध्याय के अन्तिम श्लोकों में बतलाया है कि पुन्नाम नरक से जो पिता को बचाता है उसे पुत्र कहते हैं । १६. जातिवशात्पुत्रभेव वर्णनम् : ४:४ समान वर्णों से जो पुत्र उत्पन्न होते हैं वही पुत्र कहे जाते हैं । अब अनुलोम जो माता के वर्ण से प्रतिलोम ये अनार्य लड़के कहे जाते हैं । उनकी संज्ञा और संकर जाति का विवरण | १७. पुत्राभावे सम्पत्ति विभाग ( ग्राह्य) वर्णनम् : ४३४ विभाग - अगर पिता विभाग करे तो अपनी इच्छा से कर सकता है । सभी उपार्जित का विभाग करे और पति के विभाग में स्त्री का पूर्ण अधिकार है । १८. ब्राह्मणस्य चातुवर्णेषु जातपुत्राणां दायविभाग वर्णनम् : ४३६ २३ ब्राह्मण का चारों वर्णों में विवाह होता है और जो बटवारे का कहा गया है वह विभाग बतलाया गया है । १६. शवस्पर्शी (दाहसंस्कारार्थ) पुत्रवर्णनम् : ४३८ ब्राह्मण के अग्निदाह का निर्णय किया है । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ विष्णुस्मृति २०. दिनरात्रिकालवर्षादीनां वर्णनम् : ४३६ देवताओं का उत्तरायण दिन, दक्षिणायन रात्रि है। सम्वत्सर अहोरात्र है इस __ प्रकार काल का विभाग बताकर कर्म विपाक बताया गया है और पितृक्रिया बताई गई है। २१. अशौचानन्तरं श्राद्धादि वर्णनम् : ४४३ अशौच पूरा होने पर पितृ और अग्निहोत्र वार्षिक श्राद्ध, कुम्भदान आदि का विवरण है। २२. अशौच निर्णय वर्णनम : ४४४ अशीच किस जाति का कितने दिन का होता है। किसी का दस दिन का किसी का बारह दिन का। २३. अन्नद्रव्यादि शुद्धिवर्णनम् : ४४६ वर्तन और अन्नादि की शुद्धि के सम्बन्ध तथा कूप आदि के शुद्धि के विषयइसमें गाय के सींग का जल और पञ्चगव्य से अन्न में शुद्धि बताई है । २४. विवाह वर्णनम : ४५३ ब्राह्मण को चार जाति से विवाह, क्षत्रिय को तीन, वैश्य को दो, शूद्र को एक जाति से विवाह बतलाया है । सगोत्र से विवाह का निषेध । माता से पंचम, पिता से सप्तम कुल में विवाहना है । स्त्री के लक्षण और आठ प्रकार के विवाह । अन्तिम में ब्राह्म विवाह का माहात्म्य । २५. स्त्रीणां सक्षिप्त धर्म वर्णनम् : ४५५ इसमें संक्षिप्त से स्त्रियों के धर्म बताए हैं। २६. अनेक पत्नीत्वे सति स्वधर्माधस्त्री प्राधान्य वर्णनम् : ४५६ जिसकी सवर्णा बहु भार्या हो तो वह धर्म काम ज्येष्ठ पत्नी से करे । हीन जाति की स्त्री से विवाह करने पर उससे उत्पन्न लड़के से दैव कार्य और पितृकार्य नहीं हो सकता। २७. निषेकादुपनयनपर्यन्तदशसंस्कार वर्णनम : ४५७ गर्भाधान, पुंसवन संस्कार आदि का वर्णन-उपनयन ब्राह्मण को आठवें, क्षत्रिय को ग्यारहवें और वैश्य को बारहवें वर्ष में करना चाहिए । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति २८. गुरुकुले वसन् ब्रह्मचारिणां सदाचार वर्णनम् : ४५८ इसमें ब्रह्मचारी के नियम, गुरुकुल में रहना, गुरु की आज्ञा पर चलना, को पढ़ना इत्यादि वर्णन किया गया है । वेदों २६. आचार्य (गुरु) कर्तव्यता विधान वर्णनम् : ४६० इसमें आचार्य, ऋत्विक के कर्तव्यों का वर्णन है । ३०. वेदाध्ययनेऽनध्यायादि वर्णनम् : ४६१ इसमें श्रावण महीने में उपाकर्म करने का विधान और अन्त में उपाकर्म करने का और शिष्य को उत्पन्न करने वाले पिता से दीक्षा देने वाले गुरु का विशेष महत्त्व और शिष्य के लिए आमरण गुरु सेवा का निर्देश है । ३१. मातापितृ गुरूणाम् शुश्रूषा विधानवर्ण नम् : ४६३ मनुष्य के तीन अति गुरु होते हैं - माता, पिता, आचार्य इनकी नित्य सेवा और उनकी आज्ञापालन का वर्णन है । ३२. राजा - ऋत्विक्- अधर्मप्रतिषेधी- उपाध्याय पितृ-व्यादीनामाचार्यबद्व्यवहारवर्णनम्, तेषां पत्न्योऽपि मातृवत् माननीयातिः : ४६४ २५ स्तच्छू राजा, ऋत्विक, उपाध्याय, चाचा, ताऊ, मामा, नाना, श्वशुर और ज्येष्ठ भ्राता इनका सम्मान करना चाहिए । अन्त में बतलाया है कि ये क्रम से विद्या, कर्म, अवस्था, बन्धुत्व, धन इनके मान के स्थान हैं । ३३. पुंसां के ते शत्रव स्तद्विचार वर्णनम् : ४६६ क्रोध, लोभ ये तीन मनुष्य के शत्रु हैं और नरक केद्वार बताये गये हैं । ३४. मात्रादि गमन पातक परामर्श वर्णनम् : ४६६ मातृ गमन, दुहिता गमन, स्वसा गमन करने वाले अति पातकी होते हैं । उन्हें आग में जलाना चाहिए । काम, ३५. महापातक परामर्श वर्णनम् : ४६७ महापातक - ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवर्णचोरी और गुरुदार गमन और एक वर्ष तक इनके साथ रहता है इनका वर्णन है । ३६. ब्रह्महत्या समाः पातकाः : ४६७ इसमें झूठी गवाही देने वाला, गर्भघाती आदि के पाप बतलाये हैं । जो महापातक के समान पाप होते हैं वे बतलाए हैं । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति ३७. उपपातक वर्णनम् : ४६९ उपपातक-झूठ कहना, वेदों की और गुरु की निन्दा सुनना इत्यादि उपपात बतलाये हैं। ३८. सकर्तव्यता जातिभ्रंशकरण प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४६६ जातिभ्रंशकरण-जैसे पशु में मैथुन करना इत्यादि । ३९. जीवहिंसाकरण (संकरीकरणे) दोषस्तत् प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४७० संकरीकरण-पशु आदि की हिंसा । ४०. अपात्रीकरण (आदानपात्रं) तद्वर्णनम् : ४७० अपात्रीकरण नीच आदमियों से धन, दान लेना और चक्रवृद्धि आदि से रुपया लेना। ४१. मलिनीकरण तत्प्रशमनवर्णनम् : ४७० मलिनीकरण के पाप-पक्षी आदि को मारना । ४२. अकर्तव्या विषये (प्रकीर्णप्रायश्चित्त वर्णनम् : ४७१ ब्राह्मण (ब्रह्म नैष्ठिक) के आज्ञा से प्रकीर्ण पातक बड़ा या छोटा जो हो सो प्रायश्चित्त करे। ४३. नरकाणां संज्ञां तेषां वर्णनम् : ४७१ नरक, तामिस्र, अन्धतामिस्रादि-जो पाप करके प्रायश्चित्त नहीं करते उन्हें __ मरने के बाद इस नरक में जाना पड़ता है। ४४. नरकस्थानां यमयातना निर्णयः : ४७३ पापी आदमियों को नरक जाने के अनन्तर तिर्यग् योनि, अति पातकों को स्थावर, और महापातकी को कृमि, उपपातकी को जलज योनि और जातिभ्रंश को जलचर योनि इत्यादि । जो दूसरे के द्रव्य को हरण करता है उसे अवश्य सर्प की योनि प्राप्त होती है । ४५. नरकोतीर्ण तिर्यग्योन्योर्मनष्ययोनि वर्णनम-- पापकर्मणा कर्मविपाकेन मनुष्याणां लक्षणानि (चिह्न) वर्णनम् : ४७४ नरक भोगने के बाद और तिर्यग् योनि भोगने के बाद जब मनुष्य योनि में आता है तो उसके क्या निशान हैं। यथा-अतिपातकी कुष्ठी, ब्रह्म- . हत्यारा यक्ष्मारोगी, गुरुपत्नीगामी दुष्कर रोग से ग्रसित रहते हैं। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति ४६. कृच्छ्रादि व्रतविधान वर्णनम् : ४७६ कृच्छ्रव्रत -तीन दिन तक भोजन नहीं करना । सिरसे स्नान करना इसी तरह पर प्राजापत्य - तप्तकृच्छ्र, शीतकृच्छू, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, उदककृच्छ्र, मूल कृच्छ्र, श्रीफलकृच्छ्र, पराक, सान्तपन, महासान्तपन, अतिसान्तपन, पर्णकृच्छ्र – इनका विधान आया है । ४७. चान्द्रायण व्रतवर्णनम् ग्रासार्थान्न निर्णय वर्णनम् : ४७७ चान्द्रायण के विधान- इसमें यति चान्द्रायण और सामान्य चान्द्रायणादि का वर्णन आया है । ४८. अन्नदोषार्थ यवेन प्रायश्चित्तम् : ४७८ २७ अपने लिए यव भिगोकर उसकी तीन अंजुली पीवे उससे वेश्या का अन्न, शूद्र के अन्न का दोष हट जाता है । ४६. मार्गशीर्ष शुक्लं कावश्युपाख्यान वर्णन, सर्वपाप निवृत्यर्थं 'वासुदेवार्चन वर्णनम् : ४७६ मार्गशीर्ष शुक्ला ११ में उपवास कर १२ में भगवान् वासुदेव का पूजन पुष्प, धूप आदि से करे । एकादशी व्रत करने से बहुत पाप नष्ट हो जाते हैं । श्रवण नक्षत्र युक्त एकादशी वा पूर्णिमा को एक वर्ष तक व्रत करने से पाप नष्ट हो जाते हैं । ५०. ब्रह्म, गोवधादि प्रायश्चित्तार्थ वने पर्ण कुटी विधान वर्णनम् : ४८० --- व्रत का वर्णन - वन में झोपड़ी बनावे और तीन बार स्नान करे और ग्रामग्राम में भीख मांगे और घास पर सोवे तथा अपने पाप को कहता जावे । रजस्वला आदि गमन स्त्री आदि पाप नष्ट हो जाते हैं । फल के वृक्षादि, गुल्मादि काटने के पाप भी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं । ५१. सुरापः सर्वकर्मस्वनर्हः मद्यमांसादि निषेधं तच्च सर्व प्रायश्चित्तवर्णनम् : ४८२ सुरापान करने वाला किसी कार्य को या मातृ-पितृ श्राद्ध कर वह एक वर्ष तक कणों को खावे एवं चान्द्रायण व्रत करे । प्याज, लहसुन, वानर, खर, उष्ट्र, गोमांस के भक्षण करने पर भी वही व्रत है । द्विजातियोंको इस व्रत के पश्चात् फिर संस्कार करें । शुष्क मांस के खाने पर भी उपरोक्त Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति व्रत करे । अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप होते हैं वे सभी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं । ५२. स्वर्णस्तेयिनां तथान्यान्य द्रव्य हतॄणां प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८७ सुवर्णचोरी तथा अन्यान्य द्रव्यचोरी के प्रायश्चित्त का वर्णन है । ५३. अगम्यागमने दोषनिरूपणं प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८८ अगम्यागम्य के विषय में प्रायश्चित्त ५४. यः पापात्मा येन सह युज्यते तत्प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८६ जो जिस पापी के साथ रहता है उसे भी वही प्रायश्चित्त बतलाया है। ५५. रहस्य प्रायश्चित्त विधान वर्णनम् : ४६२ रहस्य पापों का प्रायश्चित, प्रणव का जप, हविष्यांग और प्राणायामादि बतलाया है । ५६. वेदोद्धृतपवित्र मन्त्र वर्णनम् : ४६० इसमें जप, होम, अघमर्षण, नारायणी सुक्त और पुरुषसूक्त इत्यादि का माहात्म्य बतलाया गया है । ५७. अभोज्यप्रतिग्राह्ययोस्त्याज्य वर्णनम् : ४६४ इसमें त्याज्य मनुष्यों का निर्देश, त्याज्य पुरुषों से दान लेने से ब्राह्मणों का तेज नष्ट हो जाता है । ५८. गृहस्थाश्रमिणस्त्रिविधोऽर्थोपार्जन वर्ण नम् : ४६५ २८ इसमें गृहस्थी के तीन प्रकार के अर्थ बतलाये हैं । शुल्क सबल और असित, जो अपनी वृत्ति से धनोपार्जन करते हैं उन्हें शुल्क, दूसरों को ठगकर अपना व्यापार करते हैं उन्हें सबल, तीसरे रिश्वत और सट्टामादि से रोजगार करने वाले और ब्याज खाने वाले को असित कहते हैं। जिस तरह जो रुपया आता है उसकी गति वैसी ही होती है । ५६. गृहस्थाश्रमिणां कर्तव्यमग्निहोत्रश्च वर्णनम् : ४६६ गृहस्थाश्रमी नित्य हवन करे इस तरह लिखे हुए आचार के अनुसार हवन करने वाले की प्रशंसा की गई है । ६०. सर्वेषां नित्यशौच ब्राह्ममुहूर्तादि कृत्यवर्णनम् : ४६८ ६१. दन्तधावन प्रकरण वर्णनम् : ४६६ ६२. द्विजातीनां प्राजापत्यादि तीर्थ वर्णनम् ५०० Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विष्णुस्मृति ६३. योगकमं विधानम् - ईश्वर प्राप्ति, यात्रा प्रकरणेवृष्टादृष्ट वर्णनम् - ६४. स्नानाद्याचार कृत्य वर्णनम् ६५. स्नानान्तर कर्तव्यता- देवपूजावर्णनम् ६६. देवपितृकर्म विधानं, तत्कर्मणि त्याज्य वर्णनम् ६७. अग्निस्थापनमतिथ्याद्यनेक विचार वर्णनम् ६८ चन्द्रसूर्योपरागे कर्तव्यता त्वनेक प्रकरणे त्याज्य वर्णनम् ६६. स्वस्त्रियामपि गमने निषेध तिथि: वर्णनम् ७०. शयनाद्यनेक विवेक वर्णनम् - ७१. केन सह निवासो न कर्तव्यः आचार विषयश्च वर्णनम् :-शयन विचार अध्याय ६० से ७१ तक गृहस्थाश्रमी के प्रत्येक दैनिक और पर्व उत्सव के, जीवन यात्रा के, आचार, सदाचार, व्यवहार की गई है । ७२. दम: (इन्द्रिय निग्रहः ) वर्णनम् ७३. श्राद्धवर्णनम् - ७४. अष्टका श्राद्ध विधि वर्णनम् - ७५. श्राद्धाधिकारी कस्तन्निर्णयश्च पितरि जीवति श्राद्ध वर्णनम् ७६. अमायां तथान्यदिवसेऽष्टकाश्राद्धविमर्शः श्राद्धकाल वर्ण नम् ७७ काम्यश्राद्ध विषय वर्ण नम् ७८. नक्षत्र विशेषेण श्राद्ध वर्णनम, सदा रविवारे श्राद्ध निषिद्ध वर्णनम् ७६ जन्मकुशादि नियमः, श्राद्धे प्रशस्त वस्तूनि वर्णनम् ८०. श्राद्धे पितॄणां प्रधान वस्तूनि, पितृगीता वर्णनम् ८१ श्राद्धान्नं पावाभ्यां न स्पृशेत् २६ ५०० ५०२ ५०४ ५०५ ५०६ ५०६ ५१० ५११ ५११ के घर के " शिक्षा दी ५१४ ५१४ ५१७ ५१८ ५१८ ५१६ ५१६ ५२१ ५२२ ५२३ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ८२. श्राद्धे ब्राह्मण परीक्षा वर्णनम, त्याज्ये ब्राह्मण वर्णनम्, होनाधिकाङ्गान् वर्जयेत् ८३. श्राद्धे (पङ्क्तिपावन) प्रशस्त ब्राह्मण वर्णनम् ८४. केषां सन्निधौ श्राद्धं न कर्तव्यम् तद्ववर्णनम् ८५. पुष्करादि तीर्थेषु श्राद्धमहत्त्व वर्णनम् ८६. श्राद्धे वृषोत्सर्ग वर्णनम् अध्याय ७२ से ८६ तक श्राद्ध का वर्णन है । ८७. दान फलवर्णने - वैशाखे कृष्णमृगाजिनवान वर्णनम्, कृष्णाजिनाद्यासन विधान विधि वर्णनम् ८८. गोदान महत्व वर्णनं अध्याय ८७,८८ में दान वर्णन - उध्वंमुखी गाय का दान । ८६. सर्वदेवानाम्मध्येऽग्नेः प्राधान्यत्वं कार्तिके सर्व पाप विमुक्ति वर्णनम् ५२६ इसमें कार्तिक मास में जितेन्द्रिय व्रत करता हुआ जो स्नान करता है वह मनुष्य सब पापों से छूट जाता है । ६०. मार्गशीर्षादि द्वादशमासान्निर्देशदान महत्त्व वर्णनम् ५२६ मागशीर्ष के चन्द्रमा के उदय में सुवर्ण दान करे उसे रूप और सौभाग्य का लाभ होता है । पौष की पूर्णमा में स्नान औरदान कर कपड़े देवे तो पुष्ट होता है । माघ इत्यादि मासों के पूर्णमासी का व्रत, दान करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं । विष्णुस्मृति ५२३ ५२४ ५२५ ५२५ ५२६ ६१. कूप तड़ाग खनन तदुत्सगं विधानं, तल्लक्षणञ्च, तन्निर्देश वस्तु दान महत्त्व वर्णनम् ५३२ कुआं और तालाब के दान करने वाले सब योनियों में तृप्त रहता है । ब्राह्मण के घर या रार ते वृक्ष लगाने से वही फल उसके घर में पुत्र रूप से उत्पन्न होते हैं । जो उनकी छाया में बैठते हैं वे उनके मित्र और सहायक होते हैं । कूपतड़ाग और मन्दिर का जीर्णोद्धार करने वाले को नये बनाने का फल होता है । ६२. सर्वदानेष्वभय दान महत्त्व वर्णनम् : ५३३ सब दान से बड़ा अभय दान है । इसके साथ गोदान, सुवर्ण, लवण, धान्य, आदि दान का महत्व वर्णन आया है । दान के पात्र - गुरु, ब्राह्मण, दुहिता और जामाता हैं । ५२८ ५२६ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ विष्णुस्मृति ६३. दानाधिकारी ब्राह्मण लक्षण वर्णनम् : ५३५ दान के अधिकारी ब्राह्मणों के लक्षण ६४. गृही कदा वनाश्रमी भवेत्तन्निणयः, आचारो पदेश वर्णनञ्च : ५३६ गृहस्थी बाल सफेद हो जाय तो वानप्रस्थ को चले जाय या पौत्र हो जाए तो वान प्रस्थ को चला जाय । ६५. स कर्तव्यता-बानप्रस्थाश्रम वर्णनम् : ५३६ वानप्रस्थ में तपस्या से शरीर को सुखा देवे । ___९६. सकर्तव्या संन्यासाश्रम वर्णनम् : ५३७ तीनों आश्रमों में यज्ञ करने का विधान और संन्यासाश्रम का वर्णन है । ६७. संन्यासीनां नियमः, तत्त्वानां विमर्शः, विष्ण ध्यान वर्णनम् : ५४० संन्यास के नियम-उसके शब्द रूप रस के विषय से हटने का नियम, इस शरीर को पृथिवी समझो, चेतना को आत्मा समझें, किस संन्यासी को किस विचार से ध्यान करने का प्रकार, पुरुष शब्द का विषय, ज्ञान, ज्ञेय, गम्य ज्ञान का विचार । ६८. जगत्परायण नारायण वर्णनम्, अष्टाङ्ग नमस्कारावि विधानविधिः, वसुमती नारायणं प्रति प्रार्थयति : ५४२ भगवान वासुदेव का पृथिवी में चिन्तन करना । ६६ लक्ष्मी वसुधा सम्बाद वर्णनम्, लक्ष्मी निवास स्थान वर्णनम् : ५४४ पृथिवी का प्रार्थना और पूजन, लक्ष्मी का निवास-आंवला के वृक्ष, शंख, पद्म में, पतिव्रता, प्रियवादिनी स्त्रियों में लक्ष्मी का निवास है। १००. वसुधा प्रति नारायणस्योक्तिः, एतद्धर्मशास्त्रस्य माहात्म्य वर्णनम् : ५४६ धर्म शास्त्र का माहात्म्य । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्ववर्त्तस्मृति ब्रह्मचर्यवर्णनमाचारश्च संक्षेपेण धर्म वर्णनम् : ५४७ वामदेवादि ऋषियों का सम्बर्त से विनम्र प्रश्न धम्य देश जहां कम संस्कार करने का विधान है ब्रह्मचर्य का विधान तथा सन्ध्योपासना वर्णन कन्याविवाहवर्णनमाशौचवर्णनम्, गोदानमाहात्म्यं ५५० विवाह प्रकरण अशौच शुद्धि प्रेत-कर्म दसवें दिन शुद्धः, एकादश दिन श्राद्ध कर्म द्वादश दिन शय्या दान विविध दान माहात्म्य कन्या का विवाह काल दान का विधान और प्रत्येक दान का माहात्म्य गृहस्थ की दिनचर्या आचारव्यवहारयोश्च (दिनचर्या) वर्णनम्, वानप्रस्थ धर्म, यतिधर्म, पापानां प्रायश्चित्तं, सुरापान गोवध और जीवहत्या, प्रायश्चित्तं और अगम्यागमन, दुष्टानां निष्कृति वर्णनम्, अस्पृश्य- स्पर्श वर्णनम्, अभक्ष्य भक्ष्ये प्रायश्चितं वर्णनम् : ५५६ वानप्रस्थ धर्म यति के धर्म महापापों की गणना और पापों का प्रायश्चित्त, उपपाप, आदि सब पापों का प्रायश्चित्त संकीर्ण ૪ ५-३४ ३५-३६ ३७-३८ ३६ ४५-४६ ५०-६५ ६६ ६७-६१ ६७ ६८-१०१ १०२-१०७ १०५-२०० Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्षस्मृति ३३ दान, उपवास ब्राह्मणभोजन गायत्री मन्त्र जप तथा प्राणायाम : ५६७ उपवास व्रत, ब्राह्मण भोजन कराने की तिथियां २०३ गायत्री जप, प्राणायामादि २०४-२२७ दक्षस्मृति १. आश्रमवर्णनम् : ५६६ बाल्यकाल में भक्ष्याभक्ष्य का दोष नहीं होता उपनयन संस्कार नियमाचरण २. ब्राह्ममुहूर्ताद्दिनचर्य्याकृत्य, वैदिक कर्म तथा गृहस्थाश्रमगुणवर्णनम् : ५७१ उषा - काल से दिन पर्यन्त कार्यक्रम का विधान दैनिक कार्य की सूची उषा काल में स्नान सन्ध्या का माहात्म्य, सन्ध्या उपस्थान वर्णन हवन ब्रह्मयज्ञ का समय दूसरों को भोजन देने से मनुष्यता होती है स्नान के प्रकार सुख का साधन : धर्म और चरित्र गृहस्थ के कर्म जिसके अनुसार चलने से गृहस्थाश्रमी उच्च कहलाने योग्य हो ३७-५६ ३. गृहस्थीनां नवकर्मविधानं सुखासाधन धर्म वर्णनम् : ५७६ गृहस्थी के नव कर्म नवविकर्म ४. स्त्रीधर्मवर्णनम् : ५८१ सद्गृहस्थी पति पत्नी का धार्मिक प्रेम स्वर्ग सुखवत् है ५. बाह्याभ्यन्तर शौचवर्णनम् : ५८३ शौच की परिभाषा तथा वाह्य एवं आभ्यन्तर शौच का वर्णन हाथ पैर पर कितने बार मृत्तिका जल देवें, तथा अंग प्रक्षालन ६. जन्ममरणाशौचं समाधियोग वर्णनम् : ५८७ जन्म मरण का अशौच काल १-५ ६-१४ १-१० ११-१६ २०-३० ३०-३५ ३६ १-६ १०-१६ २०-३२ १-२१ १४- ५४ ७. इन्द्रियनिग्रह अध्यात्मयोगसाधन तथा द्वैतानुभवाद्योग : ५८६ इन्द्रियों पर विजय १ अध्यात्म योग साधन और अद्वैत अनुभव से ही योग का विकास २-५४ १-३ ४-१३ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रङ्गिरसस्मृति सवप्रायश्चित्तविधानं, अन्त्यजानां द्रव्यभाण्डेषु जलपानं, अज्ञानवशाज्जलपानं उच्छिष्ट भोजनं नीलवस्त्रधारणं कृत्वा दानादिकरणे प्रत्यवायः, भूमौ नीलवपनाव् द्वादशवर्ष पर्यन्त भूमेरशुद्धिः, गोवधप्रायश्चित्त स्त्री शुद्धिवर्णनं, अन्नभक्षणेन भेदान्तर पापवर्णनम् द्विविवाहितायाः कन्याया अन्नभक्षणेन प्रायश्चित्तम्, दोषयुक्त मनुष्यान्न वर्णनम् राजान्नं शूद्रान्नं च तेज वीर्यह्रास कत्वं सूतकान्नं मलतुल्यं वर्णनं मिति : ५६१ अन्त्यज के बरतन में पानी पीने से प्रायश्चित्त-विधान " अज्ञान से पानी पौने पर केवल एक दिन का उपवास उच्छिष्ट भोजन करने का प्रायश्चित्त नीला वस्त्र पहनकर भोजन दान करने से चान्द्रायण व्रत जिस भूमि पर नील की खेती एक बार भी की जाय वह भूमि बारह वर्ष तक शुद्ध नहीं होती गाय के मरने पर प्रायश्चित्त गोपाल या स्वामी की असावधानी से शृङ्गादि टूटने से गाय क े मरने पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त रजस्वला स्त्री की शुद्धि अन्न के दोष और जो जिसका अन्न खाता है उसका पाप उन स्थानों की गणना जहां पादुका पहनकर नहीं जाना चाहिए जिसका अन्न नहीं खाना चाहिए जो कन्या दुबारा ब्याही जाय • जिन जिन का अन्न खाने में दोष हो उसका वर्णन राजा के अन्न से तेज का ह्रास, शूद्र का अन्न से ब्रह्मचर्य का ह्रास और सूतक का अन्न बिल्कुल दूषित १-६ ७ ८- १४ १५-२२ २४ २५-२६ २६-३४ ३५-४२ ४३-५८ ५६-६३ ६४-६५ ६६ ६७-७२ ७३ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 21 . . १-२ शातातपस्मृति १. अकृत प्रायश्चित्त वर्णनम् : ५६८ पाप करने पर जो प्रायश्चित्त नहीं करते हैं उनके नरक भोगने के _वाद आगामी जन्म में पाप सूचक कुछ चिह्न होते हैं महापातक के चिह्न सात जन्म तक रहते हैं पूर्वजन्मात प्रायश्चित्त चिह्नम् उपपापतक के चिह्न पांच जन्म तक, सामान्य पापों का तीन जन्म तक । दुष्ट कर्मों से जो रोग उत्पन्न होते हैं उनकी जप, देवा र्चन, हवन आदि से शान्ति की जाती है पहले जन्म के किए पाप नरकभोगगति के अनन्तर बीमारी के रूप में आते हैं उनका शमन जप, दानादि से होता है महापातकादि से होनेवाले रोग कुष्ठ, यक्ष्मा, ग्रहणी, भतिसारादि ६-७ उपपातक से श्वास, अजीणं आदि रोग पापों से होने वाले कम्प, चित्रकुष्ठ, पुण्डरीकादि रोग अति पाप से उत्पन्न होने वाले रोग अर्श आदि पापजन्य रोगों का शमन करने का उपाय ११-३२ २. कुष्ठ निवारण प्रयोग वर्णनम् : ६०१ ब्रह्म हत्या से पाण्डु कुष्ट तथा उनका प्रायश्चित्त १-१२ सामवेदेन सर्वपाप प्रायश्चित्तम् : ६०३ गोवध प्रायश्चित्त का विधान, सामवेद पारायण, १३-१६ हन्तुक-फलानाशायोपापवर्णनम् : ६०५ पितृ-हत्या मात्र हत्या से रोग और उसका विधान २०-२५ बहिन हत्या के पाप २६-३५ स्त्रीघाती एवं राज घाती ३६-४२ भिन्न भिन्न पशुओं के वध का भिन्न भिन्न प्रायश्चित्त ४३-५७ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ३. प्रकीर्णरोगाणां प्रायश्चित्तम् : ६०७ प्रकीर्ण रोगों का प्रायश्चित्त सुरापान आदि अभक्ष्यभक्षण का प्रायश्चित्त विष दाता, सड़क तोड़ने वाले को रोग और प्रायश्चित्त । गर्भपात करने से यकृत प्लीहा आदि रोग होते हैं उनके प्रायश्चित्त, जल धेनु और अश्वत्थ का पूजन और दान दुष्टवादी का अंग खण्डित हो जाता है। सभा में पक्षपात करनेवाले को पक्षाघात रोग, उसका प्रायश्चित्त ४. कुलध्वंसकस्य, स्तेयस्य च प्रायश्चित्तम् : ६०६ कुल को नाश करने वाले को प्रमेह की बीमारी और उसका निदान ताम्बा, कांसा, मोती आदि चोरी करने से जो रोग होते हैं उसका वर्णन और प्रायश्चित्त शातातपस्मृति दूध दही आदि चोरानेवाले को रोग तथा उसका निदान मधु चोरी करने वाले को बीमारी और उसका प्रायश्चित्त लोहा की चोरी से रोग की उत्पत्ति और उसका प्रायश्चित्त तेल की चोरी से रोग की उत्पत्ति और उसका प्रायश्चित्त धातुओं की चोरी से रोग और उसका प्रायश्चित्त तथा वस्त्र, फल, पुस्तक, शाक, शय्या छोटी वस्तु चोराने से जो जो बीमारी होती है उनका विस्तार, उनके शमनार्थं प्रायश्चित्त, व्रत, दान ५. अगम्यागमन प्रायश्चित्तम् : ६१३ मातृ गमन से मूत्र कुष्ठ (लिंग नाश) रोग लड़की के साथ व्यभिचार करने से रत्तकुष्ठ भगिनी के साथ व्यभिचार करने से पीतकुष्ठ ऊपर के पापों का प्रायश्वित्त विधान और दान १-६ ७- १५ १६-१ε २०-२१ २२ २-७ ८-१० ११-१२ १४ १५ २६ २७ २८ २६-३५ भ्रातृ भार्या गमन करने से गलित कुष्ठ ३६ वधू गमन करने से कृष्ण कुष्ठ ३७ करने से भिन्न-भिन्न रोग ) । ( चतुर्थ अध्याय में भी मातृगमन भगिनी गमन, तपस्विनी के साथ गमन राज और राजपुत्र को चोरी से मारना, मित्र में भेद करानेवाले का वर्णन, गुरु को मारने से रोग और प्रायश्चित्त । छोटे १६-१६ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-६ शातातपस्मृति छोटे पापों का वर्णन और प्रायश्चित्त तथा व्रत शान्ति का वर्णन। पांचवें अध्यायमें मातगमन से लेकर भगिनी आदि अगम्या गमन से जो असाध्य रोग होते हैं उनकी शान्ति तथा प्रायश्चित्त ।) ६. अनुचित व्यवहारफलम् : ६१६ पञ्चत्रिंशत् (पैंतीस प्रकार से मरा हुआ पितृगति क्रिया को नहीं पाता है । आकस्मिक मृत्यु बिजलीपात इनको श्राद्ध में लेप भुज कहा है अनायास मृतक की गति न होने से ये प्रेतादि योनियों में जाते हैं और बालकों का हरण होता है अपमृत्यु से जो मरते हैं उनके कारण कौन पाप है, जैसे जो कुमारी गमन करे उसे व्यान मारता है, जो किसी को विष देता है उसे सर्प काटता है, राजा को मारनेवाले को हाथी से मृत्यु होती है, मित्र द्रोही, बक वृत्ति वाले की मृत्यु भेड़िया से होती है अगति प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६१८ उन उन पापों का प्रायश्चित्त दिखाया है १७ अपघात करने वालों की नारायणवली का विधान २६ इन पापों की शुद्धि के भिन्न भिन्न प्रकार के दान ३०-५१ ॥ स्मृतिसन्दर्भ प्रथम भाग की विषय-सूची समाप्त ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मति सन्दर्भ द्वितीय भाग पराशरस्मृति पराशर संहिता दो उपलब्ध हैं पराशरस्मृति और बृहत्पराशर । पराशर स्मृति में और बृहत्पराशर दोनों में १२ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में दोनों स्मृतियों में एक जैसा वर्णन "कलौपाराशरीस्मृता" है दूसरे अध्याय से वृहत् पराशर में कुछ विशेष बातें और विचार वर्णन किया गया है। पराशरस्मृति किसी देश विशेष, संप्रदाय विशेष, जाति विशेष को लेकर धर्माख्या नहीं करती है, अपि तु मनुष्यमात्र का पथप्रदर्शित यह स्मृति करती है। १. धर्मोपदेश तथा उनके लक्षण : ६२५ "मानुषाणां हितं धर्म वर्तमाने कलीयुगे शौचाचारं यथावच्च वद सत्यवतीसुत !" [वर्तमान समय में मनुष्यमात्र का जिससे हित हो वह धर्म कहिए और ठीक-ठीक रीति से आचारादि की रीति भी बतला दीजिए-ऋषियों के प्रश्न करने पर व्यासजी ने उत्तर दिया कि कलियुग के सार्वभौम धर्म के विकास करने में अपने पिता पराशरजी की प्रतिभा शक्ति की सामर्थ्य कही । पराशरजी निरन्तर एकान्त बदरिकाश्रम की तपोभूमि में आसीन हैं । तपोमय भूमि में तपस्यारूपी साधन के बिना कलियुग के धर्म, व्यवहार, मर्यादा पद्धति का पर्षदीकरण अबैध सूचित किया ऋषियों ने इस बात पर विचार किया कि कलियुग के मनुष्य किसी धर्म मर्यादा की पर्षद बुलाने की क्षमता नहीं रख सकते हैं यावत् तपोमय जीवन से इन्द्रियों की उपरामता न हो जाए अतः इन्द्रिय भोग विलासिता के जीवन वाले वेद शास्त्रपारंगता प्राप्त करने पर भी धर्म, न्याय विधि को नहीं बना सकते हैं। अतः विधि, नियम रूपी धर्म व्यवहार के लिए तपस्या तथा वनस्थली में राग, द्वेष, आदि का विकास परमावश्यक है। पराशर जी के आश्रम पर व्यास प्रमुख सब ऋषि गए Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाराशरस्मृति ३६ पराशर जी ने मानवीय सदाचार द्वारा आश्रम में आए हुए सब का स्वागत किया। व्यासजी ने पितृभक्ति से पराशरजी को प्रणाम कर निवेदन किया १-१५ 'यवि जानासि मे भक्ति स्नेहाद्वा भक्तवत्सल ? धर्म कथय मे तात ! अनुग्राह्योह्ययं तव" ॥ (पुत्र पिता से सर्वोच्च वस्तु क्या चाहता है यह समुदाचार इस प्रश्न से सरलता से ज्ञात हो रहा है) व्यासजी कहते हैं कि भगवन् ! यदि मेरी भक्ति को आप जानते हैं या मेरे स्नेह को तो मुझे धर्म का उपदेश कीजिए जिससे मैं आपका अनुगृहीत होऊंगा। पुत्र पिता से सबसे बड़ा धन धर्म मांगता है यह भारत की संस्कृति है (एक ओर व्यासजी की पिता की धर्म जिज्ञासा, दूसरी ओर संसार में देखो पैतृक धन संपत्ति पर न्यायालयों में पुत्र पिता पर अभियोग चलाते हैं) इससे सांस्कृतिक जीवन, असांस्कृतिक जीवन का सरलता से ज्ञान हो जाएगा। संस्कृति उसे कहते हैं जिससे धर्म का ज्ञान माता, पिता, गुरु, बन्धुजनों को पूज्य मर्यादामय व्यवहार से कृति हो। व्यासजी ने विनम्र जिज्ञासा की-मनु, वसिष्ठ, कश्यप, गर्ग, गौतम, उशना, हारीत, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, प्रचेता, आपस्तम्ब, शंख, लिखित आदि धर्मशास्त्र प्रणेताओं के धर्म निबन्ध सुनने पर भी वर्तमान कलियुग की धर्ममर्यादा बनाने में अपने को समर्थ समझकर आपके पास इन ऋषियों के साथ आया हूं कलियुग में धर्म को नष्टप्राय देख रहा हूं। अतः आपका तपोमय जीवन ही इस युग धर्म की व्यवस्था दे सकता है। १६-२६ युग चतुष्टय की व्यवस्था धर्म मर्यादा का तारतम्य । २९ दान के प्रकरण में सेवा दान नहीं है वह सेवा का मूल्य है। सत्ययुग में अस्थि में प्राण रहते थे, त्रेता में मांस में, द्वापर से रुधिर में और कलियुग में अन्न में प्राण रहते हैं। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० पाराशरस्मति दीर्घ समय तक तपस्या की क्षमता कलियुग के जीवन में नहीं है और अन्न की सावधानी पर ध्यान दिलाया जैसा अन्न खाएगा, उसी प्रकार उसके जीवन की सम्पूर्ण घटना होगी। कलियुग के जीवन की प्रवृत्ति बनाकर ध्यान दिलाया है। ३१-३७ आचार धर्मवर्णनम् : ६२९ "आचार भ्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः पराङ्मुख" । मनुष्य आचार से च्युत है तो उसे धर्मपराङ्मुख समझना चाहिए। सदाचार विहित धर्म मर्यादा को नहीं जान सकता। "सन्ध्यास्नानं जपो होम स्वाध्यायो देवतार्चनम् । वैश्वदेवातिथेयञ्च षट्कर्माणि दिने दिने ॥ (३६) षट्कर्माभिरतो नित्यं देवताऽतिपिपूजकः । हुतशेषन्तु भुजानो ब्राह्मणो नावसीदति" ।। (३८) षट् कर्म का निरूपण, अतिथि सत्कार वैश्वदेव कर्मादि का निरूपण और अतिथि का लक्षण ३८-५८ राजा को प्रजा से सर्वस्व शोषण का निषेध ५८-६५ २. गृहस्थाश्रमधर्मवर्णनम् : ६३१ गृहस्थी के धर्माचार का निर्देश "षट्कर्म निरतो विप्रः कृषिकर्माणि कारयेत् । हलमष्टगवं धयं षड्गवं मध्यमं स्मृतम् ॥ चतुर्गवं नशंसानां द्विगवं वृषघातिनाम् । क्षधितं तषितं धान्तं बलीवदं न योजयेत् ॥ होनाङ्ग व्याधितं क्लीव वृषं विप्रो न वाहयेत् । स्थिराङ्ग नीरुजं दृप्तं वृषभं षण्डवजितम् ।। बाहयेद्दिवसस्या पश्चात् स्मानं समाचरेत्” । षट्कर्म सम्पन्न विप्र को कृषि कर्म में जुट जाने का आदेश है, किस प्रकार भूमि में हल से जुताई करे, कितने बैलों से हल जोते तथा बैलों को हृष्टपुष्ट बनाना उसका धर्मकार्य और कितने समय तक बैलों को खेती पर जोते जाए इसका Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाराशरस्मृति नियम । कृषि कर्म को मनुष्य मात्र के लिए प्रधान कर्म बताया है और कृषिकार सब पापों से छूट जाते हैं चतुर्वर्ण का कृषि कर्म धर्म बतलाया है ३. अशौच व्यवस्था वर्णनम् : ६३३ अशौच का प्रकरण -- ब्राह्मण मृतसूतक में ३ दिन में, क्षत्रिय १२ दिन में, वैश्य १५ दिन में और शूद्र १ मास में शुद्ध हो जाता है । तृतीय अध्याय में जन्म और मरण के अशौच का विवरण दिया गया है । किन्तु जातक अशौच में ब्राह्मण १० दिन में शेष पूर्व लिखित है । बालक और संन्यासी के मरने पर तत्काल शुद्धि बताई है । १० दिन के बाद खबर पावे तो ३ दिन का सूतक, और सम्वत्सर के बाद खबर पावे बो स्नान करके शुद्धि हो जाती है गर्भ में मरने की और सद्यः मरने की तत्काल शुद्धि होती है शिल्पी, राजमजदूर, नाई, वैद्य, नौकर, वेदपाठी और राजा इनको सद्यः शौच गर्भस्राव का सूतक विवाहोत्सव में मृतक सूतक संग्राम में मरने वाले की मृत्यु का अशौच संग्राम में क्षत्रिय के देहपात शूद्र के शव ले जाने वाले पर सूतक की अवधि ४. अनेकविधप्रकरण प्रायश्चित्तम् : ६३६ किसी को फांसी लगाना उसका पाप बिना इच्छा के पतितों से सम्पर्क रखना ऋतुकाल में पति पत्नी का वर्णन औरस, क्षेत्रज, दत्तक, कृत्रिम पुत्रों की परिभाषा ५. प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६४२ कुत्ता, भेड़िया किसी को काटे उसको गायत्री जपादि प्रायश्चित्त चाण्डाल, आदि से जो ब्राह्मण मर जाए उसका प्रायश्चित्त ४१ ६-१२ १३-१७ १-१६ २६ २७-२८ ३३ ३४-३५ ३६-४३ ४४-४७ ४५-५४ १-६ ७-११ १२-१६ १७-२८ १-७ ८-१२ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪ર पाराशरस्मृति श्रौताग्निहोत्र संस्कार वर्णनम् : ६४३ आहिताग्नि के शरीर छूटने पर उसके श्रीताग्नि से संस्कार १३-३५ . ६. प्राणिहत्या प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६४४ प्राणिहत्या का प्रायश्चित्त-हंस, सारस, क्रौंच, टिड्डी आदि पक्षियों को मारने से जो पाप होता है और शुद्धि नकुल, मार्जार, सर्प आदि को मारने का पाप, और शुद्धि ९-१० भेड़िया, गीदड़ और सूकर मारने का पाप तथा शुद्धि घोड़े, हाथी मारने का पाप, उसका प्रायश्चित्त और शुद्धि १२ मृग, वराह के मारने का पाप, उसका प्रायश्चित्त और शुद्धि १३-१४ शिल्पी, कारु और स्त्री आदि के घात का पाप, प्रायश्चित्त एवं शुद्धि १५-१६ चाण्डाल से व्यवहार का पाप उसका प्रायश्चित्त एवं शुद्धि २०-२५ प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६४७ ।। चाण्डाल के अन्न खाने का प्रायश्चित्त २६-३० अविज्ञात में चाण्डाल आदि के यहां ठहर कर जूठे एवं कृमि दूषित अन्न भोजन करने का दोष और उसका प्रायश्चित्त ३१-३८ घर की शुद्धि जिस घर में चाण्डाल रह गए उस घर की शुद्धि । इन स्थानों पर रस, दूध दही आदि अशुद्ध नहीं होते हैं । ३९-४३ ब्राह्मण महत्ववर्णनम् : ६४८ ब्राह्मण के किसी व्रण पर कीड़े पड़ जायें तो उसका वर्णन और उसकी शुद्धि बताई है "उपवासो व्रतं चैव स्नानं तीर्थं जपस्सपः । विप्रः सम्पादितं यस्य सम्पन्नं तस्य तद्भवेत्" ।। ब्राह्मण जो व्यवस्था देते हैं उसके अनुसार चलने का माहात्म्य ४३-५८ : ब्राह्मण के वाक्य तथा उनका माहात्म्य ५६-६१ अभोज्य अन्न, भोजन करते समय बैठने का विधान ६२-६३ बड़ी संख्या में जो अन्न अशुद्ध हो जाय तो उसे त्याज्य नहीं बत. लाया है बल्कि उसे शुद्ध करने का विधान ७. द्रव्यशुद्धि वर्णनम् : ६५१ लकड़ी के पात्र और यज्ञ पात्र तथा इनकी शुद्धि Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाराशरस्मृति स्त्री, नदी, वापी, कूप और तड़ाग की शुद्धि रजस्वला होने से पूर्व कन्या का दान स्त्रीशुद्धिवर्णनम् : ६५३ रंजस्वला स्त्री के शुद्धि १०-१८ कांस्य, मिट्टी आदि के पात्र एवं वस्त्रों की शुद्धि १६-३५ सड़क में पानी, नाव और पक्के मकान अशुद्ध नहीं होते वृद्ध स्त्री और छोटे बालक ये अशुद्ध नहीं होते हैं । पापियों के साथ बातचीत करने पर शुद्धि ३७-४२ ८. धर्माचरणवर्णनम् : ६५५ गाय को बांधने से जो मृत्यु हो जाय उसका प्रायश्चित्त २-२१ निन्द्य ब्राह्मणवर्णनम् : ६५७ जो ब्राह्मण न लिखे पढ़े तो पतित और उनका प्रायश्चित्त २२-२७ पञ्च यज्ञ करने वाले और वेद पढ़े लिखे ब्राह्मण २८-३१ राजा को बिना विद्वान ब्राह्मणों के पूछे स्वयं व्यवस्था नहीं देनी चाहिए ३२-३६ प्रायश्चित्त स्थान ३७-३८ गोब्राह्मणहेतोरुपदेशः : ६५६ गाय किसी स्थान पर कीचड़ में फंस जाय तो उसके रक्षा का पुण्य ३६-४३ गो-घाती को प्राजापत्य कृच्छ्र के विधान का वर्णन ४४-४६ ६. गोसेवोपवेशवर्णनम् : ६६० गो सेवा का उपदेश । गोवध करने में कौन-कौन दण्डनीय होते हैं। गाय को बांधना, लाठी मारना या काम क्रोध से मारना, पर वा सींग तोड़ने का पाप तथा प्रायश्चित्त .१-२५ गवि विपन्नानां प्रायश्चित्तम् : ६६३ गाय के बांधने एवं नदी और पर्वत पर गाय के चराने का वर्णन। गाय को किन रस्सियों से बांधना और किनसे नहीं बांधना, बिजली गिरने से, अति वृष्टि से यदि गाय मर जाय, इन सम्बन्धों में और गाय के सम्बन्ध में कोई बात न बतावे Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ तो इससे पाप आदि का वर्णन आया है । बाल, भूत्य, "गो विप्रेष्वति कोपं विवर्जयेत" इन पर अति कोप नहीं करना १०. अगम्यागमन प्रायश्चित्तवर्णनम् : ६६६ अगम्यागम्य में चान्द्रायण व्रत तथा ग्रास का प्रमाण चाण्डालनी के साथ गमन हवन - विधान ब्रह्मकूर्च का माहात्म्य पाराशर स्मृति माता, माता की बहिन और लड़की के साथ गमन पिता की बहु स्त्रियां और मां की सम्बन्धी, भ्रातृ भार्या, मामी, सगोत्रा, पशु और वेश्या गमन मनुष्य का कर्त्तव्य - बीमारी, संग्राम, दुर्भिक्ष, में भी औरतकी रक्षा व्यभिचार से दुःखित स्त्री के शुद्धि शराब पीने वाली स्त्री का पति पतित हो जाता है। जार से जो स्त्री संतान पैदा करे उसका त्याग पतित स्त्री तथा उसके पति का प्रायश्चित्त जो स्त्री जार के घर चली जाय फिर वहां से भाग कर यदि पिता के घर आ जाय तो वह जार का घर समझा जायगा । काम और मोह से जो स्त्री अपने बच्चों को छोड़कर जार के घर चली जाय तो उसका परलोक नष्ट हो जाता है ११. अभक्ष्यभक्षणप्रायश्चित्त वर्णनम् : ६७० गोमांस एवं चाण्डाल के अन्नादि का भक्षण एक पंक्ति पर बैठे हुए में से एक भी भोजन करने वाला उठ जाय तो वह अन्न दूषित हो जाता है पलाण्डु (प्याज) वृक्ष का निर्यास, देवता का धन और ऊंट, भेड़ का दूध खानेवाले को प्रायश्चित्त ११-१४ अज्ञान से जो किसी के घर सूतक का अन्न खा ले उसका प्रायश्चित्त १५-२० ब्राह्मण से शूद्र कन्या से उत्पन्न संतान २१-२४ ब्रह्मकूर्च उपवास की विधि २५-३३ शुद्धि-वर्णनम् : ६७३ २६.६२ १-३ ४-६ १०-१४ १५-१६ १७ १८ २७ २८-३२ ३३-३४ ३५-४२ १-७ ८-१० ३४-३५ ३६ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाराशरस्मृति "ब्रह्मकूर्बो वहेत्सवं यथैवाग्निरिवेन्धनम् " पीते-पीते पानी यदि पात्र में रह जाय तो फिर पीने का दोष तालाब, कुएं में जहां जहां जानवर मर गया हो उस जल के पीने में प्रायश्चित्त पंच यज्ञ का विधान । १२ शुद्धिवर्णनम् ६७५ 10 पुनः संस्कारावि प्रायश्चित्त वर्णनम् । खराब स्वप्न देखने पर स्नान से शुद्धि अज्ञानवश सुरापान तीनों वर्णों का प्रायश्चित्त, स्नान का विधान, अजिन (मृगचर्म ), मेखला छोड़ने पर ब्रह्मचारी के पुनः संस्कार आग्नेय, वारुणेय, सातपवर्ष (दिव्य ) और भस्म स्नानादि आचमन करने का समय और विधान सूर्य-स्नान चन्द्रग्रहण पर दान माहात्म्य रात्रि के मध्य के दो प्रहर को महानिशा कहते हैं । रात्रि के उत्तराधे के दो प्रहर को प्रदोष कहते हैं । उसमें दिनवत् स्नान करना चाहिए ग्रहण के स्नान का विधान जो यज्ञ न कर सकते हों उनको वेदाध्ययन की आवश्यकता है। शूद्रान्न का भक्षण अन्याय के धन से जीवन-यापन गोचर्म भूमि की संज्ञा तथा उस के दान का माहात्म्य छोटे-छोटे पाप जैसे - मुंह लगाकर जल पीने से पाप गृहस्थी व्यर्थं (ऋतु कालाभिगमन के अतिरिक्त) वीर्य नष्ट करे उसका प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६८० छोटे-छोटे प्रायश्चित्त - ऐसी-ऐसी शुद्धियों का वर्णन तथा इनसे पाप दूर करने का विधान ४५ ३७ ३८-४२ ४३-५३ २-४ ५-८ ६-१४ १५-१८ २०-२२ २३ २४ २५-२८ २६ ३०-३८ ३६-४२ ४३ ४४-५४ ५७ ५८-७४ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति इसमें १२ अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में पराशर संहिता के क्रमानुसार ही विभिन्न अध्यायों में वर्णित आचार प्रायश्चित्त आदि विषयों का वर्णन किया गया है । १. वर्णाश्रमधर्मं वर्णनम् : ६८२ वर्णाश्रम धर्म कलियुग में किस प्रकार से होता है, इस प्रश्न को लेकर व्यास आदि ऋषियों का पराशरजी के पास जाना पराशरजी ने कहा कि वेद और धर्मशास्त्र इन दोनों का कर्ता कोई नहीं है । ब्रह्माजी को जिस प्रकार वेदों का स्मरण हुआ था उसी प्रकार युग-प्रति-युग में मनुजी को धर्मस्मृतियों का स्मरण हुआ । पराशरजी ने कलियुग की विप्लव दशा में खेद प्रगट किया कि धर्म दम्भ के लिए, तपस्या पाखण्ड के लिए एवं बड़े-बड़े प्रवचन लोगों की प्रवंचना ( ठगी) के लिए किए जाते हैं। गायों का दूध कम हो जाता है, कृषि में उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, स्त्रियों के साथ केवलमात्र रति की कामना से सहवास करते हैं न कि पुत्रोत्पत्ति के लिए । पुरुष स्त्रियों के वशीभूत होते हैं । राजाओं को वंचक अपने वश में कर लेते हैं । धर्म का स्थान पाप ले लेता है । शूद्र ब्राह्मणों का तथा ब्राह्मण शूद्रवत् आचरण करने लगते हैं । धनी लोग अन्याय मार्ग पर चलते हैं । इस प्रकार कलियुग की विषमता पर अत्यन्त खेद प्रगट किया है १-२० धर्मविषयवर्णनम् : ७८६ इसमें आचार वर्णन दिखया और युगों का नाम बताया है। सतयुग को ब्राह्मण युग, त्रेता को क्षत्रिय युग, द्वापर को वैश्य युग तथा कलियुग को शूद्र युग बताया है । वर्णाश्रम धर्म की क्षमता उस भूमि में बताई है जिसमें २१-३५ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमावा ....... वृहद् पाराशर स्मृति ४७ कृष्णसार मुग स्वभावतः स्वतंत्रता पूर्वक विचरण करते हैं। हिमालय और विन्ध्याचल के मध्य देश को पावन देश बताया है और अन्य देश जहां से नदियां साक्षात् समुद्रगामिनी हैं उन्हें भी तीर्थस्थान बताया है। इसमें पराशरजी ने अपने पुत्र व्यास को द्विज कर्भ और षट्कर्म वर्ण धर्म की प्रशंसा और गो बृषभ का पालन पशुपालन विधि षट्कर्म वर्णधर्माश्च प्रशंसा गोवृषस्य च । अबोह-बाझो यो तत्र क्षीरं क्षीरप्रयोवित्रणा ॥ अमावस्या निषिद्धानि ततश्च पशुपालनम् ॥ विवाह संस्कार, वतचर्यादि, पुत्रजन्म, अखिल गृहस्थधर्म का उप देश, भक्ष्याभक्ष्य की व्यवस्था, द्रव्य शुद्धि, अध्ययन अध्यापन का समय, श्राद्ध कर्म, नारायणवली, सूतक तथा अशौच, प्रायश्चित्त विधान, दानविधि तथा फल, भूमिदान की प्रशंसा, इष्टापूर्त कर्म, ग्रहों की शान्ति, वानप्रस्थ धर्म, चारों आश्रम, दो मागं-अचि तथा धूम मार्ग इन सबका वर्णन यथानुपूर्व बृहत् पराशर के द्वादश अध्याय में वताया है ३६-६४ २. आचारधर्मवर्णनम् : ६८८ चारों वर्गों का धर्मपालन १-३ कौन-कौन कर्म कलियुग में करने चाहिए तथा उनकी विधि नित्यषट्कर्म, सन्ध्याकृत्य तथा सवाचार कृत्यवर्णनम् ६८९ "कर्मषटकं प्रवक्ष्यामि, यत्कर्वन्तो द्विजातयः । ..... गृहस्था अपि मुख्यन्ते संसार बन्धहेतुभिः" ॥ संध्या, स्नान, जप, देवताओं का पूजन, वैश्वदेव कर्म, आतिथ्य इन षट्कर्म आदि ५-८५ ५-८५ आचारवर्णनम् : ६८६ सात प्रकार के स्नान का वर्णन-मंत्रस्नान, पार्थिव स्नान, वायव्य स्नान, दिव्यस्नान, वारुणस्नान, मानसस्नान तथा आग्नेयस्नान इनके मन्त्र फल सहित बताकर प्रातःस्नान का माहात्म्य ८६-६३ उपाकाल स्नान ६४-६६ गङ्गा और कुयें के स्नान तथा स्नान का समय ६७-२०८ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ भाद्रपद के महीने में नदी के स्नान का निषेध बताया है क्योंकि नदियां रजस्वला रहती हैं किन्तु जो नदियां सीधी समुद्र में जाती हैं उसमें स्नान हो सकता है रवि संक्रान्ति, ग्रहण अमावस्या में, व्रत के दिन, षष्ठी तिथि पर गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिए सदाचार नित्यकर्म वर्णनम् : ६६६ स्नान प्रकार अर्थात् स्नान करने की विधि वृहद पाराशर स्मृति स्नान का मन्त्र, पञ्चगव्य स्नान के मंत्र, मिट्टी लगाने के मंत्र स्नान का फल और स्नान करने का विधान, मन्त्र के उच्चारण का विधान, उदात्त अनुदात्त, स्वरित, प्लुत के उच्चारण का क्रम किस अङ्ग में कितनी बार मिट्टी लगानी चाहिए उसका विधान और शरीर पर ॐ का कहां कहां पर और कितनी बार लिखना इसका विधान, स्नान के समय गायत्री का जप और स्नानान्तर गायत्री के मन्त्र का जप करने का निर्देश श्राद्धे तर्पण वर्णनम् ७०४ : देवताओं पितरों मनुष्यों और अपने वंशजों का तर्पण तथा यज्ञों के तर्पण विधि कर्तव्यवर्णनम् : ७०६ मनुष्य के हाथ पर ब्रह्मतीर्थ, पितृतीर्थ, प्राजापत्य तीर्थ, सौमिक तीर्थ तथा दैव्य तीर्थं ये पंचतीर्थ बताए गए हैं स्नान करके इन पांच तीर्थों से जल चढ़ाना बिना स्नान किए जो भोजन करता है उसकी निन्दा और स्नान करने से दुःस्वप्न का नाश बताया गया है। स्नान करने के फल बताए हैं चित्तप्रसाद बलरूप तपांसि मेधा, मामुष्यशीच सुभगत्व मरोगिता च । ओजस्वितां त्विषमवात् पुरुषस्यत्तीर्ण, स्नानं यशो - विभव-सौख्यमलोलुपत्वम् ॥ १०६-११० १११-११२ ११३-१२३ १२४-१४८ १४-१५० १५१-१५५ १५६-१६८ १६६-२२० २२१-२२४ २२५-२२६ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ १-६ वृहद पाराशर स्मृति ३. ओंकार मन्त्र वर्णनम् : ७१० ओंकार मंत्र के जप की विधि जपने के मन्त्रात्मक सूक्त -- ब्रह्म सूक्त, शिव सूक्त, वैष्णव सूक्त, सौरि सूक्त, सरस्वती सूक्त, दुर्गा सूक्त, वरुण सूक्त और पुराण तथा शास्त्रों में आये जपों का वर्णन, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद में जो सूक्त आए हैं उनकी परिगणना। गायत्री मन्त्र का जप और ओंकार का जप, जिस मन्त्र का जप तथा उसका ऋषि देवता ओंकार और गायत्री मन्त्र के जप की महिमा और उसका स्वरूप, उसमें यह दर्शाया गया है कि पहले ओंकार शब्द हुआ और वह अकेला रहा, उसने अपने आमोद-प्रमोद के लिए गायत्री को स्मरण कर उसको प्रत्यक्ष किया, तो गायत्री उसकी पत्नी हो गई और प्रणव (ओंकार) उसका पति हुआ। इनके संयोग से तीन वेद, तीन गुण, तीन देवता, तीन मात्रा, तीन ताल तीन लिङ्ग उत्पन्न हुए। वेद शास्त्र में सब जगह ये तीन मात्रा आती हैं। ४. गायत्रीमन्त्र पुरश्चरण वर्णनम् : ७१४ इसमें गायत्री मन्त्र का पुरश्चरण, गायत्री का उच्चारण, गायत्री प्रकृति और ओंकार को पुरुष और इनके संयोग से जगत् की उत्पत्ति, गायत्री के २४ अक्षरों को २४ तत्त्व बताया है वेदों से गायत्री की उच्चता एक एक अक्षर में एक एक देवता एक एक अक्षर को किस किस अङ्ग में रखना बताया गया है गायत्री जप करने का स्थान और जपने की माला का विशदीकरण प्राणायाम का माहात्म्य उपांशु जप और मानस जप सब यज्ञों से जप यज्ञ की श्रष्ठता अप कैसा और किस मुद्रा और किस रीति से करना चाहिए ७-३३ १-१२ १३-१७ १८-२५ २६-३६ ३७-५२ ५३-५५ ५६-५८ ५६-६३ ६४-७० Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० वृहद पाराशर स्मृति गायत्री मन्त्र वर्णनम् : ७२० गायत्री मन्त्र के एक एक अक्षर का एक-एक देवता और उसके स्वरूप का वर्णन ७१-६७ गायत्री मन्त्र जप वर्णनम् : ७२३ । न्यास और गायत्री की उपासना और स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों शरीरों को गायत्री से बन्धन करने का विधान १८-११० देवाचंन विधिवर्णनम् : ७२४ देवताओं का पूजन और उसके मन्त्र, जैसे विष्णु का गायत्री और ___ ओंकार से पूजन इत्यादि १११-१२३ देवता के देह में न्यास १२४-१३४ पुरुष सूक्त के पहले मन्त्र से आवाहन, दूसरे से आसन, तीसरे से पाद्य, चतुर्थ से अर्ध्य इत्यादि का वर्णन १३५-१४१ विष्णु-पूजन १४२ देवताओं का पूजन और उसकी विधि १४३-१५४ वैश्वदेवविधिवर्णनम् : ७२८ वैश्वदेव विधि का वर्णन, बिना अग्नि को चढ़ाये अथवा बिना बलि वैश्वदेव किये जो अन्न परोसा जाता है वह अभोज्य अन्न है । जिस अग्नि में अन्न पकाये उसी में अन्न का हवन करना चाहिये और हवन करने के मन्त्र तथा उसका विधान १५५-१६३ आतिथ्य विधिवर्णनम् : ७३२ अतिथि की विधि और अतिथि को भोजन देने का माहात्म्य अतिथि का लक्षण, जैसे भूखा, प्यासा, थका हुआ प्राणरक्षा मात्र चाहता है यदि ऐसा अतिथि अपने घर आवे तो उसे विष्णुरूप समझना चाहिये । गृहस्थी के लिये अतिथि सत्कार परम धर्म बतलाया है १९४-२११ वर्णाश्रम धर्म वर्णनम् : ७३४ वर्णाश्रम धर्म ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के कर्म का विधान २१२-२२५ ५. गोमहिमा वर्णनम् : ७३५ षट् कर्म सहित विप्र कृषि वृत्ति का आश्रय करे Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति ५१ ७-४३ बैलों के पालन और किस प्रकार के बैलों से खेती जोतनी चाहिये उसका वर्णन गोमाहात्म्य और गो के पालन करने का माहात्म्य तथा गोमूत्र पान करने का माहात्म्य और दुर्बल, बीमार गाय को दुहने का पाप और गोदान का माहात्म्य, गौ के अङ्ग प्रत्यङ्ग में देवताओं का निवास है। यस्याः शिरसि ब्रह्माऽऽस्ते स्कन्धवेशे शिवः स्थितः । पृष्ठे नारायणस्तस्यौ श्रुतयश्चरणेषु च ॥ या अन्या देवताः काश्चित्तस्या लोमसुताः स्थिताः । सर्वदेवमया गावस्तुष्येत्त्वभक्तितो हरिः ।। स्पृष्टाश्च गावः शमयन्ति पापं, संसेविताश्चोपनयन्ति वित्तम् । ता एव वत्तास्त्रिविवं नयन्ति, गोभिनंतुल्यं धनमस्ति किञ्चित् ।। समहत्त्व वृषभ पूजन वर्णनम् : ७४० बैल पालने का माहात्म्य । गाय के पालने से बैल का पालन करने में दस गुणा माहात्म्य अधिक है। वष का पूजन और वष को धर्म का अवतार बताया गया है वृष अपने कंधे पर भार ले जाता है, अपने जीवन से दूसरे के जीवन की रक्षा और दूसरे के जीवन को बढ़ाता है। उन गायों की महती वन्दना की गई है जो वृषभ को उत्पन्न करती है इत्यादि ४३-५६ हल (वेध) करण वर्णनम् : ७४१ हल बनाने का विधान ६०-७६ हल लगाने का दिन तथा विधि ७७-१०० बैल का पूजन और बैल की रक्षा का विधान १०१-१११ बाकाश से जो जल गिरता है उसका माहात्म्य, जल से अन्न की उत्पत्ति ११२-११५ कृषि महत्त्व धर्म वर्णनम् : ७४७ कषि करने की विधि ११६-१५५ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ वृहद पाराशर स्मृति कृषिकृच्छुद्धिकरण तथा कृषिकर्मकरण स सीतायज्ञ वर्णनम् : ७५० "कृषेरन्यतमोऽधर्मो न लभेत्कृषितोऽन्यतः । न सुखं कृषितोऽन्यत्र यदि धर्मेण कर्षति" ॥ कृषि के तुल्य दूसरा कोई धर्म नहीं कोई व्यवहार इतना लाभदायक नहीं। यदि धर्मानुकूल कृषि की जाए तो बड़ा सुख है । १५६-१६५ ६. कन्या विवाह वर्णनम : ७५५ कन्याओं के आठ प्रकार के विवाह होते हैं। अपनी जाति में वर के लक्षण देखकर वस्त्राभूषण से सुसज्जित कर जो कन्या दी जाती है उसको ब्राह्म विवाह कहते हैं। लड़के का लक्षण, तथा नपुंसक का पहचान । यज्ञ करते हुए यज्ञ करने वाले को वस्त्राभूषण से सुसज्जित जो कन्या दी जाती है इसे दैव विवाह कहते हैं। वर कन्या के समान हो और गुणवान, विद्वान हो ऐसे पुरुष को दो गाय के साथ जो कन्या दी जाती है वह आर्ष विवाह होता है। कन्या और वर स्वेच्छा से धर्मचारी हो वह मनुष्य विवाह होता है। जिस जगह पर वर से रुपए की संख्या लेकर कन्या दी जाती है उसे दैत्य विवाह कहते हैं। जहां वर कन्या दोनों अपनी इच्छा पूर्वक विवाह कर ले उसे गान्धर्व विवाह कहते हैं। जहां हरण करके कन्या ले जाई जावे उसे राक्षस विवाह कहते हैं। सोई हुई कन्या को जो मद्य इत्यादि के नशे में जबरदस्ती ले जाया जाए उसे पैशाच विवाह कहते हैं १-१७ विवाह के पहले जिन बातों का विचार करना चाहिए उनका निर्देश किया गया है । १ वर, २ कन्या की जाति, ३ वयस, ४ शक्ति, ५ आरोग्यता, ६ वित्त सम्पत्ति, ७ सम्बन्ध बहुपक्षता तथा अथित्व विवाहे वरगुण वर्णनम् वर के लक्षण १६-२१ सगोत्र की कन्या से विवाह २२ जहां कन्या नहीं देनी चाहिए २३-२७ उन लड़कियों के लक्षण लिखे हैं जिनके साथ विवाह नहीं करना है और कन्यादान करने का जिनका अधिकार है उनका वर्णन २८-३२ १८ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति ३३-३७ उन कन्यायों का वर्णन है जिनके साथ विवाह हो सकता है कन्यादान और कन्या के लक्षण जिनको दायविभाग मिल सकता है ३८-४० लक्ष्मीस्वरूपा स्त्री वर्णनम् : ७५८ गृहस्थी को स्त्रियों की इच्छा का अनुमोदन करना तथा उनको प्रसन्न रखना यह गृहस्थ की सम्पत्ति और श्रेय का साधन बताया है स्त्री पुरुष में जहां विवाद होता है वहां धर्म, अर्थ, काम सभी नष्ट ४१-४५ हो जाते हैं स्त्रियों को पतिव्रत पर रहना और इसका अनुशासन और पतिव्रता न रहने से नारकीय दारुण दुःखों का होना बताया है गृहस्थधर्म वर्णनम् स्त्री शक्तिरूपा है एवं शक्ति का स्त्रोत है । सारे संसार की उत्पादिका शक्ति भी स्त्री जाति ही है । उसका संरक्षण कुमार्यावस्था में पिता द्वारा तथा युवावस्था में पति द्वारा वाञ्छनीय है । वृद्धावस्था में पुत्र का कर्तव्य है कि उनकी शक्ति की देखरेख और सेवा करे । इस प्रकार मातृशक्ति की सद्उपयोगिता का ध्यान रखा जाए स्त्रियों की स्वाभाविक पवित्रता और स्त्रियों को इन्द्र के वरदान सहवास के नियम गृहस्थधर्म का आधार स्त्री ही है और गृह के यज्ञ कर्म स्त्री के ही साथ हो सकते हैं अतः उसी का सत्कार और मान करना चाहिए पितृ यज्ञ, अतिथि यज्ञ, स्वाहाकार व षट्कार और हन्तकार प्राणाग्निहोत्र विधि से भोजन करना वेदविद्विप्रस्य कलाज्ञस्य वर्णनम् : ७६३ जीव की कला प्राणाग्नि यज्ञ की विधि जिसमें इस बात का विषदीकरण किया गया कि नासिका के पन्द्रह अगुली तक संचरण करती जाती है इसी को षोडसी इसी को ब्रह्मविद्या कहते हैं जो इसे जाने ज्ञाता कहते हैं । इसी को तुरीय पद और इसी में सारा कला कहते हैं । उसी को वेद का ५३ ४६.४७ ४८-५५ ५६-६१ ६२-६५ ६६-७६ ७७-८६ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ वृहद पाराशर स्मृति संसार लीन हो जाता है। इस बात को जानने से और कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता है ८७-६६ प्राणायाम के विधान, प्राणवायु के चलने के तीन मार्ग – इडा, पिङ्गला, सुषुम्ना, नासिका के दो पुट होते हैं दाहिने को उत्तर और बायें को दक्षिण बीच भाग को विषुवृत्त कहते हैं । जो योगी प्रातः, सायं मध्याह्न और अर्धरात्रि में विषुवृत्त को जानता है उसको नित्यमुक्त कहा है। इस प्रकार प्राणायाम की विधि बताई है। पांच वायु (प्राण, उदान, व्यान, अपान, समान) का नाम लेकर स्वाहा शब्द लगावे, पांच आहुति ग्रास रूप में देवे और दांत नहीं लगावे तो इसे पंचाग्नि होत्र कहते हैं ६७-१०७ शरीर के जिस प्रदेश में जो अग्नि रहती है उसका वर्णन १०८-१११ प्राणाग्नि होम का विधान और मुद्रा का वर्णन ११२-१२१ प्राणाग्निहोत्र विधि का माहात्म्य ६२२-१२४ प्राणाग्निहोत्र के बाद जल पीने का नियम १२५-१२७ प्राणायाम की विधि जानने का माहात्म्य और गृहपत्नी के लिए भोजन विधि १२८-१३८ षोडश संस्कार माह्निकवर्णनम सायं सन्ध्या विधि और कुछ स्वा पाय करके शयन विधि १३६-१४० स्त्री के साथ संगम, योनि शुद्धि और गर्भाधान विवरण १४१-१४३ ब्राह्म मुहूर्त में उठकर सूर्योदय से पूर्व सन्ध्या विधिका वर्णन १४४-१४५ प्रात:काल सन्ध्या करने से मद्यपान तथा द्यूत का दोष दूर १४६ सूर्योदय के पहले सन्ध्या का विधान । सीमन्त, अन्नप्राशन, जातकर्म, निष्क्रमण चूडाकर्म आदि संस्कारों का विधान १४८-१५१ ब्रह्मचर्य वर्णनम् : -६८। उपनयन का समय, विधान और ब्रह्मचारी को भिक्षाधन तथा किससे भिक्षा लेवे उसका सविस्तार वर्णन १५२-१८३ १४७ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति १८४ गृहस्थाश्रमे पत्र वर्णनम् : ७७१ पुत्र की परिभाषा, पुत्र पुन्नाम नरक से पिता को बचाता है अतः वह पुत्र कहा गया है। इसलिए पुत्र का संस्कार करना उस का कर्तव्य माना गया है पुत्र यदि धर्मज्ञ हो तो पिता को स्वर्ग गति होती है, १८५-१६२ पुत्र का गया में पिता का श्राद्ध १६३ पुत्र का कर्तव्य और उसका लक्षण यथा जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरि भोजनात् । गयायां पिण्डवानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ॥ अर्थात् ये तीन लक्षण जिसमें हैं उसी में पुत्रत्व है । जीते जी पिता की आज्ञा पालन, श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोजन कराने वाला और गया में पिण्ड देने वाला १९४-१९६ पिता के लिए वृषोत्सर्ग १६७-१९८ साध्वी स्त्री का लक्षण तथा सास श्वसुर की सेवा करे १६४ सन्तानोत्पत्ति-पुत्र और पुत्री समान २०० ___ आचार वर्णनम् : ७७३ ४० संस्कार, सदाचार की प्रशंसा हीनाचार की निन्दा २०१-२०७ मनुष्य को विद्या पढ़ना, शास्त्र पढ़ना, सदाचार पर निर्भर है। आचारहीन मनुष्य कोई कम में सफल नहीं होता है २०८-२११ शौच वर्णनम् : ७७४ । शौचाचार भावशुद्धि के सम्बन्ध २१२-२१६ स्त्रियों में रमण करने वाले वित्तपरायण, मिथ्यावादी, हिंसक की शुद्धि कभी नहीं होती है २१७ प्रतिमह (दान) वर्णनम् : ७७५ मूर्ख को दान देने से दान का फल नहीं होता है २१८-२२१ दाने लेने वाला मूर्ख और दाता भी नरक में जाता है २२२-२२६ दान-पात्र २२७-२२८ हाथी, घोड़े और नवश्राद का दान लेने वाला हजार वर्ष तक नर्क में रहता है २२६-२३१ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ विष्णु की प्रतिमा, पृथिवी, सूर्य की प्रतिमा तथा गाय यह सत्पात्र को देने से दाता को तीन लोक का फल होता है भोजन दान के समय पर चरित्रवान का सत्कार करना तथा अनाचारी पुरुषों को बिलकुल वर्जित का विधान दही, दूध, घी, गंध, पुष्पादि जो अपने को देवे ( प्रत्याख्येयं न कर्हिचित् ) उसे वापस नहीं करना जो ब्राह्मण सदाचारी दान लेने योग्य है और वह दान लेवे तो उसे स्वर्ग का फल होता है दान देने के सम्बन्ध की बातों का विवरण त्याज्य वर्णनम् : ७७८ वृहद पाराशर स्मृति २३२ २३३-२३७ २३८ आचार का वर्णन, गृहस्थ के कर्तव्य और भोज्य अभोज्य की विधि २४६-२७६ भोजन में निषेध वस्तु २७७-२८२ जिनका अन्न खाना निषेध है उनका वर्णन २८३-२६२ इष्टका यज्ञ जो कि द्विजातियों को करने चाहिए दर्श, पौर्णमास्य और चातुर्मास्य यज्ञों का विधान स्नातक की परिभाषा २३६-२४० २४१-२४८ सोम याग और इष्टका पशु यज्ञ का माहात्म्य श्रद्धा से दान का माहात्म्य जो जिसका अन्न खाता है वैसा ही उसका मन होता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रादि वर्ण के अन्न की शुद्ध अशुद्ध की सूची बताई है । जिनसे भिक्षा नहीं लेनी है उनका भी निर्देश है रजस्वला स्त्री छुआ हुआ अन्न, कुत्ते और कौवे के जूठे अन्न तथा जो अन्न अग्राह्य हैं जो अन्न अभोज्य होने पर भी ग्राह्य है उसको विशेष रूप से वर्णन अभक्ष्य वर्णनम् : ७८५ जिन शाकों को नहीं खाना चाहिये उनके नाम बताये हैं ३२०-३२२ अति संकट पर अर्थात् प्राण जाने पर जो अभक्ष्य है उनका वर्णन ३२३-३२४ २६३-२६६ २६७ २६८-३०३ ३०४-३०५ ३०६-३१२ ३१३-३१६ ३१७ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ वृहद पाराशर स्मृति जो गृहस्थी मांस नहीं खाता है उसको स्वर्गलोक की प्राप्ति बताई गई है । जहां पर मांस खाने का नियम बताया भी है उसकी निवृत्ति-उसको न खाने से महाफल बताया है ३२५-३३१ शुद्धि वर्णनम् : ७८६ शुद्धि का विधान और कौन कौन वस्तु शुद्ध होती है इसका वर्णन ३३२-३४० बछड़े के मुख से जो दूध गिर जाता है उसको शुद्ध बताया है तथा अन्यान्य शुद्धियां बताई हैं ३४१-३४४ जो चीज शुद्ध हैं उनका वर्णन, स्त्री के शुद्ध होने का वर्णन ३४५ अनध्याय वर्णनम् : ७८८ अनध्याय अर्थात् जिस समय वेद नहीं पढ़ना चाहिए ३५४-३६६ अनध्याय में वेदाध्ययन निष्फल होता है ३६७-३७० स्वर हीन वेद पढ़ने का पाप और वज्ररूप फल बताया है ३७१-३७२ "ये स्वाध्यायमधीयोरन्ननध्यायेषु लोभतः । बज रूपेण ते मन्त्रास्तेषां देहे व्यवस्थिता:" ॥ मनुष्यों को किससे साथ कैसा व्यवहार, करना, ३७३-३७६ मनुष्यों को आचार का पालन करने से यश और धन की प्राप्ति है। आयु, प्रजा, लक्ष्मी और संसार में सम्मान का मूल आचार ही है ३७७-३८० ७. श्राद्ध वर्णनम् : ७६१ श्राद्ध के समय कौन-कौन हैं उनका निर्देश १-४ श्राद्ध में जिनको निमन्त्रण देना निषिद्ध हैं ५-१४ श्राद्ध में जिनको निमन्त्रण देना चाहिए १५-२६ श्राद्ध में जो ब्राह्मण भोजन करते हैं उनके यम नियम बताए गए हैं २७-३२ श्राद्ध में पत्रावली ३३.३४ निर्धन पुरुष जिनके पास श्राद्ध करने की सामग्री नहीं है उनका पितृऋण से क्षमा याचना ३४-३७ जो इतना भी न कर सके वह पितृ-हत्यारा कहा जाता है ३८-३९ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ कौन किसका श्राद्ध कर सकता है इसका निर्णय है, जैसे; अपुत्र की स्त्री भी पति का, इष्ट परिजन अपने मित्रों का, लड़की का लड़का अर्थात् दोहित्र भी श्राद्ध कर सकता है । एकोद्दिष्ट श्राद्ध पुत्र ही अपने पिता और पितामह का कर सकता है वृहद पाराशर स्मृति श्राद्ध में शूद्रान्न का निषेध और स्त्री को भोजन करना निषेध एकोद्दिष्ट श्राद्ध का विधान तथा किस किस काल में श्राद्ध करना चाहिए उन कालों का वर्णन - कुतुप, ( मध्याह्न) रोहिणी, संक्रान्ति, अमावस्या, व्यतीपात आदि मलमास में भी श्राद्ध और नित्य श्राद्ध का वर्णन श्राद्ध की तिथि का निर्णय, सगोत्र ब्राह्मण को श्राद्ध में भोजन कराने का निषेध वृद्धि श्राद्ध ( नान्दीमुख) शुभ कार्य में जो पितरों का श्राद्ध होता है उनके उपयुक्त जो पात्र है उनका निर्णय, वट वृक्ष की लकड़ी और बिल्वपत्र के पत्ते पर भोजन करने का निषेध नान्दीमुख श्राद्ध में कौन देवता पूजे जाते हैं और उसमें दीप दानादि कैसे होता है । नान्दीमुख श्राद्ध का विशेष वर्णन किया है श्राद्ध के भेद और श्राद्ध की विधियां, स्त्री का पति के साथ तथा किस स्त्री का पृथक् श्राद्ध होता है उसका वर्णन किया है । चतुर्दशी में जो एकोद्दिष्ट श्राद्ध होता है उसका वर्णन और प्रतिलोम के लड़कों को श्राद्ध का अधिकार नहीं उसका ४०-६१ ६२-८३ ११७-१२० श्राद्ध में कौन पुष्प किसको चढ़ाने अथवा नहीं चढ़ाने चाहिए १२३-१२७ गुग्गुल की धूप को श्राद्ध में निषेध बताया है श्राद्ध में तिलक कैसे लगाना चाहिए १२८-१२६ १३०-१३१ श्राद्ध में कैसा वस्त्र देने का निर्णय है श्राद्ध में देश रीति तथा कुल रीति का पालन सपिण्डी श्राद्ध का विवरण और अग्नि में जले हुए, सांप से कटे हुए की श्राद्ध क्रिया बताई है ८४-१०१ १०२-१०५ १०६-११६ १३२ १३३-१३४ १३५-१४६ १४६-१७२ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहद पाराशर स्मृति ५६ वर्णन तथा नारायणबली, जो अपमृत्यु से मरते हैं जैसे पेड़ से गिरकरे; नदी में डूबकर इत्यादि इनकी नारायणबली का विधान कहा है। अपने पति के साथ जो स्त्री मरती है उस के श्राद्ध का वर्णन, श्राद्ध में जो जो विधान करने हैं उनका पूरा वर्णन, श्राद्ध के सम्बन्ध में जितनी बातों की जानकारी चाहिए उन सबका वर्णन इस अध्याय में सविस्तर दिखाया गया है १७३-३६६ ८. शुद्धि वर्णनम् ८२६ सूतक और अशोच का निर्णय सूतक बच्चे के जन्म होने से जो छूत ____ होती है उसे कहते हैं । अशौच मृत्यु को छूत को कहते हैं १-२ किसको कितने दिन का सूतक पातक लगता है उसका विचार ३-२५ अनाथ मनुष्य की क्रिया करने से अनन्त फल २६-२७ गर्भपात का सूतक जितने महीने का गर्भ हो उतने दिन के सूतक का निर्णय, अग्नि, अङ्गार, विदेश आदि में जो मर जाते हैं उनका सद्यः शौच अर्थात् तत्काल स्नान करने से शुद्धि कही गई है। जिन बच्चों को दांत नहीं निकले हैं और जो जन्मते ही मर गए हैं उनका सद्यः शौव कहा है। इनका अग्नि संस्कार आदि कुछ नहीं होता। किती के घर में विवाह उत्सव आदि हो और यदि वहां अशीच हो जाए तो उसका जो पहले किए हुए दानादि सत्कर्म अशुद्ध नहीं होते हैं . २८-५० जिन-जिन पर सूतक नहीं लगता तथा जिस दशा पर सूतक पातक नहीं लगता उनका वर्णन किया गया है ५१-६० प्रायश्चित्त वर्णनम् : ८३५ पापों का क्षालन करने के लिये प्रायश्चित्तों का माहात्म्य और कर्तव्य बताया है। ६१-७० प्रायश्चित्त विधान करने वाली सभा का संगठन ७१-७७ महापापी के प्रायश्चित ७८-१०७ शराब पीने का प्रायश्चित १०८-११० Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति स्वर्ण की चोरी का प्रायश्चित १११-११३ मातृगामी का प्रायश्चित ११४-११५ जिन पापों में चान्द्रायण व्रत किया जाता है उनका वर्णन आया है तथा महापातकियों का प्रायश्चित्त बताया है ११६-१४० गोवध के प्रायश्चित्तों का निर्णय और गौ के मरने के अलग-अलग कारणों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त १४१-१७१ हाथी, घोड़ा, बैल, गधा इनकी हत्या पर शुद्धि का वर्णन आया है १७२-१७४ हंस, कौआ, गीध; बन्दर आदि के वध का प्रायश्चित्त १७५-१७८ तोता, मैना, चिड़ी इनके वध करने का प्रायश्चित्त १७९-१०० बाज, चील के मारने का प्रायश्चित्त १८१ मंडूक, गीदड़, शाखामृग (बंदर) महिष, ऊंट आदि जंगली जानवरों के मारने का प्रायश्चित्त १८२-१८७ अभक्ष्य के खाने का प्रायश्चित्त और रजस्वला स्त्री के छ्ये हुए खाने का प्रायश्चित्त १८८-१९१ दांतों के अन्दर गया हुआ उच्छिष्ठावशेष को खाने का तथा अपना ही जूठा जल पीने का प्रायश्चित्त १९२ जिस जल में कपड़े धोये जाते हैं उसे पीने का प्रायश्चित्त १९३-१६४ वेश्या, नट की स्त्री, धोबी की स्त्री आदि के सहवास के पापों का प्रायश्चित्त १६५-२०० कसाई के हाथ का मांस खाने का प्रायश्चित्त २०१-२०२ जिनके घर का अन्न नहीं खाना चाहिए जैसे वेश्या आदि के घर खाने का प्रायश्चित्त कहा है २०३.२०८ बाएं हाथ से भोजन करने का दोष २०६-२११ बाएं हाथ से भोजन करना सुरा तुल्य बताया है २१२-२१३ चान्द्रायण और पादकृच्छ् व्रत का विधान २१४-२१५ वेश्याओं के साथ रहने वाला जो अज्ञात कुलशील हो और चाण्डाल नौकर रखने वाले को पुन: संस्कार का निर्णय दिया है २१६-२२१ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति अभक्ष्य भक्षण अपेय पान (जिसका छूआ पानी नहीं पीना उसके पीने) करने पर प्रायश्चित्त २२२-२३० रजस्वला के सम्पर्क से शुद्धि का विधान २३१-२४२ धोबी के स्पर्श से शुद्धि का विधान २४३ वर्णक्रम से (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रादि) रजस्वला स्त्रियों के गमन करने पर प्रायश्चित्त २४४-२५३ अन्त्यज स्त्री के गमन से प्रायश्चित्त २५४ गुरुपत्नी आदि के गमन का पाप और उसके प्रायश्चित्त २५५-६३ रजस्वला के छुये हुए अन्न खाने का प्रायश्चित्त २६४-२६६ पापों के प्रायश्चित्तों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। २६७-२७५ दुःस्वप्न देखने और हजामत (क्षौर) करने पर स्नान की विधि २७६ सूअरः कुत्ता आदि के छूने पर शुद्धि २७७-२७६ कन्या कुमारी को कोई कुत्ता यदि चाट ले तो उसकी शुद्धि जिधर __ सूर्य जा रहा हो उधर देखने से हो जाती है २८०-२८१ कोई कुत्ता किसी को काट लेवे तो उसकी शुद्धि की विधि २८२-२८४ गुरु को 'तू' बोलना और अपने से बड़ों को 'हूं-हूं' बोलना इस पाप .. ___की शुद्धि बताई है २८५ विवाद में स्त्री से जीतकर और स्त्री को मारना उसका प्रायश्चित्त २८६-२८७ प्रेत को देखकर स्नान से शुद्धि २८८-२६३ १०८ बार गायत्री मंत्र जपने से शुद्धि वर्णन २६४-२६५ मुंह से गिरे हुए को फिर खा ले तो उसकी शुद्धि २६६-२६८ कहीं जल पर पेशाब आदि के छींटे पड़ जायें तो उसकी शुद्धि २६६-३०० नीच पापी पतित के साथ बात करने के पाप से शुद्धि ३०१-३०४ घर में मक्खियों के आने से, बच्चों, स्त्रियों और वृद्धों के बोलने से यदि थूक के छींटे पड़ जाये तो कोई दोष नहीं होता है ३०५-३१० जो पलास वृक्ष और शीशम के वृक्ष की दन्तधावन करता है और नाई के देखे हुए खाने का दोष गाय के दर्शन से मिट जाता है ३११ जिनके छूने से सिर में जल स्पर्श करने से शुद्धि और जिनके स्पर्श करने सेस्नान करना उनका अलग-अलग विवरण आया है ३१२-३२२ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होती वृहद पाराशर स्मृति जिनका अन्न नहीं खाना चाहिए उनका वर्णन ३२३-३२६ नाई जो अपने यहां नौकर हो उसका अन्न लेने में दोष नहीं और तेल या घृत से बनी हुई चीज बासी होने पर भी दूषित नहीं ३२७ आपत्तिकाल में छूत का दोष नहीं होता है ३२८-३३० जो वस्तु म्लेच्छ के वर्तन में रहने पर भी अपवित्र नहीं होती, जैसे घी, तेल, कच्चा मांस, शहद, फल-फूल इत्यादि उनका वर्णन ३३१-३३५ किस धातु के बर्तन की किससे शुद्धि होती है उसका वर्णन आया है। आत्मा की शुद्धि सत्य व्यवहार और सत्य भाषण से ही होगी प्रायश्चित्त आदि से नहीं। सड़क का कीचड़, नाव और रास्ते में घास इत्यादि ये वायु और नक्षत्रों से ही शुद्ध हो जाते हैं । ३३६-३४२ ____. व्रतोपवासविधि वर्णनम् : ८६२ चान्द्रायण व्रत, जैसे शुक्लपक्ष में एक ग्रास की वृद्धि और कृष्णपक्ष में एक-एक ग्रास का ह्रास इसको ऐन्दव व्रत कहते हैं । इस प्रकार विभिन्न चान्द्रायण व्रत कहे गये हैं । जैसे शिशु चान्द्रा यण और यति चान्द्रायण आदि कृच्छ्र व्रत, तप्त कृच्छ्र, सांतपन, महासांतपन, प्राजापत्यकृच्छ्र, पशुकृच्छ्, पर्णकृच्छ, दिव्य सांतपन, पादकृच्छ , अतिकृच्छ,, कृच्छातिकृच्छ और परातिवृत सौम्य कृच्छ ६-२१ ब्रह्मकूर्च का विधान, पंचगव्य बनाने का मंत्र और उनकी विधि २२-३२ ब्रह्मकूर्च के महात्म्य ३३-३५ उपवास से पापों की शुद्धि और जितने चान्द्रायण व्रत वर्णन किये .. गये हैं इनके मनुष्य स्वेच्छा से भी करे तो जन्म-जन्मान्तर के पाप दूर होकर आत्मशुद्धि होती है ३६-४३ १०. सर्वदान विधि वर्णनम् : ८६६ व्यास तथा वशिष्ठजी ने जो दान विधि बताई है उसका फल १-२ दान का माहात्म्य, पृथक्-पृथक् दान करने का विवरण जैसे अन्नदान, जलदान, गृहदान, बैलदान, गोदान, तिलधेनु, घृतधेनु, जलधेनु, १-८ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति मधेनु, गजदान, अश्वदान, कृष्णाजिन दान, सुखासन (पालकी) दान आदि भूमिदान, तुलादान, धातुदान, विद्यादान, प्राणदान, अभयदान और अन्नदान अपूप ( मालपुए) के दान का उल्लेख है पृथक्-पृथक् दान के प्रकार और उनकी महिमा गोदान का माहात्म्य, गोदान की विधि और बैल के दान की विधि उभयमुखी (जो गाय बच्चे को उत्पन्न कर रही है) उस दशा में गोदान की विधि और उसका माहात्म्य तिलधेनु दान विधि और माहात्म्य तथा विशेष सामग्री का वर्णन घृतधेनु की विधि एवं उसकी सामग्री और उसके फल का वर्णन जलधेनु विधि और उसके फल हेमधेनु, स्वर्ण की धेनु बनाने का प्रकार पूजाविधि और दानविधि तथा दान के माहात्म्य का उल्लेख है । स्वर्णधेनु की रचना किस प्रकार करनी और क्या-क्या रत्न उसके किस-किस अंगप्रत्यंग में लगाने चाहिए उसका वर्णन कृष्णमृगचर्म के दान का विधान वैसाखी पूर्णिमा और कार्तिक की पूर्णिमा को जो दान किया जाय उसका माहात्म्य मार्ग दान को विधि हयगज दान विधि वर्णनम् : ८८१ सुखासन दान, रथदान, हस्तीदान अश्वदान एवं उसका अलंकार और उसकी दान विधि कल्यावान का माहात्म्य पुत्रदान का माहात्म्य भूमिदान वर्णनम् ८८३ : भूमिदान का माहात्म्य, सब दानों से श्रेष्ठ भूमिदान बताया है । भूमिदान करने वाला सब पापों से मुक्त हो अनन्त काल तक स्वर्ग में रहता है ६३ ३-६ १०-१७ १८-२४ २५-४० ४१-४५ ४६-७० ७१-८६ ८७-१०३ १०४ - १२१ १२२-१४२ १४३-१४६ १५०-१६६ १७०-१७१ १७२-१७३ १७४-२०० Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ स्वर्ण और चांदी की तुला दान, गुड़ की तुला, लवण की तुला दान जो स्त्री करे तो पार्वती के समान सौभाग्यवती रहेगी तथा पुरुष करे तो प्रद्युम्न के समान तेजस्वी होगा । वृहद पाराशर स्मृति दान विधि वर्णनम् ८८७ बड़े-बड़े रत्नों के दान ब्राह्मण को वस्त्राभूषण दान का माहात्म्य, का माहात्म्य, स्वर्ण तुला दान करने में भगवान विष्णु की पूजन का विधान, चांदी दान का माहात्म्य, माणिक्य के तुला दान का माहात्म्य, घृत, भोजन की चीज, तेल, पान आदि वस्तुओं का पृथक्-पृथक् दान माहात्म्य । फल, गुड़, अन्न, मकान पलंग दान आदि का माहात्म्य विद्यादान वर्णनम् ८८८ विद्यादान का माहात्म्य और विद्यार्थियों को भोजन, वस्त्र देने का माहात्म्य । सब दानों से अधिक विद्यादान बताया है। औषधि दान और अस्पताल ( औषधालय ) खोलने का माहात्म्य और दया दान दान स्थाज्यकाल वर्णनम् : ८६३ अशीच सूतक में दान देना लेना निषेध, रात्रि में दान निषेध, और रात्रि में विद्यादान, अभय दान, अतिथि सत्कार हो सकता है अभय दान हर समय हो सकता है, दूसरे का दान अशौच सूतक में लेना निषेध २०१-२३३ तिथिदान विधि वर्णनम् : ८६० भगवान विष्णु का पूजन पौर्णमासी में करने का माहात्म्य चैत्र शुक्ला द्वादशी को वस्त्रदान का माहात्म्य और छाता, जूता दान करने का माहात्म्य | आषाढ़ में दीप दान; श्रावण में वस्त्र दान; भाद्रपद गोदान; आश्विन में घोड़ा दान, कार्तिक में वस्त्र दान, मार्गशीर्ष में लवण दान, पौष में धान का दान, फाल्गुन में इत्र दान, मास विशेष में अलग-अलग दान बताए हैं २३४-२४१ २४२-२४८ २४६-२६० २६१-२७८ २७८-२८२ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति ८ ६५ दान लेने और देने की शास्त्रोक्त विधि का वर्णन सत्पात्र को दान देना चाहिए परोक्ष दान के महान् पुण्य दानार्थ गौलक्षण वर्णनम् : गोदान का वर्णन, कैसी गौ दान के लिए होनी चाहिए दान में तौल वर्णन, और गौ का दान अक्षय फल १६ प्रकार के वृथा दान दानग्राह्य पुरुषलक्षण वर्णनम् : ८६७ दातव्य वस्तु के दान का माहात्म्य, किसको कैसा दान देना व लेना, उसकी विधि, अन्य दान की विधि, प्रतिग्रह लेने पर विशेष विधि, अश्व दान का विशेष विधान, अश्व दान लेने की विधि माहात्म्य अक्षय दान का माहात्म्य सूर्य, ब्रह्मा आदि देवों के मन्दिरों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार विधि कूप तड़ागावि कोति महत्त्ववर्णनम् : ६०१ कूप बावड़ी तालाब आदि बनाने का माहात्म्य पीपल, उदुम्बर, वट, आम, जामुन, निम्ब, खजूर, नारियल आदि भिन्न-भिन्न जाति के वृक्ष लगाने का माहात्म्य मास, पक्ष, तिथि विशेषण दान महत्त्व वर्णनम् : ८६८ श्रावण शुक्ला द्वादशी को गोदान का माहात्म्य पौष शुक्ला द्वादशी को घृतधेनु का विधान माघ शुक्ला द्वादशी को तिलधेनु का विधान ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को जलधेनु का विधान काल, पात्र, देश में दान का माहात्म्य ग्रहण काल में दिया हुआ दान अक्षय होता है ३४७-३४६ ३५०-३५२ वैशाख, आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन की पूर्णिमा को दान का माहात्म्य ३५३-३५४ तुला संक्रान्ति, मेष संक्रान्ति में प्रयाग में दान का माहात्म्य ३५५ मिथुन कन्या, धनु, मीन संक्रान्ति में भास्कर तीर्थ में दान का ६५ २८३-२८६ २६०.३०० ३०१-३०६ ३०७-३१३ ३१४-३२३ ३२४-३४१ ३४३ ३४४ ३४५ ३४६ ३५६-३५८ ३५६ ३६०-३६८ ३६६-३७४ ३७५-३७८ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ "अश्वत्थमेकं पिचुमन्दमेकं न्यग्रोधमेकं वश विचिणोश्च । षट् चम्पर्क तालशतत्रयं च पञ्चाम्रवृक्षं नरकं न पश्येत्" ॥ इतने वृक्षों को लगाने से नरक में नहीं जाते हैं । लगाये हुए वृक्षों ३८३ के फल पक्षी जितने दिन खाते हैं उतने दिन स्वर्ग में रहते हैं ३७६-३८२ जितने फूल के वृक्ष लगाता है उतने दिन तक स्वर्ग में रहता है। विभिन्न प्रकार के वृक्ष और पुष्पवाटिकायें अपने हाथ से लगाने से स्वर्ग गति का माहात्म्य है। ११. विनायकशान्तिविधि वर्णनम् : ६०३ शान्ति प्रकरण यथा - विनायक शान्ति का प्रकरण है जब तक विनायक शान्ति नहीं होती तब तक ये लिखित दुःस्वप्न दर्शन होते हैं यथा रात्रि में निशाचर, जलावगाहन इत्यादि इसके बाद उसके स्नान का वर्णन हवन का विधान भगवती पार्वती का स्तवन मन्त्र आचार्य दक्षिणा इत्यादि वृहद पाराशर स्मृति, ग्रहशान्तिविधि वर्णनम् : १०६ ग्रहशान्ति - ग्रहमण्डप, ग्रहों के जप मन्त्र, ग्रहों का पूजोपचार, ग्रहदान आदि नवग्रह का पूजन एवं माहात्म्य अद्भुत शान्ति वर्णनम् : ६११ घर के उपद्रव, एवं खेती में अपाय यथा सरसों के वृक्ष में तिल, एवं जल में अग्नि, ईंधन इत्यादि, गाय, बल के शब्द से बोले; कौवे गृह में जाने लगे, दिन में तारे दिखना, मकान पर गुद्ध इत्यादि का बैठना, ऐसे ऐसे उपद्रवों की शान्ति एवं उपचार रुद्रपूजाविधि वर्णनम् : ६१४ रुद्र की पूजा का विधान और उसके मंत्र शान्ति वर्णनम् : ६१६ रुद्र शान्ति का सम्पूर्ण विधान बताया है । तथा कीर्ति बढ़ती है उपद्रवों की शान्ति होती है । मृत्युञ्जय का हवन बिल्वपत्रों से रुद्र शान्ति से आयु ३८६ १-८ ६-२१ २२-२५ २६-३० ३१-३३ ३४-६५ ८६-१०६ १०७-१५८ १५६-२०२ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति तड़ागादि विधि वर्णनम् : ६२३ तड़ाग, कूप, वापी, इनकी प्रतिष्ठा का विधान । उपर्युक्त दूषित होने पर इनकी शुद्धि का विधान और माहात्म्य होमविधि वर्णनम् : ६२७ लक्ष होम, कोटि होम की विधि इन दोनों में कितने ब्राह्मण और कैसा कुण्ड इनका वर्णन तथा लक्ष और कोटि होम का आहवनीयद्रव्य, अभिषेक मन्त्र, अभिषेक विधान, आचार्य ऋत्विक् इनकी दक्षिणा का विधान और इसका माहात्म्य । सब प्रकार की आपत्तियों को दूर करने वाला और राष्ट्र के सब उपद्रवों को दूर करने वाला होता है पुत्रार्थ पुरुषसूक्त विधान वर्णनम् : ६३२ जिस स्त्री के सन्तान न हो अथवा मृतवत्सा हो उसको सन्तति के लिए त्रैमासिक यज्ञ जो कि शुक्ल पक्ष में अच्छे दिन पर दम्पति द्वारा उपवास कर पुत्र कामना के लिए किया जाता है उसकी विधि एवं मन्त्र शान्ति विधि वर्णनम् : ९३४ प्रत्येक ग्रह के मंत्र एवं ऋषि पूजन विधान, वैदिक सूक्तों का वर्णन ३१४-३४७ १२. राजधमं वर्णनम् : ६३८ राजा को देवता के समान बताया गया है राजा को प्रजा की रक्षा का विधान तथा राजा को राज्य संचालन के लिए षडगुण, सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय, द्वेधीकरण तथा रहस्यों की रक्षा तथा अपने समीप कैसे पुरुषों को रखना इसका वर्णन ६७ २०३-२४० राजा को जहां तक हो लड़ाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि युद्ध से सर्वनाश होता है जब युद्ध से न बचे उस समय व्यूह रचना आदि का वर्णन पुरुषार्थ और भाग्य दोनों को समान दृष्टिकोण रखकर कार्य करना चाहिए २४१-२६६ २६७-३१३ १५-२२ २४-३६ ३७-४३ ४४-६६ ६७-७१ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ वृहद पाराशर स्मृति सांसारिक ऐश्वर्य को विनाशवान समझकर उसमें आस्था न करें। भाग्य और पुरुषार्थ के सम्बन्ध में विवेचना की गई है । दुष्टों को दण्ड से दमन करना, राजा को प्रसन्नमूर्ति रहना चाहिए क्योंकि राजा सब देवताओं के अंश से बना हुआ है ७२-६५ __ वानप्रस्थ भिक्षा धर्म वर्णनम् : ९४७ वानप्रस्थी के नियम तथा उसके कर्तव्यों का वर्णन आया है । वान प्रस्थ को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राजा को कहना चाहिए वानप्रस्थी को यज्ञ आदि कर्म करने का विधान और उसको भिक्षा लाकर आठ ग्रास खाने का नियम ६६-१२० वेदान्त शास्त्र को पढ़कर यज्ञविधि को समाप्त कर संन्यास में जाने का नियम एवं संन्यासी के धर्म, दिनचर्या आदि का वर्णन तथा उसको निर्भयता, निर्मोह, निरहंकार, निरीह होकर ब्रह्म में अपनी आत्मा को लीन करना १२१-१४४ ___ चतुर्णामाश्रमाणां भेववर्णनम् : ६५१ ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी और संन्यासी के भेद बताए हैं । ब्रह्म चारी के भेद प्राजापत्य, नैष्ठिक इत्यादि गृहस्थ के चार भेदशालीन यायावर इत्यादि, वानप्रस्थ के भेद-वैखानस, उदुम्बर इत्यादि, संन्यासी के भेद-हंस, परमहंस, दण्डी इत्यादि तथा उनके धर्मों का निर्देश १४५-१७४ योग वर्णनम् : ९५४ गर्भ में देहरचना और उससे वैराग्य, यह बताया है कि आत्मा देह से भिन्न है । अनेक प्रकार के कर्मों का वर्णन दिखलाया है कि कर्म के अनुसार देह बनती है । शब्द ब्रह्म का वर्णन और प्राण, योग सिद्धि , दीर्घायु का वर्णन । प्राणायाम का वर्णन, पूरक, रेचक, कुम्भक और प्रत्याहार के अभ्यास का वर्णन, अग्नि, वायु जल के संयोग से शुद्धि १७५-२४२ प्रणवध्यान, ध्यानयोग, योगाभ्यास वर्णमम : ६६१ ज्ञान योग और परम मुक्ति का वर्णन, भगवान का ध्यान एवं प्रणव का ध्यान जानना और उसमें भक्ति का वर्णन, ध्यान के Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृहद पाराशर स्मृति ६६ प्रकार-किस स्वरूप में तथा किस जन्म में किस देवता का ध्यान करना इत्यादि का वर्णन । मृत्यु के अनन्तर जीव की दो मार्ग की गति का वर्णन, एक धूम मार्ग दूसरा प्रकाश (अचि) मार्ग । एक से ब्रह्म की प्राप्ति और एक से स्वर्ग की प्राप्ति । ब्रह्मयोग की प्राप्ति के साधन का वर्णन ब्रह्म का अभ्यास, ध्यान और प्रत्याहार का वर्णन तथा यह बताया है कि "मृत्युकाले मतिर्यास्यात्तां गतियाति मानवः"। इसलिए मुमुक्ष को नित्य ऐसा अभ्यास करना चाहिए जिससे अन्त समय ब्रह्म ज्ञान का अभ्यास बना रहे । २४३-३७८ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-२३ लघुहारीत स्मृति १. वर्णाश्रमधर्मवर्णनम् : ९७४ ऋषिगणों का हारीत ऋषि से सम्वाद-ऋषियों ने वर्णाश्रम धर्म तथा योगशास्त्र हारीत से पूछा जिसके जानने से मनुष्य जन्ममरण रूप बन्धन को तोड़कर संसार से मुक्त हो जाय । इस अध्याय के नवम् श्लोक से हारीत ने सृष्टि का वर्णन किया, भगवान शेषशायी समुद्र में शयन कर रहे थे उस समय ब्रह्मा की उत्पत्ति से प्रारम्भ कर जगत की उत्पत्ति तक वर्णन किया। श्लोक तेईस में लिखा है जो धर्मशास्त्र न जाने उसको दान न देना । संक्षेप में ब्राह्मण का धर्म इस अध्याय में कहा गया है २. चतुर्वर्णानां धर्मवर्णनम् : ९७७ क्षत्रिय तथा वैश्य का धर्म बताया गया है। क्षत्रिय का धर्म प्रजा पालन, दान देना, अपनी मार्ग में ही रति रखना, नीतिशास्त्र में कुशलता और मेल करना तथा लड़ना इसके तत्त्व को जाने । वैश्य का धर्म है गोरक्षा, कृषि और वाणिज्य । मनुष्य को स्वदार निरत रहना चाहिये ३. ब्रह्मचर्याश्रम धर्मवर्णनम् : ९७६ उपनयन संस्कार के बाद विधिपूर्वक अध्ययन करना और अध्ययन विधि के विरुद्ध करना निष्फल बताया गया है ब्रह्मचारी के नियम एवं नैष्ठिक ब्रह्मचारी को विवाह करना और संन्यास करने का निषेध बताया गया है । इस प्रकार ब्रह्मचारी के धर्म का वर्णन बताया गया है १-१५ ५-१४ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-१६ १७-३३ ३४-३८ लघुहारीत स्मृति ४. गृहस्थाश्रम धर्मवर्णनम् : ६८१ वेदाध्ययन के अनन्तर ब्राह्मविवाह विधि से विवाह प्रातःकाल उठकर दन्तधावन का विधान और दन्तधावन की लकड़ी तथा मन्त्रों से स्नान, प्रातःकाल जब सूर्य लाल-लाल दिखाई पड़ता है उस समय मन्देह नामक राक्षसों के साथ सूर्य का युद्ध होता है अतः प्रातःकाल गायत्री मंत्र से सूर्य को अर्घ्यदान देना लिखा है। मरीचि आदि ऋषि और सनकादि योगियों ने भी प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्यदान देना बताया है । जो मनुष्य अर्घ्यदान नहीं करता है वह नरक में जाता है स्नान करने की विधि और स्नान करने के मन्त्र पानी तीन चुल्लू पीना और पानी को अञ्जली भर सिर पर डालना । कुशा को हाथ में लेकर पूर्व की ओर मुख करके प्रोक्षण करे प्राणायाम और गायत्री के मन्त्र जपने की विधि । जप के मन्त्र का उच्चारण करने का विधान । जप के तीन मुख्यभेद वाचिक, उपांशु और मानस । जप करने से देवता प्रसन्न होते हैं यह बताया गया है । जो नित्य गायत्री का जप करता है वह पापों से छूट जाता है । गायत्री जप करने के बाद सूर्य को पुष्पांजलि दे और सूर्य की प्रदक्षिणा कर नमस्कार करे पश्चात् तीर्थ के जल से तर्पण करे ब्रह्मयज्ञ के मंत्रों का वर्णन अतिथि पूजन और वैश्वदेव की विधि पहले सुवासिनी स्त्री और कुमारी को भोजन करावे फिर बालक और वृद्धों को भोजन करावे तब गृहस्थी भोजन करे। भोजन से पूर्व अन्न को हाथ जोड़े और पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पहले "प्राणाय स्वाहा" इत्यादि मन्त्रों से पांच आहुति देवे तब आचमन कर लेवे इसके बाद मौन पूर्वक स्वादिष्ट भोजन करे ३९-५० ५१-५४ ५५-६२ ६३-६४ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ भोजन करने के अनन्तर दिन में कोई इतिहास, पुराण आदि की पुस्तकें पढ़नी चाहिये प्रातःकाल एवं सायंकाल केवल दो समय ही गृहस्थी को भोजन करना चाहिये और बीच में कुछ नहीं खाना चाहिये अध्याय काल ( वह दिन जिनमें पुस्तकों को नहीं पढ़ना) का वर्णन गृहस्थी को सुवर्ण गौ एवं पृथिवी का दान करना चाहिये ५. वानप्रस्थाश्रम धर्मवर्णनम : ६८८ वानप्रस्थ आश्रम के नियम बताये हैं जोकि अन्य धर्मशास्त्रों में समान रूप से बताए गए हैं ६. संन्याश्रम धर्मवर्णनम् : ६८६ वानप्रस्थ के बाद संन्यास में जाना चाहिए और संन्यास में जाने के बाद लड़कों के साथ भी स्नेह की बातें न करे संन्यासी को दंड, कौपीन तथा खड़ाऊ आदि धारण करने का नियम संन्यासी को भिक्षा के नियम और धातु के पात्र में खाने का दोष संन्यासी को संन्ध्या जप का विधान, भगवान का ध्यान जीव मात्र पर समदृष्टि रखने का आदेश ७. योगवर्णनम् : ६६२ वर्णाश्रम धर्म कहकर जिससे मोक्ष हो और पाप नाश हो ऐसे योगाभ्यास की क्रिया रोज करनी चाहिए लघुहारीत स्मृति प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान बतला कर सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में जो भगवान हैं उनका ध्यान करना लिखा है । जिस प्रकार बिना घोड़े के रथ नहीं चल सकता उसी प्रकार बिना तपस्या के केवल विद्या से शान्ति नहीं होती है । विद्या और तपस्या से योग में तत्पर होकर सूक्ष्म और स्थूल दोनों देह को छोड़कर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। हारीत ऋषि कहते हैं कि मैंने संक्ष ेप से ४ वर्ण एवं ४ आश्रमों के धर्म इस उद्देश्य से बताए हैं कि मनुष्य अपने वर्ण और आश्रम के धर्म पालन से भगवान मधुसूदन का पूजन कर वैष्णव पद को पहुंच जाता है ६६ ६७-६८ ६६-७३ ७४-७७ १-१० १-५ ६-१० ११-१६ २०-२३ १-३ ४-११ १२-२१ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्ध हारीत स्मृति १. पञ्चसंस्कार प्रतिपादनवर्णनम् : ६६४ राजा अम्बरीष हारीत ऋषि के आश्रम में गए। वहां जाकर हारीत से परम धर्म, वर्णाश्रम धर्म, स्त्रियों का धर्म तथा राजाओं के लिए मोक्ष मार्ग पूछा। उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में हारीत ने कहा कि मुझे जो ब्रह्माजी ने बताया है वह मैं आपको कहता हूं । नारायण वासुदेव विष्णुभगवान सृष्टि के विधाता हैं अतः उन भगवान का दास होना ही सबसे बड़ा धर्म है ७-१६ मैं विष्णु का दास हूं यही भावना चित्त में रखना । नारायण के जो दास नहीं होते हैं वे जीते जी चाण्डाल हो जाते हैं । इसलिए अपने को भगवान का दास समझकर जप पूजादि करे, नारायण का मन से ध्यान कर उनका संकीर्तन करे और शंख, चक्र, ऊर्धपुंड धारण करे यह दास के चिह्न हैं। जो वैष्णव शंख, चक्र धारण करता है वही पूज्य है और वही धन्य है २. वैष्णवानाम् पुण्ड नाम, मंत्र तथा पञ्जासंस्कारवर्णनम् : ९९७ पंच संस्कार शंखचक्र चिह्न धारण ऊर्धपुण्डादि की विधि, वैष्णव सम्प्रदाय की दीक्षा, उसका माहात्म्य, वैष्णव सम्प्रदाय की बालक की पंच संस्कार विधि बताई गई है ३. भगवन् मंत्रविधान वर्णनम् : १०१२ अम्बरीष राजा ने हारीत ऋषि से वैष्णव मन्त्रों का माहात्म्य तथा विधि पूछी ; इसके उत्तर में हारीत ने बड़े विचार के साप पंचविंशति अक्षर का मन्त्र, अष्टाक्षर मंत्र, द्वादशाक्षर १-१५ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ मंत्र, हयग्रीव मंत्र तथा षोड़शाक्षर मंत्र आदि अनेक वैष्णव मंत्रों का उद्धरण, उनके विनियोग, न्यास ध्यान, जप विधि, शंख, चक्र पूजन और भगवान विष्ण ु के पूजन आदि का सुन्दर वर्णन किया है ४. प्राप्तकाल भगवत् समाराधन विधिवर्णनम् : १०५० प्रातःकाल उठने का विधान, शौच से निवृत्त हो वैष्णव धर्म के अनुसार तुलसी और आंवले की मिट्टी को अपने बदन पर लगाकर मार्जन करने और स्नान करने का विधान तथा मंत्रों का विधान बताया है वृद्धहारीत स्मृति विष्णु का पूजन और विष्णु को कौन-कौन पुष्प चढ़ाने चाहिए एवं षडक्षर मंत्र का विधान प्राप्तकाल भगवत् समाराधन विधौ कृषिवर्णनम् १०६५ पुराणों का पाठ, वैष्णव पूजा का विधान, तामस देवताओं का वर्णन और द्रव्य शुद्धि का वर्णन आया है। खेती करना, पशु का पालन करना सबके लिए समान धर्म बताया है । चोरी करना, परस्त्री हरण, हिंसा सबके लिए पाप है प्राप्तकाल भगवत समाराधनविधौ राजधर्मवर्णनम् : १०६७ राजधर्म का वर्णन, दण्डनीति विधान - प्रायः वही है जो याज्ञवक्य में हैं । इसमें विशेषता यह है कि धर्मच्युत को सहस्र दण्ड विधान बताया है । स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले का अंगच्छेदन, सर्वस्वहरण और देश निष्कासन बताया है युद्ध का वर्णन और युद्ध में राज्य जीतकर उसे अपने आधीन कर राज्य समर्पित कर देना इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है एवं विजय की हुई भूमि सत्पात्र को देनी चाहिए । सत्पात्र के लक्षण - तपस्या और विद्या को सम्पन्नता है राज्यशासन का विधान कर लगाना, याचित, अनाहित और ऋणदान देने का विधान, पुत्र को पिता का ऋण देना, स्त्री धन की रक्षा, पतिव्रता स्त्री का पालन, व्यभिचारिणी को पति के धन का भाग न मिलने का वर्णन और बारह प्रकार के १-३६२ १-४६ ४७-१४० १४१-१७४ १७५-२१३ २१४-२२३ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धहारीत स्मृति पुत्रों का वर्णन इस तरह संक्षेप में राजधर्म और भागवत धर्म की जिज्ञासा लिखी है २२४-२६५ ५. भगवन्नित्यनैमित्तिक समाराधन विधिवर्णनम् : १०७५ राजा अम्बरीष ने मनु, भगु, वशिष्ठ, मारीचि, दक्ष, अङ्गिरा, पुलः, पुलस्त्य, अत्रि इनको जगत् गुरु कहकर प्रणाम किया और वह परमधर्म पूछा जिससे संसार के बन्धन से छुटकारा हो १-६ उत्तर में परमधर्म इस प्रकार बतायाः-भगवान वासुदेव में भक्ति और उनके नाम का जप, भगवान को उद्देश्य कर व्रतादि, स्वदार में प्रीति दूसरी स्त्री में लगन न हो. अहिंसा और भगवान का दास होकर रहना आदि । मेरा स्वामी भगवान है और मैं उनका दास हूं यह धारणा रखे। यही भगवत् प्राप्ति का मार्ग है और इसके अतिरिक्त सब नरक का मार्ग बताया है वैष्णव धर्म का माहात्म्य और अपने को भगवान का दास समझना १७-४० तप्त शंख चक्र का चिह्न जिन पर लगाया गया उन ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी और यतियों का नित्य कर्म और वर्णाचार, पूजन, जप, उपासना का विधान ४१-२४६ यति एवं वानप्रस्थ का रहन-सहन तथा मन से अष्टोत्तर षट् मंत्र का जप, उनका धर्म, सन्ध्या का विधान, वैश्वदेव और भूत बलि का विधान, दिनचर्या संस्कार तथा पुत्रोत्पत्ति का विधान २४७-३०२ वैष्णवों को प्रातःकाल में स्नान कर लक्ष्मीनारायण के पूजन की विधि बताई है । भगवान को पायस चढ़ाकर पुष्पाञ्जलि देकर द्वादशाक्षर जप करने का विधान आया है ३०३-३१३ मन्दिर में जाकर पूजन और द्वादशाक्षर मन्त्र से पुष्पाञ्जली देना ३१४-३२७ वैशाख, श्रावण, कार्तिक, माघ, इन मासों में जिस प्रकार भगवान विष्ण, का पूजन तथा विष्णु के उत्सवों का वर्णन आया है और पुराण पाठ आदि भगवान के पूजन कीर्तन के अनेक प्रकार के विधान बताये हैं ३२८-५६२ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धहारीत स्मृति ६. भगवतः यात्रोत्सवर्णनम् : ११२७ भगवान के महोत्सव की विधियां जो कि अपने आचार के अनु सार की जाती हैं जिनसे अनावृष्टि आदि उत्पात तथा महारोग दूर होते हैं । संवत्सर प्रति संवत्सर या प्रति ऋतु में महोत्सव करने का विधान, इन महोत्सवों में मण्डप के सजाने की विधि और नगर कीर्तन यज्ञ आदि की विधि, किस दशा में किस सूक्त का पाठ करना बताया गया है । भगवान को नीराजन कर शय्या में सुलाना उसके मंत्र, विस्तार से बृहत्पूजन की विधि, श्राद्ध का वर्णन और श्राद्ध करने पर नारायणबलि का विधान सात्विक, राजसिक, तामसिक प्रकृति का वर्णन और पाप के अनुसार नरक की गति और उन नरकों के नाम १५६-१७१ महापातकादि प्रायश्चित्त वर्णनम् ११४३ पापों का वर्णन १७२ महापाप जिनका कि अग्नि में जलने के अतिरिक्त और कोई प्राय श्चित्त नहीं। द्वादशाक्षर मंत्र के जप से पापों का नाश और शुद्धि १७३-२४५ रहस्य प्रायश्चित्तवर्णनम् ११५३ सम्पूर्ण प्रकार के पापों की गणना बतला कर उनका प्रायश्चित, व्रत, जप, दान आदि बताया है। इसी प्रकार गुप्त पापों से छुटकारा जिस तरह हो सके उनका प्रायश्चित्त और दान तथा भगवान का मन्त्र जप आदि २४६-३५० महापापादि प्रायश्चित्त प्रकरण वर्णनम् ११६० रजस्वला के स्पर्श से लेकर बड़े-बड़े पापों की निवृत्ति के लिए वापी कूप, तड़ाग, वृक्ष लगाने का माहात्म्य और वैकुण्ठनाथ विष्णु भगवान के पूजन का माहात्म्य ३५१-४४६ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ १-६६ वृद्ध हारीत स्मृति ७. नानाविधोत्सव विधानवर्णनम् : ११६६ नारायण इष्टी, वासुदेव इष्टी, गारुड़ इष्टी, वैष्णवी इष्टी, वैयुही इष्टी. वैभवी इष्टी पाद्मी इष्टी, पवमानिका इष्टी और इनके मन्त्र तथा यज्ञ पुरुष, द्रव्य यज्ञ, तपोयज्ञ, योगयज्ञ, स्वाध्याय, ज्ञान यज्ञ, यज्ञ की वेदी बनाना उनके मन्त्र आदि के वर्णन कृष्ण पक्ष की एकादशी में उपवास, व्रत, रात्रि जागरण और द्वादशी को द्वादशाक्षर मंत्र का जप, भगवान् का पूजन, देवषियों के तर्पण का विधान बताया है। ७०-६० वैष्णवी इष्टी (यज्ञ) का विधान, उनके मन्त्र, उनकी सामग्री और वैष्णव गायत्री का जप बताया है ६१-१०५ शुक्लपक्ष की द्वादशी, संक्रान्ति और ग्रहण के समय संकर्षणादि की मूर्ति, वासुदेव की मूर्ति का पूजन और किस प्रकार किस देवता की मूर्ति बनाना तथा पूजन यह वैष्णवी यज्ञ जो विष्णु भक्त न करे उसको पाप । इसमें कहां पर किस देवता की स्थापना करनी चाहिए । शुक्लपक्ष की शुक्रवारीय द्वादशी को पाद्मी इष्टी, इसमें भगवान का उत्सव और उसका माहात्म्य, जलशायी भगवान् का पूजन और इनके मन्त्र हैं । दोलयात्रा उत्सव का वर्णन है। भगवान का विशेष प्रकार से पूजन, भोग और कीर्तन, रथयात्रा का वर्णन आया है १०६-३२६ ८. विष्णु पूजा विधिवर्णनम् : १२०१ विष्णु की पूजा की विधि वेद के मन्त्रों से बताई गई है। १-६० पौराणिक तथा स्मृति के मन्त्रों से भगवान् विष्णु का पूजन और नवधा भक्ति का वर्णन, ध्यान जप. मन्त्र जप का वर्णन तप्तचक्रांक धारण का माहात्म्य और वैष्णव धर्म वालों की प्रशस्ति बताई है। "दानं बमः तपः शौचं आजवं शान्तिरेव च आनुशंसं सतां संग पारमकान्त्य हेतवः । वैष्णवः परमेकान्तो नेतरो वैष्णवःस्मतः ॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ वृद्धहारीत स्मृति पूजा का माहात्म्य और भिन्न-भिन्न प्रकार से जो भगवान् विष्णु की पूजा उत्सव यज्ञ दान बताये हैं, इन सबका तात्पर्य यह है कि भक्त पर विष्णु भगवान् की कृपा हो जाय जिस पर वैष्णव संस्कारों से विष्णु भगवान् की कृपा या आशीर्वाद हो जाता है उनका जीवन-चरित्र ऐसा होता है-दान करना, दम इन्द्रिों का दमन, तप तपस्या, शौच पतिव्रता, आर्जव सरलता, शान्ति क्षमा, आनृशंसं सत्य वचन सज्जनों का संग परमेकान्त में रहना से वैष्णव के चिह्न हैं बृहत् हारीत स्मृति में स्मृति-प्रतिपाद्य आचार;व्यवहार प्रायश्चित्त के समुचित निर्णय के अतिरिक्त वैष्णवाचार, वैष्णवोपासना विष्णु इष्टी, विष्णु पूजन सांग सावरण; वैष्णव पूजा उत्सव; रथयात्रा एकादश्यादि व्रतोद्यापन; मण्डप-रचना आदि का सुचारु विधान निरूपण किया है । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-२ स्मृति संदर्भ वतीय भाग याज्ञवल्क्य स्मृति याज्ञवल्क्य स्मृति में तीन अध्याय हैं। प्रथमाध्याय में संस्कार आश्रम, ग्रह शान्ति आदि, द्वितीयाध्याय में राजधर्म, व्रतधर्म राजसभा, वादिप्रतिवादि का निर्णय, व्यवहार के भेद, गृहस्थ धर्म, दण्दनीति, दायभाग आदि, तृतीयाध्याय में सूतक, अशौच, पाप, पापों का प्रायश्चित्त, वानप्रस्थ और संन्यास के धर्मों का वर्णन है। १. आचाराध्यायः-उपोद्घात प्रकरण वर्णनम् : १२३५ उस देश का वर्णन जहां वर्णाश्रम धर्म का विधान है। धर्म का लक्षण, धर्मशास्त्र प्रणेता मनु आदि बीस धर्मशास्त्र प्रणेताओं के नाम और धर्म की परिभाषा ब्रह्मचारिप्रकरण वर्णनम् : १२३६ चार वर्ण जिनके संस्कार गर्भाधान से अन्तिम दाह संस्कार तक होते हैं १० संस्कारों के नाम तथा किस समय में कौन-कौन संस्कार करने चाहिए ११-१५ शौचाचार, ब्रह्मचारी के नियम, गुरु आचार्य की पूजा, वेदाध्ययन काल, गायत्री मन्त्र जप, नित्यकर्म, उपनयन काल की पराकाष्ठा, काल निकलने से ब्रात्यता आ जाती है अर्थात् संस्कार हीन हो जाता है ब्रह्मचारी को यज्ञ, हवन, पितरों का तर्पण और नैष्ठिक ब्रह्मचारी को आजीवन गुरु के पास रहने का विधान ४०-५१ विवाह प्रकरण वर्णनम् : १२४० । ब्रह्मचर्य के बाद विवाह करने की आज्ञा और कन्या तथा वर के लक्षण ५२-५६ ३-६ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति ५७-६१ ६२-६४ ब्राह्म, आर्ष देव, धर्म, राक्षस, पैशाच, आसुर और गान्धर्व आठ प्रकार के विवाहों का वर्णन । कन्या के देने वाले पिता पितामह भ्राता और माता न हो तो कन्या का स्वयंवर करने का अधिकार है । जो मनुष्य कन्या के दोषों को छिपाकर विवाह करे उसको दंड का विधान कन्या देने का जिनको अधिकार है ऋतुकाल के पहले यदि कन्या को न दे तो माता पिता को भ्रूणहत्या का पाप बिना दोष के कन्या के त्यागने में दंड और पति को छोड़कर अपनी कामना के लिए दूसरे के पास जाती है उसे पुंश्चली कहते हैं । क्षेत्रज पुत्र किस विधि से उत्पन्न कराया जाता है इसका वर्णन व्यभिचार करने वाली स्त्री को दंड का विधान स्त्री को चन्द्रमा गन्धर्वादिकों ने पवित्र बताया है पति और पत्मी का परस्पर व्यवहार और जिन आचरणों से स्त्री की कीर्ति होती है उनका वर्णन ऋतुकाल के अनन्तर पुत्रोत्पत्ति का समय और पुरुष को अपने चरित्र की रक्षा एवं स्त्रियों का सम्मान करने का धर्म स्त्री को सास श्वसुर का अभिवादन तथा पति के परदेश गमन पर रहन सहन के नियम स्त्री की रक्षा कुमारी काल में पिता, विवाह होने पर पति और - वृद्धावस्था में पुत्र करे स्वतन्त्र न छोड़ दे स्त्री को पति प्रिय रहने का माहात्म्य और सवर्णा स्त्री के होने पर उसके साथ ही धर्मकाम करने का निर्देश किया गया है । सवर्णा स्त्री से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसी को पुत्र कहते हैं __ वर्णजातिविवेकवर्णनम् :१२४३ ।। अनुलोम और प्रतिलोम जो सन्तान होती है उनकी संज्ञा गृहस्थधर्मप्रकरण वर्णनम् : १२४४ स्नान, तर्पण, सन्ध्या, अतिथि सत्कार का वर्णन ७२-७८ ७६-८२ ८३-८४ ८६-६० ६१-६६ ६७-१०७ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति गृहस्थी को अतिथि सत्कार सबसे बड़ा यज्ञ बताया है आचरण, सभ्यता और ब्राह्मण क्षत्रिय आदि जातियों के कर्म अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रहः । दानं वया दमः शान्ति सर्वेषां धर्मसाधनम् ॥ किसी की हिंसा न करना, सत्य कहना, किसी का द्रव्य न चुराना, पवित्र रहना, अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना, दान देना, सब जीवों पर दया करना, मन को दमन करना, क्षमा करना ये मनुष्य मात्र के धर्म हैं यज्ञ करने का विधान स्नातकधर्मप्रकरणवर्णनम् : १२४७ ब्रह्मचारी और गृहस्थी के विशेष धर्म गृहस्थियों को जिन मनुष्यों से मिलजुल कर रहना चाहिये सदाचार और जिनका अन्न नहीं खाना चाहिए उनका निर्देश भक्ष्याभक्ष्य प्रकरणवर्णनम् : १२५० निषिद्ध भोजन की गणना मांस के सम्बन्ध में विचार और मांस न खाने का माहात्म्य द्रव्यशुद्धिप्रकरणवर्णनम् : १२५२ यज्ञ पात्रादि की शुद्धि किस चीज से किसकी शुद्धि होती है शुद्धि का वर्णन, जल स्थान पक्के मकान की शुद्धि आदि दानप्रकरणवर्णनम् : १२५३ ब्रह्मचारी के नित्य नैमित्तिक कर्मों का वर्णन १३१-१४२ उपाकर्क और उत्सर्ग का समय विधान तथा ३७ अनध्याय के काल १४३-१५१ १५२-१५५ १५६-१६८ १५६-१६५ " ८१ १०८-११४ ११५.१२१ १२२ १२३-१३० ब्राह्मण की प्रशंसा और पात्र का लक्षण गौ, पृथिवी, हिरण्य आदि का दान । अपात्र को देने में दोष गोदान का फल, गोदान की विधि और गोदान का माहात्म्य पृथिवी, दीपक, सवारी धान्य, पादुका, छत्र और धूप आदि दान का माहात्म्य । जो ब्राह्मण दान लेने में समर्थ है वह न लेवे तो उसे बड़ा पुण्य होता है कुशा, शाक, दूध, दही और पुष्प यह कोई अपने को अर्पण करे तो वापस नहीं करना चाहिए १६६-१७६ १७७-१८१ १८२-१८६ १८७-१६८ १६६-२०० २०१-२०२ २०३ २०८ २०६-२१२ २१३-२१४ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ याज्ञवल्क्य स्मृति श्राद्धप्रकरणवर्णनम् : १२५५ पुण्यकाल का वर्णन, जैसे --अमावस्या व्यतिपात तथा चन्द्र सूर्य ग्रहण, इनमें श्राद्ध करने का माहात्म्य तथा कौन ब्राह्मण श्राद्ध में पूजा योग्य हैं और कौन निन्दित हैं इसका विवरण २१५-२२७ श्राद्ध की विधि तथा श्राद्ध की सामग्री श्राद्ध के पहले दिन ब्राह्मणों को निमंत्रण देना, किन-किन मन्त्रों से पितरों का पूजन तथा किन मन्त्रों से वैश्वदेव का पूजन करना २२८-२५० एकोदिष्ट श्राद्ध, तीर्थ श्राद्ध और काम्य श्राद्ध का विधान २५१-२७० विनायकादिकल्पप्रकरणवर्णनम् : १२६० गणनायक की शान्ति और जिस पर उनका दोष हो उसके लक्षण । गणनायक के रुष्ट होने पर मनुष्य विक्षिप्त हो जाता है। यदि कन्या पर रुष्ट होता है तो उसका विवाह नहीं होता और यदि होता है तो सन्तान नहीं होती है २७१-२७६ विनायक की शान्ति तथा अभिषेक और हवन एवं शान्ति के अव__ सान में गौरी का पूजन २७७-२६२ ग्रहशान्तिप्रकरणवर्णनम् : १२६२ नवग्रह की शान्ति, ग्रहों के मन्त्र, उनका दान और जप ग्रहाधीना नरेन्द्राणामुच्छ्याः पतनानि च । भवभावौ च जगतस्तस्मात् पूज्यतमाः स्मताः ।। अर्थात् राजाओं की उन्नति तथा अवनति, संसार की भावना और अभावना सब ग्रहचक्रों पर निर्भर रहता है । अत: ग्रह शान्ति करनी चाहिए ग्रह किस धातु का बनाना चाहिए यह भी बताया गया है २६३-३०८ राजधर्म प्रकरण वर्णनम : १२६३ शासक राजा के लक्षण और उसकी योग्यता ३०६-३११ राजा के कैसे मंत्री और पुरोहितों, ज्योतिषियों को रखना, उनके लक्षण । दुर्ग रचना किस प्रकार करनी चाहिए । अन्त में प्रजा को अभय देना यह राजा का परम धर्म बतलाया गया है ३०६-३२३ राजा की दिनचर्या का वर्णन अन्यायेन नपो राष्ट्रात स्वकोशं योऽभिवद्धयेत् । सोऽचिराद्विगतश्रीको नाशमति सबान्धवः ।। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति अर्थात् जो राजा अन्याय से राष्ट्र का रुपया अपने खजाने में जमा करता है वह राजा बहुत जल्दी सपरिवार नष्ट हो जाता है । ३२४-३४३ साम, दाम, दण्ड, भेद कहां पर प्रयोग करने चाहिये उनका वर्णन । दूसरे के राष्ट्र में कब घुसना उसकी परिस्थिति का वर्णन ३४४-३४८. राजधर्म में यह बताया है कि पुरुषार्थ और भाग्य दोनों को तराजू में तौलकर रखे एक से काम नहीं चलता ३४९-३५१ राजा को मित्र बनाना सबसे बड़ा लाभ है ३५२-३५३ दण्ड का विधान-वाग् दण्ड, धन दण्ड, वधदण्ड और धिकदण्ड ये चार प्रकार के दण्ड हैं। अपराध देशकाल को देखकर इन दण्डों की व्यवस्था करे ३५४-३६८ २. व्यवहाराध्यायः सामान्यन्याय प्रकरणम् “१२६६ राजा को व्यवहार देखने की योग्यता और अपने साथ सभासदों का नियोग तथा उनकी योग्यता । व्यवहार की परिभाषा स्मत्याचार व्यपेतेन मार्गेणाषितः परैः । आवेदयति चेद्राज्ञ व्यवहारपदं हि तत् ।। अर्थात् आचार और नियम विरुद्ध जो किसी को तंग करे उस पर राजा के पास जो आवेदन किया जाता है उसको व्यवहार कहते हैं व्यवहार के चार वाद हैं । जैसे-आवेदन (दरखास्त), प्रत्यर्थी के सामने लेख, सम्पूर्ण कार्य का वर्णन, प्रत्यर्थी के उत्तर, इकरार लिखना (झूठा होने पर दण्ड होगा) जिस पर एक अभियोग हुआ है उसका फैसला नहीं होने तक दूसरा अभियोग नहीं लगाया जाता है। चोरी मारपीट का अभियोग उसी समय लगाया जाता है। दोनों से जमानत लेनी चाहिए । झूठे मुकदमे में दुगुना दण्ड लगाना चाहिए ६-१२ झूठे बनावटी गवाह की पहचान १३-१५ दोनों पक्ष के साक्षी होने पर पहले वादी के साक्षी लेने चाहिये। जब वादी का पक्ष गिर जाय तब प्रतिवादी अपने पक्ष को साक्षी से पुष्ट करे इत्यादि । यदि झठा मुकदमा हो तो उसे १-४ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ प्रत्यक्ष प्रमाणों से शुद्ध कर लेवे। जहां दो स्मृतियों में विरोध हो वहां व्यवहार से निर्णय करना । अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र के मिलने में विरोध आ जाय वहां धर्मशास्त्र को ऊंचा स्थान देना चाहिए प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं- लेख (लिखित), भोग ( कब्जा ), साक्षी ( गवाह ), इन तीन प्रमाणों के न होने पर दिव्य ( ईश्वर को पुकार कर ) शपथ करते हैं। बीस वर्ष तक भूमि किसी के पास रह जाय या दस वर्ष तक धन किसी के पास रह जाय और उसका मालिक कुछ न कहे तो व्यवहार का समय चला जाता है, किन्तु यह नियम धरोहर, सीमा, जड़ और बालक के धन पर लागू नहीं होगा आगम (भुक्ति) भोग ( कब्जा ) के सम्बन्ध में निर्णय राजा इनके निर्णय के लिए एक सभा बनावे और बल से एवं किसी उपाधि से जो व्यवहार किया गया है उसको वापस कर देवे निधि (गड़ा हुआ धन ) का निर्णय ऋणादान प्रकरणम् १५६ ऋण (कर्जा) की वृद्धि का दर और किसको किसका और नहीं देना इसका निर्णय —स्त्री केवल पति के ऋण किया है उसको देगी और बाकी को नहीं । तक हो सकता है, पशु की संतति तथा दान दि का वर्णन है । जब चुकाने पर धनी न वृद्धि नहीं होगी निक्षेप ( धरोहर ) वर्णन याज्ञवल्क्य स्मृति उपनिधि प्रकरण वर्णनम : १२७५ देना जो युव परकीय रा साक्षोप्रकरणविधिवर्णनम् : १२७६ साक्षी का प्रकरण - साक्षी कौन होना चाहिए और साक्षी के लक्षण, कूट ( जाली ) साक्षियों का वर्णन लिखित प्रकरणम् : १२७८ लेख में गवाह होना चाहिए तथा सम्वत्, महीना और दिन भी होना चाहिए, लेख की समाप्ति में ऋण लेने वाला अपना १६-२० २१-२२ २३-२५ २६-३० ३१-३२ ३३-३७ ३८-६५ ६६-६८ ६६-८५ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति हस्ताक्षर कर दे एवं अपना तथा अपने पिता का नाम लिख दे । लेख बिना साक्षी के भी हो सकता है जो अपने हाथ से लिखा हुआ हो किन्तु वह बलपूर्वक लिखाया हुआ न हो । रुपया जितना देता जाए उस कागज के पीछे लिखता जाय । धन चुक जाने पर उस कागज को फाड़ देवे या साक्षी के सामने ऋणी को वापस दे दें ८६-६६ दिव्य प्रकरणम्"१२७६ जब कोई साक्षी आदि प्रमाण न मिले तब दिव्य कराया जाता है। दिव्य कितने प्रकार के होते हैं ---- १-तुला, २-अग्नि, ३- जल, ४-विष, ५-कोश। ये दिव्य बड़े मामलों में किये जाते हैं छोटे व्यवहार में नहीं । १ तुला-तराजू बनाकर तोला जाता है जो तोलने पर ऊपर या नीचे जाता है उसकी विधि पुस्तक में लिखी है । २ अग्नि--लोहे के गोले को गरम कर दोनों हाथों में लेकर चलना होता है जो शुद्ध हो उसके हाथ नहीं जलते हैं । ३ जल-नाभी मात्र गहरे जल में तीर डालकर धुलाना पड़ता है। ४ विष - · शुद्ध को खिलाने पर उसे जहर नहीं लगता । ५ कोश-किसी देवता का जल पिलाने से उसको अगर चौदह दिनों तक अनिष्ट नहीं हुआ तो शुद्ध समझा जाता है। ९७-११५ वायविभाग प्रकरणम् १२८१ । पिता को अपनी इच्छा से विभाजन करने का अधिकार है पिता के बाद भाई अपने आप विभाग किस प्रकार से करे और जो धन अविभाज्य है उसका वर्णन ११६-१२१ भाईयों का बटवारा और भाईयों के लड़कों का विभाग उसके पिता के नाम से होगा । जिन-जिन भाईयों का संस्कार नहीं हुआ उनका पैतृक धन से संस्कार और निर्वाह-बहनों को अपने हिस्से से चौथाई देकर विवाह करे १२२-१२७ जाति विभाग से बटवारा १२८-१३० बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन १३१-१३५ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ दासी पुत्र का हक और अपुत्र के धन विभाग का नियम वानप्रस्थ, संन्यासी और आचार्य के धन का विभाग समष्टि ( मिले हुए) भाईयों का विभाग और उन लड़कों का वर्णन जिनको पिता की जायदाद में भाग नहीं मिलता है । जिनको भाग न मिला उनके लड़कों और स्त्री को मिल सकता है स्त्री धन की परिभाषा जो पैतृक धन को छिपा दे उनका निर्णय याज्ञवल्क्य स्मृति १३६-१३६ १४० सीमाविवादप्रकरणवर्णनम् -- १२८५ सीमा विभाग - गांव की, खेत की सीमा के विभाग में वन में रहने वाले ग्वाले, खेती करने वाले इनसे सीमा के सम्बन्ध में पूछना चाहिये । पुल, खाई या खम्भे से सीमा का चिह्न बतलाना चाहिए । सीमा के सम्बन्ध झूठ बोलनेवाले को कड़े दण्ड का विधान कहा है । दूसरे की जमीन पर कुंआ तालाब बनाना उसमें में जिसकी भूमि है उसी का या राजा का अधिकार रहेगा १५३-१६१ स्वामिपालविवादप्रकरणवर्णनम्१२८६ दूसरे के खेत में भैंस, गाय, बकरी चराने में जितना वे हानि करे उसका दूना दिलाना चाहिये बंजर भूमि पर भी गधा, ऊंट आदि को चराने पर वहां जितना घास पैदा हो सकता है उतना उनके स्वामियों से हानि रूप में लिया जाना चाहिये । ग्वालों को फटकारना और उनके स्वामियों को प्रायः दण्ड देना । सड़क गांव की बंजर जगहों में चराने में कोई दोष नहीं है । सांड वगैरह को छोड़ देना चाहिए । गायों को चराने वाला ग्वाला जिसके घर से जित्तनी गाय ले जाय उसकी उतनी ही सायंकाल लौटा देवे । जिस ग्वाले को वेतन दिया जाता है अगर अपनी गलती से किसी पशु को नष्ट करवा दे तो मूल्य उससे लिया जाय । प्रत्येक गांव में गोचर भूमि रक्खी जाय अस्वामिविक्रयप्रकरणवर्णनम् - १२८७ खरीद और अस्वामी विक्रय — लेने वाले को चीज का दोष न बतला कर जो बेचा जाय उसे चोरी की सजा होगी । किसी १४१-१४३ १४६-१५१ १५२ १६२-१७० Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति ८७ के धन को दूसरा आदमी बेच लेबे तो धनवाले को मिल जाय और खरीददार अपना मूल्य ले जावे । खोया हुआ या गिरा हुआ द्रव्य किसी को मिल जाय तो उस वस्तु को पुलिस में जमा न करने पर पाने वाला दोष का भागी होता है । एक मास तक कोई न लेवे तो वह धन राजा का हो जाता है १७१-१७७ दत्ताप्रदानिकप्रकरणवर्णनम् .. १२८८ अपने घर में जिस वस्तु को देने से विरोध न हो तथा स्त्री और बच्चों को छोड़कर गृहपति सब दान में दे सकता है । सन्तान होने पर सब दान नहीं कर सकता है तथा दी हुई वस्तु फिर दान नहीं हो सकती। १७८-१७६ क्रीतानशयप्रकरणवर्णनम् : १२८८ क्रीतानुशय अर्थात् मूल्य लेने पर वापस किया जा सकता है । दस दिन तक बीज (अन्न) लौटाया जा सकता है । लोहे की चीजें एक दिन, बैल लेने पर पांच दिन, रत्न की परीक्षा आठ दिन तक, गाय तथा अन्य जीव जन्तु तीन दिन तक, सोना आग में तपाने पर घटता नहीं है और चांदी दो पल कम हो जाएगी इस प्रकार खरीदी हुई वस्तु तीन दिन तक वापस की जा सकती है १८०-१८४ संवित् व्यतिक्रम (अपने निश्चय को तोड़ना) जैसे बल पूर्वक किसी को पकड़कर गुलाम बना लिया हो। निजधर्माविरोधेन यस्तु सामयिको भवेत् । सोऽपि यत्नेन संरक्ष्यो धर्मो राजकृतश्च यः॥ अपने धर्म से मिला हुआ जो समय का धर्म और राजा के धर्म को भी पालन करना चाहिए। जो समुदाय का धन ले और जो अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे उसका सब कुछ छीनकर देश से निकाल देवे १८५-१६५ वेतनदानप्रकरणवर्णनम् : १२६० जो पहले वेतन ले ले और समय पर उस काम को छोड़ दे उस से दूना धन लेना चाहिए १६६-२०१ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति धूतसमाह्वयप्रकरणवर्णनम् १२६१ चोरों को पहचानने के लिए जूआ किसी स्थान पर करवाया जाता है और उसमें जीतने वाले से राजा के लिए दस रुपया ले लेना चाहिए २०२-२०६ वाक्पारुष्यप्रकरणवर्णनम् : १२६१ वाक् पारुष्य (अपशब्द कहने का दण्ड) इसी प्रकार पातक तथा उपपातक को दण्ड के उपयोग हैं २०७-२१४ किसी पर लाठी चलाना या किसी चीज से पीड़ा पहुंचाना पशुओं के अंगच्छेदन करना, पशु की इन्द्रिय काटना, और पेड़ों की टहनियों को काटना २१५-२३२ साहस प्रकरण वर्णनम् : १२६४ बलपूर्वक किसी की वस्तु को छीनना इसको साहस कहते हैं । जो जितने मूल्य की वस्तु छीन कर ले जावे उसको उससे दूना दण्ड दिलवाना चाहिए तथा छिपाने पर चार गुना दण्ड । स्वच्छन्दता से किसी विधवा स्त्री के साथ गमन करने वाला या बिना किसी कारण किसी को गाली देने वाला और झूठी शपथ करने वाला तथा जिस काम के योग्य न हो उसको करने को तैयार हो जाना एवं दासी के गर्भ को नष्ट कर देना, पशु के लिङ्ग को काट देना, पिता पुत्र गुरु और स्त्री को छोड़ने वाले को सौ पल दण्ड का विधान बताया है। धोबी दूसरे के कपड़ों को अपने पास रखे तो उसको तीन पल दण्ड । पिता और पुत्र की लड़ाई में जो गवाही देवे उसे तीन पल दण्ड । तराजू और बाटों को जो छल कपट से बना कर व्यवहार करे तो उसे पूरा दण्ड । जो कपट को सत्य कहे और सत्य को कपट कहे उसे भी साहस प्रकरण का दण्ड । जो वैद्य झूठी दवा बनावे उसको भी दण्ड । जो कर्मचारी अपराधी को छोड़ देवे उसको दण्ड । जो मूल्य लेकर वस्तु को नहीं देता है उसको भी दण्ड २३३-२६१ सम्भूयसमुत्थानप्रकरणम् : १२९७ कई आदमी मिलकर जो व्यापार करते हैं उनको उस व्यापार में Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ याज्ञवल्क्य स्मृति लाभ और हानि बराबर उठानी पड़ेगी। या उन लोगों ने पहले जो प्रतिज्ञा कर ली हो २६२-२६८ __ स्तेयप्रकरणवर्णनम् : १२६८ चोर को पकड़ने वाले को पहले उसके पैरों के चिह्न से या पहले जो चोरी में पकड़े गए हों, जुआरी, वेश्यागामी तथा शराबी और बात में अटपट करे तो उनको पकड़ लेना चाहिए । चोरी में पूछने पर जो सफाई नहीं दे उसे चोरी का दण्ड दिया जाता है । चोर को भिन्न भिन्न प्रकार से ताड़ना देकर चोरी पूछ लेनी चाहिए। विषाग्निा पतिगुरुनिजापत्यप्रमापिणीम् । विकर्णकरनासोष्ठी कृत्वा गोभिः प्रमापयेत् ॥ विष देनेवाली, अग्नि लगानेवाली, पति, गुरु और अपने बच्चों को मारनेवाली स्त्री के नाक कान काटकर जल में बहा देना चाहिए। क्षेत्रवेश्मवनग्रामविवीतखलदाहका: । राजपत्न्यभिगामी च दग्धव्यास्तु कटाग्निना ॥ खेत, मकान और ग्राम इनको जलाने वाले को और राजा की स्त्री के साथ गमन करने वाले को आग में जला देना चाहिए २६६-२८५ स्त्रीसंग्रहणप्रकरणवर्णनम् : १३०० किसी स्त्री के केशों को पकड़ने या करधनी या स्तन मरदन करना या अनुचित हंसी करना ये चिह्न व्यभिचार के समझे जायेंगे । स्त्री के ना करने पर जबरदस्ती हाथ लगावे तो सौ पल और पुरुष के ना करने पर दुगुना दण्ड । किसी अलंकृत कन्या को हरण करे उसको कड़ा दण्ड यदि लड़की की इच्छा हो तो दण्ड नहीं होता है । पशु के साथ व्यभिचार करने वाले को सौ पल दण्ड। नौकरानी के साथ व्यभिचार करने वाले को दण्ड । जो वेश्या पैसा लेकर बाद में रोके तो उसे दूना दण्ड । किसी लड़के से या किसी साधुनी के साथ अप्राकृतिक मैथुन करने वाले को चौबीस पल दण्ड । राजा की आज्ञा में रहकर जो कम या विशेष लिखे उसको दण्ड । छल से खोटे सिक्के Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० सोने को बेचने वाले तथा मांस के बेचने वाले को अङ्ग हीन करना चाहिए जो स्त्री अपने जार को चोर कहकर भगा देवे उसे पांच सौ पल दण्ड देना चाहिए । राजा के अनिष्ट कहने वाले को या राजा के भेद को खोलने वाले की जिह्वा काट लेनी चाहिए याज्ञवल्क्य स्मृति ३. आशौचप्रकरणवर्णनम् : १३०३ दो वर्ष से कम उम्र के बच्चे को भूमि में गाड़ देना चाहिए । बच्चे के मरने पर सातवें या दसवें दिन दूध देना चाहिए किसी के मरने पर यदि उसी दिन घर में दूसरे का जन्म हो जाए तो पहले के सूतक से वह शुद्ध हो जाएगा । राजाओं को और यज्ञ में बैठे हुए ऋषियों को सूतक नहीं लगता है । आपद्धर्मप्रकरणवर्णनम् : १३०७ आपत्ति में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कर्म से निर्वाह कर सकता है । परन्तु मांस तिल आदि आपत्ति में भी न बेचे । लाक्षालवणमांसानि पतनीयानि विक्रये । पयोदधि च मद्यञ्च हीनवर्णकराणि च ॥ अर्थात् लाख, लवण और मांस बेचने से पतित हो जाता है । कृषि, शिल्प, नौकरी, चक्रवृद्धि, इक्का हांकना और भीख मांगना इनसे आपत्ति काल में जीवन निर्वाह कर सकता है वानप्रस्थधर्मप्रकरणवर्णनम् : १३०८ वानप्रस्थ स्त्री को अपने साथ ले जाए या अपनी सन्तान के पास छोड़ दे । वानप्रस्थ इन्द्रियों को दमन करने वाला, प्रतिग्रह न लेने वाला, स्वाध्याय करने वाला होना चाहिए । चान्द्रायण आदि से समय व्यतीत करे, वर्षा में ठण्डी जगह रहे, हेमन्त में गीले कपड़ों से रहे अर्थात् जितनी शक्ति हो उसी हिसाब से वन में तपस्या करता रहे यतिधर्मप्रकरणवर्णनम् १३०६ यति सम्पूर्ण प्राणीमात्र का हित करनेवाला, शान्त और दण्ड धारण करनेवाला हो । यति के सब पात्र बांस और मिट्टी के होते हैं इनकी शुद्धि जल से हो जाती है । यति को राग २८६-३१० १-६ ७-३४ ३५-४४ ४५-५५ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याज्ञवल्क्य स्मृति द्वेष का त्याग कर अपने आप की शुद्धि जिससे आत्मज्ञान का विकास हो ऐसा करना चाहिये । सत्यमस्तेयमक्रोधो ह्रीः शौचं धी तिर्दमः। संयतेन्द्रियता विद्या धर्मः सावं उदाहृतः ।। सत्य, अस्तेय, अक्रोध, पवित्रादि में सब धर्म बतलाये हैं। अध्यात्म ज्ञान का प्रकरण आया है। जैसे तप्त लौह पिण्ड से चिनगारी निकलती है उसी प्रकार उस प्रकाश पुंज आत्मा से यह समष्टि व्यष्टि संसार रूपी चिनगारी निकलती है । आत्मा अजर अमर है शरीर में आने से इसे जन्म लेना कहते हैं । सूर्घ की तपन से वृष्टि फिर औषघि तथा अन्न होकर शुक्र हो जाता है । स्त्री पुरुष के संयोग से यह पञ्चधातुमय शरीर पैदा होता है। एक एक तत्त्व से शरीर की एक एक चीज का बनना लिखा है । चौथे महीने में पिण्डाकार बनता है तथा पाचवें में अंग बनने लग जाते हैं। छठे महीने में बाल, नख, रोम और सातवें आठवें में चमड़ा, मांस बनकर स्मृति पैदा हो जाती है । इस प्रकार जन्म मरण के दु:ख को दिखाया गया है। मनुष्य शरीर में कितनी नस कितनी धमनी तथा मर्मस्थान हैं इन सबका वर्णन कर शरीर को अस्थिर अनित्य नाशवान बतला कर मोक्ष मार्ग में लगने का उपदेश किया गया है । योगशास्त्र, उपनिषदों के पठन एवं वीणा वादन से मन की एकाग्रता बताई है। वीणवादनतत्वज्ञः श्र तिजातिविशारदः । तत्वज्ञश्चाप्रयासेन मोक्षमार्ग नियच्छति ॥ वीणा वादन के तत्त्व को जाननेवाला और ताल के ज्ञानवाला मोक्ष मार्ग पा लेता है । इस प्रकार मोक्ष मार्ग के साधन और संसार के अनित्य सुखों के वैराग्य का वर्णन तथा कुण्डलिनी योग, ध्यान, धारणा और सत्य की उपासना एवं वेद का अभ्यास वताकर जीवन यात्रा का श्रेय नीचे लिखे श्लोक में स्पष्ट किया है न्यायागतधनस्तत्त्वज्ञाननिष्ठोऽतिथिप्रियः । श्रायकृत् सत्यवादी च गृहस्थोऽपि हि मुच्यते ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ याज्ञवल्क्य स्मृति न्याय से आये हुए धन से जीवन बितानेवाला, तत्त्व ज्ञान में जिसकी निष्ठा हो, अतिथि सत्कार तथा श्राद्ध करनेवाला, सत्यवादी गृहस्थी भी इस जन्ममरण से छूट जाता है ६७-२०५ प्रायश्चितप्रकरणवर्णनम् १३२३ पापी महापापी कर्म के अनुसार नरक भोगने के अनन्तर जब मनुष्य योनि में आते हैं तब ब्रह्महत्यारा जन्म से ही क्षय रोगी होता है। परस्त्री को हरने वाला, ब्राह्मण के धन को हरने वाला ब्रह्मराक्षस होता है। जो पाप को समझने पर भी प्रायश्चित्त नहीं करते है वे रौरव नरक में जाते हैं। इस प्रकार महानरकों का वर्णन आया है। महापापी चार हैंब्रह्म हत्यारा, सोने को चुराने वाला, गुरु की स्त्री से गमन करने वाला और मद्य पीनेवाला तथा जो इनके साथ रहता है वह भी महापातकी होता है । इसके बाद आगे के श्लोकों में उपपातकों की गणना की है । महापातकी को आमरणान्त प्रायश्चित्त बतलाया है अन्य पापों की शुद्धि के लिये चान्द्रायण आदि व्रत बतलाये हैं। गर्भपात और भर्तृ हिंसा स्त्री के लिए महापाप है। शरणागत को मारने वाले, बच्चों को मारनेवाले, स्त्री के हिंसक और कृतघ्न की कभी शुद्धि नहीं होती है । सान्तपन कृच्छ्र, पर्णकृच्छ, पादकृच्छ, तप्तकृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, तुला पुरुष, चान्द्रायण व्रत और कृच्छचान्द्रायणादि व्रत बतलाये गये हैं । ऋषिणों ने याज्ञवल्क्य से धर्मों को सुनकर यह कहा कि जो इसको धारण करेगा वह इस लोक में यश को प्राप्त कर अन्त में स्वर्गलोक को प्राप्त होगा। जो जिस कामना से धारण करेगा उसकी कामनायें पूर्ण सफल होंगी। ब्राह्मण इसको जानने से सत्पात्र, क्षत्रिय विजयी, वैश्य धनधान्य सम्पन्न, विद्यार्थी विद्यावान् होता है । इसको जानने और मनन करने से अश्वमेध यश के फल को प्राप्त होता है २०६-३३४ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-४ ५-१८ १-१४ १-१४ १-१२ कात्यायन स्मृति १. यज्ञोपवीतकर्मप्रकरणवर्णनम् १३३५ यज्ञोपवीत बनाने का माप और धारण विधि मातृका, वसुधारा और नान्दी श्राद्ध का विधान २. नित्यनैमित्तिक (श्राव) कर्मवर्णनम् १३३७ नित्य नैमित्तिक श्राद्ध विधि। ३. त्रिविधक्रियावर्णनम १३३६ श्राद्धादि सम्पूर्ण कार्य अपनी अपनी शाखा के अनुसार करने का विधान ४. धावप्रकरणवर्णनम् १३४० सम्पूर्ण अध्याय में श्राद्ध की विधि बताई गई है ५. श्राद्धप्रकरणवर्णनम् १३४१ वृद्धि श्राद्ध आदि अन्य पर्यों पर श्राद्ध का वर्णन ६. अनेककर्मवर्णनम् १३४३ आधान काल और तत्सम्बन्धी अग्निहोत्र तथा परिवेत्ति का वर्णन ७. शमीगर्भाधनेकप्रकरणवर्णनम् १३४४ । शमी गर्भ काष्ठ पीपल आदि का वर्णन । अग्नि मन्थन की प्रक्रिया, अरणी निर्माण, किस प्रकार काष्ठ की अरणी बनानी अरणी मन्थन से निकाली हुई अग्नि ही यज्ञ में प्रशस्त होगी ८. सयज्ञस्त्र वसमिधलक्षणवर्णनम् १३४६ अरणी मन्थन विधान । दर्श पौर्णमास्य यज्ञ में समिधा का मान तथा समिधा हरण विधि ६. सन्ध्याकालाद्दिश्यकर्मवर्णनम् १३४८ । सायंकाल का निर्णय एबं सार्वकालीन अग्निहोत्र का समय तथा विधि । प्रज्वलित अग्नि में ही आहुति देना, यदि प्रज्वलित नहीं हो तो पंखे (व्यजन) से हवा देना मुख से नहीं १-११ १-१५ १-१४ १-२४ १-१५ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-१७ १-१४ कात्यायन स्मृति १०. प्रातःकालिकस्नानादिक्रियावर्णनम् : १४५० प्रातःकाल का स्नान, नदी की परिभाषा, नदी कितनी वेगवती धारा को कहते हैं। दन्तधावन, मुख और नेत्र प्रक्षालन की विधि । कप स्नान भी गंगा स्नान के समान ग्रहण आदि पर्व में होता है १-१४ ११. सन्ध्योपासनाविधिवर्णनम् : १३५१ सन्ध्योपासन का निर्देश-जब तक सन्ध्या न करे तब तक अन्य किसी देव एवं पितृ कार्य को करने का अधिकार नहीं है । सन्ध्या विधि एवं सूर्योपस्थान कर्म १२. तर्पणविधिवर्णनम् : १३५३ देव, ऋषि तथा पितृ तर्पण विधि १३. पञ्चमहायज्ञविधिवर्णनम् : १३५४ पञ्च महायज्ञ - देवयज्ञ, भूतयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, पितृयज्ञ और मनुष्य____यज्ञ इनको महायज्ञ कहा है तथा इन्हें करने की विधि १४. ब्रह्मयज्ञविधिवर्णनम् : १३५५ ब्रह्मयज्ञ का वर्णन १५. यज्ञविधिवर्णनम् : १३५७ उपर्युक्त पञ्च महायज्ञों की विस्तार से विधि १-२१ १६. श्राद्ध तिथिविशेषणविधिवर्णनम् : १३५६ श्राद्ध की तिथियों का निर्देश, तिथि परत्व श्राद्ध विधान १-२३ १७. श्राद्धवर्णनम् : १३६२ श्राद्ध की विधि का निदर्शन १-२५ १८. विवाहाग्निहोमविधानवर्णनम् : १३६४ । वैवाहिक अग्नि से प्रातः सायं हवन का विधान, चरु का वर्णन और कुशा विष्टर का मान १-२३ १६. सकर्तव्यतास्त्रीधर्मवर्णनम् : १३६७ गृहस्थाश्रमी को स्त्री के साथ अग्निहोत्र का विधान । स्त्रियों में श्रेष्ठ स्त्री वही है जो सौभाग्यवती हो, ब्राह्मणों में ज्येष्ठ श्रेष्ठ वही है जो विद्या एवं तप में श्रेष्ठ है । स्त्री को पति का आदेश मानकर अग्निहोत्र करने से सौभाग्य बढ़ता है तथा १-१५ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कात्यायन स्मृति ६५ पति की आज्ञानुसार चलने से इहलोक और परलोक दोनों में परम सुख प्राप्त होता है।। १-२३ २०. द्वितीयादिस्त्रीकृतेसति वैदिकाग्निवर्णनम् : १३६६ स्त्री के साथ ही यज्ञ की विधि । स्त्री के मृत होने पर भी गृहस्था श्रम में रहता हुआ अग्निहोत्र करता रहे । श्लोक दर में श्रीरामचन्द्रजी का उदाहरण दिया है कि उन्होंने सीताजी की प्रतिमा बनाकर उसके साथ यज्ञ किया १-१६ २१. मृतदाहसंस्कार : १३७१ मृतक का संस्कार १-१६ २२. दाहसंस्कार : १३७२ मृतक का दाह संस्कार १-१० २३. विदेशस्थमतपुरषाणांदाहसंस्कार ! १३७३ विदेश में मृत हुए पुरुष के दाह संस्कार २४. सूतकेकर्मत्यागःषोडशश्राद्धविधान : १३७५ सूतक में सब प्रकार के स्मार्त कर्मों का त्याग किन्तु वैदिक कर्म हवन आदि शुष्क फलों से करता रहे । सपिण्डीकरण तक सोलह श्राद्ध करने से शुद्धि होती है २५ नवयज्ञेनविनानवान्नभोजनेप्रायश्चित्तवर्णनम : १३७६ नवान्न भक्षण करने से पहले नवान्न यज्ञ करना चाहिए । बिना यज्ञ में दिये अन्न भक्षण का प्रायश्चित्त १-१० २६. नवयज्ञकालाभिधान : १३७८ नवयज्ञ का समय-श्रावणी, कृष्णाष्टमी, शरद् एवं वसन्त में नव १-१४ यज्ञ १-२१ २७. प्रायश्चित्तवर्णनम : १३८० अन्वाहार्य तथा कर्म के आदि में शुद्धि के लिये प्रायश्चित्त का विधान २८. प्रायश्चित्त-उपाकर्मणा फलनिरूपण : १३८२ प्रायश्चित्त उपाकर्म उत्सर्ग की विधि और काल २६. श्राद्धवर्णनम्, पश्वाङ्गानांनिरूपण : १३८४ पिण्ड श्राद्ध, आम श्राद्ध और गया श्राद्ध का वर्णन तथा श्राद्ध में कुशा आदि का वर्णन १-१६ १-१६ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रापस्तम्बस्मृति के प्रधान विषय १. गोरोधनादिविषये गोहत्यायाञ्च प्रायश्चित्तवर्णनम् : १३८७ आपस्तम्ब ऋषि से जब मुनियों ने गृहस्थाश्रम में कृषि कर्म गो पालन में अनुचित व्यवहार से जो दोष हो जाय उसका प्रायश्चित पूछा । आपस्तम्ब ने बड़े सत्कार के साथ ऋषियों को बताया---औषधि देने में, बालक को दूध पिलाने में सावधानी करने पर भी विपत्ति आ जाय तो उसका दोष नहीं होता है। किन्तु औषधि तथा भोजन भी मात्रा से अधिक देना पाप है । दौमासौ पाययेद्वत्सं द्वौमासो द्वौ स्तनौ दुहेत, द्वौमासावेकवेलायां शेषकाले यथाचि । वशरात्रा मासेन गौस्तु यत्र विपद्यते, स शिखं वपनं कृत्वा प्रजापत्यं समाचरेत् ।। गाय के बन्धन कैसी रस्सियों से कैसे कीले पर बांधना चाहिए २. शद्ध्यशद्धिविवेकवर्णनम : १३९० शुद्धि और अशुद्धि का वर्णन, जैसे - काम करने वाले मनुष्यों को जल पानी की छूतपात नहीं होती है । वापी, कूप, तड़ाग जहां खारिया जल निकलता हो वह अशुद्ध नहीं होता है । पेशाब मल तथा थूकने से जल अशुद्ध हो जाता है १-१४ ३. गहेऽविज्ञातस्यान्त्यजातेनिवेशने-बालादि विषये च प्रायश्चित्तम् : १३६२ अन्य जाति का परिचय न होने से अज्ञात दशा में घर में रह जाय तो उस द्विजाति को चान्द्रायण या पराक प्राजापत्य व्रत करने का विधान १-१२ ४. चाण्डालकूपजलपानादौ संस्पर्श च प्रायश्चित्तम् : १३६३ चाण्डाल के कूप से जल पान पर प्रायश्चित्त १-३४ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपस्तम्बस्मृति स्मृति ५. वैश्यान्त्यजश्वका कोच्छिष्टभोजने प्रायश्चित्त : १३६५ उच्छिष्ट भोजन ( जूठा खाने पर ) प्रायश्चित्त ६. नीलीवस्त्रधारणे नीलोभक्षणे च प्रायश्चित्तम् १३६७ नीले रंग के वस्त्र धारण करने का प्रायश्चित्त ७. अन्त्यजादि स्पर्शे रजस्वलाया विवाहाविषु कन्याया रजोदर्शने प्रायश्चित्तम् : १३६७ रजस्वला स्त्री को अशुद्धि बतायी है किन्तु रोग के कारण जिस स्त्री का रज गिरता हो उसके स्पर्श करने से अशुद्ध नहीं होता है ८. सुराविदूषितकरस्यशुद्धिविधान : १४०० बर्तनों को शुद्ध करने का वर्णन, जैसे कांसा भस्म से शुद्ध होता है शूद्रान्न भक्षण शूद्र के साथ भोजन का निषेध । जिसके अन्न को मनुष्य खाता है उस अन्न से जो सन्तान पैदा होती है वह उसी प्रकृति की होती है ६. अपेयपानेऽभक्ष्यभक्षण का प्रायश्चित्त : १४०२ अपेय पान अभक्ष्य भक्षण में प्रायश्चित्त । स्वाध्याय तथा भोजन करते समय पैर में पादुका नहीं हो १०. मोक्षाधिकारिणामभिधानवर्णनम् : १४०६ भोजन करने का नियम । यम नियम की परिभाषा । अग्निहोत्र त्याग करने वाले को वीरहा कहते हैं । गृहस्थी को नित्य अग्निहोत्र करना चाहिये ६७ १-१४ १-१० १-२१ १-२१ १-४३ १-१६ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ लघुशङ्खस्मृति लघुशङ्खस्मृति १. इण्टापूर्तकर्मणोःफलाभिधानवर्णनम् : १४०८ इष्टापूर्त का माहात्म्य । गङ्गा में अस्थि प्रवाह का माहात्म्य । पितृ कर्म गया श्राद्ध का माहात्म्य । एकोद्दिष्ट श्राद्ध न कर पार्वण श्राद्ध करना व्यर्थ है । प्रति सम्वत्सर क्षयाह पर श्राद्ध करने का निर्णय सपिण्डी करने को विधि । पिता जीवित हो तो माता की सपिण्डी दादी के साथ, पिता हो तो पिता के साथ माता का सपिण्डीकरण श्राद्ध न करे। अपुत्र स्त्री पुरुष का पावण श्राद्ध न करे केवल एकोद्दिष्ट करे । संक्षिप्त प्रायश्चित्त का विधान वर्णन किया है १-७१ १-८ शङ्खस्मृति १. ब्राह्मणादिनां कर्म : १४१५ चातुर्वर्ण्य के पृथक्-पृथक् कर्म, यथा ब्राह्मण का यजन-याजन, अध्ययन-अध्यापनादि, इस प्रकार चार वर्ण के पृथक्-पृथक् कर्मों का वर्णन २. ब्राह्मणादिनां संस्कार : १४१६ गर्भाधान से उपनयन पर्यन्त संस्कारों का विधान ३. ब्रह्मचर्याद्याचार : १४१८ ब्रह्मचर्य, विद्याध्ययन काल का आचरण तथा आचार्य, गुरु, उपाध्याय की व्याख्या। माता-पिता गुरु के पूजन का महत्त्व । ब्रह्मचारी के नियम व्रत तथा आचरण ४. विवाहसंस्कार : १४२० आठ प्रकार के विवाहों की विधि का वर्णन १-१२ १-१२ १-१५ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - ७ १-३४ शङ्खस्मृति ६९ ५. पञ्चमहायज्ञाः गृहामिणां प्रशंसा-अतिथि वर्णनम् : १४२१ पञ्च महायज्ञ गृहस्थी के नित्य कर्म बताये हैं १-१८ ६. वानप्रस्थधर्मनिरूपणं संन्यासधर्मप्रकरण : १४२२ वानप्रस्थाश्रम की आवश्यकता और उसके धर्म का निरूपण ७. प्राणायामलक्षणं धारणा-ध्यानयोगनिरूपण : १४२५ ब्रह्माश्रमी के संन्यास की विधि । आत्मज्ञान, प्राणायाम, ध्यान, धारणादि योग का निरूपण ८. नित्यनैमित्तिकादिस्नानानां लक्षण : १४२८ षट् प्रकार के स्नान-नित्य स्नान, नैमित्तिक स्नान, क्रिया स्नान; मलापकर्षण स्नान, क्रियाङ्ग स्नान का समय तथा विधि १-१६ ६.क्रियास्नानविधि : १४२६ क्रिया स्नान के मंत्र तथा विधान १-१५ १०. आचमनविधि : १४३१ प्राजापत्य दैवतीर्थादि बताकर आचमन करने की विधि, अंग-स्पर्श तथा सन्ध्या करने से दीर्घायु का होना बताया है १-२१. ११. अघमर्षणविधि : १४३३ अघमर्षण कुष्माण्डी ऋचा तथा पवित्र करने वाले मन्त्रों का विधान १२. गायत्रीजपविधि : १४३४। गायत्री मन्त्र जपने की विधि और माहात्म्य १-३१ १३. तर्पणविधि : १४३७ देवऋषिपितृ तर्पण के मन्त्र एवं विधि १-१७ १४. श्राद्धे ब्राह्मणपरीक्षा : १४३८ पित कार्य में ब्राह्मण की परीक्षा करके निमन्त्रण करना तथा उनका किन-किन मन्त्रों से पूजन करना चाहिये इसका वर्णन किया है १-३३ १५. जननमरणाशीचवर्णन : १४४२ जन्म मरण में अशौच कितने दिन का और किस वर्ण को होता है १-२५ १६. द्रव्यशुद्धिः, मृन्मयादिपात्रशुद्धि : १४४४ पात्रों के शुद्ध करने की विधि तथा अपने अंगों को शुद्ध करने का विधान बताया है १-२४ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० शङ्खस्मृति १७. क्षत्रियाविवधेयवाद्यपहारे-व्रतवर्णनम् : १४४७ पापों के प्रायश्चित्त । जिस पाप में जो प्रायश्चित्त कहा है उनकी विधि । पराक व्रत, कृच्छ व्रत तथा चान्द्रायणादि गोश्चक्षीरं विवत्सायाः संधिम्याश्च सपा पयः । संधिन्यमेध्यं भक्षित्वा पक्षन्तु व्रतमाचरेत् ॥ २६ ॥ क्षीराणि यान्यभक्ष्याणि तद्विकाराशने बुधः । सप्तरात्रं व्रतं कुर्याद्यवेतच्चपरिकीर्तितम् ॥१०॥ १८. अघमर्षण, पराक, वारणकृच्छ, अतिकृच्छ, सान्तपनादिवतः१४५३ अघमर्षण, पराक शान्तपन तथा कृच्छ व्रत की विधि १-१६ लिखितस्मृति १. इष्टापूर्तकर्मवृषीत्सर्गगयापिण्डदानषोडश श्राद्धानांवर्णनम् : १४५५ इष्ट के करने से स्वर्ग प्राप्ति और पूर्त से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया है । वापी, कूप, तड़ाग, देव मन्दिर तथा पतितों का जो उद्धार करें उसे पूर्त तथा अग्निहोत्र वैश्वदेवादि कार्य करें उसे इष्ट कहते हैं । इष्टापूत कर्म का विधान तथा लक्षण बताया है। गङ्गा में अस्थि प्रवाह का माहात्म्य तथा एकोद्दिष्ट श्राद्ध का वर्णन, श्राद्ध में भोजन करने वालों के नियम तथा नवश्राद्धों का वर्णन एवं अशीच वर्णन तथा चाण्डाल के जल पान का निषेध शङ्खलिखित स्मृति १. वैश्वदेवमकृत्ववमुञानस्यकाकयोनिवर्णनम् : १४६४ बलि वैश्वदेव, अतिथि पूजन का महत्व बताया है । परान्नं परवस्त्रं च परयानं परास्त्रियः । परवेश्मनि वासश्च शक्रस्यापि श्रियं हरेत् ।। सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया गया है १-३२ १-६६ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसिष्ठ स्मृति वशिष्ठ स्मृति १. धर्मजिज्ञासाधर्माचरणस्यफलधर्म लक्षणं : १४६८ धर्म का लक्षण, आर्यावर्त की सीमा, देश धर्म, कुल धर्म का वर्णन । महापाप पाप तथा उपपातकों का वर्णन । ब्राह्म, दैव, आर्ष और प्राजापत्य विवाह का वर्णन | सब वर्णों को ब्राह्मण से उपदेश ग्रहण करने की विधि २. ब्राह्मणादीनां प्रधानकर्माणि कृषिधर्म निरूपण: १४७१ द्विजत्व की परिभाषा तथा आचार्य की श्रेष्ठता बताई है । ब्राह्मण के षट् कर्म का निरूपण, गुरु की आज्ञा पालन, प्रत्येक वर्ष की अपनी-अपनी वृत्ति का वर्णन । धन अन्नादि की वृद्धि की सीमा और धन वृद्धि पर ब्राह्मण, क्षत्रिय को निषेध बताया है ३. अश्रोत्रियादीनां शूद्रसधर्मस्वमाततायिवध वर्णन : १४७५ ब्राह्मण को वेद पढ़ना आवश्यक । बिना वेद विद्या के अन्य शास्त्रों का पढ़नेवाला ब्राह्मण शूद्र कहलाता है । धर्माधर्म निर्णेता वेदज्ञ हो । वेदज्ञ को ही दान देना । आततायी के लक्षण । आचमन कब-कब करना चाहिए। भूमि में गड़े हुए धन के सम्बन्ध में भूमि शोधन एवं पात्र शोधन का वर्णन ४. मधुपर्कादिषु - पशुहिंसनवर्णनम् : १४८० ब्राह्मणादि वर्ण जिस प्रकार वेदों में बताये हैं उनका विशदीकरण । मधुपर्क का विधान, अशौच क्रिया के नियम, अशौच काल का वर्णन ५. आत्रेयी धर्म वणनम् : १४८२ प्रथम स्त्री का कर्तव्य वह अपनी शक्ति का ह्रास न होने दे एवं स्वतन्त्र न रहे, पिता, पति तथा पुत्रों की देख-रेख में रहे । रजस्वला काल में रहन-सहन तथा इन्द्र ने पाप देने के अनन्तर स्त्रियों को जो वरदान दिया उसका दिग्दर्शन । १०१ १-४५ १-५५ १-६४ १-३१ १-१६ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-१७ वसिष्ठ स्मृति ६. आचारप्रशंसा, होनाचारस्यनिन्दावर्णनम् १४८४ सांस्कृतिक जीवनीवाले मनुष्य के आचार तथा रहन-सहन की विधि १-४० ७. ब्रह्मचारिधर्म १४८७ ब्रह्मचारी के धर्म का वर्णन १-१२ ८. गृहस्थधर्म १४८८ गृहस्थी के आचार एवं रहन-सहन का वर्णन ६. वानप्रस्थधर्म १४६० वानप्रस्थी के धर्म का वर्णन १०. यतिधर्म १४६० यति धर्म संन्यासाश्रम सबका त्याग करे किन्तु वेदों का त्याग न करे । यथा सन्यसेत्सर्वकर्माणि वेवमेकं न संन्यसेत् । एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामः परन्तपः ।। भिक्षा लेने में हर्ष विषाद त्याग दे ११. वैश्वदेवातिथिश्राद्धादीनांवर्णनम् १४६२ प्रथम अर्घ्य अर्थात् पूजा के योग्य ऋत्विग, कन्या का दान लेने वाला वर, राजा, स्नातक, गुरु आदि तथा श्राद्ध विधि का वर्णन और ब्रह्मचारी के नियम बताये हैं १-५६ १२. स्नातकवतं, वस्त्रादिधारणविधि १४६७ स्नातक के व्रत एवं आचार का वर्णन किया है १-४५ १३. उपाकर्मविधिवेदाध्ययनस्यानध्याय निरूपणम १५०० उपाकर्म की आवश्यकता तथा विधान । ऋत्विम् आचार्य के आतिथ्य करने के लिये घर पर पधारने पर सत्कार करने की आवश्यकता बताई है। १४. चिकित्सकादीनामन्नभोजने निषेध १५०३ अभोज्य अन्न विवाहादि यज्ञ में यदि काक आदि से अन्न दूषित भी हो जाय वहां पर वह अभक्ष्य नहीं है १-२४ १-३७ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसिष्ठ स्मृति १५. दत्तकप्रकरण १५०६ दत्तक पुत्र के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है। १६. व्यवहारविधि १५०८ राजा मन्त्री की संसद् का वर्णन, साक्षी के लक्षण, का दण्ड तथा असत्य कहने पर पाप बताया है । १७. पुत्रिणां प्रशंसावर्णनम् १५१० पुत्र के होने से पिता पितृऋण से छुटकारा पा जाता है । पुत्रवान् को स्वर्गादि लोक प्राप्ति, क्षेत्रज पुत्र गर्भाधान किया है उसका पुत्र है जिसने असत्य साक्षी एक पिता के कई पुत्र हों उनमें यदि एक भाई के भी पुत्र हैं तो सब भाई पुत्रवाले माने जाते हैं इसी प्रकार किसी के तीन चार स्त्री हो उनमें यदि एक स्त्री के भी सन्तान हो जाय तो सब पुत्रवती मानी जाती है । दायाद अदायाद सन्तति का वर्णन । स्वयमुपागत पुत्र के सम्बन्ध में हरिश्चन्द्र अजीगर्त का इतिहास तथा शुनशेप के यूपबन्धन का इतिहास जैसे वह विश्वामित्र का पुत्र हुआ । दाय विभाग का वर्णन, दायाद ६ पुत्र एवं अदायाद ६ पुत्रों का वर्णन १८. चाण्डालादिजात्यन्तरनिरूपणम् । १५१६ चाण्डालादि जाति प्रतिलोम से बताई है, जैसे- ब्राह्मणी माता शूद्र पिता से जो सन्तान हो वह चाण्डाल होती है । इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी जाति में विवाह करे उससे जो सन्तान होगी वह धार्मिक तथा मनुष्यता के व्यवहारवाली होगी यह बताया गया है १६. राजधर्माभिधान वर्णनम् १५१७ राजा को सब वर्ग के धर्म की रक्षा करनी चाहिए अपराधियों को बिना दण्ड दिये छोड़ने से राजा को पापी कहा है २०. प्रायश्चित्तप्रकरणवर्णनम् १४२० विभिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त भ्रूणहत्या और ब्रह्मघ्न के प्रायश्चित्त का वर्णन ܕܘܐ १-१६ १-३२ १-३८ ३६-७६ १-१६ १-३४ १-५२ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܕ݁ܳܘܪ १-१० वसिष्ठ स्मृति २१. ब्राह्मणोगमने शूद्रवश्यक्षत्रियाणां प्रायश्चित्त १५२४ प्रतिलोम विवाह में उग्र प्रायश्चित्त, यथा शूद्र पुरुष ब्राह्मणी के साथ सहवास करे उस शूद्र को अग्नि में जला देना । इस प्रायश्चित्त के देखने से विचार होता है शिष्ट शान्ति प्रधान धर्म प्रवक्ता होने पर भी प्रतिलोम विवाह पर अपने उम्र विचार को प्रकट करते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि प्रतिलोम सन्तान से संस्कृति का नाश हो जाता है। संस्कृति के नाश से राष्ट्र का नाश अवश्यम्भावी है १-३६ २२. अयाज्ययाजनादि प्रायश्चित्त १५२७ यज्ञ करने में जिन असंस्कृत पुरुषों का अधिकार नहीं है और लोभवश जो ब्राह्मण उनसे यज्ञ करावें उस यज्ञ से सृष्टि में उत्पात होने के कारण उन ब्राह्मणों को प्रायश्चित्त करने को लिखा है २३. ब्रह्मचारिणः स्त्रीगमने प्रायश्चित्त १५२८ ब्रह्मचारी को स्त्री समागम होने से पातित्य का प्रायश्चित । भ्रूण हत्या, कुत्ता के काटने पर, पतित चाण्डाल से सम्बन्ध करने पर कृच्छ्र व्रत, चान्द्रायणादि व्रतों की व्यवस्था बताई है २४. कृच्छातिकृविधिवर्णनम् : १५३२ कृच्छातिकृच्छ चान्द्रायण की परिभाषा २५. रहस्यप्रायश्चित्तवर्णनम् : १५३२ अविख्यापितदोषाणां पापानां महता तपा। सर्वेषां चोपपापानां शुद्धि वक्ष्याम्यशेषतः ।। गुप्त रखे हुए जो अपने पाप हैं उन रहस्य पापों का पृथक् पृथक् प्रायश्चित्त बताए हैं १-१२ २६. साधारणपापक्षयोपायविधान :१५३४ । प्राणायाम, सन्ध्या, जप, सावित्री जप, पुरुष सूक्त आदि से पापों के क्षय होने का वर्णन किया है । धर्मशास्त्र के पढ़ने में पापक्षय होता है ऐसा बताया है १-४३ १-८ १-२० Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वशिष्ठ स्मृति २७. वेदाध्ययनप्रशंसा तथा आहारशुद्धिनिरूपण : १५३६ वेदरूपी अग्नि से पाप राशि नष्ट होती है इत्यादि का वर्णन तथा वेद पढ़ने की प्रशंसा एवं आहार शुद्धि का वर्णन बताया है १-२१ २८. स्वयंविप्रतिपन्नादीनां दूषितस्त्रीणांत्यागाभावकथनम् : १५३८ बलात्कार से उपभुक्त स्त्री त्याज्य नहीं होती है यथा स्वयं विप्रतिपन्ना वा यदिवा विप्रवासिता । बलात्कारोपभुक्ता वा चोरहस्तगताऽपिवा ॥ न स्याज्या दूषितानारो नास्यास्त्यागो विधीयते । पुष्पकालमुपासीत ऋतुकालेन शुध्यति ॥ स्त्री का त्याग ( तलाक) करना स्मृति विरुद्ध है । शतरुद्रिय, अथर्वशिर, त्रिसुपर्ण, गोसूक्त और अश्वसूक्त के पाठ करने से पापों से मुक्त हो जाता है । २६. दामादीनां फलनिरूपणवर्णनम् गोदान, छत्रदान, भूमिदान, पादुका दान, विविध प्रकार के दान तथा मौन व्रत का माहात्म्य ३०. प्राणाग्निहोत्रविधि : १५४२ ब्राह्मण भोजन कराने का माहात्म्य तथा प्राणाग्निहोत्र विधि का वर्णन किया है। श्रौशनस संहिता अनुलोमप्रतिलोमजात्यन्तराणांनिरूपणवर्णनम् : १५४४ अनुलोम विवाह की सन्तान तथा प्रतिलोम सन्तान की जातियों का वर्णन । सूत, वेणुक, मगध, चाण्डाल आदि जाति और इन के लोम विलोम जाति का विस्तार तथा उनकी वृत्ति एवं कार्य का वर्णन आया है १०५ १-२२ १-२२ १-११ १-५१ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औशनस स्मृति प्रौशनस स्मृति १. ब्रह्मचारिणांक्रमागतकर्तव्यवर्णनम् : १५४९ इस अध्याय में शौनकादि ऋषियों ने भार्गव को विनम्र भाव से प्रणाम कर धर्मशास्त्र का निर्णय पूछा। उत्तर में औशनस ने सांस्कृतिक जीवन का स्तर विधिवत् उपनयन वेदाध्ययन से प्रारम्भ कर मनुष्य के आचरण का चित्रण वैज्ञानिक भित्ति पर किया जिस प्रकार के संस्कृत जीवन से मनुष्यता का सच्चा विकास हो जाए १-६४ २. ब्रह्मचारिप्रकरण शौचाचारवर्णनम् : १५५६ किस किस समय आचमन कर शुद्ध होना चाहिए यहां से प्रारम्भ कर ब्रह्मचारी के सम्पूर्ण कर्म शौचाचार ब्रह्मचारी की शिक्षा पद्धति का सुचारु निरूपण किया है। ३. ब्रह्मचारिप्रकरणे शौचाचारवर्णनम् विद्या पढ़ने की विधि, गुरु के प्रति व्यवहार, ब्रह्मचारी के धर्म, वेदाध्ययन की आवश्यकता स्वाध्यायी ब्रह्मगति को प्राप्त करता है। भोजन की विधि, पञ्च प्राणाहुति की विधि, प्रातः कृत्य का विधान, पिण्ड दान का माहात्म्य बताया है। अमावास्या अष्टका आदि श्राद्धकाल, पात्र ब्राह्मणश्राद्ध काल, अस्थि संचयन, गया श्राद्ध माहात्म्य किस अन्न से पितरों की कितने काल तक तृप्ति होती है । श्राद्ध में किस किस अन्न को वजित किया है। पिण्डोदक नवश्राद्ध आदि का विस्तृत वर्णन किया है १-१४७ ४. श्राद्धप्रकरणवर्णनम् : १५७४ श्राद्ध में कैसे ब्राह्मणों को आमन्त्रण करना तथा उनके लक्षण । मूर्ख ब्राह्मणों को भोजन कराने पर पितरों का पतन आदि का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है ५. श्राद्धप्रकरणवर्णनम् : १५७८ पिण्डदान विधि और उसके मन्त्र विस्तार से बताए गए हैं १-६६ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-६१ औशनस स्मृति ६. अशौचप्रकरणवर्णनम् : १५८७ सूतक पातक अशीच कितने दिन का किसको होता है । सपिण्डता, सगोत्रता, समानोदक कितनी पीढ़ी तक है तथा सद्यः शौच कब होता है एवं पातक सूतक का वर्णन है ७. गृहस्थानांप्रेतकर्मविधि : १५६१ प्रेत क्रिया प्रथम दिन से द्वादश दिवस तक का वर्णन किया है ८.प्रायश्चित्तप्रकरणवर्णनम् : १५६६ महापापों का प्रायश्चित्त अनेक प्रकार के पाप कामज क्रोधज अभक्ष्यादि पापों के पृथक् पृथक् प्रायश्चित्त विधान १-२३ १-२४ -- - बृहस्पति स्मृति दानफलमहत्ववर्णनम् : १६१० इन्द्र ने शत यज्ञ समाप्त कर गुरु बृहस्पति से दान माहात्म्य एवं उत्कृष्ट दान पूछा । उत्तर में गुरु बृहस्पति ने सुवर्ण दान और भूमिदान का माहात्म्य बताया किन्तु भूमिदान सुपात्र विद्यावान् तपस्वी ब्राह्मण को ही देना बताया, अपात्र (मूर्ख अतपस्वी) को देने से पाप भी बताया है - - १-८१ लघुव्यास स्मृति १. स्नान तथा सन्ध्याविधि : १६१८ प्रात:काल ब्राह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए । स्नान के पूर्व जिन वृक्षों के दातौन करने हैं उनका नाम तथा सूर्योपस्थान सन्ध्या प्रतिदिन करने का आदेश, बिना सन्ध्या किए जो कुछ पूजा दान करे वह निष्फल होता है Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ वेदव्यास स्मति २. कर्तव्यकर्म, शरीरशुद्धि, नित्यकर्म, पञ्चमहायज्ञ तथा भोजन आदि अनेक प्रकरणवर्णनम् : १६२६ नित्यकम का विधान, देव यज्ञ, पितृ यज्ञादि, पञ्च यज्ञ, जप करने की विधि तथा जपमाला कैसी और किस वस्तु की होनी चाहिए यह बताया गया है। तीर्थस्नान एवं अघमर्षण सूक्त का माहात्म्य । शिवपूजन मन्त्र, वैश्वदेव कर्म भूतबलि, अतिथि का पूजन, भोजन करने का नियम,काल, ग्रहण काल में भोजन करने का निषेध, शयन का नियम, कैसी शय्या होनी चाहिए तथा किस ओर सिर करना इत्यादि मानवाचार का विशदीकरण किया गया है १-९२ वेदव्यास स्मृति १. धर्माचरणदेशप्रयुक्त-वर्ण-षोडशसंस्कारवर्णनम् : १६३१ वण विभाग अनुलोम प्रतिलोमों की भिन्न-भिन्न जाति की संज्ञा उनके कर्म गर्भाधानादि संस्कार यज्ञोपवीत धारण काल जाति परत्व एवं ब्रह्मचारी के व्रत २. विवाहविधि, गृहस्थधर्म, स्त्रीधर्माभिधान आदि यदि स्नातक द्वितीयाश्रम (गृहस्थाश्रम) में जाना चाहे तो विधिवत् ___ सवर्ण कन्या के साथ विवाह करे अन्य से नहीं । पुरुष विवाह करने पर ही पूर्ण शरीरधारी होता है स्त्री के कर्तव्य का वर्णन आया है, यथा___ पत्यः पूर्व समुत्थाय देहदि विधाय च। उत्थाप्य शयनाद्यानि कृत्वा वेश्मविशोधनम् ॥ पति के जागने से प्रथम शयन से उठकर घर की शुद्धि, वस्त्रादिकों को यथास्थान में रखे १६-४१ १-१८ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ४२-५७ १-२० वेदव्यास स्मृति पुरुष का कर्तव्य स्त्री के प्रति “गच्छेद्युग्मासुरात्रिषु" इत्यादि । यह __ भारतीय संस्कृति का नियम प्रत्येक गृहस्थी को आदरणीय एवं माचरणीय है ३. सस्नानावि, तर्पण, पाकयज्ञादिविधि गृहस्थी के नित्य नैमित्तिक काम्य कर्मों का निर्देश तथा उषाकाल में जागकर कर्म में प्रवृत्त होने की विधि । सन्ध्या कर्म, पितृ तर्पण, वेदाध्ययन, धर्मशास्त्र इतिहास को प्रातःकाल पढ़ने का विधान पाकयज्ञ विधान, दान का माहात्म्य, गुणवान् को श्राद्ध में भोजन कराना, वेदादि शास्त्र के ज्ञाता को ही ब्राह्मणत्व में हेतु बताया है। एक पंक्ति में सबको समान भोजन देना, शूद्रान्न भक्षण का दोष ४. गृहस्थाश्रमप्रशंसापूर्वकतीर्थधर्मवर्णनम् १६४८ सांस्कृतिक जीवनी का वर्णन, माता पिता ही परम तीर्थ है। दान के विषय में यथा - ययाति यवश्नाति तदेव धनिना धनम् । अन्य मतस्य क्रीडन्ति वारैरपि धनैरपि ॥ दान देना तथा धन का भोग करना यही अपना धन समझो । धन होने पर दाता भोक्ता बनो यह धार्मिक नैतिक अनुशासन बताया है। पढ़े हुए पुरुष का जीवन सफल और अनपढ़ का जीवन निरर्थक है। आचार्य आदि की परिभाषा, सुपात्र को दान देने से ही वह सफल होता है २१-७१ १-७२ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० देवल स्मृति . देवल स्मृति प्रायश्चित्तवर्णनम् १६५५ समुद्र तट पर ध्यानावस्थित देवल से ऋषियों ने पूछा कि महाराज ! म्लेच्छों के साथ जिनका सम्पर्क हो गया है अर्थात् जो पुरुष बलात् या स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर चुका है उसको क्या करना चाहिये जिससे वह पुनः अपनी जाति में पावन हो जाय । इसके उत्तर में ऋषि देवल ने उन सबका प्रायश्चित्त विभिन्न प्रकार से बताया प्रारम्भ में अपेय पान अभक्ष्य भक्षण से सब प्रकार के सांसर्गादि पातित्य कर्मों में पृथक्-पृथक् प्रायश्चित्त कर सबकी शुद्धि बताई है । प्रायश्चित्तों के करने पर अन्त में गङ्गा स्नान से शुद्धि बताई है । इस स्मृति में जाति शुद्धि, देह शुद्धि और समाज शुद्धि पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है प्रजापति स्मृति इस स्मृति में एक ही श्राद्ध कर्म का पूर्णाङ्ग पूर्ण विधि से वर्णन किया गया है । शुक्राचार्य के कथन से श्राद्धकल्प में उथल पुथल हो गई थी । श्राद्ध कर्म के न करने से द्विजाति बलहीन और राक्षस बल हरण करने वाले हो गये थे । अतः श्राद्ध कल्प पर प्रजापति श्राद्ध के सम्बन्ध में श्राद्ध के भेद, श्राद्ध विधि, श्राद्ध के मन्त्र सम्पूर्ण कहे हैं । इस स्मृति के अध्ययन से श्राद्ध कर्म की आवश्यकता तथा सम्पूर्ण विधि मालूम हो जायगी। श्राद्ध के नियम, श्राद्ध काल, आभ्युदयिक श्राद्ध का माहात्म्य, श्राद्ध की सामग्री, श्राद्ध में पुण्य पाठ, श्राद्ध करने से पितरों की तृप्ति एवं श्राद्धकर्ता दीर्घायु, पुत्रवान्, धनवान, ऐश्वर्यवान् होता है । १-१६८ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाघ्वाश्वलायन स्मृति लाघ्वाश्वलायन स्मृति १. आचारप्रकरणवर्णनम् १६८३ आश्वलायन गृह्यसूत्र के निर्माता भी हैं । इस स्मृति में शंख, औशनस, व्यास और प्राजापत्यादि स्मृतियों की रीति पर व्यवहार प्रकरण का स्थान नहीं है केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आचार का ही विस्तृत वर्णन है । इससे इन स्मृतियों की प्राचीनता का अनुमान होता है । यथा"धर्मेकताना पुरुषा यदासन् सत्यवादिनः " जब जनता धर्म परायण रही उस समय सब सत्यवादी होते थे । इस कारण व्यवहार अर्थात् दण्डदापन राजशासन विधि की आवश्यकता न होने से व्यवहार प्रकरण का विस्तार नहीं रखा गया है । इस अध्याय में मुनियों ने आश्वलायन आचार्य से द्विजातियों के धर्म कहकर मनुष्यों के सांस्कृतिक जीवन के आचार पर प्रश्न किया, साथ ही यह बताया कि इस प्रकार के आचरण करनेवाले मनुष्य स्वर्गगामी होते है । द्विज शब्द यहां पर मनुष्य शब्द का वाचक 1 प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठना, शौचाचार एवं स्नान के मन्त्रों का वर्णन किया है ( १-३६) सूर्यार्ध्य, सायं प्रातः और मध्याह्न संध्या तथा सूर्योपस्थान की विधि अग्निहोत्र की विधि तथा स्त्री के साथ ही अग्निहोत्र कर्म हो सकता है वेदाध्ययन की विधि र्पण विधि द्ध कर्म, बलि वैश्वदेव, हन्तकार एवं श्राद्धकाल का वर्णन ञ्च महायज्ञ, मधुपर्कं विधान, वैश्वदेव तथा काशी में शरीर त्याग से मुक्ति का होना बताया है १११ ४०-६८ ६६-७२ ७३-६० ६१-११३ ११४-१४२ १४३-१८६ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ लाध्वाश्वला २. स्थालीपाकप्रकरणम् : १७०३ इस सम्पूर्ण अध्याय में स्थालीपाक यज्ञ का सांगोपांग विधान है। जो सामयिक गृहस्थी होते हैं उनको स्थालीपाक यज्ञ के पूर्व दिन पूर्णमासी को प्रायश्चित्त कर संकल्प करना चाहिए कि मैं कल स्थालीपाक यज्ञ करूंगा। अन्वाधान कर स्थालीपाक यज्ञ की एक हाथ चौरस वेदी बनाकर गोबर से लेपन कर रेखोल्लेखन, प्रोक्षण कम, अग्निस्थापन, अग्निपूजन, ध्यान, परिस्तरण, प्रोक्षणी पात्र, उक् चमस, आज्य पात्र, स्रक स्र व स्थापन, समिधाहरण आदि सम्पूर्ण विधि लिखी है। १-८० ३. गर्भाधानप्रकरणम् : १७०८ गर्भाधान की विधि का वर्णन किया है १-१६ ४. पंसवनानवलोभनसीमन्तोन्नयनप्रकरण : १७१० पुंसवन सीमन्त कर्म की विधि तथा समय का वर्णन है १-१६ ५. जातकर्मप्रकरण : १७१२ जातकर्मसंस्कार की विधि ६. नामकरणप्रकरण १७१३ नामकरण की विधि और नाम किस अक्षर से किस बालक का करना इसका निर्णय लिखा है। कुमार के कान में मन्त्र जप कर पिता उसके नाम को कहे ७. निष्क्रमणप्रकरण : १७१४ चतुर्थ मास में निष्क्रमण कर्म लिखा है ८. अन्नप्राशनप्रकरण : १७१५ छठे महीने में अन्नप्राशन की ब्यवस्था बताई है ६. चौल (चूड़ाकरण) कर्मप्रकरण १७१५ चूडाकर्म संस्कार तृतीय वर्ष में करने का विधान । चूडाकर्म से विवाह पर्यन्त लौकिकाग्नि में हवन करने का विधान बताया है १-२२ १०. उपनयनप्रकरण : १७१८ उपनयन संस्कार की विधि । ब्राह्मण कुमार का अष्टम वर्ष में । उपनयन संस्कार, मौजी कर्म, मेखला धारण, गायत्री उप १-५ १-५ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाश्वाश्वलायन स्मृति ११३ १-१७ १-७ देश की विधि, स्विष्ट कृत, होमादि, उपनयन संस्कार की पूर्ण विधि बताई है ११. महानाम्न्यादिवतत्रयप्रकरण : १७२४ उपनयन संस्कार के अनन्तर एक वर्ष होने पर उत्तरायण में महा नाम्नी व्रत का विधान । द्वितीय वर्ष में महाव्रत, तृतीय वर्ष में उपनिषद् व्रत ये तीन व्रत ब्रह्मचारी को उपनयन संस्कार के अनन्तर तीन वर्ष के भीतर करने चाहिए १२. उपाकर्मप्रकरण : १७२५ उपाकर्म का विधान श्रावण के महीने में हस्त नक्षत्र में करने का निर्देश किया है १३. उत्सर्जनप्रकरण : १७२७ उत्सर्ग-षण्मास (छ मास) में उत्सर्ग कर्म वेद जो पढ़े हैं उनकी पुष्टि के लिए उत्सर्ग कर्म करे १४. गोदानादित्रयप्रकरण : १७२८ गोदान कर्म में जो सोलहवें वर्ष की अवस्था में उपनयन के अनन्तर होता है चोल कर्म की रीति पर हवन कर ब्रह्मचारी को वस्त्रभूषण धारण करने की विधि बताई है १५. विवाहप्रकरण : १७२६ विवाह का विधान (गृहस्थाश्रम) कन्या के विवाह की रीति पद्धति का वर्णन । ब्रह्मचर्याश्रम से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की विधि । विवाह संस्कार कर बधू को वर अपने घर में लावे उस समय के आचार यज्ञादि का विधान १६. पत्नीकुमारोपवेशनप्रकरण : १७३७ धर्म कार्यों में पत्नी को वाम भाग में, आशीर्वाद के समय दक्षिण भाग में बैठाने का विधान है। पुत्रोत्पत्ति में मौजीबन्धन कर्म तक कर्ता उत्तर में एवं पुत्री पुत्र के दक्षिण में बैठे १७. अधिकारिनियमप्रकरण : १७३७ इस अध्याय में पुत्र के संस्कार करने में किस किस का अधिकार कब कब है इसकी विवेचना की गई है .१-८० १-३ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ १८. नान्दीश्राद्धे पितृप्रकरण : १७३८ बाधान काल, सीमन्त, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, उपनयन, महाव्रत, गोदान, संस्कार समावर्तन और विवाहादि सम्पूर्ण मंगल कार्यों में नान्दी श्राद्ध करने का नियम बताया है लावाश्वलायन स्मृति १६. विवाहहोमेपरिवर्ज्यप्रकरण : १७३६ किसी शुभ कार्य में नान्दी श्राद्ध होने के अनम्बर जब तक मण्डप का विसर्जन न हो तब तक सपिण्डता होने पर भी कोई अशुभ कर्म प्रेत कृत्य मुण्डनादि करने का निषेध बताया है २०. प्रेतकर्मविधि : १७४० पुत्र को पिता आदि का प्रेत कर्म, शव दाह आदि प्रेत कर्म करने का विचार । अशौच का निरूपण दिखाकर अन्त में आत्मनिष्ठ को किसी प्रकार का अशौच नहीं लगता है २१. लोकनिन्दाप्रकरण : १७४ε सदाचार भ्रष्ट क्रियाहीन की निन्दा तथा निन्दित कर्म से उत्पन्न सन्तान असंस्कृत है जिनके यहां यजन करने वाले ब्राह्मणों को निन्दित बताया है २२. वर्णधर्मप्रकरण : १७५१ वर्णधर्म - ब्राह्मण की श्रेष्ठता यदि वह वेदज्ञ हो, वेदों का उपदेश कर्ता हो । ब्राह्मण का अपमान करना एवं उससे सेवा कराने में पाप बताया है २३. श्राद्धप्रकरण : १७५३ श्राद्ध कर्म की विधि एवं उसका माहात्म्य | इसे विधि पूर्वक - करने वाले की सब कामना सफल होकर सायुज्य मुक्ति होती है तथा पितरों की प्रसन्नता से वह सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर ज्ञाननिष्ठ होता है २४. श्राद्धोपयोगी प्रकरण १७६४ श्राद्ध करने का माहात्म्य । जो व्यक्ति क्षयाह में भालस्य या प्रमाद से माता पिता का श्राद्ध विधिवत् नहीं करता है उसके १-६ १-६ १-६२ १-१६ १-२४ १-११३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौधायन स्मृति पितर उस सन्तान से जैसे निराश होते हैं वैसे ही वह सन्तान भी अधोगति को प्राप्त होती है । जो माता पिता का विधिवत् अर्थात् श्राद्ध करने की विधि बताई है जैसे योग्य ब्राह्मण श्राद्ध में निमन्त्रित किए जाते हैं उस पूर्ण विधि से जो श्राद्ध करता है उसके पितर तृप्त होते हैं । वह पुरुष आत्मनिष्ठ होकर स्वयं इस संसार से तर जाता है एवं दूसरों को भी तार देता है बौधायन स्मृति १. सशिष्ट धर्म वर्णन बौधायन स्मृति में धर्म की प्रधानता अर्थ की गौणता प्राचीन वैदिकाचार का वर्णन है । इसमें मुख्य तीन प्रश्नों का निर्णय है । प्रथम प्रश्न " उपदिष्टो धर्मः प्रति वेदम्" "तस्यानुव्याक्यास्यामः" "स्मार्तो द्वितीयः" "तृतीयः शिष्टागमः" । "उपदिष्टो धर्मः प्रतिवेदम्” इसकी व्याख्या १२ अध्यायों में क्रमश: वर्णन की गई है । "शिष्टायम" की परिभाषा स्वयं बौधायन ने की है । "विगतमत्सरनिरहंकार कुम्भीधान्या अलोलुपदम्भदर्प लोभमोहक्रोधविवर्जिताः" धर्म का ज्ञान वेदों से होता है । वेद के अभाव में स्मृति ग्रन्थों से शिष्ट पुरुषों द्वारा परिषद् का निर्णय । परिषद् का निर्णय इस प्रकार बताया है चातुर्ये बिकल्पी च अङ्गविद् धर्मपाठकः । आश्रमस्यास्त्रयो विप्राः पर्षदेवा दशावरा ॥ वस्मृत्यादिज्ञान से रहित परिषद् को प्रमाणित नहीं बताया है । यथा- यथा वाममोहस्ती यथा चर्ममयोमृगः । ब्राह्मणश्चानधीयानस्त्रयस्ते नामधारकाः ।। - ११५ १-३१ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौधायन स्मृति उत्तर तथा दक्षिण में जो आचार है उन पर विप्रतिपत्ति और आर्यावर्त की सीमा का वर्णन । यह धर्मशास्त्र यज्ञ संस्कारादि आर्यावर्त ब्रह्मावर्त के लिए ही है २. ब्रह्मचारी धर्म ब्रह्मचारी के नियम अष्टम वर्ष में ब्राह्मण का उपनयन तथा ऋतु परत्व उपनयन काल, वसन्त में ब्राह्मण, ग्रीष्म में क्षत्रिय एवं शरद् में वैश्य का उपनयन समय, मौजी बन्धन, भक्ष्यचर्या एवं ब्रह्मचारी को शिक्षा, अवकीर्णी का दोष, ब्रह्मचर्य का माहात्म्य । धर्म क्या है ? १-५५ ३. स्नातकधर्म धर्म के निर्णय तथा स्नातक के नियम एवं व्रत ४. कमण्डलुचर्याभिधान : १७७५ स्नातक के शौचाचार, कमण्डलु से जल के प्रयोग का विधान एवं रीति बताई गई है १-२८ ५. शद्धिप्रकरण : १७७७ प्रथम प्रश्न के ही प्रसंग में इस अध्याय का वर्णन किया है । शुद्धि का विधान है । यथा अद्भिः शुध्यन्ति गात्राणि बुद्धिर्ज्ञानेन शुध्यति । अहिंसया च भूतात्मा मनः सत्येन शुध्यति, इति ।। यहां से शरीर , बुद्धि, देह और मनकी शुद्धि बताकर यज्ञोपवीत धारण की रीति तथा उसकी शुद्धि पादप्रक्षालनादि, नदी में स्नान की रीति, वस्तु भाण्डादि की शुद्धि, अविज्ञात भौतिक जीवों की षट् प्रकार की शुद्धि, आसन, शय्या और वस्त्र की शुद्धि के सम्बन्ध में, शाक, फल, पुष्पों की प्रक्षालन से ही शुद्धि बताई है। अशौच में सपिण्डता को लेकर दस दिन में शुद्धि होती है । कुत्ते के काटने पर प्राणायामादि से शुद्ध एवं अभक्ष्य का वर्णन । गाय का दूध गाय से सूतने पर दस दिन के अनन्तर शुद्ध होता है । इस प्रकार सब बातों की शुद्धि करनी धर्म का अङ्ग बताया है १-१६३ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बौधायन स्मृति ६. यज्ञाङ्गविधिनिरूणम् तथा मूत्रपुरोषाधु पहतद्रव्याणांशुद्धि वर्णनम् : १७८७ यज्ञ में जिन-जिन द्रव्यों की आवश्यकता होती है उनका निरूपण तथा यज्ञपात्र एवं वस्त्रादिकों की शुद्धि ।। ७. पुनः यज्ञाङ्गविधिवर्णनम् : १७६० आभ्यान्तर तथा बाह्य दो प्रकार के यज्ञ के अङ्ग बताये हैं। आभ्यन्तर अङ्ग, बाह्य ऋत्विगादि इस प्रकार यज्ञाङ्ग का संक्षिप्त निदर्शन और शुद्धि बताई है। १-३० ८. ब्राह्मणादिवर्णनिरूपणम् : १७६२ चातुर्वण्यं निरूपण, अनुलोमज की पृथक्-पृथक् जाति अनुलोमज, प्रतिलोमज की व्रात्य संज्ञा कही गई है। इस कारण व्रात्यता होने से उनको सावित्री उपदेश का अनधिकार कहा गया है १-१६ 8. शङ्करजातिनिरूपणम् : १७६३ रथक रादि वर्णशङ्कर जाति की परिगणना कर इनको ब्रात्य कहा है १-१६ १०. राजधर्म : १७६४ वर्णानुकुल मनुष्यों को वृत्ति देना, कर लगाना, ब्रह्महत्यादि महा पापों का प्रायश्चित्त, पाप के निर्णय में साक्षिता देखे, मिथ्या साक्षी को पाप तथा दण्ड एवं प्रायश्चित्त व्रत १-४० ११. अष्टविवाहप्रकरण : १७६७ आठ प्रकार के विवाहों की परिभाषा । उन विवाहों में चार शुद्ध और चार अशुद्ध । जैसा विवाह वैसी ही सन्तान । आसुरादि से अशुद्ध सन्तान । द्रव्य देकर ग्रहण की हई स्त्री पत्नी संज्ञा नहीं पाती है उसके साथ यज्ञादि कर्म नहीं हो सकते हैं १-२२ अनध्यायकाल : १७६८ अनध्याय काल अष्टमी, चतुर्दशी आदि बताई है २३-४३ १२. पूर्वोक्तानेकविधिप्रकरण : १७६६ संक्षिप्त से धर्म का निर्णय । १-२२ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ प्रायश्चित्तप्रकरण : १८०० (स्मार्तो धर्मः) इसके निर्णय में प्रथम अध्याय में प्रायश्चित्त विधान बताया है । भ्रूण हत्या करने वाले को १२ वर्ष तक प्रायश्चित्त इसी प्रकार ब्रह्म हत्या करने वाले को भी द्वादश वर्ष का प्रायश्वित्त और मातृगामी को तप्त लोह में लेटाना तथा लिङ्गच्छेद प्रायश्चित्त इत्यादि पञ्च महापातकियों का पृथक्-पृथक् प्रायश्चित्त । ब्रह्मचारी स्त्री प्रसंग करे उसे अवकीर्णी कहकर उससे गर्दभ यज्ञ करावे इस प्रकार महापातकियों के प्रायश्चित्त का निरूपण किया गया है बौधायन स्मृति वायविभागवर्णनम् दाय विभाग, स्त्रियों की शक्ति को किसी प्रकार क्षीण न होने देना इसके लिए पति, पुत्र एवं पिता का उत्तरदायित्व, अगम्या जो स्त्री जिस पुरुष को है उसका निरूपण । स्नातक के व्रत तथा आचार, पूज्यजनों से कैसा व्यवहार करना चाहिए सन्ध्योपासनाविधि : १८१७ सन्ध्या कर्म की विधि और कर्तव्यता १-६६ १-६६ मध्याह्नस्नानविधि तथा ब्रह्मयज्ञाङ्गतर्पण : १८२० मध्याह्न क्रम से प्रारम्भ कर ब्रह्मयज्ञाङ्ग, अग्नि, प्रजापति, साम, रुद्राणि, दैवत तर्पण विस्तार से निरूपण किया है पञ्चमहायज्ञविधि तथा आश्रमधर्मनिरूपण : १८२७ पांच महायज्ञों की विधि शालीनयायावराणामात्मयाजिनां प्राणहुति व्याख्यानं : १८३० शालीन ययावरों को प्राणाहुति की विधि तथा मन्त्रों का निरूपण श्राद्धाङ्गाग्नौकरणाविविधिनिरूपणम् : १८३३ त्रिमधु, त्रिणाचिकेत, त्रिसुपर्ण, पञ्चाग्नि, षडङ्गवित् ज्येष्ठ सामक स्नातक ये पङ्क्ति पावन बताये हैं । इनके द्वारा श्राद्ध में अग्नि कार्य के विधान का निरूपण किया है १-३० १-२१२ १-४४ १.३० १-३१ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-१६ बोधायन स्मृति सत्पुत्रप्रसंशा : १८३६ सत्पुत्र का वर्णन किया है "पुत्रेण लोकाञ्जयति" अच्छी सन्तान से पिता स्वर्गादि लोक में विजयी होता है "सत्पुत्रमुत्पाद्याऽऽत्मनं तारयति" सत्पुत्र की महिमा कही है संन्यासविधिवर्णनम् : १८३७ संन्यास की विधि-संन्यास का धर्म विस्तार से निरूपण कर इसी के परिशिष्ट १७ सूत्रों में उसका विधान, "शालीन यायावरी" का आचार, संन्यासी के त्रिदण्ड का माहात्म्य बताया है शालीनयायावरादीनांधर्मनिरूपणम् : १८४४ शालीन और यायावरों की वृत्ति तथा धर्म का निरूपण किया है । शाला में आश्रय करने से शालीन एवं श्रेष्ठ वृत्ति के धारण करने से यायावर । इनकी नौ प्रकार की वृत्ति बताई है। जैसे---१. षनिवर्तनी, २. कौद्दाली, ३. कुल्या, ४. संप्रक्षालनी ५. समूहा, ६. पालिनी, ७. शिलोञ्छा, ८. कापोता, ६. सिद्धा इनके अतिरिक्त दशम वृत्ति भी बताई है। आहिताग्नि तथा यायावर की वृत्ति का वर्णन है पग्निवर्तन्यादिवृत्तीनांस्वरूपकथनम् : १८४६ पनिवर्तन्यादि वृत्तियों का स्पष्टीकरण है, षनिवर्तनी, कोदाली आदि का विशदीकरण है तथा शिलोञ्छ वृत्ति की परिभाषा पचमानकापचमानकभेदेनवानप्रस्थस्यद्वैविध्य वर्णनम् : १८४६ दो प्रकार के वानप्रस्थ-पचमानक और अपचमानक के लक्षण तथा उनके धर्म, वन में रहने का माहात्म्य मुगः सहपरिस्पन्दः संवासस्ते(स्त्वे)भिरेव च । तेरेव सदशीवृत्तिः प्रत्यक्ष स्वर्गलक्षणम् ।। ब्रह्मचारिणअभक्ष्यभक्षणेप्रायश्चित्त: १८५१ ब्रह्मचारी को स्त्री के सहवास तथा निषेध पदार्थों के भक्षण से प्रायश्चित्त का निरूपण १-२० १-२५ १-११ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-४० १२० बौधायन स्मृति अघमर्षणकल्पव्याख्यान : १८५२ तीर्थ में जाकर सूर्याभिमुख होकर अघमर्षण सूक्त प्रातः, माध्याह्न और सायं तीन काल में एक सौ बार पाठ करने से ज्ञाताज्ञात उपपातकों से शुद्ध हो जाता है आत्मकृतदुरितोपशमायप्रसृतयावकस्यहवन विधिवर्णनम् : १८५३ दुरित क्षयार्थ एक प्रस्थ यव के हवन का विधान १-२१ कूष्माण्डहोमविधि : १८५५ कूष्माण्डी ऋचा "यद्देवा देव हेऽनं" इत्यादि तीन मन्त्रों से हवन करने से ब्रह्मचारी के स्वप्नदोष आदि प्रायश्चित का विधान है १-२२ चान्द्रायणकल्पभिधान : १८५६ चान्द्रायण कल्प का विधान बताया है अनश्नत्परायणविधिव्याख्यानम् : १८५६ निराहार व्रत या फलहार ब्रत कर जो मन्त्र इसमें लिखे हैं उनसे हवन करने से चक्षु का प्रकाश बढ़ेगा १-२१ याप्यकर्मणोपेतस्थनिष्क्रयार्थ जपाविनिरूपणं : १८६१ अयाज्य याजन जिसका दान नहीं लेना उसका दान लेना इत्यादि कर्मों का प्रायश्चित्त, जप आदि का निरूपण चक्षःश्रोत्रत्वग्वाणमनोव्यतिक्रमादिषप्रायश्चित्त तथा विवाहात्प्राककन्यायारजोदर्शनेदोषविरूपणम : १८६३ प्रकीर्ण प्रायश्चित्तों का वर्णन है, यथा जिस अंग से जो पाप किया गया उनका पृथक् पृथक् प्रायश्चित्त तथा संकीर्ण पापों का - प्रायश्चित्त १-३२ प्रायश्चित्तविधि : १८६७ प्रायश्चित्त की विधि बताई है प्रायश्चित्तविधि : १८६६ छोटे-छोटे पापों का प्रायश्चित्त एवं विधि । अघमर्षण सूक्त तथा - कूष्माण्डी मन्त्रों का प्रायश्चित्त १-२० Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम स्मृति प्रायश्चित्तविधि : १८७० कृच्छ्रशान्तपनादिव्रतविधि १८७१ स्वल्पापराध के प्रायश्चित्त कृच्छ्र, सांतपनादि व्रत की विधि बताई है मृगारेष्टि, पवित्रष्टिश्चवर्णन : १८७५ मृगारेष्टि पवित्ररेष्टि का विधान । अपातक कर्म छोटे व्यवहार वर्जित कर्मों का शोधनार्थ वेदपवित्राणामभिधान : १८७६ पाप कर्म से निवृत होकर पुण्य कर्म में प्रवृत्त होने पर वैदिक मन्त्रों के पाठ से प्रोक्षण गणहोम फलमेतदध्यापनादौफल निरूपण : १८७७ गण होम, अग्नि वायु आदि देवताओं का पूजन तथा स्मृति के पाठ और ज्ञान का माहात्म्य | स्मृति शास्त्र के परिशीलन तत् प्रदर्शित संस्कार सम्पन्नता से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है गौतम स्मृति १. आचारवर्णनम् : १८७६ उपनयन संस्कार का समय तथा उसका विधान और आचारवर्णन २. ब्रह्मचारिधर्मवर्णनम् : १८८१ १२१ १-१० १-३३ १-१० १-१० ब्रह्मचारी के नित्य नैमित्तिक कर्मों का वर्णन और ब्रह्मचारी के नियम | ३. ब्रह्मचारिप्रकरणवर्णनम् १८८३ १-१७ नैष्ठिक ब्रह्मचारी के नियम, व्रत और दिनचर्या । ४. विवाहप्रकरणवर्णनम् : १८८४ विवाह प्रकरण में आठ प्रकार के विवाह और उनके लक्षण । उनमें ४ ब्राह्म, आर्ष, प्राजपत्य और देव ये धार्मिक विवाह हैं इन धार्मिक विवाहों से उत्पन्न सन्तान अपने पूर्वजों का उपकार करती है । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ गौतम स्मृति ५-६ गृहस्थाश्रमवर्णनम् : १८८७ महस्थाश्रम में गृहस्थ के कर्तव्य और गृहस्थाश्रम का वर्णन । ७. आपद्धर्मवर्णनम् : १८८६ आपतकाल में वर्णाश्रमी दूसरे वर्ण के कर्म को भी कर सकता है। ८. संस्कारवर्णनम् : १८८६ संस्कृत जीवन की गरिमा-- बोलोके धृतवतो राजा ब्राह्मणश्च बहुश्रुतस्तयो प्रचतुर्विधस्य मनुष्य जातस्यान्तः सज्ञानाञ्चलन पतनसर्पणामायत्तंजीवनं प्रसूतिरक्षणम संकरोधर्मः। जिसका संस्कार होता है उसमें सभी उदात्तगुणों का आधान होने से ब्राह्मी तनु की प्राप्ति का अधिकार आ जाता है। ६. कर्तव्याकर्तव्यवर्णनम् : १८९० स्नातक गृहस्थ जीवन का प्रवेशार्थी है वह विधि विहित विद्या का साङ्गोपांग अध्ययन कर भविष्य के गुरुतर उत्तरदायित्व को वहन कर आदर्श रूप से कर्तव्य पालन करता हुआ अपना, समाज का राष्ट्र का हित सम्पादन करता है-स्नातक की आदर्श दिनचर्या उसके नियम और आचार का वर्णन । सत्यधर्मा आर्यवत शिष्टाध्यापक शौशिष्टः अतिनिरतः स्यान्नित्यमहिस्रो वुवढ़कारी बमवान शोल एवमाचारो मातापितरौ पूर्वापरान्सम्बन्धान दुरितेभ्यो मोक्षयिष्यन् स्नातकः शश्वब्रह्मलोकान्न आयते । १०. वर्णानांवृत्तिवर्णनम् : १८६३ ब्राह्मणक्षत्रियादि वर्गों की पृथक्-पृथक् आजीविका वृत्ति । ११. राजधर्मवर्णनम् : १८६४ राजधर्म का निर्देशन्यायपूर्वक प्रजापालन राजा का परम धर्म है। १२. विविध पापकरणे दण्डविधानवर्णनम् : १८६६ भिन्न-भिन्न पापकर्म के दण्ड विधि का निरूपण । Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम स्मृति १२३ १३. साक्षीणां विधावर्णनम् : १८९७ साक्षियों का वर्णन । १४. आशौचवर्णनम् : १८६८ आशौच का प्रकरण । १५. श्रावविवेकवर्णनम् : १८६६ श्राद्ध का निर्णय तथा श्राद्ध कर्म में कौन ब्राह्मण पूज्य और कौन अपूज्य है। १६. अनध्यायवर्णनम् : १६०१ वेदादि शास्त्रों के अनध्याय काल का वर्णन । १७. भक्ष्याभक्ष्यप्रकरणम् : १६०२ भक्ष्य एवं अभक्ष्य पदार्थों का निरूपण । नित्यंमभोज्य केशकीटावपन्न रजस्वला कृष्ण शकुनिपदोपहतं भ्रूणध्न प्रेक्षितं गवोपनातं भावदुष्टं शक्तं केवलमवधि पुनः सिद्धं पर्युषितमशाक भक्ष्य स्नेह मांस मधून्यत्सृष्ट-तथाह मनुः गोश्चक्षीरमनिर्दशायाः सतके चा जामहिष्योश्च मेधातिथि भाष्यम् नित्यमाविकमपेयमोष्ट्रमंकशफञ्चस्यन्दिनीयमसू सन्धिनीनांचयाश्चव्यपेतवरसा.. आदि। नोट-पाराशर आदि प्रायः सभी शास्त्रों में इसका वर्णन है। १८. स्त्रीषु ऋतुकाले सहवास प्रकरणम् : १६०३ ऋतुकाल में भार्या के साथ सहगमन की विधि । १६. प्रतिषिद्धसेवनेप्रायश्चित्तमीमांसावर्णनम् १९०४ निषिद्ध वस्तुओं के व्यवहार करने में प्रायश्चित्त का वर्णन । २०. विविधपापानांकर्मविपाकवर्णनम् : १९०६ पृथक्-पृथक् पापों के कर्मफल का विपाक । २१. सर्वपातकेषुशान्तिवर्णनम् : १९०७ सब प्रकार के पातकों में शान्ति कर्म की आवश्यकता । २२. निषिद्धकर्मणाजन्मान्तरेविपाकवर्णनम् : १६०८ निषिद्ध काम करने वाले का जन्मान्तर में कर्म का विपाक दुःख भोग आदि का वर्णन है। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ वृद्धगौतम स्मृति २३. प्रायश्चित्तवनर्णम् : १६०६ पाप कर्मों का दूसरे जन्म में फल और उनका प्रायश्चित्त । २४. महापातकप्रायश्चित्तवर्णनम् : १६११ महापातकियों के प्रायश्चित्त का विधान । २५. रहस्यप्रायश्चित्तवर्णनम् १९१२ गुप्त पापों के प्रायश्चित्त : २६. प्रायश्चित्तवर्णनम् : १९१३ अवकीर्णी और दुराचारी के प्रायश्चित का वर्णन । २७. कृच्छ्व तविधिवर्णनम् : १६१४ कृच्छ और अतिकृच्छ व्रत की विधि का वर्णन । २८. चान्द्रायणव्रतविधिवर्णनम् : १९१६ चान्द्रायण व्रत की विधि ।। २६. पुत्राणांसम्पत्तिविभागवर्णनम् : १६१७ लड़कों को अपने पिता की सम्पत्ति में बंटवारा। --0 ११-१२ १३-२७ वृद्धगौतम स्मृति १. धर्मोपदेश तथा भगवत स्वरूप वर्णनम् : युधिष्ठर का वैशम्पायन के प्रति वैष्णव धर्म के जिज्ञासार्थ प्रश्न जिसके श्रवण करने से पाप दूर हो जाय वैशम्पायन का उत्तर युधिष्ठिर का भगवान् से वैष्णव धर्म की जानकारी के लिए प्रश्न भगवान द्वारा वैष्णव धर्म का माहात्म्य बतलाना और उसका सविस्तार वर्णन २. धर्मप्रशंसावर्णनम् : १९२६ वैशम्पायन का प्रश्न भगवान् ने धर्म का मार्ग बतलाया युधिष्ठर का प्रश्न कि ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्यादि किस गति से यम लोक जाते हैं ? २८-७१ २-१० ११-१३ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धगौतम स्मृति ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य किन-किन कर्मों से स्वर्ग जाते हैं उसका वर्णन युधिष्ठिर का प्रश्न- - शुभ कर्म और अशुभ की वृद्धि और नाश किस प्रकार होता है ? भगवान का शुभ कर्म और अशुभ कर्म के वृद्धि नाश का सविवरण प्रतिपादन ३. दानप्रकरणवर्णनम् : १६३१ युधिष्टिर के प्रश्न -- उत्तम, मध्यम और अधम दान क्या है ? किस दान से उत्तम, मध्यम और अधम की वृद्धि होती है भगवान् ने उत्तम, मध्यम और अधम प्रकार से दान देने का सविस्तार वर्णन किया ज्ञानी को दान देने की बहुत प्रशस्ति गाई है पापकर्म समाक्षिप्तं पतन्तं नरके नरम् । त्रायते दानमप्येकं पात्रभूतेकृते द्विजे ॥ ७६ ॥ बीजयोनि विशुद्धा ये श्रोत्रियाः संयतेन्द्रियाः । श्रुत्वान्नविरला नित्यन्ते पुनन्तीह दर्शनात् ॥ ८४ ॥ स्वयं नीत्वा विशेषेण दानन्तेषां गृहेष्वथ । निधापयेत्तुमभक्ता तद्दानं कोटिसम्मितम् ॥ ८५ ॥ ४. विप्राणां गुणदोषवर्णनम् : १६४० ब्राह्मणों के लक्षण और चारों वर्णों में ब्राह्मण किस प्रकार दूसरों के तारने वाले होते हैं । एतद्विषयक युधिष्ठिर का प्रश्न भगवान ने उत्तम मध्यम और अधम ब्राह्मणों के लक्षण बताये शीलमध्ययनं दानं शौच मार्दवमार्जवम् । तस्माद्वैवान् विशिष्टान्वं मनुराह प्रजापतिः ॥ २४ ॥ भूर्भुवः स्वरिति ब्रह्म यों वेद परमद्विजः । स्ववारनिरतो दान्तः स च विद्वान्सभूसुरः । सन्ध्यामुपासते विप्रा नित्यमेव द्विजोत्तमाः ॥ २५ ॥ १२५ १५-२३ ३३ ३४-४० १-८ १०-८८ १-५ ७-५७ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ते यान्तिनरशार्दूल ब्रह्मलोकमसंशयम् । सावित्रीमात्रसारोऽपि वरोविप्रः सुयन्त्रितः ॥ २६ ॥ नायन्त्रितश्चतुर्वेदी सर्वाशीसर्वविक्रयी । विप्र प्रशंसा विप्रप्रसादाद्धरणीधरोऽहं विप्रप्रसादादसुराञ्जयामि । विप्रप्रसादाच्च सदक्षिणोऽहं विप्रप्रसादादजितोऽहमस्मि ॥ ५७ ॥ वृद्धगौतम स्मृति ५. जीवस्य शुभाशुभकर्मवर्णनम् : १६४६ युधिष्ठिर का प्रश्न - मनुष्य लोक और यमलोक का क्या प्रमाण है ? और मनुष्य किस प्रकार यमलोक से तर जाते हैं ? प्रेतलोक और यमलोक की गति किस प्रकार है ? यमलोक आदि का वर्णन और जीव की गति तथा कौन यमलोक और स्वर्गलोक को जाते हैं । सब प्राणी यमलोक में किस प्रकार दुःख भोगते हुए जाते हैं युधिष्ठिर का प्रश्न - - किस दान के करने से जीव यमलोक के मार्ग से छुटकारा पाकर सुख प्राप्त करते हैं १-६ ५६ - ६१ अनेक प्रकार के दान और वृक्षादि लगाने और जिन श्रेष्ठ कर्मों से मनुष्य स्वर्ग को जाता है उनका विस्तार पूर्वक वर्णन | ६२-१२१ १०- ५८ ६. सर्वदानफलवर्णनम् : १६५८ सम्पूर्ण प्रकार के दानों का फल और कैसे ब्राह्मण को दान देना चाहिए । दानपात्र ब्राह्मण के लक्षण तथा तपस्या का फल १-४ ऐसे ब्राह्मणों के लक्षण जिन्हें दान देने से मनुष्य दुःखों से छूट जात है । यथा ये क्षान्तदान्ताश्च तथाभिपूण जितेन्द्रियाः प्राणिवधेनिवृत्ताः । प्रतिग्रहे सङ्क चिता गृहस्थास्ते ब्राह्मणस्तारयितुं समर्थाः ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ खगौतम स्मृति सत्पात्र और पूज्य ब्राह्मण के शुभलक्षण ब्राह्मणो यस्तु मभक्तौ मद्याजीमत्परायणः । मयि सन्न्यस्त कर्मा च स विप्रस्तारयिष्यति ।। ७. वृषदानमहत्त्ववर्णनम् : १९७५ वैशम्पायन से पूछा कि दान धर्म को सुनने पर मुझे जिज्ञासा हुई है कि आप और-और धर्मों को भी बतलाइये दश गो के दान के समान एक बैल का दान पुष्ट बैल का दान हजार गोदान के समान कहा गया है। बराबेन समोऽनवानेकोऽपि कुरुपुंगव । मेरोमांस विपुष्टांगो नोरोगः पापजितः।। इसके दान करने से ब्राह्मण खेत को जोत सकते हैं और ज्ञानपूर्वक अन्नोत्पादन कर सुन्दर स्वथ्य दीर्घजीवी सन्तान उत्पन्न कर सृष्टि की उत्तरोत्तर उन्नति करते हैं। अनेक प्रकार के दान जैसे मन्दिरों में भजन कीर्तन, प्याऊ लगाना, वृक्षारोपणवर्णन ५-१३३ ८. पच्चमहायज्ञवर्णनम् : १९८७ पुधिष्ठिर के प्रश्न पञ्चयज्ञ विधान पर .. १-७ पञ्चमहायज्ञ करने की आवश्यकता ८-१८ धिष्ठिर का स्नानविधि पर प्रश्न १६ नान करने की विधि और स्नान के साथ क्या-क्या करना चाहिए । सन्ध्या देवर्षि पितृतर्पण करके ही जल से निकलना चाहिए। बिना तर्पण किए वस्त्र निष्पीड़न करने से देवता, ऋषि और पितर शाप देते हुए निराश होकर लौट जाते हैं। २०-७२ अतपयित्वा तान्पूर्ण स्नानवस्त्रन्नपीडयेत् । पीडयेदितन्मोहाद्देवाः सषिगणास्तथा ॥ पितरश्च निराशास्तं शप्त्वा यान्तियपागमम् ।। भिन्न प्रकार के पुष्पों द्वारा पूजा करने के माहात्म्य पर प्रश्न ? ७३ हाने योग्य पुष्पों का वर्णन और वजित पुष्पों का निषेध ७४-८३ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ वृद्धगौतम स्मृति युधिष्ठिर का देवताओं की पूजन की विधि का प्रश्न ८४-८५ मोतियी के पूजन का विधान ८६-६१ विष्णु के भक्तों के लक्षण पर युधिष्ठिर का प्रश्न ६२ भगवान् के भक्तों के लक्षण ६३-११८ ६. कपिलादानप्रशंसावर्णनम : १९६६ कपिलाह्यग्निहोत्रार्थे विप्रार्थे च स्वयम्भवा । सर्वतेजः समदत्यः निर्मिता ब्रह्मणापुरा ।। २३ ॥ गो सहस्रञ्चयोवद्यादेकाञ्चकपिलानरः । समन्तस्यफलम्प्राह ब्रह्मा लोकपितामहः ॥ १०. कपिलागोप्रशंसावर्णनम् : २००७ कपिला गाय का लक्षण और उसका दान किस प्रकार करना चाहिए १-६६ यस्यैता: कपिलाः सन्ति गहे पापप्रणाशना । तत्रश्रीविजयः कोतिः स्थिता: नित्यं युधिष्ठिर॥ युधिष्ठर का प्रश्न-दान करने का समय और श्राद्ध का समय और पूजा करने के योग्य ब्राह्मण और कौन व्यक्ति हैं जिनकी पूजा नहीं करनी चाहिए दान का समय दान के पात्र व दान की विधि देवं पूर्वाहिक फर्म पत्रिकं चापराहिकम् । कालहीनं च यद्दानं तदान राक्षसं बिदुः॥ ११. ब्रह्मघातकलक्षणवर्णनम् : २०१६ युधिष्ठिर का प्रश्न ब्रह्मघाती के लक्षण युधिष्ठिर का प्रश्न-सब दानों में श्रेष्ठदान और अभोज्य के लिए भगवान से प्रश्न अन्न की प्रशंसा, अन्न, विद्यादान की महिमा, झूठ बोलने से यज्ञ क्षीण होता है, विस्मय से तप, निन्दास्तुति से आयु, ढिंढोरा पीटने से दान क्षीण होता है ११-३६ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धगौतम स्मृति १२. धर्मशौच विधिवर्णनम् : २०२३ युधिष्ठिर का प्रश्न - " धर्म का वर्णन बहुत प्रकार से हुआ है सो अब धर्म का लक्षण समझाइये ।" भगवान् का उत्तर - धर्म का लक्षण "अहिंसा सत्यमस्तेयमानृशंस्य वमः शमः | आर्जवं चैव राजेन्द्र निश्चितं धर्मलक्षणम् ॥ युधिष्ठिर का प्रश्न - साधु ब्राह्मण कौन होते हैं जिन्हें दान देने से फल होता है भगवान् का उत्तर - अक्रोधी, सत्यवादी, धर्मपरायण, अमानी, सहिष्णु, जितेन्द्रिय, सर्वभूत हितेरत इनको देने का महान् फल होता है - आदि-आदि अक्रोधनाः सत्यपराः धर्मनित्याः दमेरताः । तादृशाः साधकोलोके तेभ्योदत्तं महाफलम् ।। युधिष्ठिर का प्रश्न - भीष्मपितामह ने धर्माधर्म की व्याख्या विस्तार से की उनमें से कृपया सार मुझे बतलाइये । धर्म सार में अन्नदान का महत्त्व - " अन्नदः प्राणदो लोके प्राणदः सर्वदो भवेत् । तस्मादन्नं प्रयत्नेन दातव्यं भूतिमिच्छता ।" इत्यादि १३. भोजनविधिवर्णनम् : २०२८ भोजन की विधि पर प्रश्न भोजन विधि का वर्णन "नैकवासास्तु भुञ्जीयान्नैवान्तर्धाय वै द्विजः । नभिन्नपाले भुञ्जीत पर्णपृष्ठे तथैव च ॥ " अन्नं पूर्वं नमस्कुर्यात्प्रहृष्येनान्तरात्मना । नान्यदालोकयेदन्नान्नजुगुप्सेत व पुनः गाय को घास देने व तिल देने का माहात्म्य | १४. आपद्धर्मवर्णनम् युधिष्ठिर का आपद्धर्म के लिए प्रश्न आपधर्म का काल व निर्णय युधिष्ठर का प्रश्न - प्रशंसनीय ब्राह्मण कौन हैं प्रशंसनीय ब्राह्मणों के लक्षण 4:0 १२६ २-१६ २० २१-२७ २६-५३ १ २-२० ५-६ १ २-ε १० ११-३४ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १-६८ २-४८ १३० वृद्ध गौतम स्मृति युधिष्ठिर का धर्मसार के लिए प्रश्न ३५ धर्म का सार ३६-६५ १५. धर्ममहत्त्व : २०३६ धर्म का माहात्म्य १६. चान्द्रायणविधि : २०४८ युधिष्ठिर का चान्द्रायणविधि पर प्रश्न १-११ चान्द्रायणविधि का वर्णन १७. द्वादशमासेषु धर्मकृत्य : २०५३ कार्तिक से लेकर आश्विन तक प्रति मास का दान व पूजा का वर्णन १-५८ १८. एकभक्तपुण्यफल : २०५६ जो दिन में एक बार भोजन करता है उसका माहात्म्य । उपवास को लेकर युधिष्ठिर का प्रश्न उपवास का माहात्म्य १२-१४ प्रत्येक मास में भिन्न-भिन्न उपवास करने का माहात्म्य १६-३५ कृष्णद्वादशी में भगवत्पूजन का माहात्म्य ३६-४६ १६. दानफल : २०६४ वैशम्यायन द्वारा दानकालविधि का प्रतिपादन । विषुवत् संक्रान्ति व ग्रहण काल में दान कैसे करे, इसका माहात्म्य १-२३ गायत्री जप और पीपल पूजन का माहात्म्य २४-३२ ब्राह्मण शद्र कैसे हो जाता है ? युधिष्ठिर का प्रश्न भगवान का उत्तर - ब्राह्मण शूद्र संज्ञा निन्दनीय कर्म करने से प्राप्त करता है ३४-४३ २०. तीर्थलक्षण : २०६६ तीर्थ का माहात्म्य १-२४ युधिष्ठिर का प्रश्न-सम्पूर्ण पापों के नाश करनेवाला प्रायश्चित्त ___ कौन-सा है ? रहस्य प्रायश्चित का वर्णन २६-४६ २१. भक्त्यार्चन विधि : २०७४ युधिष्ठिर का प्रश्न--कौन से ब्राह्मण पवित्र हैं ? ब्राह्मणों के गुण व कर्म का वर्णन २-३२ २५ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३१ बृहदयम स्मृति २२. शूद्रधर्म : २०७७ शद्रों के वर्ण व धर्म का वर्णन भगवद्भक्तवर्णन विष्णुपूजन तथा विष्णुलोक जाने का वर्णन १-११ १२-३५ ३६-४७ यमस्मृतिः १. प्रायश्चित्त : २०८३ इसमें चारों वर्गों के प्रायश्चित्त और उनकी शुद्धि का विधान बताया गया है १-७८ लघुयम स्मृतिः १. नानाविधप्रायश्चित्त : २०६१ बिभिन्न प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन साथ ही यज्ञ, तालाब व कूप आदिनिर्माण का विधान यथा इष्टापूतन्तु कर्तव्यं ब्राह्मणन प्रयत्नतः । इष्टेन लभते स्वर्ग पूर्वे मोक्षं समश्नुते ।। १-६६ -- -- १-१५ वृहद्यम स्मृतिः १. नानाविधप्रायश्चित्त : २१०१ नानाविध प्रायश्चित्तों का वर्णन २. चान्द्रायणविधि : २१०३ चान्द्रायण विधि का वर्णन ३. प्रायश्चित्तवर्णन : २१०४ प्रायश्चित्त की विधि-दश वर्ष तक के बालकों से प्रायश्चित्त न कराया जाए। उसने यदि पाप किया हो तो पिता, माता या भाई से प्रायश्चित्त कराया जाए १-१६ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ पुलस्त्यस्मृति कन्या के रजोदर्शन से माता-पिता को नरक की प्राप्ति २०-२२ श्राद्ध में वर्जनीय ब्राह्मण और सत्पात्र के लक्षण २३-७० ४. गोवधप्रायश्चित्त : २११० गोवध के प्रायश्चित्त का वर्णन १-१५ धर्मशास्त्र को जाने बिना प्रायश्चित्त के लिए निर्णय देने का पाप २६ सत्पात्र ब्राह्मण लक्षण वर्णन ३०-६२ ५. श्राद्धकालेपन्यांरजस्वलायांनिर्णय : २११६ श्राद्धकाल में श्राद्ध करने वाले की स्त्री रजस्वला हो जाए तो उस का निर्णय तथा जिसकी सन्तान हो उसके विभाग का दिग्दर्शन अरुणस्मृतिः १. प्रतिग्रह : २११६ प्रतिग्रह के विषय में अरुण का प्रश्न आदित्य का उत्तर "जपोहोमस्तथा वानं स्वाध्यायाविकृतं शुभम् । वातुर्नप्रयते विप्र अतो न स्वर्गमाप्नुयात् ॥" ब्राह्मण को अनुचित दान लेने के प्रायश्चित्त करने का वर्णन प्रतिग्रहेण विप्राणां ब्राह्म तेजः प्रशाम्यति । प्रतिग्रह प्रायश्चित्त वर्णन -० ३-१४८ पुलस्त्यस्मृतिः १. वर्णाश्रमधर्म : २१३४ पुलस्त्य ऋषि ने कुरुक्षेत्र में जो वर्णाश्रमधर्म बतलाया उसका वर्णन । यथा "अहिंसा सत्यवादश्च सत्यं शौचं दया क्षमा। वणिनां लिगिताञ्चैव सामान्यो धर्म उच्यते।" इत्यादि प्रकार से धर्म का वर्णन किया है १-२८ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वशिष्ठ स्मृति बुधस्मृतिः १. चातुर्वर्ण्यधर्म: २१३७ इसमें चारों वर्णों का संक्षेप से धर्म वर्णन है । वशिष्ठस्मृति: ( २ ) १. वर्णामाणांनित्यमित्तिककर्म : २१३६ मुनियों का वशिष्ठ से प्रश्न वर्णाश्रमधर्म, वैष्णवों के आचार और शंख चक्र धारण करने की विधि २. वैष्णवानां नामकरणसंस्कार : २१४३ वैष्णव सम्प्रदायों के अनुसार नामकरण की विधि का वर्णन ३. वैष्णवानां निष्क्रमणान्नप्राशन संस्कारवर्णनम् : २१४७ वैष्णव धर्म के अनुसार बालक को घर से बाहर लाने एवं अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म उपनयनादि संस्कारों का वर्णन ४. गृहस्थधर्म : २१६५ वद्याध्ययन से स्नातक होकर वैष्णव के अनुसार नैष्ठिक ब्रह्मचारी का वर्णन और आठ प्रकार के विवाहों का व विधि का वर्णन तथा गर्भाधान, सीमन्तोन्नयन एवं पुंसवन आदि का कथन ५. स्त्रीधर्म : २१७८ तिव्रता स्त्री का आचरण व दिनचर्या तथा पातिव्रत का माहात्म्य ६. नित्यनैमित्तिकविधि : २१८६ व धर्म के अनुसार नित्यनैमित्तिकविधि का वर्णन और भगवान के पूजन का विधान, साथ ही उत्सव मनाने का माहात्म्य और उत्सवों की विधि व धर्म के अनुसार पितृयज्ञ श्राद्ध तथा अशौच व प्रायश्चित्त का वर्णन १३३ १-३ ४-४२ १-३२ १- १६६ १-१३१ १-८३ १-२८० २८१-५४२ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ वृहद्योगीयाज्ञवल्क्य स्मृति ७. विष्णुस्थापनविधि ऋषियों ने वशिष्ठ से विष्णु की मूर्ति के संस्थापन की विधि के ___ विषय में प्रश्न किया विष्णु की प्रतिष्ठा की विधि व समय का वर्णन २-११० - . बृहद्योगीयाज्ञवल्क्यस्मृतिः १. मन्त्रयोगनिर्णय : २२४८ सब मुनियों ने याज्ञवल्क्य से गायत्री, ओंकार, प्राणायाम, ध्यान और सन्ध्या के मन्त्रों को पूछ कर आत्मज्ञान की जिज्ञासा की १-४४ १-४५ ४६-१५८ १-३२ २. ओंकारनिर्णय : २२५१ ओंकार का माहात्म्य और ज्ञान का वर्णन साकार-निराकार दो प्रकार के ब्रह्म का वर्णन और ओंकार की उपासना ब्रह्मज्ञान को विकाश करने वाली बताई गई है ३. व्याहृतिनिर्णय : २२६७ सप्तव्याहृतियों का निर्णय और भू आदि व्याहृतियों से सात लोकों, सात छन्द और सप्त देवताओं सहित उनका माहात्म्य वर्णन ४. गायत्रीनिर्णय : २२७० गायत्री मन्त्र का निर्णय ५. ओंकारगायत्रीन्यास : २२७८ गायत्री न्यास करने की विधि बताई गई है ६. सन्ध्योपासननिर्णय : २२७६ सन्ध्या करने का माहात्म्य और सन्ध्या न करने से पाप का निर्णय किया गया है। यावन्तोऽस्या पृथिव्यान्तु विकर्मस्थाः द्विजातयः । तेषां तु पावनार्थाय संध्या सृष्टा स्वयम्भवा ॥ ६ ॥ १-३१ १-८२ १-१२ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाज्ञवल्क्य स्मृति ७. स्नानविधि : २२८३ स्नान करने के मन्त्र और स्नान करने की विधि, तर्पणविधि, जयविधि वर्णन ८. प्राणायाम : २३०१ प्राणायाम और प्रत्याहार करने की विधि का वर्णन ६. ध्यानविधि : २३०७ अध्यात्मनिर्णय वर्णन अन्नमहत्त्ववर्णन अध्यात्मवर्णन सूर्योपस्थान की विधि भगवान के ध्यान लगाने का नियम और कुण्डलिनी का ज्ञान ज्ञानं प्रधानं न तु कर्महीनं कर्मप्रधानं न तु बुद्धिहीनम् । तस्माद्वयोरेव भवेतसिद्धिनं कपक्षो विहगः प्रयाति ॥ २६ ॥ गर्वा सर्पिः शनीरस्थं न करोत्यगपोषणम् । निःसृतं कर्मचरितं पुनस्तस्यैवभेषजम् ॥ ३० ॥ एवं सति शरीरस्यः सपिर्वत् परमेश्वरः । बिना चोपासनादेव न करोति हितं नृषुः ॥ ३१ ॥ गायत्री मन्त्र की व्याख्या १०. सूर्योपस्थान : २३२६ ११. योगधर्म : २३२८ आत्मयोग का वर्णन और उसका महत्त्व १२ विद्याविद्यानिर्णय : २३३४ विद्या और अविद्या अर्थात् ज्ञानकाण्ड और कर्मकाण्ड का निदर्शन ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्यसंहिता १ चतुर्वेदानां शाखा : २३३६ चार वेदों का वर्णन और उनकी शाखाओं का सविस्तार वर्णन १३५ १- १२८ १२६-१६० १-५६ १-३१ ३२-६१ ६२-१३४ १३५-१५१ १५२-१६८ १-२० १-५६ १-४६ १-४७ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्य स्मृति २ नित्यनैमित्तिककर्म : २३४४ नित्यकर्म और पञ्चयज्ञों का विधान पञ्चसना गृहस्थस्य वर्ततेऽहरहः सदा । कंडनी पेषणी चुल्ली जलकम्भी च माजनी॥ एतांश्च वाहयन्विप्रो बाधते व महर्मुहः । एतेषां पावनाय पञ्चयज्ञाः प्रकीर्तिताः ॥ अध्ययनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तुतर्पणम् । होमोदेवोलिभूतन्यशोऽतिथिपूजकः ॥ तिलक के भेद । यथा 5 वोमण्डलमध्यस्थं तिलकं करते द्विजः । तत्केवलं धनं कृत्वा लिंगभेवाः स उच्यते ।। वेणुपत्रदलाकारं वैष्णवं तिलकं स्मृतम् । अर्द्धचन्द्र तथा शैवं शाक्तेयन्तिर्यगच्यते ॥ ३१ ॥ चतुः कोणमितिस्पष्टं विकरालमुदाहृतम् । पंशाचं बिन्दुसंयुक्तं तिलक धर्मनाशनम् ॥ ३२ ॥ नैमित्तिक कर्म करने का प्रकार, प्राणायाम, कालिक सन्ध्याविधि वर्णन, तर्पण, देवपूजाविधान, बलिवैश्वदेव, भोजनविधि, श्वकाकोच्छिष्ट भक्षण प्रायश्चित्त १-२११ ३ नैमित्तिकवाद्धविधि : २३७५ नैमित्तिक श्राद्ध यथा पिता की मृत्यु की तिथि पर जो श्राद्ध किया __ जाय उसे एकोद्दिष्ट श्राद्ध कहते हैं । उनका वर्णन १.७६ ४ श्राद्धवर्णन : २३६६ अमावस्या, संक्रान्ति, व्यतीपात, गजच्छाया, सूर्य और चन्द्रग्रहण में स्नान करने का विधान और महत्त्व बताया गया है १-१६४ ५. श्राद्ध वर्णन आमश्राद्ध अर्थात सत्तू, गुड़, पिण्याक, दूध इन द्रव्यों से जो श्राद्ध किये जाते हैं उनका विधान १-२६ ६. श्राद्ध वर्णन नान्दीमुख श्राद्ध जो विवाहादि शुभकर्मों पर किया जाता है उसका विधान और वर्णन १-१२५ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मोक्तयाज्ञवल्क्य स्मृति ७. श्राद्ध वर्णन प्रेतश्राद्ध और सपिण्डीकरण की विधि १-६० ८. ब्रह्मचारिधर्म : २४११ ब्रह्मचारी के धर्म का वर्णन १-१४४ स्नातक होने पर विवाह का वर्णन १४५-२९६ नव-संस्कारों का वर्णन ३००-३६१ ६. तिथिनिर्णय : २४४७ प्रतिपदा से पूर्णिमा तक तिथियिों पर विचार, तथा कोन तिथि उदयव्यापिनी और कोन तिथि काल-व्यापिनी ली जाती है तथा किस तिथि में किस देवता का पूजन किया जाता है उसका वर्णन १०. विनायकाविशान्तिवर्णन : २४५२ दुष्ट स्वप्न के होने पर विनायक की शान्ति तथा ग्रहशान्ति का विधान बताया गया है १-१६० ११. दानविधि : २४६७ दान का महत्त्व और गोदान की विधि १-२१ गोदान का महत्त्व २२-२६ महिषी के दान का महत्त्व १७-३१ वृषभ के दान का महत्त्व ३२-३६ भूमिदान ३७-३८ तिल दान ३६-४० अन्न दान ४१-४३ सोने का दान चान्दी के दान का महत्त्व ४५-६६ १२. प्रायश्चित्तवर्णन : २४७४ दी हुई चीज को वापस लेने में न्याय अदेय वस्तुओं का वर्णन विवाद न होने वाली वस्तुओं का वर्णन ७-१६ इष्ट कर्मों का वर्णन २०-३४ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ व्याघ्रपादस्मृति ३५ ३६-६३ विकर्मों का वर्णन प्रायश्चित्त और शुद्धि का वर्णन १३. आशौच : २४८१ सूतक पातक का वर्णन जिन पर सूतक पातक नहीं लगता उन का वर्णन कितने दिन किसका सुतक लगता हैं उसका वर्णन १-१३ १४-१६ २०-३२ काश्यपस्मृतिः प्रायश्चित्त : २४८५ आहिताग्नि के लक्षण, गाय, बैल, मृग, महिषी, कोआ, हंस, सारस, बिल्ली, गीदड़, साँप और नेवला की हिंसा करने का प्रायश्चित्त, पाँच प्रकार के महापातक बतलाये गये हैं, अकाल में भूमिकम्प का, घर में उल्लू बोलने का प्रायश्चित्त बताया गया है। मथनी और हल टूटने का प्रायश्चित्त बर्तनों के साफ करने का विधान, पहले जिन्होंने पाप किया हो उनके चिह्नों का वर्णन तथा पापों से नरक गति का वर्णन व्याघ्रपादस्मृतिः स्मतिमहत्त्व : २४६१ युगधर्म का वर्णन और द्विजातियों को वेदाध्ययन का उपदेश पिण्डदाम और पितृतर्पण का महत्त्व तीर्थ और गया श्राद्ध श्राद्ध काल और विधि श्राद्ध करने व पूजा करने वालों का आचरण पौर्णमासी का निर्णय पुत्रहीन स्त्री के श्राद्ध का विधान पिताहीन को परपितामह के उपस्थित रहने पर श्राद्ध का विधान १-१५ १६-१८ १६ २०-४६ ४७-५७ ५८ ५६-६१ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याघ्रपादस्मृति १३६ श्राद्ध करने की सामग्री और उसका निर्णय ६३-८० पितरों की पूजा ८१-८२ सब धर्म कार्यों में धर्मपत्नी को दाहिने ओर बिठाने का विधान । ८३-८५ पूजा में स्त्री को बिठाना और सिर में त्रिपुण्ड लगाने का विधान ८६-६२ तिल का निर्णय ६३-६७ पूजा, यज्ञ तथा श्राद्ध में मौन रखने का विधान श्राद्ध का नियम १०१-११४ पिण्ड दान और पिण्डपूजन का विधान ११५-१३५ जो पितरों का श्राद्ध नहीं करते उनके पितर जूठा अन्न खाकर दुःख में विचरते हैं १३६-१४२ जो पितरों का तर्पण नहीं करता वह नरक जाता है १४३-१५२ मूर्ख को दान देने की निन्दा १५३-१५४ श्राद्ध करने वालों का नियम, श्राद्ध के दिन जो मट्ठा होता है वह गोमांस और शराब के बराबर होता है । श्राद्ध में बहिनों और उनके परिवार को निमन्त्रण का महत्त्व १५५-१६० श्राद्ध के नियम और उनके विरुद्ध चलने पर चान्द्रायण व्रत का विधान १६१-१६६ श्राद्ध का भोजन, अन्न और ब्राह्मण का विस्तार से वर्णन १६७-२०७ पैर धोने से पिण्ड विसर्जन तक श्राद्ध का विषय माना जाता है २०८-२१० श्राद्ध में निषिद्ध पदार्थों का उल्लेख २११-२१२ वानप्रस्थ यतियों के श्राद्ध के नियम २१३-२१७ सन्ध्या के नियम २१८-२२३ श्राद्ध में भोजन बनाने के अधिकारी २२४-२५३ श्राद्ध के अन्न का निर्णय २४४-२६६ जिनका एकोदिष्ट श्राद्ध ही होता है उनका वर्णन २६७-२८५ श्राद्ध में किन-किन अंगों का निषेध और विधान है २८६-३१७ वर्ष-वर्ष में श्राद्ध करने का महत्त्व ३१८-३२७ श्राद्ध करने के स्थान का वर्णन ३२८-३३७ श्राद्ध करने के नियम, सामान्य व्यवहार, यज्ञ, दान, जप, तप, स्वाध्याय, पितृतर्पण की विशेष विधियां ३३७-३६६ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० कपिलस्मृति कपिलस्मति कपिल-शौनक-सम्वाद २५३६ कपिल एवं शौनक में परस्पर वेद विषयक चर्चा । यहीं वेदनिन्दकों का प्रकरण भी आया है । १-२० वैदिककर्मणामभावकथनम वैदिक कर्मों का अभाव कथन २१-४० वेदमन्त्राणां व्यत्यासेनोच्चारणेदोषकपनम् २५३४ वेदमन्त्रों के व्यत्यास से उच्चारण करने में दोष होना ४१-५० श्राद्धप्रकरण २५३५ श्राद्ध प्रकरण का वर्णन, नान्दीमुख श्राद्ध की प्रधानता, विभिन्न श्राद्धों का सुन्दर वर्णन ५१-३०० उपनयनसंस्कार २५५७ उपनयन संस्कार वर्णन ३०१-३३३ ब्राह्मणादिवों का एक पक्ति में भोजननिर्णय वर्णन ३३४-३५० विप्रमहत्व ३५६१ वित्रों के महत्त्व का वर्णन ३५१-३५८ नान्दी श्राद्ध करने वाले की योग्यता व अधिकार का वर्णन ३५६-३७४ इतकपुत्रप्रकरण २५६५ दत्तकपुत्र का वर्णन और उसकी योग्यता ३७५-४२६ दानप्रकरण २५६६ दशविधदानों का निरूपण ४२७-४७६ दान के अधिकारी जनों का वर्णन ४७७-४८७ धान्य २५७५ दौहित्र की सर्वत्र प्रधानता का निरूपण ४८८-५०० भूमिवानप्रकरण २५७७ भूमिदान प्रकरण ५०१-५१८ वजितस्त्रीणां श्रावपाकप्रकरणे दोषवर्णन २५७९ वजित स्त्रियों को श्राद्ध का पाक करने में दोष बतलाया है ४१६-५४० विधवास्त्रीणां कृत्यवर्णन २५८१ विधवा स्त्रियों के कार्यों का वर्णन ५४१-५६२ सधवा एवं विधवा स्त्रियों का विवेचन ५६३-६३२ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाधूलस्मृति अतिरण्डा, महारण्डा और पुत्ररण्डा आदि का वर्णन पुत्रमहवस्वर्णनम् २५६१ पुत्र के बिना एक क्षण भी न रहे । पुत्र के महत्त्व का विस्तार से निरूपण ज्येष्ठपुत्रस्य त्रये योग्यता २५६३ ज्येष्ठ पुत्र की पिता के सभी उत्तराधिकारियों से अधिक योग्यता ओरसपुत्रे ज्येष्ठत्वनिर्णयः २५६५ औरस पुत्रों में ज्येष्ठ कौन हो इसका निर्णय पत्र्ये कर्मणि वौहित्रस्यौरसत्वम् २५६७ पैत्र्ये कर्म में दौहित्र का पुत्र के अभाव में औरस होना धर्मसेवन का लाभ विप्र का महत्त्व निरूपण विविध दानों का वर्णन दुष्कर्मों का प्रायश्चित्त वर्णन ७०१-७४४ ७४५-७६६ पुत्र का कुलतारक होना ७६७-७८६ निर्दुष्ट पुत्र की योग्यता ७६०-८०६ दण्डनीय और न दण्ड देने योग्य जनों का धर्म से व्यवहार करना ८१०-८३० दण्डविधान वर्णन ८३१-८७१ विप्रमवत्वर्णनम् २६११ नानाविधवानप्रकरणम् २६१३ दुष्कर्मणां प्रायश्चित्त २६२१ वाधूलस्मृति नित्यकर्म विधिवर्णनम् २६२३ महर्षियों ने वाधूल मुनि से ब्राह्मणादि के आचार पूछे इस पर नित्यकर्मविधि का वर्णन उन्होंने किया ब्राह्ममुहूर्त में शय्या त्याग कर प्रसन्न मन से हाथ-पैर धोकर भगवत्स्मरण करे ब्राह्ममुहूर्त में सोने वाला सभी कर्मों में अनाधिकारी रहता है १४१ ६३३-६५६ ६५६-६७८ ६६६-७०० ६७६-६६८ ८७२-८६३ ८६४-६८० ६८१-६६५ १-३ ४ ५ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ or " १४२ वाधूलस्मृति प्रातः सन्ध्या तारागण के प्रकाश से लेकर सूर्योदय तक है । अतः तारागण के रहते प्रात: सन्ध्या करे सायंकाल में आधे सूर्य के अस्त होने के समय सन्ध्या करे शौचादि विधि ८-२० आचमन प्रकार २२-३० स्नानविधि २६२७ निषिद्ध तिथियों में दन्तधावन नहीं करना चाहिए। पतित मनुष्य की छाया पड़ने से स्नान करना चाहिए अस्पृश्य के छ जाने से १३ बार जल में नहाने से शुद्धि हो । रजस्वला स्त्री को यदि ज्वर चढ़ जाए तो वह कैसे णुद्ध हो ३१-४८ भूमि पर गिरा हुआ जल गंगा के समान पवित्र है। चन्द्र और सूर्य ग्रहण के समय कुंआ, वापी, तड़ाग के जल शुद्ध हैं । जलाञ्जलि विधि ४६-५६ पूर्व की ओर मुख करके देवतागण को, उत्तराभिमुख होकर ऋषियों को और दक्षिण को ओर मुंह करके जल में पितरों को तर्पण करे । स्नान के लिए जाते हुए मनुष्य के पीछे पितरों के साथ देवगण प्यास से ब्याकुल जल के लिए लालायित हो कर जाते हैं अतः देवर्षिपितृतर्पण किए बिना वस्त्र को न निचोड़े यदि वस्त्र निचोड़ा जाता है तो वे निराश होकर चले जाते हैं । सम्पूर्ण कर्मों की सिद्धि के लिए नदी, तालाब पहाड़ी झरनों में प्रतिदिन स्नान करे दूसरे के बनाए हुए सरोवर में स्नान करने से उस बनाने वाले के दुष्कृत (पाप) स्नानार्थी को लगते हैं अतः उसमें न नहावे सूर्योदय के पूर्व प्रातःकाल का स्नान प्राजापत्य यज्ञ के समान है और आलस्यादि को नष्ट कर मनुष्य को उन्नत विचार और कार्यशील बना देता है । ६५-६८ स्नान मलाः क्रियाः सर्वाः सन्ध्योपासनमेव च । स्नानाचारविहीनस्य सर्वाः स्यः निष्फलाः क्रिया: ।। ६७ ॥ सम्पूर्ण क्रियायें स्नान के अन्तर्गत ही हैं। रविवार को उषा काल में स्नान करने से हजार माघ स्नान का फल और जन्म दिन Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाधूलस्मृति १४३ ७८-८६ के नक्षत्र में वैधृत पुण्यकाल, ब्यतीपात और संक्रान्ति पर्यों में, अमावस्या को नदी में स्नान कोटि कुलों का उद्धार कर देता है । प्रातः स्नान करने वाले को नरक के दुःख कभी नहीं देखने पड़ते । स्नान किए बिना भोजन करने वाला मल का भोजन करता है ६९-७५ शिव सङ्कल्प सूक्त का पाठ, मार्जन, अघमर्षण, देवर्षि पितृ तर्पण ये स्नान के पांच अङ्ग हैं ७६-७७ जल के अवगाहन, जल में अपने शरीर का अभिषेक, जल को प्रणाम और जल में तीर्थों गङ्गादि नदियों का आवाहन फिर मज्जन, अघमर्षण, देवर्षि पितृतर्पण का विधान बतलाया गया है प्रातः स्नान का महत्त्व । अपने शरीर को पोछने पर सूखे कपड़े पहनकर उत्तरीय धारण करे। वन्दन और तर्पण के समय इसे कटि प्रदेश में ही बांधे रखे । फिर तिलक करे । पर्वत की चोटी से, नदी के किनारे से, विशेष रूप से विष्णु क्षेत्र में मिली सिन्धु के तट पर तुलसी के मूल की मिट्टी से तिलक प्रशस्त बताया गया है ६०-१०८ श्यामतिलक शान्तिकर, लाल वश में करनेवाला, पीला लक्ष्मी देने वाला और सफेद मोक्षदाता बतलाया है १०६-११० भगवान् पर चढ़ाए गए हरिद्रा के चूर्ण के तिलक का माहात्म्य १११ प्रातःकाल गायत्री का ध्यान, मध्याह्न में सावित्री और सायं काल सरस्वती का ध्यान करना चाहिए । प्रतिग्रह, अन्नदोष, पातक और उपपातकों से गायत्री मन्त्र के जपने वाले की गायत्री रक्षा करती है इसलिए इसका नाम गायत्री है । प्रतिग्रहावन्नदोषापातकादुपपातकात । गायत्री प्रोच्यते यस्माद् गायन्तं त्रायते यतः ॥ ११५ ।। सविता को प्रकाशित करने से इसका नाम सावित्री और संसार की प्रसवित्री वाणी रूप से होने से इसका नाम सरस्वती अन्वर्थ है (जैसा नाम वैसा गुण) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ वाधूलस्मृति आपोहिष्ठेत्यादि मार्जन मन्त्रों में नौ ओखार के साथ जो मार्जन किया जाता है उससे वाणी, मन और शरीर के नवों दोषों का क्षय हो जाता है ११७-१२० सायंकाल में अर्घ्य जल में न देवे जहां सन्ध्या की जाए वहीं जप भी हो । वेदोदित नित्यकर्मों का किसी कारण अतिक्रमण हो जाए तो एक दिन बिना अन्न खाए रहना चाहिए और १०८ गायत्री मन्त्र के जप दोनों सन्ध्या में विशेष रूप से करे १२१-१२६ सूतक और मृतक के आशौच में भी सन्ध्या कर्म न छोड़े प्राणायाम को छोड़ कर सारे मन्त्रों को मन से उच्चारण करे १३०-१३२ देवार्चन, जप, होम, स्वाध्याय, स्नान, दान तथा ध्यान में तीनतीन प्राणायाम करे १३३-१३४ जप का विधान प्रातःकाल हाथ ऊँचे रखकर, सायंकाल नीचे हाथ कर एवं मध्याह्न में हाथ और कन्धे के बीच में रखकर जप करे नीचे हाथ कर जप करना पैशाच, हाथ बीच में रखकर करने से राक्षस, हाथ बांधकर करने से गान्धर्व और ऊपर हाथ करने से दैवत जप होता है १३५-१३६ प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जप और गुरु तथा देवता के दर्शन में गले में वस्त्र न लगावे दर्भा के बिना सन्ध्या, जप के बिना दान और बिना संध्या किया हुआ जप सब निष्फल होता है। जप में तुलसी काष्ठ की माला पद्माक्ष तथा रुद्राक्ष की माला प्रशस्त है १४१-१४३ गृहस्थ एवं ब्रह्मचारी १०८ बार बार मन्त्र का जाप करे । वानप्रस्थ तथा यति १००८ बार करें। आहुति के लिए सामग्री का विधान १४४-४५ गृहस्थधर्म २६३७ गृहस्थ को सम्पूर्ण कार्य पत्नी सहित इष्ट है । जिस मनुष्य की स्त्री दूर हो, पतित हो गई हो, रजस्वला हो, अनिष्ट व प्रतिकूल हो उसकी अनुपस्थिति में कोई ऋषि कुशमयी धर्मपत्नी, कोई ऋषि काश की बनी पत्नी को प्रतिनिधि रूप में रखकर नित्यकर्म क्रिया करने की सद्गृहस्थ को आज्ञा देते हैं १४७-४८ १४० Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाधूलस्मृति होम के लिए गो घृत श्रेष्ठ वह न न मिलने पर बकरी का घृत साक्षात् तैल का व्यवहार करे समय पर आहुति देने का माहात्म्य वेदाक्षरों को स्वार्थ में लाने वाले मनुष्य की निन्दा | छे प्रकार के वेदों को बेचनेवाले का वर्णन मिले तो माहिष घृत उसके और उन सब के न मिलने पर रविवार, शुक्रवार, मन्वाद्वि चारों युगों में और मध्याह्न के बाद तुलसी न लावे | संक्रान्ति, दोनों पक्षों के अन्त में द्वादशी में और रात्रि तथा दिन की सन्ध्या में तुलसी-चयन निषेध है तीर्थ में मन, वाणी और कर्म से कैसा भी पाप न करे और दान न ले क्योंकि वह सब दुर्जर है अतः अक्षम्य है । ऋत ( व्यवहार) अमृत सत्य कर्तव्य पालन ऋत या प्रमृत से और सत्यअन्त से जीविका कमावे किसी वस्तु को बिना पूछे लेने से पाप मनु जो ने वनस्पति, कन्द, मूल फल, अग्निहोत्र के लिए काठ, तृण और गौओं के लिए घास ये अस्तेय बताए हैं। किन-किन लोगों से किसी भी रूप में कोई वस्तु न लेवें इसका वर्णन दूसरे के लिए तिल का हवन करने वाले दूसरे के लिए मन्त्र जप करने वाले और अपने माता पिता की सेवा न करने वाले को देखते ही आंख बन्द कर ले जो लोग निन्द्य कर्म करते हैं उनके सङ्ग से सत्पुरुष भी हीन हो जाते हैं और उनकी शुद्धि आवश्यक है 1 जो आदेश तीन या चार वेद के महा विद्वान् दें वही धर्म है और कोई हजारों व्यक्ति चाहे, कहें वह धर्म सम्मत नहीं । वेदपाठी सदा पञ्चमहायज्ञ करने वाले और अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाले मनुष्य तीन लोकों को तार देते हैं पतित लोगों से सम्पर्क करने से मनुष्य एक वर्ष में पतित हो जाता है कलियुग में सभी ब्रह्म का प्रतिपादन करेंगे परन्तु कोई भी वेद विहित कर्मों का अनुष्ठान नहीं करेगा १४६ १५०-१५२ १४५ १५३ - १५८ १६० १६१-६३ १६४ १६५-१६८ १६६ १७०-१७४ १७५-१७६ १८० १८१ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाधूलस्मृति मैथुन में त्याज्य दिनों की गणना-षष्ठी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, चतुर्दशी, दोनों पर्व अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति कोई भी श्राद्ध दिन, जन्म नक्षत्र का दिन, श्रवण व्रत का समय और जो भी विशेष महत्त्वपूर्ण दिन हैं उनमें मैथुन (स्त्री गमन) निषिद्ध है १८२-१८३ शुभ समय में अर्थार्थी मनुष्य जिन कामों को अपने स्वार्थ के लिए करता है उन्हें ही यदि धर्म के लिए करे तो संसार में कोई दुःखी नहीं रह सकता अर्थार्थी यानि कर्माणि करोति कृपणो जनः । तान्येव यदि धर्मार्थ कुर्वन् को दुःखभाग्भवेत् ॥ १८६ ॥ भिन्न-भिन्न वस्तुओं एवं पतितों के छू जाने से स्नान का विधान किसी वस्तु को बेचने पर स्नान का विधान आवश्यक है १८४-१८८ श्रुति स्मृति के आदेश प्रभु की आज्ञा है इनको न मानने वाले को ___भगवद्भक्त बनने का अधिकार नहीं १८४ सच्चे अन्धे का लक्षण-जो श्रुति स्मति का अध्ययन मनन और अनुशीलन कर उनके मार्ग का अनुष्ठान नहीं करता वह अन्धा १६०-१६१ पापी को धर्मशास्त्र अच्छे नहीं लगते १६२ सच्चा ब्राह्मण वही है जो ऋण करने से ऐसे डरता है जैसे सर्प को देखकर । सम्मान से ऐसे दूर रहता है जैसे लोग मरने से और स्त्रियों के सम्पर्क से जैसे मृतक से घणा होती है वैसे दूर रहता है । ब्राह्मण वह है जो शान्त हो, दान्त हो, क्रोध को जीतने वाला हो, आत्मा पर पूरा अधिकार करने वाला हो, इन्द्रियों का निग्रह कर चुका हो । ब्राह्मण का यह शरीर उपभोग के लिए नहीं बल्कि क्लेश के साथ तपस्या करते हुए ऊर्ध्व लोक में अनन्त सुख की प्राप्ति के लिए है १६३-१६४ दर्श में सूखे कपड़े पहनकर तिलोदक जल के बाहर दे, गीले वस्त्रों से पितर निराश होकर चले जाते हैं । १६५-२०१ श्राद्ध के बाद ब्राह्मण भोजन का विधान २०२ विवाह में, श्राद्धादि में नान्दी श्राद्ध २०३ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्वामित्रस्मति १४७ पितृ श्राद में वजित लोगों को देवता कार्य में बुलाने की छूट २०५-२०६ पित श्राद्ध में वस्त्रों के देने का माहात्म्य २०७ अलग-अलग कमाने वाले पुत्रों द्वारा पृथक्-पृथक् पितृ श्राद्ध २०८-२१० सन्यासी बहुत खाने वाला, वैद्य, नामधारी साधु, गर्भवाला (जिस की स्त्री गर्भवती हो) वेदों के आचरण से हीन व्यक्ति को दान और श्राद में न बुलावे गभं करने वाले द्विज के लिए वर्ण्य कर्म २११-२१७ स्नान, सन्ध्या, जप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण, देवताराधन और वैश्वदेव को न करने वाला पतित होता है अतः इन्हें नियम से करना प्रत्येक द्विजाति का कर्तव्य है २१८-२२४ २११ विश्वामित्रस्मृति १. नित्यनैमित्तिककर्मणां वर्णनम् : २६४५ ब्राह्ममुहूर्त, उषःकाल, अरुणोदय और प्रातः काल के मान का वर्णन नित्य औन नैमित्तिक तथा काम्य कर्म समय पर करने से सत्फल देते हैं ब्राह्ममुहूर्त में शौच से निवृत्त होकर अरुणोदय के पहले आत्मा के _लिए स्नान करे प्रात: जप करे और सूर्य को देखकर उप स्थान करे काल बीतने पर कोई कर्म करने से फल नहीं मिलता यदि किसी कारण से काल का लोप हो गया तो तीन हजार जप करने से उसका प्रायश्चित्त विधान है। जो व्यक्ति समय पर नित्यकर्मादि को करता है वह सम्पूर्ण लोगों पर जय पाकर अन्त में विष्णुपुर में जाता है प्रातः स्नान सन्ध्या और जप आवश्यक कर्म है । उत्तम, मध्यम और अधम सन्ध्या के भेद । शुचि या अशुचि हो, नित्यकर्म को कभी न छोड़े तीनों सन्ध्या काल में या तो पूर्व की ओर या उत्तर की ओर मुंह कर नित्यकर्म करे । दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह करके नहीं ८-१४ १७-२१ २२-२५ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ सन्ध्या स्नान किए बिना विद्या पढ़ना हानिकारक है, सन्ध्या काल आने पर उसे छोड़ने वाले को पाप लगता है सोपाधि एवं अनुपाधि भेद से आचार के दो भेद - सोपाधि गुणवान् और अनुपाधि मुख्य है गायत्री मन्त्र की विशेषता शौच का प्रकार दन्तधावन और दतुवन के लिए वनस्पतियों का परिगणन आचमन कर स्नान करने का प्रकार सन्ध्यादि, तर्पण का विधान जलस्नान का विधान तर्पण की विशेषता विश्वामित्रस्मृति वस्त्रधारण में वस्त्रों के महत्त्व का वर्णन, प्राणायाम का प्रकार पूरक, कुम्भक और रेचक से सम्पूर्ण प्रकार के मलदोषों का नाश होकर शरीर की शुद्धि होती है और अध्यात्मबल बढ़ता है । तिलक धारण की विधि, पुण्ड्र धारण इसके बिना सब कर्म निष्फल २. आचमनविधि : २६५७ मुख्य तीन प्रकार के आचमनों का वर्णन, पौराण, स्मार्त और आगम, इनके साथ श्रोत एवं मानस आचमनों का वर्णन मन्त्र जपने एवं नित्यकर्मों के आदि और अन्त में आचमन करे । भगवान् के २१ नामों के साथ न्यास विधान विधिवदाचमनस्यैवफल : २६५६ गोकर्ण की आकृति बनाकर अंगूठे और सबसे छोटी अङ्ग ुलि को छोड़कर अञ्जलि में जलग्रहण कर आचमन का विधान है इसी का फल है थूकने, सोने, ओढ़ने, अश्रुपात आदि से विघ्न होने पर आचमन करे या दक्षिण कान को तीन बार स्पर्श करे । भोजन के आदि में और अन्त में नित्य आचमन करे । मानसिक आचमन में भी केशवाय नमः माधवाय नमः और गोविन्दाय नमः मन में बोलकर चित्त शुद्धि करे -1 ३० ३१-३६ ३७-५२ ५३-५६ ६३ ६८ ७३ ७८ ८७ १०४ १-२० २१-२३ २४-३२ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्वामित्रस्मृति मार्जनम् : २६६० "आपोहिष्ठा मयो भुवः " से मार्जन करे फिर न्यास करे, ऐसा करने से द्विजमात्र शुद्ध होकर ध्यान, जप, पूजा में सब सिद्धियां प्राप्त करते हैं । पञ्चाचमनविधि : २६६१ ब्रह्मयज्ञ में तीन बार आचमन का विधान है । श्रीत, स्मार्त, आचमन को किन-किन स्थलों पर करना इसकी विधि ३. प्राणायाम विधि : २६६३ प्राण और अपान का समयुक्त होना ही प्राणायाम कहलाता है, इसे सन्ध्याकाल और प्रत्येक कर्म के आरम्भ में मन को एकात्र करने के लिए अवश्य करे । नौ बार उत्तम प्राणायाम, ஞ் बार मध्यम और तीन बार अधम कहा गया है। गायत्री मन्त्र और व्याहृतियों के साथ प्राणायाम करना चाहिए पहले कुम्भक फिर पूरक और फिर रेचक, इस क्रम से प्राणायाम करना इष्ट है । सन्ध्या होम काल और ब्रह्मयज्ञ में कुम्भक से आरम्भ कर प्राणायाम करे । प्राणायाम में करने योगाध्यान का वर्णन दश प्रणव एवं गायत्री मन्त्र के साथ इडा और पिङ्गला को छोड़ सुषुम्ना नाड़ी से कुम्भक करे साथ में मन्त्र का स्मरण बराबर होता रहे रेचक और पूरक बिना प्रयास के होते हैं । कुम्भक में प्रयास करना होता है यह अभ्यास से पाक्य है । अनभ्यास से शास्त्र विष का काम करते हैं, अभ्यास से वही अमृत बन जाते हैं । प्राणायाम में चारों अङ्ग ुली और अंगूठा काम में लेना चाहिए । लं. हं, यं, रं, वं इन बीज से पृथिव्यात्मा को गन्ध, आकाशात्मा को पुष्प, वाय्वात्मा को धूप, अग्न्यात्मा को दीप और अमृतात्मा को नैबेद्य प्रदान करे । इस पञ्चभूतात्मक मानसी पूजा से ही प्राणायाम की सिद्धि मिलती है प्राणायाम का अभ्यास सिद्धासन, कुम्भक के साथ और मन्द दृष्टि के रूप में आंखें बन्द करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है । ૪૨ २३-३६. ४०-५७ १-३ ४-५ ६-१० ११ १२-२६ ३०-३६ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५.० विलोम गायत्री मन्त्र का वर्णन प्राणायाम न करने वाला अवकीर्णी होता है विशेष जिन-जिन मन्त्रों का विधान आता है उनके साथ भी पूरक, कुम्भक और रेचक क्रम से प्राणायाम करने का विकल्प है । चार्वाक, शैव, गणेश, सौर, वैष्णव और शाक्त जो भी मन्त्र हैं उन उन से प्राणायाम की विधि फल देने वाली है । भिन्नभिन्न विधियों में प्राणायाम की १०, १५, २०, २४, १३, १४ और १६ बार आवृत्ति करने की विधि हैं । वैश्वदेव में १० बार आदि में १० बार अन्त मे प्राणायाम करने का विधान । जहां सङ्कल्प है वहां २ बार और सभी काम्य आदि कर्मों में १०-१० बार आवृत्ति का विधान है । विलो - माक्षरों से गायत्री का प्राणायाम अनन्त कोटि गुणित फल देता है विश्वामित्रस्मृति ४. मार्जनम् . २६७१ शिर से पैर तक "आपोहिष्ठादि" मन्त्र से मार्जन का फल । अर्ध मन्त्र और पूर्ण मन्त्र मार्जन दो प्रकार का है ऋग्यजुः साम वेद की शाखावालों का मार्जन क्रम आपोहिष्ठादि के मन्त्र में प्रणव का उच्चारण करते हुए शिर पर मार्जन करे और " यस्यक्षयाय जिन्वथ से नीचे की ओर जल प्रक्षेप करे शिर से भूमि तथा पादान्त मार्जन से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है । मार्जन की फलश्रुति ५. सार्घ्यदान गायत्रीमाहात्म्यवर्णनम् : २६७४ सन्ध्यावन्दन के समय प्रात: और सायं तीन-तीन अर्ध्य सूर्य को दे, मध्याह्न काल की सन्ध्या में केवल एक ही । तीन अर्घ्य में एक दैत्यों के शस्त्रास्त्र नाश के लिए, दूसरा वाहन नाश के लिए और तीसरा असुरों के नाश के लिए और अन्तिम प्रायश्तिा देकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा से सब पापों से छुटकारा हो जाता है । गायत्री के पञ्चाङ्ग का वर्णन प्रायश्चित्ताध्यं की विधि का वर्णन - नाना मन्त्रों के विनियोग एवं ध्यान का वर्णन ३७-४६ ५०-५२ ५३-७६ १-५ ६-१८ १६-२७ १-२४ २५-४४ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्वामित्रस्मृति ६. द्विविधजपलक्षणम् : २६८१ नैमित्तिक एवं काम्य दो प्रकार के जपों के लक्षण यह सन्ध्याङ्ग के रूप में नदीतीर, सरिकोष्ठ और पर्वत की चोटी पर एकान्त वास से ही अधिक फल देने वाला है १-२ मूलमन्त्र से भूशुद्धि, फिर भूतशुद्धि, फिर रक्षा के लिए दिग्बन्धन करना और गायत्री के न्यास का वर्णन ३-३० कराङ्गन्यासवर्णनम् : २६८५ दश बार मन्त्र का जप कर हृदय को हाथ से स्पर्श कर प्राणसूक्त जपे फिर प्राणायाम करे मुद्राविधिवर्णनम् : २६८७ आवाहन आदि के भेद से १० प्रकार की मुद्राओं का वर्णन, गायत्री जप क आरम्भ की २४ मुद्रा ३३-७१ उपस्थानविधि : २६९० सन्ध्याकाल में सूर्योपस्थान का महत्त्व १-२० ८. देवयज्ञादिविधान, वैश्वदेवकालनिर्णय, पञ्चसूनापनुत्त्यर्थ वैश्वदेव, वैश्वदेवमाहात्म्य : २६६२ वश्वदेव में कोद्रव (कोदो), मसूर, उड़द, लवण और कड़वे द्रव्यों को काम में न लेवे १-२ नाना प्रकार की बलि करने से नाना प्रकार के काम्य कर्मों की सिद्धियां होती हैं। द्विजों के लिए पांच ही क्रम से बलि का विधान है। पहले उपवीत, दूसरे निवीत, तीसरे पितृमेध के लिए बलि दी जाती है ३-१२ वैश्वदेव में ताजा अन्न ही काम में लिया जाए वैश्वदेव मन्त्र के साथ हो या बिना मन्त्र के इसे किसी भी रूप में करना चाहिए; क्योंकि इसको करने वाला अन्नदोष से लिपायमान नहीं होता १७-२४ पञ्चशूनाजनित पापों को जैसे, चूल्हा, चक्की, जल भरने का स्थान, माड आदि के दोषों को दूर करने के लिए इसकी बड़ी आवश्यकता है २५-३६ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ लोहितस्मृति वैश्वदेव को करने से सफल दोषों का निवारण होता है। नित्य होम का वजन सतक एवं मृतक में बताया गया है । वैश्वदेव के काल का वर्णन । वैश्वदेव माहात्म्य वर्णन ४०-८३ १-११ १२-२६ २०-२६ लोहितस्मृति विवाहाग्नी स्मातकर्मविधानवर्णनम् २७०१ विवाहाग्नि में स्मार्त्त कर्मों का वर्णन । जिस स्त्री के साथ सर्वप्रथम गार्हस्थ्य सम्बन्ध जुड़ता है वह धर्मपत्नी है । उसके विवाह के समय की अन्नि का ही सभी कार्यों में उपयोग इष्ट है अन्य भार्याओं की अग्नि गौण है उनमें वेदोक्त एवं तन्त्रोक्त प्रयोग नहीं होना चाहिये : यदि उन्हें काम में भी लें तो अमन्त्रक ही प्रयोग होना चाहिए सभी स्मार्त कर्म, स्थालीपाक, श्राद्ध, या जो भी नैमित्तिक हो वह सारा प्रथम धर्मपत्नी की अग्नि में ही हो। अनेकाग्निसंसर्ग: २७०४ सम्पूर्ण अग्नियों का एकत्र संसर्ग का विधिपूर्वक विधान यदि मोह से दूसरी पत्नियों की अग्नि में यागादि का विधान किया जाय तो वह निष्फल होता है। इसके लिये फिर से मुख्य अग्नि की स्थापना कर फिर विधान __ करना लिखा है यदि धर्मपत्नी कहीं बाहर चली जाय तो वह अग्नि लौकिक हो जातो है । अत: प्रातः सायंकाल के नित्य हवन में धर्मपत्नी का उपस्थित रहना आवश्यक है सीमान्तर जाने पर उस अग्नि का फिर सन्धान (स्थापना) करना चाहिये। ___ ज्येष्ठाविपत्नीनांतरसुतानांजष्ठयकानिष्ठयविचारः २७०५ सभी कार्यों में धर्मपत्नी की ज्तेष्ठता मानी गई है भले ही दूसरी पत्नियां अवस्था में कितनी ही बड़ी क्यों न हों ३८-४२ ४३-४५ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहितस्मृति इसी प्रकार धर्मपत्नी से उत्पन्न पुत्र ही कर्मादि करने में ज्येष्ठता प्राप्त करेंगे क्योंकि दूसरी, तीसरी आदि से उत्पन्न पुत्र तो कामज है अपुत्राया दत्तकविधानवर्णन २७०७ दत्तपुत्र की जातपुत्र के समान स्नेहभाजनता एवं सम्पत्ति अधिकार जिनके पुत्र न हों उन्हें अपने पुत्र के लिये प्रस्ताव करने वाले की प्रशंसा जिसका पुत्र दत्तक लिया जाय उसे समाज के प्रमुख व्यक्तियों के सामने इष्ट, भाई-बन्धुओं को बुलाकर बिना पुत्र के माता को विधि-विधान से देना चाहिये। जो पुत्र समाज के गोत्र कुल में से दत्तकरूप में लिया जाय वास्तव में वह अपने पुत्र तुल्य है और अपुत्रक माता-पिता के लिये सर्वथा देवपंत्र्य कार्य के लिये ग्राह्य है । उस पुत्र का औरस पुत्रों के समान ही सारा अधिकार होता है ज्येष्ठ पत्नी का ही सम्पूर्ण गृह्य अग्नि एवं पाक यज्ञादि में अधिकार एवं नित्य, नैमित्तिक तथा काम्य सभी कर्मों में उसी की प्रधानता है १५३ ४६-५२ ५३-५४ यदि दत्तक पुत्र लेने के बाद उन माता-पिता के सन्तान हो जाय तो वह चतुर्थं भाग का स्वामी होने का अधिकार रखता है जब आदि धर्मपत्नी के न रहने व पुत्र न होने पर दूसरी पत्नी से जो पुत्र होगा वही ज्येष्ठत्व का अधिकारी होगा और अब - शिष्ट स्त्रियों की सन्तान कामज रहेगी आत्मज सन्तान की ही औरसत्ता कही गई है यदि कोई धर्मपत्नी के सन्तान न हुई उसने पति की इच्छा से दत्तक पुत्र लिया और संयोगवश फिर सन्तान हो गई तो दत्तक पुत्र को ज्येष्ठ पुत्र के रूप में बराबर भाग मिलेगा । यदि दत्तकपुत्र और औरस पुत्र उपस्थित हो तो औरस पुत्र को ही पिता-माता के और्ध्वदेहिक कर्म करने का अधिकार है ८६-६८ धर्मपत्न्याः गृह्याग्निकृत्येप्राबल्यम् २७१० ५५-५६ ६०-७१ ७२-७४ ७५-८५ ८६-८७ ६६-१०४ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ लोहितस्मृति मुख्य गृह्याग्नि के कार्य धर्मपत्नी के अधीन हैं। अत: वह कार्य विशेष उपस्थित हुए बिना कोई भी रूप में सीमोल्लंघन न करे अन्यथा गृह्य अग्नि लौकिक अग्नि हो जायगी और अग्नि की स्थापना फिर से करनी होगी। १०५-१०६ किसी छोटी नदी को भी यदि मोह से पार कर लिया तो फिर नई प्रतिष्ठा अग्नि सन्धान के लिये करनी होगी। ११०-११४ यदि ज्येष्ठ पत्नी कारण-विशेष से उपस्थित न हो सके बाहर गई हो तो द्वितीयादि अग्नि से श्राद्धादि विधि सम्पादित हो सकती है, परन्तु उसमें कोई भी विधि अमन्त्रक नहीं हो सकती सभी अमन्त्रक करनी चाहिए ११५-१२६ पूर्व पत्नी के न रहने से गृह्याग्नि की स्थापना के लिए जब दूसरा विवाह किया जाय तो पहले के घड़े से नूतन विवाहित स्त्री के घट में अग्नि की स्थापना की जाय १३०-१३५ अग्नि उसी समय भ्रष्ट हो जाती है, जब पत्नी चरित्र से दूषित हो १३६-१४० यदि द्वितीयाग्नि से वेद प्रतिपादित कर्म किए जाय तो ये फलदायक नहीं होते १४१-१५२ अतः पूर्व पत्नी के गृह्याग्नि को दूसरे विवाह के वर्तन में स्थापित कर धर्मपत्नीवत् सारे काम किए जाय १५३-१५५ यदि किसी दुश्चरित्र माता के दूषित होने से पूर्व पति से सन्तान हुई हो तो वह सारे वैदिक कार्यों के करने का अधिकार रखती है परन्तु दुश्चरित्र होने के बादवाली सन्तान किसी भी रूप में ग्राह्य नहीं १५६-१५७ कलियुग में पांच कर्मों का निषेध-अश्वालम्भ, गवालम्भ, एक के रहते हुए दूसरी भार्या का पाणिग्रहण, देवर से पुत्रोत्पत्ति एवं विधवा का गर्भ धारण १५८-१६६ ___द्वादशविधपुत्राः : २७१७ क्षेत्रज, गूढ़ज, व्यभिचारज, बन्धु, अबन्धु और कानीनज आदि १२ प्रकार के पुत्रों के भेद । १७०-१८६ दत्तक पुत्र लेने और देने में माता-पिता ही एक मात्र अधिकार रखते हैं दूसरे नहीं १८७-२०८ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहितस्मृति पुत्र संग्रहण की आवश्यकता दोहित्र होने पर पुत्रग्रतिग्रह नहीं करना, क्योंकि दौहित्र होने से अजात पुत्र भी पुत्र ही है किसी सम्मिलित परिवार में अविभक्त धन के भागीदार को मृत्यु हुई यदि उसके पुत्री है और पुत्र नहीं है तो दौहित्र ही पुत्र के समान सभी कार्यों को करने व कराने का अधिकारी है २२५-२२६ जो कुछ धन अपुत्रक का है उसका सारा दायित्व उस मृतक की लड़की के पुत्र का है परधनापहारकाणां दण्डविधानवर्णनम् : २७२३ जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से दूसरे के द्रव्य को अपहरण करने की अनधिकार चेष्टा करे उसे कड़ा दण्ड दे और उसे अपने देश से बाहर निकलने का आदेश दे जो व्यक्ति धर्म सङ्गत राज्य की प्रतिष्ठा में पूर्ण सहयोग दें उन्हें रक्षापूर्वक रखना चाहिए पुत्रत्वस्याधिकारितावर्णनम् : २७२५ दौहित्र को पुत्रग्रहण की योग्यता अपने इष्ट परिवार माता-पिता, श्रेष्ठ पुरुष आदि की आज्ञा से अपुत्रा विधवा स्त्री दत्तक ले जो निकट सम्बन्धी दो या दो से अधिक सन्तान वाला हो उसका कोई सा भी पुत्र अपने लिए दत्तक लिया जा सकता है यदि कोइ सा भी लूला, लङ्गड़ा, गूंगा, बहरा, अन्धा, काना, नपुंसक या कुष्ठ का दागी हो तो उसे लेना न लेना बराबर है यदि ऐसे विकलाङ्ग दत्तक लिये गए तो मन्त्र क्रिया आदि का लोप हो जाता है यदि समाज के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं परिवार के भाई-बन्धु जिसके लिये आज्ञा दें तो वह दत्तक सफल होता है अपुत्रक का दत्तक लेना दौहित्र न उत्पन्न हो तब तक प्रामाणिक है बाद में यदि दौहित्र पैदा हो जाय तो वह अप्रामाणिक है । मनु ने दौहित्रों में बड़े छोटे में किसी एक को लेने का विधान बताया है १५५ २२० २२१-२२४ २२६-२३० २३१-२३५ २३६-२४१ २४२ २४३-२४४ २४६ २४७ २४८-२५२ २५३-२५७ २५८-२६३ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहितस्मृति हां, ३ या ५, ६ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ और सबसे कनिष्ठ को छोड़ किसी एक को लिया जा सकता है २४६-२६६ यदि मोह से ज्येष्ठ को दत्तक ले लिया गया तो मौजी विवाह विधि के बाद वह अपने सगे पिता का ही पुत्र होने का अधि. कारी है दूसरे का नहीं २६७ ऐसा दत्तक पुत्र लेने वाले के किसी काम का नहीं २७० कई स्त्रियों के एक पति से पुत्र हो तो ज्येष्ठ और कनिष्ठ को छोड़ अन्य लिए जा सकते हैं २७३ एकपत्रस्य स्वीकरणनिषेध: २७२७ एक पुत्र यदि बिना स्त्री वाले के हो और विधवा स्त्री उसे दत्तक ले उसका निषेध २७४-२८५ विधवास्वीकृतपुत्रदण्डम् २७२८ जो कोई सुता और दौहित्र को तिरस्कार कर अन्य को दत्तक ले ___ उस पर राजा विशेष विधान से दण्ड लागू करे २६०-२६६ दौहित्रप्रशंसा २७२६ दौहित्र की प्रशंसा २६७-३२३ एक तन्मातामह गोत्री, दूसरा दौहित्र और तीसरा निर्दोष विवाह में कन्या प्रदान के समय मातामह एवं पिता की प्रतिज्ञा के अनुसार होने वाले सम्बन्ध से उत्पन्न सन्तान क्रमशः तन्मातामह गोत्री और दौहित्र हैं तीसरा निर्दोष तातगोत्री है। दौहित्र की श्राद्धादि कर्म में श्रोत्रिय ब्राह्मण से ज्येष्ठता ३३६-३४८ प्रत्याब्दिकाकरणे प्रत्यवायः २७३४ प्रतिवर्ष के श्राद्ध न करने से प्रत्यवाय होता है, अत: जल, तण्डुल, उड़द, मंग, दो शाक, पत्र, दक्षिणा, पात्र और ब्राह्मण ये दश श्राद्ध में उपयोग करने की वस्तुएं हैं, एक का लोप भी वाञ्छनीय नहीं। यदि आपत्काल हो तो उसके लिए अनुकल्प का विधान है ३४६-३६३ श्राद्धद्रव्याभावेऽनकल्प: २७३५ घृत के दुर्लभ होने से तैल उसका प्रतिनिधि आज्य उसके अभाव __ में दूध और उसके न मिलने पर दही यदि ये भी न मिले तो Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहितस्मृति पिष्ट के जल से मिला कर होम कर्मादिक करे । या फिर प्राप्त मधु से सब काम सिद्ध करे, किसी भी रूप में फल, पत्र और द्रव्य आदि से श्राद्ध कार्य किया जाय । इनके अभाव में आपोशानादिक क्रियायें जल से और अन्न से सम्पादन कर पिण्ड प्रदान करे और जल में विसर्जित करे अविशिष्ट को काम में लें फिर दूसरे दिन तर्पण करे । आपत्कल्प के इस विधान को शान्ति के समय काम में न ले । शुद्ध अन्न का प्रयोग जो अपनी अच्छी कमाई से लाया गया ही विहित है; सद्रव्य के द्वारा ही श्राद्ध करने का विधान उसका पाक भी श्राद्धकर्ता की स्त्री द्वारा शुद्धता से किया हुआ होना चाहिए । भावशुद्ध, विधिशुद्ध, और द्रव्यशुद्ध पाक ही श्राद्ध में ग्राह्य है ३६४-४०६ श्राद्धे पाककर्तारः २७३६ धर्मपत्नी, कुलपत्नी जो वंश में विवाहित हो, पुत्रवती हो, मातायें सम्बन्धियों की स्त्रियाँ, बूआ, बहिन, भार्या, सासु, मामी, भाई की स्त्रियाँ गुरुपत्नियाँ और इनके न मिलने पर स्वयं श्राद्ध में पाक करने वाले को प्रशस्त कहा है रण्डापाक और बन्ध्यापाक गर्हित बतलाया है हां कुल को कोई ऐसी स्त्रियां करने वाली न हो तो उपर्युक्त सभी माताओं से पाकक्रिया सम्पन्न हो सकती है मृतकार्ये कर्तुरनुकल्पनिषेधः २७४१ स्वयं के लिए ही मृतकार्य के और्ध्वदेहिक कार्य का विधान कर्त्तावृतस्याधिकारः २७४२ अद्भुत ( अनाधिकार) कर्म अकृत कर्म के समान है विधवानां निन्दा २७४३ विधवाओं को स्वतन्त्र रहने से निन्दित कहा है अतः पतिगृह या पितृगृह में ही रहना आवश्यक है रण्डाया अस्वातन्त्र्यम् २७४६ रण्डा की सम्पत्ति का अधिकार, वह उसके बेचने आदि की अधिकारिणी नहीं कई रण्डाओं के भेद १५७ ४०७-४२० ४२१ ४२२-४२६ ४२७-४३० ४३१-४४४ ४४५-४७२ ४७३-४८२ ४८३-४६३ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ विवाहात्परतः स्त्रीणामस्वातन्त्र्यवर्णनम् २७४६ विवाह के बाद स्त्रियों की अस्वतन्त्रता का वर्णन शास्त्रदृष्टि से धर्मपालन का महत्त्व पुत्र के अभाव में दत्तक का विधान वर्णन समीचीन रण्डा का वर्णन उत्तमदण्डव्यवस्थावर्णनम् २७५६ उत्तम दण्ड व्यवस्था का वर्णन सुवासिनीनां शिरःस्नान निषेधः हरिद्वास्नानविधिः २७६१ सुवासिनी स्त्रियों को ग्रहण, रजोदर्शन, मङ्गल कार्य, चण्डालस्पर्श एवं यज्ञ के आदि व अन्त इत्यादि कार्यों में शीर्षस्नान तथा हरिद्रा के चूर्ण को जल में प्रक्षेप कर स्नानविधि कही है। पतिव्रताधर्माः २७६२ पति की सेवा बड़े से बड़ा धर्म दुराचाररता रण्डां वृष्ट्वा प्रायश्चित्तवर्णनम् २७६५ दुष्टचरित्र युक्त रण्डाओं के देखने से प्रायश्चित का विधान नानादण्ड्यकर्मसु दण्ड विधानवर्णनम् २७६७ नानादण्ड्य कर्मों में दण्डविधान का वर्णन नयप्राप्तराज्ये सर्वेषां सुखित्ववर्णनम् २७६८ नयप्राप्त राज्य में सभी के सुखी रहने का वर्णन नारायणस्मृति ४६६-५०५ ५०६-५२६ ५२७-५७६ ५७७-६०८ ६०६-६४० ६४१-६४७ ६५३-६७० ६७१-६५६ ६८७-७०६ नारायणस्मृति १. नारायणदुर्वाससोः सम्वादः : २७७० नारायण दुर्वासा का सम्वाद महापातक और उपपातकों का वर्णन प्रतिग्रहजनित पाप के प्रायश्चित्त का वर्णन २. बुद्धिकृताभ्यासकृतपापानां प्रायश्चित्तवर्णनम् : २७७४ बुद्धिकृत और अभ्यासकृत पापों के प्रायश्चित्त का वर्णन ३. नानाविधदुष्कृति निस्तारोपायवर्णनम् २७७५ नाना प्रकार के पापों के निस्तार का उपाय ७१०-७२१ १-६ ७- १५ १६-४१ १-७ १-१६ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ १-२६ ३०-५५ शाण्डिल्यस्मृति ४. प्रायश्चित्तवर्णनम् : २७७७ प्रायश्चित्तों का वर्णन ५. दुष्प्रतिग्रहादिप्रायश्चित्तवर्णनम् : २७७६ पाप समाचार की गति का वर्णन पापादि को दूर करने के लिए सहस्र कलशस्थापन का विधान ६. सहस्रकलशाभिषेकः : २७८४ सहस्र कलशों से अभिषेक का वर्णन ७. कलौ नौयात्राद्यष्टकर्मणां निषेधः २७८५ कलियुग में विधवा का पुनः उद्वाह, नाव से यात्रा, मधुपर्क में पशु का वध, शूद्रान्नभोजिता, सब वर्गों में भिक्षा मांगना, ब्राह्मणों के घरों में शूद्र की पाचनक्रिया, भृग्वग्निपतन वर्जित है वेन के पास ऋषियों का अनुरोधपूर्ण आवेदन ८. अष्टनिषिद्धकर्मणां प्रायश्चित्तवर्णनम् : २७८६ धनाढ्य व्यक्तियों को आठ निषिद्ध कर्मों के करने से सहस्र कलश स्नान, पञ्चवारुण होम, गायत्री पुरुश्चरण, महादान और सहस्र ब्राह्मण भोजन इत्यादि प्रायश्चित बतलाये हैं धनहीनाय प्रायश्चित्तवर्णनम् : २७६१ धनहीन के लिए प्रायश्चित का विधान -वह शिखा सहित मुण्डिक हो पुण्यतीर्थ में, या तालाब में, आकण्ठ जल में मग्न हो अघमर्षण जाप करे १-१४ १-१३ १-१२ शाण्डिल्पस्मृति .१ आचारवर्णनम् : २७६३ आचार के विषय में मुनियों का शाण्डिल्य से प्रश्नोत्तर द्विविधादेहशद्धिवर्णनम् : २७६५ दो प्रकार की देह शुद्धि का वर्णन । दूसरे की निन्दा पारुष्य, विवाद झूठ, निजपूजा का वर्णन, अतिबन्ध प्रलय, असह्य एवं मर्म वचन, आक्षेप वचन, असत् शास्त्र एवं दुष्टों के साथ संभाषण इत्यादि दुर्गुणों को त्याग कर स्वाध्याय, जप में रत, मोक्ष एवं Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० धर्म के कार्य में निरन्तर लगना प्रिय बोलना, सत्य एवं परहितकारी वचनों का उच्चारण करना ऐसी बहुत-सी शुद्धियों का वर्णन । शिर, कण्ठ आंख और नासिका के मल को दूर करना यही सर्वाङ्गीण शुद्धि बतलाई है ज्ञानकर्मभ्यां हरिरेवोपास्य इतिवर्णनम् : २७१७ धर्म की हानि नहीं करनी चाहिये, संग्रह हो करे । धर्म एवं अधर्म का सुख व दुःख के कारण हैं । यही सनातन धर्म शास्त्र है अन्य सब भ्रामक हैं। तथा तामस व राजम हैं, यही सात्त्विक है । वेद, पुराण एवं उपनिषदों में "इदं हेयमिदं हेयमुपादेयमिदं परम्" यही बतलाया है । साक्षात्परब्रह्म देवकी पुत्र श्री कृष्ण की आराधना सर्वोत्तम है । देब, और पशु आदि का विस्तार उन्हीं से है । मनुष्य साक्षाद्ब्रह्म परं धाम सर्वकारणमव्ययम् । देवकीपुत्र एवान्ये सर्वे तत्कार्यकारिणः ।। देवा मनुष्याः पशवो मृगपक्षिसरीसृपाः । सर्वमेतज्जगद्धातुर्वासुदेवस्य विस्तृतिः ॥ ज्ञान एवं कर्म से भगवान की ही आराधना सर्वोत्तम है । वही ज्ञान है, वही सत्कर्म है एवं वही सच्छास्त्र है । जो भगवान् के चरणारविन्दों की सेवा नहीं करते हैं वे शोचनीय हैं। सात्विक राजसतामसगुणानां वर्णनम् : २७६६ प्रकृति त्रिगुणात्मिका है एवं जगत् की कारणभूता है । सम्पूर्ण संसार देव, असुर और मनुष्य इसी के विकार हैं । इस प्रकार सात्त्विक राजस और तामस गुणों का संक्षेप से वर्णन देश शुद्धि का वर्णन जहां म्लेच्छ पाषण्डी न हो धार्मिक तथा भगवद्भक्तिपरायण मनुष्य रहते हों और हिंसक जन्तुओं से शून्य हो वह स्थान शुद्ध है शाण्डिल्यस्मृति भगवत्पूजनविधिवर्णनम् : २८०१ सात प्रकार की शुद्धि कर भगवत्पूजापरायण होना चाहिए । प्रथम शरीर को तपस्यादि से शुद्ध करे अशक्त हो तो दान करे और दोनों में ही असमर्थ हो तो नामसंकीर्तन करना चाहिए । उपवास, दान, भगवद्भक्तों के सेवन, संकीर्तन, जप, तप और श्रद्धा द्वारा शुद्धि होती है १८-३६ ४०-५६ ६०-७० ७१-८२ ८३-१५ ६६-१०१ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाण्डिल्य स्मृति पराविद्याप्राप्त्यर्थमधिकारिगुरुशिष्यवर्णनम् : २८०३ विद्या की प्राप्ति के लिए आचार्य का वरण और अधिकारी शिष्य का वर्णन १०२-११२ मन, वाणी भोर कर्म से भी शिष्य अपने गुरु का अहित न विचारे कभी उनके सामने प्रमाद न करे किसी भी प्रकार की उद्विग्नता उत्पन्न करने वाले भाव, विचार, इच्छा व कर्मों को न करे । शिष्य मूढ़ पापरत, ऋ र, वेदशास्त्र के विरोधी लोगों की सङ्गति न करे इससे भक्ति में विघ्न होता है ११३-१२२ २. प्रातःकृत्यवर्णनम् : २८०५ ऋषियों का प्रातः कृत्य के विषय में प्रश्न और महर्षि शाण्डिल्य द्वारा स्नान सन्ध्या आदि को लेकर विस्तार से प्रातःकाल के कर्तव्यों का वर्णन । शय्या को छोड़ने के बाद सर्व प्रथम भगवान् गोविन्द के दिव्य नामों का संकीर्तन करते हुए वस्त्र और दण्डादि कमण्डलु लेकर अपने मस्तक पर कपड़ा बांधकर मलमूत्र त्याग करने के लिए गांव के बाहर जावे । पेशाब, मैथुन स्नान, भोजन, दन्तधावन, यज्ञ और सामूहिक हवन में मौन धारण करने की विधि है। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रख कर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए। मल-मूत्र करने में जो स्थान वजित हैं उनका परिगणन १०-१२ मल-मूत्र त्याग के समय, देवता, शत्रु, शिष्य, अग्नि, गुरु, वृद्ध पुरुष और स्त्री को न देखे । अधिक समय तक मल-मूत्र न करे केवल भाकाश, दिशा, तारा, गृह और अभेध्य वस्तुओं को देखे १३-१४ मिट्टी से गुदा और लिङ्ग को जल से धोवे। फिर हाथ होकर दन्तधावन करे । स्नान के लिए तीर्थ, समुद्रादि, तालाब, कूप और झरने का जल विशेष प्रयोजनीय है १५-२० जल को अङ्गों से अधिक न पीटे न जल में कुल्ला किया जाय और देह का मल भी जल में न छोड़ा जाय फिर बाहर आकर सन्ध्या कर्म के लिए स्थान को धोवे और कपड़े बदले २१-२८ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ शाण्डिल्य स्मृति स्नान प्रकरण के साथ नित्य कृत्यों का वर्णन २८-६१ ३. उपादानविधिवर्णनम् : २८१३ द्वितीयकाल में करने योग्य भगवत्पूजन आदि का वर्णन । भक्ति का लाभ जो श्रद्धालु एवं अपवर्ग के सुख को जानने वाले हैं उन्हें ही मिलता है १-४६ बाह्य और आभ्यन्तर शुद्धियों का वर्णन । भोजन को अग्निदेव के समर्पण करने का वर्णन ५०-६० पाक में निषद्ध वृक्षों का इन्धन जलाने के लिए परिगणन ११-१०८ निषिद्ध और ग्रहण योग्य वस्तुओं का वर्णन १०६-१२० ग्राह्य और निषिद्ध पेय का वर्णन १२१-१३५ भोजन बनाने में कुशल सती स्त्री एवं निषिद्ध स्त्रियों के लक्षण १३६-१५० स्त्री के साथ सद्व्यवहार का वर्णन १५१-१५८ इस प्रकार भगवत्प्रीत्यर्थ उपादानो का उपयोग कर गृहस्थ सुखी होता है १५८-१६३ ४. इज्याचारवर्णनम् : २८२६ एक देव की पूजा ही इष्ट है, भगवद्भक्ति विषयक नियमों का विस्तार से वर्णन । भागवतों की सदा पूजा करनी चाहिए। विष्णुभक्त गृहस्थों के कर्मों का वर्णन भगवत्पूजा प्रकार, शास्त्रों के श्रवण पठन का महत्त्व वर्णन, योगविधि का वर्णन, उपवास की प्रशंसा १-२४२ ५. रात्रावन्त्ययामे योगकृत्यवर्णनम् : २८५१ भगवत्पूजा करने का विधान । योगधर्म वर्णन । भगवद्भक्त के शीलाचार का निरूपण सभी कर्मों को भगवदर्पण बुद्धि से करने वाले मनुष्य का जन्म सफल होता है। शास्त्र की प्रशंसा १.८१ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्व स्मृति कण्वस्मृति धर्मसार धर्मकर्तव्य नित्यनैमित्तिककर्म : २८६० युगभेद से ब्रह्मवेत्ता आदि ऋषियों ने कण्व ऋषि से सनातन धर्मों के विषय में पूछा धर्मकत्तंग्यवर्णन - जिस व्यक्ति की बुद्धि ऐसी है कि क्रिया, कर्त्ता, कारयिता, कारण और उसका फल सब कुछ हरि है वही स्थिर बुद्धि का है, उसका जीवन सफल है परमेश्वरप्रीत्यर्थं किया हुआ कर्म ही सफल है । सत्सङ्कल्प एवं उसका फल नित्यनैमित्तिक कर्मों का फल निर्णय नित्यकृत्य का वर्णन प्रातः काल में स्मरण करने योग्य कीर्त्य महानुभावों का वर्णन प्रातः शौचस्नानादि क्रियाओं का वर्णन गण्डूष के समय शब्द का निषेध और उसका प्रायश्चित का वर्णन भक्षण एवं खाने के समय भी शब्द करने का निषेध मूत्रपुरीषोत्सर्ग में गण्डूष के बाद आचमन का विधान गृहस्थों का मृत्तिका शौच का विधान शुभकर्मों में सर्वत्र आचमन का विधान नित्यकर्मों में उलट-फेर करने से फल नहीं होता है स्नान के समय आवश्यक कृत्य जैसे सन्ध्या, अर्घ्य, गायत्री मन्त्र वायव्य स्नान का अन्य स्नानों से श्रेष्ठत्व वर्णन सन्ध्याओं का विधान साथ ही गायत्री जप का माहात्म्य सन्ध्या ही सबका मूल है १६३ का जप देवर्षिपितृतर्पण, स्नानाङ्गतर्पण अवश्य करने चाहिए १५१-१५८ कण्ठस्नान, कटिस्नान, पादस्नान, कापिल स्नान, प्रोक्षणस्नान स्नात स्नान एवं शुद्ध वस्त्र धारण करने का विधान, जैसा शरीर माने वैसा करे १-५ ६-१० ११-६१ ४-५० ५१-७४ ७५-८० ८१-६४ ६५-६७ ६८-१०४ १०५-११६ ११७-१२६ १२७-१४० १४१-१५० १५६-१६६ १६१-१६७ १६८-१७० १७१-१६८ १६६ - २०६ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ गायत्री मन्त्र का वैशिष्ट्य वर्णन वेद पठन का अधिकार गायत्री से ही शक्य है सम्यक्प्रकार गायत्री जप का फल वर्णन सन्ध्या गायत्री और वेदाध्ययन का फल कब नहीं मिलता कलि में गायत्री मन्त्र का प्राधान्य मूक ब्राह्मण का वेदादि व वैदिक कर्मों के करने में योग्यता का वर्णन वैदिक कृत्य की सब में प्रधानता ब्रह्मार्पण बुद्धि से ही सब कर्मों का अनुष्ठान इष्ट है एक कार्य के अनुष्ठान में कार्यान्तर (दूसरा काम ) वर्जित है उपासना का महत्त्व गार्हपत्य अग्नि की स्थापना और उसके उपयोग का वर्णन नित्य होम एवं अग्नि के उपस्थान का विधान पञ्चपाक न करने की अवस्था में विकल्प का विधान पञ्चमहायज्ञों का निरूपण ब्रह्मवेदाध्ययन में अधिकारी होने का वर्णन ब्रह्मज्ञान की एक साधना का उपासनाक्रम प्रयोग अग्निहोत्र, दर्शादि एवं आग्रयण, सोत्रामणि और पितृयज्ञों का निरूपण वेदों के अनभ्यास से मानव चरित्र का सांस्कृतिक विकास सदा के लिए रुक जाने से राष्ट्र की अवनति होती है चित्तशुद्धि के लिए वेदोक्त मार्ग ही श्रेयस्कर है चार पितृ कर्मों का वर्णन, उन्हें यथाशक्ति करने का आदेश विविध ऋणों से छुटकारा पाने का प्रकार वैदिक कर्मों की तुलना में अन्य कार्यों का गौणत्व वर्णन एवं दिव्य भाषा की योग्यता नित्यनैमित्तिक कर्मों में विष्णु का आराधन वर्णन दौर्ब्राह्मण्य से मनुष्य सदा दूर रहे कण्व स्मृति २०७-२२३ २२३-२२८ २२६-२४१ २४२-२५६ २६०-२६६ २७०-२८० २८१-३०० ३०१-३२५ ३२६-३२७ ३२६-३३४ ३४०-३४६ ३५०-३६० ३६१-३७१ ३७२-३८३ ३८४-३६४ ३६५-४१४ ४१५-४२६ ४२७-४३३ ४३४-४३७ ४३८-४४३ ४४४-४६८ ४६६-४७७ ४७८-४८१ ४८३-४८८ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्व स्मृति अग्निष्टोम और अतिरात्रों का अनुष्ठान श्रेयस्कर है, सप्तसोम ___ संस्था के पाकयज्ञों का विधान ४८8-४६४ इन अनुष्ठानों को न करने से प्रत्यवायिक दोषों का निरूपण ४६५-४६७ ब्रह्मचारी के नित्यकृत्यों का वर्णन ४६८-५०२ जातकर्म, चौल, प्राजापत्य, उपाकर्म आदि का विधान ५०३-५१३ भिन्न-भिन्न अनुवाकों का वर्णन ५१४-५२६ नाना काण्डों का वर्णन ५२७-५३७ ब्रह्मचारी वेदव्रतों का सम्पादन कर विधिपूर्वक स्नातकधर्म में दीक्षित हो ५३८-५४९ गृहस्थ में प्रवेश लिए लक्षणवती स्त्री से विवाह और उसके साथ वैदिक विधि से गृहप्रवेश व अग्निहोत्र का विधान ५४०-५४५ गृहस्थ के लिये नित्य कर्तव्य विधि का वर्णन ५४६-५५३ फिर इष्ट कर्तव्य एवं अनिष्ट कर्तव्यों का परिगणन ५५४-५६२ प्रातःकाल से सायंकाल तक के कर्तव्यों का निर्देश ५६३-५७३ गृहस्थ भगवान् लक्ष्मीनारायण का ध्यान सदैव करे । गृहस्थ को आने वाले सभी सम्मान्य गुरुजन अतिथि एवं विशिष्ट जनों की पूजा का विधान ५७४-५६० उपयुक्त पाकों का विधान और उनके करने वाले स्त्री पुरुषों का वर्णन ५६१-६०१ पंक्ति वज्यं भोजन में दोष वर्णन ६०२-६०५ गृहस्थ के लिए पठनीय एवं करणीय विधान ६०६-६१३ कन्दमूल फल जो भक्ष हैं उनका विधान ६१४-६१६ यज्ञों का ब्रह्मज्ञाम के समान फल वर्णन ६२०-६३६ शेषहोम के विधान का वर्णन ६३७-६५६ ब्राह्मणादि का पूजन ६५७-६७७ पुत्र विवाह से पुत्री विवाह की विशेषता । सुपात्र में कन्यादान पुत्र से सौ गुणा अधिक बताया है ६७८-७०० गोत्रपरिवर्तन के सम्बन्ध में नाना मत ७०१-७२२ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ दाल्भ्यस्मृति वंश के उद्धार के लिए दत्तक पुत्र का विधान दत्तक में दौहित्र की योग्यता श्राद्धकृत्य में निर्दिष्ट का अन्य कृत्य नियोजन में निषेध एक काल में बहुत से श्राद्ध आने पर कृत्यों का सम्पादन प्रकार ब्रह्मवेदी ब्राह्मण का माहात्म्य ७२३-७४३ ७४४-७५५ ७५६-७८६ ७८६-७८८ ७८६-७६२ १-१६ २०-४१ ४२-५४ ५५-५६ दाल्भ्यस्मृति षोडशश्राद्धवर्णनम् : २६३३ दाल्भ्य से ऋषियों का धर्माधर्म विवेक, मतशुद्धि, मासशुद्धि, श्राद्ध कालादि के सम्बन्ध में प्रश्न, इष्टापूर्त को लेकर दाल्भ्य द्वारा विशेष प्रशंसा, पितरों के तर्पण का विधान १६ श्राद्धों का वर्णन श्राद्ध में निषिद्ध कर्मों का परिगणन श्राद्ध में भोजन करने वाले के लिए आठ वस्तुओं का त्याग श्राद्धकरण में पुत्र का अधिकार शस्त्रहतकानां श्राद्धवर्णनम् : २६४१ नाना सम्बन्धियों के भिन्न-भिन्न दिनों में श्राद्ध का विधान । शस्त्र हतक के श्राद्ध दिन का वर्णन मृतक का श्राद्ध दिन अविदित हो तो एकादशी को श्राद्ध किया जाय आम श्राद्ध के करने का विधान पहले माता का श्राद्ध फिर पितरों का फिर मातामहों का ब्रह्मघातक का लक्षण, इनके स्पर्श करने से स्नान और भोजन करने से कृच्छ्सान्तपन का विधान । जो चाण्डाली में अकाम ६८-७० ७१-८० ८१ ८२-८५ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाल्भ्यस्मति १६७ से गमन करे उसके लिए मान्तपन एवं दो प्राजापत्य का विधान । सकाम चाण्डाली गमन करने वाले को चान्द्रायण और दो तप्तकृच्छ का प्रायश्चित करने का विधान ८६-६६ गोहत्या के लिए प्रायश्चित का विधान ६७-१०२ रोध, बन्धन, अतिवाह और अतिदोह का प्रायश्चित विधान १०३-१०८ वृषभ की हत्या का प्रायश्चित १०६-११० गोदोहन का नियम दो महीने बछड़े को पिलावे व दो मास दो स्तनों का दोहन करे तथा दो मास एक वक्त शेष समय में अपनी इच्छा हो वैसे करे। द्वौमासौ पाययेद्वत्स द्वौ मासौ हौस्तनौ दुहेत् । द्वौमासौ चकवेलायां शेषं कालं यथेच्छया ॥११॥ किन-किन स्थानों में प्रायश्चित्त नहीं लगता इसका वर्णन ११२-११३ किन-किन को प्रायश्चित्त न करने का पाप लगता है ११४ अशौच का निर्णय वर्णन ११५-१२१ किसी हीन से सम्पर्क करने में दोष कहा है १२२-१२३ सूतक और मृतक के आशौच का विधान १२४-१२६ आशौचनिर्णयवर्णनम् : २६४३ बाल, शिशु एवं कुमार की परिभाषा १३० विवाह, चौल और उपनयन में यदि गाता रजस्वला हो जाय तो शुद्धि के बाद मङ्गल कार्य करे १३१-१३२ कोई कार्य प्रारम्भ हो और सूतक का आशौच हो जावे तो कार्य के सम्पादन का विधान १३४ श्राद्ध कर्म उपस्थित होने पर निमन्त्रित ब्राह्मण आवें तो सूतक का आशौच नहीं लगता व उस कार्य में सम्पादन का विधान देशान्तरपरिभाषावर्णनम् : २६४५ ब्राह्मणों के भोजन करते हुए यदि सूतक हो जाय तो दूसरे के घर से जल लाकर आचमन करा देने से शुद्धि हो जाती है १३७ देशान्तर में यदि कोई सपिण्ड मर जाय तो सद्यः स्नान से शुद्धि कही गई है १३८ १३५ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अङ्गिरसस्मृति देशान्तर की परिभाषा ६० योजन दूर या २४ योजन अथवा ३० योजन दूर को देशान्तर बताया है या बोली का अन्तर या पर्वत का व्यवधान तथा महानदी बीच में पड़ जाती हो तो देशान्तर कहा जाता है १३६-१४० शुद्धाशुद्धिवर्णनम् : २६४७ आशौच का विशेष रूप से वर्णन-सूतक एवं मृतक आशौच का प्रारम्भ कब से माना जाय इसका निर्णय । रजस्वला के मरने पर तीन रात के बाद शवधर्म का कार्य सम्पादन किया जाय । शुद्धाशुद्धि क वर्णन १४१-१६३ स्पृष्टास्पृष्टि कहां नहीं होती इसका वर्णन दिन में कैथ की छाया में, रात्रि में दही एवं शमी के वृक्षों में सप्तमी में आंवले के पेड़ में अलक्ष्मी सदा रहती है अत: उनका सेवन न करे शूर्प (सूप) की हवा, नख से जलबिन्दु का ग्रहण केश एवं वस्त्र गिरे __ हुए घड़े का जल और कूड़े के साथ बुहारी इनसे पूर्वकृत पुण्य का नाश होता है जहां कहीं भी शुद्धि की आवश्यकता हो वहां-वहां तिलों से होम एवं गायत्री मन्त्र के जप से शुद्धि कही गई है १६३ १६६ धाङ्गिरसस्मृति पूर्वाङ्गिरसम् आङ्गिरसम्प्रति ऋषीणांम्प्रश्न : २६४६ धर्म का स्वरूप वर्णन वैदिक कर्मों को पुराणोक्त मन्त्रों से न करे ५-६ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आङ्गिरसस्मृति मन्त्र के अभाव में व्याहृतियों को काम में लिया जाय । व्याहृतियों का महत्व वर्णन जात कर्मादि संस्कारों का अतिक्रम होने पर प्रायश्चित श्राद्धापकानन्तरमाशौचे निर्णय: : २६५१ श्राद्धपाक के बाद यदि आशौच हो जाय तो विधान । उस क्रिया के करने में ऋत्विकगण को वह बाधक नहीं हो सकता पाकारम्भ के बाद यदि आसपास में कोई मृत्यु हो तो श्राद्ध दूषित नहीं होता पाकारम्भ से पूर्व भी यदि कोई मृत्यु हो तो वह न करे वशं पूर्णमास इष्टि पशुबन्ध के अनन्तर श्राद्ध महादीक्षा में श्राद्ध खर्वदीक्षा का श्राद्ध दीक्षावृद्धि में श्राद्ध दीक्षा के बीच में मृत्यु होने से नहीं होता वैदिक कर्म का प्राबल्य सूतिकाशौच अथवा मृतकाशौच में वैदिक कर्म न करे, आवश्यक है सतत आशौच होने पर श्राद्ध करने के लिए उस ग्राम को छोड़ दूसरे ग्राम में जाकर श्राद्ध करे शिखा निर्णयवर्णनम् : २६५५ अस्पृश्यता शत्रु के द्वारा छिन्न शिखा हो जाने पर गौ के पुच्छ के समान बाल रखकर प्राजापत्य व्रत कर संस्कार से शुद्धि कही गई है मध्यच्छेद में भी वही बात है। रोगादिसे नष्ट होने पर भी पूर्ववत् विधान है ७० वर्ष की अवस्था में शिखा न रहने पर आस-पास के बालों को शिखा के समान मान ले पांच बार शत्रु से शिखाछेद होने पर ब्राह्मण्य नष्ट हो जाता है सूतकादि से श्राद्ध में विघ्न होने से स्त्री संभोग होने पर गर्भ रहे तो ब्रह्महत्या व्रत का विधान १६६ ७-१४ १५-२१ २२-२४ २५ २६-२८ २६-३३ ३४-३६ ३६-३७ ३०-४० ४१-४३ ૪૪ ४५-४८ ४६-५५ ५६-५७ ५८ ५८-६० ६१-६३ ६४-६६ ६६-६६ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० आङ्गिरसस्मृति त्रिप्रायक श्राद्ध का वर्णन ७१-७६ लाजहोम से पूर्व यदि वधू रजस्वला हो तो "हविष्मती" इस मन्त्र से नो कुम्भों के विधान से स्नान कर वस्त्र बदलने से शुद्धि ७७-८१ लाजहोम के बाद होने पर स्नान कराकर अवशिष्ट निमन्त्रक विधि करे और शुद्ध होने पर समन्त्रक विधि यथावत् करे ८२-८४ औपासन अभी आरम्भ न हो और दूसरे दिन रजस्वला हो तो उसी प्रकार अमन्त्रक विधि एवं शुद्ध होने पर मन्त्रोच्चारण के साथ क्रिया करे ८५-६३ आशौच में नित्यनैमित्तिक कर्मों का वर्जन ६४-६५ इनसे प्रेतकृत्य का नाश होता है अतः वजित हैं ६५-६७ अत्यन्याय, अतिद्रोह और अतिक्र रता कलि में भी वजित है । अति अक्रम और अतिशास्त्र भी वर्जित है ६८-१०३ जीवत्पितृक पिण्ड पितृ यज्ञ श्राद्ध का वर्णन १०४-१०७ पिता यदि सन्यास ले ले तो पातित्यादि दूषित होने पर उनके पितादि के श्राद्ध का विधान १०८-११७ इसी प्रकार चाचा आदि की स्त्रियों का ११८-१२० गीणमाता के श्राद्ध का विधान १२१-१२५ श्राद्धाधिकार और श्राद्ध कर्ता गौणपिता के लिए भाई का पुत्र सपत्नीक कृतकृिय भी पुत्र संज्ञा पाता है १२६-१२६ गोत्र नाम का अनुबन्ध व्यत्यास होने पर फिर कर्म करे १३०-१३२ अनाथप्रेतसंस्कारेऽश्वमेधफलवर्णनम् : २६६३ कर्ता के दूर होने पर प्रेष्यत्व करे १३३-१३४ अन्य से करने पर, वाङ्मात्रदान करने पर श्राद्धमात्र होता है १३५-१३८ भ्रष्ट एवं पतितों का घट स्फोटन का अधिकार १३६-१४० अनाथप्रेत के संस्कार करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है व प्रेत के संस्कार न करने में दोष १४२-१४३ विप्र की आज्ञा से यतिकृत्य १४४-१४७ कर्ता के निकट होने पर अकर्तृकृत को फिर करे १४८ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आङ्गिरसस्मृति १७१ असगोत्रों के संस्कार में आशौच १४६ माता-पिता के मताह का परित्याग होने पर प्रायश्चित १५०-१५१ नदी स्नान से निष्कृति या संहिता पाठ १५२-१५६ वेदमहिमा १५७-१५६ ब्राह्मण का वेदाधिकार १६०-१६३ स्नान का सब विधियों में प्राधान्य १६४ सम्पूर्ण कार्यों में स्नान ही मूल कारण बताया है १६५-१६७ अस्पृश्य स्पर्शनादि कर्माङ्गस्नान १६८-१७१ वमन में स्नान १७२ वमन में स्नान न कर सके तो वस्त्र बदल ले १७३-१७४ शाकमूलादि के वमन में स्नान १७५-१७६ रात्रि में वमन में स्नान १७७ अपने गोत्र के छोड़ने पर अन्य गोत्र के स्वीकार करने का दोष १७८-१७६ अर्धोदय, महोदय एवं योग का विधान १८०-१८३ स्त्री के पत्यन्य के साथ चितारोहण होने पर पुत्र का कृत्य १८५-१६१ स्त्रीणां पुनर्विवाहे प्रायश्चित्तवर्णनम् : २९६६ जातिभेद से निष्कृति १६२ स्त्री के पुनर्विवाह में दोष जैसे पुनर्विवाहिता मूढः पितृभ्रातमुखैः खलः । यदि सा तेऽखिलाः सर्वे स्य निरयगामिनः ॥१३॥ पुनविवाहिता सा तु महारौरवभागिनी । तस्पतिः पितभिः सार्घ कालसूत्रगगो भवेत् । दाता चाङ्गारशयननामकं प्रविपद्यते ।।१६४।। यदि मूर्ख एवं दुष्ट पिता व भाई आदि के द्वारा फिर स्त्री विवा हित की जाय तो वे सब नरकगामी होते हैं और वह स्त्री महारौरव नरक में जाती है, व उसका विवाहित पति अपने पितरों के साथ कालसूत्र नामक नरक में गिरता है एवं देने वाला अङ्गारशयन नाम वाले नरक में जाता है। पुनर्विवाह के दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्त का कथन १६३-२०४ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ भ्रान्ति से पुत्रिकादि विवाह होने पर चन्द्रायणादि करने से स्वमात्र की शुद्धि २०५ -२०७ पुत्र होने पर व्रत का विधान २०८-२११ एक, दो, तीन और चार-पांच बार विवाहिता होने पर प्रायश्चित्त २१२-२१७ उससे तो वेश्या की विशेषता २१८-२२४ प्रविष्ट परपति के काय द्वारा संयोग होने पर प्रायश्चित्त २२५-२२७ अग्राह्य और ग्राह्यमूर्ति का वर्णन २२८-२२६ अग्राह्यमूर्ति का निवेद्य २३०-२३८ भगवत्प्रसाद ग्रहण में भक्षणविधि २३६ अत्युष्ण निवेदन करने पर नरकगामी होता है २४१-१४२ निवेदन प्रकार २४१-२४५ गृहस्थस्य रात्रावुष्णोवकस्नानवर्णनम् : २६७५ निवेदित का स्वीकार प्रकार निवेदित वस्तु बच्चों को दे गृहस्थ द्वारा रात्रि में गर्म जल से स्नान अभ्यङ्ग का विधान माध्याह्निक एवं क्षुर स्नान का वर्णन प्रातः सायं पर्वादि में अभ्यञ्जन स्नान सोदकुम्भ नान्दी श्राद्ध में अभ्यञ्जन स्नान कोशस्थित नदी स्नान से श्राद्ध विधान सङ्कल्प पितृ श्राद्ध के व्यत्यास में फिर करने का विधान शून्यतिथि में करने से फिर करे पितृ श्राद्ध के बाद कारुण्य श्राद्ध माता-पिता का श्राद्ध एक दिन हो तो अन्न से करे चात्रिक श्राद्ध ग्रहण में भोजन निषेध वृद्ध बाल और आतुरों को छोड़कर अत्यन्त आतुरों को भी छूट अङ्गिरसस्मृति २४६-२४७ २४८ २४६-२५० _२५१-२५३ २५४-२५७ २५८-२६२ २६३-२६६ २६७ २६८-२७१ २७२ २७३-२७४ २७५-२७६ २७७-२७६ २८०-२६१ २८२-२६१ २६२-२६७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आङ्गिरसस्मृति प्रस्तास्त शुद्ध होने पर सकामी व निष्कामीजन के लिए भोजन का विधान २६८-३०० मातापितभ्यां पितुःदानं ग्रहणञ्च : २९८१ अग्निहोत्र वर्णन दत्तपुत्र वर्णन ३०२ माता-पिता द्वारा देने और लेने का विधान ३०३-३१३ पुत्र संग्रह अवश्य करना चाहिए ३१४-३१५ अपुत्र की कहीं गति नहीं ३१६ पुत्रवान् की महत्ता का वर्णन ३१७-३२३ पुत्र उत्पन्न होने पर उसका मुख देखना धर्म है ३२४-३२६ वृत्तिदत्तादि पुत्रों का वर्णन ३२७-३३५ सगोत्रों में न मिले तो अन्य सजातियों में से पुत्र को ले अथवा सवर्ण में ले ३३६-३३७ असगोत्र स्वीकृति में निषेध ३३८-३४२ विवाह में दो गोत्रों को छोड़ने का विधान ३४३-३४४ अभिवन्दनादि में दो गोत्र का वर्णन ३४५-३४६ गोत्र और ऋषियों का विचार ३४७-३५१ दत्तजादि का पूर्व गोत्र ३५२-३५८ भ्रातपुत्रादिपरिग्रहवर्णनम् : २६८७ भ्राता के पुत्र को लेने में विवाह और होमादि की क्रिया नहीं केवल वाणीमात्र से ही पुत्र से ही पुत्र संज्ञा कही है ३५६ भ्राता के पुत्र का परिग्रह। ३६०-३६३ किसी पुत्र को लेने के लिए स्वीकृत होने पर यदि औरस पुत्र हो तो दोनों को रखे नहीं पाप लगता है ३६४-३६७ पुत्रदान के समय में जो कहा गया उसे पूरा करना चाहिए ३६८-३७५ भाई के पुत्र को लेने पर दिए हुए का समांश औरस गोत्र का चौथा हिस्सा ३७६-३८० दत्तक से औरस उपनीत न होने पर प्रायश्चित्त ३८१-३८२ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ आङ्गिरसस्मृति भार्या पुरुष का पुत्र ग्रहण ३८३-३८८ उस समय की प्रतिज्ञा पूरी न करने से दोष ३८६-३६६ सपत्नियों में पुत्र के ग्रहण के समय जो रहे तो वह माता दूसरी सपत्नी माता ३६०-३६१ अन्य मातामहादि का स्थान ३६२-३९५ सपत्नी का पिता मातामह नहीं ३६६ पत्नी माता का तर्पण ३६६-३६८ प्रौपासनाग्नौ श्राद्धेऽप्रमादवर्णन : २६६१ सपत्नी माता का औपासन अग्नि में श्राद्ध ३६६ सपत्नी की अग्नि ४००-४०१ भाई के पुत्र के ग्रहण की विधि ४०२-४११ विभाग में भाई बराबर है ४१२-४१३ कामज पुत्रों का वर्णन ४१४-४३३ दत्तादि में विशेष ४३४-४४५ पत्नी की वैशिष्ट्यता ४४६-४४६ पुत्रों का ज्येष्ठ कानिष्ठय ४५० भोगिनी ४५१ भर्मणा, वा वातादि पत्नियों का वर्णन ४५६-४६४ धर्मपत्नी से उत्पन्न शिशु का ही स्पर्श मात्र कर्तव्य ४६५-४७१ सन्निधि भी स्पर्शमात्र कर्तृत्व ४७२-४७४ श्राद्धादि में अत्यन्त तृप्तिकर पदार्थ ४७५-४८१ गौरी दान वृषोत्सर्ग व पितरों को अत्यन्त तृप्ति कर कहे हैं ४८२-४८३ जकारपंचक का वर्णन ४८४-४८५ ग्रहण श्राद्ध का लक्षण ४८६-४६५ पनस स्थापित महान् विशेष है ४६६-५०३ अलर्कश्राद्ध ५०४-५०८ श्राद्धाहंदिव्यशाफवर्णन : ३००३ श्राद्ध के योग दिव्य शाक ५०६-५३० पनस की महिमा ५३१-५७१ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आङ्गिरसस्मृति १७५ रोदन का फल ५७२-५८५ उर्वारु महिमा ५८६-६०३ उर्वारु को छोड़ने में दोष ६०४-६०५ छियानवे श्राद्धों का वर्णन १०८ श्राद्ध प्रकृति श्राद्ध, दशं श्राद्ध, दर्श और आव्दिक समान हैं मन्वादि श्राद्ध, संक्रान्ति श्राद्ध, संक्रान्ति पुण्यवास ६२०-६४८ अन्न श्राद्ध में कुतप ६४६-६५४ दर्श संक्रान्ति आदि श्राद्ध ६५५-६५७ महालय ६५७-६५६ श्राद्ध देवता पित्र्य कर्मों में प्रदक्षिणा न करे । शून्य ललाट रहे गहालङ्कार भी न करे ६६५-६६७ मार्तवर्ग में प्रदक्षिणादि और अलङ्कार ६६८-६७० श्राद्धभेद से विश्वेदेव, सापिण्ड वर्णन ६७१-६७५ आशौच दश, तीन और एक दिन रहता है ६७६-६८३ अमादि श्राद्ध में कर्तव्य ६८४-६८७ एकोद्दिष्ट के अधिकारी ६८८-६६३ अपिण्डक और सपिण्डक श्राद्ध ६६०-६६० छियानवे श्राद्धों की संख्या का विचार ६६४-७०० महालय, सकृन्महालय में भरण्यादि की विशेषता महालय का काल यतियों का महालय, दुर्मूतों का महालय ७०१-७०६ सुमङ्गली का श्राद्ध ७१०-७१८ रवि के उदय से पूर्व तर्पण ७१६ निमन्त्रणाहविप्राणांवर्णन : ३०२५ जीवत्पितक श्राद्ध ७२०-७२२ श्राद्ध में वैदिक अग्नि के अधिकारी ७२३-७२६ अष्टकामासिक श्राद्ध ७२७-७३२ श्राद्ध प्रयोग में निमन्त्रण के योग्य व्यक्तियों का वर्णन ७३३-७३६ वेदहीन को निमन्त्रण देने पर निषेध एवं प्रायश्चित्त ७३७-७४० Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ अपने शाखा के ब्राह्मण की ही श्लाध्यता श्राद्ध में अभोज्य वरण प्रसाद के लिए दर्भदान मण्डल पूजा गुल्फों के नीचे धोना आचमन कर्ता के पहले भोक्ता का आचमन देवादि के भोजन की दिशा वरणत्रयकाल, विष्टर, अध्यं, आवाहन गन्धाक्षतादि दान अग्नीकरण फिर सङ्कल्प परिवेषण परिवेषणेपौर्वापर्य वर्णन : ३०३३ मध्यम पिण्ड का परिमार्जन कर धर्मपत्नी को दे दे श्राद्ध दिन में शूद्र भोजन निषिद्ध पिता के भोजन के पात्र गाड़ दिए जायें पौर्वापर्य में पहले सूप देना रक्षोघ्न मन्त्र यदि असमर्थ हो तो दूसरे द्वारा बोला जाए गरम ही परोसना चाहिए मन्त्र बोले जाय मन्त्रों की विकलता नाश के लिए वेद का घोष शास्त्र - विरोधित्याज्य हैं तिलोदक पिण्डदान नमस्कार अर्चन, पुत्रकलत्रादि के साथ पितृ आदि की प्रदक्षिणा व नमस्कार आङ्गिरस स्मृति ७४१-७४२ ७४३-७६८ ७६६-७७४ ७७५-७७६ ७७७-७७६ ७८०-७८१ कर्म के मध्य में ज्ञानाज्ञानकृत दोष का प्रायश्चित्त उच्छिष्टादि श्राद्ध में सात पवित्र ७८२-८०१ ८०२-८०७ ८०८-८१४ ८१५-८१८ ८१६ -८२५ ८२६-८४८ ८४६-८६० उद कुम्भ ८७५-८७७ प्रथम वर्ष तिल तर्पण न करे सपिण्डीकरण के बाद श्राद्धाङ्गतर्पण ८७८-८८२ श्राद्ध में निमन्त्रित ब्राह्मणों की पूजा का वर्णन ८८३-८६२ पितरों के निमित्त रजत और देवता के निमित्त स्वर्ण मुद्रा दे । उपस्थान और अनुब्रजनादि का कथन ८६१-८६८ ८६६-८७२ ८७३ ८७४ ८६३-८६७ 585-808 ६०५-६०६ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आङ्गिरसस्मृति १७७ करे उच्छिष्ट, निर्माल्य, गङ्गामहिमा, महानदी, नदियों का रजस्वलात्व, पुण्यक्षेत्र ६१०-६४२ वमन ६४३-६४५ फिर श्राद्ध प्रकरण ६४६-६५० अनुमासिक में उच्छिष्ट वमन में व उच्छिष्ट के उच्छिष्ट स्पर्श में विचार ६५१-९५६ एक दूसरे के स्पर्श में ६६०-६६४ दर्शादि में छींक आने पर विचार ६६५-६७३ अपुत्र की सापिण्ड्यता ६७४-६७५ पति के साथ अनुगमन में पत्नी का एक साथ ही पिण्डदान ६७६-६७८ मत के ग्यारहवें दिन या दूसरे दिन सहगमन में श्राद्ध ९८३-६८८ यदि पत्नी ऋतुकाल में हो पति के मरण पर तो पति को तेल की कड़ाही में छोड़ दे और शुद्ध होने पर ही औवंदेहिक संस्कार ९८९-९६५ उसका पिण्ड संयोजन माता के सापिण्ड्य न होने का स्थल ९६७-६६८ दत्तपुत्र का पालक पिता का सापिण्ड्य होता है ६६६ दत्तपुत्र का औरसपिता के प्रति कृत्य १०००-१००५ अन्य गोत्र दत्त का सपिण्डीकरण में विधान १००६-१००८ कथा तृप्ति १००६-२२ श्राद्ध के दिन दान जप न करे १०२३-१०२७ दर्श में मृताह के श्राद्ध को पहले करे १०२८ मताह के दिन मातामहादि का श्राद्ध हो तो मन्वादिक श्राद्ध करे १०२६-१०३१ मताह में नित्यनैमित्तिक आ जायें तो नैमित्तिक पहले करे १०३२-१०३४ दर्श में बहुश्राद्ध हों तो दर्शादि को कर फिर कारुण्य श्राद्ध करे उसमें मत-मतान्तर १०३५-१०४४ किन्हीं का कल्प प्रकार १०४५-१०५६ भ्रष्टक्रिया का विधान, पतित की पच्चीस वर्ष के बाद क्रिया हो १०६०-१०७२ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ श्राद्धाङ्ग तर्पण दूसरे दिन उद्देश्य त्याग के समय सव्यविकिर न करे वमन में कर्ता के भोजन न करने पर अर्ध तृप्ति, तिल द्रोण का विधान, दर्शश्राद्ध तर्पण रूप से तिल ही मुख्य हैं। सभी कर्मों में जल की प्रधानता विधि: आङ्गिरस (२) उत्तराङ्गिरसम् १ धर्षत्प्रायश्चित्तवर्णन : ३०६६ २ परिषद उपस्थानलक्षणम् : २०६७ परिषद् के उपस्थान का लक्षण और उसके सामने निर्णय पूछने की विधि प्रायश्चित्त का लक्षण परिषत् का लक्षण और उसके भेद दशावरापरिषद चतुर्वेद्य विकल्पी प्रायश्चित्तविधामम् : ३०६८ सत्य की महिमा व किए गए कुकृत्यों के लिए सत्य बोलकर प्रायश्चित्त पूछने का विधान ४ परिषल्लक्षण : ३०६६ आङ्गिरसस्मृति १०७३-१०७५ १०७६-१०७८ ५ प्रायश्चित्तमियन्तृकथनम् : ३०७१ १०७-१११३ मङ्गवित् धर्मपाठक आश्रमी ब्राह्मणों की परिषद् आगे प्रायश्चित्त नियन्ताओं का वर्णन बताया है। ६. प्रायश्चित्ताचारकथनम् : ३०७२ प्रायश्चित्त के आचार का वर्णन १-१० १-१० १-११ १-२ ३-१० mr ur x ३ ४ ५ ६ ७-१४ १-१५ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ IN 2 is w आङ्गिरसस्मृति ७. पापपरिगणनम् : ३०७३ जानते हुए भी प्रायश्चित्त का विधान पूछने पर ही करे पापपरिगणन पञ्चमहापातकियों का वर्णन पतितों का वर्णन ८. शूद्रान्नस्यहितत्त्ववर्णनम् : ३०७५ प्रतिग्रह से प्रायश्चित्त शूद्रान्न के भोजन में प्रायश्चित्त शूद्र की प्रशंसा कर स्वस्तिवाचन में प्रायश्चित्त प्रतिग्रह लेकर दूसरों को दे दे शूद्रान्नरस से पुष्ट वेदाध्यायी का प्रायश्चित्त शूद्रान्न छै मास तक खाने से शूद्र के समान हो जाता है एवं मरने पर कुत्ता होता है सारी उम्र खाने वाले को भी शूद्र ही होना पड़ता है प्रतिग्रहकेयोग्यधान्य पात्र से लेना चाहिए प्रतिग्राह्य वस्तुयें ६. अभक्ष्यभक्षणप्रायश्चित्त : ३०७७ अभक्ष्यभक्षण का प्रायश्चित्त भिक्षुकों की गणना कुत्ते से काटे हुए का प्रायश्चित्त १०. हिंसाप्रायश्चित्तकथनम् : ३०७६ हिंसा का प्रायश्चित्त वर्णन दण्ड का लक्षण गौओं के प्रहार करने से प्रायश्चित गायों के रोधनादि से मरने पर प्रायश्चित गायों की हड्डी आदि मारने से टूटने पर प्रायश्चित्त किन-किन अवस्थाओं में प्रायश्चित्त नहीं लगता गजादि प्राणियों की हिंसा में प्रायश्चित्त १२-२० १-८ ६-१० ११-१६ ४ ११-१४ १५-१६ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० भारद्वाजस्मृति काम और कामादिकृत पापों के प्रायश्चित्त के लिए विशेष वर्णन १६-१६ बालक वृद्ध और स्त्रियों के लिए प्रायश्चित्त २०-२१ ११. गोवधप्रायश्चित्तकथनम् : ३०८१ गोवध करने वाले का प्रायश्चित्त वर्णन १-११ १२. कृच्छादिस्वरूपकथनम् : ३०८३ प्रायश्चित्तविधि १-४ कृच्छ्रादि का स्वरूप कथन ५-८ ब्राह्मण महिमा समस्तसम्पत्समवाप्तिहेतवः समुत्थितापत्कुलषमकेतवः । अपारसंसारसमुद्रसेतवः पनन्तु मां ब्राह्मणपादपासवः ।। ८-२० भारद्वाजस्मृति १. सन्ध्यादिप्रमुखकर्मविषय : ३०८५ नित्यनैमित्तिक क्रियायों को लेकर प्रश्न नित्यनुष्ठानों के न करने वालों की सभी क्रियायें निष्फल होती हैं। दिशाओं के निर्णय से लेकर प्रायश्चित्त तक २५ अध्यायों का संक्षेप से निरूपण २. दिग्भेदज्ञानवर्णनम् : ३०८७ पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण दिशाओं के ज्ञान की सरलविधि अन्य दिशाओं का परिज्ञान प्रकार ३. विण्मत्रोत्सर्जनविधिवर्णनम : ३०६४ । मलमूत्र विसर्जन की विधि ४. आचमनविधिवर्णनम् : ३०६७ आचमन के पूर्व जङ्घा से जानु तक या दोनों चरणों को और हाथों को अच्छी प्रकार धोकर आचमन का विधान १-४ ५-७७ १-८ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारद्वाजस्मृति १८१ ६-७ जल में खड़ा हुआ जल में ही आचमन करे, जल के बाहर हो तो बाहर अंग-न्यास, देवताओं का स्मरण, आचमन कितना लेना चाहिए, बिना आचमन के कोई कर्म फल नहीं देता अत: इसका बराबर ध्यान रखा जाय ८-४१ ५. दन्तधावनविधिवर्णनम् : ३१०१ मुख शुद्धि के लिए दन्तधावन का विस्तार से निरूपण, दन्तधावन के लिए वज्यं तिथियां एवं समय तथा कौन-कौन काष्ठ ग्राह्य हैं तथा कौन-कौन अग्राह्य हैं इसका निरूपण, मौन होकर दन्तधावन करे १-२५ स्नानविधिका वर्णन २६-३८ ललाट में तिलक का विधान ४०-४५ ६. त्रिकालसंध्याविधानकथनम् : ३१०६ एक ही सन्भ्या के कालभेद से तीन स्वरूप-प्रथम काल की ब्राह्मी दूसरे की (मध्याह्न की) वैष्णवी, तीसरे की रौद्री सन्ध्या कही गई है । यही ऋक्, यजु और सामवेदों के तीन रूप हैं । इनके नित्य ही द्विजमात्र को कर्तव्य इष्ट हैं। सन्ध्या की मुख्य क्रियाओं का विस्तार से परिगणन १-६८ गायत्री के जपविधान का कथन ९६-१४० गायत्री का निर्वचन १४१-१६३ जप यज्ञ की महिमा १६४-१८१ ७. जपमाला विधानकथनम् : ३१२४ जपमाला का विधान और जप माला की प्रतिष्ठा विधि । जप विधान में अर्थ का प्राधान्य और साथ में मनोयोग पूर्वक करने से ही इष्टसिद्धि मिलती है १-१२३ ८. जपे निषिद्धकर्मवर्णनम् : ३१३६ जप में निषिद्ध कर्मों का वर्णन १-१२ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ भारद्वाजस्मृति १-५० १-४४ ९. गायत्र्याः साधनक्रम वर्णन : ३१३८ गायत्री के साधनक्रम को जानने से ही सद्यः सिद्धि मिलती है अतः उसको जानकर जप किया जाय १० गायत्र्या मन्त्रार्थकथनम् : ३१४३ गायत्री के मन्त्र का अर्थ का विस्तार से निरूपण ११. गायत्र्याः पूजाविधानकथनम् : ३१४४ गायत्री का पूजा विधान १-११८ गायत्री पुष्पाञ्जलि का प्रकार १११-१२१ १२. गायत्रीध्यानवर्णनम् : ३१५६ गायत्री का ध्यान वर्णन १-६१ १३. गायत्रीमूलध्यानवर्णनम् : ३१६३ गायत्री का मूलध्यान और महाध्यान का वर्णन १४. पूजाफलसिद्धये द्रव्यगन्धलक्षणवर्णनम् : ३१६६ पूजाफल की सिद्धि के लिये नाना द्रव्य, गन्धलक्षण का विस्तार से निरूपण १-६४ १५. यज्ञोपवीतविधिवर्णनम् : ३१७२ यज्ञोपवीत की विधि का वर्णन निवीत और प्राचीनावीत का लक्षण । शुद्ध देश में कपास का बीज बोया जावे, उसके तैयार होने पर ही ब्रह्मसूत्र को विधिवत् बनाया जाय । नाभि के बराबर ६६ छियानवे चार हस्ताङ्गुल प्रमाण से बनाकर शुद्ध मन से देवगुण ऋषियों का ध्यान करते हुए इस ब्रह्मसूत्र को पहने १६. यज्ञोपवीतधारणविधिवर्णनम् ३१८७ शुद्ध होकर आचमन कर आसन पर बैठे फिर आचार्य, गणनाथ, वाणीदेवता, देवता, ऋषिगण और पितरों का स्मरण करें। भगवान्, ब्रह्मा, अच्युत और रुद्र को भक्ति से नमस्कार करें, नवों तन्तुओं में आवाहन कर यज्ञोपवीत का धारण करें १-६३ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारद्वाजस्मृति १८३ १७ यज्ञोपवीतमन्त्रस्य ऋषिच्छन्द आदीनां वर्णनम् : ३१६३ यज्ञोपवीत मन्त्र के ऋषि छन्द देवता आदि का विस्तार से वर्णन १-३१ १८. सप्रयोजनकुशलक्षणवर्णनम् : ३१६६ कुशों के बिना कोई भी नित्यनैमित्तिक क्रिया का सम्पादन शक्य नहीं अत: कौन ग्राह्य है और कौन अग्राह्य है इसका निरूपण १-१३१ १६. व्याहृतिकल्पवर्णनम् : ३२०९ व्याहृतियों का विस्तार से निरूपण १-४८ व्याहृतियों से सम्पूर्ण कार्यसिद्धि शक्य है ४६ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मति सन्दर्भ : भाग षष्ठ मार्कण्डेयस्मृति वर्णाश्रमधर्मवर्णनम् ब्रह्मचारिधर्मवर्णनम् प्रायश्चित्तप्रकरणम् अवकीणिब्रह्मचारिप्रायश्चित्तवर्णनम् एकविंशतियज्ञवर्णनम् गृहस्थप्रशंसावर्णनम् द्विमुखोदकपात्रप्रशंसावर्णनम् वेदप्रशंसावर्णनम् संस्कृतभाषामौनविधिवर्णनम् वेदातिरिक्तमुक्तिसाधननिन्दावर्णनम् वेदाध्ययनवजितस्यपुनर्वेदाधिकारवर्णनम् संस्काराणांवर्णनम् स्वकार्यानुकूलपक्षिगमनसम्पादनवर्णनम् गमने निषिद्धानामागमे यात्रानिषेधवर्णनम् वेदाध्ययने नियमोल्लङ्घनप्रायश्चित्तवर्णनम् मृत्तिकाग्रहणमन्त्रवर्णनम् देवर्षिपितृतर्पणविधिवर्णनम् गौणमुख्यस्नानभेदवर्णनम् होमपदनिर्वचनवर्णनम् गायत्रीमन्त्रवर्णनम् प्राणायामविधिवर्णनम् सन्ध्यादिनित्यकर्मस्वर्थज्ञानमेवप्रशस्तमितिवर्णनम महोत्सवेषु समग्रधनधान्यदानप्रशंसावर्णनम् m x ३६ ४१ W ४५ ४७ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्कण्डेयस्मृति ५६ ६१ ६३ ६५ ६६ ७१ ७५ परिषदि श्रोत्रियस्यैवाधिकारवर्णनम् सर्वपापोत्तारणे ब्राह्मणानामेववचनप्रामाण्यवर्णनम् शूद्रान्नप्रतिग्रहीतृप्रायश्चित्तवर्णनम् स्वर्णकाररथकारादिपौरोहित्यनिषेधवर्णनम् प्रेतान्नभोक्तुनिन्दावर्णनम् वैश्वदेवसमये समागतानामनिराकरणवर्णनम् वेदत्यागनिन्दावर्णनम् सर्वधर्मशास्त्रप्रणार्थनकतणामेकवाक्यतालक्ष्यवर्णनम् वेदानांबहुमार्गत्ववर्णनम् नानासूत्र ग्रन्थस्मृतीनामवतरणम् भारद्वाजसूत्रनानावेदशाखानांवर्णनम् नानासूत्राणां शाखाभेदवर्णनम् आहिताग्निविषयवर्णनम् नानासंस्काराणां वर्णनम् उपनयनकालकृतानां पृथक्षरकर्माभाववर्णनम् बालानांसद्व्यवहारवर्णनम् बालताड़ननिषेधवर्णनम् गायत्रीस्वरूपवर्णनम् मध्याह्नकालकर्मवर्णनम् ब्राह्मणमहत्त्ववर्णनम् प्रायश्चित्तवर्णनम् दानप्रशंसावर्णन दानस्यापात्राणि सेष्टपूर्तवर्णने दानक्रियाद्यधिकारवर्णनम् दानफलवर्णनम् दानेदेयद्रव्यवर्णनम् स्वर्गसुखाधिकारिणां जनानां लक्षणवर्णनम् गयाश्राद्धवर्णनम् प्रायश्चित्तप्रतिनिधिवर्णनम् महादानानां वर्णनम् शिखरदानवर्णनम् ७९ १०७ .१११ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ मार्कण्डेयस्मृति १२१ १२३ १२५ १२७ १२६ س ~ १३५ १३७ س ~ गोवृषभादिदानफलवर्णनम् भूमिदानप्रशंसावर्णनम् कन्यादानफलवर्णनम् सुवर्णादिनानादानफलवर्णनम विशेषदानवर्णनम् सम्पूर्णदानेषु कन्यादानस्यप्राशस्त्यवर्णनम तिथिक्रमेणदानफलं देवतापूजनफल नानावस्त्रादिदानप्रकरणम् नानादान फलानि कन्यापितधर्मवर्णनम् इष्टापूर्तवर्णनम् नानामहोत्सववर्णनम् पात्रापात्रनिरूपणम् दानपात्रविशेषवर्णनम् षड्विधब्राह्मणवर्णनम् मधुपर्कयोग्यानाम्वर्णनम् नान्दीश्राद्धादिषु मर्यादावर्णनम् आपोशनजलप्रदातारः विवाहे पाककर्तृणांयोग्यतावर्णनम् एकपतिदूपतानां वर्णनम् पतितस्य पुत्रेणकर्तव्यश्राद्धविधिवर्णनम् श्राद्धविधानवर्णनम् पुत्रत्वयोग्यतावर्णनम् महालयश्राद्धप्रशंसावर्णनम् सकृन्महालयश्राद्धकालनिर्णयवर्णनम एकाष्टकाविधिवर्णनम् । नान्दीश्राद्ध महत्त्ववर्णनम् पुण्याहवाचनविधिवर्णनम् मन्त्रवेदिने दानप्रशंसावर्णनम् पुरोहितप्रशंसावर्णनम् अग्नीकरणवर्णनम् १४१ १४३ १४५ १४७ १४६ १५१ ه ~ १५७ १६७ १६६ १७३ १८१ १८३ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्कण्डेयस्मृति श्राद्धे भोजनाचमनकालवर्णनम् मातापितृश्राद्धव्यवस्थावर्णनम् श्राद्धभोजने कृत्यवर्णनम् श्राद्धविधिवर्णनम् पितृणामर्घ्यदानवर्णनम् स्नुषापाकवर्णनम् पितृनिमित्तस्य पक्वान्नस्य प्रशंसावर्णनम् श्राद्धकार्याङ्गमवर्णनम् विकिरान्नदानवर्णनम् भोजनमनुनिमन्त्रित ब्राह्मण पूजन परेह्नि तर्पणवर्णनम् ब्राह्मणमहिमा ब्राह्मणस्यैव भूदानम् पतिसयोगविकलाया विधवाया वृत्तिष्वनधिकारवर्णनम् रन्ध्रप्रविष्टक्रियाप्रविष्टयोर्भेदवर्णनम् उत्तमर्णाधमर्णदण्डवर्णनम् श्राद्धप्रकरणवर्णनम् लौगाक्षिस्मृति लौगाक्षिविषयकधर्मशास्त्रप्रबन्धावतारः जातकर्मविधिव्यवस्थावर्णनम् नामकरण विधिवर्णनम् वेदप्रतिपाद्यविधेः कर्तव्यफलज्ञापनत्ववर्णनम् सर्वंद्विजातीनां वेदविहतोपनयनकालावधिनिरूपणम् उपनयनसमये कृत्य विधिवर्णनम् ब्रह्मचारिभिक्षाप्रकरणम् उपनयनावधिसमुल्लङ्घितस्य फलानर्हत्ववर्णनम् उत्सर्गोपाकर्मविधिवर्णनम् १८७ १८७ १८६ १६१ १६३ १६५ १६७ १६६ २०१ २०३ २०५ २०६ २११ २१३ २१५ २१७ २६६ २२१ २२३ २२५ २२७ २२६ २३१ २३३ २३५ २३७ २३६ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ लोगाक्षिस्मृति दशानुवाकानांवर्णनम् नानानुवाकानामृषिवर्णनम्, अनाश्रमीनैवतिष्ठेदितिवर्णनम् वंशाभिवृद्यर्थ वरणीयकन्यालक्षणवर्णनम् कन्यादानवर्णनम् साप्तपदीनवर्णनम् गङ्गासागरसङ्गमादितीर्थफलकथनम् क्रूरतरदोषनिवृत्तये प्रतिकारवर्णनम् स्त्रीपुरुषकृतमहापापप्रायश्चित्तवर्णनम् उत्तमब्राह्मणकर्मणां सद्यः फलप्राप्तिवर्णनम् अन्वारम्भणे ब्रह्मणे दक्षिणादानवर्णनम् औपासनारम्भः यज्ञप्रशंसावर्णनम् निरत्यौपासनविधिवर्णनम् नैमित्तिकस्यनित्यकर्मणोवैशिष्टयकथनम् नानाशास्त्राणां वर्णनम् कलयुगधर्मानुसारंधर्माणांविधिनिषेधवर्णनम् बाह्यान्तरशौचयोनिरूपणम् दन्तधावनविधानवर्णनम् स्नानविधिवर्णनम् सन्ध्याविधिवर्णनम् सन्ध्यादिप्रकरणेऽादिवर्णनम् गायत्रीप्रशस्तिवर्णनम् गायत्रीजपारम्भकाले चतुर्विशतिमुद्रावर्णनम् गायत्र्या आवाहनवर्णनम् त्रिकालसन्ध्यावर्णनम् ब्रह्मयज्ञप्रशंसावर्णनम् देवपितृणां तर्पणविधानबर्णनम् भीष्मतर्पणवर्णनम् ॐ नमोनारायणमन्त्रमहत्त्ववर्णनम् पीठपूजाविधानवर्णनम् २४१ २४३ २४५ २४७ २४६ २५५ २५७ २५६ २६१ २६३ २६५ २६७ २६६ २७१ २७३ २७५ २७७ २७६ २८१ २८३ २८५ २८७ २८६ २६१ २६३ २६५ २६६ ३०१ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ our ३०६ m mm ३१५ m ३१६ ३२१ ३२३ ३२५ ३२७ ३२६ س ३३५ लौगाक्षिस्मृति विष्णुपूजनकर्मणि नानाविधानवर्णनम् दीपदानात्परंनैवेद्यनिवेदनवर्णनम् आदित्यादिपञ्चदेवपूजनविधानवर्णनम् शिवपूजाविधी श्रेष्ठकालवर्णनम् सूर्यपूजायां भूतशुद्धि मन्त्रशुद्धयोवर्णनम् सविधिपूजाविधानवर्णनम् विष्णोनिवेदितंग्राह्यमित्यत्रमीमांसा नानादेवेभ्य इष्टप्राप्तिवर्णनम् दीपप्रशंसावर्णनम् नानाविधिनैवेद्य वर्णनम् ब्रह्मचारिधर्मवर्णनम् पञ्चयज्ञवर्णनम् अतिथिमहत्त्वर्णनम् मृण्मयादिपात्रेषु भोजननिषेधवर्णनम् अभक्ष्यवर्णनम् पङ्क्तिपावनानांवर्णनम् सदाचारवर्णनम् भोजनविधिवर्णनम् पाकस्य ग्राह्याग्राह्यवर्णनम् स्त्रीधर्मवर्णनम् श्राद्धे गोदानविधिवर्णनम् अग्राह्यान्नभोजने दोषवर्णनम् श्राद्धे निमन्त्रणक्रमवर्णनम् ब्राह्मणभोजने योग्यायोग्यवर्णनम् बालानां कृते श्राद्धविधानम् नित्यानित्यश्राद्धयोग्यवर्णनम् श्राद्धकर्मणि नानाविधानवर्णनम् नानगुरूणांवर्णनम् धाद्धाङ्गतर्पणवर्णनम् मुहूर्तानिकालनामवर्णनम् श्राद्धानांविवरणम् ३३७ ३४१ ३४३ ३४५ ३४६ ३५३ ३५७ ३५६ ३६१ ३६३ ३६५ الله ३६६ ३७१ ३७३ ३७५ ३७७ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९. लौगाक्षिस्मति ३८१ ३८३ عر س س فر الله له मुख्यपत्न्या:श्राद्ध विधानवर्णनम् श्राद्धे पाककर्तारः भाषान्तरप्रवचननिषेधः अभक्ष्यभक्षणाच्चाण्डालत्वप्राप्ति: श्राद्ध वर्णनम् शूद्रस्य महादानकरणाद्विप्रसाम्यत्ववर्णनम् वैदिकप्रकरणम् पितृश्राद्धादिषु ज्येष्ठपुत्रस्यैवाधिकारिता सर्वकृत्यानामीश्वरार्पणबुद्धय वफलदायकत्वम् ॥समाप्तमिवं सूत्रीपत्रम् । शमस्तु । ४०३ بل مجر ४०९ ४११ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ : श्लोकानुक्रमणी Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. मनुस्मृति २. नारदीय मनुस्मृति ३. अत्रिस्मृति ४. अत्रिसंहिता ५. विष्णु स्मृति माहात्म्य ६. विष्णु स्मृति ७. सम्वर्त स्मृति ८. दक्ष स्मृति ९. आंगिरस स्मृति १०. शातातप स्मृति ११. पराशर स्मृति १२. वृहतपाराशर स्मृति १३. लघु हारीत स्मृति १४. वृद्ध हारीत स्मृति १५. याज्ञवल्क्य स्मृति १६. कात्यायन स्मृति १७. आपस्तम्ब स्मृति १८. लघुशंखस्मृति १९. शंख स्मृति २०. लिखित स्मृति २१. शंख लिखित स्मृति २२. वसिष्ठ स्मृति - १ २३. औशनस संहिता २४. औशनस स्मृति २५. वृहस्पति स्मृति २६. लघुव्यास संहिता २७. व्यास स्मृति २८. देवल स्मृति संकेत सूची (मनु) २९. प्रजापति स्मृति ३०. बौधायन स्मृति ३१. लध्वाश्वयालयन ३२. गौतम स्मृति ३३. वृद्ध गौतम स्मृति ३४. यम स्मृति ३५. लघुयम स्मृति ३६. बृहद्यमस्मृति ३७. अरुण स्मृति ३८. पुलस्त्य स्मृति ३९. बुध स्मृति ४० वसिष्ठ स्मृति (२) ४१. वृहदयोगी याज्ञवल्क्य ४२ ब्रह्मोक्त याज्ञवल्क्य ४३. काश्यप स्मृति ४४. व्याघ्रपादस्मृति ४५. कपिल स्मृति (या) ४६. वाधूल स्मृति (नारद) (अत्रि) (अत्रिस) (विष्णु मं . ) (विष्णु) (सम्वर्त) (दक्ष) (आंगिरस ) (शाता) (पराशर) (वृ परा) (ल हा) (व. हा.) (या) (कात्या) (वृ. हा) (शंख) (लि.) (शं. लि.) (व- १) (औ. सं.) (औ. स्मृ.) (वृह) (ल. व्या) (औ. सं.) (देवल) ४७. विश्वामित्र स्मृति ४८. लोहित स्मृति ४९. नारायण स्मृति ५०. शाण्डिल्य स्मृति ५१. कण्व स्मृति ५२. दात्म्य स्मृति ५३. आंगिरस स्मृति पूर्व ५४. आंगिरस स्मृति उत्तरार्ध ५५. मार्कण्डेयस्मृति ५६. लौगाक्षी स्मृति (प्रजा) (बौ) (आश्व) (गौ) (बृ.गौ.) (य) (ल. य.) (वृ.य.) (34) (पु.) (बु य) (व-२ ) (बृ. या.) (ब्र. या.) (का) (व्या) (क) (वा) (विश्वा) (लो) (नारा) (शाण्ड) ( कण्व ) (दा) (आंपू) (आंगि- उ) (मा) (लौ) Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ : : श्लोकानुक्रमणी अ अकारे रूढइत्यग्नि वृ हा ७.४६ अकारोकारौमश्चेति वृ परा ३.१५ अकन्येति तु यः कन्यां नारद १३.३४ अकारोद् भगवानेव वृ हा ३.१७१ अकन्योति तु यः कन्या मनु ८.२२५ अकारो वासुदेवः स्यात् वृ हा ७.४० अकर्तुमन्यथाकतुं कर्तुं कपिल ८८२ अकारो वै च सर्वा वाक वृ हा ७.३९ अकर्दमां नदी रम्या वृ हा ५.४९९ अकारो वै सर्वा वागित्यादि वृ हा ३.६६ अकल्पा परिषद्यत्र आं उ ६.२ अकार्पण्यमलोभश्च क्रोध शाण्डि ३.६४ अकामतः कृतं पापं मनु ११.४६ अकार्यकरणेष्वेषु आं पू १७१ अकामतः कृते पापे मनु ११.४५ अकार्यकारिणां दानं या ३.३२ अकामतश्चरेदध कामतः वृ हा ६.२४९ अकालकृतसंध्या कण्व २३२ अकामतश्चरेद्धर्म वृ हा ६,३०८ अकालमुक्तिराशौचे आं पू ४७ अकामतश्चरेदैवं ब्राह्मणी अत्रि स २८२ अकाले कुरुते कम व्या १६५ अकामतश्वरेद् धर्म वृ हा ६.२३७ अकाले नैव तत्कुर्याद् आश्व १२.३ अकामतःसकृद् गत्वा वृ हा ६.२८६ अकाले वर्जनं निद्रामैथुना शाण्डि ३.६५ अकामतः सकृद् गत्वा व हा ६.२९६ अकिचनैटर्बलैर्वा अकिचनैर्दुर्बलैर्वा आं पू ६३३ अकामतस्तु राजन्य मनु ११.१२८ अकीर्तिकारको बन्धुजनानां लोहि १८५ अकामतोपनतं मधु व-१ २३.१० अकी_कभयात्सद्यः सा लोहि १७६ अकामस्य क्रिया काचित् मनु २.४ अकर्वन विहितं कर्म मन ११.४४ अकामेनापि यन्न्यून वृ परा २.४८ अकुलीन सत्ते अत्रि स८ अकारञ्चाप्युकारञ्च मनु २.७६ अकूट कूटकं बूते कूटं या २.२४४ अकारञ्चाप्युकारश्च वृ हा ३.५६ अकृतं कृतात्क्षेत्राद मनु १०.११४ अकारणात् कारणतोपि वृ परा १२.९० अकृतं हावयेत् स्मार्ने कात्या २४.२ अकारणे परित्यक्ता __ मनु ३.१५७ अकृतः षड्विधो नित्यः नारद २.१२८ अकारं चाप्युकारं बृ.या. ४.१२ अकृतान्येव यज्ञाश्च बृह ११.५ अकारं मूर्ध्नि विन्यस्य वृ परा २.१६० अकृता वा कृतावाऽपि मनु ९.१३६ अकारं विन्यसेन्नाभ्यां बृ.या ५.२ अकृते तर्पणे तस्मिन् कण्व १५७ अकारवाच्यस्येशस्य वृ हा ३.८१ अकृते तर्पणे भूयः पितर आंपू ८८१ अकारश्च उकारस्तु बृ.या २.८० अकृते तु पुनस्तस्मिन्सो कण्व ५४ अकारश्चाप्युकारश्च बृ.या. २.५० अकृते प्रत्यवायो न आं पू ८३ अकारश्चाप्युकारश्च बृ.या २.१ अकृते वा तस्य दोषः लोहि ३०४ अकारस्तुमवेविष्णु वृ.हा. ३.५८ अकते वैश्वदेवे त व्या १३ अकारेणोच्यते विष्णुः व २. ६.२२९ अकृते वैश्वदेवेतु शंख लि ३ अकारे पोड्यमाने तु न.या २.३३ अकृते वैश्वदेवेऽपि लहा ४.६१ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सदर्भ अकृत्यकरणाद् वाऽपि वृ हा ८.१६८ अक्लिन्नेनाप्याभिन्नेन आप २.१३ अकृत्यमपि कुर्वाणो वाधू ७४ आक्लिष्टमाच्छिद्मलोमकं.७ परा१०.१२४ अकृत्यमानकरणम् वृगौ ४.२१ अक्लेशेन चरेत् तृप्तो शाण्डि ३.४९ अकृत्यं वैष्णवैः वृ हा ८.१६६ अक्लेशेन् सुमुक्तिर्य शाण्डि ४.२१५ अकृत्रिमा भगवति शाण्डि ४.६९ अक्षताभि समुऽपाभि नारद ६.४१ अकृत्वपार्वणं श्राद्ध व २.६.३७७ अक्षतायां क्षतायांच ब्र. या.७.३७ अकृत्वा तु समीपे तु आं पू ९५७ अक्षतायां क्षतायां च लोहि १८४ अकृत्वा देवयज्ञ च __ आश्व १.१ ४५ अक्षतायां क्षत्रायां । वा या २.१३३ अकृत्वा नित्यकर्माणिं आं पू २६० अक्षतारोपणं कुर्यात् आश्व १५.२४ अकृत्वा पादशौचन्तु संर्वत १५ अक्षता वा क्षता चैव या १.६७ अकृत्वा पादयो औ २.१० अक्षताश्चेत्यभिहितास्ते भार १४.६ अकृत्वा प्रेतसंस्कारं आं पू १४२ अक्षताः सर्षपाश्चैच । व २७.९० अकृत्वा भस्ममर्यादा व्या १४३ अक्षतास्तु यवाः प्रोक्ता कात्या २८.१ अकृत्वा भैक्षचरणमसमिध्य मनु २.१८७ अक्षभंगादिविपदि कात्या ८.२४ अकृत्वा मातृयागंञ्च औ ५.९९ अक्षमाला प्रकर्तव्या वृ परा ४.४२ अकृत्वा वैश्वदेवं तु विश्व ८.४६ अक्षमाला वशिष्ठेन मनु ९.२३ अकृत्वा वैश्वदेवस्तु पराशर १.४९ अक्षमाला स्रग्धरा च वृ परा २.१५ अकृतेवा वैष्णवीमिष्टिं व २.६.४१६ अक्षयान् लभेत भोगान् वृ परा १०.२६२ अकृत्वा शान्तिक कर्म आश्व ३.१९ अक्षय्यं तु ततोऽनेन कपिलं ७२२ अकृत्वा समिधाधानं __ औ ९.६६ अक्षय्यासनपाद्येषु व्या २६३ अकृत्वैन तदा श्राद्ध आं पू ६७ अक्षय्योदकदानं तु कात्या ४.७ अकृत्वैव तु संकल्पं कण्व २९३ अक्षरप्रतिलोमू यास्मिन्न भार ९.४२ अकृत्वैव निवृत्तिं आंउ ८.९ अक्षरं चाजरं चैवमनुत्प बृ. या. २.११० अ कृष्टं मूलफलं व-१९.३ अक्षरं परमं व्योम वृ हा ७.३२६ अकेशीर्वा सकेशीर्वा कण्व ५९९ अक्षराणि च दैवत्यं बृ. या. ४.६३ अक्काक्षिमालाममयं दंडं भार १२.२३ अक्षवर्धशलाकाद्यैर्देवनं नारद १७.१ अक्रिया करणी कार्यसमे विष्णुम ३८ अक्षार लवणं मैक्ष अत्रि स ६० अक्रिया त्रिविधा प्रोक्ता कात्या ३.१ अक्षारलवणं शुद्ध व २४.६७ अक्रोधनमनुत्सिक्तमति शाण्डि १.१०३ अक्षारलवणान्नाः मनु ५.७३ अक्रोधनान् सुप्रसादान् मनु ३.२१३ अक्षारलवणां रूक्षा व १२७.११ अक्रोधनाः शौचपराः मनु ३.१९२ अक्षारलवणाशी स्यात् वृ परा १२.१ ४९ क्रोधनाः सत्यपरा वृ.गौ. १२.२१ अक्षिकर्ण चतुष्कञ्च या ३.९९ अक्रोधनेः शौचपरैरिति प्रजा ६३ अक्षेत्रे बीजमुत्सृष्टं मनु १०.७१ अक्रोधश्चात्वरोतीव पुनः कपिल २५१ अक्षेत्रेभ्यश्च एतेभ्यो बह ९.७५ अक्लिन्नवासाः स्थलगः संवर्त २१२ अक्ष्णोः पञ्चदशं व २ ६.१५६ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी १९७ अखण्ड बिल्वपत्रैश्च वृ हा ३.३६१ अग्नावग्नि स एवोक्त बृ ह ९.११३ अखण्ड बिल्वपत्रैश्च वृ हा ५.४०२ अग्नावाहुतयः प्रोक्ता वृ परा ७.२०९ अखण्डबिल्वपत्रैर्वा वृ हा ५.४०५ अग्नावोदनपचने पाचये शाण्डि ३.१०२ अखण्डविल्वपत्रैर्वा वृ हा ७.१९४ अग्निकार्यात् परिभ्रष्टाः पराशर १२.२९ अखण्डा निस्तुषा श्रेष्टाः भार १४.४६ अग्निकार्य ततः कुर्यात् औ १.१७ अख्याय नृपतेर्वाऽपि वृ परा ८.१०२ अग्निकार्य तथा होमं आश्व १०.४८ अगम्यागमनं कृत्वा आप १०.१३ अग्निचित् कपिला सत्री पराशर १२.४१ अगम्यागमनं गुर्वीसखीं बौधा २.१६० अग्निदग्धं प्ररोहेत शंख लि ३२ अगम्यागमनं स्तेयं पेया ब्र.या. १२.३६ अग्निदाता तथा चान्ये दा ८९ अगम्यागमनात् पापाद् वृ हा. ३.२९३ । अग्निदाता तथा चान्ये लिखित ६८ अगम्यागमनात्स्ते ब्र.या. २.१२ अग्नि दानाञ्च ये लोका या २.७६ अगम्यागमने प्रायाश्चित विष्णु ५३ अग्नधामा धरानाथो आंपू ५१८ अगम्यागमने विप्रो मद्य लघुयम ३० अग्निना भस्मनावापि व्या १९६ अगम्यागमनोपेता __व्या ९३ अग्निनैव दहेद्भार्या कात्या २३.८ अगम्यागमनापेयपानं दक्ष ३.११ अग्निपरिचरणं नित्यं ब्र.या. ८.४८ अगम्यागामिता यत्र वृ परा १.४६ अग्नि प्रजापति सोमो बौधा २.५.२४ अगम्यागामिनः शास्ति नारद १३.७७ अग्नि प्रवेशाद ब्रह्मलोकः व १.२९.४ अगम्यानां गमने बौधा २.२.७२ अग्निप्रवेशे नियतं वृहस्पति ७५ अगस्ति अगीता मौङ्गल्याः वृ गौ १.२० अग्निमील इषेत्वादि आश्व १.८९ अगस्त्यं मुंगिराज प्रजा १०१ अग्निमीले अग्न कात्या २०.१६ अगस्त्यो दक्षिणे पूज्यः ब्र.या. १०.१३३ अग्निमीलेऽनुवाकश्च आश्व २३.६७ अगस्यागमनात् बृ. मा. ७.१५५ अग्निमेकप्रपतने औ ६.६० अगारदाही गरदः कुंडाशी मनु ३.१५८ अग्नि परिगताचैवपुनर्भू ब्र. या. ८.१६० अगित च गतिं चैव बृह ११.१० अग्निप्रजापतिस्सोमः भार ६.५६ अगुप्ते क्षत्रियावैश्ये मनु ८.३८५ अग्नि स्थाप्य विधानेन ब्र. या. ८.८६ अगुरु क्षत्रियाणां तु आ उ ५.९ अग्नि स्थाप्यविधानेन ब्र.या. ८.२७४ अगुल्यग्रे भानुषम् व १.३.५९ अग्निराविक वस्त्र हि व्या ३०५ अगृह्यमाणकारणे व १.१.६ अग्निर्मन्वेति यजुषा वृ हा ८.२३० अगोधूमं तु यच्छ्राद्ध व्या २५१ अग्निर्वायुस्तथादित्य बृ. या. २.७० अग्न आयूंषितिम्रो आश्व १५.३८ अग्निवान्पार्वण ब्र. या. ३.४० अग्न आयूंषि पवस आश्व ९.७ अग्निश्च मा मन्युश्चेति व १.२३.२० अग्नप्रवेशं पञ्च अपि वृ गौ ५.१११ अग्निश्चमेति सायान्हे ब्र. या. २.६८ अग्नये त्वग्नि राजाय वृ परा ११.१०४ अग्निश्चेत्यनुवाकश्च भार ६.१३७ अग्नयेऽप्सुमते चैव कात्या १८.१३ अग्निश्चैव तथा सोम आश्व २.५३ अग्नये समिधमिति व २.३.६४ अग्निष्टोमेस्त्वनुष्ठेयः कण्व ४८९ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ अग्निष्टोमोऽतिपूर्वश्च अग्निदो गरदश्चव अग्निष्वात्तान् सोमापाश्च अग्निष्वात्तारम सर्वे अग्निसंरक्षणे शक्ति अग्नि सोम स्तथावायु अग्निस्तु नामधेयादौ अग्निस्तुविश्रवस्तमं अग्निहीनाश्च ये विप्रा अग्निहीनास्तु ये विप्रा अग्निहोत्रजयाभूत्या अग्निहोत्रापरो विद्वान् अग्निहोत्रफलावेदा अग्निहोत्रं तपः सत्यं अग्निहोत्रं तपः सत्यं अग्निहोत्रं तपः सत्यं अग्निहोत्रं त्यजेद् अग्निहोत्री तपस्वी अग्निहोत्री स एव अग्निकार्य ततकुर्यान् अग्निकुण्ड प्रमाण अग्निकुण्डात्परैर्मन्त्रै अग्निचित्कपिला सत्री अग्निदग्धानग्निदग्धान् अग्निदान् भक्तदाश्चैव अग्निदाश्चैव ये तेशं अग्निनात्मनि वैतानांत अग्निपक्वाशनो वा अग्निपरीक्षा वर्णनम् । अग्निपुच्छामग्निखुरा अग्निप्रकारमंत्रोऽयं अग्निप्रपतनं केचिद् अग्निप्रवेशं यश्चापि अग्निमध्योद्भवां दिव्यां अग्निमात्मनि संस्थाप्य स्मृति सन्दर्भ कण्व ४१५ अग्निमूर्धेति मंत्रोऽत्र वृ परा ११.३१७ व १.३.१९ अग्नि नरो दीर्धतिभि वृ हा ५.१३० बृ.या. ७.७९ अग्नि न वेति सूक्तेन वृ हा ५.४०६ ब्र. या. ४.६३ अग्नि सोमं तथा सूर्य वृ परा ११.२५१ आश्व १.६१ अग्नि वाऽऽहारयेदेनमप्सु मनु ८.११४ ब्र.या. ८.३१६ अग्निरिव कक्षं दहति बौधा १.२.४९ कात्या १८.१७ अग्निरेव सहस्रारः वृ हा २.३८ आश्व ३.६ अग्निवलति चान्नार्थ वृ परा ५.११० ब्र. या. ७.५५ अग्निर्ये देवानामव वृ हा ७.८ ब्र.या. २.२ अग्निर्वायुः सहस्रांशु मार १७.९ भार १३.५ अग्निवर्णा सुरां पीत्वा वृ हा ६.२९२ __ औ ४.६ अग्नि वाय्वंभ संयोगाद् वृ परा १२.२३५ व्या ३६८ अग्निवायुर्राविभ्यस्तु मनु १.२३ दा ९ अग्निशक्रिपतृणाञ्च वृ.गौ. ७.३२ लघुशंख ५ अग्निशब्दं चतुर्थ्येक वृ परा ७.२०५ लिखित ५ अग्निनष्टोमसहस्रञ्च वृ गौ. ९.१ आप १०.१४ अग्निष्टोमस्त्वनुष्ठेयः कपिल ९८३ व्यास ४.४३ अग्निष्टोमातिरात्राणां का १५ आंपू ६२५ अग्निष्टोमादिभियज्ञर्ये वृ गौ. ६.१०१ संवर्त ८ अग्निष्वात्तोपहूताश्च वृ परा २.१८२ व परा ११.३७ अग्निसंस्थापन कृत्वा व २.७.७० वृ.गौ. १०.२७ अग्नि सादि मृत्यूनां वृ परा ७.१४६ बृ.गौ. १४.३७ अग्नि सादिमृत्यूनां वृ परा ७.१४८ मनु ३.१९९ अग्नि सोमः समस्ती व परा ४.१६३ मनु ९.२७८ अग्निस्थापन विचार वृ परा ८.५६ अग्निहीनास्तु ये ब्र.या. २.१३५ मनु ६.२५ अग्निहोत्रादिपरिभ्रष्टः बृ. गौ. २१.११ मनु ६.१७ अग्निहोत्रप्रकारन्तु १. गौ. १५.२४ विष्णु ११ अग्निहोत्रफला वेदाः बृ.गौ. १५.४५ वृ.गौ. ९.८ अग्निहोत्रं च जुहुयाद् __ मनु ४.२५ वृ हा. ३.३९० अग्निहोत्रं तप सत्यं अत्रि स . वृ हा ६.२४५ अग्निहोत्रं पृथा राजन् । वृ.गौ. २१.५ वृ.गौ. ७.११७ अग्निहोत्रं वनेवासः बृ.गौ. २१.४ वृ.गौ. ९.७ अग्निहोत्रं समादाय मनु ६.४ संवर्त १०२ अग्निहोत्रव्रतपरान् १.गौ. २१.७ विष्णु ६७ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमपी १९९ अग्निहोत्रस्य दर्शस्म बृ.गौ. १५.५६ अग्नौकरणशेषं तु लघुशंख २४ अग्निहोत्री च यो विप्रः आंगिरस ५२ अग्नौकरणशेषं तु लिखित २९ अग्निहोत्री च यो विप्र वृ परा ७.२२ अग्नौकरणशेष तु वृ परा ७.२१० अग्निहोत्री तपस्वी च आंगिरस ६३ अग्नौकरणशेषं तु व्या १२५ अग्निहोत्रोपचरणं पु १५ अग्नौ करणहोमश्च कात्या १७.१२ अग्निहोत्र्यपविध्याग्नीन् मनु ११.४१ अग्नौकरं तु देवस्य व्या १७१ अग्नीनामथवाग्नेस्तु बृ.गौ. १५.४० अग्नौ करिष्यन्नादाय या १.२३५ अग्नीन्धनं मैक्षचर्या मनु २.१०८ अग्नौ क्रियावतां देवो वृ परा ४.११९ अग्नीन् वाप्यात्मसात् या ३.५४ अग्नौ प्रताप्य हस्तं व २.३.६५ अग्नीश्च जुहुयात्प्रातः शाण्डि २.९० अग्नौ प्रास्ताहुति बृह ९.८९ अग्निषोमौ स्थितौ कण्व ४२ अग्नौ प्रास्ताहुति मनु ३.७६ अग्ने कुशपञ्चउपयमन ब्र.या. ८.२५३ अग्नौ यद्भूयते हव्यं वृ हा ७.१० आग्ने त्वं चाग्न आयूंषि आश्व १.५७ अग्नौव्याहृतिभि पूर्व लिखित ३९ अग्नेत्वं तु अतमेति व २.४.६३ अग्नौ सुवर्णमक्षीणं रजते या २.१८१ अग्नेः पश्चिमतोल व्यास २.५२ अग्नौहोमं प्रकुर्वीत वृ हा २.१३ अग्नेः प्रदिक्षणंकृत्वा ब्र.या. ८.२६ अग्न्यगारे गवां गोष्ठे आप ९.२० अग्नेः प्रदक्षिणं कृत्वा ब्र.या. ८.२२७ अग्नगोर गवागोष्ठे औ १.१२ अग्ने प्रपाठके तुर्यमन्ति ___ कण्व ५२३ अग्न्यगारे गबा गोष्टे मनु ४.५८ अग्नेरपत्यं प्रथम वृहस्पति ३१ अग्न्यभावे तु विप्रस्य औ ५.४४ अग्नेरपत्यं प्रथम व. १.२८.१६ अग्न्यभावे तु विप्रस्य मनु ३.२१२ अग्नेरपत्यं प्रथम संवर्त ९४ अग्न्यागारे गवां गोष्ठे आंगिरस ६१ अग्नेरपत्यं प्रथमं हिरण्यं अत्रि ३.१६ अग्न्यागारे गवां मध्ये बौधा २.३.६५ अग्नेरुरतस्तिष्ठन् व २.३.५७ अग्न्यादि र्गोतमायुक्तो कात्या १४.४ अग्नेरुत्तरतः स्थाप्य व २.३.२३ अग्न्याधानन्तु येनाथ बृ.गौ. १५.४८ अग्नेयाप्रायाश्चित्ते ब्र.या. ८.२७९ अग्न्याधानं प्रथमतः कण्व ५२७ अग्नेः सोमयमाभ्यां मनु ३.२११ अग्न्याधाने क्षौमाणि बौधा १.६.११ अग्नेः सोमस्य चैवादो मनु ३.८५ अग्न्याधेय प्रमृत्यथे बौधा २.२.८५ अग्नेस्तु पुरतस्तिष्ठन् कण्व ९१ अग्न्याधेयं पाकयज्ञानं मनु २.१४३ अग्नेः स्थाने वायुचन्द्र कात्या २५.२ अग्न्याशाप्रैः कुशैः कार्य कात्या १७.४ अग्नौकरणकार्यातु भवतिति कपिल १३६ अग्न्युपायं गता या का. ७ अग्नौ करणतौ वापि लोहि ३४७ अग्रगण्यश्व भक्तानां वरिष्ठो कपिल ७ अग्नौ करणपिंडाश्च वृ परा ७.७३ अग्र जन्मगृहे प्राप्त व्या २२ अग्नौकरणमाहुत्या ब्र.या. ४.८३ अग्र जन्मैः सदाकार्य व्या २३ अग्नीकरणमेकं स्यात् व्या १३८ अग्रतः सम्प्रवक्ष्यामि ब्र.मा. १.७ अग्नीकरणशेषन्तु न. मा. ४.८५ अग्रतस्तु हनूमन्तं वृहा ३.२६४ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० अग्रतो वामनं चैव श्रीधरं अग्रभागे अन्तरालस्य अग्रं नवेभ्यः सस्येभ्यो अग्रं वृक्षस्य राजानो अग्राह्याद्यमुर्तीनां अग्राह्याः श्राद्धपाके च अग्राह्यास्त्वग्रिमा अग्रेणाऽऽहवनीयं ब्रह्मा अग्रे प्रदक्षिणं कृत्वा अग्रेदिधिषूपति कृच्छ्रं अग्रेऽम्युद्धरतां गच्छेत् अग्रे माहिषकं दृष्ट्वा अग्रे माहिषिकं दृष्ट्वा अग्रयाः सर्वेषु वेदेषु अग्रयाः सर्वेषु वेदेषु अघमं दशावारं स्यातं अघमर्षणमन्त्रण स्नाय अघमर्षणां देवकृतं अघमर्षणां देवकृतं अघमर्षणं वेदवतं विश्वा २.१४ अंकुरार्पणपात्रैश्च आश्व १.१२७ नारद १८.३४ शंखलि २२ आंपू २२८ व्या ३१३ अघमर्षणसाहस्रैर अघमर्षणसूक्तस्य अघमर्षणसूक्तस्य ऋषि अघमर्षणसूक्तस्य अघमर्षणसूक्तेन अघमर्षणसूक्तेन अघृताम्रषि गोधूमाय अद्योख्येन हृदये ब्र.या. ३.६५ ब्र. या. ४.१३७ बृ.या. २.१११ अघोराः पितर संतु अघोराः पितरः सन्तु अघोषमव्यञ्जनमस्वरं अघ्यपात्रस्थिरता दर्भाः अंकयित्वा स ना चक्रेण अङ्कयेच्छुङ्खचक्राभ्यां अंकार्यत्वा शिशोः पश्चान्नाम वृ हा २.२६ व्या १२७ वृ हा २.२७ शाण्डि ३.७६ बृ या. ७.१५४ बौधा १.७.१९ ब्र. या. ८.२६५ व १२०.१० व ११५.१४ बृ.य. ३.१६ यम ३५ अंगादंगात् संभावसि अङ्गानि चतुरो वेदा मनु ३.१८४ अङ्गानि तत्तत्कालेषु अंगानि व तन्श्चैव या १.२१९ कण्व २४६ विश्वा १.७१ व १.२८.११ शंख ११.१ अत्रि ३.११ नारा ३.१५ बृ.या. ७.१७२ वाधू ८६ वृ परा २.५५ बृ.या. ७.९८८ अङ्केनारोहयेत्पादं अकोलं गिरिकर्णी अंगत्वात् सर्वधर्माणां अङ्गभावेन देवानामर्चनं अंग प्रत्यंग भूतेन अङ्ग प्रत्यङ्गसंपूर्णे अंगमुपस्पृश्य सिंच अंगलीषु तथाङ्गेषु अंगहोम समित् तंत्र अङ्गदङ्गात्संभवति बृ.या. ७.१७० ब्र.मा. २.१८८ मार ५.३५ अङ्गापकर्षणं नैव अंगावपीडनायां च अङ्गीकुर्वन्ति तस्मातं अंगीकृतं महाभागैः अंगुलिकनिष्टिकामूले अंगुलिभिस्तरेखाभि अंगुलिमूलमार्षम् अड्गुलिमोक्षत्रितयं अड्गुलिमोक्षत्रितयं अड्गुलीभिस्त्रिभि अंगुलीन्थिभेदस्य अंगुलीषु यथाऽङ्गोषु अंगुलीष्वपि चांगेषु अंगुलीष्वपि चांगेषु अंगुलीष्वपि तेनैव अंगुलैश्चाष्टभितस्माद् अंगुल्यग्रं दैवम् अंगुल्या अंगुष्ठयोःर्रादि अंगुल्याक्षसृजावापि अंगुल्या दंतकाष्ठं च स्मृति सन्दर्भ वृ हा ६ १५ शाण्डि ४.११६ वृ.गौ. ८.८२ वृ हा ५.३७ व २.२६ वृ परा ८.१५५ लघुयम ४४ बौधा ९.७.५ वृ हा ३.३४६ कात्या ८.२३ कण्व ७५४ बौधा २.२.१६ बृ.गौ. २१.१६ आंपू १०३ ब्र. या. ८.२१२ आंपू १०२ मनु ८.२८७ कपिल ७८० वृ हा ६.४३८ व १.३.५८ नार ६.१०१ बौधा १.५.१८ बृ. या. ८.११ बृ.या. ८.१२ बृ.गौ. १६.२७ मनु ९.२७७ वृ हा ३.३३२ वृ हा ३.२१९ वृ हा ३.२४६ वृ हा ३.३०३ वृ परा ५.६३ बौधा १.५.१७ वृ परा १२.३५७ भार ११.१०४ अत्रि स ३१४ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लाकानुक्रमणी २०१ अंगुल्या दन्तकाष्ठं वृ परा ८.२८८ अंग्गुलीभिश्चत श्रृमि भार ६.९३ अङ्गल्या यः पवित्राणि बृ.य. ३.३२ अंग्गुष्ठस्य कनिष्ठायाः भार ४.१५ अङ्गल्यास्फोटनं लीला शाण्डि १.२५ अंग्गुष्ठाभ्यंगुला प्राहुः भार २.५७ अङ्गुष्ठच्छायया तोयं विश्वा ५.३६ अचक्रधारिणं यस्तु वृ हा २.१३२ अंगुष्ठ तर्जनीदीर्घ भार २.५६ अचक्रधारी योविप्रो वृ हा १.२६ अंगुष्ठतर्जनीभ्यां तु वृ हा ४.२१ अचक्रधारी विप्रस्तु वृ हा २.२९ अंगष्ठपर्वमात्रस्त आंगिरस २८ अचक्राय विचक्राय वृ हा ३.१२३ अङ्गुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्तो वाधू ११० अचक्राय विचक्राय वृ हा ३.३८७ अङ्गुष्ठमात्र स्थूलः आ उ १०.२ अचक्षुर्विषयं दुर्ग भनु ४.७७ अंगुष्ठमात्रः स्थूलो वा पराशर ९.२ अचञ्चला विषण्णान्तः शाण्डि १.८३ अंगुष्ठं मात्र हृदयं कात्या ७.९ अचिन्त्यःअहम् अनन्तः अहम् वृगौ १.५९ अङ्गुष्ठमात्रस्थूलस्तु लघुयम ४१ अचोरा अपि दृश्यन्ते नारद १८.६४ अंगुष्ठमूलमध्ये तु व्या ९६ अचौरे दापिते मोषे नारद १८.८० अंगुष्ठमूलस्य तले ब्राह्म मनु २.५९ अचौरैश्चैरतां याति ब्र.श. १२.१८ अंगुष्ठामूलस्योत्तरतो व १.३.२९ अच्छलेनैव चान्विच्छेत्तमर्थ भनु ८.१८७ अंगुष्ठमूलान्तरतो औ २.१६ आच्छाद्यालंकृत्यैषा बौधा १.११.३ अंगुष्ठ मूले च तथा शंख १०.२ अच्छिद्रकारिणश्शान्त शाण्डि ४.१२ अगष्ठमूले ब्रामं तु बृ.या. ७.७६ अच्छिदकारिणां नित्यं मण्डि ४.२३० बृ.या. ७.७७ अच्छिद्रः पञ्चकालज्ञः बृ .गौ. २२.२५ अंगुष्ठस्य प्रदेशिन्या वृ परा २.२ २३ अच्छिदमिति यद्वाक्यं पराशर ६.४९ अंगुषठाग्रं पित्र्यम् बौधा १.५.१६ अच्छिद्र सद्गुणं आंपू ९०४ अंगुष्ठाग्रे तु संमृज्य व्या ५० अच्छिन्नानाले यद्दतं व परा १०.३५९ अंगुष्ठांगुलमानन्तु कात्या ७.६ अच्छिष्टं अन्नं उद्धृत्य व्या ३.६६ अंगुष्ठाऽधिकनिष्ठान्तं भार १९.१९ अच्छिष्टं न प्रमृज्यातु व १.११.१९ अंगुष्ठानामिकाम्याञ्च लहा ४.३७ अजंगव्युन्तु वैश्यस्य ब्र.या. ८.१८ अगष्ठानामिकाभ्यातु वाधू १३६ अजप्यैतान् महामंत्रान्न वृ हा ३.२७६ अंगुष्ठानामिकाभ्यां च गृहीत्वा ब्र.या ८.२ ४२ __ अजलश्चेदपोगण्डो नारद २.७२ अंगुष्ठानामिकाभ्यां तु औ २.२० अजऽश्चेदपोगण्डो मनु ८.१४८ अंगुष्ठानामिकाभ्यां तु विश्वा ३.१६ अजस्त्वमगमः पन्था विष्णु म ४४ अंगुष्ठानामिकाभ्यां तु शंख १०.८ अजस्य दक्षिणे कर्णे लिखित ३१ अंगुष्ठानामिकाभ्यां तु शाण्डि २.३१ अजस्य नामावुद्भूतं बृ.या. ३.२७ अंगुष्ठेन प्रदेशिन्या पक्ष २.१६ अजस्रं वैश्वदेवा कण्व ३७५ अंगुष्ठेन प्रदेशिन्या वृ पर। २.३४ अजा गावो महिष्यश्च अत्रिस २९८ अंग्गन्यासं ततः प्रोक्त भार ६.७ अजागावो महिष्यश्च व्या ३५७ अंग्गान्यामूनित्युक्तनि भार ६.८९ अजातदन्ता या तुस्याद् वृ परा १०.३०३ पदेशिन्या Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ स्मृति सन्दर्भ अजातदन्ता ये बाला पराशर ३.१६ अज्ञातदोषादुष्टा या नारद १३.९८ अजातदन्ता ये बाला वृ परा ८.४५ अज्ञातपितृको यस्तु नारद १४.१७ अजातपुत्रस्तैनैव पुत्र्ययं लोहि २२५ अज्ञातपूर्व गणिका भार ७.११५ अजातव्यंजना लोम्नी कात्या २८.४ अज्ञाताख्यज्ञातिरंडाकृता कपिल ५८८ अजानन् यस्तु विब्रूया आ ६.१३ अज्ञात्वा धर्मशास्त्राणि पराशर ८.१४ अजानन् यो द्विजो नित्य वृ परा ४.१९० अज्ञात्वा धर्मशास्त्राणि बृ.य. ४.२९ अजानन् यो नरो ब्रूयात् वृ परा ८.८४ अज्ञात्वा धर्मशास्त्राणि वाधू १७६ अजानन् सम्यग् वृ परा ८.१९३ अज्ञात्वाऽस्यविधि विप्रः भार १५.३ अजानन् हृदयानतःस्थं शाण्डि १.६६ अज्ञात्वैतानि होमानि भार १९.३८ अजानानां च दातॄणा आं उ ६.१४ अज्ञानतमसाऽन्धानां बृह १२.३३ अंजाभिघातने चैव शाता २.५२ अज्ञानतः स्नानमात्र दा ९८ अजां च महिषीञ्चैव अ ३५ अज्ञानतिमिरान्धस्य अत्रि १.१ अजावयो गृहं च कनिष्ठस्य व १.१७.४१ अज्ञानतिमिरान्धस्य आप ८.१७ अजाविकं सैकशफं न मनु ९.११९ अज्ञानाच्च कृतं बृ.य ५.१२ अजाविकाश्वमहिषी ब्र.या. १३.२० अज्ञानाच्चरितो पापे दृष्टवा शाण्डि २.५४ अजाविके तथा रुद्ध नारद ७.१६ अज्ञानाज्ज्ञानतो वापि लोहि ६५० अजाविके तु संरुद्धे वृकैः मनु ८.२३५ अज्ञानात्तान्तु यो गच्छेत पराशर १०.१२ अजाविको माहिष्श्च बृ.य. ३.२६ अज्ञानस्तु द्विज श्रेष्ठ यम ७८ अजाश्व मुखतो मेध्यं या १.१९४ अज्ञानात् पिवते तोयं अत्रिस २५१ अजाश्वा मुखतो मेध्या व १.२८.९ अज्ञानात् पिवते तोयं अंगिरस ७ अजितोऽस्मीति वक्तारं लोहि ७०६ अज्ञानात् प्राप्य विण्मूत्र पराशर १२.२ अजिनमेकवस्त्र च योगे शाण्डि ४.२०२ अज्ञानात् प्रास्य विण्मूलं अत्रि स ७५ अजिनं दण्डकाष्ठञ्च ल हा ३.५ अज्ञानात् प्राश्य विण्मूत्र औ ९.४२ अजिनं मेखला दण्डो पराशर १२.३ अज्ञानात् प्राश्य विण्मूत्र मनु ११.१५१ अजिनो अशरणो व १.१०.२१ अज्ञानात्त सुरा पीत्वा या ३.२५४ अजीवंस्तु यथोक्तेन मनु १०.८२ अज्ञानाद् मुक्ति शुद्ध्यर्थ औ ९.५६ अजीगतः सुत हन्तुं मनु १०.१०५ अज्ञानाद् भुंजते विप्राः पराशर ११.१५ अजीर्णविमने स्नान आंपू १७३ अज्ञानाद् ब्राह्मणो भुक्त्वा लघुयम २६ अजीर्णः स्यात्तदा आंपू २९१ अज्ञानाद् ब्राह्मणोऽश्नीयात् अत्रिस १७४ अजीवन्तः स्वधर्मेण व १.२.२७ अज्ञानाधादिवा ज्ञानात्कृत्वा मनु ११.२३३ अजेतुलायां मिथुने भार २.४० अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा आश्व २४.२८ अजैकवादहिवतुंध्य ब्र.या. १०.११३ अज्ञानाद्वारुणी पीत्वा मनु ११.१४७ अजैकपादहुर्बुधयो वृ परा २.१९० अज्ञानाभिगतौ स्त्रीणां व परा ८.२४८ अज्ञ सभायां विदुषां लोहि ७१४ अज्ञाना मिच्छया ज्ञानं विष्णु म ९१ अज्ञातग्रामतातादिर्ता आंपू १०५० अज्ञानेन प्रमादेन भार ६,१७६ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २०३ अशेभ्यो ग्रंथिनः श्रेष्ठा मनु १२.१०३ अत ऊवं श्ववायस बौधा १.४.६ अज्ञोभवति वै बालः मनु २.१५३ अत ऊध्र्व समानोदक व १.१७.७० अंजनं कुण्डलादीनि आश्व १४.४ अतएव द्विजः पुर्जी वृ परा ७.५५ अंजनादजनंदधात् व २.६.२८८ अतएव प्रक्ष्यामि ब्र.या. २.१ अजनाभ्यजनमेवास्या व १.५.१३ अतएवात्र भूयश्च कण्व ६९७ अञ्जलिना जलमादाय विश्वा ५.४३ अतः कनिष्ठास्तनयाः निन्दित कपिल ९२ अंजलीनं परयेद् धृत्वा आश्व १५.४० अतः कुर्वनिजं कर्म ल. हा. ७.२० अटन्त्यत्रैव सततं नित्यं कपिल २०१ अतन्द्रिश्च शास्त्रार्थे शाण्डि ५.४३ अटव्यः पर्वता पुण्या औ ५.१७ अतन्द्रितस्य स्वाध्याये शाण्डि २.५ अटेत पृथिवी सर्वा ब्र. या. ४.१५९ अतः परज दुष्टानां संवर्त १६९ अणिमादिक सिद्धीनां वृ परा ११.१८३ अतः परं गृहस्थस्य पराशर २.१ अणिमाद्यैस्तु संयुक्त वृह ९.१२२ अतः परं गृहस्थस्य वृ परा ५.१ अणोरणीयान् महतो शंख ७.१९ अतः परं न मुंजीत त्यक्त्वा अत्रिस २६७ अण्डजाः पक्षिणः सर्पा मनु १.४४ अतः परं प्रवक्ष्यामि अत्रि स ८२ अंडादिसूत्रपर्यत्त प्रमाणं भार २.५८ अतः परं प्रवक्ष्यामि अभित्र १३५ अण्व्यो मात्रा विनाशिन्यो मनु १.२७ अतः परं प्रवक्ष्यामि अत्रिस ३४२ अत उर्द्ध पतन्त्येते या १.३८ अतः परं प्रवक्ष्यामि औसं ४ अत ऊद्ध्वं त्रयोऽप्येते मनु २.३९ अतः परं प्रवक्ष्यामि देवल ३६ अत ऊद्ध्वं प्रवक्ष्यामि अंगिरस १२ अतः परं प्रवक्ष्यामि नारद १९.२२ अत ऊद्ध्वं प्रवक्ष्यामि आप ६.१ अतः परं प्रवक्ष्यामि नारद १९.३२ अतः ऊवं प्रवक्ष्यामि कात्या ११.१ अतः परं प्रवदयामि नारद १९.३९ अत ऊद्ध्वं प्रवक्ष्यामि वृ.या. ८.१ अतः परं प्रवक्ष्यामि पराशर ६.१ अत ऊर्ध्वन्तु ये विप्राः पराशर ८.२२ अतः परं प्रवक्ष्यामि बृ.य. ५.१ अत ऊर्ध्वन्तु संस्कारो २.६.४३३ अतः परं प्रवक्ष्यामि बृ.या. ३.१ अत ऊर्ध्वन्तु सावित्र्य व २.६.४८२ अतः परं प्रवक्ष्यामि बृ.या. ४.१ अत ऊर्ध्व गुरुभिरनुमता बौधा २.२.६८ अतः परं प्रवक्ष्यामि बृ.या. ६.१ अत ऊवं तु छन्दासि मनु ४.९८ अतः परं प्रवक्ष्यामि ब्र.या. ८.१ अत ऊवंतु यत्स्नातः 0 उ ९.१३ अतः परं प्रवक्ष्यामि लहा ५.१ अत ऊर्ध्वं तु ये विप्रा आंउ ४.८ अतः परं प्रवक्ष्यामि व्या ३५८ अत ऊर्ध्वं पतित व १.११.५४ अतः परं प्रवक्ष्यामि शंख १०.१ अत ऊर्ध्व प्रत्यहं वा व २.६.३७४ अतः परं विशेषन्तु वृ.गौ. १०.१६ अत ऊर्ध्वम्प्रवक्षामि ब्र.या. ७.५६ अतः परं सुरापस्य संवर्त ११४ अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि आंउ २.१ अतः परीक्ष्यमुभयमतदाज्ञा नारद १.६१ अत ऊध्वं प्रवक्ष्यामि आंउ १२.१ अतपास्त्वनधीयानः मनु ४.१९० अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि पराशर ८.३ अतः पुत्रेण जातेन नारद २.६ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ स्मृति सन्दर्भ अतः शुद्धिं प्रवक्ष्यामि पराशर ३.१ अतिथींश्च लभेमहि ब्र.या. ४.१३९ अतश्च भ्रूमहत्याया व १.५.११ अतिथेऽभरदेहस्त्वं वृ परा ४.२०४ अतः सम्यग्विधिं ज्ञात्वा भार १५.५ अतिथौ तदिनभ्रान्त्या आंपू ९४८ अतस्तस्य तेषां तु वृ परा २.७६ अतिथ्याराधानादीनि नारा ५.१६ अतस्तु विपरीतस्य मनु ७.३४ अतिपक्वमपर्वताक्षेमंदग्धं कपिल २२१ अतरिस्मन् तत्त्वमारोप्य आंपू १२३ अतिपक्वाअपक्वा भार १४.५१ अतः स्यात्कर्ममध्येऽपि कण्व ३२७ अतिपक्वान्यपक्वानि भार १४.१५ अतः स्वल्पीयसि द्रव्ये मनु ११.८ अतिपापादतिखलादति कपिल ९८२ अतिकृच्छ्रे चरेत्पूर्वं अत्रि ५.६६ अतुलादिपदैश्चपि संयुक्त कपिल ९१६ अतिकृच्छं पराकञ्चत्र्यब्दं वृ हा ६.३८९ अतृप्ता एव नोते आंपू १०९३ अतिक्रमं मृताहस्य आश्व २४.२९ अतिरात्रात्परं तस्या कण्व ४९२ अतिक्रान्तं तु कर्तव्यो व २.६.४३६ अतिरात्रोऽप्तोर्यामश्च कण्व ४९४ अतिक्रान्ते दशाहे च __ मनु ५.७६ अतिरिक्तं न दातव्य आप १.१२ अतिक्रान्ते दशाहे तु अत्रि ५.२९ अतिरोचनकं दिव्यं तृतीयं वृ हा २.१०५ अतिक्रामन्ति ये कालं विश्वा ६.१५ अतिर्यगुपेयात व १.१२.१९ अतिक्रामेत् प्रमत्त या मनु ९.७८ अतिलोम्नी च निर्लोम्नी ब्र.या. ८.१५७ अतिक्षुदैककालेषु आंपू २१३ अतिवादस्तितिक्षेत मनु ६.४७ अतिगुहृमिदं शास्त्र कपिल ५६० अतिवालातिदोहाम्यां आप १.२४ अतिगुहामिदं शास्त्र सर्व लोहि ५७६ अतिवाहातिदोहाभ्यां दा १०३ अतिमानादतिक्रोधात् पराशर ४.१ अतिवाह्यातिदोहाभ्यां लघु शंख ५३ अतिमानादतिक्रोधात् वृ परा ८.५० अतिवेला यदि भवेत् शाण्डि ४.१७१ अतिचातुर्यतोऽतीव __ आंपू ५८२ अतिवैदग्ध्यमापन्नां अत्यन्त लोहि ६७२ अतिदाहे चरेत् पादं पराशर ९.२९ अतिसूक्ष्मा अतिस्थूलाः भार ७.२२ अतिदाहेऽति वाते च पराशर ९.२८ अतीत व्यवहारान् __ बौधा २.२.४३ अतिदीर्ण तक्रं वृ हा ४.११७ अतीतानागतेभ्यश्च बृ. या. ८.५५ अतद्वतकृतं कर्माकृत लोहि ४३२ अतीते दशाराने तु शंख १५.१२ अतिथित्वेऽपि वर्णेभ्यो या १.१०७ अतीत्य वीरजामाशु वृ हा ७.३२२ अतिथिन्तं विजानीयान् व २.६.१९२ ___ अतीन्द्रियः नमस्तुभ्यं विष्णु म ५६ अतिथिं च गुरुञ्चैव व २.५.६० अतीन्द्रियः सुदुष्पारः विष्णु १.५१ अतिथिं चाननुज्ञाप्य मनु ४.१२२ अतैजसानामेव भूतानां बौधा १.५.५० अतिथिं श्राद्ध रक्षार्थ प्रजा १९५ अतैजसानि पात्राणि मनु ६.५३ अतिथिं श्रोत्रियं तृप्त या १.११३ अतोऽजयन्मुनयो लोका भार १८.१२२ अतिथिः यस्य भग्नाशो वृ गौ ६.८९ अतो देवा इति जपन् व २.७.९८ अतिथिर्यस्य भग्नाशो पराशर १.५३ अतो देवोतिसूक्तेन व हा ७.२९८ अतिथिन्स्तर्पयित्वाऽथ व २.६.२३० अतोदेवेति सूक्तेन तृ हा ८.२३१ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अतो न निन्तयेत्तीर्थ अतो न भोजयेद् विप्रान् अप्रो न्यं कलशं गृह्य अतोऽन्यतममास्थाय अतोऽन्यतमया वृत्त्या अतोऽन्यथा कर्तपत्यन् अतोऽन्यथा क्लेशभाक् अतोन्यथा भुञ्जन्वै अतोऽन्यथा वर्तमनः अतोऽप्यन्नार्थभावेन अतोऽप्रवृत्ते राजसि कन्यां अतो बालतरस्यापि वृ परा २.१०३ वृ परा ७.७० व २.७.३३ मनु ११.८७ मनु ४.१३ बौधा १.१०.३९ अतोबालतस्यापि अतो मनुष्ययज्ञार्थ अतो माखान्नमेवैतन् अतो विवाहयेत्कन्यां अतो वेदाधिकारित्वं अतोव्याध्यातुरः अतोहि ध्रुवः कुलापकर्ष अत्यग्निष्टोममुख्यान्तान् अत्यन्तं कलौ भूम्यां तिष्ठे अत्यन्तचपल श्रां अत्यन्त पितृ तृप्त्यैक अत्यंत बाल्यसंप्राप्तवैधव्या अत्यन्तमलिनः कायो अत्यन्तमलिनः कायो अत्यन्तमलिनः कायो अत्यन्तमलिने काये अत्यन्तविषमे देशे अत्यन्तार्तो यदि ब्रह्मन् अत्यंतावश्यकत्वेन कारणं अत्यन्तावश्यकत्वेन अत्यन्तावश्यकत्वेन अत्यन्तावश्यकीज्ञेया अत्यन्तावश्यको न स्याद् नारद १२.१९ वृ गौ. ८.१८ नारद १३.९० व १.१.२७ कपिल ९८४ कपिल २ आंपू ७५६ आंपू ६०३ कपिल ५२८ दक्ष २.७ बृ.या. ७.१२३ वृ परा २.९५ नारा ३.२ व २.६.४७५ नारा ९.३ कपिल १३२ कपिल ९८८ लोहि ३४८ अनंतासक्तनातीव कार्या अत्यन्तैकपवित्राहि नान्या अत्यन्तोष्णेन निर्वर्त्य वृ परा ५.११८ नारद १३.२७ अत्याराद्वन्धुपत्न्यश्च अत्यासन्नान धीयान्नान् अत्युक्तमन्नं विप्रस्तु अत्युत्क्रान्तिप्रवृत्तस्य अत्युद्यमी क्रियत एव अत्युष्णमतिरूक्षं च अत्युष्णमशनं कार्यं वृ परा ७.२६० अत्युष्णं पमान्नं तद्भक्षाण्मशन कपिल ६५ आश्व १.१३४ अत्युष्णं सर्वमन्नं बृ.य. ३.२ यम १६ प्रजा १५२ अत्र कुर्याद्विधानेन पश्चात् अत्र गाथा वायु गीताः ब्र. या. ८. १४५ वृ परा ६.३५० व्या ३३० कण्व ५७९ आंपू ६३६ अत्यन्तोस्थासमायुक्तं श्राद्ध अत्यन्यायमतिद्रोह अत्र त्र्यहमनध्याय अत्र पितरोऽमुत्र च अत्र विष्णुर्मतं स्वस्य अत्रसबन्धुसुहृद्वि अत्र स्नानं जपो होमो पुत्रस्वर्गश्चमोक्षश्च अत्र ह्येष्यदपत्यं अत्रख्यातानि पुष्पाणि अत्राङ्ग वर्णमिप्युक्तं अत्रानुक्तैर्महाकाल अत्रापि कश्यपस्यार्ष अत्रापि षष्ठसप्तमौ अत्राप्यर्चनमात्रेण अत्राप्य सपिण्डेषु अत्राप्युदाहरन्ति अत्राप्युदाहरान्ति अत्राप्युदाहरन्ति अत्राप्युदाहरन्ति अत्राप्युपद्रवं राज्ञा २०५ कपिल २०५ आपू ९१० कण्व ७७३ कपिल २७० आंपू ९८ लोहि ४०९ वृ परा ६.२३४ व्या २४० आंपू २९५ वृ परा १२.७० व २.६.१६६ मनु ३.२३६ व २.३.४४ मनु ९.४२ वृ परा ६.३५७ आंपू ८५५ आंपू ९९७ कण्व ५८३ संवर्त २०६ व्या ३९१ व १.२०.४३ भार १४.१८ वृ हा ७.५२ आंपू ८४४ वृ परा ११.३३५ बौधा १.१.१३ वृ हा ५.४२६ बौधा १.५.१३२ व १. १३.१६ व १.१४.५ व १.१४.८ व १.१५.१३ वृ परा ५.१३१ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ अत्राहं कथयिष्यामि अत्रिर्भृगृःकुत्ससशज्ञा अत्रिर्वशिष्ठः काश्यप अत्रेति चानुमंत्र्याथ दुरा प्रह अत्रेर्विष्णो साम्वर्ता अत्रैव गायेत्सामनि अत्रैव पितृयज्ञश्च अत्रोक्तं सर्वमंत्राणां अत्रेोचुरपरे केचित् अत्रौरसः प्रकृथितः धर्म अर्थिनामिष्टदानेन सर्वदा अत्वरः सुमनाः क्रोधकामं अथ ऊर्ध्वं दन्तजन्म अथ कमण्डलचर्या अथ कमण्डलुचर्या अथकर्णवेधं धः वर्षे तृतीये ब्र.या. ८.३५६ अथ कल्पं प्रवक्ष्यामि भार १९.१ औ ७.३ अथ कश्चित्प्रमादेन अथकिं बहुनोक्तेन अथ कृष्णायसीं दद्यात् अथ कृतापसव्ययो अथ खल्वयं पुरुषो अथ गोघ्नस्य वक्ष्यामि अथ चप व्रजेद् विद्वान् अथ चान्द्रायण विधि अथ चेत्त्वरते कर्तुं अथ चेदद्भिकच्छिष्टी अथ चेदनृतं ब्रूयुः अथ चेदन्नेनोच्छिष्टी अथ चेन्न लभेतान्यां अतचेन्मंत्रविद्युक्तः अथ चेन्मंत्रविद्युक्त अथ चेन्मंत्रविद्युक्तः अथ चेनमंत्रविद्युक्तः ल हारी १.३ भार १९.९ भार १७.७ आश्व २३.७५ कात्या १६.७ पराशर १.१४ व १.२३.४२ आंपू ६१५ भार ५.५२ वृ परा १०.९५ लोहि ७९ शाण्डि १.२७ शाण्डि ४.२७ औ ६.१६ बौधा १.४.१ बौधा १.१२.१६ वृ परा १०.२२३ औ ९.९ शंख १३.८ व १.२२.१ वृ परा ८.१२४ वृ हा ८.२९४ व १.२३.३९ व १.२७.१७ बौधा १.५.३१ नारद १२.७ बौधा १.५.३० कात्या ६.१५ अत्रिस ३४८ लघु शंख २२ लिखित २८ व १.११.१७ अथ चेन्मंत्र विद्युक्तो अथ चैव द्विजः कुर्यात् अथ तद् विन्यासो वृद्धि अथ तेषां क्रमेणैव अथ त्रयाणां वक्ष्यामि अथ देयमदेयंच दत्त अथ द्विराचमेदेवं सदैव अथ द्विजोऽभ्यनुज्ञातः अथ नावं सुविस्तीर्णा अथ नित्योत्सवे पूजा अथ नैमित्तिकं वक्ष्ये अथ पंजड़ोन्मत्तमूका अथ पतनीयानि अथ परिविविदानः अथ पश्चिम संध्यायां अथपादादिमूर्ध्वातं अथ पिण्डावशिष्टान्नं अथ पुत्रादिनाप्लुत्य अथ पुष्पांजलि कृत्वा अथ पूजा प्रवक्ष्यामि अथ प्रक्षालयेत्पादौ अथ भागवतीमिष्टि अथ भातृणा दायविभागः अथ मासे चतुर्थे तु अथ मूलमनाहार्यं अत यज्ञोपवीतस्य अथ यज्ञोपवीतस्य अथ यदर्वाचीनं अथ यदि दशरात्रा अथ राजधर्माः अतर्ववेदिनं तद्वदुत्तरे अथर्वाग्गरसस्तुष्टै अथर्वाशिरसि प्रोक्तमूर्ध्व अथर्वेदस्योपवेदं अथ वक्ष्यामि गायत्र्या स्मृति सन्दर्भ बृ. म. ३.३९ आश्व २३.१ कात्या १४.१ शांता ६.१६ आंउ १.२ नारद ५.२ भार १६.७ संवर्त ३५ वृ हा ७.२५३ वृ हा ६.५१ व २.६.२३२ कपिल ३४४ बौधा २.१.५० व १.२०.९ भार ६.१३६ भार ६.८२ औ ५.५० कात्या २१.८ ल हा ४.४९ भार ११.४ वृ.गौ. ७.२७ वृ हा ७.२०४ व १.१७.३९ व २.३.१ मनु ८.२०२ भार १५.१ भार १६.१ व १.२.९ बौधा १.५.१२४ विष्णु अ ३ वृ परा ११.२८२ भार ४.२६ वाधू १०३ व्र. या. १.४७ भार १२.१ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २०७ अथवक्ष्यामि राजेन्द्र वृ हा ४.१ अथ स्नातक व्रतानि बौधा २.३.१३ अथ वक्ष्यामि राजेन्द्र वृ हा ८.१ अथ स्नातकस्य बौधा १.३.१ अथ वक्ष्यामि राजर्षे वृ हा ७.९१ अथ स्व ज्ञातिजोवापि ब्र.या. ७.३६ अथव ब्रह्मकूर्चन्तु बृ.गौ. २०.३९ अथहस्तांङ्गदेहेषु कुर्यान्न भार १३.९ अथ वसेद्यदा राजावज्ञानाद लघु यम ६५ अथ हस्तौ प्रक्षाल्य बौधा २.५.१ अथवा कालिनयमो न नारद २.१ ४९ अथ हैके ब्रुवते बौधा २.५.२ अथवा क्रियमाणेषु आप ३.८ अथागम्य गृहं विप्रः व्यास २.१ अथवा जपमात्रेण काला विश्वा १.१० अथाग्रभूमिमासिञचैत् कात्या ४.५ अथवा तण्डुलेनापि विश्वा ६.५१ अथाचम्य निदिध्यास्य ल हा ६.२० अथवा तुलसी पुन्नां कृत शाण्डि ३.१४ अथाञ्जलिनाऽप उपहंति । बौधा २.५.७ अथवा दैत्यसङ्घाः च वृ गौ ३.४४ अथातः पुरुषनि श्रेय व १.१.१ अथवा द्वौ विश्वेदेवो व्या १८८ अथातः प्रायश्चित्तानि बौधा २.१.१ अथवानुमतो यः स्याद् नारद २.१७१ अथातः शौचाधिष्ठान् बौधा १.५.१ अथ वाऽपि त्रयोवाऽपि आश्व २४.११ अथातः शौचाधिष्ठानम् बौधा १.१२.१४. अथवा ब्राह्मणास्तुष्टाः पराशर ६.५१ अथातः संध्योपासनविधिं बौधा २.४.१ अथवा ब्रह्मबन्धुः कण्व २२६ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ब्र.या. ३.१ अथवा भोजयेदेक औ ५.२७ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ब्र.या. ५.१ अथवा मार्गपाल्येऽह्नि कात्या २६.८ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ब्र.या, ६.७ अथवा मुच्यते पापात् अ १२९ अथातः संप्रवक्ष्यामि भार १३.१ अथवा मूलमंत्र तु वृ हा ६.७७ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा १.४९ अथवा यभ्यसन् वेदं या ३.२०४ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा ८.१ अथवा योषितं गच्छेद् वाधू १४६ अथातः संप्रवक्ष्यामि वृ परा १०.७१ अथवाल्यकशस्त्राणि भार १२.२२ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा ११.२०३ अथवाऽसौ पदेनाम आश्व १०.१९ अथातः समप्रवक्ष्यामि व परा ११.२४१ अथ विजानीयात्पूर्वादि भार २.१ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा ११.२६३ अथ विप्रो वनं गच्छेद्विना वृ परा १२.९६ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा १२.१४५ अथ वृक्षप्रमाणेन दृश्य शाण्डि ५.२ अथातः संप्रक्ष्यामि ब्र.या. ११.१ अथ शक्तिविहीनः नारद २.११० अथातः सिद्धिकामः वृ परा ११.१५९ अथ शब्दस्तु रवि भागे प्रजा १५५ अथातः स्नातकव्रतानि व १.१२.१ अथ संवत्सरादूर्व देवल १५ अता तः स्यादनध्यायो वृ परा ६.३५४ अथ संस्थापन विधि व २.७.२ अथातः स्वाध्याय व १.१३.१ अथ सन्तुष्टमनसाः पराशर १.१० अथातस्संप्रवक्ष्यामि विश्वा ७.१ अथ संध्यात्रयोपास्ति ___ भार ६.१ अथाति कृच्छ्र: व १.२४.१ अथ सर्पण वा दष्टो ब्र.या. १२.२५ अथातो गोभिलोक्तानां कात्या १.१ अथ सावित्री मन्वा ब्र.या. ८.२९ अथातो द्रव्य संशुद्धि पराशर ७.१ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८. अथातो नृपतेर्धर्म अथातो भोज्याभोज्यं अथातो यमधर्मस्य अथातो ह्यस्य धर्मस्य अथातो हिमशैलाग्रं अथातो हिमशैलाग्रं अथात्तरोर्ध्वकाष्ठा अथवात्मानं हृत्कमले अथात् संप्रवक्ष्यामि अथादाय स पुष्पाणि अथादायाद बन्धूनां अथाऽऽदित्यनुपतिष्ठत अथाद्भिस्तर्पयेद्देवान् अथापि ब्राह्मणाय वा अथापि भाल्लाविनो वृ परा १२.१ व १.१४.१ बृ.य. १.१ यम १ पराशर १.१ वृ परा १.२ भार २.१० अथद्भुतानि जायन्ते अथानवेक्षयेत्पापः सर्व वृ परा ७.३२५ वृ परा ७.३०२ अथानित्वमभाग्यत्वं अथान्नप्राशनं कुर्यात् अथान् यत् किंचित् अथान्यत् पापमृत्यूनां अथान्यत् सम्प्रवक्ष्यामि अथान्यत् सम्प्रवक्ष्यामि अथान्यत्संवक्ष्यामि अथान्यत् संप्रवक्ष्यामि अथान्यत् संप्रवक्ष्यामि वृ परा ४.६९ वृ परा ८.१७५ वृ परा १०.१०४ वृ परा १०.२४९ वृ परा ११.२९७ बौधा २.५.१० व १.२३.३६ अथान्यत्स सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा १२.२७७ अथाप उपस्पृश्यत्रि अथापरः कृच्छ्रविधि अथापरं भ्रूणहत्यायां अथापरेद्युरभ्यज्ज्य अथापि तस्य यो वह्नि अथाऽपि तस्याऽकरणेसद्यः अथापि न सेन्द्रियः अथापि नांद्यांतस्यापि अथाप्यत्र भाल्लविनो अथाप्यत्रान्नगीतौ अथाप्यत्रोशनसश्च अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति कात्या १२.१ वृ परा १९.८८ अथाप्युदाहरन्ति कात्या २२.१ अथाप्युदाहरन्ति वृ परा ५.१८८ अथाप्युदाहरन्ति व २.३.९ अथाप्युदाहरन्त अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथाप्युदाहरन्ति अथायमर्थ गायत्र्य अथार्चनोक्तद्रव्याणां अथार्दोधद्वयं कुर्यास्त्रीषि अथार्हमिहियैरात्मा व २.६.६५ वृ परा ११.३१४ वृ. गौ. ८.४७ व १.१७.२८ बौधा २.५.२० स्मृति सन्दर्भ कपिल ९ व १.१८.१० अथापि मुख्यसार्थ निश्चयैः अथापि यमगीता अथापि वक्ष्यामि विधेः वृ परा १०.३३६ अथापि वः प्रवक्ष्यामि अथापि सम्यक्कुर्वीत अथवोऽभिप्रपद्यते कण्व ८ व १.२३.३२ आश्व १०.३ लोहि १२१ कपिल १६३ बौधा २.१.६८ कपिल ३६५ व १.४.८ व १.१.१३ अथाव वन्धीते मद्य अथास्य ज्ञातयः परिषद् अथास्याः सविदा देवता अथेदमूर्ध्वपुण्ड्रन्तु अथैकविशतिदर्भान्न अथैतस्याः प्रवक्ष्यामि अथैतानि द्विजेभ्यो कण्व ६८७ बौधा २.५.४ बौधा १.१.२९ बौधा २.३.२१ बौधा २.२.८९ बौधा १.१.८ बौधा १.१.३३ व १.२.६ व_१.२.१०,१३ व १.२.३० व १.२.३) व १.२.५० व १.३.१. व १.३.५२, व १.४.२० व १.४.२५ व १.५.३ व १.१६.१२,१५,२५ व १.१७.६० व १.१२.२०, ३७ भार १०.१ भार ९४.१ ब्र.या. ८.२५५ शाण्डि ४.२०८ ब्र. या. ८.११९ बौधा २.१.४४ शंख १२.९ वृ हा २.६९ व २.३.२७ भार ९.१ वृ.गौ. १०.६६ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २०९ अर्थतेषां वृत्तयः ब्राह्मणस्य विष्णु २ अदीक्षितो मवेद्यस्तु वृ हा ८.२३९ अथै न शास्त्रब्रह्मवर्च ब्र.या. ८.२७ अदीर्घसूत्रः स्मृतिमान या १.३१० अथैनामभिमृश चैवं ब्र.या. ८.३२३ अदुष्टापतितां भाऱ्या पराशर ४.१४ अथोच्यते मणीनां भार ७.२० अदुष्टां विनतां भाऱ्या व २.५,३० अथोच्यते विशेषस्तु भार ६.१३१ अदुष्यं दू तं यम दा ३८ अथोत्तरत ऊर्णाविक्रयः बौधा १.१.२२ अदूषितानां द्रव्याणां मनु ९.२८६ अथोद्देशक्रम शास्त्र वृ परा २.६ अदृष्टपूर्वमज्ञानमतिथि ल हा ४.५६ अथेनमः शिवायेति व्याप्त २.४७ अदृष्टऽपृषटगोत्रादिर् वृ परा ४.१९५ अथोपतिष्ठेतादित्यं ___ भार ७.२ अदृष्टलाभो भवति कण्व ४८७ अथोपिनषदुक्तानि वृ हा ५.३२८ अदृष्टविग्रहो देवो वृ.या. २.६१ अथोपपातकाश्चिन्त्या। आंउ १२.९ अदृष्टापतितां भाऱ्या दक्ष ४.१७ अथोपवीतं विधिना भार १६.४ अदृष्ट चाशुभ दान व्यास ४.२८ अदण्डया हास्तिनोऽश्वाश्च नारद १२.२९ अदृश्यमानः तैः दीनैः व.गौ. ५.२३ अदण्डयान्दण्डयन् मनु ८.१२८ अदृश्रमस्येति मन्त्रै बृ.या. ७.१०१ अदण्डयान् दण्डयन् वृहा ४.१८६ अदेयमथदेयं वा दत्तवा ब्र.या. १२.२ अदत्तदाना गच्छन्ति वृ गौ ५.५६ अदेयानि नवान्यानि दक्ष ३.३ अदत्तदाना जायन्ते दक्ष २.३४ अदेमानि नवान्यानि ब्र.या. १२.२८ अदत्तपुत्रेणैव स्यात् लोहि ९९ अदेयानिन वै दद्यादत् वृ परा ६.२.६० अदत्त तु भयक्रोध वेष नारद ५.८ अदेशं यश्च दिशति मनु ८.५३ अदत्तादान निरतः या ३.१३६ अदेशिने च यद्दतं वृ गौ ३.२३ अदत्तानामुपादान हिंसा मनु १२.७ अदैवं तस्य देयं वृ परा ७.१३९ अदत्त्वा तु य एतेभ्यः मनु ३.११५ अदैवान्तरतः श्राद्धः प्रजा ६८ अदनात्तनाद्यस्य वृ परा १.३२ अदोह्य-वाहयौ यौ तत्र वृ परा १.५० अदन्त जातमरणे __ औ ६.१२ अद्दी याद्वि यथाशक्त्या व २.३.१३८ अदम्या गर्मिणी गौश्च ब्र.या. १२.२२ अभि गात्राणि शुध्यान्ति व १.३.५६ अदर्शने वृश्चिकस्य आं पू ७१४ अद्भिरेव कांचन पूयते व :.३.५७ अर्शयित्वा तत्रैव मनु ८.१५५ अभिरेव द्विजाग्रयाणां मनु ३.३५ अदः शस्त्र विषं मांसं मनु १०.८८ अद्भिर्गात्राणि शुध्यन्ति मनु ५.१०९ अदातरि पुनर्दाता मनु ८.१६१ अभि वाचा च दत्रायां व १.१७.६४ अदाता च सदा लुब्ध वृ परा ८.१९१ अद्मि शुध्यन्ति गात्राणि बौधा १.५.२ अदाता पुरुषत्यागी व्यास ४.२४ अद्भिश्चा सनवाक्यैश्च शंखलि ९ अदातारं समर्था ये वृ.गौ. १०.९५ अभि समुदधृताभिस्तु शंख १०.६ अदाहकः पावको यं चाक्षषो कपिल ८८० अद्भिस्तु प्रकृतिस्थाभि । ब्र.या. ८.५४ अदितिद्यौरितिसंस्कृत्य ब्र.या. १०.१२२ अद्विस्तु प्रोक्षणं शौच मनु ५.११८ अदिव्यत्यत्तत्तद्वाक्योच्चारणे कपिल २५ अद्भुतं च हितं सूक्ष्म विष्णु म ७ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० स्मृति सन्दर्भ अद्भ्यश्चाग्निरभूत नारद १९.४५ अधः शायी ब्रह्मचारी वृ हा ५.५२६ अद्भ्योऽग्निर्बह्मतः मनु ९.३२१ अधस्तन्नोपदध्याच्च न मनु ४.५४ अद्य मे सफलं जन्म आश्व २३.१०४ अधस्ताज्जान वोरा बौधा १.२.२७ अद्यात्काकः पुरोडाशं मनु ७.२१ अधस्तात्कालशानांतु नारा ५.४७ अद्यानुवाके प्रथमा वृ परा ११.१८७ अथही लं कनिष्ट । भार २.५५ अद्यापि काश्यां रुद्रस्तु वृ हा ३.२३८ अधार्मिकं त्रिभिायैः मनु ८.३१० अद्यास्मज्जलदो जातः तो कपिल ७१७ अधार्मिको नरो यो हि मनु ४.१७० अद्यैवेति दृढ़ नूनं दृढ़यित्वा कपिल ६८० अधाश्वतानि गात्राणि व्यास ४.१९ अद्राक्ष यहहं वस्तु वृ परा १२.१९४ अधिकश्चेति सर्वेषु स्वकर्मसु कपिल७३९ अद्रोहं मम भक्तानाम्भूत बृ.गौ. २२.१९ अधिकस्य च भागौ बृ.या. ५.२३ अद्रोहणैव भूतानां मनु ४.२ अधिकारनिवृत्तश्च बृ.या, ३.२१ अदोहोऽस्तेयकर्मा प्रजा ३९ अधिकारप्रभेदेन भोजनस्य आंपू २८८ अद्वारेण च नातीयाद्ग्रामं मनु ४.७३ अधिकारस्तथा तस्मात्पुत्र कपिल ५९७ अद्वितीयं यदा मंत्र वृ ता ३.२७४ अधिकारस्तूत्तेरेषु तेषु कण्व ४९० अधनस्य ह्यपुत्रस्य नारद २.१९ अधिकारीत्वसिध्यर्थं आंपू ११६ अधनास्त्रय एवोक्ता नारद ६.३९ अधिकारी यदा न स्यात् वृ परा ६.३० अध प्रक्षालनं प्रोक्त व २.६.४८५ अधिकारो न चान्यस्य आंपू १६१ अधमं त्रयमित्याहुः विश्व ५.३९ अधिकारो भवेतस्य बृ.या. १.३४ अद्यमं याच्यमानं वृ परा १.२८ अधिकारो मिलितयो आंपू ३८४ अधमर्णार्थासिद्ध्यर्थ मनु ८.४७ अधिकारोऽस्ति धर्मेण लोहि ४१२ अधमे द्वादशी मात्रा विश्वा ३.१२ अधिकारोऽस्ति सततं लोहि ४७७ अधमो द्वापरयुगः कलिस्स्या नारा ९.७ अधिकाशामतृप्तं च दुर्वाद आंपू ७५१ अधरस्पर्शनं दत्तकर्षणं भार ८.५ अधिका वन्दनीयाश्च आंपू २३० अधरे वसवः सर्वे मुखे वृ गौ. १०.४८ अधिको दुहितासूनुः लोहि २९६ अधर्मदण्डनं लोके मनु ८.१२७ अधिकोऽपि कदाचित्स्या लोहि ६६ अधर्मप्रभावं चैव मनु ६.६४ अधिकोऽप्याहिताग्निर्वा लोहि ४७ अधर्ममेव कुर्वन्त्यः स्वजन कपिल ५२१ अधिक्रियत इत्याधि स नारद २.१०५ अधर्म मनसा वाचा वृ हा ६.१५३ अधितिष्ठेन्न केशांस्तु मनु ४.७८ अधर्माज्ञानवैरग्यनैश्च भार ११.३८ अधिमासे जन्मदिने व्या ३२९ अधर्मेण चयः प्राह मनु २.१११ अधिमारने पि कार्य व परा ७.१०७ अधर्मेणैधते तावत्तो मनु ४.१७४ अधियज्ञ ब्रह्मा जपेदाधि मनु ६.८३ अधर्मदण्डनं स्वर्गकीर्ति या १.३५७ अधिवासादिकं सर्वं वृ हा ६.४११ अधःशयीत नरतो औ ८.२६ अधिविन्ना तु भर्तव्या ___ या १.७४ अधःशायी ब्रह्मचारी व २.३.१८३ अधिविन्ना तु या नारी । मनु ९.८३ अधःशायीब्रह्मचारी व २.६.३ ४५ अधिविन्नास्त्रियै दद्याद् या २.१५१ वि Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अधिवृक्षसूर्यमध्वान अधिष्ठानान्नानीहारः अधीतवेदो जपकृत् अधीते विधिवनित्यं अधीत्य च गुरो र्वेदान अधीत्य चतुरो वेदान अधीत्य विधिवद् अधीत्य विधिवद् अधीत्य सर्ववेदान अधीयानस्तथा यज्वा अधीयानानामंतरागमने अधीयानास्तु विद्याप्त्या अधीयीत तथा वेदान् अधीयीत शुचौ देशे अधीयीरंस्त्रयो वर्णाः अधीष्व भोः इति ब्रूयात् अधीहीत्यादिकं मंत्र अधोवायुविसर्गेऽपि अध्यग्न्यावाहनिकं अध्यग्न्यध्याहवनिकं अध्यक्षान्विविधान अध्ययनं यजनं दानं अध्ययने तु भवेत् अध्य व परिचर्य्यायां अध्यात्मरतिरासीनो मनु १०.१ औ ३.३९ आश्व १०.२९ वृ हा ७.१७० वृ हा ७.२ व २.५.१ अधुना वैनतेयेष्टि अधुना श्रोतुमिच्छामि अधुना सम्प्रवक्ष्यामि अधोदृष्टिनैस्कृतिकः अधोभागविसृष्टाभि अधो भागविसृष्टैर अधोमुखेनांजलिना अधोऽवसक्तमधोवीतम् बौधा १.५.१० मनु ४.१९६ बृ.या. ७.१८७ ब्र.या. २.६९ भार ११.७४ व २.३.९६ अध्यापकं कुले जातं अध्यापनं अध्ययनं व _१.१२.४१ व १.१९.१० या ३.५७ औ ३.४२ लहा ३.१० अत्रि स ३०३ औ ३.९४ मनु ६.३६ वृहस्पति ७९ औ ६.५ व १.२३.२३ वृ परा ११.८ औ ४.२४ औ ३.५.६ मनु ९.१९४ नारद १४.८ मनु ७.८१ व १.२.२२ ब्र. या. ४.४५ व २.४.३ मनु ६.४९ बौधा १.१०.१४ मनु १.८८ अध्यापनञ्च कुर्वाणो अध्यापनञ्च त्रिविधं अध्यापनमध्ययनं अध्यापनं चाध्ययनं अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः अध्यापन याजन अध्यापयति तस्याऽपि अध्यापयामास पितृ अध्यापयित्वा रुद्रादि अध्यापयेत्ततः शिष्यान् अध्यपयेद् द्विजां अध्यापयेद् द्विजान् अध्यापयेद् वैष्णवानि अध्यापिता ये गुरु अध्यायानामुपाकर्म्म अध्यायान्ते मण्डलान्ते अध्यास्मिन्मयोक्तानि अध्येतव्यं प्रयत्नेन अध्येता चैव मंत्राणां अध्येष्यमाणं तु गुरु अध्येष्यमाणस्त्वाचांतो अध्वगामी भवेदश्वः अध्वनीनो तिथिज्ञयः अध्वर्यौ सति जपति स्वीया अध्वानं न तु वै यायान्न अनग्नमश्च ये विप्रा अनग्निकस्य कुर्वीत अनग्निकसय विप्रस्य अनग्निको न पुत्री स्याद् अनग्निको यदा ज्येष्ठः अनाग्निरध्वगो वापि अनग्निरनधीयानः प्रति अनग्निरनिकेतः स्याद् अनग्निर्ब्रह्माचारी च २११ औ ३.५९ ल हा १.१९ मनु १०.७५ ल हा १.१८ कात्या १३.३ मनु ३,७० बौधा २.२.७७ वृ परा १०.२४० मनु २.१५१ आश्व १२.१५ व २.३.१८२ वृ परा ६.७६ वृ परा १०.२३६ वृ हा २.२५२ वं १.२.१७ या १.१४२ वृ हा ६.६७ भार ९.५० कण्व २२५ वृ परा ११.२६८ मनु २.७३ मनु २.७० लिखित ६१ या १.१११ लोहि ५२२ वृ परा ७.३१ वृ.गौ. १०.७६ वृ परा ४.१७३ व्या २३६ आंपू ३२० आश्व २४.५ औ ५.८२ बृ.गौ. १४.१६ मनु ६.४३ व्या १७५ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ स्मृति सदर्भ अनडुत्सम्प्रदानस्य वृ गौ. ७.३ अनन्ताश्च यथा भावाः या ३.१३२ अनडुत्सहितां गाञ्च पराशर ४.६ अनन्निरस्पृशेन्नोधं ब्र.या. २.१९० अनडुहां सहस्राणां व १.२९.१९ अनन्यचित्तो भुंजीत व्यास ३.६५ अनड्वान् ब्रह्मचारी व १.६.१९ अनन्यचेतसो शांता ल व्यास १.२८ अनड्वाहं च वस्त्र च वृ परा ११.१६७ अनन्यदर्शी सततं औ ३.२० अनड्वाही च यो दद्यात् संवर्त ७० अनन्यदेवता भक्त्या वृ गौ. ८.९३ अनधीत्य द्वयं मंत्र व हा २.१३४ अनन्यपूर्विका लवीं व्यास २.३ अनधीत्य द्विजो वेदान् मनु ६.३७ अनन्यमनसं शांतं आप १.३ अनधीत्यैव यो वेदं कण्व ४२७ अनन्य या ३.१११ अनध्यायदिनं वर्ष सोमारो व २.३.१५७ अनपत्यः कूटसाक्षी औ ४.३३ अनध्यायं प्रकुर्वीत व २.३.१५८ अनपत्यस्य पुत्रस्य मनु ९.२१७ अनध्याये तु योऽधीते ब्र.या. ८.७२ अनपत्यस्य पुत्रार्थ वृ परा ११.२९८ अनध्यायेऽप्यधीमानो शाता ६.१५ अनपत्या च या नारी व्या ६० अनध्यायेष्वधीयानाः शंख १४.४ अनुपत्यातु या नारी आंगिरस ७० अनध्यायो विनाशेच औ ३.७८ अनपत्येषु प्रेतेषु न वृ परा ७.३५३ अननतकृत पापो पि वृ परा ५.१६७ अनभि संधिकृते व १.२०.१ अनन्तगरुडादीनामयं वृ हा ७.२२१ अनभ्यस्ताक्षरेणापि न समः कपिल ६८० अनन्त दीपारेखादि वृ हा ४.५१ अनभ्यासेन वेदानाम् मनु ५.४ अनन्तभोगिपर्यंके वृ हा ४.९ अनयन् नादायित्वा । नारद ७.६ अनन्तं चाप्रमेयं च बृह १२.४० अनयन् वाहकोऽप्येवं नारद ७.९ अनन्तं नयते स्थानं बृ.या, २.११९ अनया निखिलाश्चापि लोहि ७.१९ अनन्तरं विप्रभुक्तेः आंपू १०९६ अनया सदृशी ज्ञानं न विश्वा १.४४ अनन्तरः सपिण्डाद्यस्तस्य मनु ९.१८७ अनया सह तीर्थेषु प्रजा ३ अनन्तरः स्मृतः पुत्र नारद १३.१०६ अनयैवावृता नारी कात्या २३.७ अनन्तरासु जाताना मनु १०.७ अनयो न्यथेत्यवक्तं वृ हा ३.८४ अनन्तःमिणं साग्रं कात्या २.१० अनर्भरार्जवेपश्चात् व २.४.१८ अनन्तर्गर्भिणं साग्रं प्रजा १०५ अनर्चनीया रुद्राधा वृहा ८.२६३ अनन्तं विहगाधीशं वृ हा ७.७७ अनर्चयित्वा मूढात्मा वृ हा ८.३१० अनन्तविहागाधीश वृ हा ४.६३ अनर्चयित्वा यः अश्नाति वृगौ ६.६३ अनन्त विहगेशानां वृ हा ३.१५० अनर्चितं वृथामांसम मनु ४.२१३ अनन्ता जायते तृप्ति ब्र.या. ४.११ या १.१६६ अनन्तान् भगवान् मंत्रान् वृ हा ३२८ अनर्चिते पद्मनाभे वृ हा ६.४३४ अनन्ताः पुत्रिणां लोका व १.१७.२ अनर्थशीलां सततं नारद १३.९५ अनन्तारमपस्तस्य ब्र.या, २.१७३ अनर्पितं भगवते स्वाराध्यायं शाण्डि ४.७६ अनन्ता रश्मयस्तस्य या ३.१६६ अनलादर्शनं यावत् व्या ३७० Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अनवेक्षितमर्यादं नास्तिक अनंशौ क्लीवपतितौ अनसूयां द्रौपदीञ्च अनस्तमित उपक्रम्य अनस्थानां शकटं हत्वा अनास्थिमतां तु सत्त्वानां अनास्थिसंचिते रुदे अनस्थीन ब्राह्मणो हत्वा अनाकालभृतो दास्यान् अनाक्ता अपि भोज्याः अनाख्याय ददद्दोषं अनागतानि कार्याणि अनागतां तु ये पूर्वी अनागतांतु ये पूर्वा अनागतां तु ये पूर्वी अनाचम्यैव यो मोहाद् अनाचान्तः पिवेद्यस्तु अनाचारस्य विप्रस्य अनाज्ञातमिति द्वाभ्यां अनातिथ्यं च दुखित्वं अनातुरः स्वानि खानि अनात्रेयो राजन्य अनाथप्रेतसंस्कारादश्व अनाथ ब्राह्मणं प्रेत ये अनाथ ब्राह्मणं प्रेतं ये अनाथं ब्राह्मणं प्रेतं अनादिरात्मा कथितः अनादिरात्मा सम्भूति अनादिरादिमांश्चैव अनादिश्चाप्यनन्तश्च अनादिष्टेषु पापेषु दिष्टेषु पापेषु अनादिष्टेषु सर्वेषु अनादृतसुतं गेही पुरुष अनादेयं नाददीत २१३ मनु ८.३०९ अनादियतृणान्यत्त्वा वृ परा ५.९ मनु ९.२०१ अनादेयस्य चादनादादेयस्य मनु ८.१७१ वृ हा ७.२१३ अना (मिका) मंग्गुलीनांत्तु भार ६.७० बौधा २.४.१६ अनामिकांगुण्ठाधो ब्र.या. ८.२०६ शंख १७.१२ अनापदि चरेद्यस्तु अत्रि स १६२ व १.२१.२८ अनाभाव जीर्णो गौः । भार १८.९१ औ ६.४६ अनाम्रातेषु धर्मेषु कथं मनु १२.१०८ संवर्त १४८ अनायासेन लभ्यं स्यात् शाण्डि ३.४८ नारद ६.२९ अनायुधासो असुरा वृ हा २.३४ वृ परा ६.३१८ अनारभ्योक्तकाले च आश्व १२.४ या १.६६ अनारोग्यमनायष्यम मनु २.५७ वृ.गौ. ११.३४ अनारोग्यं अनायुष्यं औ १.६१ बौधा २.४.१९ अनार्तश्चोत्सृजेद्यस्तु बृ.या. ६.८ भार ६.१७९ अनार्थितैरनाहूतैर आंउ ७.५ बाधू ११२ अनार्यता निष्ठुरता मनु १०.५८ कण्व १४० अनार्यमार्यकर्माणमार्य मनु १०.७३ संवर्त १४ अनार्यायां समुत्पन्नो मनु १०.६६ ___ बाधू २२१ अनावृष्ट्यग्नि दुर्मिक्षभयं वृ हा ६.३ आश्व २.६४ अनाशकमृतानां च वृ परा ७.१५२ वृ परा ५.१८७ अनाशकान्नितन्ते अत्रि स २१३ मनु ४.१४४ अनाशाकान्निवृत्ता ये वृ परा ८.९० व १.२०.४४ अनाश्रमी तु यः स्तेयो व्या २०५ आंपू १४१ अनाश्रमी न तिष्ठेत्तु दक्ष १.१० पराशर ३.४५ अनासनस्थितेनापि व्यास ३.२३ बृ.गौ. १४.२३ अनाहिताग्निर्गह्मण औ ७.७ वृ परा ८.२६ अनाहिताग्निता स्तेय मनु ११.६६ या ३.११७ अनाहिताग्न्यो येऽन्ये पराशर ८.१९ या ३.१२५ अनाहिता वसथ्याग्नि व्यास ३.२८ या ३.१८३ अनाहूतेषु यद्दत्त व्यास ४.२६ नारद १८.१३ अनिकेतो निमिग्रीवो आंपू ५१९ अत्रि स १३२ अनिग्रतच्चोन्द्रियाणां व हा ६.१५४ __या ३.३२६ अनिच्छन्त्यो वा प्रव्रजेरन् व १.१९.२२ व १.२३.४३ अनित्यो विजयो यस्माद् मनु ७.१९९ शाण्डि ४.८४ अनिधाय च तद् द्रव्यं औ २.३१ मनु ८.१७० अनिन्दितैः स्त्रीविवाहैरं मनु ३.४२ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ स्मृति सन्दर्भ अनिन्द्येषु च विप्रेषु व २.३.७१ अनुक्तवृत्तिस्त्वाज्ञातः वृ परा ७.९ अनियतकेशवेशाः व १.२.२६ अनुगच्छेद्यथा प्रेत अत्रि ५.३७ अनियता वृत्रि व १.२.२५ अनुगम्येच्छया प्रेतं पराशर ३.४८ अनियुक्तः सुतो यस्तु औ ५.९१ अनुगम्येच्छया प्रेतं मनु ५.१०३ अनियुक्ता तु या नारी नारद १३.८४ अनुगृह्नामि अहं तस्य वृगौ १.४९ अनियुक्तासुतश्चैव मनु ९.१४३ अनुग्रहाय सौलभ्यकारणाय कपिल ९९४ अनियुक्तो भ्रातृजायां __या ३.२८७ अनुग्रहार्थं विप्राणां व १.२३.३८ अनिरुद्धञ्च मां प्राहु वृ गौ. ८.८९ अनुच्छिष्टमसंदुष्टं व्यास ३.५२ अनिरुद्धो वामनश्च वृ हा ५.११९ अनुच्छिष्टेन शूदेण पराशर ७.२२ अनिर्दशाया गौः क्षीर मनु ५.८ अनुच्छिष्टेन संसाष्टे यम ४२ अनिर्दर्शाहगोक्षीर वृ हा ४.११६ अनुच्छिष्टेन संस्पृष्टे लघु यम १५ अनिर्दशाहसंधीनीक्षीरं बौधा ५.१५६ अनुच्छिष्टेन संस्पृष्टौ आंगिरस ११ अनिर्दशाहगोक्षीर व २.६.१८१ अनुच्छिष्टोऽपि यत् वृ परा ८.२५९ अनिर्दशाहगोः क्षीर षष्ठयां वृ हा ८.१२६ अनुज्ञातश्च गुरुणा शंख ३.३ अनिर्दशाहां गां सूता मनु ८.२ ४२ अनुज्ञारहितायाश्च शाण्डि ३.१२३ अनिर्दशाहे पक्वान्नं व १.४.२६ अनुडुत्सहितां गांच अत्रि स २२४ अनिर्दिष्टस्य पापस्य वृ परा ८.११५ अनुतापाद्य दा पुंसां बृ.य. ४.२८ अनिर्देशञ्च प्रेतान्न वृ गौ. ११.१८ अनुतीर्थमप उत्सिञ्चति बौधा २.५.२०९ अनिर्देश्यपरामाणम विष्णु १.४० अनुतीर्थमपि अत्सिंचति बौधा २.३.३ अनिलं रेचयेद्योगी वृ परा १२.२१८ अनुत्पन्नप्रजायास्तु नारद १३.८० अनिवानि घोराणि कपिल ९६५ अनुद्धतजनैर्युक्तो योग शाण्डि ५.४४ अनिवेदिते तदधं वृ परा ५.१६४ अनुद्धृत्य तु यः स्नायात् बृ.या. ७.११० अनिवेद्य तु यो राज्ञः नारद १.४० अनुपघ्नन्पितृदव्यं मनु ९.२०८ अनिवेद्य उपे शुद्ध्यै या ३.२५७ अनुपासित सिद्धस्तु औ ९.६५ अनिष्ट ध्वपिनी माया वृ हा ७.१९७ अनुपृष्ठमसीत्यादि व २.४.४२ अनिष्टा प्रतिकूला वा वाधू १४८ अनुपोष्य च रात्रिश्च वृगौ. ७.१३० अनिष्टा तु पितृश्राद्धे कात्या १.१७ अनुपोष्य च रात्रिञ्च वृ गौ ७.१३२ अनिष्टाव नवयज्ञेन कात्या १८.२० अनुबन्धं परिज्ञाय मनु ८.१२६ अनिनष्ट्रा नवयज्ञेन कात्या २५.१८ अनुब्राह्मणमेवं च सप्ता कण्व ५२९ अनीतवान् विधिरिमान् वृ पर ७.१८२ अनुभावी तु यः कश्चित् मनु ८.६९ अनुकूलफलत्रीयस्तस्य दक्ष ४.५ अनुभूय च दुःखास्ताश्चिरं नारद २.१९७ अनुकूला नवाग्दुष्टा दक्ष ४.१२ अनुमन्ता विशसिता मनु ५.५१ अनुक्तनिष्कृतीनां तु मनु ११.२१० अनुमासिकभोक्तारं आंपू ७६० अनुक्तमन्त्रैः काश्चितु आपू ८०३ अनुयाजप्रयाजांच वृ.गौ. १५.६५ अनुक्तविधिनामन्त्र प्राणायाम विश्व ३.५७ अनुरक्तः शचिर्दभः मन ७.६४ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अनुरूपामवाग्दुष्टां अनुलिप्ते महीपृष्ठे अनुलिप्ते महीपृष्ठे अनुलिप्ते सुलिप्ते च अनुलिप्य घृतं सर्व अनुलोमविलोमाभ्या अनुलोमविलोमाभ्यां अनुलोमविलोमाभ्यां अनुवद्धस्य तैः पाशन् अनुवंशन्तु मुंजीत अनुवाकः श्रुतिसूक्तं अनुवाकस्यतस्यैवा अनुवीतप्रदत्त तत्पल्या अनुशिष्यश्च गुरुणा अनुष्टुप्च तृतीयश्च अनुष्टुप्छामहावंती अनुष्टुभं भवेच्छन्द अनुष्टुभस्य सूक्तस्य अनुष्ट्रा पशूनाम अनुष्ठानाय शौर्येण अनुष्ठेया ब्राह्मणेन अनुष्णाभिरफेनाभिरभि अनुस्वारो मकारस्तु अनूचानकृतं कुर्यु अनूदकेष्वरप्येषु अनूढा न पृथक्कन्या अनुढानां तु कन्यायां अनूढां तु पिता रक्षेद् अनूढैव नु सा कन्या अनूदकं तु तत्सर्वं अनूदकी तु या संध्या अनूनं नातिरिक्तं अनृतोऽपि निराचाराः अनुचो माणवो ज्ञेय अन्टणो गन्तुमिच्छामि नारद १३.९७ अनृतं च समुत्कर्षे वृ परा १०.५२ अनृतं तु वन्ददण्डयः वृ परा १०.१२७ अनृतं न वदेदृष्टवा वृ परा ११.१ ४२ अनृतं मद्यगन्धं च वृ हा ६.११५ अनृतं मद्यगन्धं । विश्वा १.११ अनृतं मद्यमांसञ्च विश्वा १.१२ अनृतवचनदोषं दुष्ट विश्वा ३.४.६ अनृतात्स्वसमुत्कर्षों वृ.गौ. ५.५ अनृतानि च वाक्यानि अत्रि ५.२५ अनृतावृतुकाले च पु २६ अनृतावृतुकाले वा दिवा भार ६.११३ अनृताहानधीयाना कपिल ७८४ अनृते च पृथग्दण्ड्या नारद ६.१२ अनेकानि सहस्राणि भार १७.१८ अनेकान्तं बहुद्वार ... भार १७.२८ अनेके यस्य ये पुत्रा बृ.या. ७.१८० अनेन कर्मणा चेति वृ हा ५.१९५ अनेन क्रमयोगेन व १.१ ४.३१ अनेन क्रमयोगेन मार १८.५१ अनेन जपसंख्यास्या कण्व ४९५ अनेन तु विधानेन मनु २.६१ अनेनपितृयज्ञेन बृ.या. २.८१ अनेन नारीवृत्तेन वृ परा ६.२९६ अनेन विधिना कार्यों आप ९.३४ अनेन विधिनाकुर्याद् लघुयम ८४ अनेन विधिना गौघ्नो शंख १५.६ अनेन विधिनाचम्य व २.५.१४ अनेन विधिना चैव कात्या ६.१४ अनेन विधिना देहं । आं उ ८.११ अनेन विधिना नित्यं बृ.या, ६.२२ अनेन विधिना यस्तु बृ.या. २.१५४ अनेन विधिना यस्तु वृ परा ६.२३५ अनेन विधिना राजा कात्या २७.११ अनेन विधिना राजा विष्णुम ७५ अनेनविधिना विप्रा २१५ मनु ११.५६ मनु ८.३६ वृ.गौ. ११.३० वाधू २२३ वृ परा ६.१४६ वृ हा ६.२७० विश्वा ३.७४ वाधू १७४ लोहित २३३ मनु ५.१५३ बृ.गौ. १४.६ पराशर १.५७ __ या २.१५६ मनु ५.१५९ वृ.गौ. १२.१ बृ.य. ५.१४ कण्व ४११ मनु २.१६४ मनु ६.८५ मार ७.१०२ मनु ९.१२८ आश्व २३.११० मनु ५.१६६ नारद १९.१९ वृ हा ६.४० आंउ ११.९ ल हा ४.३८ आश्व २३.११३ या १.५० मनु ५.१६९ आश्व १.१८६ मनु ११.११६ मनु ८.१७८ मनु ८.३४३ भार ७.१०९ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ •मृति सन्दर्भ अनेन विधिनाश्रांध मनु ३.२८१ अन्तर्जलं च कतमै बृ.या.१.१५ अनेन विधिना श्राद्धं व्या १८९ अन्तर्जला खेयतोया आंपू ९३३ अनेन विधिना सर्वाः मनु ६.८१ अन्तर्जलात् त्रिरावृता ल व्यास २.२३ अनेन विधिना स्नात्वा शंख ९.१४ अन्तर्जले जपेन्मग्नस्त्रि ब.या. ७.२७ अनेन विधिनोत्पन्नो आश्व १५.४९ या १.१८ अनेन विप्रो वृत्तेन मनु ४.२६० अन्तर्जानुः शुचौ देश वाधू २१ अनेन भवति स्तेनः नारद १८.१०५ अन्तर्जानुः शुचौ देशे शंख १०.५ अनेनैव गृहोद्यान नारद १२.१२ अन्तर्दशाहे भुक्त्वान्नं आंउ ९.१ अनेनैव विधानेन ब्र.या. ४.४१ अन्तर्दशाहे चेत्स्यातां मनु ५.७९ अनेनोक्तप्रकारेण धारये भार १६.९ अन्तर्दशाहे स्याचे ब्र.या. १३.१३ अनोकानामन्येषां सम भार १८.२१ अन्तर्दानं स्मृति या ३.२०२ अनेनियुद्धिरित्य वृ परा ११.३ ४१ अन्तर्धाय कुशांस्तेषु आश्व २३.४२ अनौरसेषु पुत्रेषु __ या ३.२५ अन्तर्धाय महीं काष्ठ औ २.३४ अनौरसेषु पुत्रेषु शंख १५.१३ अन्तर्बहिश्च संशुद्धि शाण्डि ३.१३८ अनौषधमभैषज्यं वृहस्पति ४६ अंतर्भावद्विजेष्वेव प्राप्नोति कपिल ३२९ अन्तः पूर्णमधः पूर्णमूर्ध्वं लोहि ५९१ अन्तीरून बहि शूरान् वृ परा १२.३६ अन्तप्रज्ञ बहिप्रज्ञ वृ परा ३.१४ अन्तर्वक्रो वहि सर्पन व परा १२.२६५ अन्तः प्रज्ञो बहि प्रज्ञो बृ.या. २.२३ अन्तर्वनी स्त्रियों गाश्च वृ हा ६.१७२ अन्तः प्रविष्टेषु तदा वृ हा ६.३९४ अन्तर्वल्य तथाऽऽत्रेय्यां वृ हा ६.२३९ अन्ताभिगमने त्वंक्य या २.२९७ अन्तर्वास उत्तरीयम् बौधा १.३.२ अन्तरं कुशविन्यस्य तूष्णीं ब्र.या. ८.२६० अन्तवदन्तसलिल औ २.२७ अन्तरं शुद्ध्यते यस्मात् वृ परा १२.२४२ अन्तः शरीरप्रभवमुदान बृ.या. २.४८ अन्तराच्छाद्य कौपीनं वाधू ९९ अन्तश्चरति भूतेषु शंख १०.१७ अन्तराच्छाद्य कौपीनं वाससी शाण्डि२.३९ अन्तश्चरसीतितिर ब्र.या. २.७३ अन्तरा जन्ममरणे या ३.२० अन्तस्तेजो बहिश्चक्षुरथः विश्वा ३.३१ अन्तरा तु दशाहस्य पराशर ३.३५ अन्तिमं मुधिं विन्यस्य आ ब.या. ५.११ अन्तरिक्षकरं विद्धि वृगौ १.५३ अन्ते चावभृथोष्टिञ्च वृ हा ७.६६ अन्तरिक्षमथो स्वाहा विश्वा ५.३७ अन्ते चावभृथेष्टिं च वृ हा ७.२६६ अन्तरिक्षमधश्वचैव बृह ९.१६० अन्ते वै दिवसेत ब्र.या. १३.१४ अंतरिक्ष नंखस्पृष्टं मार ४.२४ अन्ते स्वर्गसुखं भुक्त्वा नारा ५.२१ अन्तरिक्षे मृताये दा १५१ अन्त्यजातिमविज्ञातो आप ३.१ अन्तरेण चात्वालोकारो बौधा १.७.१४ अन्त्यजातिश्वपाकेन आप ७.५ अन्तरेऽस्मिन्निमे लोक बृह ९.१९ अंत्यजातु प्रतिगृह्मा अ २३ अन्तर्गत जलेमग्नो ल व्यास २.२१ अन्त्यजानां गृहेतोयं अंगिरस ४ अन्तर्गतशवे ग्रामे मनु ४.१०८ अन्त्यजाभाजने भुक्त्वा संवर्त १९४ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अन्त्यजैः खातिताः कूपः अन्त्यजै गर्द्ध मैस्तुष्टे अन्त्यजैः स्वीकृते अन्त्यजैः स्वीकृते अन्त्यानाभुक्तशेषन्तु अन्त्यानुयायिनश्चादया अन्त्यपक्षिस्थावरतां अन्त्यस्यात्यायिनो अन्त्यतस्ताच्छवे क्षिप्तं अन्त्यानामपि सिद्धान्नं अन्त्यानां संगते ग्रामे अन्त्यावत्यधमौ चोक्ता अन्त्योंकार समायुक्तां अन्यद्रव्यव्यवहित अन्धकारं परतरम् अन्धजडक्लीब अंघ पंगुजदद्भ्राप्ताः अंधस्य मंत्रसामर्थ्य अंधादयोविशेषेण भर्त्त अन्धो जड़: पीठसप अन्धो मत्स्यानिवाश्नाति अन्धो मत्स्यानिवाश्वानाति अन्नकामः ससर्जेद अन्नकामेन संसृष्टं अन्नकुण्डं शरीरं स्वं अन्नञ्चनो बहुभवेद अन्नञ्चैव यथाकामं अन्न तोयप्रशंसा च अन्नत्यागं च तत्कृत्वा अन्नत्यागं प्रकुर्वीत अन्नदत्वं ब्रह्मवित्वं अन्नदः सर्वभूतानां अन्नदस्तु सुखमाप्नोति अन्नदानफलं श्रुत्वा अन्नदानं तु ये लोके बाधू ६६ ब्र. या. १०.४ दा १५५ संवर्त १८३ आप ५.९ वृ परा १.३६ या ३.१३१ औ ९.४१ अत्रिस २६५ आंगिरस २ औ ३.६५ वृ परा ६.१५ वृ परा ४.४४ नारद ३.२ वृ गौ ५.२४ बौधा २.२.४४ कपिल २९७ कपिल ३.४५ कपिल ३०१ मनु ८.३९४ नारद १.७६ मनु ८.९५ वृ परा १०.१६ बृह ९.१४६ वृ.गौ. ११.१२ या १.२४६ औ ५.५३ वृ परा १.५१ लोहि ३७५ आंपू ९७१ होहि ५७३ बृ० ९.७७ ब्र. या. ११.४० बृ.गौ. १३.१ बृ.गौ. १२.४६ अन्नदानात् परं दानं अन्नदाने विशेषः स्यात् अन्नदानैकपात्राणि चण्डाल अन्नदाः सुखिनो नित्यं अन्नदोषार्थ प्रायश्चित्तम् अन्नद्रव्यादि शुद्धि वर्णनम् अन्नपानमहादानै अन्नपूर्णस्य पात्रस्य अन्नप्रकरक्तस्य अन्नप्रणाशे सीदन्ति अन्नप्रदाता सुचक्षुः अन्नप्राशन चूडा च अन्नप्राशनं (तु) विज्ञेयं अन्नप्राशनं विज्ञेयं ततो अन्नभुकंच भुक्तं अन्नमम्बूनिवस्त्राणि अन्नमादाय तृप्ता अन्नमादाय पक्वात्तु अन्नमामं च वै भिक्षां अन्नमिष्टं हविष्यञ्च अन्नमेषां पराधीनं देयं अन्नमेव प्रशांसन्ति अन्नं क्षीरं घृतं क्षौद अन्नं गावस्तिलान् भूमि अन्नं च गोशतं हेम अन्नं चो नो बहुभवेद् अन्नं च पायसं भक्ष्यं अन्नं च पीडयित्वा अन्नं च ये प्रयच्छन्ति अन्नं तद्यशसं विद्या अन्नं पर्युषितं भावदुष्टं अन्नं पर्युषितं भुक्त्वा अन्नं पर्युषितं भोज्यं अन्नं पर्युषितं भोज्यं अन्नं पाणिहुतं यच्च २१७ संवर्त ८३ आश्व २४.१३ कपिल ९६३ बृहस्पति १३ विष्णु ४८ विष्णु २३ नारद १८.६२ वृ परा ७.२१८ बृ.या. ७.४६ वृ.गौ. १२.३९ व १.२९.९ ब्र.या. ८.३६० ब्र. या ८.३३७ ब्र. या. ८.३४४ वृगौ ६.१७ शाण्डि ४.५९ या १.२४० आंपू ८०९ आश्व १.१४९ या १.२३९ मनु १०.५४ वृगौ. ११.११ वृ परा ७.२९६ बृ.गौ. १९.९ वृ परा ११.२५९ आव २३.९८ आश्व २३.५४ वृ.गौ. १२.३० वृ. गौ. ५.६५ बृ.गौ. १३.१८ व १.१४.२४ संवर्व १९३ आश्व १.१७० या १.१६९ आश्य २३.५१ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ स्मृति सदर्भ अन्नं पितृमनुषयेभ्यो या १.१०४ अन्यत्र वा शुभे वृ परा ५.७८ अन्नं पूर्व नमस्कुर्यात् बृ.गौ. १३.६ अन्यं हौताशनं मंत्र वृ परा ४,१८८ अन्नं प्राणो जलं प्राणः वृ परा १०.२४४ अन्यकार्याय न भवे कण्व ७६९ अन्नं प्राणो बलं चान्नं वृ परा ५.१११ अन्यगेहे तथा चान्तः व २.६.४६३ अन्नं रसमयं कृत्स्नं बृह ९.१३६ अन्यगोत्रप्रदत्तश्चेत् आपू ९९९ अन्नं विभज्यभूतेभ्य शंखलि ४ अन्यगोत्रप्रदत्तो यः कण्व ७०७ अन्नं विष्णू रसो ब्रह्मा ब्र.या. २.१६३ अन्यगोत्रप्रविष्टस्य सुतो कपिल ३५८ अन्नं शूदस्य भोज्यं यम २१ अन्यगोत्रप्रविष्टस्य सूनुश्चेर कपिल १०२ अन्नं सुसंस्कृतं वाणि वृ परा ५.१६६ अन्यजातिविवाहे च औ ९.५१ अन्नं सुसंस्कृतं हृद्यं शाण्डि ४.५२ अन्यतीर्थेन गृहणीया वाधू ५७ अन्नलामे तु होतव्यं वृहा ५.२५६ अन्यत्कुर्यान् मनस्वान् वृ परा १२.३५० अन्नशुयैव सत्कर्म शाण्डि ४.१३६ ।। अन्यत्तु ब्राह्मणात् नारद १४.४९ अन्नहर्तामयावित्वं मौक्यं मनु ११.५१ अन्यत् प्राणि वधस्थाय वृ परा ८.१६० अन्नहीनं क्रियाहीनं औ ३.१२८ अन्यत्र कारादुचिताद् नारद १८.४५ अन्नाक्तभाजन स्थानि आश्व १.१७२ अन्यत्र तु जपं कुर्वन् पुनः वाधू १२७ अन्नात् तस्मात् प्रवर्तन्ते वृ.गौ. ६.२५ अन्यत्र देवायतना व २.६.२३१ अन्नत्तेजो मनः प्राण शंखलि १६ अन्यत्र पुष्पमूलेभ्य शंख १४.१३ अन्नात्प्राणाः ब्र.या. ११.३९ अन्यत्र फलमूलेभ्यः औ ५.५५ अन्नात् भवन्ति राजेन्द्र वृ.गौ. ६.२४ अन्यत्र ब्राह्मणात् व १.१.४४ अन्नदेरपि भक्ष्यस्य वृ परा ६.३३० अन्यत्र रजकव्याध नारद २.१६ अन्नादेर्भणहा माटें मनु ८.३१७ अन्यत्र मृणुयाज्ञेयमनु शाण्डि १.१०८ अन्नादेप्रूणहामाष्टि व १.१९.२९ अन्यत्र संप्रहास्य व १.१७.५३ अन्नाद्यजानां सत्तवानां मनु ११.१४४ अन्यत्राट्कनलक्ष्मभ्यां आउ १०.१२ अन्नाद्ये कीटसंयुक्ते पराशर ६.६२ अन्यत्रांकनलक्ष्मभ्यां पराशर ९.२७ अन्नाभावे तु कर्तव्य ब्र.या. ४.५४ अन्यत्राजाविभ्यः बौधा ५.१५१ अन्नाभिमर्शने प्रोक्तं आंपू ८२९ अन्यत्राऽऽततायिनः बौधा १.१०.१२ अन्नार्थ मातरिश्वायं व परा १०.१५ अन्यत्रोदकवर्मस्वधा व १.२.१३ अन्नार्थमेतानुक्षाणाः वृ परा ५.१०९ अन्यत्समाचरत्सर्व शाण्डि ४.२२९ अन्नार्थी पवते वायु बृह ९.१४७ अन्यत्सर्वं यथापूर्व भार ६.१३५ अन्नार्थी वाप्यमं ब्र.या. २.१८० अन्यथा चैव स ज्योति औ ६.४७ अन्नेन एव हि जीवन्ति वृ गौ ६.१८ अन्यथा तस्य गोत्रस्य कण्व ७१२ अन्नेन धार्यते सर्व वृ गौ. १२.२९ अन्यथा दापयेधस्तु देवला ६७ अन्नेन पूजनीयः स वृगौ. १२.३४ अन्यथा दोषमाप्नोति लोहि ३९ अन्ने भोजनसम्पन्ने आप ९.१४ अन्यथा नरकं याति वहा ७.२४ अन्ने श्रिताति भूतानि बौधा २.३.६८ अन्यथा मन्दबुद्धीनां विष्णुम १०२ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अन्यथा यस्तु कुस्ते अन्यथा वाहनादेव अन्यथा शूद्रधर्मा अन्यथा हि कृतं यत्तु अन्यथैवं कृतं स्यादि अन्यदत्ता तु या कन्या अन्यदुप्तं जातमन्य अन्यदेव दिवशौचं अन्यदत्ता तु या कन्या अन्यप्रतिग्रहो विद्वन् अन्यप्रीतौ न चान्यस्य अन्यं देवं नमस्कृत्वा अन्यवत्किमिदं राजान्मां अन्यस्मै विधिवद्देया अन्यस्य चेद्रसं त्यक्त्वा अन्यस्यां यो मनुष्य अन्यस्योद्धृत्य तन्मात्र अन्यहस्ते च विक्रीतं अन्यानपि निषिद्धांच अन्यानपि प्रकुर्वीतं अन्यानप्सु हुताशे वा अन्यानभ्यागतान् विप्राः अन्यानभ्यागतांश्चैव अन्यानां पाकशेषाणि अन्यानि व निषिद्धानि अन्यानि चैव नामनि अन्यासि फलमूलानि अन्यानि यानि देयानि अन्यानि यानि पुण्यानि अन्यानिषिद्धत्वग्जातो अन्यानि सर्वशास्त्राणि अन्यान्यत्र वदन्त्येके अन्यान्युच्चावचानीह अन्यान् सलक्षणकुशान् अन्यां चेद्दर्शयित्वा या विश्वा ८.४२ वृ.गौ. ९.५५ बृ.या. ४.४२ विश्वा २.२९ कण्व ३७ आंगिरस ६६ मनु ९.४० दक्ष ५.११ वृ परा ७.३६२ वृ परा १०.२८३ वृ परा ७.३८५ वृ हा ३.२७२ बृ.गौ. १८.४४ ब्र. या. ८.१६७ विश्वा ८.७८ नारद १३.९८ पराशर ६.७० या २.२६० वृ परा १२.५० मनु ७.६० वृ परा ७.२८४ लहा १.२७ वृ परा ६.८० वृहा ८.११८ व२.६.२४ व२. २.२८ जनं अन्यायतो ये तु अन्याया विधवाया वै अन्यायेन नृपो राष्ट्रात् अन्यायेन हता अन्यायेनार्जितंद्रव्यं चौर्य अन्यायोपात्तवित्तस्य अन्याः सदोषायास्ताभि अन्यासु पितृगोत्रासु मातृ अन्यासे सैकते सम्ये अन्यास्वपि च नारीषु अन्यूनमतिरिक्तं वा अन्ये कलियुगे नृणां अन्ये कृतयुगे धर्मा अन्ये कृतयुगे धर्म्मा अन्ये च बहवोधर्मा अन्येत्ववैष्णवा व २.३.१७८ भार ११.११० भार १३.४२ भार १५.१४७ शाण्डि ४.१७९ आश्व १८.४ वृ परा २.२८ भार १८.३० अन्येषां चैव गोत्राणां अन्येषां चैवमादीनां अन्येषां नखकर्णानां मनु ८. २०४ अन्येषु च विवादेषु २१९ वृ परा १२.८१ लोहि ५६८ या १.३४० बृहस्पति ३६ कपिल ४४८ वाधू ६५ भार १८.३९ लघुयम ३७ व २.७.३६ वृहा ६.२९९ भार ११.११२ वृ परा १.२२ मनु १.८५ पराशर १.२२ व्या ३३ अन्येन कारयेद्धोमं अन्ये पि वानुगन्तारः अन्ये पि शंकया ग्रात्या अन्येऽपि श्रोत्रिया वृद्धा अनेयऽप्यधनयुक्ताश्च अन्येऽप्यपहतासुरा अन्ये येनाsत्र कथिताः अन्ये ये मण्डले देवाः अन्येषाञ्च अन्येषामाग्निहीनानां अन्येषामपि सर्वेषां अन्येषामपि सारानुरूप्येण बौधा १.१०.१६ अन्येषामर्थिनां पश्चात् वृ परा ५.१७९ अन्येषाम् अपि विप्राणाम् अन्येषां करणंन्यायं न ब्र. या. १०.८३ नरेन्द्राणां २६ व्र. या. ९.४३ भार १३.३ वृगौ ३.५८ कपिल २९२ ब्र.या. ७.५८ व २.७.२० व २.६.४६७ पराशर ४.५ या २.२७० आश्व १०.४२ दक्ष २.३० वृ परा ७.१९५ भार १४.२४ मनु ८.३२९ लघुशंख ५९ ब्र. या. १२.७ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० स्मृति सदर्भ अन्येषु चाद्भुतोत्पातेष्व बौधा १.११.४० अन्हो अर्नेर्दिनात्तद्त्वीया कपिल ८०४ अन्येषु ये तु मध्यंति कात्या ७.१२ अप एव समाश्रित्य आंपू ११११ अन्येषु शिल्पशास्त्रेषु भार २.७० अपः करनखस्पृष्टाः यम ६५ अन्येष्वापि तु कालेषु __ मनु ७.१८३ अपक्त्यदाने यो दातु मनु ३.१६९ अन्यैरपहतां दृष्ट्वा अ ९७ अपक्वचूर्णलवणभाजना । कपिल २०४ अन्यैर्वा यज्ञियैः काष्ठः वृ हा ८.११४ अपक्वं वाऽपि पक्वं शाण्डि ३.४३ अन्यैः वापिशुभै र्दव्य व २.४.६१ अपक्वाशनिना स्थेय वृ परा १०.९८ अन्यैश्चापावभानाद्यैः व २.६.१३८ अपचस्य च यद्दाने । पराशर ११.४४ अन्यैस्तु खनिताः कूपा आप २.५ प्रपचों ब्रह्मणश्चोक्तः बृ.या. २.२१ अन्योदर्यस्तु संस्टष्टी या २.१ ४२ अपत्नीकः कथमयं कण्व ३९३ अन्योद्वाहेन केनापि वृ परा १०.१७१ अपत्नीकः प्रवासी च दा ८१ अन्योन्यमनसा __ औ ५.४ अपरत्नीके प्रवासे च व्या १९२ अन्योन्यं त्यजतो गः नारद १३.९२ अपत्यमुत्पादयितु नारद १३.५४ अन्योनस्यशतेरिष्टं व २.४.१०१ अपत्यं धर्मकार्याणि मनु ९.२८ अन्योन्यस्याव्य भीचारी मनु ९.१०१ अपत्यलोभाद्या तु स्त्री मनु ५.१६१ अन्योन्यान्नप्रदा विप्रा संवर्त ९० अपत्यानि विनश्यन्ति जपं ब्र.या. ९.२६ अन्योन्यापहृतं द्रव्यं या २.१२९ अपत्यार्थ स्त्रियं सृष्टाः नारद १३.१९ अन्योपयुक्तशेषं च वयं शाण्डि ५.१२ अपदिश्यापदेशं चार्थ मनु ८.५४ अन्वये लिंगतोऽर्था आपू ८ अपनीतेव्रर्तस्यापि पुनः कण्व ५१० अन्वये सति भूदानं सहसा कपिल ४८३ अपः पयोघृतं पराक बौधा २.१.९० अन्वष्टक्यं च पूर्वे दा ६९ अपः प्राश्य ततः पश्चात व्यास ३.६४ अन्वष्टक्ये पितृभ्यश्च प्रजा १९२ अपमानात्तपोवृद्धि आप १०.९ अन्वहं कृच्छ्रफलदं लोहि ४७० अपेयपयः पाने कृच्छो बौधा १.५.१५९ अन्वाधेयं च यदत्त मनु ९.१९५ अपरक्ष ऊवं चतुर्थी व १.११.१४ अन्वारब्धापसव्येन वृ परा २.१७७ अपराजितां वाऽऽस्थाय मनु ६.३१. अन्वारब्धे नमत्येन ब्र.या. २.९१ अप्रराणि सर्वकर्माणि व २.३.८९ अन्वारब्धेन सव्येन बृ.या. ७.६८ अपराधं परिज्ञाय नारद १८.९६ अन्वारब्धौ तथा घारौ ब्र. या. ८.२८८ अपराधशतै र्जुष्टं वृ हा २.११९ अन्वारभ्य तु सव्येन वृ.गौ. ८.५७ अपराधसहस्राणि कृतानि कपिल ५५५ अन्वाष्टक्यंमध्य कात्या १७.२४ अपराधानुगुण्येन द्वादशा लोहि ५४३ अन्वाहितं याचितकमाधि नारद ५.४ अपराधो यदि भवेत् शाण्डि ३.१५४ अन्वाहितं याचितकमाधि ब्र.या. १२.४ अपरान्तकमुल्लोप्यं या ३.११३ अन्वितान् ब्राह्मणानेव वृ हा ८.३२९ अपरासु तथानुष्टुप् वृ परा ११.१८८ अन्वेषणमंग्गुल्या मुख भार ८.६ अपराहणस्तथा दर्मा मनु ३.२५५ अन्वेष्याऽन्वेष्य तत __ अ८ अपराहेसमभ्यर्च्य ब्र.या. ४.५८ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी या १.२२६ अपरावे समभ्यर्च्य अपराहवे विशुद्धि स्यात् ब्र.या. २.१९३ बृ.गौ. १०.७७ वृ.गौ. ८.१५ बृ.गौ. १५.२२ कात्या २३.९ अपरिज्ञातपूर्वश्च अपरे ऋषय... दि अपरे चावशंसन्ते अपरेद्युस्तृतीये वा अपर्तावाकलिकमाचर्ये अपर्युतप्तेषु तापिते अपवर्गाय द्वेचापि अपवादेन संयुक्तो अपवित्रकरोनग्नः भुक्त अपवित्रसहस्रेभ्यो मुक्तं अपविद्ध पंचमो यं अपविद्धस्ततोग्राह्यो यदि अपः शतेन पीत्वा तु अपश्यता कार्यवशाद् अपसव्यमग्नौ कृत्वा अपसंव्यं ततः कृत्वा अपसव्यं तथा शून्यं अपसव्यं स्वधाश्राद्ध अपसव्येत्यनुज्ञातः सव्ये अपव्येन कृत्वैतद् अपसव्येन वा कार्यो अपसव्येन सव्येन अपसव्येन होतव्य अपः सुराभाजनस्था अपसृत्य समादाय अपस्तत्रापसव्यन अपस्नानन्तु यो विप्रः अपहता इति तिलान् अपहृत्यं दिनं पापं अपहृत्य सुवर्णन्तु अपहृत्ये तु वर्णाना अपह्नवेऽधमर्णस्य अपाकुर्वन् शास्त्रमार्गात् व १.१३.११ शाण्डि ३.९८ वृ परा १२.३३९ बृ.या. ४.७२ भार ६.१०४ आंपू ९११ व १.१७.३४ कपिल ७९४ बृ. या. ४.५९ या २.३ मनु _३.२१४ औ ५.३७ आं ६६६ आश्व १५.७६ व्या १२० कात्या २१.१२ कात्या १७.१३ ल व्यास २.३७ व्या २८९ मनु ११. १४८ वृ परा १२.३९ आश्व २३.७४ बृ.गौ. १९.३४ व २.६.२९६ ल व्यास १.१९ पराशर १२.६९ शंख १७.१४ मनु ८.५२ कपिल ६५७ अपाकयोग्या अपिताः तब अपांक्त्योपहता पंक्ति अपांक्त्यो यावतः पांक्त्यान् अपात्रस्य हि यद्दत्त अपात्रीकरण तदवर्णनम् अपोत्रे पात्रमित्युक्ते अपात्रेषु च पत्रेषु अपात्रे हयपि यद्वत्त अपानाय ततोहुत्वां अपनायाहुति हुत्वा अपाप्युदाहरन्ति अपामग्नेश्च संयोगाद्धैमं अपामार्गैश्वर्यकामः अपामाग्रच विल्वञ्च अपां द्वादशगण्डूषै अपां यत्तेति सत्कायं अपां समीपे नियतो अपार्थितः प्रयतेन अपावृतास्यं हास्यं च अपावृत्ते तृतीये च अपि कर्ता कृतार्थः स्यात् अपि गोचर्ममात्रेण अपिच काठके विज्ञायते अपि च काठके विज्ञायते अपि च प्रपितामाह अपि चाण्डलश्वपच अपिचात्र प्रजापति अपि जीवपित्पता पिण्ड अपि ताभि कृतं पाकं अपि तैः च एवं गन्तव्या अपि दुष्कृतकर्मभ्य अपिनःश्वो विजनिष्यमाणाः अपि नः स कुले भूयाद्यो अपि न्यायगतं राजा अपि पत्नी तादृशस्य २२१ कपिल २०२ मनु ३.१८३ मनु ३.१७६ वृ परा ६.२४३ विष्णु ४० नारद ५.१० व्या ३४९ अत्रि स १५१ ल व्यास २.७२ औ ३.१०३ व १.२.४५ मनु ५.११३ भार १९.४७ ल व्यास १.१८ वृ हा ४.२६ व्यास ३.२६ मनु २.१०४ शंख ४.४ व २.५.१३ आंपू ८४ आंपू ४९२ वृ परा १०.१७६ व १.१२.२३ व १.३०.५ बौधा १.५.११३ औ ९.१०३ बौधा २.४.१८ आंपू १०४ कण्व ६०० वृ गौ ५.२७ वृ परा ६.२३९ व १.१२.२४ मनु ३.२७४ कपिल ८१२ लोहि ५५६ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ स्मृति सन्दर्भ अपि पापममाचारः स विष्णु म ८३ अपुत्रस्य पितृत्यस्य वृ परा ७.४५ अपि भक्तयात्मनाचार्य शाण्डि १.११५ अपुत्रस्यपितृव्यस्य व्या ११७ अपि भ्राता सुतोऽर्यो या १.३५८ अपुत्रांगुर्वनुज्ञातो या १.६८ अपि भ्रूणहनं मासात् वृ परा १२.२३७ अपुत्राणां पितृव्यानां आंपू ७२५ अपि भ्रूणहनं मासात् शंख १२.१९ अपुत्रा तु यदाभार्या व्या ३२४ अपिमूलफलैर्वापि औ ५.८६ अपुत्रा म्रियते भर्तुः व्या १११ अपि यत्नात् श्राद्धदिने कपिल ९५९ अपुत्राम्रियते भार्या भर्ता व्या ११४ अपि यत्सुकरं कर्म मनु ७.५५ अपुत्रायां मृतायां तु मनु ९.१३५ अपिख्यापितदोषाणां अत्रि १.४ अपुत्रा ये मृताः केचित् दा ६२ अपि वाज्ञातमित्येषा कात्या १८.११ अपुत्रा ये मृताः केचित् लघुशंख ३१ अपि वा प्रतिशौचमा । बौधा १.४.१७ अपुत्रा ये मृताः केचित् लिखित ३३ अपि वाप्सु निमज्जन्वा अत्रि २.८ अपुत्राः ये मृता केचित् वृ परा २.२१७ अपिवाऽप्सु निमज्जान व १.२६.९ अपुत्रा ये मृता केचित् वृ परा ७.३५० अपि वा भोजयेदेकं व १.११.२६ अपुत्रा योषित श्चैव वृ हा ४.२ ४९ अपि वा मार्गमालम्ब्य आंउ ५.१२ अपुत्रा योषितश्चैषा या २.१ ४५ अपि वाऽमावास्याय बौधा २.१.३९ अपुत्रा व सपुत्रा वा शाण्डि ३.१५९ अपि वैतेन कल्पेन व १.२३.१८ अपुत्राश्च मृता ये च वृ परा ७.३५१ अपि शास्त्रकृतं कर्म आंपू १४६ अपुत्रेणा परक्षेत्रे या २.१३० अपिसर्वान्मनूशस्त्रम कपिल ३१९ अपुत्रेणैव कर्तव्य अत्रिस ५२ अपि सूत्रकृतं तच्च भार १५.१११ अपुत्रोऽनेन विधिना मनु ९.१२७ अपि स्मार्तं यथा भूयतेन कपिल २७७ अपुत्रो बहुवृत्तिश्रीः विभक्तो कपिल ४९९ अपि स्वीकृत्य चण्डाला कण्व ४८४ अपुत्रोऽहं प्रदास्यामि तुभ्यं लोहि ३२९ अपि हात्र प्राजापत्या व १.१४.१२ अपुत्रोऽहं प्रदास्यामि लोहि ३२७ अपियत्र प्राजापत्या व १.१४.२० अपुनर्मरणायैव ब्रह्मणः बृ.या. ३.२८ अपिह्यत्र प्राजापत्या व १.१ ४.२५ अपुष्पाः फलवन्तो मनु १.४७ अपीडाजनकैरेव धर्मः कर्तुं कपिल ५४६ अपूपंच हिरण्यं च औ ३.१२१ अपुण्याहे तु मुंजीत अत्रि ५.४६ अपूपं च गुला (डा) नं शाण्डि ३.१२८ अपुत्रको पशुश्चैव व्या १६३ अपूपं लवणं मुद्र अत्रि ५.४४ अपुत्रदत्तवृत्या यः प्राण आंपू ३२९ अपूपवर्ज तच्चापि वर्त्यमेव शाण्डि ५.९ अपुत्रधना मात्र स्युतियो लोहि २३८ अपूपसक्तवो धानास्तक आश्व १.१७१ अपुत्रः प्रार्थनापूर्वं दत्तोऽयं कपिल ७०१ अपूपानि च वानि शाण्डि ५.११ अपुत्रप्रार्थनापूर्व दान लोहि ६४ अपूपान् पायसं शक्तून् वृ हा ७.३०९ अपुत्रस्य गति स्ति प्रजा १८८ अपूपान् शर्करोपेतान् व २.६.२५६ अपुत्रस्य च विज्ञेया बृ.या. ५.१९ अपूपैः मंठकादयैश्च व २.६.२ ४६ अपुत्रस्य धनं ज्ञातेर्विभक्त कपिल ४८९ अपूर्वः सुव्रती विप्रो पराशर १.४४ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अपृच्छद्गोत्रचरणेन अपेक्षितं न यो दद्यात् अपेक्षितं याचितव्यं अपेक्षितं यो न दद्यात् अपेक्ष्यं नास्ति किमपि अपेत्थं अंकमित्युक्त अपेय-तद्विजानीयात् अपेयं तद्भवेदापः पीत्वा अपेयं येन संपीतं अपोऽवगाहनं स्नानं अपोशनिक्षिपेत्पाणौ अप्टाभिर्वा द्विजैर्धीर अप्नंशास्वाश्रमान्तरगताः अप्यनेकाङ्गविकलं क्रियते अप्यागतं तेन अप्युद्धृत्य यथाशक्त्या अप्येकपादं पूर्व वा अप्येकमाशयेद् विप्रं अप्येनं कुपितं रोषात् अप्रकाशास्तु विज्ञेया अप्रजः स्त्रीधनं भर्तुः अप्रजां दशमे वर्षे अप्रजा या तु नारी स्यान्न अप्रजो मृतपत्नीक अप्रज्ञायमानं वित्तं अप्रणामे तु शूद्रेऽपि अप्रणोद्योऽतिथि सायं अप्रतिष्टित देवानां अप्रतिष्टितमालाय साजपे अप्रत्ता दुहिता यस्य अप्रत्तानां स्त्रीणां अप्रत्याक्षा हिपितरो अप्रत्याग्उत्तर शिरा अप्रत्यायगश्चैव अप्रत्या स्थापन व २.६.१९४ अप्रदत्ता भवैकाह व्या २३७ व्या १६६ कण्व १९३ व्या २३८ अप्रदुष्टां प्रियांहत्वा अप्रदुष्टां स्त्रियं हत्वा अप्रदेयं देयमिदं अवाच्यं अप्रमत्तश्चरेद् भैक्षं अप्रमत्ता रक्षथ तन्तुमेतं अप्रमत्ता रक्षत तन्तुमेतं अप्रमाणस्तु सा ज्ञेया अप्रयच्छन् समाप्नोति अप्रयच्छन्समाप्नोति अप्रयत्नः सुखार्थेषु अप्रवक्तारमाचार्यमनधीयान वृ हा २.३५ बृ.गौ. १३.८ अग्नि ५.२४ देवल ७ बौधा २.४.४ व्या १४८ कण्व ५७० व १.१७.४६ कपिल ४४५ आंपू २८ कात्या १३.७ लोहि ११४ कात्या १३.६ लोहि ६५७ नारद १८.५६ या २.१४८ बौधा २.२.६५ आप ९.२४ प्रजा ७७ व १.३.१४ आंगिरस ५० मनु ३.१०५ वृ.परा ११.२०८ भार ७.५३ व १.१७.२५ व १.४.१८ आंपू ८६५ व्यास ३.७० वृ परा ७.३५५ व २.३,७० अप्रवाहोदकं स्नानं अप्रवृत्तौ स्मृतो धर्म अप्रसूताः स्मृता दर्भाः अप्राणिभिर्यत् क्रियते अप्राप्तव्यवहारश्च दूतो अप्राप्तव्यवहारस्तु अप्रामाण्यं च वेदनां अप्रायत्ये समुत्पन्ने अप्रावृत्य शिरो यस्तु अप्रोक्ष्यापरिषिच्यैव अप्सु निमज्जन्मज्जय अप्सुपाणौ च काष्ठै अप्सु प्रवेश्यं तं दंड अप्सु प्राप्तासु हृदयं अप्सु भूमि वदित्याहु अप्सु च समारभ्य अप्सुमे त्रीणि चोक्तानि अप् स्वग्ने सधिष्टवेति अप्स्वग्नौ हृदये सूर्य्ये अप्स्वात्मानं नावेक्ष्येत अफालकृष्टे नाग्नींश्च अबद्धं मनो दरिद्र अबन्धके स्याद् द्विगुणं २२३ ब्र.या. १३.३ ब्र. या. १२.५० या ३.२६९ लोहि ६०० या ३.५९ बौधा २.२.४१ व १.१७.९ ब्र. या. ८.१६६ या १.६४ व २.४.३६ मनु ६.२६ ब्र.या. १२.१६ व्या २४१ नारद १३.१०३ वृ हा ४.४३ मनु ९.२२३ नारद १.४७ नारद २.२७ व १.१२.३८ बृ.या. ६.३० वाधू १० आंपू २४५ बौधा २.५.११ व १.१२.१३ मनु ९.२४४ वाधू २५ मनु ८.१०० विश्वा ४.१५ विश्वा ४.१२ वृ हा ८.४८ वृ हा ५.८५ ब्र. या. ८.१३२ या ३.४६ बौधा १.७.३० वृ हा ४.२२७ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ स्मृति सदर्भ अबीजविक्रयो चैव मनु ९.२९१ अभावादक्षमालायाः बृ.या ७.१३९ अब्जानां चैव भाण्डानां शंख १६.५ अभावादग्नि होत्रस्य वृ परा ४.१६२ अब्दभेदान्मासभेदात् कण्व ६२ अभावे कथितं सद्भि कण्व ७८४ अब्दमेकं न कुर्वीत ब्र.या. ७.२० अभावे कारिणं कारि शाण्डि ४.६५ अब्दवृद्धि भवेद्यत्र वृ परा ७.९९ अभावे जातिपुष्पाणि व २.६.४०२ अब्दादूवं चरन्त्येके वृ परा ७.१४९ अभावे तस्य सूत्रस्य आंपू ५५ अब्दार्थ मिनदमित्येत मनु ११.२५६ अभावे दन्तकाष्ठानां ल हा ४.११ अबन्ध्यं यश्च या २.२४६ अभावे दुहितृणां तु अ नारद १४.४८ अब्मक्षः स कृच्छ्रतिकृच्छ्रः व १.२ ४.४ अभावे धौतवस्त्रस्य 5.या. ७.३९ अन्मक्षस्तृतीयः स बौधा २.१.९४ अभावे पितृयज्ञे तु व २.३०४ अब्रह्म अभिहितं यत् तु वृगौ ३.१९ अमावे ब्रीहियवयोईना कात्या २७.३ अब्राह्मणइतिप्रोक्तो कण्व २२८ अभावे मृण्मये दद्याद् अत्रि स १५५ अब्राह्मणः संग्रहणे मनु ८.३५९ अभावे वामहस्तेवा ब्र.या. २.७१ अब्राह्मणस्य प्रनष्ट बौधा १.१०.१७ अभि आगतं शान्तम् बृगौ ६.४८ अब्राह्मणस्य शारीरो बौधा २.२.६१ अभिगच्छन् सुतार्थ वृ परा ८.२८० अब्राह्मणादध्ययन बौधा १.२.४० अभिगच्छेच्च देवेशं शाण्डि २.६५ अब्राह्मणादध्ययनं मनु २.२ ४१ अभिगति उपजीतानाम् वृ गौ ३.४६ अब्राह्मणेषु सर्वेषु सर्व कपिल १२ अभिगन्तासि भगिनी ___ या २.२०८ अब्रुवन हि नरः साक्ष्यं या २.७८ अभिगम्य कृते दानं पराशर १.२८ अभक्तानामसर्हाणां शाण्डि ४.१९२ अभिगम्य जगन्नाथं शाण्डि २.८५ अभक्ष्य परिहारश्च अत्रि स ३५ अभिगम्यैव देवेशं शाण्डि ४.३२ अभक्ष्य भक्षणं देवला ४९ अभिगम्योत्तमं दानं पराशर १.२९ अभक्ष्यभक्षणे चैव शाता ३.४ अभिघाते तथाच्छेदे या २.२२६ अभक्ष्यभक्षणो विप्र वृ परा ८.२१२ अभिधार्य च तान् भागान् विश्वा ८.१८ अभक्ष्याणामपेयानाम बृ.य. ३.६२ अभिधार्य सुवेगाऽऽज्यं आश्व २.४६ अभक्ष्याणामपेयानाम यम ४६ अभिचारमनह च त्रिभि औ ९.५७ अभक्ष्याः प्रशवो ग्राम्यां बौधा १.५.१ ४८ अभिचारादिकं कर्म वृ हा ६.१९० अभक्ष्याः प्रशवो ग्राम्या बौधा १.१२.१० अभिचारेषु सर्वेषु मनु ९.२९० अभक्ष्येण द्विजं दुष्यन् या २.२९९ अभिज्ञानश्च वल्मीक नारद १२.५ अभयञ्च ततः पश्चात् बृ.गौ. २०.३७ अभितः सर्वदेवानां वृ हा ३.१५३ अभयं सर्वभूतेभ्यो व १.१०.३ अभिधार्य सुवेणेदं आश्व २.५५ अभयं सर्वभूतेभ्यो व १.१०.४ अभिधास्येऽथ रुद्राणां वृ परा ११.१०७ अभयस्य हि यो दाता मनु ८.३०३ अभिपूजितलाभांस्तु मनु ६.५८ अभयाक्षम्रग्दधानाः भार १९.१६ अभिपूर्यं ततो दद्याद् वृ हा ८.१३९ अभया जनमुखदिनि कपिल ३९५ अभिप्रियाणीति सूक्तेन वृ हा ८.२३७ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अभिमंत्र्य च मंत्रेण अभिमन्त्रय जलः मंत्रै व अभिमन्त्र जलम्पश्चान् अभिमन्त्रय जलं पञ्चान् अभिमंत्र्य जलं पश्चान् अभिमंत्र्य जलं पश्चान् अभिमंत्र्य जलं प्राश्य अभिमन्त्रयं तु गायत्रं अभिमर्त्याहृतांशाखां अभियुक्तायां उत्पन्न अभियोक्ता न चेद् ब्रूयाद् अभियोगमनिस्तीर्थ अभियोगात्तथाभ्यास अभिरम्यतामितिवदन्तु अभिवादन शीलस्य अभिवादयेद् वृद्धांच अभिवादात् परं विप्रो अभिवाद्य गुरोः पादौ अभिवाद्याश्च पूवन्तु अभिशस्तस्य षण्ढस्य अभिशस्तो द्विजोऽरण्ये अभिशस्तो मृषा कृच्छ्रं अभिश्रवणहीनं तु यः अभिषह्य तु याः कन्या अभिषिक्तं तु यच्चूर्ण अभिषिच्चशुभैर्वस्त्र अभिषिंचेत्तु सद्गंधं अभिषेकं कारयित्वा अभिसंधिकृते ऽप्येके अभिसंधिपूर्ण त्रिरात्र अभीक्ष्णं चोद्यमानोऽपि अभीषाङ्गा पदस्तोगाः अभीष्टं लोकमाप्नोति अभुक्ते मुंचते यश्च अभूतमप्यभिहितं वृ हा ४.७६ व्यास २.१५ व २.६.२९ व २.७.५० वृ हा ७.७२ वृ हा ४.२८ वृ हा ६.२६६ विश्वा १०७ भार ५.२२ व १.१७.५५ मनु ८.५८ या २.९ दक्ष ७.६ व_२.६.३१४ मनु २.१२१ मनु ४.१५४ मनु २.१२२ ल हा ३.८ औ १.४५ मनु ४.२११ अत्रिस २८८ या ३.२८६ वाधू २०८ मनु ८.३६७ वाधू १९९ व २.७.५२ भार ७.८३ आंपू ८५ अभूदेकाद्याष्ट सूक्तौ अभेद्यांपरमा बुद्धिश्शुद्देति अमेयवंश्यातु उहश्च अभोज्यन्तद्भवेदन्नं अभोज्यंतद्विजानीयाद् अभ्रोज्यन्तद्विजानीयान् बृ.गौ. १३.१६ बृ.गौ. १३.१७ बृ.गौ. १३.१४ शाण्डि ३.८ अभोज्यमन्नं नात्तव्यमात्मन मनु ११.१६१ अभोज्यानां तु भुक्त्वाऽऽन्नं मनु ११.१५३ अभोज्यान्नं यथा भुक्त्वा अत्रि स ७२ अभोज्यान्नानपाङ्क्तेया अभोज्यान्नाः स्युरन्नादो अभोज्याप्रतिग्राहा त्याज्य अभोज्याश्चप्रतिग्राह्य अभोज्याश्चप्रतिग्राह्या अभ्यक्तमेव होतव्यमतो अभ्यक्तश्च तथा स्नाया अभ्यक्तेन च धर्मज्ञ अभ्यग्रचिह्नो विज्ञेयो अभ्यङ्क्ष्वेति च वै तैलं अभ्यङ्गकालनैयत्यं आर्थिकं अभ्यंगं मात्र गाज संस्पर्श अभ्यंगमंजनाञ्चक्ष्णोरूपान अभ्यङ्गाद्धरते लक्ष्मी अभ्यंजनं स्नापनंच अभ्यंजनं स्नापनं च अभ्यञ्डनादि व्यापारे अभ्यञ्जयेत्कुमार अभ्यनुज्ञानदेवास्ते प्रथमं अभ्यनुज्ञांज्ञातिमता व १.२०.२ बौधा १.५.१३८ अभ्यनुज्ञांविशेषेण नारद २.२१३ अभ्यनुज्ञाव्रतस्यास्य अभ्यन्तराणि यज्ञांनि अभ्यन्तरान्तराल अभ्यर्चति क्रमेणैव व्याहृती व १.२८.१२ शंख १२.२४ आप ९.१६ नारद १.५५ अभ्यर्चयेद् गन्धपुष्पैः २२५ वृ हा ५.३८४ शाण्डि १.५२ व २.४.८३ व्यास ३.४९ विष्णु ५७ बृ.य. २.९ यम १४ वृ परो ४.१८३ आंपू २५१ वृ परा १०.२८४ नारद २.१५४ आश्व २३.७८ लोहि ६४० व २.५.२२ मनु २.१७८ व्या ४३ औ ३.२८ मनु २.२११ शाण्डि १.२६ आश्व ९.१८ लोहि ५०३ लोहि २४३ कपिल ३८३ लोहि ५०७ बौधा ९.७८ भार २.१४ कपिल ३१६ वृ हा ७.१०७ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ स्मृति सन्दर्भ अभ्यच्चयैवं रथं वृ हा ६.३१ अमत्यायुगतोदाननिष्कृतः नारा १.१७ अभ्यर्च्य गन्धपुष्पाचे वृ हा ६.१२९ अमत्या वारूणी पीत्वा बौधा २.१.२५ अभ्यर्च्य मुसलं पुष्पै वृ हा ६.८५ अमत्यैतानि षड्जग्ध्वा मनु ५.२० अभ्यर्च्य श्रद्धया प्राप्तान् शाण्डि ४.८८ अमनोरञ्जकान्यद्य शास्त्राणि नारा ७.२१ अभ्यर्च्य विधिवद्धि वृ.गौ. ७.८३ अमंत्रकं प्रकुर्वीतं वृ हा ६.११३ अभ्यर्च्य विप्रमिथुनान् → हा ५.४०८ अमन्त्रतं विधानेन आंपू ८१२ अभ्यर्च्य समलंकृत्य कण्व ६२८ अमन्त्रकेण होतव्यं लोहि १२६ अभ्यसेच महापुण्या संवर्त २१० अमंत्रदग्धो न भवेदमंत्रो कपिल ६५८ अभ्यसेत् प्रणवं नित्यं वृ परा ४.१०५ अमन्त्रं वा समन्त्रं वा विश्वा ८.२१ अभ्यसेत् प्रयतो वेदं औ ३.८८ अमंत्राणां दहनम् बौधा १.५.३६ अभ्यस्येत्प्रीतिमान् बृ.गौ. १८.३२ अमंत्रिका तु कार्येयं । - मनु २.६६ अभ्यागत अन्यथा ल व्यास २.६३ अमात्यमुख्यं धर्मज्ञ प्राज्ञ मनु ७.१ ४१ अभ्यागतो ज्ञानपूर्वः वृ.गौ. ६.५५ अमात्यराष्ट्रदुर्गार्थ मनु ७.१५७ अम्यागतो तिथिश्चान्यः दक्ष २.२९ अमात्यान् मंत्रिणों वृ परा १२.११ अभ्यासस्सततं सर्व शाण्डि ३.६३ अमात्याः प्राड् विवाको मनु ९.२३४ अभ्यासे तु द्रुतं पूर्ण वृ हा ६.३०५ अमात्ये दण्ड आयत्तो मनु ७.६५ अभ्यासे तु व्रतं पूर्ण वृ हा ६.३८० अमात्यो ने तथा क्वापि किं कपिल ४९३ अभ्यासे तु षड ब्द अमात्रं च त्रिमात्रं च बृया. २.१४५ अभ्यासे तु सुराया व १.२०.२५ अमादर्शादिषु तथा .. कण्व ७५७ अभ्यासे त्रिगुणं चैव नारा २.४ अमादिकानां श्राद्धानां लोहि ३४१ अभ्यासोदशसाहस्रः व १.२५.१२ अमानिनः सर्वसहा वृ.गौ. १२.२२ अभ्युक्ष्यान्नं नमस्कारै व्यास ३.६३ अमानुषीपु पुरुष मनु ११.१७४ अभ्युत्थानानि वक्ष्यामि ब्र.या. १२.३० अमानुषीषु गोवर्ज अत्रि स २७१ अभ्युत्थानमिहागच्छ दक्ष ३.५ अमान्ते प्रतिपदा यत्र ब्र.या. ९.३८ अभ्युद्धृत्य यथाशक्ति ब्र.मा. २.२११ अमामनुयुगक्रान्ति आंपू ६०६ अभ्युपगम्य दुहितरि बौधा २.२.१७ ।। अमाययैव वर्तेत न मनु ७.१०४ अभ्युपेत्य च सु शुश्रूणा नारद ६.१ अमायामपराह्णेतु व २.६.२८१ अभ्रातकं मदृकञ्च व २.६.२१ अमायां कृष्णपक्षे वृ हा ८.३२६ अभ्रातृका पुंसः पितृन व १.७.१६ अमायां तु क्षयो यस्या .. दा ३० अभ्रातृका प्रदास्यामि लिखित ५४ अमायां मन्दवारे व २.६.४२१ अभ्रातृका प्रदास्यामि . व १.१७.१८ अमावस्याष्टकास्तिन औ ३.११२ अभ्रिं कार्णायसी दद्यात् मनु ११.१३४ अमावास्या क्षयो यस्य लिखित २१ अमत्या दशकृच्छ्राणि नारा १.२५ अमावास्या द्वादश आंपू ६१० अमत्या पाने कृच्छाब्दपादं बौधा २.१.२२ अमावास्या द्वादशी च संवर्त २०५ अमत्या ब्राह्मण हत्वा . बौधा २.१.६ अमावास्यामष्टमी च मनु ४.१२८ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २२७ अमावास्या मासिकं व्या २६५ अमेध्यं दृष्ट्वा जपति बौधा १.७.२९ अमावास्यां क्षयो यस्य लघुशंख १७ अमेध्यरेतोगोमांसं पराशर ११.१ अमावस्या गुरु हंति मनु ४.११४ अमेध्यशवशूदान्न व २.३.१६१ अमावास्यायां तिथिं औ ९.१०६ अमेध्याक्तस्य मृत्तोयैः या १.१९१ अमावास्यायां योब्राह्मणं औ ९.१०५ अमेध्यानि च सर्वाणि पराशर ८.३० अमावस्यार्कसंक्रांति ब्र.या, ४.२ अमेध्यानि सकीटानि वृ हा ८.११६ अमावास्याष्टका वृद्धि या १.२१७ अमेध्याभ्याधाने बौधा १.६.५१ अमाश्राद्धे गयाश्राद्धे व्या ३२५ अमेध्येषु च ये वृक्षा बौधा १.५.५९ अमीमांस्यानि शौचानि अत्रि स १९१ अमेध्ये वा पतेन्मत्तो मनु ११.९७ अमीमांस्यानि शौचानि अत्रि स २४१ अमेयैः संवृतो वेदः आंपू १५९ अमुक्तयो रस्तगयो अभि ५.७१ अम्बरं वायुसंयुक्तं विश्वा ५.१६ अमुक्तयोरस्तगयोर ल व्यास २.८० अम्बरीषस्तु तं गत्वा वृ हा १.१ अमुक्तयोरस्तगतयो ब्र.या. २.१९२ अम्बाष्टकासु नवभि प्रजा १९१ अमुष्मै नम इत्यैवं कात्या १३.११ अम्बष्ठात्प्रथमायां बौधा १.८.९ अमुष्य पौत्रैवांमुष्यपुत्री व २.४.१९ अम्बष्ठो मागधश्चैव नारद १३.१०९ अमूनि पंचद्रव्याणि भार १४.२८ अम्बु पूर्णघटं यस्तु ब्र.या. ११.५३ अमून्याचमनीप्यस्यानि भार १४.२९ अम्बुपेभ्योऽथ यक्ष्मभ्यो वृ परा २.२१६ अमृतं चैव मृत्युश्च बृह ९.७२ अम्बुप्रायास्तथा भोगा शाण्डि ४.१३ अमृतं ब्राह्मणस्यान्नं आंगिरस ५७ अंबूनि निर्वपेद् बीजं भार १५.१५ अमृतं ब्राह्मणस्यान्नं आप ८.१३ अम्भाप्रपूर्णकुम्भेषु वृ परा ११.९३ अमृतं ब्राह्मणसयान्नं वृ परा ६.३०९ अम्भोभिरुत्तर क्षिप्तः व्यास ३.१५ अमृतापिधानमसीति व हा ५.२८१ अम्युपेयादय इति व १.४.३१ अमृतापिधानमसीत्यु . औ ३.९३ अयचिता हृते ग्राह्ममपि या १.२१५ अमृतापिधानमसीत्यु औ ३.१०५ अयज्ञीयस्तृणैस्तत्स्यात् व्या ३४१ अमृतेषु च गव्येषु भार १८.१०५ अयज्ञेनाविवाहेन । बौधा १.५.९७ अमृतो पस्तरणमसी आश्व २३.६५ अयथार्थस्य नादद्याद शाण्डि ३.२७. अमृतोपस्तरणमसीति व हा ५.२५५ अयनग्रहणे मुख्ये आपू २८६ अमृतोपस्तरणमसीत्याप ब्र.या. २.१७५ अयनस्यप्रभेदोक्तिर्नदोपाय कण्व ६३ अमृतोपस्तरणं औ ३.१०.२ अयने द्वेच विषुवे आंपू ६४५ अमृतोपस्तरणं ल व्यास २.७१ अयने द्वे च विषवे 'आं पू ६३९ अमेध्य गन्धादाक्षिप्ता शाण्डि १.१७ अयने विषुवे चैव .. औ ३.११५ अमेध्यद्रव्यन्नार्हस्सदा शाण्डि ३.७० अयन्त्रितकलत्रा हि बौधा १.११.१५ अमेध्यपूर्ण भस्रावत् वृ परा १२.१८४ अयः प्रतिकृतिं कृत्वा वृ परा ८.१११ अमेध्यप्राशने प्रायश्चित् बौधा २.१..८९ अयमुक्तो विभागो च . मनु ९.२२० अमेध्यं गंधकाष्ठानि व २.५.४९ अयमेव महामार्गः श्राद्धीये कपिल २५९ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ स्मृति सन्दर्भ अयमेव महामार्गो कण्व ४६८ अरक्षिता गृहे रुद्धाः मनु ९.१२ अयमेव समाख्यातः कण्व १०६ अरक्षितारमत्तारं नृपं मनु ८.३०८ अयमेवातिकृच्छ्रः स्यात् वृ परा ९.१८ अरक्ष्यामाणाः कुवन्ति या १.३३७ अयं अग्नि वैश्वानर वृ हा ५.२६० अरणिं कृष्णमार्जारः पराशर १२.४२ अयं द्वि जैरविद्वद्भि मनु ९.६६ अरणिस्तन्मयी प्रोक्ता कात्या ७.२ अयं भवेद् ब्रह्मचारी सदा लोहि १६४ अरण्यनित्यस्य व १.१०.११ अयं मे वज्र इत्येवं या १.१३६ अरण्यनित्यो न ग्राम्य व १.१०.९ अंय विधि स विज्ञेय शंख १८.१४ अरण्ये नियतो जप्त्वा या ३.२४८ अयं हि पन्थाः पुरुषस्य व परा ६.१९२ अरण्ये निर्जने विप्रः संवर्त १०४ अयं हि परमो धर्मः वृ परा ६.२०५ अरण्येवा त्रिरभ्यस्य मनु ११.२५९ अयं हि परमो मन्त्रः आंपू ७८९ अरण्योः क्षयनाशाग्नि कात्या २०.३ अयाचित प्रदाता च कष्टं ल हा २.१२ अरण्योरल्पमप्यंगं कात्या २०.१८ अयाचितं प्रदा वै वृ गौ ३.४७ अरलिमात्रमुत्सृज्य कूर्याद् वाधू १२ अयाचितं धनं पूतं प्रजा ४६ अरविन्दनिभः श्रीमान् वृ.हा २.८४ अयाचितं शिलोछैस्तु शाण्डि ३.१७ अराजके हिलोकेऽस्मिन् मनु ७.३ अयाचिताहतं ग्राहामपि वाधू १६७ अराजदैविकं नष्टं भांडं या २.२०० अयाचिते चतुर्विशं अत्रि स १२१ अरि मित्रः उदासीनो या १.३४५ अयाचितेषु गृह्णीया ब्र.या. ७.४७ अरिषड्वर्गपापानि नाशये विश्वा ४.२३ अयाज्ययाजनं कृत्वा संवर्त २१७ अरुणस्य चे ये बाणा वृ.परा २.७७ अयाज्ययाजनैश्चैव मनु ३.६५ अरुणाचारुणाख्याता ब्र.या १०.७४ अयातयामा विज्ञेया व्या २८० अरुणोदय वेलायां प्रातः वृ.हा ५.५.३५ अयातयामैश्छन्दौभिर्यत् कात्या २७.१८ अरोगादुष्टवंसोत्यात्थाम व्यास २.२ अयाश्याग्नं इदं आश्व २.६३ अरोगामपरिक्लिष्टां वृ.परा १०.४८ अयुक्तं साहसं कृत्वा नारद २.२२० अरोगा याऽपरिक्लिष्टा वृ.परा १०.३०५ अयुतं च जपेन्मत्र व २.३.१९७ अरोगा वत्स संयुक्तां वृ.परा ११.२२७ अयुतं तुजपेन्मंत्र वृ हा ७.३० अरोगाः सर्वसिद्धार्था मनु १.८३ अयुतं तु मुहूर्तानामर्ध वृ परा ७.९४ अरोगिणी भ्रातमती या १.५३ अयुतं वा सहस्रं वा वृ हा ३.१३७ अरोगिणी भ्रातृमतीं व २.४.४ अयुध्यमानस्योत्पाद्य मनु ४.१६७ अर्कः पलाश खदिरा या १.३०२ अयुष्मा दक्षिणामुखाः व १.४.१३ अर्कस्त्व र्काय होतव्यः वृ.परा ११.४५ अयोग्यं सततं स्याद्धि आंपू २३२ अर्केण पुष्पाञ्जलि ब्र.या १०.१४१ अयोग्योषु वदच्छास्त्र शाण्डि ४.२ ४१ अर्क पलाशखदिरापामार्गो ब्र.या १०.१५१ अयोनिजा झापि पुत्राः बौधा १.५.१२८ अर्घपंचममासान् व १.१३.३ अयोनौ क्रमते यस्तु नारद ७.२१ अर्घप्रक्षेणाद्विशं भाग या २.२६४ अयोनौ गच्छतो योषां या २.२९६ अर्घयन्ति जगन्नाथं शाण्डि ३.१३ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अर्घश्चेदपहीयेत सोदयं नारद ९.५ अर्चयेद्गुरुवत प्रीतो अर्धे अक्षय्योदके चैव कात्या २ ४.१५ अर्चयेद् देवदेवेशं अर्घ्यगन्धपुष्पदीपं ब्र.या ४.७९ अर्चयेद्भूधरं देवं अर्ध्यत्रयप्रयोगार्थ विश्वा ५.२६ अर्चयेद्रमया सार्द्ध अर्घ्यपात्र समानीय ब्र.या ४.७० अर्चयेन् मूलमंत्रण अर्घ्यपात्राणि सर्वाणि वृ.परा ७.१९९ अर्चयेन् मातुरुत्संगे अर्घ्यप्रदानात्परतो गायत्री विश्वा ७.८ अर्चमेन्मालतीपुष्प अर्घ्यमेकं तु मध्याह्ने विश्वा ५.३४ अर्चयेन्मालतीपुष्पै अाक्रोशातिक्रमकृद् या २.२३५ अर्चयेयेद्गन्धपुष्पा अर्ध्या भवन्ति धर्मेण व्यास ३.४० अर्चायामर्चयेत् पुष्प अर्येऽक्षय्योदके चैव कात्या ४.८ अर्चीसि केवलान्येव अर्येण परिषिच्यान्नं शाण्डि ४.१३० अर्चेत पुरुषसूक्तेन अर्चतानेन मंत्रेण आश्व २३.२८ अचितः पूजितो विप्रो अर्चनं मंत्रपठनं ध्यानं वृ.हा ८.१ ४९ अर्चनाज यथान्यायं । अर्चनं वन्दनं दानं वृ.हा ५.१८१ अर्चयामि भवान्साधुः अर्चयन वैदिकैर्मन्त्रै वृ.परा ४.११२ अर्चयित्वा हृषीकेशं अर्चयित्वा चतुर्दिक्षु वृ.हा ७.१८६ अर्चयेद् रक्त कमले अर्चयित्वाऽच्युतं भक्त्या वृ.हा ६.१४८ अर्थकामेष्वसक्तानां अर्चयित्वा द्विजं भक्त्या वृ.गौ ७.२२ अर्थधाणं शरीरं च भर्तारं अर्चयित्वा विधानेन वृ.हा ६.१२४ अर्थपंचकतत्वज्ञः । अर्चयित्वा विधानेन वृ.हा ७.३४ अर्थसम्पादनार्थं च अर्चयित्वा विधानेन वृ.हा ७.२०५ अर्थस्य संग्रते चैनां अर्चयित्वा विधानेन । वृ.हा ७.२५५ अर्थहानिश्च विज्ञानं अर्चयित्वा पोकेश वृ.परा १०.२१२ अर्था च वरुणा प्रीता अर्चयित्वोपचारैस्तु वृ.हा ५.१४६ अर्थार्थमथवा स्नेहान्ते अर्चयेज्जगतामीशं ___ व २.५.३६ अर्थार्थी यानि कर्मणि अर्चयेज्जगतामोशं व २.६.२३५ अर्थानबुभौ बुद्ध्वा अर्चयेज्जगतामीशं वृ.हा ७.२०६ अर्थानां छन्दतः स्टष्टि अर्चयेज्जगतामीशं वृ.हा ७.२२८ अर्थानां भूरिभावच्च अर्चयेत्त द्विजं पुष्पैः वृ.परा ७.१८६ अर्था वै वाचि नियता अर्चयेत्प्रयतो विष्णुं कर्म व २.३.२ अर्थाः सर्वेऽपि शुध्यान्ति अर्चयेद्गंधपुष्पाधै _ व २.६.३१९ अर्थिका निशिवेधेन अर्चयेद् गन्ध पुष्पाचै वृ.हा ७.२१५ अर्थेऽपव्ययमानं तु अर्चयेदच्युतं भक्त्या व २.६.२३४ अर्थेष्वधिकृतो यः स्यात् अर्चयेदतिथि प्रीतः वृ.गौ १२.३२ अर्द्ध प्रसृतिमात्रन्तु २२९ वृ.गौ १२.३१ वृ.हा ७.९६ वृ.हा ५.३९० व २.४.२४ वृ.हा ५.४२१ वृ.हा ५.४८६ व २.६.२६४ व २.६.२३६ व २.७.५३ ७.हा ७.२५ बृह ९.१६६ शाता २.६ ब्र.या ७.५२ बृ.गौ १९.१२ ब्र.या ८.१८७ वृ.हा ३.१९४ वृ.हा ५.४६२ मनु २.१३ व २.५.२८ वृ.हा ५.२२७ मनु ७.१६८ मनु ९.११ शाण्डि ३.४७ ब्रया १०.८० वृगौ १०.९३ वाधू १८६ __ मनु ८.२४ या ३.२०३ नारद १८.३९ नारद २.२०५ कण्व १७९ ब्र.या ९.३ मंनु ८.५१ नारद ६.२२ दक्ष ५.७ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० अर्द्धप्रसृतिमात्रांतु अर्द्ध पादं समुद्दिष्टं अर्द्ध पिबति गंडूषं अर्द्धमेवाऽऽनुलोम्येषु अर्द्धवृतिमनाशैच अद्धगुलस्य सीमाया अर्द्धर्द छिद्रितं अर्द्ध भुक्ते तु यो विप्र अर्धक्षायातु परतः अर्धमन्त्र पूर्णमन्त्र अलकालंर्ककारूषा अलक्षणानि पुष्टानि अलंकारं नाददीत वृ. हा ४.१६ वृ. हा ६.३१४ ब्र. या २.२०२ वृ. हा ६.३१८ औ ६.२१ वृहस्पति ४१ अर्ध पिबति भर्त्तारं व २.६.४७१ ब्र.मा २.१५५ या २.११५ अर्धरात्रात्तदूर्ध्वं वा अर्धरात्रादर्धपूर्वा अर्धवासास्तु यः कुर्य्याज् लघु शंख ७० अर्धोच्छिष्टाश्च विप्राद्या वृ. परा ८.२९४ अर्धोच्छिष्टो द्विजः स्पष्ट वृ. परा ८.२९३ अर्धोच्छिष्ठो द्विजो ज्ञानाद् वृ.परा ८.२९१ अर्धोदये महोदये आंपू ९१४ अर्या समीपे शयनासने अर्वाक् चतुर्द्दशादवो अर्वाक्तु दशारात्रात्तु अर्वाक्तु लाजहोमस्य अर्वाक् शेषहोमस्य अर्वाक् सपिण्डीकरण अर्वाक् संवत्सराद् वृद्धौ अर्वाग्संवत्सरादूर्ध्वं अर्व्वाञ्च सुभगे द्वाम्यां अर्शआद्या नृणा रोगा अर्हति स्वर्गवासेऽपि बृ. या ३.२६ पराशर १२.३७ नारद १०.९ विश्व ४.६ ब्र. या ७.१२ आंपू ६४८ व २.६.५३९ आंपू ७७ आंपू ८३ या १.२५५ वृ परा ७.३४५ वृ परा ७.३४७ वृ हा ८.१६ शाता १.१० आंपू ९७७ आंपू ५०४ भार १४.१२ मनु ९.९२ शाण्डि ४.१७४ अलङ्कारधनस्यान्ते अलंकारानुभूषेण पश्चात् भार ११.१०९ अलङ्कारासनं दत्त्वा शाण्डि ४.३४ स्मृति सन्दर्भ मनु ९.२२२ वृ. हा ३.३१४ या २.२९० अलंकृतश्च संपश्येद् अलंकृताभि सत्यादि अलंकृता हरन कन्यां अलंकृते शुभे गेहे अलंकृत्य तु यः कन्यां अलंकृत्य पिता कन्यां अलंकृत्यानलं चान्नं अलंकृत्याभिधार्योध्म अलंकृत्योत्कविधिना अलंकृत्वाऽथ स्वांगं अलब्धमिच्छेद्दण्डेन अलब्धं चैव लिप्सेत अलब्धं प्रापयेल्लब्ध्वा अलब्धानु (द्वल्व) णा अलं च सोमपानाय व १.८.१० व २.६.४३७ अलर्क क्षुद्रकन्दं च महा शाण्डि ३.११२ अप्रलाभे तस्य देहे तु अलाभे दन्तकाष्ठानां अलाभे देवखातानां अलाभे न विषादी अभागे न विषादी अलाभे पास कुर्यात् अलाभे प्रसवेनैव अलामे मृण्मयं दद्यात् अलाभेयज्ञवृक्षेण कुर्वीतं अलाभे सर्वभोगानां अलाभे सुमुहूर्तस्य अलाबुं दारुपात्र च अलिंगी लिगिवेषेमेण अलिप्तं मद्य मुत्राद्यै अतिपिज्ञ ऋणी य स्यात् अलिसंघालकां शुभ्रां अलुब्धाह्लादनिष्पापा अलुब्धार्चयो वेषां अलेपं मृण्मयं भाण्ड वृ. हा ५.१४३ संवर्त ६१ संवर्त ६४ आश्व १.१२२ आश्व २.५० ब्र. या ११.२४ व २.५.३४ मनु ७.१०१ मनु ७.९९ व्यास ३.५ शाण्डि ३.१४३ वाधू ३७ अत्रिस ३० मनु ६.५७ व १.१०.१६ ब्र. या. ४.१५६ भार १४.३३ लिखित ५७ भार १५.१४८ शाण्डि ३.३६ आश्व १५.७८ मनु ६.५४ मनु ४.२०० वृ परा ८.३३६ या २.९० विष्णु १.२३ बृ.या. ४.५४ बृ.गौ. १२.२३ वृ परा ८.३३४ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अलेहयानाम पेयानाम आप ९.५ अलोलजिह्नः समुपस्थिति वृ.गौ. ८.११६ अलोलजिह्व समुपस्थितो वृ. गौ. ८.११६ अल्पकालमृतायां तु अल्पत्वाद्धोमकालस्य आंपू १०.४८ कात्या १२.६ अल्पपापस्य शुद्धार्थ अल्पं वा बहु वा यस्य अल्पांग्गुलमानेन अल्पान्नाभ्यवहारेण वृ परा ८.२०९ मनु २.१४९ भार २.६८ मनु ६.५९ अल्पनां चैव धान्यानां व २.६.५२० अल्पानां यो विघाता स्यात् कात्या २८.१६ अल्पेनापि हि शुल्केन, आप ९.२५ अल्पोदकानां कूपानां अवकाशेषु चोक्षेषु अवकीर्णी तु काणेन या ३.२८० अवकीर्णी भवेद् गत्वा अवकृष्टञ्च यद्भक्तया वृ. गौ. १०.७० अवक्तृत्वां तया स्मीभि वृ परा १२.१३० अवकार्थस्तोङ्कार अवक्राः सत्वचः सर्वे अवगुण्ठितसर्वाङ्गं तृणै शाण्डि ५.६६ शंख २.११ वधू ९ मनु ११.२०९ वृ परा ८.२८४ अवगूर्य चरेत् कृच्छ्रं अवगूर्य चरेत् कृच्छ्रं अवगूर्य त्वब्दशतं अवगूर्य त्वहोरात्र मनु ११.२०७ अवज्ञां तु गरो कृत्वा अवतत्यधनुर्वक्त्रये अवतीर्ण स्ततः कालादिला बृ.गौ. १७.१९ पराशर ११.५१ वृ परा ८.२७५ वृ परा ११.११४ अवतीर्य तु सर्वाणि वृ परा १०.३३२ वृ परा ११.२५० भार ५.५४ अवदान विधानेन अवदित्वा ऋषिच्छंदो अवधिर्द्विविधं प्रोक्तं अवध्यो वै ब्राह्मण अवनिज्य तिनान् दर्भान् अवनिष्ठीबतो दर्पाद् वृ हा ४.२३३ बौधा १.१०.१८ वृ परा ७.२६५ मनु ८.२८२ व २.६.५२८ मनु ३.२०७ मनु ११.११९ अवनिष्ठीवतो दर्पाद् अवनेजनयोश्चासु अवनेजनवत् पिण्डन् अवन्तयोऽङ्गमगधा अवन्त्सुग्रमापूर्युर्जीर्ण अवमत्य विमूढात्मा अवमन्यन्ति ये विप्रान् अवमानमसमर्थ्यं हृद्रोगं अवमानास्तु तेषां हि अवमानितं चेतु हन्या अवरुद्धासु दासीषु अवर्जितैर्यथालाभं २३१ नारद १६.२५ ब्र.या. ३.६४ कात्या ३.१४ बौधा ११.३१ शाण्डि ३.९१ वृ.हा. ८.३०९ वृ.गौ. ४.४२ शाण्डि ३.५५ बृ.गौ. १४.६२ बृ.गौ. १९.३२ या २.२९३ वृ.गौ. ८.८४ वृ. हा. ८.१८१ लोहि ६८६ लोहि २६१ कपिल ५२० कण्व ५७३ अवलम्ब्य मतं तस्य अवशात्सङ्गृहीतश्चेत अवशादसुसन्देहे पुत्र अवशादागतमहावृत्ति अवशादागतं दैवात्सूतकं अवशादेव भवति तन्निवेदि कपिल २६९ अवशादेव मनुजो लभते कपिल ९०६ अवशादवह्नितो वापि आंपू ५९ अवशाषा (खा) दिनी क्लीबा.या. १०.८२ अवशिष्ट मथैकन्तु बृ. गौय १६.२६ आंपू ७६ कपिल ५९२ अविशष्टं प्राशयेच्च अवशिष्टवृतोत्सर्गशास्त्र अवशिष्टान्वरो लाजां अवश्यत्वेन कर्तव्यं अवश्यं च ब्राह्मणे अवश्यं भोजनीयानाम अवश्यं मधुपर्केण मध्वा अवश्याद्याति तच्चित्तमथ अवश्या सा भवेत पश्चाद अवष्णवेन विप्रेण अवस्करस्थल श्वभ्र अवस्थितब्रह्मचर्यः अयम् अवहन्याद्धरिद्रां तु शुभ आश्व १५.४३ आंपू ७२६ व १.११.४९ शाण्डि ४.७३ शाण्डि ४.३८ शाण्डि ५.३७ दक्ष ४.३ वृ.हा. ६.४९८ नारद १२.१३ वृ.गौ. ४.७ व २.६.३१८ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ स्मृति सदर्भ अवहार्यो भवेच्चैव मनु ८.१९८ अवृतेनाप्यभक्तेन स्पृष्टा बृ.गौ. २२.२ अवाक्यपौरुषं सूक्तं वृ.हा. ७.६९ अवेक्षणं जागरुकता आंपू १००९ अवाक् शिराः प्रविश्याग्नौ वृ.हा ६.२ ४६ अवेक्षेत गतीर्नृणां मनु ६.६१ अवाक्शिरास्तमस्यन्धे मनु ८.९४ अवेगमपि यद् भूरि वृ परा ८.३३७ अवाग्जं प्रणवस्याय वृ परा ३.२७ अवेदयानो नष्टस्य मनु ८.३२ अवाट् मुखो न नग्नो ल.व्यास २.८९ अवेक्ष्योगर्भवासश्च या ३.६३ अवाच्यो दीक्षितो नाम्ना मनु २.१२८ अवैदिकं क्रिया जुष्टे वृ.हा. ७.१८२ अवाप्स्यसि ततः सिद्धिं बृ.गौ.२२.२३ अवैष्णवत्वं तस्यापि वृ.हा. ५.२४ अविक्रयं मद्यमासं पराशर १.६४ अवैष्णवत्त्वं विप्राणा व २.१.११ अविक्रेयाणि विक्रीणन् नारद २.६३ अवैष्णवद्रोर्मत्र वृ.हा. २.१३१ अविख्यापित दोषाणां व १.२५.१ अवैष्णावं द्विजं तस्मिन् वृ.हा. ५.४८४ अविज्ञातश्च चाण्डाल पराशर ६.३२ अवैष्णवं द्विजं स्पृष्ट्वा व २.६.४८६ अविज्ञा हतास्याश या २.२८३ अवैष्णवं विकर्मस्थं वृ.हा. ४.२०३ अविज्ञाता अनर्हाः सामान्याः शाण्डि ४.७१ अवैष्णवस्तु यो विप्रः व २.१७ अविज्ञायापि यो मोहात् औ ८.४ अवैष्णवस्तु यो विप्र व २.२८ अवितृप्तः प्रसन्न आत्मा वृ.गौ.४.२ अवैष्णावस्तु योविप्रः वृ.हा. २.३१ अविदित्वा तु य कुर्यात् बृ.या.१.२८ अवैष्णवस्तु योविप्रः वृ.हा. २.३२ अविद्यामने तु गुरौ राज्ञो नारद १३.८८ अवैष्णवस्थापितानां व २.७.२५ अविद्यमाने पित्रर्थे नारद १४.३४ अवैष्णवस्य शूदस्य वृ.हा. ८.१११ अविद्यानां तु सर्वेषां मनु ९.२०५ अवैष्णवः स्याद्यो वृ.हा. २७९ अविद्यो वा सविद्यो वृ.हा. ८.२८९ अवैष्णावानामपि च अवैष्णावानामपि च वृ.हा. ८.१३४ अविद्वान स्नानकाले वृ परा २.९८ अवैष्णवानां संसर्गात् वृ.हा. ६.१५० अविद्वान् प्रतिगृह्णाति वृहस्पति ६० अवैष्णवान् पितृन्पश्चात् व २.६.४१७ अविद्वांजैव विद्वाश्च मनु ९.३१७ अवैष्णवाश्च ये विप्रा वृ.हा. १.२५ अविद्वांसमलं लोके मनु २.२१४ अवैष्णवोक्त तत्सर्व बृ.गौ. २२.१७ अविधिविधिगत्यासु वृ परा ६.८७ अवैष्णवोहियो विप्रो व २.१.१२ अविप्लुतब्रह्मनचयैः बृ.गौ. ४.१७ अवोत्सवं प्रकुर्वीतं व २.६.२५९ अविप्लुतब्रह्मचर्य या १.५२ अव्यक्तमात्मा क्षत्रेज्ञः या ३.१७८ अविभक्तेषु तैः सर्वैः कण्व ७४९ अव्यक्तं अव्यय शातं वृ परा २.१४४ अविरोधेन भूतानां शाण्डि ४.२३१ अव्यक्तलिंगो व्यक्ताचार व १.१०.१२ अविशेषेण सर्वेषामेष नारद १५.८ अव्यक्तः समधिष्ठाता विष्णुम ५४ अविहितकृत दोषं राजसेवा विश्वा ३.४९ अव्यक्ते वै दिनस्यान्तो बृ.या. ३.२९ अवीचिमंन्धतामित्रं या ३.२२४ अव्यक्तैरप्यशुद्ध तन्मन् शाण्डि ४.२९ अवीरस्त्री स्वर्णकारस्सी या १.१६३ अव्यंगा कलजाता वृ परा ६.३६ अबीरेत्युच्यते नाम्ना लोहि ४८९ अव्यंगाक्लिष्टधैते व परा २.१६१ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी अव्यगागी सौम्य नाम्नी अव्यामच्छविक्रोशन् अव्याहृतमिदं ह्यासीत् अव्रणाः सत्वचोऽदग्धा अव्रतग्राहकै स्त्यक्तविवाद शाण्डि १.११९ वृ परा ६.१५५ अव्रतः सव्रतो वापि पराशर ५.५ पराशर ८.१२ बौधा १.१.१८ अव्रतानाममंत्राणा अव्रतानामंत्राणा अव्रतानाममंत्राणा अव्रतानामंत्राणा अव्रताश्चानधीयानां यत्र अव्रता ह्यनधीयमाना अव्रती सव्रती वापि शुना अव्रतैर्यद् द्विजैर्भुक्तं आलिंगा वार्हस्पत्यं अशक्तप्रेतनष्टेषु अशक्तप्रेतनष्टेषु अशक्तं विधिवत्कर्तु अशक्तश्चेज्जल स्नाने अशक्तस्तु भवेद् राजा अशक्तुस्त वदन्नेवं अशक्ता चोपवासे अशक्तास्यात्समुदितः अशक्तो दशग्रामाध्याक्षाय अशक्तो यस्तु वेदेन अशक्तो यस्तु वेदेन अशक्तोयस्त्वहोरात्र अशक्तौ क्रीतोत्पन्नो अशक्तौ भेषजस्यार्थे अशक्नुवंस्तु शुश्रूषा अशब्दं सर्वतः कुर्वन् अशास्त्रविहितं धर्म अशास्त्रोक्तेषु चान्येषु अशासंस्तस्करानयस्तु अशितिर्यस्य चापूर्णा वर्षा मनु ३.१० नारद ७.१४ बृ.या. ३.८ मनु १२.११४ व १.३.७ अत्रि २२ व १.३.५ आंउ ९.१४ मनु ३.१७० अग्नि ३.१४ नारद १२.२० नारद १२.३८ बृ.गौ. १४.९ आश्व १.२३ वृ.हा. ४.१७४ या २.२१२ आप ७.१५ भार ६.१७ विष्णु ३ वृ.हा. ५.५४४ वृ.हा. ७.१५३ भार ९.४२ वृ.हा. ४.१६ नारद २.६२ मनु १०.९९ कण्व ९९ वृ.हा. ८.१८२ नारद १८.७ मनु ९.२५४ आंपू १०.२१ २३३ औ ६.४१ आप ९.३ या २.३८ आंगिरस ३३ अशित्वा च सहोषित्वा अशित्वा सर्वमेवान्नं अशीतिभागो वृद्धि स्यान् अशीतिर्यस्य वर्षाणि अशीतिर्यस्य वर्षाणि अशीतिर्यस्य वर्षाणि नारद १८.४९ बौधा २.१.७३ कात्या १०.१३ अशीतीर्यस्य वर्षाणि अशीत्यधिकवर्षाणि बालो अशीत्यर्थे तु शिरसि अशुचित्वं न तेषां तु अशुचित्वं शरीरस्य अशुचिर्वचनाद् यस्य अशुचिशुक्लोत्पन्नानां अशुचेस्तस्यमनसो मलिनं विश्वा १.१०१ अशुच्यशुचिना दत्त अशुद्ध कितवो नान्यं अशुद्ध स्वयमप्यन्नं न अशुद्धस्तु दशाहानि अशुद्धान्नाशनात् पुंसां अशुद्धा वा भवेत तावद् अशुद्धा सा भवेन्नारी अशुद्धेष्वर्चन्मूढो अशुभं कारिता कर्म अशुभं तत् भवेद् वीजम् अशुल्का ब्राह्मणाहश्च अशोकमधुकप्ललक्षविल्वा अशोवाध न कुर्वीत अशौचं क्षत्रिये प्रोक्ते अशौचं न दावत्येव अशौचत्वञ्चाकृतज्ञत्वं अशौच निर्णय अशौचं मलिनत्वाञ्च अशौचाद्धि वरं वाह्यं अशौचानन्तरं श्राद्धादिवर्णन अशौचानां विधिवक्ष्ये आप ३.६ देवल ३० यम १७ बृ.य. ३.३ वृ.गौ. २०.४ वृ परा ८.२७ शंख ७.१० नारद १७.५ अत्रि ५.३१ शाण्डि ३.१२२ शाण्डि ४.१३२ वृ परा ८.२४० अत्रि स १९४ शाण्डि ४.१९ बृ.म. ५.६ वृ.गौ. ४.१२ व २.४.११ भार ५.७ व २.७.९ औ ६.३९ बृ. य. ५.९ बृ.गौ. २२.१० विष्णु २२ वृ.गौ. ८.११२ दक्ष ५.४ विष्णु २९ व २.६.४३० Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ अशौचाश्च सशौचाश्च वृ परा ६.६१ अश्वदानं महादानं अ ४५ अशौंचे सूतके चैव वृ परा १०.२७९ अश्वप्रतिग्रह विधिं च वृ परा १०.३ ४१ अश्नतश्च द्विवरेक लघुयम ९ अश्वेभस्थान वल्मीक वृ परा ११.१४ अश्नीयाद्येन स्पष्टेन् वृ परा ८.२०३ अश्वमेधसहस्रञ्च वृ.गौ. ९.७२ अश्नुते सकलान् कामान् वृ.हा, ७.३३४ अश्वमेधसहस्रस्यं वृ.गौ. ७.४५ अश्मना द्विजनिन्दा शाता ६.१३ अश्वमेधसहस्रस्य वृ.हा ८.३ ४६ अश्मना निहते दद्यात् शाता ६.३८ अश्वमेध सहस्राणि वृ.हा ३.५० अश्मनोऽस्थीनि गोबालां मनु ८.२५० अश्वमेधसहस्राणि वृ.हा ३.२८९ अश्ममयानामलाबु बौधा १.६.४३ अश्वमेध सहस्रात नारद २.१८९ अश्मरारोहणश्चैव व २.४.९६ अश्वमेधावभृक्षेवाऽऽत्मानं बौधा २.१.४ अश्मर्यव्यूढभौ वृ.परा ५.१४८ अश्वमेधावभृतके स्नात्वा औ ८.२७ अश्माशनिरवश्याया बृह ९.७६ अश्वमेधावभृथके बृ.या. ७.१७३ अश्रद्धया च यद् दत्तम् वृगौ ३.१८ अश्वमेधावमृथं व १.११.५८ अश्रद्धा परमः पाप्मा श्रद्धा बोधा १.५.७५ अश्वमेधावृपॅथे वा व १.२३.३४ अश्राद्धेया अपाङ्क्तेया ब्र.या. ७.३८ अश्वमेधे पुरावृत्ते वृ गौ १.१ अश्राव्यं श्राव्यामित्येज्ज्ञानं लोहि ६.१ अश्व रथं हस्तिनं औ सं २५ अश्रुतस्याप्रदानेन दन्तस्य वृ गौ. ७.१२७ अश्वयुक्कृष्णपक्षे वृ.हा ७.३०५ अश्रुतार्थमदृष्टार्थ नारद २.११८ अश्वयोनौ च गमनाद शाता ५.३८ अश्रुपाते तथाचामे औ २.५ अश्वरन मनुष्य स्त्री या ३.२३० अश्रुभि पतितस्तेषां बृहस्पति ३८ अश्वशूकरश्रृंग्यादि शाता ६.१ अश्रोत्रियः पिता यस्य मनु ३.१३६ अश्वस्थानादिमृधुक्ता शाता २.३ अश्रोत्रियं श्रोत्रियेण लोहि ७१५ अश्वे तिनिहते चैत शाता २.४७ अश्रोत्रियश्रोत्रिययोः विवादे कपिल ८१६ अष्टकारहितो मूढःपितृ कपिल १७९ अश्रोत्रियसुतं कारुधृत आंपू ७५७ अष्टका श्राद्धविधि विष्णु ७८ अश्रोत्रिया अनुवाक्या व १.३.१ अष्टकासु च पुण्यासु आं पू ५८४ अश्रोत्रिये वृथादानं व्या २१७ अष्टाकासु च वृद्धो दा ६८ अश्रौतस्मार्तविहितं लघु यम ५९ अष्टाकासु च सर्वासु प्रजा ३० अश्लीक (ल) मेतत्साधूना मनु ४.२०६ अष्टाकासु च सर्वासु प्रजा ३१ अश्वगंधारस पल्या आश्व ३.७ अष्टाकासु तथाष्टम्यां वृ परा ६.३५५ अश्वत्थदशनं देव किं वृ.गौ. १९.२७ अष्टाकासु मृताहेषु कण्व १४४ अश्वत्थमेकपिचुमंदमेकं वृ परा १०.३७९ अष्टकासु यता दर्श आंपू ७३० अश्वत्थं प्लक्षनीपंच वृ.हा ४.११३ अष्टका हायने द्वे च वृ परा ७.२ अश्वत्थाद् वा शमी वृ.हा ५.१२५ अष्टधा कुण्डलीज्ञेय विश्वा १.४० अश्वात्थानाद् गजस्थानाद् या १.२७९ अष्टपादं (अष्टा पद) नवपदं विश्वा.६३ अश्वत्थो य रामीगर्म कात्या ७.१ अष्टमाद् वत्सरात् नारद २.१४७ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २३५ अष्टमीकामभोगेन वृ परा ५.१०१ अष्टापाद्यं तु शूद्रस्य नारद १८.१०९ अष्टमी नवमी चैव चतुर्दशी ब्र.या.८.२९८ अष्टापाद्यं तु शूदस्य मनु ८.३३७ अष्टमी रोहिणीयोगी वृ हा ५.४७३ अष्टाभि कलशैः पूर्व कण्व ६५२ अष्टमी वा एकशाकं ब्र.या.. ४.१६३ अष्टावष्टौ समश्नीयात् मनु ११.२१९ अष्टमे अंशे चतुर्दश्या कात्या १६.५ अष्टावष्टौ समश्यनीयात् वृ परा ९.४ अष्टमे दिनमेकन्तु अत्रि स ८८ अष्टावाज्याहुतीहुर्वा आश्व ४.९ अष्टमे दिवसे चैव कण्व ६९१ अष्टाविंशतिवारं तु वृ हा ३.३८ अष्टमे लोकयात्रा तु दक्ष २.५२ अष्टाविंशतिं वारन्तु वृ हा ४.१२० अष्टम्या चौपवीतञ्च व २.६.१५९ अष्टाविंशति वा शक्त्या वृ हा ५.३३४ अष्टयुगा भवेत् संध्या वृ परा १२.३६५ अष्टाविंशत्प्रभृतिवैयाः आंपू ९३४ अष्टवर्षा भवेद्रौरी बृ.यौ. ३.२१ अष्टोत्तरं सहस्रं वा वृ हा ५.१३१ अष्टवर्षा भवेद्गौरी पराशर ७.६ अष्टोत्तरशतं दर्भाः भार १८.११८ अष्टवर्षा भवेद्गौरी संवर्त ६६ अष्टोत्तरशतं मालामणि भार ७.१६ अष्टशल्यागतौ नीरं अत्रिस ३८८ अष्टोत्तरशतं रूपं मंत्र भार ७.७९ अष्टाक्षरं द्वादर्शा वृ हा २.१२९ अष्टोत्तरशतं नित्यं वृ हा ५.३३५ अष्टाक्षरं नवपदं विश्वा ४.२ अष्टोत्तरशतं पश्चादाज्यं वृ हा २.११५ अष्टाक्षरविधाने वृ.गौ. ८.८७ अष्टोत्तरशतं वारं वृहा. ५.१४४ अष्टाक्षरविधानेन वृ हा ५.२९० अष्टोत्तरशतश्राद्धदिव्य आंपू ४९७ अष्टाक्षरस्य जप्तारं वृ हा ३.१५४ अष्टोत्तरशतानि स्युःश्राद्धा कपिल १५४ अष्टाक्षरस्य मंत्रस्य वृ हा ३.४३ अष्टोत्तरसहस्रन्तु व २.६.४०१ अष्टाक्षराव्यष्टदिक्ष व २.६.२२६ अष्टोत्तरसहलं चेत्सर्व आंपू ८९ अष्टानिकश्चाष्टशतं आष्टशतं ब्र.या. १०.१५२ अष्टोत्तरसहस्रं वा अष्टोत्तर भार १९.३० अष्टाङ्गयोगप्रीति च ४.१६६ अष्टोत्तरसहसं वा वृ हा ३.२७९ स्थली आश्वा २.२० अष्टोत्तर सहस्रं वा वृ हा ३.३८४ अष्टांगुलमुरस्तस्य वृ परा ५.६४ अष्टोत्तरसहसं वा वृ हा ६:३९७ अष्टाङ्गेन तु योगेन बृह ९.३६ अष्टोत्तरसहनं वृ वृ हा ८.२२४ अष्टांगो अष्टादशपदः नारद १.९ अष्टोत्तर सहस्रं व २.७.८४ अष्टाचत्वारिंशद् वर्षाणि बौधा १.२.१ अष्टोत्तर सहस्रंवाह्यष्टो भार ६.९८ अष्टाचत्वारिंशद्वर्षाणि बौधा १.१२.१९ अष्टोत्तरसहस्रन्तु वृ हा ५.१७१ अष्टादश च लक्षाणां ब्र.या. १०.३५ अष्टौ ग्रासा मुनेर्भक्तं व १.६.१८ अष्टादशसहसं तु ऋषी नारा ७.१९ अष्टौ तान्यव्रतधनानि बृ.गौ. १४.८ अष्टादशानां विधानां वृ हा ३.१४ अष्टौ भिक्षा समादाय संवर्त १०३ अष्टानामुदकुम्मानां ब्र.या. ८.१०९ अष्टौ मुंजीत वा ग्रासान वृ-परा १२.११९ अष्टानां मुक्तिपत्राणां लोहि ३१ अष्टौ मासान् यथादित्य मनु ९.३०५ अष्टानां वा चतुण्णा वा कण्व १०३ अष्टौ वर्षाण्युदीक्षेत नारद १३.१०० Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ स्मृति सदर्भ अष्टौ विवाहा बौधा १.११.१ असंख्यानि च पापानि वृ हा ६.३ ४२ अष्टौ विवाहा नारीणां वृ परा ६.२ असंख्या मूर्तयस्तस्य मनु १२.१५ अष्टौ विवाहा वर्णानां नारद १३.३८ असत्त्छास्त्राधिगमन या ३.२४१ अष्टौ वृषणयोईयात् पराशर ५.१७ असच्छास्त्राभिगमनं वृ हा ६.२०२ अष्टौशतानि नवित ब्र.या. १.३० असच्छूदेषु अन्नाद्य बृ.या ३.११ अष्ठांगुल प्रमन्थः __ कात्या ७.५ असतां पतितानां च आपू १३९ अष्ठोत्तरशतं पश्चान् वृ हा २.१११ असत्कथानुसरणमसत्कार्य शाण्डि १.५४ असंयमेन येऽधीता न बृह ११.१६ असत्कार्यरतो धीर या ३.१३८ असंस्कृतप्रमीतानां मनु ३.२४५ असत्कुलप्रसूतानां क्षेत्र कपिल ७९६ असंस्कृतस्तु गोषु वृ हा ६.२३५ असत्क्रियैककर्तारं लोहि ६०६ असंस्कृतस्त्रियां राज्ञि वृ परा ८.२२ असत्स्वन्येषु तद्गामी बौधा १.५.११५ असंस्कृतान् पशून मंत्रैः मनु ५.३६ असत्प्रतिग्रहं स्तेय वृ हा ४.१६६ असंस्कृतामनतिसृष्टां बौधा २.२.२८ असत्य कथनं स्तेयं वृ हा ८.३३३ असंस्कृतायां भूमौ बौधा १.६.२२ असत्य कथनं हिंसां व हा ५.१८३ असंस्कृतासु कन्यायासु व २.६.४३२ असत्यं निहतार्थं च शाण्डि ४.२३२ असंस्कृतास्तु संस्कार्या या २.१२७ असत्यंप्रतिष्ठं च जगदा बृह १२.१४ असंस्कृतेति वै पित्र्ये आश्व २३.९१ असत्याः सत्यसंकाशाः नारद १.६२ असंस्कृतौ न संस्कार्यो कात्या १६.१८ असत् सन्ततयो ज्ञेया वृ हा ४.१ ४९ असंस्पृष्टेन संस्पृष्टः अत्रिस ७४ असत्सु देवरेषु स्त्री नारद १३.४८ असकृत्वानि कर्माणि कात्या ५.१ असत्सु देवरेषु स्त्री वृ परा ७.३६४ असकृद्रमनाच्चैव बृ.य. ४.४४ असद् ब्राह्मणके ग्रामे शुना पराशर ५.९ असकृद् गर्भवासेषु मनु १२.७८ असद्विषयसत्तनामिन्द्रिया शाण्डि १.५६ असकृद्वा सकृद्वापि पुमान् लोहि ५५२ असन्तुष्टे सुखं नास्ति व्या ३७१ असगोत्रमपि प्रेतं आंपू १४९ असंदितानां संदाता मनु ८.३ ४२ असोगत्रमसम्बन्धं वृ परा ८.२८ असीपिण्डं द्विजं प्रेतं मनु ५.१०१ असगोत्रमबन्धुञ्च पराशर ३.४६ असपिण्डं द्विजं प्रेतं व २.६.४५७ असगोत्रस्तु न ग्राह्यो आंपू ३ ४० असपिण्डा च या मातुरस मनु ३.५ असंकराणि योग्यानि औ ८.७ असब्येनाति षऋचा भार ६.१३४ असंकल्पितं च पश्चान्नं व्या १४० असभ्य उपासिने दत्तम् वृ.गौ. ३.२४ असङ्कीर्णञ्च मत्पांत्र वृ.गौ. ६.१७७ असमक्षन्तु दम्पत्योः कात्या २०.१ असंख्यकन्दनि शाद वृ परा ५.१४४ असमर्थस्य बालस्य अंगिरस ३२ असंख्यमासुरं यस्मात् वृ परा ४.४१ असमर्थी नमेत् सद्यो आश्व १०.४५ असंख्याकान्यानन्तानि आंपू १५८ असमानप्रवरगा औ ४.८ असंख्यातं च यज्जप्त वाधू १४१ असमानान् याजयन्ति __ औ ४.२३ असंख्यातं धनं दत्वा वृ परा ८.१०४ असमाप्तं व्रतं यस्य ब्र.या. ८.९४ गाझो Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी असमाप्य वेदो यस्य असम्भवे परेद्युर्वा असंभाष्ये साक्षिभिश्च असंभोज्या ह्यसंयाज्या असम्यक्कारिण्यश्चैव असवर्णेन योगर्भः असवर्णेषु तत्कुर्वन् असव्ययात् पर्व चौर्याद् असह्यांमर्मवचनं आक्षेय असाक्षिकं च यो श्नीयात् असाक्षिकहते चिहै असाक्षिकेषु त्वर्थेषु असाक्षिणो ये निर्दिष्टा असाक्षिप्रत्ययास्त्वन्ये असाक्ष्याति हि शास्त्रेषु असाधारण के मुख्येऽप्य असामर्थ्याच्छरीरस्य असामृषिर्विश्वमित्रः असावर्धोदय योगः असावहम्भो नामेति असावादित्यमन्त्रेण असावादित्यो ब्रह्मेति असावहं मो इति श्रते असिना तीक्ष्णधारेण असिपत्रवनं घोरं प्रसोमयाजित्वेनैवं सौम्यापनकेनस्यु ब्र. या. ८.९३ औ ५.३ मनु ८.५५ मनु ९.२३८ मनु ९.२५९ देवता ५० आंपू ३३८ नारद ९८.७१ शाण्डि १.२० वृ परा ६.८६ या २.२१५ कण्व १६९ कण्व २४९ बौधा १.२.२६ नारा ७.१३ वृ हा ६.१६५ कपिल ४९४ असुतस्यं धनं तत्तु प्रत्या असुराणां वधादूर्ध्व विश्वा ५.४ असुराणां वधार्थाय अर्घ्यकाले विश्वा ५.१८ ब्र. या. ४.१३३ असुराः पितृरूपेण अन्न असुसप्तमपूर्वाः स्युः भार १९.४ असूता मृतपुत्रा वा या असूयारहितैरस्मि असेव्यासेविनो विप्रा मनु ८.१०९ नारद २.१६७ नारद २.१५१ नारद २.१३४ कपिल ४९२ वृ.या. ७.१६२ भार ६.११९ आंपू १८१ औ १.१९ वृ परा ११.३११ शाण्डि ४.२३४ बृ. या ४.६२ कण्व ४८५ भार १५.२४ असौ स्वर्गीय लोकाय अरस्कन्नमव्ययश्चैव अस्तमित आदित्य उदकं अस्तीमिते च स्नानम् अस्तं गते दिनकरे अस्तं गते यदा सूर्य्ये अस्तं गते यदा सूर्ये अस्तंगतो यदा सूर्य अस्त्रप्रयोगकाण्डे काले अस्त्रं वृष्टिरिति प्रोक्तं अस्त्रादीनीश्वरान् अस्त्रान् दीपांश्च सावित्री अस्त्रान् लोके स्वरान् अस्त्राहताश्च धन्वानः अस्त्रैश्च शंख चक्र अस्त्वित्यापि च तद्धस्ते अस्त्वेतत् परिपूर्ण अस्थानोच्छ्वास विच्छेद आस्थिचर्म्मादियुक्तन्तु अस्थिभङ्गा गवां कृत्वा अस्थिभगं गवां कृत्वा अस्थिभंगे तथा श्रृङ्गं अस्थिभेदं गवां कृत्वा अस्थिमतां तु सत्वानां अस्थिमतां त्वेकैकम् अस्थिरत्वाच्छरीरस्य अस्थिसंचयनात् पूर्वं अस्थिस्थूणं स्नायुयुतं अस्थीनि मृत्योर्जुहोमि अस्थ्नामलाभे पर्णानि अस्नातः पुनरानर्हा अप्रस्नातमातुरत्नाने अस्नात्वा चाप्यहुत्त्वा अस्नात्वा नाचरेत् अस्नात्वा भोजनं कुर्याद् २३७ पराशर ५.२२ या १.३१६ बौधा १.४.१३ बौधा २.३.२९ व २.३.१२८ पराशर ७.११ बृ.या. ३.८ यम १८ विश्वा ३.३८ विश्वा ५.९ वृ हा ७.२३० वृ हा ७.१८७ वृ हा ७.१६६ अत्रिस ३७५ वृ हा ५.२९७ आंपू ८८८ वृ परा ७.२०३ कात्या २७.१६ आप २.८ आंउ १०.८ लघुशंख ५० आंउ १०.१० दा ९९ मनु ११.१४१ व १.२१.२९ दा ३४ पराशर १२.२६ मनु ६.७६ व १.२०.३४ कात्या २३.३ शंख ८.२ व्या ३८६ दक्ष ६.८ वृ.या. ७.१२१ वाधू ४९ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ अस्नेहा अपि गोमूधा अस्नेहा यव- गोधूमा अस्पर्शे च मृते कार्य्यं अस्पृश्यं संस्पृशेद्युस्तु अस्पृश्यस्पर्शने चैव अस्पृष्टस्पर्शनं कृत्वा अस्मनः समिधो वापि अस्मन्नामस्य तातेन असमर्थस्य तु प्रोक्तो अस्माच्छतगुणः प्रोक्त अस्मात् प्रदेयं साधुभ्यो अस्मात्त्वामधिजातोऽसी अस्माद् विमोक्षणायैव अस्मान् मानुख्यलोकान् ते अस्मिन् कलौ च विदुषां अस्मिन् धर्मोऽखिलेनोक्तो अस्मिन्यज्ञोपवीतेऽमी अस्मिन्नर्थे न संदेहः अस्मीति चैवं संध्या असंभाष्यः प्रयत्नेन अस्य गोत्रद्वयं ज्ञेयं अस्य गोत्रप्रदत्तोऽयं अस्यधांग्गुलमेतैस्तु अस्यन्ध्यमिति संकल्प्य अस्य पुरुष सूक्तस्य अस्य प्रजापति ऋषि अस्य ब्रह्मा च रुद्रश्च अस्य मन्त्रस्य अस्य वोमेति सूक्तेन अस्य वामेति सूक्तेन अस्यामेति सूक्तेन अस्य वामेति सूक्तेन अस्य वामेति सूक्तेन अस्य संकल्पमात्रेण अस्या अहं बृहत्याश्वपुत्र विश्वा ८.१५ वृ परा ४.१८२ शाता ६.४२ संवर्त १७९ वाधू ४३ औं ९.७८ कण्व ३६२ अस्यां तु तत्त्वाक्षर अस्या वेधः सकर्णायाः अस्यास्तु ब्रह्मविद्यायाः अस्यूतनासिकाभ्यां अस्यैव पुरतो दैवात् अस्रं गमयति प्रेतान् अस्वतंत्रा प्रजाः सर्वाः अस्वतंत्राः स्त्रियः पुत्रा अस्वतंत्राः स्त्रियः अस्वतंत्रा स्त्री पुरुष अस्वस्थानाद्धातस्थाना द अस्वातन्त्र्यं स्वतः स्त्रीणां अस्वातन्त्र्यातु जीवानाम अस्वाधीनानि पात्राणि अस्वामिकमदायादं अस्वामिना कृतो अस्वाम्यनुमताद् अहंकारं पशुं कृत्वा अहंकारस्तथा बुद्धिं अहंकार स्मृतिर्मेधा अहंकारेण मनसा अहतं तद्विजानीयादैवे अहतं वाससां शुचि भार २.५१ औ ५.२५ अहन्यङ्मुको रात्रौ वृ परा १९.२०४ आंपू ७३२ वृ परा ११.२७१ विष्णु म ९२ कात्या २१.१३ वृ हा ४.८ वृ.गौ. ५.६३ वृ परा ४.६३ मनु १. १०७ भार १५.८९ कपिल ९३७ कण्व २४६ आंपू ७६६ लोहि ३३० कण्व ७११ ब्र. या. २.११७ भार ५.२१ वृ हा ३.३४८ वृं परा २.४६ वृ हा ५.१५६ वृ हा ५.१६६ वृ हा ५.३७५ वृ हा ५.४४० वृ हा ६.४२३ विश्वा १.४३ ब्र.या. ८. २८८ अहन्यहनि कर्तव्यं अहन्यहनि ते सर्वे अहन्यहनि दातव्यं अहन्यहनि योऽधीते अहन्यहन्यवेक्षेत* अहन्येकादशे कुर्यान्नाम अहन्येकादशनाम अहन्येकादशे नाम अहन्येकादशे श्राद्धे अहन्येवास्मिस्तास्मिन्वा अहः प्रांत रहर्नक्तं स्मृति सन्दर्भ वृ परा ४.९ वृ परा ५.७१ कण्व १७६ बौधा २.२.८३ लोहि २१७ 200 मनु ३.२३० +2 नारद २.२९ नारद २.३० मनु ९.२ व १.५.१ ब्र.या. १०.१० कपिल ५४३ वृ हा ३.९० लोहि ३७९ नारद ४.१६ यस्तु ८. १९९ नारद ८.३ वृ परा ६.१९३ विष्णु म ६९ या ३.१७४ या ३.१६४ वृ हा ६.१०० बौधा १.६.५ वृ हा ४.१४ लं व्यास १.९ ब्र. या. ६.१३ अत्रि स४० संवर्त २१८ मनु ८.४१९ आश्व ६.१ ब्र. या. ८.५ या १.१२ वृ परा ७.३३४ वृ परा ७ २०८ व १.२३.३७ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २३९ अहं एवं क्रमेण वक्ष्यामि भार १९.५ अहुत्वा च द्विजोऽश्नीयाद् वृ परा ४.१५८ अहमद्यैव तद्धर्मः पराशर १.३५ अहूयमानेऽश्नंश्चेन्नयेत कात्या १८.८ अहमश्वत्थरूपेण पालयामि ब्र.गौ.१९.२८ अहृताभ्युद्यातां भिक्षा मनु ४.२ ४८ अहमस्मै ददामीति कात्या १५.५ अहो धर्मार्जिताशव अहमाहवनीयोऽग्नि बृ.गौ.१५.३३ अहोमिर्गुणितैर्यत्स्यात् वृ परा ७.१०४ अहमेवं न जानामि अत्रि ५.१५ अहोमकेष्वपि भवेद् . कात्या ९.७ अंहः कुक्कुटिकानां वृ परा ५.१४५ अहोरात्रकृतात् पापात् शंख १२.१८ अहं तु परमेत्युत्तनस्त्रि बृ.या, ७.१७६ अहोरात्र कृतं ह्ये बृह १०.८ अहं दुष्कृतकर्मा वै पराशर १२.६० अहोरात्रं पिशाचैश्च बृ.गौ.१०.६५ अहं प्रजाः सिसृक्षस्तु - मनु १.३४ अहोरात्रयोश्च संध्यो बौधा १.१.३७ अहं भावं स्वकीयत्वं ___ लोहि ५८८ अहोरात्रेक्षणो दिव्यो विष्णु १.४ अहं भवेति सूक्तेन वृ हा ७.२१६ अहोरात्रेण द्वादश्यां बृ.गौ. १८.१९ अहं सङ्कल्प कुरुते ब्र.या. ५.१६ अहोरात्रेण शुद्धयेत । औ ९.५९ अहं सहस्रशीर्षस्त वृ.गौ. .१.५७ अहोरात्रे विभजते सूर्यो मनु १.६५ अहं संक्रमणे पुण्यमहः आंपू ६४२ अहोरात्रोषितो भूत्वा अत्रिस १८० अहंस्त्वदत्तकन्यासु ___दा ११८ अहोरात्रोषिता भूत्वा अत्रिस १८८ अहस्त्व दत्तकन्याया लघुशंख ६५ अहोरात्रोषितो भूत्वा औ ९.५ अहस्त्वदत्तकन्यासु ___ या ३.२४ अह्ना चापि संधीयते बौधा २.४.२९ अहा त्केवलवेदस्तु ब्र.या.१३.२१ अना चकन रात्र्या च मनु ५.६४ अहार्य ब्राह्मद्रव्यं राज्ञा मनु ९.१८९ अह्ना रात्र्या च मान् बृ.मा. ८.३१ अहिंसयेन्द्रियासंगैः मनु ६.७५ अह्ना रात्र्या च यां मनु ६.६९ अहिंसयैव भूतानां कार्य मनु २.१५९ अह्नो मासस्य षण्णां या ३.४७ अहिंसा वैदिक कर्म ब्रह्म बृ.गौ. १५.७४ अहिंसासत्यनिरतः बृ.गौ. १७.१७ आ (अ) प्राणाच्छून्यभूतं बृह ९.७ अहिंसा सत्यमस्तेयं बृ.गौ. ७.१५९ आकण्ठजलसम्मग्नः नास ९.५ अहिसा सत्यमस्तेयं मनु १०.६३ आकण्ठसम्मिते कूपे पराशर १०.१९ अहिंसा सत्यम्सतेयं या १.१२२ आकर शुल्क तरनाग विष्णु ३ अहिंसा सत्यवादश्च पु.२२ आकराः शुचयः सर्वे बौधा १.५.५८ अहिंसोपरता नित्यं औ ४.७ आकराहतवस्तूनि नाशुचीनि अत्रिस २३९ अहिंस्युपपद्यते स्वर्गम् व १.२९.३ आकर्ण्य वचनन्तेषां ब्र.या. ३.१८ अहिताग्निस्तु यो विप्रो अत्रिस २५२ आकर्षणादि षट्कर्म वृ हा ६.१७५ अहिताग्ने विनीतस्य व १.२५.२ आकल्पकोटि पितरः वृ हा ८.३२२ अहीनां क्रतवश्चापि लोहि १०४ आकारत्रयसम्पन्नो वृ हा ६.१४५ अतं च हुतं चैव तथा ..मनु ३.७३ आकारितैर्गत्या मनु ८.२६ अहुताशी कृमि मुङ्क्ते वाधू ७६ आकाशमेक हि यथा या ३.१४४ आ Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० आकाशं पञ्चशतकं आकाशल्लाघवं सौक्ष्मयं आकाशं वायुरग्निश्च आकाशातुविकुर्वाणात् आकाशे च क्षिपेद्वारि आकाशेशास्तु विज्ञेया आकृष्णेन इमं देवा आकृष्णेन च तीव्रांशो आकृष्णेन तु सायाह्ने आकृष्णेन द्वितीयार्ध्य आकृष्णेनेति मंत्रे आकृष्य दक्षिणे भागे आकृष्य धारयेद्देव आकृष्य ब्राह्मणो विश्वा ६.१९ या ३.७६ पराशर १०.४१ मनु १.७६ लघुयम ९४ मनु ४.१८४ या १.३०० वृ परा ११.६५ ब्र.या. २.७५ आश्व १.४२ वृ परा ११.३१५ विश्वा ९.६५ विश्वा ६.२३ बृ.गौ. १४.४० आक्रम्योत्तरस्यान्तु आक्रान्ता दर्भ सूच्योऽपि आक्राशपरिवादाभ्याम् आक्रुष्य उससि पादेन आक्षिप्तमोघबीजौ च आक्षिप्यमाणा हि अवशा आखण्डलधनुश्चैव आख्याता शुद्धिरेषाऽत्र आख्याय भूभृते वापि आगच्छन्तिति तां आगच्छन्तु महाभागा आगन्छन्त महाभागा आगतं दूरतः शान्तं आगातान् सर्वदेवांश्च आगतायै भिक्षुकायै करमात्र आगतेषु च भक्तेषु आगत्य देवि तिष्ठं त्वं आगत्य न्यासकल्पे तुनैत आगमः प्रथमः कार्यो आगमं निर्गमं श्तानं आगमस्तु कृतो येन व २.४.५५ वृ परा १२.४२ वृ.गौ. ४.४४ वृ.गौ. ४.४५ नारद १३.१६ वृ. गौ. ५.३५ ब्र.या. ८.१३६ शाण्डि १.६० वृ परा ८.२६९ आंपू ७९९ मनु ८.४०१ या २.२८ आगमेन विना पूर्व भुक्तं आगमेन विशुद्धेन आगमेनोपभोगेन नष्टं आगमेषु पुराणेषु आगमोकतेन मंत्रेण आआगमोऽभ्यधिको भोगाद् आगर्भसम्भवाद् गच्छेत् आगस्सु ब्राह्मणस्यैव आगारदाही कुण्डाशी आगरादभिनिष्क्रान्तः आग्नेयप्रवणे रेखां आग्नेयं ब्राह्मभेदो आग्नेयं भस्मना आग्नेयं भस्मना आग्नेयाद्येऽथ सार्पाद्य आग्रयणं चातुर्मास्यं आग्रहायण्यमावास्या आधारान्तं ततः कुर्याद् आधारान्तं ततः कुर्याद् आघारावाज्यभागौ च तथा आप्रातं शकुनाद्यैश्च आचक्षाणस्तु तद्धर्म आचक्ष्व विश्वेरेण आचतुर्थाद्भवेत्सावः आ चतुर्थाद् भवेत् नावः लिखित ५० आचतुर्थे तु सम्पूर्ण वि आश्व २३.२१ व्यास ३.३७ ब्र. या. १०.१३५ कपिल ९५३ आ चतुर्विशाद्वैश्यस्य आचमेन मधुपर्कोऽयं शाण्डि ३.१३२ विश्वा ५.४४ कपिल १५२ आचम्य गृहमागत्य आचम्य च ततः पश्चाद् आचम्य च पुराप्रोक्तं आचम्य तर्पयेद्देवान् नारद १.३० आचम्य तु ततः शुद्धः आचम्य देवतामिष्टां आचम्य धारयेद् स्मृति सन्दर्भ नारद २.८१ या २.३० या २.१७४ भार ७.१२.३ ब्र. या. २.११५ या २.२७ या १.६९ मनु ९.२४१ औ ४.२९ मनु ६.४१ आश्व २३.७३ भार १८.८३ पराशर १२.१० ल व्यास १.१२ कात्या २५.१० कण्व ३३० कात्या १६.६ आश्व ९.६ आश्व १५.३७ ब्र. या. ८.३३८ व. ६.३२ वृ परा ६.२६३ व २.२.२ दा १२८ पराशर ३.१८ ब्र. या. ८. २४१ व १.११.५३ आश्व १५.९ आश्व २३.१५ शंख १०.१८ शंख १०.१६ वृ हा ४.३२ ब्र. या. २.१९१ ल हा ४.६७ वृ हा ८.८५ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्नुस्मयी २४१ आषम्य पाव्य चात्मानं बृ.या. ७.५१ आचान्तः पुन आचमेन ल व्यास २.१७ आचम्य पुनरुत्थाने शाण्डि ४.१८७ आचान्तः पुनराचामेद् व्या ५२ आचम्य पूजयेद् देवं वृ हा ५.४४९ आचान्तः पुनराचामेन ब.या.७.४९ आचम्य पूर्ववत्पश्चात व २.६.२७ आचान्तः पूजयेत्पश्चात् व २.६.३९२ आचम्य पूर्ववत् पूजा व हा ५.१३५ आचान्तस्य शचि वृ हा ४.४२ आचम्यं प्रथमं पश्चात् वृ.गौ. ८.३१ आचान्ताननुजानी औ ५.६९ आचम्य प्रयतो नित्य मनु २.२२२ आचान्तोऽक्रोधनो औ ३.१०० आचम्य प्रयतो नित्यं मनु ५.८६ आचान्तोऽप्यशचि आप १०.१ आचम्य प्रयतो नियतं ल व्यास १.१६ आचान्तोऽप्याचमेत औ २.६ आचम्य प्रयतो भूत्वा बृ.या.७.१५० आचान्तोष्यशुचिस्तावत् व्या १८० आचम्य प्राणसंरोधं वृ परा २.३६ आचामेद् ब्राह्मतीर्थेन संवर्त १६ आचम्य ब्राह्मणः पश्चात् वृ परा ७.३१७ आचारदोषं देवेश वृ.गौ.४.४ आचम्य मार्जनं कुर्यात् वृ हा ४.२९ आचारः परमोधर्मः मनु १.१०८ आचम्य वारिणा पश्चात् व हा ८.७३ आचारः परमो धर्मः आचम्य वारुणं जाप्यं आश्व १.१८ आचारमूलं श्रुतिशास्त्र वृ परा ६.३७७ आचम्य विधिवत्कर्मकृतं भार ४.२ आचारं चैव सर्वेषां व्या ९ आचम्य विधिवद् वृ परा २.३८ आचारं मंगलोपेतं संक्षेपा शाण्डि १.१० आचम्य सन्नियम्याऽथ भार १६.५२ आचाररहिता ये च ब.या. १३.२८ आचम्य संयतो नित्यं औ ३.३८ आचारवकतान्तरगात्र बृ.गौ. २०.२४ आचम्य सुमनाः सम्यक् भार १८.२५ आचावन्तो मनुजा वृ परा ६.२०८ आआचम्यान्यादिसलिलं या ३.१३ आचारवृक्षस्य फलं व परा ६.३७८ आचम्यांगुष्ठमात्रेण ल व्यास २.७५ । आचारहीनः क्लीवश्च मनु ३.१६५ आचम्यांगुष्ठामानीयं औ ३.१०७ आचारहीन नरदेह व परा ६.२११ आचम्यातः परं मौनी व हा ४.२४ आचाररहीनं न पनन्ति ब्र.या. १.४३ आचम्याथ द्विज आश्व १.१६ आचारहीनं न पुनन्ति व १.६.३ आचम्याथ वटुः गच्चेत आश्व १०.१२ आचारहीनस्य तु ब्राह्मणस्य व १.६.४ आचम्याथ हरेन्मृत्स्ना व परा २.१२९ आचारहीनो वा मुनिप्रवीर विष्णु म १०४ आचम्यैव तुमुंजीत __ संवर्त १३ आचारात् फलते धर्म व १.६.७ आचम्योदक्परावृत्य मनु ३.२१७ आचाराद्विच्युतो विप्रो मनु १.१०९ आचरहीनं न पुनन्ति बृह ११.२० आचारायाश्च योषित व १.५.१५ आचरेत् त्रीणि कृच्छ्राणि औ ९.६३ आचारल्लभते बायु मनु ४.१५६ आचरेत्त्रीणि कृच्छ्राणि यम ४९ आचारेण सदा विद्वान् वृ परा ६.३७६ आचरेद् विधिवत आश्व २४.३० आचारो द्विविधः प्रोक्तः विश्वा १.३२ आचरेयुः परंधर्म वृ ता ५.३०६ आचार्य कर्तव्यता वर्णनम् विष्णु २९ आ चात्वालादाबवनीयोत बौधा १.७.१५ आचार्यत्वं श्रोत्रियत्वं न त.या.१०.९ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ आचार्यत्वं श्रोत्रियश्च आचार्यत्समनुप्राप्तं आचार्यपुत्रशिष्य आचार्यपुत्रः शुश्रूषुज्ञीनदो आचार्यः पूजयेद् विष्णु आचार्यः प्रामुख आचार्य मातृपितृहंतारः आचार्य मृत्विजश्चपि आचार्य गणनाथं च आचार्य च प्रवक्तारं आचार्य देवभक्तं च आचार्यं स्वमुपाध्यायं आचार्य शिक्षयेदेनं आचार्यश्च पिता चैव आचार्यश्छेदयेतान आचार्यस्तत्रकर्तव्यः आचार्यस्तु वदेमंत्र आचार्यस्त्वस्य या जातिं आचार्य स्नातकादीनां आचार्यस्य पितुश्चैव आचार्यस्याञ्जलौ आचार्यादीन् समभ्यर्च्य आचार्यानी मातुलानी आचार्यापित्रुपाध्यान्नि आचार्यश्च पितॄंश्चैव आचार्य च ते दद्याद् आचार्य विष्णुं अभ्यर्च्य आचार्याश्चैव गन्धर्वा आचार्यस्तु पिता प्रोक्तः आचार्येणात्र मंत्रोऽयं आचार्ये तु खलु प्रेते आचार्ये प्रमीतेऽग्नि आचार्यैर्गुरुभि सद्भिः आचार्योपाध्याय तत् आचार्योपासाग्नी वा आचार्यो ब्रह्मणो मूर्ति आचार्यों ब्रह्मलोकेशो आचार्य्यपत्नी स्वसुतां आचार्येणाभ्यनुज्ञात आचार्यो दीक्षितो नाम्ना आचार्योपासनं वेदशास्त्र आचूडाकरणात् सद्यः आचूडाकरणाद्द्द्बाल अच्छादनं भक्तेस्यं आच्छाद्य चार्चयित्वा आच्छाद्य धौतवसनं आच्छाद्य वस्त्रमन्यच्च अच्छिन्नेवातनिना आज वातदलाभे तु वृ परा ११.२११ आजानुतः स्नानमात्र आजानुपादपर्यन्तं मन्त्र आजानु स्नानमात्रं मनु २.१४८ आजीवन् स्वेच्छया व २.३.६७ आम्व १५.४ शाण्डि ४.६६ आश्व १०.१६ आव ३.१७ आज्यपाश्च तथा वत्स आज्यं तेनैव होतव्य आज्यं श्रीभूमि सुक्ताभ्यां आज्यं संस्कारपर्य्यन्तं आज्यं हव्यमनोदेशे आज्यं हुत्वा ततश्चक्र आज्यसंस्कारणं कृत्वा आज्यसंस्कारपर्यन्तं या १.२७६ वृ हा ८.२५५ व १.२०.१७ मनु २.१०९ वृ हा ८.२४२ आश्व १०.१४ व १.१५.१५ वृ हा ५.१५१ भार १६.३ मनु ४.१६२ शाण्डि २.८७ मनु ५.९१ नारद ६.१६ मनु २.२२५ आश्व ९.१२ प्रजा ५८ या ३.१५ बृ.या. ७.८२ आव १०.६० वृ हा ८.२२६ ब्र.या. २.९३ शंख १.७ आश्व ६.५ मनु २.२४७ व १.७.५ आंपू १०८६ बौधा १.५.१३३ वृ हा ७.२४८ आज्यसंस्कार पर्यन्त आज्यस्थाली च कर्तव्या आज्यस्थाल्याः प्रमाणं आज्यस्यैकपलं दद्याद् आज्यहोमश्चशलली आज्यहोमी सहस्रन्तु आज्याहुतिना संस्कृत्य आज्येन चरुणा वापि आज्येन चरुमावाऽपि स्मृति सन्दर्भ मनु २.२२६ मनु ४.१८२ या ३.२३३ व २.३.७६ औ १.४४ या ३.१५६ दा ११७ दा १३० बृ.गौ. १६.३१ मनु ३.२७ व २.३.१०६ शाण्डि ३.१३६ त २.४.५२ वाघू १५० लिखित ८८ विश्वा ९.७३ लघुशंख ४८ या २.६८ वृ परा ७.१६८ व २.७.११० वृ हा ६.२२ व २.४.२९ कात्या ८.१६ वृ हा ८.२२८ व २.६.३३१ आश्व १०.९ आश्व १२.६ कात्या १५.१० कात्या १५.११ पराशर ११.३० आश्व ४.१८ वृ हा ३.१९८ ब्र. या. ८. ३४६ वृ हा ३.१४९ वृ ४.१३४ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लेवामी २४३ आग्येन चरुणा वाऽपि वृ हा ५.१५३ आत्मगुप्ता स्वामिभक्ता दक्ष ४.४ आज्येन चरुणावाऽपि व हा ६.६८ आत्मचिन्ताविनोदेन दक्ष ७.७ आज्येन जुहुयादग्नौ आत्मजत्वं दत्तपुत्रे लोहि ८७ आज्येन मूलमंत्रण वृहा २.१४ आत्मज्ञः शौचवान् या ३.१३७ आज्येन वा तिलैर्वाऽपि व हा ७.२०० आत्मज्ञाननिमित्त तु बृह १२.३५ आज्येन वैष्णवैः मंत्रै वहा ५.५३२ आत्मज्ञानं परं यच्च बृ.या. १.७ आज्येनैवतुहोतव्यं व २.६.४०९ आत्मज्ञानं हि यो वेत्ति बृह ११.४ आज्ञातिक्रमणाद् विष्णो वृ हा ८.३२८ आत्मज्ञाने बहूपाया वृ परा १२.२९९ आज्ञातिक्रमणादिवज्ञः वृ हा १६० आत्मतीर्थमिदं ख्यातं ल व्यास १.१४ आज्ञातेजः पार्थिवानां नारद १८.१९ आत्मतुस्वं सुवर्ण व परा १०.२०२ आज्ञानृपाणां परमं वृ परा १२.९४ आत्मतुल्यसुवर्ण व हा ६.२८१ आज्ञासम्पादिनी दक्षा या १.७६ ।। आत्मत्राणे वर्णसंकरे व १.३.२६ आढंकप्रमिता श्रेष्ठा भार १४.४८ आत्मदत्तेषु दानेषु ब्र.या. १२.१४ आढक्यः सितसिद्धार्थ वृ परा ७.२२० आत्मनः सर्वयत्नेन __ औ १.३४ आढक्यः सितसिद्धार्थ वृ परा ७.२२१ आत्मनश्च परित्राणे मनु ८.३१ आढयो वापि दरिदोवा कपिल २१८ आत्मनश्च स्वरूप वृ हा ३.८५ आवतायिनमायान्तं व १.३.२० आत्मनश्चैव शुद्ध्यर्थं आश्व २३.६ आततायिन मायान्तं वृ हा ६.३३७ आत्मना जायते हात्मा वृ परा ६.१८३ आततायिनं हत्वा व १.३.१६ आत्मनात्मनि संयोज्य विष्णु म ७९ आतपे यदि पूत्रस्य कण्व ६४६ आत्मनो ब्राह्मणानां आंपू ८४९ आतये सति या वृष्टि व परा २.८७ आत्मनो यदि वान्येषां आंउ ११.८ आतर्पणं विधानेन आं पू २९ आत्मनो यदि दान्येषां पराशर .४० आतारकोदयात् स्थित्वा व २.४.२७ आत्मनो यदि वाऽन्येषां मनु ११.११५ आतिथ्यं सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा ४.१९४ आत्मनो वा परस्यापि लिखित १३ आतिश्य (प्रशनस) करणार्थ नारा ७.३ आत्मन्यग्नि समोरोप्य वृता ८.२१५ आतुरस्य औषधैः कार्यम् वृ.गौ. ३.५१ आत्मन्यशुचि देशे वृ परा ६.३६२ मातुरामभिशस्तां वा आंउ ११.६ आत्मबुद्धीन्द्रियं पश्येद् विष्णु म ७८ आतुरामभिशस्ता वा मनु ११.११३ आत्मब्रह्मासनार्थ च। मार १८.११९ आतुरे स्नानमुत्पन्ने दा १५३ आत्मभावविहीनस्स्यादतः नारा ३.७ आतुरे स्नानमुत्पन्ने पराशर ७.२० आत्ममातामही पत्नी व्या १६९ आतुरे स्नानसम्प्राप्ते यम ५३ आत्मलामसुखं यावत् ल हा ७.८ आनुरो दुखितो वाऽपि वृ.गौ. १४.४ आत्मविक्रयिणो ये च वृ.गौ. १.६ मातून वृत्रहं व परा ११.३३९ आत्मविभः निराहारैः व परा ११.३०० भारतीयात् तथा वर्षात् नारद २.१४८ आत्मशक्ति शिवश्चेति व परा १२.३०८ मात प्रागावं मशः ब.या. ११.६४ आत्माश्य्या च वस्त्रया आप २.४ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ आत्मश्य्याऽऽसनं वस्त्र आत्मस्त्रीहयात्मबालश्च आत्मस्थं वैदिकाग्नि आत्महननाध्यवसाये व १.२३.१६ आत्मा नदी भारत पुण्यतीर्थं बृ. गौ२०.२३ आत्मानं घातयेद्यस्तु आत्मानं घातयेद्यस्तु आत्मानं देहमीशञ्च आत्मानं परमात्मानं आत्मानं पातयेद्धोरे आत्मानं भूषयेन्नित्यं आत्मानं वहिरन्तस्थं आत्मानं शिरसि स्थाप्य आत्मानं शोधयित्वा आत्मानं समलंकृत्य आत्मानं हिततो बौधा १.५.६१ वृ परा ८.३०४ लोहि १५० आत्मान्यकायं स्पृश्येन्न आत्मान्ययोः समान आत्मार्थं च क्रियारम्भो आत्मार्थेऽन्यो न शक्नोति आत्मा विवाहिताये न आत्मा संछादितो देवै आत्मा हि शुक्रमुद्दिषृम् आत्मीये संस्थितो धर्मे आत्मैव देवताः सर्वाः आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी आत्यन्तिक फल प्रद आत्रञ्च नालिकाशाकं आत्रिपक्षात् त्रिरात्र आत्रिपक्षात्त्रियरात्र आत्रिपूर्वं ततस्त्वेवं तत्कूले आत्रिपूर्वं तत्सुतस्य तेन आत्रिमासात् त्रिरात्र आत्रेया विष्णु सम्वर्ता आत्रेय समो अत्रिस २१७ लघु यम २० बृह १२.१३ ल हा ७.६ व २.६.४५ अ १० वृ हा ८.८७ कण्व ७६५ आंपू २२७ वृ परा १२.१३४ या ३.२३९ दक्ष २.३३ वृ हा ४.२ भार ६.१२९ आंपू ७१ ब्र. या. ८.१८० बृ. या. १.४० वृ.गौ. ४.१५ अत्रिस १८ मनु १२.११९ मनु ८.८४ व १.२९.२१ वृ हा ४.११० पराशर ३.१५ ब्र. या. १३.६ कपिल ११२ कपिल ४२२ दा १४३ वृ परा १.१५ व १.२०.४२ आत्रेय्या वधः दात्रिय आ दत्त जनात्सद्यो आददीत न शूद्रोपि आददीताथ षड्भागं आददीताथ षड्भागं आ दन्तजननात सद्य आ दन्तजननाद्वापि स्मृति सन्दर्भ बौधा १.१०.२७ ब. या. १३.८ मनु ९.९८ मनु ३.१३१ मनु ८.३३ पराशर ३.२२ बौधा १.५.११० औ ६.१३ दा ११६ आदन्तजन्मनः सद्य आदन्त जन्मनः सद्यः आदन्तजन्मनः सद्य आदन्तजन्मनः सद्य आदन्तजातमरणं मनु ७.२०४ मनु ११.१५ आदानमप्रियंकरं दानं आदाननित्याच्चादातुरा आदानात् सर्वभूतानां आदाय कलशं शुद्ध आदाय चापं च आदाय तुलसी त्यक्तो आदायं भांडसलिलं आदाय सर्व उच्छिष्ट बृह ९.९० वृ हा ५.६० वृ परा १२.२७५ शाण्डि ४.१६४ भार १९.२८ वृ परा ७.३२७ आदायाssaौ कुशास्त्री स्त्रीन् आश्व २.२२ आदावन्ते च कुर्वीत आदावन्ते च गायत्र्या बृ.या. ७.२६ आदावन्त्ये च पाद्ये च आदावारभ्य आशौचं आदावेकां गतिं कृत्वा आदावेव तु चोड्कार आदृत्येमृत्तिकां कुर्यात् आदिकेऽपि तयोरेकं पिंडं आदित्यदुहिता धेनुः आदित्यमण्डलान्तस्थं आदित्यमण्डलान्तस्था आदित्य मण्डलान्तस्य आदित्यमण्डले देवं आदित्यमुदितं पश्येन्नत्वा या ३.२३ लघुशंख ६४ औ ६.१७ वाधू १३५ आंपू ७८२ दा १२३ लोहि १४८ वृ परा ४.४५ औ २.४२ कपिल १०५ ब्र.या. ११.२० व २.३.११५ बृ.या. ४.२८ व. २.३.६१ वृ परा ४.१४० आम्प १.५१ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ आदित्यमुपतिष्ठेतु ब्र.या. ८.११४ आधकाण्डाष्टमः प्रश्नः कण्व ५३४ आदित्यं तत्र संस्थाप्य ब्र.या. १०.५२ आद्यन्तयोा हतीनां भार १९.२६ आदित्य रक्षणार्थ तु ब्र.या. ६.६ आधन्त रक्षितांकुर्यादिति वृ परा ४.४० आदित्य सदृशाकारः वृ.गौ. ५.९४ आद्यन्तौ प्रणवौ मंत्री आश्व १.७९ आदित्यस्य सदा पूजा या १.२९४ आधन्त्यावेव संत्याज्यौ कपिल ७५७ आदित्याज्जायते वृष्टि कण्व ३३२ आघ तं प्रणवं विद्वान् वृ परा १२.२६४ आदित्यनलविप्राग्नि भार ३.११ आज तु सर्वदानानां अ १०१ आदित्यान्तर्गतं भर्गः वृह ९.५७ आघवत्यक्षरं ब्रह्म वृह ११.२७ आदित्याय ततः स्नायादन्नं बृ.गौ.१६.११ आध यत् त्र्यक्षरं ब्रह्म मनु ११.२६६ आदित्या वसवो रुदा शाता २.११ आध यदक्षर ब्रह्मा बृ.या. २.१ आदित्ये वैव हृदये वृह ९.१५७ आधसंगी समो दोषी वृ परा ८.३०७ आदित्येतन्महः साक्षात् भार ६.८० आधस्प्रष्टु भवेत्स्नानं वृ परा ८.३०८ आदित्येन सह प्रातर्मन्देहा ल हा ४.१३ आ द्वाविंशात् क्षत्रियस्य व १.११.५२ आदित्येऽस्तमिते आश्व १.१८३ आधा आधस्य षट् वृ परा ६.१२ आदित्येऽस्तमिते रात्रा अत्रिस २४५ आदयाग्नौ वा द्वितोयाग्नौ लोहि ६ आदित्येऽस्तमिते रात्री अत्रिस २४६ आधादाधन्तयोरादाँ शाण्डि ४.१४ आदित्ये हृदये चैव वृह ९.१५६ आधाधस्य गुणं त्वेषाम् . मनु १.२. मादित्यो ब्रह्मा इत्येत वृह ९.१५८ आधानुवाके रुद्राणां वृ परा ११.१८५ आदित्यो वरुणोविष्णुः अत्रि स ३३५ आधान्त्यावेव संत्याज्यौ लोहि २६६ आदिप्रयत्नं प्रथम बृ.या. ८.१६ आधा परतरा सूक्ष्मा. वृ.या. २... मादिमध्य अवसानेषु शंख २.१२ आधास्तिम्रो महाप्रोक्ता व परा २.९॥ आदिमध्यावसानेषु कपिल २४० आधास्तु व्याहृतीस्तिस्रो वृ.या. २.१५ मादिमध्यावसानेषु कपिल २४२ आधास्ववो द्विजाः प्रोक्ता वृहा ४.१॥ आदिमध्यावसानेषु या १.३० आ वेदेव ब २.६.१५७ मादिशेत् प्रथमे पिण्डे बैंधा २.१९ आयोज्य बनं त्त्वा नारद ६... आदिष्टी नोदकं कुर्यादा मनु ५.८८ आ पूर्वपक्षस्य नारद २.११ मादेहपातं वनगो ल हा ५.९ आमानकाला ये प्रोक्ता कात्या ६.१ आदेहपातात्तद्धित्त्वा शाण्डि ४.५ आधानतो द्वितीये तु वृ परा ६.१८ आदी कुम्भकमाश्रित्य विश्वा ३.६ आधानादति शुद्धा शाण्डि १.८९ मादी देवता ऋषिच्छन्दः शंख १२.७ आषानादष्टमे वर्षे व २.३... आदौ प्रतिवसन्तस्य वसन्ते कपिल ९७३ आघानादिकंसंस्कराः वृ परा ६.२०२ मादौ यः सर्ववेदानां भार ६.३७ आघाने पुंसि सीमन्ते आश्व १८.१ मादी वहिमुखे दत्त विश्वा ८.७३ आधाने होमयोश्चैव कास्था ५.२ मादी प्रीतं तथा चामे विश्वा २.५४ आधारकालचक्राय लाग्मं कमोक्त भार ६.९ आधारबाज्य भागौ च Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ स्मृति सदर्भ आधाराख्यं च संप्रोक्तं विश्वा ६.४ आपत्स्वपि हि कष्टासु नारद ५.५ आधारावाज्यभागौच व २.२.१६ आपत्स्वपिहि कष्टासु प.स. १२.५ आधिक्यं तत्प्रकथितं आंपू ९३९ आपत्स्वापि हि देया ह.या. १२.९ आधि प्रणश्येद द्विगुणे ___ या २.५९ आपत्स्वपिहियदन्तं ब्र.या. १२.६ आधिों द्विविधः प्रोक्तः नारद २.११६ आपद्गतः सम्प्रगृहन् या ३.१ आधिश्चोपनिधिश्चोभी मनु ८.१४५ आपद्गतो द्विजो वृ परा ८.१२७ आधि सीमा बालधनं नारद २.७३ आपद्गतोऽथवा वृद्धा मन ९.२८३ आधि सीमा बालधनं मनु ८.१४९ आपद् बन्धुः सदा मित्र वृहा ३.९९ आधि सीमा बालधनो व १.१६.१६ आपदं निस्तरेदेश्यः नारद २.९५ आधिसीमोपनिक्षेप या २.२५ आपदं ब्राह्मणस्ती. नारद २.५५ आधेः स्वीकरणात् या २.६१ आपद्यते स्थाणु गर्ने वृ परा २.५. आध्यात्मिकी तथा व २.६.१४८ आपद्यपि न कर्तव्या शंख ४.९ आध्यादीनां हि हत्तारं या २.२६ आपद्यपि न गृहीत व २.३.१२० आनखाच्छोधयेत्पापं व्या ३५४ आपद्यपि न याचेत ज्ञाति शाण्डि ३.२१ आनन्दश्च तथा प्रश बृ.या. २.९४ आपदर्थ धनं रक्षेदारान् मनु १.२१५ आनन्दसागरे मग्ना आंपू ५५८ आपन्निवारकस्सोयं कपिल ७१० आ नाभेः बौधा १.५.६ आपन्निवारकस्सोऽवं लोहि २२ आनीतमम्मो निशियत् वृ परा ७.२३४ आपन्नो येन वा धर्मों आंठ ५.१४ आनीतं तु शरं दृष्ट्वा नारद १९.२९ आपः पवित्रा भूमिगता बौधा १,५.६५ आनीय विप्रसर्वस्वं या ३.२४५ आपः पुण्याः समादायः वृ.या .७.१८२ आनुलोम्येन वर्णानां नारद १३.१०५ आपः पुनन्त्वित्युक्ता वृ.गौ. ८... आमुष्टभस्य सूक्तस्य वृ परा ४.१२२ आपः पुनन्तु पृथिवी व २.५.१६ आनृशंस्यं समा सत्यं अत्रि स ४८ आपः पुनन्तु मध्याह्ने आश्व १.५ आन्तं समन्त्रकं नित्यं लोहि २७ आपः पुनत्विच्येतस्थ भार ६.१३२ आन्तरं शुध्यति १.या. ७.१८५ आपयित्वा उमेषजीरीति वश ८.२४ आप इत्यादिभि पादः आश्व १.३५ आपः शुद्धा भूमिगता मनु ५.१२८ आपः करनखैः स्पृष्ट्वा व्या ५४ आपस्तम्बकृताधर्माः . वृ गो. १.२१ आरः कृष्णतिलदंद्यान् - व्या ९७ आपस्तम्बं प्रवक्ष्यामि । आप ... आपत्कल्पेन यो धर्म मनु ११.२८ आपस्तम्बकृता धर्माः वृ परा १.१६ मापत्कल्पोक्तमर्यादाः लोहि ३८६ आपस्तम्बस्य तन्नेष्ट वाधू १० आपत्काले तु विप्रेण आप ८.२० आपस्ते मस्तु दौर्भाग्यं व परा १९.१. मापत्काले तु विप्रेण पराशर ११.१९ आपिण्डदानतो दद्यात् खपरा .२५. भापत्काले तु सम्प्राप्ते व २.४.९३ आपिठान्मैलिपर्यन्तं शाण्डि २.८ आपत्स्वनन्तरा वृत्ति नारद २.५२ आपूर्य निश्चलीकृत्य व पा १२.२१४ ग्रामस्थानदेयानि दक्ष ...८ आपो अस्मानिदमा म .. Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी आपो जनयथानेन आपोज्योतीरसोमृतं आयोज्योतीरसो आपो देवगणाः प्रोक्ता आपो देवीति नवभि आपो नरा इति प्रोक्ता आपो मूत्रपुराषाद्यै आप मूलं हि सर्वस्य आपोयम्बः प्रथममिति आपोवाईतमित्यादि आपो वायिदमित्यस्य भार १७.१३ आपोशान क्रियापूर्वमग्नौ ब्र.या. २.१७२ व्यास ३.६८ व्या २४९ व्या २४८ वृ परा ७.२५७ वृ परा ६.९७५ या १.१०६ आपोशानक्रियापूर्व आपोशानं करे कृत्वा आपोशानं करे विप्रे आपोशानं प्रदेयान्नं आपोशानं विना नाद्यान् आपोशानेनोपरिष्टाद आपोशानोदके विप्र आपोहिष्ठा ऋचस्तिस्रो आपोहिष्ठात्रयो मन्त्राः आपोहिष्ठादित्र्यृचस्य आपोहिष्ठादितिसृभि आपोहिष्ठादिभिर्मंत्रैः आपोहिष्ठादिभिर्मत्रैः आपोहिष्ठादिभिमंत्र आपोहिष्ठादिभिर्मत्रैः आपोहिष्ठादिभिर्मन्त्रैः आपोहिष्ठेतितिसृभि आपोहिष्ठेति तिसृभि आपोहिष्ठेति मन्त्रेण आपोहिष्ठेति वै मन्त्र आश्व १.३६ कात्या ११.७ ब्र.या. २.७४ लघुयम ९५ बृ.या. ७.२२ मनु १.१० औ ९.४७ वृ परा ५.११४ वृ हा ८.२७ नार १५.१६ वृ परा ७.२५८ ब्र.या. २.४३ भार ५.२९ आपोहिष्ठाधिभि षड्भिः आपोहिष्ठेति चालो ड्यू पराशर ११.३३ आपोहिष्ठेति तिसृभि ब्र.या. २.१९ आपोहिष्ठेत्यृगभिविक्ता आपोहिष्ठेत्यृचा कुर्यान् आपोहीति द्विनवकं दधि आपो हयायतनं तस्य आप्तधर्मेषु यत्प्रोक्तं आप्तां सर्वेषु वर्णेषु आप्यायते यथा धेनु आप्यायत्वेति च क्षीरं आप्यायन अपांस्थान ब्र.या. ८.२१ वृ.गौ. ८.३५ व २.३.११४ बृ.मा. ७.१६४ कण्व २४२ भार १७.१४ आब्रह्मन्नित् मंत्र तु वृ परा ४.१८७ भार ६.४६ भार ६.४३ प्रजा १८७ शाण्डि २.८९ व २.६.११० भार ७.८० भार ११.९१ वृ परा ८.३३१ भार १५.६४ आभ्यामेव च सूक्ताम्यामग्नौ वृ हा ६.१३ वाधू ८५ आभ्युदयिकसम्पत्तावर्चा वृ परा ७.१४३. आमणिबन्धनाद्धस्तौ संवर्त १८ आप्यायनात्तु वरुणाः आप्यायस्वेति च क्षीरं आप्यायस्वेति सोमात्र आ प्राणाच्छून्यभूतं आप्लाव्याहते वस्त्र आपस्वन्तरिति ऋचा आबध्य मेखलां तस्य आ आदिकेऽक्षय्यस्थाने वृ परा ७.२८८ आब्दिके चैव संप्राप्ते आब्दिके पादकृच्छ्रं आब्दिके वानुमासे आब्दिके समनुप्राप्ते व्या ३२३ दा ८६ आंपू ९६८ व्या ५९ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं आभिमुख्यं जपदीनां अभिषिच्य ततः कुर्याद् आभीरभाण्ड संस्थानि २४७ बृ.गौ. ३.५८ वाघू ११७ विश्वा ४.५ वृ परा ४.१२० आंउ ३.७ मनु ८.६३ आप १०.१० भार ७.७६ विष्णु १.५६ बृह ९.४८ बृ.गौ. २०.४२ वृ परा ११.३१६ बृ.या. ९.७ ब्र.या. ८.३०४ वृ हा ८.४६ आश्व १०.३४ आ मणेर्बन्धनाद्धरतौ आमंत्रयितृ-भोक्तारौ आमन्त्रयितवा यो आमंत्रिणो गतं विप्रं आमन्त्रितस्तु यः श्राद्धे आमन्त्रितस्तु को विप्रो वृ परा २.३१ वृ परा ८.१८७ औ ५.८ व्या २३३ मनु ३.१९९ घ्या ८९ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ आमंत्रितस्तु यो विप्रो आमंवितो जपेद्दोग्ध्रीं आमन्त्रितो द्विजस्त्र आमन्त्रय ब्राह्मणान् आमपात्रेऽन्नमादाय आमपात्रे यथान्यस्त आमपात्रे यथा न्यस्तं आममन्नपतेश्चैव ईशाने आयत्या गुणदोष आयनेति च पुष्पाणि आयन्तु न इमं मंत्र प्रायं गौरितिमंत्रेण आममांसं घृतं क्षींद्र आममांसं घृतं क्षौद्रं आममासं घृतं क्षैौद्र आममांसं मधु घृतं आममेवात्र दातव्यमन्नं आमं मांसं घृतं क्षौद आमं वा यदि वा पक्वं आमश्राद्धगृहीतारं तद्दिने आमश्राद्ध द्विजः कुर्याद् आमश्राद्ध प्रकुर्व्वीत आमश्राद्ध प्रकुर्व्वीत आमश्राद्धविधानस्य आमादिनानुकरममुख्यमिति आमान्नहरणाच्चैव आमान्नेन तु शूद्रस्य आमाशयोऽथ हृदयं आमास्वित्यादिकान् आमिषं कृत्ति पानीय आमुहूर्त्तात्तु वै ब्राह्ममद् आम्यामेवानुवाकाभ्यां आम्रमामलकीमिक्ष आम्रेक्ष (ख)ण्डताम्बूलचर्वणे आयतिं सर्वकार्याणां व्या २३४ व्या २०२ ब्र. या. ४.२९ व २.६.३६४ कात्या २१.६ बृह ११.१७ आयातांस्तु ततो विप्रान् आयाति प्रतिपद्यत्रतत्र आयासो रेचकः पूरो व १.६.२९ ब्र. या. ८. १९८ दा १६१ लघुशंख ६७ लिखित ९३ आप ८.१८ व २.६.३४२ वृ परा ८.३३० आयाहि शांडिल गोत्र आयुः तेजो वलं वीर्यम् आयुधानि समादाय आयुधान्यायुधीयानां आयुः प्रजा धनं विद्यां आयुः प्रज्ञांधनं विद्यां आयुः प्रशस्यमैश्वर्य आयुरित्यादिमंत्रोयं आयुर्निरामयं सम्पद् आयुर्बलं यशोवर्च आयुर्बलं यशोवर्च आउ ८.५ आंपू ७६४ औ ५.८३ ब्र. या. ५.२ ब्र. या. ५.३ आयुर्वित्त यशः पुत्राः आयुर्वेद अथ अष्टांगं आयुर्वेदो धनुर्वेदो आयुर्हरंतूलशुल्पं तपो आयुषं च पठेन्मन्त्र आयुष्कामी जपेन्नित्यं आयुष्कामी जपेन्नित्यं आयुष्कामो दिवारात्रौ आयुष्मन्तश्च शिशवो आयुष्मान् भव सौम्येति आयुष्मान् भव सौम्येति आयुष्यकरणं प्रोक्तं आयुष्मन्तं सुतं सूते आयुण्यमर्थमारोग्यं आयुष्यं प्राङ्मुखो भुंक्ते आयुष्यं प्रामुखो कात्या २९.११ कपिल १७० शाता ४.१४ वृ परा ७.६२ या ३.९५ आश्व २३.५३ ब्र. या. ३.५३ शाण्डि २.९९ आमं शूद्रस्य पक्वान्नं आयसेन तु पात्रेण आयसेनं तु पात्रेण आयसेनं तु पाशेन मध्ये आयसेष्वपसारेण वृ हा ५.३५७ शंख १४.२२ वाघू ३१ मनु ७.१७८ मनु ७.१७९ वृ हा ८.१८ आश्व २३.३१ व२. ३.४ स्मृति सन्दर्भ नृ परा ६.३१० अत्रि स १५२ लघुशंख २७ नारद १९.६ पराशर ७.२६ व २.६.३७३ ब्र. या. ९.४४ विश्वा ३.१३ ब्र. या. २.१३८ वृ.गौ. ४.१६ वृ परा १०.३३१ नारद १८.११ आश्व २३.१०२ या १.२७० व्या २७० भार ५.२० वृ हा ३.१३९ कात्या १०.४ वाघू ३५ वृ परा ६.४३ औसं २७ बृ.गौ. १५.५२ भार १५.७५ ब्र. या. ८.४९ वृ हा ३.१३८ वृ हा ३.१९६ विश्वा ८.८ वृ हा ७.२७० औ १.२० मनु २.१२५ ब्र. या. ८.३१८ मनु ३.२६३ मार ९.२४ अत्रि ५.२७ औ ३.९८ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तानुक्रमपी आयुष्यं प्राङ्मुखो ल व्यास २.६७ आराध्यैव जगन्नाथं शाण्डि ४.६४ आयुष्यसूक्तपठनं कण्व ६४२ आराध्यो भगवानेव शाण्डि १.४ आयुष्याणि च शान्त्यर्थं कात्या १.१६ आरान्नायक् सोदरसुत आंपू ३०२ आयुष्यं प्राङ्मुखो भुक्ते मनु २.५२ आरामायतनग्राम या २.१५७ आयुष्यं हरते मर्तुः सा अत्रिस १३७ आरामाश्चापि कर्तव्यः वृ परा १०.३७४ आयुस्व चिरमाचारं तत्र ब्र.या. ८.३३४ आरुहा भर्तुश्चितिमंगना वृ परा ७.३८० आयोगवश्च क्षत्ता च मनु १०.१६ आरूढ़ः कामगन्दिव्यङ्गो बृ.गौ. ६.१७० आयोगवेन विप्रायां औ सं १४ आरूढ़पतिते दानं व परा १०.३१८ आयोग्ययोजनादेव योग्ये शाण्डि ४.६१ आरूढ़ यौवनैः दिव्यैः वृ हा ७.३२५ आरक्तकरवीरैश्च वृ हा ३.२७८ आरूढवान् इतो ज्ञातः वृ.गौ. ४.१० आरंग्वधानि शिग्रूणि वृ हा ८.११५ आरूढो नैष्ठिके धर्मे अत्रिस २६९ आरटान् कारस्कारान् बौधा ११.३२ आरोगया दयितया स्वयं शाण्डि ५.५० आरण्यकालशाकादि वृ परा ७.२३७ आरोग्यं आयुरैश्वर्य कात्य १४.६ आरण्यं मम सूक्तं वा बृ.गौ. १६.१४ आरोग्यं रूपवक्ता च शाण्डि ४.१३७ आरण्यांश्चं पशून् मनु १०.८९ आरोपयित्वाऽन्योनन्यं वै कपिल ८४५ आरण्यानां च सर्वेषां मनु ५.९ आरोपिताग्नेः समिधस्तु वाधू १५५ आरनालंच मधंच वृ हा ८.१२३ आर्जवञ्चैव राजेन्द्र वृ.गौ.१२.३ आरनालंकारशाकं वृ हा ८.९८ आर्त्तानां का गतिर्ब्रह्मन् नारा ५.९ आरनालं तथा क्षीरं अत्रिस २४९ आत्विज्यं वैदिकस्यापि लोहि ६२२ आरनालं न सेवेत शाण्डि २.५० आर्तवाभिप्लुतां नारी अत्रि ५.५० आरनाले हि विप्राणां व२.५.४५ आर्त्तवाभिप्लुतां नारी अत्रि ५.५१ आरभ्याऽऽधानकं कर्म आश्व १६.५ आर्त्तवाभिप्लुता नारी अत्रि ५.६० आरभ्यानुदके रात्रौ औ २.३२ आर्तस्तु कुर्यात्स्वस्थः मनु ८.२१६ आरम्भकाणि यान्येव वृ परा १२.१९० आर्तानां मार्गमाणानां आ उ ७.१ आरंभकाले सङ्कल्पे कण्व ४०९ आर्ताऽऽर्ते मुदिते हृष्टा वृ हा ८.१९८ आरंमं कुतपं कुर्याद् प्रजा १५८ आर्ताः मुदिते हृष्टा वर.५.६६ आरम्भयज्ञः शूदस्तु अत्रि २.९ आर्दयन्तु च दुःखानि ऋणं विष्णुम ७४ आरम्भज्ञाज्जपयज्ञो अत्रि २.१० आर्दकं नारिकेलं च व्या ३१५ आरम्भयज्ञाजपयज्ञो व १.२६.१० आर्दकं षट्छतसमं आंपू ५३३ आरम्भरुचिताऽपैर्य मनु १२.३२ आईतृणं गोमयं भूमि बौधा १.५.८६ आरभेतैव कर्माणि मनु ९.३०० आर्दपादस्तु मुंजानो अत्रि ५.२६ आरवरे च शौक्रे च वाधू '५९ आदपादस्तु भुजीत मनु ४.७६ आराधनं भगवतः व २.२.७ आर्दमांसं घृत तैलं अत्रिस २५० आराधयेन् महेशानं व व्यास २.४५ साद ज्वलति मन्त्रेण वाधू ८८ आराधितस्तु यः काश्चिद् पराशर ९.३७ आगलकामत्रास्तु ग्रासा वायू १८ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० स्मृति मन्द आईवस्त्रो यदि तरा वाधू १९६ आवर्तयेत्तदुदकं ये ते वृ.या. ७.८ आईवागानानोभूत्वा ल व्यास २.७० आर्तयेत्सदायुक्तः अत्रि १.७ आर्दवासा जले कुर्यात् वाधू ३० आवर्तयेत् सदा युक्तः व १.२५.५ आर्दवासास्तु यत्कुर्याद् लिखित ६३ आत येद्वा प्रणवं ल व्यास २.२२ आयां जन्मनक्षत्रे वृ.गौ. १०.११० आवर्त्य प्रणवं वृ परा २.११ आई सशुषिरा चैव कात्या ७.१४ आवसेनापि भोत्कव्यं ब्र.या. ९.२४ आण वाससा च ल व्यास १.९ आवायव्यया वायव्योर्वा विश्वा ५.५ आर्षिकं कुलमित्रं च मनु ४.२५३ आवासोपार्जितैर्वाऽपि कर्म शाण्डि ३.३५ आर्यता पुरुषज्ञानं शौर्य मनु ७.२११ आवाहनाग्नौकरणं व्या १३६ बृ.या. २.५९ आवाहनादिमैदश्च विश्वा ६.५० आर्यावर्तः प्रागादर्शात् व १.१.७ आवाहनासने पाच वृ हा ३.३० आर्ष मेधातिथि म वृ परा ११.३३० आवाहनीयो यत्ने वृ परा ११.२६९ आर्ष कुत्सस्य चामुत्र वृ परा ११.३२६ आवाहने विनियोगः भार ६.९६ आर्य छन्दश्च मन्त्राणा बृ.मा. १.१२ आवाहयामि त्वां देवि वाधू ८३ आर्ष छन्दश्च दैवत्यं वृ.या. १.२७ आवाहयाम्युपास्त्यर्थ वृ परा २.१७ आर्ष छन्दश्च दैवत्यं बृ.या. ४.२ आवाहयिष्ये पित्रादीन् वृ परा ७.१९४ आर्ष छन्दश्च दैवत्यं वृ परा ११.११० आवाहयेत्यनुज्ञातो वृ परा ७.१८४ आर्य तु काश्यपस्येह वृ परा ११.३३४ आवाह्य च पितृनैरैरप वृ परा २.१८३ आवं तु वामदेवोऽस्य वृ परा ११.३२९ आवाह्य तदनुज्ञातो औ ५.३८ आर्य धर्मोपदेशं च मनु १२.१०६ ।। आवाह्य तदनुज्ञातो या १.२३३ आर्य नारायणस्येह वृ परा ११.३३३ आवाह्य पूर्ववन्मन्त्रैरास्तीर्य बृ.या. ७.६९ आर्य सांख्यस्य चात्रोक्त वृ परा ११.३३६ आवाहर यजुषा तेन बृ.या. ४.२९ आर्षश्चैवाथ देवश्च नारद १३.३९ आवाह्याग्नौ जगन्नाथं शाण्डि ४.९४ आर्षे गोमिथुनं शुल्कं मनु ३.५३ आवाहापां पतिं चैन नारा ६.५ आलभेद्वै मृदाङ्गानि बृ.या .७.१५ आविकंत्रसरं चैव आश्व १.२९ आलम्ब वारुणैः सूक्त वृ.गौ. ८.३२ आविकमौष्ट्रिकमैक बौधा १.५.१५८ आलयः सुकृतीनां च बृ.या. ३.१८ आविकाश्चित्रकारश्च अत्रिस ३८५ आलिखेत् पवित्रे च ब्र.या. ८.२६९ आविकैकशफोष्ट्रीणां क्षीरं संवर्त १८७ आलिप्यं चंदनेनाथ मार ७.८४ आ विद्याग्रहणाच्छिष्यः नारद ६.८ आलिषा (उनिष) निमिषं ब्र.या ८.३३० आविष्करोति स यतेर्योती बृ.या.२.१२२ आलोक्य पूजयन् विष्णु वृ हा ८.३ ४७ आवृत्तानां गुरुकुलाद् मनु ७.८२ आलोच्य धर्मशास्त्राणि शंख १७.६६ आवृत्य प्राणमायम्य कात्या १७.२२ आलोलुपश्चरेद् मैक्ष व्यास १.३० आवेष्टयस्थाप्य गायाः भार ७.८९ आवयोः प्रवरः प्रोक्त लोहि ३२३ आव्रतानां त्रिरात्र औ ६.२७ आवयो सर्वकार्येषु व२.४.८१ आ शरीरविमोक्षात Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशिलो वाचनं कृत्वा वृ हा ५.१५० आषाढ्यां प्रोष्ठपद्यां आशिषो वाचनं कृत्वा वृ हा ५.१५७ आषोड्शदिनादर्वाक् आशीभिरेनं सततं आंपू १०१९ आषोड्शादाद्वाविंशादा आशोभिश्च प्रशस्ताभि आंपू ५६५ आषोड्शाब्राह्मणस्य आशु शिशान इत्यादि वृ परा ११.१९२ आषोड्शाद् ब्राह्मणस्य आशूदरस्थशूदानो वृ परा ६.३०७ आषोड्शाब्दाद् द्वाविंश माशेषप्राणि जिह्वासु भार ६.१४८ आसत्यादीनां चतुर्णा आशौचं पिण्डदानादि वर.६.३५१ आसत्येनादिभिमत्रै आशाचं मरणोदिश्यं आंपू ९८७ आसत्येनेति मन्त्रेण आशौचिनो गृहात् ग्राझं औ ७.६ आसन आवाहन अध्यं भाशीची प्रवदेन्मोहात्त __ कण्व ५७ आसनं च क्षणं दत्त्वा माशीचे यस्तु शूदस्य व १.४.२५ आसनं चैव यानं च माश्रमत्रयधर्मान्वा वृ परा १२.१२० आसनं चैव यानं च आश्रमाचारसंयुक्तान् विष्णु १.६२ आसनं शयनं यानं आश्रमाणां चतुर्णाज वृ हा ५.४१ आसनं स्वस्तिकं प्रोक्तं आश्रमादाश्रमं गत्वा मनु ६.३४ आसनं स्वस्तिकरंवदा आश्रमे तु यतिर्यस्य दक्ष ७.४४ आसनाच्छयनाद्यानात् आश्रमे वा वने वापि वृ.गौ. ११.६ आसनाद्यर्थपर्यन्तं आमेषु च सर्वेषु संवर्त १०७ आसनाधैर्यथाशक्ति आश्रमेषु द्विजातीनां मनु ८.३९० आसानारूढपादश्च आनमेषु यतीनां वा वृ परा ४.३९ आसनारूढ पादः सं आभयेत्कोऽत्र निर्भाग्य भार १२.४८ आसनानसंयुक्तं आश्रावणे वषट्कारे बृ.या. २.१५० आसनवसथौ शय्यां आश्रित्य प्रथमं पात्र वृ परा ७.२०१ आसनावाहनौ चैव आश्रित्य भूमिमदत्ता वृ.गौ. ६.१२५ आसनाशनय्याभिरदिः आश्वप्रतिपदिश्राद्ध प्रजा १७५ आसने चासनं दद्याद् आश्वयुज्यां तथा कृष्या कात्या २६.१० आसने देवतादीनां अपि आश्वलायनं आचार्य आश्व १.१ आसनेन तु पात्रेण आश्वालायनशाखानां विश्वा ४.११ आसने पादमारुढं आश्विनं चैकोनविशं बृ.या. ४.६८ आसने पादमारूढो वस्त्र आश्विने नवमी शुक्ला ब्र.या. ६.२२ आसने शयने पाने आषाढऽश्वयुजे चैव व परा १०.३५७ आसनेषूपक्लुप्तेषु आषाढीमवधिं कृत्वा आंपू ७०८ आसनेष्वासनं दद्यान्न आगाडे वामनाख्यं मां वृ.गौ. १८.२४ आसनैरर्घ्यपाद्याद्यैर्व्य आपादन पंचमे पक्षे प्रजा १६५ आसनो पादस्डस्तु २५१ औ ३.५५ पराशर १२.१ बौधा १.२.१२ मनु २.३८ व १.११.५१ या १.३५ भार १७.२१ भार १५.८५ विश्वा ७.१७ वृ परा ७.३१२ आश्व २३.३० मनु ७.१६१ मनु ७.१६३ बौधा १.५.६२ भार १९.१८ भार १२.५४ पराशर १२.५ कात्या १७.७ शाण्डि २.३६ संवर्त २२ वृ परा ८.२०० ब्र.या. ३.३४ मनु ३.१०७ व्या ११८ मनु ४.२९ वृ परा ७.८७ भार १८.१०४ वृ हा ५.२७३ व्या २३० वृ.य. ३.३१ __ औ ३.१३ मनु ३.२०८ बृ.य. ३.३० शाण्डि ४.५६ ब्र.या. २.१८५ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ आसन्ध्यां न भुंजीत आसन्नतां प्रयात्याशु आसन्नधोजलं रूढपलाश आसपिण्डक्रियाकर्म आसप्तमान् पंचमाच्च आसप्तमस्तु पातालादूर्ध्व आ सप्तमासादा दन्त आसमाप्तेर्विधानेन आ समाप्तेऽऽशरीरस्य आसमुद्राच्च वै पूर्वा आ समुद्रात्तु वै पूर्वादा आसादनं च पात्राणां आसादयेत सुवं चाऽऽदौ आसामन्यतमांगच्छेद आसामन्यतमां गत्वा आसां तत्प्रभृति स्त्रीणां आसां महर्षिचर्याणां आसां यताक्रमेणैव आसीतामरणात्क्षान्ता आसीदिदं तमोभूतं आसीनं च तिष्ठं आसीनं दक्षिणे वापि आसीनश्च जपं कुर्यात् आसीनस्त्वासनेशुद्धे आसीनस्य स्थितः कुर्याद् आसीनस्यान्तिके स्नातं आसीनायाः शिरः स्पृष्ट्वा आसीन्नैव यदा किंचित आसीमांतेन पूर्वेण आसु पुत्रास्तु ये जाता आसुरं स्याद्विदग्धं पद् आसुरि कपिलश्चैव आसुरेण तु पात्रेण आसुरेयाः पाशुपता आसुरो दविणादानाद् बौधा २.३.३२ शाण्डि ५.७० शाण्डि १.७६ मनु ३.२४७ नारद १३.७ बृ.या. ३.२४ बौधा १.५.१०९ आंपू ८०६ आसेचनम्पूर्ववस्कुर्याद्धिरं आसेध्यकाल आसिद्ध आसेव्य दक्षिणे कर्णे आस्तीर्य त्वाविकं भूमौ आस्तीर्य दक्षिणामेव आस्तीर्य दर्भान् प्रागग्राम् आस्तीर्य शयनं दत्त्वा आस्तीर्य साधुशयनं आस्तीर्याग्नेरुदरदर्भान् आस्तृश्यलोत्पादेषः मनु २.२२ आस्नानकालं नाश्नीयाद् व_२.६.३३० : आस्नानकालं नाश्नीयाद् आस्यतामिति चोक्तः आस्ये आहवनीयोऽग्नि आस्वेव तु भुजिष्यासु आहरेत् त्रीणि वा देवा आहरेद्यावन्दयानि मनु २.२४४ बृ.गौ. १४.४४ आहरेद्विधिवद्दारान् अग्नीं आहरेन् मृत्तिकां विप्रं आहर्तेवाभियुक्तः सन्नर्ध आहवेषु मिथोऽन्योन्यं आहारनिहार विहार आहारज्जायते व्याधि आहितस्य कथं वाऽपि आहिताग्निन्नमत्यूद्ध आहिताग्निर्द्विजः कश्चित् आहिताग्निश्चेत प्रवसन् आहिताग्निसहस्रस्य आहिताग्निस्तथैकाग्नि आहिताग्निस्तु योविप्रः आहिताग्निस्तु यो विप्र आहिताग्निस्तु यो विप्र आहिताग्निस्तु यो विप्र आहिताग्निस्त्रिरात्रेण आहिताग्नेः पूर्वमेव आश्व २.४४ वृ हा ६.१८६ नारद १३.७५ वृ परा ८.३२० मनु ६.३२ भार १९.१४ मनु ५.१५८ मनु १.५ व १.७.९ ब्र.या. ८.३० व २.३.१३५ ल व्यास २.६८ मनु २.१९६ आश्व १०.५ आश्व ३.५ वृ परा ३.७ व्या ९४ वृ परा ७.३७२ शाण्डि ३.९१८ वृ परा २.१७३ कात्या १७.९ बृह १२.११ या १.६९ स्मृति सन्दर्भ ब्र. या. ८.३०५ नारद १.४४ व २.३.९० वृ परा १०.५३ वृ हा ६.९८ वृ हा ६.१२८ वृ परा १०.२६४ व्यास २.३२ आश्व २.१७ भार १५.३९ अत्रि ५.५७ अत्रि ५.५९ मनु २.१९४ ब्र. या. २.१६८ नारद १३.७९ मनु ११.१३ औ ३.१९ लोहि १६२ वा १.६.१५ नारद २.७८ मनु ७.८९ व १.६.९ यम ७७ बृ.गौ. १५.५ बृ.गौ. १५.३ पराशर ५.१३ व १.४.३० वृ.गौ. ७.२३ आश्व १.५२ आंउ ८.१ बृ.गौ. १४.१९ शंखलि १८ शंखलि १९ आंठ ९.३ कण्ण २८८ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्लोकानुक्रमणी २५३ आहिताग्नेरग्निहोत्रं कण्व २८९ इच्छन्ति के चिदैणेय आश्व १०.११ आहिताग्ने रूपस्थानं औ ९.८५ इच्छन्ति त्वेत्य ध्यानेन वृ हा ६.४७ आहिताग्ने स्त्रियं हत्वा शंख १७.६ इच्छन्ति पितरः पुत्रान् नारद २.५ आहिताग्नौ ससन्ताने वृ परा १०.१४१ इच्छन्तीमिच्छते प्राहुः नारद १३.४२ आहित्याग्निस्तु यो विप्रः आप ८.९ इच्छयाऽन्योसंयोगः मनु ३.३२ आहुतन्तु भवेद्दन्तं प्रहुतं वृ.गौ. ८.१३ इच्छातृप्तेषु विप्रेषु आश्व २३.६८ आहुताः परिसंख्याय कात्या १८.९ इज्यते यत् समुद्दिश्य वृ हा ५.८ आहुत्याप्यायते सूर्यः या ३.७१ इज्याङ्गमेवमेवाद्यैस्संस्कृतं शाण्डि ३.८५ आहूतश्चाप्यधीयीत ब्र.या. ८.५९ इज्याचारदमाहिंसा या १.८ आहूतश्चाप्यधीयोत या १.२७ इज्याध्ययनदानानि आहूताध्यायी सर्व व १.७.१० इज्याध्ययन दानानि या १.११८ आहूय दीयते कन्या सा व २.४.१२ इज्याचारो दमोऽहिंसा बृह ११.३४ आय प्रणतं शिष्यं वृ हा २.१४८ इज्यामध्ये तथा होमे शाण्डि ४.४६ आहूय योऽग्नि नियतं बृ.गौ. १५.२८ इडासि मैत्रीवरुणी ब्र.या. ८.३२५ आहूय शीलसम्पन्न संवर्त ५० इडासुषुम्णे वे नाड्यो बृह ९.९६ आहूय साक्षिणं पृच्छेन् नारद २.१७७ इतरत्र दतर्धवाशी व २.६.१६ आहूयालङ्कृतांदद्यात् ब्र.या. ८.१७० इतरदितरस्मिन् कुर्वन् बौधा १.१.२३ आहताया मृदापश्चात् भार ३.४ इतरद्भुक्ति जातं वा भार ११.१०७ आहतास्तेयतस्तमस्मा भार १५.९७ इतरानपि सख्यादीन् मनु ३.११३ आहत्य पूजयेत्तैर्यः भार १४.२७ इतरे कृतवन्तस्तु मनु ९.२४२ आहृत्य प्रणवेनैव लघु यम ७३ इतरेण तु पात्रेण दीयमानं अत्रिस १५३ आइत्याम्बु पवित्रेण कृत्वा शाण्डि २.४२ इतरेण निधौ लब्धे या २.३६ आ हैव स नखग्रेभ्यः मनु २.१६७ इतरेषा महोरात्रं पराशर १०.४० आह्लादकारणं स्नानं वृ परा २.२२६ इतरेषा तु पण्यानां मनु १०.९३ इतरेषां नुवतां स्त्रीधर्मो व २.५.७५ इतरेषु तु शिष्टेषु मनु ३.४१ इक्षु दण्डानि रम्याणि वृ हा ५.५३० इतरेषु त्वपाक्त्येषु मनु ३.१८२ इक्षुः पयो घृतं ब्र.या. ४.९३ इतरेषु ससन्ध्येषु मनु १.७० इक्षुयाष्टिमया पादाः वृ परा १०.७८ इतरेष्वागमादद्धर्मः मनु १.८२ इक्षुरापः पयोमूलं व्या २०७ इति उग्रहयोगेन वेदि शाण्डि ४.८ इसूनपः फलं मूलं वाधू १८८ इति एवं कथिनो देवो वृ गौ १.११ हसून य पीडयेत्तस्मादि बृ.गौ. १३.३३ इति चिन्त्य महात्मानः नारा ७.१५ इसोर्विकारहारी च शाता ४.११ इति चोवाच लोकेशं आंपू ५८८ इस्वंधिर्गुडजानुश्च व परा १०.११४ इति ज्ञात्वा द्विजः सम्यग् वृ परा ४.२५ इण्याकुणा तथा चान्यैः वृ परा १०.४२ इति तप्त कृच्छ्रः व १.२१.२३ इष्यतउदकपूर्व व १.१.३० Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ इवित्रिदेवता योगात् इति त्रिरञ्जलिं दत्त्वा इति पृष्टो ब्रह्मनिष्ठ इदं इति ब्राह्मणपादेषु इति ब्रुवन्तः तेदूताः इति यज्ञोपवीतस्ये इति यासा समुहती इति योगेश्वरेणोक्त इति वा निर्वपेच्छ्राद्ध इतिवामनमंत्रस्य इति वृष्टो पृष्ठो भरद्वाज इति वेद पवित्राण्य इतिव्यास कृतं शास्त्र इति श्राद्धे क्रतुदक्षौ इति श्वमार्जानुकुल इतिसंश्रुत्य गच्छेयु इतिसंचिन्त्य नृपति इति (शास्त्र) समाचोल्य इति संपूर्णतां याति इति संप्रार्थ्य तेषां वै इति सुशिवतौ इति सूक्तेन गायत्र्या इइतिहासपुराणञ्च गाथा इतिहासपुराणं वा इतिहास पुराणां वा इतिहास पुराणा इतिहासपुराणानां इतिहासपुराणानां इतिहास पुराणानां इतिहास पुराणानि इतिहास पुराणानि इतिहास पुराणाभ्यां इतिसस पुराणाभ्यां इसी कवितं शास्त्र इत्यं कुर्यात् सदा शूद्रो वृ परा १२.२३६ विश्वा १.८५ कण्व ६ आंपू ८८६ बृ गौ. ५.५८ भार १७.१ कण्व ६९८ वृ हा ६.२२४ वृ परा ७.३४ वृ हा ३.३७९ भार १.८ शंख १२.१ व्यास ४.१ प्रजा १७९ व १.२१.२७ या ३.१२ या १.३६० कपिल १०७ वृ हा ६.७८ कपिल ३९४ स्मृति सन्दर्भ वृ हा ३.११४ लोहि ३ ब्र. या. ८.१७३ कात्या २०.१७ मण्डि १.२९ शाता २.४० इत्थं संचिन्त्य इत्यत्र विद्वानौऽग्नि इत्यन्यैः मुनिभि प्रोक्तं वृ परा १०.३१२ इत्यर्थिने समभ्यर्च्य इत्यष्टावाहुतीर्हत्वा इत्यादि दुर्वचो हित्वा इत्यादिना क्रमेणैव इत्यादि भूमिदानस्य इत्यादि श्रुतयो भेदं इत्याहुः केचनाचार्या इत्याहुतीश्चतस्रस्तु इत्युक्तगुणसम्पन्नान् इत्युक्तस्तु ततो भूयः इत्युक्त्वा गुरवः सर्वे इत्युक्त्वा चरता धर्म इत्युक्त्वा तु प्रिया वाच इत्युक्त्वा भगवान् विष्णु इत्युक्ते चेन्मामकानां इत्येक्ते वेन्मामकानां इत्येतेऽदायदा बांधवा इत्येते दायादा बान्धवा इत्युक्तो गुणसंपन्नान् इत्युक्त्वा तेन मन्त्रेण इत्युक्तानेनगायत्रिं इत्युक्त्वापो नमस्कृत्या इत्युच्चार्य विस्टज्यैनं इत्युदीर्य्यं प्रणम्याथ इत्युदीर्य्यं मुहुर्भक्त्या व २.४.१२० व २.३.१२ बृ.गौ. १५.५४ वृ. गौ. ८.६९ वृ हा ५.२८७ व २.७.४४ भार ४.२७ व २.६.२५३ व्यास ३.१० इत्युद्वास्य तु तान् व २.६.२१९ इत्येतत् कथितं पूर्वे भार १३.१६ अत्रि ३.७ व १.२७.६ लोहि ७२१ ल हा २.१४ इत्ये तत्तपसो देवा इत्येततब्रह्मणाप्रोक्तं इत्येतदेनसामुक्तं इत्येतद् ध्यानमार्ग इत्येतन्मानवं शास्त्रं वृ परा १०.९८६ वृ हा ३.७७ कण्व ४४२ वृ परा ४.१७४ वृ परा ७.२६ आंपू ८.९६ औ १.२९ या १.६० या १.२४७ वृ हा ८. १९० लोहि ५३५ लोहि ५३६ व १.१७.२७ व १.१७.३६ व्या २७८ बृ.गौ. १३.२६ भार ६.९१४ बृ.या. ७.१०५ शाता २.१९ शांता २.२५ शाता २.१२ आंपू ८९५ अत्रि स ११४ मनु ११.२४५ का ५ मनु ११.२४८ वृ परा १२.३१८ मनु १२.१२६ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्लोषमुकाम २५५ इत्येतो कथितौ हस्ती भार २.६२ इदं रहस्यं कौन्तेय वृ.गौ. १.३८ इत्येव मखिल प्रोक्त ल व्यास २.९० इदं विष्णुरनेनान्ने आश्व २३.५६ इत्येवमतिदैन्वेन __ आंपू ५७५ इदं विष्णुरिति ह्येतं वृ परा ७.२५५ इत्येव मुक्तो विधिवज्जपः मार ६:२० इदं विष्णुर्महा इन्द्र ब्र.या. १०.९३ इत्येव मुक्त्वा कर्तव्य शंख ९.८ इदं विष्णुर्मही इन्द्र ब्र.या. १०.६८ इत्येवमुक्त्वोपस्थाय मार ६.१२० इदं विष्णुाहतीर्वा आंपू ८३६ इत्येवं केचन प्राहुराचार्या लोहि १४९ इदं विष्णुातोश्च कण्व ६७ इत्येवं धर्मतः प्रोचुः कपिल ६५० इदंव्यासमतं नित्य व्यास ४.७२ इत्येवं प्रजपेद्भक्त्या कण्व १८७ इदं शरणमज्ञामिदमेव मनु ६.८४ इत्येवं मार्जनं कृत्वा विश्वा ४.२६ इदं शास्त्रञ्च गुह्यञ्च । कात्या ४.१२ इत्येष धर्म कथितो ल हा १.३१ इदं शास्त्रमधीयानो मनु १.१०.४ इत्येषाद्विजवर्णानां विद्या विश्वा १.२९ इदं शास्त्र तु कृत्वाऽसौ मनु १.५८ इत्योपनिषदं बर्थ वृ हा ३.६१ इदं सदागमाख्यांतु वेद शाण्डि ५.८० इदाजच मम संप्रश्नं बृ.गौ. १८.४६ इदं समस्तं सृतिभि भार ६.१२ इदन्तु परमं शुद्ध शंख ७.२९ इदं स्तानत्तु सर्वेषां __ भार ५.१ इदन्तु यः पठेद्भक्त्या दक्ष ७.५३ इदं हि मानसंस्कार भार ५.५० इदन्त्वदुत्तर इति वृ हा ८.४२ इदं हेयमिदं हेयमुपादेय शाण्डि १.३ इद मापउदुत्त पमित्येतन्मु बृ.या. ७.१९ इदानी महमीर्ष्यामि बौधा २.२.३९ दमापः प्रवहत ल व्यास २.२० इदृग्विधां च तां कुर्यात् वृ परा १०.५९ इदमापः प्रवहतामापो ब्र.या. २.२० इध्मजातीयमिध्यार्द्ध कात्या १५.१४ इदमापः प्रवहते शंख ९.९ इध्माधानाज्य भागौ व २.६.३५६ इदमापस्समारभ्य ऋषभं विश्वा ४.२४ - इध्मोऽप्येधार्थमाचार्ये कात्या ८.२२ इमावर्तमानस्तु श्राद्धे वृ.गौ. १०.१४ इन्दीवरदलश्यामं वृ हा ७.७६ इदमेव तु सच्छास्त्रमयं शाण्डि १.४१ इन्दुक्षयः पिता ज्ञेय व्यास ४.३१ इदमेव महाराज विष्णु म ४ इन्द्र-अग्नि-यम-क्तेिशा वृ परा १२.३ इदं कृत्यिमिदं कार्यमिदं लोहि ५९९ इन्द आसां सुराचार्य वृ परा ११.६२ इदं तस्योत्तरं शेयं यतोमूलो कपित १३७ इन्दनीलकडाराढ्य विष्णु १.३८ इदं तु वृत्रिवैकल्यात् मनु १०.८५ इन्द्र चापेक्षणं रात्री वृ परा ११.१०१ इदं दाल्भ्यकृतं शास्त्र दा १६७ इन्दनीलनिमश्चक्र वृ हा २.८९ इदं पति यः पुण्यं वृ.गौ. १०.१२ इन्द्रप्रयागं सुरतं शंख ३.६ इदं पवित्र पूर्वोक्ता भार १८.६६ इन्द्रमेव धीपणेति ऋचा वृ हा ८.४५ इदं प्रसंगेणोक्तं स्याद् वृ हा ७.२७ इन्दश्च विश्वेदेवाश्च । व परा २.६४ मं मे मानुषं जन्म वृ.गौ. १.४० इन्द्रश्च विश्वेदेवाश्च वृ.या. ३.१५ रमे तत्वतो देव वृ.गौ. ११.१ इन्दसोमं सोमपवेरिति हं यशस्यमायुष्यमिदं मनु १.१०६ इन्द्रस्यास्य वादोष मनु ९.३०॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ स्मृति सन्दर्भ इन्द्र सोमं च रुद्र व २.६.३५७ इमं मंत्र समुच्चार्य शाता ५.१४ इन्दाग्निसमवर्ति च भार ११.६२ इमं मंत्र समुच्चार्य शाता ५.२१ इन्दादिभ्यस्तताऽन्येभ्य वृ परा ६.७९ इमं मंत्र समुच्चार्य शाता २.२८ इन्द्रान इति यः पादं बृ.गौ. २०.४५ इमं मे गंगेति ऋचा वृ हा ८.१२ इन्दानिलयमार्काणां मनु ७.४ इमं मे. त्वन्नः सत्वन्न व परा ११.२२४ इन्द्राय सोमसूक्तेन आंपू ९६२ इमं मे वरुणत्यूचा . वृ हा ८.१५ इन्द्राय सोमसूक्तेन आंपू ९६३ इमम्मे वरुणं चैव ब्र.या. १०.१०४ इन्दिय निग्रह वर्णन विष्णु ७२ इमं मे वरुण तत्त्वा बौधा २.४.१२ इन्द्रियभ्रमहीनानाम शाण्डि ४.२२१ इमं मे वरुणं पूज्य ब्र.या. २.११० इन्द्रियाणां जये योग मनु ७.४४ इमं योविधिमास्थाय इन्द्रियाणां तु सर्वेषां मनु २.९९ इमं लक्ष्मीनृसिंहस्यं व हा ३.३६० इन्द्रियाणां तु सर्वेषां बृ.गौ. ८.५२ इमं लोकं मातृभक्त्या मनु २.२३३ इन्द्रियाणां निरोधेन मनु ६.६० इमं मेगड्ग इत्युक्त्वा वाधू ८४ इन्द्रियाणां प्रसंगेन मनु २.९३ इमं यज्ञ तमोवोचर्य कण्व ३७७ इन्द्रियाणां प्रसंगेन मनु १२.५२ इमंविधिदारयितुं यो भार ६.१७३ इन्दियाणां मनोनातो ब्र.या. ३.१७ इमं हि सर्ववर्णीनां मनु ९.६ इन्द्रियाणां विचरतां __ मनु २.८८ इमान् कृत्वा कलियुगे नारा ७.३२ इन्द्रियाणि गुणान्यातु विष्णु म ६७ इमान्तु वैभवीमिष्टं वृ हा ७.१५० इन्द्रियाणि मनः प्राणो या ३.७३ इमान्नारायणेष्टिञ्च वृ हा ७.६७ इन्द्रियाणि यशः स्वर्गमायुः मनु ११.४० इमान्नित्यमनध्यायान मनु ४.१०१ इन्द्रियाणीन्द्रियार्थाश्च बृ ह ९.१८३ इमां तु वैष्णवी मिष्टि वृ हा ७.१०४ इन्द्रियाणि वशीकृत्य व्यास ४.१३ इमां पाद्मी शुभामिष्टि वृ हा ७.२३३ इन्द्रियार्थेषु सर्वेषु मनु ४.१६ इमा रहस्यां परमामनुस्मृति विष्णु म ११२ इन्द्रियैरिन्द्रियार्थेश्च बृ.या. २.१०९ इयमाभवनं भार्या व परा ६.१८२ इन्देशानयोर्मध्ये ब्र.या. १०.१०८ इयमित्येव ये दुष्टा तान् लोहि ७१८ इन्दोऽग्नियमानैऋत्यां ब्र.या. १०.१०० इयं भूमिर्हि भूतानां मनु ९.३७ इन्दो धाताभगः पूषा वृ परा २.१९२ इयं रण्डाप्यरण्डेव ज्ञात्री लोहि ६०२ इन्धानानि च योदद्यादि संवर्त ६० इयं विशुद्धिरुदिता मनु ११.९० इन्धनार्थ दुमच्छेद या ३.२४० इवमेव परं मोक्ष वृ हा ७.३३६ इन्धनार्थ दुमच्छेद वृ हा ६.२०३ इशानं धान्यमध्ये ब्र.या. १०.१०३ इन्धनार्थमशुष्काणां मनु ११.६५ इष इत्यादिभिमंत्रै आश्व १५.४५ इममेव जपेन् मंत्र वृहा ३.२३७ इषणात्रयकृष्णाहि वृ हा ४.६ इमं पुण्यं प्रशस्तं च वृ परा ११.२३७ इषेत्वादिषु मंत्रेषु वृ परा ११.१०९ इमं मंत्र सकृज्जप्त्वा विश्वा ६.३१ इष्टकादशकं वाऽपि वृ परा १०.३६३ इमं मंत्र समुच्चार्य शाता ५.७ इष्टकालोष्टपाषाणैर्न विश्वा १.६१ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २५७ इष्टतः स्वामिनश्चांगै नारद ६.७ इह जमनि शूदत्वं व्यास ४.६८ इथः त्वमसि मे त्यवतुम वृ गौ. १.३९ इह तं चापि पुरुषम् वृ.गौ. ३.६६ इष्टमध्येऽग्निहोत्र कण्व ३२६ इह दुश्चरितैः केचित् मनु ११.४८ इष्टं पूर्त प्रकर्तव्यं अत्रिस ४५ इह प्रिय जपेन्मन्त्र व २.४.७५ इष्टापूर्त तु कर्तव्य लघुयम ६८ इह मानुष्यके राजन् वृ गौ २.२८ इष्टापूर्तस्य तु षष्ठमंश व १.१.४५ इह मानुध्यके लोके वृ.गौ. ७.१०४ इष्टापूर्ते तु कर्तव्ये लिखित १ इह मानुष्यके लोके वृ.गौ. १५.९३ इष्टापूर्ते द्विजातीनां लघुशंख ६ इह ये धार्मिका लोके वृ.गौ. ५.६२ इष्टापूर्ते द्विजातीनां लिखित ६ इह यो गोबधं कृत्वा पराशर ९.६० इष्टापूर्ती तथा विद्वन् वृ परा १.५८ इह लोके भवेच्छापैः । वृ.गौ. ६.१३० इष्टापूर्तों तु कर्तव्यो दा ५ इहलोके भवेद्विप्रो वृ.गौ. ७.४९ इष्टापूर्ती कर्तव्यो लघुशंख १ इहलोके सुखी भूत्वा भार ७.१०७ इष्टापूर्तो द्विजातीनां दा १० इह लोकिक एश्वय व हा ३.४७ इष्टापूर्तो द्विजातीनां अत्रिस ४६ इहापि पूर्ववत् कुर्याद् आश्व १५.२९ इष्टापूर्तो फलोपेतौ वृ एरा १०.१३ इहैव भूमिदानस्य वृ परा १०.१८३ इष्ट्यभावेऽपितत्कर्म कण्व ३०८ इहैव सक्षणान अ ५८ इष्ट्य स्युस्ततः सर्वा कण्व ५३० इहैवेति पठेन् मंत्र आश्व २३.१०१ इष्टिभि पशुबन्धैश्च व्यास ४.४४ इहोपनयनं वेदान्योऽध्या बृ.गौ. १४.५९ इघि च वैष्णवोकुर्यात व २.६.३९७ इहोपरि सुखं प्राप्य भार १६.६१ इटि. वैश्वानरी कुर्यात शंख ५.१६ इष्टि वैश्वानरी कृत्ला इष्टिं वैश्वानरी नित्यं ईक्षयेद् बटुरादित्यं आश्व ६०.२१ मनु १.१.२७ भार २.३४ इष्टि श्राद्ध क्रतुर्दक्षो ईज्जुर्यानिमिसंस्यात् लिखित ५१ इष्टे गृहसमायाते ईडा च पिंगला चैव प्रजा ३३ वृ परा ६.९८ इष्टो वा यदि वा मृ• शंखलि ६ ईदृश्याय सुरश्रेष्ठ वृहस्पति ५८ नारद १३.१३ इष्ट्यश्च विविधाः ईर्ष्यापण्डश्च सेव्यश्च वृ परा १०.३६० ईर्ष्यापण्डादयो ये न्ये नारद १३.१५ दष्ट्याऽनया पूजितेशे वृ हा ७.१८३ नारद १३.९१ इष्ट्वा क्रतुशतं राजा ईर्ष्यासूयासमुत्थे तु वृहस्पति १ आश्व १५.३० इष्ट्वा क्रतुशतैरेवं देवराजो ईशानकोणतः सूत्रे अत्रि ६.१ आश्व २३.६३ इष्टवैदेष्ट्या फलं ईशानादिपंद स्तुत्वा वृ हा ७.१६८ विश्र्व १.६० इष्यते संम्यगान्तं ईशानाभिमुखो भूत्वा कण्व ७७८ इह कर्मप्रभोगाय ते ईशादेन तु मंत्रेण भार ५.३४ बृह ९.१७१ इह क्लेशाय महते ईशाने नाथ वा रुदैः व व्यास २.४६ वाधू १९५ इहगावो निषीदन्तु मंत्रोऽयं ब्र.या. ८.२३८ ईशान्यादि चतुर्दिक्षु नारा ५.३६ ईशान्याभिमुखो भूत्वा इह चामुत्र वा काम्यं मनु १२.८९ व परा २३० ईशान्यां त्वाचमेत्मकर्ता आश्व २३.१४ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ स्मृति सन्दर्भ ईशो दण्डस्य वरुणो मनु ९.२ ४५ उग्रगन्धान्यगन्धानि शंख १४.१५ ईश्वरं पुरुषाख्यं तु बृह ९.२३ उग्रः पारशवश्चैव नारद १३.१०७ ईश्वरस्तु स एवान्ये वृता १.९ उग्राज्जातः क्षत्र्यां बौधा १.९.१२ ईश्वरस्यात्मनश्चापि वृ ता ४.२२३ उग्राद् द्वितीयायां बौधा १.८.१० ईश्वर्या च समासीनं वृ ता ७.१७४ उचयोः शाखयोर्मुक्तं व १.११.२२ ईषद्वानानि चान्यानि दक्ष ३.६ उच्चरन्प्रणवं पूर्व भार १५.६९ ईषद्रौतं नवं श्वेतं वृ ता ६.१०१ उच्चारं धंसनं कुर्वन् शांण्डि १.३७ ईषायां तु रथो क्षे वा वृ परा १०.३३० उच्चार्य्य ग्रामगोत्रे व.२.४.३८ व २.६.३ ४० उच्चार्य नामगोत्रे उ उच्चार्य प्रणवं चाऽऽदौ । आश्व १०.३२ उक्तकाले तु यत्कर्म विश्वा १.८ उच्चार्यमाणः सर्वत्र बृ.या. २.११६ उक्तधर्म परित्यज्य वृ हा ५.२० उच्चावचेषु भूतेषु मनु ६.७३ उक्तः पञ्च विधो धर्म पु २७ उच्चिष्टमितस्त्रीणां आप ५.८ उक्तप्रायं विजानीयाद्या आंपू ९३८ उच्चैः संभाषणं हस्त आंपू १०२७ उक्तमुद्देशतो ह्येतद् वृ परा ३.३३ उच्चस्स्वरेण योगान्ते शाण्डि २.३ उक्तलक्षणकन्यायाः वृ परा ६.३९ उच्चोरस्कवऽनत्याश्च वृ परा ६.१७२ उक्तः सन् कारयेद् व परा ९२.१५६ उच्छिन्नशाखा याः काश्चित् बृह १२.२६ उक्तस्तु संयमः पूर्वं वृ परा १२.२५५ उच्छिष्टजनसंस्पृष्टः भार १८.३८ उक्तं कर्म याथाकाले आश्व १.१३८ उच्छिष्टन्तु मदादधा ब्र.या. ४.११५ उक्तं प्रोक्तं प्रगीतं कपिल ५०४ उच्छिष्टन्तु यदादद्या ब्र.या. ४.११६ उक्तं शौचमशौचञ्च दक्ष ५.१ उच्छिष्टपात्रं तमभि व २.३.१२७ उक्तं श्रुत्वावंचः पुण्य वृ.गौ. १०.१ उच्छिष्टपुरतो भूमौ आश्व २३.७१ उक्तानि सर्वदानानि वृ परा १०.३८६ उच्छिष्ट भाजनं येनं .य, ३.४५ उक्तालाभेषु सर्वेषां वृ हा ५.४७ उच्छिष्टभोजनश्च कण्व ४५७ उक्ता नमा निष्कृतयः वृ हा ८.३ ४२ उच्छिष्टमगुरोमोज्यं व १.१४.१७ उक्तामर्मगतं वाक्यं शाण्डि २.५६ उच्छिष्टमन्नं दातव्यं मनु १०.१२५ उक्तिरावश्यकी नेति संकल्पे कण्व ६५ उच्छिष्टमशुचित्वंच आप २.६ उक्तिरेव समाख्याता कण्व ११३ उच्छिष्ट माजनं ब्र.या. ४.१ ४८ उक्तेऽपि साक्षिभि साक्ष्ये या २.८२ उच्छिष्टमार्जन चव देवल १८ उक्तोऽधोर्ध्व विभागेन वृ परा २.५७ उच्छिष्टमिष्टोपहतामित्ये बृन ९.१ ४० उक्तो गृहस्थस्य वृ परा ४.१५३ उच्छिष्टं च पदास्पष्टं परा ६.३१५ उक्त्वा चैवानृतं साक्ष्ये मनु ११.८९ उच्छिष्टं तं द्विजं यस्तु दृ.य. ३.४९ उक्त्वा पित्रादि संबंधं आश्व १.१०१ उच्छिष्टं वैश्यजातीनां आप ५.६ उक्त्वेदं परिषिञ्चामि आश्व १.५५ उच्छिष्ट लेपो परतानां बौघा १.६.२८ उक्षाणां वेधसा सृष्टा वृ परा ५.४४ उच्छिष्ट लेपो पहतानां पा १.६.३५ उख्यानुहरण यत्त कण्व ३० Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी उच्छिष्टवर्जनं तत् पुत्रे उच्छिष्टशवचाण्डालनखं उच्छिष्टः शूद्रसंस्पृष्टः उच्छिष्टंसंनिधौ कार्य उच्छिष्टस्तु यदा विप्रः उच्छिष्टस्पर्शने चैव उच्छिष्टस्पर्शने चैव उच्छिष्टः पर्शते विप्रो उच्छिष्टस्पर्शनं ज्ञात्वा उच्छिष्टस्य विसर्गार्थं उच्छिष्टिनं स्पृशन् उच्छिष्टेन च संस्पृष्टा अच्छिष्टेन निरंकालं उच्छिष्टेन संस्पृष्टा उच्छिष्टेन तु संस्पृष्टो उच्छिष्टेन तु संस्पृष्टो उच्छिष्टेन तु संस्पृष्टो उच्छिष्टेन पुरीषेण तथा उच्छिष्टेन स्पर्शनं कृत्वा उच्छिष्टेऽपि च ये युक्ताः उच्छिष्टोच्छिष्ट संस्पर्शे बौधा १.३५ व्या १९१ भृ परा ८.२५८ शंख १४.११ आप ७.१६ आश्व १.१६४ आश्व १.१६८ आप ५.११ आंपू ९८५ वृ परा ७.३२६ वृ हा ६.३५८ लघुयम १४ वृ हा ६.३६१ आप ७.१२ अत्रि स २८३ आंपू ९५४ मनु ५.१४३ कपिल ८५४ वृ हा ६.३५५ भार १८.४१ आंपू ९६१ आप ९.३२ बृ.य. ३.४४ उछिष्टोष्ट संस्पृष्टः उच्छिष्टोच्छिष्ट संस्पृष्ट उच्छिष्टोच्छिष्ट संस्पृष्टः बृ.य. ३.४७ उच्छिष्टोच्छिष्ट संस्पृष्टः पराशर ७.२१ उच्छिष्टोच्छिसंस्पृष्टः उच्छिष्टोच्छिसंस्पृष्टो उच्छिष्टोच्छिष्ट संस्पृष्टो उच्छिष्टो ब्राह्मणः स्पृष्ट वृ परा ८.२५५ उच्छिष्टो ब्राह्मणः स्पृष्टो वृ परा ८.२३२ उच्छिष्टो यदि नाचान्त औ ९.७५ मनु ३.८९ उच्कीर्षके श्रियै कुर्याद् उच्छेदभीतिमध्यहे उच्छेधस्तस्यविस्तारं उच्छेषणं तु तात् तिष्ठद् वाधू १३१ यम ४१ बृ.य. ३.४६ लिखित ७८ भार १५.३३ अनु ३.२६५ उच्छेषणं तु नोत्तिष्ठेद् उच्छेषणं भूमिगतं उच्छेषणं भूमिगतं उच्यते सहि विप्रस्य उच्यन्ते चनिदानानि उतासितं भवेत् सर्व उत्कर आग्नीध्रस्य उत्कीर्ण इव माणिक्यो उत्कृष्टं चापकृष्टं च उत्कृष्टायाभिरूपाय उत्कोच काश्चोपधिका उत्कोचजीविनो द्रव्यहीनान् उत्क्रम्य तु वृतिं यत्र उत्क्रोशतां जनानां उत्तप्रमाण सुस्मिग्धं उत्तमः कथितस्याद्भिः उत्तमः पितृकृत्येषु उत्तमस्त्वायुधीयोऽत्र उत्तमस्य तु भागस्य उत्तमं कीदृशं दानम् उत्तमं त्रिगुणं प्रोक्तं उत्तमं नवधा चैव उत्तमं मध्यमंनीचं उत्तमागमनेऽनार्याः सर्वे उत्तमांगोद्भद्भवाज्येयेष्ट्याद् उत्तमा तारकोपेता मध्यमा उत्तमाधममध्यानाम उत्तमानुत्तमान् गच्छन् उत्तमा पूर्वसूर्या च उत्तमामध्यभानी च उत्तमा सूर्यसहिता मध्यमा उत्तमास्वैरिणीनां या उत्तमां सेवमानस्तु उत्तमैरुत्तमैर्नित्यं उत्तरत उपचारा व १.११.२१ मनु ३.२४६ वृ.गौ. ११.३ शाता १.११ बृ.या. ४.७१ बौधा १.७.२३ शाण्डि ४.१९६ नारद २.५४ मनु ९.८८ मनु ९.२५८ या १.३३९ नारद १२.२५ नारद १५.१९ भार ११.१ लोहि ५६० आंपू ४६० नारद ६.२१ २५९ लिखित ४० भार १७.१२ वृ.गौ.३.६ विश्वा ३.१४ विश्वा ३.३ भार २.५० वृ परा ८.२४५ मनु १.९३ विश्वा १.२२ बृ.या. ७.५ मनु ४.२४५ विश्वा १.२३ भार १५.१४४ विश्वा १.२४ नारद २.२१ मनु ८.३६६ मनु ४.२४४ बौधा १.७१ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० स्मृति सन्दर्भ उत्तरत उपचारो विहारः बौधा १.१२.७ उत्थायातान्द्रि शौचं व हा ४.१५ उत्तरत्र तदर्द्धञ्च व २.६.१७ उत्थायापररात्रमधीत्य व .१.१२.४४ उत्तरं वासः कर्त्तव्यं बौधा २.३.६६ स्थायार्क प्रतिप्रोत कात्या ११.१० उत्तराचमनं पीत्वा आश्व १.१६० उत्थायावश्यकं कृत्वा मनु ४.९३ उत्तराचमनं पीत्वा आश्व १५.१४ उत्थायोपासेत्संध्या वृ परा २.१६ उत्तराचमानात्पूर्व आश्व २३.७२ उत्पत्ति प्रलयश्चैव दक्ष १.२ उत्तरारणिनिष्पन्नः कात्या ७.१३ उत्पत्तिरेव विप्रस्य मनु १.९८ उत्तरां शेणिमुत्तरेण बौधा १.७.२२ उत्पत्तिस्थितिसंहार भार ६.४ उत्तरीयं विना नैव वृ परा ६.२७१ उत्पद्येत गृहे यस्य मनु ९.१७० उत्तरीयं समाख्यातं औ १.९ उत्पद्यते त्रिपादायाः वृ परा ४.५ उत्तरीमाभावे च वस्त्र व्या ११३ उत्पद्यन्ते विनश्यन्ति मनु १२.९६ उत्तरेण चतुःकोटि रीशाने ब्र.या. १०.१३९ उत्पन्नमातुरे स्नानं परा ८.३०५ उत्तरे वोर्द्धतस्चैव अवेक्ष्ये ब्र.या.८.३ २० उत्पन्नमेतत्तु यतः वृ परा ३.३१ उत्तरेषामुत्तरोत्तरः बौधा १.११.१२ उत्पन्नवैराग्यवलेन ल हा ७.२१ उत्तरोत्तरदानेन कात्या ४.१ उत्पादकब्रह्मदात्रो मनु २.१ ४६ उत्तानं किञ्चिदुन्नाम्य बृह ९.१८९ उत्पादनमपत्यस्य मनु ९.२७ उत्तानं वा विवर्त्त वा औ ३.१२७ उत्पादयति यत्पुत्र शूदायां बृ.गौ.१९.३८ उत्तानौ तु यौश्चैव ब्र.या.२.७७ उत्पादयन्ति सस्यानि वृ परा ५.५० उत्तारका व्याहृतयो आंपू १५ उत्पादयन्नरक्तं च न शाण्डि २.२० उत्तरितास्सद्य एव लोहि २२२ उत्पाद्यन्ते व्ययन्ते बृह १२.२३ उत्तरेणार्द्धचैव कुर्य्यात् व २.३.६३ उत्पाद्यपूर्वकमिमान वृ परा ७.१८१ उत्तार्य स्नानवस्त्रन्तु व २.६.१ ४४ उत्पाद्य शोणितं गात्राम् वृ.गौ. ४.५२ उत्ताऱ्याचम्य उदक आंगिरस ६० उत्पाद्य सस्यानि तृणं वृ परा ५.५४ उत्तिष्ठ जननाथाऽग्ने वृ परा ६.११५ उत्पूयाऽऽज्यं पवित्रे आश्व २.४० उत्तीर्य च द्विराचम्य देव वाधू ९१ उत्प्रवेपितसर्वाङ्गो भय नारा ४.७ उत्तीर्य्याचम्य उदकाद् आप ९.१९ उत्सर्ग च द्विजः कुर्यात् । आश्व १३.१ उत्तीर्याऽऽचम्याऽऽचान्तः ।। बौधा २.५.१५ उत्सर्गेऽप्येवमेवं आश्व १२९ उत्थाने तु पुनस्तस्याः व २.५.५ उत्सवं वासुदेवस्य व २.६ २७६ उत्थाय नेत्रे प्रक्षाल्य कात्या १०.३ उत्सवे वासुदेवस्य व २.६ २७७ उत्थाय पश्चिमे यामे व २.३.१३९ उत्पादनं च गात्राणां _मनु २.२०९ उत्थाय पश्चिमे यामे मनु ७.१ ४५ उत्सादनं वै गात्राणां औ ३.२६ उत्थाय वामहस्तेन गृहीत्वा वाधू ११ उत्सादयन्ति विद्वासों अत्रि स १४५ उत्थाय सम्यगाचामेत व २.६.२१७ उत्साहाय्ययनंस्वान्त व परा२.११६ उत्थाय हस्तौ प्रक्षाल्य भार ११.११६ उत्सृज्य मलमूत्रेच व २.६.१३ उत्थाय चम्य विधिवद्देवता व २.३.१०५ उत्सृष्टा गृह्यते यद्यत्स्व ब्र.या. ७.३ ४ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ श्लोकानुक्रमपी उत्सृष्टो गृह्यते यस्तु या २.१३५ उदक्यां सूतिका नारी उदकक्रियांअशौचं व १ ४.९ उदक्यां सूतिकां वाऽपि उदक परीक्षा वर्णनम् विष्णु १२ उदक्यां सूतिका वाऽपि उदकस्या प्रदानात्तु शंख ९.१५ उदक्यां सूतिका विप्र उदकं गन्ध धूपांश्च वृ परा ७.१८९ उदगग्नेः शरावेषु उदकं निनयेच्छेषं मनु ३.२१८ उदगयनं पूर्वपक्षे दकं पिण्डदानं च लघुशंख ३६ उदगह्रि तथारात्रौ एवं उदकांजलिनिक्षेपा लता ४.१४ उदगादित्ययं मन्त्र उदकुम्भ कुशान पुष्पं औ ३.८ उदगाभिमुखे चेत्तु तज्जलं उकुम्भं पुरस्तास्तु व २.४.४७ उदग्गतायाः संलग्नाः उदकुम्भं सुमनसो मनु २.१८२ उदग्धलेदधिस्थाप्य उदकुम्भाश्च दत्त्वाऽथ व २.६.३६१ उदङ्मुखः प्रसन्नः इदकुम्भैः पवित्रान्तः शाण्डि ४.४८ उदङ्मुखश्चाहनि उदके चोदकस्थस्तु आप ९.१८ उदङ्मुखस्तु देवानां इदके चोदकस्थस्तु बृ.या. ७.४७ उदङ्मुखो यथेच्छं उदकेनापि वा कुर्याद् कपिल १७७ उदपात्रं शिरः स्थाप्य उदकेनाभिमन्त्रयाथाग्न्याधानं ब्र.या.८.२४४ उदपानोदके ग्रामे उदके मध्यरात्रे च मनु ४.१०९ उदयादित्य संकाशे उदक्य ब्राह्मणी स्पृष्टा वृ परा ८.२६१ उदयानन्तरं सूर्यो उदक्या दृष्टिपातेन बृ.य. ३.५१ उदयास्तमने मध्ये उदक्या ब्राह्मणी गत्वा वृ परा ८.२३७ उदयास्तमयं यावन्न उदक्या ब्राह्मणी शूद्रां आप ७.१९ उदये मध्यरात्रौ च उदक्या ब्राह्मणी स्पृष्टा वृ परा ८.१७६ उदरस्थि शूद्रान्नो उदक्या ब्राह्मणी स्पृष्टा वृ परा ८.२२६ उदरे गार्हपत्योऽग्नि उदक्या ब्राह्मणी स्पृष्टा वृ परा ८.२३१ उदरे गार्हपत्योऽग्नि उदक्यायाः पति तावत् धाधू २०९ उदात्त अनुदात्त च उदक्यावीक्षितं भुक्त्वा शाता ३.५ उदानं च समानं च उदक्याशौचिभिः या ३.३० उदानाय ततः कर्यात उदक्या सूतिका म्लेच्छ वृ परा ८.२६२ उदिते तस्य विप्रस्य उदक्यास्त्वासते व १.५.१६ उदिते तु यदा सूर्ये उदक्या स्पर्शने चैव बृ.य. ३.५४ उदितेऽनुदिते चैव उदक्या सार्शने स्नान वृ परा ३१५ उदितोऽयं विस्तारशो उदक्यास्पृष्ट संघुष्टं वृ परा ६.३१४ उदित्यमिति मन्त्रेण उदक्यास्पृष्टसंघुष्टं या १.१६७ उदीयमाना भर्तारं उदक्यां यदि गच्छेतु आप ९.३८ उदीरतामांगिरस व्या ३६१ लघु यम ११ अत्रिस २७२ आप ७.१७ आश्व ९.४ व २.३.१७६ कण्व १२३ बह १०.६ कण्व ८३ कात्या ६.१० भार ७.६९ भार ७.५७ व १.१२.११ आंपू ७८४ कण्व ९५ ब्र.या.८.३२७ बौधा २.३.५९ वृ हा ७.२२६ कण्व ३२० ब्र.या. ८.१३० दक्ष २.२ औ ३.६६ वृ परा ६.३०८ वृ परा ५.४० बृह ९.१२४ वृ परा २.१५२ वृ.गौ. ६.२२ औ ३.९१ वृ.गौ. ८.१०५ ___दा १४५ मनु २.१५ मनु ९.२५० विश्वा ७.९ मनु ९.९१ वृ परा २.१८१ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ स्मृति सन्दर्भ उदीरतामङ्गगिरस आयं वृ .या. ७.८३ उद्धर्त्य गन्धतोयेन वृ हा ४.८३ उदुत्तमेतिमन्त्रेण उन्मुच्ये ब्र.या. ८.११३ उद्धाय पूर्व संद्यायायाः भार ६.११ उदुत्यमनुवाकास्त्रीन् कण्व ५२१ उद्धारं पैतृकादेके वृ परा ७.२८५ उदुत्यमिति प्रस्कण्व ब्र.या. २.७८ उद्धारं पैतृकादेके वृ परा ७.२८६ उदुत्यं चित्रमितिद्वाभ्या व २.७.९६ उद्धारो दशस्वस्ति मनु ९.११५ उदुत्यं चित्रं देवनाम् बृह १०.५ उद्धताभिरद्भिः कार्य व १.६.१४ उदुत्यं चित्रमित्याभ्यां बृह १०.३ उधृताहं त्वया देवः विष्णु १.४५ उदुत्यं चित्रमित्येत आश्व १.४३ उद्धृतेनाम्भसा शौचं शंख १६.२१ उदुम्बरञ्च कामेन औ ९.३४ उद्धृतेप्यशुचिस्तावाद् अत्रि ५.२१ उदुम्बरशमीबिल्व व २.७.४९ उद्धृत्य निश्चले स्थाने विष्णु १.१३ उदकं निनयेच्छेषं औ ५.४.९ उद्धृत्य परिपूताद्भि वृ परा १२.१६२ उद्गच्छन्ति हि नक्षत्रा लघुयम ६६ उद्धृत्य प्रणवेनैव वृ परा ९.३२ उद्गत्रन्त्रो होमलिंगो विष्णु १.६ उद्धृत्य प्रणवेनैव बृ.गौ. २०.४४ उद्गीतं तु भवेत्साम वृ हा ७.४४ उद्धृत्य प्रोक्ष्य तत्पात्रे आंपू ७९४ उद्गीथाक्षरमेद्ब्रह्म बृ.या. २.११ उद्धृत्य भस्म सम्माय॑ शाण्डि ३.८७ उद्गूर्णे हस्तपादे या २.२१९ उद्धृत्यवामहस्तेन व २.६.२१२ उद्दिश्य देवताः तत्र व २.३.८४ उद्धृत्य वामहस्तेन वृ परा ८.२०१ उद्दिश्य विप्रपंक्तौ तां व्या ३७९ उद्धृत्यैव च तत्तोयं आप २.१० उद्दिश्य विष्णुं जगतां वृ परा १०.३८४ उद्बन्धनमृते चापि शाता ६.३९ उद्दिश्य वैष्णवान् वृ हा ७.१५५ उद्बन्धनादि निहतं औ ९.७४ उद्दिष्टक्रतुकालस्य वृ परा ७.१५५ उद्वबर्हात्मनश्चैव मनः मनु १.१४ उद्दिष्टं न तथा शुद्धये व २.६.४८७ उद्बुध्यस्वेति मंत्रस्य वृ परा ११.३१८ उद्दीप्यस्व जातवेद बौधा १.४.४ उद्बोधयित्वा शयने वृ हा ७.२५२ उद्देशतः किंचिदवादि वृ परा १२.२७६ । उद्भिज्जाः स्थावराः सर्वे मनु १.४६ उद्देशतो मया प्रोक्तः वृ परा २.२२९ उद्यतं याचितं वास्यात् शाण्डि ४.९ उद्देशत्यागकाले च सव्य आपू १०७६ उयतामातां भिक्षा व १.१४.१३ उद्देशत्यागमात्र च प्राचीन आपू ८११ उद्यताः सह धावन्त लघुशंख ३९ उद्देशेन मया प्रोक्तो वृ परा ४.११० उद्यताः सह धावन्ते लिखित ७१ उद्धृते दक्षिणे पाणाव मनु २.६३ उद्यता सह यावंत दा ९२ उद्धृत्य वाऽपि त्रीन् बौधा २.३.९ उद्यतैराहवे शस्त्रैः मनु ५.९८ उद्धरिण्या जलं वृ हा ४.७९ उद्यतो निधने दाने आर्तो पराशर ३.२९ उद्धरेद_णपात्रेतु गृह्णी व २.६.९१ उद्यत् कोटिर विप्रभं व हा ३.३५० उद्धरेददुकं सर्व शोधनं अत्रिस २२९ उद्यद्दिनकरा माया । व २.६. ७६ उद्धरेद्धटशतं पूर्ण पंचगव्येन अत्रिस २२८ उद्वर्तनमपस्नानं मनु ४.१३२ उद्धरेद्दीनमात्मानं समर्थो पराशर ७.४२ उद्वेहत् क्षत्रियां विप्रो व्यास २.११ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी उद्वहेदभिरूपान्तमन्यथा उद्वाहकाले रतिसंप्रयोगे उद्वाहयत्तमश्वत्थं उनद्विवर्षे प्रेते उन्मत्ततितक्लीव उन्मत्तं दुर्बलं सन्नं उन्मत्तं पतित्तं क्लीबमबीजं उन्मीलिनी वञ्जुलिनी उन्मृज्य सर्वगात्राणि उपकल्प्यततोऽनम्वा उपकारक्रिया केलि उपकुर्वन्ति यावन्ति उपकुर्वन्परंकुर्वन् उपक्रमोपसंहारकारिपादो उपचार क्रियाकेलि स्पर्शो उपच्छन्नानि चान्यानि उपजप्यानुपजपेद उपत्तिः एव विप्रस्य उपतिष्टतामित्यक्षय्य उपनीतस्तु चेदुपने उपनीतस्थ दोषोऽस्ति उपनीतं यदा त्वन्नं उपनीति पुनरपि क्रूर उपनीतेः परं तस्य विप्रत्वं उपनीतो गुरुकुले उपनीतो मानवको उपनीयः गुरु शिष्यं उपनीय गुरु शिष्यं औ ९.१०२ व १.१६.३१ शाता ३.१९ व १.४.२८ नारद १३.३७ आंपू ७५४ मनु ९.७९ ब्र. या. ९.२१ उपदिष्टो धर्म प्रतिवेदम् बौधा १.१२.२१ उपधाभिश्च यःकश्चित् मनु ८.९९३ उपदिष्टो धर्मः बौधा १.१.१ उपदोकाहताः केशाः कण्व ६४१ आंपू ३७९ उपनीतः कलत्री वा उपनीतः सदा विप्रो साम्वर्त ५ उपनीतस्ततोज्येष्ठा लोहि ९१ आंपू १३१ दक्ष १.६ वृ परा २.१३२ ब्र. या. २.१४७ मनु ८.३५७ परा १०.३७२ कण्व २६९ विश्वा ३.५९ नारद १३.६७ मनु ८.२४९ मनु ७.१९७ वृ.गौ. ३.७३ या १.२५२ आप ९.१३ कपिल ९९२ कपिल ७५९ व्यास १.२३ लता ३.१ मनु २.६९ या १.१५ उपनीय गुरु शिष्यं उपनीय तु तत्सर्वं उपनीय तु यः कृत्स्नं उपनीय तु यः शिष्यं उपनेया न ते विप्रैः उपेनेष्यामि यूयं न उपरिष्टादुपरिचेत्ये उपरुध्यारिमासीत उपन्यस्तानि तावत्तु यावस्त्या उपपन्नो गुणैः सर्वैः उपपातकरी (गा) णां या ३.२६५ मनु ११.१०९ आंउ ११.१ अत्रिस २९१ व २.६.६१ उपपालक वर्णनम् उपपातक शुद्धिस्यादेवं उपातकसंयुक्तो गोघ्नो उपपातकसंयुक्त गोधनो उपातकसंयुक्तो मानवो उपपातक सर्वाङ्ग उपपप प्रकीर्णञ्च उपभोग्यास्तु ते सर्वे उपयमन कुशानादाय दक्षिणं ब्र. या. ८.२७० उपयुक्तानसंग्रह्यः अपवित्रों उपयुंजन्ति सस्यानि उपन्यास सुमुखं उपरम्येच्छनैर्विद्वान् वृ हा ६.२०८ अत्रिस २०४ भार १५.१५२ वृ परा ५.१६० उपरुन्धन्ति दातारं उपर्यग्रमधोमूलं कृत्वा उपलिप्तं स्थंडिलं उपलिप्य शुचौ देशे उपवासकृशं तं उपवासञ्च दीक्षाञ्च उपवासदिने यस्तु दन्त उपवासदिने श्राद्धे २६३ वृ हा २.१३६ मनु ३.२२८ व १.३.२४ वृ हा ३.३५४ शाण्डि ४.१७५ उपरागे गुरुर्दीक्षे पुत्रे जाते ब्र.या. १०.१५७ भार २.१५ मनु ७.१९५ व १.२८.१७ भार १८.११३ व २.२.१४ शाण्डि ४.११७ मनु ११.१९६ वृहस्पति ७८ वाधू ३३ वृ हा ६.२०६ वृ.गौ. १०.२२ शाण्डि ४.२२० उपवासन्तु यः कृत्वा उपवासपरोभूयः स मनु २.१४० वृ परा ६.१७७ कण्व ७२१ कपिल १२६ मनु ९.१४१ विश्वा ६.१४ विष्णु ३७ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ उपवासः स विज्ञेयः उपवासदिने यस्तु उपवासं तयोराहुरशुद्धौ उपवासं न्यायेन उपवासात्तथादानात् उपवासान्तराभ्यास उपवासी नरो भूत्वा उपवासी विशुद्धात्मा उपवासेन चैकेन उपवासेन तत्तुल्यं उपवासेन शुद्धि स्यात् उपवासैव्रतै पुण्यैः उपवासो व्रतञ्चैव उपवासोव्रतञ्चैव स्नानं उपविश्य गृहद्वारि उपविश्यचु (शु) चौ उपविश्य शुचौ देशे उपविश्याssसने शुद्धे उपविश्य शुचौ देशे उपविष्टः शुचौ देशे उपविष्टेषु यच्छ्राद्धे उपविष्टो गृहे रम्ये उपवीत धरास्तस्माद्धार्य उपवीतमोर्ब्रह्ममुनि उपवीतमिदं दध्युरिटरे उपवीतमुखानां वै तेषां उपवीतं ततो दद्याद् उपवीतं तदुत्सृज्य उपवीतं तदुत्सृज्य उपवीतं द्विजश्रेष्ठे उपवीतं यथा यस्मिन्धत्ते उपवीतं वामबाहु उपवीतानि देवस्य उपवीती ततः शुद्धः उपवीती समाचम्य आंपू ९७५ वृ हा ८.३१८ वाधू ४८ व १.२२.६ शाण्डि १.९७ शंख १८.१० संवर्त २०४ वृ परा १०.११९ अत्रिस १२७ औ ३.९९ अत्रि ५.५६ पराशर १०.४२ पराशर ६.५८ शाता १.२८ व्यास ३.३६ भार ५.४३ भार ४.९ व २.६.१५० वाधू २४ वृ हा ४.१८ औ ५.३० व २.६. ३५ "ति सन्दर्भ उपवेश्यतु तान् विप्रान् पनु ३.२.९ उपदेश्य प्राङ्मुखान्सर्वान् व.२.६.३१० बाधू ७० उपव्यु (षस्यु) षसि यत्स्नानं उपसर्जन प्रधानस्य उपस्तीर्य घृतंपात्रे उपस्थमुदरं जिह्वा हस्तौ उपस्तुमुदरं जिह्वा हस्तौ नारद १८.९५ मनु ८.१२५ हा ५.५६६ व २.१४६ उपस्थानन्तु सर्वत्र उपस्थानं जपं कृत्वा उपस्थानं ततः कुर्य्यात् उपस्थानं ततः कुर्याद् व् परा ११.३०८ उपस्थानं ततः पश्चात् या ३.२८२ उपस्थानं ततः शीघ्रमति उपस्थानं स्वकैर्मन्त्रै दक्ष २.३९ आंउ २.८ बृह १०४ उपस्थानादिकं चैव उपस्थानादिर्यस्तासां आन १.६४ बृ.या. ७.१०८ नारद २.१०१ भार ६.१४० लोहि ६७७ व २.३.१३६ पराशर ८.१० भार ७.३ उपस्थानाय दानाय उपस्थाने विनियोग उपस्थाय च सप्ताश्वं उपस्थाय च सूक्तेन उपस्थाय ततः शीघ्रं उपस्थाय महादेव उपस्थाय रवेः काष्ठां उपस्थितस्य भोक्तव्य उपस्थितव्य भोक्तव्य उपस्थिते विवाहे च उपस्पर्शकालेन भार १६.१२ भार १७.२४ भार १६.३३ भार १६.१६ हा ८.३४ भार १६.४३ भार १६.४४ धार १६.४० आश्व १.९० औ १.१० व. २.३.१४८ मार १६.६२ आश्व २३.७७ उपह्वरे शुचौदेशे विलिप्ते मनु ९.१२१ व २.६.३०१ व्यास ३.२५ वृ हा ४.२३५ या २.६३ वृहस्पति ७० भार ४.२० मनु ६.२४ पराशर १२.५२ उपस्पृशं स्त्रिषवणं उपस्पृशेत् त्रिषवणं उपस्पृशेत्प्रधानाङ्ग प्रणवेन विश्वा २.५२ उपस्पृश्यत्रिषवणामव्देन ब्र. या. ८.८९ मनु २.५३ उपस्पृश्य द्विजो नित्यं उपहन्यादे (दु) दक (के) न कपिल २३४ उपहन्येत वा पण्यं नारद ९.६ भार ११.७ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ श्लोकानुक्रमणी उपांशुजपयुक्तस्तु वृ परा ४.५८ उपासते च तान्ये तु उपांशु तु जपं कुर्यात् वृ परा ४.५६ उपासते ये गृहस्था उपांशुस्तुचज्जिह्वा अत्रि २.११ उपासनमनुव्रज्यात् उपांशु स्याच्छतगुणः शंख १२.२९ उपासने गुरुणाञ्च उपाकरण पर्यन्तं आश्व १०.५४ उपासने तु विप्राणां उपाकर्मणि चोत्सर्गे मनु ४.११९ उपासीत ततः सन्ध्या उपाकर्मणि चोत्सर्गे कण्व ३१४ उपासीत न चेत्सन्ध्या उपाकर्मणि चोत्सर्गे कात्या १०७ उपासीत न चेत् संध्या उपाकर्मणि चोत्सर्गे कात्या १०.९ उपासीत निरस्तोऽपि उपाकर्मणि चोत्सर्गे आश्व १३.७ उपासीरन्द्विविजाः तावत् उपाकर्मणि चोत्सर्गे औ ३.७१ पास्य पश्चिमा संध्यां उपाकृत्योदगयने कात्या २८.३ उपास्य पश्चिमा संध्यां उपाक्रुश्य च राजानं नारद १६.२७ उपास्य पश्चिमा संध्या उपादान प्रकारो यः शाण्डि ४.१ उपास्य पश्चिमां संध्यां उपादानविधिं वक्ष्ये शाण्डि ३.२ उपास्य पश्चिमां संध्या उपादानविधिं सम्यक् शाण्डि ३.१ उपास्यं तत्सदा ब्रह्म उपादेयानि पुष्पाणि व २.६.५७ उपेक्षकः सर्वभूतानां उपादेयानि शाकानि व २.६ १६७ उपेक्षणं पंकादौ उपाधौ समनुप्राप्ते गौणा विश्वा १.३३ उपेक्षांकुर्वतस्तस्य उपाध्याय-नृपा-आचार्य वृ परा ८.२५२ उपेक्षिताऽशाक्तिमां उपाध्यायाधशाऽऽचार्य व १.१३.१७ उपेतारमुपेयं च सर्वो उपाध्यायान् दशाचार्य मनु २.१ ४५ उपेयादीश्वरञ्चैव योग उपानत् पादुके चैव वृ परा १०.२२ उपेयादीश्वरञ्चैव उपानत्प्रदाता यानं व १.२९.१५ उपोदकी चर्मफलं उपानयेद् गा गोपाय नारद ७.१२ उपोध्यान्तजले स्थित्वा उपानहावमेव्यं वा आप ९.११ उपोषितः समभ्यर्च्य उपानही च छर च वृगौ ५.६९ उपोष्य द्वादशीमिश्रो उपानही च वासश्च मनु ४.६६ उपोष्य पूर्वदिवसे उपानही परिधाप्ये ब्र.या.८.१२२ उपोष्य पूर्व दिवसे उपानुवाक्यं च तथा कण्व ५३१ उपोष्य पूर्ववत् सर्व उपायः कल्पितक्वापि का 'ल २२६ उपोष्य रजनी रजनीमेका उपायाध्यवसायेन वृ हा ८१५४ उपोष्य विधिवद् भक्ति उपायाः साम दानञ्च ___ या १.३.६ उपोष्याभ्यर्चयेद उपायैर्विविधैरेषा नारद १५.१६ उपोष्यैकादर्सी तत्र उपावृत्तिस्तु पाकेभ्यो आंपू ९७४ उपायैकादशी वृ.गौ.१०.९० मनु ३.१०४ ब्र.या. १२.३१ औ १.१३ पराशर ३.३ व २.३.१०७ औ ९.६७ संवर्त २३ शाण्डि १.९८ वृ परा २.७१ वृ परा ६.१३९ शंख ३.९ या १.११४ वृ हा ५.२८९ ल हा ४.१९ वृ परा १२.२०९ व १.१०.२२ व परा ८.१३७ नारद २.७१ वृ हा ६.२३८ मनु ७.२१५ या १.१०० व्यास २.८ प्रजा १२१ वृ हा ६.३१ वृ परा १०.९२ ब्र.या. ९.९ वृहा ७.१२ वृ हा ८.२२५ वृ हा ७.१७१ बृ.य. ३.४८ वृ हा ५.५५८ वृ हा ७.१५८ वृ हा ५.३२२ म.वा. ९.३३ A Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 मृदा २६६ स्मृति सन्दर्भ उभयतः प्रणवां ससप्त बौधा २.४.९ उमामहेश्वरौ पश्चाल्लक्ष्मी लोहि ५०५ उभयत्र दशाहानि पराशर ३.८ उरगेत्यायसो दण्डः ब्र.या. १२.६१ उभयत्र प्रकथितं आंपू ७९८ उरगेष्वायसो दण्डः या ३.२७३ उभयस्य निमित्तेन पु ६ उरभ्रे निहते चैव शाता २.५३ उभयस्य पालनाद व १.१९.५ उरस्यष्टांगुलं धार्य । वृ हा २.७४ उभयं चैव नाऽऽद्रियेत बौधा ११.२६ उरेदेशत्यागमखिलं स्वयमेव कपिल ३१४ उभयं विन्दते यस्तु वृ .या . २.९५ उर्ध्वं पुड्रो मृदा व २.१.२० उभायानुमतः साक्षी भवत्ये या २.७४ उर्ध्वं जंघेषु विप्रेषु अत्रिस ३८९ उभयावसितः पापः श्यामा लघु यम २४ उर्ध्वपुंड्रं च विधिवद् भार १२.५२ उभयावसिताः पापायेऽग्राम्य यम ४ उर्ध्वगत्यां तु यस्येच्छा वाधू १०७ उभयावसिताः पापा बृ.य. १.५ उर्ध्वपुत्तु विधिवत् भार ११.६ उभयाव्यवहारश्च पु २४ उ»च्छिष्टस्य संशयै वृ परा ८.२५४ उभयेन पवित्रस्तु वृ परा २.१ ४८ उर्वारुक्षीरिणीपीलुं प्रजा १२२ उभयोः कर्मकर्त्ता स्यात्तदा लोहि २७७ ।। उर्वारुस्सरणस्सारः कण्व ६१८ उभयोरप्यसौरिक्थी लोहि १९६ उलकादि जनुर्जित्वा औ ९.९७ उभयो ब्रह्मणीचार्य ब्र.या. ८.२६१ उल्काविद्युत्स ज्योतिषम् व १ १३.१० उभयोर्भोजनं कुर्यान् ___आपू ४६ उल्काविदुयत्समासे व १.१३.९ उभयोवंशयोश्चापिपितृणां कपिल ७८१ उल्काहस्तौऽग्निदो ज्ञेयः नारद २.१५२ उभयोर्हस्तयोर्मुक्तं मनु ३.२२५ उल्लिख्य तद्गृहं पराशर १०.३७ उभयोः सप्त दद्याच्च वृ हा ४.१७ उवाच तां वरारोहे विज्ञातं विष्णु १.३१ उभयोस्तातयोश्चापि जनन्योरपिलोहि २७५ उवाच धर्मान् सूक्ष्मख्यान् वृ.गौ. १.२८ उभयाभ्यामपि पाणिम्यां ब्र.या.२.९० उशतीर्हस्तयोश्चैव वक्षे विश्वा २.३४ उभाभ्यां ज्ञानकर्मभ्यां शाण्डि १.४८ उशीरं जाति कुसुमं वृ हा ४.५३ उभाम्यां धारणं वायो वृ हा ३.३६ उशीरं तुलसी पत्रं केशरं व २.६.८९ उभाभ्यां सेचयेद्वारि वृ परा २.२०५ उषाःकाले तु सम्प्राप्ते दक्ष २.६ उभावपि तु तावेव मनु ८.३७७ उषः काले प्रशस्तं स्याद्यो विश्वा १.९६ उभावपि विभक्तौ तौ न तु शाण्डि १.४९ उषःकाले भानुवारे यो वाधू ७२ उभावपि समालोक्य ब्र.या.८.२२५ उषःकाले समुत्थाय ल हा ४.५ उभावप्यशुची स्यातां लघु यम १७ उषत्वेति चारु च व २.६.२९७ उभावेतावभोज्यान्नौ अत्रि ५.१० उषसः प्राग्रजः स्त्रीणां दा १४६ उभे चिह्न विराविप्रो वृ हा ५.४० उषः स्नानं प्रशंसन्ति वृ परा २.९६ उभे मूत्रपुरीषे तु दिवा व १.६.१० उषस्युषसि यत् स्नानं बृ. मा. ७.११८ उभे संध्ये तु स्नातव्यं बृ.या. ६.२६ उषस्युषसि, यत् स्नानं दक्ष २.११ उभे संध्ये समाधाय अत्रिस २६ उषित्वैवं गृहे विप्रो संवर्त ९७ उमामहेश्वरा च एव वृ.गौ.१.१६ उषित्वैवं वे सम्यम् संवर्त १०१ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी उष्ट्रयानं समारुह्य उष्ट्रयानं समारुह्य उष्ट्रयानं समारुह्य उष्ट्र खराजौ महिषं च अष्ट्रीक्षीरं खरीक्षीरं उष्ट्रीक्षीरमवीक्षीरं उष्णं जलंपय सर्पि उष्णं स्निग्धं च उष्णीषमजिनं उत्तरीय उष्णे वर्षति शीते वा उष्णेन वाप्युदके उष्णेन वायवितिच उष्णेन वायमंत्रेण उष्णेन शक्तो न स्नाया उष्णे वर्षति शीते वा उष्णे वर्षति शीते वा उष्णोदकं वृथास्थानं उष्णोदकेन तु स्नानं उष्णोदकेन या संन्ध्या उष्णोदकेन सप्ताहं ऊ ऊढाया दुहितुश्चान्नं ऊनद्विवर्ष निखनेन्न उनद्विवार्षिकं प्रेतं ऊनमभ्यधिकं वार्थ ऊनस्तीमधिकौ वा या ऊनं वाप्याधिकं वाऽपि ऊनाब्दिके त्रिरात्र ऊनैकादशवर्षस्य ऊनैकादशवर्षस्य ऊनैकादशर्वषस्य ऊरुजस्यापि यत् कर्म ऊरू जंघे च पादौ च ऊरूं होति च मंत्रेण ऊरूभ्यां गुह्यवृषणे अत्रिस २९४ मनु ११. २०२ औ ९७० वृ परा १०.२०९ अत्रिस २३५ अत्रिस ९२ वृ परा ९.१० ब्र. या. ४.९१ बौधा १.३.६ पराशर ८.३९ ब्र.या. ८.३४९ व २.३२६ आश्व ९.१० आं पू. २५० मनु ११.११४ आं उ ११.७ व्या १५३ कण्व ६२३ व्या ३३७ व्या २१६ आश्व १५.८० ३.१ मनु ५.६८ नारद २.२१० अत्रिस २९९ या २.२९८ लिखित ६५ देवल ३१ यम १५ बृ.या. ३.१ ल हा ७.१६ कात्या ७.१० वृ परा २.१२४ बृ.या. ५.९ २६७ बौधा २.५.२१० बौधा २.३.४ ऊर्जं वहन्तीरमृती घृतं ऊर्ज वहन्तीरिति ऊर्णामयंकंकगणन्तु ऊर्णाहारी लोमशः स्यात् व २.४.४५ शाता ४.२४ ऊर्द्धमादहनं प्राप्त आसीनो कात्या २१.७ ऊर्वोच्छिष्टांअघोच्छिष्टं पराशर १२.५५ ऊर्ध्वनास्यां (सां) समायोज्य विश्वा ६.१३ ऊर्ध्वन्तु दहनं प्रोक्तं ऊर्ध्वन्तु प्रोष्ठपद्यास्तु ऊर्ध्वपुण्ड्रधरं विप्रं ऊर्ध्वपुण्ड्रधरं विप्रं ऊर्द्दव पुण्ड्र मृजुं ऊर्ध्वपुण्ड्रविहीनन्तु ऊर्ध्व पुण्ड्रविहीनः सन् ऊर्ध्वपुण्ड्रस्य मध्ये तु ऊर्ध्वपुण्ड्रस्य मध्ये ऊर्ध्व पुण्ड्र मृदा शुभ्रं ऊर्ध्वं पुण्ड्रं विना यस्तु ऊर्ध्व पुण्ड्राणि पद्याक्ष ऊर्ध्वं पुण्ड्रैरलंकृत्य ऊर्ध्वमेक स्थितरस्तेषां ऊर्ध्वं त्रिरामात्स्नातायाः ऊर्ध्वं दशम एवं ऊर्ध्वं नाभेः करौ ऊर्ध्वं नाभेः करौ मुक्त्वा ऊर्ध्व नाभेर्मेध्यतरः ऊर्ध्वं नाभेर्यानि खानि ऊर्ध्वं पितुश्च मातुश्च ऊर्ध्वं पूर्णाहुते ऊर्ध्वं पुर्णाहुतेऊर्ध्वं पूर्णाहुतेऊर्ध्वं प्राणा त्क्रामंति ऊर्ध्वं मासात्यजेत् सर्व ऊर्ध्वं लोकं न यातो ऊर्ध्वं विभागाज्जातस्तु वृ हा ६.३८८ वृ परा ७.२८९ वृ हा ८.२८४ वृ हा ८.२८७ व २.३.५० वृ हा २.६१ वृ हा २.६४ वृ हा २.६७ व २.६.५१ वृ हा २.६६ वृ हा २.६० वृ हा ८.२५१ शाण्डि ३.१३५ या ३.१६७ अत्रि ५.६५ व २.६.४५५ आप ९.१० यम ४५ मनु १.९२ मनु ५.१३२ मनु ९.१०४ कात्या १८.२ कात्या १८.३ कात्या १८.६ मनु २.१२० वृ हा ८.१०४ आंपू ३७२ मनु ९.२१६ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ऊर्ध्वं वै पुरुषस्य ऊर्ध्वषडभ्यो मासेभ्यो बौधा १.५.८८ व १.९.८ ऊर्ध्वं संवत्सरात् देवल २२ कात्या २८.१३ ऊर्ध्वं सत्विविशाल- अहम् वृ.गौ. १.५१ ऊर्ध्वं स्वस्तरशायी ऊर्ध्वाग्रं स्थापयेत्कूर्चं ऊर्ध्वानाञ्चैव सापिण्ड्य भार १८.१०६ औ ६.५४ ऊर्ध्वे तु निष्कृति ऊषरं लवणञ्चैव वृ हा ६.३१३ वृ हा ४.११४ व्यास ४.६३ ब्र. या. ८.३७ ब्र. या. २.८४ ब्र. या. २.४७ शंख १२.१० वृ परा २.८९ ब्र.या. २.८२ ब्र. या. २.१२७ म ८० आश्व १.८७ शंख १३.३ शंख १२.११ भार ६.१४३ ऊषरे वाऽपितं वीजं ॐ अग्ने सुश्रवः सौश्रव ॐ कारं चतुरावर्त्य ॐ कारं तु समुच्चार्य ॐकारः प्रणवाख्य ॐकार ब्रह्मसंयुक्तं ॐकारं सर्व्वमुच्चार्य ॐ त्र्यम्बकमन्त्रस्य ॐ नमो भगवते तस्मै विष्णु ॐ पूर्वा व्याहतीस्तिस्रः ॐ भगवन्तं शेष ऋ ऋक्थग्राह ऋणं दाप्यो ऋक्पादं वा जपेन्मन्त्र ऋक्शाखोक्तेन मार्गेण ऋक् संहिता त्रिरभ्यस्य ऋक्सामयजुरंगानीत्या ऋक्शाखोक्तेन विधिना ऋक्षेषु जन्मश्रेष्ठ स्याच्च ऋक्षेष्टयाग्रयणं चैव ऋगन्ते मार्जनं कुर्यात् अगन्ते मार्जनं कुर्याद् ऋगर्थे वा प्रकुर्वीत ऋगादीनामन्यतं या २.५ वृ.गौ. ८.३९ ऋगाथा पाणिका ऋग्भि षोडशभि ऋग्यजु पारगो यश्च भार ६.४० भार ६.८५ ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ भूदित्यादित्रिमंत्रैः ॐ मापो ज्योतिरित्या ॐ मापोज्योतिरित्या ॐ (आ) मापोज्योरित्ये ॐ मितब्रह्मचेत्या ॐ रंग मांग संपूर्ण ॐ वषट्काराय शांताय भार १६.१८ ब्र. या. ११.५५ भार ७.४ ॐ सहस्रशीर्षे इत्यावाहनम् ब्र.या. २.१२४ ॐ सूर्याय नमः प्रातः ॐ स्वाहा च समानाय ॐ स्वाहेति अपानाय भार ६.१२७ वृ परा ६.११९ वृ परा ६.११७ भार १७.११ ऋग्वेदविद्यजुर्विच्च ऋग्वेदश्च यजुर्वेदः ऋग्वेदसंहिता यान्तु ऋग्वेदे स्वरितोदात्त ऋग्वेदोक्तस्य सूक्तेन ऋग्वेदो दैवदैत्यो ऋचः पठन् मधुमयः ऋचामशीतिपादैश्च ऋचां यजूंसि सामानि ऋचां दशसहस्रं ऋचैकासंयमस्थेन ऋचो यजूंषि चाद्यानि ऋग्यजुश्च तथा साम ऋग्मजुः साममन्त्राणां ऋग्यजुः साममूर्तिस्तु ऋग्यजु सामवेदानां ऋग्यजुः सामवेदानां ऋग्यजुः सामवेदाश्च ऋग्यजुः सामाथर्वाणि ऋग्विघेनेति वाग्वदति ऋग्वेदंतद्वहि प्राच्यां ऋग्वेदः पूर्वचरणः ऋग्वेद मभ्यसेद्यस्तु स्मृति सन्दर्भ विश्वा ४.१० मनु ११.२६३ भार १६.२० विश्वा ६.७१ भार १५.४९ मनु ६.१० वाधू १२१ आश्व १.३८ वृ परा २.६० कात्या १४.१२ या ३.११४ वृ परा ११.३०४ 'शच १४.७ बृ.या. २.२१ दृ.गौ. १५.५८ बृह ९.१०३ भार ६.७ वृ. गौ. ६.१६७ वृ परा ३.१२ वृ.या. २.११७ बौधा १.४.२८ भार ११.४८ भार १३.१३ संवर्त २२३ मनु १२.११२ ब्र. या. १.८ वृ हा ७.६२ बृ.या. २.७८ वृ हा ७.१९९ मनु ४.१२४ कात्या १४.९ वृ हा ५.५४१ बृह ९.१६२ ब्र. या. १.१३ ब्र. या. ८.६८ मनु ११.२६५ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ऋचो यजूंषि चान्यानि ऋचो यजूंषि सामानि ऋजवस्ते तु सर्वेऽस्तु ऋजवस्ते तु सर्वे ऋणकर्ता च यो विप्रो ऋणदान वर्णन ऋणं अस्मिन् संनयति ऋणं च सर्वदा नित्यं ऋणं दातुमशक्तो ऋणं देयमदेयं च ऋणं लेख्यकृतं देयं ऋणाच्च मोक्षितोऽनल्पाद् ऋणादानं ह्युपनिधि ऋणानां सार्वभौमोऽयं ऋणानि त्रीण्यपाकृत्य ऋणिकः सधनो यस्तु ऋणि व्यसनि रोगार्त ऋणिष्वप्रतिकुर्वत्सु ऋणे देये प्रतिज्ञाते ऋणे धने च सर्वस्मिन् मुंछशिलं ज्ञेयममृतं ऋतं च सत्यं चेत्य ऋतं च सत्यमारभ्य ऋतं चेति त्र्यृचं वाऽपि ऋतामृताभ्यां जीवेत ऋतामृताभ्यां जीवेत्तु ऋतावृत्तो स्त्रियं ऋतुकाल उपासीत ऋतुक्षपासु पुत्रार्थी ऋतुयाख्याविधिना ऋतुबाणघटीमानमरुणो बृह ११.२६ वृ हा ३.४५ कात्या २७.१३ मनु २.४७ वृ. गौ. १०.७८ विष्णु ६ व १.१७.१ ब्र. या. ११.२८ ८. १५४ नारद २.१ या २.९२ नारद ६.२५ नारद १.१६ नारद २.९० मनु ६.३५ नारद २.१०९ ब्र.या. २.७२ ऋत्विक् स्वनीय विश्वा ४.२५ ऋत्विग् आचार्याव आश्व १.३९ वाधू १९६२ मनु ४.४ वृ परा ६.४१ अत्रिस १९७ व १.१२.१८ ऋतुकालगामी स्यात् ऋतुकालाभिगामी सन् वृ परा १२.१५२ ऋतुकालाभिगामी स्यात् ऋतुकालेऽभिगम्यैवं मनु ३.४५ व्यास २.४५ वृ परा ८.४० नारद २.१०२ मनु ८.९३९ मनु ९.२१८ मनु ४.५ ऋतुमत्यां च यस्तो ऋतुमद्योषितालापं तथा ऋतुव्यत्यस्ततः पूर्व ऋतसत्याभ्यामिति ऋतुस्नातदिने सोऽयं ऋतुस्नाता तु या नारी ऋतुस्नाता तु या नारी ऋतुस्नाता स्त्रियाः ऋतुस्वभाविनी स्त्रीणां ऋतुः स्वाभाविक स्त्रीणा ऋतून् संवत्सरञ्चैव ऋतौ तु गर्भशंकित्वा ऋतौ तु प्रथमेप्राप्ते ऋतौ स्नातान्तु यो भार्य्या ऋत्विक् तु त्रिविधः प्रोक्तः ऋत्विक् पुत्रोऽथवा ऋत्विक् पुत्रो गुरुभ्राता ऋत्वित् पुरोहिताचार्यै ऋत्विक् पुरोहितापत्य ऋत्विक श्वशुर ऋत्विक श्वसुर ऋत्विग्गुरुरुपाध्याय ऋत्विग्भि ब्राह्मणै ऋत्विग्भि ब्राह्मणैः ऋत्विग्भि सार्द्ध आचार्यो ऋत्विग्यादि वृतो यज्ञे ऋत्विग् याज्यमदुष्टं ऋत्विग्योनि संबंधेषु ऋत्विजश्च गुरु चैव ऋत्विजं यस्त्यजेद्याज्यो ऋत्विजां दीक्षितानां च विश्वा ८.३९ ऋत्विजां व्यसनेऽप्येवं विश्वा १.३ ऋत्विजो वरयेत्तत्र वृ परा ६.१४२ २६९ बौधा १.५.१३९ ब्र.या. ८.१२९ कपिल ३५१ वृ हा ५.२५२ आंपू ३२३ व २.५.२७ पराशर ४.१२ ब्र. या. ८.१४० ब्र. या. ८.२९१ मनु ३.४६ वृ.गौ. ८.५५ लघु यम १६ व २.४.१०७ पराशर ४.१३ नारद ४.१० व्यास २.२ दक्ष २.२१ मनु ४.१७९ या १.१५८ व १.१३.१३ बौधा १.२.४४ या १.२२० व १.१३.१९ वृ परा ७.२१ वृ हा ६.१४ वृ हा ८.२५० वृ हा ७.२ ४२ मनु ८.२०६ नारद ४.९ व १.१३.१२ वृ हा ६.७३ मनु ८.३८८ या ३.२८ नारद ४.८ व २.७.१० Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ऋत्विवामांदु श्रोत्रिये ऋप परित्यजेद्धीमानि ऋषभवेहतौ च दद्यात् ऋषभैकसहस्रा गा ऋषमैकादशा गाश्च ऋषयः पितरो देवा ऋषयश्च महात्मानो ऋषयः संयतात्मनः ऋषयो दीर्घ सन्ध्यात्वाद् ऋषिच्छन्दो देवता च ऋषि दैवतच्छन्दांसि ऋषिभि कथ्यामानं तु ऋषिभिर्ब्राह्मणैश्चैव ऋषिभिर्विरजाजाप्यै ऋषिभिश्च पुरा गाथा ऋषिम्यः पितरो जाताः ऋषिमेकान्तमासीनं ऋषियज्ञं देवयज्ञं ऋषियज्ञं ब्रह्मयज्ञं ऋषिरासां समस्तानां ऋषिर्गृत्समदश्छन्दो ऋषिर्ब्रह्मा समाख्यातो ऋषिविक्त्राच्छुता ऋषिविद्वन्नृपवर ऋषिविद्वनृपाः प्राप्ता ऋषिश्छन्दो देवताश्च ऋषिश्छन्दो देवताश्च ऋषिश्च्छन्दो देवताश्च ऋषि छंदो देवताश्च ऋषिश्च्छंदो देवताश्च ऋषिस्तु कुण्डलोगा च ऋषीणाअथ तत्प्रोक्तं ऋषीणां कुर्वतां नित्यं ऋषीणां शृण्वतां पूर्व ऋषीणां सिच्यमानानां कपिल १८९ ऋषीन्छंदांसि देवानश्च ऋष्यादिषट्कं विन्यस्य व_२.६.५२६ व १.२१.२४ ए या ३.२६६ आंउ ११.१० मनु ३.८० वृ हा ३.२३४ मनु ११.२३७ मनु ४.९४ विश्वा ६.४४ आश्व १.८८ वृ.गौ. ५.२६ मनु ६.३० वृ.या. ४.५५ अ ४७ मनु ३.२०१ व्या १ मनु ४.२१ वृ. गौ. ८.९ भार १९.८ ब्र.या. २.९२ विश्वा ६.३७ पराशर ६.३३ बौधा २.३.६३ चौधा २.३.६४ भार १२.५५ भार १३.८ भार १७.५ भार ११.१७ भार १७ २७ एस ११.३२७ कण्व ३८२ ल व्यास १.५ औ९.२ कात्या १०.१२ एक एव चरेन्नित्यं एक एव तु यो भुङ्क्ते एक एव द्विरात्रं वा एक एव भवन्नूनं एक एव यदा घिप्रो एक एव सुहृद्धर्मो एक एव हि विज्ञेयः एक एवौरस पुत्र एककंत्रिदननन्या पूरणा एककालं चरेद्भक्ष एककालस्य चित्तं स्यादेव एकगोत्र ब्राह्मणनां एकचित्यां समारूढौ एक जातिर्द्विजातींस्तु एकतश्चतुरो वेदान एकतो रुद्रजापी तु एकत्र पंचगव्येषु एकत्र पृथिवी सर्वा एकत्र पृथिवी सर्वा एकत्र संस्कृतानान्तु एकत्वमिच्छन्ति पति एकत्वं च यो तयोर्य एकत्वाश्रयणे धर्मो स्मृति सन्दर्भ भार ९.३ विश्वा ६.३५ मनु ६.४२ ब्र. या. २.१६१ व २.६.५४० लोहित २२४ आं पू९६९ भनु ८.१७ बृ.या. २.६६ मनु ९.१६३ भार १५.१४९ मनु ६.५५ कण्व १३० व्या ७२ आंपू ९८० मनु ८. २७० औ ३.४८ वृ परा ११.१५७ वृ हा ५.१५९ वृ परा ५.१९ वृ परा १०.४६ अत्रिस ९१ एकदण्डधरा मुण्डा एकदण्डडरा हंसा एकदा नैमिषारण्ये एकदेशं तु वेदस्य एकदेशमुपाध्याय एकदैव तो नूनमधन्नान्यथा एकदैव देया स्यान्न कद्रव्याणि कार्याणि एक द्वित्रिचतुर्नारिष्टा वृ परा ७.३८१ वृ परा ७.३७९ वृ परा ७.३८६ वृ परा १२.१७१ वृ परा १२.१६९ नारा ९.१ मनु २.१ ४१ या १.३५ कपिल २९९ आं पू ६१७ वृ परा ७.१२९ ४८ Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी एकद्वित्रिचतुर्वृत्तिमत्प्रभेद एक द्वित्रिचतुः संख्यान् एकधा यो विजानाति एकपंक्त्युपविष्टानां एकपंक्त्युपविष्टानां एक पंक्त्युपविष्टानां एकपंक्त्युपविष्टेषु एकपाकाशिनः पुत्रा एकपादं चरेद्रोधे एकपादं चरेद्रोधे एकपादे तु लोमानि एकपार्श्वे द्विधा होमौ एक पिण्डाश्च दायादाः एकपिण्डास्तु दायादाः एकपिण्डीकृतानां तु एकः प्रजायते जंतुरेक एकः प्रजायते जन्तुरेक एकभक्तं चरेत् पश्चाद् एकभक्तेन नक्तेन एकभक्तेन नक्तेन एक भुक्तं च नक्तं च एक भुक्तेन यश्चापि एकभुक्तेन वर्तेत नरः एकभुक्तैश्च नक्तैश्च एक भुक्त्वाह्यधः स्नायी एकमपीह यो दद्याद् एकमप्यक्षरं यस्तु गुरु एकमप्याशयेद्विप्रं एकमप्याशयेविप्रं एकमात्रं द्विमात्रं च एकमुक्ताः सुराः सर्वे एकमेव तु शुद्रस्य एकमेव दहत्यग्निर्नरं एकमेव हि विज्ञेयं एकमेवाद्वितीयं तत्प्राहुः कपिल ४७१ देवल ७५ बृ हा ९.२७ अत्रिस २४३ पराशर ११.८ व्या १७२ शंख १७.५७ आश्व १.११७ दा १०५ लघुशंख ५५ वृ परा ८.१२६ विश्वा ८.२५ वृ परा ८.४३ पराशर ३.७ वृ परा ७.३४६ मनु ४.२४० वृ.गौ. ११.३२ पराशर १०.२२ देवल ८५ या ३.३१८ वृ परा ९.१७ वृ.गौ. ७.९१ बृ. गौ १८.३ वृ परा ९.९ व २.५७८ परा १०.१६७ अत्रिस ९ ब्र. या २.२१० भनु ३.८३ बृ.या. २.३५ वृ.गौ. १०.३८ मनु १.२१ मनु ७.९ बृह १२.२७ नारद २.९८८ एकमोवाभ्यसेत्तत्वं एकं कलशमादाय स्थापये एकं गोमिथुनं द्वे वा एकं ध्नतां बहूनांच एकं च बहुभि कैश्चिद एक पवित्र मेकं वा एकं पश्वनृतेहन्ति एकं पिवति गंडूषं एकं मध्याह्न काले च एकं मध्याह्नकाले च एकं वाऽपि यथाशक्त्या एकं वा भोजयेद् विप्रं एकं वासो यथाप्राप्तं एकं वृषभ मुद्धरं ध्कं व्योम यथानैकं एकं शस्त्रास्त्रनाशाय एकं हविर्नान्यकार्य एकया च शिरः एकरात्रञ्चेरेन्मूत्रपुरीषं एकरात्रमुपाध्याये एकारात्र तु निवसन्न एकमात्र तु निवसन्न एकरात्र त्रिरात्र च एकरात्र द्विरात्र वा एकरात्र वदन्त्येके एकरात्र समुद्दिष्टं एकरात्रोषितः स्नातो एकराशिगतौ स्यानां एकवर्णेश्चतुर्भिश्च एकवर्षे हते वत्से एकवस्त्रा तु या नारी एकविंशं कुवेरस्य एकविंशति मूर्ध्नित्यात् एक निप्रागाएकस्य एकविंशत्यदर्य २७१ वृ परा १२.३४९ नारा ५.४० मनु ३.२९ या २.२२४ लघु शंख ५४ औ ७.१४ अ ९३ वृ परा ६.१२७ विश्वा ५.२ विश्वा ५.२५ व २.६.२९१ वृ हा ६.१४० वृ परा २.१६४ मनु ९.१२३ वृ परा १२.३२१ विश्वा ५.३ कण्व ७६७ बृ.या. ७.१० अत्रिस २७४ औ ६.३२ मनु ३.१०२ व १.८.७ शंखं १५.१७ औ ९.९६ वृ परा ८.२९ औ ६.२९ वृ परा. १०.३४ व्या ५८ वृ परा ११.१३ ब्र.या. १२.६२ व्या ९० नृ परा ४.२४ विश्वा ४.१८ आयूं ६९५ दा १३३ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ एकव्यूहं चर्तुवक्त्रं एकः शतं योधयति एकः सयीत शर्वत्र न एक शाखासमारूढा एकशाटी परिवृतो एकश्चेदन्नयेत् सीमां एकसंख्यादिपर्यंतं एक सहस्रमणिभि एकसाध्येष्ववर्हिषु न एकस्तम्भे नवाद्वारे एकस्मादधिकस्वेकः एकस्मिन्दिवस यत्र एकस्मिन्नेव दिवसे एकस्मिन्नेव देवेशं एकस्मिन्विंशति हस्ते एकस्य ग्रहणं कार्य धर्मतो एकस्य चेत्तद् व्यसनं एकस्य प्रथमं श्राद्धं एकस्य वैश्वदेवानि एकस्याच्चैवं संकल्पो एकस्यापि ततः सद्यः एकस्मपि हि दत्तेन एकांशेन जगत् कृत्स्नं एकाकारमना मन्दं एकाकिनश्चात्ययिके एकाकी चिन्तयोन्नित्यं एकाक्षर घ्यपरं च एकाक्षरं परं ब्रह्म एकाक्षरं परं ब्रह्म एकाक्षरं परं ब्रह्म एकाक्षरं परं ब्रह्म एकाक्षरं परं ब्रह्म एकाक्षर प्रदातारं यो एकाग्रः प्रयतो भूत्वा एकाग्रमानसो भूत्वा विष्णु १.६१ मनु ७.७४ मनु २.१८० आप ७.१३ व १.१०.८ नारद १२.१० भार १६.२८ भार ७.१२ कात्या २७.२ वृ.गौ. ८.१०४ भार ७.१० व २.६.४१९ आं पू २७२ शांण्डि ४.४ शंखं १६.२२ लोहि २४६ नारद ४.७ वृ परा ७.३३५ वृ परा ७.१२२ कण्व २८३ कपिल ८९१ ब.बा.३.३२ विष्णु म ४९ ल हा ७.५ मनु ७.१६५ मनु ४.२५८ विश्वा ३.६४ अत्रि १.१५ बृ.या. २.६३ मनु २.८३ व १.१०.६ व १.२५.११ अत्रिस १० विष्णु म १५ भार १२.५७ परशर ९.४९ संवर्त १३६ संवत २०४ वृ परा ८.१४३ एका चेद्बहुभि कापि एकाचेद्बहुभि कैश्चिद् एका चेद्बहुभि कौश्चिद् एक चेद् बहुभि बद्धा एकादश ऋचा जप्त्वा एकादशगुणान् रुद्राना एकादशं कण्ठ देशे एकादशं मनोज्ञयं एकादशविधं साक्षी स व्र. या. ८.३१४ वृ परा ११.१५५ व २ ६ १५५ मनु २. ९२ नारद २.१२६ कात्या २९.५ एकादश शुंभान् कुंभान् वृ परा ११.१६३ एकादशानाभंगानां एकादशाब्दप्रभृतिवैधव्यं एकादशाहमात्मानमन्यं एकादिपंचपर्यंतं लोहि ४९३ एकादशाहे प्रेतस्य एकादशाहे प्रेतस्य एकादशाहे प्रेतस्य एकादशे प्रेतस्य एकादशाहे भुजन्ताः एकादशाऽहोरात्र भुक्त्वा एकादशाहिकं त्वाद्यं एकादशाह्निकं भुक्त्वा एकादशी परित्यज्य एकादशी यनपूर्णा नोपौष्या एकादशेन्द्रियाण्याहुर्यानि एकोदशे भवेत्पुत्री द्वादशे एकादशेऽह्नि निर्वर्त्य एकादशेऽह्नि सम्प्राप्ते एकादशेऽह्नि संप्राप्ते एकादश्य उपवासश्च एकादश्यष्टमीषष्ठि एकादश्यान्न भुंजीत एकादश्या मुपोष्याथ एकदश्यां कृष्णपक्षे एकादश्यां द्वादश्यां वा स्मृति सन्दर्भ वृ परा ११.१६५ भार ७.१०१ दा १९ लघु यम ८९ लघुशंख ९ लिखित ९ वृ परा ७.११ अत्रि स ३०८ वृ परा ७.१४० व्या २९६ ब्र.या. ९.१० त.या. ९.३४ मनु २.८९ ब्र.या. ८.२९४ कात्या २४.९२ व २.६.३५३ विश्वा ८.३० वृता ८.२७८ भार ५.३ वृ हा ८.३०८ बृ.गौ. १८.४८ वृ हा ७.७० बौधा १.५.१३० Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी एकादश्यां न भुंजीत एकादश्युपवासस्य एकादहेह्नि कुर्वीत एकादेव (मेव) ऋषीणा एकाधिकं हरेज्ज्येष्ठ एकान्तमशुचि स्त्रीभिः एकान्तरद्व्ययन्तर एकान्तरद्व्यन्तरा एकान्तरस्तु दोष्वन्तो एकान्तरे त्वानुलोम्याद् एकान्त मप्यविरोधे एकान्नाशिषु पुत्रेषु एकान्हे अहेषड एता पादात्तु बहुभि एकार्चमथवैकं वा यजुः एकर्णवेन यत्प्रोक्ता एकालिंगे करे तिम्र एका लिंगे करे तिम्र एकालिंगे करे तिम्र एका लिंगे गुदे तिम्रः एका लिंगे गुदे तिम्रोदस एका शूदस्य एकाशौचेन वा पश्चाद्य एकाहमपि कर्तव्यं एकाहमपि कर्मस्थो एकाहमपि कौन्तेय एकाहमपि कौन्तेय एकाहमेकभ्ताशी एकाहम् अपि कौन्तेय एकाहंतत्र निर्दिष्टं एकाहं तु स्थितं तोयं एकाहस्तु समाख्यातो एकाहाच्छुद्धचते विप्रो एकाहाच्छुट्यते विप्रो एकाहाच्छुट्यते विप्रो २७३, वृ हा ८.३१६ एकाहात् क्षत्रिये शुद्धि औ ६.४८ वृ हा ६.३ ४३ एकाहिकं तु कुर्वीतं वृ परा १२.१०२ __ औ ७.१३ एकाहेन तु गोमूत्र देवल ७६ दा १५ एकाहेन तु वैश्यस्तु पराशर ११.४२ मनु ९.११७ एकाहेन तु षण्मासा कात्या २४.९ औ ३.२१ एकीकृत्य चैतेषां महारंगेन ब्र.या. ८.३११ व १.१८.६ एकीकृत्य ततः प्राश्य ब्र.या. ८.३ ४२ बौधा १.८.७ एकीकृत्याऽथ वा मूला भार १८.५७ नारद १३.११३ दीर्घायु शूराः एके वृ.गौ. १.३६ मनु १०.१३ एकेन दत्तेन वृषेण वृ परा १०.३२ व्यास १.३३ एकेन दत्तेन वृषेण वृ परा ५.५३ आश्व १.११९ एकेनापि भवेत्तेन बृ ह १२.३९ ब्र. मा. ७.२५ एके वै तच्छमशानं व १ १८.९ आप १.३१ एकोदराणां विज्ञेयं _ औ ६.२८ औ ३.७७ एकोद्दिष्टं तु मध्याह्ने प्रजा १७५ ९.१९ एकैकखंडैरपि वा यत्र भार १८.६४ आश्व १.१० एकैकन्न्यूनमित्याहुवर्णे ब्र.या. २.४० व १.६.१६ एकैकमीपविद्वांसं दैवे ब्र.या. ४.२५ __ व्या २१३ एकैकमपि विद्वांस दैवे मनु ३.१२९ मनु ५.१३६ एकैकमष्टद्वितयशत भार १४.५. दक्ष ५.५ एकैक मुपवासः स्यात् अत्रिस १२९ बौधा १.८.५ एकैकमुपवीतन्तु वृ हा ५.४२ __आंपू ५४ एकैकं ग्रासमश्नीयात् अत्रिस ११३ लिखित २ एकैकं ग्रासमश्नीयात् मनु ११.२१४. कात्या २६.१६ एकैकं ग्रासमश्नीयाद् पराशर ६.३१ दा ६ एकैकं चाथ द्वौ द्वौ आश्व १.९५ लघुशंख २ एकैकं वर्द्धयेच्छुक्ले यम १० पराशर ८.४४ एकैकं वर्धयेद्यासं बृ.य. २.६ वृ.गौ. ६.७ एकैकं वर्द्धयेनिन्नत्यं शुक्ले अत्रिस ११२ आप ४.१० एकैकं वर्धयेत् पिंड व १.२७.२१ वृहस्पति ६५ एकैकं वा भवेत्तत्र औ ५.२६ दक्ष ६.६ एकैकं हासयेत् पिण्डं पराशर १०.२ अत्रिस ८३ एकैकं हासयेत् पिंड मनु ११.२१७ दा १२० एकैकसम्भवेच्छ्राद्धे ब्र.या.४.१० पराशर ३.५ एकैकस्य चोद कमण्डल बौधा १.७.२६ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ स्मृति सदर्भ एकैकस्य त्वष्ट शतं या १.३०३ एको लुब्धस्त्वसाक्षी मनु ८.७७ एकैका तु भवेन्मात्रा बृ.या. २.२६ एको हतायैर्बहुभि पराशर ९.४८ एकैकाष्ट गुणिज्ञेयाः भार २.४७ एकोऽहमस्मीत्यात्मानं मनु ८.९१ एकैको वोभयत्र वृ परा ७.३३ एतच्चतुर्विधं विद्यात् मनु ७.१०० एकैव भाऱ्या विप्रस्य शंख ४.७ एतच्चानुमतं तत्र ऋषि ब्र.या. ४.१५१ एकोत्तरंकुलं चापि सद्य कपिल ७७२ एतच्छ्राद्धः प्रकथितः नान्य कपिल २७३ एकोत्तरशतानां च कुलानां कपिल ९३१ एतच्छ्रुत्वा तु वचनं बृ.या, १.२० एकोत्तरेण वृद्धया तु व २.६.३ ४६ एतच्छुत्वा तु वचनं बृ.या. ६.३१ एकोद्दिष्टन्तु विज्ञेयं औ ३.१२९ एतच्छौचं गृहस्थस्य आश्व १.११ एकोद्दिष्टमदैवं वृ परा ७.१५३ एतच्छौचं गृहस्थस्य व्या २१४ एकोद्दिष्टं तस्य सूनोः कपिल ११९ एतच्छौचं गृहस्थानां मनु ५.१३७ एकोद्दिष्टं तु मातुः ब्र.या. ३.३३ एतच्छौचं गृहस्थानां वाधू १५ एकोद्दिष्टं दैवहीन दा ७७ एतच्छौतं ततः स्मात वृ हा ८.७६ एकोद्दिष्टं दैवहीनं या १.२५१ एतछिनः चतुष्कोण पाद बृ.य. ४.२६ एकोद्दिष्टं परित्यज्य ब्र.या. ३.२५ एतज्जपेदूर्ध्वबाहुः बृ.या. ७.५३ एकोद्दिष्टं परित्यज्य लघुशंख १४ एतत् इच्छामि विज्ञातुम् वृ.गौ. ३.८ एकोद्दिष्टं परित्यज्य लिखित २० एतत्तु त्रिगुणं तज्जैः वृ परा ९.१२ एकोद्दिष्टं षोडशं च आंपू ९९१ एतत्तु त्रिगुणतज्ज्ञैः वृ परा ९.१६ एकोद्दिष्टं सदा कुर्यात् ब्र.या. ३.१२ एतत्तु न परे चक्रु परे मनु ९.९९ एकोद्दिष्टं सदातेषां ब्र.या. ३.२८ एतत्तु परमंध्येयं बृह ९.१६ एकोद्दिष्टरकार्यमेक व २.६.३१३ एतत्तुल्यं तु सर्वेषामति व २.६.४३५ एकोद्दिष्टविधिद्दे ब्र.या. ३.७१ एतत्तु विहितं पुण्यं आंउ १२.७ एकोद्दिष्टस्य ये चान्नं वृ.गौ. १०.७४ एतते कथितं सर्वगवां बृ.म.४.११ एकोद्दिष्टे तथा काम्येदे ब्र.या. ३.६१ एतत्ते कथितं सर्वं प्रमाद यम ६८ एकोद्दिष्टे निमित्त ब्र.या. ३.१० एतत्तेति च मन्त्रेण आंपू ८५४ एकोद्दिष्टेऽपिकर्त्तव्यं ब्र.या. ३.४१ व १.६.१७ एकोद्दिष्टे विशेषेण वृ परा ७.८५ एत्त्रयात्पूर्वकस्य आंपू ६७५ एकोद्दिष्टो परित्यज्य दा २८ एतत् त्रिदैवंत ज्ञेयं बृ.या.२.७६ एकोनशिल्लक्षाणि __या ३.१०१ एतत् पञ्चविधं योगं बृ.या. १.४४ एकोनं वा ततो विप्रः भार १५.६६ एतत् पराशरं शास्त्र पराशर १२.७३ एकोनवत्यंगुलैः भार १५.१३७ एतत्पादकयुक्तानां आंपू १२.८ एकोऽपि वेदविद्धर्म मनु १२.११३ एतत्पुण्यं पवित्रञ्च बृ.गौ. २२.३३ एकोऽपिहि वृषो देयो वृ परा १०.३१ एतत्प्रकाशपापानां नारा १.१२ एकोऽब्द शतमश्वेन वृ परा ६.३३१ एतत्प्रत्यङ्मुखस्थित्वा भार ६.१३८ एकोभिक्षुर्यथोक्तस्तु दक्ष ७.३५ एतत् प्रदक्षिणो कृत्य वृ परा ११.२३२ पस्य Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २७५ एतत् प्रमाणमेवैके कात्या २.१२ एतदेव व्रतं कुर्याद् औ ९.२१ एतत्रयं हि पुरुष मनु ४.१३६ एतदेव व्रतं कुर्युरुप मनु ११.११८ एतत् संहत शौचानां दक्ष ६.१४ एतदेव व्रतं कृत्स्नं । मनु ११.१३१ एतत् संक्षेपतः प्रोक्तं औसं ५१ एतदेव व्रतं पुण्यं अत्रिस १२६ एतत् संक्षेषतः प्रोक्त बृ.या. २.१५७ एतदेव स्त्रिया केशवपन । बौधा २.१.९९ एतत् सन्ध्यात्रयं प्रोक्तं कात्या ११.१५ एतदेवहि कुर्वन्ति वृ हा ७.११ एतत्सपिण्डीकरण ब्र.या.७.७ एतदेवहि पिंजल्या कात्या २.११ एतत्समष्टिर्लोकानां आंपू ४९५ एतदेवाक्षरं ब्रह्म एतदेवा बृ.या.२.३८ एतत् समस्त पापानां वृ हा ६.४३७ एतदेवोच्यते श्राद्ध ब्र.या. ३.३० एतत्समतमित्युक्तं विश्वा १.९० एतद्ग्रासं विज्ञानीयत् अत्रिस १२२ एतत्समस्तं विज्ञाय भार ७.१०६ एतद्दण्डविधिं कुर्याद् मनु ८.२२१ एतत्सर्व चैकपात्रे आंपू ५३१ एतद्देशप्रसूतस्य मनु २.२० एतत्सर्वं हि देवेश भक्तया बृ.गौ. १५.१० एतट्यानं ततः कुर्यात् भार १३.४० एतत्सर्वेषु कुण्डेषु वृपरा ११.२७८ एतद्धि जन्मसाफल्यं । मनु १२.९३ एतदक्षरमेतांच जपेन मनु २.७८ एतद्धि तत्तुच्छकर्म प्रविष्ट कपिल १२३ एतदक्षरमोंकारं भूतं बृ.या. २.८९ एद्धि पंचकं ज्ञात्वा वृ परा २.४७ एतदन्तास्तु गतयो __मनु १.५० एतद्धि वरणं प्रोक्तं आंपू ७७७ एतदर्थ त्वया चैवमेतत्त कपिल ८३७ एतद्धि सोममध्य बृह ९.१२७ एतदर्थ पुरा ब्रह्मा कण्व २१६ एतदप्यर्चनं प्रोक्तं वृ हा ५.८८ एतदर्थं विशेषेण शंखलि २० एतद् ब्रह्म त्रयीरूपं वृ परा १२.२७४ एतदाचक्ष्व भगवन् नारा ८.४ एतद्भिन्न तृतीयं कण्व ३१८ एतदाद्य परं गुह्यं पवित्र बृ.गौ.१६.४७ एतद्योगप्रधानाय कार्याणि आंउ ६.५ एतदार्यावर्तमित्या चक्षते व १.१.१० एतद् यो न विजानाति या ३.१९७ एतदालम्बनं श्रेष्ठ बृ.या. २.६० एतद्रहस्यं गायत्र्यां भार ६.४१ एतदुक्तं द्विजातीनां मनु ५.२६ एतदहस्यं परमं एतद्दे भार ११.१२१ एतदुच्चारयन्मयों विष्णु म १७ एदद्व इति मंत्रेण आश्व २३.७९ एतदुच्चार्य वै विप्रः ब.या. ९.५ एतद्वदनमित्येवं संक्कल्प्य भार ७.४५ एतदुच्चार्य वै विप्रः बृह ९.५ एतद्वः सारफल्गुत्वं मनु ९.५६ एतदेव चरेदब्दं मनु ११.१३० एतद्विदत्तो विद्वांसः मनु ४.९१ एतदेव चाण्डाल पतित व १.२०.१९ एतदविदन्तो विद्वांसः मनु ४.१२५ एतदेव परं प्रीति वृ हा ७.१२ एतद्विदित्वा यो विप्र बृ.या. ६.१६ एतदेव मनुप्रोक्तं बृह ९.१५९ एतद्विद्वानं योधित्य भार ६.१७५ एतदेव रेतसः प्रयत्न व १.२३.२ एताद्विधानमातिष्ठेदरोगः मनु ७.२२६ एतदेव विधिं कुर्याद् मनु ११.१८९ एतद् विधानामातिष्ठेद् मनु ८.२ ४४ एतदेव विपरीतममत्र बौधा १.५.३२ एतद्विधानं विज्ञेयं मनु ९.१४८ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ आंपू ६७३ एतद् विधानं विदधाति वृ परा ११.२३९ एतद्धिरुद्ध तत्सर्वं एतद्वेदप्रमाणन्तु शाखा एतद्वै पावनं स्नानं एतद् वैश्यंस्य धर्मोयं ब्र. या. १.३७ एतद्वोऽभिहितं शौचं एतद्वोऽभिहितं विधानं एतद्वोऽभिहितं सर्वं एतद्वोऽयं भृगुः शास्त्र एतन्नाम्ना मुनिस्तत्र एतन्नाम्नां गति एतन्मन्त्रत्रयं वाचा एतन्मात्राप्रयोगेण एतमेके वदन्त्यग्नि एतमेके वदन्त्यग्नि एतमेव विधिं कृत्स्नं एतयच विसंयुक्तः एतया दिवा रेतः सिक्त्वा एतयोरन्तरा यत्ते एतयोरेव संयोगाज्जगत् एतस्मात् कारणाद्वयानं एतस्मिन्नन्तरे तत्र एतस्मिन्नेनसि प्राप्ते एतस्मैनंवचस्त्रेण वृ परा ११.१५ ल हा २.१० मनु ५.१०० मनु ३.२८६ मनु १२.११६ मनु १.५९ वृ परा ११.१९३ वृ हा ७.५८ आंपू ८२६ बृ.या. ८.१८ बृह ११.५६ मनु १२.१२३ मनु ११.२१८ मनु २.८० बौधा २.१.३४ बौधा १.१०.३३ वृ परा ४.६ बृह ९.३३ आंपू ५८६ मनु ११.१२३ व २.३.४७ एतस्य ब्रह्मणान्यस्तं बृह ९.७० एते चतुर्णां वर्णानामापद्धर्माः मनु १०.१३० एते च पितरो दिव्यास्तथा वृ परा ७.१७० एतेचस्फटिकाप्रख्याः भार ७.३८ एतेचान्ये च पितर एते चान्ये च राजेन्द्र एते चैव विशुध्यन्ति एते तिलास्तु विधिना एते दोषा नराणां स्युः एते दोषा भवन्तीह एते धर्मास्तु चत्वार वृ परा २.१९५ बृ. गौ. १९.८ अ ८२ वृ परा ७.१९७ शाता ५.३९ आंपू ८.४ शंख ४.३ एतेन चण्डाली व्यवायो एतेन मातृवृत्ति एतेन विधिना प्रजापते एतेन विधिना सर्वे देवाः एतेन सम्पूज्य गणाधिनाथं एतेन सर्वपालानां विवादः एतेन सोमविक्रयो एतेनैव गर्हिताध्यापक एतेनैव चाण्डाली व १.२१.३४ व १.२३.३० व १.२३.३५ कण्व ६७७ एनेनैव विधानेन एतेनैवाभिशस्तो एतेऽन्त्यजाः समाख्याता व १.२३.३१ व्यास १.१२ एते परमहंसा वैनौष्ठिकां वृ परा १२.१७३ वृ परा १२.३२ एते परस्य यत्नेन एतेनपानशरीरांग्गदेवता एते पूर्वर्षिभि प्रेप्तनाः एते प्रशस्ताः कथितां एते प्रशस्ताः कथिताः एतेभ्यः प्रतिह्णीया एतेभ्योऽप्यधिक प्रोक्तं जीव एतेभ्यो हि द्विजाग्रयेभ्यो एते मनूस्तु सप्तान्यान् एते महर्षि देशास्तु एते मुद्राश्चतुर्विंशा एते यस्य गुणाः संति एते यान्त्यन्धतामिस्रं एते राष्ट्रे वर्तमाना एते वर्ज्याः प्रयत्नेन एते वाऽनेऽपि मुनयो एते वृक्षा प्रशस्तास्यु एते वै द्वादशादित्या एते शुभग्रहास्त्वेषां एते श्राद्धे च दाने च एते श्राद्धे च दाने च एते श्राद्धेषु सन्तपर्या स्मृति सन्दर्भ बौधा २.२.७३ व १.१९.१९ बौधा १.३.१३ बृ.गौ. १८.३४ वृ परा ११.३१ नारद ७.१९ भार ४.१९ वृ.गौ. १०.९८ ल हा ४.८ विश्वा १.६३ अ १२७ कपिल १५० मनु ११.३ मनु १.३६ बृ.गौ. १४.४७ विश्वा ६.६४ दक्ष २.५० वृ परा ६.२३१ मनु ९.२२६ बृ.य. ३.३८ भार १.५ भार ५.१० वृ परा २.१९३ भार १५.५४ बृ.य. ३.३७ यम ३२ वृ परा ७.१७१ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २७७ एते षट्सदृशान् वर्णानां मनु १०.२७ एता न स्युर्दिता औ ३.६१ एतेषान्तु मुनिस्थानां भार १५.५६ एतानामपि सर्वेषां भार १८.९० एतेषामम्लयोगेन तद् आंपू ५२८ एतानाहुः कौटसाक्ष्ये मनु ८.१२२ एतेषामुदकं पीत्वा अत्रिस ११७ एतानि क्रमतोऽश्नीयाद् संवर्त १३१ एतेषां ग्रहणे विप्रः क्षयेन् अ ८७ एतानि नव कर्माणि दक्ष ३.१० एतेषां निग्रहो राज्ञः मनु ८.३८७ एतानि नवकर्माणि ब्र.या. १२.३५ एतेषां परिचर्या शूदस्य व १.२.२४ एतानि ब्राह्मणः कुर्यात् आश्व १.७ एतेषां पावनार्थाय ब्र.या.२.८ एतानि सततं पश्येन् नारद १८.५२ एतेषां ब्राह्मणाद्याश्च हा ४.१५० एतानुद्दिश्यजुहुयादाज्यं व २.६.३३४ एतेषां ब्राह्मणानि कण्व ५१५ एतानुद्दिश्य होतव्य व २.६.१८८ एतेषां मासजानां स्याद् आंपू ५०६ एतानुद्दिश्यहोतव्य व २.३.८१ एतेषां यस्तु भुक्ते अत्रिस १७१ एतानेके महायज्ञान् मनु ४.२२ एतेषां विहीतं पुण्यं आंउ ११.११ एतान् दोषानवेक्ष्य मनु ८.१०१ एतेषां शाखयामध्ये ब्र.या. १.३३ एतान् द्विजातयो देशान् मनु २.२४ एतेषां स्पर्शानात्पापं वृ.य. ३.५३ एतान्नियोजयेद्यस्तु • यम ३४ एतेषु ख्यापयन्नेनः पराशर १२.६२ एतान्यकामतः स्पृष्ट्वा वृ हा ८.१०१ एतेषु चान्येष्वपि वृ परा ११.१०६ एतान्यन्यानि राजेन्द्र वृ.गौ. ८.९१ एतेषु त्रिषु नष्टेषु ल हा ३.९ एतान्यप्यभिमंाध भार ७.७३ एतेषु दद्याद् विप्राय शाता ३.१७ एतान्यमूनि द्रव्याणि बार १३.२९ एतेषु भागं गृहानो __ अ ११२ एतान्यष्टादशाणि भार १५.४७ एतेष्वपि यथालब्धो भार १५.१५१ एतान्येनांसि सर्वाणि मनु ११.७२ एतेष्व विद्यमानेषु मनु २.२४८ एतान्येव त्रीणिवैश्यस्य व १.२.२३ एतेष्वेकस्त वद्धे भार ६.१३ एतान्येव प्रमाणानि नारद २.२३ एते सर्वेऽपि विप्राणां पराशर ७.३९ एतान्येवानादेशे घ १.२२.९ एते स्युः पितरस्तीर्थे व्या २९५ एतान् विहर्गोता मनु ३.१६९ एते झण्डकपाले द्वे बृह ९.६८ एतान् व्याहृत्य रौदा बृ.या. ७.१५२ एतांस्त्वभ्युदितान् मनु ४.१०४ एतान्सन्तर्पयेत्पश्चाद व २.६.१ ४३ एता एतां सहानेन कात्या ११.८ एताः पाकं न मुंजीत व्या २२६ एता गभस्तिभि पीता बृह ९.४९ एताः प्रकृतयो मूलं मनु ७.१५६ एतादृक्पुत्रकरणे गुणा लोहि ५६९ एता भवन्ति सततं तस्मात् कपिल ४२५ एतादृगर्मिसन्ध्येकरहितेन लोहि ३३१ एताभ्यां तु हुतेनैव वृ परा ४.१८० एतादृशान्युत्सवास्तु कण्व ६९६ एताभ्यां स्थापयेदक व परा ११.६० एतादृशी लोकरिति लोहि ___ एतभ्योऽप्यधमास्वेव वृ परा १२.३३७ एतादृशेषु कृत्येषु सा आंपू २१७ एता मयोक्तास्तव वृ परा १०.१२१ एता दृष्ट्वाऽस्य जीवस्य मनु १२.२३ एतावती च तदृष्टि कण्व १९६ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ एतावद्देहि मे द्रव्यं एतावन्त्येव सर्वत्र एतावानेन पुरुषो एताश्चतस्रो यो वेत्ति एताश्चान्याश्च लोके एताश्चान्याश्च सेवेत एता सर्वा द्विजो विद्वान् एतासां तनयाः सर्वे एतासां दशधेनूनामितरासां एतासु मतिदुष्टासु एतास्तिस्रस्तु भार्यार्थे एतास्तु द्विजवर्येण एतास्तु व्याहती एतै गुणैः विहीनस्तु एतैद्रव्यैस्तुविधिवत् एतैः द्विजातयः शोध्या एतैरवितरं धार्यं उपवीत एतैरुद्धत्य होतव्य एतैरुपायैरन्यैश्च एतैरेव गुणैर्युक्त एतैरेव गुणैर्युक्तं एतैरेव यदा स्पृष्टः एतैर्मन्त्रैः प्रयुञ्जीत एतैर्लिंगैर्नयेत्सीमा एतैव्रर्तेरपोहेत पापं एतैव्रर्तेरपोहेत पापं एतैव्रर्तेरपोल स्यादेनो. एतैर्विवादान् संत्यज्य एतैस्तु तर्पितैः सद्भि एतैस्तु त्र्यहमभ्यस्तं एतैस्तु पुनरावृत्ति एतैः स्पृष्टो द्विजो नित्यं एतौ तु पार्श्वगौशेयौ एधोदकं मूलफलं वृ परा ६.८ एधोदकयवसकुशलाजा एनं रक्ष जगन्नाथ आंपू ३५१ मनु ९.४५ एनं रक्ष जगन्नाथ एनसां स्थूलसूक्ष्माणां एनास्विभिनिर्णितैः एनो राजनामृच्छति एपद्विधानं सकलं एभि पंचामृतैः स्नाप्य एभिर्गुणैः पूर्ववाक्यः एभिरुद्धृत्य होतव्यं एभि सन्दूषिते कूपे एभि सप्ताशनैरुक्तं एभि सम्पर्कमायाति एभ्यस्तूत्कृष्टमूल्यानां एमिर्दव्यैर्यथाकालं भार १९.३६ मनु ९.२४ मनु ६.२९ अ ११८ आंपू ४५७ अ ३३ वृ हा ६.२९५ मनु ११.१७३ अ ११६ बृ.या. ३.१० वृ हा ५.८० भार ७.७८ मनु ११.१७० एतैव्रर्तेरपोहेयुर्महापातकिनो मनु ११.१०८ मनु ११.१४६ मनु ११.२२७ भार १६.३५ पराशर ११.३५ एवञ्च कुर्वता येन एवञ्च क्षत्रियां वैश्या शंख ५.१८ एवञ्चरति यो विप्रो मनु ९.३१२ या १.५५ एवञ्च सर्व भूतानि एवमाग्निञ्च जुहुयाद एवमध्ययनं कुर्यात् एवमध्यापयेच्छिष्यान् एवमननञ्च सूर्यश्च एवमन्येषु नवस्तु एवमन्यैर्महादानै एवमन्वहमभ्यासी एवमभ्यर्च्य गोविंद एवमभ्यर्चयेदेवं एवमर्थं विदित्वैव एवमशुचि शुक्लं एवमाचमनस्योक्तं विधानं एवमाचारतो दृष्ट्वा आप ४.८ बृह १०.७ मनु ८. २५२ मनु ११.१०३ मनु ४.१८१ वृ परा २.१९८ शंख १८.९ वृ परा १२.२५४ अत्रिस २८६ बृह ९.९७ मनु ४.२४७ स्मृति सन्दर्भ व १.१६.७ वृ हा २.१४९ वृ हा २.१२१ मनु ११.२५३ वृ परा ९.१५ संवर्त १२४ नारद १८.८५ व्या ४२ व २.३.३६ ए यथाकुलं चौलं कर्त्तव्यं एरण्डमरुवं चैव कोविदार शाण्डि ३.१०७ एलालवंगकंकोलं पत्र व २.७.६४ ल हा ५.८ आप ७.२० मनु २.२४९ ब. या. २.१०२ व_२.४.६५ व २.३ २७० व २.३.१६७ वृ.गौ. १२.४३ आंपू ४०६ अ १६ व्यास १.३५ वृ हा ५.४१९ व २.६.१६५ मनु ११. १९० व _१.१९.३१ भार ६.१७२ वृ हा ८.३० व् हा ३.१६१ पराशर ११.३४ अत्रिस२०६ व २.६.२२४ बौधा २.१.७२ भार ४:४१ मनु १.११० Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "पात सतिं श्लोकानुक्रमणी २७९ एवमादिगुणोपितमाचार्य शाण्डि १.१०७ एवमेवगृहीताग्ने कात्या २३.१४ एवमादिगुणोपेत नारी शाण्डि ३.१४६ एवमेव नवाब्दान्तं नारा ३.१४ एवमादिगुणोपेतं निर्मलं शाण्डि १.५९ एवमेव परे चापि तनयाः लोहि २८९ एवमादिगुणोपेतं भक्ति शाण्डि १.८६ एवमेव प्रातः प्राड्मुख बौधा २.४.१३ एवमादिगुणोपेतं भूतलं शाण्डि १.७७ एमवेव प्रातरुपस्थाय बौधा २.४.२८ एवमादिगुणोपेतं शिष्य शाण्डि १.११२ एवमेव भवेदन्य आंपू ३३१ एवमादि निषिद्ध यत् वृ हा ४.१७९ एवमेवं वृत्तिगेहक्षेत्रेष्व कपिल ६७९ एवमादि यथाशास्त्र नारा ८.१४ एवमेवनुवर्तेरन्देशं वृ परा १.४७ एवमादीनि चान्यानि व २.६.३१ एवमेवाष्य नड्वाहो वृ.गौ. ९.५१ एवमादिनि शाकानि व २.६.१७३ एवमेवाहिताग्नेषु कात्या २३.१ एवमाद्य मसद् द्रव्यं वृहा ४.१५६ एवमेषोऽग्निमान् कात्या २१.१६ एवमाद्यान् विजानीयात् मनु ९.२६० एवं अभ्यर्चेनं विष्णो वृ हा ८.८१ एवामाद्येषु चान्येषु अत्रि ४.६ एवम् आत्म उद्भवव्य वृ.गौ. २.१ एवमाब्दिकमानेन वृ परा १२.३६८ एवम् उको हृषीकेशो वृ.गौ.६.४ एवमिन्द्रेण पृष्टौऽसौ वृहस्पति ३ एवं एद्यप्यानिष्टेषु मनु ९.३१९ एवमिष्टिम्कुर्वीत व २.६.४२४ एवं कर्मविशेषेण जायन्ते मनु ११.५३ एवमिष्टिम्प्रकुर्वीत व २.६.४१४ एवं कुर्यात्सदावृत्ति व २.६.१३० एवमुक्तः क्षणं ध्यात्वा आप १.८ एवं कुर्यात् सुतस्यैव आश्व ५.५ एवमुक्तः सुरैः सर्वैः वृ.गौ.१०.३३ एवं कृते कथाञ्चित् आप १.७ एवमुक्तस्तु विप्रर्षिस्तेन वृ हा १.६ एवं कृते तु यत् किंचित वृ परा ११.२७० एवमुक्ता व्रजेयस्ते कात्या २२.१० एवं कृते त्वन्यस्तुः कर्मणे कपिल ३९० कात्या २२.१० एवं कते त्वन्यस्तः कर्म एवमुक्त वसुमती देवदेव विष्णु १.४८ एवं कृते भवेत्स्पृष्टं । नारा ५.४८ एवमुक्तो हृषीकेशो वृ.गौ. ९.५ एवं कृते विशुद्धोऽभूतं नारा ३.१८ एव मुक्त्वा विषं शार्ड्स या २.११३ एवं कृतोदका सम्यक् कात्या २२.३ एवमुद्दीश्य वर्णेषु आंउ ५.१० एवं कृत्यन्तु कुर्वीत शंख ३.१२ एवमेतत्पुरावृत्त वैष्णवं वृ.गौ.२२.४६ एवं क्रमेण सम्पूज्य ब्र.या. २.१२५ एवमेतत्समासाद्य तद्योगं आंउ ६.४ एवं क्षीराब्धियजनं हा ७.२६७ एवमेतद्वत्सरस्य स्थलेऽस्मिन् कपिल ५८ एवंक्षुद्रसमिधाम् बौधा १.६.२४ एवमेद्विधं चर्म वृ परा १०.१२५ एवं गच्छन् स्त्रियं या १.८० एवमेतादृशीं संम्यक कपिल ४१७ एवं गां च हिरण्यं व १.६.३० एवमेताः समभ्यर्च भार ११.६५ एवं गृहपतिर्दग्धः सर्वं कात्या २१.१४ एवमेतेरिदं सर्व मनु १.४१ एवं गृहाची बिम्बस्य वृ हा ५.१७६ एवमेनः शमं याति ब्र.या. ८.६ एवं गृहाश्रमे स्थित्वा मनु ६.१ एमवेनः शमं याति या १.१३ एवं चरन् सदा युक्तो मनु ९.३२४ एवमेव तथान्यो पि आंपू १०५१ एवं चतुर्विधोहस्तः भार २.६१ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० एवं चतुर्विंशतिस्तु मूर्ती एवं चतुष्पदानाञ्च एवं चापि दिवा कृत्वा एवं चेहात्विजामन्यद् एवं छेदने भेदन एवं जनानां पुरतो लज्जयेतं एवं जातीयका ये स्युस्ते एवं ज्ञात्वा तु मन्त्राणां एवं ज्ञात्वा तु यो विप्रो एवं ज्ञात्वा तु यो विप्रो एवं ज्ञात्वानुवर्त्याऽधः एवं ज्ञात्वा मनोरर्थं एवं ज्ञात्वां प्रभाते तु एवं ज्ञात्वा विधानेन एवं तु तनये दत्ते भिन्न एवं तु त्रिविधं कृत्वा एवं तृतीयपर्य्याये एवं तृतीय संस्कारं कृत्वा एवं तैलसर्पिषी उच्छिष्ट एवं तैः समनुज्ञातः एवं त्रयाणामेकस्य एवं त्रि पूर्ववच्चैव एवं त्रिरात्रं कुर्वीत एवं त्रिर्मृत्तिकानाने एवं त्रिवासरं कर्याद् एवं त्रिविमुद्दिष्टं एवं त्रिषष्टिभेदैस्तु एवं त्रिषु च संध्यासु एवं दत्तस्य पुत्रस्य काले एवं दत्ता सहस्राक्ष एवं दत्वा तु राजेन्द्र एवं दत्वा महीं राजन् एवं दशविधं प्रोक्तं दानं एवं दशविधं स्नान एवं दशाहं निर्वर्त्य वृ हा ७.१२७ पराशर ६.१४ आश्व १.१३७ कण्व ३०१ बौधा १.७.६ लोहि ६२१ आंपू १०६८ बृ.या. ७.१८३ बृह ९.१५० ब्र. या. २.१८२ भार १५.७६ वृ हा ३. १७४ विश्वा १.४ व २.३.११२ कण्व ७०० बृ.या. ८.५० व २३.३३ वृ हा २.१०६ बौधा १.६.५० आंउ ३.५ कपिल ७८९ आश्व १०.२० वृ हा ५.४४४ वाधू ८० वृ हा ७.२९५ बृ.या. ८.४७ बृ. या.२.१०६ भार १२.१७ कपिल ४१८ वृहस्पति १५ वृ.गौ. ९.७० वृ. गौ. ६.१३४ कपिल ९१४ भार ११.८९ व २.६.३५२ एवं दिग्विषयाः प्रोक्ता एवं दृढव्रतो नित्यं एवं देवीं नृसिंहस्य एवं देवीं स्मरेन्नित्यं एवं देहादिभिर्युक्तः एवं द्रव्याणि निक्षिप्य एवं द्रव्यार्जनं शक्त्या एवं द्वादशकृत्वस्तु एवं द्वादशवर्षाणि एवं द्वादश विप्राणां एवं द्विजातिमापन्नो एवं द्विजोत्तमः सम्यङ्ग एवं द्वितीयो विज्ञेयः एवं धमः कृतः सद्यो एवं धर्म प्रसक्तेन पृषृः एवं धर्मविदां श्रेष्ठ एवं धर्मात्परः नास्ति एवं धर्मो गृहस्थस्य एवं धर्म्याणि कार्याणि एवं ध्यात्वा जगन्नाथं एवं ध्यात्वा जपेन् एवं ध्यात्वा हरिं स्मृति सन्दर्भ भार २.१९ मनु ११.८२ वृ हा ३.३५९ व २.६.८४ औ ३.१ वृ हा ८.२० व_२.६.१२८ भार ३.१४ बृ. गौ. १८.३१ वृ परा १९.२८३ व्यास १.२२ भार १३.३० लोहि ३२.८ वृ.गौ. १.३६ बृ.गौ. ३.९ वृ.गौ. १०.८३ वृ.गौ. २.३२ ल हा ४.७५ एवं ध्यात्वा हरिं एवं ध्यात्वा हरि नित्यं एवं नवविधा प्रोक्ता एवं नारायणबलिं कृत्वा एवं नारी कुमारीणां शिरसो एवं नित्योतत्सवं कुर्याद एवं निर्वपणं कृत्वा एवं न्यासविधिं कृत्या एवं न्यासविधिं कृत्वा एवं न्यासविधिं कृत्वा एवं न्यास विधिं कृत्वा एवं न्यासविधिं कृत्वा एवं पंचत्रिंशवर्षपर्यन्तं मनु ९.२५१ वृ हा ३.२६९ वृ हा ३.३८३ वृ हा ३.१३३ वृ हा ३.३१७ वृ हा ३.३३६ वृ हा ८.१५० व_२.६.३९६ पराशर ९.५६ वृ हा ६.६२ मनु ३.२६० वृ हा ५.२०० व २.६.७२ वृ परा ४.१२९ वृ हा ३.१९ हा ३.१२५. आंपू १५१ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी एवं पंचदशार्ष एवं पन्था महान्प्रोक्तं एवं परिचन्ती सा एवं पश्यन् सदा राजा एवं पाशुपते विद्यात् एवं पितामहे चैव एवं पितामहे जीवे एवं पूर्वं मयाप्युक्तं एवं पृष्टः प्रत्युवाच एवं पृष्टः स इन्द्रेण एवं प्रक्रमादूर्ध्वम् एवं प्रतिग्रहीतापि एवं प्रतिष्ठां कुर्वीत एवं प्रदक्षिणं कृत्वा एवं प्रयत्नं कुर्वीतं एवं प्राचीप्रतिच्यास्तु एवं प्राणहुति कुर्यात् एवं प्रात्याह्निकं धार्य आंपू ३४८ कण्व ७१७ व्यास २.३६ नारद १.६५ वृ.या. २.९७ आश्व २३.३५ आंपू १०७ आंपू ४.६ पु २ अत्रि ६.३ बौघा १.६.७ वृ परा १०.६८ व २.७.१०६ या १.२५० मनु ७.२२० भार २.७५ ल हा ४.६६ वृ हा ५.६४ वृपरा १२.१८१ व_१.१७.६९ एवं बाल्ये महद्दुखं एवं ब्राह्मणी पंच प्रजाता एवं भुक्त्वा द्विजश्चैव एवं भुक्त्वा विधानेन आश्व १.१८० व_२.६.२१५ एवं भूताश्च ये विप्रास्तेषं परा १२.२०७ एवं मध्यद्वयं ज्ञात्वा भार २.७४ शंख ९.१० कपिल ९२५ एवं मंत्रान् समुच्चार्य एवं महाधरादानं गोमेध एवमाग्रयणस्मार्ततण्डुलानां एवं मातामहाचार्य एवं मातुः सपिण्डे तु एवं यः कुरुते विप्रः एवं यज्ञवपुः विष्णुः एवं यज्ञ वराहेण भूत्वा एवं यथोक्तं विप्राणां एवं यः सर्वदेवानां एवं बः सर्वभूतानि कण्व ७७६ या ३.४ आंपू १००६ वह ९.१२० एवं यः सर्वभूतेषु एवं यो भुज्यते नित्यं एवं यो वर्तते गोषु एवं राजन्य पंक्त्यांचेंदू एवं राजन्यं हत्वाऽष्टौ वृ च ७.१६ विष्णु १.१२ मनु ५.२ वृ परा १०.३६४ एवं राजन्यवैश्ययोः एवं लब्ध्वा गुरोर्विम्ब एवं वक्ष्यामहे किन्तु एवं वदति देवेशे केशवे एवं वनाश्रमे तिष्ठन् एवं वर्षाष्टकेऽतीते ताती एवं वारि द्विजः सिंचन एवं विजयमानस्य एवं विदित्वा सत्कर्म एवं विधं चिन्तयेतु एवं विधानेन माता एवं विधान्नृपो देशान् एवंविधास्तु ये संध्या एवं विनायकं पूज्यं एवं विप्रान लोकानां एवं विष्णुमते स्थित्वा एवं वृत्तस्य नृपतेः एवं वृत्तांसवर्णा स्त्री एवं वृत्तांसवर्णा स्त्री एवं वृत्तोऽविनीतात्मा एवं वेत्ति य आत्मान एवं वेदे धर्ममूले परं एवं वैश्यो राजन्यायां एवं व्रतसमाचारा एवं शनिदिने देवं एवं शरीरं संस्नाप्य एवं शुद्धस्ततः पश्चात् एवं शुद्धि सुरापस्य एवं श्राद्धैः समस्तान्यः मनु ३.९३ एवं श्रुत्वा वचः तस्य २८१ मनु १२.१२५ ब्र. या. २.१८४ वृ परा ५.४१ कपिल ३३७ व १.२०.४१ व १.२१.१८ वृ हा २.१५० वृ हा ३.२११ बृ.गौ. १८.३५ ल हा ६.२ आंपू ६४ वृ परा २.५९ मनु ७.१०७ वृ हा ७.२६ बृह ९.१२३ व २.६.३०६ मनु ९.२६६ बृह १०.१८ या १.२९३ अ ७ वृ परा ७.३२० मनु ७.३३ कात्या २०.६ मनु ५. १६७ या ९.१५५ दृह १.५५ कपिल २१ व १.२१.६ व २.५.८२ हा ५.३६२ व २.६.३१६ पराशर ६.३९ संवर्त १९९ वृ परा ७.३२२ वृ.गौ. ३.१ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ एवं श्रुत्वा वचः पुण्यम् एवं षड्गुणमायाति एवं सङ्कल्प्य सपुष्पं एवं संख्याक्रमं ज्ञात्वा एवं संख्याफलं प्रोक्तं एवंस जाग्रत् स्वप्न एवं संचिन्त्य मनसा एवं सति तु यो मूढो एवं सति पुनर्नार्या अधिकार एवं सति शरीरस्थः एवं सत्यत्र जगति वनितानां एवं सत्यत्र जनने एवं सत्यत्र भूयश्च एवं सत्यत्र यः कश्चिद् एवं सत्यत्र यो मर्त्यः एवं संध्यां बिनासवी एवं संध्यामुपास्याधा एवं संन्यस्य कर्माणि एवं सप्तविधं स्नानं एवं सप्रार्थ येदेवं ईश्वरं एवं स भगवान् देवो एवं समर्चनं कृत्वा एवं समाचरेद्धीमान् एवं सम्मार्जनं कृत्वा एवं समाहितमनाः प्राणान् एवं समुद्धृते त्वेषामियं एवं संपूज्य देवेशं एवं संपूज्य देवेशं एवं सम्पूज्य देवेशं एवं संपूज्य देवेशं एवं सम्पूज्य देवेशं एवं सम्पूज्य देवेशं एवं सम्पूज्य देवेशं वृ.गौ. २.५ एवं सम्पूजयित्वा एवं संपूजयेद्देवं ब्र. या. ३.३१ ब्र.या. २.१५६ भार ९.१० भार ७.१७ मनु १.५७ मनु ११.२३२ एवं सम्पूज्य देवेशं एवं सम्पूज्य मानस्तु कण्व २२० लोहि ४८४ बृह ९.३१ लोहि ५१२ आंपू ३४३ लोहि ९८ आंपू ५५५ आंपू ५४३ भार ६.१७० भार ६.१३० मनु ६.९६ भार ५.५१ मनु ९.११६ बृ. या. ७.१०६ वृ हा ५.३३९ वृ हा ५.३८० वृ हा ५.३८८ वृ हा ५.३९३ व् हा ५.५१५ वृ हा ५.५६१ एवं सम्पूजयेद् विष्णु एवं सम्प्रार्थ्य देवेशं एवं सुनियताहारा एवं सूर्याभिनिर्मुक्तो व २.४.८२ मनु १२.११७ एवं स्नातकतां प्राप्तो व २.६ १०२ वृ हा ६.३२३ बृ.या. ७.१९० भार १९.२७ वृ हा ७.८६ वृ हा ५.४१० एवं सम्यग् घविर्हुत्वा एवं सम्यग्विधाने एवं संवत्सरं जप्त्वा एवं सर्वमिदं राजा सह एवं सर्वं जगदिदं एवं सर्वं विधायेदमिति एवं सर्व स सृष्ट्वेदं एवं सर्वविधिं ज्ञात्वा एवं सर्वानिमान् राजा एवं सर्वासु अवस्थासु एवं सर्वेऽपि तिथयो एवं सह वसेयुर्वा एवं साधुभिराचीर्णमेव एवं सिद्धहविषाम् एवं स्पष्टं पदंन्यास एवस्मिन्नेव तत्पिण्डे एवं स्वभावं ज्ञात्वाऽऽसां एवं हि कपिला राजन् एवं हि तर्पणं कृत्वा एवं हि नामकरणं कर्त्तव्यं एवं हि नाम संस्कारं एवं हि प्रणवं ज्ञात्वा एवं हि मृत्तिकाशौचं एवं हि यः चतुर्वेदी एवं हि विधिना सम्यक् एवं हि विप्राः कथितो एवं हि शुक्लपक्षादौ एवं हि सर्ववेदानाम् स्मृति सन्दर्भ व २.६.११४ वृ हा ५.३४९ वृ हा ५.५६२ व २.४.२८ मनु ३.८७ भार ६.१०८ वृ हा ३.३४० मनु ७.२१६ वृ.गौ. १.७१ मनु ७.१४२ मनु १.५१ भार ८.१२ मनु ८.४२० वृ.गौ. ३.८८ कण्व २८ मनु ९.१११ शाण्डि १.४४ बौधा १.६.४७ वृ हा ८.२११ व १.२०.६ व्यास २.१ भार ६.८६ आंपू ३९४ मनु ९.१६ वृ.गौ. ९.३३ वृ परा २.२०७ व २.२.३० वृा २.१०३ ब्र.या. २.१४३ कण्व १२७ वृ.गौ. ४.३१ वृश २.१४१ ल हा ४.७७ य १ २३.४१ वृ.गौ. ४.३० Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी एवं हृद्ययनं विष्णोरुत्तमं एवं हि सर्वभावस्थं एवं होमत्रयं कृत्वा एवं होमविधानेन सायं पात्रसंयोगात्त एवं एवास्मै वचो वेदयन्ते एवं इत्यनुवाकाम्यां एष एव परो धर्मो एष एव मया प्रोक्तः एष एव विधि दृष्टो एष एव विधि प्रोक्त एष दण्डविधि प्रोक्तो एषधर्मः समासेन धर्मः समुद्दिष्टो एषधर्मः समाख्यातः एष धर्मोऽखिलोनोक्तो एष धर्मो गवाश्वस्य एवधर्मोऽनुशिष्ठो वो एवधाता विधाता च एष निष्कण्टकः पंथा एष नौयायिनामुक्तो एष प्रोक्तो द्विजातीनाम एष मन्त्रा प्रयोग एष वः कथितः सम्यक् एष वृद्धिविधि प्रोक्तः एव वै पुष्पो विष्णुः एष वै प्रथमः कल्पः एष वै प्रथमः कल्पः एष वोऽभिहितः कृत्स्नः एष वोऽभिहीतः सम्यक एष वोऽभिहितो एष व्यासकृतः कृच्छ्रः एष शौचविधि कृत्स्नो एव शौचस्य व प्रोक्तः एषः श्राद्धविधि कृतस्न वृ हा ५.१०० बृह ९.१५२ विश्वा ८.७६ व २.४.६६ बृह ११.१८ बौधा १.२.५० वृ हा ६.१०५ वृ परा १२.५४ संवर्त १९९ नारद ३.७ शंख १०.१९ मनु ८. २७८ औ ३.७९ ल हा १.३० संवर्त ३४ मनु ८.२१८ मनु ९.५५ मनु ६.८६ बृह ९.७९ वृ हा ५.१७ मनु ८.४०९ मनु २.६८ बृ.या. ८.६ औ ७.२२ नारद २.९४ शंख ७.२१ औ ४.१३ मनु ३. १४७ वृ.या. ७.१६१ औ ५.८१ मनु ६.९७ अत्रिस १३१ मनु ५.१४६ मनु ५.११० काल्या ४.११ एष संक्षेपतश्चौक्तः एष सर्व समुद्दिष्टः एषसर्व समुद्दिष्टास्त्रि एष सर्वाणि भूतानि एष स्त्रीपुंसयोरुक्तो एष स्वर्ग्यः समायातः एष हि प्रथमो यज्ञो एषा धर्मस्य वो योनि एषा पापकृता मुक्ता एषामन्यतमत्कृत्वा एषामन्यतमं प्रेतं एषामन्यतमं यच्चाप्यु एषामन्यतमाभावे एषामन्यतमे स्थाने एषामन्दतमो यस्य एषामभावे पूर्वस्त्य एषामलाभे कार्याः स्यु एषामसम्भावे कुर्यादिष्टं एषामुच्छिष्टतानास्थित एषामेव प्रभेदोऽन्यः एषां गत्वा तु योषां वै एषां यदेककं वापि कृतं एषां तु धर्म्याश्चत्वारो एषां त्रिरात्रं अभ्यासाद् एषां त्रिरात्र वासश्च एषां पत्न्यः क्रमाद् एषां पुष्पाणि सततं एषां लघुषु कार्येषु एषां समस्तमंत्राणां एषां ह्यन्तः शरीरस्थं एषां ह्यन्तःशरीरस्थं एषा विचित्राऽभिहिता एषाविश्वभृतीनां एषा हि चोदनाप्रोक्दा एषा हि त्रिपदा देवी २८३ बृ.या. ३.३१ मनु १२.८२ मनु १२.५१ मनु १२.१२४ मनु ९.१०३ वृ परा ४.१९८ कण्व ४९३ मनु २.२५ मनु ११.१८० बौधा २.१.५७ संवर्त १७३ आंपू १२.६ वृ. ल. हा १.२० मनु ८.११९ मनु ३.१४६ या २.१३९ भार १४.६१ या १.१२६ भार १५.१५३ नारद १.२० यम ५५ कपिल ९१७ नारद १३.४४ या ३.३२२ देवल ८८ प्रजा १८२ भार १४.११ आंउ ४.७ भार १७.२२ बृ.या. ९.६ बृह ९.६ मनु ११.९९ बृह ९.१४५ लोहि ३६० बृ.या. ४.८१ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ २८४ एषु चेत् पीड्येद्वस्त्र वृ परा २.२१० ओ एषु सर्वेषु भूतेषु शंख ७.३४ एषु स्थानेषु भूयिष्ठं __ मनु ८.८ ओघवाता हृतं बीजं मनु ९.५४ एषैव दर्वी यस्तत्र कात्या १५.१५ ओघवाताहृतं बीजं क्षेत्र नारद १३.५६ एषो उषेति चाप्यत्र वृ परा ११.३ ४३ ओघवाताहृतं बीजं यथा परशर ४.१६ एषोऽखिलः कर्मविधिरुक्तो मनु ९.३२५ ओंकारपद्यनालेन बृ.या. २.१३७ एषोऽखिलेनाभिहितो मनु ८.२६६ ओंकारः पूर्वमुच्चार्यों बृ.या ४ २६ एषोऽखिलेनाभिहितो मनु ८.३०१ ओंकारपूर्वा गायत्री बृ.या.७.१८९ एषोदिता गृहस्थस्य मनु ४.२५९ ओंकारपूर्विकास्तिस्रो मनु २.८१ एषोदिता लोकयात्रा मनु ९.२५ ओंकार प्रणवं चैव वृ. या.२.११४ एषोऽनाद्यनस्योक्तो मनु ११.१६२ ओंकारः प्रणवस्तार बृ.या. २.१५ एषोऽनापदि वर्णानामुक्तः मनु ९.३३६ ओंकारः प्रणवे योज्यो बृ.या. २.५१ एषोऽनुपस्कृतः प्रोक्तो मनु ७.९८ ओंकार विन्दते यस्तु बृ.या. २.७२ एष्टव्या बहवः पुत्रा औ ३.१३४ ओंकार विन्दते यस्तु बृ.या.२.१४६ एष्टव्या बहवः पुत्रा लघुशंख १० ओंकार विपुलमचिन्त्य बृ.या.२.११२ एष्टव्याः बहवः पुत्रा लिखित १० ओंकारव्याहृतियुतां ल व्यास १.२३ एष्वर्थेषु पशून हिंसन् मनु ५.४२ ओंकार व्याहतीः सप्त बृ.या.८.८ एहीत्यग्नि समादाय आश्व २.७ ओंकार व्याहतीस्तिस्रः बृ.या. ४.३८ ओंकारं समभिध्यायेद् बृ.या.२.९९ ओंकार ब्रह्मसंयुक्तं बृ.या.६.१५ ऐकायोगत्व नानत्वं समवाय कपिल ८ ओंकार वर्त्मनालेन व परा १२.२६२ ऐणरौववाराह ब्र.या. ४.१५४ ओंकार संज्ञ त्रिगुणं बृ.या.२.१७ ऐणरौरव वाराह या १.२५९ ओंकारस्तत्परं ब्रह्मण औ ३.५२ ऐणेयमुत्तरीयं स्याद् वृ हा ५.४६ ओंकारस्तु समुच्चार्यो कण्व १११ ऐन्द्रं स्थानमभिप्रेप्सुः मनु ८.३ ४४ ओंकारस्य तुगायत्र्या बृह १०.१९ ऐरावती वेदवतीं __ हा ७.१७६ ओंकारस्याथ गायत्र्या बृह १२.४५ ऐशान्यभिमुखो भूत्वा बृ.या. ७.१८४ ओंकाराभिष्टुतं सोमसलिलं या ३.३०६ ऐश्वर्य गुणसम्पन्ना बृ.गौ. १५.९७ ओंकारणैव श्रीशब्दः वृ हा ३.६३ ऐश्वर्य च तथा वीर्य व हा ३.१६० ओंकारो व्याहृतयश्च बृ.या. १.२५ ऐश्वर्य ज्ञान वैराग्यः वृ हा ७.८० ओंकारो व्याहृतीः बृ.या. ६.५ ऐश्वर्य तु विकारः वृ हा ३.२१३ ओमादित्यं तर्पयामि बौधा २.५.१०४ ऐश्वर्य रूपा सादेवा वृ हा ३.१६२ ओमदित्यांश्च तर्पयामि बौधा २.५.२७ एहिकामुष्मिकं लोके संवर्त २१३ ओमापो ज्योतिरित्ये बृ.या. ८.५ ऐहिकामुष्मिका यस्त अ ५९ ओमापो ज्योतिरित्ये बृह ९.१०९ ओमापो ज्योतीरसोऽमृतं शंख १२.१२ समादाय Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी २८५ ओमित्यच्चाणेरनैव वाच्य शाण्डि ५.५९ ओं गरुत्मन्तं तर्पयामि बौधा २.५.१३० ओमित्युद्गीयते ह्येष बृ.या.२.८६ ओं गायत्रीतर्पयामि बौधा २.५.१७४ ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म बृ.या.२.४० ओं गुरून् स्वधा नमस्त बौधा २.५.१९९ ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म बृ.या. २.१०५ ओं गुरूपत्नीः स्वधा बौधा २.५.२०० ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म विश्वा ६.१ ओं गोविन्द तर्पयामि बौधा २.५.११६ ओमित्येवेति तत्राग्नौ __ कण्व ७२९ ओं चतुर्मुखं तर्पयामि बौधा २.५.३३ ओं अग्नि तर्पयामि बौधा २.५.३९ ओं चन्द्रमसं तर्पयामि बौधा २.५.४३ ओं अंगारकं तर्पयामि बौधा २.५.१०६ ओं चित्रगुप्तं तर्पयामि बौधा २.५.१ ४१ ओं अथर्वाङ्गिरस बौधा २.५.१७९ ओं छन्दांसि तर्पयामि बौधा २.५.१७५ ओं अन्तरिक्ष तर्पयामि बौधा २.५.१ ४७ ओं जनस्तर्पयामि बौधा २.५.५४ ओं आचार्यपत्नी स्वधा बौधा २.५.१९८ ओं ज्ञातीन् स्वधा बौधा २.५.२०३ ओं आचार्यान् स्वधा बौधा २.५.१९७ ओं ज्ञातीपनि स्वधा । बौधा २.५.२०४ ओं आपस्तम्बं सूत्रकारं तपोधा २.५:१६६ ओं तत्सदिति निर्देशो बृ.या.२.९ ओं आश्वलायनं शौनकं बौधा २.५.१६९ ओं तत्सवितुरित्येषा विश्वा ५.१२ ओं इतिहासपुराणं तर्पयामिबौधा २.५.१८० ओं तपस्तर्पयामि बौधा २.५.५५ ओं इन्दं तर्पयामि बौधा २.५.९६ ओं तुष्टि तर्पयामि बौधा २.५.१२७ ओं ईशानं देवं तर्पयामि बौधा २.५.५९ ओं त्रिविक्रम तर्पयामि बौधा २.५.११९ ओं ईशानस्य देवस्य बौधा २.५.६७ ओं दामोदरं तर्पयामि बौधा २.५.१२४ ओं ईशानस्य देवस्य बौधा २.५.७५ ओं देवर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१५७ ओं उग्रं तर्पयामि बौधा २.५.६२ ओं धन्वन्तरि तर्पयामि बौधा २.५.१ ४९ ओं उग्रस्य देवस्य बौधा २.५.७० ओं धन्वन्तरिपार्षदीश्च बौधा २.५.१५० ओं उग्रस्य देवस्य बौधा २.५.७८ ओं धन्वन्तरीपार्षदोश्च बौधा २.५.१५१ ओं ऋग्वेदं तर्पयामि बौधा २.५.१७६ ओं धर्म तर्पयामि बौधा २.५.१३५ ओं ऋषिकांस्तर्पयामि बौधा २.५.१६२ ओं धर्मराजं तर्पयामि बौधा २.५.१३६ ओं ऋषिपत्नीस्तर्पयामि बौधा २.५.१६७ ओं नक्षत्राणि तर्पयामि बौधा २.५.४४ ओं ऋषिपुत्रकांस्तर्पयामि बौधा २.५.१६४ ।। ओं नमोभगवते पश्चाद् वृ हा ३.३३१ ओं ऋषींस्तर्पयामि बौधा २.५.१५३ ओनमो भगवते मातासुदर्शनम हा ३.३९२ ओं एकदन्तं तर्पयामि बौधा २.५.९० ओं नमो भगवते वासुदेवाय वृ हा ३.३ ४७ ओं औदुम्बरं तर्पयामि बौधा २.५.१ ४२ ओं नारायणं तर्पयामि बौधा २.५.११४ ओं कण्डं बौधायनं बौधा २.५.१६५ ओं नीलं तर्पयामि बौधा २.५.१३८ ओं काण्डर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१६१ ओं पद्मनाभं तर्पयामि बौधा २.५.१२३ ओं कालं तर्पयामि बौधा २.५.१३७ ओं परमर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१५५ ओं काश्यपं तर्पयामि बौधा २.५.१ ४६ ओं परमेष्ठिनं तर्पयामि बौधा- २.५.३७ ओं केतुं तर्पयामि बौधा २.५.११२ ओं पशुपति देव तर्पयामि बौधा २.५.६० ओं केशवं तर्पयामि बौधा २.५.११३ ओं पशुपते देवस्य बौधा २.५.६८ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ओं पशुपते देवस्य बौधा २.५.७६ ओं पितरोऽर्यमा भगः बौधा २.५.२६ ओं पितामहान् स्वधा बौधा २.५.१८६ ओं पितामहीः स्वधा बौधा २.५.१८९ ओं पितृन् स्वधानामः बौधा २.५.१८५ ओं पुष्टिं तर्पयामि बौधा २.५.१२७ ओं प्रजापति तर्पयामि बौधा २.५.३२ ओं प्रणवं तर्पयामि बौधा २.५.१७१ ओं प्रतितामहान् स्वधा बौधा २.५.१८७ ओं प्रपितमामहीः स्वधा बौधा २.५.१९० ओं प्राणोग्निपरात्मानं बृह ९.१३ ओं बुधं तर्पयामि बोधा २.५.१०७ ओं बैवस्वतं तर्पयामि बौधा २.५.१ ४० ओं ब्रह्मपार्षदास्तर्पयामि बौधा २.५.३६ ओं ब्रह्मपार्षदीश्चतर्पयामि बौधा २.५.३८ ओं ब्रह्मर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१५६ ओं ब्रह्मणं तर्पयामि बौधा २.५.३१ ओं भवंदेवं तर्पयामि । बौधा २.५.५७ ओं भीमं देवं तर्पयामि बोधा २.५.६३ ओं भवस्य देवस्य बौधा २.५.६५ ओं पवस्य देवस्य बौधा २.५.७३ ओं भीमस्य देवस्य बौधा २.४.७१ ओं भीमस्य देवस्य बौधा २.५.७९ ओं भुवस्तर्पयामि बौधा २.५.५१ ओं भूमिदेवांस्तर्पयामि बौधा २.५.१ ४५ ओं मूः पुरुष तर्पयामि बौधा २.५.४८ ओं भूर्भुवः सुवीरिति आपू ७८७ ओं भूभुर्व स्वः पुरुषं बौधा २.५.४९ ओं भूस्तर्पयामि बौधा २.५.५० ओं मधुसूदनं तर्पयामि बौधा २.५.११८ ओं महतो देवस्य बौधा २.५.७२ ओं महतो देवस्य बौधा २.५.८० ओं महर्षी स्तर्पयामि बौधा २.५.१५४ ओं महस्तर्पयामि बौध २.५.५३ ओं महान्तं देवं तर्पयामि बौधा २.५.६४ स्मृति सन्दर्भ औं महासेनं तर्पयामि बौधा २.५.१०० ओं मातामहान्स्वधा बौधा २.५.१९१ ओं मातामहीः स्वधा बौधा २.५.१९४ ओं मातुः पितामहान्स्वधा बौधा २.५.१९२ ओं मातुः पितामहीस्वधा बौधा २.५.१९५ ओं मातुः प्रपितामहान् बौधा २.५.१९३ ओं मातुः प्रपितामहीः बौधा २.५.१९६ ओं मातृःस्वधा नमस्त बौधा २.५.१८८ ओं मात्यपत्नीः स्वधा बौधा २.५.२०६ ओं मात्यान् स्वधा बौधा २.५.२०५ ओं माधवं तर्पयामि बौधा २.५.११५ ओंमीशाय नमः परायेति वृ हा ४.६६ ओं मृत्युंजयं तर्पयामि बौधा २.५.१३९ ओं यजुर्वेदं तर्पयामि बौधा २.५.१७७ ओं यमं तर्पयामि बौधा २.५.१३३ ओं यमराजं तर्पयामि बौधा २.५.१३४ ओं राजर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१५८ ओं रां नमः परायेति । वृ हा ४.६७ ओं राहु तर्पयामि बौधा २.५.१११ ओं रुद्रपार्षदोस्तर्पयामि बौधा २.५.८२ ओं रुद्र देवं तर्पयामि बौधा २.५.६१ ओं रुद्रस्य देवस्य बौधा २.५.६९ ओं रुद्रस्य देवस्य बौधा २.५.७७ ओं रुद्रांश्च तर्पयामि बौधा २.५.८१ ओं लम्बोदरं तर्पयामि बौधा २.५.९१ ओं लां नमः परायेति वृ हा ४.६८ ओं वक्रतुण्डं तर्पयामि बौधा २.५.८९ ओं वरदं तर्पयामि बौधा २.५.८७ ओं वरुणं तर्पयामि बौधा २.५.४१ ओं वसवो वरुणोंऽज बौधा २.५.२८ ओं वसूंश्च तर्पयामि बौधा २.५.२५ ओं वाजसनेयियाज्ञवल्क्यं बौधा २.५.१६८ ओं वामनं तर्पयामि बौधा २.५.१२० ओं वायुं तर्पयामि बौधा २.५.४० ओं विघ्नपार्षदास्तर्पयामि बौधा २.५.९२ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८७ lillllilllimhlithiliile श्लोकानुक्रमणी ओं विघ्नपार्षदीश्च तर्पयामिबौधा २.५.९३ ओं सर्ववेदास्तर्पयामि बौधा २.५.१८१ ओं विघ्नं तर्पयामि बौधा २.५.८३ ओं सरस्वती देवी बौधा २.५.१२६ ओं विद्यांतर्पयामि बौधा २.५.१४८ ओं सर्वान् स्वधा नमस्त बौधा २.५.२०७ ओं विनायकं तर्पयामि बौधा २.५.८४ ओं सर्वाः स्वधा नमस्त बौधा २.५.२०८ ओं विशाखं तर्पयामि बौधा २.५.९९ ओं साध्यांश्च तर्पयामि बौधा २.५.३० ओं विश्वान्देवां बौधा २.५.२९ ओं सामवेदं तर्पयामि बौधा २.५.१७८ ओं विष्णु तर्पयामि बौधा २.५.११७ ओं सावि तर्पयामि बौधा २.५.१७३ ओं विष्णु तर्पयामि बौधा २.५.१२८ ओं सुब्रह्मण्यं तर्पयामि बौधा २.५.१०१ ओं विष्णु पार्षदीश्च बौधा २.५.१३२ ओं सूर्य तर्पयामि बौधा २.५.४२ ओं विष्णुं पार्षदांश्च बौधा २.५.१३१ ओं सोमं तर्पयामि बौधा २.५.१०५ ओं वीरं तर्पयामि बौधा २.५.८५ ओं स्कन्दपार्षदांस्तर्पयामि बौधा २.५.१०२ ओं वृतस्पतिं तर्पयामि बौधा २.५.१०८ ओंस्कन्द पार्षदीश्च बौधा २.५.१०३ ओं वैवस्वतपर्षदा बौधा २.५.१४३ ओं स्कन्दं तर्पयामि बौधा २.५.९५ ओं वैवस्वत पार्षदोश्च बौधा २.५.१ ४४ ओं स्थूलं तर्पयामि बौधा २.५.८६ ओं व्यासं तर्पयामि बौधा २.५.१७० ओं स्वयंभुवं तर्पयामि बौधा २.५.३५ ओं व्याहृतीस्तर्पयामि बौधा २.५.१७२ ओं स्वस्तर्पयामि बौधा २.५.५२ ओं शनैश्चरं तर्पयामि बौधा २.५.११० ओं हस्तिमुखं तर्पयामि बौधा २.५.८८ ओं शर्वं देवं तर्पयामि बौधा २.५.५८ ओं हिरण्यगर्भ तर्पयामि बौधा २.५.३५ ओं शर्वस्य देवस्य बौधा २.५.६६ ओषधि फलसम्पन्नान वृ.गौ.६.९९ ओं शर्वस्य देवस्य बौधा २.५.७४ ओषधीनां तु सद्भावे वृ परा ६.३५२ ओं शक्र तर्पयामि बौधा २.५.१०९ ओषध्य पशवो वृक्षा मनु ५.४० ओं श्रियंदेवी तर्पयामि बौधा २.५.१२५ ओष्ठौ विलोमको कृत्वा आश्व १०.२४ ओं श्रीधरं तर्पयामि बौधा २.५.१२१ औ ओं श्रुतर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१५९ ओं षण्मुखं तर्पयामि बौधा २.५.९८ औडुश्च सोमकपिल वृ हा ७.८१ ओं षष्ठी तर्पयामि बौधा २.५.९७ औदनव्यंजनार्थन्तु कात्या २९.८ ओं सखिपलि स्वधा बौधा २.५.२०२ औदुम्बरश्च नीलश्च व परा २.१९७ ओं सखीन् स्वधानमस्त बौधा २.५.२०१ औदुम्बरी ताम्रचौरौ शाता ४.२ ओं सत्यं तर्पयामि प्रजा ११७ औदुम्बरेण पात्रेण बौधा २.५.५६ औद्धत्याद्वा बलाद्वा ओं सत्याषाढं हिरण्य बौधा २.५.१६७ वृता ४.२२९ ओं सनत्कुमारं तर्पयामि बौधा २.९.९४ औपनायनिका मंत्रा व परा ६.१५७ ओं सप्तर्षीस्तर्पयामि बौधा २.५.१६० औपासनञ्चावसथं बृ.गौ. १५.२४ औपासनद्वये चैव प्राणायाम विश्वा ३.६८ ओं सयोजातं तर्पयामि बौधा २.५.४५ ओं सर्वदेवजनांस्तर्पयामि बौधा २.५.१८२ औपासनं विना होम आंपू १०२२ औपासनं वैश्वदेवं कण्व ४१४ ओं सर्वभूतानि तर्पयामि बौधा २.५.१८३ औपासनं वैश्वदेवः कण्व ४९९ all Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ स्मृति सदर्भ औपासनाग्नौपचनं प्रवरं कपिल २२७ औषधं लवणञ्चैव आप १.११ औपासनारंमतुर्यया कण्व ५५४ औषधान्नप्रदानाद्यैः या ३.२८४ औपासने किलाधानार्धं कण्व ३२९ औषधान्यगदो विद्या मनु ११.२३८ औपासने परा देवा कण्व ३३८ औषधित्वेत्वोषधीश्च । व २.३.३० औमापोज्योतिमन्त्रेण शिक्षा विश्वा १.१११ औरभ्रिको माहिषिकः मनु ३.१६६ व क आचारः क आहार और प्रेणाथ चतुरः २.३ औ ३.१४० औरसः क्षेत्रजश्चेव क इहोत्पद्यते विद्वान् मनु ९.१५९ वृ परा १२.१८७ औरसः क्षेत्रजश्चैव ककुभं कोविदारञ्च वृ.गौ .८.८१ नारद १४.४३ औरसः क्षेत्रजश्चैव पराशर ४.१८ कक्षागुह्यशिरः श्मश्रु देवल ५६ औरसक्षेत्रजश्चैव कक्ष्यानन्तरा निष्ठेन आंपू ४७० ब्र.या.७.२७ औरसक्षेत्रज पुत्रौ ककणोद्वासनोबन्धो कण्व ३५६ मनु ९.१६५ औरसः पुत्रिकापुत्रकं कं खं भू?स्तथा वायुः लोहि ५८० कपिल ७९५ औरसस्य च दत्तस्य न्यून कपिल ६९९ कच्छवयं वस्त्रमध्ये विश्वा १.९३ औरसाः क्षेत्रजास्तेषां या २.१४४ कटकारास्ततः पश्चात औसं ४७ औरसाधाः स्मृताः पुत्रा व्या ५७ कटिमंडलमावृत्य नाम्य वृ परा ७.३९३ औरसे तूत्पन्ने सवर्णा बौधा २.२.११ कटीसूत्रजच कौपीनं वृहा ५.४९ औरसेन समाज्ञेया कटूर्वारौ यथाऽपक्वे या ३.१४२ बृ.य. ५.२० औरसेन समोनायं स्वयं व २३ १९५ कटे च मणिसूत्र च लोहि ७५ औरसेनैव तुलितो आंपू ४२१ कणानामथ वा भिक्षा वृ परा .६.३१२ औरसे दत्तकश्चैव वृ हा ४.२५६ कणान्वा भक्षयेदब्दं मनु ११.९३ औरसो धर्म पत्नीजः या २.१३१ कण्टकक्षीरवृक्षोत्थं व २.६.१९ औरसो धर्मपत्नीजस्त लोहि २०२ कण्टकाकीर्णमार्गेण वृ.गौ. ५.३६ औरसो धर्मपत्नीतस्त ब्र.या. ७.२८ कण्टकानि ततो भूयः आंपू ५७० औरसो वयसा न्यूनों कण्ठपाशविपन्नामे आंपू ३७८ ब्र.या.५.२८ और्णनामादित्येन कण्ठमात्रजले स्थित्वा बौधा १.५.४२ वृ हा ६.३३९ और्णानां नेत्रपट्टानं कण्ठे त्रयोदशी न्यस्य पराशर ७.३० वृ परा ४.१२८ औवं दशाहं उत्कर्षे औ ३.१२४ कंठे यद्वाक्षमालां तु व २.३४ औषधं पथ्यमाहारं संवर्त ८७ कण्ठकेऽवसक्तं निवीतम् बौधा १.५.९ औषधं पथ्यमाहारो कण्डक्या अपि गङ्गाया कण्व २२ औषधं स्नेमाहारं आंपू १०.१४ कण्डवी पेषणी चुल्ली पराशर २.११ औषधंस्नेहं आहारं लघु शंख ६१ कण्डनी पेषणी चुल्ली द्र.या. २,७ औषधं स्नेहमाहारं लघुयम ५० कण्डन्युककुम्भी वृ परा ६.७५ औषधं स्नेहमाहारं संवर्त ५९ कति वा कपिलाः प्रोक्ता व.गौ.९.४ औषधस्यापरणे कण्वं नत्वा महामार्ग शाता ४.२६ कतरस्मिन्नु वा स्याने वृ.गौ. १५.६ दा ११२ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमपी २८९ कतिचिच्छ्राद्धदिवसा कपिल १८२ कदाचिदधिकश्चापि लोहि २०१ कत्सस्तु कालोविज्ञेयः कपिल ३०३ कदाचिदपि केनपि कण्व ११ कथमेताद्विमुद्दामः या ३.११८ कदाचिदपि नो धार्य भार १६.१४ कथमेवाथ हूयन्ते बृ.गौ. १५.७ कदाचिदपि पुत्रस्य लोहि २४५ कथयन्तीति पितरः प्रजा १४१ कदाचिदैवयोगेन कण्व ७७९ कथयस्व महादेव वृ.गौ. ५.४ कदाचिद्धर्म कृत्यानां न आंपू २१८ कथया तृप्तिरेतेषा आंपू १०२० कदाचिद्वशादृष्टा लोहि ६३६ कथाञ्चिद् ब्राह्मणी गत्वा संवर्त १६६ कदाचिद् विदुषा मिथ्या वृ परा २.१०६ कथचिदं वृषभं हत्वा दा १०८ कदाचिद्विधवासाध्वीसपुत्रा कपिल ५५६ कथं ज्ञातविभक्तस्य धनं लोहि २३२ कदाचिन्न च हीयन्ते शाण्डि ५.३६ कथं तत्कर्मकरणं आंपू १८५ कदाचिन्मोहतो विप्रः कण्व १४२ कथं तदिति हि प्रोक्ते कण्व ४१९ कदांबार्जुनं कौशीर भार ५.१९ कथं दास्यं हि दवत्ति वृ हा ५.३४ कद्या (क्ष) दिकटिपर्यन्तं विश्वा ६.१८ कथं धर्मरता यान्ति वृ.गौ. ५.८ कनिष्ठतर्जन्य अंगुष्ठैः वृ हा ५.२५९ कथं निष्कृतिरादिष्टा नारा ९.२ कनिष्ठवर्जमेवात्र वृ हा ६.८० कथं वानुगृहीतास्ता वृ.गौ. १०.४ कनिष्ठस्थानकश्चोति बार १५.२७ कथं वेत्यत्र देवेशो लोहि ४८७ कनिष्ठस्य च गृह्याग्न आश्व २४.६ कथं स्नानं कथं शौचं देवल ३ कनिष्ठा अनामिका वृ परा ६.१२० कथं हि लांगलमुद्वपेदन व १ २.४१ कनिष्ठाग्रमित स्थूल वृ हा ४.२५ कथितं तत्समासेन कण्व ४१३ कनिष्ठांगुष्ठानाभिञ्च वृ हा ४.२२ कथिताः किल सर्वाण्य आंपू ६५७ कनिष्ठांगुष्ठया नाभि दक्ष २.१७ कथितानि महाभागेः कानि कपिल १५३ कनिष्ठांगुष्ठयोगेन औ २.२१ कथितास्तु समासेन कण्व ४१६ कनिष्ठांगुष्ठयो भि या १.७ कथितो हस्तपर्यायः भार २.६४ कनिष्ठादि समारभ्य शाण्डि २.८६ कथितो हि महाभागैःतस्मात् लोहि ९६ कनिष्ठादेशिन्युगुष्ठ या १.१९ कदम्बञ्च शिरिषञ्च व २.६.२२ कनिष्ठो धर्मतो दत्तो आंपू ३.८० कदर्गदीक्षितबद्धातुर व १.१ ४.३ कनिष्ठो मूलतः पश्चात् औ २.१७ कदर्य्यवद्धचौराणां या १.१६१ कनिष्ठोसौ समाख्यातः भार २.३२ कदर्यास्त्रीजितानार्य यास ३.४७ कनीनिके साक्षिकूटे या ३.९६ कदर्यस्य नृशंसस्य शंख १७.३९ कनीयान् गुणवान् श्रेष्ठः अत्रिस २५६ कदलीकन्दफलकं धात्री प्रजा १२० कन्दमूलफलादीनि दधि विश्वा ८.३ कदली करल्ली च व २ ६.१६८ कन्दमूलफलाहारा वृ परा ११.२४६ कदलीजातयस्सर्वा चूतं शाण्डि ३.११० कन्दमूलफलैर्वाऽपि प्रजा १७४ कदलीस्तभपूगालिमिश्रितां नारा ५.३४ कन्दमूलस्य हरणाद् शाता ४.१९ कदाक्तुि जलाभावे कण्व ११० कन्यका विधुरा बालाः तीर्था कपिल ९६२ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० स्मृति सन्दर्भ कन्याकुम्भलीरेषु कण्व ३०६ कन्यैव कन्यां या मनु ८.३६९ कन्यागते सवितरि पितरो अत्रिस ३५९ कन्यैवाक्षतयोनिर्या नारद १३.४६ कन्यागते सवितरि प्रजा १७३ कपालनखकेशैश्च भार ७.११३ कन्या च अक्षतयोनि वृ.गौ. ४.८ कपालं वृक्षमूलानि मनु ६.४४ कन्या चैव वरश्चोभौ वृ परा ६.७ कपालानि संहत्याप्सु बौधा १.४.१० कन्यादाता ब्रह्मलोकं पुत्रदो कपिल ४१३ कपालिसांजिइत्येते भार ११.५५ कन्यादातृगृहात्तस्य कण्व ५४२ कपाली खट्वाङ्गी गर्दभ बौधा २.१.३ कन्यादान विधिवत सर्व वृ परा १०.१७२ कपालोच्छिष्टनिर्माल्य । भार १५.७२ कन्यादानं च तत्कार्य बृ.य. ५.१० कपित्थवा कुचीसर्ग भार १४.२३ कन्यादानं च तत्कार्य बृ.य.५.११ कपित्थ-विल्लामल की वृ परा १०.३८० कन्यादानं पिंडदानं व्या २०३ कपित्थं पैलवं चैव । व २.५.५४ कन्यादानं पितृश्राद्ध आं पू ७४२ कपित्थैः श्रीफलैर्वापि ब्र.या.४.११४ कन्यादानं वृषोत्सर्गो दक्ष ३.१४ कपिलदीनि दानानि वृ.गौ. ५.६७ कन्यादानात्परां ब्रूयुः वृ परा १०.१७३ कपिलश्चासुरिश्चैव वृ.या. ७.६६ कन्यादाने च वृद्धौ आश्व १८.६ कपिलश्चासुरिश्चैव ब्र.या. २.१०० कन्यादाने विवाहे च व्या ८४ कपिलक्षीरपानेन ब्र.मा.२.१९५ कन्यापुत्रविवाहेषु प्रवेशे कपिल ७६ कपिलक्षीरपानेन ब्राह्मणी पराशर १.६५ कन्याप्रतिगृहं कृत्वा अ ६२ कपिलक्षीरपानेन वृ परा ४.२२५ कन्याप्रतिगृहस्तेन अ६३ कपिलापञ्चगव्येन वृ.गौ. १०.२४ कन्याप्रदानसमये तेन लोहि ३२६ कपिलां गर्मिणी गाञ्च वृ हा ६.२ ४१ कन्याप्रवेशे वस्त्राणां वृ परा १०.२७५ कपिलां प्रतिगृहीयारो अ६६ कन्या भजन्तीमुत्कृष्ट मनु ८.३६५ कपिलाया घृतं क्षीरं वृ.गौ. ९.१३ कन्यां कन्यावेदिनश्च या १.२६२ कपिलाया घृतं क्षीरं । वृ.गौ. १०.२१ कन्यां दातुं पिता योग्यः ब्र.या. ८.१५५ कपिलाया घृतं ग्राझा लघु यम ७२ कन्या वरयमाणा नामेवंध ल २.४.१६ कपिलाया घृतं ग्राह्य पराशर ११.२९ कन्यायां दत्तशुल्कायां मनु ९.९७ कपिलाया घृतं तद्वन वृ परा ९.२५ कन्याया दूषणं चैव मनु ११.६२ कपिलाया घृतेनापि वृ.गौ. ९.२९ कन्याया दूषणं चैव वृ हा ६.१९४ कपिन्नयान्तु दत्तायाम् वृ गौ. ६.४९ कन्यायां तु गते मानौ ___ व्या १३१ कपिलायाश्च गोदुःलग्ध्वा देवल ६८ कन्यायां प्राप्तशुल्कायां नारद १३.३० कपिलाशतस्य मत्पुण्यं बृ.गौ. १७४७ कन्यायामसकामायां नारद १३.७५ कपिला सर्वयज्ञेषु दक्षिणार्थ वृ.गौ. ९.६३ कन्याया विक्रयश्चैव वृ हा ६.१९२ कपिला ह्मग्निहोत्रार्थ वृ.गौ. ९.२२ कन्यायाश्च वरस्यापि वृ परा ६.२४ कपिलोपजीवी शूद्रस्तु वृ.गौ. ९.१४ कन्यायै वाससी दद्याद् आश्व १५.३२ कपिलोजीविनः शूदाद्यः वृ.गौ. ९.२० कन्यासंक्षणश्चैव या ३.२३८ कपोलयोस्ताडायित्वा लोहि ६३४ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी कपोलयोस्तोडायित्वाद्दीत्कृत्य कपिल ८२० लोहि ३८२ आंपू ९५२ कबलं कबलं हस्ते कबले तु सुभुञ्जाने कमण्डलुर्द्विजातीनाम् कण्डलुः द्विजातीनां कमण्डलूदकेनाभिषिक्त कमार्थ काममोक्षादि कंबलस्य प्रदानेन कम्बलानां च दिव्यानां कम्बले वाऽजिने पीठे कम्बुकण्ठी संहतरू करकं कुसिकां वापि यो करकैरपिधायाथ वृ परा १०.२६७ कपिल ४३६ आम्व १.८० विष्णु १.२४ वृ.गौ. ७.६६ वृ हा ८.१३६ व्या ३४६ करंज- पिप्पल- वट-प्लक्ष करंजं लशुनञ्चानुगच्छति वृ हा ६.३५० वृ हा ६.२५२ करंजं लशुनं शिग्रु करणस्यापि करणं करणाज्जातकादीनां करणादेव शेषाणां दानानां करणैरन्वितस्यापि करन्यासक्रमोऽयंत्याद् बौधा १.१२.१५ बौधा १.४.१९ बौधा १.४.१६ विश्वा ५.१९ करिष्ये कर्मचेत्युक्त्वा करिष्ये कर्म चैवेति करन्यांस पुराकृत्वा करन्यासं हृदिन्यासं करपाददतो भंगेच्छेदेने करयो वरुणो राजन् करयोः स्थलयोराद्य करवै करवाणीति पृष्ट्वा करस्य मध्यते देवाः करंतु हृदि विन्यस्य कराग्रेणैव यद्दत्त कराड्गन्यासंयोगे षट्पदा कराभ्यां संस्पृशेद्धिमान कराष्ठीलामाषः शरमध्यायः व १.१९.१५ कण्व ३९६ आंपू २०७ कपिल ८८५ या ३.१३० बार १९.२० भार ११.१८ विश्वा ६.४६ या २.२२२ वृ.गौ. १०.४६ वृ हा ३.१५ वृ परा ७.१७६ वृ परा ७.३२९ वृ परा १०.३२७ वृ हा ६.२५८ विश्वा ६.५६ भार ६.८७ कण्व १४ आंपू ७७५ करिष्ये वेति वा नित्यं करीरजं कुमारीजं करेकंठेथवास्कान्धे करेणादाय मुसलं लगुंड करेणोद्धत्य सलिलं करोति कर्मनान्यत्तु करोति ब्राह्मणे मूढ़ो नरो करोति भक्त्या शूद्रोऽपि करोति हि स्वपितृभिस्मम करोत्येव न चान्यस्मिन् करौ विमृदिती कर्कन्धुक्षुद्रबृहती कूष्म कर्कन्धुभिर्यवैः पुष्पैः कर्क प्रवेशे सक्तून् कर्कशाभिर्वरस्त्रीभि कर्कोटकं कारवेल्लं कर्णकारोऽक्षिरोद्यनः कर्णजाः पशवः सर्वे कर्णमूलं कर्णदानं कर्णयुग्मं स्वहस्ता कर्णयोः स्पृष्टयः कर्णवेधो व्रतादेशो कर्णश्रवेऽनिले रात्रौ कर्णस्थ ब्रहासूत्रस्तु कर्णादिब्रह्मरन्ध्रान्तं कर्णे नेत्रे मुखे घ्राणे कर्णो चर्म च बालांश्च कर्तव्यत्वेन विद्वभि कर्तव्यत्वेन विहिते कर्तव्यत्वेन विहितो कर्त्तव्यत्वेन संप्राप्तान्यापि कर्तव्यत्वेन सौलभ्या कर्तव्यं दिवसं भाण्ड कर्तव्यं प्रत्युपतायाः कर्त्तव्यं ब्रह्मणा २९१ कण्व ५४ प्रजा १२८ भार ७.११० औ ८.१७ कात्या ११.९ कण्व ४०१ कपिल ४६ कपिल ८९५ लोहि २९८ कपिल ९०७ या २.१०५ शाण्डि ३.१११ वृ परा ७.१५९ वृ परा १०.२७४ वृ.गौ. ७.९६ प्रजा १२३ आंपू ५१६ वृ परा १०.३२९ कण्व ६१७ भार ६.१०९ औ २.२५ व्यास १.१४ मनु ४.१०२ वृ हा ४.१३ विश्वा ६.१९ पराशर ५.२१ मनु ८.२३४ लोहि ३४६ कण्व १२१ लोहि १३६ कपिल २८३ कण्व ११७ शाण्डि ३.८१ लघुशंख २० ब्र.या. ५.४ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२ स्मृति सदर्भ कर्तव्यं यत्नतः शौचं वृ परा ६.२१२ कर्मणा मनसावाचा प्रयत्नेन कपिल ८७४ कर्तव्यं वचनं सर्वेः या २.१९१ कर्मणा मनसावाचा अत्रि २.२ कर्तव्यं विधिवच्छाद्ध ब्र.या. ४.१ कर्मणा मनसावाचा वृ हा ८.१९४ कर्तव्यं सततं विप्रैरिष्टीः व परा ७.१०९ कर्मणा मनसा वाचा या १.१५६ कर्तव्यायुगक त्याज्यं कण्व ५८७ कर्मणा मनसा वाचा वृ हा २.१४० कर्तव्यासयशुद्धिस्तु या ३.६२ कर्मणा ममसा वाचा व १.२६.२ कर्ताऽऽदाय सकृद्धस्ते आश्व १५.१२ कर्मणा मनसा वाचा व १.२६.३ कर्ताऽनाचम्य यद्भोक्ता आंपू ७८३ । कर्मणा मनसा वाऽपि शाण्डि ४.७७ कर्तारः प्रभवेयुर्वे न चान्येषां कपिल ६७७ कर्मणां च विवेकाय । मनु १.२६ कर्तुं किलाथ च पुनः कण्व ८५ कर्मणाम्फलाप्नोति ब्र.या. १०.२३ कर्तुच्युतेः स्वभिन्नस्य कपिल ३७१ कर्मणां फलसन्त्यागः वृ हा ५.५६ कर्तुं तच्च कृते भूयस्तच्च कण्व ५०४ कर्मणां मरकादीनां भार ९.४५ कर्तुं तथा तादृशेन चोपायेन कपिल ५६७ कर्मणां याजुषादीनां आश्व २४.१७ कर्तुं न शक्यतेऽतीवभूमि लोहि ४८२ कर्मणां समनुष्ठानमा बृह ११.४० कर्तरौपासानाग्नौ त व हा ५.१६५ कर्मणे यस्य वा लोके कपिल ९८७ कर्तुणां गौणतः प्रोक्ते कण्व ७७४ कर्मणो वैदिकस्यैवं आंपू ४२ कर्तृत्वफलसंगित्वे वृ हा ६.१५२ कर्मण्येष्वपि भिन्नेषु शाण्डि ४.१११ कर्तृनथो साक्षिणश्च नारद १.१३ कर्मनिष्ठा स्तपोनिष्ठा या १.२२१ कर्तुभोक्तमहादोष आंपू ९०० कर्मनैमित्तिकं तस्माद् आंपू २५२ कीणां तु पुरोक्तानाम लोहि ४२३ कर्ममध्ये पुराणोक्तं आपू६ कर्पूर अगरु लालाटा वृ परा १०.११२ कर्ममात्रस्य सर्वत्र प्राणा आंपू २६८ कर्पूरमिव सुज्वालाशेषं विश्वा ६.१७ कर्ममार्गस्य काल वै कण्व ३२१ कर्पूर गोघृतं तैलं भार १४.३८ कर्म यद्यपि ततप्रोक्तं कण्व ४१८ कर्पूरं रामठञ्चै ब्र.या. ४.८९ कर्मयोगस्तथा वास्यायोगः शाण्डि ५.७८ कर्पूरसंयुतं दिव्यं वृ हा ७.१४७ कर्मलोप मकुर्वन्वै वृ हा ४.१६४ कर्पूरं सहितंयक्तत्तांबूल भार १४.५९ कर्मविप्रस्य यजनं अत्रिस १३ कर्मकर्ता प्रकथितो लोहि ३१२ कर्मषट्कं प्रवक्ष्यामि वृ परा २.५ कर्मकर्तु तादृशं चालं युक्तं लोहि ५७० कर्मसद्भिप्रकथितं तत् लोहि ९५ कर्म कर्मान्तरेणैव कण्व ५०९ कर्मसंन्यासयोगेन बृह ११.५७ कर्मकाले तु सर्वत्र आश्व १.६० कर्म स्मात विवाग्नौ या १.९७ कर्म कुर्यात्ततः पश्चात् व २.२.३२ कर्मानुवप्रतिश्रुत्य नारद ७५ कर्मज्ञानं तथा योगं विना शाण्डि ४.२०५ कर्माणि कानीहं कथंच वृ परा २.४ कर्मज्ञानं तथा योगं बिना शाण्डि ५.१६ कर्माणिद्विविधं ज्ञेयमशुभ नारद ६.५ कर्मणादिष्टिसिद्धश्च कण्व ३०९ कर्माणि हाविनाशीनि कर्मणापि जाँद मनु ८.१७७ कर्माण्यन्यानि संत्यत्य भार ६.१६० Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी कर्मात्मकस्विह प्रोक्त कर्मादिषु तु सर्वेषु कर्मादिषु प्रकुर्वान्ति कर्मानुरूपं ब्रह्मत्वं प्रतित्वं कर्मान्तरेष्वसंसक्ति फल कर्माते ग्रन्थिमुत्सृज्य कर्मान्ते च प्रदातव्या कर्मा पुनरादाय कर्मान्यम्मोहतः कुर्यात्तद्धि कर्म्मारभवपिवत्र च प्रणवं कर्मारम्भेण मन्त्रेण कर्मारस्य निषादस्य कर्मारिं तक्षकं व्याधं कर्मावसाने कर्मादौ कर्मोतसर्गे भवेत्सर्व कमोपकरणं चैषां क्रियां कर्मोपयुक्तमात्रैकपुत्राध्ययन कर्षणशुश्रूषाधि कर्षन्निवोदगुद्वास्य कर्षूसमन्वितं मुक्त्वा कलत्रैः परिवारैश्च कलधौतमयं पात्र कलाविकं प्यवं हंसं काल्या १.१३ वृ परा १२.२७८ कलापपादकटमोर्नूपुरा कलापहीनक्रतवो कलावस्थान् द्विजान् कलां या मूर्धिविन्यस्य कलिका वरुणा वामा कलिंग चैव वृन्ताकं कलविङ्कप्लवहंस कलाविङ्कं सकाकोलं कलशात्रितयं दक्षे वामे कलशः पंचगव्यादि कलशांस्तु चतुर्दिक्षु कलशान्दश विन्यस्य कलशान् द्विशतं सम्यक् कलशान् स्थापयेत कलहो नात्र कर्तव्यो कलाकालक्षणं त्वेवं कलाकाष्ठादि रूपेण कलाः पञ्चदश प्रोत्का कण्व १५ कपिल १६ शाण्डि ३.६२ भार १८.१०८ ब्र. या. ८.२४० भार १८.८६ कपिल २७४ शाण्डि ४.१२६ शाण्डि २.६४ मनु ४.२१५ व २.६.४९० भार ४.३३ आश्व १३.४ नारद ७.४ कपिल २२ बौधा १.११.१६ आव २.३८ कात्या २४.१४ आंपू ८६३ वृ हा ३.३७१ मनु ५.१२ व १ १४.३७ या १. १७४ नारा ५.४३ भार ७.६४ वृ हा ६.८२ नारा ५.४५ नारा ५.३८ आश्व १०.५६ कण्व ५८२ भार १५.२८ वृ परा १२.३२३ ब्र. या. १०.७८ कल्पायुत सहस्राणि कल्पे कल्पे क्षयोत्पत्तौ कल्पे कल्पे च भूतानि कल्याणदेश वृक्षोऽथ कल्याणमध्ये कुरुते कल्याणाराजसदसि रागेण कल्याणवार्ताकोपादि कल्याणवेदिकामध्ये कल्याणं पुत्रयो कृत्वा कल्याणी ग्राम्या २९३ भार १२.२५ कण्व ४८८ वृ.गौ. ३.७६ ब्र. या. १०.४३ कलि प्रसुप्तो भवति कलिभि दशभि ब्रह्मन् कलीत्वैवायशुचिस्नाने कलौ तु कानि कर्माणि कलौ तु केवलं तिष्ठे . कलौतु पापबाहुल्यात् कलौ पापै कबहुले धर्मा कलौ पापैकबहुले श्राद्धाख्यः कलौ युगे विशेषेण पति कल्पकोटिशतैर्वापि नरकान्न विश्वा १.५३ कल्पकोटि सहस्राणि कल्पकोटि सहस्राणि नारा ७.२ कपिल ४ कपिल ५४ नारा ७.६ कल्पपादपदानं च कल्पमाष्यपुराणनि कल्पयित्वाऽस्य वृत्तिं कल्पवृक्षाख्यकं देवदेवस्य कल्पवृक्षा भवेयुर्हि किं कल्पान्ते हुपभोगाय कल्पायुतशतं गत्वा आंपू ९२८ प्रजा १२७ मनु ९.३०२ वृ परा १२.३६४ भार ७.१११ नारा ७.१ कण्व २६८ वृ हा ८.२८६ वृ हा ६.१५५ अ १०२ बृह ९.१६१ मनु ११.२३ कपिल ९२४ कपिल ९४६ बृ.या. ३.१७ वृ हा ६.३२४ वृ हा ६.१५६ पराशर १.२० वृ.गौ. १.६५ व २.४.७३ कण्व ६३२ लोहि ६०८ आंपू १०२६ कण्व ५९८ कण्व ६७८ ब्र. या. १०.७० Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ स्मृति सन्दर्भ कवचं चा प्रतिरथं वृ परा ११.१४८ काकश्वावलीढन्तु पराशर ६.६७ कव्यवानलंसोमं ब्र.या. १०.१२६ काकश्वानावलीढं तु पराशर ६.६९ कव्यवाहपूर्व विन्यस्य ब्र.या. १.८२ काकं गृधं च श्येनं वृ परा ८.१६८ कव्यवाहादयो येऽमी प्रजा १९६ काकादीनां तन्तु कृता भार १५.३५ कव्यवाहो नलः सोमो वृ परा २.१९४ काकाल्लौल्यं यमात् । औसं ३५ कव्यानि चैव पितरः किं कपिल ८७९ काके हंसे च गृध्रे आंउ १०.१६ कव्यवाटं पूर्व विन्यस्य ब्र.या.८.२७७ काकोच्छिष्ट गवाऽऽघ्रातं शंख १७.४६ कश्चिच्चेत् संचरन् नारद ४.१४ ककोच्छिष्ट ग्रहग्रस्ते ब्र.या. २.१९७ कश्चित् कृत्वात्मनश्चिह्न नारद २.१५५ काक्षते स च मोक्षार्थी विश्वा ८.१० कश्चित् पुरा नृपश्रेष्ठ वृ हा ८.१७९ कांक्षन्ति पितरः सर्वे अत्रिस ५६ कश्चिदारादनाकामो बृ.या. २.५७ काक्षन्ति भर्तुरायानं शाण्डि ३.१३७ कश्मलं तद्गृहे कण्व ५८८ काजचेन चन्देन लिख्य ब्र.या. १०.५९ कश्यपश्चांगिराश्चैते भार १७.६ कांचनेन तु पात्रेण औ ५.६० कषायमोह विक्षेप दक्ष ७.१६ कांजिकं दधि तक्रं च वृ परा ७.२ ४९ कष्टेन वतमानोऽपि बृ.य. ४.१५ काणः पौनर्भवो रोगी वृ परा ७.५ कस्तूरी घनसांखा व २.५.४७ काणस्तत्रैकया हीनो वाधू १९१ कस्मिन् काले च कर्तव्यं प्रजा ७ काणं वाऽप्यथ वा खंजमन्यं मनु ८.२७४ कांस्यकस्य च यत्पापं अत्रिस १५८ काणं वा यदि वा खंजमन्यं नारद १६.१७ कांस्य खर्परशुक्राश्म प्रजा ११६ काणाः कुब्जा वामनाः च वृ.गौ. ४.३९ कांस्यताम्रादिलोहानां व २.६.५१२ काण्डात् काण्डादिति वृ परा ११.३२२ कांस्यदोहन संयुक्ता ब्र.या. ११.१४ काण्डात् काण्डेति दूर्वाग्रान् वृ हा ८.१९ कारयदोहा प्रकर्तव्या वृ परा १०.७९ काण्डोद्भवं यत् वशनेषु वृ परा ७.२१ कांस्यपात्राच्चुतं वारि प्रजा ११८ कात्र कात्यायनकृताश्चैव पराशर १.१५ कांस्यपात्रे समायुक्तं ब्र.या. ८.२०२ कादिवर्णेस्तत्वयुक्ते विश्वा ६.३९ कांस्यभांडेषु यत् पाको ल हा ६.१८ कानीनः पञ्चमः व १ १७.२२ कांस्यं कुम्भोदलं पाद्म शाण्डि ४.१०७ कानीनश्च सहोढश्च मनु ९.१६० कांस्यस्य पात्रमक्लिष्टं वृ परा १०.२५१ कानीनश्च सहोदश्च नारद १४.१६ कांस्यस्य भाजनं दद्याद् अत्रिस ३२७ कानीनं च सहोढंच बौधा २.२.३५ कांस्यहारी च भवति शाता ४.३ कान्तारगास्तु दशकं या २.३९ कांस्येनामसपात्रेण व्या ५६ कान्तारवदुर्गेषु कृत्स्ने विष्णु म १०५ कांस्यनैवाहणीयस्य कात्या २९.१९ कापालिकादिकां नारी वृ परा ८.१७७ काकण्यादिस्तु यो दण्डः नारद १८.११३ कापालिकान्नभोक्तणां वृ.य. २.२ काकण्यादिस्त्वर्थदण्डः नारद १८.११२ कापालिक्रान्तृभोक्तृणां लघुयम २९ काकयोनि व्रजन्त्येते औ ५.३२ कापालिकाः पाशुपताः औ ४.२५ काकश्वरविदोडता भार ४.११ कापेयरहितम्सनुः तत् ही ७७ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी कामं क्रोधञ्च लोमं च कामक्रोधविनिर्मुक्तः कामक्रोधविनिर्मुक्ता कामः क्रोधश्च लोभश्च कामः क्रोधस्तथालोभः कामक्रोधादिषड्वर्गं मद्य कामक्रोधाभियुक्ता कामक्रोधौ तु संयम्य काममः कामरूपी च कामजा इति हि प्रोक्ताः कामजेषु प्रसक्तो हि कामतः कृतमज्ञाता मनृतं कामतस्तु चरेद् धर्मं कामतस्तु चरेत् कामतस्तु द्विजः कुर्याद् कामतस्तु प्रसूतो वा कामतस्तु यदा कस्विद् कामस्तु सुरां पीत्वा कामतो द्विगुणं तत्र कामतोऽभ्यास विषये कामतो रेतसः सेकं कामतो वत्सरादूर्ध्व कामतो व्यवहारस्तु कामन् ददाति राजेन्द्र कामप्रदं नमस्कृत्य कामप्रदं कामदं कामप्रसंगसंलापन काममग्नीन् परित्यज्य काममन्यस्मै साधुवृत्ताय काममा मरणात्तिष्ठेद् काममुत्पाद्य कृष्यांतु काममिच्छामि नात्यान्ता कामवान्मोहयाल्लाभ कामक्रोधं भयं निंद्रा कामं केशकीटान् बृ. गौ. १७.११ वृ.गौ. ५.१०८ विष्णु म ५७ वृ.गौ. ८.१०७ शाण्डि ४,१३८ विश्वा ४.८ नारद २.३७ मनु ८.१७५ वृ.गौ. ७.११५ लोहि ४९ मनु ३.४६ वृ. गौ. १०.४१ वृ हा ६.२६२ वृ हा ६.२९८ वृ परा ८.१७८ अत्रिस १८६ दा ९६ वृ हा ६.२६८ वृ हा ६.३०९ वृ हा ६.२९७ मनु ११.१२१ वृ हा ६.३१० वृ हा ६.२२३ वृ. गौ. ६.१० वृ परा ११.३०९ आंपू ५११ वृ हा ८.१४४ नारा ७.२५ बौधा १.२.२५ मनु ९.८९ मनु १०.९० लोहि ५८९ भार ६.१७८ औ ३.१७ व १.१४.१९ कामं तु क्षपयेद्देहं कामं तु गुरुपत्नीनां कामं तु परिलुप्तकृत्याय कामं वा परिलुप्त कामं वा स्वयं कृष्योत् कामं श्राद्धेऽर्चनन्मित्र कामं श्राद्धेऽर्चयेन् मित्र कामाकामकृतक्रोधो कामात्क्रोधाच्च लोभाच्च कामात्पारशव इति पुत्राः कामात्मता न प्रशस्ता कामाद्दशगुणां पूर्व कामान्ते च भवेयातां कामान्माता पिता चैनं कामान् मोहाद्यदा गच्छेत् कामाभिदुग्धोऽस्म्यभि कामावकीर्णोऽस्म्य कामिकं तु वरं पुत्र कामिनीषु विवाहेषु कामेङ्गितेषु सर्वत्र कामोकाषिन्मनपुरका काम्यकातिथि कर्त्तव्या काम्यके विश्वे दद्यात् काम्यं चैतेषु सर्वेषु काम्यपूजां पक्षपूजां काम्यमाभ्युदयं चैव काम्य श्राद्धविषाय काम्यहोमफलावाप्ति काम्यानामखिलानां काम्ये कर्मणि वाक्ये च कायक्लेशांश्च तन्मूलान् काययोरेव संबन्धः कायाविरोधिनी शश्वत् कायिक कालिका चैव कारणत्वं तथैवास्य २९५ मनु ५.१५७ मनु २.२१६ बौधा १.५.९६ व १ २.४७ व १.२.३६ मनु ३.१.४४ औ ४.१६ पराशर ९.१० नारद १.२१ बौधा २.२.३४ मनु २.२ मनु ८.१२१ कात्या १४.३ मनु २.१४७ पराशर १०.३२. बौधा २.१.४९ बौधा २.१.४० ब्र. या. ५.१८ मनु ८.११२ वृ हा ४.१९९ भार ६.१२३ ब्र. या. ४.१६० या४. ११८ कपिल ५६ कण्व ४४९ वृ परा ७.५९ विष्णु ७७ भार १९.७ कण्व ६३४ विश्वा ८.९ व व्यास १.२ आंपू २२६ नारद २.८८ नारद २.८७ वृ हा ३.६७ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ कारणन्येवमादाय कारणार्निमित्त वा यदा कारण्डवचकोराणां कारमुपितृत्वतोतीव पुत्रत्वं कारयन्ति च कुर्वान्त कारयित्वाथस्पर्शायित्वा कारयित्वा स्वयंचापि कृत्वा कारयेज्ज्येष्ठमुखतस्तथा कारयेत चतुर्हस्ता समां कारयेद्वा विशेषेण यद्य कारयेद्विप्रमुखतः ऋग्य कारयेन् मंत्रदीक्षायां कारवल्ली त्रयी कारु कारावरो निषादात्तु कारुकांछिल्पिनश्चैव कारुकान्नं प्रजा हंति कारुण्यं प्राणिषु प्रायः कारुण्यात्सर्वभूतेषु कारुहस्तगतं पुण्यं कारुहस्तः शुचि पण्यं कार्तिकगौरी पूजायाः कार्तिकाद्यास्तु ये मासा कीर्ति के यस्तु वै मासे कार्तिके सर्वपाप विमुक्ति कार्तिक्यां श्रावणे वाऽपि कार्पासको जीर्णानां कार्पास भाण्डसंयुक्तां कार्पासमार्क क्षैमञ्च कार्पासमुवपीतं स्याद्विप्रो कार्पासमुपवीतं स्याद् कार्पासमुवीतात् कार्पासमुपवीतार्थं कार्पासं यत्तदुत्कृष्टं कार्पारसज्जुशापेन कुर्वीत कार्पासवटतंत्वोर्वा या ३.१४८ नारद १८.२५ परशर ६.७ कपिल २०८ वृ.गौ. १०.१०३ कपिल २३० कपिल २१९ आंपू ४३१ नारद १९.४ लोहि ६१५ आंपू ८३२ वृ हा २. २८ आंपू ५१० मनु १०.३६ मनु ७.१३८ मनु ४.२१९ प्रजा १४८ प्रजा १५० आप २.१ व २ ६.५०२ लोहि ४९९ बृ. गौ. १७.४ बृ, गौ. १७.५ विष्णु ८९ वृ हा ६.६३ मनु ११.१६९ शाता ५.२५ वृ हा ४.१०२ व्या ३४५ मनु २.४४ औ १.६ भार १५.१० भार १५.१३ भार १५.२१ भार २.३५ स्मृति सन्दर्भ लोहि ३५६ कार्पास शणानां तु त्रिवृ हावृ परा ६.१५३ कार्यमात्रस्य कृत्स्नस्य कार्य्यः शरीरसंस्कारः कार्यः सर्वागिरो वेदः बृ.गौ. १४.५३ भार ४.१८ कार्यं सोऽवेक्ष्य शक्ति च कार्यं तु आब्दिकं चैव कार्यं भवति तच्छ्राद्धं कार्यान्तरं न कुर्वीतं कार्ये चैव विशेषेण कार्येष्वधिकृतो यः कार्ये हेममये श्रृंगे कार्षापणं भवेद्दण्ड् यो कार्षापणाद्या ये प्रोक्ता कार्षापणो दक्षिणस्यां कार्षापणोऽब्धिका रोयः काणरौरववास्तानि कार्ष्णं च रौरवं काष्णीय गृह कालं कर्म्मात्मबीजानां कालः कात्यायनेनोक्त कालज्ञानेनयोगोऽयं कालञ्च आयसं स्थाप्य कालत्रयेऽप्यशक्ताश्चेद कालदोषादसामर्थ्यान्न कालद्वयेऽपि कुरुते कालद्वये यदा होमं कालधर्मं गते तस्मिन् कालपत्र वसद्धावं गुप्तं कालशाकं महाशल्काः कालशाकं महाशाकं कालशाकं महाशाकं कालशाकं सशल्कांश्च कालश्च चित्रगुप्तञ्च कालं कालविभक्तीश्च कालं देशं तथाऽऽत्मानं मनु ७.१० बृ.य. ४.३२ आं पू १०३२ कण्व ३२८ बृ.य. ५.५ नारद २.१२९ वृ परा १०.५५ मनु ८.३३६ नारद १८.११५ नारद १८.११६ नारद १८.११८ मनु २.४१ वृ परा ६.१५४ व १ १७.४२ या ३.१६३ कात्या २६.६ १ परा १२.३७२ ब्र. या. १०.८६ आश्व १.४७ बृ.या. ६.२७ आश्व २३.४७ आश्व १.६५ नारा ५.१७ ब्र. या. ११.७ मनु ३.२७२ ब्र. या. ४.९५ औ ३. १४३ शंख १४.२६ ब्र. या. १०.८४ मनु १.२४ बौधा १.५.५५ Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्लोकानुक्रमणी २९७ कालं राहुं चित्रगुप्त वृ परा ११.४४ काष्ठपादुकदा यान्ति वृ.गौ. ७.७७ कालागतोऽतिथिईष्ट व्यास ३.३९ काष्ठपादुकतर्दायाम् वृ.गौ. ५.८७ कालाग्निरुद्र तु ततो शंख १३.४ काष्ठभारगतेनापि घृत विश्वा ८.४७ कालातीतं न कर्तव्यं विश्वा १.७ काष्ठमूलकन्दमाण्ड आंपू १०२५ कालालकं वार्धषिकं प्रजा ९० काष्ठलोष्टाश्मभिर्गावः लघुयम ४८ कालंसहिष्णवो वृद्धा नारा ७.१२ काष्ठलोष्ट्रकपाषाणैः पराशर ९.२३ कालिंग कतकं विल्वफलं वृ हा ४.११२ काष्ठेन जलगण्डूष । व २.६.२१८ कालिन्दी गोमये तस्या वृ परा ५.३९ काष्ठे सांतपनं कुर्यात् लघुयम ४९ काले कर्म प्रकुर्वीत व्या १६४ कासत्यनिभृतोऽकस्माद नारद २.१७३ कालेऽदाता पिता वाच्यो मनु ९.४ कासां तु गर्भस्य न वृ परा १२.७४ कालेन दत्तासयो कपिल ४६३ कास्यं च भस्मना वृ परा ८.३३५ काले निजस्त्रीसंसर्गरस शाण्डि १.३८ किकरामृत्युदण्डाश्च वृ .गौ. ६.११४ कालेन महता तस्मान्न लोहि ५२५ किंचिच्चान्नं यथाशक्ति द ३.७ कालेन महता पश्चात् लोहि ५६५ किचित् कालं विनाऽन्नाद्यै वृ परा५.११६ काले पात्रे तथा देशे वृ परा १०.३४९ किंचित् सुप्तेषु लोकेषु वृ परा १२.४४ कालेऽपूर्णे त्यजन् कर्म नारद ७.७ किञिचदुच्छिष्टमादाय व २.३.१२५. कालेमुक्त्वा समुत्थाय वृ परा ६.१३६ किंचिदेव तु दाप्य मनु ८.३६३ काले समागते तस्मिन् वृ हा ५.२२८ किमर्थमेवमिति चेत्सा लोहि १३७ कालोऽग्नि कर्म मृद्वायु या ३.३१ किंचिदेव तु विप्राय मनु ११.१४२ कालो ग्निर्मनसः शद्धि बौधा १.५.५३ किंचिद् भेदं समास्थाय वृ परा १२.१२५ कालोऽग्निर्मनसः व १.२३.२७ किंचिद वेदमयं व्यास ४.३२ कालोऽतिक्रम्यते नित्यं विश्वा १.१३ किं चिद् वेदमयं पात्र व १.६.२४ कालो हनन्तरूपस्तु प्रजा १६९ कितवान् कुशीलवान् मनु ९.२२५ कां गतिं वदतां श्रेष्ठ बृ.गौ. १५.८ कितवेष्वेवतिष्ठेयु नारद १७.४ का विद्या का ह्मविद्या बृ.या. १.१९ किन्तु तान्निखनेद् भूमौ वृ परा ८.५३ कावेरी चन्द्रभागादि वृ हा ३.२९१ किन्त राज्ञा विशेषेण नारद १.५९ काव्यालापोऽपि जप्यो शाण्डि ४.१८२ किन्त्वयं याचते देवा वृ परा ८.७९ काशा दशविधा दर्भा आंपू ५३६ किन्नरान् खेरान् वृ परा २.१७२ काश्मरीबृहतीसाल भार ५.९ किन्नरान् वानरान् मत्स्यान् मनु १.३९ . काषायमात्रसारोऽपि वृ.गौ. १२.१० किन्नु स्मरन् कुरुश्रेष्ठ विष्णु म ६ काषायवासः कौपीनं वृ परा १२.१२७ किमप्यसाध्यमेताभि भार १९.४९ काषायवाससश्चैव या १.२७३ किमत्र बहुनोक्तेन वृ हा ८.३०४ काष्ठ उपल शिलाघातैः वृ.गौ.५.३८ किमस्ति वचने तस्मिन् कपिल ८४९ काष्ठकाण्ड तृणादीनां नारद १८.८२ किमप्य मदकाक्षत्त तदाद्येन कपिल ६० काष्ठजललोष्ट जल व १.२३.१२ किमासीदिति चालोच्य कण्व ७०३ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ स्मृति सदर्भ किमाहिताग्ने कुर्वन्ति वृ.गौ. १५.९ कीदृशा ब्राह्मणा पुण्या. बृ.गौ. २१.. किमिदं देव ! देवेश वृ.गौ. १०.३२ कीदृशा साधवो विप्राः वृ.गौ. १२.२० किमुक्तं भवतीत्येतज बृ.या. १.१३ कीदृशासु व्यवस्थासु वृ.गौ. ३.३. किमेतदिति तूष्णीकं लोहि ४६२ कीनाशो गोवृषो यानं मनु ९.१५० किमौरसस्य समतां तुर्यता लोहि ७३ कीर्तितानि द्वादश । आंपू ६१३ किं कार्यमिति तैः प्रोक्ते लोहि ४५६ कीलकंकीलवकील भार ७.३६ किम् च अत्र बहुनोक्तेन वृ.गौ. १६९ कुकुमाघ चन्दनं । वृ परा ७.१२८ किं च जप्यं तपेन्नित्यं । कुक्कुटः शूकरश्वानो औ ५.३३ किं तस्य दानै किं तीर्थे विष्णु म ९९ कुक्कुटश्वानमार्जारान् वाधू १७० किं तस्य बहुभिर्मन्त्रैः विष्णु म ९७ कुक्कुट विड्वराहं । व २.६.४७६ किं तु तज्जन्मजनक लोहि ७१ कुक्कुटाण्डकमात्र बृ.य. २.५ किं ते कार्य किमर्थ आंउ २.१० कुक्कुटाण्डप्रमाणन्तु पराशर १०.३ किं त्वग्नौ करणाद्ब्रहमं आंपू ६३१ कुक्षौ तिष्ठति यस्यानं आंपू ७३५ किं दण्डैरजिनैस्तीर्थः वृ परा ६.१८६ कुड्कुमं चापि सिन्दूरं लोहि ६६२ किं दानं नयतेर्बुद्धिर्गतिम् वृ.गौ. ३.७ कुंकुमेन लिखेत्ताने ब्र.या. १०.५१ किं धनेन करिष्यति व्यास ४.१८ कुंकुमे स्थापयेद्विष्णुं ब्र.या. १०.४६ किंवा न जाने तयूयं कपिल ८०३ कुचपादस्तु मुजीयात् बृ.गौ. १३.४ किं निष्कामस्य नारीभिः वृ परा ६.२१८ कुचप्रयोगो यत्प्रोक्तः भार १८.११० किं रत्नैः भूषणैः दत्तैः वृ परा १०.२४३ कुदशाभोस्तु नादेयं ब्र.या. ३.५९ किं रूपं किं प्रदानं वा वृ.गौ. ५.९ कुर्चादिग्रंथनाग्राणा भार १८.१०३ किं वाच्यमस्ति तज्ज्ञांवा आंपू ४११ कुंजवामनखंजेषु अत्रिस १०५ किं वा सत्यं भवेद् बृ .या. १.१४ कुटुम्बभरणाद द्रव्यं नारद ५.६ किं वेदैः पठितैः सर्वे व परा ४.१४ कुटुम्बसक्तो मूढात्मा शाण्डि ३.६९ किं स्विद्वनमित्यान्नन्तं वृ हा ८.६४ कुटुम्बं बिभृयाद् भ्रातुर्यो नारद १४.१० कियन्मात्राणि देवानां ब्र.या. १०.२८ कुटुम्बार्थेऽध्यदीनोऽपि मनु ८.१६७ किरीट केयूरधरं वृ हा ३.३६९ कुटुम्बार्थेषु चोधुक्तं नारद १४.३५ किल्विषं गजमुष्ट्रञ्च वृ हा ४.१५४ कुटुम्बाश्रमनिष्ठानां पञ्च शाण्डि १.४ किष्कुमात्रांच यो दद्याद् वृ परा १०.१८९ कुटुम्बाश्रममाश्रित्य तथा शाण्डि १.९ किष्कुर्नामभवेद्धस्त भार २.५९ कुटुम्बिने दरिदाय पराशर १२.४५ कोकटादिषु तच्छून्ये लोहि ३६१ कुटुम्बिन्यपि कर्त्तव्यं शाण्डि ३.७१ कोटपक्षिमृगाणाञ्च वृ.गौ. २१.२४ कुटुम्बैः पंचभिग्राम्यैः दक्ष ७.१७ कीटप्रेवेशे वस्त्राणां वृ परा १०.२७६ कु ड्यलग्नां वसोर्द्धारा कात्या १.१५ कीटाः चैव पुरीषस्य वृ.गौ. १.३५ कुड्येन्तर्जलवल्मीक लघुयम ६७ कोटाश्चाहिपतंगाश्च मनु ११.२४१ कुणपादिव च स्त्रीभ्यः वाधू १९३ कीदृशानान्तु शूदाणां वृ.गौ. २२.१ कुण्डलाकृतिसंस्था Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९९ श्लोकानुक्रमणी कुण्डालिन्यां समुद्भूतां विश्वा १.३९ कुरुते ब्रह्मयज्ञ च आश्व २४.२ कुंड सुमंगलीजातः भार १६.३६ कुरुष्वेति ह्यनुज्ञातो औ ५.४१ कुण्डानि खनितव्यानि वृ परा ११.२४८ कुरुष्वेति ह्यनुज्ञातो वृ परा ७.२०४ कुण्डाशि पतितश्चैव व्र.या. ४.१३ कुर्याच्च गृष्टिवद् विद्वान् वृ परा १०.६० कुत एवमीति प्रोक्ते दत्तोऽयं कपिल ९१ कुर्य्याच्चैव पुरोडाशं संवर्त ९९ कुतपः श्रोत्रियो बीरोभ्रूणो लोहि ३१५ कुर्याच्छूद्रवधं प्राप्त संवर्त १२८ कुतपं तिलसंयुक्तं ज्योति ब्र.या. ३.४६ कुर्यच्छ्राद्धविधानेन व २.६.२४३ कुतपानामरिष्टैः बौधा १.५.४१ कुर्यात्कुम्भमार्गेण विश्वा ८.६७ कुतपो वेदवचसा मुख्यः आंपू ६५३ कुर्यात्तस्मिन् दिने युक्ते अत्रि ५.७३ कुत्र काले च कर्तव्यं वृ परा ७.९० कुर्यात्त्रत्याद्विकर्माद्ध इत्येव कपिल २७६ कुद्दालपाणिविज्ञेयः नारद २.१५३ कुर्यात् त्रिषवण स्नायी या ३.३२५ कुनखी श्यावदन् श्वित्री नारद २.१३३ कुर्यात् पंच महायज्ञ आश्व १.१ ४३ कुनखी श्यावदन्तुस्तु व १.२०.७ कुर्यात् पंचमहायज्ञान् ल व्यास २.५० कुन्दसहस्रकुसुमै वृ हा ५.५५९ कुर्यात् पंचमहायज्ञान् आश्व २४.४ कुन्दैश्च कुटजैर्हामस्तु व २.६.२६२ कुर्यात्पवित्रवैत्यैस्या बार १८.६७ कुप्यं जाति त्रयोदश्यां ब्र.या.४.१६४ कुर्यात् पुंसवनं मासि आश्व ४.१ कुप्यंति विर (पितर) स्त्वेन कपिल २ ४९ कुर्यात् पुरुषसूक्तेन शाता ६.२१ कुबुद्धयं कुबोरदारः कुत्सिता कपिल ५१ कुर्यात् प्रत्यभियोगाञ्च - या २.१० कुब्बवामनषण्डेषु पराशर ४.२२ कुर्यात् प्रदक्षिणं विष्णोरतो वृ हा ८.६ कुब्बवामनषण्डेषु लिखित ७९ कुर्यात्स्वकर्मानुष्ठान् भार १८.५२ कुमारभोजनेऽप्येवं कण्व ६०१ कुर्यादनशनं वाद्य औ ८.८ कुमारस्याङ्जलौ चैव आश्व १०.१७ कुर्य्यादवभृथं तत्र वृ हा ५.५०० कुमारीगमने चैवमेतत् संवर्त १६१ कुर्यादवभृतं तत्र वृ हा ६.४३ कुमारी तु शुना स्पृष्टा वृ परा ८.२७६ कुर्यादवभृतेष्टिञ्च व हा ५.४४७ कुमारी मातुरुत्संग व २.३.२८ कुर्यादहरहः श्राद्ध ब्र.या.२.२०९ कुमाय॒तुमती त्रीणि व १.१७.५९ कुर्यादहरहः श्राद्ध शंख १३.१६ कुम्भकेन् हृदिस्थानं ब्र.या. २.६१ कुर्यादहरह श्राद्धं औ ३.१२६ कुम्भकेन हृदिस्थाने बृ.या. ८.२४ कुर्यादहरहः श्राद्ध मनु ३.८२ कुम्भीपाकं लोहशंकु वृ हा ६.१६२ कुर्यादाधारपर्य्यन्त व २.३.४३ कुम्भस्य जलसिक्तान्तं आश्व १५.५७ कुर्यादाब्दिकपर्यन्तं आंपू ८७७ कुम्भस्य सलिलं सिंचेद् आश्व १५.४६ कुर्यादालोकनं नित्यं वृ परा १२.१७ कुम्भं रौप्यमयञ्चैव शाता २.२२ कुर्य्यादेव त्रिराचे (त्रे) ण कपिल १०३ कुम्भाडः कुण्डली चक्रः आंपू ५२० कुर्यादेव न चेत्सेयं भूमि कपिल ५५२ कुरुक्षेत्र च मत्स्याश्च मनु २.१९ कुर्यादेव विधानेन न कण्व ३६७ कुरुक्षेत्रे महात्मानं पु१ कुर्यादेव पितुः श्राद्धतुल्यं आंपू ७१७ Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० स्मृति सन्दर्भ कुर्यादेव विधानेन दक्षिणां । लोहि ३७८ कुर्वीतैव प्रयत्येन पूर्वशेषेण कपिल २८४ कुर्यादेव समन्त्रास्ते लोहि २३ कुलकोटि समुद्धत्य वृ हा ७.८९ कुर्यादेवेति हारीतो आंपू २६४ कुलक्षयिणी ज्ञेया ब्र.या. ८.१५२ कुर्याद्अध्ययनं नित्यं औ ३.४१ कुलघ्नो नरकस्यान्ते शाता ४.१ कुर्याद् अध्ययनं नित्यं संवत १०० कुलंकारी मनुर्मानी आंपू ५१२ कुर्याद् उरतोऽभ्यर्णे वृ परा १०.५४ कुलंजं सप्तमं पूर्व षष्ठं कपिल ७८ कुर्याद्येदवं विधिवत् वृ परा ११.१९९ कुलजां सुमुखी स्वांगी आश्व १५.२ कुर्याद्वयाहृतिभिर्व्यासं वृ.या. ५.४ कुलजे वृत्तसम्पन्ने मनु ८.१७९ कुर्याद्वलिहतिं विद्वान् वृ परा ५.८१ कुलटाषण्डपतिवैरिभ्य शाण्डि ३.१८ कुर्याद्वा कारयेद्वापि आंपू १८३ कुलत्थशाकैः पूपैश्च शाता २.४५ कुर्याद्विनयनं तत्र उर्जीव ब्र. या. ८.३१२ । कुलत्था मुदमाषाश्च वृ परा ५.१३९ कुर्याद्विशेषवत्मकर्म यथा शाण्डि ५.५५ कुलंदा (पा) षण्डपतित वाधू १६८ कुर्याद् वृतपशु संगे मनु ५.३७ कुलप्रतिष्ठानाशाय पापैपात्र कपिल ५८५ कुर्यान्नामानि देवस्य शाण्डि ३.१६ कुलार्विजमधीयानं कात्या १५.४ कुर्यान्मूत्रपुरीषे तु ब्र.या. ८.५० कुलस्य पावनार्थाय व २.६.४२७ कुर्यु पंचमहायज्ञान् वृ परा ६.७४ कुलं तस्या न शंकेत वृ परा ५.४२ कुर्वती चातकी वृत्ति कपिल ४०२ कुलाचारविनिर्धष्टो ब्र.या. ४.१८ कुर्वन्नज्ञा द्विजः कर्म वृ परा २.४९ कुलाचारो पि कर्तव्य वृ परा ६.२०४ कुर्वन्नुक्तानि कर्माणि वृ परा ४.२१८ कुलानां हि सहस्रं तु वृ परा १०.११७ कुर्वन्ति चैतद् विधिना वृ परा ११.८५ कुलानि जाती श्रेणीश्च या १.३६१ कुर्वान्ति ते महापापात्तद्धवि विश्वा ८.५६ कुलानि श्रेणयश्चैव । नारद १.७ कुर्वन्ती भोजनं भतुर्भुक्तेः आपू ८७१ कुलासि सन्तति प्राणा वृ.गौ.३.५५ कुर्वन्वै कल्पना सार्द्ध ब्र.या. ५.१७ कुलान्ते पुष्पिता गावः वृ परा ५.१८ कुर्वन्वै प्रतिपच्छ्राद्ध ब्र.या. ४.१६१ कुलान्यकुलतां यान्ति ब्र.या. ८.१८६ कुर्वन् सुभोजनं कर्म शाण्डि ४.१२१ कुलालचक्रनष्पिन्न कात्या १७.१० कुर्वस्तत्पलमाप्नोति विष्णु म ८४ कुलालवृत्या जीवेत औ सं ३३ कुर्वाणां वीक्षितैर्नित्यं विष्णु १.२८ कुलित्थशालिशालूकाः व २.७.९३ कुवीत परया भक्त्या वृ हा ६.१४६ कुलीनः कर्मकृवैध बृ.गौ. १४.१२ कुर्वीतं ब्रह्मविद्विप्रो वृ परा ३.२४ कुलीनस्फीता सुचाख्याताः ब्र.या.८.१५१ कुर्वांत महती शांति वृ हा ६.४१४ कुलीना ऋजवः शुद्धा नारद २.१३० कुर्वीत वासुदेवेष्टि वृ हा ६.४१९ कुले ज्येष्ठतया श्रेष्ठ नारद २.३८ कुर्वीत वैनतेयेष्टि वृ हा ६.४१५ कुले तदवशेषेतु संतानार्थ नारद १३.८६ कर्वीत सर्वकृत्यानि धर्मोऽयं कपिल ६८९ कुले मुख्येऽपि जातस्य मनु १०.६० कुर्वीत् सुविशालानि वृ हा ४.२०९ कुले समाने सा चापि । लोहि कुर्वीतेवदिवा शौचं भार ३.१७ कुविवाहः क्रियालोपैः मनु ... Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ له امله श्लोकानुक्रमणी कुवेरसदृश श्रीमान् भवेत् वृ हा ३.३७६ कुशीलवोऽवकीर्णो मनु ३.१५५ कुशः कर्मस्वयोग्यः भार १८.४० कुशूलं कुम्भीधान्यानि ब्र.या. ७.४९ कुशकाशैस्तु बघ्नीया आंउ १०६ कुशेनैव पवित्रेण व हा ८.१०९ कुशकुर्चक्षिपेधीमान् भार ७.६३ कुशेवृत्तानपाणिस्तु आहुती व्या १२१ कुशकुर्चानिजत्वाध भार ७.७० कुशेषु तेषु दद्यातु वृ हा ६.१३० कुशकूर्च यथापूर्व मार ७.८८ कुशैः काशैश्च बघ्नीनीयाद् पराशर ९.३४ कुशग्रंथि कृत्वा शंख १२.६ कशैः काशैश्च बघ्नीयाद् आप १.२६ कुशग्रन्थिषु बिम्बेषु वृ हा ७.१ ४४ कुशैः प्रमृज्य पादौ शंख १७.५० कुशग्रंथिषु संपूज्य वृ हा ८.२३२ कुशोदकेन यत्कण्ठं वृ हा ४.४४ कुशग्रंथिसहस्रन्तु वृ हा ५.३२० कुष्ठञ्च राजयक्ष्मा शाता १.६ कुशनालुलतांरूप यत्त भार १८.४९ कुष्ठी गोवधकारी शाता २.१३ कुसपञ्चाशको ब्रह्मा ब्र.या. ८.१८८ कुष्माण्डैर्वाऽपि जुहुयाद मनु ८.१०६ कुशपुष्पेन्धानादीनि ल हा ४.२२ कुसीद वृद्धिद्वैगुण्यं मनु ८.१५१ कुशपूतन्तु यत्स्नानं पराशर १२.२८ कुसीदञ्चैव वाणिज्यं वृ हा ४.१७३ कुशप्रसून दुर्वाग्र वृ हा ५.४६६ कुसीद कृषिवाणिज्य नारद २.४२ कुशमय्यामासीनः शंख १२.४ कुसुमैः धूपदीपैश्च वृ हा ६.३७ कुसलः कर्मसुखकृत् आंपू ५१७ कुसुम्भगुड़कार्पासलवणं पराशर ६.३८ कुशः सौम्यस्तुसुमुकः भारए ८.१५ कुंसुभंरक्तं वस्त्राणि भार १५.१२० कुशस्य च पवित्रस्य भार १८.१ कुसूल कुम्भीधान्यो या १.१२८ कुशस्य मूले मध्ये भार १८.६ कुसूलधान्यको वा स्यात् मनु ४.७ कुशहस्तः पिबेत्तोयं वाधू २७ कुसूलेषु दुकूलेषु आपू १०१६ कुशहस्तः पिबेत्तोयं भार १८.७७ कुवै चैवानुमत्यै च मनु ३.८६ कुशहस्तश्चरेत्स्त्नानं भार १८.५ कूटञ्च भद्रमूलञ्च औ ३.१ ४६ हुशहस्त सत्यवक्ता देवल २५ कूटशासन कर्तृश्च मनु ९.२३२ कुशाग्रकृततोयेन ल हा ४.३० कूटसाक्ष्यं तथैवोक्त्वा शंख १७.५ कुशाग्रे मूलसमृज्य कुशमूलेब्र.या. ८.२६४ कूटस्वर्णव्यवहारी या २.३०० कशाग्रे स प्रदातव्यं ब्र.या. ४.१२६ कटाक्षटेविन: पापान नारद १७.६ कुशानथाहरेत्साग्रान् व २.६.१३३ कूपखाते तटीखाते पराशर ९.४० कुशानामांतरं तेषां भार १८.११४ कूपखाते तटीबन्धे पराशर ९.३९ कुशान्संगृह्य कर्माणि भार १८.१२७ कूपतडागखनन विधान विष्णु ९१ कुशा-5ब्जा-ऽश्वत्थ वृ परा ८.२१३ कूप तोयैरपि स्नायात् शाण्डि २.४९ कुशा शाकं पयो मत्स्य या १.२१४ कूपस्थाने तथारण्ये आंउ ८.१६ कुशासनं सदापूतं वृ हा ४.४५ कूपस्थान्यपि सोमार्क वाधू ५२ कुशासने प्राग्वदनः भार १३.६ कूपादुत्क्रमणे चैव परासर ९.३८ कुशास्तान् द्विगुणी व्या ३९३ कूपे च पतितं दृष्ट्वा पराशर ११.३८ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ कूपे विण्मूत्रसंस्पृष्टे कूपैकपानेर्दुष्टानां कूपो मूत्र पुरीषेण कूर (क्रू) सग्रे (ग्रह) तथाब्ररत्रौ १०.१५६ कूचलो विलमण्डश्च कूर्चाक्षसूत्र श्रृंग्दधा कूर्म्मफ्तियोअस्थेकृ कूर्मपृष्ठोद्धता मध्ये कूर्मश्च मकरश्चैव ब्र. या ८.३०६ वृ परा ११.२७७ वृ परा ११.२३५ वृ परा ७.२२६ वृ परा १०.२२७ कूष्माण्डं गौरवृन्ताकं कूष्मांडं त्रपुषं दत्वा कूष्माण्डं महिषीक्षीरं रकूष्मांडं महिषीक्षीरं ब्र.या. ३.५० व्या १७९ कूष्माण्डं राजपुत्रैत्येते स्वाहा ब्र. या. १०.१७ ब्र.या. ४.९४ कण्व ३१५ वृ परा ११.२५४ वृ परा ९.३३ बौधा २.१.८४ वृ परा ११.२३ ब्र.या. ८.३४३ या ३.३२७ औ ९.६१ कण्व ३३९ अ ४२ कूष्माण्डावालवृ हांक कूष्माण्डे गणो कूष्मांडैर्जुहुयात्पंच कूष्माण्डैः जुहुयान् मंत्रैः कूष्माण्डैर्वा द्वादशाहम् कूष्माण्डो राजपुत्र कृक खालाषया आयुः कृच्छ्र कृद्धर्म्मकामस्तु कृच्छ्रचान्द्रायणं कुर्यात् कृच्छ्रचान्द्रायणादीनि कृच्छ्रत्रयं चरेद्विप्रो कृच्छ्रत्रयं प्रकुर्वीत कृच्छ्रदेव्ययुतंचैव कृच्छ्रपादेन शुद्धयेत पुनः कृच्छ्रपादेन शुद्धयेत कृच्छमदण्ड्यदण्डने कृच्छ्रमेकंचरेत्सा तु तदर्थं कृच्छ्रं चान्द्रायणं चैव कृच्छ्रं चैवातिकृच्छ्रजच कृच्छ्रं विधानतः कृच्छ्राणां व्रतरूपाणि संवर्त १८५ आप ३.४ आप २.९ प्रजा १४२ नार १२.२१ कण्व ५.९५ पराशर १२.५६ अत्रिस २०३ अत्रिस २०५ व १.१९.२७ अत्रि ५.६१ बौधा २.१.८ या ३.२६४ आंपू २०२ व १.२४.५ कृच्छ्राणि त्रीणी वा कृच्छ्रतिकृच्छ्रः कुर्वीत कृच्छ्रातिकृच्छ्रः पयसा कृच्छ्रातिकृच्छ्रः पयसा कृच्छ्रांतिकृच्छ्रौ चान्द्रायण कृच्छ्रादि व्रत विधानं कृच्छ्राद्य स्थापयेच्छोते कृच्छ्राब्दमाचरेज् ज्ञानाद् कृच्छ्रार्धः पतितस्यैव कृच्छ्रेण वस्त्रघातेऽपि कृच्छ्रे त्रिषवणमुदको कृत्यैः वाऽपि नयेत कालं कृतकर्मत्रयकृतो यो कृतकानां सुराणाञ्च कृतकृत्याधियो मूढाः अहो कृतकेशविभागं कृतघ्न पिशुनः क्रूरो कृतघ्नश्चकलीनश्नच कृतघ्नो ब्राह्मणागृहे कृत चाण्डालसंस्पर्शः कृतचूडस्तु कुर्वीत कृतज्ञोऽद्रोही मेधावी कृतज्ञोऽद्रोहि मेधावी कृतत्रयविवाहस्य पत्नी कृतत्रेताद्वापरे (बु) तु मरण कृतदाराः संगृहीताः पुत्र कृतदारोऽग्निपत्नीभ्यां कृतदारो न वै तिष्ठेत् कृतदारोऽपरान्दारान् कृतपूर्वाहणकार्या च कृतप्रहारं खड्गेन गृहीत कृतमात्रे तु तस्मिन्वै कृतमाध्याह्नकोऽश्नीयाद् कृतमेव भवेन्नूनं नात्र कृतमोदनशक्त्वादि स्मृति सन्दर्भ वृ परा ८.१२० औ ९.९५ देवल ८६ या ३.३२० व १.२२.१० विष्णु ४६ शाण्डि ३.८६ अत्रिस १९९ अत्रिस २६० यम ७९ बौधा २.१.९५ शंख ६.७ आपू ३०३ औ सं १८ शाण्डि १.५१ आश्व ४.११ औ ४.३५ ब्र. या. ४.२४ औ ९.९२ वृ परा ८.२५३ अत्रिस ९६ या १.२८ ब्र. या. ८.६० आंपू ४०२ नारा १.९ कपिल ६७६ व्यास २.१६ वाघू १५३ मनु ११.५ व्यास २.२५ लोहि ६९६ कण्व ७१ व्यास १.३१ लोहि ३८१ कात्या २४.३ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी कृतयुगेपिचैस्मिन् कृतरक्षः सदोत्थाय कृतवापनो निवसेद् कृतसिल्पोऽपि निवसेत् कृतशैचस्तथाऽऽचान्तो कृतशौचौ निषेव्याग्नि कृतसंध्यस्ततो रात्रिं कृतस्य सूतके यत्तु कृतहोमस्तु भुंजीत कृतं चेत्कर्म तद्भूयः कृतं चेत् तत्परं सर्वं कृतं चेत्तत्पुरं सम्यक् कृतं त्रेतायुगं चैव कृतं दत्त वस्तुतस्तु सूतकान्ते कृतांकृतां तण्डुलांश्च कृताग्नि कार्यदेहोऽपि कृताग्निकार्यो मुंजीत कृतग्निकार्यो भुञ्जीत कृतांजलिपुटो भूत्वा कृताञ्लिपुटो भूत्वा कृतांजलिपुटो भूत्वा कृताञ्जलिरूपश्रान्तः कृतांजलिस्तस्यमनो कृतादिश (क) लिपर्यन्त कृतानि सम्भवं येननात्र कृतानिं सर्वदानानि कृतानुसारदधिका कृतान्नसाधना साध्वी कृतांप्रतिष्ठां तां कृत्वा कृताभिषेकं दालभ्यं कृतार्थतां प्रापयति कृतार्धक्षुरकर्माणं तुच्छं कृतावापो वने गोष्ठे कुताशौचं विधानेन कृतिस्सा श्रीमती पुण्या भार ६.१६३ या १.३२७ मनु ११.७९ या २.१८७ वृ हा ८.७ व्यास ३.३ ल हा ६.२१ लोहि ६१६ हा १.२८ आंपू १३५ कपिल ८८८ आंपू ८८० मनु ९.३०१ कपिल ८८ या १.२८७ वृ परा ५.९६२ या १.३१ ब्र. या. ८.६२ पराशर १.९ वृ परा १.१० वृ परा ११.२३३ बृ.गौ. १६.१३ व_२.३.१६९ भार ९.७ कपिल १७३ भार १३.४१ मनु ८. १५२ व्यास २.३१ भार ११.६८ दा १ आंपू ३३९ आंपू ७५३ आंउ ११.२ व_२.३.९८ कपिल ८६ कृते चास्थिगताः प्राण कृते चोपसेत्सम्यक्तथा कृते तु तत्क्षणाच्छाप कृते तु मानवो धर्म कृतेन दानेन यथा परपीडा कृतेनं धनदानेन कृतेन येन मुच्यन्ते वृ परा २.९० कृतेष्वापि तथा तेन त्वक्षतो लोहि ७०२ पराशर १.२६ वाधू १८४ कृते सम्भाषणात् पापं कृते संभाष्य पतति कृतोदकान् समुत्तीर्णान् कृतोपनयनयनस्यास्य कृतोपनयनो वेदानधीयीत कृतोपवासस्तत्राह्रि कृतोयदि तथा सूनू रंडागर्भ कृत्तिकादि भरण्यन्तं कृत्यैश्चरित्रैः सुस्पष्टं या ३.७ मनु २.१७३ औ १.४ वृ परा ७.३९ कपिल ६०१ या १.२६८ लोहि ७२ वृ परा ६.१४३ कण्व ४३२ वृ हा ८.२१३ संवर्त ९६ कपिल ६९ कात्या १५.१८ व २.६.२८ कृत्वा आधानं विधानं कृत्वा कर्माणि नित्यानि कृत्वा कुशमयों पत्नी कृत्वा गार्ह्यणी कर्माणि कृत्वाऽग्निहोत्र स्मार्त्तं च कृत्वाग्न्यभिमुखौ कृत्वाऽघमर्षणस्नानं कृत्वां च यावकाहारा कृत्वा च विधिवच्छ्रीद्धं कृत्वा च शपथं बाढ़ कृत्वा चैवं ततः पश्चात् कृत्वा चैवं महापापं कृत्वाऽऽज्याहुतिपर्यन्तं कृत्वा ततः परं भूयः कृत्वा तत्रैव निवसेद्दत्तांश कृत्वा स्मिन्वीहितिहोत्रे कृत्वा तं मूढबुद्धिस्तु कृत्वा तु वरणं पश्चादों आंपू २०४ वृ परा ६. ३२४ आंपू ३६२ • ३०३ पराशर १.३० व २.७.७९ पराशर १.२७ पराशर १.२४ कपिल ४४९ आंपू ३३३ दक्ष २.५३ औ ८.३३ आश्व १०.१३ नारा ८.२ लोहि ४७३ लोहि १२५ अ ८१ आंपू ७७८ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ कण्व २५६ बृ.गौ. १७.४१ व २.६.७ कृत्वा तुं स्नातकः पश्येत् आश्व १४.६ कृत्वा त्रिवारं तत्पश्चात् कृत्वा त्रिषवणस्नान कृत्वा यज्ञोपवीतंतु कृत्वा दण्डं गन्धलिप्तं कृत्वssaौ तर्पणं संख्यां कृत्वा ध्यात्वा महायोनि कृत्वा नारायणीमिष्टिं कृत्वाऽन्यतममेतेषां कण्व ५६८ आश्व १. ११५ विश्वा ६.४७ वृ हा ६.४१० वृ परा ८.२८९ भार १२.५६ कृत्वा न्यासत्रयं पश्चाद् कृत्वा पापं न गुहेत कृत्वा पापं न गूहेत कृत्वा पापं बुधः कुर्यात् कृत्वा पापं हि सन्तप्य कृत्वाऽपिपापकर्माणि कृत्वा पूर्वमुदाहार्य कृत्वा प्रतिकृतिं कुर्याद् कृत्वा प्रदक्षिणं नत्वा कृत्वाऽऽभ्युदयिकं श्राद्ध कृत्वाऽऽभ्युदयिकं श्राद्ध कृत्वाऽऽभ्युदयिकं श्राद्ध कृत्वाऽऽभ्युदयिकं श्राद्ध कृत्वाऽऽभ्युदिकं श्राद्ध कृत्वा मनुष्य यज्ञान्तं कृत्वा माध्याह्निकीं सन्ध्यां कृत्वा माध्याह्निकीस्नान कृत्वा मूत्र पुरीषं वा कृत्वां मूत्र पुरीषं वा कृत्वा मूत्र पूरीषं वा कृत्वा मूलेन भूशुद्धिं कृत्वा मूत्रपुरीषे च कृत्वा यज्ञोपवीतं कृत्वा यज्ञोपवीतानि कृत्वा यत्नात्सुखोष्णं कृत्वा यत्फलमाप्नोति आंउ २.४ पराशर ८.६ शंख १७.६२ मनु ११.२३१ वृहस्पति ६७ आंउ १.७ बृ. गौ. २१.३० कण्व ७१९ आश्व ४.४ आश्व ८.२ आश्व ९.२ आश्व १०.२ आश्व १४.२ आश्व १.१३५ विश्वा ७.१० वृ हा ५.२११ मनु ५.१३८ शंख १६.१९ संवर्त १७७ विश्वा ६.९ ब्र. या. ८.८९ व्या ३३९ भार १६.५५ आंपू २४३ वृ परा ११.२९१ स्मृति सन्दर्भ औ ३.१४४ मनु ७.१८४ कात्या २०.१५ कृत्वा लब्ध्वा स्वयं कृत्वा वचांसि तत्पश्चत्तमेव कपिल ८४७ कृत्वा विधानं मूले तु कृत्वा व्याहृतिहोमान्तं कृत्वा शुभां समीचीनां कृत्वा शौचं विधानेन कृत्वा शौचं विधानेन कृत्वा श्राद्धं प्रकुर्वीत कृत्वाषडंग्गाविन्यास कृमिकीट पतंगत्वं कृमिकीटपतंगानां कृमि कीट पतांगानां कृमिकीट पतंगाश्च कृमिकीटवयोहत्या मद्य कण्व २३६ कण्व १२४ वृ हा ८.८४ विश्वा ८.६८ कृत्वा सङ्कल्प्य तत्पश्चात् कृत्वा सचैलं स्नात्वा कृत्वा सम्यक् प्रकुर्वीत कृत्वा सवसनंन्यास कृत्वा सुखोष्णं संस्कृत्य कृत्वेध्मानादि पर्यन्तं कृत्वेष्टिं विधिवत् कृत्वैत द्वलिकर्मैवमतिथिं कृत्वैव धारयेच्छश्वत् कृत्वैव पश्चात्तच्छ्राद्ध कृत्स्नक्रियाविशेषेषु कृत्स्नमारण्यकं काण्डं कृत्स्नं चाष्ठविधं कर्म कृत्स्नेष्वशुचिषु स्नानं कृत्स्नो गृहस्थधर्म कृद्धाक्त यमहोक्वाय कृपया दत्तपुत्रः श्रीभूमि कृपया विप्रमात्रत्व वृ हा ६.३९९ कृपाद् उद्धृत्य कलशौ कृपायमिन्द्र ते रथ कृमिकण्टकदोषाणि निर्हरेद्वा शाण्डि ३.९४ वृ हा ८.३७ या ३.२०८ मनु १२.५६ वृ परा ४.१७१ मनु १.४० मनु ११.७१ भार ६.८८ कपिल ४७ वृ हा ६.३०३ औ ९.१०० भार ६.७२ आंपू २४१ वृ हा ७.२७९ शंख ७.१ मनु ३.९४ भार १५.९० आंपू १०४२ आंपू ५९४ कण्व ६१२ मनु ७.१५४ आंपू १६७ वृ परा १.५४ व २.६.२२५ लोहि ५३ कण्व ७२७ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३०५ कृमिदुष्टानि जीर्णानि भार १४.६३ कृष्णाजिनप्रतिग्राही वृ परा ६.२२९ कृमिमिब्रह्मसंयुक्त मक्षिकै बृ.य. ८१.७ कृष्णाजिनस्य दानस्य वृ परा १०.१२२ कृमिभित्रणसंभूतैर्मक्षिका लघुयम ६२ कृष्णाजिनं उत्तरीयं व १ ११.४८ कृमिभित्रणसंभूतैर्मक्षिका यम ६ कृष्णाजिनानां बिल्व बौधा १.५.४० कृमि भूत्वाश्वविष्ठायां बृ.गौ.१३.३१ कृष्णाजिने कुशे वापि व २.६.४३ कृशशक्रस्य वृत्तस्य वृ.गौ. ६.११८ कृष्णाजिने तिलान्कृत्वा व १ २८.२२ कृशान् भागवतान् शाण्डि ४.१०३ कृष्णाजिने तिलान् वृ परा १०.१३८ कृषि कर्मरतो यश्च गवाञ्चअत्रिस ३७.६ कृष्णान्मणीश्च तत्कण्ठे कण्व ६५९ कृषि कृमानवस्तवेवं वृ परा ५.१३२ कृष्णाय नम इत्येष वृ हा ६.२८९ कृषिगोपालनिरतः वृ.गौ.२.२७ कृष्णावभ्रयतकपिला ब्र.या.१०.८० कृषि-गौरक्ष-वाणिज्यैः वृ परा १२.१५४ कृष्णाष्टम्यां चतुर्दश्यां वृ हा ५.४११ कृषितो विंशतिं दैव वृ परा ५.१९० कृष्णां प्रौडां (ढां) वृषारूढ़ा भार १२.१३ कृषि ति पाशुपाल्यं वृ हा ४.१७५ कृष्णाष्टम्यां महदिवं औ ९.१०७ कृषि शिल्पं भृतिर्विद्या या ३.४२ कृष्णेति मंगलं नाम वृ हा ३.२८७ कृषिस्तु सर्ववर्णानां वृ हा ४.१७२ कृष्णैश्च तुलसीपत्रैः वृ हा ५.३७४ कृषि साध्विति मन्यन्ते मनु १०.८४ कृष्येकवृत्तिजीवी यो वृ परा ७.२३ कृष्टजानामोषाधीनां मर्नु ११.१४५ कृसरं मुद्गसूपं च व २.६.२४८ कृष्णः केतु कुशानूत्थः वृ परा ११.४० कृसरापूसंयावपायसं व्यास ३.५३ कृष्णकेशोऽग्नीनादधीतेति बौधा १.२.५ केचिच्छरमयी पत्नी वाधू १४९ कृष्णजीरक-वंशाग्रा वृ परा ७.२२४ केचितमेव पिण्डं तु आंपू ९८२ कृष्णपक्षे दशम्यादौ मनु ३.२७६ केचितु चक्रशंखौ द्वौ वृ हा २.२३ कृष्णापक्षे यदा सोमो पराशर ५.८ केचित्तु मुनयः प्राहुः भार ६.११७ कृष्णपक्षे विशेषेण विहीतानि कपिल १५६ केचित्पल्याः पितृव्य आंपू १०३७ कृष्णरम्माफलैर्जुष्टं व हा ५.४५६ केचित् सापिण्ड्य व परा ७.७७ कृष्णरुरुबस्ताजिनान्य बौधा १.२.१४ केचित् सापिण्ड्य मिच्छंति वृ परा ७.८० कृष्णवर्णा या रामा व १ १८.१६ केचिदिच्छन्ति निष्कान्तं बृ.या. ४.२२ कृष्णावस्त्रसमाच्छन्नं शाता ६.१९ केचिदेतद्विशयथ वृ परा ८.१९६ कृष्णसारस्तु चरति मनु २.२३ केचिदेवत्यार्याः प्राक भार २.४२ कृष्णसारो मृगो यत्र ल हा १.१६ केचिद् देवात् स्वभावाच्च या १.३५० कृष्णसम्भूषणर्युक्ताः वृ परा २.२३ केचिद्देवालयद्वारं भार २.११ कृष्णाजिक मृतशय्या अ० केचिद्धि दैवस्य तु वृ परा १२.६९ कृष्णाजिनातिलग्राही आप ९.५ केषिद्धताशं वदनं वृ परा ४.१० कृष्णाजिनमथास्तीर्य व २.६.३२७ केचिद् यश विदो आश्व २३.८ कृष्णाजिनप्रदानं च व परा १०.८ केचिद् रात्री कु पूर्वे आ पू ७८५ कृष्णाजिनच यो दद्यात् अत्रिस १४ केषिद् वदन्ति चैतानि वृ परा १०.२११ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ स्मृति सन्दर्भ केचिद् वदन्ति तज्ज्ञास्तु वृ परा ८.२२४ केशवादीन् समुद्दिश्य वृ हा ६.१३५ केचिद् वदन्ति मुनयः वृ परा ८.२९० केशवादीन्समुद्दिश्य व २.६.४३ ४ केतकी द्यूतको चैव व्या १७८ केशववार्पितसवीहं शशिभं वृ हा ६.१०८ केतितस्तु यथान्यायं मनु ३.१९० केशवेनैवमाख्याते चान्द्रायण बृ.गौ.१७.१ केतु कृण्पन्नाग्नि सूनोरिति वृ परा ११.६७ केशवेनैवमाख्याते बृ.गौ.१९.१ केतुं कृण्वान्निप्रोक्तं वृ परा ११.३२३ केशश्मुश्रुलोमनख बौधा २.१.९८ के ते ब्रह्महत्या समाः पातकाः विष्णु ३६ केशसंमितो ब्राह्णस्य व १.११.४६ केन द्रव्येण भूयश्च लोहि ८ केशादि दूषिते तीरे न अत्रि ५.४१ केन रूपेण ता वा वृ परा १०.१९६ केशानां रक्षणार्थ च लधुयम ५७ केनाक्षरेण मन्त्रेण बृ.या. १.१६ केशानां रक्षणार्थाय दा ११० केनैव विधिना सन्यग नारा ८.३ केशानां रक्षणार्थाय लघुशंख ५७ केयूरांगदहारादि व २.६.७८ केशाना रक्षणार्थाय पराशर ९.५२ केयूरांदहाराधे वृ हा ३.२२५ केशानां रक्षणार्थाय वृ हा ६.३७३ केवलज्ञान सन्तृप्तास्ते शाण्डि ४.१४ केशानां रंजनार्थ वा वृहा ८.१०२ केवलं लोकवृत्यर्थं बृह ११.१५ केशानारंजनार्थाय व २.६.१०६ केवलं चारुमावाऽपि वृ हा ५.३१४ केशान्तकर्माणां तत्र व्यास १.४१ केवलं प्रणवो वाऽपि भार १६.५० केशान्तश्च विवाहश्च ब्र.या.८.३६१ केवलं भगवत्पादसेवया शाण्डि १.९३ केसान्तः षोडशे वर्षो मनु २.६५ केवलं मलमश्नन्ति ते वृ.गौ. ८.१७ केशान्तिको ब्राह्मणस्य मनु २.४६ केवलं यो वृथाऽश्नाति वृ हा ५.२७६ केशान्तिको ब्राह्मस्य कात्या २७.१२ केवलानि च शुक्तानि शंख १७.३२ केशान्ते मुखमण्डले विश्वा ६.४१ केशकीटकशंबूकमस्थि दा १३ केशाया क्षालयेत्रित व २.५.४६ केश-कीटकसंदुष्टं वृ परा ८.२२५ केशेषु गृहहस्तौ नारद १६.२६ केशकीटादिदुष्टानां व २.६.५२२ केशेषु गृहहतो हस्तौ मनु ८.२८३ केशकीटादिभिर्दुष्टं विद् शाण्डि ३.११९ केषां चित्तेन वै मासं वृ परा ८.३ केशकीटानुसरणा नरवरो शाण्डि १.२३ केषां सन्निधौ श्राद्धं विष्णु ८४ केशग्रहान् प्रहारांश्च मनु ४.८३ केषां हि पुंसा महतो व परा १२.७२ केशबर्हि समाच्छ बृह १२६ कैवर्तमेदभिल्लाश्च अत्रिस १९८ केशरंजनताम्बूल वृ हा ८.२०५ कोटिजन्मर्जितं पापं हा ३.२९२ केशरोगमृते चापि अष्टौ शाता ६.४६ कोटिजन्मार्जित् पुण्याद् वृ हा ५.२२५ केशलेपादि संयुक्ता व २.५.५० कोट्या स्यात्तु भवेद् बृ.या.७.१३८ केशवस्तु सुवर्णाभः वृहा २.७९ कोदवाणि च सूराणि व २.६.१३४ केशवस्त्रादिविन्यासं व २.५.११ कोदवान् कोविदारांश्च औ ३.१४७ केशवादि नमोऽन्तैश्च वृ हा २.७५ कोदवा यूपकाश्चैव ब्र.या. ३:५१ केशवादीन् समुद्दिश्य वृ हा २.११६ कोपसंरक्तनयनः कुटिल नारा ४.३ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी कोपादालोलजिहं वृ हा ३.३५१ क्रतूनामपि सर्वेषाम कण्व ४९१ कोपो न स्याद्यदि पुनः नारा ५.४ क्रतौ श्राद्धे नियुक्तो व्यास ३.५४ को भेदः कर्मणां नेति कण्व ३२३ क्रन्या नर्तुमुपेक्षेत नारद १३.२५ कोयाष्टिप्लवचक्राह या १.१७३ क्रमशश्चतुर्मिरंगुल्यो भार १८.८५ कोऽयं लोकोऽस्त्य वृ हा ७.१९ क्रमागतं प्रीतिदायं नारद २.४७ कोविदारकदस्वेषु न ल हा ६.१७ क्रमागतेष्वेष धर्मे नारद ४.११ को विधि सविनिर्दिष्टः बृ.या. ४.१९ कमागतैर्धनैर्वाऽपि स्व शाण्डि ३.३४ कोशातकमाबुं च दूरतः शाण्डि ३.११६ क्रमाते सम्भवन्ताञ्चिरतः या ३.१९३ कोशातकी बिम्बफलं वृ हा ४.१११ क्रमाद्भवंति तंतूना भार १५.१०३ कोशाना सत्मनः स्पर्श औ २.८ क्रमादम्भागतं दव्यं या २.१२१ कोष्ठा रायुधागार मनु ९.२८० क्रमादव्याहतं प्राप्त नारद २.४ कौट श्यं तु कुर्याणां मनु १२३ क्रमादेते प्रपधेरन् नारद १४.४६ को जलसमाविष्टा वृ.गौ. २.८ क्रमान्न शक्यते यस्मात् कपिल ३६० * जप्त्वाप इत्येतद् अत्रि २.४ क्रमेण संहितारण्यं आश्व १२.१४ सं जप्त्वापं इत्येतद् मनु ११.२५० क्रमेणेतरकर्माणि न व्यत्या लोहि ३० कोपीन आच्छादनं वासो शंख ७.५ क्रमेणैव महापापा लोहि ४४० कौमारं पतिमुत्सृज्य व परा ७.३६३ क्रमेणैभिस्तु संयोज्य व २.६.३७० कौमारं पतिमुत्सृज्य नारद १३.५० क्रमेणैव तु वक्ष्यामि वृ हा ३.३२९ कौमोदकी स्थान भार ५.४७ क्रमेणैव लभन्ते त कण्व ४६६ कौ युवामिति पृच्छन्ति कपिल ३७३ क्रयक्रोतां च या कन्या अत्रिस ३८७ कौरूक्षेत्रांच प्रत्स्यांश्च मनु ७.१९३ क्रयविक्रयमध्वानं मनु ७.१२७ कौलंक सौचिकं नाहं लोहि ३९५ क्रयश्चतादृशस्यैव वस्तुनः कपिल ४५६ कौशभी नाम या प्रोक्ता ब्र.या.१.२८ क्रव्यादञ्च तथा मेकं वृ हा ६.२५५ कौशं सूत्र वा त्रिस्त्रिवृद् बौधा १.५.५ क्रव्याद पक्षिदात्यूह या १.१७२ कौशिका कृष्णलोह भार ७.३५ क्रव्यादः शकुनीन् मनु ५.११ कौशेय केश कुतपान्नीरं वृ परा ६.२८४ क्रव्यादसूकरोष्ट्राणां मनु ११.१५७ कौशेयरी टोलवण ___ या ३.३८ क्रव्यादास्तु मृगान् हत्वा मनु ११.१३८ कौशेय तित्तरिहत्वा मनु १२.६४ क्रव्यादांस्तु मृगान् औ ९.१२ कौशेयावियोरूपैः मनु ५.१२० क्रव्यादानां पक्षिणाजच औ ९.३ कौशीदकास्तथाभोक्तु शाण्डि ३.२८ क्रव्यादाः शकुनयश्च बौधा १.५.१४९ क्रत्वः सर्व एवैते त्रिभिदैरबृ.गौ. १५.४९ क्रव्यादै सारमेयाधैर्हतं वृ परा ६.३२८ कुतकोटिफलं तत्र वृ हा ७.२५ क्रान्तप्रयुक्तानि विना कण्व ३५ क्रतुर्दक्षोवसुः सत्य लिखित ९ किमयः किं न जीवन्ति व्यास ४.२२ क्रतु साहमिणं वाऽपि व हा ८.२८० क्रिमिमि भक्ष्यमाणाश्च. बृ.गौ. १५.६९ क्रतूनां दशकोटीनां वहा ६.७४ कियते आंपू ६२३ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ क्रियन्ते नैव वैदाश्च क्रियमाणं कृतं यद्वा क्रियमाण क्रिया सर्वा क्रियमाणानि कर्माणि क्रियर्णादिषु सर्वेषु क्रिया कर्ता कारयिता क्रिया काश्चिन्न सन्त्यत्र क्रियाम्युपगमात्त्वेतद् क्रिया स्नानं प्रवक्ष्यामि क्रियाहीनश्च मूर्खश्च क्रियाहीनस्य मूर्खस्य क्रियाहीनस्य मूर्खस्य क्रोडाथ देवकी सूनो क्रीडां शरीरसंस्कार क्रीडित्वा तु तत् तस्मिन् क्रीडित्वा मानुषे लोके क्रीडित्वा मामके लोके क्रीणीयाद्यस्त्वपत्यार्थ वृ परा १.२० शाण्डि ४.२२४ वृ परा ११.३०१ शाण्डि ३.४ नारद २.८५ कण्व ९ लोहि २१५ मनु ९.५३ शंख ९.१ अत्रिस ३८९ औ ६.९ क्रीतलब्धाशिनो भूमौ क्रीतस्तु ताम्यां विक्रीत क्रीतस्तृतीयस्तच्छुनः क्रीतं विप्रघृतं नीत्वा क्रीता द्रव्येण या नारी क्रीतेन गोविकारेण क्रीत्वा नानुशयं कुर्याद् क्रीत्वा मूल्येन यत् क्रीत्वा मूल्येन यत् क्रीत्वा विक्रीय वा किंचिदं क्रीत्वा स्वयं वाऽप्युपत्पाद्य क्रुद्धोल्काय सहस्रोल्काय क्रुध्यन्तं न प्रतिक्रुध्येद् क्रुश्यद्भिच कदद्भिच क्रूर ग्रहांतितप्तस्य क्रूरातुरा वृद्ध चिकित्सक क्रूरो वीजनकश्चैव ब्र.या. १३.२९ शाण्डि ३.१० या १.८४ वृ. गौ. ६.७६ वृ.गौ. ७.७३ वृ. गौ. ७.६५ मनु ९.१७४ या ३.१६ या २.१३४ व १.१७.३० प्रजा १३६ बौधा १.११.२० वृ परा ४.१८१ नारद १०.१६ नारद १०.१ नारद १०.२ मनु ८. २२२ मनु ५.३२ वृ हा ३.११८ मनु ६.४८ वृ.गौ. ५.४० आंपू २९३ वृ परा ६.२७८ औ ४.२८ क्रेता पण्यं परीक्षेत क्रेतारश्चैव भाण्डानां क्रोधनं दुष्क्रियाध्यानं क्रोधयुक्तो यद् यजते क्रोधलोभविनिमुक्ता क्रोधलोभविनिर्मुक्ताः क्रोधाद्वा यदि वा द्वेषा क्रौंच सारस -हंसादि स्मृति सन्दर्भ नारद १०.४ नारद १८.७४ भार ८.८ आप १०.८ वृ. गौ, ५.११८ बृ.गौ. १५.९४ वृ.गौ. १९.८ वृ परा ८.१६६ नारद २.१६१ बृ.या. ७.१२२ क्लान्तसाहसिक शांत क्लिद्यन्ति हि प्रसुप्तस्य क्लिन्ति हि प्रसुप्तस्य क्लिन्नभिन्नशवं यत् क्लिन्नान्नं तंडुलान्नं क्लिन्नाया मेध्यामाहृत्य क्लिन्ने भिन्ने शवे चैव क्लीवं त्यकत्वा पततिं क्लीब श्वित्री च कुष्ठी क्लीबा अन्ध बघिरा क्लीबा अन्ध वधिर क्लीबाऽभिशस्त वाग्दुष्ट क्लीबे देशान्तरस्थे च क्लीबे देशान्तरस्थे क्लोबेनाबिप्रयोक्तव्यः क्लीबोऽथ पतितस्तज्ज क्लीबोन्मतत्पतिताश्च क्लीबोन्मत्तान् राजा भार १८.१२ या २.१४३ व १.१७.४७ व १.१९.२३ कलीबो वा यदि वा काणः वृ परा ४. २०८ मनु ४.३५ मनु ६.५२ क्लृपकेशनखश्मश्रु क्लप्तकेशनखश्मश्रु क्लेशकर्मविपाकैश्च क्लेशभागी च सततं क्लेशमात्र हि किमपि क्वचित्त्यागं क्वचित्पानं क्व जाता तत्परं चास्य क्षणं कृत्वा प्रसादेऽद्य बृ.मा. २.४३ वृ परा ६.२०६ लोहि २२९ विश्वा २.१२ दक्ष २.८ अत्रिस २३४ भार १४.४९ बौधा १.६.१९ ५ २.१४ बौधा २.२.३१ वृ.गौ. १०.५२ वृ परा १०.२४७ वृ परा ५.१८० वृ परा ७.७ अत्रिस १०६ लिखित ८० कण्व ७०५ आंपू ७७६ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३०९ क्षणाद् गोनिष्क्रय वृ परा ८.१६२ क्षत्रियं चैव सर्प च मनु ४.१३५ क्षणे चाह्वान संकल्पे व्या २६२ क्षत्रियं मृतमज्ञानाद् पराशर ३.४९ क्षतृवैदेहकयो प्रतिलोमः बौधा १.९.११ क्षत्रिया चैव वैश्यस्य शंख ४.८ क्षत्तुर्जातस्ततोग्रायां मनु १०.१९ क्षत्रियाच्छूदकन्यायां मनु १०.९ क्षत्राविट् शूद जातीनां वृ हा ६.२७८ क्षत्रियाच्छूटकन्यायां पराशर ११.२२ क्षत्रविद् शूद्रदायादा __ औ ६.३५ क्षत्रियादीनां ब्राह्मणवधे बौधा १.१०.२० क्षत्रविट्शूद्रयोनिस्तु मनु ९.२२९ क्षत्रियाद् ब्राह्मण्या बौधा १.९.९ क्षत्रवृत्ति सदाचारो वृ परा ७.२४ क्षत्रियाद्विप्रकन्यायां मनु १०.११ क्षत्रस्याति प्रवृद्धस्य क्षत्रियाद् वैश्यायां बौधा १.९.५ क्षत्रादीनां प्रवक्ष्यामि लहा २.१ क्षत्रियान्नं यदुच्छिष्टं अत्रिस ७१ क्षत्रादीनां विप्रसाम्यं कुतो कपिल ३५० क्षत्रियामागधं वैश्या वृ हा १.९४ क्षत्रिणी चैव वैश्यां च वृ परा ८.२३८ क्षत्रियायामगुप्तायां मनु ८.३८४ क्षत्रिण्यादिभिरुच्छिष्ठैः वृ परा ८.२३५ क्षत्रियायां तु यो जातो वृ परा ७.६० क्षत्रियः पूजयेद् रामं वृहा ५.१८७ क्षत्रियामथ वैश्यां वा संवर्त १५२ क्षत्रियवधे गोसहस्रम् बौधा १.१०.२२ क्षत्रिया षट् समास्तिष्ठेद नारद १३.१०३ क्षत्रियवधे गोसहस्रं बौधा १.१०.२३ क्षत्रियेण तु संस्पृष्टो वृ परा ८.२५६ क्षत्रियवधे गोसहस्रम् बौधा १.१२.३ क्षत्रियेण यदा स्पृष्टं अंगिरस ९ क्षत्रियः वा अथ शूद्रः वा वृ.गौ. २.१३ क्षत्रियेणापि वैश्येन पराशर ६.१८ क्षत्रियश्चापि वैश्यो पराशर १०.८ क्षत्रियेणापि वैश्येन वृ परा ४.२०९ क्षत्रियश्चेत्समा वैश्या कपिल ३३६ क्षत्रियो द्वादशाहेन शंख १५.३ क्षत्रियः सप्तविज्ञेयो वृ.गौ.८.१०६ क्षत्रियो द्वादशाहेन पराशर ३.२ क्षत्रिय स्तप्तकृच्छं __ औ ९.४५ क्षत्रियो द्वादशोनं व्यास ३.५५ क्षत्रियस्तु रणे दत्त्वा शंख १७.५३ क्षत्रियोऽपि कृषि कृत्वा । पराशर २.१५ क्षत्रियस्य च पादोनं क्षत्रियोऽपि सुवर्णस्य । पराशर ६.४७ क्षत्रियस्य तु तन्नित्यमेव व १.३.२७ क्षत्रियो बाहुवीर्येण मनु ११.३४ क्षत्रियस्य तु सप्ताह शंख्य १७.४४ त्रियो बाहुवीर्येण बृह १०.१६ क्षत्रियस्य द्वयञ्चैव ब्र.या.८.१७६ त्रियो बाहुवीर्येण अत्रिस २.१३ क्षत्रियस्य परोधर्मः मनु ७.१४४ भत्रियो बाहुवीर्येण व १.२६.१७ क्षत्रियस्य वधं कृत्वा संवर्त १२६ क्षत्रियो ब्राह्मवीसक्तः बृ.य. ४.४७ क्षत्रियस्य विशेषण शंख १.४ क्षत्रियो यदि वा गच्छेद् वृ परा ४.२०६ क्षत्रियस्य सुतश्चैव वृ परा ७.६१ क्षत्रियोहि प्रजा रक्षन् पराशर १.५८ क्षत्रियस्यापि यजनं अत्रिस १४ क्षत्रीमैथुनमासाद्य औ ९.६ क्षत्रियस्यार्धमासं तु आंउ ९.२ क्षत्रुग्रपुक्कसानां तु मनु १०.४९ क्षत्रियं चैव वैश्यं च मनु ८.४११ क्षत्रे बलंअध्ययन बौधा १.१०.३ क्षत्रियं च एव स पंच वृगौ. ३.६५ क्षन्तव्यं प्रभुणा नित्यं मनु ८.३१२ शख Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० क्षपा च पक्षिणी सद्भि क्षमा गुणो हि जन्तूनां क्षमा दमः क्षमा दानं क्षमा दमा क्षमा यज्ञः क्षमा क्षमावतामय लोकः क्षमावान् प्राप्नुयान्मोक्ष क्षमा सत्यं दमः शौचं क्षयञ्च दृश्यते तस्य क्षयं वृद्धिञ्च वणिजा क्षयाहे पातसंक्रान्ते क्षमाहे पर्व्वणि पूर्व्व क्षयेऽहनि समासाद्य क्षयेऽहनि समासाद्य क्षयेऽहनि समासाद्य क्षयैरकारः सम्पोक्तो क्षरन्ति सर्वा वैदिक्यो क्षराक्षविस्टष्टस्तु क्षात्रेण कर्मणा जीवेद्विशां क्षान्तान् दान्तान् क्षान्ती दान्ती जितक्रोधी क्षान्तोदान्तः शुचिः क्षारं च लवणं दिव्यं मधुरं क्षारेण शुद्धि कांसस्य क्षालनं दर्भकूर्चेन क्षालयित्वा करैभड क्षितिशायी भवेद् रात्रो क्षितिस्थाश्चैव या क्षिपेच्चतुर्विधान् भूतान् क्षिपेदञ्जलीन्नस्तत्री क्षिप्त्वाऽग्नावशुचि क्षिप्त्वा कूपे यथा क्षिप्त्वा चार्ध्य तथा क्षिप्त्वा तिलानयः पूर्य क्षीणस्य चैव क्रमशो क्षीणायुस्त्वं दरिद्रत्वं वृ परा ८.३८ आप १०.५ बृ.गौ. २०.२० बृ.गौ. २०.२१ बृ.गौ. २०.१९ बृ.गौ. २०.२२ विष्णु २ अत्रिस ३३७ या २.२६१ व्या १३४ ब्र. या. ६.१२ ब्र. या.३.२ ब्र.या. ३.५ ब्र.या. ३.८ वृ हा ३.१०१ मनु २.८४ विष्णु म २५ या ३.३५ वृ. गौ. १०.९६ बृ.गौ. २१.६ ब्र. या. ४.५७ कपिल ५७६ शंख १६.४ कात्या २९.१ व २.५.४३ वृहा ८.२०८ व १.३.४६ वृहा ४.१३९ ब्र.या. २.१०४ शंख १७.५५ वृ परा ७.३०० औ ५.३९ आश्व २३.३२ मनु ७.१६६ वृ परा ६.१७३ क्षीणां क्षीरसरीरागांदद्याद्द क्षीरकाष्ठेन कुर्वीत क्षीरञ्च लवणोन्मिश्र क्षीरतोयं प्रदातृणाम् क्षीरविक्रयिणश्चपि ते क्षीरं दधि घृतं तक्रं क्षीराज्यमधुदध्यनं क्षीराज्यसर्करोपेतं क्षीरान्नं शर्करोपेतं क्षीराब्धौ शेषपर्यके क्षीरेण कपिलायास्तु क्षीरेण तु त्र्यहं भुंक्ते धुते निष्ठीविते चैव क्षुत्तष्णाऽध्वश्रम श्रान्त क्षुतृभ्यां प्रथमे क्षुत् पिपासाश्रमार्त्तः च क्षुत्पिपासाश्रमार्त्तताय क्षुदुत्पत्तिर्भवेत्तीक्ष्ण क्षुद्रकर्मसुसर्वेषु तर्जनि क्षुद्रकाणां पशूनां तु क्षुद्राभिशस्तवार्धुष्य क्षुद्रमध्यमहाद्रव्य हरणे क्षुद्र वस्तु समायातं क्षुधा परीतस्तु किंचिदेव क्षुधार्त्तश्चात्तुमभ्यागाद् क्षुधा व्याधिकतायाना क्षुधितं तृषितं श्रान्तं क्षुरस्नानात्परं यस्तु क्षुरेणेति च तीक्ष्णेन क्षुरोमांसावदानार्थः कृति सन्दर्भ ब्र.या.११.१३ विश्वा १.५७ वृ परा ८.१२५ वृ. गौ. ६.११ वृ.गौ. १०.९२ प्रजा १२९ आश्व ८.३ व २.६.२२७ वृहा ५.४१८ वृहा ७.२३९ वृ. गौ. ९.२८ अत्रिस १२५ पराशर १२.१८ वृ परा ४.१९६ वृ परा १२.१८२ वृ.गा. ६.४६ वृ.गौ. ६.७२ कण्व ५६५ भार ७.१९ मनु ८.२९७ व्यास ३.४५ या २.२७८ शाण्डि ४.१३४ व १ १२.३ मनु १०.१०८ आप ३.९ पराशर २.४ आंपू २५६ आश्व९.१३ क्षेत्र कूपतडागानामा क्षेत्रजादीन् सुतानेतान् क्षेत्र जेष्वापि पुत्रेषु क्षेत्रज्ञः पंचधाभुंक्ते क्षेत्रदानं वृत्ति दानं सेतुदानं कात्या २९.३ मनु ८.२६२ मनु ९.१८० नारद १४.१४ विष्णु म ५५ लोहि ५३२ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी क्षेत्रदारापहारी च. ब्र.या. १२.४५ खड्गामिषं महाशल्कं या १.२६० क्षेत्रभूतास्मृता नारी मन ९.३३ खड्गामिषं महाशल्कं ब्र.या. ४.१२५ क्षेत्रवेश्मवनग्राम या २.२८५ खड्गास्थि यदि विद्येत प्रजा १४० क्षेत्रसीमविरोधे तु नारद १२.२ खड्गोपरि श्रीफलानां वृ परा ११.१८२ क्षेत्र त्रिपुरुष यत्र गृहं नारद १२.२४ खण्डादि तोलितं पश्चाद्वृ परा १०.२०८ क्षेत्र हिरण्यं मामस्वं मनु २.२ ४६ खंडितानां पुनस्तेषां लवणा कपिल ६३० क्षेत्रिकस्य यदज्ञानात् नारद १३.५५ खदिरश्चार्थलाभाय व परा ११.४६ क्षेत्रिकानुमतं बीजं यस्य नारद १३.५८ । खननाद्दहानाद्वर्षाद् व १.३.५३ क्षेत्रिणः पुत्रो जनयितुः व १.१७.६ । खननोत्पन्नसलिला आंपू ९४० क्षेत्रियस्यात्ये दण्डो मनु ८.२४३ । खनाद्य वायुपूर्वं स्याद् विश्वा ५.१५ क्षेत्रेष्वन्येषु तु पशु मनु ८.२ ४१ । खनित्वैव विनिक्षिप्य आंपू ८७५ क्षेत्रो विमुच्यते दोषात् वृ परा ५.१६३ ।। खर उष्ट्रयान हस्त्यश्वनौ या १.१५१ क्षेमाक्षेमञ्च मार्गेषु वृ.गौ. १०.१०८ खराश्वोष्ट्रमृगेमानां मनु ११.६९ क्षेमोत्सवो द्वितीयेऽथ कण्व ६९३ खरेण कुक्कुटेनैव स्पष्टः भार १८.३५ क्षेम्यां सस्यप्रदा मनु ७.२१२ खरोष्ट्रयानहस्त्यश्वनौ व २.३.१६३ क्षेश्रज्ञः क्षेत्रजातस्तु ब्र.या.७.२९ खर्वात्मकास्ता विज्ञेया आपू ३७ क्षैरं कठिनपक्वं प्रजा १३२ खलक्षेत्रेषु यद्धान्यं बौधा १.५.६३ क्षोणीतुल्या तदा सा वृ परा १०.४५ खलमव्यसुतोत्पत्ति लोहि ४०१ क्षौदा आज्य-तिलसंयुक्तान्वृ परा ७.३०८ । खलयज्ञे विवाहे च पराशर १२.२२ क्षौमकार्पासकैशोर्य व २.६.११७ खलात्क्षेत्रादगाराद् मनु ११.१७ क्षौमजं वाऽथ कार्पासं अत्रिस ३२६ खल्लीट परनिन्दावान् शाता ३.२१ क्षौमवच्छंखश्रृंगाणां मनु ५.१२१ ख-वाखवग्न्यंबु धात्री वृ परा १२.१७७ क्षौमवच्छंख श्रृंग बौधा १.५.४८ खं संनिवेशयेत् खेषु बृह ११.५३ क्षौमाणां गौरसर्षप बौधा १.५.४३ खं सन्निवेशयेत्खेषु मनु १२.१२० क्षी ही श्री श्री नृसिंहाय वृहा ३.३६० खातखातस्य केदारमाहुः नारद १२.३७ क्ष्यान्त्या शुद्ध्यंति मनु ५.१०७ ।। खातयित्वा तडागादि वृ परा ११.२३८ खातवाप्योस्तथा कूपे यम ६६ खाते च पतिता या गौः बृ.य.४.३ खड्गमांसैयदा पिण्डान् प्रजा १३९ खादितं चावलीदञ्च वृ.गौ. १०.६९ खंजो वा यदि वा काणो मनु ३.२४२ खादिरञ्च समीपुण्यं व २.६.६० खट्वतल्पादिशयनं शरीरो कपिल ५७४ खादिरो वाऽथ पालाशो कात्या ८.१२ खट्वांगी चीरवासा वा मनु ११.१०६ खान्यद्धि संस्पृश्य बौधा १.५.२८ खट्वाशयनदन्तप्रक्षालन व १ ७.११ खान्यादि संस्पृशेत व १ ३.३० खड्गे तु विवादन्त्य व १ १४.३५ खिन्नवृत्तिर्विकर्मस्थ शाण्डि ३.७ खड्गचर्मधरं कृष्णा विश्वा ६.१५ वृ.गौ. १०.५२ खड्गपात्र हि कुतपो आप ९४४ खुरमध्येषु गन्धर्वाः Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ ख्यातनाम्नः पुत्रवतः व्यास २.४ गजे वाजिनी वा व्याघ्र ख्याताश्शंक्कुतमा प्रोक्ताः । भार २.४३ गणद्रव्यं हरेद्यस्तु ख्यातो महालयः सद्धिः आंपू ७०० गणशः क्रियमाणेषु गणानामाधिपत्ये च रुद्रेण गणान्नं गणिकान्नञ्च गइत्यागच्छतेऽजस्त्र बृह ९.४६ गणान्नं गणिकान्नं गड्गमंत्रेण चावह्य विश्वा १.६८ गणास्त एव कथिता गंगा गयात्वमावस्या अत्रिस ३९४ गणिका-गणयोरन्नं गंगा च यमुना चैव शंख १०.११ गणिवृद्धदयस्वन्यो गंगातोयेषु यस्यास्थि लघु यम ९० गणेशामाताहे बाले गङ्गदिपुण्यतीर्थानि पताथान बृ.या.७.१३ गणेशमातुः पार्वत्याः गंगादि पुण्य तीर्थानि वृ परा २.१२६ गण्डमाल्या रसं कन्या गंगाद्वारञ्च केदारं व्यास ४.१४ गण्डूषं पादशौचञ्च गंगायमुनोस्तीरे शंख १४.२८ गंडूष पादशौचञ्च न गंगायमुनयोरन्तरे व १.१.११ गण्डूषाचमनंदद्यात्सुवा गंगायां मरणं चैव दृढा विष्णुम ११३ गण्डूषैः शोधयेदास्य गंगायमुयोरन्तमित्येके बौधा १.१.२८ गण्डोपलादयो भूत्वा गंगायां वापिकायां च व्या ३३५ गतपादिकं यांति गङ्गा स्नानं च केदारं ब्र.या. १२.५३ गंतभीरद्वितीयोऽपि गङ्गास्नानं वर्षमात्र मासं नारा ८.५ गतस्य प्रकृति चापि गच्छ गच्छेति तां वृ परा ५.२५ गतानां तत्र निर्लज्जं गच्छन्तु देवताः सर्वा विश्वा १.४८ गतिभिर्हदयं विप्रः गच्छं स्तीर्थानि कौन्तेय बृ.गौ. २०.१५ गता विनान्यायवर्तीद्वारा गच्छेत्यु (दु) च्चाटयेत्तूष्णीं कपिल ९५० गते तु पञ्चमेवर्षे गच्छेदादित्यलोकं वृ.गौ. ७.४८ गतेषु तेषु सर्वेषु केशवः गच्छेदेवं वनं प्राज्ञः संवर्त ९८ गत्वा कक्षान्तरं गच्छेद ग्रामाबहिः व २.६.६ गत्वा गत्वा निवर्तन्ते गच्छेमानन्तरंवापि व २.३.१६६ गत्वा गत्वा निवर्तन्ते गज उष्ट्रयान प्रासाद औ ३.१४ गत्वा दहितरं विप्रं गजगवयतुरंगानां पराशर ६.१२ गत्वा भार्या विना होमं गजचोरं महाघोरे पल्वले लोहि ६९३ गत्वा वनं वा विधिवत् गजच्छाया तथा चैका आंपू ६१२ गत्वोदकसमीपे तु शुचौ गजच्छायातीर्थदधिता गत्वोदकान्तं विधिवत् गजच्छायोपरागश्च आश्व २४.२४ स्याः साराष्ट्र गजश्व तुरगं हत्वा संवर्त १४ __ गदां पागदाशंख गजे नीलवृषाः पंचशुके या ३.२७१ स्मृति सन्दर्भ आंउ १०.१५ या २.१९० कात्या ५.१० ब्र.या.१०.२ वृ.गौ. ११.२२ अ २० कण्व ३८६ वृ परा ८.१९२ नारद १२.८ वृ परा ११.२८ वृ परा ११.२६ औ ३.१६ पराशर ७.२५ अंगिरस ४१ व २.६.१०४ आश्व १.१४ बृह ११.५० शंख १८.१५ वृ परा ३.८ कपिल १२४ लोहि ४५३ बौधा १.५.२४ लोहि ५२३ व्या ३८१ बृ.गौ.२२.४२ मनु ७.२२४ विष्णु म ११० वृहा ३.१७५ औ ९.१ आश्व १.७० औ ३.८४ वृ.गौ.८.२३ वृ.या.७.४ बौथा ५.५५ वृहा ७.११७ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३१३ गन्तव्यमिष्टासिद्ध्यर्थं शाण्डि ४.१८४ गन्धोदकतिलैर्युक्तं या १.२५३ गंत्री वसुमती नाशं या ३.१० गन्धोदकतिलैर्युक्तं व २.६.३६८ गंत्री वसुमती नाशं कात्या २२.६ गन्धोदकतिलैर्युक्तं ब्र.या.७.५ गन्ध अक्षत कुशांश्चैव आश्व २३.२५ गमनागमनायोगात् का १३ गंधतोयं तथैवेशदिग्दले भार ७.७२ गमि (ज) च्छाया च कथिता कपिल १५९ गंधद्वारांकरिषस्य __ भार ११.८६ गयाफल्गुनिकाशाक आंपू ४८९ गन्धपुष्प कुशादीनि आश्व २३.३३ गयाशिरे तु यात्किचिन्नाम्ना लिखित १२ गंधपुष्पाक्षतधूप दीपा भार ११.२७ गयां प्राप्यानुषंगेण औ ३.१३५ गन्धपुष्पादिभिर्देवं व २.६.२३३ गयां यो यास्यति वृहस्पति २१ गन्ध पुष्पादिभि सत्य व २.६.१५१ गयाश्राद्धसमः कोऽपि आपू ७०२ गंधपुष्पादि सकलं वृहा २.५५ गयाश्राद्धसमं प्रोक्तं व्या ३०४ गन्धपुष्पादिसम्पूर्णः ब्र.या.४.७१ गयाश्राद्ध च फल्गुन्याः आंपू ४७६ गंधपुष्पार्चितैः सार्धं भार ७.११८ गये गांगेऽपि यहत्त ब्र.या. १२.१३ गन्धपुष्पैश्च धूपैश्च वृहा ७.१६० गरीयसि गरीयांसं नारद १८.९३ गन्धमादनसंज्ञं च लोका कण्व ७५ गर्दभाजाविकानां तु मनु ८.२९८ गन्धमाभरणं माल्यं संवर्त ४८ गर्दभारोहणेनाथ राष्ट्रा लोहि ७०१ गन्धमाल्यैः अलंकृत्य __ वृहा ६.८९ गर्भकर्ता तु यो विप्रो वाधू २१७ गन्धरूपरसस्पर्श या ३.९१ गर्भ ते कर्म च आयाति वृ.गौ. ३.४ गन्धर्व अप्सरसः वृहा ५.५.१२ गर्भपातनजा रोगा यकृत शाता ३.१६ गन्धर्वा गुह्यका यक्षा मनु १२.४७ गर्भमध्ये विपत्ति ब्र.या. १३.१० गन्धर्वाप्सरसो यक्षाः वृ.गौ.१०.२९ गर्भमध्ये विपत्तिः ब्र.या. १३.११ गंधर्वाप्सरसो यक्षा भार १२.४० गर्भश्रावे मासतुल्यानि व २.६.४५३ गन्धलेपक्षयकरं शौचं ब्र.या.८.५१ गर्भस्थ सदृशो ज्ञेयं नारद २.३१ गन्धलेपक्षयकरं शौचं व २.३.९३ गर्भस्थोऽपि दौहित्रो प्रजा १७० गन्धलेह पापहं वाह्म वृ परा ६.२१५ गर्भस्य पातने पादं वृ परा ८.१५४ गन्धं पुष्पं फलं तोयं वृ.गौ. १८.३३ गर्भस्य स्फुटताज्ञाने । शंख २.१ गन्धाक्षतादिभि सम्यक् कण्व ५६० गर्भस्यैव विपत्तिः स्यात् व्या ३८३ गन्धादिभ समभ्यर्च्य आश्व २३.४० गर्भस्रावे गर्भमाससंमिता बौधा १.५.१३६ गन्धादोन्निः क्षिपेतूष्णी कात्या ४.३ गर्भादि संख्या वर्षाणा बौधा १.२.७ गन्धान ब्राह्मणसात् कात्या १७.११ गर्भाद् एकादशे राज्ञो। शंख २.६ गन्धारिकापटोलानि ब्र.या.४.५३ गर्भाधानमृतौ पुंस या १.११ गन्धाश्च बलयश्चैव या १.२.९९ गर्भाधानमृतौ १ पुंसवन ब्र.या. ८.४ गन्धैः पुष्प धूपदीपैः वृ हा ७.२८३ गर्भाधानं दिजः कुर्याद् आश्व ३.१ गन्धे पुष्पैश्च वृ हा ७.१२८ गर्भाधानं पुंसवनं व्यास १.१३ गन्धोदक अक्षतः युक्तान वृ परा ११.१६४ गर्भाधानं पुंसवनं कण्व ४२१ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ स्मृति सन्दर्भ गर्भाधानं पुसवनं ब्र.या. ८.३५९ गवां निष्पीडनं क्षीरं वृहा ६.१७७ गर्भाधानादिभि मंत्रैः व्यास ४.४२ गवां प्रचारे गोपालाः नारद १.४६ गर्भाष्टमेऽब्दे तृतीये वा मनु २.३६ गवां प्रशस्तं त्रितयं भार १४.५२ गर्भाष्टमेषु ब्राह्मणं व १ ११.४४ गवां बन्धनयोक्त्रेतु पराशर ८.१ गर्माष्टमेऽष्टेमेचाब्दे ब्र.या.८.७ गवां मूत्रपुरीषेण दना पराशर ६.४६ गर्भाष्टमेऽष्टमे चाब्दे या १.१४ शवां शतसहस्राणां वृहस्पति २८ गर्मिणी गर्भशल्या वृ परा ८.१५३ गवां शतं सैकवृष पराशर १२.४३ गर्मिणी तु द्विमासादिस्तथा मनु ८.४०७ गवां शताद् वत्सतरी नारद ७.११ गर्मिणी नानुगन्तव्या वृहा .८.२०४ गवां श्रृंगोदकस्नानफलां वृ परा ५.२९ गर्मिण्यतुरभृत्येषु व्यास ३.४३ गवां श्रृंदके स्नातो पराशर ५.२ गर्मिण्या वा विवत्साया औ ९.३७ गवां श्रृंदके स्नात्वा अत्रिस ६५ गर्भेधृतेऽथ तच्चिनै लोहि १७५ गवां संरक्षणार्थाय पराशर ९.१ गर्भे यदि विपत्ति स्यात् पराशर ३.२३ गवां सर्पि शरीरस्थं बृह ९.३० गर्वोदम्भोऽप्यहङ्कार वृ.गौ. ८.१०८ गवां सहस्रन्तेनेह दत्त वृ.गौ. ९.४६ गलेऽसत्कर्मणां रूपादमे शाण्डि ४.१ ४२ गव्यन्तु पायसं देयं ब्र.या. ४.५१ गवाघ्रातानि कांस्यानि आंगिरस ४३ गव्यन्तु पायसं देयं ब्र.या. ४५२ गवाघ्रातानि कांस्यानि आप ८.२ गव्यस्य पयसोऽलाभे आंउ १२.५ गवाघ्रातानि कांस्यानि पराशर ७.२४ गव्ये तु त्रिरात्रमुपवास् बौधा १.५.१६० गवा चान्नमुपाध्रातं मनु ४.३०९ गहनत्वाद्विवादानाम नारद १.३८ गवाज्यञ्च दषि क्षीरं वृहा ४.१०५ गाणिक्यां माणिक्यां वपनानि वृहा ४.१७८ गवाज्य संयुतैः दीपैः वृहा ५.५१३ गाथामिमां पठेयुस्ते आश्व १५.२२ गवाज्यं जुहुयाद् वह्वी वृहा ५.४७९ गाथामुदाहरन्त्यत्र वृ परा १०.३७८ गवाज्यं तिलतैलं वृहा ४.१०३ गानविद्यासमर्थस्सन् शाण्डि ४.१७३ गवाज्येन युतं दत्त्वा वृहा ५.३८६ गानैः वेदैः पुराणैश्च वृहा ७.२६० गवाज्येन युतं दद्यात् व २.६.११६ गान्धर्वस्तु स विज्ञेयो ब्र.या. ८.१७७ गवाञ्च कन्यकानाञ्च वृहा ३.२९० गान्धर्वादि विवाहेषु ब्र.या. ८.१७५ गवादयः शक्रदीक्षायाः वृहस्पति ७३ गांधर्वादिविवाहस्तैयदि माता कपिल ४०६ गवादिषु प्रनष्टेषु नारद १५.२१ गान्धर्वे होम जाप्यैश्च बृ.गौ. १९.१८ गवादीनां प्रवक्ष्यामि आप १.१० गामन्नमश्वं क्ति वा वृ.गौ. १२.२६ गवार्थे ब्राह्मणार्थे बौधा २.२.८० गामेकां स्वर्णमेकं वृहस्पति ४० गवां क्षीरं दषि घृतं प्रजा १२५ गां गत्वा शतावधेन व १.२३.४ गवां गर्मी (भ) विपत्ति ब्र. या.९.५२ गां चेद्धन्यात्तस्या व १.२१.१९ गवां च विंशति दद्याद् व परा ८.९९ गां धयन्ती परस्मै बौधा २.३:४४ गवां चैव सहसं तु नारा १.२७ गां नृपं चैव वैश्यं च व परा ८.१८४ गवां निपातने चैव गर्भोऽपि लघु यम २ गायका नर्तकाश्चैव वृ.गौ. १०.७५ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ श्लोकानुक्रमणी गायत्रितत्परं नान्यत् गायत्रिमयुतं तप्त्वा गायत्रियाभिमंत्रोचं गायत्री च तदा वेदा गायत्री च भवेच्छन्द गायत्री जननी शस्ता गायत्री जप एवस्यान्नि गायत्रीजप्यनिरता ब्राह्मणा गायत्रीञ्च जपेन्नित्यं गायत्रीञ्च यथाशक्ति गायत्रीञ्च सगायत्रां गायत्री तु परं क्त्वं गायत्री त्रिष्टुब्बगती गायत्रीध्याननिरतो यो गायत्री नाम पूर्वाह्न गायत्री प्रकृतिज्ञैया गायत्री ब्राह्मणो दद्याद् गायत्रीभक्तितस्तेषां । गायत्रीमप्यधीयीत गायत्रीमात्रसंतुष्टः श्रेयान् गायत्रीमात्रसारोऽपि गायत्री मेव यो ज्ञात्वा गायत्री मेषपर्णी च योगे गायत्री रहितो विप्रः गायत्री लक्षषष्ट्या गायत्रीवर्णरहिते गायत्री वा इदं सर्व गायत्री साऽभवत् पत्नी गायत्री सिद्धिदा यत्ना गायीच जपन् विप्रो गायत्रींचैव वेदांश्च गायत्री जपमानस्तु गायत्रीमम वा देवी गायत्री यः सदा विप्रो गायत्री यो च जानांति भार ९.२० गायींवर्ण संयुक्ता कण्व २२१ भर ९.१७ गायत्री वा त्रिरावर्त्य बृ.या.७.५० भार ६.४९ गायत्री वै जपेन्नित्यं औ ३.४७ वृ परा ४.१६ गायत्री शक्तितो जप्त्वा वृ परा २.१६८ बृ.या. २.४ गाय/शिरसा त्रिनाडि विश्वा ३.१० भार १२.४९ गायी शिरसा सार्द्ध या १.२३ कपिल ९९० गायत्रीशिरसा सार्थ बृ.या.८.३ बृह १.१७ गायत्रीसम्यगुच्चार्य विश्वा ५.२० पराशर १०.७ गायत्री सा च विज्ञेय वृ परा ६.९५ लहा ६.११ शंख १२.२३ कात्या २७.१९ गायत्र्यष्टशतं जप्यं वाधू १२९ वृ परा ४.४ गायत्र्यष्टशतं जप्त्वा वृहा ६.३४७ बौधा १.२.११ गायत्र्यष्टसहस्रन्तु आप ४.५ भार १३.३९ गायत्र्यष्टसहस्रं तु वृ परा ८.३०१ वाधू ११४ गायत्र्यष्टसहस्रन्तु औ ९.८७ बृ.या.४.१७ गायत्र्यष्टसहस्रन्तु औ ९.८८ ब्र.या. ८.३४ गायत्र्यष्टसहस्रेण पराशर ११.१६ भार १२.३४ गायत्र्यसोतिनत्वाध भार ६.१२६ औ ३.४६ गायत्र्य गृहीयाल्लाजाः ब्र.या.८.१९२ बृह ११.२१ ।। गायत्र्यागृह्या गोमूत्र पराशर ११.३१ ब्र.या. १.४४ गायत्र्या चाभिमन्त्रयाथ वाघू १२४ वृ परा ४.१५ गायत्र्या चाभि सम्मन्त्रय ब्र.या. २.१६५ ब्र.या.१०.१०७ गायत्र्या चैव गोमूत्र वृ परा ९.२८ पराशर ८.३१ गायत्र्या छन्दसा व १.४.३ ब्र.या. १२.४३ गायत्र्याज्जुहुयाद्धीमान् भार ७.९४ कण्व २७९ गायत्र्या दशलक्षण अ १२१ बृ.या.४.६ गायत्र्या दश लक्षण अ १३३ वृ परा ३.९ गायाधत लाभाय भार ९.१८ कण्व २३७ गायत्र्य परमं नास्ति शंख १२.२५ बृह १०.१२ गायत्र्याऽपश्चसणां आश्व १.७६ बृ. पा. ४.८० गायत्र्या प्रणनेनैव नारा ६.७ पराशर ०.२८ गायत्र्या प्रोक्षयेत् पात्रे आश्व २३.२३ वृ.गौ.१६.५ गायत्र्यमविशेषो वा । वृ परा ६.१५६ संवर्त २१९ गायत्र्या वत्सप्रस्थानं व्या ७७ वृ परा ४.१३ गगत्र्या व्याहतीभिश्च वृ.य. ३.५९ Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ गायत्र्याश्च पिबेत आश्व १.७७ गिरिपृष्ठं समारुह्म मनु ७.१४७ गायत्र्याश्चैव माहात्म्यं बृ.या. १.९ गीतज्ञो यदि गीतेन या ३.११६ गायत्र्या संस्कृतं आश्व १.१६९ गीतोत्सवो वाद्य कण्व ३५२ गायत्र्या संस्मरेद्योगी वृ परा ४.७५ गुग्गुलु महिषाक्षीञ्च वृहा ४.१०० गायत्र्यासप्रणव व्याहृति भार ११.२० गुड्कार्पासलवण वृहा ६.१८० गायत्र्या संप्रवक्ष्यामि भार ९.२३ गुड्धेन्वादिदानानां __ अ ३० गायत्र्या संप्रवक्ष्यामि व परा ४.१ गुडमिक्षुरसंचैव लवणं संवर्त ८८ गायत्र्यास्तु छन्दो वै कण्व २०८ गुडमिक्षुरसं खंडं वृ परा १०.२२५ गायत्र्यास्तु परं जप्यं वृह १०.११ गुड़ वा यदि वा खंडं वृ परा १०.२०५ गायत्र्यास्तु परं नास्ति संवर्त २१४ गुड़ाज्यलवणक्षीरदधि कपिल ४३३ गायत्र्यास्तु समस्थाया भार ६.५१ गुडाज्यलवणं क्षीरदधि कपिल ८९९ गायत्र्या स्थानमास्यं ___ व्या ७६ गुडा दानं पायसं च ब्र.या. १०.१५३ गायत्र्युष्णिगनुष्टुप भार ६.५४ गुडो रसस्ततोदश्चिद् आं उ ८.१७ गायत्र्युष्णिगनुष्टप्प भार १७.८ गुडौदनेन वा राजंस्तस्य बृ.गौ. १७.४२ गायत्र्योङ्करपूताभि वृ परा ८.३२९ गुच्छगुल्मं तु विविध मनु १.४८ गायनं जायते यस्मात् बृ.या. ४.३५ गुणवान् हि शेषाणां बोधा २.२.१३ गायन्ति गाथां ते सर्वे औ ३.१३३ गुणांश्च सूपशाकाद्यान् मनु ३.२२६ गायेत् सामानि भक्त्या वृहा ६.३५ गुणा इत्येव तेषां तद्विधानां कपिल ९९ गारुडानि च सामानि अत्रि ३.१३ गुणाकरः स मे विष्णुः विष्णु म ३६ गार्गेया गौतमीयाः च वृ.गौ. १.१५ गुणागुणवतीचन्द्रा ब्र.या. १०.७६ गार्हपत्यो दाक्षिणाग्नि बृ.या. २.७५ गुणाढ्या गुणदा शेषा आं पू ९३० गार्मेंहोमैर्जातकर्म मनु २.२७ गुणा दशस्नानकृतो हि विश्वा १.८६ गार्हस्थ्यं धर्मकार्याय कण्व ४५९ गुणा दशस्नानवरः ब्र.या. २.२४ गार्हस्थ्याङगाना च व १ १९.९ गुणानामपि सर्वेषां औ १.३२ गालवस्तु पुरा विप्रो आंपू ५५६ गुदादिद्व्यङ्गुलादूर्ध्व विश्वा ६.२० गावो दूरप्रचोरण हिरण्यं बृ.य.४.६० गुप्तिहोमं करिष्येति कण्व ५४६ गावो देयाः सदा रक्ष्या वृ परा ५.२३ गुप्तोति वैश्येविज्ञेयं ततो ब्र.या. ८.३३५ गावः पूर्णदुधानित्यं वृहा ७.२६९ गुरवे तु वरं दत्वां या १.५१ गावो भूमि कलत्र शंख लि २४ गुरवे दक्षिणां दत्वा व २ .३.१९० गावो मे अग्रतः स्थातु ब्र.या. ११.२१ गुरवे दक्षिणां दत्वा व २.४.१ गावो मे मातरः सर्वाः वृ.गौ. १३.२५ गुरुकुब्रह्मचारिणां वर्णनम् विष्णु २८ गावो विप्रास्तथाश्वत्थो बृ.गौ. १९.३१ गुरुधाती च शय्यायां शाता ६.१० गावो वृषा वाहाय हस्तिनो वृ परा ५.५८ गुरुजायाभिगमनाम् शाता ५.८ गाश्चैवैकशतं दद्यातं पराशर १२.६६ गुरुञ्च ऋत्विजश्चैव वृहा ६.४६ गाश्चैवानुव्रजेन्नित्यं आंउ ११.४ गुरुञ्चैवाप्युयासीत ल व्यास २.६ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी गुरुणा चाम्यनुज्ञातः गुरुणाऽनुमतः स्नात्वा गुरुणामत्याधिक्षेपो गुरुतल्पगमुद्दिष्टं गुरतल्पगः सवृषणः गुरुतल्पस्तप्ते गुरुतल्पव्रतं कुर्याद्रेतः गुरुतल्पव्रतं केचित्केचिद् गुरुतल्प सुरापानं गुरुतल्पे भगः कार्यः गरुतल्पे भगः कार्य गुरुतल्पे शयानस्तु गुरुतल्प्यभिभाष्यैनः गुरु त्वंकृत्य हुंकृत्य गुरुदारागमं चैव गुरु दृष्ट्वा समुत्तिष्ठेद् गुरुदेवेषु निरतः गुरुपत्नीं च भगिनी भ्रातृ गुरुपत्नी च युवती गुरुपत्नी तु युवतिर्नाभि गुरुपत्नी द्विजो गत्वा गुरुपत्नीं न गच्छेत गुरुप्रयुक्तश्चेन् म्रियते गुरुप्रयुक्त शेनिप्रयेत् गुरुप्रियो विनीतश्च गुरुभक्तो मृत्यपोषी गुरुभार्यां समारुह्य गुरुमिक्ष्वाकुवंशस्य गरुमित्रहिरण्यञ्च गुरुरग्निद्विजातीनां गुरुरग्निद्विजातीनां गुरुराजा यमो वाऽपि शंख ३.८ मनु ३.४ या ३.२२८ वृहा ६.३१९ व १.२०.१४ बौधा २.१.१४ मनु ११.१७१ लघु यम ३९ व १.१.१९ नारद १८.१०२ मनु ९.२३७ संवर्त १२३ मनु ११.१०४ या ३.२९१ बृ.या. ४.५६ औ १.३० वृ.गौ. २.३० कपिल ९६८ औ ३.२९ मनु २.२१२ वृपरा ८.२५१ का २ व १ २३.७ बौधः २.१.२७ आपू ५९२ व्यास ४.३ औ ८.२३ व २.१.१ वृहस्पति ५४ व्या २०८ औ १.४८ आउ ६.८ गुरुरात्मवता शास्ता राजा नारद १८.१०८ गुरुरात्मवतां शास्तां आंउ ६.७ गुरुरात्मवतां शास्ता व १.२०.३ गुरुवह्नयतिथीनां तु गुरुवत् प्रतिपूज्याः गुरुवत् प्रतिपूज्या गुरु वा बालवृद्धौ वा गुरु शुक्र कुजे बुद्धे गुरुश्रुश्रूषणे नित्यं गुरुश्रुश्रूणं चैव यथा गुरुश्रोत्रियसद्विप्रबन्धु गुरुश्वशारजामातृ गुरुषु त्वभ्यतीतेषु गुरुसंकरिणश्चैव गुरुहस्तेन लब्धेन गुरुणां तु गुरु दण्डं गुरुणां प्रतिकूलाश्च भार ७.९९ वृहा ४.१८९ शंख १४.३ गुरुन् भृत्यांश्चोज्जिहीर्षन्नः मनु ४.२५१ गुरुपदेशतो भक्त्या गुरुपदेशमार्गेण अन्यथा गरुपदेशविधिना स्नानं गुरोः कुले न भिक्षेत गुरोः कले न भिक्षेत गुरोः गुरौ संनिहिते गुरो परम्परां जप्त्वा गुरोः पादोपसंगृह्य गुरो पूर्वं समुत्तिष्टेच्छेयीत गुरोः प्रेतस्य शिष्यस्तु गुरोरप्रतीतिजनके गुरोराज्ञांसदा तिष्टेद् गुरो गायत्र्यदानाच्च गुरोर्गुरौ सान्नहिते गुरुर्गृहे देवगृहे पुष्प गुरोर्दुहितरं गत्वा गुरोर्यत्र परीवादो गुरोर्यत्र परीवादो गुरोर्वा गुरुपुत्रस्य गुरोर्वाऽप्यन्यतो ग्राह्या ३१७ आउ ८.६ मनु २.२१० औ ३.२७ मनु ८.३५० ब्र. या. ८.१०६ ब्र. या. ८.९१ लहा १.२५ कपिल १८६ प्रजा ७३ मनु ४.२५२ बौधा २.३.१२ वृ परा १२.३०१ विश्वा १.१०४ विश्वा १.२८ औ १.५६ . मनु २.१८४ व १.१३.२२ वृहा २.१२५ ब्र. या. ८.१०८ शंख ३.१० मनु ५.६५ वृ परा १०.३१९ ब्र. या. ८.४६ ब्र. या. ८.३३ मनु २.२०५ शाण्डि २.८३ संवर्त १५६ मनु २.२०० औ ३.६ वृ परा १२.१५१ शाण्डि १.१०९ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ स्मृति सन्दर्भ गुरौ वासोऽग्रिशुश्रूषा पु १२ गृहदेवताभ्यो बलि व १.११.३ गुरोश्चालीकनिर्बन्धः व १.२१.३१ गृहद्वाराशुचिस्थान गुरोस्तु चक्षुर्विष औ ३.४ गृहद्वारेऽतिथौ प्राप्ते वृ परा ८.१९७ गुर्वधीनो जटिलः व १.७.८ गृहधान्याभयोपान या १.२११ गुर्वर्थ दारमुज्जिहीषन्न व १.१ ४.९ गृहपदो नगरं आप्नोति व १ २९.१४ गुर्वर्थे बहवः शुद्ध्यै औ ८.२५ गृहपूजां ततः कुर्याच ब्र.या. २.१५१ गुर्वादिपोष्यवर्गार्थं वृ परा ६.२३७ गृहप्रतिग्रहस्तेन दुस्तरो __ अ४१ गुर्वी योनौ पतत वीजम् वृ.गौ. ४.१३ गृहप्रवेशहोमाख्यं कण्व ५४१ गुर्वीषद्भाविताश्चैते वृ.गौ. ९.५३ गृहमध्येश्रितं पूज्य ब्र.या. २.१५२ गुर्वी सा भूस्त्रिवर्म्य व्यास २.१५ गृहवासः सुखार्थाय दक्ष ४.७ गुलौदनं पायसञ्च या १.३०४ गृहशुद्धिप्रवक्ष्यामि अत्रिस ७७ गुल्मगुच्छक्षुपलता या २.२३२ गृहस्थ एव यजते व १.८.१४ गुल्मांश्च स्थापयेदाप्तान् मनु ७.१९० गृहस्थ कामतः कुर्याद् पराशर १२.५७ ल्मान् वेणूंश्च विविधा मनु ८.२ ४७ गृहस्थधर्मो यो विप्रो पराशर ११.४७ गुह्यका राक्षसाः सिद्धा ल व्यास २.३२ गृहस्थ पुत्रपौत्रादीन् लहा ५.२ गुह्यानामपरगुह्यंवक्तु वृ.गौ. १०.५ गृहस्थः प्रत्यहं यस्मात् दक्ष २.४२ गुह्यारण्यस्थयोर्दण्डो मार १५.१२७ गृहस्थ यव यजते शंख ५.६ गुह्ये कट्यां तथैकैकं वृ परा ४.२८ गृहस्थ शौचमाख्यातं दक्ष ५.६ गूहमानस्तु दौश्शील्याद् नारद २.२२१ गृहस्थस्तु चतुर्भेदो वृ परा १२.१५३ गृजनारुणवृक्षासृग व्यास ३.५९ गृहस्थस्तु यदा पश्येद् मनु ६.२ गृधं परिवार वा राजा व १.१६.२० गृहस्थस्तु यदा पश्येद् शंख ६.१ गृध्र परिवार स्यान्नं व १.१६.२१ गृहस्थस्तु यदा युक्तो पराशर १२.३९ मृध्रमुष्टं नृमांसं वृहा ६.२५३ गृहस्थस्यनितं वस्त्र भार १५.११७ गृध्रश्येनशिखिग्राह पराशर ६.५ गृहस्थस्य वनस्थस्य भार १६.८ गृध्रो द्वादश जन्मानि अत्रि ५.१६ गृहस्थस्यवस्थस्य भार १५.१२६ गृध्रो द्वादश जन्मानि पराशर १२.३४ गृहस्थाश्रमिण अर्थोपार्जन विष्णु ५८ गृध्रो द्वादश जन्मानि व्यास ४.६६ गृहस्थाश्रमिणां कर्तव्य विष्णु ५९ गृभिष्व दया प्रागेव वृहा ३.७६ गृहस्थैर्यतयः पूज्या वृ.गौ.१२.९ गृष्टिदानं प्रवक्ष्यामि वृ परा १०.३३ गृहस्थोदेवयज्ञाद्यै दक्ष १.१३ गृष्ट्यादीनथ वक्ष्यामि वृ परा १०.३०२ गृहस्तो ब्रह्मचारी वा आश्व १७.५ गृहक्षेत्र विरोधे व १६.९ गृहस्थो वाऽपि सर्वेभ्यो शाण्डि १.१२२ गृहजातस्तथा क्रीतो नारद ६.२४ गृहस्थो वा वनस्थो वृहा ८.२१६ गृह दण्ड चक्रसंयोगात् । या ३.१४६ गृहस्थो विनीतक्रोध व १.८.१ गृहदानं महादानं न __ अ ३७ गृहस्थो वैश्यदेवस्य विश्वा८.४ गृहदाहाग्निनाग्निस्तु कात्या १८.१४ गृहस्यस्य व्रत वक्ष्ये ब्र.या.९.१ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पराशर ६४३ श्लोकानुक्रमणी गृहस्याम्यन्तरे गच्छेत् गृहस्योत्तरतोभागे गृहगृहं गत्वाऽर्चयेद्देवं गृहं गत्वा विधानेन व्या ७९ वृहा ७.७४ व २.६.४०० गृहं गत्वा हरे पूजा गृहं तडागमरामं क्षेत्र गृहं नित्यदलङ्कुर्याद् व २. ६.४०५ मनु ८. २६४ व २.५.८ गृहं वा मठिकं वाऽपि वृ परा १०.२३३ गृहं विलेपयेत्सर्वं व_२.६.५३६ गृहा गावो नृपा विप्रा गृहाग्नि शिशु देवानां गृहाण चैनां ममपापहृत्यै गृहाणान्तु पतित्वाद्धि गृहाद्दशगुणं नद्यां गृहानात्य होमांते गृहान्न इति मन्त्र च गृहान्निष्क्रम्य तत्सर्व गृहान् व्रजित्वा प्रस्तारे गृहाचा स्थापने गृलंकरणं चापि गृहाश्रमात् परोधर्मो गृहाश्रमेषु धर्मेषु वृ परा ४.१५१ वृ परा ७.२४८ वृ परा १०.८१ बृ. गौ. १५. २६ अत्रिस ३९१ व्या ३९ आंपू ८५८ अत्रिस ७.८ गृहिणः पुत्रिणो मौलाः गृहिणं त्वन्नभिक्षायै समागत गृहिणो वर्णिनो भोज्या गृही च गृहमध्यस्थो गृहीतचामरादेव्यो गृहीत पद्म युगल गृहीतमूल्यं यं पण्यं गृहीतवेतनः कर्म त्यजन् गृहीतवेतना वेश्या गृहीतवेदाध्यन गृहीतः शंकया चौर्ये गृहीत शिल्प समये गृहीत शिश्नश्चोत्थाय व १ . ४.१५ वृहा ५. १५८ आं ६६९ व्यास ४.२ आंगिरस १ मनु ८.६२ कपिल ९४८ कण्व ६०७ वृ परा १२.१९६ व २.६.१०१ व_२.६.८३ या २.२५७ या २.१९६ या २.२९५ लहा ४.१ या २.२७२ नारद ६.१९ या१ . १७ गृहीतस्य भवेद गृहीता तु क्रमाद्दाप्यो गृहीता स्त्री बलादेव गृहीतोऽयं हतान्कृत्वा गृहीतो यो बलान् गृहीत्वा गोद्वयं कन्या गृहीत्वाग्नि समारोप्य गृहीत्वा तस्यभागं गृहीत्वा द्विमुखीधेनु गृहीत्वा मुसलं राजां गृहीत्वा मुसलं राजा गृहीत्वोपगतं दद्यात् गृहीत्वोपासनं क्ता गृहीयादाहुतीः पंच गृही स्याद् गृहधर्मेण गृहे गुरावरण्ये वा गृहे गूढोत्पन्नोऽन्ते गृहे च गूढोत्पन्नः गृहे तु मुषिते राजा गृहे पचन्तु युष्माकं गृहेऽपि शिशुदेवानां गृहे प्रच्छन्नउत्पन्नो गृहे प्रच्छन्नउत्पन्नो गृहे प्रच्छन्नउत्पन्नो गृहे भागवतं प्राप्तं गृहे भागवते प्राप्ते गृहेषु भित्तिसंस्थं च गृहे मृतासु दत्तासु गृहेषु सेवनीयेषु गृहेष्वभ्यागतं गृहे सूतके ग्रन्थभेदी गृहे ह्येकगुणं प्रोक्तं गृहोपकरणं दत्वा गृहोकरणान् सर्वान् गृहोपरागे विषुवायनादि ३१९ वृ.गौ. २.३८ या २.४२ देवता ४७ लोहि ६९९ देवता ५३ ब्र. या. ८.१७२ पराशर ११.४५ अ १११ अ ८३ मनु ११.१०१ औ ८.१६ नारद २.९८ व २.६.३२३ आश्व १.१५७ वृ परा ६.७२ मनु ५.४३ बौधा २.२.२६ व १.१७.२६ नारद १८.७८ नारा ७.१० व्या १८१ ब्र.या. ७.३२ ब्र. या. ७.३३ या २.१३२ शाण्डि ४.१०५ शाण्डि ४.५५ शाण्डि ४.११ औ ६.३० व्यास ४.६ व १.८.१२ ब्र. या. ७.३९ बृ.या. ७.१४३ वृ परा १०.१८८ अ ३८ बृ.गौ. १४.२८ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० स्मृति सन्दर्भ गृह्णात्यदत्तं योलोभाद् नारद ५.११ गोत्रहा पुरुषः कुष्ठी शाता २.३६ गृहीत योऽश्व विधि वृ परा १०.३३७ गोत्र वयं विवाहा आंपू ३५४ गृहीयात्तु तदन्तर्वे आंपू २३७ गोत्राणां चैव कर्मणां व्र.या. ४.६९ गृहीयात् प्रागपोशानं व परा ६.१३५ गोत्राणि शास्त्रसिद्धानि आंपू ३५० गृहीयात् सर्वदा राजा व परा १२.६५ गोत्रान्तव (तर) प्रतिष्ठस्य कपिल ७९ गृहीयादर्पयद् दद्यात् वृ परा १२.१९२ गौत्रे चैवाथ संबन्धे आश्व १५.१८ गृहीयादित्येतदपरम् बौधा १.४.१४ गोदा (?) दक्षिमादाय ब्र.या. ८.३५० गृह्यवद्धिरिमौ मंत्र आश्व २.५२ गोदानं रत्नदानञ्च पुष्प कपिल ४३१ गृह्याग्निर्यस्य चेन्न आश्व २३.४८ गोदान महत्व विष्णु ८८ गृह्यग्नौ पचनं पिण्डं आश्व २३.४६ गोदान विधि संयुत्कं व्र.या.११.२५ गृह्योक्तविधिनेवात्र वृहा ५.१२६ गोदानं षोडशेवर्षे आश्व १४.१ गेयकाले सामगानां बृ.या. ४.२१ गोदाने वत्सयुक्ता गौः शाता १.१३ गोकर्णाकृतिरित्याहुः विश्वा २.११ गोदावरी भीमरथी आंपू ९१८ गोकर्णाकृतिहस्तेन माष वाधू २२ गोदावर्याः शवर्या वा वृहा ६.२८८ गोकुलस्य तृषार्तस्य __ वृ.गौ. ११.५ गोदेहने चर्मपुटे च तोयं । अत्रिस २३० गोकुलेषु वसेच्चैव पराशर १२.६१ गोदोहमन्नपाको बृ.या. ८.१३ गोकृते स्त्रीकृते च एव वृ.गौ. ५.११५ गोदायं दक्षिणां दद्यात् पराशर १२.८ गोक्रीडां न च ब्र.या, ९.५१ गोधूमंचूर्ण सदृशः भार ७.३२ गोक्षत्रियं तथा वेश्य बृ.य.२.४ गोधूमाः कण्टकिफलं लोहि ३१४ गोक्षीर सर्पिर्मधु खण्ड वृ परा १०.७३ । गोधूमाश्च मसूराश्च वृ परा ५.१३७ गोगामी च त्रिरात्रेण पराशर १०.१६ गोधूमैश्च तिलैः मुट्रैः औ ३.१३८ गोधाती पंचगव्याशी वृ परा ८.१२५ गोनृपब्रह्महतानाम या ३.२६ गोघृतं जुहुयाल्लक्ष भार ९.३७ गोपं क्षीरभृतो यस्तु मनु ८.२३१ गोघृतं मधुसंम्मिश्रं भार ९.३८ गोपतिर्मत्युमाप्नोति। पराशर ९.९ गोध्नस्य देहि मे वृ परा ८.१३० गोपयित्वैव यत्लेन आपू १०.१८ गोध्नस्यातः प्रवक्ष्यामि संवर्त १२९ गोप शोण्डिक शैलुष या २.४९ गोनातेऽन्ने तथा कीट या १.१८९ गोपालस्तत्रचै वान्यो ब्र.या. १२.२० गोचरे यस्य मुषितं नारद १८.७६ गोपालस्तुवद प्रौवैसे ब्र.या. १२.१९ गोचर्म मात्र मन्विन्दुः । बौधा १.५.६८ गोपीचन्द खण्डांश्च व्या २५ गोजाश्वस्यापहरणे शंख १७.१५ गोपुच्छरोमभि कृत्वा भार १८.८२ गोत्रनामानुबन्धना आंपू १३० गोपुच्छरोमभिर्दर्भः भार १८.९६ गोत्रनामानुवादान्तं कात्या २२.२ गोपुच्छेषुशिरादासी ११.४७ गोत्रपान्नं भवत्येव विश्वा ८.७४ गोप्याधिभोगेनो वृद्धि ___ या २६० गोत्रप्रवेशसिद्ध्यर्थं प्रतिगृह्य कपिल ३८८ गोप्याधिभोग्ये नो वृहा ४.२३४ गोत्ररिक्थे जनायितुर्न मनु ९.१४२ गोप्रदानेन यत्पुण्यं बृ.गौ. ७.८४ । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३२१ गोप्रयुक्ते सर्वतीर्थोप व १.२९.११ गोमयेनीदकै पूर्व औ ५.१ गोबधस्यानुरूपेण पराशर ८.४३ गोमयेनोपलिप्ता भू प्रजा १०९ गोवधे च कृते विप्रैरमत्या नारा १.१९ गोमयेनोपलिप्याऽथ व २.६.२८६ गोबधो व्रात्यया स्तेयं या ३.२३४ गोमांस मानुषञ्चैव संवर्त १९५ गोब्राह्मणगृहं दग्ध्वा लघुयम २७ गोमातृहापितृघ्नो वा भार ९.१६ गोब्राह्मणनृपति मित्र विष्णु ४३ गोमिथुनेनचाऽऽर्ष व १.१.३२ गोब्राह्मणपरित्राण वृहा ६.२ ४४ गौमूत्रगोमक्षीर . भार ७.६५ गो ब्राह्मण हतादीनां वृ परा ८.८८ गोमूत्रमग्निवर्ण वा पिवेद् . मनु ११.९२ गोब्राह्महतं दधं बृ.य. १.६ गोमूत्रयावकाहारः अत्रिस १७३ गोब्राह्मणहतानाञ्च अत्रिस २६२ गोमूत्रयावकाहारः अत्रिस २१६ गोब्राह्मणहनं दग्धा यम ५ गोमूत्रयावकाहारः औ ९.५८ गोब्राह्मणनलान्नि या १.१५५ गोमूत्रयावकाहारैः औ ९.२८ गोभिरश्वैश्च यानैश्च बौधा १.५.९९ गोमूत्रयावकाहारो औ ९.३६ गोभिर्विप्रहते चैव संवर्त १७२ गोमूत्रयावकाहारो औ ९.३८ गोभिर्हतं ततो बद्ध दा ९१ गोमूत्रं अग्निवर्ण औ ८.१३ गोभिर्हतं ततोद् बद्ध पराशर ४.४ गोमूत्रं कृष्णवर्णायाः पराशर ११.२८ गोभिर्हतं तथोद् बद्ध लिखित ६७ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं मनु ११.२१३ गोभिर्वेदा समुद्रीर्णा वृ परा ५.३२ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं पराशर १०.२९ गोभिनो राजपुत्रस्तु वृ परा २.५२ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं पराशर ११.२७ गोभिश्चध्रियते लोको अ ११४ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं बौधा ५.१ ४२ गोभिस्तु भक्षतिं धान्यं नारद १२.३४ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं बृ. य. १.१३ गोभूतिल हिरण्यादि या १.२०१ गोमूत्रं गोमयंक्षीरं भार ११.८२ गोभूहिरण्यमिष्ठान्न शाता २.३९ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं व १ २७.१३ गोभूहिरण्यवस्त्राद्यै व २.७.१०५ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं या ३.३१४ गोभूहिरण्यवासोभि वृहा ४.२०५ गोमूत्रं गोमयं क्षीरं शंख १८.८ गो-भू-हिरण्य संयुक्तं वृ परा १०.१ ४८ गोमूत्रं गोमयं चैव व १.२७.१४ गोभूहिरण्ययस्त्रीस्तेय नारद १.३९ गोभूत्रं ताम्रवर्णायाः देवल ६३ गोभूहिरण्यहरणे लिखित ७० गोमूत्रं यावकाहारं ब्र.या. १२.५१ गोभूहिरण्यरहणे लघुशंख ३८ गोमूत्रेण तु संमिश्र आंगिरस ३१ गोभूहिरण्यहरणे स्त्रीणां दा ९० गोमूत्रेण तु संमिश्र आप १.२९ गोमयगर्ने कुशप्रस्तरे व १.२१.१० गोमूत्रेणा संमिश्र अत्रिस १६३ गोमायांब्बु तथा विद्वान् भार ७.६८ गोमूत्रेण स्नापयित्वा व २.६.४६४ गोमयेन ततो लिप्य ब्र.या. ८.२ ४३ गोमूत्रे वा सप्तरात्रं बौधा १.६.४० गोमयेन शुचौ देशे भार १५.८० गोरक्षकान् वाणिजकान् मनु ८.१०२ गोमयेनस्थापयेदिन्द्रम ब्र.या.१०.१०१ गोरक्षाकान् वाणिजकान् बौधा १.५.९५ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O . . . .. ३२२ . स्मृति सन्दर्भ गोरक्षाकृषिवाणिज्य लहा २.६ गो सहसं शतं वापि वृ परा ११.२२६ गो-रम्भा-शृंगराज वृ परा ७.१२६ गोसहस्राधिकं चैव अ ११९ गोरसे क्षुविकाराणां तथा नारद १८.२३ गैसूक्तेनाश्वशूक्तेन वृ.गौ. ८.३६ गौरोचनप्रभावीतं नीलो भार ६.६४ गोस्वामिने च गां दत्वा वृहा ६.३२९ गोर्वत्सस्य च लोमानि वृ परा १०.४७ गोहिरण्यदि दानानां वृ परा १०.१४ गो रुत्वं वाप्यमावास्यां दीपं ब्र.या. ९.५३ गौडी पैष्टी च माध्वी गोवधे चैव यत्पांपं बृ.या ४.२ गौड़ी पैष्ठी तथा साध्वी संवर्त ११५ गोवधोऽयाज्यसंयाज्य मनु ११.६० गौणमातिर मातृत्वं आंपू १२१ गोवालैः फलमयानां व १ ३.५० गौतमञ्च भरद्वाजं ब्र.या. २.९७ गोवालैः शणसंमित्रैः कात्या ७.७ गौतमभरद्वाज विश्वामित्र ब्र.या.२.१४३ गो विंशति वृष चैकं वृ. परा. ८.२०८ गौतमोऽय भरद्वाजो ब्र.या.१०.१११ गोविन्दमग्रतोन्यस्य विश्वा २.१३ गौधेरकुंजरोष्ट्र च शंख १७.२१ गोविन्दः शशि वर्णः वृ. हा. २.८२ गौः प्रसूता दशाहात् तु न नारद १२.२७ गो विपत्ति बधाशंकी वृ. परा ८.१५८ गौरगवयसरभाश्च व १.१ ४.३३ गो विप्र नृप हन्तृणा दा ८८ गोरवत्सा न दोग्धव्या वृ परा ५.१६ गो-विप्रार्थविपन्नाना वृ परा ८.२० गौर वर्णो भवेद विष्णु वृहा २.८३ गोवृषाणां विपत्तौ च पराशर ९.४७ गौरसर्षपकल्पेन वृ परा १०.२५३ गोशकृत्मत्कुशांश्चैव वृ परा २.१२० गौरस्तु ते भयः षट् ते या १.३६३ गोशकृन्मृण्मयंभिन्नं ब्र.या. २.१५७ गौरीदनं वृषोत्सर्गः । आंपू ४८२ गोशतस्य प्रदानेन वृ परा ८.१०१ गौरी पद्या शचीमेघा कात्या १.११ गोशतं विप्रमुख्येभ्यो वृहा ६.३६६ गौरीमिमायेति ऋचा वृहा ८.६१ गो शते गो सहस्रे च अ ११५ गौरेकस्य प्रदातव्या बृ.गौ. १४.३८ गोशत् कृत् पिंडघाते वृ परा ८.१ ४१ गौर्वहि भानवाच्छाया वृ परा ६.३ ४० गोश्रृंङ्गमात्रमुत्सृज्य वाधू १२५ गौर्विशिष्टतमा विप्रः कात्या २७.१४ गो श्रृंगमात्र मुद्धृत्य वृ परा २.२०४ ग्रन्थार्थ यो विजानाति दक्ष ६.४ गोश्रृंङ्गमात्रमुद्धृत्य वाधू ५६ ग्रन्थि पृथक्पृथक भार ७.४३ गोऽश्वोष्ट्रयानप्रासादा मनु २.२०४ ग्रन्थिर्यस्य पवित्रस्य व्या २४२ गोश्चरयान् ये हिरण्यं च वृ.गौ. ५.४७ ग्रहणं चन्द्र सूर्याम्यां ब्र.या. ४.३ गोषु ब्राह्मणसंस्थासु मनु ८.३२५ ग्रहणं त्रिषु मध्यस्य लोहि २६३ गोष्ठे वसन् ब्रह्मचारी या ३.२८९ ग्रहणं नैव कुर्वीत कुर्याद् लोहि २४८ गोष्ठे वा पल्वले वापि ब्र.या. ८.३५४ ग्रहणादि शुभाः काला अ ७७ गोसर्पिदधिपिय्यासमे भार ९.४६ ग्रहणान्तं वा जीवितस्या बौधा १.२.४ गोसहस्रमतिश्लाघ्यं कपिल ९२० ग्रहणादिषु शक्तश्चे आंपू २७८ गोसहस्रस्य चित्रस्य तिल कपिल ४३८ ग्रहणेजुहुयादिदो सहस्रं भार ९.२६ गोसहस्रहतं तेन ७.गौ. ९.४५ ग्रहणे रविसंक्रान्तो । वृहा ५.३८९ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ग्रहणे रविसङ्कान्तौ ग्रहणे शून्यमानसे च ग्रहणे श्राद्धकालेषु ग्रहणोद्वाहसंक्राती ग्रहदोषादुपाकर्म वृ परा ८.१३५ ग्रहं पंक प्रपातश्च ग्रहशांतिकपूर्वञ्च दशांशं ग्रहशांतिश्च सर्वत्र शनैः वृ परा ११.१०५ शाता ६.२३ ग्रह संक्रमण काले ग्रहस्पर्शादथ यतन ग्रहांश्च पूजयेद् विद्वान् ग्रहाधीनमिदं सर्वं ग्रहाधीना नरेन्द्राणा ग्रहाधीना नरेन्द्राणा ग्रहास्तत्र प्रतिष्ठाप्या ग्रहीता यदि नष्ट स्यात् ग्रहीता यो न चेद्विद्वान् ग्रहीतु सहयोऽर्थेन ग्रहे मुहूर्तद्वितये ग ग्रहोपरागे संक्रान्तौ ग्रामघाते शरौघणे ग्रामघाते हितांभंगे ग्रामदाहृत्य वा ग्रासानष्टौ ग्राम दोषाणां ग्रामाध्यक्षः ग्रामदोषान् समुत्पन्नान् ग्रामद्रोहजनद्रोहसवद्रोह ग्राममध्ये स्वशुद्ध्यर्थ ग्रामः सस्वामिको यो वा ग्रामसीमासु च बहिर्ये ग्राम स्थानं यथा शून्यं ग्रामस्थानं यथा शून्यं ग्राम्मस्याधिपतिं कुर्याद् ग्रामं विशेच्य भिक्षार्थ ग्रामादाहृत्य चाश्नीयाद् ग्रामादाहृत्य वाऽश्नीयादष्ठौ आश्व १२.२ व २.६.२४४ ग्राममाद्दक्षिणदिग्भागे व २.७.८ ग्रामादुद्बहिर्विनिगत्य आंपू २५८ ग्रामान्त्यजस्त्रीगमनं अत्रिस ३२५ ग्रामाद्बहि शिरश्छित्वा ग्रामान्तरे पृथक्कुर्याद्दर्श ग्रामान्त्यजैश्चचण्डालैः ग्रामार्चायाः प्रकुर्वीत ग्रामाश्च नगरादेशा ग्रामेच्छया गोप्रचारो ग्रामेपानेतच यत् क्षेत्र ग्रामेयककुलानां च ग्रामे राष्ट्रे च सर्वत्र ग्रामे वा वसेत ग्रामे व्रजे विवीते वा ग्रामे शस्य नृपस्यपि ग्रामेशस्य नृपस्यापि ग्रामेष्वन्वेषणं कुर्युः ग्रामेष्वापि च ये केचिद् ग्राम्यपशूनामेकशफा वृ परा १०.३५५ आंपू ४८६ वृ परा ४. १५० वृ परा ११.८३ या १.३०८ ब्र. या. १०.१६० वृ परा ११.५२ मनु ८.१६६ वृ परा ६.२२२ नारद ३.६ आंपू २७९ लघु यम ८३ पराशर ९.४३ मनु ९.२७४ या ३.५५ विष्णु ३ मनु ७.११६ लोहि ७१० कपिल ८३५ कपिल ४८१ ग्राम्यारण्याश्च पशवः ग्राम्यारण्याश्च पशवः ग्रासमुष्टिं परगवे ग्रासमेषाङ्गवे दद्यात ग्रासशेषं न चाश्नीयात् ग्रासं वा यदि गृह्णीयस्तोयं ग्रासं वा यदि गृह्णीयात्तोयं ग्रासाच्छादन स्नान ग्रासादर्धमपि ग्रासं ग्राहकस्य न कुर्वीत व्यास ४.३८ ग्राहकै गृह्यतै चौरो नारद १२.३ पराशर ८.२४ ग्राहयन्तीं धर्ममात्र मनु ३.११५ ग्राहयित्वा रोधयित्वा शंख १७.२ ग्राहादिसेविते रुक्षे नीचा शंख ६.४ ग्राह्यतेति धर्मज्ञः निश्रितो मनु ६.२८ ग्राह्य क्षारविकारं ३२३ विश्वा १.४७ शाण्डि २.७ वृहा ६.१९५ लोहि ६८४ व्या २८३ व २.६.५२१ वृहा ६.२ वृ परा १२.११० या २.१६९ नारद १२.३५ मनु ८.२५४ लोहि ७१६ व १ १०.२० नारद १५.२२ वृ परा ५.१४९ वृ परा ५.१५६ नारद १५.२५ मनु ९.२७१ व १.२.३२ बृ.गौ.१५.५० वृ.गौ. १५.६४ बृ. गौ. १३.२४ वृ.गौ. ८.९८ व २.६.२०७ लघुयम ४७ पराशर ९.१२ व १.१७.५४ व्यास ४.२३ आंपू १३६ या २.२६९ लोहि ६७५ लोहि ६२३ शाण्डि २.५२ कपिल १३८ आव १.१७३ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ ग्राह्यास्तत्र विशेषेण ग्रीष्म प्रेवसेमणिकंदति ग्रीष्मे पंचतपास्तु ग्रीष्मे पंचाग्निध्यस्थो ग्लहे शतिकवृद्धेस्तु घ घट (तुला) धर्म वर्णनम् घटप्रहरणाभावे कर्तव्य घटप्रहारात्परतः तत् घटिका पञ्चदश च घटिकाषष्टिसाध्या हि घटिकैकाऽवशिष्टा घटेऽपवर्जिते ज्ञाति घटोऽग्निरुदकं चैव विषं घण्टाभरणदोषेण घण्टाभरणदोषेण घण्टाशब्दवदोंकार घण्टाशब्दवदोंकार घनाया भूमेरुपाघात घषाणं ततु दशाब्दे घातयन्ति च ये पापा घातयित्वा समाप्नोति लोहि २६७ घृतं तैलं तथा क्षीरं ब्र. या. ११.५२ मनु ६.२३ या ३.५२ या २.२०२ विष्णु १० लोहि १३४ लोहि १५८ विश्वा ८.३४ कण्व २९ आश्व १.१८१ या ३.२९९ नारद १९.२ वृ परा ८.१५७ आंगिरस २६ बृ.या. ९.२ बृह ९.८ घातितेऽपहृते दोषा घासं यो नक्षुधार्तस्य घृतकुंभं वराहे तु घृतं क्षीरवहानद्यो घृतञ्चैव सुतप्तञ्च घृतपक्वे गुड़ाक्ते च घृतमामिक्षेति घृतं घृतस्य दुलर्भे जाते कदाचित् घृतहीनं तु योऽधीते घृतं गुग्गुलु धूपं च घृतं घृतपावानश्च घृतं च वह्निर्धृतमेव घृतं चाष्टपलं ग्राह्यं बौधा १.६.१७ ब्र. या. १२.४४ च बृ.गौ. ५.४५ वृहा ६.१७३ चक्रवद्भ्रमयेन्नाङ्गं पृष्ठ या २.२७४ चक्र पद्म गदां शंखं वृ परा ८. १४८ चक्रवाकप्रयुक्तैः तु मनु ११.१३५ वृ परा १०.८४ संवर्त ११७ ब्र. या. २.१८९ वृहा ८.२९ लोहि ३६४ व्या २०६ व्या १३५ ब्र. या. १०.९६ वृ परा १०.७४ वृ परा ९.२७ घृतं ददति यो विप्र घृतं दधि तथा दुग्धं घृतं लवणसंयुक्त घृतं वा यदि वा तैलं घृतं वै कृष्णवर्णाया घृताशी प्राप्नुयान्मेधा घृते त्वेकादशगुणां घृतेन गव्येन न गृतेन वाथ तैलेन पादौ घृतेन दीपो दातव्य घृतेन पूरितं प्राहु पंच घृतेन वा तिलै वापि वृहा ७.६३ कात्या २१.४ घृतेन स्यापयेद् विष्णु वृ परा १०.२५५ घृतेनाभ्यक्तमाप्लाव्य घृतेनाभ्यज्य गात्राणि घोषयित्वा विशेषेण यद्य घ्राण प्रमाणं वैश्यस्य घ्राणेन शूकरो हन्ति घ्रात्वा पीत्वा निरीक्ष्या चक्रवाकञ्च जग्ध्वा चक्रवाकं तथा क्रौञ्चं चक्रवाकं प्लवं कोकं चक्रवाकैः प्रयुक्तेन चक्रवृद्धिं समारूढो चक्र शंखगदा पद्म चक्रशंखसमेताभ्यां स्मृति सन्दर्भ पराशर ११.१४ वृ परा १०.२१७ वृ परा ८.२१९ वृहा ४.११८ अत्रिस ३९५ देवल ६४ भार ९.३० नारद १८.८६ वृ परा १०.७५ वृ.गौ. ७.२८ चक्रशंखाभय पर चतुर्हस्तं चक्रस्य धारणं यस्य चक्रस्य धारणे काले चक्रं पद्य गदां शंखं ब्र. या. १३.३२ कपिल ९११ नारद १३.८२ लोहि ६८७ भार १५.१२८ मनु ३.२४१ आंउ. ८.३ शाण्डि २.७२ वृहा ५.२०२ वृ.गौ. ५.७४ औ ९.२५ संवर्त १४५ शंख १७.२४ वृ.गौ. ५.९८ मनु ८.१५६ वृहा ७.२२७ वृहा ३.३१३ वृहा ३.३५७ वृहा २.९८ व २.१.४१ वृहा ७.१२४ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२५ श्लोकानुक्रमणी चक्र पद्य तथा शंख चक्रं शंखं गदां पद्य चक्रांकितस्य विप्रस्य चक्रांकितस्य विप्रस्य चक्रांकितं भुजविप्रं चक्रांकितं विप्रमेव चक्रात्तीव्रतरो मन्यु चक्रादिचिह्नरहितं चक्रादिचिहैहीनेन चक्रायुध नमस्तेऽस्तु चक्रिणो दशमीस्थस्य चक्रेण सह बघ्नामीत् चक्षु णानुकूल्याद्वा चक्षुः श्रोते स्पर्शनञ्च चक्षुषा रूपाण्यः श्चैव चक्षुषोः विन्यसेद् द्वे चक्षुस्याभिनवो दंडो चंचुलिंगुग्गुलुञ्चैव चणका राजामषाश्च चण्डादि द्वारपालांश्च चण्डाल कूपभाण्डस्थं चण्डालग्राम भूमिन्तु चण्डाल घटभाण्डस्थं चण्डालत्वमवाप्नोति चण्डालपतितं चापि चण्डालपतितादीनां चण्डालपुक्कसानां च चण्डालमपि मद्भक्तं चण्डालम्लेच्छ संभाषे चण्डालवाटिकायान्तु चण्डाल वाटिकायान्तु चण्डालशयूपाध चण्डालशुद्धपतितान् चण्डालश्वपच महीं चण्डालश्वपचानां तु वृहा ७.१२३ चण्डालश्वपचैः स्पृष्टे वृहा ७.१२२ चण्डालसूतकशवां वहा ८.२९१ चण्डालसूत कशवैः वृहा ८.२९३ चण्डालस्तु तथा शूदात् वृहा ८.२९७ चण्डालस्पर्शनेसद्यः वृहा ८.२९६ चण्डालं पतितं मद्य वृहस्पति ५० चण्डालात् ब्राह्मणात् वृहा २.३ चण्डालाद्यै रूपहरेतं व २.७.२४ चण्डालानांमर्चनीया मद्य बृ.गौ,१६.१ चण्डालीगमने विप्रस्त्व मनु २.१३८ चण्डाली ब्राह्मणो गत्वा वृहा ३.३८९ चण्डालेनतु संस्पृष्ठ बौधा १.५.४९ चण्डालेष्वेन निष्कम्पं शंख ७.२४ चण्डालै श्वपचै स्पृष्टौ ब्र.या. ८.३ ४० चण्डालो जायते यज्ञ वृ परा ११.११३ चण्डालोदकसंस्पर्श भार १५.१३१ चण्डालोदक संस्पर्शे व २.६.१७८ चतस्रश्चा ऽऽदिमा रात्रीः ___ व्या ३१२ चतम्रो जुहुयात्तस्मै वृहा ४.८७ चतुः कोटिन्तु याम्या वृहा ६.२६४ चतुः कोणमिति स्पष्ट व २.६.५४१ चतुः त्रिकोणं वृत्त च लिखित ८४ चतुःपञ्चघटीमानं मुहूर्त कपिल ५७ चतुः पारणमेतेषां व २.६.४७४ चतुः प्रक्ष्याल्य शुद्धा वृहा ६.३७७ चतुरः प्रातः अश्नीयात् लघुयम २८ चतुः युगानि वे त्रिंशत् वृ.गौ. २१.२२ चतुरंगुलमग्रस्य मध्य ___ औ २.४ चतरंगेषु विन्यस्य वृहा ६.३८३ चतुरंग्गुलविस्तारः वृहा ६.३८४ चतुरः प्रातरश्नीयात् शंख ८.३ चतुरश्चरस्त्वंध्रयो व्यास २.३३ चतुरनं तीर्थपीठं पाणि व २.६.५३७ चतुरश्रांमध्यदेशे मनु १०.५१ चतुरश्रेषु शुद्धेषु सद्यः लघुयम ६४ औ ९.७६ औ ९.७७ वृहा ४.१ ४७ व २.६.४७२ वृहा ६.३६० वृहा ६.३६४ व २.६.५३१ वहा २.४६ नारा १.२१ बौधा २.२.७५ अत्रिस २३८ आंपू ३५७ लघुयम १० या १.१२७ दा ९७ लिखित ८३ व्यास २.४३ वृ परा ४.१७८ ब्र.या. १०.१३६ ब्र.या. २.३२ वृ परा ६.१३४ विश्वा १.२ ब्र.या १.११ शाण्डि ३.९६ वृ परा ९.६ वृगौ २.२६ भार १८.५९ वृहा ३.१८५ भार २.३० मनु ११.२२० वृ परा २.१५७ __ वाधू ८२ नारा ५.३५ शाण्डि ४.११२ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ स्मृति सन्दर्भ चतुरस्रं चतुरं वृ परा ११.२१३ चतुर्थं याममुत्थाय शाण्डि ५.५७ चतुरस्रं ततः स्वर्ग वृ .गौ. १५.३५ चतुर्थस्य तु वर्णस्य आप ५.३ चतुरनं त्रिकोणं वा वृहा ५.२४३ चतुर्थस्य न दोषस्तु वृहा ६.२१२ चतुरस्रं ब्राह्मणस्य अत्रि ५.१ चतुर्विशति संख्याकान् वृहा ६.११९ चतुरस्रं शुचौ देशे व २.६ ३१७ चतुर्थं ताम्रपात्रेण वृ परा ९.३१ चतुरहन्त्वेकभक्ताशी पराशर ८.४७ चतुर्थांशेन धेन्वास्तु वृ परा १०.१०८ चतुराज्याहुतीस्तत्र व २.६.३३३ चतुर्थाधेषु साग्नी दा ७० चतुराश्रम धर्माण वृ परा १२.२०६ चतुर्थी क्षुद्रपशवः ब्र.या. ४.१६२ चतुराश्रमभेदोऽपि वृ परा १.६० चतुर्थी त्रिदिवस्यांते आश्व १५.६४ चतुरोन्यासकृदग्नि कार्य वृ परा १२.१६१ चतुर्थी संयुताकार्या तृतीया ब्र.या. ९.३ चतुरो ब्राह्मणस्याद्यान् मनु ३.२४ चतुर्थे दशरात्र स्यात् अत्रिस ८७ चतुरोंऽशान् हरेद् विप्र मनु ९.१५३ चतुर्थे दशरात्र स्यात् पराशर ३.१० चतुर्गवं नृशंसानां अत्रिस २२१ चतुर्थे दशरात्र स्यात् दा ११९ चतुर्गुणं तदुच्छिष्टे अत्रि ५.५५ चतुर्थे दशरात्र स्यात् पराशर ४.१० चतुर्गुणेन मंत्रेण वृ परा ११.१८१ चतुर्थेनेह भक्तेन ब्रह्मचारी वृ.गौ. ७.९४ चतुर्णानामपि वर्णानामेष पराशर २.१७ चतुर्थे पञ्चमे चैव लघुयम ८८ चतुर्णामपि चैतेषां मनु ९.२३६ चतुर्थेमासि कर्तव्यं मनु २.३४ चतुर्णामपि चैतेषां मनु ४.८ चतुर्थे मासिगर्भस्थं व २.४.१२१ चतुर्णामपि वर्णानामाचारो वृ परा २.२ चतुर्थे संचयं कुर्यात् संवर्त ४० चतुर्णामपि वर्णा नामाचारो पराशर १.३७ चतुर्थेऽहनि कर्तव्य दक्ष ६.१५ चतुर्णामपि वर्णानां प्रेत्य मनु ३.२० चतुर्थेऽहनि कर्त्तव्यं अत्रि ५.४५ चतुर्णामपि वेदानां प्रजा ६ चतुर्थेऽहनि तद्वर्त्मनि लोहि ६३९ चतुर्णामपि वेदानां आंउ ५.२ चतुर्थेऽहनि विप्रस्य संवर्त ४१ चतुर्णामा:प्रमाणाञ्च वृहा ६.२ ४३ चतुर्थेऽहनि संप्राप्ते वाधू ४५ वृ परा १२.१४६ चतुर्थेऽहिन तथा नद्यां वृहा ५.४४५ चतुर्णामाश्रमाणां तु वृ परा १२.१७५ चतुर्थेऽहिन समप्राप्ते । व २.४.१०८ चतुर्णामाश्रमाणां तु वृ परा १२.२८५ चतुर्थ्यन्तमभून्नित्य शाण्डि ५.६३ चतुर्णा सन्निकर्षेण पदं दक्ष ७.२२ चतुर्थ्यतं सगोत्र च वृ परा ७.१९१ चतुर्णा वर्णानां गोरवाजावयो बौधा २.२९ चतुर्थान्तेन तत्पश्चात् कण्व ३६६ चतुर्थकालमश्नीयाद् मनु ११.११० चतुर्थ्याउध्वं सा स्नाता ब्र.या. ८.२८५ चतुर्थकालमितभोजिनः बौधा २.१५८ चतुर्थ्यां नमसश्चैव वृहा ३.२४४ चतुर्थदिवसे कुर्यान् आश्व १०.५५ चतुर्थ्याध्य प्रदातव्यं व २.६.१५८ चतुर्थ महइत्येतद्ब्रह्म भार १९.३४ चतुर्थ्याध्य प्रदातव्य वृ परा ४.१३६ चतुर्थमाददानोऽपि क्षत्रियो मनु १०.११८ चतुर्थी शुक्लपक्षे वृ परा ११.१० चतुर्थमायुषो भागं मनु ४.१ चतुर्दशघटीभ्यस्तु मार्तण्ड विश्वा ८.३८ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३२७ चतुर्दशविंध सर्ग बृ.या. ३.७ चतुर्वर्ग फलं प्राप्य ब्र.या. २.१२६ चतुर्दशविधः शास्त्रे स नारद १३.११ चतुर्विशत् समाख्यातं नारद १९.१३ चतुर्दशाङ्गनि श्रृणु वृ.गौ. २०.३४ चतुर्विशति अगुष्ठदैर्ध्य कात्या ७.४ चतुर्दशी पंचदशी शंख ३.५ चतुर्विशति कृच्छ स्याद् औ ९.५२ चतुर्दश्यष्टमी चैव वाधू १८५ चतुर्विशति गायत्र्या वृ परा २५३ चतुर्दश्यां तु यच्छ्राद्धं वृ परा ७.३३८ चतुर्विशतिनामानि तत्त विश्वा २.३ चतुर्दश्यां नमस्कार वृहा ५.२०८ चतुर्विशति देशेषु भार ६.७५ चतुर्दश्यां समारम्भः प्रजा १६२ चतुर्विंशति द्वादश वा बौधा १.२.२ चतुर्दिक्षु च सैन्यस्य वृ परा १२.२८ चतुर्विशतिपणान्वापि लोहि ६२६ चतुर्दिक्षुजपेत्सम्य व २.७.६७ च तुविशति पादानि विश्वा २.२५ चतुर्दिक्षु ध्वजाः कार्या वृ परा ११.७२ चतुर्विशंति पादानि विश्वा २.४९ चतुर्निमज्य विधिवद् शाण्डि २.३८ चतुर्विशतिरेतान छंदा भार ६.५५ चतुर्धाद्वादशाब्दानि वृ परा १२.१५० चतुर्विशतिरेवास्यां वृ परा ४७ चतुर्धा ब्रह्मचारी स्याद् वृ परा १२.१४८ चतुर्विशतिवर्णानां कण्व १८० चतुर्था विभजेत्तां तु शाण्डि २.३४ चतुर्विशतिवर्णानां भार ६.५३ चतुर्ध्यत्ताः पल्लवारित्ता भार ६.९० चतुर्विशतिवर्णानां भार ६.५७ चतुर्मि पंचमि ध्यात्वा वृहा ८.९४ चतुर्विशतिवर्णनां भार ६.६५ चतुर्भिरपि चैवेतै मनु ६.९१ चतुर्विशति वाचं वै कण्व १२५ चतुर्मि वैष्णवैः मंत्रै वृहा ६.४०३ चतुर्विशतिसंख्याकान् द्विगुणं कपिल ८२१ चतुर्मि वैष्णवै मंत्रः वृहा ७.२२० चतुर्विशतिसंख्यान वृहा ७.१३६ चतुर्मि वैष्णवैमंत्र वृहा ७.३०० चतुर्विशतिस्थानेषु बृ.या. ५.८ चतुर्मि शुद्यते भूमि बौधा १.६.२० चतुर्विशत्यथैतानि शंख ७.२८ चतुर्भि शोभनोपायै वृहा १.१५ चतुर्विशाक्षरा देवी बृ.या. ४.२० चतुर्मि संवृतै पातै वृ परा १०.९१ चतुर्विधशरीराणि वृहा ३.१०४ चतुर्मिस्तोरणैर्युक्तं व २.७.३७ चतुर्विधेभ्यो भूतेभ्यो वृहा ५.२२० चतुर्भुजमुदारांगं शंख व २.६.४० चतुवेदाश्च होतव्या व २.७.७४ चतुर्भुजं दण्डहस्तं शाता ६.१७ चतुर्वेदी द्विजः श्रीमान् वृ.गौ. ६.४ चतुर्भुजं सुन्दरागं वृहा ४.६४ चतुर्वेदी च यो विप्रो व २ १.१४ चतुर्भुजं सुन्दरांगं वृहा ३.२० चतुहस्तं युगं कार्य वृ परा ५.७२ चतुर्भुजं सुन्दरांग वृहा ३.२२३ चतुर्हस्तेन बिभ्राणां भार १२.१२ चतुर्भुजं सुन्दरांगं वृहा ७.९४ चतुर्हस्तेन बिभ्राणां भार १२.७ चतुर्भेदः परिब्राट वृ परा १२.१६४ चतुश्चतुश्च षट् वृहा ३.३ ४३ चतुर्युगानि वै तत्र वृ गौ. ७.२५ चतुष्पादकृते दोषो या २.३०१ चतुर्मन्तं समग्युच्चार्य विश्वा ५.३३ चतुर्वन्येष्वमन्त्रेण लोहि २९ चतुर्मत्रेण संप्रोक्ष्य पीत्वा शाण्डि २.४७ चतुः षष्टिफलं कांस्यं वृहा ५.२४५ Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ चतुः षष्टिपलञ्चैव चतुष्कुलैकपर्यन्तं जातानां चतुष्केषु ब्रिभ्राणां चतुष्कोणं तु विप्राणां चतुष्पात् सकलो धर्मः चतुः स्तम्भां चतुर्धाम चतुखिह्येकभागीनाः चलवृध्ने प्रमन्थाग्रां चत्राधेः कीलकाग्रस्था चत्वरं वा श्मशानं चत्वारः कथिताः सद्भिः चत्वारः कलशाः कार्य्या चत्वारः पाकयज्ञाश्चबहि चत्वारश्चेद् द्विजाः चत्वारिशच्च ते सर्वे चत्वारिंशत्तथा चष्टाव चत्वारिंशत्संस्कारा चत्वारिंशद्देवताकमथवा चत्वारिंशाश्च चत्वारिशाष्टमधिकं चत्वारि अर्घ्यपात्राणि चत्वारि खलु कर्माणि चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते चत्वारो बहवो द्वौ वा चत्वारो ब्राह्मणा दैवे चत्वारो वर्णा पुत्रिणः चत्वारो वर्णा ब्राह्मण चत्वारो वर्णा ब्राह्मण चत्वारो वा त्रयो वापि चत्वारो वा त्रयो वापि चत्वारो वा त्रयो वापि चत्वारो वेदधर्मज्ञा यत्र वत्वारो वेदधर्म्मज्ञा चत्वार्याहुः सहस्राणि च नैऋत्यां वः प्रकीत्तिताः चन्दन अगुरु कर्पूर चन्दन अक्षत दुर्व्वाश्च चन्दनस्फटिके लिख्य चन्दनं कुंकुमोपेतंक चन्दनं गन्धपुष्पं च चंदनं चाक्षतं पुष्पं चन्दनं वा सुवर्ण वा चंदनाक्षतपुष्पाणि तथा चंदनागरुकर्पूरकाश्मीर चंदनागरुकर्पूरकुंकुम कात्या ८.३ औ २.३ आंपू १०५६ शाता २.२ ब्र.या. ८.२१६ चन्दनागरुकर्पूरं कुंकुमं आश्व २४.१० व २.६.२०० आंपू १००७ भार १२.१५. ब्र. या. ४.११० मनु १.८९ वृ हा ५.५०४ या २.१२८ कात्या ८.२ आं पू ६८० ब्र. या १.२५ ब्र. या. ८.६६ व्या ६३ यम ७६ व्या ३५० चत्वरेषु चतुष्के वा रात्रौ वृ. गौ. ७.५० चत्वारोऽपि त्रयो व १ ३.६ शाण्डि ४.९९ आश्व १५.७० बौधा १.१०.३७ बौधा १.८.१ व १ २.१ पराशर ८.१५ वाधू १७७ आंउ ४.३ बृह ११.३५ चंदनागरुकर्पूरचंपको चन्दनागरुकस्तूरी वृ परा ६.२०३ वृ परा ५.६१ चन्दनागरुकस्तूरी कण्व ४२० चन्दनेनं सुगन्धेन चन्दनैः लिप्यते अंग चन्द्रक्षयाऽनाशक चन्द्रक्षये तु य कुर्यात् चन्द्रक्षये तु योऽविद्वान् चन्द्रक्षयेऽमतिर्विप्रो चन्द्रगहे लक्षगुणं चन्द्रताराबलान्विते चन्द्राननं जपापुष्प चन्द्रा प्रतीतौ पुरुषस्तु चन्द्रर्कयोस्तु संयोगे चन्द्रावभाससंयुक्त चन्द्रासने समासीनः या १.९ चन्द्रा सूर्या च दुर्धर्षा स्मृति सन्दर्भ मनु १.६९ ब्र.या. १०.३२ वृ हा ३.२५१ हा ५.१६१ ब्र. या. १०.५३ वृ हा ५.४०३ शाण्डि ४.१६० भार १३.२७ वृ हा ४.७५ भार १९.७९ भार १४.२ भार १४.३ व्या १३२ भार १४.४४ व २.६.३६ वृ हा ४.५९ वृ हा ५.४५४ शंख ७.७ चन्द्रवृध्या अश्नीयात् चन्द्रसूर्यग्रहे यान्ति यम चंद्रसूर्यग्रहौ लंघेहणं व २.४.११४ वृ परा ९.२ वृ.गौ. १९.१६ ब्र.या. २.२०१ चन्द्रसूर्य प्रकाशेन विमानेन बृ.गौ. १९.२१ चन्द्रादीनार्चयेत्पश्चा व २.७.३९ वृ हा ३.३०७ वृ परा ५.१०२ वृ परा ५.९६ ब्र.या. २.१३३ विश्वा ३.३४ वृ हा ७. १६२ वृ परा ७.१४७ वृ परा ५.९७ वृ परा ५.९५ वृ परा ५.९४ प्रजा २८ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३२९ चन्द्रे वा यदि वा सूर्ये वृ परा १०.३५० चरेत् सांतपनं विप्रः लघुशंख ४५ चम् पच्छ्ये न इति च वृ हा ८.६५ चरेत् सांतपनं विप्रः लिखित८६ चंपका पुष्पवल्मितं भारं ६.६२ चरेत्सांतपनं विप्रः प्राजापत्यं बृ.य. १.११ चम्पकाशोकपुन्नाग व २.६.५८ चरेत् सान्तपनं विप्रः आप ४.२ चम्पकैः पाटलोभिश्च आंपू ५४६ चरेत् सान्तपनं विप्रः आंगिरस ६ चम्पकैः शतपत्रैश्च वृ हा ५.३५० चरेत् सान्तपनं विप्रः पराशर ६.२७ चम्पको दमनः कुन्द प्रजा १०४ चरेदेव न संदेहस्त आंपू ३०० चरणाय विसृष्टं वृ परा ५.१०५ चरेद्यत्नेन शुद्धयर्थ आं पू १७२ चरमस्त्वपविद्धस्तु कृता लोहि १९९ चरेद्यदि विशेषण आंपू ७०१ चरमा सा तुला ज्ञेया कपिल ९०१ चरेद्वा वत्सरं कृत्सनं औ ८.२२ चरमा सा प्रकथिता सप्त कपिल ९०० चरेद् वृथा हि तत्कर्म कण्व ३६८ चरवो ह्युपवासश्च बृ. या. ७.१ ४५ चरेद् व्रतमहत्वापि या ३.२५१ चरं दारुणभं पौष्णं आश्व ३.२ चरेद् व्रतं तथा पूर्ण व हा ६.२५६ चराचरगुर्देवः स मे विष्णु म ३२ चरेन् माधुकरी वृत्तिमपि अत्रिस १६१ चराचरस्य जगतो जलेश नारद १९.४४ चरेयुस्त्रीणि कृच्छ्राणि । आप ९.८ चरणामन्नमचरा __ मनु ५.२९ चरौ समशनीये तु कात्या २६.५ चरितव्यमतो नित्यं मनु ११.५४ चर्चकः श्रावणी पारः ब्र.या. १.१० चरितव्रत आयातो या ३.२९५ चर्मकारस्य धूर्तस्य शंक १७.३८ चरितं रघुनाथस्य वृ हा ५.४४६ चर्मको रजको वैण्यो अत्रि स २८५ चरितं रघुनाथस्य वृ हा ७.२९१ चर्मचार्मिक भाण्डेषु मनु ८.२८९ चरितार्था श्रुति कार्या कात्या २९.६ चर्मण्य स्थाप्यं ब्र.या.१०.१२ चरित्रबन्धककृतं ___ या २.६२ चर्मासनं शुष्ककाष्ठं वृ हा ५.२३९ चरित्वाऽप पयोघृत बौधा २.१.४५ चर्मास्थि समवेतामि व २.५.५१ चरुपक्वं श्रृतं पक्वं वृ परा ८.२२३ चर्वाज्यैरथमन्नीति वृ हा ६.१० चरुमाज्यं तिलैवापि वृ हा ६.४५ चर्वाहुतिन्नयं दत्वा आश्व १०.५१ चरु समशनीयो यस्तथा कात्या २६.१ चर्वाहुतित्रयं हुत्वा आश्व ११.४ चरु कृत्वाऽर्धसावित्र्यां कपिल ३२३ चलिते वासने विप्रो व २.६.२१४ चरु सशर्कराज्यन्तु वृ हा ६.१२५ चषके पुटके वाऽपि वृ हा ५.२६७ चरूणां श्रुक्सुवाणाञ्च परासर ७.३ चाक्रिकं ग्रहणं मुख्य आपू २८० चरूणां मुक्नुवाणां च मनु ५.११७ चाटुतस्कर दुर्वृत्त या १.३३६ चरूस्थाली ततः स्थाप्य ब्र.या. ८.२५२ चाणूरो निहतो रंगे स म विष्णु म ४० चरेच्च विधिना कृच्छं औ ९.६२ चाण्डाल अपि अतिथि प्राप्तो वृ.गौ.६.६२ । चरेत् सान्तपनं काष्ठे पराशर ९.४ चाण्डालकूपपानेन वृ परा ८.२१८ चरेत् सान्तपनं कृच्छं औ ९.१८ चाण्डालकूभाण्डेषु आप ४.१ चरेत् सान्तपनं कृच्छ्रे व हा ६.२६७ चाण्डालकूपभाण्डेषु आंगिरस ५ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० चाण्डालकूपभाण्डेषु चाण्डालखात वापीषु चाण्डालघट भाण्डस्थं चाण्डालघटमध्यस्थं चाण्डालदर्शनेनैव चाण्डालपतितादीनां चाण्डालन्तु शवं स्पृष्ट्वा चाण्डालप्रत्यवसित चाण्डाल भाण्डसंस्पृष्टं चाण्डालभाण्डसंस्पृष्टं चाण्डालभाण्डसंस्पृष्टं चाण्डालमूर्तिका ये च ये चाण्डालम्लेच्छश्वपच चाण्डालश्च वराहश्च चाण्डालस्य करे विप्रः चाण्डलं पतितं म्लेच्छं चाण्डालं पततिं स्पृष्ट्वा चाण्डालं पुक्वशञ्चैव चाण्डालांश्च श्वपाकांश्च चाण्डालात्पाण्डुसोपाक चाण्डालाद्यैस्तु संस्पृष्ट चाण्डालान्त्यस्त्रियों औ ९.४८ चाण्डालै भाण्डसंस्पृष्टं पराशर ६.२३ चाण्डालैः सह सम्पर्क चाण्डालैः सह सुप्तन्तु बृ.य. १.९ लघुशंक ४३ पराशर ६.२२ चाण्डालैस्तु हता ये चाण्डालोदकभाण्डे तु चाण्डालोदक संस्पृष्ट चाण्डालोदक संस्पृष्ट चातुर्मास्यनिरुढे चातुर्मास्ये द्वितीयायां चातुर्वर्ण्यस्य कृत्स्नस्य चातुर्वर्ण्यस्य कृत्स्नोऽयं चातुर्वर्णस्य गेहेषु चातुर्वर्ण्यविवाहोऽपि मांसेन वृ हा ६.३८२ औ ९.८० दक्ष ४.२१ बृ.या. १.८ संवर्त १८२ पराशर ६.२४ बृ. या १.१४ अत्रिस १८५ मनु ३.२३९ संवर्त १९६ अत्रिस २६६ संवर्त १७८ संवर्त १६८ वृ परा ५.१८१ मनु १०.३७ संवर्त १८० मनु ११.१७६ बृ. य. १.१२ बृ. य. १.१५ चाण्डालान्नं भक्षयित्वा चाण्डालिकासु नारीषु चाण्डालीञ्च श्वपाकीञ्च पराशर १०.५ चाण्डालीमेव भिल्लनाम् वृ परा ८.२४६ चाण्डाली यो द्विजो संवर्त १४९ औ ९.४९ चाण्डालेन च संस्पृष्टं चाण्डालेन तु संस्पृष्टो चाण्डालेन तु सोपाको चाण्डालेन यदा स्पृष्टो चाण्डालेन यदा स्पृष्टो चाण्डालेन श्वपाकेन् चाण्डालैः निर्घृणैः चण्डैः चाण्डालैः श्वपचैर्वापि चातुर्वर्ण्यस्य नारीणां चातुर्वर्ण्यस्य सर्वत्र चातुर्वण्यं त्रयो लोका चातुर्वर्ण्यात्तु या नारी चातुर्वेद्योपपन्नस्तु चातुर्विद्य विकल्पी चातुर्वेद्यो विकल्पी चातुर्वेद्यो विकल्पी चातुर्वेद्यो विकल्पी स्मृति सन्दर्भ चान्द्रायण विधानैर्वा चान्द्रायण व्रतादिवर्णन चान्द्रायणञ्च यत्कृच्छ्रं चान्द्रायणं चरेत् सम्यक् आप ९.४० मनु १०.३८ चान्द्रायणचरेत् सर्वान् आप ४.६ आप ५.१ चान्द्रायणं चरेद् विप्रः चान्द्राणं तथाऽन्यासु चान्द्रायणं त्वाहिताग्नेः पराशर ५.१० वृ.गौ. ५.५१ चान्द्रायणद्वयं नित्यं चान्द्रायणं नवश्राद्धे आप ७.१८ लघुशंख ४२ पराशर १०.१८ पराशर ६.२१ संवर्त १७६ पराशर ६.२५ वृ परा ८.३१४ लघुशंख ४७ कण्व ४१७ वृ परा ६.३५६ वृगौ. ४.५ मनु १२.१ वृहा ६.३६९ लोहि १६८ पराशर १०.२४ पराशर १०.१ मनु १२.९७ वृ परा ८.२७८ पराशर १२.५८ चात्वार आश्रम ब्रह्मचारी व १ ७.१ चान्द्र - कृच्छ्र - पराकाद्यै वृ परा १२.१०४ चान्द्रायणत्रयं कुर्य्यात् पराशर १०.११ व १ ३.२३ आंउ ५.१ पराशर ८.३४ बौधा १.१९ मनु ६.२० विष्णु ४७ बृ.गौ. १३.१५ औ ९.४० या ३.२६१ अत्रिस १७५ वृता ६.३०२ देवल २० नारा ८.१० वृ परा ८.२०४ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी चान्द्रायणं नवश्राद्धे चान्द्रायणं नवश्राद्धे चान्द्रायणं नवश्राद्धे चान्द्रायणं परस्ताद् चान्द्रायणं पराको या चान्द्रायणं पराकं वा चान्द्रायणं पराकं वा चान्द्रायणं पराकं वा चान्द्रायणं यावकञ्च चान्द्रायणं वा त्रीन्मासान् चान्द्रायणानि चत्वारि चान्द्रायणानि वा कुर्यात् चान्द्रायणानि वा त्रीणि चान्द्रायणान्तु सर्वेषां चान्द्रायणे च कृच्छ्रे चान्द्रायणे ततश्चीर्णे लघु शंख ३४ लिखित ६४ दा ८५ व १ २३.१५ आप ३.२ वृ हा ६.२८२ वृहा ६.३०१ वृ हा ६.३८१ पराशर १२.७२ मनु ११.१०९ औ ९.३ औ ८.२९ संवर्त ११८ संवर्त २२६ वृ परा ९.२१ पराशर १२.६८ बृ. गौ. १६.३५ औ ९.३९ चान्द्रायणेन नश्यन्ति चान्द्रायणेन शुद्धयेत चान्द्रायणैर्नयेत्कालं चित्रकर्म यथानेकैर चाणोत्साहयोगेन चापग्रस्नानशतकैर्मन्त्र चापाग्रयानं कृत्वादौ चित्रकृन्नट वेश्यानां चित्रगुप्तः कलि कालो चामीकरमयी पश्चात् चारणाश्च सुपर्णाश्च चारित्रनियता राजन् चार्मिके रोमबद्धे चार्वाकशैवगाणेश सौर मनु १२.४४ वृ.गौ. १०.८१ या २.१८३ विश्वा ३.६५ चित्रभित्यत्र कुत्सस्तु चित्रं देवानामिति च चित्रयन्मौत्तिकच्छत्र चित्रान्नमग्नि सूनोश्च चिन्तयन्तोऽपि यन्नित्यं चिन्तयस्व सदा विष्णु चिन्तयन् परमात्मानं चिन्तयित्वा नमस्कृत्वा चिन्तयेत्परमात्मानमिव चिन्तयेत् सर्वमात्मीयं चिन्त्येत् हृदिमध्यस्थं वृ. गौ. ११.१४ चिन्वयेद्धरणी देवी आश्व २३.९० या १.१७५ व १.१४.२ चालायित्वा तु पात्राणि चाषांश्च रक्तपादांश्च चिकित्सक मृगयुपुंश्चली चिकित्सकस्य मृगयो चिकित्सकस्य मृगयोः चिकित्सकस्य सर्वस्य चिकित्सकातुरक्रुद्ध चिकित्सकान् देवलकान् वृ.गौ. १०.७३ मनु ४.२१२ व_१.१४.१६ या १.१६२ चिकित्सकान् देवलकान् चिकित्सकानां सर्वेषां चित्तां च चितिकाष्ठं चितिभ्रष्ट्रा तुया नारी चित्तजं श्रुतिजं भावं चित्तदर्पणसङ्क्रान्त चित्तप्रसाद बल-रूप चित्तबर्हिणयुक्तेन विचित्र चित्तव्यामोहरुक्क्रोधो चित्तशुद्धिकरं ब्रह्म चित्तशुद्धिब्राह्मणाय नान्यैः चित्तंसद्यस्तत्रतत्र संग्रहे चित्पतिं मां पुनात् चित्पतिर्मेति च शनैः चित्याग्निधूमकाष्ठोल्मूक चित्याग्निसदृशी प्रोक्ता चित्युल्मूकैव सा ज्ञेया चित्र कर्म यथानेकै या ३.५० मनु ९.२९८ आंपू १०६६ आंपू १८९ कपिल २९८ चिन्तयेन्निश्चलीकृत्य चिन्तापर्युषितत्सृष्टं ३३१ मनु ३.१५२ मनु ९.२८४ वृ परा ८.२७२ अत्रिस २११ वृ परा १२.३०७ शाण्डि ५.६९ वृ परा २.२२७ वृ.गौ.७.९५ लोहि १२७ कण्व ७ कण्व ४३५ कण्व ५ वृ परा २.१३८ बृ.गौ.७.२३ लोहि ५३० लोहि ४८८ लोहि ४९० पराशर ८.२६ आंउ ४.१० प्रजा ५० वृ. गौ. ६.११६ वृ परा २.५४ व २.३.७ भार १५.१४२ वृ परा ११.७७ विष्णु म ४७ बृ.गौ. २२.४७ वृ हा ८.११९ वृहा ४.११ विश्वा ५.४२ वृ परा ५.१४१ वृ परा १२.३१३ वृ हा ३.१३२ वृ परा १२.२४८ भार ४.२५ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ स्मृति सन्दर्भ चिरकालोपभुक्तानां व २.६.५१७ चोराग्निशत्रुसम्बाधे वृ हा ३.२८२ चिरंजीवित्वं ब्रह्मचारी व १ २९.२ चोराणां भक्तदा ये नारद १८.७३ चिरन्नोपविशन्नाति शाण्डि २.१४ चो (चौ) रान्तरादिदुष्टौधान् लोहि ६८९ चिरस्थिमपि त्वाद्य मनु ५.२५ चोरापहृतविक्रीता ये च नारद ६.३६ चिराभ्यस्तमहापाप नारा ५.७ चोरैहृतं प्रयत्नेन नारद १८.८१ चीरवासाजपी त्रिदंडी विष्णु म १०० चौर व्याध्रदिकेभ्यश्च व परा ८.१३१ चीर्णव्रतानपि चरन् वृ हा ६.३३५ चौरश्च तस्करश्चैव अत्रिस ३७८ चीर्णवृता गुणैर्युक्ता वृ.गौ १०.७९ चौरं प्रदात्पहतं या २.२७३ चुम्बने तालुविच्छेदो वृ हा ४.१९७ चौरा श्वपाकचाण्डाला। पराशर ६.१९ चुल्लिस्थानि भवेयुर्हि आंपू ८२० चौरेरूपप्लुते ग्रामे मनु ४.११८ चूडाकर्म द्विजातीनां मनु २.३५ चैरैहृतं जलेनोढं मनु ८.१८९ चूड़ामणिवदाकारो भार ७.३० चौर्यानृतसमुद्भूतं दुष्ट लोहि ३९७ चूणकुङ्कुमतक्कोल महौष कपिल ४३२ चौलकर्मविधानेन व २.३.१८७ चेतसा भीतियुक्तेन कण्व ४२६ चौलकर्मादितश्चैवं आश्व ९.२२ चेत्तत्तु च प्रवक्ष्यामि कण्व ११५ चौलोक्ताज्याहुतीर्तुत्वा आश्वा १४.३ चेलवच्चर्मणाम् बौधा १.५.४५ चौलोपनयने वापि व २.२.३१ चेष्टा-चारित्र-चित्राणि वृ परा ६.५७ चौलोपनयनोद्वाहे आश्व २.१९ चेष्टाभोजनवाग्रोधे या २.२२.३ च्युतं श्रुतं देशं च जातिं मनु ८.२७३ चैताग्नि गृहे येषां ब्र.या. ३.२२ च्युतः स्वधर्मात्कुलिक नारद २.१६६ चैत्यवृक्षाश्चितिस्थश्च पराशर १२.२५ चैत्यगुमश्मशानेषु मनु १०.५० चैत्यवृक्षचितायूप (धूम) वाधू १८७ चैत्यवृक्ष चितिं यूपं छत्रचामरवादित्रैः पताकै वृ हा ७.२७४ बौधा १.५.६० व १.२९.१३ चैत्यंश्मशानसीमासु छत्रदानाद् गृहलाभः या २.२३१ व २.७.८२ चैत्रमासेषु योमत्य एक छत्र च चामरञ्चैव बृ.गौ. १७.२९ छत्रहंचोपानहाचैव ल हा ३.७ चैलवच्चर्मणां शुद्धि __ मनु ५.११९ चैलांगस्थापिते ये च छत्रं वासोयुगं दद्यात् वृ परा १०.२५६ आश्व १०.४ व २.६.४७९ छत्राकं च कलंजं च चोकारं पश्चिमे वकंत्रं वृ परा ४.९५ चो तेजो द जलं यात् छत्राकं मूलकं शिग्रु वृ हा ४.१०९ वृ परा ४.७४ छत्राकं लशुनञ्चैव बृ.गौ. १६.४३ ' चोदना प्रतिकालं च नारद २.२१२ चोदनाप्रतिघाते तु क्षत्राकं विड्वराहं च मनु ५.१९ नारद २.२१४ चोदितं तद्धि चैवं छन्द ऋष्यादि विज्ञाय ल हा ४.४७ कण्व ३१३ चोदितं श्रुतिवाक्येन छन्दः शिक्षाश्च कल्पाश्च बृ.गौ.१५.५३ कपिल ६६५ चोदिता यास्तु तासाञ्च कपिल ६३४ छंदः शिरः शब्दशास्त्र भार १३.१८ व २.३.१११ चोदितो गुरुणा नित्यं छन्दश्च देवी गायत्री मनु २.१९१ छन्दश्च परमा दैवी वृ हा ३.१८३ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणात श्लोकानुक्रमणी छन्दश्च परमादेवी वृ हा ३.२ ४५ छिन्ननास्ये भग्नयुगे मनु ८.२९१ छन्दः सर्वासु वाऽनुष्टुप् वृ परा ११.१९१ छिन्नपादा तु गायत्री वाधू १४३ छन्दसामेकविशानां कात्या २७.२० छिन्नं प्रभिन्नं स्फुटतं भार ११.२ छन्दसां पोषणात् बृ.या. ४.३६ छिन्नभिन्नहतोन्मृष्ट नष्ट नारद २.१ २३ छन्दस्तथार्ष सहदैवतेन वृ परा ११.३ ४५ छिन्ने दग्धेऽथवा पत्रे वृ हा ४.२३० छन्दस्तु देवी गायत्री व २.६.६९ छिन्ने यदि प्रमादाद्वा भार १६.३२ छंदस्तु देवीं गायत्री भार १७.३ छिन्नोत्पन्नास्तु ये केचित व १.१८.५ छन्दांसि कूवरे सप्त वृ हा ६.२९ छुन्छुन्दरीः शुभान् गंधान् मनु १२.६५ छन्दांसिपादौ वेदस्य ब्र.या.१.४१ छेदने चैव यंत्राणां मनु ८.२९२ छन्दोदैवतमार्षेयं वृ परा ११.१८४ छंदोनुष्टुग्विश्वादेवा भार ६.४७ जकारपञ्चकं त्वेकं आपूं ४७५ छन्दोभिर्विनियोगैश्च वृ परा २.४० जगज्जगाम लोकानाम विष्णु १.१९ छन्दोभि सह युज्यन्ते वृ.गौ.७.२४ जगतः करणत्वं च वृ हा ८.१५२ छन्दो यज्ञानृषीन् वृ परा २.१७० जगतश्च समुत्पत्ति मनु १.१११ छन्न पञ्चोशना शान्त्याः वृ हा ५.३५६ जगतेघृतं सर्वमनडघद्धि वृ परा ५.४७ छपेटिकाप्रदानेन लोहि २७९ छलं निरस्य भूतेन जगत्करणभूतान्ता विद्ये शाम्डि १.६१ या २.१९ जगत्कृत्यं जगत्कती कण्व १९७ छागस्य दक्षिणे कर्णे बौधा १.४.२ जगत्परायण नारायण वर्णनम् विष्णु ९८ छादनाच्छन्द उद्दिष्टं वृ परा २.४२ जगदाधानसिद्ध्यर्थं बृह ९.४७ छायाकूपनदी गोष्ठे औ २.३५ जगदेतन्निराकन्दं नतु शंख ७.१२ छायानुवर्तिनी नित्यं लोहि ६५९ जगद्वाधिर्यकृन्नादं दण्द वृ परा ११.१३५ छायामन्त्यश्वपाकानां वाधू ४२ छायायां अन्धकारे वा जगाम कश्यपं द्रष्टुं विष्णु १.२२ मनु ४.५१ छायायां अन्धकारे जगुप्सा सा प्रक्रथिता स्व कपिल ७९७ व १.६.१३ जग्ध्वा __ छायां यथेच्छेच्छर चैव वराहञ्च औ ९.२७ कात्या १२.३ जग्ध्वा परेऽझुपवसेदेष अत्रिस ११८ छाया श्वपाकस्यारूह्य औ ९.९० जघनंच घनं मध्यं विष्णु १.२७ छायासु सोमोद्भवजासु प्रजा २७७ जघनेन गार्हपत्यं बौधा १.७.२४ छाया स्वो दासवर्गश्च मनु ४.१८५ जघनेनाऽऽहवनीयं बौधा १.७.२१ छायेयं पुरुषस्यैवं वृ परा ७.९३ जघन्या याति तिर्यक्षु वृ.गौ.३.४९ छायेवानुगता स्वच्छा व्यास २.२७ जङ्गमानां त सर्वेषां कण्व ३३४ छित्वालिङ्ग वधस्तस्य ब्र.या. १२.५८ जघान्तं जानुपर्यन्तं छित्वा हस्तौ प्रथमतः भार ४.४ कपिल ८६० छिद्रेष्वेतेषु विप्राणां मनु ३.१५१ जटिलं चानधीयानं औ ३.७५ जटिवमग्निहोत्रित्वं जटिव पु १७ छिन्दते पूर्वदेहस्तं बृह ९.८२ जठराग्ने क्षयं चैके - वृ परा ४.१८४ छिन्ननस्येन यानेन यार.३०२ जठरे रक्तवर्णा तु वृ परा ४.८४ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ स्मृति सन्दर्भ जडमूकान्धवधिर कात्या ६.५ जन्मप्रभृति यत्पापं अत्रिस ३३३ जडमूकान्धबधिर मनु ७.१ ४९ जन्मप्रभृतिसंस्कारे आप ९.२१ जगमूढान्धमत्ता ये मूक कपिल ७९० जन्मप्रभृतिसंस्कारे आंगिरस ६४ जथाकथंचितं पिण्डानां या ३.३ २४ जन्मभूम्यादिकं तत्र आंपू ४७८ जनकस्य न किंचित वृ परा ७.३९७ जन्मः वैधृतौ पुण्ये वाधू ७३ जनकाद्यैर्नृपवरैः शिष्यै बृ.या. १.२ जन्मशारीरविद्याभिराचारेण आंउ ४.९ जननमरणयो संनिपाते बौधा १.५..१२३ जन्मान्तरसहस्रेषु विष्णु म १०७ जननस्य च मध्ये तु व २.६.४५२ जन्मान्तरसहौः तु वृ.गौ. १.३४ जननादेव दौहित्रः तत् लोहि ३३६ जन्माष्टमी तथाशोकी ब्र.या. ९.३५ जननी भगिनी धात्री वृ हा ६.१८४ जपकाले न भाषेत ब.या.७.१४६ जनने तावन् मातापित्रो बौधा १.५.१२५ जपकाले न भाषेत ल व्यास २.३१ जनने मरणे चैष शंख १५.१ जपच्छिदं तपश्छिदं यच्छिद्रं शाता १.२६ जनन्या जनकश्चेति जनको कपिल ४२० जप तर्पण होमादौ वृ परा ११.१५३ जनन्या दोहदाभावे वृ परा १२.१७९ जपता जुह्वतां चैव आंउ १२.१२ जनन्यां संस्थितायां मनु ९.१९२ जपन् द्वादशवारं तु वृ हा ३.३९ जनः पादं वामनेत्रेतपः विश्वा २.३६ जपन्नेव तु गायत्री बृ.गौ.. १७.१२ जनमत्या ज्ञातिमत्या बंधु कपिल ४८५ जपन्वन्यन्तमं वेदं मनु ११.७६ जनलोकं कटिदेशे बृ.या. ५.६ जपन् वै पावनी देवी बृ.या. ४.६० जनानां श्रृण्वतां मार्गे वृपरा ६.३७० । जपन्वै वैष्णवान्सूक्ता व २.७.५१ जनार्दन स्तथा पy वृ हा ७.१२५ जपमोदनहोमांस्तु शाण्डि ४.१२४ जनार्दनं हृदिन्यस्य विश्वा २.१८ जपमालाविशेषश्च भार ७.८ जनिष्यन्ति विशेषण नारा ५.२५ जपयज्ञजलस्थं च व्या ३६४ जनिष्यमाणानिच्छन्ति वृ परा ६.१९३ जपशङ्ख्यानुगुणनव्यापारेण शाण्डि १.३० जनेष्वयं प्रसिद्धत्वा भार १८.४८ जपस्तपः श्राद्धकर्म वाधू २०० जन्मकर्मपरिभ्रष्टः पराशर ३.६ जपस्थानांत्तरेव्याख्या भार १०.६ जन्मकुशादि नियमः विष्णु ७९ जपस्याथ प्रवक्ष्यामि वृ परा ३.१ जन्मजन्मसुद्दीर्धायुः प्रजावान् कपिल ६१४ जपस्येकस्यैकर्मणिं । भार ६.१०३ जन्मजात्यनुसारेण वृ परा ८.८७ जपस्येह विधिं वक्ष्ये बृ.या. ७.१२९ जन्मज्येष्ठेन चाह्वानं मनु ९.१२६ जपहोमविहीनन्तु न वृ हा ७.३०४ जन्मत्रयाराणर्कदिव __ भार ५.४ जप होमादि कर्तव्यं वृ परा ९.३७ जन्मद्विवर्षगे प्रेते औ ६.११ जपहोमार्चनारंभे स्मृत्वा भार १९.३७ जन्मना यस्तु निर्विणो शंख ७.९ जपहोमैरपैत्येनो मनु १०.१११ जन्मनैव हि विख्याता लोहि ४४७ जपं करोति यस्सोऽयं कण्व १८८ जन्मप्रभृति यत्किंचित् व्या ३६७ जंप देवार्चनं होम पराशर २.६ जन्मप्रभृति त्किचित् मनु ८.९० जपं होमं तथा दानं ब्र.या. ३.७ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३३५ जपांग्गुलिसमस्थू भार ७.३९ जपवोऽहुतो हुतो होमः मनु ३.७४ जपासने स्वकार्यार्थ विश्वा ८.५ जपो होमस्तथा दानं अ ४ जपित्वा तु महारुद्र शाता ३.२ जप्तं हुतं तथा दानं वृ हा १९३ जपित्वा त्रीणि सावित्र्याः मनु ११.१९५ जप्तुकामः पवित्राणि शंख ८.५ जपित्वा दशसाहस्रं वृ हा ३.१९५ जप्त्वा कृष्णमनुं वृ हा ५.१११ जपित्वा वैष्णवान्सूक्ता व २.६.३८० जप्त्वा कौत्समपेत्येतद् व १ २६.६ जपेच्चदशसाहस्रं व २.६.४०३ जप्त्वाखादिर समिधो वृ परा ११.१७६ जपेच्च भगवन् मंत्रान् वृ हा ७.२६१ जप्त्वा च श्रीफलैर्तुत्वा वृ परा ११.१७२ जपेत्तु तुलसीकाष्ठः वाधू १४२ जप्त्वा च पौरुष सूक्तं व २.३.१३ जपेत्पीयूष दैवत्यान् वृ हा ४.१ २३ जपत्वाऽथ मन्त्र व ७.९९ जपेत्पृथिव्यै स्वाहेति ___ कण्व ६२० जप्त्वा चैव तु गायत्री आश्व १.१३६ जपेत्सहनं गायत्री ब्र.या. २.१९४ जप्त्वा पुष्पांजलि वृ हा ४.१३२ जपेदअन्यत्र वा विद्वान वृ परा ११.१७० जप्त्वाभिगमनं मन्त्र शाण्डि २.८४ जपेद् अष्टाक्षरं मंत्र वृ हा ३.१५२ जप्त्वा मंत्र गुरु वृ हा ८.८६ जपेद्अष्टोत्तरशतं व २.७.१०२ जप्त्वा वै वैष्णवान् वृ परा ७.२५९ जपेद्अष्टोत्तरशतं भार ६.१०० जप्त्वा व्याहृतिभि वृ परा ७.२५६ जपेद् ऊर्ध्ववता सूक्त व २. ७.३८ जप्त्वा सहस्रं गायत्र्य अत्रिस ११६ जपेद्गोष्ठे तथारण्ये व परा ११.१६९ जप्त्वा सहस्रं गायत्र्य बृ.या.४.५८ जपेद्वादशलक्षाणि गायत्राः अ ८८ जप्त्वा सहसं गायत्र्य वृ हा ६.३२१ जपेद् ब्रह्मा पवित्र वा शाण्डि ५.४ जप्यकालेषु संचिन्त्य बृ.या ४.७० जपेद् भोगतया मंत्र वृ हा ८.२२३ जप्यान्तु मम गायत्री बृ.गौ. १९.२६ जपेद्वा पौरुषं सूक्तं अ ३४ जप्यात्यन्तैकनियम कण्व १७२ जपेद्वाप्यस्यवामीयं ___ अ १२५ जप्यानि घ्नन्ति पापानि वृ परा ४.५१ जपेन देवता नित्यं भार ६.१६६ जप्यानि ब्रह्मसूक्तानि वृ परा ३.२ जपेन देवता नित्यं ल हा ४.४५ जप्येनैकेनं सिद्धेन वृ परा ४.६० जपेन येनेह कृतेन वृ परा ४.१०७ जप्येनैव तु संसिद्ध्येद् मनु २.८७ जपेननिषिद्धकर्माणि __ मार ८.१ जप्येनैव हि संसिध्येत् वृ.या.७.१३० जपेनैव तु संसिध्येद् शंख १२.२८ जप्येनैव तु संसिध्येत् व १.२६.१२ जपेनैव हि संसिद्ध्येद् बृह १०.१५ जप्ये यथाविधा कार्या वृ परा ४.२ जपे पारायणे चैव विश्वा ६.५३ जमदग्नि भरद्वाजस्त्वेते वृ हा ३.१८२ जपेश्मशानाक्रमेण भार ४.३९ जम्बूद्वीपं ततः प्रोक्तं शंख १३.५ जपेहोमे तथा दाने दक्ष १.११ जम्बूद्वीपं भारतस्य कण्व २० जपोपस्थानयोरन्ते सौर विश्वा ७.१४ जम्बू-निम्ब-कदम्बैश्च वृ परा १०.३७५ जपोमोक्ष प्रदोंग्गुष्ठं भार ७.१८ जम्बू पुन्नागपणे व २.६.२०२ जपो विशेष फलदः भार ७.६ जम्मारिका सुजम्बीरा वृ परा ७.२२७ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ जयकामोऽर्चयेद् बृ.गौ. २१.३१ जलाक्षताभ्यां संस्कृत्य जयन्त्यामुपवासश्च _ व २.६.२५० जलाग्निपतने चैव जरागच्छजपेन्मन्त्रः ब्र.या. ८.२२२ जलाग्निबन्धनभ्रष्टा जरायुजाण्डजादीनि वृ परा १२.२०१ जलाग्न्नुवन्धनभ्रष्टाः जरायुजैः चाण्डवैः च वृ .गौ. ५.२८ जलादिपु विपन्ना ये जराशोकसमाविष्टं मनु ६.७७ जलादीनि च दिव्यानि जरां चैवा प्रतीकारां मनु १२.८० जलाधुन्धनभ्रष्टाः जलकुंजर गोधाश्च वृ परा ११.२३६ जलाधारश्च कर्तव्यो जलकुम्भं द्विज श्रेष्ठ वृ परा १०.८८ जलानि तण्डुलामासा मुद् जलकेनं नीलवस्त्र व २.६.४७८ जलान्ते वाग्मन्यगारे जलक्रीड़ारुचि शुभं विष्णु १.२ जलान्नपानं गन्धादि जलक्रीड़ाविधानं च कण्व ६६६ जलाभावे किमपि तन् जलधेनुं प्रवक्ष्यामि वृ परा १०.८७ जलावासाः प्रयतो जलजानि च सर्वाणि व २.६.३० जलावगाहनं नित्यं जलतीरं समासाद्य लता ४.३३ जलावगाहनं स्वप्ने जलदस्तृप्तिमतुला संवर्त ८० जलाशयेषुजननं यस्या जलपानं पिवेन्मासो बृ.गौ. १७.६ जलेचरांश्च जलजान् जलपूर्णानि भांडानि व २.५.३९ जले चैव जलं देयं जलपूर्व प्रदधातु पितृतीर्थेन कपिल २३२ जले जलगत शुद्ध स्थल जलबुबुदच्चायं बृह १२.१५ जले जलस्त आचामेत जलबुद्बुद्संकाशं आपूं ३१५ जले जलस्थ आचामेत् जलमंजलिना दद्या भार ११.१११ जलेन तेन वै हौता जलमजलिनाऽऽदाय आश्व १.४० बलेनत्रिषवणास्नायी जलमध्यस्थिातो विप्र बृ.या. ७.२५ जले निमग्न उन्मज्य जलमध्ये च य कश्चिद् वृ परा २.२१३ जलेऽपि हि जलेनैव जलमध्ये वामकरे दक्षिणे विश्वा २.१ जले वा प्रविशेदग्नौ जलमेकाहमाकशे स्थाप्यं या ३.१७ जले संलिख्य गायत्र्या जलशायी जगज्ज्योति वृ परा १०.९७ जले स्थलस्थो नाचामे जलस्थमुधृतांवापि भार ४.६ जलोदरं यकृत प्लीहा जलस्थश्चं जलेसिंचेत वृ परा २.२०१ बलोकं जालपातञ्च जलस्नानं सर्वथा कण्व १६३ जलौका रक्तमादत्ते जलं अर्चन पात्र स्थान् आश्व २३.९४ जस्मात् अन्नेन तुष्यन्ति जलंपिबेन्नाञ्जलिना या १.१३८ जहाति भगवत्कर्म जलंपीत्वा तयोर्विप्र वृ हा ६.३८६ जाग्रतः स्वपन्ः वाअपि जलं पीत्वा तु तृप्यन्ति वृ परा ६.१२२ जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तयर्थ स्मृति सन्दर्भ कण्व ६५७ पराशर १२.५ ब.य. १.३ यम २ ब्र.या ५.२७ वृ परा ८.८६ लघु यम २२ वृहस्पति ४३ लोहि ३५२ बु.या. ७.१४२ ब्र.या. ४.८८ लोहि ३५४ औ ८.१४ वृ परा २.११९ वृ परा ११.५ भार १८.४६ शंख १७.२६ दा १७ वृ.गौ. ८.४३ संवर्त १७ भार ४.७ आश्व २.७२ अ ११३ शंख ९.२ वृ परा ४.१ ४५ औ ८.३४ कण्व २७२ पराशर १२.१६ शाता १.८ औ ९.२६ दक्षे ४.१० वृ.गौ. ६.२६ शाण्डि ५.३२ वृ.गौ. ३.८६ विश्वा ४.२१ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्याथ जाग्रत् स्वप्नं सुषुप्तं जाग्रत् स्वप्नं च सुप्तं जाग्रत्स्वप्नं सुप्तञ्च जाग्रंद्मि वा प्रसुप्तैः वा जाघ्नयंमृद्वादशांहुत्वा जांगलं सत्यसम्पन्नं जातकर्मणि वा चोले जातकर्मादिकं प्रोक्तं पुनः जातकर्मादि कर्म्मणां जातवेदं सुवर्णञ्च जातके नैव मृतकं क्षयं जातके मरणे चापि सूतकं जातपुत्रे पिता स्नात्वा जातमात्रः शिशुस्तावद् जातमात्रस्य तस्यैव विश्वा ४.७ बृ. या २.८८ बृ. या. २.१२४ ब्रा.या. २.१७९ वृ.गौ. ५.३४ ब्र. या. ८.२२९ मनु ७.६९ वृ हा २.१९३५ अत्रिस २१४ व्या ८६ जातमात्रस्य व तस्य जातमात्रेण पुत्रेण पितॄणां जातये वाति सूक्तेन जातरूपं न दद्याच्च सुगन्ध जातरूपं सुवर्णञ्च जातरूप्यं सुवर्ण तु दिवा जातवीर्य्यबलैश्वर्य्याः पराशर ७.१२ बृ.य. ४.२० कपिल १११ वृ हा २.२५ दक्षत १.४ नारा ५.१४ औ ६.१४ अत्रिस ५४ वृता ५.३९६ कपिल ९५२ यम १९ बृ. य. ३.९ वृ.गौ. १०.३६ वृ परा ११.३४० जाताः सुरक्षिताया जातिकेतककुन्दाद्यैः जातिजानप्रदान् धर्मान् जाति प्राधान्यकं नास्ति जातिभ्रंशकरं कर्म जातिभ्रंशकरं प्राहुस्तथा जातिमात्रोपजीवी वा जातिरूपवयोवृत्ति जातिं रूपं च शीलं च जातिर्विद्या च रूपं च जाति-विद्या-वय- - शक्ति जाति विप्रो दशाहेन जातिस्मरः च भवति जाती दर्शनमात्रेण जातीपुष्पं तथार्कच जातीफलञ्च कर्पूर जातीफलं धात्रीफल जातीर्यद्योगमात्मानं तदा जाते कुमारे तदह आमं जाते तु सद्यः पतितस्त जातेन शुध्यते जातं जातेन्द्रियाणां दौर्बल्ये जाते पुत्र पिता स्तात्वा जातेऽपि चौरसे भूयः विश्वा ७.५ जाते विप्रो दशाहेन औसं २४ जाते सुते पिता स्नायान् औसं ३ जातवेदस इत्यत्र जातवेदस इत्येषां प्रातः जातः सुवर्ण इत्युक्त जात सूत्रौऽत्र निर्दिष्टः जातस्य जातकर्म जातस्य बालरोगाद्यैः जातस्य लक्षणं कृत्वा जातस्यापि विधिर्दष्ट जातं जातेन शुद्ध स्या जाता यदि तदा तस्या जातायामपि तस्याः कण्व ७०४ जाना ये त्वानियुक्तायामेकेन नारद १४.१८ जानुद्वयेवरेण्यंतु जातोऽधिकः प्रदत्तात्तु जातोऽप्य नार्यादार्यायां जातो निषादाच्छूद्राया कात्या ८. ९ जात्यशुक्तिललाटा च संवर्त ४२ जात्यादिगुणयुक्ताय दा १२५ लोहि १२८ वृ परा ६.१४९ वृ परा १२.१८० जात्युत्कर्षा युगे ज्ञेय जानकी लक्ष्मणोपेतं जानीयादक्षरं देव्याः ३३७ व्यास २.५५ वृ हा ७.७५ मनु ८.४१ बृह १२.१६ नर ११.१२५ नारा १.१६ मनु ८.२० या ३.१५१ वृ परा ६.२० वृ परा ६.१९ वृ परा ६.१८ दक्ष ६.९ वृ.गौ. ६.८८ दा ५१ बृ.या. ३.६० वृ हा ४.७३ व २ ६.११५ शाण्डि ३.६८ औ ७.४ कण्व १३५ लघुयम ७६ कपिल ७०७ व २.२.३ आंपू ३६३ पराशर ३.४ आश्व ५.१ आंपू १०११ मनु १०.६७ मनु १०.१८ वृ परा १०.११३ वृ परा ६.३ या १.९६ वृ हा ५.९८ वृ परा ४.१८ भार६.८३ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नः सर्गे ३३८ जानोरधस्तास्तविले जान्वा च दक्षिणं दर्भः जान्वा वै पाणि संगृह्य जापारूदेतीतिजपेत् जापिना होमिनां चैव जाप्ये तु त्रिपदा ज्ञेया जामयोऽप्सरसां लोके जामयो यानि गेहानि जामाता श्वशुरो बन्धु जाम्बूनदविचित्रेण जायते हि विशेषेण जायानामग्रजस्त्याज्यः जायन्ते जायन्ते बहवः पुत्रा जायायास्ताद्धि जायात्वं जायोक्ता तेन भर्ता वै जारे चौरैत्यभिवदन् जारेण जनयेद् गर्भगते जालसूर्यमरीचिस्थं जालान्तरगते मानौ जिघांसन्तं जिघांसीयान्न जितेन लभते लक्ष्मी जितेन्द्रियः स्यात् सततं जितेन्द्रिया जितात्मानो जितेन्द्रियान् शुभाचारान् जितेन्द्रियैस्तु भाव्यं जितोधर्मश्च पापेन जित्वा स सकलान् जित्वा सम्पूजयेद्देवान् जिह्यं त्यजेयुः निर्लाभ जीनकार्मुकवस्तावीन् जीमूततस्येति सूक्तेन जीर्ण नीलं संधि जीर्णशक्तिमतो नुश्चेत्त जीर्णोधानान्यरण्यानि स्मृति सन्दर्भ भार ४.८ जीर्णोवयुक्तो योदंडो भार १५.१३० व्यास ३.१३ जीर्यन्ति जीर्यतः केशा व १.३०.१० __ व २ ३.६६ जीवतो वाक्यकरणात् वृ परा ६.१९६ व २ .४.७४ जीवतो वाक्यकरणे ब्र.या. ४.१४७ व १ २६.१३ जीक्त्तातोऽपिकर्ता आंपू ७२१ वृ परा ४.९९ जीवदेतेन राजन्यः मनु १०.९५ मनु ४.१८३ जीवनांशैकसंलब्धभूमिका लोहि ५४५ मनु ३.५८ जीवन्तमति दद्याद् कात्या १६.१५ वृ परा ७२० जीवन्ति जीविते यस्य व्यास ४.२१ वृ.गौ. ७.३९ जीवन्ति वृत्या रस दान वृ परा ६.२८१ लोहि ४६९ जीवन्तीनां तु तासां ये मनु ८.२९ लोहि २७२ जीवन्नपि भवेच्छुरो वृ परा ८.९१० वृ.या. ३.२० जीवन्नात्मत्यागी कृच्छ्रे व १.२३.१७ अत्रिस ५५ जीवन् पितामहोयस्य व्या ६२ वृ परा ६.१९० जीवन्मुक्तश्च ब्रह्मैव कण्व २५२ वृ परा ६.१८१ जीवन्वापि मृतोवापि वृ परा ६.५० या २.३०४ जीवपुत्रा तु या नारी कपिल ५९३ पराशर १०.३० जीवमात्रोभवेच्छूदो ब्र.या. २.८८ या १.३.२ जीवसंज्ञोऽन्तरात्माऽन्यः मनु १२.१३ मनु ८.१३२ जीवातुश्च ततःश्राद्ध कपिल ५५ ब्र.या. १२.४६ जीवात्मा कायमध्यस्थ वृ परा १२.३१७ पराशर ३.३९ जीवात्मा योजितः षष्ठ व परा ६.१०८ ___ औ ३.१५ जीविताथमपि द्वेष औ १.३१ विष्णुम ४८ जीवितव्ये च तदिप्राः ब्र.या.११.२ व २.७.११ जीवितात्ययमाए,.i मनु १०.१०४ वृ परा ७.२८ जीवते चैव तृप्ताय औ ९.१३ वृ परा १.३५ जीवे क्षीणेऽथवा पुण्यकामी वृहा ६.२९१ विश्वा १.१६ जीवे पितरि चेच्छाद्धे आंपू १०६ मनु ७.२०१ जीवो यत्र विशुद्येत वृ परा ६.९२ या २.२६८ जीवो वैश्वानरोज्ञेयो ब्र.या. २.१६७ मनु ११.१३९ जुगुप्सितन्तु यच्चान्नं बृ.गौ. १३.७ वृहा ६.३२ जुद्धप्येनो न तं स्पृशेत कात्या १४.१४ __ व्या ३८८ जूहमाच्च दशांशेन शाता २.३३ आंपू २९० जुहुयाच्चरूणा वापि वृहा ३.२७० मनु ९.२६५ जुहुयात् कुसुमैः शुभै वृहा ३,३२० Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी जुहुयात् त्र्यम्बकं वृ परा ४.९७६ ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे वृ परा १०.३४६ जुहुयात् सार्षपं तैलं व परा ११.२२ ज्येष्ठोत्तरकरान यम्मान कात्या २.९ जुहुयादग्निको विप्रो वृ परा ४.१८५ ज्येष्ठो भ्राता यदा दा १६० जायादग्नये स्वाहा आश्व २.५८ ज्येष्ठो भ्राता यदा अत्रिस १०९ जुहुयादयुतं वह्नौ वृ हा ७.९० ज्येष्ठो भ्राता यदा लघुशंख ६६ जुहुयादाहुतीस्तिम्रो वृ परा ११.१०० ज्येष्ठो भ्राता यदा पराशर ४.२४ जुहुयाद्गार्हपत्यं यो भू बृ.गौ. १५.३६ ज्येष्ठो यवीयस्ते मनु ९.५८ जुहुयाद् ग्रहणेभानोः भार ९.२७ ज्येष्ठोऽहमेकतनयः पितृभ्यां लोहि २८६ जुहुयाद् पुष्यैः सहसं वृ हा ३.१ ४० ज्यैष्ठमासे तु भो बृ.गौ. १७.३६ जुहुयाद रुद्र भागादीन आश्व १३.६ ज्यैष्ठ्यकानिण्ठ्यधर्मेषु लोहि ५० जुहुयादै गार्हपत्यो वृ हा ६.७० ज्योति मेप्येकी ब्र.या. ३.१४ जुहुयाद् व्यंजन क्षार वृ परा ४.१५९ ज्योतिर्मयानि छिद्राणि शाण्डि ५.२४ जुहुयान्मूर्द्धनिकुशा ब्र.या. १०.१६ ज्योतिर्विदो ह्यथर्वाणः अत्रिस ३८३ जां दक्षिणहस्तेन पराशर ५.१९ ज्योतिश्चैव तु जीवं . ब्र.या. ३.४८ जुहुत्येनुदितेभानावित्येकं व्यास ३.४ ज्योतिषश्च विकुर्वाणादापो मनु १.७८ बुहत् चापि जपन्वापि अत्रि ५.१३ ज्योतिषां ज्योतिरित्याहुः बृह ९.११९ ज्यायसीमपि षोडश व १ १७.५१ ज्योतिष्टोमादिसत्राणां संवर्त ६३ ज्यायांसमनयोर्विधात् मनु ३.१३७ ज्वराभिभूता या नारी वाधू ४ ज्येष्ठ एवं तु गृहणीयात् मनु ९.१०५ ज्वरे रौद्र जपेत् कर्णे शाता ४.३१ ज्येष्ठता च निवर्तेत मनु ११.१८६ ज्वलदग्नि समेरेद्यो विष्णु म ८५ ज्येष्ठपत्नीसुतस्यैव चौर कपिल ६९८ ज्वलनं मध्यं संस्थाप्य ब्र.या.२ १३७ ज्येष्ठपुत्राः पितृणां कपिल ७९१ ज्वलनो जननोव् __ आपू ४८५ ज्येष्ठः पूज्य तमो लोके मनु ९.१०९ ज्वालाचार्षिष्प व कव्यब्र.या. १०.४१ ज्येष्ठभाया कनिष्ठो वा नारद १३.८७ ज्वाला हविष्णवी चैव ब्र.या. ८.२७५ ज्येष्ठश्चेद्यदि निर्दोषो अत्रिस २५७ ज्वीकृष्णाजिनं तथा देवता कपिल ३१० ज्येष्ठश्चैव कनिष्ठश्च मनु ९.११३ ज्ञातमित्या कृता बन्धु हि २५३ ज्येष्ठस्तु जातो ज्येष्ठायां मनु ९.१२४ ज्ञातयः प्रभवन्त्येव लोहि २२७ ज्येष्ठस्य विशं उदार मनु ९.११२ ज्ञातव्यं हि प्रयन्तेन बृ.या. १.३८ ज्येष्ठा बहुभार्यस्य कात्या २०.४ ज्ञातज्ञातेतिरण्डे लोहि ४३५ ज्येष्ठाद्वितीययोगरात्ततेन लोहि ९३ ज्ञातिभार्याश्च निखिला लोहि ४२४ ज्येष्ठायांशोऽधिकोदेयो । नारद १४.१३ ज्ञातिभ्यो दविणं दत्त्वा मनु ३.३१ ज्येष्ठेन जातमात्रेण मनु ९.१०६ शातिष्वपि च तुष्टेषु __ औ ५.७६ ज्येष्ठेन दत्तपुत्रेण ___ आं पू ४४ ज्ञातिसम्बन्धिभिस्त्वेते मनु ९.२३९ ज्येष्ठेन वा कनिष्ठेन बृ.य.२.२१ ज्ञाती खलु सगोत्रस्य धनार्थ कपिल ४९० ज्बेठेन्दचाप भदाया वृ परा ६.२७३ ज्ञातीनामभ्यनुज्ञा चेत् लोहि ५१५ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झ ३४० स्मृति सन्दर्भ ज्ञातो विप्रमुखादाजा सतं लोहि ६३१ ज्ञेया एव न चान्येऽत्र कण्व ३८४ ज्ञात्वा चानुतिष्ठन् व १.२ ज्ञेयो बहूदको नाम वृ परा १२.१६७ ज्ञात्वा तप्प्रीतये सर्वान् वृ हा ५.२५ ज्ञात्वा तु निष्कृति पराशर ६.४२ ज्ञात्वा देशं च कालं च वृ परा ८.७६ झल्ला मल्ला नटाश्चैव मनु १२.४५ ज्ञात्वा देशं च कालं च वृ परा ८.९३ झल्लो मल्लश्च राजन् मनु १०.२२ ज्ञात्वा पराधं देशाञ्च या १.३६८ झष प्रेवशे सर्वेषां वृ परा १०.२७७ ज्ञात्वापराधं मनुजस्य वृ परा १२.८४ झात्वादीनांतु विज्ञेया कपिल १६० ज्ञात्वायोपास्तिमाचरेत् भार ६.१५२ ट ज्ञात्वा विप्रस्त्वहोरात्र पराशर ११.१३ टिट्टिभं जालपादंच सवंर्त १४६ ज्ञात्वैताननृते दोषान् नारद २.१९८ ज्ञात्वैतानि शुचिक्भ्यानि भार ९.६ ज्ञानकर्मसमायोगात् बृह ९.२८ ‘डामरे समरे वापि पराशर १०.१७ ज्ञानतीर्थन्तपस्तीर्थ ब.गौ.२०.१८ डिम्बाहवहतानां च मनु ५.९५ ज्ञाननिष्ठा द्विदाः केचित मन ३.१३४ डो (दी) लोत्सवोऽपि कण्व ६६५ ज्ञानानिष्ठेषु काव्यानि मनु ३.१३५ ज्ञानमम्यस्यमानं तु वृ परा १२.३३४ णकारो बलमित्युक्तः वृहा ३.२०८ ज्ञानयोगफलेनाय वृ परा १२.१९७ णकारश्च षकारश्च वृ हा ३.२९५ ज्ञानयोगे त्रिषाष्टिर्वो वृ परा १२.२७२ ज्ञान वैराग्य संपन्न . वृ हा २.६ त एते किल सर्वेऽपि आंपू १०५४ ज्ञानं एव तथायुः च वृ. गौ, ६.१९ ज्ञानं तपोग्निराहारो मनु ५.१०५ त एतेद्वादशादित्याः सर्व भार ११.५९ त एते निखिलाः पुत्राः ज्ञान धनमरोगित्व लोहि १९८ वृ परा ४.१८९ ज्ञान प्रधानं न तु बृह ९.२९ त एते शुभदेवाः स्यु कण्व ६७६ त एव पिण्डाः पितर ज्ञानं भवति विज्ञानात् शाण्डि ४.२१२ आंपू ८६ ४ ज्ञानं विद्याश्च सकलं भार १२.४७ त एवं सृजते लोकान् विष्णु म २२ ज्ञानेन येन विज्ञातुर्ज्ञान वृ परा १२.३३३ त एव हि त्रयो लोकास्त मनु २.२३० ज्ञानेऽज्ञानतो वाऽपि __ आंपू ५४४ तकारादियकारान्तैः चतुर्विशति विश्वा २.४ ज्ञानेनैव तु वक्तव्यं ब्र.या. ८.१३५ तक्षणं दारुश्रृंगास्थनां या १.१८५ ज्ञानेनैवापरे विज्ञो तच्चक्षुश्च ऋचा जप्त्वा ब्र.या. ८.३३६ । मनु ४.२४ ज्ञानोत्कर्षश्च तस्य तच्चर्याज्ञाननिष्ठाद्याः सर्व ल हा ४.७६ लोहि ५९४ ज्ञानोत्कृष्टाय देयानि मनु ३.१३२ तच्च पञ्चशताब्दानामे आंपू २८२ ज्ञापितं शूदगेहे नं वृ परा ८.३२८ तच्च श्रुतिविरोधत्वान्न वृ हा ३.७३ शेज्ञे प्रकृतो चैव तच्चापि वैष्णवं धाम या ३.१५४ आंपू ११३ ज्ञेयं चारण्यकमहं तच्चेदन्तः पुनरापते या ३.११० व १.४.२२ तच्चैतच्चद्वयंग्राह्य कपलि ३६९ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तच्छब्देन तु यच्छब्दो तच्छयोरनुवाकेन शांत्यर्थ तच्छवं केवलं स्पृष्ट्वा तच्छान्तं निर्मलं शुद्ध तच्छान्तिस्तेन नान्येन तच्छाश्वत ब्रह्मलोका तच्छास्त्रमेव सच्छात्र तच्छुद्ध ज्योतिषां तच्छछुभ्रं ज्योतिषां तच्छ्रुध्यर्थ रसायां तच्छुल्वनेत्रिवलया तच्छूद्राणां विधि प्रोक्तो तत्छेदपापशुद्ध्यर्थ तच्छेषतिलदर्भैस्तु पूर्व तच्छौर्यकृत्यमित्येव निश्चित तच्छ्राद्धदेवतानां वा श्राद्ध तच्छ्राद्ध भवतीत्या तच्छ्रावणं परान्नं तच्छ्रुत्वा ऋषिवाक्यन्तु तजश्च मायावी तज्ज्ञात्वा परमं तत्वं तज्ज्ञानमात्रे विकलो बृह ९.४१ आश्व १.४८ संवर्त १७४ कूप तडागपालिपष्ठे तु तडागभेदकं हन्यादप्सु तडागसेतुं यो भिन्द्यात् तडागस्यापि शुद्ध्यर्थं तडागादि निपानानां तडागान्युदपानानि तण्डुलानामुत्सर्ग वृ परा १२.२५९ आंपू १९० कपिल ९३२ शाण्डि १.५० वृ परा ४.३५ वृ परा ४.१३३ आंपू २२० भार १५.७८ ब्र. या. ८.१५४ तज्जनस्यापराधित्व वृ हा ८.१५६ तज्जपेन्मूलमनुभि प्राणायाम विश्वा ३.४४ कण्व २७३ वृ हा २.४४ भार १६.४७ तज्जातानां परं तत्तु तज्जातिनालं तस्य तज्ज्ञातिप्रार्थनापूर्वं व्यूहयित्वा कपिल ३९१ भार १५.३६ वृ परा ६.९७ कण्व २६० दा १५६ वृ परा १९.२१२ मनु ९.२७९ वृ हा ४,२१० वृ हा ६.३९२ वृ परा ११. २०७ मनु ८. २४८ बौधा १.६.४६ आंपू ७१९ लोहि २५८ लोहि ३४० आंपू ४१ वृ हा ६.२०५ पराशर १.३ तण्डुलं गरलं ज्ञेयं तुल्यं तण्डुलानवहंस्त्रीस्त्रीन् तण्डुलान् प्रकिरेदेखा तण्डुलांभःकरणं तद्वद् तण्डुलान् सफलान् तण्डुला व्रीहयश्चैव तण्डुलाः सहरिद्रास्तु तण्डुलोपरि संस्थाप्य तत आचमनं दद्यादनु तत आचम्य विधिवद् ततः आरम्भ षण्मासं तत उदकं समादाय तत एकं समुद्दिश्य ततः करुणया दृष्टया ततः कर्त्तारो यजमानः ततः कर्त्ताऽर्चयेदेनं ततः च मुक्ताः कालेन त तद्यदेतद्धर्मशास्त्र ततः कलशमादाय ततः कलियुगे प्राप्ते पादे ततः कालावर्तीर्णाश्च ततः कृत्वा इदं कर्म ततः क्रुद्धो जगन्नाथ ततः च अपि च्युतः कालात् ततः च अपि च्युतः ततः ते वासुदेवेन दृष्टाः ततः पंचामृतैः गव्यैः ततः परं च पिण्डेषु ततः परं न कर्मार्हः कृतं ततः पात्र समादाय ततः पितामहाश्चैव तथैव ततः पितृभ्योदातव्य ततः पीठस्य नैऋत्यां ततः पुनश्च संकल्प्य ततः पुराणाह संकल्पं ३४१ विश्वा ८.१४ आश्व २.३५ आश्व २.५ शाण्डि ३.९७ आश्व १०.३८ व्या ३१४ वृ हा ८.४९ व २.७.६३ ब्र. या. ४.१०८ शाण्डि २.४६ आश्व १२.१६ ब्र. या. ८.२४७ कपिल १०१ नारा ४.८ बौधा १.७.१६ आश्व १५.१५ वृ हा ८.११ नारा १.६ वृ.गौ. ७.८१ वृ परा ११.३१० वृ हा ८.१८३ वृ.गौ. ६.६१ वृ.गौ. ६.८२ वृ.गौ. ५.५३ व १.२४.७ वृ. गौ. १२.११ वृ हा ८.२८ कण्व ७७२ नारा ३.८ वृ.गौ. १६.१७ बृ.गौ. १०.२० व २.६.१८९ भार ११.३३ कण्व ६६० भार ७.५८ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ स्मृति सन्दर्भ ततः पुष्पांजलिं दत्वा मार ११.९५ ततश्चपि च्युतःकालादिह वृ.गौ. ६.१४० ततः पुष्पांजलिं दत्वा वृ हा २.१०२ ततश्चापि च्युतः कालादिह वृ.गौ. ७.८५ ततः पुष्पांजलि दद्या भार ११.११७ ततश्चापि च्युतः कालादिह बृ.गौ. १७.३९ ततः पूर्णाहुति हुत्वा कात्या ८.१० ततश्चापि च्युतः कालदिह बृ.गौ. १७.४४ ततः पूर्वाग्रदर्भेषु वृ परा २.१७६ ततश्चापि च्युतः कालादिहं वृ.गौ. १९.१५ ततः पूर्वादि दिक्षादौ भार ११.५१ ततश्चपि च्युतः कालादिहं बृ.गौ. १९.२३ ततः पूर्वोक्तहोंमैश्च प्राच्यो नारा ३.१६ ततश्चापि च्युतः कालादिहं बृ.गौ. १७.१५ ततः प्रक्षालयेत् पादौ ल हा ४.३४ तंतश्चापि च्युतः कालान् बृ.गौ. १७.९ ततः प्रक्षाल्य पादौ द्वौ वृ.गौ. ८.४२ ततश्चालोकयेदकं हंसः वृ.गौ. ८.५२ ततः प्रणम्य गोविन्दं बृ.गौ. २२.४३ ततश्चावसथं प्राप्य ल हा ४.२० ततः प्रदक्षिणं कृत्वा व २.७.१०३ ततश्चैव महानाम्नि आश्व १८.२ ततः प्रदक्षिणं कृत्वा वृ हा २.१७ ततश्चैवापसव्येन मधु आश्व २३.६२ ततः प्रदक्षिणं कृत्वा वृ हा २.११७ ततश्चैवाभ्यसेवेदं आश्व १.७३ ततः प्रदक्षिणं कृत्वा भार ७.९६ ततः श्राद्धेषु के मंत्रा प्रजा ९ ततः प्रदक्षिणं भक्तया भार ११.११५ ततः श्राद्धैकसाद् गुण्य आंपू ८९३ ततः प्रधानं होमञ्च व २.३.५६ ततः संस्तीर्य तत् स्थाने औ ५.४७ ततः प्रभृति देवेशं वृ हा २.१५१ ततः संस्तूय तान् आश्व २३.११ ततः प्रभृति पुत्रादौ ल हा ६.५ ततः संकल्पयेत्प्रातः भार ६.४२ ततः प्रयाति सविता ल हा ४.१५ ततःस जडतां प्राप्त शाण्डि ४.१७२ ततः प्रविश्य भवन व्यास ३.२७ ततः सद्भक्तितोदद्याद् भार ७.९७ ततः प्रसन्नवदने गायत्र्या भार ११.११८ ततः स धर्मविद्विप्रः ब्र.या .२.२०४ ततः या (प्रा) णस्य संत्तु भार ४.२९ ततः संतर्पयेद्देवानृषीन् बृ.या. ७.६१ ततः प्राणाद्याहुतयो वृ हा ८.५३ ततः सन्तर्पयैदे॒वान् स व्यास २.३५ ततः शक्ततरा पश्चाद कात्या ८.८ ततः सन्तुष्टमनसा वृ परा १.११ ततः शिर प्रदेशे तु प्राच्या नारा ५.४२ ततः संन्ध्यां प्रकुर्वीतं ___ कण्व १६८ ततः शिष्याहेतार्थाय ल हा ४.२१ ततः संध्यामुपासीत ल व्यास २.८६ ततः शुक्लाम्बरधरः या १.२९२ ततः सन्ध्यामुपासीत ल हा ४.६८ ततः शुद्धिमवाप्नोति पराशर १२.७० ततः सन्निधिमात्रेण पराशर १२,४८ ततः शौचं ततः पानं बौधा १.४.२० ततः सप्रणवां सव्याहृति शंख १२.८ ततश्व मुक्तः पापेन वृ.गौ. ९.१५ ततः समर्चयेत्ताक्ष्य वृ हा ७.१७७ ततश्चाऽऽग्नेय पर्यन्तं आश्व २.५१ ततः समस्तनिर्माल्यं भार ११.८० ततश्चापि च्युतः काला बृ.गौ.१७.५३ ततः संमार्जनं कृत्वा वृ हा ६.९७ ततश्चापि च्युतः कालात् बृ.गौ. १७.२८ ततः सपुष्पहस्तेन दक्षिणे भार ११.१०२ ततश्चापि च्युतः कालात् बृ.गौ. १७.४८ ततः सम्पूजयेद्देवं व २.६.२२० ततश्चापि च्युतः कालादिह वृ.गौ. ६.१३८ ततः संपूजयेद्देवं वृ हा ५.१२१ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३४३ ततः सम्पूजयेद्धरिम् व २.६.२४७ ततः स्विष्टकृतं कृत्वा आश्वा १४.८ ततसर्वप्रयत्नेन प्राणायाम । विश्वा ५.४० ततः स्विष्टकृतं हुत्वा आश्व ११.७ ततः स वासुदेवेति व हा ३.१७३ ततः स्विष्टकृत हुत्वा व २.४.८६ ततः सव्यं करंन्यस्य वृ परा ७.१८३ ततः स्विष्टकृतं हुत्वा व २.६.३८६ ततः साक्षातपुष्पाणि भार ११.७७ ततः स्विष्टकृतं हुत्वां वृ हा ८.७२ ततः सूतकनिवृत्यर्थ व २.२.५ ततः स्विष्टकृतादीनि व २.६.४११ ततस्तज्वलमादाय पात्रेण भार ११.२२ ततः स्विष्ट कृताहीति व २.३ ७५ ततस्तथा स तेनोक्तो मनु १.६० ततः स्विष्टकृदादि आश्व ४.१५ ततस्तदूर्ध्वतस्योधैरज भार ११.४१ ततः स्विष्टकृदादि आश्व १५.४७ ततस्तदैव गायत्रिं भार ७.९१ ततः स्विष्टकृदादि आश्व ३.८ ततस्तद्वारिकूर्चेन समं भार ११.२३ ततः स्वैर विहारी या १.३२९ ततस्तन्मध्यस्थाने भार ११.३९ ततोऽकमंडले विष्णु व २.३.५ ततस्तान् परुषोऽम्येत्य __ या ३.१९४ ततोऽग्निस्थाप्पनं व २.६.४०६ ततस्तीरं समासाद्य ल हा ४.२९ ततोऽग्नौ करणं कुर्याद् विश्वा ८.६० ततस्तीर्थ समासाद्य वृ.गौ. ८.२७ ततोऽअतिथिं भोजयेत व १.११.५ ततस्तुक्रमयोगेनपित्र्य ब्र.या. ४.७४ ततोऽधिको यज्ञदत्त आंपू ३३२ ततस्तु तर्पयेदभिः वृ.गौ. ८.५३ ततोऽधीमीत एकाग्रं औ ३.४९ ततस्तु दक्षिणां दद्यात् ब्र.या. ४.१३६ ततोऽनुपहतैः रोतेः ।। भार १८.३३ ततस्तु देवताःस्थाप्य ब्र.या. १०.९९ ततोऽन्तर्मातृकान्यासं विश्वा ६.४३ ततस्तु दद्वहिपेशे रुद्रा भाग ११.५३ ततोऽन्नं बहुसंस्कारं औ ५.१९ ततस्तु वाससी शुक्ले वृ परा ११.२९ ततोऽन्नसाधनं कृत्वा व्यास २.२८ ततस्तु हव्यमानानि वृ गौ. ८.५९ ततोऽन्यथा राजामंत्रिभि व १ १६.१८ ततःस्तृप्तान् द्विजान् वृ परा ७.२६२ ततोऽन्यदन्नमादाय व्यास ३.३५ ततस्ते ऋषयः सर्वे पराशर १.५ ततोऽन्युमुत्स्टजेद् औ ५.६८ ततस्ते प्रणिपातेन दृष्ट्वा आंउ २.९ ततोऽपि कृतया मौज्या कपिल ८९७ ततस्तैरभ्यनुज्ञातो औ ५.४५ ततोऽपिद्विगुणस्तस्मात् लोहि ५०६ ततः स्नात्वा विधानेन वृ हा २.१०७ ततोऽभिवादयेत्वृद्धा ब्र.या.८.५८ ततः स्नानत्रयं कुर्यात् विश्वा १.७८ ततोऽभिवादयेद् वृद्ध या १.२६ ततः स्यन्दनमानीय वृ हा ६.२५ ततोऽभिवाद्य स्थविरान् व्यास १.२६ ततः स्वगृहामागच्छे द्वाग्यतो व २ ६.१४९ ततोऽभिषिञ्चेन्मन्त्रैस्तु । बृ.या. ७.१८ ततः स्वपेद्यथाकामं आश्व १.१८५ ततोऽभिषेचनं कुर्याद ब्र.या.८.११२ ततः स्वमालयं गच्छेद्भार्य व २. ४.७१ ततोऽभिषेचनं कुर्यान्मन्त्र ब्र.या. ८.११० ततः स्वयं च नित्यं आंपू २०९ ततोऽभिषिञ्चेदाचार्यो शाता ६.२६ ततः स्वयम्भूः भगवान मनु १.६ ततोऽअम्भिस निमग्नः शंख ९.१२ ततः स्वर्गफलान् भुक्त्वा भार १२.५९ ततोऽम्मसि निमग्नस्तु ब्र.या. २.२३ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ततोऽर्ध्य मानवे दद्यान् ततागऽर्घ्यं मानवे दद्यात ततो लब्ध्वा शनैः संज्ञाम् ततोऽल्पेनापि सदद्रव्य ततोऽवतीर्णं कालेन ततोऽवतीर्णं कालेन ततोऽवतीर्णो जायेत ब्र. या. २. ११२ लता ४.५३ वृ. गौ. ५.६० लोहि ४०५ वृ. गौ. ७.११९ वृ . गौ. ६. १४६ बृ.गौ. १७.३१ शाण्डि ५.७२ ततोऽस्य स्रवति प्रज्ञा ततोऽहमखिलं वक्ष्मे ततोऽहि ग्रसते प्रेत्य ततो गङ्गाजले स्नात्वा ततो गंधाक्तपुष्पेन ततो जपेत् पवित्राणि ततो जयादीन्जुहुयात् ततो ज्येष्ठस्य चेत् ततोत्थाप्य तु ततोदंडनमस्कारं कुर्वीत ततोदद्याद्यथाशक्ति ततो दर्भासनं दद्यद्देवेभ्यः वृ परा ७.१७७ ततोदानञ्च शिष्येम्यो भार ७.९५ आंपू ४०७ ब्र. या. ८.२५९ भार ७.९८ शाता २.१० दक्ष २.२७ मनु ७.२९ वृ परा २.८० बृ.गौ. ६.१४ ल हा ४.५४ ब्र. या. २. १२३ ततो दुर्गं च राष्ट्रं च ततो देवगणाः सर्वे ततो देवगणाः सर्वे ततो देवं नमस्कृत्य ततो देवं समाहूय ततोदेवलकश्चव ततो देवस्य पुरतो ततो द्वादशकृत्वस्तु ततो द्वितीयासंभूतः ततो धूपं ततों दीपं यम ३३ व_२.३.४१ वृ.गौ. ८.४८ लोहि ८८ भारं ११.९९ नारा ४.२ या ३.२०१ ततो धैर्यं समालम्ब्य ततो ध्येयः स्थितो ततो नदीं समागम्य गङ्गा विश्वा १.६४ ततो नानाविधैः पुष्पैः ततो नारायणं देवं भार ११.९८ ल हा ४.३१ ब्र. या. १.५ औ ४.१८ नारा ९.११ भार ११.३२ शंख १०.२० ततोनारायण वलि कर्त्तव्यः ततो निघृष्य गात्राणि ततो निवृत्ते मध्याह्ने ततो निवृत्य तत्पात्रं ततो निष्कल्मषीभूता ततोनुपहतैर्गव्यैःप्यंच ततो नैवाचरेत् कर्माण्य ततो ब्रह्म समभ्यर्च्य ततो भद्रासने शिष्य ततो भांडजले कुर्च ततो भुक्तवतां तेषां ततो भुक्तवतां तेषां ततो मध्याह्नकालो वै ततो मध्याह्नसमये ततो मध्याह्निकं स्नान ततो मांसं प्रवक्ष्यामि ततो मातामहानां च ततो मातामहानां च ततो मातामहानां च ततो मातामहानाञ्च ततोमाला शिरोग्रंथि ततो मौनी जपेन्मंत्र ततो लोकावतीर्णश्च ततोवलोकयेदर्कं हंसः ततो वस्त्र ब्रह्मसूत्र ततोवहिस्थले धीमान् ततो वह्नि तु संस्थाप्य ततो वह्नि तु संस्थाप्य ततो विंशतिसंख्याकान् ततो विद्यांसंहितायां ततो विप्रान् समभ्यर्च्य ततो विप्रास्तथैवेति ततो विभवसारेण ततो वृश्चिकसंप्राप्ते ततो वेदमधीयीत श्रोत स्मृति सन्दर्भ शाता ६.२७ बृ. या. ७.१६ औ ५.२० ल हा ६.१४ या ३.२९८ भार ११.८१ ल व्यास १.६ ब्र.या. २.१०८ वृ हा ८.२४९ भारं ११.१९ औ ५.७० मनु ३.२५३ बृ.गौ. १६.१.६ व्यास २.९ आश्व २३.४ ब्र. या. ४.१५३ ब्र. या. ६.९ व २ ६ ३०९ आंपू ६६५ औ ५.९६ भार ७.४७ वृ हा ७.३१ वृ.गौ. ७.९७ वृ . या. ७.१०० भार ११.९७ भार ११.६१ ब्र. या. १०.४० ब्र. या. ११.३८ नारा ५.४१ व २ ४.२३ आम्व १. १४८ आश्व २३.९९ आश्व ८.५ अत्रिस ३६० भार १५.७ Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ ३४५ ततोहरिद्रयालिप्य शुद्ध भार ११.९० तत्क्रान्ति युग्मश्राद्धा आंपू ६५५ ततो हैमवते वर्षे जायते बृ.गौ. १७.३५ तत्क्रियाकरणे तत्तु न आंपू २३ ततो होमं प्रकुर्वीत विश्वा ८.७१ तक्रियामथ कुर्वीत आंपू २४ ततो होमे कृते तावन् लोहि ३२ तक्रिया मन्त्रपूर्वैव आंपू ४८० तत्कर्तव्यत्वेन कुर्यात्कर्म लोहि ४३० तत्छुभ्रं ज्योतिषां बृ. या. ५.७ तत्कर्तव्यत्वेन नान्यः लोहि ४३१ तत् तत्कर्मणि तन्मंत्र वृ हा ७.७३ तत्कर्तव्यं यत्र कुत्र लोहि ३५७ तत्तत्कर्मानुरूपेणं चा भार १८.५५ तत् कर्तव्यं हि सर्वेषां वृ हा २.४ तत्तत्कलशपात्रेषु गंध भार ७.७४ तत्कर्मणः फलस्याई वृ.गौ. १२.१८ तत्तत्कार्यानुगुण्येन व्याहृतीनां कपिल ९९१ तत्कर्मणः सर्वकर्मजालं कण्व २९० तत्तत्कालानुगुण्येन नारा २.३ तत्कर्मयोग्यो नैवस्याद्य कपिल ७६० तत् तत्काले तु तन्मूर्ते वृ हा ५.३०८ तत्कलत्रस्य तत्पुत्र कण्व ७८४ तत्तत्कालेषु विधिवच्छ्राद्ध आंपू १०९ तत्कलत्रादिजनताप्रद्वेषः लोहि ४६८ तत्तत्कालेषु संप्राप्त लोहि १२९ तत्कलावृद्धिजनकं सा आंपू ११०२ तत्तत्कालोचितं विष्णों वृ हा ७.३१४ तत्कांक्षितयश्चश्रून्यात् कपिल २३९ तत तत्कालोचित्त सर्व वृहा ५.५६७ तत्कारणं हि गायत्री कण्व २०३ तत्तत्कुलप्रसूतानां बिना लोहि ४७८ तत्कार्यत्र्यौ दुर्बोधम् कपिल ५२२ तत्रिपादं प्रयोक्तव्य विश्वा ५.१७ तत्कार्यमखिलं कुर्यात्तेन लोहि ४२९ तत्तत्समो दुर्बलोऽयं कपिल ४७८ तत्काल कृतमूल्ये वृ हा ४.२३६ तत्तत्स्ववृत्तिषु परं कर्तारो कपिल ४६७ तत्काल कृतमूल्यो ___ या २.६४ तत्तद्रव्योंतव्य मित्य व २.७.७८ तत्कालंभक्षणावृत्तिर्न आंपू २९६ तत्तद्वेदी जपेदभक्त्या कण्व २५८ तत्कालसम्भवं पुष्प वृ हा ४.५८ तत्तनाम शिशोस्त्रिस्त्रि आश्व ६.७ तत्कालाजीर्णराहित्ये आंपू २८९ तत् तन् मंत्रान् जपेद्दिक्षु वृ हा ६.५४ तत्काष्ठपत्रकुसुमशलाटु आंपू ५ ४९ तत् तन्मूर्तिपृथक ध्यात्वा वृ हा ७.१०८ तत्किंचिद्विगुणीभूयात् __ आंपू ८०४ तत्तन्मूलं विनामन्त्रं विश्वा ३.५८ तत्कुलं वैष्णवै तस्य व २.६.४२६ तत् तत् पात्रेषु सलिलं वृ हा ८.१७ तत्कुलं सत्कुलैस्साम्यं कपिल ११७ तत्तत्फलप्रसिद्ध्यर्थ भार १९.१७ तत्कृता दुष्क्रियासर्वा लोहि ६०५ तत् तत्प्रकाशकः मंत्रै . वृ हा ६.४२९ तत्कृतेन तु पाकेन यो मोहाकपिल ५४० तत्तादृशं कर्म तस्माद् कण्व ३०२ तत्कृत्वा तूक्तदिवसै वृ परा ८.५५ तत्तालुनि निविष्टं बृ.या. ४.२३ तत्कृत्वा स्वगृहं वृ परा ५.१८३ तत्तु प्रयत्नसाध्यं कण्व १६६ तत्कोष्ठपूरणे यावत्ताव लोहि '६३ तत्तुरीय्याख्यमादेशकाले कपिल १५१ तत्कौपीनमिति प्रोक्तं भार १५.११५ तत्तु वित्तमहं मन्ये दक्ष २.३५ तत्क्रमं च प्रवक्ष्यामि कण्व ७८१ (त्तोयपीतजीर्णागः वृ परा ८.२१६ तत्क्रमाच्चापि वक्ष्यामि कण्व ६८८ तत् तोयं सर्वदानानाम् वृ .गौ. ६.१४ . Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ तत्वं तस्यास्तु विज्ञायं तत्त्वस्मृतेरुपस्थानात् तत्त्वानि नत्र वै देवे तत्त्वावमानी मुनिभिः तत्पञ्चमेऽथ दिवसे तत्पत्न्यपि तकीत्पाला तत्पत्राणि पवित्राणि तत् पथं ते सुखं यान्ति तत्पदं च पदातीतं तत्पदं विदितं येन स तत्पदं समवाप्नोति तत्पद्यस्यवहिदेव्या तत्परं देवताभ्यस्तु तत्परं निष्फलं ज्ञानं तत्परं प्रातरेव स्यादि तत्पश्चाद्या कुलीना वा तत्पाणिष्वक्षतान् दत्वा तत्पात्रक्षालनं कृत्वा तत्पादतीर्थसेवा च तत्पादं संवत्सरं तत्पाद वन्दनंचैव तत्पापस्य विशुद्ध्यर्थं तत्पित्रोरेव पत्न्याश्चत् तत्त पुण्यफलम् आदाय तत्पुण्यफलमाप्नोति तत्पुण्यफलमाप्नोति तत्पुण्यफलमाप्नोति तत्पुण्यफलमाप्नोति तत्पुण्यफलमासाद्य तत्पुण्यफलमासाद्य तत्पुण्यफलमासाद्य तत्पुण्यफलमासाद्य तत् पुण्यम् अखिलं प्राप्यं तत् पुण्यफलम् आप्नोति तत्पुण्यं समनुप्राप्त या ३.१६० आंपू २१४ तत्पुण्यं समनुप्राप्तो तत्पुत्रपौत्रपर्यन्तं तस्य तत्पुनर्द्वादशाविधं तत्पुनास्त्रिविधं ज्ञेयं शुक्ल तत् पुनस्त्रिविधं ज्ञेयं तत्पूर्वसंध्या ब्राह्मी तत्पैतृकमहासङ्गसौख्य तत् प्रकृति स स्वातं ततत्प्रक्षालनतोयेन बृह ९.१७६ वृ हा ७.२२२ आंपू ९१ कपिल २१७ आंपू ५६० वृ.गौ. ५.११७ वृ परा १२.२९२ वृ परा ६.९४ वृ हा ३.३६८ भार ११.१४ विश्वा ८.५५ वृ परा १२.२४४ आंपू १७८ आंपू ४४८ आश्व २३.८८ वृ हा ४.७७ व २. ३१ कण्व २४ वृ हा ५.७८ नारा १.२४ कपिल १३३ वृ.गौ. ६.३९ वृ .गौ. ६.१६३ वृ.गौ. ७.६३ वृ.गौ. ७.७१ बृ.गौ. १७.१४ बृ.गौ. १७.३८ बृ.गौ. १७.४३ बृ.गौ. १७.५७ वृ.गौ. ७.१२ वृ.गौ. ६.३६ वृ.गौ. ६.३४ वृ. गौ. ६.१४८ तत्प्रतिष्ठत स्मृतो धर्मो ततः प्रभातसमये ततः प्रभृति यो मोहात् तत्प्रवक्ष्यस्तु संदिग्धं तत्प्रसूतिप्रजननयोग्यता तत्प्रसूतिप्रजननयोग्यता तत्प्राचीमध्यमं प्रोक्तं तत्प्राज्ञेन विनीतेन तत्प्रर्धितप्रदानस्य तत्प्राश्चोयेद्विधानेन तेनासौ तत्प्रेष्यत्वेन कुर्वीत तत्फलं लभते मर्त्यो तत् भात्साण्डाम्यां तत्र अम्बष्ठोग्रसंयोगे तत्र एव पतिताः पापाः तत्र काम्यं तु कर्तव्यं तत्र च सूर्याभ्युदित तत्रचामरवादित्र भृंगारे तत्र चेत् ब्राह्ममेधाद्या तत्र चैतासु या क्रूराः तत्र च्युतश्चतुर्वेदी तत्र जागरणं कुर्याद् तत्र जाम्बूनदमये विमाने तत्र तत् परमं धाम तत्र तत्र च गच्छामः तत्र तत्र च निष्णातान् 1 स्मृति सन्दर्भ वृ.गौ. ६.१६६ कपिल ३५९ नारद २.४६ नारद २.४० नारद १५.२ भार ६.६ आंपू ६६४ वृ परा ४.७१ व २.३.५४ नारद १.७० वृ हा ५.४९२ मनु ९.६८ ब्र. या. ११.६ कपिल ६०२ कपिल ६०३ भार २.७२ मनु ९.४१ लोहि २०४ कपिल ३२७ आंपू १३४ वृ हा ५.५३४ व १.२.३७ बौधा १.९.१० वृ .गौ. ५.५२ शंख ८.८ व १.२०.४ वृ हा ६.५२ कपिल ६६३ आंपू ५८५ बृ.गौ. १७.२४ । वृ हा ५.१३३ वृ.गौ.७.१२६ बृह ९.९९ कपिल ८६५ या १.३२२ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तत्र तत्र तिलैर्होमो तत्र तत्र देशप्रामाण्यमेव तत्र तत्र यजेदिष्टिं तत्रत्यानां च सर्वेषां तत्रदानं प्रकुर्वीतं तत्र दिव्याप्सरोभि तत्र दिव्याङ्गनाभिस्तु तत्र दिव्याङ्गनाभिस्तु तत्र दिव्याप्सरोभिस्तु तत्र दिव्याप्सरोभिस्तु तत्र दिव्याप्सरोभिस्तु तत्र दुर्गेत्सवं कुर्यात्पूजाथेषु तत्र दुर्भिक्षरोगादिभयं तत्र देशाखिलाना तत्र द्वादशसंख्यानि मासि तत्र ध्यानादि स्मरणयोः तत्र ध्याने तु संलग्ने तत्र निक्षिप्य तच्चाम्भस्त तत्र नैमित्तिकं कार्य तत्र पक्षे यतीनां तु तत्रपत्न्यनुवाकेयाः तत्र पाकं वितां तु तत्र पीत्वा जलं विप्रः तत्र पूजा प्रकर्तव्या तत्र पूजा प्रकर्तव्या तत्र पूर्वश्चतुर्वर्गो तत्र भुक्तानुभुक्त तत्र भुक्त्वा पुनः तत्र भुक्त्वा महान् भोगां तत्र भूयश्चेरत् पूर्ण तत्र मूलेन मंत्रेण तत्र यत्प्रीतिसंयुक्तं तत्र यद् ब्रह्मजन्मास्य तत्र यद्यपि दत्तस्तु शुद्ध तत्र ये भोजनीया स्युर्ये बृ.या. ४.५७ बौधा १.१.२४ वृ हा ६.४१७ कण्व ६६४ व २.२.४ तु वृ.गौ. २.२५ वृ.गौ. ७.८७ वृ.गौ. ६.९२ वृ.गौ. ७.५३ वृ.गौ. ७.८० वृ.गौ. ७.९० ब्र. या. ९.४८ वृ हा ५.३३१ कण्व १९ कपिल १५५ कण्व ८० वृ परा १२.३०४ आंपू ७९५ वृ परा ७.१०३ आंपू ७०९ कण्व ३८७ व २.४.८८ वृ परा ८.१८२ आंपू ६८६ वृ परा ११.१४३ नारद ६.२७ व १.१६.१४ मनु ७.२२५ बृ.गौ. १७.५८ वृ हा ६.३०६ वृ हा ५.३६७ मनु १२.२७ मनु २.१९० कपिल ३६४ मनु ३.१२४ तत्र रत्नमयं पीठं तत्र वह्नि प्रतिष्ठाप्य तत्र वेदी प्रकुर्वीत तत्र शक्रपुरे रम्ये शक्र तत्र शिष्टं छलं राजा तत्र संस्थापयेदग्नि तत्र सङ्कल्पना तत्र सङ्कल्पना श्राद्ध तत्र सत्ये स्थितो धर्मो तत्र सदो ब्राह्मणस्य तत्र सर्वगुणोपेतः तत्र सर्वत्र सततं प्रथमाग्नौ तत्र सवर्णासु सवर्णा तत्र सायमतिक्रमे तत्रस्थं च शुभं वर्णं तत्रस्थं भावयेद्देवं तत्र स्थितः प्रजाः सर्वाः तत्रस्थित घनरसं तत्र स्नात्वा निवृत्तेभ्यः तत्र स्नानं विधानेन तत्रस्यै ब्राह्मणैरेवानु तत्र स्वादूदकं श्रेष्ठं तत्रहिंसाफलं पापं तत्रागतेभ्यः सर्वेभ्यो तत्राऽऽमवृक्षच्छायायां तत्राऽऽराध्य पुनमा तु तत्राज्ञातेति या सेमं न तत्रात्मभूतै कालज्ञैः तत्रात्मा हि स्वयं किंचित तत्रात्मव्यितरेकेणं तत्रादौ ऋग्वेदस्य तत्रापाकवर्त्येका तत्राद्यावप्रतीकारौ तत्राधुना मेदेवेश तत्रापरिवृत्त धान्यं ३४७ हा ३.२२२ वृ हा ७.३५ वृ परा ११.२४७ वृ.गौ. ७.४० नारद १.२५ व २.३.१४५ ब्र. या. ५.१२ ब्र. या. ५.१५ नारद १.११ व १.३०.४ वृ.गौ. ७.११८ लोहि २८ बौधा १.९२ बौधा २.४.२१ बृह ९.१३१ शाण्डि ४.२२ मनु ७.१४६ भार १५.१५४ औ ५.२२ व २.३ १४२ वृ हा ६.२२७ भार १४.४० वृ हा ५.९ व २.६.१९० वृ हा ७.२७६ वृ हा ८.१८९ लोहि ४३६ मनु ७.२१९ या ३.६८ दक्ष ७.५१ ब्र. या. १.९ लोहि ४०७ नारद १३.१४ विष्णु १.४६मनु ८.२३८ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ तत्रापि कामतः कुर्यात् तत्रापि कामतस्तेषां तत्रापि कुम्भकं कृत्वा तत्रापि कामतः स्पृष्ट्वा तत्रापि किंचितत् संस्पृष्टं तत्रापि च द्विजन्मादि तत्रापि जैष्ठ्यकानिष्ठ्ये तत्रापि दशसंख्याया तत्रापि दृष्टं त्रैविध्यं तत्रापि दोषदुष्टानि तत्रापि परिशुद्धस्य तत्राप्यकामत्स्वर्थ तत्राप्यराधनात्वेन तत्राप्युच्छिष्टमूत्रासृक् तत्राप्येवं विधानेन तत्रापि यद्यशक्तश्चेत्सर्व तत्राभ्यज्य विषाणानि तत्रायेद् विधानेन तत्रावाह्य जपित्वा तत्राष्टाशीतिसाहस्रा तत्रसीनं श्रिया सार्द्ध तत्रासीनः स्थितो वाऽपि तत्रास्य माता सावित्री तत्रेहाष्टावदेयानि तत्रेहाष्टावदेयानि तत्रैते पातकाः सर्वे तत्रैव क्षितिशायी तत्रैव च द्वयं तूष्णी तत्रैवांगारकं स्थाप्य तत्रैव विकिरेत्पात्र तत्रैव विहितोऽयं हि तत्रैव सकला धर्मा तत्रोत्तानं निपात्यैनं तत्रोभयथाऽप्युदातरांति तत्वानिध गायत्र्या स्मृति सन्दर्भ वृहा ६.३६५ तत् शुभ एकस्य भागः तु वृ.गौ ६.३० वृ हा ६.३२२ तत् श्रुत्वा वचनं विष्णो वृ.गौ. ५.५९ विश्वा १.९७ तत् श्रुत्वा वै स्तुतः च वृ.गौ. ४.५४ वृ हा ६.३५९ तत्षट्कं वत्सरः प्रोक्त कण्व ४९ बौधा १.४.५ तत् षडणविधानेन व हा ३.२१४ भार १८.८ तत्षष्ठी सप्तमी च भार १९.३ लोहि ५५ तत्संख्याकैः पुष्पदीपैः कण्व ६५५ भार ७.१०३ तत्सदद्रव्यं ब्राह्मणस्य लोहि ३९१ नारद १६.५ तत्सद्भिर्द्विविधं प्रोक्त वृ परा ६.२१६ भार ७.६६ तत् सद्मनाथं वृद्धान्वै वृ परा १२.१ ४० आंपू १६२ तत्संततौ चतसृणां त्रयाणां कपिल ३६२ वृ हा ६.३१२ तत्संततौ ततो घोरं सकटं कपिल १२२ वृ हा ५.३६ तत्सन्निधानाद्गौर्याश्च कण्व ५९४ शाण्डि १.७९ तत्समस्त्वं (त्वौ) रसस्तज्जः कपिल ७२३ व २.६.२७५ तत्समापनपर्यन्तं न ___आंपू ९४ कण्व १६० तत्समुत्यो हि लोकस्य मनु ८.३५३ वृ परा ५.१०३ तत्संप्रक्षालयेच्छु? भार १५.६३ वृ हा ५.११५ तत्संबन्धानुसन्धान शाण्डि ५.१३ वृ.या. ४.३० तत्संभूतमहादोष आंपू १०७० या ३.१८६ तत्सर्वतत्क्षणादेव वृ.गौ. ६.१६९ व २.६.७३ तत्सर्वं तस्य दोषाय न । कपिल ९७८ मनु ८.२ तत् सर्व तोयदानेन वृ.गौ. ६.१६ व १२.४ तत्सर्वं नाशमाप्नोति विश्वा ३.५१ नारद ५.३ तत् सर्वं प्रणवेनैव बृ.या. ७.९६ ब्र.या. १२.३ तत्सर्वं प्रीतये तेषां आंपू १०९५ भार १२.३७ तत्सर्वं भगवत्प्रीत्यै वृ हा ५.२६ संवर्त १३० तत्सर्वं विष्णुपूजायां ब्र.या. २.१५४ ब्र.या. ८.३५२ तत्सर्वं सम्यगाहत्य बृ.गौ. १५.८२ ब्र.या. १०.५६ तत्सर्वं स्थगितैः वस्त्रै वृ परा १०.१५२ आंपू ८४१ तत्सर्वसुरेन्द्राणां ब्रह्मा व्या ३९० आंपू ६२८ तत्सर्वमेव कर्त्तव्यं औ ५.३५ आंपू १११३ तत्सर्व तत्क्षणादेव बृ.गौ. १६.॥ कात्या २१.९ तत्सवितुर्वरेण्यं च वृह ९.५१ व १.१७.७ तत्सवितुः सवितारं ब्र.या. २.१०९ भार ७.९२ तत्सवितुर्वणा महे व २.३.५८ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तत्सहस्रगुणन्यूना तत्सहायश्च सर्वे ते तत्सहायानधर्मज्ञान् तत्सहायैरनुगतैः नाना तत्सान्निध्यस्पर्शमात्रात् मनु ९.२६७ आंपू ४७३ तत्साम्यचेतसो यस्माद् तत्साम्यं तत्रयस्यैव आंपू ५७८ आंपू ५७९ या २.८ तत्सिद्धौ सिद्धि माप्नोति तत्सुतः तस्य पौत्रो वा तत्सूत्रं त्रिगुणीकृत्य लोहि ३०२ भार १५.६८ तत्सुतः पावयेद् वंशान् वृ परा ६. २०१ तत्सुतः सिचयेत्पात्र ब्र. या. ७.१६ तत्स्तोत्रपठनं चैव तत् स्त्रीणां च तथा संग तत्स्थाननामगोत्रेण तत् स्थानं परमाप्नोति तत्स्पृष्टस्पृष्टि नौ तत्स्वामिने दापयेच्च तथर्श्य हरिणपृषतमहिष तथा कुक्कुटसूकरम् तथा कृतः तु राजेन्द्रः तथागतांस्त्यक्तज्ञान् तथा घोषः प्रकर्तव्य तथा चतुर्थकाले तु तथा चर्म तथानंगा दौषा तथा च श्रुतयो वह्वयो तथा चात्मगुणैर्युक्त तथा चान्येष्वभोज्येषु तथा चैकशफानां च तथात्छादानञ्च तथा जगदिदं सर्व तथा जातेषु जातं यत् तथा तथा दृढं योगी तथा तथा स तन्निष्ठो तथा तथा समुत्सृत्य लोहि ५२९ आंपू १०० लोहि ५४१ व २.३२ देवल १९ आंपू ९५५ वृ परा ४.१७२ वृ हा ६.३५१ लोहि ५४८ बौधा १.५.१५३ बौधा १.५.१५० वृगौ २.३९ कण्व ४८१ आपू ८३४ ल हा ५.६ अत्रि १.९ मनु ९.१९ बृह १२.३८ आंउ ९.६ वृ परा १०.३२८ या १.२३२ बृ.या. २.१४७ भार १५.१७ शाण्डि ३.४५ शाण्डि ५.३८ शाण्डि ४.२१० तथा तथैव कार्य्याणि तथा ताम्रषष्टिपलं तथा ताश्चैव लोकेशा तथा तिलप्रदानाद्वै पापं तथात्रिमासेषण्मासे तथा त्रैलोक्य चक्राय तथा दास कृतं कार्यं तथा देवानुगान्नागा तथा दोषवतीकन्या तथा द्वि परिमृज्येति तथा धरिममेयानां तथा धेन्वनडु तथा न कुर्यात् तथा नांदीमुखं श्राद्ध तथा नित्यं यतेयातां तथा नित्याश्च मुक्ताश्च तथानियुक्तो भार्यायां तथा निवेदितं भूयो तथा निवेदितेनापि तथा निष्फलजन्मानि तथानुचेद्धविर्दत्त्वा तथान्यहस्ते विक्रीय तथान्ये बहवः प्रोक्ता तथा पङ्क्तिरभोजी तथाऽऽपणेयानां च तथा पयोदधिग्राह्य तथा पल्लविकं क्रूर तता पंचसहस्राणि तथा पातकिनां चैव तथा पिण्डप्रदानस्य तथा पिण्डाश्च वर्धन्ते तथाऽपि न परिग्राह्यः पाप तथापि पुरवाक्यानि तथापि मनसः शुध्यै तथा पुंसोऽभिगमनं ३४९ दक्ष २.५५ ब्र. या. ११.१६ वृ हा ७.१९८ वृ.गौ. ६.१४९ ब्र.या. ७.२६ वृ हा ३.१८७ नारद २.२५ ब्र. या. २.९४ ब्र. या. ८.१५६ विश्वा २.५० मनु ८.३२१ व १.१४.३४ व १ १.२६ व २.६.३०७ मनु ९.१०२ व_२.६.३९१ नारद १३.८५ आंपू २३४ कण्व ७६१ वृ परा १०.३१५ औ ४.१७ नारद ९.८ ल हा ४.३ ब्र. या ७.४३ बौधा १.५.७० वृ_२.६.१८० आंपू ७४६ वृ परा ११.२५५ बृ.य. ४.२४ आंपू ८२७ वृ.गौ. १६.२८ नारा ७.३३ वृ गौ १.२३ अ ७१ वृ हा ६.१९३ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • ३५० तथा पुष्पाक्षतञ्चैवाक्ष तथा ऽप्यसंशयापन्नं तथा भागवतादन्यो तथा भागवताश्चैव तथाभिमंत्रणं दिक्षु तथा मद्याभरण्योश्च तथा महालय श्राद्धे तथा मांसं च कुल्माषान् तथा यतेत पुरुषो तथारूढविवादस्य प्रेतस्य नारद २.८० वृ हा ५.२१० आश्व ५.४ विष्णु १.५८ भार १२.३० तथा वाजसनेयिनः प्रोक्ताः ब्र. या. ४.१५२ तथावाऽऽज्येन होतव्यं तथा वामे जपेन् मेधां तथा विदितवेद्यानां तथाविधे भद्रपीठे तथा विलोममार्गेण तथावेधं विजानीयान्न तथा शास्त्रस्य माहात्म्यं तथा शून्यललाटं च तथा संघट्टशूर्पादेः विश्वा ३.४५ ब्र. या. ९.३० साण्डि ५.८१ आंपू ६६७ व्या ३५२ तथा सत्यपि चैकोऽयं तथा स धर्मं स्मरति तथा समाहितः कुर्यात् तथा सर्वाणि भूतानि तथा सर्वेषु कालेषु तथा सव्यकरांगुष्ठं तथा सायमतिक्रामेद्वात्रिं तथासूर्य मूदीक्ष्यै व तथा स्मृति पुराणानि तथा स्नानं प्रकर्तव्यं तथास्यापि स्मृतं तूष्णी तथा स्वाराधनेनैव न तथा हि तासां सर्वासां तथेपि पु (न) रन्येऽपि ततः तथैकामपि गां हत्वा ब्र. या. ४.१३१ प्रजा ५ वृ हा ८.३०६ बृ.गौ. २२.३९ भार ११.२५ तथैव क्रियते सर्वैः तेन तथैव क्षत्रियो वैश्य तथैव जुहुयादग्नौ तथैव जुहुयादाज्यं तथैव ज्ञानकर्मभ्यां तथैव तण्डुलाभावे न तथैव तु पुरोडाशं तथैव दशमुद्राश्च तथैवधारयेयातां अवश्यं तथैव पश्चात्कुर्वीत तथैव पादखातं स्यात् तथैव पैतृके कुर्यात्त तथैव फलजातीनां गोपाले तथैव ब्रह्महस्तेन तथैव मन्त्ररत्नेन तथैव मन्त्रविद्युक्तः शरीरैः तथैव मरणे स्नानमूर्ध्वं तथैवमवशादृष्ट्वा तथैव माघद्वादश्यां तथैव मातृवर्गेऽपि तथैव रामस्मरणाद् ब्र. या. ८. २३४ कपिल ९४३ तथैव वृषलस्यान्नं तथैव वैष्णवान्सूक्तान तथैव सद्गृहीतो तथैव सप्तमे भक्ते तथैवसाक्षतं पुष्पं तथैव साम्यासिद्धिस्यात् तथैव स्थापयेद्धीमान् तथैव होमं कुर्वीत लोहि ६४३ तथैवाक्षेत्रिणो बीजं लोहि ३०८ तथैवाग्नि समाधाय शाण्डि ४.८२ तथैवान्येय होतव्यं लोहि ४९८ कपिल ९६ तथैवान्ये प्रणिहिताः तथैवा भक्ष्यभोक्तृणां तथैवार्थानुसंधानं ब्र.या. ५.१४ आंपू ९५३ वृ परा १९.२५ शाण्डि ५.३९ वृ परा ३.१९ वृ परा १.२१ वृ.गौ. १३.१० कात्या १२.४ वृ परा १२.११७ आश्व १.८५ वाधू १३० वृ परा ५.१२८ स्मृति सन्दर्भ कपिल ८२ पराशर ११.२ वृ हा ५.३७६ वृ हा ५.३४५ ल हा ७.११ लोहि ३५५ वृ हा ५.२७४ वृ हा ५.१४८ भार १५.११४ आंपू ३९६ भार १५.३४ कण्व १५१ व २.६.४९४ व्या ५३ व २.६.३८४ बृ.य. ३.४१ औ ६.२३ लोहि ६७० वृ परा १०.३४५ आंपू ६७२ वृ हा ३.२८५ अत्रि ५.९ व २.७.४३ लोहि २८० मनु ११.१६ भार ११.९४ कपिल ४०४ भार ७.७१ वृ हा ५.३५२ मनु ९.५१ आंपू ९७० व २.६.१६३ नारद १८.६१ वृ हा ८.१३३ कण्व १९० Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तथैवाशौचमित्युक्तं कण्व ७३४ तदभावे तु बंधुः स्यात्त व २.४.३५ तथैषामुक्तमंत्राणां भार ६.३६ तदभावे दशावरा बौधा १.१.७ तथोत्सवे हरिद्राद्यै व २.६.२७९ तदभावे निषिञ्चेन्तु बृ.या. ७.७८ तदकृत्वा पितृश्राद्ध कपिल १८० तदभावे पिताऽऽचार्यो बौधा १.५.११७ तदक्षरं सदाध्यायेधः वृ परा ३.२३ तदभावे पितृव्यः स्यात्त व २.४.३ ४ तदक्षयममोद्य स्याद् कण्व १२ तदभावे राजा तत्स्वं बौधा १.५.११८ दतगतेन्यतप्रगृह्णीया ब्र.या. ४.५० तदभावेशिलोछेन व २.६.१२६ तदगोत्रिवीर्ये (य) जेष्वेव कपिल ९४ तदभ्यासादवाप्नोति वृ परा १२.३ ४२ तदग्निरक्षणायैव कण्व ५४८ तदर्चनं प्रवक्ष्यामि वृ परा ४.११७ तदग्निहोत्रं सृष्टं वै बृ.गौ. १५.४४ तदर्थद्योतनादेतमुदितं शाण्डि ५.६१ तदग्नौ करणं कुर्यात् ब्र.या. ४.८१ तदर्थन्यासमुद्रादि व हा ८.२५३ तदग्नौ करणं कुर्यात् लोहि २० तदर्यतुगवालम्भं गौरितित्रि ब्र.या. ८.२१३ तदङ्गतर्पणं कार्य मृत आंपू ११०६ तदर्थ प्रणवं जप्यं बृ.या.२.४५ तदंगभूतया दिव्यं कण्व ४२३ तदर्थ शिरसा ब्र.या.८.२०१ तदङ्गमेवतस्याः स्यात्त कण्व ३८१ तदर्थमधिदातव्यं व २.३.१८५ तदण्डमभवद्दधैमं मनु १.९ तदर्थमाचरेद्यस्तु स वृ हा २.८ तदद्य तव वक्ष्यामि रहस्य नारा ८.९ तदर्धमथवा कार्यम् भार १६.२९ तदध ते ह सर्वार्थः वृ. गौ. १.४७ तदलाभे गृहस्थस्तु औ ४.१० तद् अल्पं क्षपयेत् विप्रम् वृगौ २.३६ तदलामे दधिग्राहाम् व्या ३११ तदधस्तादधोदिक्स्यात् भार २.५ तदलाभे नियुक्तायां व ११७.१४ तदधीनं कारयीत चिरकालेन कपिल ३१७ तदलाभे शिष्टाचार व १.१.४ तदधीनो यतो वनिस्तथा लोहि ४१ तदवश्यककृत्येषु कर्तव्य आंपू २६२ तदध्यास्योदहेद्भायर्या मनु ७.७७ तदवान्तरभेदयज्ञस्त कण्व २५९ तदनित्यं स वेधस्मान्न अ ७३ तदवाप्य नृपो दण्ड या १.३५४ तदनेहणरत्कांग भौमवीजं ब्र.या. १०.५५ तदवेक्ष्य करे सव्ये आश्व १५.१० तदंत्ते ब्रह्मभावेन यावदा भार ६.१६९ तदष्टभागोपयाद् नारद १२.२२ तदन्यथाकृतं तच्चेत् आंपू १३३ तदसंसक्तपाणिर्वा कात्या ११.१२ तदन्यस्मिन् तादृशे आंपू ७१३ तदस्पर्शेपितुं यद्वत्प्रास्या कपिल २२३ तदन्नमतिशुदयद्योग लोहि ३८८ तदस्माकं धियो यस्तु वृ परा ४.३६ तदन्याद्भिन्नगोत्राद्वायं कंचनं कपिल ६७८ तदस्यानिकमिति ऋचा वृ हा ८.५२ तदन्यायार्जितं दव्यं लोहि ३९० तदहं भक्तिदत्त यन्मूर्धा बृ.गौ. २२.१४ तदपि त्रिविधं प्रोक्तं नारद १५.१२ तदा कन्या स्वरूपेण । अ६४ तदन्दोऽभिशांसितुः बौधा २.१.८७ तदानश्रृट्गयोस्तस्या वृ.गौ. १०.४४ तदभावे गुरुसुते पु १३ तदाज्यपात्रस्पर्शश्च कपिल २३१ तदभावे तु पनि आश्व २३.३ तदा तदा तुविहीता आंपू ६५२ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ स्मृति सन्दर्भ तदा तदा भूषणाध्या लोहि ६७३ तदुक्तावधिकारोज . सम्यक् कपिल ८९४ तदा ताभिर्विशेषेण धनै कपिल ५४५ तदुक्तिलंघनकरा .ह्म कण्व ७४० तदा तु तद्धनं सर्व आंपू ३११ तदुत्तरक्रमाणां चे दनुष्ठानस्य कपिल ९८६ तदा तु पनसः किंचित आंपू ५३२ तदुत्थानं ततः कुर्याति ब्र.या, ४.१३५ उदात्मा तन्मनः शांत ल व्यास २.४४ तदुत्पत्या क्षणान्मोमुच्यते कपिल ६७१ तदादि वर्षसंचारी वृ हा १.२५ तदुत्सर्गः प्रकर्तव्यो वृ परा ११.२०९ तदा द्विजैस्तु द्रष्टव्य वृ परा ८.२७१ तदुन्मुखास्तत्सहायान् कण्व ७८३ तदा निर्विषयो वायु वृ परा १२.२२३ तवं चेत्समुद्भूतः लोहि १५७ तदानुक्रमशस्त्वेक कण्व ७८० तदूधैग्न्यकर्मसो मा नां भार ११.४० तदा पुनस्तत्संपाद्य आपू ७२ तदृष्ट्वा पापवर्माणमादित्यं वृ.गौ. १६.२२ तदापोघ्नन्तु दौर्भाग्यं वृ परा ११.२१ तदेतदन्यत्र निर्देशात् बौधा १.६.३० तदाभ्युदयकं सद्यः कर्त्तव्यत्वे कपिल ३०२ तदेतेन वेदितव्यं बौधा २.१.६९ तदावरण रूपेण यजेद् वृ हा ८.२७० तदेनं संशयारूढं नारद १९.११ तदाविनाख्य पशुना कण्व ४३४ तदेनं संशयारूढं नारद १९.३१ तदाविशन्ति भूतानि मनु १.१८ तदेव निरयं प्रोक्तं वृ हा ३.१११ तदाशौचनिवृत्तेषु औ ६.५० तदेव बन्धनं विद्यात् पराशर ९.८ तदा संवत्सरं दृष्ट्वा आंपू ५२ तदेव बीजं शक्ति वृ हा ३.३६४ तदा सकृत्सन्निपाते आंपू ६८ तदेवं गतिभिः ब्रह्मध्यानं वृ परा १२.३१० तदा सा शव्यते नारी अत्रिस १९५ तदेवं सप्तपूर्णख्यं आंपू ६७६ तदाऽसौ तु कुटुम्बानां देवल १४ तदेव जुहुयाद् वह्नौ वृ हा ५.६९ तदासौ वेदवित् प्रोक्तो अत्रिस १४२ तदेव भुक्त्वा सायाने नारा ९.१० तदाऽस्य मध्यगं बृह ९.११५ तदेव विष्णुः कृष्णेति वृ हा ३.२१२ तदास्यान्मङ्गलस्नानं कण्व ६४४ तदेव सौमिकं तीर्थ _ और २.१८ तदाहि तत्सम्यगेव कण्व ४१ तदेव हि भया राजन् वृ हा ८.३ ४३ तदाहुतिद्वयं कुर्यान् कण्व ५४७ तदेवाग्नि स्तदायु व हा ३.६२ तदाहुः ब्रह्मवादिन व १.५.१२ तदेषाऽभिवदित बौधा १.६.३ तदिति द्वितीयेकवचनं भार १०.५ तदैवं हदि सन्धाय वृ परा १२.६७ तदिष्णोरिति मन्त्रेण बृ.या. ७.३५ तदौपासनहोमः स्यात् आपू ८२ तदीयं तक्रियाहं च तवै शाण्डि ५.६० तद् आचार्यपदं तत्र जायते आश्व १०.४१ तदीयमार्गभाग्यो वै कण्व ४०८ तद्गगास्नानतुलितं कण्व १६७ तदीयसर्वश्राद्धानि गया लोहि ३०९ तद्गृहन्तु परित्यक्त्वा वृ हा ६.७० तदीनायानां पूजनञ्च वृ हा ८.३०५ तद्गृहक्षेत्रमनसा __ आंपू ९२ तदीयानामर्चनञ्च वृ हा ५.७९ तद्गृहे मरणानि कण्व ६०४ तदीयां स्तर्पयेशनि व २.६.५६ तद्गोत्रद्वययुक्त्यर्थ आं' ३४४ तदीयार्चनपर्यन्तं व २.७.१९ तद्गोत्रशर्मभिस्तातपितामह कपिल ९० Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तद्ग्रंथर्दव्यंगुलो ज्ञेय भार १८.९८ तद्ध्यानं तत्तु वै योगो बृ.या.९.४ तद्दत्तमुदकं तासा परं कपिल ७२६ तद्ध्यानं तत्तुवै योगो बृह ९.४ तद्दम्पती महापूजा कण्व ३५४ तद् ध्यानम सुसंरोधस्तुर्य वृ परा १२.२५७ तदाने तु यथापित्रो सम्मति कपिल ३७९ तद्धयायेद्यस्तु स वृ परा ३.२५ तद्दायादि प्रकर्तव्यो कण्व ७०२ तद्धियस्तस्थौ केशवन्ते वृ हा ८.२६ तद्दिनं चोपवासश्च दा ४८ तबन्धुभिस्तेन राज्ञा आंपू ३६९ तहिने चोपवासः स्यात् आं पू ९.४९ तबुध्या पंचतांगच्छन् वृ परा १२.३५४ तद्दिनेतिप्रयत्लेन दोमये । कपिल २४५ तबिबम्बमूर्ति मंत्रेण वृ हा ५.१६७ तद्दिने वा परेधुर्वा आंपू ९८४ तद्ब्रह्मण्यविषयमेव व २.१.१८ तद्दीक्षानियमा दिव्या कण्व ३५० तद्ब्रह्ममेधाध्यायी चेदु कपिल ६६६ तदीक्षायामनुष्ठेया कण्व ५५६ तद्ब्रह्मसायुज्यनामा मुक्ति कपिल ९३३ तद् दुर्ब्राह्मण्यमेवस्या कण्व २१२ तद्ब्रह्माण्डकटाहाख्यं दानं कपिल ९१५ तद् दुर्यत्नादिशतक कपिल ७४७ तद्ब्राह्मण्यं तादृगेव कण्व १७८ तद् दूयं (भूयः) चोदितं कण्व ५१७ तद्भस्मना प्रकुर्वीत कण्व ५७६ तद्देवतेयं विधवा तदधीनैव लोहि ५१० तद्भार्याकर्मकर्ता चेत्त आंपू ४३५ तद्देव मातृकं देशं वृ.गौ. १४.४५ तद्भिन्ना ज्ञातिपुत्राश्चेद लोहि ५६१ तद्देपहपतने तस्य वृ हा ३.२७१ तद्भिन्नैर्दुबलैरन्यैः दत्त कपिल ४५८ तद्दोषपरिहाराय गायत्री कण्व ९७ तद्भक्ष मेरुणा तुल्यं अत्रि ५.६ तद्दोषपरिहाराय पूवचित्त कण्व १०० तद्भोक्ता दीयनाशेन प्रापाना कपिल २४३ तदोषपरिहारार्थ कुर्यात् आश्व ३.१६ तद्यायाधंशसाम्यादि कुण्ठिता कपिल ४०१ तदोषशमनायाथ आं पू १४३ तधुवानः प्रमीयन्ते अ ४४ तक्षेषशमनायाथ पुनरग्निं लोहि ३७ तद्योगी वान्यपाणी भार १२.३६ तद्दोषशमनायैव पुण्यं आंपू १९९ तद्योग्यता जायते च तावत् कपिल ४०० तदोषाय भवेदेव तथा कण्व १०८ तद्योग्यं षोडशाख्यानां कपिल ५९१ तद् द्वय ऋतुरित्युक्तं वृ परा १२.३६० तद्रक्षणाय तनयं स्वीयं कपिल ६९६ तद् द्वयं च मुहूतः वृ परा १२.३५९ तदक्षणाय बाहुभ्याम वृ परा ५.१५२ तद् द्वयं तु कलि प्रोक्त वृ परा १२.३१२ तदाक्षसं भवेच्छ्राद्ध __ आंपू ८१५ तद्दनं कुलनाशाय वृहस्पति ५३ तदूपं च प्रवक्ष्यामि वृ परा ८.६४ तद्धनं तु न चेत्सद्य आपू ३१२ तदूपेणावतोण तत्त कण्व ३९७ तद्धरन्त्यसुरास्तस्य व परा २.१५१ तवंशजानां सुस्पृष्टं कण्व ७२४ तद्धर्माः पृथगेवस्यु कण्व ३०३ तद्वश्यानामर्भकाणां आपू १०८७ तद्धस्तेनैव विधिना स्वमंत्रो कपिल ६९० तद्वचः संप्रवक्ष्यामि ल हा १.१४ तद्धार्यममरभूश्शुचये भार १८.७२ तद्वत् परस्त्रिया पुत्रौ पराशर ४.१७ तद्धार्यगुपवीतन्तु अतिलम्बं ब्र.या. ८.७९ तद्वत्फलानां च पुन आंपू ५०८ तद्धि मृत्यजनस्यान्नं व गौ. ८.६५ तद्वत् सम्पूजयेद् वृ हा ८.३१४ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ तद्वत्सूतकिनश्चापि दद्वदन्धर्मतोऽर्थेषु तद्वद्भर्त्तारमादाय दिवं तद्वस्त्रं सहसाच्छित्त्वा तद्वहि पूर्वदिक्पत्रे प्रज्ञा तद्वहि परितोभागे लोहि १९० मनु ८.१०३ व २.५.७३ लोहि ६१० भार ११.४५ भार २.४५ कपिल २६ वृ हा ८.१८६ कण्व ४८ तदवाक्यतः पुनर्लोकेऽप्यल्प तद्वाक्यादेव देवस्य तद्वाचकत्वकार्याय भवन्ति तद्वाससोरसम्पत्तौ तद्वाहौ निक्षिपेच्छिष्य तद्विच्छित्तिर्दशायां चेद्यने तद्विदः कोचिदिच्छन्ति तद्विदस्तु दिवं यांति तद्विधानं च वक्ष्यामि तद्विधानं ममाचश्व तद् विधाना मिदं ये वृ हा २.२ वृ हा ५.७३ तद् विधिज्ञः शुचि शांतो वृ परा ११.२१० तद्विना किं शरीरेण वृ हा ३.११० वृ हा ५.३२ वृ हा ५.३० तद्विना वर्त्तते मोहात् तद् विशिष्टमिति प्रोक्तं तद् विष्णो परमं धाम तद् विष्णोरिति च द्वाभ्यां तद् विष्णोरिति मंत्राभ्यां तद विष्णोरिति मंत्राभ्यां तद् विष्णो रिति मंत्रेण तद्विष्णोरिति मन्त्रेण व द्वष्णोरिति मंत्रोयं वृ हा ७.३२४ वृ हा ८.२४४ वृ हा ७.१८५ वृ हा ७.१९० वृ परा ७.२४७ वाघू ८९ वृ परा ४.१०४ तद् विष्णोरिति वै विष्णु वृ परा ११.२२२ तद्विष्णोश्चैव गायत्री ब्र.या. २.२१ आंपू २६ कपिल २०३ कपिल २७ मनु १.७३ वृ परा १०.१४३ वृ परा २.१६२ वृ हा २.५६ कपिल ९७४ तद्वीध्यां तेन तच्छ्राद्ध तद्दृच्युयारणं पाककाष्टा तद्वैदिकेषु शास्त्रेषु सदकर्मसु तद्वै युगसहस्रान्तं ब्राह्म तद्वरणं बहिर्लोम वृ परा ६.३४८ वृ परा ६.८९ कण्व ६५० तद्व्ररवीमि परंधर्मं तनयग्रहणे यो वा तनयं मम ते यूयं कृपया तनयाः शास्त्रमार्गेण तनयासु विभक्तानां प्रत्तासु तनयोऽहमिति ज्ञात्वा तनूनपा अग्नेऽसि तंतुकर्म न कर्तव्य तन्तुवाया भवन्त्येन तन्तुवायो दशपलं तन्तूनि चोपवीतानां तन्त्र श्राद्धदिने यत्नाद्देवता तंत्रमंत्रे प्रकुर्वीत कृत्सने तन्नार्यः कामतः प्राप्ताः तन्निमित्तमिदं रूपं तन्निमित्तस्य तृप्त्यर्थं तन्निरोधे कथं त्वं वै तन्निर्माल्यं ततो गङ्गा तन्नृभि क्रियमाणानां तन्नयूनमधिकं चैव तन्नयूना एव कथिता तन्मण्डलस्थं मां ध्यायेत् तन्मध्यमंडले ह्यात्मा तन्मध्याद्यः शिशुर्जातो तन्माध्ये कल्पवृक्षस्य तन्मध्येऽग्नि प्रतिष्ठाप्य तन्मध्ये चिन्तये तन्मध्ये तु विधित्पद्म तन्मध्ये पद्ममालिख्य तन्मध्ये पृथुलैः कुम्मै तन्मनुष्यैः कथं प्राप्यं तन्मंत्रकृत्प्रणत्वेवं दशाहं तन्मंत्र मूलमंत्र वा तन्मंत्रमंत्ररत्नाभ्यां तन्मनत्रविनियोगज्ञः स्मृति सन्दर्भ वृ हा १.८ कण्व ७४१ कपिल ३९३ आंपू ४०९ लोहि २९० शाण्डि ४.१५६ ब्र. या. ८.३८ बार १५.२३ औ सं १३ मनु ८.३९७ वृ हा ५.४५ कपिल २४८ कपिल ३०८ आंउ १०.२० आंपू १०१ वृ परा ७.१५१ लोहि ५३७ आंपू ९०८ वृ परा ११.३ व्या ४८ आंपू ४१० वृ.गौ. ८.५० वृ परा १२.२८७ बृह ९.६९ वृ हा ३.२५२ व_२.२.१५ वृ परा १२.३१४ भार ७.५५ भार ७.६२ कण्व ६५३ वृ परा १२.३४७ कपिल ३३२ वृ हा, २.१०० वृ हा ५.४५५ कपिल ३६ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तन्मत्रस्य च भेत्तारं कपिल ८६१ तपस्यवगाहनम् बौधा २.३.१ तन्मयत्वेऽपि पुत्रस्य शाण्डि ४.१५.७ तपस्विनश्च ये युक्ता वृ.गौ. १०.८२ तन्महत्तारतम्येनन्यूनं कपिल १४ तपस्विनि ब्रह्मविदि वृ हा ६.२४० तन्महामुनिभिर्वन्दी मार १५.८७ तपस्विनीप्रसंगेन जायते शाता ५.३४ तन्माता पतिता पश्चाद्य । लोहि १७८ तपस्विनो दानशीलताः या २.६९ तन्मातामहगोत्र्येकः दौहित्रो लोहि ३२५ तपस्वी चाग्निहोत्री च नारद २.७ तन्मातृपिवृमि साकं न कपिल ८१ तपस्वी यश शीलश्च शंख ४.१० तन्मात्रस्य समीचीन आंपू ८४५ तपोजपैः कृशीभूतो दक्ष ७.४० तन्मार्गेणैव कुर्वीत क्ण्व ७३३ तपो दा नापमानञ्च ब्र.या. १२.३८ तन्मिथ्यासंशिनं दुष्ट वृ हा ४.१९१ तपोदानावमानौ च नव दक्ष ३.१३ तन्मूर्तिप्रीतये शक्त्या वृ हा ५.१५४ मिदं सर्व मनु ११.२३५ तन्मूले वे ललाटास्थि ___या ३.८९ त विद्या च विप्रस्य मनु १२.१०४ तन्मे क्षणेनोद् धृतं कण्व ७७१ तपोवीजप्रभावैस्तु मनु १०.४२ तन्वन्ति पितरस्तस्य व १.११.३९ तपोमहर्बहिश्चाक्षो भार १९.२५ तपः क्रीता प्रजा राज्ञा नारद १८.२३ तपोमासि सिते पक्षे व २.६.२४५ तपणं ऋषियज्ञः स्यात् वृ.गौ. ८.१० तपोयुक्तस्य तस्यापि वृ.गौ. ७.९९ तपत्यादित्यवच्चैष मनु ७.६ तपोवनमृषीणां यत्त भार १५.५७ तपः परं कृतयुगे पराशर १.२३ तपो वाचं रतिचैवं मनु १.२५ तपः परं कृतयुगे मनु १.८६ तपोविशेषौर्विविधैः मनु २.१६५ तपयेद् विधिनाऽनेन आश्व १.९४ तपो वेदविदां क्षान्ति या ३.३३ तपश्चरणयुक्तानां व २.६.४६१ तपो हियः सेवति वन्यवासः लहा ५.१० तपश्चरणसंयुक्ता वृ हा ८.२०९ तप्त काचनं वर्णाभं वृ हा ३.२२७ शाण्डि १.९५ तप्तकृच्छंचरन्द्रिपो मनु ११.२१५ तपसा दुतमन्यस्य ___ औ ८.२० तप्त कृच्छं विजानीयाच्छीतैः शंख १८.५ तपसान्तप एवाग्रं व्रताना वृ.गौ. ९.२४ तप्क्षीरघृताम्बू देवल ८४ तपसाऽपनुनुत्सुस्तु मनु ११.१०२ तप्तक्षीरघृताम्बू या ३.११७ तपसा ब्रह्मचर्येण या ३.१८८ तप्तचक्रेण विधिना . वृ हा ८.२८८ तासा वा सुतीवेण सर्व बृह ११.३३ तप्तत्रिशवपूर्व तु भूगर्भ . नारा ५.५४ तपसा शोषयेन्नित्यं शंख ६.५ तप्तं गोमूत्रमाज्यं वा वृपरा ८.१०६ तपसा सुसमुद्धृत्य बृ.या. ४.११ तप्तोदकस्य मध्येस्तु तण्डुलं विश्वा ८.१३ तपसैव विशुद्धस्य मनु ११.२४३ तप्तेऽयः शयने सार्ड या ३.२५८ तपस्तत्वाऽसृजब्रह्मा या १.१९८ तं कर्मण्यमासां च वत्सो शाण्डि ३.१२६ तपस्तपति योऽरण्ये अत्रि ३.५ तं चापि तनयं स्वीकृत्य . लोहि १८० तपस्तप्त्वाऽसृजधं मनु १.३३ तं चेदम्युदियात् सूर्यः मनु २.२२० तपस्तप्याति योऽरण्ये व १ २७.५ तं ज्ञेय तामसं स्वल्पं ब्र.या.११.९ तपा श्चेद Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ तं तस्य पितरः सर्वे तं त्यजेच्छक्तिमान्सोऽय तं दण्डयेद् वर्ष शतं तं दृष्ट्वा पुण्डरीकाक्ष तं देशकालौ शक्ति च तं पूजयित वा अन्नेन तं पृच्छन्ति महात्मान तं प्रतीतं स्वधर्मेण तं प्रत्तैवेति सूक्तेन तं भोजयित्वोपासीता मनु ७.१६ वृ.गौ. ६.४७ बृ.या. १.४ मनु ३.३ वृहा ८.५ व १.११.१३ भार ६.३ मनु ७.१२ आंपू १८४ व १.१.४२ मनु ७.२७ तं वनस्थमनाख्याय वृ हा ४.२३७ तं श्रुत्वा वा अथवा दृष्ट्वा वृ.गौ. ३.८३ तं सङ्गृह्य विधानेन लोहि २०६ तं मयूस्वकायायां तं यस्तुद्वेष्टि संमोहात्स तं योगं सुसमीक्ष्येत तं राज्ञा चानुशिष्यात् तं राजा प्रणयन्सम्यक् तं स्वीकुर्वन्ति विद्वांसः तं हि स्वयम्भू स्वादास्यात् तमग्रयं ब्राह्मणं मन्ये तमजानन्नपि तदा शास्त्र तमाभि प्रगायतेति तमसः परंगतस्या तमसा बहुरूपेण वेष्टिताः तमसा मूढचित्तस्तु जायते तमसो लक्षणं कामो तमात्मरूपं परमव्यंय तमुत्तायणे कर्यादुत्तरा तमुद्दिश्यदिवारात्र प्रलपन् तमुपनयेत्षष्ठं तमेव पूजयेद् रामं तमेव प्रतिगृह्णानो नरके तमेवं विद्वांसमेवं तमेव मनसा ध्यायेद् आंपू ५५२ नारा ३.५ वृ हा ४.२१४ विष्णु १.४४ वृ हा १.१६ मनु १.९४ वाधू १९४ लोहि ३११ वृ हा ६.३८ व २. ६.२२२ मनु १.४९ नारा ५.२२ मनु १२.३८ वृ परा १२.३७१ आंपू ६५४ लोहि २१० बौधा १.८.१४ वृ हा ३.२७३ अ ४६ बौधा १.२.५५ वृ हा १.२३ तमोनिविषृचित्तेन तमो ऽयं तु समाश्रित्य तया चेत्तेषु कृत्येषु तयाधर्मार्थकामानां तया न कुर्यात्पाकंचे तया वा तेन वोक्ते वाइभ्य स्मृति सन्दर्भ तयैवाक्षनृजानित्या तयैवाभ्यच्चर्यगोविन्दं तयोः प्रत्युपकारोऽपि तयोरनियतं प्रोक्तं वरणं तयोरन्नमदत्त्वा च भुक्त्वा तयोरपि च कुर्वीत तयोरपि पिता श्रेयान् तयोरप्युभयो रन्नं तयोरलाभे राजाहरेत तयोरेकान्तरं ज्येष्ठं तयोरेवाधिकारोऽयं तयोरेवाधिकरोऽयं तयोर्दासो मकारेण तयोर्नित्यं प्रियं कुर्याद् तयोर्मध्ये अमा ह्येषा तयोर्विद्वयं मध्ये तयोस्तदेव पावनम् तयोस्तु देवताषिदि तयोः स्वरीति जीवस्तु तरक्ष - गोमायु-मृगारि तरत् समन्दीधावति तरत्समाः शुद्धवत्यः तरन्ते मानवाः देवाः तरुणादित्य संकाश तरुणां स्थापने गोप कृष्णं तरुणारूप संपन्ना तरुणी सुकुमारांगी तरुणौ सुविषाणौ च तरुणादित्यवर्णानि वृ गौ. ३.३३ मनु १.५५ आंपू २१९ दक्ष ४.२ कपिल १९८ लोहि ५०२ भार ७.११६ वृ हा ५.१०५ औ १.३७ नारद १३.३ अत्रि ५.५ विश्वा १.५८ नारद २.३३ वृ.गौ. ११.२० व १.१७.७४ ब्र. या. ८.१८१ आंपू ३०४ कपिल ३८२ वृ हा ७.३८ मनु २.२२८ बृह ९.९८ भार २.१५ बौधा १.२.४२ वृ परा ३.६ वृ हा ३.८८ वृ परा ११.८७ वृ परा २.१३९ बृ. या. ७.२४ वृगौ ५.३ वृ हा ३.२५८ वृ हा ६.४३१ ब्र. या. ११.१९ वृ हा ३.२५ वृ परा १०.२९ बृ.गौ. १२.४८ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तर्जनी मध्यमांस्पृष्ट्वा तर्जनीमध्यमं अंगुष्ठ तर्जन्यंगुष्ठ योगेन तर्जयन्तीह दैत्यानां तर्पणं कुरुते पित्र तर्पमं गेवतादिभ्यः तर्पणान्तेऽस्य विधिना तर्पणे ब्रह्मयज्ञादिनित्य तर्पणेष्वखिलेष्वेनं सर्व तर्पणेष्वापि सर्वेषु नित्य तर्पयेदम्भसा भक्त्या तर्पयेद्देवता सर्वा तर्पितं च भवेत्तेन विश्व तर्पितं तेन सम्पूर्ण तर्पयित्वा तु देवांश्च तर्पयेन्नामभिः स्वैः स्वै तर्प्यमाणेषु कर्मत्वं तर्हि तेषां पुनः प्रायश्चित्त तर्हि पत्न्याः कथंचेति तलमध्यमविन्यासं तलयोर्मध्यमेविप्रः तलवद् दृश्यते व्योम तलास्थि श्वेतवृन्तांक तल्पस्थोऽपि सकामां तल्लिङ्गैः पूजयेद्देवा ताल्लिङ्गैरर्चयेन्मन्त्रैः तवास्मीतिय आत्मानम तवाहं वादिनं क्लीवं तवाह मित्युपगतो युद्धप्राप्त नारद ६.३२ तव्रपाध्यमितिब्रू यादयोऽसौ या १.३२६ व २.४.२० शंख १७.६३ वृ हा ८.५१ वृ हा २.३३ वृ हा ३.११३ वृ हा ३.९४ तस्कर श्वापादाकीर्णे तस्मा अरंगमामवेति तस्माच्चक्र विधानेनं तस्माच्चतुर्थ्या मंत्रस्य तस्माच्च नम इत्यत्र वाधऊ १३७ आश्व २.५६ शंख १०.७ ब्र. या. ३.३७ आश्व २४.३ भार ४.१६ विश्वा ८.४० कपिल ७१६ कपिल ७३१ लोहि ३०० वृ परा ६.७७ आश्व १३.५ बृह ९.१५१ ब्र. या. २.१८३ ल हा ६.१० व २.६.३८१ वृ परा २.१७९ कपिल ९७२ कपिल भार ६.६९ भार ६.६८ नारद १.६३ वृ हा ५.२७७ वृ परा १२.३५३ ब्र. या. २.१०६ बृ.या. ७.९४ नारद ६.३८ तस्माच्च पापिना ग्राह्य तस्माच्च वैष्णवा तस्माच्च श्रुतवान् तस्माच्छास्त्रानुसारेण तस्माच्छास्त्रेदृढा कार्या तस्माच्छुकमथार्द वा तस्माच्छूद्रं च भिक्षेरन् तस्माच्छूद्र समासाद्य तस्माच्छौचं कृत्वा तस्माच्छ्राद्धेषु सर्वेषु तस्माच्छ्रेष्ठं स्वयं वीजं तस्माच्छ्रोत्रियं तस्माज्जगति यो मोहात् तस्माज्जनै प्रदातव्य ३५७ बृ. य. ४.७ व २.१.६ वृ परा ११.२०६ बृ. य. ४.३० शाण्डि ४.१९४ ल हा ४.६ वृ परा ६.३११ आंउ ५.१३ बौधा १.४.३ कात्या ४.२ भार १५.१२ व १.२.१० कपिल ७२७ आंउ ७.६ तस्माज्जातानुतापस्य तस्माज्जितेंद्रियो नित्यं तस्माज्ज्येष्ठं पुत्र तस्माण्णकारषकारावनु तस्मात् अन्नान् परं दानम् तस्मात् अन्नात् परं दानम् तस्मात् अन्नं प्रदातव्यम् तस्मात् अन्नं विशेषणे तस्मात् अष्टाक्षरं मन्त्रम् तस्मात्कर्मावशिष्टेन तस्मात् कलौत्विमान् तस्मात् कल्याणं गुणवान् तस्मात् कुश पवित्रेण तस्मात् कृष्णेति मंत्रोऽयं तस्मात् तदा भूपतयो तस्मात्तदिच्छया प्रीति तस्मात्तदुदयात्पूर्व तस्मात्तदुपशान्त्यर्थं तस्मात्तद्दत्तमुदकमस्माकं तस्मात् तं नावजानीयान् नारद १८.३० तस्मात शोधयेद् यत्ना वृ परा १२.३५१ वृ हा ६.२१९ भार ६.१६८ बौधा २.२.५ वृ हा ३.२०९ वृ.गौ. ६.२७ वृ.गौ. ६.२८ वृ गौ. ६.३१ वृ.गौ. ६.७४ वृ.गौ. ३.५७ कपिल २८७ नारा ७.३० वृ हा ३.१६६ वृ हा ४.४६ वृ हा ३.२९६ वृ परा ११.२९६ वृ परा ६.६४ कण्व २९१ वृ परा ११.९ कपिल ६१८ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तस्मात् तस्मादपहित वृपरा ७.३१५ तस्मात् प्रकाशर्यत् पराशर ९.६२ तस्मात् तस्यास्तत्र व १.५.१४ तस्मातप्रतिग्रहधनं च । अ १३६ तस्मात्तानि न शूदाय बृ.गौ. २१.१८ तस्मातप्रतिग्रहस्यैव अ १०७ तस्मात्तामभ्यसेन्नित्यं शख १२.२६ तस्मात् प्रत्यक्ष दृष्टोऽपि नारद १.६४ तस्मात्ताः सर्वथा रक्ष्या वृ परा ६.५८ तस्मात् प्रयन्नाती औ ५.३१ तस्मातास्तु न हन्तव्यास्तभि वृ.गौ. ८.२६ तस्मात् प्रातः प्रशंसन्ति बृ.या. ७.१२४ तस्मातु क्लृप्ता इत्युक्तां आंपू ६३८ तस्मात् प्राप्ताय यतये ल हा ४.६३ तस्मात् तत्कृतं राजा दान कपिल ६४१ तस्मात् विमुक्तिमन्विच्छन् वृ.गौ.९.५८ तस्मात्तु नमसेवैषां वृ हा ३.९८ तस्मात्संकल्पयित्वाऽथ आंपू ८०८ तस्मात्तु ब्राह्मणो _ व २.२७ तस्मात् सदैव कर्तव्यं कात्या १२.५ तस्मात्तु यदि वर्णीस्या लोहि ४१९ तस्मात्सदभि सदाकार्य कर्म कपिल ४४६ तस्मात्तु विधिवच्चक्रं व २.१.४० तस्मात्संततिविच्छित्तौ कपिल ५१० तस्मास्तु वैष्णवास्त्वेव व २.७.२६ तस्मात्सभ्यः सभां प्राप्य नारद १.७५ तस्मात्तु वैष्णवो भूत्वा वृ हा ५.२९ तस्मात्समस्तकार्येषु भार १८.. तस्मात्तु सततं धार्य वृ हा २.६२ तस्मात् समिद्धे होतव्यं कात्या ९.१ तस्मात्तु सात्विको भूत्वा वृ.गौ. ८.११५ तस्मात्सम्यक्स्वर कण्व १८१ तस्मात्तेजो यशो वीर्य वृ.गौ. १२.४५ तस्मात्सर्वत्र ता दृष्टाः आंपू १३ तस्मात्ते तु नगन्तव्या वृ .गौ. ९.६१ तस्मात् सर्वपर्यलेन औ ५.८५ तस्मात् ते न अवमन्तव्या वृ.गौ. ३.७५ तस्मात्सर्वप्रकारेण जप भार ८.२ तस्मात्तेनेह कर्तव्य या ३.२२० तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भार १.११ तस्मात्ते हरिसंस्कारा व हा १.२७ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन भार ४.३ तस्मात् तोयं सदा देयम् वृ.गौ. ६.१३ तस्मात् सर्वप्रयत्नेन दक्ष २.५६ तस्मात्रिपुंड्र विप्राणां व २.१.१९ तस्मात् सर्वप्रयत्नेन ल व्यास १.४ तस्मात् त्रिवर्षपर्यन्तं नारा २.७ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ल व्यास १.३० तस्मात्पापं न कर्तव्यं नारा २.६ तस्मात् सर्वप्रयनेन लहा १.२४ तस्मात् त्यक्तकषायेणा दक्षु ७.२८ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन वृ.गौ. १९.४३ तस्मात् दानं सदा कार्य्यम् वृ.गौ. ३.५२ तस्मात् सर्व प्रयत्नेन वृ.गौ, २.४० तस्मात् धर्मः सदा कार्यो वृ.गौ. २.३३ तस्मात् सर्व प्रयत्लेन वृ परा ७.९८ तस्मात् न अकुशलं ब्रूयात् वृ.गौ. ४.५३ तस्मात्सर्व प्रमत्नेन ब्र.या. ३.२१ तस्मात्परां गतिं दिव्यां कपिल ३७८ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्र.या. ४.४६ तस्मात्पित्र्यादिके व २.६.३७८ तस्मात् सर्वप्रयत्नेन वृ हा ८.१६९ तस्मात् पुंस्कृत्या व १.२०.२७ तस्मात् सर्वप्रयत्नेन शंख ५.१३ तस्मात्पुरश्चरेद्धीमान् भार १९.४० तस्मात् सर्व प्रयत्लेन शंख १२.३१ तस्मात्पुत्रविवाहस्य कण्व ६८४ तस्मात्सर्वप्रयत्नेन बृ.गौ. ३.४० तस्मात्पुत्राः श्राद्धदिने कपिल २०९ तस्मात् सर्व सुविमलं व हा ५.२७९ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तस्मात्सर्वसपिण्डनां तस्मात्सर्वाणि कर्माणि तस्मात् सर्वास्व तस्मात् सर्वे प्रसूयन्ते तस्मात्सर्वेषु कालेषु तस्मात्सर्वेषु चाब्दादिका तस्मात् सर्वेषु दानेषु तस्मादिष्टिं विधानेन तस्मादुद्धृत्य पश्चात्तु तस्मादुपास्यविधिना तस्मादुष्णानि देयानि तस्मादेकाधिकेषु वैश्यम् तस्मादेतत्प्रभृति ते भुवने तस्मादेतं मतामंत्र तस्मादेताः सदा पूज्या तस्माद् उक्त प्रकारेण तस्माद्वंगिरसा पुण्यं तस्माद् एकान्त शीलेन वृ परा १२.१३७ तस्मादेनत्तादृशेषु योजयेन्न तस्मादेवंविधिख्यातो तस्मादोमिति प्रणवो तस्मादोमित्युदाहृत्य तस्मादौणसनसमं न धर्मान् तस्माद तिथये कार्ये ल हा ४.५९ तस्मादध्ययनं नित्यं कण्व २१८ तस्माद्त्यल्पसलिल तस्माद्दत्तसुतो लोके तस्मद्दत्तः स्वयं पश्चाज्जातं तस्मात्सहस्रपत्रन्तु तस्मादंशविनिष्क्रान्तं तस्मादनादिमध्यांतं तस्मादनुग्रहं कुर्याच तस्मादनुमतिं श्वश्रवोः तस्मादन्नमपोद् धृत्य तस्मादन्नं प्रदातव्यं तस्मादन्नं प्रयत्नेन तस्मादपापसंयुक्ता तस्मादपूर्वमेवात्र तस्मादभ्यर्चयेत् प्राप्तं तस्माद वैदिकं धर्म तस्मादवैष्णवत्वेन तस्मादवैष्णवत्वेन तस्मादशून्यहस्तेन तस्माद स्नात् पुनर्यज्ञः तस्मादहरहर्वेदं तस्मादात्महितं नित्यं तस्मादार्तं समासाद्य तस्मादिदं वेदविद्भि तस्मादिदं वेदविद्भि तस्मादिमान् कलियुगे तस्मादियं सदोपास्या कण्व ७५९ कण्व ३४ वृ परा १.३२५ बृह ९.१२ कण्व ११६ कण्व ३१ वृ.गौ. ६.१५ वृ.गौ. ८.७७ बृह ९.२९ वृ हा ८.२४१ आंउ १.५ ल व्यास २.४२ अ १२४ लोहि ५३८ व १.१४.२३ वृ. गौ. १२.४० वृ. गौ. १२.३८ वृ हा ४.१८२ वृ परा ४.२०२ वृ परा ४.२०१ वृ हा ८.१९२ व २.१.१५ वृ हा ५.२३ व १.११.२३ या ३.१२४ व्यास १.३८ आंपू ३१६ आंउ ७.२ अत्रिस ९ तस्माद्दत्तसुतः स्वस्व तस्मादृतुमतीं भार्या तस्माद् दास्यं परां तस्माद्दिद्युक्तमार्गेण तस्माद् दीक्षा विधानेन तस्माद् दुहितृमते तस्माद्देव इति प्रोक्त तस्माद् देशे काले च तस्माद्दोषं समुत्पन्नं तस्माद् दौहित्रतुलितो तस्माद् द्विजो मृतं शूद्र तस्माद् द्वितीयादि भार्या तस्माद् द्विनामा द्विमुखो तस्माद्धर्मं यमिष्टेषु तस्माद्धर्मं सदा कुर्यात् तस्माद्धर्मं सहायार्थ व्या ८ तस्माद्धर्मं सहायोऽस्तु नारा ८.७ तस्माद् धर्मासनं प्राप्य भार ६.१५० ३५९ व २.६.४१८ आं २२९ भार ६.१५९ ब्र. या. ४.९७ बौधा १.२.९ आं पू ५७४ वृ हा ३.२१६ मनु ३.५९ कपिल ९८ कण्व २१९ वृ हा ३.५७ बृ.या. २.१० कण्व ३३१ लोहि १११ कपिल ३७६ आंपू ३८१ आंपू ३४१ आंपू ३२२ वृ हा १.२१ भार ९.२ मनु ४.२४२ वृ.गौ. ११.३५ नारद १.२८ तस्माद् धान्यं धरित्रीञ्च वृ हा ४.१६० वृ हा २.१३३ व १.१.३६ बृह ९.५५ नारद ९.१२ कण्व ७३ लोहि २२१ पराशर ३.५४ लोहि ११८ बौधा १.११.३४ मनु ७.१३ अत्रिस १११ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० स्मृति सन्दर्भ तस्माद्वृषलभीतेन पराशर १२.३० तस्मान्मानस्तु चान्द्रोऽयं कण्व ३३ तस्माद् ब्रह्मचारी या बौधा १.२.५१ तस्मिन् कुम्भे लिखेद् वृ परा १०.९३ तस्माद् भागवत श्रेष्ठ वृ हा ६.१४२ तस्मिन्कौशेयवसने व २.७.५८ तस्माद्भगवतैर्भुक्तैः बृ.गौ. १८.१७ तस्मिन्ताताहिता ये वा पितरः कपिल २२४ तस्माद्यलेन कर्वव्य भार १५.४ तस्मिन् तिष्ठति बाढं लोहि ८९ तस्माद्यनेन महता आंपू ८२८ तस्मिन् देवमर्चयेद व २.६.३८ तस्माद्यलेन योगीन्द्र औ ४.१२ तस्मिन् देव्या समासीनं वृ हा ३.३०६ तस्माद्यम इव स्वामी मनु ८.१७३ तस्मिन् देशे येधर्मा व १.१.८ तस्माद् रजस्वलान्नं व १.५.१० तस्मिन् देशे य आचारः मनु २.१८ तस्माद् रागान्वितं वृ हा २.७० तस्मिन्ननौ तु जुहुयाद् व २.४.१२७ तस्मात् राजा ब्राह्मणस्वं बौधा १.५.१२२ तस्मिन्नण्डे स भगवानुषित्वा मनु १.१२ तस्मादिक्थं भूमिरूपं ज्ञातेय कपिल ५१७ तस्मिन्न तिष्ठते पापं शंखं १२.२७ तस्माद्वामत एवात्र वृ परा ७.८९ तस्मिन्नतीते वर्षः कण्व ३६० तस्माद्विद्वान्नाद्याद् वृ परा ६.२२६ तस्मिन् नवम्यां शुक्ले व हा ५.४३२ तस्माद् विद्वान् विभियाद् मनु ४.१९१ तस्मिन्नादौ शुभदिने वृ हा ६.७ तस्माद्विद्वान् सूत्रवेद आंपू ८४८ तस्मिन्नास्तीर्य पर्यङ्क व २.६.३७ तस्माद्विना कमण्डलुना बौधा १.४.२५ तस्मिन्नुत्सरिते पापे आंउ ३.६ तस्माद्विनिर्गतः पश्चात अ १३६ तस्मिन् निमंत्रितः श्राद्धे औ ५.१२ तस्माद् विवर्जयेत परा १२.२८३ तस्मिन्निविशते जीव नारा ५.१३ तस्माद् विवाहयेत् संवर्त ६८ तस्मिन् निवेश्य तं वृ हा ६.९९ तस्माद् वेदव्रतानीह ल हा ३.४ तस्मिन् निवेश्य देवेशं । वृ हा ६.२७ तस्माद् वेदस्य विष्णोश्च वृ हा ८.१७८ तस्मिन्नुपोष्य मध्याह्ने तू हा ५.४३३ तस्माद्वेदाहते नान्य बृह १२.२१ तस्मिन्नृषिसभामध्ये वृ परा १.९ तस्माद् वेदान्विधानेन कण्व १८३ तस्मिन्नृषिसभामध्ये पराशर १.८ तस्माद्वेदेन शास्त्रेण अत्रिस ३५१ तस्मिन्नेव नयेत् ल हा ३.१२ तस्माद् व्यालयो वृ हा ३.८६ तस्मिन्नेव प्रधानाग्नौ लोहि १३१ तस्माद् व्रतोपवासाद्य नारा ५.२.६ तस्मिन्नैव यजन्नित्यं वृ हा ५.११ तस्मान्नं गोत्रिणं विप्रं वृ परा ७.११५ तस्मिन्नेवानले सर्व लोहि १५५ तस्मान्न प्रतिगृह्णीयात् । अ ५१ तस्मिन्नेवौपासनेऽन्य लोहि १२२ तस्मान्न ब्राह्मणसमं कपिल ८७८ तस्मिन् पञ्च महायज्ञा बृ.गौ. १५.२० तस्मान्न लंघयेत् व्या २१९ तस्मिन् प्रतिष्ठितं बृ हा ९.११२ तस्मान्न लंघयेत् ल हा ४.१६ तस्मिन् बालार्क संकारो वृ हा ३.२५३ तस्मान्नारायण इति वृ हा ३.१०८ तस्मिन् मनोरमे पीठे वृ हा' ७.३२९ तस्मान्नारायणं देवं ल व्यास २.१६ तस्मिन्मन्त्रे समीचीन कण्व २१७ तस्मान्नाभिसमं दद्यात् भार १५.९३ तस्मिन्मूर्वा हरिवन्दे व २ .७.६६ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तस्मिन् मृत्यु भवेच्छेयो वृ हा ४.२१६ तस्य प्रतिक्रयां कर्तुं । शाता ५.२ तस्मिन् विकसिते पद्म वृ परा ६.१०५ तस्य प्रतिवसन्तस्य तादृशं कपिल ९७५ तस्मिश्चतुर्थीयुक्तवान् वृ हा ३.७२ तस्य प्रतिक्रियां कत्तुं शाता ५.१६ तस्मिंश्चेत् प्रतिगृहीत व १.१५.९ तस्य प्रदानविक्रय व १.१५.२ तस्मिन् श्राद्धदिने आंपू ११५ तस्य प्राप्तव्रतस्यायं व्यास १.२० तस्निन् सम्पूजिते वृ हा ६.१४३ तस्य भुक्तावशेषन्तु वृ हा ५.६८ तस्मिन् सम्पूजितो वृ हा ५. ४६५ तस्य मृत्यजनं ज्ञात्वा मनु ११.२२ तस्मिंस्तावन्निरोद्धव्यं बृ.या. २.१३८ तस्य भोक्तुः प्रकथिता लोहि ४४३ तस्मिन् स्वपति सुस्थे मनु १.५३ तस्य मध्यगतं ब्रह्म वृ परा १२.३१६ तस्मै तु नित्य को व २.६.२२३ तस्यमध्येकुसं विद्या बृह ९.१३० तस्मै दत्रं च तद्भुक्तं वृ परा ११.१५८ तस्य मध्ये सुपर्याप्तं मनु ७.७६ तस्य कर्मविवेकार्थ मनु १.१०२ तस्य मत्पुण्यमाख्यातं वृ.गौ. ७.११ तस्य कार्यो व्रतादेश आं उ ७.३ तस्य वर्षशते पूर्णे नारद २.१८४ तस्य कर्मादिकं ज्ञानं विश्वा ५.७ तस्य वृत्त कुलं शीलं या ३.४४ तस्य कालेऽप्यतीते तु कण्व ५०७ तस्य वृत्ति प्रजारक्षा नारद १८.३१ तस्य चान्तर्गतं धाम बृह ९.२६ तस्य वै तारयेत् पूर्वान् वृ परा १२.१ ४१ तस्यचेशानदिग्भागे भार ७.९३ तस्य वोढा शरीराणि या ३.८४ तस्यतत्तत्फलप्राप्ति भार १७.३० तस्य शक्तेरानुगुणो दण्डो कपिल ८३८ तस्य तुलायान्तु समारूढो अ १०८ तस्यशक्तेरानुगुण्यात् समं कपिल ८२२ तस्य दक्षिणकर्णन्तु व २.२.२४ तस्यशासने वर्तेत बौधा १.१०.८ तस्य दण्ड क्रियापेक्ष नारद १५.६ तस्य शीघ्रं विधायैव आंपू ९५९ तस्य दर्शनमात्रेण सचैल विश्वा १.१४ तस्य शुद्धिं प्रवक्ष्यामि देवल ८ तस्य दानस्य कौन्तेय बृ.गौ. १९.११ तस्य श्रवणमात्रेण वृ हा ३.२३९ तस्य दानात्परो वृ परा १०.१८२ तस्य श्राद्ध ततः कार्य आंपू १०६१ तस्य दासा भविष्यन्ति वृ हा ६.५ तस्य सर्वाणि भूतानि मनु ७.१५ तस्य नन्दन्ति ते सर्वे कण्व ६७५ तस्य सुप्तस्य नाभौ । ल हा १.१० तस्य नश्यति तत्पापं वृ.गौ. ९.३९ तस्य सूक्तस्य सर्वस्य वृ परा ४.१२३ तस्य नारायण वन्तु व २.६.६८ तस्य सुनुस्तथा न्यून आंपू ४०८ तस्य निष्क्रयणानि व १.२२.३ तस्य सोऽहर्निशस्यान्ते मनु १.७.४ तस्य पापं न गच्छेत यथा विश्वा १.१०३ तस्य स्वरूपं रूपञ्च वृ हा १.२१ तस्य पापमगण्यं स्यान् विश्वा ४.२७ तस्य स्वरूपं रूपञ्च वृ १.२२ तस्य पुण्यफलं यह वृ.गौ.७.५८ तस्य स्वर्थधनं । लोहि ६२४ तस्य पुण्युपलं यद्वै वृ.गौ. ७.६२ तस्य हस्तोदकं दद्यात् वृ परा १०.१६४ तस्य पुण्यफलं वक्तुं आंपू ५०२ तस्या औपासने श्राद्ध आंपू ३९९ तस्य प्रजापतिश्च बृ.या. ४.९ तस्याक्षयो भवेल्लोकः बृ.गौ. २२.२० Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ स्मृति सन्दर्भ तस्यक्षयो भवेल्लोक विश्णु म ८८ तस्या सीरविदारेण वृ परा ५.१ ४३ तस्या चान्तर्गतो ह्यात्मा बृ.या. १.१० तस्यास्य नवकस्यापि कण्व ५१६ तस्या जातो जगन्नाथ वृ हा ५.४७२ तस्या स्वरूपं सत्त्वं शाण्डि १.६२ तस्याज्ञालङ्घयित्वैव व २.५.३ तस्याहं न प्रणश्यामि विष्णु म ७६ तस्यादायुधसम्पन्नं मनु ७.७५ तस्याहु सम्प्रणेतारं मनु ७.२६ तस्याऽऽदौ पंच संस्कारान् वृ हा २..१० तस्येत्युक्तवतो लोहं या २.१०७ तस्यानध्यायाः व १.१३.४ तस्येह त्रिविधस्यापि मनु १२.४ तस्यानुव्याख्यास्याम बौधा १.१.२ तस्येह दुर्लभं किञ्चिदिह भार १२.५० तस्यानुहरणं पश्चादथस्यो कण्व ३४८ तस्यैतस्य तु कृत्स्नस्य लोहि २०५ तस्यांते भवते तस्य अ १४८ तस्यैताः कथिता सद्भि आंपू २० तस्यान्नं नैव भोक्तव्यं अत्रिस १४७ तस्यैव किंकरोऽस्मीति वृ हा ३.१०९ तस्यान्नं नैव भोक्तव्यं अत्रिस १४८ तस्यैव चौर संवृत्या औसं ४२ तस्या पतित्वा धीशस्य वृ हा ३.१६३ तस्यैव दीयते दानं अत्रिस ३ ४१ तस्यापि तत्स्पृष्टितश्च व २.६.४८० तस्यैव पुरतः पश्चात् व २.४.१२६ तस्यापि वारको याग ___ आंपू ३० तस्यैव पौर्णमास्याञ्च वृ हा ५.४५२ तस्याः पुत्रशतं नष्ट ब्र.या. ९.३२ तस्यैव भेदः स्तेयं नारद १५.११ तस्याऽपि यन्निदान कपिल ९५ तस्यैवायुष्यमित्युक्तं वृ हा ३.२१० तस्यापि शतशोभाग शंख ७.३२ तस्यैवैवं महाघोरे संकटे कपिल २९५ तस्याप्यन्नं सोदकुम्भ आंपू ८७६ तस्योत्तरत्र कार्येषु लोहि ५ तस्याप्यन्नं सोदकुंभ तस्योल्वा (ल्व) हतिथतो बृह ९.६६ तस्या प्रतिगृहीता च वृ.गौ. १०.६१ तस्योपनयनं भूयश्चो आंपू ६९ तस्याभर्तुरभिचार व १.५.५ तस्योपरि घृतं क्षिप्त्वा विश्वा ८.१६ मिष्टयां वृ हा ७.२२४ तस्योपरि न्यसेद्देवं शाता २.५ तस्यां निवेश्य दोलायां वृ हा ५.५०७ तस्योपरि न्यसेद्देवं शाता ५.३ तस्यां यावन्ति रोमाणि संवर्त ७८ तस्योपरि न्यसे वं शाता ५.१० तस्यां शस्यानि रोहन्ति वृ.गौ. १२.४२ तस्योपरिष्ठत्कलशं भार १५.८१ तस्यां स्नान उपवास वृ हा ५.५१७ तस्वास्य दिव्यरूपस्य आंपू ४९८ तस्यां स्नानोपवासाद्यैः । व २.६.२५८ ताडयन्तमहोरात्र लोहि ६५८ तस्यामुत्पादितः पुत्रो व्यास २.१० ताडयित्वा तणेनापि मनु ४.१६६ तस्यामेव तु यो वृत्तौ नारद २.५६ ताडयित्वा तृणेनापि मनु ११.२०६ तस्यामेव प्रकुर्वीत वृ हा ७.२२३ ताडयित्वा तृणेनापि पराशर ११.५० तस्यार्थे सर्वभूतानां मनु ७.१४ ताडयित्वा तृणेनापि वृ परा ८.२८३ तस्याश्चैव तु ओंकारो वृ परा ३.५ ताडयित्वा स्थापयित्वा लोहि ६९० तस्याश्चैव तु ओंकारो वृ परा ३.५ ताडयेन्मुंच मुंचेति वृ परा ११.१.७५ तस्या समन्वारब्धायां व २.४.४८ तातगोत्र्येव विज्ञेय एवं लोहि ३३२ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३६३ ताततत्ताततातानां यावदेकं कपिल ११४ तानेकाजलिदाने व्यास ३.१९ ताते सति कलत्रस्य आंपू ४४२ तान्तवस्य च संस्कारे नारद १०.१३ तात वत्स न भेतव्यं नारा ४.१० तान्दोष न्क्षिमते यस्तु प्रजा ८७ तादृग्गुणसमयुक्तमाचार्य व २.७.१२ तान्नित्यं धार्मिको राजा लोहि २३४ तादृङ्मातृस्वसृभ्रातृपत्नी कपिल ६१९ तान्यजन्नेव विधिना लोहि ३१० तादृशं तमिमं यो वै आंपू ६०४ तान्येव सप्त च्छन्दांसि बृ.या. ३.२ तादृशं तमिमं राजा बला लोहि ६१७ तान् विदित्वा सुचरितै मनु ९.२६१ तादृशं परमं दिव्यं दर्श कपिल १७१ तान् विदित्वा सुनिपुणैः नारद १८.५८ तादृशं प्रयतं दान्तमलो आं पू ७७० तान् सर्वानाभिसंदध्यात् मनु ७.१५९ तादृशं रूपमाप्नोति ततः शाण्डि १.६७ तान् सर्वान्दीप्यमाने ऽस्मिन् लोहि २५ तादृशश्राद्धकर्तापि आंपू ७०३ तापयेन्नीलवृतेन वह्नि व २.५.५६ तादृशस्तनयः पूर्वैस्तत्ताता कपिल १०६ तापसा यतयो विप्रा मनु १२.४८ तादृशस्य कथंदाने ऽधिकारः लोहि ५१४ तापसेष्वेव विप्रेषु मनु ६.२७ तादृशस्यास्य करणं लोहि १०६ तापादि पञ्च संस्कारा व २.७.१५ तादृशान्येव सर्वाणि नात्र कपिल ९०३ ताबुभावप्यसंस्कार्या मनु १०.६८ तादृशायै शपत्येन लोहि १५१ ताभिरेव तमुद्दिश्य वृ हा ७.४५ तादृशेष्वेष कृत्येषु लोहि ४३३ ताभिरेव तु दद्यातु वृ हा ८.९५ तादृश्येव तथा कुर्यात् कपिल ५६१ ताभिर्यदि कृताः पाकाः कपिल ५३५ तानताय गृहीत्वा __ अ५ ताभिश्चसृभि प्रस्थ वृ परा १०.३०९ तानि कुर्यात्तु मोहेन आंपू ९६ ताभिश्च राजकन्यानां वृ हा ३.३१६ तानि शिष्टानि सर्वाणि आंपू ७२९ ताम्य सारं तु गायत्री बृ.या. ४.७८ तानि तानिस्पृशेत्पाणि वृ हा ८.९२ ताभ्यां चापि बलिं आश्व १.१३१ तानि वै यज्ञियान्यत्र वृ हा ८.२६५ ताभ्यां स शकलाभ्यां मनु १.१३ तानि सर्वाणि कृत्यानि भार १८.७५ ताभ्यामाच्छाद्य तत्पश्चात् आंपू ८७ तानि सर्वाणि पुष्पाणि भार १४.१४ तां कन्या वरये पूर्व व २.४.१७ तानि स्वकरतः शीघ्रं आंपू ५६१ तां कलां यो विजानाति वृ परा ६.९६ तानेतानखिलान्नो चेद्वानिर कपिल ८७२ ता क्रियां तत्स्वरूपं कण्व ४०६ तान्पिण्डान्निक्षिपेदग्नौ व २.६.२८९ तां गायत्रीपरित्यज्यं भार १२.४४ तान् पृच्छेदन्न संपन्नं आश्व २३.७० तां चारयित्वा त्रीन् बृ.या. ४.७३ तान् प्रजापतिराहैत्य मनु ४.२२५ तां तां सिद्धिमवाप्नोति। वृ हा ३.२०२ तान् प्रतिग्रहजान् १३२ तांतु प्रोवाच प्रीतात्मा बृ.या. ७.२ तानचंयन्ति मद्भक्त्या बृ.गौ. १७.१३ तां दिशं निरुक्षत्ति बौधा २.५.९ तानन्यांश्च द्विजान् वृ परा ११.३० तां देवता नमस्कृत्य लोहि ५०८ तानि दद्यात् स्नानपात्रे व हा ४.७४ तां पवित्र दैवत्यैरिज्यते वृ हा ७.२३६ तानि पातकसंज्ञानि वृ हा ६.२०९ तां रात्रि क्षपयेत् व २.७.८० Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ तामभ्यनुज्ञाभार्यायाः पुत्र तां विवर्जयतस्तस्य तामसानां विमूढानां तामसान् यक्षभूतानि तामिस्रमंतामिस्रं पूयं तामिस्रं लोहशंकुञ्च तामिस्रमन्धतामिस्रं तामिस्र मन्धातामिस्रं तामिस्रादिषु चोग्रेषु तामुद्दिश्य च ये मूर्खा तामुद्वहेद् भेद सूर्यः तामेव द्विगुणाधीत्य तामेव विक्रयं कुर्वन्न ताम्बूल फल पुष्पाद्यै ताम्बूलं च ततो दद्यात् ताम्बूलं चैव यो दद्याद् ताम्बूलं भावयेच्छ्राद्ध ताम्बूलमासनं शय्यां ताम्बूल हरणाच्चैव ताम्रचर्माश्वाबालांबु ताम्र पट्टे पटे वाऽपि ताम्रपर्ण्यश्चसेतोश्च ताम्रपात्रं न्यसेत्तत्र ताम्रपात्रे न गोक्षीरं ताम्रपृष्ठे क्षुपादा च ताम्रमाज्यभृतं पात्र ताम्ररजत सुवर्णानां ताम्रस्थो पायसं भुक्त्वा ताम्रायः कांस्यरैत्यानां ताम्रिकात् स्फटिकाद् ताम्रे पंचपलं विद्याद् तारणेषु चतुर्दिक्ष तारतम्येन दातव्यं तारयंति हि दातारं तारयन्तीह दत्तानि कपिल ७१३ मनु ४.४२ शाण्डि ४.१९५ बृह ९.७८ अ ७८ या ३.२२२ मनु ४.८८ वृ हा ६.१६१ मनु १२.७५ कपिल ५८७ तारयेत्तत् सहस्रांशु तारव्याहृतिगायत्र्या तारानक्षत्रसंचारै तारिकः स्थलजं शुल्कं तार्थ अभावे तु कर्तव्यं तार्यन्ते प्राक्ततो ऽधस्ता तार्यते कर्मणा चायं तालत्रयमीपतत्वज्ञा तालमस्वत्थकाष्ठं च तालहिन्तालमाधूक तालुस्थाs चलाजिह्वश्च ब्र. या. ८.१६१ ब्र. या. १.३८ तालूदरं वस्ति शीर्ष अ ९५ वृ हा ५.५१४ आव २३.१०५ संवर्त ५६ भार १४.६० ब्र. या. ११.६३ शांता ४.१७ भार ४.३४ वृ परा १०.१७९ कण्व २३ वृ परा १०.५६ वृ परा १०.१३२ बौधा १.५.३५ ब्र. या. २.१८७ मनु ५.११४ या १.२९७ नारद १०.१२ वृ हा ५.१२३ बृ.य. ४.४१ वृहस्पति १९ वृ.गौ. ६.१७३ तावकीमभिगन्तास्मीत्यहं तावच्च संग्रहेदग्निं तावच्चीर्णव्रतस्यापि तावत्कालं प्रमोदन्ते तावत्कोटिसहस्राणि स्वर्ग तावत्क्रियाभि सम्यऽवै ताक्तत्र न भोक्तव्यं तावत् तिष्ठेन् निराहारा तावत्तिष्ठेन्निहारा ताक्तु तस्य स्वीकारे शाता २.१५ तावत्रिगुणितं सूर प्रजा ११४ तावत् प्राणस्तु विज्ञेयो तावत् संख्यानि वर्षाणि तावत्संख्यान्नाहुतीश्च तावत्सर्गोभोगानां भोक्तारं तावदप्रयतो ऽन्ये तावदेय हि विप्रत्वं तावद्गोपुच्छलोमानि तावद्भवेद्यज्ञसूत्र यदि तावद्यदिच्छेत् कपिला तावद्वर्षसहस्राणि दाता तावद्वर्षसहस्राणि मम तावद्वर्ष सहस्राणि स्मृति सन्दर्भ बृ.गौ. १५.८३ औ २.४५ या ३.१७२ या २.२६६ शंखं ८.९ वृ परा ६.१६ वृ परा १२.१९८ ब्र. या. २.५१ शाण्डि ३.१०५ वृ हा ६.१७८ बृह ९.१९० या ३.९८ कपिल ८१९ व २.६.४२० बृ.य. ३.६० बृ.गौ. १५.७१ वृ.गौ. ६.१६४ कण्व २७४ ब्र. या. ९.२५ वृ हा ६.३६८ व २.६.४८८ लोहि २६० ब्र. या. ८.७५ वृ परा १२.२२८ वृ परा १०.३७३ कण्व ३७६ वृ.गौ. ६.१०३ औ ६.२२ कण्व ७०६ आंपू ६० भार १६.४५ वृ.गौ. १०.६३ वृ.गौ. १०.८ वृ.गौ. ७.१३ वृ.गौ. ६.१७१ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तावद्वर्षसहस्राणि सोऽग्नि वृ.गौ. ९.६६ तिरस्करणिकानां च रज्जूनां कपिल ४३७ तावन्न प्राशयेत् पिंड आश्व २३.८५ तिरस्कुर्वन्ति सहसा । आंपू ३७३ तावन्त्यत्ष्ट सहस्राणि वृ परा २०.१४२ तिरस्कृत्योच्चरेत्काष्ठ मनु ४.४९ तावन्मात्रस्य कर्तारः मिलित्वा कपिल ४६६ तिरी (रो) हितस्तत्रवेदः कपिल १८ तावन्मात्रेण तेषान्तु नित्यमेव कपिल ६३ ती|नेन विधानेन नारद १९.१८ तावन्मात्रेण संतुष्टा आंपू ५६४ तीर्थस्नानं महादानं अत्रिस ३९३ तावन्मात्रेण सर्वेषां कण्व ३३३ तीर्थानि यानि पुण्यानि वृ परा १.४४ तावन्मासस्तु पक्षो वा कण्व ५५० तीर्थेन सहितं हव्यं वृ हा ४.१२६ तावुऔ ब्रह्मणा प्रोक्तं ब्र.या. ५.७ तीर्थे पापं न कुर्वीतं वाधू १६१ तावुभौ भूतसंपृक्तौ मनु १२.१४ तीर्थे पुण्यै पवित्रैश्च लोहि ४१४ ताश्च धृत्वाऽथ तच्च भार १६.५९ तिर्यक् पुण्ड्रधरं विप्रं वृ हा ८.२८३ ताश्च स्वाध्यायतिथयो भार १५.४५ तिर्यक् पुण्डधरं विप्र । वृ हा २.४९ तासांच्च तस्य प्रवराः वृ.गौ. १०.१७ तिर्यक् पुण्ड्रधरं विप्रं वृ हा २.६३ तासां क्रमेण सर्वासां मनु ३.६९ तिर्यक्पुंझं न कुर्वीत व्या ३६ तासां च पितरः सर्वे __ आंपू ३९३ तिर्थगूर्ध्य समिन्मात्रा कात्या १५.१२ तासां चेदवरूद्धानां मनु ८.२३६ तिर्यङ्मनुष्ययोनौ प्रजा ४२ तासां पाको न भोक्तव्यो विश्वा ८.६२ तिल अक्षत ओदकैः वृ परा ७.१५६ तासां प्रकथिता सदाभि लोहि ४४९ तिलकं यत्र संयुक्तं मन्त्र विश्व १.१०९ तासां सोमोऽददाच्छौचं व १.२८.६ तिलकेन विनाविप्रो व्या १९७ तासामनवरुद्धानां नारद ७.१७ तिलकेन विना संध्या व्या ३२ तासामाधाश्चतमस्तु मनु ३.४७ तिल तण्डुल पक्वान्नं व १.२.४३ तासुश्चैवेति मन्त्रेण व २.३.८२ तिल तण्डुलमुदगाश्च ब्र.या. ८.३०८ तास्युस्ता निखिलान्यत्र कण्व ५०८ तिलदोणत्रयं कुर्यात्त आंपू १०९७ तासु पुत्राः सवर्ण बौधा १.८.६ तिलधेनुंच यो दद्यात् संवर्त २०२ तित्तिरं च मयूरं च शख १७.२७ तिलधनु प्रवक्ष्यामि वृ परा १०.४९ तित्तिरौ तु तिलेद्रोणं या ३.२७४ तिलधेनुस्तृतीया तु - अ ३१ तिथि काल इति प्रोक्तो आंपू २७१ तिलपर्वकरं यस्तु वृ.गौ. ६.१४७ तिथिक्षयपुयोभुंक्ते स ब्र.या. ९.२७ तिलपात्रच्युतं तोय वृ परा ५.८९ तिथिनक्षत्रयोगानां मुहूर्त बृ.गौ.१५.५७ तिलपात्र तु यो दद्यात् अत्रिस ३२९ तिथि वृद्धया चरेत् देवल ८९ तिलपुष्पकुशादीनि दक्ष २.३६ तिथिवृद्धया चरेत या ३.३२३ तिल प्रसृतिभि भाण्डं वृ परा १०.३१० तिथ्यग्नी न तिथिस्ति आंपू ६३७ तिल प्रादानादमते पितृ वृ.गौ. ६.१६१ तिथ्यादीन्यदि संकल्पे कण्व ५१ तिलं द्विगुणकं प्रोक्तं ब्र.या. ११.३८ तिटुंरक्कदिरश्चेति भार २.२९ तिलं मासं तथाऽऽन्नं शाण्डि ३.३८ तिभिश्चतुर्मिश्च कुशः भार १८.११२ तिलमाषव्रीहियवान आंपू १०१३ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६६ तिलवत्सर्ववस्तूनि तिलविक्रयणे चान्द्र तिलहोमं प्रकुर्वीत तिलहोमायुतं कृत्वा तिला अपि समा देया तिलानां तु तदर्धस्यात्त् तिलानां धान्यवस्त्राणां तिलास्पृताक्तान्जुहुया विलेन वै भवान्ते तिलैः प्रच्छादितां दद्यात् तिलैरूथ्याप्यते मूर्द्धा तिलैर्द मैर्निधायाथ तिलौर्वा कुसुमै वाऽपि तिलैव्रीहियवैमाषैरद्भि तिलैश्च जुहुयात् तिलैश्च जुहुयाद् वनौ तिलैश्च पंचगव्यैश्च तिलैश्च व्रीहिभि तिलैः स्नात्वा विधानेन तिलोऽसि तारापति तिलोदकं करेदत्वा तिलोदकै पितृन्सम्यक्त तिलो ऽसिपितृदैव तिलौदनं च नैवेद्य वृ परा ६.२५७ नारा १.२० देवल ६९ तिलानचावाकिरेत्तत्र शंख १७.१६ औ ५.१८ तिलानद्यत्तिलान् बृ.गौ. १३.२९ तिलान् कृष्णाजिने कृत्वा अत्रि ३.२३ तिलान् न्दर्भाश्च नित्यार्थं वृ परा १०.२२४ बृ.गौ. १७.५९ बृ.गौ. १३.२८ वृ परा ५.१३८ विलान्वाथ घृतं वाऽपि तिला पवित्रा पापघ्ना तिला बहुविधाश्चोप्या व्रिलां त्रयाल्वी चिला रखा न विक्रेया विलाचैनं तिलमुखं विलास्तु देवतारूपा व २.७.६५ वृ हा ३.२३१ वृ परा ६.२५६ वाधू १४५ पराशर २.८ आंपू १०९९ बृ.गौ. १३.३० भार ९.३४ वृ हा ५.४७५ वृ.गौ. १०.९ ब्र.या. ३.४७ व २.६.३२८ वृ हा ४.१३५ मनु ३.२६७ वृ हा ६.१०६ वृ हा ५.५५३ वृ हा ६.८७ व २.६.४०७ वृ हा ५.३५४ वृ परा ७.१९८ वृ परा ७.३१८ व २.६.१४२ तिष्ठगे विवशोदीनो तिष्ठत्युरसि तस्यास्तु तिष्ठन तदेक्षमाणोऽर्कं तिष्ठंनचेद्वीक्ष्यमाणोऽर्कं तिष्ठन्ति किल तत्पूजा तिष्ठन्तीभिश्च तिष्ठेत तिष्ठन्तीष्वनुतिष्ठेस्तु तिष्ठन्तोऽपि च ते तिष्ठन्त्येकत्र मंत्रास्तु तिष्ठन्धावन्प्रजल्पन् तिष्ठन्नग्नेरूपस्थानं तिष्ठन्नमन् स्वपन् तिष्ठन्नासीनः प्रवो बृ.या. ७.१३५ आं पू ८६८ वृ परा ८.१२८ मनु ११.११२ वृ परा २.१५० वृ परा ५.३१ कण्व १४८ आश्व २.७५ भार ४.१० कात्या १.१० आश्व ४.१२ वृ परा ७.२७५ संवर्त ९ व्या १०२ तिष्ठन् पश्चात् प्राङ्मुखो विष्ठन् पिंडान्तिके विष्ठन् पूर्वा जपं विष्ठनप्रक्षालयेत्पादौ तिष्ठन्मनो न कुर्वीत तिष्ठन् स्थित्वा तु तिष्ठन् व्रजंस्तथा ऽऽसीनः वृ परा ४.१४६ तिष्ठेतं प्रत्यङ् मुखी तिष्ठेदुदयनात् पूर्वां ब्र. या. ८.१३७ व्यास ३.९ आस्व १५.२३ कात्या ११.१४ तिष्ठेद्यश्च शिलोंच्छायां वृ परा १२.१५७ तिष्ठेन् मासं पयोऽशित्वा वृ परा ८.११६ तिष्ठेन्नाव्रति कस्तत्र वृ परा १२.१०५ भार १५.४८ कपिल ६३८ आश्व १.४६ पराशर ४.२७ तिष्यः पुनर्वसूचेतिताराः तिसृणामपि चैतासामन्वहं तिसृभिर्भूः प्रभृतिभिः तिस्रः कोट्यर्द्धकोटी च तिस्र कोटयर्द्ध कोटी तिस्रः कोट्योर्ध तिस्रश्चैता पौर्णमास्यो तिम्रः सार्धास्तथा मात्राः तिस्रः सार्धास्तु कर्तव्या ब्र. या. ४.७५ ब्र. या. १०.१४७ तिस्रस्तु पादयोर्ज्ञेयाः स्मृति सन्दर्भ व २.५.७२ वृ. गौ. १०.५१ व व्यास २.२९ वृ हा ८.२९२ व २.५.६८ वृ परा १०.३५४ बृ. या. २.१३३ बृ.या. २.६ शंख १६.२३ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तिसो ब्राह्मणस्य भार्याी तिम्रो मात्रा लयं यान्ति तिम्रो राजन्यस्य तिम्रो रात्रीरापगास्ता तिस्रोवर्णानुपूर्वेण तिम्रो वर्णानुपूर्वेण तिम्रो वैश्यस्य तिम्रोष्टकागजच्छाया तीक्ष्णता निकृतिर्माया तीक्ष्णश्चैव मृदुश्च तीन्दृदपुरुषोमथ्य तीरितं चानुशिष्टं च यो तीरितं चानुशिष्टं च तीर्णे भूयो न पश्येत तीर्थ दानं व्रतं यज्ञ तीर्थप्रतिग्रही दृष्टो यदि तीर्थं प्राप्यानुषंगेण तीर्थाभावे ऽप्यशक्त्यां तीर्थमावाहयिष्यामि तीर्थमावाहयिष्यामि तीर्थयात्रा विवाहेषु तीर्थ श्राद्धं गया श्राद्धं तीर्थानि वेदाः सकलं तीर्थे नद्यां तटाके वा तीर्थे नद्यां हदे वापि तोर्थेः पवित्रैः परमै तीर्थे शौचं न कुर्वीत तीर्यत्रिकान्तोन्माद तुच्छानतुच्छैः समतः तुच्छेन येनकेनापि तुच्छो दृष्यः प्रभवति तुण्डिकेरान्यलाबूनि तुभ्यं दास्यम्यहमीति तुभ्यन्ताद्यास्तथा प्रोक्ता तुभ्यं हिन्वान इत्यनेन व १.१.२४ बृ.या. २.३२ बौधा १.८.३ आंपू ९२९ र. या. ८.२२० या १.५७ तुर्यपादं न्यसेद्वामे भुजे तुर्यपादं विनान्याससमा तुर्यभागीति कथित न तुर्ये निष्क्रमणं मासे तुर्ये प्राणे तथाss दित्ये तुलसी काचनं गाञ्च तुलसी कानने रम्ये तुलसी गन्धमाघ्राय पितर तुलसीं चाहरेत्पत्रपुष्पाद्य तुलसी जाति पुष्पं च तुलसी भृंगराजं च तुलसीमंजरीश्चैव तुलसी राजवृक्षौ च तुलसीवाटिकाः कुर्याद् तुलसी वा पितृणाञ्च तुलसी विल्व पत्राणि तुलस्यः सर्वदेवानां तुलाग्न्यापो विषं कोशो तुलाधृतं अष्टगुणं तुलापुरुष इत्येष ज्ञेयः तुलापुरुष-भूमी च तुलामादौ गोसहस्रं कल्प तुलामानं प्रतीमानं तुलाशासनमानाना बौधा २.१.१० कपिल १५७ वृ. गौ. ८.१०९ मनु ७.१४० ब्र. या. ८.२३६ नारद १.५६ मनु ९.२३३ बृ. या. ४.५२ बृह १२.३१ आंपू ७६८ शंख ८.१२ व्यास ३.७ शंख ९.४ ब्र. या. २.१६ व्या २२८ वृ परा ७.३४३ भार १२.४५ व २.६.१३१ व २.६.३३९ कपिल २१४ व्या ३४२ व्यास १.२८ कपिल ८१३ तुरिय्यपादमेतस्या ज्ञात्वा तुरीयपञ्चमाभ्यां च सप्त तुरीपदस्य विमल तुरीये धाम्नि यस्तिष्ठेत् तुरीयो ब्रह्महत्यायाः लोहि १७९ तुलास्त्री बाल वृद्धा लोहि २१२ वृ परा ७.२४४ व्यास २.८ कण्व ५३६ वृ हा ८.५५ तुल्यं गोशतदानस्य तुलितो न क्रियायोग्यो तुलितो यदि वर्धेन स तुल्पो भवेदौरसेन न पित्र्येषु तुल्यफलानि सर्वाणि वृ ३६७ बार ६.१५४ लोहि ३८३ ब्र.या. २.८१ प्रजा ७९ वृ परा ६.१५० ब्र.या. २.२२ वृ हा ४.१२ वृ हा ३.३०१ ब्र. या. ३.६२ शाण्डि ३.१२ व २.६.५८ ब्र.या. ३.६३ व २.६.९५ मनु ११.१२७ विश्वा २.३८ विश्वा ६.५४ लोहि ५१ व २.५.५५ शाण्डि ३.१५ वृ हा ८.३२४ वृ हा ४.५२ प्रजा १०० या २.९७ व १.२.५१ अत्रिस १३० परा १०.२०४ कपिल ८८७ मनु ८.४०३ या २.२४३ या २.१०० लोहि २७१ नारद १९.८ कपिल ७०५ वृ परा २.८९ वृ परा ५.२८ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ स्मृति सन्दर्भ तुल्यार्थानां विकल्पः पु २५ तृतीयः पुत्रिका विज्ञायते व १.१७.१५ तुषांगारकपालेषु औ २.३८ तृतीयं क्रीतविक्रीतं वृ परा ५.१ ४२ तुषाज्जलं यवस्थं व परा ५.९१ तृतीयं नाम संस्कार व हा २.९२ तुष्टिश्च परमाख्याता व्र.या. १०.७३ तृतीयं पितृमेधार्थं वैश्वेदवे विश्वा ८.१२ तुष्ट्यर्थं वासुदेवस्य वृ हा ६.७९ तृतीयं सूर्य दैवत्यं बृ.या. ४.६४ तुष्यन्ति अन्नेन यस्मात् वृ.गौ. ६.२९ तृतीय मण्डलं पश्चात् वृ हा ७.१०१ तू ययं तारयध्वं मा वृ परा ११.२३४ तृतीयया च तत्पाद्यं वृ हा ५.२०५ तूर्यघौषैर्नृत्यगीते व २.६.२६६ तृतीयवत्सरे चौलं व २.३.१९ सूर्यधोषैर्नृत्तगीते व २.७.५४ तृतीय वामपादे तु व २.६.१५३ तूलिका उपधानानि पुष्पं यम ५० तृतीयः शिष्टागमः बौधा १.१.४ तूष्टि (ष्णी) करणवा (रा) कपिल २३७ तृतीयांगुलमुष्टीनां भार१८.११७ तूष्णीकं परमेशस्य तुष्टये कपिल ९१८ तृतीयावरणं तस्य वृ हा ३.२६८ तूष्णी कुचं ततो गृह्यस्वयं कपिल ३१५ तृतीये चैवभागे तु दक्ष २.२८ तूष्णी तिष्ठन्ति वा कण्व १५५ तृतीये तूदकं कृत्वा अत्रिस २१८ तूष्णी पृथगपो दत्वा कात्या १७.८ तृतीये येन भूयश्च आश्व ९.१५ तूष्णी यत्र तु होमादौ वृ परा ७.२०७ तृतीये ऽब्दे चतुर्थे वा वृ परा ५.५५ तूष्णी वा प्रति विप्राणा कपिल ७१ तृतीये वत्सरे चौलं आश्व ९.१ तूष्णी समिधमादाय आश्व १०.२३ तृतीये सप्तमे षष्ठे भार १५.५० तूष्णीमद्भि परिषिच्य वृ हा ६.१११ तृतीये ऽहनि मध्याह्ने त हा ५.४४२ तूष्णीमश्ना समास्थाप्य कपिल ३०७ तृप्ता जातास्तथा त्वं आंपू १०९१ तूष्णीमासीत तु जपं बृ.या. ७.१ ४९ तृप्तान ज्ञात्वा ततो विप्रां वृ परा ७.३१३ तूष्णी सागुष्ठं व १,१२.१६ तृप्ताः प्रश्नविहीनस्तु ब्र.या. ५.५ तृणकाष्ठदुमाणांच औ ९.१९ तृप्ता यान्त्यग्नि बृहस्पति २० तृणाकाष्ठगुमाणां च मनु ११.१६७ तृप्ताः स्थेति तथा प्रोक्ते आंपू १०९० तृणकाष्ठमविकृतं बौधा २.१.८० तृप्ति कृत् पितृ मातृणां वृ परा ७.१६१ तृणकाष्ठादिरज्जूना . पराशर ७.३२ तृप्तिकृत्सौरभेयाश्च वृ परा ६.३३९ तृणगुल्मतरुणां च व २.६.४९८ तृप्तिदं फाल्गुनी आंपू ४८१ तृणगुल्मलतानां च मनु १२.५८ तृप्तिन जायते तेषां किंतु कपिल २१६ तृणपोस्सदाकुर्याद् कण्व १४३ तृप्त्यर्थं वै पितृगां । बृ.या.७.९१ तृणभृम्यग्न्युदक व १.१३.२८ तृप्त्यै संतरणायापि आपू ४८४ तृणं वा यदि वा काष्ठं वाधू १६४ तृप्यतामिति सेक्तव्यं वृ परा २.१६९ तृणमुष्टिविधानञ्च बृ.गौ.१ ३.२१ तृष्णा बुभुक्षांचालस्यं वृ.गौ. ८.११० तृणा इच्छन्ति दर्भत्व बृ.गौ. १५.७२ ते अपि सारसयुक्तेन वृ.गौ. ५.१०४ तृणानि भूमिरुदकं वाक मनु ३.१०१ ते अपि हस्तिरथैः यान्ति वृ.गौ. ५.१०७ तृणेक्षकाष्ठतक्राणां शंख १७.१७ तेकारं दक्षिणे हस्ते वृ परा ११.१२२ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३६९ ते चापि मनुजैः साम्यं कपिल ८०६ तेन संपीड्यमानास्ते घोष नारा ७.२० ते चापि वाह्यान् सुबहूं मनु १०.२९ तेन सर्वे ऽपि विप्रस्य प्राप्नु कपिल ३५३ ते जन्मबन्धनिर्मुक्ता बृ.या. ४.४४ तेनाग्नयो हुताः सम्यक् अत्रिस ३३२ तेजः शक्ति समाविश्य वृ हा ३.१७० ते नाग्नौ करुणं कुर्याद् ब्र.या. ५.६ तेजस्कामस्तथा ऽज्येन भार १९.४४ तेनानुभूय ता यामी मनु १२.१७ तेजस्तिमिररेत्मैततछेषेणैव कपिल २५७ तेनान्नेन सुरान् बृ.गौ. १३.१२ तेजस्वीनां सहस्रांशुरि बृ.या.४.१५ तेनापराधः सुमहान् आंपू २३१ ते जायन्ते तादृशानां कपिल ८०२ तेनायं समभागेव न तुरीयां कपिल ६९४ तेजोमध्ये स्थितः सत्यः बृह ९.१२९ तेनास्याहवनीयत्वं बृ.गौ. १५.२९ तेजो ऽसि शुक्रमित्याज्य पराशर ११.३२ तेनैव जुहुयाद् भक्त्या वृ हा ५.५ ४५ तेजो ऽसि शुक्रमित्याज्यं वृ परा ९.२९ ते नैव तस्यसिद्धि स्यात् व्या ३०३ तेजो ऽसीति तुरीयंच ब्र.या. २.४४ तेनैव परितुष्टो ऽहं बृ.गौ. २१.२९ तेजो ऽसीति परमेष्ठी ब्र.या. २.७९ ते नैव बनिना दाहं लोहि १३२ ते तमर्थमपृच्छंत देवा मनु २.१५२ तेनैव सर्वमाप्नोति बृ.या. ७.९२ ते तृप्त तर्पयन्त्येनं कात्या १४.१३ तेनैव वांछित प्राप्ति वृ परा १२.३४१ ते तृप्तास्तर्पयन्त्येनं या १.४७ तेनैव सीदमानेन दक्ष २.४३ ते तिलाः कृमितुल्या वाधू १९७ तेनैव सूक्तजाप्येन आश्व १.४४ ते द्विजा नावमन्तव्या वृ परा १.३१ तेनैव हि विशुद्धः स्याद् वृ हा ६.३२८ तेन कार्य विशुद्ध्यर्थ शाता ५.२३ तेनैवारभ्यते देवी बृ.या. ४.२४ तेन क्रयो विक्रयश्च नारद २.४४ तेनोदकेन द्रव्याणि बृ.या. ७.११२ तेन गच्छन्ति वै स्वर्ग बृ.गौ. २२.६ तेनोपतिष्ठेल्लभते न ब्र.या. १०.६ तेन गच्छेच्छ्रियायुक्तो वृ.गौ. ७.२० तेनोपसृष्टो यस्तस्य या १.२७२ तेन तत्पापशुद्ध्यर्थ शाता २.४३ तेनोपसृष्टो लभते या १.२७५ तेन ताक्तस्य कुले जातानां कपिल ४२३ तेनोपहतपुंसा तु कर्म वृ परा ११.४ तेन तुष्टो भवेद्देवो व २.६.४२९ ते परेषां हव्यकव्ययो कण्व २७७ तेन दानेन पूतात्मा वृ.गौ. ९.६५ तेपा वाक्येन दौहित्र लोहि ५५७ तेन देवनिकायानां बृह ९.१७० ते पापिनः प्रतिष्यन्ति भार १६.५७ तेन देवास्त्रयस्त्रीशत्पितर वृ.गौ. ९.५९ ते पृच्छन्तिमहात्मानं ब्र.या. ६.१४ तेन दोषश्च सुमहान् आंपू १००४ ते पृष्टास्तु यथा ब्रूयु मनु ८.२६१ तेन मामभिषिञ्चामि ब्र.या. १०.१३ ते पृष्ठास्तु यथा ब्रुयुः मनु ८.२५५ तेन पुत्रेण सर्वास्ता ब्र.या. ७.१४ ते ऽप्यरोषाघनिर्मुक्ता वृ परा १०.६५ तेन मंत्रेण तत्प्रीत्यै कपिल २६६ ते ब्राह्मणाद्याः स्वकर्मस्था बौधा १.२.१८ तेन मन्त्रेण पानीयमन् ब्र.या. ४.८० तेभ्यः प्रणम्य भक्त्या ऽथ वृ हा ४.१ ४० तेन यद्यत्सभृत्येन मनु ७.३६ तेभ्यश्चैवाऽशिषो. आश्व २३.१०३ तेन सप्तर्षयः सिद्धाः बृ.गौ. १५.२१ तेभ्यः सुत ततः प्रीत्या आंपू २ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७० स्मृति सन्दर्भ तेभ्य स्तेज समुद्धृत्य वृ.गौ. ९.२६ तेषां तु निर्वेशो द्वादशा धा २.१.६५ तेऽम्यासात्कर्मणां मनु १२.७४ तेषां तु पावनायाह वृ.गौ, ३.५६ तेभ्यो दत्तमनन्तं हि बृ.या. ४.५५ तेषां तु सततं कर्म नित्य कपिल ६२६ तेभ्योऽधिगच्छेद् विनयं मनु ७.३९ तेषां तेषां क्रियाभेदा आंपू १०४४ तेभ्योऽनुज्ञाभिप्राप्य शाता १.३१ तेषां त्रयाणां शुश्रूषा मनु २.२२९ तेभ्यो लब्धेन भैक्षेणं मनु ११.१२४ तेषां त्रेताग्निना दग्धं आंउ ६.११ ते यान्ति अमलवर्णाभैः वृ.गौ. ४.७६ तेषां त्ववयवान् सूक्ष्मान् मनु १.१६ ते यान्ति अश्वैः वृषैः वृ.गौ. ५.७० तेषां दत्वा तु हस्तेषु मनु ३.२२३ ते यान्ति आदित्यवर्णाभि वृ .गौ. ५.६८ तेषां दोषानभिख्याप्य मनु ९.२६२ ते यान्ति काञ्चनैः यानैः वृ.गौ. ५.७२ तेषां न दद्याद्यदि मनु ८.१८४ ते यान्ति नरकं घोरं बृ गौ. १५.६८ तेषां नाहं यथा योग्यं भार १५.१३८ ते यान्ति नरशार्दूल वृ.गौ. ४.२६ तेषा परेषां विदुषां धर्म लोहि २३५ ते यान्ति निरयं घोरं वृ हा ८.२६७ तेषां पापव्यपोहा) वृ परा ७.३०६ ते यान्त्यादित्यकल्पेन वृ.गौ. ९.३१ तेषां प्रतिग्रायिता यजमानस्य कपिल ४६१ ते रुक्तमाचरेद् धर्ममेको वृ हा ६.२२८ तेषां प्रथम एवेत्यहौय बौध २.२.३८ तेवा कर्मफलत्यागं बृह ११.४८ तेषां प्राक्श कुशैः कार्य कात्या ८.१४ तेवामपि निवासत्वान्- वृ हा ३.१०५ तेणं ब्राह्मणो धर्मान् व १.१.४१ ते विमानैः महात्मानो वृ.गौ. ५.६६ तेषां मध्ये तु यन्नित्यं दक्ष २.३७ ते विष्णुं नैव जानन्ति वृथा ब्र.या. ९.१३ तेषां मातुरग्रेऽधिजननं व १.२.३ ते वै खरत्वमुष्ट्रत्वं अत्रि ५.१७ तेषां मासत्वनामेदं कण्व ४० ते शुद्धगोत्रिणः स्युर्वे तदा कपिल ३५७ तेषां यत्प्रीतये दत्त वृ हा ४.१ ७० तेषान्तु नरके घोरे ब्र.या, ८.१७९ तेषां यशोभि कामाना बृ.गौ. ६.६८ तेषान्तु समवेतानां मनु २.१३९ तेषां वदमधीत्य वेदी व १.७.२ तेषां अलाम आचार्य व १.१७.७३ तेषां विनिमयेनैव शुद्धि शाण्डि ३.५१ तेषां अवाप्तव्यवहारान् बौधा २.२.४२ तेषां शङ्कानिरासाय आंपू ८८२ तेषा उपरिहस्तं तु वृ हा ४.१९६ तेषां श्राद्धैककरणमेतेषा आंपू १०६९ तेषां ग्राम्याणि कार्याणि मनु ७.१२० तेषां श्राद्धे त्यागमात्रा आंपू १०७९ तेषां घोरमहाकायम् वृ.गौ. ४.४७ तेषां संकरयोगाश्च वृ हा ४.१ ४४ तेषां चतुर्दशी प्रोक्ता वृ परा ७.२९० तेषां सततमज्ञानां मनु ११.४३ तेषां चत्वारं पूर्व बौधा १.१.१० तेषां सभागतोवनि बृ.गौ. १५.३१ तेषांच धर्माः ब्राह्मणस्य विष्णु २ तेषां स्वं स्वं अभिप्राय मनु ७.५७ तेषां च विश्वेदेवास्ते आंपू ६७१ तेषाभनुपरोधेन पारत्र्यं मनु २.२३६ तेषां तद्विलयं यातु तमः वृ.मौ. १०.४२ तेषाभन्नं सोदकञ्च व हा ५..२८३ तेषां तामाशिषं गृह्य आपू ८९७ तेषाभन्यतमो भूत्वा व हा ७.३३२ तेषां तु निर्वेशः पतित बौधा २.१.६२ तेषामपि हितार्थाय कण्व ६३७ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी तेषामर्थे नियुंजीत मनु ७.६२ तैजसानि तु पात्राणि वृ परा ७.११८ तेषामाद्यमृणादानं मनु ८.४ ते पंचदशभिः काष्ठा वृ परा १२.३५८ तेषामारक्षभूतं तु पूर्व मनु ३.२०४ तैरेव शुभ्रता चन्द्रे विष्णु १.३६ तेषामिदं तु सप्तानां मनु १.१९ तैरेव स्पर्शमात्रे तु व २.६.५२४ तेषामुदकमानीय स मनु ३.२१० तैलचौरस्तु पुरुषो शाता ४.१३ तेषामेव तुल्यापकृष्टोवधे बौधा १.१०.२१ तैलधारावदच्छिन्नं बृ.या. २.७ तेषाभुपराताक्षाणां वृ परा ८.६२ तैलपिष्टकजीवी तु औसं २३ तेषा वर्णानुपूर्येण बौधा १.८.२ तैलभैषज्यपाने च लघुयम ५१ तेषा वेदविदो ब्रूयु मनु ११.८६ तैलभ्यंजनं स्नानं औ ५.२१ तेषु काले काल एव बौधा १.७.२५ तैलं कुम्भहसं चैव अ ८० तेषु गव्यानि निक्षीप्य वृ हा ८.२ ४३ तैलं प्रतिनिधिस्तस्य लोहि ३६५ तेषु तेषु च गृण्ही ब्र.या. ८.४५ तैलं शुक्तं तथा मांसं वृ हा ५.३३७ तेषु तेषु तु कृत्येषु मनु ९.२९७ तैलं सोमञ्च विक्रीणन् बृ.गौ. १६.३७ तेषु तेष्वपि देवस्य वृ हा ७.३३३ तैलमास्तरणं प्राज्ञः संवर्त ६९ तेषु दिक्पतयः पूज्याः व २.७.४२ तैलाभावे गृहीतव्यं व्या ३०७ तेषुवनिषु तत्पश्चात् कपिल १४१ तैलाभ्यक्तो घृताभ्यक्तो अत्रिस १८७ तेषुषड् बन्धुदायादाः नारद १४.४५ तैलाभ्यंग महाराज वाधू ४० तेषु सम्यग्वर्तमानो मनु २.५ तैलेन लवणेनापि आंपू २३५ ते षोडश स्याद्धरणं मनु ८.१३६ तैश्चेद्गो खरमत्स्याश्च वृ परा २.१ ४७ तेष्वपि पूर्व पूर्व श्रीमान् बौधा १.११.११ तैः श्राद्धं तु ततः कुर्यात् लोहि ३८० तेष्वपचरत्सु दण्डं व १.१९.६ तै सार्द्ध चिन्तयेन्नित्यं मनु ७.५६ तेष्वर्चयेत्ततो धीमान् वृ हा २.५४ तै स्तस्य च सुसंस्कारा वृ हा ६.२३३ ते सपिण्डाः प्रकथितास्ते कण्व ७५६ तैस्तु दत्तं हुतं तप्तं बृ.गौ. १५.८१ ते सर्वे पनसस्तत्वेकः आपू ५४१ तैस्तैस्ते निखिला ज्ञेया आंपू २९८ ते सर्वे पापसंयुक्ताः वृ परा ८.५७ तोयदः सर्वकामसमृद्ध व १.२९.८ ते हि पापकृतां वैद्या आंउ २.५ तोयपूर्णानि रम्याणि वृ .गौ. ७.८६ ते हि पापे कृते वेद्या पराशर ८.७ तोयमन्नं च वाच्छन्ति वृ परा १०.५ तेह्यावश्यकस्कार्यस्य कपिल ४६९ तोयवत्रितवापीव निरर्थी वृ हा ५.३१ दैलसं चेदादायोच्छिष्टी बौधा १.५.२९ तोयोद्भवानि देयानि शंख १४.१६ तेज समृण्मयदारवतान् व १.३.४८ तौ तु जातौ परक्षेत्रे मनु ३.१७५ तैजसवदुपलमणीनां व १.३.४९ तौधर्म पश्यतस्तस्य मनु १२.१९ तैजसवदुपलमणीनाम् बौधा १.५.४६ तौर्यस्त्वयामूर्धि व २.४.३२ तैजसानां पात्राणं पूर्ववत् बौधा १.६.३७ त्यक्तमातामहश्वाचापि कपिल ३८१ तैजसानां मणीनां च मनु ५.१११ त्यक्ता येनोढभार्या व परा ६.२८९ तैजसानामुच्छिष्टानां बौधा १.५.३४ त्यक्त्वा तदाश्विने वृ परा १२.१०३ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२ त्यक्त्वा पितामहं त्यक्त्वा सम्यग्विचार्यै त्यक्त्वा विषयभोगांश्च त्यक्त्वोन्द्रियसुखं त्यजन्तोऽपतितान्न् त्यजेत्पितामहं यत्ना त्यजेन्नग नदीनाम्नी त्यजेन्नदुष्टां दण्ड्य त्यजेत्पर्षितं पुष्पं त्यजेदाश्वयुजे मासि त्यजेद्वेशं कृतयुगे त्यागं कृत्वा चित्तमपि त्रपु - सीसक- ताम्रादि पुसीसकताम्राणां त्रपुहारी च पुरुषो जायते त्रय एव पुरा रोग त्रयणामपि वह्नीनामग्नि त्रयः परार्थे क्लिश्यन्ति त्रयस्तु वैष्णवा दण्डा त्रयस्तु स्नातका त्रयस्त्रिंशंच विप्राणां त्रयस्त्रिंशत्कोटिसंख्य त्रयस्त्रिंशत्कोटिसंख्य त्रयस्त्रिंशत्कोटिसंख्य त्रयाणामपि चैतेषां त्रयाणामपि चैतेषां त्रयाणापि यज्ञानां श्रेष्ठ आंपू १००२ आंपू १००३ दक्ष ७.२१ आश्व १.१८८ त्रयस्त्रिंशद्धि अमरैः सेंद्रैः त्रयस्त्वंज त्नयः श्रीकाः शङ्ख त्रयः स्वतन्त्रता लोकेऽस्मिन् त्रयाणां चैव देवानां लघुयम १९ आंपू १००५ वृ परा ६.३२ व्यास २.९ प्रजा १०८ मनु ६.१५ पराशर १.२५ कपिल ९७६ वृ परा १०.११ या १.१९० शाता ४.६ व १.२१.२६ बृ.गौ. १५.४१ मनु ८.१६९ वृ हा ४८ वृ परा ६.१६५ वृ परा ५.१९१ आंपू ६०२ कण्व ६५१ कण्व ३५३ भार १२.३२ कपिल ७२० नारद २.२८ वृ.या. ६.१९ त्रयाणामप्युपायानां त्रयाणामुदकं कार्यं मनु ७.२०० मनु ९.१८६ त्रयीमय त्रयीनाथ त्रयीलम्भ बृ. गौ. १८.३९ त्रयोऽग्नयस्त्रयोवर्णा भार १५.८८ त्रयोदर्भाश्च पिञ्जुल्यां त्रयोदश तृतीये स्याद् त्रयोदश दक्षिण बाहु त्रयोदशी दक्षिणे तु त्रयोदशी मघा कृष्णा त्रयोदशेऽह्नि सम्प्राप्ते त्रयोदशेऽह्नि वा कुर्यात् त्रयोदश्यां तथा रात्रौ त्रिंशाशो रोमविद्धस्य त्रिंशाहं कन्यकामाता मनु १२.३० मनु १२.३४ त्रिंशद्वर्षकृतात्पापात्पूयते लता ४.४१ त्रिकालं च त्रिलिङ्गं त्रिकालमर्चयेन्नित्यं त्रिकालस्नानयुक्तस्तु त्रिकालस्नानयुक्तस्य त्रि कृत्वोऽभ्युपेयादपो यो धर्मो निवर्तन्ते त्रयोऽपि नियता यस्य त्रयोलक्षास्तु विज्ञेया त्रयोलोकास्त्रयो यो वर्णा द्विजातयो यो वर्णा ब्राह्मणस्य त्रसरेणवोष्टौ विज्ञेया त्रातारमिन्द्र इत्यृचा त्रातारमिन्द्र त्वन्नोऽग्ने त्रातारमिन्द्रमितीन्द्र त्रायते दानम् अपि एकम् त्रासाख्यः स्पटिकप्रख्यः त्रासितोऽपि यथा मूर्खे त्राहि त्राहीहि लोकेश त्रिंशत् कोट्यस्तु विख्याता त्रिंशत्कोट्यस्तु विख्याता त्रिंशयुगसहस्राणि त्रिंशद्वर्ष त्यक्तपितृ त्रिंशद्वहेत्कन्या स्मृति सन्दर्भ ब्र. या. ८.३१० आंपू ६०९ ब्र. या. २.१२० वृ हा ५.१९९ औ ३.११३ व २.६.३७९ व २.६.३६३ औ ९.१०८ मनु १०.७७ वृ परा १२.१२६ या ३.१०२ अत्रिस २५ व १.२.२ व १.१.४० मनु ८.१३३ वृ हा ८.३८ वृ परा ११.१२३ वृ परा ११.२२१ वृ.गौ. ३.८० भार ७.३३ शाण्डि ४.२३७ वृ हा ८.१८७ वृ परा २.७४ बृ.या. ६.१२ ब्र. या. ११.६० आंपू १८२ मनु ९.९४ नारद १०.१५ ब्र.. या. १३.२२ वृ.गौ. ९.३८ बृ.या. २.८३ व २.५.८१ 'लहा ५.५ बृ.गौ. १७.२२ व १.७.१२ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३७३ त्रिकृत्वोलिंगशौच तु भार ३.१६ त्रिपदा वा त्रिरावृत्य औ ३.१०६ त्रिकोटिकलमुद्धृत्य वृ हा ५.५२७ त्रिपदा वापि सर्वेषां ब्र.या. ८.३५ त्रिकोणमध्ये बिन्दुश्च विश्वा ३.३५ त्रि परिमृजेत बौधा १.५.२० त्रिकोणमध्ये हींकारं विश्वा १.११३ त्रिपलं हेमसंयुक्ता ब्र.या. ११.१५ त्रिकोणयन्त्रसंलेख्य विश्वा १.१०५ त्रि पिवेत्किपिवसीति आश्व ४.५ त्रिगुणन्तु वनस्थानां दक्ष ५.९ त्रि पिवेदीक्षितं तोयमास्यं लहा ४.३६ त्रिगुणं क्षत्रियस्यैव बृ.या. ४.१४ त्रिपूर्व वेदिविच्छित्ता कण्व ४३३ त्रिगुणं च वनस्थानां शंख १६.२४ त्रिप्रज्ञ च त्रिधामं च बृ.या, २.१८ त्रिगुणं वाचरेद्वेदं __ अ ९८ त्रिप्राणासंयमो भूत्वा भार १३.७ त्रिगुणं वा जपेद्वेदं अ २९ त्रि प्राश्नीयादपः पूर्व औ २.१९ त्रिगुणं सूत्रमाद्यात् प्रजा १०२ त्रि प्राश्नीयाद्यदम्भस्तु शंख १०.१० त्रिणाचिकेतः पंचाग्नि व १.३.२२ त्रि प्राश्यांगुष्ठमूलेन वृ हा ४.१९ त्रिणाचिकेतः पंचाग्नि मनु ३.१८५ त्रि प्राश्यापो द्विरुन या १.२० त्रितीयामग्निदीक्षी च व्या ३५५ त्रि प्राश्यापो द्विरुन् कत्या १.५ त्रितीया रक्तपिङ्गाक्षी वृ.गौ. ९.४८ त्रि प्रोक्ष्य स्थापयेत् आश्व १२७ त्रिदण्डग्रहणादेव वृ परा १२.१३८ त्रिफलात्र्यहसंयुक्ता ब्र.या.१३.३१ त्रिदण्डग्रहणादेव दा ३१ त्रिभि पादैरपः पीत्वा विश्वा २.३३ त्रिदण्डग्रहणादेव लिखित २२ त्रिमिलिंगे करस्तद् व २.३.९५ त्रिदण्डग्रहणादेव लघुशंख १८ त्रिभिश्चकुशपिजलैर्जपदे व २.४.१ २९ त्रिदण्डधारणं मौनं बृ.गौ. २१.३ त्रिभिश्च प्राणायामै बौधा २.४.१० त्रिदण्दभृद्योहि पृथक लहा ६.२३ त्रिभिः श्लोकसहौस्तु वृ परा १२.३७७ त्रिडण्डं वैणवं सम्यक् लहा ६.६ त्रिभि स्वरैर्यदा बृ.या. ४.३३ त्रिडण्डमवलम्बन्ते वृहा ८.१७१ त्रिभ्य एव तु वेदेभ्यः बृ.या. ४.१३ त्रिडण्डमेतन्निक्षिप्य मनु १२.११ त्रिभ्य एव तु वेदेभ्यः मनु २.७७ त्रिदंडव्यपदेशेन दक्ष ७.३० त्रिमात्रः प्रणवस्तत्र वृ परा १२.२४३ त्रिदिनंचैकभक्ताशी पराशर८.४६ त्रिमात्रं च त्रिकालं च त्रिदिनं चैकदिवसं आंपू ६७८ त्रिमात्रं चैव त्रिब्रह्म बृ.या. २.६९ त्रिदिनं षष्ठशाखीनां ब्र.या. १३.२४ त्रिमुखं च त्रिदैवत्यं बृ.या. २.७४ त्रिधाचाचमनं प्रोक्तं विश्वा २.६ त्रिमुहूर्तस्तु प्रातः । प्रजा १५६ त्रिपक्षादब्रुवन् साक्ष्य मनु ८.१०७ विरहात्रीर्निशायां च मनु ११.२२४ त्रिपक्षे चैव कृच्छ स्यात् अत्रिस ३०५ त्रिराटामेदपः पूर्वः द्वि मनु २.६० त्रि पंच सप्त वा हुत्वा वृ परा ११.९५ त्रिराचामेदपः पूर्व द्विः मनु ५.१३९ त्रिपदा चैव गायत्री बृ.या. ४.४७ त्रिरात्मा त्रिस्वभावश्च बृ.या. २.१०० त्रिपदाजपसाद्गुण्यं विश्वा ७.१५ त्रिरात्मानं तैजसं च बृह ९.११० त्रिपदा नामगायत्री कण्व ११९ त्रिरात्रं प्रथमे पक्षे पराशर ४.९ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७४ त्रिरात्रं च व्रतं कुर्यात् त्रिरात्रं तु व्रतं कुर्यात् त्रिरात्रं दशरात्र वा सम्वत् त्रिरात्रफलदा नद्यो माः त्रिरात्रं उत्सवं तत्र त्रिरात्रं उपवासः स्यात् त्रिरात्रं दक्षिणि चाहद्दिनं त्रिरात्रं दशरात्र त्रिरात्रं दशरात्र त्रिरात्रं रजस्वला त्रिरात्रं स्वश्रुमरणे त्रिरात्रं सतिलाहारः त्रिरात्रं स्यात्तथाचार्यो त्रिरात्रंमथ षडात्र त्रिरात्रमाचरेच्छूदो दानं त्रिरात्रमाशुद्धि प्रोक्ता त्रिरात्र माहुराशौचमाचार्ये त्रिरात्रमुपवासी स्यात् त्रिरात्रव्रतवन्ध्यं त्रिरात्रेण विशुद्धि स्याद् त्रिरात्रेण विशुद्ध्येत त्रिरात्रे तु ततः पूर्णे त्रिरात्रे तु ततः पूर्णे त्रिरात्रे तु ततः पूर्णे त्रिरात्रोपोषितो जप्त्वा त्रिरात्रोपोषितो भूत्वा त्रिरात्रोपोषितो वैश्यः त्रिराप्लुत्य समाचम्य त्रिरावर्त्य ततः पश्चाद् त्रिरुद्वेष्ट्याथ नेत्रेण त्रिर्वित्त पूर्णपृथिवी त्रिलोकनाथ भो कृष्ण त्रिवारं क्षालये पश्चात् त्रिवारं चैव सावित्री त्रिवारं वैष्णवैर्मन्त्रैः स्मृति सन्दर्भ शंख १७.५१ त्रिरारंशोधयित्वाथ व २.५.४२ शंख १७.४९ त्रिरारमष्टवारं वा निमज् वाधू ८७ व २.४.७० त्रिवारमेवं कृत्वा तु आश्व १५.२५ बृ.या. ७.११९ त्रिवासरं प्रकुर्वीत वृ हा ७.२७३ वृहा ५.१५२ त्रिविक्रमो रक्तवर्णः वृ हा २.८५ आप ७.६ त्रिविक्रमोऽग्नि संकाशो वृ हा ७.११० कपिल ११० त्रिविक्रमन्तु वामांसे वृ हा २.७७ औ ६.१० त्रिविधं क्षत्रियस्यापि नारद २.४९ या ३.१८ त्रिविधं केचिदिच्छन्ति बृ.या. ८.७ व १.५.७ त्रिविधं पापशुद्ध्यर्थ ब.या. ४.५१ औ ६.३३ त्रिविधं प्राणसंरोधं व परा १२.२४५ वृ परा १०.६६ त्रिविधः साहसेष्वेवं नारद १८.९० __ औ ६.३१ त्रिविधस्यास्य दृष्टसा नारद २.६७ शंख १५.१८ त्रिविधा त्रिविधैषा मनु १२.४१ अत्रिस १७६ त्रिविधान्नं त्रिधा बृह ९.१३७ व २.६.४३९ त्रिविधो जपयज्ञः स्यात्तस्य ल हा ४.४० मनु ५.८० त्रिवृच्च ग्रंथिनैकेन वृ हा ५.४४ पराशर ११.१२ त्रि वृत्ताग्रन्थि संयुक्तं व २.३.४६ ब्र.या, १२.१६ त्रिवृत्सोम इति प्रश्न कण्व ५२४ अत्रिस २२७ त्रिवृद्ग्रन्थिरितिप्रोक्ता भार १५.११२ _ औ ९.६० त्रिवृदूर्ध्ववृतं कार्य कात्या १.२ बृ.गौ. १४.२२ त्रिवृद्ब्रह्मणि निष्णातः 5.या. ४.७९ वृ परा ८.२८७ त्रिवेदमन्त्रसंयोगादग्नि बृ.गौ. १५.४६ पराशर ३.५२ त्रिशंकू वर्जयेद्देशं देवल ४ ___ या ३.३०१ त्रिशत्कर्कटके नाड्यो आंपू ६४६ ___ या ३.३०३ त्रि-षट्-दश-दशद्वाभ्यां वृ परा ८.४ वृ परा ८.२९७ त्रिषण्णवैकधाऽऽवर्त्य वृ परा २.१ ४२ आश्व १.१७ त्रिषवणमुदमुपस्पृशेत् व १.९.६ बृ.या. ४.३१ त्रिषु पञ्चसु षट्ष्वेवं लोहि २६४ कात्या ८.४ त्रिषुवर्णेषु सादृश्य बौधा १.८.१६ या १.४८ त्रिषु स्थानेषु सा व्या ८७ वृ.गौ. ४.३३ त्रिष्टुप् च जगती वैव बृ.या. ३.१४ व २.५.४८ त्रिष्टुप् च जगती चैव भार १९.१३ आश्व १२.१३ त्रिष्टुप् च जगती चैव व हा ७.५३ वृ हा ७.३०८ त्रिष्टुप् च जगती चैव । वृ परा २.६५ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाश्च श्लोकानुक्रमणी ३७५ त्रिष्वप्येतेषु दत्त हि मनु ४.१९३ त्रीन् कृच्छानाचरेद् या ३.२८८ त्रिष्वप्रमाद्यन्नतेषु त्रीन् मनु २.२३२ त्रेताग्नि संग्रहश्चेति व्यास १.१५ त्रिष्वेतेष्वितिकृत्यं मनु २.२३७ त्रेतायां ग्राममात्रं तु द्वापरे नारा १.८ त्रिष्वेध्वाधाः त्यक्तपिता कपिल ३६३ त्रेतायुगे तु सम्प्राप्ते नारा १.५ त्रिसन्ध्यासु जपेद्देवं वृ हा ३.३४ त्रेधा विभज्य तत्पिण्डं आंपू ९७८ त्रिसन्ध्यास्वयुतं वृ हा ६.२९० त्रैयम्बकं करतलं कात्या २८.१८ त्रि सप्तकुलमुद्धृत्य व परा ६.१२५ त्रैलोक्यधारणाय वृ परा ५.४९ त्रिसहस्रजपं कुर्यात् विश्वा १.९ त्रैलोक्येऽस्मिन्निरुद्विग्नौ । बृ.गौ. २२.३ त्रिसहस्रजपं मासं कण्व १०४ त्रैवार्षिकाधिकान्नो यः या १.१२४ त्रिस्त्रि स्यातप्रतिनामैव आश्व ६.६ विद्यनृपदेवानां या २.२१४ त्रिस्नानं ब्रह्मचर्य भार १९.४१ व १.१.१५ त्रिस्पृशानाम सा प्रोक्ता ब्र.या. ९.२२ त्रैविधसाधुम्यः संप्रयच्छेत् व १.१७.७८ त्रीस्तु तस्माद्धविशेषात मनु ३.२१५ विद्येभ्यस्त्रयों विद्या मनु ७.४३ त्रीस्त्रीन्यथाक्रमेणैव भार ११.५७ विद्यो हेतुकस्तों मनु १२.१११ त्रीणि कृच्छ्रापय कामश्चेद अत्रिस १६८ त्र्यक्षरं त्रयाणाञ्च वृ हा ७.३६ त्रीणि त्रीणि त्रिधाप्रोक्तं विश्वा ६.६६ त्र्यंगुलैरुद्धता तद्वद् वृ परा ११.२७५ त्रीणि देवाः पवित्राणि बौधा १.५.६४ त्र्यधिकेषु राजन्यम बौधा १.२.८ त्रीणि देवाः पवित्राणि मनु ५.१२७ व्यब्दं चरेद्वा नियतो मनु ११.१२९ त्रीणि देवाः पवित्राणि व १.१ ४.२१ त्र्यभिष्टंव दुपदा चैव शंख ११.२ त्रीणि राजन्यस्य व १.२.२१ त्र्यम्बकऋचा रुद्रमान वृ हा ८.६८ त्रीणिवर्गाणि शुद्ध्यर्थ वृ परा ८.११८ त्र्यम्बकमिति चैवात्र तृ परा ११.१९४ त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत मनु ९.९० त्र्यम्बकश्च चतुर्वक्त्र वृ परा १२.३११ त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि मनु ३.२३५ त्र्यम्बकेसापुनस्स्थाप्य ब्र.या. २.१३० त्रीणि श्राद्ध पवित्राणि व १.११.३२ त्र्यवरं प्रतिरोद्धा वा । मनु ११.८१ त्रीणि षष्टिशतान्याहुर बृ.गौ. २०.३ त्र्यवराः साक्षिणो ज्ञेयाः या २.७० त्रीणि स्त्रियः पातकानि व १.२८.७ व्यशं दायाद्धरेविप्रो मनु ९.१५१ त्रीण्याज्यदोहानि शंख ११.५ त्र्यहाद् दोह्यं परीक्षेत नारद १०.५ त्रीण्याज्यदोहानि रथंतरं व १.२८.१५ त्र्यहं तुपवसेधुक्तः मनु ११.२६० त्रीण्याज्यदोहानि रथन्तरं अत्रिस ३.१५ त्र्यहं त्रिषवणस्नायी शंख १८.१ त्रीण्यादौ नव सप्तधा विश्वा २.४२ व्यहं दिवा भुक्ते व १.२१.२१ त्रीण्याद्यान्याश्रितास्तेषां मनु ७.७२ व्यहं द्वयहं च षण्मासं व २.६.५१८ त्रीण्याहुरतिदानानि व १.२९.२० त्र्यहं निरशनात् पाद आप १.१३ त्रीण्येव साहसान्याहु नारद १६.६ त्र्यहं परचं नाश्नीयात् अत्रिस १२० त्रीनाविकेनच्छन्दो औ ४.५ त्र्यहं प्रातस्तथा व १.२४.२ त्रीनेव च पितृनहंति बौधा १.१०.३४ व्यहं प्रातस्तथा बौधा २.१.९१ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ त्र्यहं प्रातस्त्र्यहं सायं त्र्यहं प्रेतेष्वनध्यायः त्र्यह प्रेतेष्वनध्यायः त्र्यहं भुंजीत दध्ना त्र्यहं सायं त्र्यहं प्राप्तः त्र्यहमुष्णं घृतं पीत्वा त्र्यहमुष्णं पिवेत्तोयं त्र्यहमुष्णं पिवेदा त्र्यहमुष्णं पिबेदा त्र्यहेण तु चतुर्थस्तु त्वग्भेदकः रातं दण्ड्यो त्वचं मृत्योर्जुहोमि त्वंकारं तु गुरोः कृत्वा त्वत्तोऽहं श्रोतुमिच्छामि त्वात्प्रियाणि प्रसूनानि त्वंदघ्रियुगलं प्राप्य त्वदुक्ति संपरिज्ञाय मम त्वद्भक्ताः कीदृशा देव त्वं अस्माकं तपस्येव त्वं च धारय मां देवि त्वं तुले सत्यधामासि त्वं मां भजस्वं भद्राक्षि त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कार त्वं यज्ञस्त्वं व षट्कार त्वं विषब्रह्मणः पुत्र त्वं सोम इति रूक्तेन त्वमक्षरं परं ब्रह्म निर्गुणं त्वमग्ने छुभिरित च त्वमग्ने सर्वभूतानाम त्वमप्येकमना भूत्वा त्वमुर्वारो स्थाणुसृष्टो त्वमेको ह्यस्य सर्वस्य त्वमेव देवः जानीषे न त्वमेव देव जानीषे न त्वमेव परमो धर्म मनु ११.२१२ या १.१४४ व २.३.१५६ पराशर ६.३५ शंख १८.३ अत्रिस १२३ शंख १८.४ लिखित ६९ व १.२१.२२ वृ परा ८.२६६ मनु ८.२८४ व १.२०.२९ वृ परा ८.२८१ विष्णु १. ४९ वृ.गौ. ८.७३ वृ हा ८.३४८ नारा ४.११ वृ.गौ. ८.९२ वृहा ३.७५ विश्वा ६.६ या २.१०३ लोहि ६६८ ब्र. या. २.१७४ ल व्यास २.१८ या २.११२ वृ हा ५.३६८ विष्णु म ९ वृ हा ५.१२९ या २.१०६ विष्णु म ९४ आंपू ५९१ मनु १.३ नारद १९.१० नारद १९.३० वृ हा २.१२३ त्वया न कार्यं कर्मेति त्वयां पृष्ठं कदा श्राद्धं त्वयि तानि चलेषु त्वं त्वरमाण इवापृष्टो त्वष्टा मित्रोयमश्चैव त्वसो ऽथ इति सूक्तेन त्वां वयं मोचयिष्याम त्वामेवाहं स्मरिष्यामि त्वीयेन कर्मणा येषां दक्षिणं च भुजं पश्चा दक्षिणं चोपविश्योरु दक्षिणं जानुमालम्ब्य दक्षिणं तु युगच्छिद्रं दक्षिणं दक्षिणेन सव्यं दक्षिणं पाणिमुद्धत्यं दक्षिणं पातयेज्जानु दक्षिण बाहुमुद्धृत्य दक्षिणं वामतो वाह्यं दक्षिणश्रवणे विप्रो दक्षिणस्यानासिकया दक्षिणांसोपवीतः स्यात् दक्षिणाग्निमुखे विश्वो दक्षिणाग्नेययोर्मध्ये दक्षिणाग्रेषु दर्भेषु दक्षिणाग्रैकदर्भाणि दक्षिणाघ्राणरंध्रेण दक्षिणांके तु विन्यस्य दक्षिणाग्निं तदाहुस्ते स्मृति सन्दर्भ कपिल ८३९ प्रजा १६ विष्णु म ५८ नारद २.१७५ द दंष्ट्राग्रेण समुद् धृत्य दंष्ट्रिभ्यश्च पशुभ्यश्च दकारमुत्तरे वक्त्रे दक्षशास्त्रं यथा प्रोक्तं दक्षश्रोत्र सलाहु भार ६.११० दक्षिणप्रवणे देशे शुचि वृ परा ७.३११ व २.२.२० आश्व १.८२ ब्र. या. ४. २८ व २.४.४३ बौधा १.२.२४ भार १६.५ कात्या २.५ बौधा १.५.७ कात्या १५.१७ भार १६.४१ ब्र. या. ८.२८७ व्यास ३.१७ बृ. या. २.९१ व्र. या. १०.१२१ व २.६.२८७ औ ५.२४ भार ६.१८ ब्र. या. १०.१२० व २.६.२८४ लोहि ६८८ विष्णु म ७३ वृ परा १२.२७९ विष्णु १.१९ व_२.६.३९५ वृ परा ४.९६ दक्ष ७.५२ वृ हा ५.२१४ बृ.गौ. १५.२७ Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७७ श्लोकानुक्रमणी दक्षिणाञ्च यथाशक्ति वृ.गौ. ७.५७ दग्धं परावितं तालमायसं वृ हा ५.२ ४० दक्षिणादानरूपेण सदस्या लोहि ४०२ दग्धव्या साऽग्निहोत्रेण वृ हा ८.२१२ दक्षिणादिकृते तस्मिन् कण्व ८७ दग्ध्वा तालपलाशम्बा वृ हा ६.२५७ दक्षिणां च ततो दद्यात् आश्व २३.८९ दग्ध्वारस्थीनि पुनर्गृह्य पराशर ५.१२ दक्षिणा प्रवणं स्निग्धं औ ५.१४ दण्ड इवप्लवेत बौधा १.२.३९ दक्षिणाप्रवणे देशे वृ परा ७.११६ दण्डपात्रयुतौ रास्तौ आश्व २.२६ दाक्षिणाप्रवणेदेशे व्या २७६ दण्डं छत्रं वैणवं च कण्व ५६९ दक्षिणाप्लवने देशे कात्या ४.४ दण्डं दम्भेषु कुर्वाणो वृ परा १२.२२ दक्षिणाभिमुखः सव्यं व्यास ३.१६ दण्डव्यूहेन तन्मार्ग मनु ७.१८७ दक्षिणाभिमुखा गाव वृ परा ५.२१ दण्डः शास्ति प्रजा सर्वा मनु ७.१८ दक्षिणाभिमुखोच्छिद्या भार १८.२९ दण्डस्तु देशकाल व १.१९.७ दक्षिणाभिमुखो रात्रौ व २.३.९१ दण्डस्य पातनं चैव मनु ७.५१ दक्षिणाभिश्च ताम्बूलै आंपू ८६२ दण्डाजिनोपवीतानि ब्र.या. ८.६१ दक्षिणाभिषिन्यश्चैव ब्र.या. ८.११७ दण्डाजिनोपवीतानि या १.२९ दक्षिणायनकाले तु __ आंपू ९२० दण्डादुक्ताद्यदान्येन आंगिरस २९ दक्षिणार्थं तु यो विप्रः पराशर १२.३५ दण्डादूई मदन्येन पराशर ९.३ दक्षिणावतामिति ऋचा वृ. हा ८.५८ दण्डादूर्ध्वप्रहारेण लघुयम ४० दक्षिणा वर्तशखाद्वा बृ.गौ. २०.३० दण्डादूर्ध्वं तु यलेन आंउ १०.१ दक्षिणाश्च ततो दद्यात् वृ.गौ. ७.१०६ दण्डापतानकश्चित्रवपुः शाता १.९ दक्षिणासु च दत्तासु मनु ८.२०७ दण्डेच मेखलासूत्रे औ १.५ दक्षिणासु नीयमाना बौधा १.११.५ दण्डो महान् मध्यम वृ परा १२.८२ दक्षिणास्योऽपसव्येन व्या ३७४ दण्डो हि सुमहत्तेजो मनु ७.२८ दक्षिणाहृदयो योग महामंत्र विष्णु १.८ दण्ड्यास्तत्पुत्रमित्राणि लघुयम २१ दक्षिणा हेम देवानां वृ परा ७.२७४ दत्तको द्वितीयो यं माता व १.१७.२९ दक्षिणेकटिदेशे त ब्र.या. ४.६४ दत्तजः पितरं चेत्तु कण्व ७१५ दक्षिणेऽक्षम्रजं कूर्च भार १२.८ दत्तजः पितरं वृत्तं कण्व ७१४ दक्षिणे तु भुजे चक्र वृ हा २.१९ दत्तमूल्यस्य पण्यस्य नारद ९.१० दक्षिणेन धरासूनुबुधः वृ परा ११.५३ दत्तं तथा प्रोक्षितं च मन्त्रेण कपिल .८५३ दक्षिणेन मृतं शूदं मनु ५.९२ दत्तं नैव पुनर्दद्यादपक्वं आश्व १.१५३ दक्षिणेन मृतं शूदं वृ हा ६.९५ दत्तप्रक्षालनादीनां छत्रो ब्र.या. ८.१२३ दक्षिणेनाथ सव्येन आश्व ९.९ दत्तस्तत्स्वीकृत श्चेत्तु कपिल ६९३ दक्षिणे पितृतीर्थेन बृ.या. ७.७४ दत्तस्य तद्भूलाभः आंपू ३०९ दक्षिणे वसति पत्नी ___ व्या ८५ दत्तस्यैषोदिता धा मनु ८.२१४ दक्षिणोत्तरसंस्थानावु नारद १९.५ दत्तः स्वप्रार्थनापूर्वप्राप्त लोहि ७४ दग्धं तष्टं मुष्टिकाद्यैः भार १५.४१ दत्ताभिरभिरेतस्यां वृ परा ५.११७ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ स्मृति सन्दर्भ दत्ताविवाह्य तज्ज्ञात्वा आंपू २११ दत्त्वा समस्तव्याहत्या भार २१.१०१ दत्तेथ (ध) नालमेतन्मे चेति लोहि ४६१ दत्त्वा स्थानमवाप्नोति वृ परा १०.२६ दत्तेवाधांजलिंबध्वा भार ५.२६ दत्त्वैवं दिव्यभोगानि ब्र.या. ११.२२ दत्तेवाप्यथवादत्ते भूमौयो व्या २६४ ददाति सकलान् कामानिह वृ हा ७.२३५ दत्तेषु दशभिर्नृणां वृ परा १.३९ ददाति स्वपदं दिव्यं वृ हा ५.५५७ दत्तोऽधिकश्चेद्भवति आंपू ४३४ ददात्यध्येति यजते वृ परा १२.१५५ दत्तोऽपि तैर्नदत्तो हि तन्माता कपिल ३७४ ददामि तस्मै प्रेताय शाता ६.२५ दत्तोऽयं बालिशो भ्रष्टो लोहि २६९ ददीत स्वेच्छया दण्डं वृ हा ४.२३९ दत्त्वर्ण पाटयेल्लेख्यं या २.९६ ददौ स तत्र चित्राय ब्र.या. २.१६९ दत्त्वा कन्या हरन् या २.१ ४९ ददौ स दश धर्माय मनु ९.१२९ दत्त्वाग्नौकरणं चान्यत् वृ परा ७.२१५ दद्याच्च शर्कराधेनुं शाता २.३८ दत्त्वा चान्नं स विदुषे __ औ ८.१० दद्याच्च शिशिरे यानानि संवर्त ५८ दत्त्वांजनाभ्यञ्जने आंपू ८५७ दद्याच्छक्त्या ततो दानं वाधू ४७ दत्त्वा तु दक्षिणामन्ते बृ.गौ. १७.२१ दद्यात्तमर्थ्य देवेभ्यः आंपू ७९७ दत्त्वा तु दक्षिणा व २.६.३०५ दद्याप्पाचं पदान्ते भार ११.९६ दत्त्वा तु दक्षिणां शक्त्या या १.२४३ दद्यात् पापेषु षष्ठांशं शाता १.१२ दत्त्वा तु शक्तितो दानं अत्रि ५.६३ दद्यात् पिण्डत्रयं चैव वृ हा ६.१३२ दत्त्वा तु सोदयमृणमृणी नारद ६.३१ दद्यात् पितृणां यद्भक्ष्यं वृ हा ८.३२० दत्त्वादकं जपेद भार ६.१२८ दद्यात् पुरुषसूक्तेन ब.या. ७.९७ दत्त्वाद्यविद्यया पश्चात् भार ११.७८ दद्यात् पुरुषसूक्तेन वृ परा ४.१२१ दत्त्वा द्रव्यञ्च यः ब्र.या. १२..१ दद्यात् पुष्पसहस्राणि वृ हा ६.४०५ दत्त्वा द्रव्यमसम्यग् नारद ५.१ दद्यात्वपुत्रा विधवा नारद २.१४ दत्त्वा धनं तु विप्रेभ्य मनु ९.३२३ दद्यात् श्राद्धे प्रयत्नेन औ ३.१३९ दत्त्वा नमस्येत् बृ.या. ७.१०४ दद्यादतिथये नित्यं ल व्यास २.६१ दत्त्वान्नं पृथिवी या १.२३७ दद्यादहरहस्तस्मादन्नं वृ परा १०.१७ दत्त्वान्नं पृथ्वीपात्रे ब्र.या. ४.९८ दद्यादेव न प्रतिगृह्णयात व १.९.५ दत्त्वा न्यायेन यः कन्या नारद १३.३२ दद्याद्ग्रहा क्रमादेत ब्र.या. १०.१५४ दत्त्वा. पिण्डान् सम्भ्यर्च्य वृ हा ६.१३१ दद्यादानं द्विजातिभ्यो ल हा २.३ दत्त्वा पितृभ्यो देवेभ्यो ल हा ६.३ दद्याद्देवपितृमनुष्येभ्य व १.९.९ दत्त्वा भूमि द्विजेन्द्राय वृ.गौ. ६.१२८ दद्यादुदकप्रणवं व २.६.३१२ दत्त्वाऱ्या क्षालयेत्पादा ब्र.या. ४.५९ दद्याद्अष्टांग दीपं वृ हा ५.५२९ दत्त्वार्ध्य संम्रवा स्तेषा या १.२३४ दद्याद्धेमं च वैशाखे वृ परा १०.२६३ दत्त्वावशिष्टं यक्षाणां वृ हा ६.२६० दद्याद् बलिं वृषाणां वृ परा ५.८३ दत्त्वा शतं सहस्रं वा परं कपिल ३९२ दद्याद्भूमा भूत बलिं ल व्यास २.५६ दत्त्वा श्राद्धं ततो मुक्त्वा औ ५.७८ दद्याद् भूमि निबन्धं या १.३१८ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३७९ दद्याद्वा यदिवा स्नेहा बृ.गौ. १६.४२ दन्तजननादित्येके व १.४.१० दद्याद्विप शाता ५.२८ दन्तजातेऽनुजाते च पराशर ३.२१ दद्यान्मातु पिता यस्मा ब्र.या. ७.३१ दन्तजातेऽनुजाते च मनु ५.५८ दधुः पुत्रांश्च पौ;श्च शाता ६.४७ दन्तधावनगण्डूष वृ हा ४.८१ दधुस्ते बीजिनः पिण्डं नारद १४.१९ दन्तधावनतः पश्चात् कण्व १४६ दधतीं श्वेतरूपा तां भार १२.९ दन्तधावनतः पश्चात् कण्व १५० दधिक्कापुण्नयित्यस्य भार १७.१५ दन्तधाव प्रजा ९२ दधिक्षीरघृतादीनां लवणस्य शाण्डि ३.२५ दन्तधावन ताम्बूलं व्या १५५ दधिक्षीराज्यतकाणां औसं २१ दन्तधावन प्रकरण विष्णु ६१ दधि-क्षीराऽऽज्यमांसानि वृ परा ६.२३८ दन्तवद्दन्तलग्नेषु बौधा १.५.२७ दधिचौर्येण पुरुषो शाता ४.९ दन्तवद्दन्तसक्तेषु बौधा १.५.२५ दधिधानीसधर्माः स्त्रिय बौधा २.१.७१ दन्तवद्दन्तसक्तेषु व १.३.४० दधितक्रकणाभिक्षा व्या १५८ दन्तशौचं ततः कृत्वा ___वाधू ५५ दधिनान्नं दर्भेणान्नं आंपू ८१६ दन्तानां धावनं कुर्यात् व २.६.२० दधिपूरितमन्यत्तु तृतीय कपिल ९१० दन्तानां धावनविधि भार ५.१ दधि भक्ष्यं च शुक्तेषु मनु ५.१० दन्तानां शोधनं कुर्यात् व २.६.१८ दधि भैक्ष्यं च शुक्त्रेषु शंख १७.३३ दंतानकाष्ठेन संशोध्य व २.३.१२६ दधि--मधु-घृताक्तानां वृ परा ११.२५२ दन्तान्तुशोधयेत्प्रातः शाण्डि २.१९ दधिवदराक्षतमिश्रं ब्र.या. ६.६ दंति-श्रृंगि-गर-व्याल वृ परा ७.३०३ दधिहस्तेन मथितं दृ हा ५.२७२ दन्तोलूखलिक कालपक्वाशी या ३.४९ दध्ना च सर्पिषा चैव पराशर ६.३ ४ दन्तोलूखलिको वापि वृ परा १२.१०७ दनोदधिक्रापुण्न इति ____ भार ११.८७ दंदशूकः पतङ्गो वा बृह ९.१७२ दध्यक्तं पयभाक्तं वा ब्र.या. २.१ ४० दन्दशूकः पतंगो वा या ३.१९८ दध्यन्नं पापसंचैव या १.२८९ दमने दामने रोधे आंगिरस २७ दध्यन्नं पायसं वाऽऽपि वृ हा ३.३७५ दमने वा निरोधे वा आप १.१८ दध्यन्नं फलसंयुक्तं वृ हा ५.४६३ दम सेवेत सततं । वृ परा ६.२५२ दध्याज्यमाक्षिकैर्युक्तं व २.३.१४ दमूनसौ अपस इति वृ हा ८.४० दध्यात्पवित्रमनयो भार १८.७१ दम्पती चोपवेश्योभौ कण्व ६६२ दध्यांद्दडं नृपस्त भार १५.१३२ दंपती तु व्रजेयातां आश्व १५.३६ दध्यादिना ततो भूयः कपित्र २६४ दम्पती दम्पतीचित्तं आंपू ३८७ दध्यान्नपयसा चैव ब्र.या. १०.१९ दंपती नियमेनव आश्व १५.६३ दध्योदनं हविश्चूर्ण या १.३०५ दम्पती शिशुना सार्द्ध अत्रि ५.४० दंडेन वाधसूत्रेण ग्राम भार २.७१ दप्पत्योरेव नान्यस्य लोहि १८८ दन्तकाष्ठप्रदानेन वृ.गौ. ७.७८ दम्पत्योस्तहिनेवा तत्र कपिल २४६ दन्तकाष्ठेन पूर्वस्यात् ब्र.या. २.११ दम्भमोह विनिर्मुक्तस्तथा ल हा २.७ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० दपादाक्षिण्यसौभाग्य दरिद्रं व्याधितं चैव दरिद्र व्याधितं मूर्ख दरिद्रस्य वृथा जन्म दरिद्रायैव दातव्यं न दरिद्रो मानुषे लोके दर्पाद् वा यदि वा मोहच्छ दर्भ-ताम्र-तिलैर्वापि दर्भपाणिः कृतप्राणाया दर्भस्तंबेऽप्सुवा जाया दर्भस्य समिधं तत्र दर्भाः कृष्णाजिनं मंत्रा दर्भानास्तीर्य भूपृष्ठे दर्भाः पवित्रमित्युक्तमतः दर्भाः पवित्रं पूर्वाह्न दर्भाश्च परितः स्थाप्या दर्भाश्च स्वयमानेया दर्भाश्चैवासने दद्यात्पितृ दर्भासीनो दर्भपाणिः दर्भेषु दर्भपाणिः सन् दर्भेषुवाग्यतत्तिष्ठन् दर्भेष्वासीनो दगर्भान् दर्भे कुंडं प्रकर्त्तव्यं दर्भे र्लोहितदर्भैश्च दर्भैश्च पावयेन्मन्त्रै दर्शके पूर्ववत्सर्वं दर्शनप्रतिभूर्यत्र मृतः दर्शनप्रातिभाव्ये तु दर्शनस्पर्शनध्यानैर्ज दर्शन स्पर्शनाभ्यां दर्शनादिष्वयोगत्वमंधादीनां दर्शने प्रत्यये दाने दर्शयामि इति यद्रूपं दर्शश्च पौर्णमासश्च दर्शश्च पौर्णमासश्च लोहि ४४६ दक्ष ४.१८ पराशर ४.१५ वृ परा १०.३१७ वृ.गौ. ७.९ वृ.गौ. ६.४५ नारद १३.६८ वृ परा २.७३ आंपू ७७३ कण्व ३७१ व्या २८८ लिखित ४१ आंपू ७९३ कात्या ११.३ वृ परा २.१८६ बृ.या. ७.२० आश्व २.७९ या २.५५ मनु ८.१६० आंपू ९१६ दर्शश्च पौर्णमासश्चाग्रयणं दर्शश्राद्धं च य कुर्याद् दर्शश्राद्धे गया श्राद्धे दर्शसिद्धिस्तावता स्याद् दर्शादिकमनुष्ठेयमिति दर्शादिकं तु यच्छ्राद्धवृद्धि दर्शादिकं प्रकुर्वीत दर्शादिकानि श्राद्धानि वृ परा १२.१९५ कपिल २९९ या २.५४ वृ.गौ. १. ४८ वृ परा ६.२९५ कपिल २७५ दर्शादिदेवताश्चापि दर्शादिष्वागतानां समाप्यैव दर्शादिष्वेव कथितं दर्शानुष्ठानतः सर्व दर्शान्तः पूर्णमामध्यः दर्शितं प्रतिकालं यच्छ्रावितं नारद २.११७ प्रजा १९० मनु ३.२५६ औ ५.९५ दर्शे द्वे पार्वणे कार्ये दर्शेष्टिका व्यत्तीपातो दवे तु चतुरस्रे तु दवेन निहते चैव वृ परा ७.३३० ब्र. या. ४.६६ लहा ४.५२ दश कामसमुत्थानि वृ.गौ. ८.४४ दशकृत्वः पिबेदापो भार ६.५० दशकृत्वः पिवेदाप बौधा २.४.७ व्या २८७ स्मृति सन्दर्भ दशगुणं सहस्रं स्यात् दशजन्मकृतं पापं ज्ञान दशतुल्यं व्यतीपाते दश दद्याच्चरणयोरेषा दशदशैकादश वा दशदानं भूरिदानं सहस्र दश द्वादशकृत्वोवा दश द्वादश चाष्टौ दशधेनु समोऽनड्वाने दशधेनुसमोव ने कोऽपि कण्व ४९६ प्रजा २१ व्या ६५ आंपू १०.३१ आंपू १०३८ कपिल १६८ आंपू १०४१ आंपू ११०४ कण्व ७३२ आंपू १०३६ आंपू ९७३ आंपू ६२० कण्व ४५ दशकृत्वः पिवेच्चापः दशकृत्वः पिवेदापः दशकोटि समा राजन् दशकोटिसमास्तत्र क्रीडित्वा वृ.गौ. ७.९३ वृ.गौ. ६.४० वृ परा ४.४० बृ.गौ. १८.१० आंपू ७०७ बृ.गौ. २०.६ वृ परा ११.१५२ आश्व २४.२३ आश्व २३.४१ शाता ६.३७ मनु ७.४५ दा ८४ व्या १५४ लघुशंख ३३ लिखित ६२ नारा ३.१७ वाधू ४६ वृ परा १२.३७४ ब्र. या. ११.३१ वृ.गौ. ७.६ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी दशनामानि नैरुक्ता दशनैः स्पृष्टमात्रेण दशपंचाष्टचतुर उपवेश्य दशंपूरुषविख्याता दशपुरुषविख्यातां दश पूर्वान् परान् वंश्यान् दशप्रणव गायत्रीमनुलोम दश प्रणवगायत्र्या दशमूले स्थितो ब्रह्म दशप्रणव गायत्री दशप्रणव गायत्री दर्शभिर्जन्मजनितं दशभिर्वारुणैर्मन्त्रै दशमं मंडलं सर्व दशमासांस्तु तृप्यान्ति दशमासांस्तु तृप्यन्ति दशमीद्वादशी श्राद्धे दशमीप्रभृति प्रोक्तास्ति दशमीमिश्रितां त्यक्त्वा दशमीवेधसविद्धा तदा दशमी स्नानमात्रेण दशमे तु दिने प्राप्ते दशमेऽहनि वैश्यस्य दशमेऽहानिसम्प्राप्ते दशं कालं च पात्रं च दशम्या धूपकंचैव दशम्येकादशी दशरात्रकृतं पापं दशरात्रं सपिण्डानां जातकं दशरात्रार्द्ध मासेन दशरात्रेचरेद्वज्रमापत्सु दशरात्रेण शुद्धयंति दशरात्रेण शुद्धिः बृ. या. २.११३ वृ परा ६.१०९ शाता १.२२ या १.५४ व २.४.५ मनु ३.३७ विश्वा ३.४८ विश्वा ३.११ कण्व २५५ दशप्रणवगायत्र्या विनियोग विश्वा ३.५२ दशभार्योऽप्यपत्नी कंसत्वसौ कपिल ६६१ वृ परा ७.३३३ विश्वा ३.७३ दशसूनासमं चक्रं दशसूनासहस्राणि यो दशस्थानानि दण्डस्य दश स्थानानि दण्डस्य दशहस्तेन दंडेन दसहस्तेन दंडेन दशहस्तैः भवेद वंश दशांशं सर्षपैर्हुत्वा दशांशेन ततो होमो दशाक्षरेण मंत्रेण दशांगुलीषु तलयोः दशाध्याक्षान् शताध्यक्षान् दशाननक्रमेणैवशतं दशानामपि पूर्वेषां दशानामश्वमेधाना दशानां वैकमुद्धरेज्ज्येष्ठः दशाब्दाख्यं पौरसख्यं दशां विवर्जयेत् प्राज्ञो दशायां च रमायां तु कुर्या दशावरा वा परिषद्यं धर्म दशाष्टौ वा गृहस्थस्य दशास्वेवं फलानां च दशाहं निर्गुणं प्रोक्तं औ ६.४० दशाहं प्राहुराशौचं वृ परा ४.६२ वृ परा ११.२२५ वृ हा ७.२१७ औ ३.१४९ मनु ३.२७० व्या १९५ आंपू ९२६ वृ हा ५.३४० ब्र. या. ९.३१ ब्र. या. १३.२५ पराशर १०.३३ अत्रिस १०१ व २.६.४४९ वृ. गौ. ६.६९ वृ हा ५.२०७ ब्र. या. ९.२० वृ.गौ. ९.४१ कपिल १०९ आप १.२२ आंउ ९.७ दशरात्रेण शुद्धिः स्यादि दशरात्रेष्वतीतेषु दशलक्षणकं धर्ममनुतिष्ठन् दशलक्षणानि धर्मस्य दशवर्षाणि राजेन्द्र ! दशवर्षाभवेद्गौरी दश व्याघ्रादिनिहिता दशषट् त्रितथैकाहं दश सहस्रं जप्त्वा तु दशसाहस्रिकोऽभ्यासो दशसाहस्रमभ्यस्ता वृ परा ६.३२० ३८१ व २.६.४६८ पराशर ३.१३ मनु ६.९४ मनु ६.९३ वृ. गौ. ६.३८ ब्र. या. ८.१६२ शाता ६.६ अत्रिस २०९ शंख १२.१६ बृ.या. ४.५४ अत्रि ४.४ मनु ४.८५ मनु ४.८६ नारद १८.९४ मनु ८.१२४ वृहस्पति ८ शाता १.१५ वृ परा १०.१७५ शाता २.१७ शाता २.८ वृ हा ५.४१३ वृ हा ३.१८४ विष्णु ३ भार ९.९ कपिल ९३० बृ.गौ. १९.१३ बौधा २.२.६ मनु २.१३४ शंख १४.१७ कपिल ९०८ मनु १२.११० भार १५.१०६ आंपू ५९५ औ ६.७ औ ६.१ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२ दशाहं बान्धवैः सार्द्ध दशाहं ब्राह्मणानान्तु दशाहं शावमाशैौचं दशाहाच्छुध्यते विप्रो दशाहाच्छुध्यते विप्रो दशाहस्तु परं सम्यग दशाहात्तु परं सम्यग् दशाहुतीन्हुत्वा तु दशाहेन द्विजः शुद्ध्येत दशाहे समतिक्रान्ते दशीकुलं तु भुंजती दशेन्द्रियाणि मनसो दशैक पंचसप्ताह दशै (एकै) कस्मिंन्पञ्च दशैताः कपिला प्रोक्ता दस्युवृत्ते यदि नरे शंका दहत्यग्निस्तेजसा च दहद्भिः वेदनात्तैः तु दहनाञ्च पिपद्येत दहाद्यशौचं कर्तव्यं दह्यत्यग्निर्यथा कक्ष दह्यन्ते ध्यायमानानां दह्यन्ते ध्यायमानानां दह्यमानं तु भर्तारं दह्यमाना दवीयांस दाक्षायणी ब्रह्मसूत्री दादयार्थ दृश्यते दातव्यं प्रत्यटं पात्रे दातव्यं सर्ववर्णेभ्यो दाता च न स्मरेद्दानं दातां चाङ्गारशयननामकं दाता चैव तु भोक्ता दाता तत्फलमाप्नोति दाताऽपि चतवतं दातार किं विचारेण औ ७.९ व २.६.३५० मनु ५.५९ आंगिरस ५१ आप ९.१२ ओ ६.८ संवर्त ४५ ब्र. या. २.१४२ औ ६.४२ व २.६.४३१ मनु ७.११९ विष्णुम ७७ या २.१८० ब्र. या. ४.३६ वृ.गौ. ९.५० नारद १८.७२ शंखलि ३० वृ.गौ. ५.३६ पराशर ९.३० औ ६.५१ व १.२.१८ दया. ८.३० मनु ६.७१ आंपू ९९३ वृ परा ११.१२९ या १.१३३ वृ परा ७.३५६ या १.२०३ मनु ८.४० वृ परा ६.२४२ १९५ वृ परा ६.१२६ वाधू १५१ वृ परा १०.३४० शंखलि ७ दातरं नोपतिष्ठन्ति दातारं स्वजनोपेतं दातारोनोऽभिवर्द्धन्तां दातारो नोऽभिवर्द्धन्तां दातारो नोऽभिवर्द्धन्तां दातारो नोऽभिवर्धन्तां दातारो नोऽभिवर्धन्तां दातारो नोऽभिवर्धन्तां दाता वदेदिमं मंत्र दाता सत्यः क्षमी प्राज्ञः दाता सेतुगतः द्यो दातास्या स्वर्गमाप्नोति दातुः कर्मफलप्राप्तिर्भोक्ता दातुरन्धस्तु यत्पुण्यं दातुर्विशुद्धपापस्य दातुश्च नोपतिष्ठेत दातुश्च नोपतिष्ठेत दातुश्च यस्मिन् मनसो दातृणां व्रतिनामेके दातृन प्रतिग्रहीतृश्व दातृलोकमवाप्नोति दातृहरतं च छिन्दन्ति दातृहस्तो भवेदूर्ध्व दात्रं प्रणवसंयुक्तं दात्रा द्विजेनात्र तु दानकालो तु सम्प्राप्ते दानग्रहणप श्वन्नगृह दानञ्च विधिना देय दानञ्चैव यथा शान्ति दानतीर्थव्रतादिभ्यः दानधर्मफलं श्रुत्वा दानधर्म निषेवेत दानन्तीर्थ दयातीर्थ दानप्रतिग्रह यागं दानफलवर्णन स्मृति सन्दर्भ अत्रि ५.८ वृ.गौ. १०.५९ ब्र. या. ४.१३८ मनु ३.२५९ या १.२४५ आश्व २३.९७ औ ५.७३ वृ परा ७.२७८ आश्व १५.२८ या ३.१६५ आंपू १९६ या १.२०५ व्या २८२ कण्व ३३७ वृपरा १०.६७ दा ४० दा ४१ वृ परा ७.२३३ वृ परा ८.११ मनु ३.१४३ वृ परा १०.१७० आंपू ७४० वृ परा ६.२४५ भार १८.२३ वृ परा १०.८३ वृ परा १०.२९६ नारद १४.३८ दक्ष ६.१३ बृ.गौ. १४.५२ आंपू ४३ वृ.गौ. ९.१ मनु ४.२२७ बृ.गौ. २०.९ वृ हा ८.२२१ विष्णु ८७ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३८३ दानमध्ययनं यज्ञः नारद १८.४७ दानेन सर्वकामान व १.२९.१ दानमन्यच्च यद्दत्त ब्र.या. १२.१२ दानैश्च विविधैः सम्यक् संवर्त ८९ दानमानादिना नित्यं तेनात्य लोहि २३७ दानैर्होयैर्नित्यं संवर्त २०० दानं अध्ययनं चैव शंख १.३ दानोद्वाहोष्टि-संग्रामे वृ परा ८.१० दानं अध्ययनं वार्ता यजनं अत्रिस १५ दानोथवा महोमाचं व २.६.२६१ दानं कुर्यात्तदग्नस्य नो कपिल २१२ दान्तस्त्रिषवणस्नायी या ३.४८ दानं कृत्वा कथं कृष्ण वृ.गौ. ६.३ दापनीयस्त्वसौ सम्यक् कपिल ८६४ दानं दम स्तपः शौच वृ हा ८.३३७ दाप्यः परर्णमेकोऽपि नारद २.१२ दानं दातव्यम् इति एव वृ.गौ. ३.३७ दाप्यपिण्डा स्ततस्तत्र औ ५.४८ दानं पितृणामत्यन्तकलि कपिल ९३६ दाप्यश्शतपणान्सद्यः तत्सत्यं लोहि ६१९ दानं प्रतिग्रहो होमः दक्ष ६.१२ दाप्यस्तु दशम भागं या २.१९७ दानं प्रतिग्रहो होमः दा ५९ दामोदरं ब्रह्मरन्ध्रे नाम विश्वा २.१५ दानं प्रतिग्रहो होम शंख १५.२५ दाम्भिको बकवृत्तिश्च ब्र.या. ४.१५ दानं यत्ते प्रियं किञ्चित वृ.गौ. १०.८४ दाम्यन्स सर्वदाऽऽत्मानं वृ परा ६.२५३ दानं मत्सफलं नैव वृ.गौ. ७.१३१ दायादेऽस्ति बन्धुभ्यो नारद ४.१५ दानशिष्टप्रतिग्राही आश्व १.४ दायाद्यकाले वा दद्यात् वृ परा ६.४० दानस्य यत्फलं नृणां वृ हा ३.५२ दार वाणां तक्षणम् बौधा १.५.३७ दानादियोग्यतालब्धभूमिः कपिल ६४६ दाराग्निहोत्रसंयोगं दा १५७ दानादिव्यपदेशेन स्ववश कपिल ५८३ दाराग्निहोत्रसंयोगं पराशर ४.२० दानाद्दशानुगृह्णाति वृ.गौ. ६.१ २ ४ दाराग्निहोत्रसंयोगं मनु ३.१७१ दानाधिकारी ब्राह्मण लक्षण विष्णु ९३ दाराधिगमनं चैव मनु १.११२ दानाध्ययनदेवार्चाज आंपू १०२३ दाराधिगमनाधाने यः कात्या ६.२ दानानान्तु फलञ्चान्यत् वृ.गौ. ११.२४ दारिदचनाशिनी देया आंपू ९२५ दानानामुपदेशञ्च वृ.गौ. १०.१०४ दारुणा घातने कृच्छ्रे यम ६९ दानानि च प्रदेयानि ल हा ४.७४ दारुणां सत्त्यजेद्वाऽपि व हा ८.१०५ दानानि विधिना साध व परा १०.१ दारुवदस्थाम् बौधा १.५.४७ दानानि सर्वाण्यामिधाय वृ परा १०.३८५ दारु (क्षीर) हारीच पुरुषः शाता ४.२१ दानान्यथैतानि मया वृ परा १०.२७८ दावाग्निदवग्धानां शंखलि २७ दानान्येतानि देयानि संवर्त ९१ दावाग्निदायकश्चैव शाता ३.१३ दाने तु तादृशेधारे ह्यशक्ये लोहि ४८६ दासनापितगोपाल पराशर ११.२० दानेन तपसा चैव सत्येन वृ .गौ. १०.९९ दास नापित गोपाल वृ परा ८.३२५ दानेन प्राप्यते स्वर्गो व परा १०.२ दासनापितगोपालकुल बृ.य. ३.१० दानेन यस्य कस्यापि यथा कपिल ४५१ दासनापितगोपालकुल यम २० दानेन वधनिर्णेकं मनु ११.१ ४० दासनैकृतिकाश्रद्धवृद्ध नारद २.१५७ दाने विवाहे यज्ञे च या ३.२९ दासमयाणां पात्राणां बौधा १.६.२७ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८४ स्मृति सन्दर्भ दासी कुम्भ बहिर्गामा या ३.२९४ दिनैकसाध्याः कतिथा आपू १६ दासी घटमपां पूर्ण मनु ११.१८४ दिनै‘दशभि प्रोक्तः वृ परा ९.१९ दासी दासे तथा कन्या ब्र.या. १३.२ दिवश्च पृथिवी चैव बृह ९.६७ दासी दृशतनो भृत्यां व २.५.३५ दिवसद्वयसाध्य याः परा आंपू १७ दासीप्राणहरो दण्डः शिरो लोहि ६८१ दिवसस्य च रात्रेश्च वृ परा २.११ दास्यमेव परंधर्म वृ हा १.१८ दिवसस्याद्यभागे तु दक्ष २.४ दास्यमेव हरेर्मोक्षं वृ हा ३.११२ दिवसस्याष्टमे भागे व १.११.३२ दास्यमेव हि जीवानां वृ हा ३.९९ दिवसस्याष्टमेभागे वृ परा ७.९६ दास्यं तु कारयंल्लोभाद् मनु ८.४१२ दिवसात् प्रभृति प्रोक्ता आंपू ९२३ दास्यं विना कृतं यत्तु वृ हा ५.३३ दिवसे तु यदा ग्रामे वृ परा ८.२७७ दास्यं स्वरूपं सर्वेषा वृ हा ३.७९ दिवा कपिच्छ (त्थ) दा १६४ दास्यां वा दासदास्या मनु ९.१७९ दिवा कपित्थच्छायायां अत्रिस ३१५ दाहः कार्यो यथान्यायं औ ७.८ दिवा कपित्थच्छायायां लिखित ९५ दाहयित्वाग्निभिर्भार्या कात्या २०.५ दिवा कपित्थच्छायासु लघुशंख ६८ दाहयित्वाग्निहोत्रेण ___ या १.८९ दिवाकरकरैः पूतं पराशर १२.२० दाहयित्वा विधानेन व २.६.४३८ दिवाक ब्र.या. १३.१५ दाहयेत् तप्त तैलेन वृ हा ४.१९८ दिवाकीर्तिमुदक्यां च मनु ५.८५ दिक्संधयः स्युद्विदशः भार २.४ दिवा कीत्यैस्तथान्यैश्च बृ.या. ७.५५ दिग्दण्डस्त्वथ वाग्दण्डो वृ हा ४.१८७ दिवाच मैथुनं गत्वा शंख १७.५४ दिग्दर्शनं तृतीयं स्यात् विश्वा १.४९ दिवाचरेयुः कार्यार्थं मनु १०.५५ दिग्दैवतैः समायुक्तं वृ परा ११.१४० दिवा चैवार्कसंस्पृष्टं ब.य. ३.७० दिग् () निर्णयं समारभ्यो भार १.१८ दिवादीना मृषामित्वां ब्र.या. २.१०३ दिङ्नामानिस्तूपावास भार २.८ दिवानुगच्छेद्गास्तास्तु मनु ११.१११ दिङ्मात्रमपि चोच्यन्ते कण्व ३०८ दिवार्क रश्मिसंस्पृष्टं यम ६४ दिधिषूपतिः कृच्छ्राति १.२०.११ दिवा वा यदि वा रात्रौ आश्व १५.५० दिनत्रयेण वा कर्म यथा कात्या १९.५ दिवा वक्तव्यता पाले मन ८.२३० दिनद्वयञ्च नाश्नीयात् आप ९.४२ दिवा सन्ध्यासु कर्णस्थ वधू ८ दिनद्वयं चैकभक्तो पराशर ८.४५ दिवासन्ध्यासु कर्णस्थ या १.१६ दिन रात्रिकाल वर्षा दीनावर्ण विष्णु २० दिवा सूर्याय रात्रौ विश्वा ८.६ दिनानि यानि मार्गे कण्व ५४३ दिवा सूर्याशुभिस्तप्तं लघुयम ९६ दिनाष्टकात्पूर्वमेव कण्व ५९० दिवा स्वपिति यः स्वस्थो संवर्त ३३ दिनेऽतीते द्वादशे तु कण्व ५०५ दिवास्वापी भवेन्नैव कण्व ५६७ दिने दिने वैष्णवेष्ट्य वृ हा ५.५४८ दिवेष सन्ध्ययोः कुर्यान् शाण्डि २.१६ दिने दिने सहस्रांशु वृ परा २.७५ दिवैवाराधनं तस्य कण्व ४५४ दिने दिने स्नानकाले शाण्डि ३.५९ दिवोदितस्य शौचस्य दक्ष ५.१२ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३८५ दिव्य अप्सरोगणैः वृ हा ७.३२० दीपाश्च वहवोदेयाः वृ परा ७.१६२ दिव्यकन्याव्रता यान्ति वृ.गौ. ५.९२ दीपिकाभिरनेकामि वृ हा ७.२५८ दिव्यगंधानुलिप्तांगं भार १२.२७ दीपि स्थापरोदेषु . व २.७.५७ दिव्यचन्दनलिप्तांगी वृ हा ३.१७ दीपैर्नीराजनः कृत्वा ...वृ हा ७.२५७ दिव्यचंदनं लिप्तांगाः भार १९.१२ दीपैनीराजनं कुर्यात् व २.३.१७ दिव्यचन्दनलिप्तांगना व २.६.८२ दीपैः नीराजनं कृत्वा वृ हा ५.३५३ दिव्य चन्दन लिप्तांगी वृ हा ३.३५८ दीपोत्सवो दीपशान्तिः कण्व ३५१ दिव्यं ज्ञानं भवेन्मुक्तिः कण्व ४७१ दीप्तो यं न दहत्यग्नि नारद २.२१६ दिव्यं वर्ष सहस्राणि ब्र.या. ११.५१ दीप्तनक्षत्रमालवदक्ष वृ परी ११.१३ ४ दिव्यरत्नमये पीठे वृ हा ३.१२९ दीयते तमसालक्ष्यं समंदानं ब्र,या. ११.१० दिव्यवर्ष शतं विप्र वृ हा ८.१८८ दीयते पुच्छ संगृह्यसत्पात्रे ब्र.या. ११.१७ दिव्यवस्त्र परिच्छन्नं वृ परा १०.१५८ दीयते यद्दरिद्राय वृ परा १०.३१३ दिव्यशास्त्रानभिज्ञोऽपि शाण्डि ४.६८ दीयते वेदविदुषे वृ परा १०.३१४ दिव्यसम्पूर्णविप्रत्वमपि कपिल ३ ४९ दीयमानं न गृह्णाति या २.४५ दिव्याना देवपुष्पाणां कपिल ४३५ दीयमानं न गृह्णाति नारद ९.९ दिव्यानुलेपलिप्तांगा वृ परा १०.१९७ दीयमानस्य तस्यापि कपिल ४१६ दिव्याभरण सम्पन्नं व हा ४.१३६ दीयमानां च पश्यति वृ परा १०.६४ दिव्यायतनयात्रायाम शाण्डि १.३५ दीर्घकुत्सितरोगार्ता नारद १३.३६ दिव्याश्च अप्सरसो वृ परा १०.१९२ दीर्घतीव्रामयग्रस्त या ३.२४४ दिव्यैर्विभूषितां देवी भार १२.२६ दीर्घतीव्रामयग्रस्ता नारद १४.२१ दिश दिक्पतिश्चैव व.या. २.१११ दीर्घ प्रणवमुन्धार बृह ९.११७ दिशश्च विदिशश्चैव वृ.गौ. १०.५४ दीर्घप्लुतः सामवे बृ.या. २.७९ दिश्यैशान्यां तथाऽग्रेन्या नारा ६.३ दीर्घवैरमसूया च व १.६.२३ दीक्षामहत्यस्ता ज्ञेया आंपू ३६ दीर्घसत्र हवा एप बौधा १.२.५२ दीक्षितः समवेत्तावद वृ हा ६.११ दीर्धरामेषु सत्र बौधा १.६.८ दीक्षितस्त्रीप्रसंगेन जायते शाता ५.३५ दो वनि य"श मनु ८.४०६ दीक्षितस्य कदर्य्यस्य वृ.गौ. ११.१३ दोध्विानं 'दद्वान् शाण्डि ४.१८५ दीक्ष्वष्टमध्ये चत्वारि वृ हा २.५३ दीर्घायुदीर्घकः कण्व ६३० दीपकाभिरनेकाभिः कुर्यात् व २.७.४५ दीर्घायुष्यं दारिदचं वृ परा ६.१७२ दीपज्योतिरिवान्तश्च ब्र.या. ११.६२ दीर्घिकासु तडागेषु वृ परा ११.२०५ दीपन्नीराजयेत् पश्चाद् वृ हा ८.५९ दीर्घश्चुर्भिर्दोभिश्च वृ हा ३.१९० दीपशय्यानसच्छाया अत्रिस ३९० दुकूलवस्त्रसम्बीतां वृ हा ३.२६२ दीपहर्ता भवेदन्धः मनु ११.५२ दुकूलवस्त्रसंबीतां व २.६.८१ दीपान् नीराजेयेद् भक्त्या वृ हा ५.४३८ दुःखमुत्पादयेद्यस्तु या २.२२५ दीपालोक प्रदानेन वृहस्पति ६६ दुःखा ह्यन्या सदा दक्ष ४.८ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८६ स्मृति सन्दर्भ दुःखितो यस्तु यस्य वृ परा ११.८१ दुर्मिक्ष भूतपीडा च ब्र.या. ९.४९ दुःखे च शोणितोत्पादे या २.२२८ दुर्मिक्षरोगाग्निभयं वृ हा ६.७५ दुःखोत्पादि गृहे द्रव्ये या २.२२७ दुर्मिक्षे अन्नदाता च अत्रिस ३३० दुग्धं क्षीरं शर्कराञ्च वृ हा ५.४७८ दुर्भिक्षे धर्मकार्ये च या २.१५० दुग्धं सलवणं सक्तून वृ परा ८.१७९ दुर्भिक्षे राष्ट्रभंगे वृ परा ८.१९ दुग्धहारी च पुरुषो शाता ४.८ दुर्मिक्षे राष्ट्रसम्पाते वृ.गौ. १४.२ दुग्धाब्धौशेषपर्यंके वृ हा ६.३ ४४ दुर्भासभक्षणेनैव दुस्संसर्ग नारा ३.१ दुनोति तण्डुलान्यत्र ब्र.या. ३.५४ दुर्मत्युमरणं प्राप्ता बृ.य. ४.३३ दुराचारस्य विप्रस्य पराशर १२.५३ दुर्मित्रिया इति द्विष्यं बृ.या. ७.९ दुराचारो हि पुरुषो मनु ४.१५७ दुर्लभायां स्वशाखायां आंपू ७४१ दुराचारो हि पुरुषो व १.६.६ दुर्वाक्षताभ्यां तत्सव कण्व ६७९ दुराधर्षेः हीयते वा वृ.गौ. ५.७ दु (दा) वाधीनं कारपाठं कपिल ४४ दुरालापादिकथनं दुष्ट विश्वा २.५७ दुर्वाभिर्जुहुयात् तद् वृ हा ३.१ ४४ दुराशी वा दुराचारी वृ हा ८.२९० दुर्वृत्त सत्तनरेषु वृ परा १२.८० दुरितानां दुरिष्टानां व १.२७.२० दुर्वृर्ता ब्रह्माविक्षत् या ३.२६८ दुर्गन्धत्यागपर्यन्तं कृत्वा . विश्वा १.५६ दुर्वृत्ता वा सुवृत्ता वा वृ.गौ. ३.६४ दुर्गन्धधूमयोनीति (नि) शाण्डि ३.१०९ दुर्व्यापारदिना तेषां लोहि ६०४ दुर्गन्धं सर्वरन्ध्रेषु वृ परा १२.१८५ दुःशीलोऽपि द्विजः पूज्यो पराशर ८.३२ दुर्गाणि तत्र कुर्वीत वृ हा ४.२२५ दुश्चरित्रात्पूर्वमेव समुद् लोहि १५६ दुर्गा कात्यायनी चैव वृ परा ४.१ ४८ दुश्चर्माणं शीर्णकेशं अत्रिस ३ ४५ दुर्दष्टांस्तु पुनदृष्टा या २.३०८ दुष्कर्म करणात् पापात् शाता १.२९ दुदृष्टे व्यवहारे तु नारद १.५७ दुष्कर्मजा नृणां रोगा शाता १.४ दुर्देशगमने चैव नौयानम नारा ५.५० दुष्कृतं हि मनुष्याणां आंगिरस ५८दुर्बलं स्नापयित्वा तु कात्या २१.३ दुष्टनिग्रहमात्रेण तद् __ लोहि २८५ दुर्बलानामनाथानां शंखलि २५ दुष्टबुद्धेर्दुमुखस्य ज्ञाते लोहि ५४० दुर्बला व्याधि संयुक्ता वृ परा ५.१७ दुष्टं सतो दूषयन्तं स्वकार्य लोहि ७०७ दुर्बलेन स्वामिनैवं विवदन्तं कपिल ८१४ दुष्टवादी खण्डितः शाता ३.२० दुर्बुद्धे मामकं धर्म वृ हा ८.१८४ . दुष्टवणं गण्डमाला शाता १.७ दुर्बोधं तु भवेद्यस्मा बृह १२.२ दुष्टा दशगुणं पूर्वात् 'वृ परा ६.२ ४७ दुर्बलेऽनुग्रहः कार्य्यस्तथा पराशर ६.५२ दुष्टा दुराचाररता अपि कण्व ५८५ दुर्भगो हि तथा षण्ढः बृ.य.३.३५ दुष्टाम्रग्रहरोगघ्नं अभक्ष्या भार ६.७६ दुर्भगो हि तथा घेण्डः यम ३० दुष्टोऽयमसतां मुख्यः लोहि ६३० दुभीडसातमसद्यस्कं भार १४.५३ दुष्प्रतिग्रह मुक्त्याह भार ६.१४६ दुर्भात्स्थान्नपरार्धानं भार १४.५० दुष्टप्रतिग्रहं कृत्वा विप्रो अ २७ दुर्भिक्षं पीड़ा नास्त्यत्र व २.६.४२८ दुष्टप्रतिग्रहहतो विप्रो अ १३८ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी दुष्येयु सर्ववर्णाश्च दुष्टस्त्रीदर्शनेनैव दुष्टस्य दण्डः सुजनस्य दुःसहं यमपुरं च दुःसृष्टि दोषविज्ञेयो दुःस्वप्ननाशकत्वेन दुःस्वप्नपापनाशार्थी दुःस्वप्नं यदि पश्येतु दुहिता च स्वसा दुहिताचार्य भार्या च सगोत्रा दुहिता (वृ) तनयो लोके दुहितापि तथा साध्वी दूत एव हि सन्धत्ते दूतं चैव प्रकुर्वीत दूतसम्प्रेषणं चैव दूतीप्रस्थापनैश्चैव दूयमानेन मनसा दूरदेशस्थितैर्बन्धुजातै दूरदेशान्तरस्थानां दूरस्थाभ्यामपि द्वाभ्यां दूरस्थो नार्चयेदेनं दूरस्थो नार्चयेद्देवान्न दूराच्छ्रान्तं भयग्रस्तं दूरादथियो यस्य गृहं दूरादावसथान्मूत्र दूरात् दूरादाहूय सत्कृत्य दूरादाहृत्य समिधः दूरादुच्छिष्ट विण्मूत्र दूरादेव परीक्षेत ब्राह्मणं दूरादवानं पथि श्रांत दूराध्वचलनात्खिन्नो दूर्वाक्षतान्सर्वपाश्च दूर्वा चैतेषु यो लब्धः दूर्वा सर्वपपुष्पाणि दूषणेन पदेत्यादि मनु ७.२४ बृ.य. ४.३७ अत्रिस २८ वृ.गौ. ५.२५ भार ७.११९ भार १८.५० भार १९.४६ पराशर १२.१ व्या २९४ नारद १३.७४ लोहि २९७ वृ परा ६.१९९ मनु ७.६६ मनु ७.६३ मनु ७.१५३ नारद १३.६४ आंपू १०९२ लोहि १८२ कण्व ५८१ कात्या १५.६ मनु २.२०२ औ ३.७ बृ.य. ३.२५ विश्वा ४८ मनु ४.१५१ वृ.गौ. १२.२७ मनु २.१८६ या १.१५४ मनु ३.१३० पराशर १.४१ बृ.गौ. १४.३ व २.६.३४९ भार १८.४३ ब्र. या. १०.२० व २.४.५६ दूषयन्तश्च तान्भूयः दूषयन्श्रोत्रियान्विप्रा दृढकारी मृदुर्दान्तः दृढवतो वधत्रस्यात्सर्वे दृढश्वेदाग्रहायण्यां दृढोत्संगे समादाय दृताश्चेयेते मणयः दृश्यते कालदानन्तमाहु दृश्यन्ते ब्राह्मणाः सप्त दृष्टञ्च तत्परं ध्येयं दृष्टं स्पृष्टं च दत्तं दृष्टामात्रैर्बाल्य एव दृष्टवाति दुःखिता सर्व दृष्टिपूतं न्यसेत् दृष्टिपूतं न्यसेत् दृष्टैव कामदेवोऽपि दृष्ट्वाचैव नमस्कृत्वा दृष्ट्वा ज्योतिर्विदो दृष्ट्वादत्वाऽपि वा मूर्ख : दृष्ट्वा निवृत्तपापौद्यः दृष्ट्वा पितामहः शूद्रमभि दृष्ट्वा महापातकिनं दृष्ट्वा विलोक्य मार्तण्डं दृष्ट्वा सेतुं समुद्रस्य देयमेव भवेन्नूनं देयंचानाथेऽवश्यं देयं चौरहृतं द्रव्यं देयं सवृद्धयाधविके देवस्य सवितुर्यच्च देया भवद्भिरित्येवं भूमि देव असुर मनुष्याद्यैः देवकार्याद् द्विजातीनां देवकार्य्यं ततः कृत्वा देवकीपुत्र एवान्ये सर्वे देवकीफलमाख्यात ३८७ कपिल ७४६ कण्व २३४ मनु ४.२४६ ब्र. या. ८.१३८ कात्या २८.१५ ब्र. या. ८.२३७ भार ७.२३ वृ.गौ. १०.६ आंपू ३५२ वृ परा १.६१ वृ हा ८.१३० आंपू १०४९ कपिल ७७६ मनु ६.४६ शंख ७.६ वृ परा १०.१९३ व २.४.५९ या १.३३३ बौधा १.५.७६ बृ.य. ४.४२ बृ.गौ. २२.११ औ ९.५३ कपिल ९५९ वृ परा ८.९६ कण्व १५६ आप १.६ या २.३७ वृ हा ४.२२८ बृह ९.४३ लोहि ४६४ वृ.गौ. ५.२९ मनु ३.२०३ दक्ष २.२२ शाण्डि १.४५ बृ.गौ. १९.२ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ स्मृति सन्दर्भ देव कृतस्यौषणां प्रजा ब्र.या. २.१ ४४ देवता हृदि विन्यस्य विश्वा ६.३६ देवगृहेरंगवल्ली करणं व्रत कपिल ६२७ देवतीर्थेन संगृहा ब्रह्मा विश्वा २.२२ देवताः कथितास्साद्भिः कपिल १४५ देवतोत्तरसम्पर्क विना व हा ६.४०९ देवतातिथि भक्तश्च दक्ष २.४९ देवर्तिवक स्नातका या १.१५२ देवतातिथिभृत्यानां मनु ३.७२ देवत्वं अमरेशत्वं वृ हा ३.३६२ देवतादि पितृयज्ञान्तं आश्व १.१ ४० देवत्वं सात्त्विका यांति मनु १२.४० देवतादीन्नमः कुर्यात् ल व्यास २.५ देवदत्तांपतिर्भार्या मनु ९.९५ देवतानां गुरोराज्ञः मनु ४.१३० देवदानवगंधर्वा रक्षासि मनु ७.२३ देवतानां पितृणां च जले लघुयम ९८ देव देव नमस्तेऽस्तु वृ.गौ. ८.१९ देवतानां पितृणां च लघुशंख ८ देवदेव! नमस्तेऽस्तु वृ.गौ. ६.११० देवतानां पितृणां च लिखित ८ देवदेवश कपिला सदा वृ.गौ. १०.२ देवतानां विपर्यास कात्या २५.१६ देव देवेश दैत्यघ्न वृ.गौ.५.१ देवतान्तरशंका तु न वृ हा ७.५९ देव! देवेश! दैत्यघ्न! वृ.गौ. ६.९ देवताः पञ्चविन्यस्य ब्र.या. १०.९५ देव! देवेश! दैत्यघ्न वृ.गौ. १०.६७ देवता परमात्मास्या भार ६.३५ देवद्रव्य विनाशेन व्यास ३४.३४ देवतापितृभूतानां काचि आंउ १२.१४ देवदोण्या विवाहेषु आप १०.१६ देवताप्रतिमां दृष्ट्वा व्या ३६६ देवद्रोण्यां विवाहेषु व १.१ ४.२२ देवता प्राणशक्तिः स्याद् विश्वा ६.२६ देवद्रोण्यां विहारेषु आप १.३० देवताब्रह्मविष्णुवीशाः भार १८.७० देवद्रोण्यां वृषोत्सर्गे आंगिरस २३ देवता ब्राह्मणाधीना बृ.गौ. २२.२८ देवद्रोही श्रुतिद्रोही आंपू ६०५ देवता भाववत्तश्च शंख ९.११ देव धर्मामतमिदं वृ.गौ. ७.२ देवताभ्यस्तु तद्भुत्वा मनु ६.१२ देवनामान्यनन्तानि आंपू १६३ देवतायतने कृत्वा ततः व १.११.२८ देवपात्रादितश्चाऽऽज्यं आश्व २३.५२ देवतायतनोद्यान वृ पर ५.१२२ देवापितृकर्मविधानं विष्णु ६६ देवतायाश्च सायुज्यं बृ.या. १.३३ देवपित्र्यतिथिभ्यश्च पु १६ देवतायै हवि स्थाप्य आश्य २.४८ देवपूजा सर्वकाल कण्व ७८६ देवताराधनञ्चैव स्त्रीशूद अत्रिस १३६ देवपूजाविधिः प्रोक्त वृ परा ४.१५४ देवताचीकृतां नित्यं वृ परा १२.२०८ देवब्रह्मपितृणां च जात्या भार २.३७ देवतार्थ हवि शिगूं या १. १७१ देवब्राह्मणगोमांसं मातृमांसं कपिल ९६७ देवता विनियोगोपांपाने भार ६.४५ ।। देव ब्राह्मण पाषण्डि वृ परा १२.६३ देवता संख्या ग्राह्या कात्या २६.३ देव वाहाणसान्निध्ये मनु ८.८७ देवतास्तत्र विन्यस्य ब्र.या. १०.४४ देवभूतपितृ ब्रह्म कात्या १३.२ देवतास्तर्पयित्वा बौधा २.३.२ देवमानुषपित्र्येषु भार १५.९४ देवतास्वपि हूयन्ते कात्या २५.१२ देवमालापनयनम् वृ. गौ. ६.५९ देवता हृदयं प्रोक्तं कण्व २०७ देवं अंशुमदं वनि शंख ९.६ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी देवं सुगन्धतुलसी देवयज्ञादिकं वक्ष्ये गृह्यो देवयज्ञो भूतयज्ञः देवयात्राविवाहेषु देवरा एव विख्याता देवरादिसुतोत्पत्तिः विधवा देवराद्वा सपिण्डाद्वा देवर्षितर्पणं चैव स्नानं देवर्षिपितृ तृप्त्यर्थ देवर्षि नारदस्तस्य व २.७.५९ विश्वा ८.१ शंख ५.३ अत्रिस २४८ लोहि ५५९ लोहि १६९ मनु ९.५९ वधू ७७ कण्व १५२ वृ हा ३.२९९ बृ.गौ. २१.२० देवलः शूककीटो यूप देवलाजभिषः शूद्रान् देवलोकस्तथा सूर्यो देव! संवत्सरं पुण्यमेकं देवस्थ पुरतो वह्नि देवस्य त्वेतिगृह्णवीयात् आश्व १०.१८ भार ४.१२ वृ परा १२.३३१ बृ.गौ. १८.१ व २.६.३८२ व २. ६.३९ देवस्य प्रतिमां कुर्यात् वस्य त्वेति मन्त्रेण देवस्य हरणाच्चैव देवस्वं ब्राह्मणस्वं देवांश्च हृदयेध्यायन् देवा ऋषिगणाः च एव देवा गातुविद इति देवा गात्विति वामदेव देवागारे द्विजातीनां देवआतिथ्य अर्चन देवादितर्पणं चैव स्नानं देवादिब्राह्मण वस्त्रं देवादिस्थापनार्चासु देवादीना मृणी भूत्वा देवाद्यं पार्वणं प्रोक्तं देवानभ्यर्च्यगं धेन देवानभ्यर्च्य गंधेन देवानाम तिथीनां च देवानामधिपोदेवो व २.३.५९ शाता ४.३० मनु ११.२६ भार १८.२७ वृ.गौ. ४.२८ बृ.या. ७.१०७ ब्र.या. २.८६ संवर्त ९३ या १.२१६ विश्वा ७२ वृ.गौ. १.५२ भार १९.३१ दक्ष २.४७ वृ परा ७.१३६ व्या ३१ व्या ४० वृ परा १०.२८१ शाता ५.२० देवानामपि तद्भोज्यं देवानामाश्सनं दद्यात् देवानामासनं दद्यात्क्षणे देवानां ऋजवोदर्भा देवानां क्षालयेत्पादौ देवानां च पितॄणां देवानां दक्षिणेदद्या देवानुग्रान् समभ्यर्च्य देवानृषीन् पितृन्श्चैव देवानृषीन् पितॄंश्चैव देवानृषीन्पितृ स्कंदं देवानेताहृनदि स्मृत्वा देवान् इव स्वयं विप्रान् देवान् ऋषीन् मनुष्यांश्च देवान्ं देवानुगांश्चैव देवान् पितृन् मनुष्यांश्च देवान् ब्रह्मऋषींश्चैव देवाः पितृगणाः च एव देवाः पितृगणाश्चैव देवा ब्रह्मर्षयः सर्वे देवाभ्यर्चान्ततः कुर्यात् देवा मनुष्याः पितरश्च देवा मनुष्याः पितरश्च देवार्चनं प्रवक्ष्यामि देवार्चनं सदा होमः देवार्चने जपे होमे स्वाध्य देवार्चने जपे होमे देवाची दक्षिणादि स्यात् देवालयमखस्थान देवालयानि यौप्यानि देवालये नदीतीरे देवाः सर्वे विमानस्था देवास्तत्र तु विन्यस्य देवीद्वादशलक्षं तु जपं देवीध्यानरतं विप्र न ३८९ आंपू २३८ आश्व २४.१४ आश्व २३.१९ व्या २६० आश्व २३.१३ दा १२ ब्र. या ४.६७ या २.११४ वृ हा ५.२१७ व्या २१ भार १८.२६ भार १५.१०५ वृ.गौ. ६.८० मनु ३.११७ वृ परा २.१७१ व् परा ७.२५३ ल व्यास २.३६ वृ.गौ. ३.४३ वृ.गौ. ७.१९ वृ.गौ. २.६ औ १.१८ वृ परा ५.१९२ वृ परा ४.२११ वृ परा ४.१११ वृ परा १२.१८ वाधू १३४ वृ हा ४.३९ आश्व २३.२७ भार ३.९ वृ हा ८.११७ भार ५.४१ वृ हा ७.२९३ ब्र. या. ८.७८ नारा १.३७ भार १२.३९ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९० देवीभ्यां सहितं तस्मिन् देवीमावाहयेछीना देवीं च विभ्रतों दोर्भिः देवीराप इति द्वाभ्यामापो देवेड्चयेमरुक्पुत्र वृ हा ३.२८ बृ.या. ७.२१ भार १५.५२ देवे द्वौ प्राक्त्रयः पित्र्ये व २.६.३६७ वृ परा २.१७८ देवेभ्यश्च नमः स्वाहाः देवेभ्यश्च हुतादन्नाच्छेषाद् या १.१०३ ल व्यास २.५५ देवेभ्यश्च हुतादन्ना देवो ध्येतव्यइत्युक्ते तदुपर्यपि कपिल २३ अत्रिस ३७१ भार ११.२६ भार १८.१२१ देवो मुनिर्द्विजो राजा देव्यर्थ परिवारार्ध देव्याः कुशाश्चयुग देव्या द्वादशलक्ष तु जपं देव्यापादै स्त्रिराचम्य देशकाल उपायेन देशं कालञ्च भोगञ्च देशकालवयोद्रव्य देशकालातिवृत्त्या च देशकालादिनियमं देश-कालादापेक्ष्यैव देशकालानुसारेण देशकालाभियाताय देशकालौ च संकीर्त्य देशकालौ च सकत्य देशग्रामगृह नाश्च देशजातिकुलादीनां देशधर्मानवेक्ष्य स्त्री देशधर्मान् जातिधर्मान् देशधर्म जातिधर्म देशः पर्व च कालश्च देशं कालञ्च योऽतीयात् देशं कालं च संकीर्त्य देशकालं तथा जांति देशं कालं तथात्मानं वृ हा ३.१३० भार ११.७३ देशान्तरगतः श्रुत्वा देशान्तरगते जाते मृते देशान्तरगते प्रेते द्रव्यं देषान्तरगते प्रेते नारा १.३६ विश्वा २.५ या १.६ देशान्तरं तु विज्ञेय या २.१८४ देशान्तरमृतः काश्चित् नारद २.२०९ शाण्डि ३.१२४ देशान्तरस्थ क्लीवैक देशान्तरस्थे दुर्लेख्ये देशान्तरस्थे प्रेत ऊर्ध्व देशान्तरे दुरन्न्नानां देशान्तरे मृतः काश्चित् देशान्तरे गते विप्रे देशे काले च पात्रे च देशेऽशुचावात्मनि च देशेऽशुचावात्मनि च देहद्वयं विहायाशु देहन्यासकरं प्रोक्तं देहमध्यस्थितं देवं देहस्तु पिण्ड इत्युक्तो देहादुत्क्रमणं चास्मात देहान्ते नरकं भुक्त्वा देहाशुद्धिरितिख्याता सेयं देहिनां चैव सर्वेषां देहे देहे तस्याऽवतिष्ठंति वृ हा ३.५ वृ परा ७.३७१ बृ.या. ८.१४ वृ.गौ. ६.४२ विश्वा १.७० विश्वा ८.१९ नारद १८.५७ नारद १६.१ नारद १३.४७ मनु १. ११८ व १.१.१६ वृ परा ७.२९७ या २.१९८ आंपू ७७४ नारद १८.६९ यम ५१ देशं कालं वयः शक्ति देशं काल वयः शक्ति देशं कालविशेषांस्तान् देशस्यत्वेति गृहीया देशाचारं कुलाचारं देशाचाराविरुद्धं यद् देशात्प्रवासयेत्सद्यः तत्प्रति देशादुच्चाटयित्वाथ दद्यात् देशाद् देशान्तरं देशानान्तु विशेषेण देशान्तरकृतं चापि न स्मृति सन्दर्भ अत्रिस २४७ या ३.२९३ कण्व ६० ब्र. या. ८.२०४ व्या २९३ नारद २.११३ कपिल ५२३ कपिल ८५८ या २.१३ औ ३.१३२ लोहि २५७ शंख १५.११ वृ परा ८.१३ या २.२६७ वृ परा ६.३५८ दा १३९ पराशर ३.१४ कात्या ६.४ या २.९३ व १.४.२९ वाधू २२० दा १३८ बृ.गौ. २०.१ वृ परा ७.११७ या १.१४९ व २.३.१६० ल हा ७.१२ भार १९.२४ वृ परा १२.३२४ विश्वा ५.८ मनु ६.६३ नारा ५.२४ शाण्डि १.८१ विश्वा ३.१ वृ परा १२.२२० Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९१ श्लोकानुक्रमणां देहे दुःखसुखे न स्तः लोहि ५९६ दोः पत्सन्धितदग्रपाद विश्वा ६.४२ देहेन्द्रियात्परः साक्षात् वृ हा ४.३ दोलयेच्च ततो दोला वृ हा ७.२८९ देहेन्द्रियादिभ्योऽन्यत्वं वृ हा ८.१५३ दोलाया दर्शनं विष्णोः वृ हा ७.२९२ देवेन्द्रियान्तकरणबुद्धि शाण्डि १.८७ दोलायां दर्शनं विष्णोः वृ हा ५.५१० दैत्यदानवयक्षाणां मनु ३.१९६ दोषयुक्तं च भवति कण्व १७७ दैदीप्यमानं चन्दार्क वृ परा ११.१३३ दोषवत्करणीयत् स्याद नारद ११.७ दैनन्दिनं प्रकथितं श्राद्धं कपिल २७१ दोहदस्याप्रदानेन या ३.७९ दैन्यं साठ्यं जह्मयं बौधा २.२.८८ दौब्राह्मण्यं कुले तेषां कण्व ६३५ दैव कर्मणि तृतीयेऽहनि व २.६.४६९ दौर्भाग्यं घन्तु मे वृ परा ११.१९ दैवतं ब्राह्मणं गाञ्च वृहा ४.१९५ दौहित्र एव सर्वेषां पुत्राणां कपिल ४९८ दैवतस्करराजोत्थे नारद ४.६ दौहित्रः कर्ता? तनयश्चापि कण्व ७४६ दैवतान्यभिगच्छेत्तु मनु ४.१५३ दौहित्रजनानादूर्ध्वं तद् लोहि २५९ दैवत्यमस्यां सविता वृ परा ४.८ दौहित्रजननादेव के केचिदत्र कपिल ७४३ दैव-पर्जन्य-- भू वृ परा ५.९२ दौहित्रजनने पूर्व तस्माद्दौहित्र कपिल ७२४ दैवपात्रेऽभिद्यार्याथं आपू ८१३ दौहित्रजनने सद्यो नष्ट लोहि २३९ दैवैपित्र्यातियेयानि मनु ३.१८ दौहित्रः पावनः श्राद्धे वृ परा ७.५८ दैवपूर्व तु यच्छ्राद्धं लिखित ४७ दौहित्रमात्रस्य तु चेल्लोके लोहि ३०६ दैवं पूर्वाहिकं कर्म वृ. गौ. १०.६८ दौहित्रंगोधृतं ज्ञेयं ब्र. या, ३.५६ दैवं पैतृकमार्ष च कर्म भार १५.८ दौहित्रश्चेद्धनाभावेऽप्यस्य कपिल ४९१ दैवयोगेन चिबृद्धे आंपू ४० दौहित्रसाम्यमात्रा येविभक्ता कपिल ४८७ दैवयोगेन विद्वां आंपू १०५७ दौहित्राणामनेकेषां समावाये कपिल ४९५ दैवाकोत्यकचषकगतमेव लोहि ६४४ दौहित्रे जननादत्र परवि कपिल ७४१ दैवात्प्रत्याब्दिके श्राद्धे ___ व्या ३२१ दौहित्रे दुहितृ द्वारा स्वकीया कपिल ७३७ दैवात् मघोनोऽपि वृ परा १२.७६ दौहित्रे सतिपुत्रस्य कपिल ७११ दैवाद्यान्तं तदीहेत मनु ३.२०५ दौहित्रे सति सोऽयं स्यात् लोहि २१४ दैविकं चाष्टमं श्राद्धं औ ३.१३१ दौहित्रोत्पत्तिमात्रेण तत्कुल कपिल ७१२ दैविकानां युगानां तु मनु १.७२ दौहित्रोत्पत्तीमात्रेण माता कपिल ७१४ दैविकेषु च पित्र्येषि आंपू५९३ दौहित्रो भागिनेयश्च आश्व १.९९ दैवि पैतृवापि भुक्त्वा अ १४ दौहित्रो ह्यखिलं रिक्थम मनु ९.१३२ दैवेन केचित् प्रसभेन वृ परा १२.७८ द्यावापृथ्विी देवेभ्यो ब्र.या. ८.२५ दैवे पुरुषकारे च या १.३ ४९ द्यावाभूभ्योः स्विष्टकृते वृ परा ४.१६४ दैवे युग्मायथाशक्ति ब्र.या. ४.६१ धुचरेभ्यश्च भूतेभ्यो वृ परा ४.१६९ दैवे वृद्धो तीर्थकाम्यन दोत्पन्नेः प्रजा ६५ द्यूतमेकमुखं कार्य या २.२०६ दैवे श्राद्धे च विप्रः सन् वृ.गौ. ३.५९ द्यूतमेतत्पुरा कल्पे मनु ९.२२७ दैवोढाजः सुतश्चैव __ मनु ३.३८ द्यूतं अभिचारोनाहित बौधा २.१.६४ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२ द्यूतं च जनवादं च द्यूतं समाहृयं चैव द्यूतं समाह्वयं चैव द्योतयन् प्रथमं व्योम द्यौः पुमान्धरणी नारी द्यौर्नय इन्द्रेति दद्यात् द्यौर्भूमिरापो हृदयं द्रवद्रव्याणि शुद्धचंति द्रवाणां चैव सर्वेषां द्रव्यपाणिश्च शूदेण द्रव्य ब्राह्मणसम्पत्ती द्रव्यमन्त्रे च मन्त्रेषु द्रव्यमन्नं जलं शाकं द्रव्यमात्रन्तु सर्वत्र द्रव्यस्य नाम गृह्णीयाद् द्रव्यस्य भूमिमुख्यादेर द्रव्यस्य संपत्सु द्रव्य हर्तृणां प्रायश्चित द्रव्याणाञ्च तथा शुद्धि द्रव्याणामप्यलाभे तु द्रव्याणामल्पसाराणां द्रव्याणि धर्मकृत्येषु द्रव्याणि निक्षिपेत् द्रव्याणि हिंस्याद्यो द्रव्याण्यमूनिपदाहुः द्रव्याण्यमूनिपात्रेषु द्रव्याण्यन्यानि चादाय द्रव्यान्तरयुतं तैलं न द्रष्टारो व्यवहाराणां दंष्ट्राभिर्भक्षिता ये च ये दहिणेन तदा प्रोक्तं द्राक्षोत्थैश्चैव खजूरैः दुपदाघमर्षणं सूक्तं दुपदा नाम सावित्री दुपदां नाम गायत्री स्मृति सन्दर्भ मनु २.१७९ दुपदा वा जपेद्देवीमजपा व परा ४.५२ मनु ९.२२१ दुपदां वा तिजो जप्त्वा वृ परा ८.२२० मनु ९.२२४ दुमशाकं महाशाकं व २.६.१७२ व गौ. ७.१०३ दुमेण राजदन्तिहदती शाता ६.१४ वृ परा ५.११३ दुमैः नाना विधैरन्येः व परा १०.३७६ तृ हा ८.४३ दोणाढकं तदर्ध वा वृ परा ८.२२२ मनु ८.८६ द्रोण्यम्बूशीर कुम्माभः वृ परा ८.२१४ वृ परा ६.३३८ द्रोण्यान्दोलायामपि व हा ५.३०९ मनु ५.११५ द्वदेर्भ प्रोक्षणी स्थाप्य ब्र.या. ८.२५६ आप ८.२१ द्वन्द्वान्येतानि बहु कात्या २५.११ औ ३.११७ द्वयंशं ज्येष्ठो व १.१७.४० शाण्डि १.८४ द्वयंगुलस्तत्र विस्तारः वृ परा ११.२७६ __ कण्व ७८७ द्वयन्तरः प्रतिलोम्येन नारद १३.११७ व २.६..५०७ द्वयभियोगस्तु विज्ञेयः नारद १.२२ वृ परा १०.२८५ द्वयमु वै ह पुरुषस्य व १.२.७ कपिल ५८२ द्वयमेतत्प्रकथितं स्त्रिय आपू. १८० प्रजा १८ द्वयं निष्ठं द्वयार्थज्ञ व २.७.१४ विष्णु ५२ द्वयंमुहवै सुश्रवसो गैधा १.१.३३ वृ परा १.५५ द्वयं समाप्य यः स्नायात्त वृ परा ६.१६७ व २.६.९२ द्वयुनर्विश्रामसंस्थाप्य ब्र.या. ८.२४६ मनु ११.१६५ द्वयेन मूलमंत्रण वृ हा ७.१३५ लोहि ६९२ द्वयेन. वृत्तियाथात्म्यं वृ हा २.१३९ वृ हा ४.७१ द्वयेनैव प्रकुर्वीत वृ हा ५.१३८ मनु ८.२८८ द्वयोरप्यनयोः श्रीशं वृ हा ५.४२० भार १४.३० द्वयोरप्येतयोर्मूलं यं __ मनु ७.४९ भार ११.८४ द्वयोरापन्नयोस्तुल्यं नारद १६.११ वृ परा १०.३३३ द्वयोर्विवदतोरर्थे द्वयोः नारद २.१४२ वाधू ४१ द्वयोर्विवदमानयो व १.१६.३ या २.२०५ द्वयोश्चापि हविःशेषं आश्व २.६० बृ.य. ४.३१ द्वयोस्त्रयाणां पंचानां मनु ७.११४ ब्र.या. १२.११ द्वात्रिंशन्निष्कसंयुक्तं वृ.गौ. ६.१६५ वृ परा १०.७७ द्वादश इत्येव पुत्राः व १.१७.१२ वृ परा २.५६ द्वादशपुत्र वर्णनम् विष्णु १५ बृ.या.७.१८१ द्वादश प्रतिमास्यानि कात्या २४.८ आंपू २०१ द्वादश मासान् द्वादशाधि व १.४.२७ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ V श्लोकानुक्रमणी ३९३ द्वादशं विश्वचक्रं तु अ १०४ द्वादशो नवमो वापि वृ परा ५.१४७ द्वादशरात्रं तप्तं पयः बौधा १.१०.४० द्वादश्या दीपदानञ्च व २.६.१६० द्वादशश्चाग्नि सर्वश्च ब्र.या. ६.१६ द्वादश्यान्तत् प्रकुर्वीत वृ हा ८.३३१ द्वादशाक्षर तत्वज्ञश्चातु वृ.गौ. ६.१८२ द्वादश्या माश्वयुङ्मासे बृ.गौ. १८.२७ द्वादशाक्षरमन्त्रोऽयं शाण्डि ५.७४ द्वादश्यामेव वा कुर्यादुप बृ.गौ. १८.१८ द्वादशाक्षरयोगेन दूरस्थं शाण्डि ५.६८ द्वादश्यां कार्तिके मासि वृ.गौ. १८.२८ द्वादशाक्षरूपेण परिणाम शाण्डि ५.६४ द्वादश्यां कुतये स्नातान् वृ परा ७.३१० द्वादशांगुलविस्तार भार १५.११८ द्वादश्यां ज्यैष्ठमासे मां बृ.गौ. १८.२३ द्वादशानां तथान्येषां आंपू ६५१ द्वादश्यां दीपकं दद्यात् वृ परा ४.१३८ द्वादशानां तु यत्तजस्त बृह ९.७१ द्वादश्यां द्वादश चरून वृ परा ११.३०६ द्वादशाब्दं च विचरेत वृ परा ८.९५ द्वादश्यां पुत्रकामो वृ परा ११.३०३ द्वादशाब्दं जपेद्देव वृ हा ३.१४६ द्वादश्यां पूजयेद् विष्णु वृ हा ३.२०३ द्वादशाब्दं मनु जप्त्वा वृ हा ६.२ ४८ द्वादश्यां पौषमासे तु वृ.गौ. १८.२० द्वादशाब्दं व्रतं धार्य वृ परा ६.१६४ द्वादश्यां प्रातरुत्थाय वृ हा ७.७१ द्वादशाब्दाद् विमुच्यते व हा ६.२९३ द्वादश्यां माघमासे तु बृ.गौ. १८.२१ द्वादशारं नवव्यूह वृ परा ४.१ ४४ द्वादश्यां विषुवे चैव बृ.गौ. १९.२५ द्वादशार्ण मनुं जप्त्वा वृ हा ३.१७९ द्वादश्यां श्रावणे मासि बृ.गौ. १८.२५ द्वादशार्ण मनुं जप्त्वा वृ हा ३.१८० द्वापये द्विधिवदाजन बृ.गौ. ६.१७४ द्वादशार्णमनोरेवं वृ हा ३.२०४ द्वापरे कुलमेकं तु वृ परा १.२५ द्वादशाणं मनोर्जप्तु वृ हा ३.१७७ द्वापरे भक्षणेन्नस्य वृ परा १.२६ द्वादशार्ण सकृज्जप्त्वा वृ हा ३.१७६ द्वापरे यज्ञमेवाहुः वृ परा १.२३ द्वादशार्णेन मनुना वृ हा ५.८७ द्वापरे याच्यमानस्तु वृ परा १.२७ द्वादशार्णेन मनुना वृ हा ६.४२७ द्वापरेऽयुतदस्य स्यात् वृ परा १.४० दादशाहमिदं कर्म शाता २.९ द्वापरे रूधिरंयावत् वृ परा १.२९ द्वादशाहे त्रिपक्षे च ब्र.या. ७.३ द्वापरे शांख-लिखिताः वृ परा १.२४ द्वादशाहोपवासेन अत्रिस १२८ द्वाभ्यां कुशाभ्यामथवा भार १८.१०२ द्वादशी दशमीत ब्र.या. ९.११ द्वाभ्यां वा शांतिकार्येषु भार १८.५३ द्वादशीविमुखत्वं च वृ हा ८.१५७ द्वामुष्यायणको दद्यात् औ ५.९० द्वादशी सा महापुण्या व २.६.२६० द्वारगवाक्ष सन्दर्भः कात्या २९.१६ द्वादशीसु च शुक्लासु वृ परा १०.३५१ द्वारवत्युद्भवं गोपी। वृ हा ५.६५ द्वादशेऽहनि संप्राप्तो आ7 ९८१ द्वाराण्यपि ततः पूर्णान् । शाण्डि ५.२५ द्वादशैताः कला दिव्या ब्र.या. १०.९१ द्वारादिदेवताभ्योऽन्नं आश्व १.१४१ द्वादशैते पितृगणाः शाता ६.५ द्वावप्येवं तथा गुह्ये वृ परा २.१५८ द्वादशैव तु मासास्तु वृ हा २.९४ द्वावंशै प्रतिपद्येत नारद १४.१२ द्वादशैवसहस्राणि ब्र.या. १.३५ द्वारा लोके पराशर ३.३७ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ स्मृति सन्दर्भ द्वावेतावशुची स्यातां आगिग्स ४० द्विजातीनामभोज्यन्नं अत्रि५.२३ द्वावेव वर्जयेन्नित्यमन मनु ४.१२७ द्विजातीनां प्राजापत्यादि विष्णु ६२ द्वा सप्ताति सहस्राणि या ३.१०८ द्विजानामेव नान्येषां वृ हा ५.१८४ द्विकक्ष एककक्षश्च ब्र.मा. २.२८ द्विजान् यः पाययेत्तोयं वृ परा १०.२० द्विकं त्रिकं चतुष्कं च मनु ८.१४२ द्विजाविधियथस्नात्वा भार ७.५४ द्विकं शतं वा गृहीयात् मनु ८.१ ४१ द्विजोग्निहूब्रजनैव भार ५.५५ द्विकाल मतिथञ्चैव बृ.गौ. १५.९१ द्विजोत्तमान्नभुक्त्वाथ भार ९.१४ द्विकालं विधिवत् स्नानं वृ परा १२.१२८ द्विजोदधिसमालोक्य वाणं ब्र.या. ८.२२६ द्विगुणचं जपेद्वेदं अ ५३ द्विजो ध्यात्वैवं आत्मानं वृ परा ११.१ ४१ द्विगुणं क्षत्रियस्यान्ने अ १९ द्विजात्ऽध्वगः क्षीणवृत्ति मनु ८.३ ४१ द्विगुणं चेन्न दत्तं लघुयम ५८ द्विजोवैश्योनृपश्शूदो भार १८.१० द्विगुणं तत्प्रदातव्यं वृ हा ४.२ ४४ द्वितीयञ्च तृतीयञ्च कात्या ३.१२ द्विगुणं त्रिगुणं चैव नारद २.९१ द्वितीयमेके प्रजनं मनु ९.६१ द्विगुणं त्रिगुणं वापि बृह ९.१९१ द्वितीयं तु पितुस्तु दा ३७ द्विगुणं निखिलं कृत्यं आंपू २१२ द्वितीयवर्षमारभ्य यावद् नारा ५.२७ द्विगुणं राजयोगेन आंपू १९२ द्वितीयवारनिक्षिप्ततायोकेन कपिल २८९ द्विगुणं हिरण्यं त्रिगुणं व १.२.४८ द्वितीयाग्नि मुखाद्ययत्कर्म लोहि १४२ द्विगुणां पलाशसमिधं वृ परा ११.१८० द्वितीयाचमने सम्यङ् कण्व १०७ द्विचतुष्षड् दशाष्टाद्यैः शाण्डि २.७१ द्वितीयाञ्चैव यः पत्नी कात्या २०.७ द्विजकर्मादिभिः पश्चाद् भार १५.२६ द्वितीयादिपुरोद्भूता आंपू ४३२ द्विजः कुर्यात्कुमारस्य व २.३.३८ द्वितीयादिसमुद्भूत लोहि ८१ द्विजदास्याय पण्याय वृ परा ५.१५३ द्वितीयादिसमुद्भूतो न आंपू ४१४ द्विजछत्रमितिप्रोक्तमित भार १५.१३९ द्वितीयादिसुतानां स्यात् आंपू ४३२ द्विजन्मा सपरं ब्रह्म भार ९.४९ द्वितीयादिसुतान् सर्वान् आंपू ४१५ द्विजपादजलक्लन्ना वृ.गौ. ६.५० द्वितीयाधनले लौकिक लोहि १४४ द्विजः पुण्ड्रमृजु सौम्यं वाधू १०६ द्वितीयाद्यग्नयः शिष्टाः लोहि १२ द्विजयोनि विशुद्धानाम् वृ.गौ. ४.३ द्वितीयाब्दं समारभ्य नारा ३.९ द्विजः शाखामृगं हत्वा वृ परा ८.१७२ द्वितीयां आहुतिं तदवत् आश्व १.५४ द्विजशुश्रूणन्तीर्थ तीर्थं बृ.गौ. २०.१३ द्वितीयावरणं पश्चात् वृ हा ४.८८ द्विजशुश्रूषणादन्यन्नास्ति बृ.गौ. २२.७ द्वितीयाऽऽवाहने षष्ठी आश्व २४.१२ द्विजः सदा माध्याना भार १३.४४ ।। द्वितीया वेधगोक्रीड़ा सर्वथा ब्र.या. ९.५० द्विजाग्रजो यदा पश्येत् व परा १२.१२१ द्वितीयो च तथा भागे दक्ष २.२५ द्विजाः च सर्वभूताना वृ.गौ. ३.७१ द्वितीये चैव यच्छेष नारद १८.९१ द्विजातयः सवर्णासु मनु १०.२० द्वितीये तु पतिघ्नी कात्या २५.४ द्विजाति प्रवराच्छूद्रायां बोधा २.२.३३ द्वितीयेऽनि ददंत् क्रेता नारद १०.३ . . Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी द्विधा कृत्वाऽ ऽमनो द्विनिशामर्चयेद्दित्तु द्विनेत्रभेदिनो राजद्विष्टा द्विपकञ्च वृथामांसं द्विपदान्नं नगर्यन्नं द्विपदामर्धमासं स्यात् द्वि पार्व्वणं प्रकर्त्त द्विपितुः पिण्डदानं द्विभार्यके क्रियाकृच्चे द्विभूतोयदि संसृज्येत् द्विरक्षरं चतुर्व्वापि घोष द्विरभ्यस्ताः पतन्त्यक्षा द्विराचामेत्तु सर्वत्र द्विरामुष्यायणा दद्युर्द्वाभ्यां द्विमातुः पिण्डदानं तु द्विमात्रश्चार्धमात्रस्तु द्वियज्ञोपवीती द्विवर्ष जन्ममरणे द्विवर्ष पूर्ववद्वाऽपि द्विवर्षे निक्षिपेद्भूमौ द्विवारं भोजनाञ्च द्विविधं तु समुद्दिष्टं द्विविधस्तु जपः प्रोक्त द्विविधा देहशुद्धिश्च द्विविधास्तस्करा ज्ञेयाः द्विविधांस्तस्करान् द्विविधो ब्रह्मचारी तु द्विषड् लक्षप्रमाणं च द्विसन्ध्यं वा त्रिसन्ध्यं द्विस्तत्पोरमृजेद्वक्तं द्वीपमुन्नतमाख्याते द्वीपीन्तरगतौ चैव चण्डाल द्वे कृच्छ्रे परिक्तिस्तु .. द्वे जन्मनी जातीनां द्वे द्वे जानुकपोलोरु मनु १.३२ वृहा ७.२८६ या २.३०७ बृ.गौ. १६.४४ वृ.गौ. ११.१५ नारद १०.६ ब्र.या. ४.३३ बौधा २.२.२३ आंपू ४१९ कात्या १८.१५ ब्र.या. ८.३३३ नारद १७.३ वृ हा ४.२३ नारद १४.२२ लिखित २७ बृ.या. २.१२८ बौधा १.३.५ औ ६.२६ वृ हा ६.३३१ ब्र. या. १३.१२ वृ हा ८.२०६ बृह ११.२५ वृ परा ४.५७ शाण्डि १.१८ नारद १८.५३ मनु ९.२५६ दक्ष १.८ ब्र. या १०.३६ बृ.गौ. १७.५५ वृ.गौ. ८.२८ कात्या २९.१५ नारा ५.५१ अत्रिस १०४ व्यास १.२१ या ३.८७ द्वे तिम्रो वा स्थितां द्वे पंच द्वे क्रमेणैता द्वे पितुः पिण्डदानं (ने) द्वे ब्रह्मणी वेदितव्ये द्वेभार्ये क्षत्रियस्यान्ये द्वे वैश्यस्य द्वे सन्ध्ये सद्यमित्या द्वैतञ्चैव तथा द्वैतं द्वैतपक्षाः समाख्याता द्वै द्वै पितृकृत्ये द्वैधे बहूनां वचनं द्वै मातृणां मातृतश्च द्वैविध्यं किल संप्राप्तं द्वौ कृच्छ्रौ परिवित्तेस्तु द्वौयौ विवदेयातां द्वौ दैवाथर्वणौ विप्रौ द्वौ देवे च त्रयः पित्र्य द्वौ दैवे प्राक्त्रयः पित्र्य द्वौ दैवे प्राक्त्रयः द्वौ दैवे पितृकार्येत्रीनेक द्वौ दैवे पितृकार्ये द्वौ दैवे प्राक्त्रयः द्वौ दैवे प्राङ्मुखौ त्रीन्वा द्वौ द्वौ गुणावाधिष्ठाय द्वौ द्वौ चक्षक्षुषोः श्रुत्यो द्वौ पिण्डावेकनामा द्वौ पिण्डौ निर्वपेत्ताभ्यां द्वौ मार्गावात्मनो ज्ञेयो द्वौ मासौदापयेद् द्वौ मासौ पञ्चगव्येन द्वौ मासौ पालयेद्वत्सं द्वौ मासौ मत्स्यमांसेन द्वौ मासौ यवकेन द्वौ वापि दैविके पिप्रौ द्वौ शंखकौ कपालानि ३९५ आंपू ३९१ कात्या २६.११ लघुयम ७९ बृ. या २.४७ नारद १३.६ बौधा १.८.४ ब्र. या. १३.९ दक्ष ७.४८ दक्ष ७.५० व १.११.२४ या २.८० वृ हा ४.२५२ आंपू ५०७ पराशर ४.२१ मनु ९.१९१ व्या १८७ प्रजा १७८ या १.२२८ ब्र. या. ४.४७ ब्र. या. ४.३७ मनु ३.१२५ दा ६५ शंख १४.९ वृ हा ३.१६८ वृ परा २.१५९ दा ४७ औ ५.९२ वृ परा १२.३२७ आप १.२१ बृ.य. ३.६ दा ११, मनु ३.२६८ व १.११.५७ वृ परा ७.४१ या ३.९० Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध ३९६ स्मृति सन्दर्भ धरादानं प्रशंसन्ति सर्वदानो कपिल ४२९ धरः सोमौनिलश्चैव भार ११.५२ धण्टाभरणदोषेण आप १.१७ धर्म एव हतो हन्ति मनु ८.१५ धनग्राममहाशिष्यबन्धु कपिल ५६९ धर्मकार्येषु सर्वेषु आश्व १६.२ धनतो यस्य यो लोके आंपू ३३० धर्मज्ञं च कृतज्ञं च मनु ९.२०९ धनदं धन्वनागेति वृ परा ११.२२० धर्मज्ञस्य कृतज्ञस्य नारद १८.४१ धनदस्य पुरं रम्यम् वृ.गौ. ५.७१ धर्मज्ञानच्च वैराज्ञ भार ११.३७ धनत्यागं गृहे कृत्वा आंउ १०.१९ धर्मतः कारयेद्यश्च वृ हा ४.२०८ धनमूलाः क्रियाः सर्वा नारद २.३९ धर्मतोऽस्यास्तुरण्डाया लोहि ४५८ धनं चिकित्सासंबन्धि प्रजा ४९ धर्मध्वजी सदा लुब्धः मनु ४.१९५ धनं पवित्रं विप्राणामाति प्रजा ४४ धर्मपत्नीवीतिहोत्रे प्रधाने लोहि ३३ धनं फलति दानेन वृहस्पति ७१ धर्मपत्नीवीतिहोत्रे स्मात लोहि १३ धनं यो विभृयाद्धातुः मनु ९.१ ४६ धर्मपत्नी समाख्याता दक्ष ४.१६ धनं विद्यांभिषक् सिद्धिं या १.२६७ धर्मपत्नीसमुद्भूतो आंपू ४५० धनवन्तमदातारं दरिद लोहि ६७९ धर्मपत्नीसुते बाले आंपू ४६९ धनवाईषिकं राजसेवकं कात्या ६.७ धर्मपत्नीसुतो बालो आंपू ४२९ धनवृद्धि प्रसक्तांश्च कात्या ६.६ धर्मपत्नीसुतो बालो आंपू ४५९ धन स्त्रीहारिपुत्रणां नारद २.२० धर्मपत्नी सुतो वर्णी शर्म आंपू ४२८ धानानामपि धान्यानां कपिल ४३४ धर्मपल्यतिरिक्तानां लोहि ११५ धनानि तु यथाशक्ति मनु ११.६ धर्मपल्यनलावेव लोहि २४ धनानि येषां विफलानि बृ.गौ. १४.३१ धर्मपत्न्याः संघटते न कपिल ५६५ धनान्तं चैव वैश्यस्य शंख २.४ धर्मपल्येव सततं ज्यैष्ठ लोहि ४५ धनाशयान्यं कुरुते य कपिल ७७३ धर्मपर्यायवचनै नारद १९.९ धनुग्रहोण ग्रामादीन भार २.६६ धर्मः पिता च माता च वृ.गौ. १.३० धनुर्दुर्ग महीदुर्गब्दुर्ग मनु ७.७० धर्मप्रधानं पुरुषं तपसा मनु ४.२ ४३ धनुर्मुष्टि करेणैव प्रकुर्वीत बार २.६७ धर्मप्रिय! ब्रुवे राजन्नित्य बृ.गौ. २२.३१ धनुः शतं परीहारो या २.१७० धर्मभेदाद्विरुद्धं हितच्छेषेण कपिल २६७ धनुः शतं परीहारो मनु ८.२३७ धर्ममार्गेण सर्वैस्तैः गन्तव्यो कपिल ७५१ धनुः शरणां कर्ता च मनु ३.१६० धर्म चरत माऽधर्म व १.३०.१ धनुश्च वनमाल्यश्च व २.७.९२ धर्म चरेत्प्रयत्नेन साध्वी लोहि ६५६ धनुः सहस्राण्यष्टौ कात्या १०.६ धर्म जिज्ञासमानानां बृ.गौ. १४.४३ धनेमोपतोष्याऽऽसुर बौधा १.११.६ धर्म त त्रियुगाचारं स वृ परा १.१८ धनैर्विपान्भोजयित्वा ल हा २.८ धम शनः सचिनुयाद् धर्म शनैः संचिनुयाद् मनु ४.२३८ धरणानि दश ज्ञेयः मनु ८.१३७ धर्मयक्तान प्रबाधन्ते शाण्डि ४.२३५ घरादानक्रयायेवं वैश्वस्तं लोहि २५५ धर्मविधार्थ कुद् दर्भः वृ परा ११.४९ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ३९७ धर्मशास्त्रकुशलाः कुलीनाः नारद १.६९ धर्माधर्मविधिः कृत्सनो बृ.गौ. १२.२८ धर्मशास्त्रन्तुजीवः ब्र.या. १.४२ धर्माधर्मविवेक दा २ धर्मशास्त्रमिदं पुण्यं संवर्त २.२७ धर्माधमः महापाशैः वृ परा १२.२२७ धर्मशास्त्रमिदं सर्व ल हा ७.१५ धर्माधमैरवष्टब्धौ वृ परा १२.२२६ धर्मशास्त्रं पुस्कृत्य नारद १.२९ धर्माधर्मी च कथितौ वृ.गौ. १०.१११ धर्मशास्त्र स्थारूढा परशर ८.३३ धर्मानुचारिणी भार्या आश्व १.७२ धर्मशास्त्र रथारूढा बौधा १.१.१४ धर्मान् अर्थः च कामः च वृ.गौ. १.३१ धर्मशास्त्रविरोधे तु नारद १.३४ धर्मान् कथय देवेश ! वृ.गौ. १.१४ धर्मशास्त्रानुसारेण बृ.य. ४.२७ धर्मान् कामान् तथाञ्च वृ.गौ. ६.१०० धर्मशास्त्रार्थशास्त्राभ्यां नारद १.३१ धर्मान्वः पुरतो वक्ष्ये आश्व १.२ धर्मशास्त्रेतिहासादि व्यास ३.१२ धर्माभासो द्विजो यस्मा अ १२८ धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु भार १.१२ धर्मायत्वेति मन्त्रेण संतत्यै कपिल ३८९ धर्मशास्त्रदितानद्यात् व परा ६.३२३ धर्मासनगतः श्रीर नारद १८.२८ धर्भश्च व्यवहारश्च नारद १.१० धर्मासनमाधिष्ठाय मनु ८.२३ धर्मश्चार्थश्च कीर्तिश्च नारद १.२७ धर्मासनस्थः श्रुतिशास्त्र वृ परा १२.९१ धर्मः श्रतो वा दृष्टो वा व.गौ. १.२९ धर्मे चार्थे च कामे च । व २.४.३९ धर्मसत्यमयः श्रीमान् विष्णु १.५ धर्मेण च द्रव्य वृद्धावा मनु ९.३३३ धर्मसारं महाराज! मनुना ब.गौ.१४.३६ धर्मेण यजन कार्य ल हा २.५ धर्मस्य पर्पदश्चैव आंउ ५.३ धर्मेण लब्धु मीहेत या १.३१७ धर्मस्य ब्राह्मणो मूलमग्रं मनु ११.८४ धर्मेण व्यवहारेण । मनु ८.४९ धर्म स्याच्चोदना आंपू ३ धर्मेणाधिगतो येषां बौधा १.६ धर्मस्यार्थस्य यशसो नारद १.१४ । धर्मेणाधिगतो यैस्तु मनु १२.१०९ धर्मभाना तथा च एव वृ.गौ. ३.१३ धर्मेणोद्धरतो राज्ञो नारद १.२६ धर्महानिर्न कर्त्तव्या शाण्डि १.४० धर्मे पंचाग्नि मध्यस्थ ल हा ५.७ धर्महानिर्यथा न स्याद्यथा शाण्डि १.१५१ धर्मेप्सवस्तु धर्मज्ञाः मनु १०.१२७ धर्मागानि पुराणानि औ ३.४५ धर्मो जयति नाधर्मः सत्यं वृ.गौ. ८.११८ धर्मादीनर्चयेत् सर्वान् व २.६.१०० धर्मो जितो ह्यधर्मेण पराशर १.३१ धर्माथमेतानि कृतानि वृ परा ९.४१ धर्मोपदेशं दर्पण नारद १६.२२ धर्मार्थ येन दत्तं स्यात् मनु ८.२१२ धर्मोपदेशं दर्पण मनु ८.२७२ धर्मार्थावुच्यते श्रेयः मनु २.२ २४ धर्मोऽयं भूतले साक्षाद् वृ ५। ५.४८ धर्मार्थी यत्र न स्याताम् बौधा १.२.४७ धर्मोवशे विपन्नञ्च वृ.गौ. १.३२ धर्मार्थी यत्र न स्याताम् बौधा १.२.४८ धर्मो विद्धस्त्वधर्मेण मनु ८.१२ धर्मार्थी यत्र न स्याताम् बौधा १.१ २.१८ धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च ब्र.या. ८.२९५ धर्मार्थी यत्र न स्याता मनु २.११२ धर्मपिण्डोदकं औ ३.१२३ धर्मार्थी यस्य महतां बृ.गौ. १४.५५ धाता ददातु मंत्री आश्व ४.८ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८ धातारं हृदयान्तस्थं धाता विधाता निजकर्म धातुदार्वादिपाषाणैः धातूनामुत्तमं धात्री चूर्णेन लिप्ताङ्गे धात्री तु तुलसी पत्रं धात्री फलानुलिप्तांगो धात्रीमधतिंला क्षताञ्चैव धात्रीविल्ववटाश्वत्थ शाण्डि ४.१३१ वृ परा १२.७५ बृ. या. २.५८ ब्र. या. ११.४३ व_२.६.३९९ व २.६.९६ वृ हा ६.१२१ व.२.६.१३६ प्रजा ५४ शंख १४.२३ मनु ११.६७ शाता १.२१ शाण्डि ३.५६ वृ हा ४.१५९ मनु ८.३२० या ३.२११ मनु १२.६२ या ३.२३७ लोहि ३९२ वृ परा १०.२६८ व १.२.३३ औ ५.५४ मनु ११.१६३ वृ परा १२.२५ व १.२.४९ मनु १०.१२० ल हा ५.४ संवर्त ५४ वृ परा ५. १७४ व २.३.९९६ धानाला मधुयुते धान्यकुप्यपशुस्तेयं धान्यदाने शुभं धान्यं धान्यबन्धुविनाशेन धान्यं करोति दातारं धान्यं दशभ्यः कुम्भेभ्यो धान्यमि श्रोऽतिरिक्तांग धान्यं हत्वा भवत्याखुः धान्यरूप्यपशु स्तेयं धान्यादिकं शाकमूलं धान्यानां च तथा पौषे धान्यानां तिलनानाहु धान्यास्तिलाश्च विविधाः धान्यान्नधनचौर्याणि धान्येक्षतृणतोयैश्च धान्येनैव रसा धान्येऽष्टमं विशां शुक्लं धान्यैश्च वनसंभूतैः धान्योदकप्रदायी च धान्योन्मानं सदा कुर्यात् धारयित्वा गुरुंम त्वा धारयित्वा ततो दद्यात् धारयित्वा तुलाचार्य धारयेत्तत्र चात्मानं धारमेत्पूर्ववन्मत्रैणै धारयेदूर्ध्व पुंड्रं न आश्व १०.१० शंख १७.५८ बृह ९.१९२ व २.३.८३ व्या ३५ धारयेद् उत्तरीयेद्वे धारयेद ऊर्ध्वपुण्ड्राणि धारयेद्वैल्वपालाशौ धारं धाराकृतं चेत्तु धाराच्युतेन तोयेन धारादिकं चनो चेत्तत् न धार्मिकै स्सेवितं शश्वद् धार्यं न जातुचिद्वैममन्त धार्यं सहोपवीतेन धावंश्च न पठेद धावको ऽनुलिप्तस्य धावतः पूति गंध धावन्तमनुधावेद् धिकारं शान्तमक्ष्णोश्य धिगदण्डस्त्वथ वाग्दण्डो धिद्वेषंतं त्यजेद्भर्त्तु धिया पदाक्षर श्रेण्या धीकारं वसुदैवत्यं धी नासा च म वाचा धूपः क्षपाऽस्तितः पक्षो धूप गुग्गुलुना कार्य धूपं दीपञ्च नैवेद्य धूपं दीपञ्च नैवेद्य धूपं दीपञ्च पाद्यञ्च धूपदीपं च तद्वाथ धूपं दीपं च ताम्बूलं धूपं दीपं च नैवेद्यं धूपं दीपं च नैवेद्यं धूपार्थं गुग्गुलुं दद्याद् धूमकेतुं लिखेत्कांस्ये धूम्रवर्णाः कृतधर्माः धूरिलोचनसंयक्तुं धूर्त्तं पतितमित्यादीन् धूर्ते वन्दिनि मन्दे च धूर्तोऽपस्माररोगी स्यात् स्मृति सन्दर्भ वृ हा ६.९० वृ हा ४.३४ औ १.१५ लोहि २५६ ब्र.या. २.७० कपिल ७५५ शाण्डि १.७३ भार १६.२४ भार १६.२५ वृ परा ६.३६४ औ ३.६८ व १.१३.८ बौधा १.२.३७ वृ परा ४.९१ या १.३६७ व २.५.२४ ल हा ४.४४ वृपश ४.८८ परा ४.७३ वृ परा १२.३२९ प्रजा १०३ वृ हा ५.४८९ वृ हा ७.१७९ व २.६.१६२ भार ७.९० व २.३.४० आश्व २३.८० वृ हा २.९९ शंख १४.१८ ब्र. या. १०.६६ वृ.गौ. १.१७ आंपू ७०४ वृ हा ४.१८३ दक्ष ३.१६ शाता ३.११ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी धृतयश्चापि पाताश्च धृतवत्सां काकवन्ध्यां धृतव्रतेति सूक्तेन धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं धृतिवृद्धिकरा ( सा च ) धृतिहोमे न प्रयुंज्याद् धृतोर्ध्वपुण्ड्र आचम्य धृतोर्ध्व पुण्ड्रदेहश्च धृतोर्ध्व पुण्ड्रदेहश्च धृतोर्ध्व पुण्ड्रदेहश्च तोर्ध्वपुण्ड्र देहस्तु धृतोर्ध्वपुण्ड्रः परमीशितां धृतोर्ध्वं पुण्ड्रदेहत्वं धृत्वा चैतत्प्रसादेन धृत्वाऽञ्जलि कुमारस्य धृत्वा तूत्तानपाणिम्यां धृत्वा पद्माक्षमालां च धृत्वा पूर्ण करे सव्ये धृत्वा सर्वाणि कृत्यानि धृत्वैव सर्वकर्माणि धृत्वोखया विशेषेण धृष्टिर्जयतो विजय धेना सेना सना सोमा धेनुचौर्य वाहचौर्य मेष धेनुः पूर्वं वसिष्ठस्य धेनुं दद्याद् द्विजातिभ्यो धेनुर्देया सुवर्णस्य धेनु शंख स्तथानड्वान धेनुः शंखस्ताऽनड्वा धेनुः शंखो वृषाः स्वर्ण धेनुश्च योद्विजे दद्याद् धेनुस्तस्य विराजश्च धेन्वनडुहोश्च वधे धौतवस्त्रं शुभंवेष्टाय धौतवस्त्रं सोत्तरीयं आंपू ६११ वृ परा ११.१६६ वृ हा ७.२६३ मनु ६.९२ ब्र. या. १०.७२ कात्या २५.५ व २.६.१४५ वृ हा ३१३४ वृ हा ८.९ वृ हा ८.२२२ व २.६.५२ वाधू १०१ वृ हा ८.३३४ भार १६.१३ आश्व १०.६ आव २.३९ वृ हा ३.४२ आश्व २.३२ भार १८.७६ भार १८.६२ कण्व ३४१ वृ हा ३.२६७ आंपू ९२७ लोहि ६८५ वृ परा १२.११५ शाता १.२३ वृ परा १०.१०५ या १.३०६ ब्र. या. १०.१५८ वृ परा ११.७९ संवर्त ७२ ब्र. या. ८. १९४ बौधा १.१०.२६ व २.७.८५ वृ हा ४.३३ ३९९ प्रजा १०७ धौतवासास्त्वधः शायी वृ परा ११. १७१ धौतं सप्ताष्टहस्तैः ध्यात्वा सहस्रं जुहुयाद् ध्यात्वा कमलपत्राक्षं ध्यात्वा कृष्णं जगन्नाथं ध्यात्वा जपेत्तमेवेशं ध्यात्वा तन्मनसा ध्यात्वा देवों कुमारों च ध्यात्वाध्येयं यथाप्रोक्तं ध्यात्वा नारायण देवं ध्यात्वा निमज्य देवेशं ध्यात्वा यज्ञमयं विष्णु ध्यात्वा रूपं ततो ध्यात्वा वह्नौ वासुदेवं ध्यात्वा षडक्षरं मंत्र ध्यान कृत्वा ततः सम्य ध्यानं चत्वारि श्रृंगेति ध्यानं जपप्रयोगश्च ध्यानं मुक्ताविद्रुम हेम ध्यानं विना जपं सर्व ध्यानं शौचं तथा भिक्षां वृ हा ३.३२२ हा ५.१९४ वृ हा ५.११० वृ हा ५.१३ ल व्यास २.७४ आश्व १.४५ भार ६.९७ वृ हा ४.४७ व २.३.१०४ वृ हा ७.८७ वृ हा ६.२३१ वृ हा ३.३२५ ध्यात्वा संपूज्य होमं ध्यात्वा सर्वगतं ध्यात्वा सुदर्शनं ध्यात्वा हृत्पकंजे ध्यात्वैव जुहुयात्तस्मै ध्यात्वैवं देवदेवेशं वृ हा ५.१०७ व २.२.१० वृ हा ५.२५३ वृ हा ५.१० ब्र.या. २.१३४ भार १७.४ ध्यानकाले परं ब्रह्म ध्यानज्ञानस्य तद्भक्तेः वृ परा १२.३०२ ध्यानध्यायो यथाप्रोक्तं ध्यानप्रदक्षिणापश्चादो ध्यानमेव परं शौचं भाग ११.६६ कण्व २५४ ध्यानमेव वरो धर्मो ध्यानं कृत्वा चतुर्थं ध्यानं कृत्वा चतुर्थ बृह ९.१८० अत्रिस ४.९ बृ. या. ९.२ बृह ९.२ भार १३.३१ आश्व २.८ बृ.या. ४.३ विश्वा ६.६५ भार १२.३ दक्ष ७.३९ वृ हा ५.२९१ आश्व २.९ Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० ध्यानं संध्यान्नये ध्यानयोगेन चार्वङ्गि ध्यानस्य विधि ध्यानस्य तु विधिं वक्ष्ये ध्यानाग्निः सत्योपचयनं ध्यानात् कर्मफलत्याग ध्यानिकं सर्वमेवैत ध्यानेन जन्म निर्घातं ध्यानेन पुरुषो यस्तु ध्यानेन सदृशं नास्ति ध्यानेनात्मनि संपश्येद् ध्यानञ्जपन् सर्वसुखा ध्यायत् नारायणं देवं ध्यायत्यनिष्टं यत्किंचित् ध्यायत्वै मनसा देवं ध्यायन्नेव परंब्रह्म ध्यायन् कमलपत्राक्षं ध्यायन्तः पद्यनाभं ध्यायन् देवान् सुमुहूर्ते ध्यायन्नारायणं देवं ध्यायन्नारायणं देवं मंत्र ध्यायन् नारायणं देवं ध्यायन् स्त्रिमासमयुतं ध्यायन् हृदि शुभं ध्यायन्वै पुण्डरीकाक्षं ध्यायेच्च मनसा मन्त्रं ध्यायेत् कमल पत्राक्षं ध्यायेत्स्व शिरसिप्राज्ञ ध्यायेतः देवमीशानं ध्यायेन्नाध्यणं देवं ध्येयं न जप्यं नच ध्येयो दिनेश परिमंडलं ध्यायेच्छिशुतनुं कृष्णं ध्रवोध्रुवश्च सोमश्च ध्रियमाणे तु पितरि भार १२.२ विष्णु १.३३ बृ. या. ९.१ बृह ९.१ व १.३०.९ बृह १९८ मनु ६.८२ बृ.या. २.१४८ बृह ९.५८ बृ.या. ८.४२ बृह ११.५२ भार १२.३५ वृ हा ५.२६१ मनु ९.२१ वृ हा ३.३३ शाण्डि ४.१३२ वृ हा ५.३४६ वृ हा ५.३०५ आश्व १०.७ व २.३.१२४ व २.६.५४ वृ हा ५.२८० वृ हा ३.३२७ वृ हा ५.२९९ वृ हा ५.२१६ वृ. या. ७.१४० वृ हा ३.२५० व २.६.६४ ल व्यास २.४९ वृ.या. ७.३३ वृ परा ३.३२ वृ_परा ४.१४१ वृ हा ३.३२१ ब्र. या. १०.१०९ मनु ३.२२० आश्व १५.४८ स्मृति सन्दर्भ ध्रुवः क्षितिः स्वन (ना) मानः ब्र.या. १०.१३४ ध्रुवं चारून्धतीं दृष्दवा ध्रुवसूक्तमृचं स्मृत्वा ध्रुवाक्षर ! सुसूक्ष्मेश ! ध्रुवो धरश्व सोमश्च ध्वजाहरतो भक्तदासो ध्वजिनी जीविका वाऽपि ध्वजे पताकराजानं न न आसनारूढ पादस्तु न कण्ठावृतवंस्त्रः स्याद् न कथञ्चन कुर्वीत न कदाचिद् द्विजे तस्माद् न कन्या क्रियतेपाकं न कन्यायाः पिता विद्वान् न करं मस्तके दद्यान् नकरीन्द्रेति सूक्तेन न करोति स मूढात्मा न करोत्येव सा यत्नात्तथा न कर्णिभिर्न दिग्धै वृ हा ६.४०४ विष्णु १.५७ वृ परा २.१८९ मनु ८.४१५ औसं ३२ वृ हा ६.३० वृ हा ५.२६२ वाधू १४० नारद २.५३ मनु ४.१६९ व्या २२५ मनु ३.५१ वृ परा ६.२७६ वृ हा ५.३५१ व्या ४६ लोहि ४२ बौधा १.१०.१० कण्व ३२५ लोहिं २७० वृ हा ८.२०७ मनु ९.१० पराशर १.२१ दृ हा ६.२१८ न कर्मणि तु भिन्नस्य न कर्मयोग्यस्तस्यापि न कल्क कुहका साध्वी न कश्चिद्योषितः शक्त न कश्चिद् वेदकर्त्ता च न कामतश्चरेद् धर्म न कारं तु मुखे पूर्व न कार्यमेव तन्नो चेन्मते न कार्य नैव चाकार्य न काव्यं (ण्ठयं) नैव न काष्ठतैलैरन्यैस्तु न किंचित् कस्य वृ परा ४.९३ लोहि ५६३ बृहा १२.१७ बृहा ९.१४ वृ परा ७.१३२ वृ परा ५.१५१ न किचित् प्रतिगृह्णीयात् वृ परा १२:१०० न किचित् फलमाप्नोति वृ परा २.१४९ न किंचिदपि कुर्वीत कण्व २९४ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४०१ न किंचिद्बाधकं कण्व ७३६ न क्लेशेन विनाद्रव्यं दक्ष ३.२२ न किंचिद् वर्जयेत् औ ५.६५ नक्षत्रकल्पोद्विविधो ब्र.या. १.३४ न किल्बिषेणापवदेच्छास्त्रतः नारद १६.१८ नक्षत्रज्योतिरारभ्य सूर्य वाधू ६ न कुट्यां नोदके संगे व १.१०.१७ नक्षत्रतिथिवारेषु औ ३.११६ न कुत्रचित्सद्धर्मेषु यदि कपिल ५४४ नक्षत्रविशेषेण श्राद्ध विष्णु ७८ न कुत्सयेदम्बुतीर्थमन्य शाण्डि २.२४ न खण्डयेन्मिथोऽज्ञानानान्नं आं प २३६ न कुर्यात् कस्यचित् बृ.या. ७.३७ नखरोमाणि च तथा ल हा ५.३ न कुर्यात् तर्पणं श्राद्ध आश्व १.८१ नख लोम विहीनानां देवल १० न कुर्यात् परपाकेन वृ परा ७.७५ न गच्छेत् क्रूर दिवसे वृ हा ५.३०३ न कुर्यात्प्रेतकर्माणि ब्र.या. ७.२४ न गतिर्मूर्खदानेन वृ परा ६.२१९ न कुर्यात् यो विधाने न वृ हा ८.३२७ नगरं हि न कर्तव्यं दक्ष ७.३६ न कुर्यात् शुभकर्ता आश्व १९.३ नगरे नगरे चैकं मनु ७.१२१ न कुर्यादाईवस्त्रेण कर्म शाण्डि २.५८ नगरे पट्टणे वापि वाधू १७२ न कुर्यादेव धर्मेण सा लोहि ५९५ नगरे प्रतिरुद्धः सन् नारद २.१८१ न कुर्यादेव सहसा आंपू २६३ न गर्तमवेक्षेत बौधा २.३.५५ न कुर्यादेव सोऽयं वै कपिल ५० न गायत्र्याः परं औ ३.५४ न कुर्याद् ब्रह्मयज्ञ आश्व १.११३ न गायेत्कामगीतानि ब्र.या. ८.१२६ न कुर्यान्मोहस्तूष्णी आंपू १०८४ न गुणान् गुणिनोहन्ति अत्रिस ३४ न कुर्य्यात क्षिप्रहोमेषु कात्या ९.५ न गूहेदागमं क्रेता नारद ८.४ न कुर्वीत वृथाचेष्टा न मनु ४.६३ न गृह्णन्ति महात्मानो आंपू ३३४ नकुलोलूकमार्जार औ ९.२३ नगो गगनदिक्तारागृहा शाण्डि २.१३ न कुशं कुशमित्याहुः वृ परा ७.३३१ न गोमये न कुड्ये औ २.३६ न कूटैरायुधैर्हन्याधु मनु ७.९० नग्नश्राद्धे नवश्राद्धे लोहि ४३९ न कूपमवरोहेत् व १.१२.२६ नग्नश्राद्धे वर्षमात्र आंपू ७६१ न कूपमवेक्षेत बौधा २.३.५४ नग्नो मुण्डः कपाली मनु ८.९३ न कूर्याच्छ्राद्धदिवसे कपिल २५० गग्नो मुण्डः कपाली व १.१६.२८ न कृतं मैथुनं ताभिर देवल ३९ नग्नो मुण्डः क्रपालेन नारद २.१८० न केनापि च तस्मात्तु आंपू ६२१ न ग्रामो न आश्रमः वा अपिवृ.गौ. ५.१४ नक्तभोजी भवेद् विप्रो अत्रिस १७८ न घोषं नैव चाघोषं बृह ९.१३ नक्तमालार्क किंपाकस भार १८.१९ न च आत्मनं तरन्ति एते वृ.गौ. ३.२६ नक्तं चान्नं समश्नीयाद् मनु ६.१९ न च कांस्येषु भुंजीय अत्रिस १५७ नक्तं शिवाविरावे बौधा १.११.३६ न च क्रमन्न च हसन्न वृ परा ४.६५ नक्तेन वा समश्नीयात् वृ परा ९.३५ न चक्रमन्न विहसन्न बृ.या. ७.१३१ नक्तोपवासी बाह्ये तु वृ परा ८.२९२ न च गोष्ठे वसेद् रात्रो पराशर ९.५७ न क्लिन्नवासाः स्थलगो बृ.या. ७.४२° न च तच्छक्यते कर्तु वृ परा ४.६४ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ न च तीव्रेण तपसा न न च नीत्वा स्पृश्य न च पथ्यायाशनद्योगो न न च पश्यन्ति पुरुषं न च पश्येत काकादीन् न च पादेन वा हन्याद्धस्ते न च भार्याकृतमृणं न च भिन्नासनगतो न च मिथ्याभियुंजीत दोषो न च मुखशब्द न च वक्त्र च लाभा च न च वैश्यस्य कामः न च संभाषयेत् किंचित् न च सस्ययुक्षेत्रे न च सीमान्तरं गच्छेन्न न च स्थूलं न च ह्रस्वं न च हन्यात्स्थालारूढं न चातिव्ययशीला नचानुगमनतुर्बह्मचर्य न चापोऽञ्चलिना पिबेत न चाश्नत्सु जपेदत्र न चाहं सर्व्वतत्त्वज्ञ न चेज्जलचरेभ्यो वा न चेत्किमपि नास्त्येव न चेत्तत्करशुद्धिश्च न न चेत्तप्तशतं कुर्यात् न चेत्तान्पीडयेद्राजा न चेत्तुगौणपुत्रः स्यात् न चेत्तु पौरुषं सूक्तं न चेत्तु वैष्णवोनाम न चेत्तु सर्वशान्त्यर्थं न चेत्सर्वत्र ताः प्रोक्ताः न चेंदेकेन लोपेन सती न चेद्देषो महानेव न चैकत्र पचेदामं अत्रिस १.११ व २.३.२९ दक्ष ७.४ बृह ९.१७७ औ ५.५८ वृ.गौ. ८.२५ नारद २.१५ ल व्यास २.८४ नारद १.५० न चैवास्यानुकुर्वीत न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न चोत्पातनिमित्ताभ्यां न छायां भार्गवे दीने न जपो नाधिवासश्च न जापं प्रसभं कुर्यात् न जीर्णदेवायतने न जीर्ण-नील- काषाय न जाति पूज्यते राजन् न जातिं न च विद्यां न जातु कामः कामानाम् न जातु ब्राह्मणं हन्यात् न जातु ब्राह्मणं हन्यात् न जाने निर्गमं तस्य न जीवात्पितृकः कुर्यात् न जीवत् पितृको दद्याद् न जीवेन विना तृप्ति न ज्येष्ठस्य कनिष्ठस्य नटी (टी) शैलूषिकां नटीं शैलूषिकों चैव आंपू८८५ नटीं शैलूषिक चैव व १.१२.१७ शाण्डि ३.१४५ मनु ९.३२८ व २.५.६४ व २.६.१० प्रजा ९५ बृ. या. २.१०८ मनु ७.९१ व्यास २.३४ व २.५.७७ व १.६.३२ कात्या ३.८ पराशर १.४ आंपू ६८८ कण्व ७५१ आंपू २०३ लघुयम ६० कपिल ६७४ आंपू ८३७ व २.२.२९ न चैव पुत्रदारेण स्वकर्म न चैव वर्षधाराभिर्न न चैवाभिमुखः स्त्रीणां न चैवामेव हेम्ना वा कण्व ६२६ आंपू ८९८ कपिल ५६८ आंपू ३६४ न तच्छ्रेयोऽग्निहोत्रेण न तत्कर्तुं मूढशतं किं न तत्र गोपिनोदण्डया न त्रय पातयेत पिंडान् न तत्र पालदोषः स्यान्नैव न तत्र वृक्षछाया च न तत्रापि च बालः न तत्रोपविशेद्यत न तत्पूर्वमवाप्रोति आश्व १.१७९ न तथतऽसिस्तथा तीक्ष्णः स्मृति सन्दर्भ दक्ष २.४६ औ २.११ औ २.४० कपिल १७६ औ ३.५ मनु ६.५० व १०.१०.१५ व्या १३० वृ हा ५.१७८ वृ परा ४.५५ औ २.३७ वृ परा २.१६३ हृ.गौ. २१.८ वृ परा ६.२२ मनु २.९४ नारद १८.९९ मनु ८.३८० वृ.गौ. ७.४६ व्या १२९ औ ५.८७ प्रजा १४५ लोहि २४७ बृ. या २.१ वृ परा ८.१८३ संवर्त १५१ दक्ष ३.३१ कपिल ८५२ ब्र. या. १२.२४ वृ परा ७.२९१ नारद १२.३३ वृ.गौ. ५.१२ नारद २.१६९ बौधा २.३.५६ ब्र. या. १२.८ आप १०.४ Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी न तथा हविषा होमैः न तथैतानि शक्यन्ते न तद्धनमवाप्नोति न तद्भासयते सूर्यो न तदस्ति क्वचिद्राजन् यत्र न तप्तायां धरायां वा न तमः कारणं किचिंत न तमं हो न दुरितमित्या नतं सूक्तं शुचीवोऽग्नि न तं स्तेना न च नामित्रा न तयोरन्तरं किंचित् न तर्पयेत् पतन्तीभिः न तस्मिन्धारयेद्दण्डं न तस्य पितरोऽश्नन्ति न तु ब्राह्मस्य राजा न तु मेहेन्नदीच्छाया न तु सा शम्भुसंबन्धा न तेऽग्नि होत्रिणां वृ.गौ. ६.४८ मनु २.९६ आंपू ३०६ बृह ९.२० वृ.गौ. १.६७ कण्व ५७२ दक्ष २.२४ न तस्य फलमाप्नोति न तस्य फलमाप्नोति न तस्य शुद्धिर्निर्दिष्टा वृ हा ५.५९ वृ हा ६.२१९ न तस्य सद्भवेत् औ ४.२६ शाण्डि ३.१५५ मनु ६.५१ व १.२५.७ विष्णु म १०९ न ताडयेन्नातिमांत्र न तापसैर्ब्राह्मणैर्वा न तां तीव्रेण तपसा न तावत् पापमस्तोह न तिर्यग्धारयेत् न तिलैर्न यवैर्हीनं न तिष्ठति तु यः पूर्वी न तिष्ठन्नैकहस्ते न न तिष्ठेत्पात्र दौर्बल्या न तीर्थे स्त्रयाकुले न तु कदाविज्ज्यायसीम न तु खलु कुलीन विद्यमाने व १.१७.७१ वृ हा ८.२६० वृ परा ५.८८ मनु २.१०३ शाण्डि २.३३ ब्र. या. ८.६९ वृ परा २.१०५ व १.२.२८ न तु चारणदारेषु बौधा २.२.६२ व १.१७.७५ बृह ११.४३ वृ हा ८.४७ आश्व २३.७ मनु ७.८३ वृ परा ५.१५५ वृ परा २.१८७ मनु ११.२१ व १.१४.१५ न तद्व्रतं तासां न तेन वृद्धो भवति न तेन सार्द्धं सम्भाषेन्न न ते विष्णो रित्यनेन म तेषाम शुभं किंचिद् न तेषामशुभं किंचत् न तेषां ब्राह्मणः कश्चित् न तैः समयमन्विच्छेत् न तैस्समो भवेत्ता कण्व ७३० न त्यजेत् सूतके कर्म कात्या २४.५ न त्याजयमप्येतद्गृहीतव्यं बृ.गौ. १५.८९. व १.२८.३ व २.२४ व १.१.९ वृ हा ५.१४५ आश्व ११.८ वृ हा ४.१२९ न त्याज्या दूषिता नारी न त्रिपुंड्रं द्विजैर्धार्यो न त्वन्ये प्रतिलोम नत्वा गुरुन् परं धाम्नि नत्त्वा गुरुयथाऽऽदित्य नत्वा दीर्घप्रणामैश्च नत्वाध नित्यकर्माणि नत्वा स्वयमथाऽऽत्मानां न त्वेकं पुत्र दद्यात् न त्वेव कदाचित्स्वयं न त्वेवाधौ सोपकारे न त्वैवैकं तु सर्वेषां भार ९.१२ आश्व १.५० व १.१५.३ बौधा १.५.११९ मनु ८.१ ४३ वृ परा ७.४२ मनु ९.७१ न दत्वा कस्यचित्कन्यां न ददाति च य साक्ष्यं न ददाति हरेर्भुक्तं न दद्यात्तत्र हस्तेन न दद्यात्सति दौहित्रे न दद्यादानालस्य या २.७९ वृ हा ८.३२३ औ ५.५९ लोहि २२३ वृ हा ८.९७ वृ परा ७.१२७ आंपू १०२४ कपिल ७६५ न दद्याद्गुग्गुलं श्राद्धे न दद्याद्याचमानेभ्यः ४० ३ अत्रिस २०२ मनु २.१५६ वृ.गौ. ९.१८ वृ हा ८.२४५ पराशर ३.४७ बृ.गौ. ९८.२४ वृ.गौ. ९.१० १०.५३ न दद्यूः प्रतिगृह्णीरन् अपि या १.१३४ न दन्ति च प्रगायन्ति नटन्ति कपिल ७६७ आंपू १०८२ कात्या ५.९ आंपू ९२१ न दर्शादिषु विज्ञेया बृ.गौ. १५.८६ न दशाग्रंथिके चैव Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ स्मृति सन्दर्भ न दानं दीयते तस्य वृ परा १०.७० न दृश्यते तथा देवैः वृ गौ. १.४६ न दानं यशसे दयान्न वृ परा १०.२९० न देयमेतदध्याय भार १२.६१ न दानात् परमो धर्म वृ परा १०.३ न देवायतनात् कुड्याद् औ २.४४ न दाना) ज्येष्ठपुत्रः __ लोहि २८८ नद्यां तडागे खाते वा वृ हा ४.२७ न दाप्योऽपहृतन्यक्ता वृ हा ४.२३८ नद्यां तु विद्यमानायां ल हा ४.२५ न दाप्योऽपहृतं स्तु या २.६७ नद्यां सत्यां न च स्यायादन्. वृ.गौ. ८.२२ न दास्यमीशस्य वृ हा ७.१६९ न नद्यांमेहनं कार्य व १.६.१२ न दिवापि स्त्रियं गच्छेद् वृ परा ६.६६ न नद्यां मेहनं कुर्यान् व २.६.९ न दिवा स्वप्नशीलेन बौधा २.२.८७ नद्यां स्नात्वाऽथ गायी भार १६.४६ न दिव्य पुरुषो धीमान् विष्णु म १०६ नद्या श्च पुष्करिण्या वृ हा ७.२ ४० नदीकक्षवनदाह व १.१९.१७ न द्रव्याणामविज्ञाय विधिं मनु ४.१८७ नदीकूलं यथा वृक्षो मनु ६.७८ न द्वयोर्विप्रपिण्डानां वृ परा ६.२६८ नदीगाः सिन्धुगा वापि आपू ९३५ न धर्मस्यापदेशेन मनु ४.१९८ नदी ज्योतीषि वीक्षित्वा औ २.४१ न धावेदुदपानार्थ ब्र.या. ८.१२७ नदीतटाककूपेषु स्नान कण्व १५९ न ध्यातव्यं न वक्तव्यं दक्ष ७.३३ नदीतीरेऽब्धितीरे भार १८.७ न नक्तं स्नायात् बौधा २.३.५२ नदीतीरेषु तीर्थषु औ ५.१५ न नग्नः स्नायात् बौधा २.३.५१ नदीतीरे सरित्कोष्ठे विश्वा ६.२ न नदी बाहुकस्तरेत बौधा २.३.५३ नदीनां संगमे तीर्थेष्वा नारा १३.६३ न नहं ग्रुहमित्याहुः प्रजा ५५ नदीपर्वतसंरोधे मृते अत्रिस २२० न नामापि हि दुःखस्य वृ परा १२.३१९ नदी तर्तुमानां पारं प्रजा १२ न नारिकेल बालाभ्यां आप १.२५ नदीवेगेनशुद्धिस्यात् व २.६ ४९७ न नारिकेलेन न फालकेन आंउ १८५ नदी वैतरणीनाम यममार्गे ब्र.या. १६.२६ न नारिकेलैर्नच शाणबालैर्न पराशर ९.३३ नदीषु देवखातेषु मनु ४.२०३ न निरीक्षेत देवानाम् वृ हा ८.१ ४३ नदीषु देवखातेषु ल व्यास २.१० न नासाचपलः कर्मी न शाण्डि ५.४० नदीषु देवखातेषु __वाधू ६३ न निधायकरं भूमौ व २.६.२०६ नदीष्वपि समुदेषु पराशर ९.६ न निर्बपति यः श्राद्ध अत्रिस ३५७ नदीष्ववैतनस्तारः नारद १८.३६ न निरिं स्त्रियं कुर्युः मनु ९.१९९ नदीसङ्गतीर्थेषु शुचौ बृ.गौ. १६.६ न निषेध्योऽल्पबाधस्तु या २.१५९ नदीसन्तारकान्तार १.४३ न निष्क्रयविसर्गाम्यां मनु ९.४६ नदीसानामं गृह्णाति ततो ब्र.या. ८.३१३ न निष्ठीवेत् व १.१२.९ नदीस्नानानि सर्वत्र आंपू १५३ ननु भूताण्डपिण्डस्य वृ.या. ७.१७४ नदुष्येच्छक्तिजः प्राह वृ परा ६.३ ४३ न नृत्येन्नैव गायेच्च मनु .४.६४ न दुष्येत् सन्तता धारा आप २.३ नन्दं कुञ्जजल्पंश्च शाण्डि ४.२८ न दूरे तास्तु नेतव्या वृ परा ५.७ नन्दं च वसुदेवञ्च वृ हा ७.२१४ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी नन्द दृष्टि समानास्ति नन्दायां भार्गवदिने नन्नोः सम्प्राप्नकालस्य न पंक्त्या विषमं न पंचमी मातृबन्धुम्य न पतितैर्न स्त्रिया न न पतितैः संव्यवहारो न पदा पदमाक्रम्य न परपापं वदेन्न न परामृश्यते यस्माद् न परिहितमधिरूढम् न परेण समुद्दिष्टमुपेयात न पर्युषन्ति पापानि न पश्यतस्तल्लपनमृणा न पाणिपाद चपलो न पाणिपादचपलो न पादुकासनस्थो वा न पादेन पाणिना वा न पादेन स्पृशेदन्नं न पादौ धावयेत्कांस्ये न पादौ स्थापयेदस्य न पालकक्रियायोग्यो न पुनः करणां कुर्याच् न पुनर्दिविधः प्रोक्तो न पूर्व गुरवे किंचिद् न पृच्छेत् गोत्रचरणं न पृच्छेद् गोत्रचरणं न पृथग्विद्यते स्त्रीणां न पैतृयज्ञियो होमो विश्वा ३.२० प्रजा १६५ वृ.गौ. ५.१५ औ ५.६२ व १.८.२ बौधा २.३.४९ बौधा २.२.४७ न पाषण्डैर्नालैश्च न पिण्डशेषं पात्रायाम् नपुंसकस्तथोंकारो न पुत्रपुत्री तदपत्य भार्या न पुत्रेण पिता दद्यात् न पुत्रेण समोधर्मः न पुत्रेण बृ. या ७.१३२ बौधा १.७.२८ बृह ९.६३ बौधा १.६.१५ नारद २.१४४ बृह १०.१० आंपू ३२५ मनु ४.१७७ व १.६.३८ औ २.१२ व १.६.३३ औ ५.५६ मनु ४.६५ औ ३.११ लोहि २६८ शाण्डि २.२६ बौधा २.३.२७ बृ.या. २.८२ प्रजा ८१ नारद २.८ कपिल ६६७ आंपू १०८० नारद २.१०६ मनु २.२.४५ वृ.गौ. १२.३३ पराशर १.४२ व्यास २.१९ मनु ३.२८२ न प्रतिसायं व्रजेत न प्रधानो न च महान् न प्रवृत्ते पुण्य हानि न प्रसज्याति गोविप्रो न प्रसारित पादश्च न प्राणेनाप्यपानेन न प्राप्नोत्येव विधिना न प्राप्यते परं ब्रह्म न प्राशयेद् विमूढात्मा न फलेनं फलं न कल्को न फालकृष्टमधितिष्ठेत न फालकृष्टमश्नीयद् न फालकृष्टे न जले न न बहिर्मालां धारयेद् न बहिर्मालां धारयेत न बान्धवान सुहृदो न ब्रह्मणान् परीक्षेत न ब्रह्मयज्ञादधिकोऽस्ति न ब्रान्यं सन्त्यजेद न ब्राह्मण क्षत्रिययो न ब्राह्मणवधाद्भूयान न ब्राह्मणं परीक्षेत ४०५ बौधा २.३.५० विष्णु म ४६ प्रजा १४७ पराशर १.५४ वृ हा ५.२६४ बृ.या. ८.४४ कण्व ७९१ वृ परा १२.३४८ वृ हा ८.३१९ व १.६.३५ व १. ९.२ मनु ६.१६ मनु ४.४६ व १.१२.३५ बौधा २.३.३६ नारद २.१९९ वृ.गौ. ३.६१ कात्या १४.८ वृ हा ४.१६५ मनु ३.१४ मनु ८. ३८१ मनु ३.१४९ आं उ १२.११ न ब्राह्मणसमं क्षेत्र न ब्राह्मणस्य त्वतिथि न ब्राह्मणो वेदयेत न भक्षणकयोग्याः स्युर्नै न भक्षयति यो मासं नभक्षयेदेकंचरान् न भर्त्सयन् बालपुत्रान् न भवेत् पितृ यज्ञश्चेद् आश्व २३.४५ न भवेत्येव यदि सः श्रोत्रियो कपिल ६५९ न भवेत्स्वाभृन्मयपायी ब्र.या. ८.१३९ न भवेदनुपाकर्मा ब्राह्मण वृ परा ६.३५३ न भवेदिति च प्रोचु कण्व ३२४ न भवेद्देवदैत्योभ्यो बृ.गौ. २२.४ मनु ३.११० मनु ११.३१ कपिल ५३६ मनु ५.५० मनु ५.१७ शाण्डि ४.१४५ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ न भवेयुर्भ्रातृजा हि नभसः पंचदश्यां तु न भस्म धारयेद् विप्रः कण्व ७५५ वृ परा ६.३४७ वृ हा २.४८ बृ.गौ. १४.२९ शाण्डि २.५३ मनु ४.६२ दक्ष २.४८ लोहि ५४७ नभस्यमासस्य च कृष्ण न भुक्त्वा नातुरो जीर्णो न भुंजीतोद्धृतस्नेहं न भुज्यते स एवैकौ न भूदानेऽधिकारोऽस्ति न भिन्नकार्षापणमस्ति न भिन्नग्रामिणा कार्यः न भिन्न भाण्डे भुञ्जीत न मैक्षैर्न च मौनेन न भोक्तव्यमभोज्यान्नं न भोक्तव्यो बलादाधि न भोजनार्थ स्वे विप्रः न भोजयेत्प्रत्नेन न भोजयेत् स्त्रियं श्राद्धे न भ्रातरो न पितर पुत्रा न मण्डपं सभा वाऽपि न मण्डलमतिक्रामेन नमत्याश्च तथा कुर्य्यात् न मद्रांयां गवां क्रीडा न मंत्रवतायज्ञांगेना नमः प्रकाशदैवत्य नम (कु) यत्तद्विधानेन न मलिनवाससा सह नमः श्वभ्यः इत्यमुना नमः श्वावास्यायां नाशने नमसैव हि संसिद्धि नमसैवेक्षते राजन् वृ हा ३.९३ नमस्करोति यो भक्तया वृ. गौ. ५.१०१ नमस्कारात्तमद्भिस्तु व.गौ. ८.७१ नमस्कारानूनीराजनोपचारानि कंपिल ३२६ वृ हा ३.९२ नमस्कारेन पुष्पाणि नमस्कुर्यात्ततो गौरी बृ.या. ७.९५ आश्व १५.३५ व १.१९.२५ कपिल ४७६ ब्रया. २.१५९ शंख ५.११ वृ परा ६.२४९ मनु ८.१४४ मनु ३.१०९ आंपू ७५९ वृ परा ७.७१ मनु ९.१८५ वृ.गौ. ५.१३ नारद १९.१६ कपिल १०८ ब्र. या. ९.५४ बौधा १.७.७ वृ परा ११.३४२ कपिल १८४ व १.१२.४ वृ परा ११.१७९ ब्र.या. ८.२०५ नमस्कुर्वन् प्रतिदिशं नमस्कृत्य च ते सर्व नमस्कृत्य च ते सर्वे नमस्कृत्वा गुरून् नमस्कृत्वा तथा भक्तया नमस्ते कपिले पुण्ये नमस्ते घृणिने तुभ्यं नमः स्वाहेति मंत्रेण न मांसभक्षणे दोषो न न मांशमश्नीयान्न न मांसानां हतानान्तु न माता न पिता न स्त्री न मातामहिकं श्राद्ध न मित्रकारणाद् राजा न मित्रकारणाद् राज्ञो न मुख्या विप्रुष उच्छिष्टं न मृगयोरिषुचारिण न मृल्लोष्ठं च मृद्नीयान्न न मे धर्मो ह्यधर्मो वा न मे भूतेषु संयोगो न नमो नारायणायेति ये नमतं त्रिविधं ज्ञेयं नमो देवेभ्यो नम इति नमोद्वादशसंयुक्तं पठनीयं नमो ब्रह्मण इत्यादि नमोब्रह्मणसुस्पष्टाः नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्यर्च नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्यर्च नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्यर्च स्मृति सन्दर्भ शाण्डि २.७० अत्रि २ व्या ३ वृ हा ३.३२ व २.३.२२ वृ. गौ. १०.५८ भार ७.५ वृ परा ५.८२ मनु ५.५६ बौधा १.११.३८ औ ९.२२ मनु ८.३८९ वृ परा ७.४३ मनु ८.३४७ नारद १८.९७ व १.३७ व १. १४.१० मनु ४.७० विष्णु म ६३ विष्णु म ६२ विष्णु म १०३ विश्वा २.२८ वृ हा ३.१०० आंपू ९०३ वृ हा ४.४९ कण्व ३८३ बृ.गौ. १७.३३ बृ.गौ. १७.२५ बृ.गौ. १७.३७ नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्युक्त्वा वृ.गौ. ७.११४ नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्युक्त्वा बृ.गौ. १७.४५ नमो ब्रह्मण्यदेवायेत्येतन् वृ. गौ. ७.१२० नमो ब्रह्मण्यमन्त्र वा नमो भगवते तस्मै विष्णवे नमो यज्ञवराहाय आंपू ८३८ विष्णु म ७२ वृ हा ३.३३७ Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०७ श्लोकानुक्रमणी नमो व इति जपत्वा वृ. या . ७.८५ नरकेषु गता ये वै व परा ७.३२८ नमो व इति मंत्रो वै आश्व २३.८१ नरकेषु सर्वेषु समाः वृ.गौ. ९.५७ नमोऽस्तु मित्रावरुण व १.३०.१२ नरके हि पतन्न्येते । मनु ११.३७ नमोस्तु याज्ञवल्क्याय वृ परा १२.३७८ नरकोत्तारको सद्यो जन्म लोहि २०० नमोऽस्तु वासुदेवाये बृ.गौ. १८.७ नरकोत्तीर्ण वर्णनम् विष्णु ४५ न मौनमंत्रकुहकैरनेकैः दक्ष ७.५ न रक्तकृष्णमलिनं शाण्डि २.६८ न म्लेच्छः पतितैः सार्धं वृ परा ७.३२ न रक्तमुल्वणं वासो । ल हा ४.३४ न म्लेच्छभाषां शिक्षेत् व १.६.३६ नरसिंहाकृतेरस्य संयोगं कपिल ८९ न यज्ञशिष्टादन्यत्वात ल व्यास २.८१ नरस्वत्वग्दोषदुष्टः भार १६.३९ न यज्ञार्थ धनं शूदाद् मनु ११.२४ न राज्ञः प्रतिगृह्णीयाद मनु ४.८४ न यज्ञैः दक्षिणाभिश्च शंख ५.१२ न राज्ञामदोषोऽस्ति मनु ५.९३ नयनं उन्मीलनं दीक्षा वृ हा ६.४०१ नरादापः प्रसूता वैतेन बृ.या. ७.३१ नयनोन्मीलनं कुर्यात् व २.७.८६ नरान् दण्डधृतः कुर्यात् वृ परा १२.९ नयनोन्मीलनं कुर्य्यात् वृ हा ५.१३७ नरा मृगाः पतंगाश्च भार १५.७० नयनोन्मीलनं कृत्वा वृ हा ५.१६९ नराशयो मुख्यमासास्ते कण्व ४३ न यम यममित्याहुरात्मा आप १०.३ न रेचको नैव च बृ.या. ८.२० न याज्या नार्यकार्येषु वृ परा ६.१७० न रेचको नैव च ब्र.या. २.५८ न युक्तमेवं करणं तदिदानी लोहि ६२० नरोगोगमनं कृत्वा संवत १५५ न युद्धमाश्रयेत्प्राज्ञो न वृ परा १२.४० नरोविहन्यतेऽरण्ये शाता ६.११ नयेयु रेते सीमानं वृ हा ४.२५५ नर्क्षवृक्षनदीनाम्नी मनु ३.९ नयेयुरेतैः सीमान्तं या २.१५४ नर्ते क्षेत्र भवेत सस्यं नारद १३.५९ न योषायाः पतिर्दधाद कात्या २४.११ न लक्षेणापि मूर्खाणां न वृ परा ८.६८ न योषित् पति पुत्राभ्यां या २.४७ न लंघयन्ब्रजेद्विप्रो गवां शाण्डि ४.१८८ न योषिद्भ्यः पृथग् कात्या १६.२२ न लंघयेत् पशु श्वो वृ परा ५.१३० नरकं घोरतामिदं वृ परा ५.१२६ न लंघयेद्वत्सतन्त्री मनु ४.३८ नरकं पीड़ने चास्य दक्ष २.३१ न (म) लापकर्पणं सर्वं ब्र.या. ४.१११ नरकस्थानां यमयातना विष्णु ४४ नलिनी निर्मला नारा आपू १२४ नरकस्थामलुं (मुं) लोका ब्र.या. ११.३५ न लिप्यते यथा वहनि १८.१८ नरकस्था विमुच्यन्ते ध्रुवं अत्रिस ३५६ न लौकवृत्तवर्तेत मनु ४.११ नरकाग्नौ प्रपच्यन्ते वृ परा ५.२४ न वक्ता वाक्यटुत्वेन व्यास ४.६० नरकाणां संज्ञा तेषा वर्णनम् विष्णु ४३ न वको भिगमं कुर्यात् वृ परा ६.६९ नरकान्नरकं घोरं वृ.गौ. ९.६० नवग्रहमखं तस्मात् अ ९९ नरकान्निसृतः काले अ १३५ न वच्यते वंच्यितो भार १८.१३० नरकान्नि सृतः पश्चाद् अ ११० नवतंतु स्मरेच्चैव भार १६.२६ नरके पतते पोरे अ ९६ नवीससंगृह्णीयात्तत्सूत्र भार १५.६२ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ स्मृति सन्दर्भ न वर्त्मनि शिलास्पृष्टे व २.६.११ न वाहयेदनडुहं क्षुधात वृ हा ४.१६३ न वदेच्चापि तूष्णीकं किंतु कपिल ८७१ नवानिकं च सप्ताहं वृ हा ६.६ नव दैवतकं श्राद्धेऽब्रव्रीत ब्र.या. ६.८ न विगृह्य कथां कुर्याद् मनु ४.७२ नवदैवतकान्येवं व्यष्टकादीनि कपिल १४९ न वित्त नैव जातिश्च वृ परा ६.५४ नवनवकवेत्तारं अनुष्ठान दक्ष ३.१९ न विद्यया केवलया तपसा बृह ११.२२ नवतंतुकृतं सूत्र प्रणवे भार १६.५३ विद्यया केवलया तपसा वृ हा ४.२२२ नवन्निकांतर्हितां च __ व २.४.३० न विद्या न तपो यस्य वृ परा ६.२२४ नवप्रणवयुक्तेन ह्यापो वाधू १२० न विना ब्रह्मचर्येण व्या २७९ नवभि पावमानीभि वृ परा ११.१६ न विप्रं स्वेषु तिष्ठत्सुं मनु ५.१०४ नवर्दिः पंचमि भार १८.९७ न विवादे न कलहे। मनु ४.१२१ नवमप्रभृत्यष्टानां भार १७.१९ न विवाहो न संन्यासो ल हा ३.१३ नवमं कन्यकादानदातु कपिल ९२७ न विषं विषमित्यातुः व १.१७.७७ नवमं नामिमध्येतु ब्र.या. २.११९ न विसर्ग न तद्वीनं वृ परा १२.२७१ नवमी द्वादशी नन्दा आश्व १.१५ न विस्मयेत तपसा मनु ४.२३६ नवमी नाभिमध्ये तु वृ परा ४.१२७ न वृक्षमारोहेत व १.१२.२५ नवी नाभिदेशे तु वृ हा ५.१९८ न वृथा शपथं कुर्यात् मनु ८.११ नवमी रोहिणीयोग वृ हा ५.४७४ न वृद्धातुरबलेषु न च नारद १९.३५ नवमे दशमे वाऽपि या ३.८३ न वृद्धि प्रतिदत्तानां नारद २.९३ नवम्यां तु ततो भक्त्या आंपू ७२८ न वेदपलमाश्रित्य पापं बृह ११.१९ नवयज्ञे च यज्ञज्ञावदंत्येवं कात्या ५.३ न वेदपाठमात्रेण औ ३.८१ न वर्णगन्ध रस व १.३.३६ न वेदबलमाश्रित्य अत्रि ३.४ न वर्णरस दुष्टाभिर्नचैव अ २.१४ न वेद बलमाश्रित्य व १.२७.४ न वर्द्धयेदघाहानि मनु ५.८४ न वेदशास्त्रादन्यत्तु बृह १२.१ नवश्राद्ध त्रिपक्षं च लिखित १५ न वेदै यता तस्य न वृ परा १२.३०० नवश्राद्धे त्रिपक्षे च अत्रिस ३०४ न वेदैः कैवलापि व परा ७.१५ नवश्राद्धे त्रिपक्षे च दा २३ नवेनानार्चिता हास्य । मनु ४.२८ नव श्राद्धे त्रिपक्षे च लघुशंख १२ न वै कन्या न युवती मनु ११.३६ नव समाराजन्यस्य बौधा २.१.९ नवैत प्रत्यवसिताः सर्व बृ.य. १.४ नवानां चर्मणामेव वर.६.५३४ नवैत प्रत्यवसिताः सर्व लघुयम २३ नवान्ने नवतोये च वृ परा ७.४ नवैतानि विकर्माणि । दक्ष ३.१२ वाल्मीकेन रन्ध्रेषु शाण्डि २.१२ नवैतानि विकर्माणि ब्र.या. १२.३७ न वारयेद्गांधयन्ती मनु ४.५९ न वै तान्स्नातकान् मनु ११.२ न वार्यपि प्रयच्छेत्तु मनु ४.१९२ न वैदिकः पुराणोक्तै __ आंपू ५ न वासुदेवात्परमस्ति विष्णु म १११ न वैदिक पुराणोक्तै कण्व २६६ नवाहमति कृष्छं स्यात् पराशर ११.५२ न वै देवान पीवरो बौधा १.५.१०२ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी न वै स्वयं तदश्नीयादतिथिं मनु ३.१०६ नवोढा मानयेत पत्नी आश्व १५.५५ न व्याहृतिसमो यज्ञो न व्याहतिसमो होमो न व्रतैर्नोपवासैश्च न शक्तिशास्त्रभिरतस्य न शक्नोति परं हन्तुं न शंक्कुर्मध्यगोग्रस्य न शब्द शास्त्रीभिरतस्य न शयानो नातिसंगो न शूद्रराज्ये निवसेन्न न शूद्रस्याव्यसनिनः न शूद्राद्भिक्षितेनैतत् नष्टशौचे व्रतभ्रष्टे नष्टापहृतमासाद्य नष्टे धर्मे मनुष्येषु नष्टेऽपि दत्ततनये न नष्टे मृते प्रव्रजिते क्लीवे नष्टे मूले च तस्यैव नष्टो विनष्टो मणिकः न संवदेच्च पित्राद्यैः न संवसेच्च पतितैर्न न संशयं प्रपद्येत न संसिद्धिमवाप्नोति न संसिद्धो भवेत्तस्मात् न संहताभ्यां पाणिभ्यां न संकल्पं विना कम न संकल्पादि तत्र न संति साक्षिण स्तत्र न संदेहोऽत्र कथितः न संध्याविघ्नकरणा न समवायेऽभिवादनं न समो धर्मतः प्रोक्तः न संभाषां परस्त्रीभि न ससत्वेषु गर्तेषु न न साक्षाद्वेदमन्त्रोक्ति तस्य नारद २.१११ न साक्षी नृपतिः कार्यो औ ४.१५ न सामान्यं धनं देयं अल्पं मनु ३.१३८ न सामान्यं धनं देयं पराशर १.५९ न सावित्र्या समं जप्यं अत्रिस ३५० न सा वृद्धैः भवेद विप्रैः लोहि १४१ न सा वृद्धैर्न तरुणैर्न आंपू ६३४ न सा सभा यत्र न संति कपिल ५३२ नसा सभा यत्र न संति कण्व ६७ न सिध्यत्येव तेषां सा लोहि ४१५ न सीदन्नपि धर्मेण न सीदेत् प्रतिगृह्णान् न सीदेत्स्नातको विप्रः आंपू १२ व्या ३६९ शंख ५.८ आप १०.६ शाण्डि ५.२२ भार २.३१ व १.१०.१४ वृ हा ५.२६५ मनु ४.६१ नारद १९.४० वृ परा ६.२९९ बृ.गौ. २२.२४ व १.१८.१२ न शूद्रा भगवद्भक्ता न शूद्राय मतिं दद्यान्न न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिष्टं मनु ४.८० नारद १३.१०२ मनु १०.१२६ ब्र. या. ८.१५८ मनु ९.४३ अ १२ न शूद्रायाः स्मृतः कालो न शूद्रे पातकं किचिन्नं न श्मश्रुर्ण्य जनम नश्यतीषुर्यथा विद्धः नश्यते ब्राह्मणस्येह नश्यन्ति तामसा भावा नश्यन्ति हव्यकव्यानि नश्येद् द्रव्यपरीमाणं न श्राद्धे भोजयेन् मित्र न क्षाद्धे भोजयेन्मित्र बृ.गौ. २२.१२ मनु ३.९७ न श्री कुलक्रमायाता न श्रुतिर्न स्मृतिर्यस्य नष्ट एवेतिनिश्चत्य नष्टक्रियेर्नष्टधनैर्मृत नष्टपुत्रेति सम्प्रोक्ता नष्टमेव प्रभवति तेन नष्टं भ्रष्टं प्रभग्नं च नष्टं विनष्टं कृमिभिः नष्टं विनष्टं कृमिभि मनु ८.२३२ नारद ७.१५ ४०९ व्यास ४.५१ या २.१७२ नारद १.२ लोहि ५५१ पराशर ४.२५ अ १०९ कात्या २८.११ वृ परा ६.२६१ मनु ४.७९ या १.१३२ वृ हा ३.११५ शाण्डि ३.५० मनु ४.८२ आंपू २६९ कण्व १६५ वृ हा ४.२३१. कण्व १९२ कण्व २८६ बौधा १.२.३१ लोहि ४८ मनु ८. ३६१ मनु ४.४७ कपिल ८९२ मनु ८.६५ कपिल ४५२ लोहि ४८० शंख १२.३ वृ परा ८.७२ वृ परा ८.७० नारद १.८० वृ परा ८.७३ सोहि ५२१ मनु ४.१ ७१ बृ.यां. ४.६१ मनु ४.३४ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० नसीरं क्षीरवृक्षस्य न सुप्तं न विसन्नाहं न सुस्वाऋद्वन्नयः न सूतकं कदाचित् न सोन्मत्तामवशां न सोमेनोच्छिष्टा न स्कन्दति च च्यवते न स्कन्दते न व्यथते न स्कन्दते न व्यथते नस्तस्मास्तैर्यद्देवीं न स्त्रियां वपनं कार्य न स्त्रीजितो भवेद्भर्ता न स्त्रीणामजिनं वासो न स्त्रीणां वपनं कुर्यात् न स्त्रीणां वपनं कुर्यान्न न स्त्री दुष्यति जारेण न स्त्री पतिकृतं दद्यादृणं न स्त्रीपुत्रं दद्यात् न स्त्रीस्वातन्त्रयं न स्थिरं क्षणमप्येकमुदकं न स्नातः सर्वतीर्थेषु न स्नानमाचरेद्भुक्त्वा न स्नानादौ विपन्नस्य न स्नानेन न होमेन न स्नायाच्छूद्रहस्तेन न स्नायात क्षोभितास्वप्सु न स्नायान्नोदकं दद्यान्नापि न स्पृशन्तीह पापानि न स्पृशेत पाणिनोच्छिष्टो न स्पृशेयुरिमानन्ये न स्मायाच्छन्नगात्रो न स्यातां काम्यसामान्ये नस्यादैवे च पित्र्ये न स्वर्णेन चामेन न स्वाध्यायं न वा वृ परा ५.६८ मनु ७.९२ ब्र.या. ३.१३ दक्ष ६.१० व १.१७.५० बौधा १.५.५२ मनु ७.८४ आंउ १२.१३ व १.३०.८ भार १४.२५ लघुयम ५५ शाण्डि ३.१६१ पराशर ९.५८ यम ७३ बृ.यं. ४.१६ व १.२८.१ नारद २.१३ व १.१५.५ बौधा २.२.५० दक्ष ७.२९ वृ हा ५.१८२ मनु ४.१२९ वृ परा ८.५२ शंख ५.९ वृ परा २.११३ वृ परा २.१११ वृ परा ८.५१ अत्रिस ११५ न स्वाध्याय विरोध्यर्थ न स्वामिना निसृष्टो ऽपि न स्वीकुर्याच्छ्रास्त्रदुष्टास्त न स्वीकुर्यादतस्तेन न न स्वेऽग्नावन्यहोम न हन्यात् मुक्तकेशं न हन्याद् बन्दिनं राजा न हसेच्च न वीक्षेत न हायनैर्न पलितैर्न न हि तेषामतिक्रम्य न हि दण्डादृते शक्यः न हि ध्यानेन सदृशं नहि नारायणादन्यः स्त्रिषु न हि प्रत्यर्थिनी प्रेते न हि स्नानेन सदृशी न हि स्पशं न हि स्पृशसमुच्चार्य नहीदृशमनायुष्यं न होनांगो न रोगी च. न हेन्मामेनवा मंत्रै अग्नौ न हेम्नान्नेन कार्य न होढेन विना चौरं न ह्यस्य विद्यते ना आस्वादयेत् तथैवान्नं नाकस्था नरकस्थाश्च नाकिनां पुरतो भूयः नाकृत्वा प्राणिनां नाकृत्वा प्राणिनां नाके चिरं स वसते नाक्रमेदमरादीनां नाक्षैर्दीव्येत्कदाचित्तु मनु ४.१ ४२ औ ६.४ व २.६.२८० कात्या १४.२ नागपृष्ठे निवसति नागयज्ञगृहस्थाने व्या १४कपिल १७५ नागराजञ्ज दोलायां आंपू ९५ नागाधिपतिरुदकवासात् स्मृति सन्दर्भ या १.१२९ मनु ८.४१ ४ ७८६ कपिल ७८२ कात्या १८.१६ वृ परा १२.४९ वृ हा ४.२१८ बृ.गौ. १६.२० मनु २.१५४ आंउ १.९ मनु ९.२६३ अत्रि ४.८ विष्णु म २१ नारद २.८३ आंपू १५४ व्र. या. १०.४९ ब्र. या. १०.१२५ मनु ४.१३४ अत्रिस ३४३ कपिल १६६ आंपू ६३० मनु ९.२७० व १.२.१२ शंख ७.४ व्या २६१ आंपू ५७२ व१.४.७ मनु ५.४८ वृहस्पति ७६ वृ परा ६.३७३ मनु ४.७४ वृ.गौ. ७.११२ वृ.गौ. ८.१०२ वृ हा ७.२८५ व १.२९.६ Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी नागोप्रदास्तत्र पयः नाग्नयः परिविन्दन्ति नाग्नि चित्वा रामा नाग्नि ब्राह्मणं चांतरेण नाग्नि मुखेनोपधमेत् नाग्नि मुखेनोपधमेन्नग्नां नाग्निशुश्रूषया क्षान्त्या नाग्न्योर्न ब्राह्मणयोर नाग्रहीष्यत् पुरोडाशान् नाग्रासनोपविष्टस्तु नांगनखवादनं कुर्यात् नांगुलीमिर्न लवणाभिर्न नांगुष्ठादधिका ग्राह्या नांघिणा पीडयेत् नाचक्षीत धयन्ती गां नाचरन्ति यथोक्तं ये नाचरेत्प्लवनक्रीडां न नाचरेद्विदुषां भुक्ति नाचामेद्यदि तूष्णीकं नांजयन्तीं स्वके नेत्रे नाणायणीसात्यमुग्रा नाततायिवधे दोषो नातः परतरो धर्मो ना तादृशं भवत्येनो नातिकल्यं नातिसायं नाऽतिदूरे न चाऽसन्न नातिदोषावहं कांस्यं नातिशब्देन मुंजीत नाति सांवत्सरी वृद्धि नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान् नात्मानमनवमन्येत नाऽऽत्मीयान् प्रलपन् नात्युच्छ्रिते नाति नीचे नात्र दोषोऽस्ति राज्ञा नात्र शूर्वीप्रयुजीत वृ.गौ. ७.१२८ नात्रापसव्यकरणं न कात्या २.८ अत्रिस ११० नात्रिवर्षस्य कर्तव्या मनु ५.७० व १.१८.१५ नाथवत्या परगृहे नारद १३.६० व १.१२.२८ नाथेनन्द्रविणादाना ब्र.या, ८.१७४ व १.१२.२७ नाददीत नृपः साधु मनु ९.२४३ मनु ४.५३ नादीक्षितः प्रकुर्वीत वृ हा ८.२ ४० शंख ५.१० नादुष्टां दुषयेत् कन्यां नारद १३.३१ व १.१२.२९ - नाद्याच्छूद्रस्य पक्वान्नं मनु ४.२२३ वृ परा १२.६ नाद्यात् सूर्यगृहात्पूर्व ल व्यास २.७९ औ ५.६४ नाद्याविधिना मांसं मनु ५.३३ व १.६.३१ । नाद्याद्गृध्येन्न व्यास ३.४४ बौधा १.५.१९ नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः मनु ४.१७२ कात्या ८.१७ नांधार्मिके वसेद् ग्रामे मनु ४.६० व परा ४.६६ नाधिकस्य तु कर्तारः भवेयु कपिल ४७२ ___ या १.१ ४० नाऽधिकांगो न होनांग वृ परा ५.१०७ . शाण्डि ३.२६ नाधिकारोस्ति मन्त्रा बृ.या. १.३० शाण्डि २.२३ नाधीयोतभियुक्तोऽपि शंख ३.७ कण्व ५९६ नाधीयीत रहस्यानि कात्या २८.२ कण्व १३९ नाधीयीत श्मशानान्ते मनु ४.११६ मनु ४.४४ नाधीयीताश्वमारूढ़ो न मनु ४.१२० ब्र.या. १.२७ नाधनुमधेनुरिति ब्रूयात् बौधा २.३.४५ मनु ८.३५१ नाध्यधीनो न वक्तव्यो __ मनु ८.६६ . या १.३२३ नाध्यापनाद्याजनाद्वा मनु १०.१०३ मन ५.३४ नाना कुसुमसम्बद्ध वृ हा ३.१९१ मनु ४.१ ४० नानाच्छन्दोगतिपथो विष्णु १.९ वृ परा ६.२७ नानादेशेषु विप्राद्याः नारा ७.२२ शाण्डि ४.१०८ नाना पक्ष सुहृद्यैश्च व २.४.१२५ वृ परा ५.२६६ नानापुष्पलता कीर्णे वृ परा १.७ मनु ८.१५३ नानाभावै प्रयलेन विश्वा ८.६१ •न ५.३० नाना भावैः प्रयत्नेन विश्वा ८.६६ मनु । १३७ नाना मतानि सर्वेषां वृ परा ६.२५ वृ हा ५.२५३ नानारत्नप्रभाजालस्पु भार ५.४५ बृह ९.१८७ नानारूपधरैः घोरैः वृ.गौ. ५.१९ व १.१९.३४ नानावर्णस्त्रीपुत्रसमवाये बौधा २.२.१० ___ कात्या ८.७ नानावणीसु भार्यासु . व्यास २.२.१२ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ स्मृति सन्दर्भ नानाविधद्रव्यचौरो शाता ४.३२ नान्यस्यतस्य दातव्य ब्र.या. ३.३९ नानाविधानि द्रव्याणि संवर्त ४७ नान्यास्मिन् विधवानारी मनु ९.६४ नानाविधानि द्रव्याणि संवर्त ५१ नान्येन पुण्ड्रं कुर्वीत कण्व ५६२ नानावृक्षसमाकीर्ण · पराशरस१.६ नान्येषामन्यमंत्राणां भार ७.११२ नानाहिताग्निस्तिष्ठेत्तु कण्व ४८३ नान्यैखमतोदह्यान्नान् शाण्डि ५.४१ नानासंस्थानि रूपाणि बृ.गौ. १२.४७ नान्योत्पन्ना प्रजास्तीह मनु ५.१६२ नानास्वेदसमाकीर्ण दक्ष २.९ नान्यो विमुक्तये नान्य ल व्यास २.९२ नानिपीडयल्लांगलं - व १.२.३९ नापक्षिप्तोऽपि भाषेत व्यास १.२७ नानायुक्तेन वक्तव्यं नारद १.६६ नापण्डिश्चतुर्वेदी ब्र.या. ८.७१ नानुतापस्य पुंसस्तु वृ हा ६.२१६ नाऽपमान्याः स्त्रियः वृ परा ६.४६ नानुतिष्ठति यः पूर्वी ल व्यास २.८७ नापराणे न सामान्हे व २.३.१८४ नानुशुश्रुम जात्वेतत् मनु ९.१०० नापल्पूलितं मनुष्यंसयुक्त बौध.. १.६.१६ नानृग्ब्राह्मणो भवति व १.३.४ नापहत्य हरेर्दयं वृ हा ५.७५ नान्तरागमनं कुर्यान्न वृ.गौ. १२.१४ नापि नीरस-निर्गन्धं वृ परा ७.२२२ नान्तरेणोदकं सस्यं नारद १२.१६ नापि पिवेत् स्वपाणिभ्यां वृ परा ६.२६५ नान्दि (न्दी) ताभ्यां प्रकुर्वीत आंपू २६५ ना पुत्रस्य सपिण्डत्वं वृ परा ७.१ ४१ नान्दीमुखेभ्यो देवेभ्य वृ परा ७.१५८ नापूपधृतनिष्पन्नं भार ११.१०० नान्दीमुखे मातृवर्गः प्रपूर्य कपिल ८३ . नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात् मनु २.११० नान्दीमुखोत्सवे दाने व्या २४३ नाऽऽपो मूत्रपुरीषाम्यां अत्रिस १९२ नान्दी श्राधं तु पूर्वाणे व २.४.१ २२ नापो मूत्रपुरीषाम्या वृ परा २.११० नान्दीश्राद्ध द्विजः कुर्यात् आश्व १५.६७ नापो मूत्र पुरीषाम्यां वृ परा ६.३ ४५ नान्दीश्राद्ध पति कुर्यात् आश्व ३.३ नाप्यकुर्म स्वीकरण आंपू ३७५ नान्दीश्राद्धे कृते चैव आश्व १५.७५ नाप्रोक्षितमप्रपन्नं क्लिन्नं बौधा १.७.१८ नान्दीश्राद्धे कृते मोहात आष्व १५.७७ नाप्सु मूत्रपुरीषे व १.१२.८ नान्दीश्राद्धे कृते यावत् आश्व १९१ नाप्सु मूत्र पुरीषं वा मनु ४.५६ नान्दी श्राद्धे कृते विप्र आश्व १९.६ नाप्सु श्लाघमानः बौधा १.२.३८ नान्नमद्यादेकवासा न . मनु ४.४५ नाप्सु सतः प्रयमणं बौधा २.५.१२ नान्नसूक्तं त्यागकाले आंपू १०७५ नाब्रह्म क्षत्रमृघ्नोति मनु ९.३२२ नान्यकाले प्रशंसन्ति ब्र.या, ३.२७ ना ब्राह्मणे गुरौ शिष्यो मनु २.२ ४२ नान्यत् किंचित् करिष्यामः नारा ७.१८ नाभिञ्च तत्कनिष्ठाभ्यां वृ परा २.३५ नान्यथा तु पितामह्या वृ परा ७.३ ४९ नाभिनन्देत मरणं मनु ६.४५ नान्यदन्येन संसृष्टरूपं मनु ८.२०३ नाभिभाषेत तं दृष्ट्वा अ ५६ नान्यदाच्छायेद्वस्त्र वृ.गौ. ८.९६ नाभिमध्यस्थितं विद्धि वृ परा १२.३१२ नान्यद्भिक्षितमादद्याद् व्यास १.३२ नाभिमात्र वदन्त्येन्ये वृ परा १०.१२९ नान्य प्रसादं मुंजीत वृ हा ५.८२ नाभिमात्रे जले विप्र व परा ११.१७८ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४१३ नाभिमाने जले स्थित्वा दा १६ नामान्येतानि तुम्छानि लोहि ४९४ नाभिमात्रे जले स्थित्वा लघुयम ९२ नामास्ति याति शक्तिश्च विष्णु म १०८ नाभियुक्तोऽभियुंजीत नारद १.४८ नामुत्र हि सहायार्थ मनु ४.२३९ नाभियोज्यः स विदुषा नारद १९.३ नाम्ना द्वादशभि मूनि वृ हा ४.३७ नाभिरोजो गुदंशुक्र या ३.९३ नाम्नामादौ च वर्णानां विश्वा २.२४ नाभिवाधास्तु विप्राणां औ १.४६ नाम्ना विष्णो सहस्राणां । वृ हा ३.२४० नाभिव्याहारयेद् ब्रह्मा मनु २.१७२ नायन्त्रित चतुर्वेदी वृ.गौ. ४.२७ नाभिशस्तान्न पतितान्न नारद १८.३८ नायन्त्रितश्चतुर्वेदः बृ.या. ४.७७ नाभिस्पृशन्नदीतोयं वृ परा १०.१४६ नायं तद्धनभागी कण्व ७५० नाभिसंस्थं तु विज्ञाय वृ परा १२.२२५. नायुधव्यसनप्राप्तं मनु ७.९३ नाभेः ऊद्ध्वं तु वपनं औसं ३४ नारण्य सेवनाद्योगो न दक्ष ७.३ नाभेरथ (ध) स्तात्त्सकलं भार ४.५ नारदाद्यक्तवाः कात्या १०.२ नामेरधस्तादंगानि वृ परा २.१५६ नारदेन च सम्प्रोक्तं वृ हा ४.२६३ नाभेरधः स्पर्शनं बौधा १.५.८७ नारन्तु कूपे काकञ्च पराशर ११.३९ नाभेरूज़ तु दृष्टस्य आंउ ९.१२ नारं स्पृष्ट्वाऽस्थि मनु ५.८७ नामगोत्रस्वधाकार ब.या. ४.१२४ नारा इति समूहत्वे वृ हा ३.१०२ नामगोत्रस्वधाकार ब्र.या. ४.१२५ नारायणः जगन्नाथ शंख विष्णु १.५० नामगोत्रे समुच्चार्य ___ व्या ३१७ नारायणपदप्राप्ति कपिल ७१९ नामजातिग्रहं तेषां नारद १६.२१ नारायण पुराणेश योगवास बृ.गौ. १४.३५ नाम जातिग्रहं त्वेषां मनु ८.२७१ नारायणबलि कार्यो वृ परा ७.३०५ . नामतस्तु स्वधाकारैस्त बृ.या. ७.८७ नारायणमवमाप्नोति अ १४६ नामधेयं दशम्यां तु मनु २.३० नारायण महायोगिन् नामधेयस्य ये केचिद् मनु २.१२३ नारायणमिदं प्राहः वाचा नारा ४.४ नामधेये मुनि वसु कात्या २५.९ नारायणं मूलमन्त्र संज्ञा ' विश्वा ५.११ नामन्त्रणं न होमञ्च ब्र.या. २.१० नारायण मृषीन्देवं विष्णु म ९६ नाम ब्रूयुर्वरस्याथ आश्व १५.१७ नारायणं जगन्नाथं वृ हा ५.५३६ नामभि कीर्त्तनैर्दिव्यैः व २.४.१३० नारायणं परं ब्रह्म व २.१.१६ नामभि कीर्तयन् देवमेव वृ हा ७.२९० नारायणं परित्यज्य वृ हा ८.२७४ नाममि केशवाद्यैश्च व २.६.३८५ नारायणवलि कार्यों लघुशंख ३७ नामभि केशवाद्यैश्च वृ हा ४.१३८ नारायणस्य दासा ये वृ हा १.२० नामभि केशवाद्यैश्च वृ हा ५.१६३ नारायणानुवाकेन वृ हा ८.८ नामभि बालमंत्रैश्च ___ या १.२८६ नारायणानुवाकेन वृ हा ६.८८ नामभिस्तैश्चतुर्थ्यन्तैः वृ हा ७.१२९ नारायणानुवाकेन वृ हा ५.३७७ नाममन्त्रविभक्तानां बृ.गौ. १५.६२ नारायणानुवाकेन वृ हा ७.२९९ नामान्यमूनि सर्वेषां भार १८.४४ नारायणानुवाकेन व २.३.१७९ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૬ ૪ नारायणाय नमः ओ नारायणी वासुदेवी नारायणो घनश्यामः नारायणो ऽच्युत श्रीमान् नारायणो महाशब्दो नारिकेलोदकैः पूर्णं तथा नारी च शुभभर्तारं नारीणां च नदीनां च नारीरपुरुषहन्ता च कन्या नारी प्रसूयते पुत्रं नारीणामपि कर्तव्या नारीणां चैव वत्सानां नारी वाऽपि कुमारो वा नारुन्तुदः स्यादार्तोऽपि नार्चयेन्न प्रणमेच्च नार्तो न मत्तो नोन्मत्तो नार्थसम्बन्धिनो नाप्ता नार्थसम्बन्धिनो नाप्ता नार्द्रवासाः स्थलस्थस्तु नार्य्यश्च रमणैः सार्द्ध नार्वाकं संवत्सराद्विशात नालंकृतेषु विधिषु नालपेद् विष्णवभक्तै नालिकेर्याख्यशाकञ्च नावज्ञेयाः कदापि स्युर्नृप नावबुध्यन्ति ये नावं च सांशयिकी नावगाहः प्रकर्तव्य नावमन्याश्चनायत्ना नावमन्येत पूजयित्वा नावशयवलयो भवन्ति नावश्यं भोजने मौनं नावानं सविरेन्न नाविनीतैब्रजैदुर्यैन च नाविस्पष्टमधीयोत विष्णु म ९८ वृ हा ७.४ वृ हा २.८० वृ हा ३.१० वृ हा ३.१४ कपिल ९१३ वृ परा १०.२५९ वृ परा ६.५६ आंउ ७.९ ब्र. या. ५.१९ वृ हा ८.८३ शंख १६.१६ बृ. या. ४.५ मनु २.१६१ वृहा ८.१४६ मनु ८.६७ नारद २.१५६ मनु ८.६४ वृ परा २.२०३ वृ हा ५.४९८ नारद २.११ वृ हा ६.४१३ व २.१९९ वृ हा ८.१०० वृ परा ६. ३७४ बृ.गौ. १५.७९ व १.१२.४२ नावृतो यज्ञ गच्छेत् नावेक्ष्या एव चैते नावैष्णवान्नं भुंजीत नाशंकरोत्येकवर्षे स्यादे कात्या १३.१४ शाण्डि ४.१२८ ब्र.या. ३.३८ मनु ४.६७ मनु ४.९९ नाशयन्त्याशु पापानि नाशये जनित पापं नाशुचिर्मालिनो वाऽपि नाशौचं सूतके पुंसः नाssशौच सूतके स्यातां नाश्नन्ति पितरस्तस्य नाश्नान्वि श्ववतो नाश्नीयाच्छ्यनारूढो नाश्नीयात् संधिवेलायां नाश्नीयाद्भार्यया सार्धं नाश्रम कारणं धर्मे नाश्रेत्रियतते यज्ञे नाष्टमी सप्तमीयु सप्तमी नाष्टकासु भवेच्छ्राद्ध नासदासीति सूक्तानि नासनस्तु स्वधाकारै नासन्दिष्टः प्रतिष्ठेत नासहस्राद्धरेत फालं नासान्ते भूपदं न्यस्य नासापुटे (ह्य) अक्षकर्ण नासावेधनकीलं तु नासिकाकृष्टं उच्छ्वासो नासिका कृष्ण सोध्यानं नासिका मूलमारभ्य नासिकामूलमारभ्य आंपू १७४ कण्व ६०६ कपिल ८१८ नासिकायां तथाक्ष्णाश्च नासिकौष्ठान्तरं पश्चात् नाऽऽसीनोनाऽऽसीनाय नासृक्षद्यदि राजानं नापि नासोदकं नेत्रवारि स्वे नासौ तत्पदमाप्नोति स्मृति सन्दर्भ व १.१२.३९ आंपू ७६७ वृ हा ८.३०७ व्या ३७७ ल व्यास २.६५ भार ६.१६२ वृ हा ५.३०२ व १.४.२१ वृ परा ८.१६ मनु ४.२४९ व १.१४.६ शाण्डि ४.११९ मनु ४.५५ मनु ४.४३ या ३.६५ मनु ४.२०५ ब्र. या. ९.४ कात्या ५.४ आश्व २३.६६ बृ.या. ७.७० नारद ६.१० या २.१०१ विश्वा २.३५ विश्वा २.३१ वृ परा ५.५६ बृ. या. ८.२२ ब्र. या. २.५३ व २.६.४९ वृ हा २.७१ वृ हा ३.१२२ वृ हा ४.२० बौधा १.२.२८ वृ परा १२.५ शाण्डि ३.१०३ बृ.गौ. २२.२२ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४१५ नासौ फल मवाप्नोति विष्णु म ९३ निकटस्थायिनो नित्यं वृ परा १२.३१ नास्तमयन्तम् व १.१२.७ निकृत्तकर्णनासोष्ठी वृ हा ४.१८५ नास्तिकं किं भविष्यन्त __ आंपू ७५२ निकृष्टं नैच्यन्यं गाम्या कपिल ११५ नास्तिकः कृच्छ्रे द्वादश व १.२१.३२ निक्षिपेत कुशयोरग्ने आश्व २.३७ नास्तिक पिशनश्चैव व १.६.२२ निक्षिप्तं वा परद्रव्यं नारद ८.१ नास्तिकवृत्तिस्त्वति व १.२१.३३ निक्षिप्तस्य धनस्यैवं मनु ८.१९६ नास्तिकव्रात्यदाराग्नि नारद २.१५९ निक्षिप्तानि स्वमर्यादाजनेन कपिल २१० नास्तिकाद्यादि कुर्वीत औ ९.६९ निक्षिप्य तज्जले व २.६.३४१ नास्तिकाय चयन् दत्तम् वृ.गौ. ३.२५ निक्षिप्य हस्त शिरसि । वृ हा २.१२६ नास्तिक्यभावन्मूढात्मा बृह १२.३२ निक्षेप्याग्नि स्वदारेषु कात्या १९.१ नास्तिक्यं वेदनिन्दा मनु ४.१६३ निक्षिप्योरसि दृशंदं पराशर ५.२० नास्तिक्यादथवालस्यात् ल व्यास २.९१ निक्षेपवाधुष्यगतं यदन्य लोहि ३९८ नास्तिताह शनित्यत्व कपिल १६२ निक्षेपस्यापहरणं मनु ११.५८ नास्तिभूम्याः समं दानं अ ९० निक्षेपस्यापहर्तारम् मनु ८.१९० नास्ति विप्रान् परोधर्मः वृ.गौ. ३.७९ निक्षेपस्याहर्तारं मनु ८.१९२ नास्ति विप्रान् परोबन्धुः वृ.गौ. ३.७८ निक्षेपेष्वेषु सर्वेषु मनु ८.१८८ नास्तिवेदात परं शास्त्र अत्रिस १५० निक्षेपोपनिधी नित्यं मनु ८.१८५ नास्तिक्यावस्थितो यस्तु वृ परा २.२१९ निक्षेपो य कृतो येन मनु ८.१९४ नास्तिपयेनापि यो वृ परा २.२१८ । निखिलानामपक्वाना कपिल ६३१ नास्ति सत्यात्परो धर्मो नारद २.२०३ निखिला मातरो ज्ञेयां आंपू ३९२ नास्ति सूनोश्शतगुणो लोहि ३१३ निखिलेभ्यो सुतेभ्यो आपू ४४६ नास्ति स्त्रीणां क्रिया मनु ९.१८ निगमागमनन्त्रेषु मूल विश्वा ३.४१ नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो मनु १५५ निगमादिषु सर्वेषु विश्वा ३.६३ नास्त्यघमर्षणात् शंख १२.२ निगिरन्यदि मेहेत लघुयम ६ नास्त्येवेति ततः कण्व २९९ निगुणोअहन् निर्गन्धात्माः वृ.गौ. १.६० नास्मात्परमकं ज्ञानं शाण्डि ५.७९ निगृह्य चात्मनः प्राणान। संवर्त २२१ नास्य कर्म नियच्छन्ति बौधा १.२.६ निगृह्य दापयेच्चैनं मनु ८.२२० नास्य कार्योऽग्निसंस्कारो मनु ५.६९ निगृह्य भूवृत्ति बन्धुदानं कपिल ५१४ नास्य छिदं परोविद्याद् मनु ७.१०५ निग्रहणे हि पापानां मनु ८.३११ नास्य निर्माल्य शयनं औ ३.९ निग्रहं प्रकृतीनां च मनु ७.१७५ नास्यानश्नन्गृहे व १.८.५ निग्रहानुग्रही सर्व कण्व १७४ नाममापातयेज्जातु मनु ३.२२९ निजधर्माविरोधेन या २.१८९ नाहं नैवान्यसन्बन्धो दक्ष ७.४९ निजं कायं समुत्सृज्य बृह ९.१९६ नाहरेन् मृत्तिका विप्रः औ २.४३ निजोदरं पूरयन्ती मृत्यवर्ग शाण्डि ३.१४९ ना हुतयश्चैवतस्मिन् __ व २.४.९८ नित्यकर्माणि यः कुर्यात् विश्वा १.२० Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व २.५. ४१६ स्मृति सन्दर्भ निकर्म ततः कुर्यात्त ब्र.या. ३.७२ नित्यं जाप्यं विना यस्तु विश्वा ७.११ नित्यतः समुपक्रान्त कण्व ३१२ नित्यं तास्मिन् समाश्वस्तः मनु ७.५९ नित्यतुष्टा नष्टदुःखा लोहि ५९० नित्यं तीर्थोदकस्नायी शाण्डि २.६३ नित्यतृप्ता भवेयुः आंपू ३३ नित्यं त्रिवारं तत्रैव आंपू १९१ नित्यतृप्ता महात्मानो वृ.गौ. ५.८२ नित्यं त्रिषवणस्नायी शंख १७.१ नित्य देवालये गोष्ठे भार ५.१४ नित्यं ददाति य आश्व १.१५० नित्यनैमित्तकं काम्यं ब्र.या. २.४ नित्यं निष्फलः ससंतl ब्र.या. ३.६६ नित्य नैमित्तकं व २.१..८ नित्यं नैमित्तिकं कामं शंख ८.१ नित्यनैमित्तके चैव ब्र.या. ३.११ नित्यं नैमित्तिकं काम्यं लघुयम ८२ नित्यनैमित्तिकेष्वेवं लोहि १३० नित्यं नैमित्तिकं दा २९ नित्यनैमित्तिकेष्वेषु काम्येषु कपिल १३५ नित्यं नैमित्तिकं ब्र.या. ३.६ नित्यन्तु वैश्वदेवः ब्र.या. २.५ नित्यं नैमित्तिकं व्यास ३.१ नित्यभव्याय स मुनि लोहि ६६६ नित्यं पार्श्वगतो मृत्युः शाण्डि ४.२२२ नित्यमग्नौ पाकयज्ञैः वृ.गौ. ६.६७ नित्यं प्रतिगृहे लुब्धो बृ.या. ३.३६ नित्यमभ्ययर्चयेद्देवं नित्यं प्रतिगृहे लुब्धो यम ३१ नित्यमाकाशरूपास्ते आंपू ८६६ नित्यं मुक्ति क्रियते तस्मात् लोहि ५०१ नित्यमामलक स्नानं वृ हा ८.३१२ नित्यं मूत्रपुरीषादिकर्म कण्व १०५ नित्यमाराधनं विष्णो व २.३० नित्यं यदेत निखिल कण्व ४७९ नित्यमाराधयेदेनमा व्यास १.३६ नित्यं योगरतो विद्वान् शंख १४.८ नित्यमावर्तयेद्भक्तया कण्व १८४ नित्यं वर्तेत चाजनं वृ परा ६.३७५ नित्यमावश्यकं स्त्रीणां लोहि ६६३ नित्यं शुद्धः कारुहस्त बौधा १.५.५६ नित्यमास्यं शुचि स्त्रीणां मनु ५.१३० नित्यं शुद्धः कारुहस्त बौधा १.१२.१३ नित्यमुक्तः स योगी च वृ परा ६.१०१ नित्यं शुद्धः कारुहस्तः मनु ५.१२९ नित्यमुक्तान्त्समुद्दिश्य व २.६.३८७ नित्यं श्राद्धेऽपि वर्ज वृ परा २२९ नित्यमुद्धृतपाणि मनु २.१९३ नित्यं स्नात्वा शुचि मनु २.१७६ नित्यमुद्यतदण्डः मनु ७.१०२ नित्यं स्वाध्यायशील औ ३.८९ नित्यमुद्यतदण्डस्य मनु ७.१०३ नित्यंयुकतं तया देव्या व हा २.१२० नित्यमुष्णेन तत्कुर्यात् कण्व ५५९ नित्य शौच कृत्यवर्णनम् विष्णु ६० नित्यमेव यतस्तस्मा नित्यश्राद्धमदैल स्याद् दा ८० नित्यं अष्टसहस्रं तु वृ हा ३.३३९ नित्यश्राद्धं तदुद्दिष्टं ल व्यास २.५८ नित्यं उत्साहयुक्तश्च वृ परा १२.२० नित्यं श्राद्ध सदा कार्य। प्रजा ३६ नित्यं उद्यतपाणिश्च औ ३.२ नित्यश्राद्धविधिः ब्र.या.२.२०६ नित्यं कर्तुं भवेद्भूयस्त्व कण्व ५०३ नित्यश्राद्धेषु तीर्थेषु व्या १६८ नित्यं गुणाः प्रवर्द्धान्ति नारा ५.११ नित्य श्रीको नित्यपुष्पो आंपू ५२२ नित्यं च सलिलाकाक्षी आंपू ४६४ नित्यसत्वाद्धिरण्य वृ हा ७.४९ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी नित्यस्नायी भवेदर्कः नित्यहोमे तु काल नित्याग्निं पूर्ववयसं नित्यानध्याय एव नित्यानि कथितानि नित्यानि चैव कर्माणि नित्यानुष्ठानरहितै नित्याऽप्रयतवर्षाणं नित्याभिवन्दने सन्ध्या नित्याभ्यसनशीलस्य नित्याम्लयुक्तो वर्तस्व नित्यास्वतंत्र नारीणां नित्ये नैमित्तके काम्ये नित्ये नैमित्तिके काम्ये नित्योदकी नित्य नित्योदकी नित्य नित्योदकी नित्ययज्ञो निदध्याच्छकलं तत्र निदद्यात नवे कास्ये निदध्यात्तांचरो स्थाली निदध्यार्ध्यपात्रेषु निदध्यादुदगग्रे वृहस्पति ७४ आश्व १५.६२ आंपू ७७१ मनु ४.१०७ कण्व ४९८ औ ६.२ भार १.१० आंपू ७४४ आंपू ३४५ दक्ष ७.२५ आंपू ५७७ कपिल ६३९ विश्वा ३.७ संवर्त ९४ बौधा २.२.१ व १.८.१७ वृ.गौ. ६.१८० आश्व २.६ आश्व १५.६ आश्व २४७ आम्व २३.२६ आश्व २.३३ वृ परा ७.२८७ मनु ५.७७ वृहस्पति ६४ वृ १.२.३८ शंख ७.३० शाण्डि ५.४९ शाण्डि ३.१४२ या १४.१३९ निदध्युः पृथगुद्धत्य निदर्श ज्ञातिमरणं निदाघकाले पानीयं निदाघेऽयं प्रछच्छेत निःदुखं सुखं शुद्ध निद्रान्तरे प्रबुद्धस्सन् निद्रालस्यविवादासद् निद्रालु क्रूरकृल्लुब्ध निद्रालु स्तामसो याति निधानस्य पवित्रस्य निधाय दक्षिणे कर्णे निधाय दण्डवद्देहं प्रसार्य निधाय शक्त्या पात्राणि वृ निधावे पतिते वर्षे निधीनां तु पुराणानां निधीनामधिपो देवः निध्याय एवं स्याद् निनयेत् सलिलं चैव निनेतारं चास्य प्रकीर्ण निन्दन्ति ये भागवतान् निन्दितेभ्यो धनादानं निद्याञ्छृणु द्विजान् निन्द्यास्वष्टासु चान्यासु निपातयसि नो घोरे निरये निपातो नहिं सव्यस्य नि पावा राजमाषाश्च निबद्ध्ययते तन्निर्मूलं निमज्ज्याप्सुले निमन्त्रणं च पूर्वे निमंत्रणं स्वयं दद्याद् निमंत्रणेऽप्रयातव्यं निमंत्रीत पूर्वे निमंत्रयेत तान् भक्त्या निमंत्रितश्च यः श्राद्धे निमंत्रितश्च यो विप्रो निमंत्रितस्तु यः श्राद्धे निमन्त्रितस्तु यो विप्रो निमंत्रितातिक्रमणं निमन्त्रितानिपितर निमन्त्रिते यदा विप्रे निमंत्रितो द्विजः पित्र्य निमित्तग्रहणश्राद्धं कृत्वा निमित्तमक्षरः कर्त्ता वृ हा ६.१६० निमित्तं चोपरागादे आंपू ५०० निमीलिताक्षः सत्वस्थो औ २.३३ निमृजेत् त्रिसिरेकं शाण्डि २.७३ निमेषा दश चाष्टौ च परा १०.१४४ निमेषादि क्षणः काल ४१७ वृ.गौ. ८.९७ मनु ८.३९ शाता ५.६ औ ३.६४ आश्व २३.६४ व.१.१५.११ शाण्डि ४.१०४ मनु ११.७० वृ.गौ. १४.१५ मनु ३.५० नारा ७.१७ कात्या २.६ दा ५३ शाण्डि ५.२७ वृ हा ४.३० आंपू ७३४ प्रजा ६४ प्रजा ६९ या १.२२५ वृ परा ७.२९ औ ५.११ औ ५.१० शंख १४.२५ बृ.गौ. १४.७ वृ हा ६.१९९ मनु ३.१८९ दा १३६ मनु ३.१८८ आं पू २७६ या ३.६९ आश्व १.११० या ३.१९९ आश्व २.४३ मनु १.६४ बृह ९.९४ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ निम्रगापहतोत्सृष्ट नारद १२.६ निराधारा खाद्यास्तु निम्नां हि वाहयेद् भूमि वृ परा ५.१३३ निरालम्बं यदा ध्यानं नियतात्मा पावकाशी आंपू २२२ निराशम् अतिथिं कृत्वा नियमः कथितस्सद्भिः लोहि ११७ निराशा निर्ममा साध्वी नियमतत्र संपन्ना वृ परा ११.२ ४५ निराशाः पितरस्तस्य नियमानामनुष्ठानं बृह ११.४१ निराशाः पितरस्तस्य नियमेन च षण्मासं आस्व १२.१७ निराशाः पितरो यान्ति नियमोऽयं याजुषस्य कण्व ३७२ निराशास्ते निवर्तन्ते नियमोऽयं सर्वधर्म लोहि ४८१ निराशास्ते निर्वत्तन्ते नियामकं किमत्रेति कपिल १३४ निराहाराज्जायते च नियुक्तकर्माणि नियुक्त विश्वा १:२१ निहारारो जपेल्लक्षो नियुक्तः सुव्रत शेष वृ परा १६२ निरिन्द्रियाह्यदायाश्च नियुक्तस्तु यदा श्राद्धे व १.११.३१ निरुक्तं ज्योतिष शिक्षा नियुक्तस्तु यथान्यायं मनु ५.३५ निरुक्तं यत्र मन्त्रस्य नियुक्तायामपि पुमान्नार्या मनु ९.१ ४४ निरुक्तं ह्येनः कनीयो नियुक्तौ यो विधिं हित्वा मनु ९.६३ निरुद्धप्रेतकृत्या ये तद् नियोज्यगहकत्येष व परा ६.५२ निरुद्धास न करन्नं निरंशैर्वेदमन्त्रैकन लोहि २ ४९ निरुध्य प्रकिरेद्वायु निरग्निके विधिहोष ब्र.या. २.२०५ निरुन्ध्याद्विधिवद्योगी निरीग्निरग्नौकरणं कुर्यात् व्या १२४ निरुप्तमन्योद्देशेन न नरग्नि साग्निकश्चैव ब्र.या. ३.१६ निरुप्यते च सुस्पष्टं निरंकचन्द्रनखरं सर्व वृ हा ३.३०९ निरोद्धव्या दशाप्येते निरगुष्ठं तु यच्छ्राद्ध ब्र.या, ४.९९ निरन्तरालं यः कुर्य्याद् वृ हा २.६८ निरोधं कुरुते मूढं तस्य निरन्नो निर्धनो देवाः वृ परा ७.३५ निरोधयेद्गृहेष्वेव नो निरयं ये च गच्छन्ति वृ.गौ. १०.८५ निरोधाज्जायते वायु निरये रौरवे घोरे स बृ.गौ. १३.१९ निरोधाज्जायते वायु निरयेषु च ते शश्व नारद २.१९५ निरोधाज्जायते वायु निरयेष्वक्षयं वासं व्यास ३.५६ निरोधाज्जायते वायु निरस्तः परावसे ब्र.या. ८.२ ४५ निर्गच्छति शनैर्वायू निरस्य तु पुमाच्छुकं ___ मनु ५.६३ निर्गुणं तु पदे तस्मान् निरस्य नैर्ऋतान्दर्भान् आश्व २.३० निर्गुणं निरहंकार निरस्य शुक्रवाक्यानि प्रजा १५ निर्गुणोऽपि यथा स्त्रीणां निराचारश्च ये विप्राः वृ परा ७.१४ निर्घाते भूमिचलने निरादिष्ट धनश्चेत्तु मनु ८.१६२ निर्घाते वाऽथ चलने स्मृति सन्दर्भ वृ.गौ. ६.११५ वृ परा १२.२९१ वृ.गौ. ६.६४ लोहि ५९७ कपिल १९९ व्यास ३.२१ वृ परा ७.१२९ पराशर १२.१३ वाधू ६० वृ परा ८.२७० भार ९.४८ बौधा २.२.५३ भार ११.५० वृ.या. १.४३ व १.२०.३८ आपू ९३ बौधा २.३.७ आश्व २३.१६ वृ परा १२.२ ४७ आंपू २३३ कपिल ७३३ वृ परा १२.२४९ बृ.या. ८.१५ कपिल ८३२ लोहि ४४ अत्रि १.८ बृ.या. ८.२७ ब्र.या. २.६६ व १.२५.६ वृ परा ६.१०७ नारद १८.७७ आश्व १.८ वृ परा १२.७ मनु ४.१०५ औ ३.६२ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४१९ निर्झर देवखातेब्धौ भार ३.१९ निर्वर्त्य तत्परं सर्व कण्व २९७ निर्णयो व्याहृतीनां बृ.या. ३.३२ निर्वर्त्य विधिना धर्म वृ हा ६.११७ निर्णिक्ते व्यवहारे तु नारद १.५३ निर्वर्त्य सकलं सापि वृ परा ६.१३८ निर्दयं दानविमुखं आंपू ७५० निर्वपन्त्यपरे पिंडान् वृ परा ७.२७२ निर्दशे गुरुपाते ___ दा १४२ निर्वपेण पूरोडाशं । संवर्त २७ निर्दहष्यति सत्सर्व वृ.गौ. १२.८ निर्वारतंडुला श्रेष्ठाः भार १४.४६ निर्दहेत् सर्वपापानि वृ परा ४.७९ निर्वास्यस्ताडनीयश्च लोहि ५६ निर्दहेत् सर्व पापानि वृ परा ९.३६ निर्वाहक स्यादित्येव जाबाला कपिल ४७५ निर्दिष्टमन्योद्देशेन कण्व ७६० निर्वाहकेण ज्येष्ठेन लोहि १९१ निर्दिष्टेष्वर्थजातेषु नारद २.२०८ निर्विघ्नेन त्रिवारं तु आश्व १०.५२ निर्देशं ज्ञातिमरणं श्रुत्वा अत्रि ५.३० निर्वृणाः शंक्कपोयेत ___भार २.३३ निर्दोषम (मि) ति भेदेन कपिल १५ निवर्तेरंश्च तस्मात्तु मनु ११.१८५ निर्दोषं दर्शयित्वा तु ___ नारद ९.७ निवसन्ति पुरोडाश मग्नौ वृ हा ७.९ निर्दोषा सैव कथिता आंपू ९०९ निवसन्नित्यकर्माणि कपिल ६५५ निर्दशा संधि संबंधि व्यास ३.५८ निवसेदेव सततं तस्मादौ आंपू ४६५ निर्धनांश्चरतो लोके शाण्डि ४.८६ निवारको दुर्गतेश्च लोहि ३३७ निर्धनोऽपि यथाशक्ति शाण्डि ३.१३३ निवारशीतककुंटुक्षिरिका भार ५.६ निर्भयं तु भवेद्यस्य __ मनु ९.२५५ निवारितो दानकाले न कपिल ५१२ निर्भयास्सुहृदोलोको शाण्डि ३.१६२ निवार्य चं पुनर्वाचा बृ.गौ. १८.४३ निर्माल्यमितरेषां तु वृ हा ८.२७६ निर्वायतत्प्रलेन ब्र.या. १२.२१ निर्भेदं स्वबलं व परा १२.३० निवासराजनि प्रेते जाते संक १५.१५ निर्भोगो यत्र दृश्येत नारद २.७६ निवासो गुह्यसंभाषा कपिल ५७१ निर्मत्सरः सदाचारः श्रीत्रियो वृ.या. ३.४२ निवीतं मनुष्याणां भार १५.९ निर्मश्य स्थापयेत् ब्र.या. ८.२१९ निवृत्त वैदिकं कर्मयत्प्रोक्तं शाण्डि १.३ निर्ममो निरहंकारः वृ हा ३.१३ निवृत्तः सर्वकार्येषु ब्र.या. ७.४० निर्मलात् फेनपूताभि वृ परा २.३२ निवृत्तानर्चयेत् पिंडान् वृ परा ७.२६८ निर्मलादोषरहिताः भार ७.२८ निवृत्तेन न पातव्यं आंउ ८.१५ निर्मथितेति सूक्तेन वृ हा ६.९ निवेदताप्तरंछाध तत्संकल्प कपिल २६८ निर्मोकमिव शेषाहेर्विस्तीर्ण विष्णु १.३९ निवेदयति मन्मूर्त्या वृ.गौ. ७.१२२ निर्यासश्चंदनं चेति भार १४.३६ निवेदायित्वा स्वात्मानं ल व्यास २.४८ निर्यासानां गुडानां च शंख १६.११ निवेदयेच्च नैवेद्य विश्वा ३.२९ नि-सश्च्यवनश्चेति भार १४.३२ निवेदयेच्च दध्यन्नं व २.६.२३८ निर्लज्जा मातृदत्ताः लोहि २९२ निवेदयेत् पवित्राणि वृ हा ५.३२६ निर्लेपं काचनं भाण्डं मनु ५.११२ निवेधयेद्रौप्यपात्रे पायसं व २.६.२४० निर्वर्तेतास्य यादव मनु ७.६१ निवेदयेन्न देवाय कण्व ७६३ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० स्मृति सन्दर्भ निवेदितस्तु राजा वै वृहस्पति ६९ निषेकादीनि कर्माणि मनु २.१ ४२ निवेदितस्य हविषो आंपू २३९ निषेकाद्या श्मशानान्ताः __ औसं ४८ निवेदितानि वस्तू न पू २४६ निष्कत्रयमितस्वर्ण शाता ६.४४ निवेदितान्नतः पञ्चयज्ञ आंपू १०७८ निष्कत्रयस्य प्रकृति शाता २.४९ निवेद्यकानि सर्वाणि भार १४.५६ निष्कामात्रसुवर्णस्य शाता ६.३२ निवेश्य दक्षिणे स्वस्य वृ हा २.११३ निष्कर्षस्सुमुखोऽयं च कपिल ११ निवेष्टुकामो रोगा” नारद १.४५ निष्कल्मषो भवेन्मर्त्य शाण्डि ४.१३५ निशाकृतको रंडपाकः न कपिल ६०७ निष्कारणं वृथा मोहात् लोहि ३३५ निशाबन्ध निरुप्येषु संवर्त १३८ निष्कालको वा घृताक्तो व १.२०.४६ निशायां वा दिवा वाऽपि या ३.३०७ निष्कालको वा ध्रताम्यक्तः व १.२०.१६ निशिबन्धनिरुद्धेषु दा ११३ निष्कृति तगिरा दद्याद् वृ परा ८.१०३ निशिबन्धनिरुद्धेषु पराशर ९.४२ निष्कृतिर्विहिता सद् कण्व ६४३ नि शेष जलवाप्यादौ वृ हा ८.१२७ निष्कृतौ व्यावहारे च वृ परा ८.७४ निश्चयं मनसः कृत्वा वृ परा १२.१२३ निष्कैवल्यं पदं देव विष्णु म ७१ निश्चयान्मोचयिष्यामो लोहि ६९१ निष्क्रम्यकल्पितं कुम्भ ब्र.या. ८.२३३ निश्चलं रमते चित्त शाण्डि ५.३१ निष्क्रम्य नासा प्रवराव ब्र.या. २.५९ निश्चित्य तूष्णी तिष्ठन्ति कपिल ७४४ निष्क्रम्याधुक्तषेषु भार १८.२४ निश्वासेषु स्थिता वृ.गौ. १.४७ निष्क्राम्य नासाविव बृ.या. ८.२१ निश्शेषदेशलोकादिवर्णा कपिल १६१ निष्टेवजंभण क्रोध भार ६.१०५ निषादस्त्री तु चण्डालात् मनु १०.३९ निष्ठा-नाशौ न विद्यते वृ परा १२.२८१ निषादाच्छूदायां पुल्कसः बौधा १.९.१४ निष्ठीवन्तं सभामध्य लोहि ६०७ निषादात्तृतीयायां पुल्कसः बौधा १.८.११ निष्ठुराश्लील तीब्रत्वात् नारद १६.२ निषादेन निषद्यामा बौधा १.८.१३ निष्पद्यन्ते च शस्यानि मनु ९.२ ४७ निषादो मार्गवं सूचे मनु १०.३४ निष्पन्नसर्वगात्रन्तु पराशर ९.१६ निषिद्धकर्माण संप्राप्ते शाण्डि ४.२१९ निष्पन्नेषु च पाकेषु व्या २७२ निषिद्धकाम्ययोगश्च शाण्डि ४.२१४ निष्पावञ्च मसूरजच वृ हा ४.१०७ निषिद्धद्रव्ययोगेन शाण्डि ४.९३ निष्पीडनं वाऽपि तेषु वृ हा ६.३३४ निषिद्धभक्षणं जैहन्यं या ३.२२९ निष्पीडयति च पूर्व ब्र.या. ७.४१ निषिद्धानि च वाक्यानि व्या २७ निष्पीडानि निष्पीडयति यः पूर्व वृ परा २.२०८ निषिद्धानि च शाकानि व हा ८.१२० निष्पीडयेत् स्नावस्त्र वृ परा २.२०९ निषिद्धानि न देयानि वृ परा ७.२३० निष्पीडिञ्च गोक्षीर वृ हा ६.२५४ निषिद्धेऽपि दिने कुर्यात्त व्या २० निष्पीडयवस्तु वस्त्र ल व्यास २.३९ निषेकादिश्मशानान्त ब्र.या. ८.२ निष्प्रकम्प जगत व्योम वृ परा १२.३६९ निषेकादिश्मशानान्तो मनु २.१६ निष्प्रदीपस्यगेहस्य शाण्डि ४.१९७ निषेकादीनि कर्माणि बृ.गौ. १४.५८ निष्प्रदीपेन भुञ्जीत विशेष शाण्डि ५.४७ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी निष्प्रयोजनदेहानां तेषां निष्फला तस्य सातस्मात् निष्फलायाश्च गुर्विण्या निष्यन्दं सर्वशास्त्राणां नि सरन्ति यथा लोहं पिंड निसर्गपण्डो वधश्च निवे भावितो दद्याद्धनं निहूते लिखितं नैकं नीचं शय्यासनं चास्य नीच संभाषणं याज्यं नीचाभिगमनं गर्भपातनं नीडमध्यगतं सूर्य न नीतिशास्त्रार्थ कुशलः नातोपवीतहृदयः सपवित्रे नीत्याऽन्यस्य गृहं नीत्वा रात्रिं नर्तनाद्यैः नीपार्जुने शिशपंच नीयते तु सपिण्डत्वं नीयन्ते नरकेष्वेव ते नीयमानं शवं दृष्ट्वा नीरजस्कामनिच्छन्तीं नीरजस्तमता सत्व नीराजनं ततो दत्वा नीराजनं ततो तद्यादयं नीराजनं प्रकुर्वन्ति ये वा नीरुजः क्षीणकोशः नीरुजश्च युवा चैव नीरुजश्च युवा चैव नीलकाषायवसनं नीलकौशेयचर्मास्थि नीलजीमूतसंकाशं नीलजीमूतसंकाशं नीलं नलञ्चांगदञ्च नीलं रक्तं वसित्वा नीलया च धरण्या शाण्डि ५.३४ भार १६.४८ विश्वा ८.५७ शंखलि १३ या ३.६७ नारद १३.१२ या २.२१ या २.२० मनु २.१९८ प्रजा ९४ या ३.२९७ बृह ९.१६५ ल हा २.४ भार १९.१५ आश्व ७.३ वृ हा ५.३२३ वृ हा ४.५५ शंख ४.११ कपिल ७७५ ल हा ४.७३ नारद १३.८३ या ३.१५९ वृ हा ४१२७ वृ हा ५. ५२४ कपिल ६२५ व १.२९.७ दक्ष ७.४१ द७ ७.४२ औ ५.३४ नारद २.५९ वृ हा ३.१८९ वृ हा ५.३१० वृ हा ३.२६५ औ ९.७२ व २.६.४१ नीला धरण्यौ सपूज्य नीलिका च सितच्छत्रा नीलिकायास्तु गोमूत्र नीलीमध्ये यदा गच्छेत् नीलीदारु यदा भिनद्याद् नीलीदारु यदा भिन्द्याद् नीलीखां यदा वस्त्र नीलीरक्तं यदा वस्त्र नीलीरक्तेन वस्त्रेण नीलीरक्तेन वस्त्रेण नीलीवृक्षेण पक्वन्तु नीलोत्पलदलश्यामं नीलोत्पलदलश्यामं नीलोत्पलदलश्यामं नीलोत्पलं तूत्पलञ्च नीलौरक्तेन वस्त्रेण नील्या चोपहते क्षेत्रे नीवीमध्येषु येदर्भा नोवारा माषमुद्गश्च नवीं विम्रस्य परिधायाप नीवीस्तनप्रावरण नीहारे वाणशब्दे नीहारैः बाणशब्दै ४२१ व २.६.११२ वृ परा ७.२२५ वृ परा ९.२४ आप ६.७ आप ६.६ आंगिरस १६ आंगिरस १५ आप ६.४ ब्र. या. २.६० बृ.या. ८.२३ व २.३.१३३ वृ हा ४.५७ आंगिरस १९ आंगिरस २२ लिखित ४५ प्रजा ११९ बौधा १.५.८५ या २.२८७ मनु ४.११३ औ ३.७० नियोज्यास्ते अग्निकार्यादौ वृ परा ११.७४ नाभ्यां विद्वान् न्यसेन् निधायतेषु दर्भेषु नुतान्यस्यानिलब्धानि नृणामथाश्मनः स्पर्शे नृणामाचरतो धर्मः नृणां पापकृतां तीर्थे नृणां भवति दत्तायां नृणा विप्रतिपत्तौ च नृत्तगीतवादित्रगंध नृत्यं गीतं तथा वाद्य नृपतिर्धार्मिकः सद्यः पणा आप ६.८ आंगिरस २० आंगिरस १७ वृ परा ११.११६ वृ परा ११.२४ भार १४.६४ औ २.७ वृ परा ६.२०७ शंख ८.१६ वृ परा १०.१०० संवर्त १७१ बौधा १.२.२३ वृ हा ५.३६० कपिल ८२५ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ स्मृति सन्दर्भ नृपते प्रथमं तस्मात् वृ परा १२.११४ नैकजनन्योः पुंसो रेक व्या ३७८ नृपवैश्यश्राद्धभिरसा आंपू ७६३ नैकत्वं तु तयोरस्माद् वृ परा ७.३९१ नृपस्य कोशवृद्ध्यर्थं वृ परा ५.१५८ नैकयापि विना कार्यमाधानं कात्या ८.५ नृपस्य स्वस्य वैश्य भार १५.१२५ नैकवस्त्रो न न खिन्नश्च शाण्डि २.६७ नृपस्यापदि जातायां वृ परा १२.६१ नैकवस्त्रो नाऽऽर्दवासा बौधा २.५.२११ नृपायामेव तस्यैव औसं २२ नैकवासास्तु भुजीयान् बृ.गौ. १३.५ नृपायां विधिना विप्राज्जातो औ सं २८ नैकश्चेत्स्यान्न देहे वृ परा १२.१९३ नृपायां विप्रतश्चौर्यात् औसं २६ नैक समुन्नेत सीमां नारद १२.९ नृपायां वैश्यतचौर्यात् औसं १६ नैकस्य तनयास्ते आंपू ३३६ नृपायां शूद्रतश्चौर्याज्जातो औसं १९ नैक स्वाप्याच्छून्यगेहे मनु ४.५७ नृपायां शूद्रसंर्गाज्जात औसं १७ नैकान्नाशी भवेच्चापि कण्व ५६३ नृपेणाधिकृताः पूगा या २.३१ नैकाश्रमे वसन् विप्रो वृ परा ४.२०५ नृपोऽप्यस्वजनां गत्वा वृ परा ८.२ ४३ नैकेन चक्रेन रथ प्रयाति वृ परा १२.६८ नृपो वेधा नृपः कर्ता वृ परा १२.४ नैकोऽध्वानं व्रजेत बौधा २.३.४८ नृयज्ञः कथितः सद्भि कण्व ३७९ नैतत् पौत्रेण कर्त्तव्य कात्या १६.१७ नृशेसराजरजक कृतघ्न या १.१६४ नैतस्मात्परमं दानं वृ परा १०.१९० नृसिहं भीषणं भद्र वृ हा ३.३ ४२ नैतस्तमादधिकं तुल्यं कपिल ८८३ नृसिंहो मणिवर्णः स्याद् वृ हा ७.११३ नैतस्मादधिकं दानं लोहि ६५४ नेक्षेतार्क न नग्नां स्त्री या १.१३५ नैतस्मादधिकाः कृच्छ्राः लोहि ६५५ मेक्षेतोद्यन्तमादित्यं मनु ४.३७ नैतादृशमितः कर्म परंस्यात्तु कपिल ८३० नेज्यमेचेतिसृमि प्रजा व २.४.१२८ नैतानि कुर्याद्यलेन आंपू १०२८ नेतःपरमहं त्वस्मिचेति लोहि ५९२ नैतानुपनयेन्न अध्यापयेन्न व १.११.५५ नेति गौतमौऽत्युग्रो बौधा २.२.७८ नैता रूपं परीक्षन्ते मनु ९.१४ नेत्रपातैर्भगवता स्वात्मानं शाण्डि ४.२६ नैतेन तुल्यन्यत्तु दानं कपिल ९२२ नेत्रशोभी यथाजाति भार १६.२७ नैते मन्त्रा याजमाना आंपू ८१८ नेत्रे प्रक्षाल्य नोचेत्तु __ लोहि ६६९ नैतेषां तुल्यमपरं आंपू ४९१ नेन्द्रधनुरिति परस्मै बौधा २.३.३८ नैतैरपूतैर्विधिवद् मनु २.४० नेन्द्रधनुर्नाम्ना व १.१२.३० नैत्यकं तर्पणं कुर्याद् आश्व १.१०७ नेष्टकाभि फलानि व १.६.३४ नैत्यकं तर्पणं कुयाद् आश्व १.१११ नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति बृह ११.२ नैत्यके नास्त्यनध्याय औ ३.७६ नेहेतार्थान् प्रसंगेन मनु ४.१५ नैत्यके नास्त्यनध्यायो मनु २.१०६ नैवकाले द्वयं स्नानं व्या २५३ नैत्यं कर्म विधेयं वै शाण्डि ३.१३४ नैकग्रामीणमतिथि विप्रं ___ पराशर १.४३ नैत्राम्यां सदृशो मंत्रो ल व्यास २.४.३ नैकग्रामीणमतिथि विप्रं मनु ३.१०३ नैनं छन्दांसि वृजिनात् व १.६५ नैकग्रामीणमतिथिं विप्रं व १.८.८ नैनं तपांसि न ब्रह्म व १.६.२ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४२३ नेपालकं बलेनादि गव्य कपिल २१३ नो चेदति प्रणीते आश्व २३.८४ नैमित्तिकब्रह्मकूर्चे कण्व ३१६ नोच्चरेत तदान्यानि कणव ६१३ नैमित्तिकं च काम्यं च विश्वा ६.३ नोच्चैर्वदेन परुषं व्यास २.३३ नैमित्तिकं तु कर्तव्यं औ ३.११४ नोच्छिन्द्यादात्मनो मूलं मनु ७.१३९ नैमित्तिकाश्च ये चान्ये व परा ७.१०५ नोच्छिष्टं कुर्वते मुख्या मनु ५.१ ४१ नैयायिकार्थमालोक्य बृह १२.१८ नोत्यापदयेत्स्वयं कार्यं मनु ८.४३ नैरात्मबादकुह बृह १२.१० नोत्पादयेद्दत्तकाष्ठं ल व्यास १.२० नैर्ऋतः-पशुपुरोडाशश्च बौधा २.१३७ नोत्संगेऽन्नं भक्षयेत बौधा २.३.३१ नैर्ऋत्यां निषुनिक्षेपे कण्व १२२ नोत्संगे भक्षयेन्न व १.१२.३३ नैवकश्चित्तरामत्र कण्व ५९७ नोदकं धारयेद् मैक्षं औ १.२४ नैव कुर्यात् तथा श्राद्ध कपिल २८१ नोदकान्ते न गोवासे शाण्डि २.११ नैव गच्छति कर्तारं आंउ ६.१० नोदके नैव चाज्येन व्या २२७ नैव गच्छति कतीरं __ पराशर ८.१८ नोदकेषु च पात्रेषु दा १८ नैव गच्छेद विनामार्या आश्व १.६९ नोदक्या न दिवागच्छेत वृ परा ६.६८ नैवनिर्माल्यतां यान्ति ब्र.या. २.४१ नोऽदत्वान्न तदश्नीयाद् वृ परा ५.१८४ नैव मागं वनस्थानां वृ हा ४.२५० नोदन्वोतोऽम्भसि स्नानं अत्रिस ५.३९ नैव स्नानं प्रकुर्वीत कण्व ५५७ नोदाहरेदस्य नाम मनु २.१९९ नैवेद्यं च ततो दद्यात्प्रातः व २.६.११९ नोद्यन्तमादित्यं व २.१२.६ नैवद्यं भोजनं विष्णो वृ हा ८.२७७ नोद्यानोपसीपे वा औ २.३९ नैवद्य शेषविप्रेभ्यो __ व २.६.१२२ नोवं मन्त्रप्रयोगः कात्या २८.१४ नैवेद्य शुभ हृद्यान्नं वृ र ४.१०४ नोद्वहेत् कपिलां कन्या मनु ३.८ नैवेद्यैर्विविधैर्भक्ष्यैः __ व २.४.७८ नोवाहिकेषु मंत्रेषु मनु ९.६५ नैवेद्यैर्विविधैः श्लक्ष्णैः व २.६.२५२ नोद्वी औ ५.७७ नैः श्रेयसमिदं कर्म मनु १२.१०७ नोन्मत्ताया न कुष्ठिन्या मनु ८.२०५ नैष चारणदारेषु मनु ८.३६२ नोपगंगं सुरादि व परा ६.२७२ नैषामङ्गाङ्गिभावोऽस्ति कण्व ३८० नोपुगच्छेत्प्रमत्तोऽपि मनु ४.४० नैषु विद्युत्यर्जुनस्य कण्व ६१० नोपतिष्ठति यः पूर्वा बृ.या. ६.३ नैष्ठिकानां वनस्थानां औ ६.६१ नोपरे न च सस्येषु न शाण्डि २.१० नैष्ठिकेन व्रतेनापि व २.४.२ नोपशाम्योपशाम्याग्नि शाण्डि ३.१०४ नैष्ठिकेषु च मासेषु व .गौ. ७.७० नोपेयात्तत्प्रविष्ठः सन्नो आंपू ७० नैष्ठिको ब्रह्मचारी तु या १.४९ नोषरां वाहयेद्भूमी वृ परा ५.१२४ नैसर्गिकं तथा कुर्यात् वृ हा ७.२३ नौयात्राद्यत्वष्टकर्मानु नारा ७.२६ नोकुर्याद्धोम मंत्राणा कात्या १७.१६ नौशिलाफलककुंजर बौधा १२.३३ नोचिष्टं कस्यचिद्दयान् मनु २.५.६ न्यग्जानु दक्षिणं कृत्वा आश्व १.९२ नो चेत्पष्ठेऽष्टमे वाऽपि आश्व ४.२ न्यङ्गता नैच्यतातीव कपिल ४२४ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ स्मृति सन्दर्भ न्यसेद् द्वितीयं हृदये विश्वा २.३७ पक्वान्नाद्यं यथा पक्वं वृ हा ८.१३५ न्यस्तपूर्वन्तु यत्पात्र ब्र.या. ४.१३४ पक्वेन् जलतैलाभ्यां ___ आंपू ५३० न्यस्त्वा तु व्याहृतीः वृ परा ४.११५ पक्वेष्टकचितं कृत्वा वृ परा १०.२५ न्यस्याक्षराणां फल भार ६.८१ पक्वेष्टकफलं पञ्च ब्र.या. ११.५६ न्यायागतेन द्रव्येण दक्ष ३.२४ पक्षः उपवासिनो यान्ति वृ.गौ. ५.१०९ न्यायः प्रकथितस्सद्धि लोहि ५७ पक्षद्वयाभि सम्बन्धाद् नारद १.२३ न्यायागतधनः तत्वज्ञान या ३.२०५ पक्षद्वयावसाने तु राजा नारद १४.२९ न्यायागताये मणयः भार ७.२१ पक्षमात्रे तदर्धन्तु व २.६.५२७ न्यायापेतं यदन्येन नारद १८.९ पक्षमासर्तुभेदः स्यात्त कण्व ३६ न्यायेन पालयेद् राजा वृ हा ४.२०४ । पक्षयोरुभयोर्वापि सप्त व्या १७ न्यायेन पृच्छते सर्व शाण्डि ४.२ ४० पक्षश्राद्धं तु निवृत्य व्या ६४ न्यायेन शक्यते कर्तुं कथं कपिल २९४ पक्षश्राद्धं वा पंचमी प्रभृति प्रजा १६८ न्यायोपार्जितवित्तेन पराशर १२.४० पक्षादावेव कुर्वीत कात्या १६.११ न्यासमंत्रैश्च सोंकारैः वृ परा ११.१४५ पक्षादूर्ध्वं न कर्तव्या शाण्डि ३.१०१ न्यास मुद्रादिपूर्वेण व हा ४.१३१ पक्षान्तंजुहुयादिष्टं व २.४.१०५ न्यासं च विष्णुगायत्री व २.३.६८ पक्षिजग्धं गवा घ्रातं मनु ५.१२५ न्यासं तनुत्र न बवन्ध वृ परा ४.१०९ पक्षिणस्तित्तिरिक बौधा ५.१५४ न्यासं तु संप्रवक्ष्यामि वृ.या. ५.१ पक्षिणाधिष्ठितं यच्च आप ५.१२ न्यासे वाप्यर्चने वापि वृ हा २.१३० । पाक्षिणां बलमाकाशं शंखलि २८ न्युप्य पिंडांस्ततस्तांस्तु मनु ३.२१६ । पक्षण केनचित्कुर्यात् आंपू ७०५ न्यूब्जपिंडार्यपात्राणि व परा ७.२७९ पक्षे पक्षे पौर्णमास्यां वृ हा ५.३६५ न्यूनकादशवर्षस्य आप ३.७ पक्षेऽपरे च भरणी महती प्रजा १६४ न्यूनं चैवातिरिक्तं आश्व २३.६१ पक्षे वा यदि वा मासे यस्य अत्रिस ३०९ न्यूनातिरिक्तमात्रेण तज्जलं विश्वा २.९ पंक्तिभेदी वृथापाकी व्यास ४.७१ न्यूनाधिकं न कर्तव्यं पंक्तिभेदेन यो भुंक्ते आश्व १.१५९ न्यूनाधिकाभ्यां तच्चेत्तु कण्व ११८ पंक्तिमूर्धन्यमेवात्र वृ परा ७.२०६ न्यूनोऽपि तादृशो दत्त लोहि ६७ पंक्तिस्तिस्टषु विज्ञेया वृ परा ११.१८६ न्वेष्टंयावत्स्थलं तावद् भार १५.१४ पंक्त्युच्छिष्टं गवाध्रातं वृ परा ६.३१६ पंग्वंधयोर्जडभ्रांतक्लीवापाद्यै कपिल ३१८ पकाराद्यष्टभिर्वर्णैः जानुपादे विश्वा १.७५ पचनं कुरुते मोहात्तदाष्ट्र लोहि ४१३ पक्वमन्नं समानीय ब्र.या. २.१५३ पचेयुर्वाऽपितानन्नं शाण्डि ३.९३ पक्वंसफेनकलुषं भार ४.२३ पच्छन्नानि च दानानि वृ परा ४.६७ पक्वान्नं च निषिद्धं पराशर ६.६५ पच्छः पादशिरोहत्सु आश्व १.२४ पक्वान्नवर्ज विप्रेभ्यो आंउ ८.१० पच कन्यानृते हति व १.१६.२९ पक्वान्नहरणाच्चैव शाता ४.१५ पञ्चकालक्रमपरा गान् शाण्डि ४.१६८ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी पञ्चकालपरा यत्र यत्र पञ्चगव्यप्राशनं च सर्व पंचगव्यं च गोक्षीरं पंचगव्यं न दातव्यं पंचगव्यं पिवन गोध्नो पंचगव्यं पिवेच्छूद्रो पंचगव्यं पिवेच्छूद्रो पंचगव्यं पिवेद गोष्नो पञ्चगव्यसतिलैः श्वेतैः पंचगव्यानिमुनयः पंचगव्येन शुद्धि पञ्चगव्यैः स्नापयित्वा पंचगुंजो भवेन्माष पञ्चचक्राकृतिरियं पंचतालं विशच्छत्रं पञ्च तीर्थानि विप्रस्य पंच तीर्थानि विप्रस्य पंचत्वक पल्लवयुक्तं पंचत्वक पल्लवान् पंचत्वकं पंचरात्रं पञ्चत्वं पञ्चभिर्भूतै पञ्चत्वं पाण्डवश्रेष्ठ पंचदशमुहूर्ताहस्तत् पञ्चदश्यां चतुर्दश्या पंचदश्यां चतुर्दश्यां पञ्चधालिङ्गशौचं स्याद् पंचधा विप्रतिपत्तिः पंचधा विप्रतिपत्तिः पंचधा विप्रतिपत्ति पंचधा सम्भृतः कायो पंचधा सम्मृतः कायो पंचनद्या प्रदेशे तु या पंचनानि न गृह्णीयात्पर पञ्चपक्वान्त्यजेद्विप्रः पञ्चपाकास्तापनीया शाण्डि ३.११ नारा ५.२९ देवल ८१ आप ५.४ वृ हा ६.३२५ पराशर ११.३ अत्रिस २९७ या ३.२६३ आंपू ८८ भार ७.६१ व्या ३३२ व २,७.४७ वृ परा १०.३०७ नारा ५.४९ भार १५.१३४ बृ.या. ७.७५ वृ परा २.२२१ वृ हा २.१०९ वृ हा ७.३०७ व २.६.५३३ वृ.गौ. ८.४ वृ.गौ. ८.३ वृ परा ७.९१ व २.३.१५४ या १४६ वाधू १४ बौधा १.१.१८ बौधा १.१.१९ बौधा १.१२.२० कारण २२.७ य. ३.९ नारद १८.११० वृ. गौ. १२.१७ विश्वा ८.६३ कण्व ३६१ पञ्चपूजानुसारेण प्राणा पञ्चपूजां प्रकुर्वीत पञ्चपूजां विना यस्तु पंचपूर्वं मया प्रोक्तः पंचपश्वनृते हन्ति दश पंच पश्वनृते हंति पंचपिंडाननुद्धृत्य न पंचपिंडान् प्रदद्याद्वै पञ्चप्राणाहुतिं कुर्यात् पंचभागश्च षड्नातः पंचभिः पुरुषैर्युक्ता पंचाभिस्तैर्युग प्रोक्तं पञ्चभूत ! नमस्तेऽस्तु पञ्चभूतामत्मिकां चैव पञ्चभूतात्मिकामेतां पूजां पंचभ्य एवं भूतेभ्य पञ्चमण्डलमध्यस्थो ४२५ विश्वा ३.३६ विश्वा ६.२२ विश्वा ३.२६ पराशर ८.२१ नारद २.१८६ मनु ८.९८ या १.१५९ वृ परा ७.३१४ बृ.गौ. १३.९ वृ परा ११.२०२ पराशर ३.११ वृ परा १२.३६१ बृ.गौ. १८. ४१ विश्वा ३.२५ विश्वा ३.१९ मनु १२.१६ बृह ९.१२८ बृह ९.१३३ पञ्चमध्यगतः षष्टो पंचमं ज्योतिषं शीर्ष भार १३.१९ ब्र. या. २.११८ पंचमं तु पदं विदवान् वृ परा १२.२६८ पञ्चमं वाम जानौ पंचमश्च तथा षष्ठः पंचमस्तिलशैलस्तु वृ परा ६.१३ अ ८५ वृ हा ६.३१५ व १.१.१८ बौधा १.६.२१ बौधा १.११.१४ ब्र. या. ८.१०४ पंचमस्य च दोषः पंच महापातकान्य पंचमाच्चोपलेपनात् पंचमाष्टमी वैश्य पञ्चमी च तथा षष्ठी पंचमी वामजानौ तु पंचमी वामजानौ तु पंचमे घृतसंपूर्ण पञ्चमेन अपि मेधेन पंचमे नवमे चैव पञ्चमे मङ्गलाख्यश्च पंचमेऽहानि विज्ञेयं संस्पर्श वृ हा ५.१९७ वृ परा ४.१२६ देवल ७७ वृ.गौ. १.२ औ ७.१२ कण्व ६९४ अत्रिस १०० Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ स्मृति सन्दर्भ पञ्चम्यगणैरलंकृत्य नारा ५.३७ पंचसप्तापकं वैत आंपू ३ ४७ पञ्चयक्षरताः च एव वृ.गौ. २.१९ पंच सान्तपने गावः पराशर ९.२५ पंचयज्ञकृतो नित्यं वृ परा १२.२०५ पंचसूना गृहस्थस्य शंख ५.१ पञ्चमज्ञरता नित्यं वृ.गौ. ६.१७८ पंच सूना गृहस्थस्य मनु ३.६८ पंचयज्ञ विधानं च संवर्त ३६ पञ्चसूनापनुत्त्यर्थं विश्वा ८.२४ पंचयज्ञं स्वयं कृत्वा पराशर ११.४६ पञ्चसूनापनुत्त्यर्थं वैश्वदेवं विश्वा ८.५४ पंचयज्ञविधानञ्च गृही शंख ५.२ पंचहस्तकदण्डानां वृ परा १०.१७७ पंचयज्ञविधानेन वृ परा ६.७३ पञ्चांगुलीभिर्मासां च विश्वा ३.२३ पंचयज्ञांच कुर्वीत वृ हा ८.३१५ पंचाग्निरप्यधीयानो औ ४.४ पञ्चयज्ञाः कथं देव वृ.गौ. ८.७ पंचाग्नि स्मरेदष्टप्रणवं वृ परा ११.१ ४९ पंचयज्ञानकृत्वा तु औ ९.८४ पञ्चाचमनं चैतानि प्रोक्तं विश्वा २.४५ पञ्चयोजनपर्यन्तप्रवह आंपू ९४१ पञ्चादशाक्षरविनिर्मित विश्वा ६.४० पञ्चरात्रस्य सर्वस्य बृह १२.६ पंचानांतु त्रयोधा ___ मनु ३.२५ पञ्चरात्रन्तु द्रव्येषु व २.६.५०८ पंचानां त्रिषु वर्णेषु मनु २.१३७ पंचरात्रविधानेन वृ परा ४.१ ४३ पंचानां त्रिषु वर्णेषु __ औ १.५० पंचरात्रे पंचरात्रे मनु ८.४०२ पंचानामथ सत्राणां कात्या १३.१ पंचरूपाणि राजानो नारद १८.२४ पञ्चापि जप्त्वा विधिना लोहि ३७६ पंचवक्त्रां दशभुजा भार १३.११ पञ्चाब्दात्प्रागगोर्द्ध व्या ३८२ पंच वा सप्त वा पिंडान् वृ परा १०७ पञ्चामृतैः पञ्चगव्यैः व २.७.२८ पंच वा स्युस्त्रयो बौधा १.१.१० पंचमृतैः पंचागव्यैः व हा ६.३९६ पञ्चविंशति कर्माणि भार १.१९ पंचारलिमिता तिर्यक् । व्या ३२० पंचविंशतिस्त्वेव पंचमाषमी बौधा १.५.९१ पञ्चाईकमिति प्रोक्तं विश्वा १.७९ पंचविंशाक्षरो मंत्रः पदे वृ हा ३.८ पंचायॊभोजनं कुर्यात् ल व्यास २.६९ पंचविंशाक्षरोमंत्रः व २.६.६७ पञ्चालाङ्गलदानस्य ग्रहणे नारा १.३२ पञ्चविंशात्मके देहे व २.६.७१, पंचाशच्छतसंख्याकै भार ७.१५ पंचविंशोऽयंपुरुषः वृ हा ३.६० पंचाशतस्त्वभ्यधिके मनु ८.३२२ पञ्चवैतेषु विप्राणां मुख्य विश्वा ८.११ पंचाशद् ब्राह्मणो दंड्य मनु ८.२६८ पंचशाखं शरीराणां भार १९.६ पंचाशद्भाग आदेयो मनु ७.१३० पञ्चषेभ्योऽपि मासेभ्यो कपिल ८०५ पंचाशद्वार्षिको यस्तु वृ परा ७.२७० पञ्चष्वेषु चशौचेषु बृ.गौ. २१.१० पंचास्यं सौम्यं आत्मानं वृ परा ११.१३० पंचसंस्कार सम्पन्नाः वृ हा ३.७ पंचास्यवदनं भीमं वृ हा ३.३५३ पंचसंस्कारसम्पन्नो वृ हा ५.१९१ पंचास्यानि त्रयः पादाः भार १२.१८ पञ्चसप्तति वैश्यस्य ब्र.या. ८.१७ पंचाहान् सहवासेन देवल ७४ पंच सप्तत्रयो वाऽपि वृ हा ५.३९९ पंचाहेन नृपः शुद्धयेत् वृ परा ८.२६५ पञ्च सप्ताथ वा बृ.गौ. १६.२४ पञ्चेन्द्रियस्य देहस्य शाण्डि १.११ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ श्लोकानुक्रमणी पंचतान् यो महायज्ञान्न मनु ३.७१ पतितञ्च तथाध्वान बृ.गौ. १६.२१ पंचतेऽतिप्रशस्ताःस्युर्न भार १४.५७ पतितंचैतदनुज्ञाता। व्यास २.२९ पञ्चैते ब्रह्मपुरतो आंपू ५६९ पतति चाण्डालशव व १.२३.२९ पंचैवा स्युःद्विजा आश्व २४.९ पतिततज्जातवर्जम् बौधा २.२.४६ पटे वा ताम्रपट्टे वा या १.३१९ पतितः पिता परित्याज्यो व १.१३.१५ पटे वा मंडले लेख्या वृ परा ११.५५ पतितं पतितेत्युक्त्वा नारद १६.२० पट्टनेत्रादिकक्षौ तौ वृ परा १०.१६१ पतितं पतितेत्युक्त्वा व १.२०.४० पट्टवस्त्रेण संवेष्ट्य शाता २.२३ पतित संप्रयोगं व १.२०.५० पट्टसूत्रस्य हरणान्निर्लोमा शाता ४.२५ पतितसावित्रीक व १.११.५६ पठनादप्यपत्नीकः कण्व ३८८ पतितस्य च विप्रस्य बृ.य. ४.४० पठन्वैशाकुनान् मंत्रान् वृ हा ७.२४३ पतितस्योदकं कार्य मनु ११.१८३ पठेद्वाऽप्यर्चयेद् विष्णु वृ हा ५.१८५ पतिताच्चान्नमादाय भुक्त्वा अत्रिस २६४ पडब्दं षड्गुणत्वेन आंपू १०६५ पतितात्यय पाषडं भार ५.१६ पणं यानं तरे दाप्यं मनु ८.४०४ पतितानां च विप्राणां बृ.य. ४.३५ पणानां वे शते सार्धे मनु ८.१३८ पतितानाञ्च सम्भाषे पराशर ७.३८ पणानेकशफे दद्याच्चतुरः । या २.१७७ पतितानां तु चरित व १.१५.१२ पणान् दण्डं गृहीत्वा कपिल ८५६ पतितानां न दाहः _ औ ७.१ पणित्वा धनक्रीता व १.१.३५ पतितानामेष एव विधिः या ३.२९६ पंडितोज्ञानिनो वापि व्या २४६ पतितान्नं यंदा भुक्तं अत्रिस २६१ पणिवस्य ऋषिब्रह्म भार ६.२६ पतितान्नं यदा भुंक्ते लिखित ७३ पणे तु पर्षत्कल्पस्य आंउ ६.१ पतिताप्तार्थसम्बन्धि या २.७३ पणो देयोऽवकृष्टस्य मनु ७.१२६ पतितां च द्विजाग्र्यस्त्री वृ परा ८.२ ४७ पण्डितत्वं शताधिक्यं लोहि ५७२ पतितां पंकलग्नां वा वृ परा ८.१४२ पण्यमूलं भूतिस्तुष्ट्य नारद ५.७ पतितामपि तु मातरं बौधा २.२.४८ पण्योस्योपरि संस्थाप्य या २.२५६ पतितेन सुसम्पर्के संवर्त १९७ पतत्यर्द्धशरीरस्य यस्य पराशर १०.२७ पतितैः सह संसर्ग अत्रिस २५९ पतत्यधं शरीरस्य व १.२१.१६ पतितोत्पन्नः पतितो व १.१३.२० पतनीयानां तृतीयोऽशः बौधा २.१.७४ पतितो नात्र सन्देह कण्व १३६ पतनीये कृते क्षेपे ___या २.२१३ पतित्वा निरये घोरे दुःख नारा ७.३१ पतनीयेषु नारीणां वृ हा ६.३१६ पतिपुत्र पुनः स्त्रीभिस्त व २.४.२१ पतन्ति नरके घोरे बौधा १.११.२२ पतिपुत्रवती नारी आश्व ४.१४ पतन्ति पितरस्तस्य दा ५७ पतिप्रियहिते युक्ता - या १.८७ पतन्ति पितरस्तस्य अत्रिस ३०७ पतिभिनष्टपत्नीकैः विधवा कपिल ६०० पताका विवधाः कार्या वृ परा ११.२१४ पति या नातिचरति वृ हा ८.१९७ पतिघ्नी च विशेषेण व १.२१.१२ पतिं या नाभिचरति मन ५.१६५ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ स्मृति सन्दर्भ पतिं या नाभिचरति मनु ९.२९ पत्युः पूर्वं समुत्थाय व्यास २.२० पतिं विहाय या नारी वृ परा ७.३६९ पत्यौः जीवति यः स्त्रिभिः मनु ९.२०० पतिं हित्वा तु या नारी वृ परा ७.३६७ पत्यौ प्रव्रजिते नष्टे नारद १३.९९ पतिं हित्वापकृष्टं मनु ५.१६३ पत्रकं चन्दनंकुष्ठं व २.६.९४ पतिमुल्लङ्घ्य मोहात् कात्या १९.११ पत्रचूर्णेषु यत्तोयं दा १६२ पतिमृत्युः स्त्रियो वृ परा ७.३८८ पत्र वाप्यथवा पुष्पं फलं वृ.गौ. २१.२५ पतिरेव गुरुः स्त्रीणां वृ.गौ. १२.७ पत्रं सर्वं कुशहस्तं च व २.३.७८ पतिर्भायी संप्रविश्य मनु ९.८ पत्रमोह सन्नीनि व २.४.५० पतिर्विशति यज्जायां वृ परा ६.१८० पत्रशाकतृणानां च भनु ७.१३२ पतिलोकं न सा याति या ३.२५५ पत्रसाकादिदानेन आश्व २३.१०६ पतिवल्याश्च दुर्भेद्य आश्व ३.१४ पत्राणि नागवल्याश्च भार १४.५८ पतिव्रता तु साध्वी वृ परा ६.४९ पत्रालाभे तु शाखाभिः वृ.गौ. ८.७९ पतिव्रतानां गृहमेधिनीनां व १.२१.१५ पत्रैः पुष्पैः फलैरी कण्व ४४८ पतिव्रता त्वन्यदिने आंपू ९८८ पत्रैः पुष्पैश्च तत् आंपू ५४७ पतिव्रता धर्मपत्नी मनु ३.२६२ पथि क्षेत्रे परिवृते मनु ८.२ ४० पतिव्रतानां धर्मोऽयं तत् लोहि ६६४ पथिक्षेत्रे वृतिः कार्या नारद १२.३६ पतिव्रताः पार्वतीम्बा कण्व ७६ पथि ग्रामविवीतान्ते या २.१६५ पतिशुश्रूषणे तासां व २.५.४ पथि दर्भाश्रिता दर्भा वृ हा ४.४० पतिशुश्रूषयैव स्त्री कात्या १९.१२ पथ्यं मितं च शुद्धं शाण्डि ४.१ ४३ पतेः सूनोर्विनाशेऽपि या नारी कपिल ५९४ पदत्रयात्मकं मंत्र वृ हा ३.५४ पत्तो ह्यसृज्यन्तेति बौधा १.१०.६ पदं पदं महेशस्य भार ६.७९ पत्नी दुहितरश्चैव या २.१३८ पदं प्राप्य निवर्तन्ते वृ परा १२.२६९ पत्नी पाकं यदा कुर्यात् प्रजा ५६ पदादित्यगतं तेजो बृह ९.१८ पत्नी पुत्रोऽथवा मौा आंपू ३७४ पदानजनमंत्रस्य भार १०.४ पत्नी विना न तत्कुर्यात् आश्व १६.६ पदानि क्रतुतुल्यानि या १.३२५ पत्नीमन्त्रैकसंलब्ध कण्व ३९२ पदे पदे तु यज्ञस्य वृ परा १०.४० पत्नीमात्रस्य सामान्या लोहि ११० पदे पदे समग्रस्य वृ हा ४.२१९ पत्नीमूलंगृहं पुंसां ___ दक्ष ४.१ पदे प्रमूढे भग्ने वा नारद १५.२३ पत्नीयजमाना वृत्विाभ्यो बौधा १.७.९ पदैस्त्रिभिर्यदा त्या वृ.या. ४.३४ पत्नीसहोदराश्वश्रूस्वस कपिल ६०८ पदोमहतं पक्षालयेत् बौधा १७.४ पत्नी स्नुषा स्वयं आश्व १.१७६ पदौ यथाक्रमं लिंपेत शाण्डि २.३५ पन्या चाप्यवियोगिन्या कात्या १९.३ पदमपि न गच्छेत बौधा १.४.२६ गल्या सर्दत्तवस्तु वृ हा ५.२५१ पद्भ्यां स कुरुते बौधा १.१.३४ पल्यादीनामालंकारः आंपू १०९४ पद्भ्यां नाभ्यां ललाटे वृ.या. ५.१२ पत्या सह परासुत्वात् वृ परा ७.३८४ पद्भ्यां स्पृश्यं गवाधं वृ परा ६.२६७ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४२९ पद्मनाभं श्रियायुक्तं व २.३.१ ३४ पयस्तु दधि मासेन आप ८.६ पद्मनाभं हृषीकेशं विष्णु म २९ पयोदधि च मासेन आंगिरस ४७ पद्यनाभस्तथा शंख वृ हा ९.१२० पयोदधि तिलानाञ्च वृ हा ६.१९८ पानाभो धनश्यामो वृ हा ७.१११ पयो मधुघृतं चान्ते आंपू ८१४ पद्यपत्र विशालाक्षं वृ हा ३.१२७ पयोयदाज्यसंयुक्तं कात्या २६.१२ पा गदां तथा चक्र व हा ७.११८ परकीयनिपानेषु न ल व्यास २.११ पद्यं चक्रं गदाशंखं वृ हा ७.११९ परकीय निपानेषु न मनु ४.२०१ पाष चैव महापाशंख ब्र.या. १०.१३० परकीयनिपानेषु न स्नान वाधू ६४ पद्यं शंखं गदा चक्रं वृ हा ७.११५ परकीयनिपानेषु यदि बृ.या. ७.१०९ पद्यमध्यस्थितं सौम्यं वृ परा ४.७७ परकीयनिपानेषु यदि वाधू ६७ पद्यमाल्या पद्यहस्तां वृ हा ७.२२९ परक्षेत्रस्य मध्ये तु नारद १२.१४ पद्यवीजस्यवदनं भार ७.४१ परगानेष्वभिदोहो नारद १६.४ पद्महस्तविशालाक्ष्मी वृ हा ३.१३१ परचिन्ता न कर्त्तव्या ब्र.या. ८.१ ४१ पद्माक्षी पग्रवदनां वृ हा ३.२६१ परतन्तोस्तुवयसा कर्मभ्रष्ट कपिल २८६ पद्यापद्यवती गौरी ब्र.या. १०.७९ परतो व्यवहारज्ञः नारद २.३२ पद्याश्मः लोहं फल- वृ परा ८.३१० परदारनिवृत्ताश्च ते नराः वृ.गौ. १०.१०२ पधाश्मलोहा फल वृ परा ६.३ ४६ परदारपरदव्यपरिग्रह नारा ५.२३ पद्मासनं च बध्वा बृह ९.१८८ परदारपरद्रव्यसव्य शाण्डि ४.१ ४० पद्मासनस्थं देवेसं व २.३.६ परदारपरं दुष्टं परदारै आंपू ७४८ पद्मासनेऽथवा सौम्ये भार १३.२६ परदारप्रयोक्तार वृ.गौ. १०.८७ पोडम्बरविल्वाश्च यम ४७ परदारान् परद्रव्यं व्यास ४.५ पद्यैर्वा पद्यपत्रैर्वा वृ हा ३.१ ४३ परदाराभिमशेषु मनु ८.३५२ पद्योदुम्बरबिल्वानां बृ.य. ३.६३ परदारेषु जायेते द्वौ मनु ३.१७४ पद्मोदुम्बर बिल्वाश्च आप ९.६ परद्रव्यगृहाणा च या २.२७१ पद्योदुम्बर राजीव वृ परा ९.१३ परदव्याण्याभिध्यायं या ३.१३४ पनसं नारिकेलं च व २.६.१६९ परद्रव्येष्वभिध्यानं मनु १२.५ पनसं सहकारैश्च आंपू ५४५ परपत्नी तु या स्त्री मनु २.१२९ पनसस्थापकं प्रोचुः आंपू४९६ परपाकनिवृत्तस्य पराशर ११.४३ पन्था देयो ब्राह्मणाय बौधा २.३.५७ परपाकनिवृत्तस्य शंखलि १४ पन्या पादस्य प्रक्षालन बौधा २.३.३५ परपाकं वृथा मांसं वृ परा ६.२४८ पप्रच्छुरखिलज्ञप्त्यै ___कण्व २ परपाकरुचिर्न स्याद आश्व १.१६७ पयः पिबेत त्रिरात्रं वा मनु ११.१३३ परपीडाकरं दानं दातुस्तग्राहककपिल ४५० पय पृथिव्यां तु पयः ब्र.या. ८.१९६ परपूर्वपतेर्जाताः सर्वे वृ परा ७.३७५ पय प्रतिःदनिधिः प्रोक्तं लोहि ३६६ परपूर्वापतिः स्तेनः प्रजा ८४ पयस्तासामकर्मण्यं लीलं शाण्डि ३.१२७ परपूर्वाः स्त्रियस्त्वन्या नारद १३.४५ ।। Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० स्मृति सन्दर्भ परप्रयोजनदशायां प्राप्तायां लोहि ६१८ परसैन्ये बहु गतान् वृ परा १२.३४ परं कूपशताद् वापी नारद २.१९० परस्त्रियं योऽभि वदेत मनु ८.३५६ परं चिन्तयतां तत्र महादेवः लोहि ३६७ परस्त्रिया सहाकालेऽदेशे नारद १३.६२ परं तद्विषये तूष्णीं कलहं कपिल ५१९ परस्परमुखं पश्यन् आश्व १५.२१ परं तु तत्र लोकानां पश्यतां लोहि ४५१ परस्परविरुद्धानां तेषां मनु ७.१५२ परं त्रिरात्राद्दहनं कुर्यु आंपू ९९० परस्मिन्दिवसे कुर्यात् शाण्डि ३.८२ परं त्वत्र प्रवक्ष्यामि कण्व १९४ परस्मिन् बन्धुवर्गेवा । अत्रिस ४१ परंत्वत्रविशेषोऽस्ति यदि कपिल ६९१ परस्मै पुत्रकार्याय धर्म। कपिल ७९८ परं ब्रह्म नयत्येव बृ.या. २.१२६ परस्मै पुत्रदाने तु कण्व ७४५ परं ब्रह्म परं धाम परं . कण्व १९१ परस्य चात्मनां तस्माद्भद वृ हा ३.७४ परं भागवतं धर्म वृ हा ४.२६४ परस्य दण्डं नोद्यच्छेत् मनु ४.१६४ परं सपिण्डीकरणात् कपिल १२९ परस्य पल्या पुरुषः मनु ८.३५४ परमं यत्नमातिष्ठेत् मनु ८.३०२ परस्य भूमिभागे तु औ ५.१६ परमविक्रमं कुर्यान् अ ६८ परस्य योषितं हत्वा या २१२ परमं वैदिकं शास्त्रमेतद् वृ हा ८.३५१ परस्वान्यपि (दि) गृह्णाति कपिल ७५० परमा चोत्तमा चेति सा आंपू ९४२ परहस्तस्तिश्चैव वृ.गौ. १६.३९ परमांशस्य मुनयो विश्वे भार १७.१७ परहिंसारताः क्रूराः परदार वाधू १७१ परमात्मा च लक्ष्मीशो वृ हा ३.११७ पराकं पंचदशभिः देवल ७९ परमात्मा परं ब्रह्म वृ हा १.११ पराकं तत्सरार्धे देवल २७ परमात्मेति गायत्री विश्वा ५.२४ पराक्रमेकं क्षत्रस्य देवल ९ परमाधिगनिः तेषाम् वृ.गौ. ४.३७ पराकेण विशुद्धिः स्याद् अत्रिस १७२ परमापद्गता वापि व २.५.६३ पराङ्मुखस्या भिमुखो मनु २.१९७ परमापद्गतेनापि अ २२ पराङ्मुखीकृते सैन्ये व परा १२.५१ परमापद्यपि सदा मनोवाक्का व २.५.१९ पराङ्मुखे हते सैन्ये वृ परा ८.३२ परमावगतेनापि कर्तव्यं वृ हा ६.१०९ पराजयन्ति कुप्यन्ति कपिल ८०९ परमेश्वरतुष्ट्यर्थकृतं कण्व १३ पराजयेत्तान्धर्मेण न्याये कपिल ८११ परमेश्वरशब्दं ये ___ कण्व १६ पराजयेत् सोप्यरीस्तान् वृ परा १२.२४ परम्पराणां परमं विचिन्त्य वपरा १२.३७० पराजिरे गृहंकृत्वा स्तोमं नारद ७.२२ परयोः सन्निधौ मुक्तौ कण्व ५९३ पराणि तत्कलत्राणि आंपू ४३७ परविन्नावकोणी च ब्र.या. ४.१४ पराणि दैविकान्याहु कण्व ४४० परवेश्मनिवासं वा पुंसां व २.५.१० परा दुर्वर्णनामानि यानि आंपू ४५५ परव्योम्नि स्थितं देवं वृ हा ४.६२ परानथाऽऽचामयतः व १.३.४१ परशय्यासनोधान् या १.१६० परान्नत्यागिनामेव आश्व १.१५१ परशवोपस्पर्शनेऽनभि बौधा १.५.१३७ परान्नं नैव मुंजीयाद् आश्व १.१७४ परश्रियं समुद्वीक्ष्य लोहि ५८ परान्नं परवस्त्रं शंखलि १७ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी परान्नविघ्नकरणाद शाता ३.७ (परिपूताः) ततः सद्य परान्निनं पराधीनं आंपू ७५५ परिपूतेषु धान्येषु परान्नेन तु मुक्तेन शंखलि १५ परिपूर्ण यथा चन्द्रं परान्नेन मुखं दग्धं हस्तौ कपिल १७ परिभुक्तं तु यद् वासः परापवादं पारुष्यं विवाद शाण्डि १.१९ परिमार्जनद्रव्याणि परापुत्रत्वदुःखज्ञो भूत्वा लोहि ५९ परिक्तिस्य यच्चान्नं परामप्यापदं प्राप्तो मनु ९.३१३ परिवित्तिः कृच्छं परमात्य प्रधानाना वृ परा १२.३३ परिवित्तितानुजेऽमूढे परार्थे तिलहोतारं परार्थे वाधू १६९ परिवित्तिः परिवेत्ता परावमानिनं सर्वश्रेष्ठं शाण्डि १.११७ परिक्त्तिः परिवेत्ता पराशर व्यास शंख या १.५ परिवित्तः परिवेत्ता पराशरोदितं शास्त्रं वृ परा १२.३७३ परिवित्तिः परिवेत्ता पराशरो व्यास वचो वृ परा १.६३ परिवित्तिः परिवेत्ता पराशौचे नरो भुक्त्वा शंख १५.२४ परिवित्तिः परीवेत्ता परिगृह्यविधानेन होमपूर्वा कपिल ६७३ परिवित्तिपरिवेत्तारा परिग्रहं संप्रदानमन्यथा कपिल ३८६ परिविष्टेषु चान्नेषु परिग्रहे प्रकथितं तत् कण्व ७३५ परिवृत्तिती तामेके विज्ञेयां परिक्षीणे प्रतिकूले नारद १४.२८ परिवेषयेत् समं सर्व परिचारके तु यद्दत्तं वृ परा १०.३२१ परिवेषं च पर्यन्तं परिज्ञानाद्भवेन्मुक्ति बृह ९.३४ परिवेष्टितशिरा भूमि परिणामश्च योगेन वृ परा १२.१४२ परिवेष्य हविः सर्व परितः परिकल्प्याथ नारा ५.४६ परिव्राजकः सर्वभूता परितः पूजनीयाश्च मूर्तयः व २.६.११३ परिशुष्य त्स्खलद् परितः पूजयेदेवानृषीश्च व २.३.१४३ परिशोध्यं च गंधाद्यैः परित व्यपरिस्तीर्य व २.६.१८५ परिषत्कल्पतो कार्या परित्यजदर्शकामौ यौ मनु ४.१७६ परिषद्ब्राह्मणानां च परित्यागो भवेत्तत्र व २.६.५३५ परिषिच्यानलं चैव परित्यज्येतरं धर्म वृ हा ३.२१५ परिषिच्यत्वेनैव परित्रस्तं च नष्टं च दूरतः शाण्डि २.२७ परिषेचनमंत्रण परित्राणाय भक्तानां बृ.गौ. २१.२८ परिस्तरणदीश्च परित्वागिर्वणोगिर इमा विश्वा २.२० परिस्तरणमुद्दिष्टं पात्र परिधाने सितंशस्तं आश्व १.२८ परिस्तरणप्रर्युक्षं सर्व परिधाप्याऽहते वस्त्रे वृ परा १०.१३४ परिस्तीर्य कुशैः पात्रं परिचायाहतं वासः कात्या ८.१ परिस्तीथतन्मध्ये , परिधास्य यशोधास्यै ब्र.या. २.२६ परिस्पैतिमंत्रेणं यश ४३१ आपू २१ मनु ८.३३१ मनु ९.३०९ नारद १०.७ बौधा १.६.३८ वृ.गौ. ११.१९ व १.२०.८ मनु ११.६१ दा १५८ बौधा २.१.४८ बौधा २.१.४९ शंख १७.४५ मनु ३.९७२ पराशर ४.१९ कात्या ६.३ आश्व २३.५८ आंपू ४५६ वृ परा ७.२५१ आश्व २३.६० व १.१२.१० व परा ७.२१७ व १.१०.१ या २.१४ व २.६.२७१ आंउ ६.३ आंउ ५.७ आश्व १.१२४ वर.३.१२३ औ ३.१०१ आश्व २.७३ __ व्या २९१ व २.६.३३२ व २.६.३०३ भार ७.५६ ब्र.या. ८.११८ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ स्मृति सन्दर्भ परिहाराय यत्नेन कण्व २१३ पर्युषितं शाकयूषमांसर्पि बौधा १.५.१६१ परिहासो भवेत्किवा नारा ४.५ पर्युषिते त्वहोरात्रं अत्रिस २०८ परीक्षिताः स्त्रियश्चैनं मनु ७.२१९ पर्युह्य परिषिच्याथ आश्व २.७४ परीक्ष्य पुरुषं पुंस्त्वे नारद १३.८ पर्दूहनं ततः कुर्याज्जलेन आश्व २.११ परीक्ष्य विविधोपायैः शाण्डि १.११३ पर्वण्ययतिक्रमे वापि व २.४.९९ परीवादात् खंरो भवति मनु २.२०१ पर्वद्वयं समुद्दिष्ट सविशेष शाण्डि ३.१३० परुषं न वदेत्किञ्चि व २.५.६२ पर्वद्वये समायोगे विश्वा ८.८० परेण तु दशाहस्य न मनु ८.२२३ पर्वभिश्चैवगानेषु कात्या २७.२१ परेण निहितं लब्धवा नारद ८.६ पर्वसु च केशश्मश्रु बौधा १.३.७ परेणाग्नौ हुते स्वार्थ कात्या १८.१९ पर्वसु हिरक्षः पिशाचा बौधा १.११.३९ परेतनेति मंत्रं वै आश्व २३.८२ पर्वस्वपि निमित्तेषु वृ परा ७.८१ परेषां तु सहायेन तद्वाक्य कपिल ८७० पर्वणि श्रपयेदन्नं शाण्डि ३.१२१ परेषां दोषवचनं वृ हा ६.२०१ पर्बकाले क्रतुर्दक्षोश्चमुः ब्र.या. ६.१७ परेषां परिवादेषु __ आप १.२ पर्षदशावरा प्रोक्ता वृ परा ८.६५ परेऽहनि समुत्थाय विश्वा ८.२६ पलं सुवर्णाश्चत्वारः मनु ८.१३५ परेऽहनु पोष्य विधिवत् वृ हा ५.४८२ पलं सुवर्णाश्चत्वारः या १.३६४ परैरन्नम्प्रदातव्यं व २.६.४६२ पलमेकन्तु वै सर्पिस्तप्त अत्रिस १२४ परैरपि च संत्यागात् नारा ३.३ पलमेकं घृतं ग्राह्याद्विपलं ब्र.या. ८.२०३ परोक्षमधिश्रितस्यान्न बौधा १५.६९ पलमेकं जलं पीत्वा व परा ९.११ परोक्षोपहतानामभ्युक्षणम् बौधा १.६.२३ पलाण्डु विड्वराहञ्च या १.१७६ परोपतापैशुन्यं औ ३.१८ पलाण्डं वृक्षनिर्यासं पराशर ११.११ पर्णपिप्यलबिल्वानां शंख २.१० पलाण्डुलशुनं जगध्वा संवर्त १९१ पर्णेदुम्बरराजीव देवल ८३ पलानि पंच मूत्रस्य वृ परा ९.२६ पर्णेदुम्बर राजीव या ३.३१६ पलान्येकादश तथा शाता २.३४ पर्यग्निकरणं त्वेतन् । व १.१२.१४ पलायते य आहूतः प्राप्तश्च नारद १.५२ पर्यवस्यति यत्रतद् वृ परा ३.१७ पलालधान्यशूकादि बृह ११.२८ पर्युक्ष्याग्नि प्रणीताग्रं ब्र.या, ८.२५८ पलाशखदिराश्वद्धा भार १५.७९ पर्यायात् त्रिस्त्रिः पायोः बौधा १.५.८३ पलांशपत्रं पुष्पञ्च वृ.गौ. ८.७५ पर्यायेण प्रदातव्यं विश्वा ८.८२ पलाश-पद्म-पत्राणि वृ परा ७.११९ पर्यायेण समुच्चार्य विश्वा ५.२८ पलाशपद्यपत्रे तु गृही वृ हा ५.२ ४६ पर्यावृत्या पुनश्चैवं वृ हा ३.३७ पलाश पद्यपत्रेषु व्यास ३.६२ पर्युक्षणञ्च सर्वत्र कात्या ९.६ पलाश-शिशिपाकाष्ठ वृ परा ८.३०९ पर्युक्षणेऽप्युदकसंस्थं आश्व २.१३ पलाशाश्वत्थखदिर भार १८.२० पर्युक्ष्यंच परस्तीय वृ परा १०.१४५ पलाशस्य द्विजश्रेष्ठ शंख १७.५२ पर्युषितं चिरस्य च व परा ८.३२६ पलाशविल्व पत्राणि अत्रिस ६२ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४३३ पलैश्च तैश्चतुर्भिः वृ परा १०.३११ पशुवु स्वामिनां चैव मनु ८.२२९ पल्व च त्पात ब्रह्मचारी ब्र.या. ८.१६ पशुवेश्यादिगमने पराशर १०.१५ पवते सदवाक्यानि कण्व ६२१ पशुवेश्याभिगमने अत्रिस २७० पवद्वयञ्च द्वादश्यां बृ.गौ. १८.१६ पशून् हत्वा तथा ग्राम्यान् शंख १७.१० पव नार्थानिभांडानि __ व २.५.४० पशूनां रक्षणं दानं मनु १.९० पवमानः सुवर्जन बौधा २.५.१९ पश्चाच्छ्राद्धेऽप्य पूर्वेम्य कपिल ६७ पवमानानुवाकेन ततो भार १५.६५ पश्चाज्जातः कनिष्ठोऽपि आंपू ४१६ पवमानानुवाके पादा भार ५.३० पश्चाज्जाते धर्मपन्यां लोहि २०७ पवित्रकूर्चेयस्याग्रं भार १८.१०९ पश्चाज्जातेन धर्मेण लोहि ६२ पवित्रेञ्च पवित्राणां वृ.गौ. ९.२३ पश्चात्कालेन सा ज्येष्ठा लोहि ९५ पवित्रपाणिः शुद्धात्मा ल व्यास २.३ पश्चात्तद्दकोस्मिन्नुपविष्टो कपिल ३२४ पवित्रं पितृकायेषु भार १८.६३ पश्चात्तदज्जुमादाय भार १५.७७ पवित्रं यदि वा दर्भ वृ परा ७.२७१ पश्चात्तस्यापि सर्वस्वं लोहि ६३५ पवित्रं भगवद्भुक्तं शाण्डि ४.६३ पश्चात्तु मातृभिक्षार्थ कपिल ३९७ पवित्रं हि पवित्राणां वृ.गौ. ९.६९ पश्चात्तु ग्रामरूपस्य कपिल ५६३ पवित्रपाणिराचम्य भार १६.२ पश्चात्तु तावता गाढं बाधकं कपिल ४२६ पवित्रवत्तइत्यस्मिन् भार ६.३९ पश्चात्तु धरणीवी वृ हा ३.३३० पवित्रवन्त इत्यादि भार १८.६९ पश्चात्तु वैष्णवैसूक्तै व २.२.१७ पवित्रस्य भवंत्येते भार १८.६० पश्चात् ध्यात्वा जगन्नाथं वृ हा ३.१३६ पवित्रहस्तोध्यायति भार ५.४६ पश्चात्पिण्डप्रदानेऽपि आंपू ८३१ पवित्राद्यन्तकाभिज्ञाः मन्त्रैः शाण्डि २.३७ पश्चात्पुष्पाक्षतैस्तेषु भार ११.७० पवित्रारोपणं कुर्यान् वृ हा ५.३१९ पश्चात्पूर्वोत्थिते वह्नौ लोहि १५४ पवित्रीकरणं त्वेवं भार १८.५८ पश्चात् समर्चनीया वृ हा ७.१९५ पवित्रे कृत्वाऽद्भिः बौधा २.५.१८ पश्चात्सम्पूजयेच्छक्त्याः व २.६.२९५ पवित्रे प्राग्यथा प्रोक्ता भार १८.९९ पश्चात् सशक्तयः पूज्या वृ हा ४.९४ पवित्रैर्विविधैश्चान्यै बृ.या. ७.५६ पश्चात् सिन्धुर्विधरणी बौधा ११.३० पवृत्तमन्यथा कुर्याद्यदि कात्या ३.४ पश्चात् सिन्धुः विहरिणी व १.१.१४ पशवश्च मृगाश्चैव मनु १.४३ पश्चात्सुदर्शनं तस्मिन् व २.२.१९ पशाचिकाना यक्षाणां वृ हा ८.१ ४१ पश्चादग्नौ विनिक्षिप्य वृ हा २.१५ पशुध्री च गृहघ्री च ब्र.या. ८.२८० पश्चादधस्तात्पीठस्य भार ११.३५ पशुमण्डूकनकुलश्वा व २.३.१६४ पश्चादभ्य नानं आंपू २५३ पशुमण्डुकमार्जार मनु ४.१२६ पश्चादाचमनं दत्त्वा व २.६.१११ पशुमण्डूक नकुल या १.१४७ पश्चादाचमनं दत्त्वा । व २.६.१२० पशुयोनौ च गमने शाता ५.३७ पश्चादाचमनं दत्त्वा भार ११.१०८ पशुयोन्यामतिक्रम्य नारद १३.७६ पश्चादाचमन यद्याद् वृ हा ८.३५ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ पश्चादाचमनं दद्याद् पश्चादारोपयेद् विष्णु पश्चादुदभवद्वाणि दिव्या पश्चादुभाभ्यां हस्ताभ्यां पश्चादुभाभ्यां हस्ताभ्यां पश्चादुवाभ्यां हस्ताभ्यां पश्चादर्श प्रकुर्वीत पश्चाद्धोमं प्रकुर्व्वीत पश्चाद्धोमं प्रकुर्वीत पश्चाद्रूपं विजानीयात् पश्चाद् वस्त्रादिकं पश्चाद्विब्वात्मकच्छाया पश्वा (त्) प्रत्यग्वारुणीति पांशुवर्ष दिशां दाहे पांशुवर्षे दिशां दाहे पांशुवर्षे ऽम्बुमध्ये पांसुलानां विटानां वा सा पाककर्मणि संप्रोक्तरसुत्स पाकक्रियादूरगाश्च पाकपश्वादिभूतानाम पाकपात्राणि शौल्वानि पाकभिन्नानि कार्याणि पाकभेदकरा ये च पाकभेदी कृतघ्नः च पार्ककृतं तथा नाद्यात् पाकं पायसपूर्वाणां सन् पाकं वातु वहिः शालां पाकमेकम्प्रकुर्वीत पाकयज्ञमितिप्रश्न पाकस्य हेतवे हिस्यात् पाकान्तरेण कुर्यात्तु पाखण्ड शामत पतितां पाखंड्चयस्पृसंस्पर्श पाश्यप्रमाणं च नित्यं पाचकानि बहिष्ठानि पाचयेत्कन्दमूलानि पाचयेद्त्सपवित्रेण पाञ्चरात्रैः सदोद्युक्तैः पाटलारुणपीताः स्युः पाटितोऽयं द्विजाः पूर्व पाठयेद्द्वादशनाम्नां पाठीनरोहितावाद्यौ पाणिगण्डूषकावोष्ठौ पाणागाथाइति प्रोक्ताः पश्यन्त्यात्मानमेवेह पश्येद् गुर्वर्क्ष संयुक्ता पश्यादनंतरं पृथ्वि ततो पश्येमशरदः शतम्पठेन्मत्र ब्र.या. ८.२८४ पाणिग्रहीत भार्यायां पश्चाद् वै जुहुयात् पश्चान्निवासो भवने पश्चान्नीराजनं कृत्वा पश्चान्न्यासस्तदर्थं वृ हा ४.१२४ वृ हा ५.३२५ आंपू १८६ वाधू १२२ पश्चान् मंत्रेणाऽऽज्यहोमो पश्चान्मातामहस्यापि पश्चिमादिक्तृतीयास्याः पश्चिमाभिमुखाद्वापि पश्चिमां तु समासीनो पश्चिमायां शनिः कुर्याद् पश्चिमे तु शनिस्याप्यवा पाश्चिमेन ततः स्थाप्य पश्चिमे पुनराचम्य पश्यतस्तस्य पुरतो पश्यतो ब्रुवतो भूमे पश्यत्येव सदा मां तु पश्यद्भिरखिलैर्भूयो मामके पश्यन्ति दीयमानां पश्यन्तीह रथं ये वाधू १२३ भार ६.४८ आं पू१०२९ वृ हा ५.४६८ वृहा ७.३१० व्या २५७ वृ परा १०.१४७ भार २.३९ वृ हा ५.९९ लोहि ४६७ व २.४.२६ कण्व २३९ वृ हा ५.३९८ आंपू १०३४ भार १३.१५ कण्व ६०३ बृह १०.९ वृ परा ११.५४ ब्र. या. १०.९८ ब्र. या. ८.२६६ पश्वश्चैकतोदन्ता पश्वाद्यैरन्तायातैर व्या ४७ आंपू ५६७ या २.२४ वृ.गौ. ७.१०१ लोहि ५३८ वृ परा १०.४३ वृ परा १०.१६६ वृ परा ११.६ वृ परा १०.२७२ भार ११.३६ स्मृति सन्दर्भ बौधा २.१.८२ वृ पर ६.३६० भार २.१३ या १.१५० मनु ४.११५ वृ परा ६.३६३ कपिल ७९९ लोहि ४१० कपिल ५२७ शाण्डि ३.८९ प्रजा ११२ लोहि ४१६ वृ.गौ. ३.१४ वृ .गौ. १.६ कपिल ५२४ शाण्डि ३.१२९ ब्र. या. . ६.४ ब्र.या. ३.४५ कण्व ५२५ लोहि ६३७ व्या ३०० व २.४.६ व्या ३८५ शाण्डि ३.६६ वृ हा ८.९० व २. ५.५९ वृ हा ८.११० बृ.या. २.६८ भार १८.९ व्यास २.१३ शाण्डि २.४५ मनु ५.१६ आश्व १.७८ भार ६.१४७ वृ परा ६.२८८ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी पाणिग्रहणग्रह्यात संगृह्य व २.४.९१ पात्रपूर्वतु यद्दक्ततं सकलं पाणिग्रहणसंस्कारः मनु ३.४३ पात्रंदा च शैलं च पाणिग्रहणिका मंत्रा मनु ८.२२६ पात्रं भवेदलाभे वा पाणिग्रहणिका मंत्रा मनु ८.२२७ पात्रभूतोऽपियोविप्रः पाणिग्रहे मृते बाला व १.१७.६६ पात्रं धनं वा पर्याप्तं पाणिग्राहस्य साध्वी स्त्री मनु ५.१५६ पात्रं मनसि संचित्य पाणिना सपवित्रेण आश्व ८.४ पात्रं वामकरे स्थाप्य पाणिनासोदकेनाग्नेः आश्व २.१२ पात्रं सम्मानार्थ च पाणिना हृदयं तस्य आश्व १०.३३ पात्रस्थं चापि दर्वीस्थं पाणिप्रक्षालनं दत्त्वा ___ या १.२२९ पात्राणि चालयेच्छ्राद्धे पाणिभ्या उत्तरेणांसौ आश्व १०.२२ पात्रस्थं प्रोक्षयेदन्नं पाणिभ्यां तूपसंगृह्य मनु ३.२२४ पात्रस्थितोदकेनैव पाणिं च संस्पृशन्नद्भिः शाण्डि २.२९ पात्रस्य हि विशेषेण पाणिमा व १.३.६० पात्राणामपि तत्पात्रं पाणिमुखो हिब्राह्मण बौधा १.११.२९ पात्राणाञ्चमसानाञ्च पाणिमुद्यम्य दण्डं वा मनु ८.२८० पात्राणामप्यलाभे तु पाणिग्रह्यः सर्वार्णासु शंख ४.१४ पात्राणासादन पाणिग्राह्य सवर्णासु या १.६२ पात्राण्याणि खड्गानि पाणिहोमे कथं कुंड व्या २८६ पात्रादिरहितं तोय पाणै यश्च निगृह्णीयाद् नारद १३.६९ पात्रादुत्थाप्य देवेशं पाणौ होमस्य ये व्या १२८ पात्राभिधारणं कृत्वा पाण्डिकेयापिये प्रोक्ताः ब्र.या. १.२३ पात्राय संसमादाय भैक्ष्यं पाण्याहृति द्वादश कात्या ९.११ पात्रे धनं वा पर्याप्त पातकवर्ज वा बभ्रु बौधा २.१.८३ पात्रे धनं वार्धषितं पातकाभिशंसने कृच्छ्रः बौधा २.१.८६ पात्रेण पूर्वतश्चैव । पातकेषु च सर्वत्र वृ हा ६.२२० पात्रे तु पूरयेत्पश्चाद् __ आंउ ७.७ पात्रे तु मृण्मये यो पातयित्वा खनित्वैनं लोहि ६९४ पात्रे निर्णेजनञ्चैव पातालसप्तकं चक्रे लोकानां विष्णु १.१५ पात्रे पवित्रं संस्थाप्य पातित्येन मृते कुर्य्यात् शाता ६.४३ पात्रेभ्योऽपि तथा ग्राह्य पाति त्राति च दातारं व १.३०.७ पात्रैराराराधितंछत्रं पात्राञ्च ब्रह्मकूर्चस्य बृ.गौ. २०.४० पाद उदकं पादघृतम् । पात्रद्वयं कृतं तोयं आश्व २३.३६ पादकेशांशककरालु पात्रद्वयमतोध्यार्थ वृ परा ७.१७८ पादद्वयं मुखं योऽन्यां पात्रनिर्णेजनं वारि व्यास ३.३३ पादद्वयं शिरश्चाऽऽस्यं ४३५ ब्र.या. ११.४ शाण्डि ४.१०९ भार १५.३१ वृ परा १०.२९१ या ३.२ ४९ वृ परा १०.२९५ ल हा ६.१३ भार १८.१२० आश्व २.५७ आश्व १.१६६ आश्व २३.५५ व्या ३३६ मनु ७.८६ वृ.गौ. ६.१७६ या १.१८३ वृ हा ४.७८ ब्र.या. ८.२५१ प्रजा ११० बृ.या. ७.११३ व २.७.४६ कण्व ५९१ ब्र.या, ८.८८ वृ हा०६.२३६ ब्र.या. १२.३९ ब्र.या. ८.१९७ व २.६.९३ __ औ ५.६१ ब्र.या. २.१४६ भार १५.२० आंउ ८.१४ भार १५.१ ४१ वृ.गौ. ६.५३ या २.२२० वृ परा १०.४४ आश्व १.३३ पातकेषु शतं पर्षत Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ पादद्वये चतुः संख्या पादधावनसम्मान पादपं पल्लवाकीर्ण पादं पादं क्षिपेन्मूर्जा पादप्रक्षालनं कुर्याच् पादप्रक्षालनं कुर्याद् पादप्रक्षालनं पश्चात् पादप्रक्षालनं व्याविष्टरं पादप्रक्षालनं श्राद्धे वरं पादप्रक्षालनादूवं पादप्रक्षालनार्थाय पादप्रक्षालनार्थाय प्रदेय पादप्रक्षालनोच्छेषणेन पादप्रभृतिपादान्तं पादप्रसारणं वार्ता पादं तु शूदहत्यायां पादमुत्पन्नमात्रे तु पादमूले शिखायांच पादमेकं चरेद्रोधे पादमेकं चरेद्रोधे द्वौ पादमेकोवकनानुपत्रा पादयोरधरां प्राची पादयोः सत्यपाणौ च पादशौचक्रिया कार्या पादशौचं तथाभ्यं पादशौचन्तु योदयात्तथा पादशौचेन पितरः पादांगुल्यो शतार्द्धञ्च पादांगुष्ठयुगे त्वेक पादांगुष्ठादिमूर्द्धान्तं पादादौ प्रणवं चोक्त्वा पादादौ प्रणवं चोकत्वा पादान्ते प्रक्षिपेद्वापि पादान्ते मार्जनं कुर्याद् पादाभ्यंगं तथा स्नानं स्मृति सन्दर्भ विश्वा १.५४ पादाभ्यङ्गोऽन्नपानैः वृ.गौ. ६.५६ व्यास ३.३८ पादाध पादमध वा बृ.या. ४.५३ वृ.गौ. ७.३७ पादा) पादमात्रं च विश्वा ३.६१ विश्वा ४.१ पादावुपस्पृश्य जहुयादिदं व २.७.९४ व २.६.१९६ पादुकादि च पालाशं व परा ६.२६६ आश्व १.१४६ पादुकासनमारूढोगेहात अंगिरस ६२ कण्व ८४ पादुकास्थो न भुंजीत पराशर ६.६४ शाण्डि २.७९ पादुके चापि ग्रहणीयात् ल हा ६.८ आंपू ७८० पादुकोपानहौच्छत्रं __ संवर्त ५७ व्या २१० पादेऽङ्गरोमवपनं लिखित ८२ व्या ८१ पादेऽङ्गरोमवपनं द्विपादे पराशर ९.१४ आंपू १०८१ पादे चैवास्य रोमाणि लगुयम ५३ बौधा १.५.१२ पादेन पाणिना वापि बृ.या. ७.३६ व्या ८२ पादेनं क्षत्रियस्योक्तं देवल २८ भार ८.३ पादे वस्त्रद्वयं दद्याद् दा १०७ शंख १७.९ पादे वस्त्रयुगञ्चैव पराशर ९.१५ लघुयम ४३ पादोदकं पादघृतं व्यास ४.८ ब्र.या. २.३४ पादौऽधर्मस्य कर्तारं पादः नारद १.७४ आप १.१६ पादो धर्मस्य कर्तारं बौधा १.१०.३० आंउ १०.४ पादौधर्मस्य कर्तारं पादः मनु ८.१८ व.२.६.४४० पादौ प्रक्षाल्य गण्डूष कण्व ७४ कात्या २१.१० पादौ भूमौ त्रिवारं विश्वा ४.१९ भार ४.२८ पादौ शिरस्तथा हस्तौ शाण्डि २.७४ . आंउ ११.३ पाद्यं अयं तथा दत्त्वा आश्व १५.८ ब्र.या. १२.३२ पाद्यं सुखोपविष्टञ्च ब्र.या. ८.१८९ संवर्त ८६ पाद्यार्थ्यगन्धपुष्पाद्यैर व २.६.३ ४३ ल हा ४.५८ पाद्यार्थ्याचमनं दत्त्वा वृ हा ४.८० पराशर ५.१८ पाद्यार्थ्याचमनस्नान वृ हा ४.७० वृ परा ४.२७ पान आचमने चैव लिखित ४३ वृ परा ४.२६ पानत्रयं यथा पूर्व भार ४.३६ विश्वा ४.४ पानं आचमनं कुर्यात् लिखित ४२ विश्वा ४.१३ पानं दुर्जनसंसर्गः मनु ९.१३ वृ परा २.५८ पानमक्षाः स्त्रियश्चैव मनु.७.५० विश्वा ४.२० पानमार्जनसानादिस्पर्शा भार ४.१७ वृ परा १०.२३८ पानमैथुनसम्पर्के आप ४.७ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४३७ पानाशनां च बौद्धाया ब्र.या. १.२० पारभृतारकाज्योतिरा भार ६.८ पानीयपाने कुर्वीत आंउ ८.२० पारं गतस्तु तत्त्वानां बृह ११.११ पानीयं न पिबेद्योगी शाण्डि ४.१२० पारमेश्वरतुल्यैकद्वारा नो चेत्तु कपिल ४४२ पानीयं परमं लोके वृ.गौ. ६.८ पारमेश्वरसायुज्यं लभन्ते आपू ९१२ पानीयं ये प्रयच्छन्ति वृ.गौ. ५.७७ पारम्पर्यागतो येषां व १.६.३९ पानीयमप्यत्र तिलै वाधू १९८ पारवित्तं पारदार्य वृ हा ६.१९७ पानीयस्य गणा दिव्या _वृ.गौ. ६.९ पारशव इत्येके बौधा १.९.४ पानीये मज्जयेस्तु नारद १९.२३ पारावत कपोतघ्न वृ परा ८.१६७ पाने भोजनकाले च वृ हा ४.४१ पराशरमतं पुण्यं पवित्रं पराशर १.३६ पापक्षयक्रियापूर्ति शाण्डि ४.९२ पराशरमतं पुण्यं वृ परा २.१ पापपूरितदेहानां धर्म वाधू १९२ पाराशरैश्चतुर्मात्रस्तथा बृ.या. २.१३० पापरूपापोरूपाप जना भार ८.९ पारिभाषिक एव स्यात् कात्या २६.७ पापा नवविधाः प्रोक्ताः नारा १.१० पारिव्रज्यं गृहीत्वा च । दक्ष ९.३४ पापानांचैव संसर्गः अत्रिस १६७ पारुष्यदोषधुतयोर्युगपत् नारद १६.९ पापानेवाङ्कयित्वाऽस्य वृ हा ४.२०२ पारुष्यमनृतं चैव मनु १२.६ पापान्यनेकान्युच्यन्ते नारा १.४१ पारुष्ये सति संरम्भादुत्पन्ने नारद १६.८ पापह्वयः कुशब्द भार १८.४ पार्जन्यंअष्टमं तत्त्वं वृ परा ४.२० पापिष्ठं दुर्भगामन्त्य कात्या १९.१० पार्थिवं शतमेकं च विश्वा ६.१० पापिष्ठमति शुद्धेन कात्या १६.१९ पार्वणं च क्षयाहे स्याद् प्रजा १८४ पापिष्ठा वादवर्षेण मोह शाण्डि ४.२३८ पार्वणं तद्विधानेन आंपू ११२ पापोवा यदि चाण्डालो पराशर १.५२ पार्वणं तेन कार्यस्यात् वृ परा ७.४६ पायसं शूदतो ग्राह्य प्रजा १३४ पार्वणानि मयोक्तानि प्रजा १९४ पायसं सक्तवो धानाः प्रजा १३५ पार्वणेन विधानेन औ ७.२० पायसं सगुडं साज्यं वृ हा ६.१३६ पावणं कुरुते यो वै ब्र.या. ३.१९ पायसान्नं शर्करानं व हा ५.५३८ पार्श्वकछूतदूतार्त नारद २.४३ पायसापूपहद्यान्नपान व २.६.३५४ पार्श्वयोरर्द्धधरणी वृ हा ४.८६ पायसेन गवाज्येन वृ हा ५.१२७ पार्श्वयोश्च श्रियं वृ हा ७.१६१ पायसेनाथ पुष्पाणि वृ हा ७.१८८ पार्श्वस्थितजनै श्रोतुं भार ६.२१ पायसेनार्चयन्विप्रान् बृ.गौ. १७.४६ पार्वे चांगुलमात्रन्तु वृ हा २.७२ पायसेनैव होतव्यमाज्येन व २.३.११ पाणिग्राहं च संप्रेक्ष्य मनु ७.२०७ पारगः सर्वविद्यानां ब्र.या. ४.७ पार्णिग्रीवान्वितं यत्त भार १५.३२ . पारणं च त्रयोदश्यां हन्ति ब्र.या. ९.१५ पालदोषविनाशे च या २.१६८ पारित्रिकं तु यत्किंचिद् वृ परा १२.११३ पालनीया गोपनीया रक्षणी कपिल ३३५ पारदोषेण वेदोऽपि ब्र.या. ८.७० पालने विक्रये चैव आंगिरस १३ पारपाकरुचिर्न स्याद या १.११२ पालने विक्रये चैव आप ६.२ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R ४३८ स्मृति सन्दर्भ पालयन् पश्चतो वृ परा ८.१५१ पाषण्डनैगम श्रेणी नारद ११.२ पालयेदेव धर्मेण पश्चात् आपू ३५६ पाषण्डनैगमादीनां स्तिथि नारद ११.१ पालाक्यवर्ण श्रीपर्ण वृ हा ५.२५० पाषाण्डः पतितो वाऽपि वृ हा ५.२३४ पालाशखादिगश्वत्थ आश्व २.८० पाषण्डपतिद्येषु न पतन्ति शाण्डि १.१५ पालाशदण्डमादाय ब्रह्मचारी बृ.गौ. १६.५ पाषण्डमाश्रितानां च मनु ५.९० पालाशबिल्वपत्राणि व १.२७.१२ पाषण्डमाश्रिताः स्तेना या ३.६ पालाशबिल्वौ विप्रस्य भार १५.१२३ । पाषण्डाः पतिताः पापाः वृ हा ४.१५२ पालाशं आसनं पादुके व १.१२.३२ पाषण्डिनं विकर्मस्थं वृ हा ६.३४६ पालाशं चैवोपचारेण व २.३.७९ पाषण्डिनो विकर्मस्थान् - मनु ४.३० पालाशमासनं पादुके बौधा २.३.३० पाषाणां शोधनं कुर्यात् व २.६.८७ पालाशे मध्यमे पत्रे ब्र.या. २.१६० पाषाणे नैव दण्डेन पराशर ९.१७ पालाशे मध्यमे पर्णे __ लघुयम ७४ पाषाणैःलगुडैः वापि आप १.१९ पालाशेवटतालानामश्व शाण्डि ४.११३ पाषाणैर्ल गुडैर्दण्डैस्तथा संवर्त १४० पालाशो बैल्वोवा व १.११.४५ पाषाण्डैः उल्मकैः दण्डैः वृ.गौ. ५.४८ पालाशो ब्राह्मणः प्रोक्तो वृ परा ११.२१६ पाहि त्रयोदशाख्य कण्व १४१ पालिकाः सद्दिगीशांश्च वृ हा ७.२ ४६ पाहित्रयोदशानां च होमानां नारा ३.११ पालितां वर्धयेन्नित्यं वृ हा ४.२२१ पिंगला कपिलां कृष्णां वृ परा ६.३१ पालिताश्च प्रजाः सर्वा वृ.गौ. १०.३७ पिंगवर्मकृताकान्ता वृ.गौ. १.२४ पावकप्रतिमं साक्षान् । आंपू १ पिङ्ग्ल्याद्यभिसंगृह्य कात्या १७.१८ पावकः सर्वमेध्यं च अत्रिस १४० पिण्डजं चरुहोमं च व्या ३३१ पावकस्य सन्त्सूर्य भार ६.३२ पिण्डजश्च परश्चैषां वृ हा ५.२५७ पावकाइव दीप्यन्ते ___ अ १३१ पिंडदानं च यजुषां व्या १७३ पावनत्वान् पवित्रत्वान् वृ.गौ. १.२६ पिण्डदानं च वै श्राद्धे आश्व २३.८६ पावनं परमं प्रोक्तं वमनं आंपू ९४३ पिण्डदानात्परं यस्य आंपू ९६४ पावनं चरते धर्म वृहस्पति ८० पिण्ड निर्वपणं केचित् मनु ३.२६१ पावनं सर्वपापानां बृ.गौ. १६.४६ पिण्डनिर्बपनं पूर्णमर्च ब्र.या. ३.५७ पावानानि हरेरन्य कण्व ४७८ पिण्डप्रदाः क्रमेण स्युः वृ परा ७.३९४ पावनी नर्मदा चैव आंपू ९१९ पिण्डप्रदाएहीति पुनः कपिल २३३ पावमानानुपाकेन भार ७.८१ पिण्डप्रदानं निर्वर्त्य लोहि ३७७ पावमानानुवाकेनन्न (स्न) भार ११.९२ पिण्डं तं प्राशयेत्पत्नी आश्व २३.८३ पावमानैः विष्णुसूक्तैः वृ हा ५.४३५ पिण्डं श्राद्धेषु कर्त्तव्यं ब्र.या. ५.९ पावमान्यैश्च तन्मासं वृ हा ५.३३३ पिण्डमासनदर्भाग्रे दक्षिणे ब्र.या, ४.११५ पावमानी तथा कौत्सं __ संवर्त २२४ पिंडवर्जमसंक्रान्ते व परा ७.१०० पावयेदश्मिभिः सर्व बृह ९.८८ पिण्ड श्राद्धनं कुर्वीत ब्र.या. ५.११ पाशको मत्स्यघाती च पराशर २.१० पिण्डस्थे पादमेकन्तु पराशर ९.१३ llillliliil Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी पिंडास्तुगोऽजविप्रेम्यो पिण्डांस्तु भोज्यं पिण्डादेभ्यो ब्राह्मणेभ्य पिंडानां मध्यमं पिंडं पिण्डान्वाहार्यकं श्राद्ध पिण्डान्वाहयकं श्राद्ध पिण्डायत्र न पूज्यन्ते पिंडार्थ ये स्तृता दर्भाः पिण्डीभूता भवन्त्यत्र पिण्डे कृतास्तु ये दर्मा पिण्डे दद्यात्तु पूर्वेण पिण्डेम्यरत्वाल्पिकां पिण्याकंवा कणान्नं पिण्याकाचामतक्राम्बु पिण्याकशाकतक पितरं कर वकत्राश्च पितरं भ्रातरं पत्नी पितरं मातरं च एव पितरं मातरं पुत्रान् पितरः शुन्धध्वं कुर्यात् पितरश्च पितामहास्तथा पितरश्च समायान्ति पितरस्तत्र मोदन्ते पितरस्तव तुष्टा वै पितरस्तस्य कुप्यन्ति पितरस्तस्य नश्यंति पितरस्तस्य यान्त्येव पितरस्त्ववलम्बन्ते पितरि प्रोषिते प्रेते पितारि प्रोषिते प्रेते पितरैरपि वा शुद्ध पितरोपासनं कृत्वा पितरो वृषमा ज्ञेया पितरौ चेन्मृती पितरौ भातश्चैव ४३९ या २.२५७ पितर्यपि मृते नैषा कात्या २४.६ औ ५.७४ पितर्युपरते त्रिरात्रम् बौधा १.११.३२ औ १.५१ पितस्थिस्थूलयित्युक्तः भार २.४९ वृ परा ७.२८१ पिताऽऽचार्यः सुल्माता मनु ८.३३५ कात्या १६.१ पिता जातस्य पुत्रस्य वृपरा ६.१८५ औ ३.११० पिता दद्यात् स्वयं कन्यां नारद १३.२० ब्र.या. ६.२५ पिता पितामहश्चैव औ ५.८८ कात्या २.४ पितापिताम हश्चैव तथैव व १.११.३६ __ औसं ११ पितापितामहश्चैव ब्र.या. ४.३१ लिखित ४६ पितापितामतश्चैव औ ६.५३ ब्र.या. ४.१२३ पिता पितामहो भ्राता वृ परा ६.२९ मनु ३.२१९ पिता पितामहो भ्राता या १.६३ ब्र.या. १२.४२ पिता पितामहो यस्य औ ९.१०४ या ३.३२१ पितापितामहो यस्य अत्रिस १०७ देवल ८७ पितापुत्रविरोधे तु या २.२४२ वृ परा ७.२१२ पिता पुत्रस्य जातस्य अत्रिस ५३ आंपू १४० पितापुत्रस्वसृभ्रातृ या २.२४० वृ.गौ. ३.१५ पिता पुत्रेण जातेन वृ परा ८.४८ शाण्डि ४.१०२ पितामहः पितु पश्चात् १६.१६ ब्र.या. ८.११६ पितामहः महाप्राज्ञ विष्णु म ५ प्रजा १८१ पितामहस्तदन्यो वा वृ परा ७.५१ व २.६.३९३ पितामहस्य गोत्रेणं संयुक्तो कपिल ३९८ वाधू २१९ पितामहस्य तत्पश्चाद् कण्व ७२३ प्रजा ११ पितामहाख्याः स्वर्देवाः भार १६.६३ वृ.गौ. ६.१०४ पितामहा च वर्तते व्या ११६ वृहस्पति २५ पितामहादिपिण्डेषु तं आंपू ९९२ वृ हा ८.३२१ पितामहादिभिर्दत्त ज्ञातिदत्त कपिल ७८५ नारद २.२०० पितामहादिभि सम्यक् आंपू १००१ या २.५१ पितामहाः पितव्याश्च कपिल ५०९ वृहा ४.२ ४१ पितामहाश्च जीवंति व्या ६१ भार १५.१९ पितामहे ध्रियति च कात्या १६.१३ व २.६.३२० पितामहेन दैवेन कण्व ४४५ बृ.गौ. १३.२२ पितामहे वा तच्छ्राद्धं मनु ३.२२२ ब्र.या. १३.७ पितामह्माऽपि तस्मिन् लिखित २४ वृ हा ४.२५३ पितामहापि स्वेनैव ब्र.या. ७.११ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० पितामह्या सहैतस्याः पिता यस्य निवृत्तः पितासस्य मृतश्चेत् पिता रक्षिति कौमारे पिता रक्षति कौमारे पितारक्षति कौमारे पितारक्षाति कौमारे पिता व यदि वा भ्राता पिता वा यदि वा माता पिता वैगार्हपत्योऽग्नि पिता स्वांके समादाय पितुः कर्म कृतं तेन पितुः पिण्डप्रदानेन पितुः पितुः पितुश्चैव पितुः पितृश्वसुः पुत्रा पितुः पुत्रेण कर्तव्या पितुः प्रमादात्तु यदाह पितु मुख्ये न कर्त्तव्यं पितुरब्दमशौचस्यात् पितुरित्यपरे शुक्र पितुरुत्तरकलशे पितुरुवं तु ये सप्त पितुरेकैव दातव्यं पितुरेव नियोगाद्यत् पितुरेव सपिण्डत्वे पितुर्गुरोनरेन्द्रस्य भार्या पितु हे तु या कन्या पितुर्दशगुणं माता पितुर्दशाहमध्ये तु पितुर्भगिन्यां मातुश्च पितुर्युपरते पुत्रा ऋणं पितुर्युपरते पुत्रा पितुर्वाक्यार्थकारी च पितुर्वियोगात्परतः पितुः शतगुणं दानं स्मृति सन्दर्भ दा ३५ पितुः श्राद्धसमत्वेन आंपू १०३० मनु ३.२२१ पितुः श्राद्धात्परं श्राद्ध आंपू २७५ आश्व १७.२ पितुस्तु पाकं एकोद्दिष्ट ब्र.या. ४.३५ नारद १४.३१ पितुस्तु भ्रंशमात्रेण आंपू १०.६२ बौधा २.२.५२ पितुः स्वसार मातुश्च या ३.२३२ मनु ९.३ पितॄश्च तर्पयेन्नित्यं वृ परा १२.९९ व १.५.४ पितॄस्तु दक्षिणास्यस्तु वाधू ५८ का ९ पितृक्षयाहे संप्राप्ते प्रजा १७६ वृ ता ६.७९ पितृक्षये अमावस्या व्या १५७ मनु २.२३१ पितृगीता वर्णन विष्णु ८० ब्र.या. ८.३३२ पितृणमासनं दद्याद्वाम व्या २५९ आंपू ४४५ पितृणांअर्ध्यपात्राणि वृ परा ७.१३७ आंपू १११ पितृणांच चतुर्थस्तु वृ परा ६.८४ कात्या १६.१४ पितृणां तृप्तयेऽतीव द्विजो कपिल १७२ ब्र.या. ८.१ ४८ पितृणां न भवेद्वस्तु कपिल २२२ वृ परा ७.४९ पितृणां नरकस्थानां प्रजा २९ व १.१७.६१ पितृणां पनसः श्रीमान् गंपू ५६८ ब्र.या. ६.१० पितृणां पितृतीर्थेन दृ परा २.२२० ब्र.या. '७.५७ पितृणां पुरतः सिचंज्जलं आश्व २३.१७ बौधा १.५.१२७ पितणां मासिकं श्राद्ध मनु ३.१२३ कात्या १७.२० पितृणां वा एषा दिक् व १.४.१४ वृ परा १०.८५ पितृणामपराणे च दक्ष २.२३ ब्र.या. ३.४२ पितृणामपि सर्वेषां आंपू ४८३ नारद २.९ पितृतत्पितृभ्रातृषु । व्यास २.६ आंपू ९९८ पितृतः सप्तमीमेके वृ परा ६.३८ बौधा २.२.७६ पितृ तीर्थेन संतl ब्र .या. २.१०१ बृ.या. ३.१८ पितृत्वं जनितर्येव आंपू १२४ बृ.गौ. १४.६१ पितृत्वं मातरि गतमं आंपू ११७ व २.६.४५० पितृत्वं मातरि गतमे आंपू ४२४ मनु २.१३३ पितृत्वमपि दत्तेन आंपू ४२२ नारद २.२ पितृत्वमपि मातृत्वं आंपू ११९ नारद १४.२ पितृत्वमपि मातृत्वं आपू १२० प्रजा १ पितृत्वमपि मातृत्व आंपू. ४२३ आंपू १०५ पितृदत्तातुयाकन्या ब्र.या. ८.१६८ व्यास ४.३० पितृदारान् समारुह्म पराशर १०.१३ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी पितृदाराः समारुह्य संवर्त १५९ पितृभ्यश्च प्रथमतः पितृदेवता तिथि पूजायां व १.४.५ पितृभ्य स्थानमसीति पितृ-देव-मनुष्याणां वृ परा ५.१५९ पितृभ्यां यस्ययद्दत्त पितृदेवमनुष्याणां दत्त २.४१ पितृभ्यां यस्समुत्सृष्टः पितृदेवमनुष्याणां दक्ष ३.९ पितृभ्यो बलिशेष पितृदेवमनुष्याणां ब्र.या. १२.३४ पितृभ्रात्रादिदुष्टौधान् पितृदेवमनुष्याणां मनु १२.९४ पितृमन्यत्प्रकर्तव्यं पितृदेवसखिदोहं कुर्यात् कपिल ९६६ पितृ मातृ गुरु भ्रातृ पितृदेवग्निकार्येषु बौधा १.४.२४ पितृमातृगुरुर्विप्र पितृद्रव्या विरोधेन या २.१२० पितमातृपतिभ्रातृ पितृ द्वार तथा प्रेतं ब्र.या.७.२१ पितृमातृपरो नित्यं पितृद्विट् पतितः पण्डो नारद १४.२० पितृमातृवचः कर्ता गुरु पितृनभ्यर्चयेद्यस्तु शंख लि १० पितृमातृवधाघघ्नं पितृनुद्दिस्य यत्कर्म वृ.गौ. ८.११ पितृ-मातृ-वधोद्भूतं पतृ-मात-वोद्भूत पितृन् ध्यायन् प्रसिञ्चैवै बृ.या. ७.८४ पितृमातृसुतभ्रातृ पितृन् पितामहाश्चैव वृ.गौ. ८.६१ पितृमातृसुता भ्रातृ पितृन्ब्राणमज्जाक्ष भार १५.६१ पितृमात्रेण संज्ञातजननो पितृन्यज्ञे तथान्येषु ब्र.या.६.१९ पितृमानवदेवानां पितृन्वा एष विक्रीणीते बौधा २.१.७७ पितृमानेव भुंजीयात् पितृपक्षे चतुर्दश्यां ब्र.या. ५.२१ पितृयज्ञचरोरन्नं पितृपाकं समुदधृत्य व्या २९८ पितृयज्ञं तु निर्वर्त्य पितृपाणिष्वपो दद्यात् आश्व २३.३९ पितृयज्ञ वर्जयित्वा पितृपात्र पितृणां दा ३९ पितृयज्ञकृत्वा पितप्रसादः श्राद्धेन न | ___काव्य ४३७ पितृयज्ञविधानन्तु त पितृप्रिये कर्मणि तु यजमान कपिल १९० पितृयज्ञविधानेन श्राद्ध पितृपिण्डार्चनं यैस्तु आंपू ८६० पितृयाणोऽजवीथ्याश्च पितृपुत्रकलत्राद्या दासी ण्डि ४.९७ पितृरूपाश्च असुरा पितृपुत्राविवादश्च नारद १८.३ पितृलोकं चन्द्रमसं पितृबन्धुगुरुक्तिश्च कपिल ४१४ पितलोकं पूजयित्वा पितृदोषैकजननौ न लोहि १८६ पितृवंशे मृता ये च पितृभि सममेतेन औ ५.४० पितृवत्तान् द्विजान् पितृभिर्धातृभिश्चैताः मनु ३.५५ पितृवत्पूजनंकृत्वा पितृभिश्शिक्षिता सम्यक कण्व ४.३ पितृवेश्मनि या कन्या पितृभ्य इति दत्तेष कात्या २.७ पितृवेश्मनि कन्या तु पितृम्य इदमित्युक्त्वा कात्या १३.८ पितृव्यदारगमने ४४१ आंपू ८९० आश्व २३.३७ या २.१२६ लोहि १९७ वृ परा ४.१७० कपिल ५८१ व्या २५६ व २.६.३१५ ब्र.या. ८.१ ४३ या २.१४६ ब्र.या. ४.९ प्रजा ४० भार ६.७८ वृ परा ४.८६ या १.८६ वृ हा ४.२४८ लोहि १७३ प्रजा १३३ आश्व २४.२१ आश्व २३.४४ मनु ३.१२२ व २.६.३०८ आश्व २४.१ व २.६.३६६ कपिल १८१ या ३.१८४ ब्र.या. ४.११२ या ३.१९६ बृ.गौ. १७.२३ वृ परा २.२१२ ब्र.या. ४.१०५ ब्र.या. ४.२७ शंख १६.८ मनु ९.१७२ संवर्त १५८ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ पितृव्यपत्नीभगिनी तादृश्यो कपिल ६०६ आंपू ४२५ आंपू ११८ वृ परा ८.२४९ पितृव्यपत्न्यादीनां पितृव्यपत्न्यादीनां पितृव्य-भ्रातृजायां च पितृव्यभ्रातृजाय पितृव्यमातृभ्रातृभायी च पितृव्यं पुत्रः सापत्न्य पितृव्यमातुलादीनामपि पितृव्यापुत्राः सापत्ना पितृव्येणाविभक्तेन भ्रात्रा पितृशेषं तथोच्छिष्टं पितृश्चमनसाध्यात्वा पितुश्चेत् सूतकं पूर्ण तथा पितृश्राद्धेषु यो दद्याद् पितृष्वस्रभिगमनाद पितृसंयुक्तानि चेत्येकेषां पितृस्नुषा सा स्वस्नुषा पितृस्वसा च भगिनी पितृस्थानस्य विप्रस्य पितृहा चेतानाहीनो पितेव पालयेत्पुत्रान् पितेव पालयेद् भृत्यान् पितैव वा स्वयं पुत्रान् पित्तात्तु दर्शनं पक्ति पित्रर्थं अर्घ्य पात्राणि पित्रात्यन्तैककलहे पित्रादयस्त्रयश्चाऽऽदौ पित्रादयस्त्रयो यस्य वृ परा ७.३३९ पित्रादीनां त्रयाणां च विप्र कपिल ७३ पित्रादीनां त्रयाणाश्च क्रमोक्ते कपिल ४०३ पित्रादीनां सगोत्रा ये वृ प्रा ७.७६ शाता ६.४ पित्राद्याः पिण्डभाजः पित्रापुत्रेणयन्मुखैराप्तैः पित्राप्रमात्रादाध कपिल ६५२ पित्राभर्त्रा सुतैर्वाऽपि ब्र.या. ८.२२३ मनु ५.१४९ प्रजा ६० बृ.या. ३.४ पराशर ४.२३ पित्रैव तु विभक्ता ये पित्रोः क्षयाहे संप्राप्ते पित्रोः प्रत्याद्भि पित्रोर्दशाहमध्ये तु कण्व ६८० दा १५९ नारद २.३ पित्रोर्मृताहः कथितो व्या २९७ पित्रोर्मृताहं सततमपि ब्र. या. ४.१२८ कपिल ४०८ वृ परा ७.८८ शांता ५.२९ बौधा २.५.२१२ कपिल १९९ ब्र. या. ८.१४६ आंपू ९६७ शाता २.२० मनु ९.१०८ वृ हा ४.२१५ नारद १४.४ पित्रा यत्र सगोत्रत्वं पित्रार्जितेन वा कुर्यात् पित्राविवदमानश्च पित्रे न दद्याच्छुल्कं पित्रे पितामहाय या ३.७७ वृ परा ७.१९२ आंपू १०४७ आश्व १.९७ स्मृति सन्दर्भ वृ परा ६.२३ व २.६.१२४ मनु ३.१५९ मनु ९.९३ शंख १३.१० नारद १४.१५ व्या २४७ कपिल १७८ व २.६.४५१ आंपू ६०८ आंपू २७७ लोहि ५२८ व २.६.४४७ या ३.१९ औ ५.७९ १.११.२७ पित्रोः श्वसुरयोर्भर्तुरनुज्ञा पित्रोस्तु दशारात्रं स्यात् पित्रोस्तु सूतकं मातु पित्रोः स्वदितमित्येवं पित्र्य प्रतिग्रह भोजनयोश्चबौधा पित्र्यं वा भजते शीलं पित्र्यमात्रा द्रवण पित्र्यर्थ देवतार्थं च पित्र्यर्थे पायसं कुर्यान्न पित्र्य यः पंक्तिमूर्द्धन्य पित्र्य रात्र्यहनो मासः पित्र्य स्वदितमित्येवं पिप्पलस्य प्रबालानि पिप्पलीक्रमुकं चैव पिप्पली मरिचं चैव पिबत्यनेकतरसा पितृ पिबन्ति देहनि श्रावं पिबन्ति देहनिः श्रावं पिबन्ति सर्वसत्वानि पिबन्निवमहाह्लादमध्य पिनेत्पात्रात्तद्विधो पिबेद्भोजनपात्रेण पिवत पतितं तोयं पिवन्ति कपिलां यावताव मनु १०.५९ कात्या २.१३ व २.६.२९० ब्र. या. ४.१५७ कात्या १७.१५ मनु १.६६ मनु ३.२५४ वृ हा ४.५४ औ ३.१४५ शंख १४.२० आंसू ५६३ ब्र. या. २.१०५ बृ.या. ७.८९ वृ परा १०.३७१ शाण्डि ४.२५ व २.६.२१३ शाण्डि ४.१४७ पराशर ११.३७ वृ.गौ. ९.१२ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४३ श्लोकानुक्रमणी पिवन्तीषु पिवेत्तोयं पराशर ८.४१ पीत्वावशिष्टं चषके शाण्डि ४.१४८ पिवेत्तु पञ्चगव्यं यः बृ.गौ. २०.३८ पीत्वा सभक्तिजननं भार १०.२ पिशाचत्वं स्थिरन्तस्य ब्र.या. ७.९ पीयूषश्वेतलसुन पराशर ११.१० पिशाचांश्च सुपर्णा ब्र.या, २.९५ पुंश्चीलीवानरखरैः या ३.२७७ पिशाचोरगगन्धर्व यक्ष विष्णु १.१७ पुंसश्चेद्वनितादाने ऽधिकारो कपिल ६४८ पिशुनः पौतिनासिक्यं मनु ११.५० पुंसां के ते शत्रव विष्णु ३३ पिष्टं जलेन संयोज्य लोहि ३६८ पुंसा ब्राह्मणादीनां बौधा २.२.५८ पिशुनानृतिनोश्चान्नं मनु ४.२१४ पुंसा शतावरार्ध्य व १.१९.१४ पिशुनानृतिनोश्चैव या १.१६५ पुंसाश्चात्मनि वेषेण औ १.४१ पिशुनो नरस्यान्ते जायते । शाता ३.१० पुंसो यदि गृहं गच्छेत पराशर १०.३६ पिष्टमालोड्यते येन व्या ३०९ पुक्कसीगमनं कृत्वा संवर्त १५० पीठं तन्मध्यमेस्थाप्य भार ११.१५ पुच्छे शिरसि यः शुक्लः वृ परा ६.१९७ पीठस्यांतः पूर्वदले भार ११.४२ पुजितं ह्यशनं नित्वं मनु २.५५ पीठे निवेश्य देवेशं वृ हा ६.३९ पुटीभूतमधोवक्त्रं वृ परा १२.२८८ पीडनानि च सर्वाणि मनु ९.२९९ पुटे पणमय वाऽपि वृ हा ८.९६ पीडयेदि तन्मोहाद्देवाः वृ.गौ. ८.६६ पुण्डरीकाक्षदशकं जप कण्व १०९ पीडयेधदि तान् मोहान्नरकं बृ.गौ. १३.३२ पुण्डरीकास्तु विज्ञेया ब्र.या. २.४२ पीडा करोति चामीषा वृ परा १२.२३ पुण्ड्रकाश्चोड्दविडा मनु १०.४४ पीडितस्यं विशेषेण आंपू २९४ पुण्ड्रसंस्कार इत्येवं वृ हा २९१ पीतक्षीरा ये हि चास्या वृ.गौ. १०.३५ पुण्य कालनिमित्तं आश्व १.१०९ पीतच्छत्र विशः कृष्ण भार १५.१३३ पुण्यकाले त्वसंभाष्यः आंपू ७६५ पीतपुष्पं तथा पत्री ब्र.या. १०.१४४ पुण्यकृतिं पुण्यशीलं भार १.२ पीतवास विशालाक्षो वृ हा २.९० पुण्यक्षेत्रेषु नियतं आंपू २१० पीतवाससमक्षोभ्यं सर्व विष्णु १.४२ पुण्यक्षेत्रे समुद्भूतां शाण्डि २.४१ पीतशेषंजलं पीत्वा वृ परा ८.१८८ पुण्यतीर्थाभिगनात् औ ८.३२ पीतानि नागपर्णानि वृ हा ५.४३७ पुण्यदान उभाभ्यां अ ६७ पीताम्बरधरं देवं वृ हा ४.१० पुण्यमेवादधीताग्नि कात्या ६.१२ पीताम्बरधरं देवं वृ हा ५.१०८ पुण्यंतीर्थेथवा विप्रो भार ७.११७ पीताम्बरप्रकटिता रत्न ___ भार १२.५ पुण्यं श्राद्धविशेषं वै आंपू ७०६ पीताम्बरं भूषणायं वृ हा ३.३१० पुण्य लांगुल कल्याण वृ परा ५.८५ पीताम्बरं युवानं च वृ हा ५.९६ पुण्यव्रता पुराणोक्ता वृ हा ८.१६१ पीतावशेष पानीय शंख १७.५६ पुण्यस्त्रीणां तथा ज्ञेयं विश्वा २.२१ पीतोच्छिष्टं पादशौचं व्या ५५ पुण्यात् षड्भागमादत्त या १.३३५ पीतो ब्रह्मसुराचार्य वृ परा ११.३३८ पुण्याद्भिरभिमंत्र्याथ व २.६.४६५ पीत्वा मंत्रजलं वृ हा ५.२८५ पुण्याधिकारकल्याण यज्ञ कपिल ५७५ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ स्मृति सन्दर्भ पुण्यान्यन्यानि कुवीत मनु ११.३९ पुत्रवान् पित्रमांश्चैव आश्व १.१५८ पुण्याभिषके यत्प्रोक्तं वृ परा ११.२५६ पुत्रश्च दुहितुः पुत्रः वृ परा ७.५६ पुण्या व्याहृतयश्चेति आंपू १० पुत्रसङ्ग्रहणं सद्यः लोहि २०३ पुण्यास्तु गावो वसुधातले वृ परा ५.५२ पुत्रसग्रहणे जाते द्वतीया लोहि ८६ पुण्याहं वाचयित्वाऽथ वृ हा ६.३९५ पुत्रसंपादनं धीमान् आं पू ३२६ पुण्याहं स्वस्थि वृद्धिं आश्व १५.३४ पुत्रस्यग्रहणं दुष्टं शास्त्र लोहि ५६२ पुण्याहवाचनं कुर्यात् पुत्रस्य भ्रातृपुत्रस्य वृ परा १२.१६५ पुण्येऽह्नि गुर्वनुज्ञातः व्यास १.२४ पुव स्वार्जितमेकाशी आश्व १.१२० पुत्रः कनिष्ठो ज्येष्ठायां मनु ९.१२२ पुत्रस्वकीरसमये कण्व ७३९ पुत्र इत्युच्यते ब्र.या. ७.३० पुत्राणां पितृकृत्येषु पृथिवीते कपिल २०७ पुत्रग्रहणकाले तु आंपू ३६१ पुत्रादयः सपत्नीकाः आश्व १.१०० पुत्रग्रहः प्रकथितो आंपू ४०३ पुत्रान्तरस्ये सद्भावे मूक कपिल ३३३ पुत्रग्राहकुसौभाग्यासंपच्छी कपिल ७०० पुत्रान्देहिधनं देहि ब्र.या. १०.२१ पुत्रघ्न प्रभवेत्सद्यः वीर कपिल७८८ पुत्रान् द्वादश यानाह मनु ९.१५८ पुत्रजन्मनि यज्ञे च पराशर १२.२३ पुत्रापराधे न पिता न नारद १६.२९ पुत्रजन्मादिषु श्राद्ध औ ३.११८ पुत्राभावे तु दुहिता नारद १४.४७ पुत्रत्वं समनुप्राप्तः निर्धनस्य कपिल ७०३ पुत्राभावेसम्पति विभाग विष्णु १७ पुत्रत्वहेतुना सोऽयं लोहि २८७ पुत्रा येऽनन्तरस्त्रीजाः मनु १०.१४ पुत्रत्वेन समश्चेति कपिल ७४० पुत्रार्थं नोद्वहेदन्यां शाण्डि ३.१६० पुत्रदत्ताच्छतुगुणा विना लोहि ३१६ पुत्रान् मृत्यान् कलत्र शाण्डि ३.१५८ पुत्रदा पंचमी कर्तुः वृ परा ७.२९५ पुत्रार्थ सापि काले न लोहि ८४ पुत्रदारं यैः च पाशैः वृ.गौ, ५.२० पुत्रार्थी चेत्तु युग्मासु वृ हा ५.३०१ पुत्रदारदयोऽपि गोस्तर्पणाः व १.३.३५ पुत्रिकायां कृतायां तु मनु ९.१३४ पुत्रपौत्रज्ञातिबन्धुसमान् कपिल ४८२ पुत्रिकायाः सुत श्राद्धं वृ परा ७.५४ पुत्रपौत्रमधस्ताच्च वृ परा १०.६२ पुत्रिणः श्रोत्रियस्यात्र कपिल ६६४ पुत्र पौत्र समायुक्तं ब्र.या. ११.६१ पुत्रिणी त समुत्सृज्य नारद २.१७ पुत्र प्रतिग्रहीष्यन् व १.१५.६ पुत्री च भ्रातरश्चैव वृ हा ४.२५८ पुत्र प्रत्युदितं सद्भिः मनु ९.३१ पुत्रीदानं प्रशस्तं कण्व ६९९ पुत्रप्रदानसमये तत्पित्रो आंपू ३६८ पुत्रीविवाहः परमो कण्व ६८३ पुत्रप्रदानसमये प्रोक्तं आंपू ३७० पुर्तीसाक्षाद्ब्रह्म आंपू ३१८ पुत्र य चेहत्तो लोहि ९२ पुढे जाते पितुः स्नानं संवर्त ४३ पुत्रः प्रेष्यस्तथा शिष्य शाण्डि ३.७४ पुत्रेणं च कृतं कार्य नारद २.२६ पुत्रं वा भ्रातरं वापि अत्रिस ३६१ पुत्रेणं जातमात्रेणं आंपू ३२४ पुत्रयोस्तनयाभावे नष्टयोरपि कपिल ७०८ पुत्रेणं प्राप्यते स्वर्गो वृ परा ६.१८९ पित्रयोः स्वस्य वामूढ़ कण्वं ६८१ पुत्रेण लोकांजयति मनु ९.१३७ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४४५ पुत्रेण लोकाञ्जयति व १.१७.५ पुनर्मोजनमध्वानं व्या १५६ पुत्रेषु दारान्निक्षिप्य शंख ६.२ पुनर्मोजनमध्वानं लिखित ६० पुत्रेषु सत्सु दत्तेन आंपू ४४३ पुनर्भोजनम्मध्याह्न ब्र.या. ४.४३ पुत्रोपनयनं तस्माद् कण्व ६८५ पुनर्लेपनया तेन पराशर ६.४० पुत्रो वा पुत्रिका वापि लोहि ५४९ पुनर्विवाहिता मूढैः आंपू १९३ पुथितस्त्वग्निचिन्नष्टपुत्रो लोहि ५५४ पुनर्विवाहिता सा तु आं पू १९४ पुनःकरणसंप्राप्तौ शिव आंपू ९४५ पुनर्वावाहितेनैवं तद्भार्या आंपू ३९८ पुनः कुर्वस्तथा नापि लोहि १६५ पुनर्विशेषः कोऽप्यस्ति। आंपू १०४५ पुनः नवीकृतं सद्य वृ परा ११.७३ पुनर्व्याहृतित्रयमुच्चार्य विश्वा ६.५५ पुनन्ति इह पृथिव्याम् वृ.गौ. ४.२२ पुवः शुद्धाम्बुनाचम्य ततः विश्वा १.६६ पुनन्ति सकलं लोकं वृहा ३.१५५ पुनश्च पुत्रे संजाते कण्व ७४२ पुनः पाकं च कृत्वा ___ व्या २८१ पुनश्चाऽऽवर्तयेत आश्व २३.७६ पुनः पादत्रयं शीर्ष विश्वा २.४० पुनश्छत्र तत्तन्मन्त्रा कण्व ६४८ पनः पित्र्ये तथैवैत भार १८.७३ पनः संवतमन्त्रेष भार १८.७३ पुनः संवृतमन्त्रेषु वृ परा १०.१०३ पुनः पुत्र न गृहणीयादेकस्यैव कपिल ७९३ पुनः संस्कार करणा वृ परा ८.१०७ पुनः पुनरुदीक्ष्यैव किमासी कपिल ७७७ पुनः संस्कार मर्हन्ति वृ हा ६.२५० पुनः प्रक्षाल्ययचनं व २.५.४१ पुनसत्कुलजो न्यूनकुलाय कपिल ७०४ पुनः प्रक्षाल्य सन्तप्त्वा वृ हा ८.९३ पुनः सम्पद्यते नारी का ११ पुनः प्रत्यागतो वेश्म पराशर १२.६५ पुनः सम्मार्जनं कृत्वा व २.३.१३२ पुनः प्राप्य स्वकं देवल ४६ पुनस्तथैव यजुषां ब्र.या. १.२२ पुनभुर्वामेष विधि नारद १३.५३ पुनस्तदग्निसिध्यर्थमियं कण्व ५४५ पुनरग्नौ च तान्हुत्वा व्या २९२ पुनस्तपस्वी भवति बृह ९.१८१ पुनरन्यानि दानानि पात्र कपिल ४४१ पुनस्तान् परिपूर्णार्था शाता १.२५ पुनरन्ये ह्यश्मकुट्टाः __ कण्व ४४४ पुनस्तामार्त्तवस्नातां व्यास २.५० पुनरागत्य संतिष्ठदाधाय आश्व १४.५ पुनस्तेषु सदा प्रोक्तं कपिल ६३२ पुनराचम्य तत्रैव ब्र.या, १४२ पुनस्त्वकरणे तेषां प्रत्यवायो कपिल ९८९ . पुनरेव पुनर्जाप्यं ब्र.या. २.१३२ पुनाति पंक्ति वंश्यांश्च मनु १.१०५ पुनर्जप्त्वा पुनस्स्नात्वा नारा ९.६ पुना राजाऽभिषेकेण व १.२.५४ पुनर्दाहेन शुष्येत शंखलि १२ पुन्नागकेतकीपद्यै वृ हा ५.३९५ पुनर्द्धात्री पुनर्गर्भ या ३.८२ पुन्नागं वकुलं नागकेशर वृ हा ४.५६ पुनर्न इति भूयश्च आंपू ८५९ पुन्नादवकुलांभोजाः भार १४.८ पुनास ततः कृत्वा ब्र.या. २.१२१ पुन्नामानि यानि विष्णो वृ हा ७.५६ पुनः पुनरेता च आप ९.२९ पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात् मनु ९.१३८ पुनर्विकृता येन कृता बृ.या. ४.४५ पुमांसं दाहयेत्पाप मनु ८.३७२ पुनर्मोजनमध्वानं लघुशंख २९ पुमांस्त्रीक्लीब इत्येवं भार १८.११. Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ स्मृति सन्दर्भ पुमान् पुंसोऽधिके शुक्रे मनु ३.४९ पुराणेष्वितिहासेषु वृ हा .२.४१ पुमान् प्रद्युम्नवत् स वृ परा १०.२०६ पुराणैर्धर्मवचनैः सत्य नारद २.१७९ पुमान् विमुच्यते सद्यः विष्णु म १६ पुराणोक्तेष्वेषु सत्सु आंपू ७ पुमान् संग्रहणे ग्राह्यः या २.२८६ पुरा तु शौनकः श्रीमान् कपिल १ पुरतः पितुरासीनो आश्व १०.२७ पुरा देवो जगत्स्रष्टा लहा १.९ पुरतःस्थे शरावे च आश्व ९.५ पुराभवत्तथा चोत्त आर्ष कपिल ५६६ पुरतो जुहुयादग्नौ वृ हा ७.२३१ पुरीषभूमालिरिणे निवासे भार ३.६ पुरतो देवता तत्र व २.३.८० पुरीषे मैथुने होमे अत्रिस ३२१ पुरतो नात्मनः कर्पू कात्या १७.१ पुरुपाख्यः स विज्ञेयो बृह ९.१३५ पुरतो याचमानं च व २.५.२९ पुरुपारायस्पोषमीभ ब्र.या. २.२७ पुरतो यावमानं च व २.५.२९ पुरुरवाश्चै व । लिखित ५२ पुरतो वासुदेवस्य वृ हा ५.३ ४३ पुरुरवोमाद्रवासौ क्षये ब्र.या. ६.१८ पुरद्वरीन्द्रकील परिघा बौधा २.३.४० पुरुष मण्डलान्तस्थं बृह ९.१०६ पुरन्दरपुरं याति गीयमानो वृ.गौ. ६.८६ पुरुषं च तथा सत्य बृ.या. ३.४ पुरन्दरपुरे तत्र दिव्य वृ.गौ. ७.३४ पुरुषव्रतं च माषं च शंख ११.३ पुरप्रधानसम्भेद नारद १८.२ पुरुषव्रतं न्यासं च व १.२८.१३ पुरं तत् प्रेतनाथस्य वृ.गौ. ५.८४ पुरुषसूक्तजपो वापि आंसू १५६ पुरंप्रवेश्य देवेशं व २.७.५५ पुरुषसूक्तं यजुषां ब्र.या. ४.१०३ पुररेणुकुण्ठित शरीर बौधा २.३.६० पुरुषसूक्तेन जुहुया आपू ९५६ पुरश्चरणमेतद्धि गायतर्या भार ९.८ पुरुषस्य स्त्रियाश्चैव मनु ९.१ पुरश्चर्या च दीक्षायां विश्वा २.५६ पुरुषान्न परं किंचित् बृह ९.१८६ पुरस्तात् त्रिविकल्पं कात्या १९.१६ पुरुषस्य स्त्रियाश्चैव __ मनु ९.१ पुरस्थात्प्रणवोच्चारः भार ६.२५ पुरुषाणां कुलीनानां मनु ८.३२३ पुराकल्पे समुत्पन्ना औ ३.५० पुरुषाणां देवतानां कृतं कपिल १८३ पुराकल्पे समुद्दिष्टा बृ.या. १.४२ पुरुषा संति ते लोभाये नारद १.६० पुराकालात् प्रमीतानां व १.२०.४८ पुरुषोत्तमं वामनेत्रे विश्वा २.१७ पुरा किलं पितृतृप्ति आंपू ५०३ पुरुषो यो जगबीज व २.६.१५२ पुरा तु ब्रह्मसदने कण्व ३६९ पुरुषेण प्रदत्तं वा कन्या । कपिल ७८३ पुराचोला आज्यशेषेण कपिल २८५ पुरुषोऽनृतवादी च या ३.१३५ पुराणतर्कमीमांसाधर्म बृह १२.३ पुरुहूतः पुरा दैत्यं वृ परा ८.३१९ पुराणधर्मशास्त्राणि बृ.या. ४.७ पुरोक्तान्यन्यथाकृत्वा आंपू ३६५ पुराणन्यायमीमांसा ___ या १.३ पुरोहितंच कुर्वीत या १.३१३ पुराणधर्मशास्त्र ब्र.या. ७.५९ पुरोहितं च कुर्वीत मनु ७.५८ पुराणं श्राद्धकाले च विश्वा २.५५ पुरोहिताचार्ययोश्च आंपू १०४३ पुराणाधकथातर्क धर्म भार ११.४९ पुलहः स्वायम्भुवो वृ हा ७.८२ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४७ श्लोकानुक्रमणी पुष्करादि तार्थेषु श्राद्धमहत्व विष्णु ८५ पुष्येचाश्विनिरेवत्या ब्र. या. ८.३५५ पुष्कलं हंतकारस्यात् ह व्यास २.६२ पुष्ये तु च्छन्दसां कुर्याद् मनु ४.९६ पुष्कालानि च चत्वारि ब्र.या. ८.२५४ पुष्येन (ण) मूलमुत्थाप्य ब्र.या. ८.२८६ पुष्णाति हि जगत् सर्व बृह ९.९३ पु स्त्री प्रयोगादयशुक्र वृ परा १२.७३ पुष्पा धूप प्रदीपादि वृ परा ११.१ ४६ पूजानाद्वन्दनाद् वाऽपि वृ हा ८.२६२ पुष्पयत्रोदकादीनि प्रातरेव शाण्डि ३.५ पूजनीयायथाहणं वृ हा २.४५ पुष्पाफलोपगान् व १.१९.८ पूजनीया यथोक्तेन व २.७.६२ पुष्पं चित्र सुगन्धञ्च या १.२८८ पूजनीया समस्ताश्च वृ हा ७.१६३ पुष्पं दत्वाततो हस्तं भार ११.१०३ - पूजयन्तं सहस्रारं व २.२.११ पुष्पंधूपं तथा दीपं वृ हा ३.३१ पूजन्ति नमस्यन्ति वृ.गौ. ५.१२० पुष्पं पुष्पं विचिनुयानं पराशर १.६० पूजयन्त्यतिथींश्चैव वृ.गौ. ९.३० पुष्पं पुष्पं विचिनुयान् वृ परा ४.२२० पूजयामास गोविन्दं बृ.गौ. २२.३७ पुष्पं सितं ब्र.या. १०.१८ पूजयित्वा गुरु पूर्व व २.६.४४ पुष्पमूलफलानि च व १.२.५० पूजयित्वाऽच्युतं भक्त्या वृ हा ५.२१८ पुष्पमूलफलैर्वापि मनु ६.२१ पूजयित्वा जगन्नाथं वृ हा ७.३१७ पुष्पवृष्टिं प्रमुञ्चन्ति वृ.गौ. १०.५७ पूजयित्वाऽथ होमन्तु वृ हा ५.४१५ पुष्पागमानाञ्च तथा औ ९.१५ पूजयित्वा श्रियासार्द्ध व २.४.६० पुष्पांजलि सहस्रं तु वृ हा ५.३९७ पूजयेत्कुसुमैः कुन्दैः व २.६.२४१ पुष्पाणि च ततो दत्वा वृ हा ७.१८१ पूजयेत्पूर्वतया केशवाद्यै व २.६.४१३ पुष्पाणि च तथा दत्वा वृ हा ७.१६७ पूजयेत् श्राद्धकालेषु व्या २३२ पुष्पाणि च तथा दद्यात् वृ हा ७.६४ पूजयेत् स्तुतिभि मां च वृ.गौ. ४.३५ पुष्पाणि दद्याद् भक्त्या वृ हा ५.१ ४९ पूजयेदच्युतं भक्त्या व २.६.२३९ पुष्पाणि फलमूलाध वृ हा ४.१५७ पूजये दशनं नित्यं औ१.६० पुष्पावतंसाज्योतिषि भार १३.२१ पूजयेदशनं नित्यं मनु २.५४ पुष्पे चैवोपलेपादि आश्व १३.२ पूजयेद् गन्ध पुष्पादाद्यै वृ हा ५.३१२ पुष्पेषु हरिते धान्ये मनु ८.३३० पूजयेद्देवदेवेशं मृत्यरोग ब्र.या. २.१३१ पुष्पैः धूपैश्च नैवेद्यै औ ५.९८ पूजयेद्धिरपत्रैश्च व २.६.२६८ पुष्पैः धूपैश्च नैवैद्यै वृ हा २.१२ पूजयेद् विधिना यस्तु वृ परा १०.३६७ पुष्पैरपि न युध्येत वृ परा १२.४८ पूजयेन्मंप्रसंयुक्तं ब्र.या. १०.१५० पुष्पैरिष्ट्वा चावभृथं वृ हा ७.२१९ पूजापीठं स्नानपीठं भार ११.११ पुष्पैर्मनोहरैः शुभैर्गन्धै व २.४.७७ पूजाभिकाक्षिणो ये च वृ परा २.२७ पुष्पैवी तुलसीपत्रैः वृ हा ७.२०७ पूजाभोजनकालेषु कपिल ८२८ पुष्पैः सम्पूयेद् भक्त्या वृ हा ७.१३१ पूजां कुर्याद्विधानेन व २.७.८१ पुष्यस्नानादिकं स्नानं शंख ८.४ पूजां पुष्पांजलिं होमं वृ हा ५.४४३ पुष्यादित्याश्विनी आश्व ४.३ पूजायां स्नानकाले च शाण्डि २.६२ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ पूजाविधानं त्रिविधं पूजितः सकलैः भोगे पूजिताः तत्र धर्मेण पूजितान्नमवाग् जुष्ठं पूजिताश्च भविष्यन्ति पूजितैः कलशैः पुण्यैः पूज्यान पूजयेत् पूज्यमाना वस्त्रीभिः पूज्या नित्यं भगवत् पूतः पंचभि ब्रह्मयज्ञै पूतानि सर्वपण्यानि पूचिमृगमदादीनि पूयं चिकित्सकस्यान्नं पूयेशोणितसंपूर्णे अन्धे पूरकं कुम्भकं चैव पूरकः कुम्भकश्चैव पूरकः कुम्भको रेच्य पूरक कुम्भको रेच्यः पूरके विष्णु सायुज्यं पूरणे कूपवापीनां वृक्ष पूरयित्वावंट पंक पूरयित्वा शुभजलैः पूर्ण कुम्भान् शस्ययुतान् पूर्णचन्द्र प्रकाशेन पूर्णचन्द्रप्रकाशेन पूर्णचन्द्राननं स्निग्धं पूर्णपात्र शर्मपात्र पूर्णपात्रनिधानान्त पूर्णपात्रोदकं गृह्य पूर्णमसीयनेनैव तत् पूर्णमुष्टिस्ततुतन्नाभौ पूर्णसूत्रावृतेनेह , पूर्णाब्दात् प्रवृत्ताद्वा पूर्णेन्दुशंखधवलं पूर्णेऽपि कालानियमे स्मृति सन्दर्भ वृ हा ८.२५८ पूर्वकालगृहीतं तं कुमारं लोहि २०८ वृ हा ७.३३१ पूर्वं कृत्वा द्विजः शौचं लघुयम ५ वृ.गौ. ५.१२१ पूर्वजन्मकृतं पापं शाता १.५ वृ परा ६.१३२ पूर्वजान् मनुजान् प्रजा २६ आंपू १०८९ पूर्वजांश्च पितृस्तl ब्र.या. ७.८८ व २.७.८२ पूर्वजानां शंत सैकं वृ परा ११.१५६ बौधा २.३.६२ पूर्वाजास्तुष्टिनायन्ति प्रजा १९८ वृ.गौ. ५.९६ पूर्वतो सर्वदेवाश्च व्या २०० शाण्डि ४.५८ पूर्वद्वारेऽपि संस्थाप्य वृ परा ११.२८१ २.५.२३ पूर्वधर्म विनिक्षिप्य आंपू २०८ वृपरा ८.३३२ पूर्वपक्षेऽधरीभूते बृ.य. ५.२६ भार १४.४ पूर्वपवृत्तमुत्सन्नमपृष्ट्वा नारद १२.१७ मनु ४.२२० पूर्वपूर्वतरः श्रेयान् व परा ६.३०२ पराशर ४.२ पूर्वं पूर्वो गरीयान् व १.१३.२५ ब्र,या, २.४८ पूर्वभागे षड्ऋतून ब्र.या. १०.१३२ बृ.या. ८.९ पूर्वं तु शेषहोमस्य कण्व ३४५ वृ हा ३.३५ पूर्व निष्पीडन केचित् बृ.या. ७.४५ बृ.या. ८.१० पूर्व न्यासिविधिश्चैव बृ.या. ५.२५ बृ.या. ८.४३ पूर्व स्त्रियः सुरैर्भुक्ता व १.२८.५ लिखित ८१ पूर्वन्त्राक्षरं मन्त्रन्तु शाण्डि १.८५ कात्या २३.१३ पूर्वमाक्षारयेद् यस्तु नियतं नारद १६.१० व २.७.२९ पूर्वमापोशनं ग्राह्यं व्या १४५ वृ हा. ७.२ ४४ पूर्वमावायेद्देवान् व २.६.२९३ वृ.गौ. ६.७५ पूर्वमेव निरीक्षेत औ ४.२ वृ.गौ. ६.१ ४५ पूर्वमेव यतन् बाढं येन लोहि ३५१ वृ हा ३.२५७ पूर्ववच्च विधानं स्यान् आश्व १५.१३ आंपू ५२४ पूर्ववत् पूजयित्वेशं वृ हा ५.४८३ आश्व १०.४९ पूर्ववत्पूजयेद्देवं ब्राह्मणां व २.६.२५४ व.२.२.२२ पूर्ववत् प्रणवस्यार्थ वृ हा ३.२०६ आश्व २.६९ पूर्ववत्प्राणसंरोधं कृत्वै भार १९.२९ भार २.४४ पूर्ववत्सकलं कृत्वा भार ५.३९ आश्व ४.१० पूर्ववदुपविश्यां । आश्व १०.२८ व १.१५.१६ पूर्ववद् ग्रहदेवानां वृ परा ११.२७२ भार ६.६३ पूर्ववद् द्वादशाब्दानि वृ हा ६.२४७ आप ३.१० पूर्ववद् विकरेद् भूमौ व्या १५१ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४४९ पूर्ववद् विधिना मंत्र वृ हा ३.३०० पूर्वोक्तकुसुमालामे भार १४,२१ पूर्वविद्धा न कर्त्तव्या शेषा ब्र.या. ९.३७ पूर्वोक्त गुण संयुक्ता वृ परा १०.३०६ पूर्वविद्धांपदाकृत्वा ब्र.या. ९.४० पूर्वोक्त प्रत्यवायानां वृ परा ८.१०० पूर्वविद्धैव कुर्वीत ब्र.या. ९.४२ पूर्वोक्तफलदं ज्ञेयं कपिल ९२६ पूर्व शौचन्तु निर्वर्त्य ___ आप ९.२ पूर्वोक्त विधिना पीठे वृ हा ३.३६५ पूर्वश्च स्रावितोयश्च आंगिरस ६७ पूर्वोक्तस्य तु मन्त्रस्य बृ.या. ८.१७ पूर्वसंध्यार्चिता पुष्पं भार ११.६९ पूर्वोक्तहोमसंयुक्तमद्य नारा ५.२८ पूर्वऽह्नि पूर्ववत् पूज्यः वृ हा ८.२५६ पूर्वोक्ताचारसम्पन्न शाण्डि १.९९ पूर्वाग्रैः दैविकेपात्रे आश्व २३.२२ पूर्वोक्तानि च पर्णानि व २.६.२९९ पूर्वादि कुम्मेषु ततो शाता २.७ पूर्वोत्तरप्लवे देशे वृ परा ७.१५४ पूर्वादिचतुराशेषा भार २.१७ पूर्वोत्तरविरुद्ध तद्विवदन् लोहि २८३ पूर्वादि दक्षिणा वारुण्य भार २.२ पृच्छन्तं मामतीवात नारा ५.६ पूर्वादिषु महादिक्षु भार ११.२१ पृथक्कर्तुमशक्यं वृपरा ७.७८ पूर्वादिषू चतुर्दिक्षु भार ११.६० पृथक् तानि प्रवक्ष्यामि वृ परा १०.३१६ पूर्वी लाजाहुतिं हुत्वा बौधा १.११.४ पृथक्पाकं न कुर्वीत विश्वा ८.१७ पूर्व संध्यां जपंस्तिष्ठं मनु २.१०१ पृथक्र पाकात्तस्य भुक्ति आंपू ७४ पूर्वसंध्यां जपस्तिष्ठं मनु २.१०२ पृथक्पाको न कर्तव्य । विश्वा ८.८३ पूर्व संध्या तु गायत्री बृ.या. ६.१७ पृथक् पिण्ड मृते बाले वृ परा ८.१७ पूर्वी संध्यां सनक्षत्रां लहा ४.१८ पृथक् पृथक् च नैवेद्यं वृ हा ७.१ ४५ पूर्वाह एव कुर्वीत आंपू ६८७ पृथक् पृथक् दण्डनीया या २.८३ पूर्वाह चतुर्थाह्ण भार ६.९९ पृथक् पृथक् प्रकुरिन् वृ हा ६.३७१ पूर्वाहे कानिकं श्राद्ध प्रजा १७७ पृथक् पृथक् प्रणवं भार १५.८६ पूर्वाहे चैव कर्त्तव्यं औ ५.९४ पृथक् पृथक् सम्यगेव कपिल ८४२ पूर्वाहो ह्यपराह्णस्तु वृ परा २.१३ पृथक् पृथगुदञ्चानि वृ हा ८.९१ पूर्वाह्नब्रह्मणानां तु ये वृ.गौ. ३.१७ पृथक् पृथग्वा मिश्री वा मनु ३.२६ पूर्वान्यभ्युदयं वृ हा ७.१ ४० पृथक् प्राणादिवायुश्च वृ परा १२.१८९ पूर्वाह्न वा पराह्ने वा वृ.गौ. ५.३१ पृथक्संयोजयेदद्धि व २.६.३६९ पूर्वाह्न सूर्योदयात् व २.४.११५ पृथक्सान्तपनद्रव्यैः या ३.३१५ पूर्वेक्तान् शिक्षयेत्सम्यक् लोहि ७१२ पृथक्सांतपनं द्रव्य देवल ८२ पूर्वेधुः क्षणित विप्रं ___व्या ७५ पृथग् गणान् ये विर्भन्धुस्ते नारद ११.६ पूर्वेयुः क्षणितोविप्रो व्या ७४ पृथगग्नौ स्थापितेऽथ आपू ७९ पूर्वेयुः नियमं कुर्य्याद् वृ हा ५.४७६ पृथगात्मा पृथक् स्वान्तं वृ परा १२.१८८ पूर्वोधुः पौरुष सूक्तं व २.७.७१ पृथिवीतेति मंत्रेण पुनः कपिल २३५ पूर्वेधुरपरेधुर्वा मनु ३.१८७ पाकात्परं तद्दिनेऽस्मिन्पुनः कपिल २३६ पूर्वैव योनि पूर्वावृत् कात्या २०.१४ पृथिवी पादतस्तस्य या ३.१२७ Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० स्मृति सन्दर्भ पृथिवीपालनं राज्ञः कृषि व २.६.१२९ पैशाचश्चाष्टमः सर्वै ब्र.या. ८.१७८ पृथिवीं च वलं यद् वै वृ.गौ. १.५४ पैशुन्यं साहसं दोह मनु ७.४८ पृथिवीमन्तरीक्ष वा बृ.गौ. १५.३७ पैशुन्यमत्सराभि व १.१०.२३ पृथुत्वं शिरसो धार्य वृ परा ५.६६ पैशुन्यहिंसा विद्वेषं व्यास २.३५ पृथुस्तु विनयाद् राज्यं मनु ७.४२ पोत्रघृष्टां वराहस्य बृ.गौ.२०.२९ पृथिव्यापस्तथा तेजो शंख ७.२३ पोष्यवर्गसमोपेतो आश्व १.१५४ पृथिव्यां यानि तीर्थानि वृ.गौ. ९.२५ पौश्चल्याच्चलचित्ताच्च मनु ९.१५ पृथिव्यां यानि दानानि अ २५ पौत्रदौहित्रयोर्लोके मनु ९.१३३ पृथिव्यास्तु स्वतुल्येन वृ.गौ. १०.१० पौत्रदौहित्रयोर्लोके मनु ९.१३९ पृथोरपीमां पृथिवीं मनु ९.४४ पौत्रे नप्तरि दौहित्रे सति । कपिल ७०९ पृथ्वी ते पात्रमित्येतत् वृ परा ७.२५४ पौनर्भव कुसीदी च औ ४.३० पृवृत्ता ऋषिवाक्येन नारा ७.२८ पौनवश्चतुर्थः व १.१७.१९ पृष्टा युष्माभिरधुना भार १.९ पौनवोऽपविद्धश्च नारद १४.४४ पृष्टास्ये पुत्रजीवस्य भार ७४२ पौराणं स्मार्तनित्येतत् विश्वा २.१९ पृष्टोऽपि न वदेदर्थ शाण्डि ४.२३९ पौरुषेण तु सुक्तेन वृ हा २.११४ पृष्टोऽपव्ययमानस्तु मनु ८.६० पौरुषेण तु सुक्तेन वृ हा ४.८४ पृष्ट्वा स्वादितमित्येवं मनु ३.२५१ पौरुषेण तु सुक्तेन वृ हा ५.१३६ पृष्ठतस्तु शरीरस्य मनु ८.३०० पौरुषेण तु सूक्तेन व २.७.१०० पृष्ठवंशं च नाभ्यां कात्या १.३ पौरुषेण तु सूक्तेन व २.६.३८३ पृष्ठवास्तुनि कुर्वीत मनु ३.९१ पौरुषेण विधानेन वृ हा ६.६५ पृष्ठे च जघने कट्यो वृ हा ३.१८ पौर्णमासात्यये हव्यं कात्या १८.७ पृष्ठे च जान्वोः पदयो वृ हा ३.१२१ पौर्णमासीषु चैतासु वृ परा १०.२६० पृष्ठे च नक्षत्रगणा वृ.गौ. १०.४९ पौर्णमास्यष्टकामावास्य बौधा १.११.२३ पृष्ठे च पद्यानाभन्तु वृ हा २.७८ पौर्णमास्यादिसंयोगे प्रजा १६६ पेतुकेषु प्रसक्तेषु लोहि ३२२ पौर्णमास्यां प्रकुर्वीत वृ हा ७.१५७ पेय्याषदद्याधाराख्यं भार ११.८३ पौर्णिमा(पूर्णिमा)पूजयिष्यामि ब्र.या. ९.४५ पेषणक्रियया पूर्वमन्नं वृ हा ४.१२२ पौर्णिमायाममावास्यां ब्र.या. ३.२६ पैतृकं कर्म परमामधिकं कपिल २९३ पौर्विकी संस्मरन् जाति मनु ४.१ ४९ पैतृकं क्रोतमाधेयं व १.१६.१३ पौषामासं क्षपेदेक बृ.गौ. १७.१६ पैतृकं तु पिता द्रव्यं मनु ९.२०९ पौष मासस्य रोहिण्यां या १.१ ४३ पैतृकं परणं यत्र तदे आंपू ९८५ पौषादि चत्वारो मासास्तत्र ब्र.या. ८.१०२ पैतृके कर्मणि तथा प्राप्ता कपिल ३३१ पौष शुक्ले तथा वत्स वृ परा १०.३ ४४ पैतृके कर्माणि पुनः यावद् कपिल २६३ पौष्णमेकादशं ज्ञेयं बृ.या. ४.६६ पैतृकेण तु तीर्थेन वृ हा ५.२८२ पौष्णःसंयुक्ता चोर्जे वृ परा २१०.२७१ पैतृष्वसेयीं भगिनीं मनु ११.१७२ प्याप्यं द्वितीय्यपादेन भार ६.१४४ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४५१ प्रकतुमसमर्थश्चेत् बृ.या. ७.१५६ प्रक्षाल्य पाणीपादौ ब्र.या. २.१३ प्रकर्तव्यं प्रयलेन न लोहि ४४२ प्रक्षाल्यपादावाचम्य व २.४.२२ प्रकर्तव्या विशेषेण वृ परा ११.२६७ प्रक्षाल्य पादावाचम्य शाण्डि ५.५६ प्रकर्षणगते प्रेते ब्र.या, ७.१७ प्रक्षाल्य पादावाचम्य बृ.गौ. १६.२३ प्रकर्षणासमन्ताच्च व परा १२.२५० प्रक्षाल्य पादावाचम्य शाण्डि ४.१२३ प्रकल्पितानां शास्त्राणामसता कपिल २० प्रक्षाल्य पादौ हस्तौ वृ हा ५.२३६ प्रकल्प्या तस्य तैर्वृत्ति मनु १०.१२४ प्रक्षाल्य पादौ हस्तौ च दक्ष २.१४ प्रकान्ते सप्तम भागं या २.२०१ प्रक्षाल्य पादौ हस्तौ च व २.६.३४ प्रकारं दक्षिणे वक्त्रे __ तु परा ४.९४ प्रक्षाल्य पादौ हस्तौ वाधू ३४ प्रकारान्तरतः प्रोक्तः सूते लोहि १७७ प्रक्षाल्य प्रोक्षयित्वा च । कपिल २२० प्रकाशमेतत्तास्कर्य मनु ९.२२२ प्रक्षाल्याचम्य विधिवत् भार १५.५९ प्रकाशायितुमात्मानं शाण्डि ४.१९३ प्रक्ष्याल्याअपूर्य तत्तोय भार १५.१५० प्रकाशवंचकास्तत्र नारद १८.५४ प्रक्षाल्य भूमिं कर्मार्थ शाण्डि २.२५ प्रकाशवंचकास्तेषां मनु ९.२५७ प्रक्षाल्य वातं देशमग्निना बौधा १५.१ ४४ प्रकीर्ण प्रायाश्चित्त विष्णु ४२ प्रक्षाल्य हस्तावाचम्य मनु ३.२६४ प्रकीर्णके पुनर्जेया नारद १८.१ प्रक्षाल्य हस्तावाचम्य वृ परा २.१२३ प्रकुर्याच्चैव संस्कार औ ९.२४ प्रक्षाल्य हस्तौ चाचम्य बृ.या. ७.११ प्रकुर्याद् वैष्णवैसार्द्ध वृ हा ६.११८ प्रक्षाल्य हस्तौ पादौ वृ हा ५.२८४ प्रकुर्यान्मद्यपानं वा गोमासं कपिल ९६९ प्रक्षाल्याजानुतरणौ मृज्जलैः शाण्डि २.५९ प्रकृति स्वामवष्टभ्य वृ.गौ, १.५० प्रक्षाल्योदक् शुचौदेशे व्या ३४४ प्रकृति विशिष्ठं चातुर्वर्ण्य व १.४.१ प्रक्षाल्योरूमृताचाद्भि व्या ३८७ प्रकृतिश्राद्धमात्रश्च आंपू ६२७ प्रक्षिपेद्भाजने विप्रो दा ४६ प्रकृतेगुणतत्वज्ञ औ ४.११ प्रक्षिप्य दद्यात्तद्रूपं भार १४.३५ प्रक्षालनार्थ सलिल भार ११.३० प्रक्षिप्य देवमादित्यं ल व्यास २.२६ प्रक्षालनेन स्वल्पानामाभि पराशर ७.२९ प्रक्षिप्योदयमुटुत्यं बृ.या. ७.५२ प्रक्षा (लये) ज्जगन्नाथं शाण्डि ३.८३ प्रख्यातदोषः कुर्वीत वृ परा ६.३३८ प्रक्षालयेततोमाला मार ७.५९ प्रख्यातशुद्धचरितं शाण्डि १.१०० प्रक्षालितकरान् विप्रान् आश्व २३.८७ प्रख्यापनं प्राध्ययनं वाधू १५८ प्रक्षालित पादपाणि बौधा २.४.२ प्रगृह्याञ्जलिना भक्त्या आंपू ८७० प्रक्षालितो पवातान्य बौधा १.६.६ प्रचरपशोहिंसा नारा ७.२३ प्रक्षाल्य चरणौ हस्तौ भार ४.२१ प्रचरन्नभ्यवहार्येष व १.३.४२ प्रक्षाल्य चरणौ हस्तौ भार ५.२ प्रचेतंस वशिष्ठ वृ.या. ७.६५ प्रक्षात्य तु मृदा पादा वृ.गौ. ८.६७ प्रचेता अत्र चोवाच आंपू ९८६ प्रक्षाल्य पाणिपादं आश्व १.१ ४२ प्रच्छन्नपापिनो ये स्युः बृ.य.४.६ प्रक्षाल्य पाणिपादौ औ १.६३ प्रच्छन्नं वा प्रकाशं वा मनु ९.२२८ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ स्मृति सन्दर्भ प्रच्छन्नानि च दानानि बृ.या. ७.१३३ प्रजाभिरग्ने अमृतत्वं व १.१७.४ प्रच्छन्नानि नवान्यानि दक्ष ३.२ प्रजाभिर्नतु सर्वाभि व परा ८.८५ प्रच्छन्नानि मनुष्याणां नारद १९.२० प्रजाभ्यो वल्यर्थ संम्वत् सरेण विष्णु ३ प्रच्छादयति तच्छिद्र वृहस्पति ५५ प्रजा पुष्टिं यशः स्वर्ग शंख १४.३३ प्रच्छादितादित्यपथे व्यास २.४४ प्रजाः सन्त्वपुत्रिण व १.१७.३ प्रजनार्थ महाभागा मनु ९.२६ प्रज्वालयति यो दीपं वृ.गौ. ७.४७ प्रजनार्थं स्त्रियः सृष्टा मनु ९.९६ प्रज्ज्वाल्य वह्नि दर्भेस्तु व २.६.३२९ प्रजा पेदेव तस्मात्तु पाद कण्व ९३ प्रज्ञाश्रुताम्यां वृत्तेन वृ.गौ. १२.२५ प्रजा पेद् ब्रह्मणो कण्व १८५ प्रणमेतार्चयेद् वाऽपि वृ हा ८.२६१ प्रजापेयु केचनात्र आंपू ८०० प्रणम्य दण्डवभूमौ शाण्डि २.६९ प्रजापेहस्य सूक्तेन वृ हा ८.२२७ प्रणम्य पादयोर्दवं जप्त्वा शाण्डि ५.५४ प्रज्ञाता चेत्कृच्छ्राब्दपादं बौधा २.१.४७ प्रणम्य शिरसा विष्णु वृ.गौ. २२.४१ प्रज्ञाता रण्डयाचोन्नं कृतं कपिल ५८९ प्रणम्यशिरसाग्राह्य न् व्या ३९६ प्रजानां पालनं दानं वृ परा ४.२१९ प्रणम्याग्निञ्च सोमञ्च बृ.गौ. १६.१० प्रजानां रक्षणं दानं वृ परा ४.२१४ प्रणवञ्चऽऽतपत्रे तु शेषं वृ हा ५.५०६ प्रजानां रक्षणं दानं मनु १.८९ प्रणव हि परं ब्रह्म नित्य बृ.गौ. २२.५ प्रजानामायुष कीर्तेः व परा ११.१९७ प्रणवं चोर्ध्वपुण्डं च विश्वा १.११० प्रजापतय इत्युक्त्वा आश्व १.१२३ प्रणवं पाणशक्ति च विश्वा ६.२९ प्रजापतये स्वाहेति ___ आश्व ४.७ प्रणवं प्राक प्रयुंजीत ___ संवर्त ९ प्रजापतिकृताश्चान्ये बृह १२.१२ प्रणवव्याहृतिभिश्च विश्वा ८.७ प्रजापतिपितृब्रह्मदेव ब्र.या. ८.५३ प्रणवव्याहृतिभ्यां च बृह ९.३७ प्रजापतिभ्यो ह्यभि आंपू ४२६ प्रणव व्याहृति सप्त । भार ६.१५ प्रजापतिं च वै स्थाप्य ब्र.या. १०.९१ प्रणवः सूयते सर्वं वेत्ता बृ.या. २.९६ प्रजापति तथा चोधर्मधश्च तू हा ६.५७ प्रणवस्य व्याहतीनां भार ७.५० प्रजापतिरिदं शास्त्र मनु ११.२ ४४ प्रणवादि चतुर्थ्यन्त वृ हा ६.४२६ प्रजापतिर्हि वैश्याय मनु ९.३२७ प्रणावादिचतुर्थ्यन्तै वृ हा २.१ ४६ प्रजापति शिखायांतु ब्र.या. २.१२२ प्रणवादि नमोऽन्तं च विश्वा ३.१५ प्रजापतिस्तु तानाह न बौधा १.५.७३ प्रणवाद्यन्त गायत्री वृ परा २.७० प्रजापतेऽनन्वं दिति व २.३.२५ प्रणवाद्यन्तमध्यस्थं विश्वा ६.५२ प्रजापतेर्मुखोत्पन्नस्तपः बृ.या. २.३ प्रणवाद्या तु विज्ञेया बृ.या. ४.३९ प्रजापतेश्चरोरेका आश्वा ३.४ प्रणवाद्या भवेद्विद्या बृह ९.३९ प्रजापत्योस्विष्टकृते ब्र.या. ८.३०९ प्रणवाद्यास्तथा वेदा व १.२५.१० प्रजापरिपालनं वर्णाश्रमाणां विष्णु ३ प्रणवाद्या स्तथा वेदा अत्रिस १.१३ प्रजापीड़न सन्ताप या १.३ ४१ प्रणवाद्याः स्मृता वेदा बृ.या. २.१ प्रजाप्रवृत्तौ भूताना नारद १३.१०४ प्रणवाद्या स्मृता वेदा बृ.या. २.१४ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४५३ प्रणवाद्याः स्मृता वेदा वृ परा ३.२९ प्रतिकल्पैपठितं सोम आंपू ८१० प्रणवान्तस्त्रिलोकैश्च विश्वा ६.६८ प्रतिकूलं गुरोः कृत्वा या ३.२८३ प्रणवान्ता च गायत्री वृ परा २.१६६ प्रतिकूलं च यदाज्ञः नारद ११.४ प्रणवेण च सावित्र्या वृ हा ५.१०४ प्रतिकूलं वर्त्तमाना मनु १०.३१ प्रणवेन च गायत्र्या वृ परा ४.१७९ प्रतिकृति कुशमयीं अत्रिस ५० प्रणवेन च वै सर्वे आश्व १२.१२ प्रतिगृहेण सौम्येन वृ हा ५.५३ प्रणवेन तु संयुक्ता वाधू १३३ प्रतिगृह्णातिपोगण्डं नारद ३.८ प्रणवेन तु संयुक्ता संवर्त २२० प्रतिगृह्य च य कन्या नारद १३.२४ प्रणवेन द्विराचामेद आश्व १.३२ प्रतिगृह्या च तान् सर्वान् अ ४० प्रणवेन पिबेत्तोयं आश्व १.२६ प्रतिगृह्यतु य कन्या नारद १३.३५ प्रणवेनबहिर्वेष्ठ्य जलं विश्वा १.११४ प्रतिगृह्य त्वहोरात्र वृ परा ६.३५९ प्रणवेन समायुक्तं वृ हा ३.१५९ प्रतिगृह्य द्विजो विद्वान् मनु ४.११० प्रणवेन स्वरूपं स्यात् वृ हा ३.५५ प्रतिगृह्या द्विजो मोहात् अ २४ प्रणवे नित्ययुक्तः व १.२५.९ प्रतिगृह्य द्विजो विद्याद् औ ३.६७ प्रणवे मित्ययुक्तस्स्य बृ.या. २.६४ प्रतिगृह्या धरादानं नारा १.३३ प्रणवे नित्यमुक्तस्य बृ.या. २.१ ४१ प्रतिगृह्य वैतरणी अ १२२ प्रणवे विनियुक्तस्य अत्रिस १.१४ प्रतिगृह्याप्रतिग्राह्याभुक्त्वा __ वाधू ९० प्रणवो धनुः शरोह्यात्मा । बृ.या. २.५४ प्रतिगृह्येप्सितं दण्ड मनु २.४८ प्रणवो बीजमन्त्र स्याद् विश्वा ५.१० प्रतिगेहे तु तत्तातभ्रातर लोहि ४४८ प्रणवो भूर्भुवः स्वश्च कात्या ११.५ प्रतिग्रह काश्यपेय अ २ प्रणवो विमलः शुद्धो बृ.या. २.१ ४० प्रतिग्रहञ्च वृत्यर्थ व हा ४.१५१ प्रणवो व्याहृतयः बौधा २.५.२२ प्रतिग्रहधनो विप्रो अ१ प्रणवो हि परं तत्वं वृ परा ३.१० प्रतिग्रहनिवृत्ताश्च जप वृ परा ६.२९७ प्रणवो हीश्वरो देवो बृ.या. २.१४४ प्रतिग्रहनिवृत्तिश्च पु १८ प्रणवः सर्ववेदानां .या. ४.१९ प्रतिग्रह परीमाणं या १.३२० प्रणवो हयपरं ब्रह्मप्रण या. २.१ ४२ प्रतिग्रहः प्रकाशः स्यात् या २.१७९ प्रणष्टस्वाभिकं रिक्थं मनु ८.३० प्रतिग्रहमृणं वापि वृ परा ६.२ ४१ प्रणष्टाधिगतं देयं या २.३४ प्रतिग्रहरतानां तु ब्राह्मणानां अ ७६ प्रणीताकुशमादाय ब्र.या. ८.२७१ प्रतिग्रहसमर्थोऽपि या १.२१३ प्रणीतापश्चिमेन्यस्य ब्र.या.८.२६८ प्रतिग्रहसमर्थोऽपि प्रसंगं मनु ४.१८६ प्रत आश्विनी पवमान वृ हा ८.५६ ग्रहसुदीप्तानि वृ परा १०.६९ प्रतद्विष्णुमन्त्रमिरावती आपू ८३९ प्रतिग्रहादन्नदोषात् वाधू ११५ प्रतप्तासमतोयेन वृ हा ६.२९४ प्रतिग्रहाद् ब्राह्मणस्य अ६ प्रतापयुक्ततेजस्वी मनु ९.३१० प्रतिग्रहाद्भवेदे (दो) षः शाण्डि ३.४२ प्रताप्य सकुशौ दर्वीसुवौ आश्व २.४१ प्रतिग्रहाधाजनाद्वा मनु १०.१०९ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ स्मृति सन्दर्भ प्रतिग्रहाद् द्विज श्रेष्ठ वृ परा १०.३३४ प्रतिमाया अभावे तु व २.६.४२ प्रतिग्रहाधिकं नास्ति अ १३४ प्रतिमासदजभेदेन स्मृता आंपू ५०५ प्रतिग्रहीता सावित्र सर्व वृ परा १०.२८६ प्रतिमासदिनं हृष्टमन्यथा आंउ ९.८ प्रतिग्रहे गृहीते तु का अ २ प्रतिमांस तदा दर्श आंपू ८८३ प्रतिग्रहेण नश्यन्ति अत्रिस १४४ प्रतिमासमुद्वाहकरं व १.१९.१८ प्रतिग्रहेण लब्धाय भूमिग्रामो कपिल ४६० प्रतिमासु च शुभ्रासु कात्या १.१४ प्रतिग्रहेण विप्रणां अ २६ प्रतमासे पौर्णमास्यां व २.६.२७० प्रतिग्रहेण सहसा यदेनो अ ५५ प्रतिरूपकराश्चैव नारद १८.५५ प्रतिग्रहे न दोषः स्याद् अ ९४ प्रतिसंवत्सरं श्राद्धेमेकोद्दिष्टं कपिल १४७ प्रतिग्रहेषु सर्वेषु जपहोमा अ २८ प्रतिलोमास्वायोग बौधा १.८.८ प्रतिग्रहे संकुचिता बृ.या. ४.५७ प्रतिलोमा प्रयोक्तव्या बृ.या. ४.४१ प्रतिग्रहे सूनि चक्रिध्वनि या १.१ ४१ प्रतिलोम्याच्च जातेभ्य शाण्डि ३.३३ प्रतिग्रहोऽध्यापनं च अत्रिस २० प्रतिलोम्यापवादेषु या २.२१० प्रतिग्रह्याप्रतिग्राह्य मनु ११.२५४ प्रतिवर्ग च चेद्विप्रा आंपू ६९९ प्रतिचर्याकृतः सोऽपि वृ परा १२.१६६ प्रतिवर्ष प्रयलेन आंपू ६१४ प्रतिजन्म भवेत्तेषां शाता १.२ प्रतिवर्ष प्रयत्नेन आंपू १३७ प्रतिनित्यं पञ्चगव्यं आं पू २०० प्रतिवातेऽनुवाते च मनु २.२०३ प्रतिपक्षेष्टितस्तद्वत्क्षुर कण्व ३०५ प्रतिवेद्ब्रह्मचर्य द्वादशा ब्र.या, ८.७३ प्रतिपत्पर्वषष्ठीषु ल हा ४.१० प्रतिवेदं द्वादशाब्द व २.३.८६ प्रतिपत्पर्वषष्ठीषु नवमी वाधू ३८ प्रतिवेदं ब्रह्मचर्य या १.३६ प्रतिपत् प्रभृति औ ३.१११ प्रतिवेदसमाप्तौ तु व २.३.१८६ प्रतिपत्प्रभृतिष्वेका दा ७२ प्रतिवेश्यानु वेश्यौ च मनु ८.३९२ प्रतिपत् प्रभृतिष्वेतान् .या १.२६४ प्रतिशयप्रदानं च वृ.गौ. ६.५२ प्रतिपत्प्रभृतिह्येत ब्र.या. ५.२० प्रशिश्रयं पादशौचं व्यास ४.७ प्रतिपत्सु द्वितीया स्यात ब्र.या. ९.२ प्रतिश्रवमसम्माषे औ ३.३ प्रतिपच्चअमावस्या ब्र.या. ९.६ प्रतिश्रवणसम्भाषे मनु २.१९५ प्रतिपन्नं स्त्रिया देयां या २.५० प्रतिश्रुतं च भुक्तं च वृ परा ७.२ ४३ प्रतिपन्नं स्त्रिया देवं वृ हा ४.२ ४५ प्रतिश्रुत्य चयत् किंचिद् वृ परा १०.३०१ प्रतिपादनसामर्थ्य युक्त शाण्डि १०.१०९ । प्रतिश्रुत्य द्विजायार्थ वृ परा १०.३०० प्रतिपाद्य परं ब्रह्म कण्व २०६ प्रतिश्लोकेन पुष्पाणि वृ हा ५.५४६ प्रतिप्रदानादातारः श्रद्धया वृ.गौ. १.१०१ प्रतिषिद्धमनादिष्टं या २.२६३ प्रतिप्रदानमपि वा दद्यात् शाण्डि १.११४ प्रतिषिद्धेष्वसक्तं हि शाण्डि १.१३ प्रतिभाव्यं वृथादानं व १.१६.२६ प्रतिषेधे पितेद्या तु मनु ९.८४ प्रतिभूपितो यत्तु या २.५७ प्रतिष्ठत्येव किं तेन लोहि ९० प्रतिमाभंगकारी च प्रतिष्ठा कीर्तनाध्यायः भार ७.१२१ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५५ श्लोकानुक्रमणी प्रतिष्ठाप्य ततः काम प्रतिष्ठाप्यानलं कुर्याद् प्रतिष्ठासु च कर्त्तव्यो प्रतोदश्च समग्रन्थि प्रतिसंवतसरं त्वाः प्रतिसंवत्सरं पश्चात् प्रतिसंवत्सर सिद्धि प्रतिसंवतसरं सोमः प्रतीचीमाद्यपास्तद्वदु प्रतुदान् जालपादांश्च प्रत्यक्परागपि राजेन्द्र प्रत्यक्ष परिभोगाच्च प्रत्यक्ष चानुमान च प्रत्यक्ष चानुमानं च प्रत्यक्षलवणञ्चैव प्रत्यक्षवारक्याणातु प्रत्यक्षश्रुतिमूलत्वादग्नि प्रत्यक्षः सर्वभूताना प्रत्यगासूर्यमालोक्य प्रत्यगेव प्रयागश्च प्रत्यग्दले धीमही च प्रत्यग्नि प्रतिसूर्य च प्रत्यग्नि प्रति सूर्य प्रत्यग्विद्विष्णो वृक प्रत्यङ्मुख सव्यम् प्रत्यङ् मुखाय विप्राय प्रत्यजलि समुच्चार्य प्रत्यब्दकरणे चापि न तु प्रत्यब्दं पार्वणं कुर्यान् प्रत्यब्दं पार्वणश्राद्ध प्रत्यब्दं पार्वणे नैव प्रत्यब्दं यदुपाकर्म प्रत्यब्दमागतं प्रत्यासत्ति प्रत्यन्दमास्तन्मास प्रत्यन्दमेवं कुर्वीत विश्वा ६.१६ प्रत्यब्द वत्सरादूर्ध्व व २.६.३७५ आश्व १५.५२ प्रत्यभिलेख्यविरोधे व १.१६.११ व २.७.१०७ प्रत्यभिवादं इतिकात्य बौधा १.२.७५ वृ परा ५.७४ प्रत्यार्थिनोऽग्रतोलेख्यं या २.६ या १.११० प्रत्यार्थिनोध युध्यंत्तः भार ९.४० आं पू १०६७ प्रत्यहं कर्मकोयोगः आश्व १.१८७ आंपू ११३ प्रत्यहं जुहुयादन भार ९.३६ या १.१२५ प्रत्यहं देशदृष्टैश्च मनु ८.३ ब्र.या. ३.३५ प्रत्यहं प्रतिमाहं च वृ परा ११.८० मनु ५.१३ प्रत्यात्मिकं तु दृश्येत नारद १९.४२ वृ.गौ. ६.११२ प्रत्यानीते तु तेनाथ तस्य नारद १९.२४ नारद २.७४ प्रत्याब्दिके शतं जप्यं वाधू २१३ बृह १२.१९ प्रत्याहरश्च योगश्च वृ परा १२.३५६ मनु १२.१०५ प्रत्याहारस्य ध्यानस्य बृह १२.४६ व २.६.२१० प्रत्याहारो विशेषस्तु वृ परा १२.२५३ ब्र.या. १२.२३ प्रत्युपोषिताश्चैव ब्र.या. ८.१३३ कपिल २७९ प्रत्युच्चार्य ततोास्यं नारद १९.४१ व परा १२.२२४ प्रत्यषे च प्रदोषे च शंखलि २१ विश्वा ७.१२ प्रत्यञ्चं कलशै स्नाप्य वृ हा ६.३६३ बृ.गौ. १४.४९ प्रत्यूंच जुहुयात् वृ हा ५.४४८ भार ७.८६ प्रत्यूंच पावमानीभिः वृ हा ७.२८१ मनु ४.५२ प्रत्यूंच प्रणवाद्यन्तं व २.६.३३७ व १.६.११ प्रत्यूचं वैष्णवै सूक्तै व २.६.४१२ व २.७.७२ प्रत्येकं जुहुयात् वृ हा ६.२३ बौधा १.७.१३ प्रत्येकं प्रत्यहं प्राश्य वृ परा ९.१४ वृ परा १०.३७ प्रत्येकं प्रयास्य व १.१९.१३ आश्व १.९६ प्रत्येकं सूक्तेन द्रव्यं व २.७.७५ कपिल ६७५ प्रत्येकं शतमष्टौ च वृ हा ७.१३४ व २.६.३७६ प्रत्येकमष्टसाहस्रं व २.६.४०८ वृ हा ८.३२५ प्रत्येकमष्टसाहसं व २.७.७६ दा ६४ प्रत्येह चेदृशा विप्रा मनु ४.१९९ कात्या २७.१७ प्रत्योकारमसौ कुवनक्षरं वृ परा ४.४७ आंपू १०३३ प्रत्योकारवदार्षादि वृ परा २.६९ आंपू ३४ प्रत्योङ्कारसमायुक्ताः वृ परा २.१६५ वृ हा ५.३३० प्रथमः कथितस्साद्भिः लोहि १०५ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ प्रथमं प्रणवोऽव्यक्त वृ परा १२.२६७ प्रथमं भूपतेस्तस्मात्कृत्यं वृ परा १२.१११ प्रथमं महिषीसंघं वृ हा ७.७९ प्रथमं सरस्वतीनाम्नो व्या ११५ आंपू ११०७ प्रथम श्राद्धमेवो चुः श्राद्ध प्रथमातस्य अकारो बृ.या. २.२७ प्रथमा धर्मपत्नी च सुभागा आंपू ४५८ दक्ष ४.१५ लोहि १२४ प्रथमाधर्मपत्नी च प्रथमायां धर्मपल्या प्रथमां विन्यसेद् वामे प्रथमां विन्यसेद् वामे प्रथमे पंचके पापी प्रथमे मासि संक्लेद्भूतो प्रथमेऽह्नि चाण्डाली प्रथमेऽह्नि चाण्डाली प्रथमेऽह्नि चाण्डाली प्रथमेऽहूनि चाण्डाली प्रथमेऽहनि चाण्डाली प्रथमेऽह्नि चेदज्ञः किं कार्यं प्रथमेऽह्नि षडात्र प्रथमेऽह्नि तृतीये प्रथमेऽह्नि द्वितीये वा प्रथमेऽहून निमंत्रीत प्रथमेऽह्नि मन्त्रे च प्रथमोद्वाहपर्यन्तं प्रथमोधान्यशैलस्तु प्रथितानि च पुष्पाणि प्रथिता प्रेतकृत्यैषा प्रथितो भव सर्वेषां प्रदक्षिणक्रियासक्तः प्रदक्षिणद्वयोज्वोरानीया प्रदक्षिणन्तु त्रिः कुयात् प्रदक्षिणप्रकारेण प्रदक्षिणं चरेत्पृथ्व्याः प्रदक्षिणं नमस्कारं वृ परा ४.१२५ वृ हा ५.१९६ कात्या २५.३ या ३.७५ आंगिरस ३८ अत्रिस ५.४९ परशर ७.१९ वृ परा ८.३१८ आप ७.४ कपिल ९४९ आप ७.८ दा २२ लघुयम ८७ ब्र. या. ३.४ ब्र.या. ४.२७ आश्व १५.६९ अ ८४ व २.६.३३ मनु ३.१२७ आपू ५९८ शाण्डि १.३४ भार १८.६५ बृ. गौ. २०.२८ आश्व ९.११ विश्वा ५.३१ वृ हा ६.१३३ प्रदक्षिणं नमस्कारं प्रदक्षिणं नमस्कारं प्रदक्षिणं परामृज्य प्रदक्षिणप्रणामांश्च प्रदक्षिणं समावृत्या प्रदक्षिणंसमावृत्या प्रदक्षिणमनुव्रज्य प्रदक्षिणमुपावृत्य प्रदक्षिणात्रयं कुर्याद् प्रदक्षिणानमस्कारं जप प्रदक्षिणां ततः प्रत्यगूर्धा प्रदक्षिणीकृतातेन प्रदक्षिणेन चेकैन प्रदक्षिणे प्रणामे च पूजायां प्रदद्यात् पितृतीर्थेन स्मृति सन्दर्भ प्रदुष्टत्यक्तदारस्य प्रदूरीकृत्य तज्ज्ञाती प्रदूषयन्ति तं दृष्ट्वा प्रदेयं शास्त्रमार्गेण प्रदेवत्रेति सूक्तेन प्रदेशिन्यंगुष्ठयोरन्तरा प्रदोषे श्राद्धमेकं स्याद् प्रदद्यादर्भकेभ्यो वै प्रदद्याद्वाथ पुष्पाणि प्रदद्यान्न तु हस्तेन प्रदर्शनार्थमेतत्तु प्रदर्शयेन्मुखे देव्याः प्रद्युम्न मनिरुद्धश्च प्रद्युन्न मनिरुद्धश्च प्रद्युम्नो रक्तवर्ण प्रदानशपथप्रोक्तमर्यादा प्रदानसमये स्वस्य सन्तु प्रदास्यति महाभागः प्रदीपतापप्रकाश्यै प्रदीयतेऽस्मै मत्तातसंलब्धा वृ हा ७.१८० वृ हा ६.४०७ वृ.गौ. ८.४९ भार १३.२८ बृ.या. ७.५७ वृ.गौ. ८.२४ या १.२४९ ल हा ४.५० आश्व १०.५८ शाण्डि २.७८ भार १२.१९ वृ परा ५.२६ वृ. गौ. ९.४० शाण्डि २.८१ शाता ६.२४ आंपू २४८ ल व्यास २.४१ व १.१४.२७ या ३.२१६ भार ११.७५ वृ हा ५.१८८ वृ हा ६.८४ वृ हा ७.११२ लोहि ७६ लोहि २७६ कण्व ३३५ बृह ९.१७४ लोहि ५४६ नारद १३.६१ आंपू ३१० कपिल ७७९ लोहि ४६० वृ हा ७.२६२ व १.३.६१ कात्या ५.६ Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४५७ प्रधानकुम्भमादाय व २.७.८३ प्रबलस्तेन कथितस्तास्मिन् लोहि १३९ प्रधानदेवते चोक्त्वा आश्व २.१० प्रबूयात्पक्षतो यच्च आंउ ६.१२ प्रधान क्षत्रिये कर्म या १.११९ प्रभवेत्पतितः सद्यः आंपू १७९ प्रधानं पुंसवन न आश्व ४.१९ प्रभवेदपि ते नैव इदं कण्व २२४ प्रधान पुरुषः कालो औ ३.५१ प्रभवेदिति तत्कर्ता कपिल ३०९ प्रधानं पुरुषे योज्यं बृह ९.१८४ प्रभवेद्धि विशेषेण आंपू २२ प्रधानं वैष्णवं तेषां वृ हा २.२२ प्रभाषादीनि तीर्थानि वाधू २८ प्रधानं स तु विज्ञेय बृ.या. ४.२५ प्रभुंजानोऽतिसस्नेह अत्रिस २९२ प्रधानस्याक्रियायत्र कात्या ३.६ प्रभुविभुमनाद्यन्तं प्रपद्ये विष्णु म ३० प्रधानादेवं संभूतं बृ.या. ३.२५ प्रभुः प्रथमकल्पस्य मनु ११.३० प्रधानहोम कुर्वीत लोहि ३८ प्रभूतकदलीचुतनालि शाण्डि १.७५ प्रनष्ठाधिगतं द्रव्यं मनु ८.३४ प्रभूतसर्पिषान्यस्य कण्व ७६८ प्रनू वाचं चिकितुषे ब्र.या. ८.२१५ प्रभूत विद्यमाने तु बृ.या. ७.६ प्रन्यामुचामिवचणां व २.४.५४ प्रभूतधोदकग्रामः सर्व आंपू १११२ प्रपतन्त्यतिघोरेषु नरकेषु कपिल ५४१ प्रभूतैघोदक यव ससमित बौधा २.३.५८ प्रपद्ये चरणौ तस्य वृ हा ३.१२ प्रमदाद् धनिनस्तद्वदाधौ नारद २.१०७ प्रपद्येत ततः शिष्यो वृ हा २.१२२ प्रमाणाभिहितं यत्तु आं उ१.४ प्रपद्ये पांजलिर्विष्णु विष्णु म २६ प्रमाणं लिखितं भुक्ति या २.२२ प्रपद्ये पुण्डरीकाक्ष विष्णु म २७ प्रमाणमार्ग मार्गन्तो पराशर ८.१६ प्रपद्ये वरुणं देवं शंखा ९.३ प्रमाणानि च कुर्वीत मनु ७.२०३ प्रपद्ये वरुणं देव ब्र.या. २.१५ प्रमाणानि प्रमाणस्थैः नारद २.६४ प्रपद्ये सूक्ष्ममचलं विष्णु म ३१ प्रमात्ययं सद्य एव तस्मात्त कपिल ७२९ प्रपन्नं साधयन्नर्थ या २.४१ प्रमादाकरणे कृत्स्ने आपू १४ प्रपन्नश्शरणं कश्चितं कथं नारा ३.४ प्रमादात् कुर्वता बृ.या. ७.३४ प्रपातनं प्रकथितं ब्राह्मणीनां लोहि ७०४ प्रमादात्षोडशे वापि ब्र.या. ७.२३ प्रपात विष वन्यम्बु वृ परा ८.१९५ प्रमादाद् धनिनो यत्र नारद २.२११ प्रपालयेत्तांयत्नेन स्वयं कपिल ६१३ प्रमादाद्यदि वा ज्ञानात् वृ.गौ. १२.१९ प्रपास्वरण्ये झढकस्य अत्रिस २३२ प्रमादान्नाशितं दाप्यः नारद ४.५ प्रपास्वरण्येषु जलेऽथ आप २.२ प्रमादक्षन्मद्यपः सुरां अत्रिस २०९ प्रपितामहपूर्व स्यात्त आपू ६७० प्रमादेनाप्रयत्नेन कदाचित् विश्वा ३.७२ प्रपितामाहमेवं च सांपू ११०५ प्रमादेन ह्यपनयेत् स्याता आंपू ३८२ प्रपेदिरेयेऽस्य वृ परा । १.२९२ प्रमापणे प्राणभृता पराशर ९.२६ प्रफुल्लपद्यपत्राभं व २...७५ प्रमाप्रदस्तथाश्वत्थो वृ परा ११.४७ प्रबद्धा रज्जुदोषेण वृ परा ८.१४ प्रयच्छत्यमलं लोकं । शाण्डि ३.५२ प्रबलं वैदिकं कर्म कण्व २९५ पयच्छन्ति द्विजाग्रेभ्यो वृ.गौ. ५.९३ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ प्रयच्छन्ति नरा ये च वृ.गौ. १०.८८ प्रविशन् परदेशे च प्रयच्छन्नग्निकां कन्या व १.१७.६२ प्रविशेत् स महातेजा प्रयच्छेन्मध्यमं पिण्डं आंपू ८६९ प्रविशेयुः समालम्भ प्रयतं प्रयतो नित्यम् वृ.गौ. ५.१०० प्रविश्य पर्षदं ते वै प्रयतो वैश्वदेवान्ते कण्व ३७४ प्रविश्य सर्वभूतानि प्रयत्न आकृतिर्वर्णः या ३.७४ प्रविष्टपरकायेन यदि प्रयत्नाद्वापि कूपेषु दा १०२ प्रविष्टपरवाणं प्रयलेन हि दातव्यः वृ.गौ. ३.५३ प्रविषुः अन्नः जले यः प्रयत इति सूक्ताभ्यां वृ हा ५.४२४ प्रवृत्तचक्रताञ्चैव प्रयोगे सेतुबन्धादि वृ हा ६.२२६ प्रवृत्तं कर्म संसेव्यं प्रयाति तत्परं दिपैः शाण्डि ५.२३ प्रवृत्तं सेवमानस्तु प्रयुक्तैरप्रयुक्तैर्वा भगवत् शाण्डि ५.१४ प्रवृत्ति वचनात् कुर्वन् प्रयुञ्जते तदोङ्कारं शाण्डि ५.६५ प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च प्रयुतेनाभिषेकेन शम्भो नारा १.३४ प्रव्रज्यावसितो राज्ञो प्रयोगकाले मंत्राणं भार ५.५३ प्रशंसावृत्तिको जीवेद् प्रयोगकाले मंत्राणि भार ६.१ ४१ प्रशस्तपात्रे चान्नन्तु प्रयोगे चोपसंहारे प्राणायाम विश्वा ३.३९ प्रशस्ताचरणं नित्यम प्ररोहत्यग्निमादाय ___का ८ प्रशस्तानीति नोचुर्हि प्ररोहिशाखिना शाखा या २.२३० प्रशस्य कीदृशो विप्रो प्रलम्बं मुष्टिकं चैव विश्वा ६.६३ प्रशासितारं सर्वेषां प्रालिम्य मधु सर्पिर्ध्या वृ परा ५.८४ प्रशासितारं सर्वेषां प्रवदन्ति महात्मान् नदी कपिल ९९३ प्रश्ने द्वितीये देवा वै प्रवदन्त्यन्यथा केचित वृ परा १२.३०६ प्रसंस्पर्शाल्लोचनयो प्रवदिष्यन्ति तां वाचं पितृ कपिल ७१५ प्रसक्ते सति तैरेतच्छ्राद्ध प्रवदेत्तेन मनुना यज्ञ आंपू ८९९ प्रसन्नाक्षीरिणो पुण्या प्रवः पान्तमिति सूक्तेन वृ हा ८.२३६ प्रसन्नात्माभवेत्कर्ता प्रवरः कथितः सद् आपू ।।४ प्रसन्नो नित्यमनेन प्रवराग्रन्थिभेदश्च ब्र.या. ८.७७ प्रसन्जेति सूक्तं वै प्रवराग्रंथिभेदश्च ब्र.या. ८.२० प्रसवं सूतकं प्राहुरशौचं प्रव (वे) शं सर्वतीर्थाना बृ.गौ. २०.८ प्रसवे गृहमेधी तु न प्रवासयेत् स्वराष्ट्रातु वृ हा ४.१८४ प्रसवे च द्विजातीनां प्रवासोंच्छिक्षयेद्वा कपिल ५८६ प्रसह्यघातिनश्चैव प्रवासस्थैः वनस्थैः वा वृ.गौ. ५.३२ प्रसह्य दास्यभिगमे प्रवासे यजमानस्य कण्व ३७० प्रसह्यहरणादुक्तो प्रवाहनादिकर्माणि आंपू ८१ प्रसह्य हरणादाक्षस स्मृति सन्दर्भ वृ परा १२.३७ वृ.गौ. ७.१२४ या ३१४ वृ परा ८.७८ मनु ९.३०६ __आपू२२४ आंपू २२५ वृ.गौ. ५.११३ या १.२६६ मनु १२.९० बृह ११.४२ प्रजा १४६ बृह ११.३९ या २.१८६ औसं ८ .५.२८ अत्रिस ३६ लोहि १७० बृ.गौ. १४.१० मनु १२.१२२ बृह ११.५५ कण्व ५२६ औ २.२४ कपिल ६२ वृ.गौ. ६.१६८ आश्व ३.१३ व हा ५.५६० वृ हा ८.१४ वृ परा ८.२ पराशर ३.३० वृ परा ८.४९ या २.२७७ या २.२९४ नारद १३.४३ बौधा १.११.८ टपच Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४५९ प्रसादस्तीर्थ सेवा च वृ हा ८.३३५ प्राक्संध्यामध्यसंध्या भार ६.५ प्रसादो द्विविधो ज्ञेयो वृ परा ८..८० प्राक् सायमाहुते प्रातः कात्या २७.८ प्रसादो भवता कार्य कपिल ७० प्रागग्रेषु कुशेष्वेव व २.३.१५० प्रसाधतामितीत्युक्त्वा प्रजा ६६ प्रागग्रेषु समासीनं वृहा २.१२४ प्रसाधनोच्छादन स्नापन बौधा १.२.३४ प्रागग्नौकरणं दद्याद्दत्वा वृ परा ७.२१६ प्रसाधनोच्छादन बौधा १.२.३६ प्रागामुदगग्रंवाशुचौ । भार १८.३२ प्रसाधनोपचारज्ञमदासं मनु १०.३२ प्रागग्रमुदगग्रंवा स्थापये भार १८.१०७ प्रसारयेदुदक्संस्थान आश्व २.१४ प्रागग्रेष्वथ दर्भेषु कात्या ३.११ प्रसारितं च यत्पण्यं __ व १.३.४५ प्रागग्रावमितः पश्चाद् कात्या १५.२० प्रसार्य बाहू पादौ च वृ हा ४.१२८ प्रागग्रे द्वे पवित्रे तु आश्व १.८६ प्रसीद मम नाथेति वृ हा ५.१७४ प्रागचामेदभृतस्यात् विश्वा २.२ प्रसीद मे महेर्षे त्वं नारा ५.२ प्रागादिप्रत्यगंतस्य व्या २१२ प्रसूता वाप्रसूता वा नारद १३.४९ प्रागादिष्वाहुति द्वे वे आश्व १.१२६ प्रसूतिकाले संप्राप्ते पराशर ३.१९ प्रागुक्तेन प्रयोगेण वृ परा १२.२३९ प्रसृतं यवशस्येन आप ९.४ प्रागुदीच्याञ्च सदृशं वृ हा ४.९८ प्रस्थवामि नवान्यानि ब्र.या. १२.२७ प्रागेव केतितान्विप्रान् वृ परा ७.१७२ प्रस्था द्वात्रिंशतिर्दोणः पराशर ६.६८ प्राग्दक्षिणोत्तरप्रत्य भार ६.७४ प्रहर्षयेद्वलं व्यूह मनु ७.१९४ प्राग्दुकृतेष्वग्निषु औ ३.६३ प्रहीणद्रव्याणि राज व १.१६.१७ प्राग्दृष्टदोषशैलुष नारद २.१६० प्रहृत्य पृष्ठे हस्तेन लोहि ६११ प्रागं द्वारं सर्व वर्णना वृ हा ६.९६ प्रहृष्टवदनं दत्वा वाक्यं शाण्डि ४.५७ प्राग्वद्विप्रार्चनं कार्यं वृ परा ७.१९६ प्रहृष्टः सुमना भूत्वा वृ.गौ. २२.३६ प्राग्वा पत्यङ्मुखो वाऽपि वृ हा ५.२६१ प्रह्वाङ्गो भीतवद्भोगैस्त शाण्डि ४.२३ प्राग्वा ब्राह्मणे तीर्थेन व २.३.९९ प्राकाररोधे विषमप्रदेशे अत्रिस २३१ प्राग्वा ब्राह्मणे तीर्थेन । ब्र.या. ८.५२ प्राकारस्य च भेत्तारं मनु ९.२८९ प्राग्विनशनात् प्रत्य बौधा १.२७ प्राकारे शंखचक्र व २.७.४१ प्राग्वोदग्वाऽऽसीनः व १.३.२८ प्राकृतं च कुशास्त्राणि वृ परा ६.२७५ प्राकसीनः समाचम्य आश्व १.१८२ प्राकृत्ये सति चैवायं वृ परा २.१ ४१ प्राइनाभिवर्धनात् पुंसो मनु २.२९ प्राक्कूलान् पर्युपासीन मनु २.७५ प्राङ्मध्यम विजानीयात् भार २.६ प्राक्तानात् कर्मणः पुंसा वृ परा ११.३०२ प्राङ्मुख उदङ्मुखो बौधा १५.११ प्राकृ तु तेन समासीनो ल व्यास १.२४ प्रामुखऽन्नानि मुंजीत व १.१२.१५ प्राक्पूर्वेदिति नामानि मार २.१२ प्रामुखं तु समासीनं वृ हा २.१८ प्राक्प्रातराशात्कषी बौधा २.२.८२ प्रामुखश्चेद् दक्षिणं बौधा १.७.१२ प्राक्संस्कारं प्रमीतानां व १.११.२० प्रामुखश्चरणौ हस्तौ भार ५.३७ प्राक्संस्थानन्तरालं आश्व १.१२५ प्राङ्मुखषश्चैव पूर्वाणे ब्र.या. ८.३५७ Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० प्राङ्मुखस्तानि भुंजीत प्राङ्मुखी कन्यका प्राङ्मुखोदङ्मुखो वापि प्राङ्मुखोदङ्मुखो वापि प्राङ्मुखो दैवते प्रोक्तः प्राङ्मुखो निर्वपेत प्राङ्मुखोऽन्नानि भुंजीत प्राङ्गुखोऽमरतीर्थेषु प्राचीतरं तु यत्स्थानं प्राचीनगर्भतमृषिं प्राचीनवीतकः पित्र्यं प्राचीनावीतमन्यस्मि प्राचीनावीतिनाकार्य प्राचीनवीतिना कार्य प्राचीनावीतिना भूत्वा प्राचीनवीतिना सम्यग् प्राचीनवीतिना हुत्वा प्राचीनप्रतीच्योस्थं मध्ये प्राचीं च दक्षिणांचाध प्राचीं विश्वजिते सूक्त प्राचीमध्यं विनान्यत्र प्राच्यादिशस्तधामन्त्र प्राच्योदीच्यागसहितं प्राजकश्चेद्भवेदाप्तः प्राजापत्यकरेणैव प्रासाद प्राजापत्यत्रयं कुर्यान्त प्राजापत्यद्वयं कृत्वा प्रादजापत्यं चरेज्जग्ध्वा प्राजापत्यं चरेद् विप्रः प्राजापत्यं चरेत्कृच्छ्रं प्राजापत्यद्वयं तस्य प्राजापत्यद्वयेनापि प्राजापत्यं चरेन्मृत्सा प्राजापत्यं विशः पत्या प्राजाप्तयं सकृच्चैवं औ ३.९७ आश्व १५.२० ल हा ४.६५ वधू २९ व २.६.२९२ औ ५.९७ औ १.६२ वृ परा ७.१७९ भार २.७७ बृह १२.७ औ ५.४२ भार १५.९५ कपिल २५६ कात्या २९.१३ ब्र. या. ४.१३२ मनु ३.२७९ व २.६.२८५ भार २.२६ भार ६.१२४ वृ हा ६.५५ भार २.२१ कण्व ८८ नारा ३.१३ मनु ८.२९४ भार २.६५ ब्र.या. ८.३६ नारा १.२३ औ ९.३१ आप १.२० या ३.२५९ देवल ५४ पराशर १२.६ अत्रिस २२३ वृ परा ८.२२७ शाता २.४२ प्राजापत्यं स्विष्टकृतं प्राजापत्यमदत्वाऽश्व प्राजात्यमसत्याच्चेत् प्राजापत्यर्क्षसंयुक्ता प्राजापत्याख्य काण्डानि प्राजापत्यात्तु होतव्यं प्राजाप्तयानि कुर्वीत प्राजापत्यानि चत्वारि प्राजात्यां निरूप्येष्टि प्राजापत्येन तत्तुल्यं प्राजापत्येनतीर्थेन प्राजापत्येन तीर्थेन प्राजापत्येन मंत्रेण प्राजापत्येन मुख्येन प्राजापत्येन शुद्धि स्यात् प्राजापत्येन शुद्ध्येत प्राजापत्ये मुहूर्ते प्राजापत्ये मुहूर्ते प्राजापत्यैस्त्रिभिः प्राजाप्योत्तरेन्द्राग्नेर्दक्षिणे प्राज्ञ कुलीनं शूरं च राज्ञः क्षया कुर्वीत प्रापं प्राचमुदग्ने प्रांजला सप्तहस्ता प्राञ्जलिंविधभृत्याश्च प्राणदानं च यो दद्यात् प्राणप्रतिष्ठामन्त्रस्य प्राणरज्वा न्यसेदग्निं प्राणसंयमनेष्वेता प्राणस्त्वग्निस्तथाऽऽदि प्राणस्य त्रिपुटीग्रास प्राणस्यान्नमिदं सर्व प्राणस्यायमनं कृत्वा प्राणस्यायमने चैव प्राणाग्निहोत्रविधिना स्मृति सन्दर्भ व्यास ३.३० मनु ११.३८ अत्रिस ५.५४ वृ हा ५.४७१ कण्व ५१२ व २.३.१०१ शाता २.२१ शाता २.४१ मनु ६.३८ वृ परा २.९२ व २.४.६२ शंख १०.३ व २.४.११७ कण्व ५११ औ ९.३३ अत्रिस २०० व १.१२.४५ व १.१७.५२ बृ.या. ४.२५ ब्र. या. ८.२९३ मनु ७.२१० ब्र. या. ४.३४ कात्या ८.१५ वृ परा ५.७० ब्र. या १.२९ वृ परा १०.२४५ विश्वा ६.२५ वृ परा ६.१०३ वृ परा २.६८ बृह ९.१३८ ब्र. या. २.१७६ मनु ५.२८ बृ.या. ८.४६ बृ.या. ४.१० वृ परा ६.८५ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी प्राणाग्निहोत्रविधिना प्राणाग्नि होत्र समये प्राणात्यये तथा श्राद्धे बृह ९.१३९ वृ हा ५.९२ या १.१७९ वृ परा ६.१११ भार १७.२५ प्राणाद्येवाग्निहोत्रादि प्राणानाग्रंथिरसीत्य प्राणानामयुताभ्यां वृ परा ४.४५३ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व १.३४ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व १.८३ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व २.४ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व ९.३ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व १५.७ प्राणानायम्य संकल्प्य आश्व २३.५ प्राणानायम्य संकल्प्य भार ५.३३ प्राणानायम्य सम्प्रोक्ष्य या १.२४ प्राणनाशस्तु कर्तव्यो व्यास ४.२५ प्राणान् त्यजति यो विप्रो वृ.गौ. ५.१९२ प्राणापानव्यानानि अर्क भार १९.३५ विश्वा ३.९ प्राणापान समानबिन्दुसहितं प्राणापानादिसंयुक्त प्राणायामं विश्वा ३.४३ प्राणायामं तथा ज्ञात्वा विश्वा ३.२४ व २.३.११० प्राणायामत्रमं कृत्वा प्राणायाम त्र्यं कृत्वा प्राणायामत्रयं धीमान् प्राणायामन्तः कृत्वा प्राणायामन्तु यत्काले प्राणायामः ब्राह्मणस्य प्राणायामं च पञ्चाणैः प्राणायामं च विधि प्राणायामं प्रकुर्वीतं प्राणायामंततः कुर्याद् प्राणायामं तथा ध्यानं प्राणायामं प्रकुर्वीत प्राणायामं प्रकुर्वीत प्राणायामं विना यस्तु प्राणायामं स्मरेदन्यं प्राणायामत्रयं कुर्यात् प्राणाध्यामत्रयं प्रातः प्राणायाम प्रयोगे च प्राणायामफलं हत्वा प्राणायाम विधाने न प्राणायाम विधाने न भार ८.११. ल हा ४.३९ बृ.गौ. १६.१२ वृ. गौ. ८.११४ मनु ६.७० विश्वा ६.१२ व २.३.१३१ विश्वा ६.३४ प्राणायामशतं कार्य प्राणायाम शतं कार्य प्राणायामशंत कुर्युः प्राणायामशो वा शतकृत्वः प्राणायामस्तथा ध्यानं प्राणायामस्तथा संध्या प्राणायामस्यमात्रां प्राणायामान्धारयेत् प्राणायामान् पवित्रांश्च प्राणायामान् पवित्राणि प्राणायामाः ब्राह्मणेन प्राणायामा ब्राह्मणेन प्राणायामां (स्तु) स्तथा प्राणायामी जले स्नात्वा प्राणायामे च संप्राप्ते प्राणायामे तथा ध्याने प्राणायामेन वचनं प्राणायामैः पवित्रैश्च प्राणायामैः पवित्रैश्च प्राणायामैर्दहेत् दोषात् प्राणायामैर्दद्दोषान् प्राणायामैर्दद्दोषान् प्राणायामैर्य आत्मानं प्राणायामैर्य आत्मानं ब्र. या. ४.६५ बृ. या. १.८ विश्वा ३.७० विश्वा ६.३३ विश्व ३.४० प्राणायामै स्तदभ्यस्य प्राणायामै स्त्रिभिः पूर्वं प्राणेभ्योजुहुयादन्नं प्राणिलोके ततस्तत्तु विश्वा ३.६० प्राणि वा यदि वाऽप्राणि ४६१ विश्वा १.६७ विश्वा ३.२ ब्र.या. ३.१६ तृ परा ६.१३१ व २.६.६३ वृ हा ४.६१ बृ.या. ८.३६ या ३.३०५ बृ.या. ८.४० बौधा २.४.८ दक्ष ७.२ बृ.या. १.२६ ब्र. या. २.५४ व १.२६.१ अत्रिस १.६ व १.२५.४ ब्र. या. २.६४ बृ.या. ८.२९ अत्रि २.१ या ३.२९० विश्वा ३.३७ बृ.या. ४.३७ ल हा ७.४ अत्रि १.५ व १.२५.३ अत्रि १.१० मनु ६.७२ बृ.या. ८.३२ अत्रि २.३ व १.२६.४ वृ परा १२.२१२ औ ३.४० व २.६.२०५ आं पू७११ मनु ४.११७ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ प्राणोऽन्नमस्मिन् प्राणो व्यानस्तथाऽपानः प्राणो व्यानो हापानश्च प्रातःकाल इति ज्ञात्वा प्रातःकाल जपं कुर्यान्नि प्रातःकाले च सायाह्ने प्राप्तः काले शुचि स्नात्वा प्रातः कृत्यं समाप्याथ प्रातः दृष्टदिगानी तै प्रातः पादं चरेच्छूद्रः प्रातः मध्याहूनयोरप्सु प्रातरितक्रमेऽरूपवास प्रातरामान्त्रितान् विप्रान् प्रातरुत्थाय कर्त्तव्य प्रातरुत्थाय यो मर्त्यो प्रातरुत्थाय यो विप्रः प्रातरुत्थाय यो विप्रः प्रातरुत्थाय यो विप्रः प्रातरुत्थाय यो विप्रः प्रातरुत्थायसने हुत्वा प्रातरेव हि दोग्धव्या प्रातरीपासनं कुर्यात् प्रातरौपासनं हुत्वा प्रातरीपासनं हुत्वा प्रातरौपासनाग्नेस्तु प्रातर्मध्याह्नकाले प्रातर्मध्याह्नकाले तु प्रातर्मध्याह्नयो स्नात्वा प्रातर्मध्याह्नयो स्नानं प्रातर्वा यदि वा सायं प्रातः संक्षेपतः स्नानं प्रातः सतारकां संध्यां प्रातः संध्यां उपास्याग्नि प्रात संध्यां सनक्षत्रा प्रातः सन्ध्यां सनक्षत्रा वृ परा ६.१८७ बृह ९.१४१ बृह ९.१३२ विश्वा १.१८ विश्वा १.६ विश्वा ७.२ व्या ११० औ ३.९६ वृ परा १२.१६० आप १.१५ आश्व १.४१ बौधा २.४.२२ कात्या २.१ दक्ष २.१ वृ.गौ. ९.३५ बृ.या. ७.११७ दक्ष २.१० वाधू ९८ विश्वा १.३८ व २.४.१०९ वृ परा ५.८ व २.६.१२३ आश्व २.२ वृ हा ८.६२ आश्व २३.३ विश्वा ८.२२ विश्वा ६.६९ प्रातः सन्ध्यामुपासीत प्रातः सायं जपेन मंत्र प्रातः सायं दिनार्द्दञ्च प्रातः सायमयाचितं प्रातः स्नात्वा विधानेन प्रातः स्नात्वा विधानेन प्रातः स्नानं प्रशंसन्ति प्रातः स्नानेन पूयंते प्रात स्नायो हि यो विप्रः प्रातिभाव्यं मृणं साक्ष्यं प्रातिभाव्यं वृथादानमाक्षिकं प्रातिलोम्येन यो याति प्रातिलोम्ये महत्पापं प्राथम्येन पुरस्कृत्य प्राथम्येनैष दद्भोक्तुः प्रादुर्भावगुणं चापि प्रादुष्कृतेष्वग्निषु तु प्रादेशद्वयमिध्मस्य प्रातः सूर्याहुत होम प्राजापत्य प्रातः स्नातोऽपि विधवत प्रादेशमात्रकाः सर्वा प्रादेशमात्र तपते प्रादेशमात्रौ कौशेयो प्रादेशान्नाधिका नो न प्रादेशिन्या पैतृकन्तु प्राधानानैव निश्चित्य प्राधान्यं पिण्डदानस्य. प्राधान्येनैव चोक्तानि विश्वा १.९५ विश्वा १.९१ वृ परा ६.१७४ कण्व १६२ भार ६.१५६ प्राप्तमूत्रपुरीषस्तु न प्राप्तयतो स्त्रियं भर्त्ता आश्व १०.५३ बृ.या. ४.५० वाघू ७ प्राप्ता देशाद्धनक्रीता प्राप्तान् भावगतास्तत्र प्रापणं भगमुक्तं लब्ध्वा प्रापणं साधितुं नित्य प्राप्तमंत्र स्ततः शिष्य स्मृति सन्दर्भ वाधू ९६ आश्व १.५८ आप १.१४ बौधा २.१.९२ व २.४.६४ शाण्डि ३.५७ वृ हा २.१०७ वृता ७.२४९ दक्ष २.१२ ल व्यास १.७ वृ परा २.९७ वृ हा ४.२४३ मनु ८.१५९ दक्ष १.१२ वृ.य. ४.४८ लोहि १९ लोहि ४४४ शाण्डि २.४ मनु ४.१०६ कात्या ८.१९ वृ परा ११.५० बृह ९.१७५ वृ हा ४.३८ कात्या ८.१८ व २.३.१०० लोहि १४७ कात्या २९.९ कण्व ४३९ शाण्डि ४.७५ शाण्डि ४.७४ वृ हा २.१३७ वृ.गौ. १२.१६ व_२.४.१९८ नारद १३.५२ शाण्डि ४.४४ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी प्राप्तन्येव भवन्त्यस्या प्राप्ता भवेयुः तत्कुल प्राप्ति निऋतिदिनगमागे प्राप्ते द्वादशे वर्षे प्राप्ते तु द्वादशे वर्षे प्राप्ते तु द्वादशे वर्षे प्राप्ते द्वादश वर्षेऽत्र प्राप्ते नृपतिना भागे प्राप्त्युपायं फलञ्चैव प्राप्नुयाद् वैष्णवं प्राप्नुवन्तु भवन्तश्च प्राप्नुवंत्यंनिशं हर्ष प्राप्नोति सूतकं गोत्रे प्राप्यते चोपभोगार्थ प्राप्य देशं च कालं च प्राप्य विप्रोऽप्यविधिवत प्रामाणिको हितद्भिन्नो प्रायः किंजल्पनैर्बधैः प्रायशोखिलमंत्राणां 'प्रायश्चित्तक्रियाहेतो प्रायश्चितन्तु तस्यैव प्रायश्चितनिमित्तेवा प्रायश्चितप्रणेतारः प्रायश्चितं त. कृत्वा प्रायश्चितं चतुष्पादं विप्रो प्रायश्चितं चिकीर्षति प्रायश्चितं तु कुर्वाणाः प्रायश्चितं तु तस्मैव प्रायश्चितं तु यत्प्रोक्तं प्रायश्चित दृश्यते न प्रायश्चितं द्वितीयाय प्रायश्चित्त न कुर्याद्य प्रायश्चित्त न यतप्रोक्तं प्रायश्क्तिं नास्ति तेषां लोहि ४७२ प्राथश्चितं पुरश्चैव अत्रिस २०७ कपिल ७७१ प्रायश्चित्तं प्रकुर्वीत वृ हा ६.४३६ भार ११.४३ प्रायश्चितं प्रदातव्यं वृ हा ६.२८५ यम २२ प्रायश्चित्तं प्रयच्छन्ति । पराशर ८.२७ बृ.य. ३.२० प्रायश्चित्त भवेत् पुंसः पराशर ११.४१ पराशर ७.७ प्रायश्चित वाऽप्यपदिश्य व १.१७.५८ वृ परा ७.३६५ प्रायश्चित्तं विधाया आश्व ९.२० या २.२०४ प्रायश्चित्तं विशिष्टं वृ हा ७.१३३ वृ हा ८.१५१ प्रायश्चितं सदा दद्याद् पराशर ८.३७ वृ परा ११.३०५ प्रायश्चितं समाख्यातं देवल ७२ आपू७९२ प्रायश्चितं समारभ्य देवल २४ कपिल १८८ प्रायश्चित्त प्रवक्ष्यामि देवल ५ पराशर ३.९ प्रायश्चित्तमकुर्वाणाः या ३.२२१ बृ.या. ३.२३ प्रायाश्चितत्तमकृत्यानां वृ हा ८.८२ आंउ ३.८ प्रायश्चितमिदं कुर्याद् व हा ७.१०५ औ ३.३७ प्रायश्चित्तमिदं गुह्य वृ हा ५.३६४ आंपू ८४७ प्रायाश्चित्तमिदं प्रोक्तं वृ हा ७.१३२ भार १३.३७ प्रायश्चित्तमुपक्रम्य बृ.य. २.७ भार ६.१९ प्रायश्चित्तरपैत्येनो वृ हा ६.१६७ ___ आपू ११ प्रायश्चितविशेषं तु पश्चात् वृ हा ८.३०१ वृ हा ६.२१५ प्रायश्चित्त विहीनं तु देवल ११ __अ ११७ प्रायश्चित विहीनानां शाता १.१ आंउ ४.४ प्रायश्चित्तशतैश्चापि तीर्थ कपिल ९७१ लघुयम ६३ प्रायश्चित्तसमं चित्त आंउ ४.२ आंउ १.३ प्रायश्चितस्य पादन्तु संवर्त १३९ पराशर १०.३९ प्रायश्चित्तादि दर्तिहि व २.४.१०० मनु ११.१९३ प्रायश्चित्ताधाहुतयोहो व. २.४.१०३ मनु ९.२ ४० प्रायश्क्तिपानोद्या सा कपिल ९०२ अ १४५ प्रायश्चित्तार्थ सहसा वृ हा ७.२३७ अ १४२ प्रायश्चित्तार्थमपि वा वृ हा ७.६ आंपू ९ प्रायश्चितावसाने तु देवल २९ विश्वा ७.७ प्रायश्चित्ताहुती र्तुत्वा व २.६.३३६ कात्या २३.५ प्रायाश्चित्तीयतां प्राप्य मनु ११.४७ वृ परा ८.३ ४१ प्रायश्चित्ते कृते विप्रो अ ४३ व हा ६.१८७ प्रायश्क्तेि चतुर्विंश विश्वा ३.६७ प्रायश्चि Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ प्रायश्चिते ततश्चीर्ण प्रायश्चित्ते ततश्चीर्णे प्रायश्चित्ते तत्रश्चीर्णे प्रायष्चिते ततश्चीर्णे प्रायश्चित्ते तथा चोर्णे प्रायश्चित्ते तु चरिते प्रायश्चित्ते यदा चीर्णे प्रायश्चित्ते समुत्पन्ने प्रायश्चित्ते समुत्पन्ने प्रायश्चित्ते पक्रान्ते प्रायश्चित्तैरपैत्येनोयद् प्रायश्चित्तोक्तमन्त्राणां प्रायेण धर्मतो वृद्धि प्रायेण मरणं नाम प्रायेणाकृतकृत्यत्वाद् भूय प्रायो नाम तपः प्रोक्तं प्रारम्भ कर्मणश्चैव प्रारम्भ व्रतमध्ये तु प्रारंभी वरणं यज्ञे प्रारम्भो वरणं यज्ञे प्रारेवमुपासित्वा प्रात् प्रार्थनासु प्रतिप्रोक्ते प्रार्थितः संप्रदानेन प्रावीण्यं प्रापणं नित्यं प्रावृत्य परिधायाथ प्रावृत्य वाससा वाचं प्रावृष्य आकाशशायी प्राशनं यत्पुंसवनं प्राशान्ति अत्रि अम्बुपातेन प्राशयित्वाऽग्नि वर्णन्तु प्राशयित्वा त्रिराचम्य प्राशयेत्त हिरण्येन प्राशयेदग्नौ तदन्नन्तु प्राशयेद्दधिसक्तूंश्च प्राशयेद्भोजयेन्नित्यं लघुयम ६१ परशर १०२३ पराशर १.४ पराशर ८.४८८ वृ हा ६.४३९ मनु ११.१८७ आंउ ६.९ पराशर ८.८ आंउ २.६ यम १२ या ३.२२६ कण्व १२० कपिल ७४९ वृ.गौ. ८.५ वृ.गौ. ८.६ आउ ४.९ प्रासादा पाण्डराभ्राभा प्राणेशुचि शुचौ देशे प्रिय गुपप्रसंयुक्तं प्रियंवदात्मनो नित्यं प्रिय वा यदिवा द्वेष्य. प्रियाप्रियपरिष्वङ्गः प्रियासूक्तं समुच्चार्य देवीं प्रियेषु स्वेषु सुकृतं प्रियेषु स्वेषु सुकृत प्रियो वा यदि वा द्वेष्यो प्रियो वा यदि वा द्वेष्यो प्रीणाति तर्पयन्त्येन प्रीणन्ति पितरः सर्वे प्रीणयेदश्वशिरसं प्रीणिता पितरस्तेन प्रीतये वासुदेवस्य प्रीतये सर्वयज्ञस्य प्रीतिमानानृशंस्यार्थ प्रीतिदत्त श्राद्धकालमहं प्रीत्यासन्नस्सपिण्ड कात्या ४.९. शंख ४.५ कपिल ६३३ आश्व ४.१७ वृ.गौ. ६.१२ वृ हा ६.२७७ आश्व १.३१. प्रीत्ये विद्धि राजेन्द्र प्रीत्यतां धर्म राजेति प्रीयतां धर्मराजेति प्रीयन्तां पितरः पश्चात् प्रेक्षणं शशिनोऽर्कस्य प्रेतकार्यस्पर्शमात्र स्नात्वा प्रेतकृत्यैकभिन्नेषु प्रेतत्वाच्च न निर्मुक्त प्रेतपत्नी षण्मासान् प्रेतपूर्व्वादिकं वृद्धिं कपिल ५७७ प्रेत भूतादिनामानि व २.६.४७ आश्व ५.३ औ ५.२९ आश्व १२.१० आश्व १५.७३ वृ हा ६.२३४ दा १३५ आश्व १५.७४ भार ६.१५७ प्राशयेन प्रधन्वेन प्राशितं बलिदानञ्च प्रासादं कारयित्वा प्रासादं पर्णशाला वा व २.६.८ शंख ६.६ स्मृति सन्दर्भ ब्र.या. ८. २०८ वृ.गौ. ८.१२ शाता २.४४ शाण्डि १.७८ बृ.गौ. १२.५३ भार १५.४४ वृ परा १०.९० शाण्डि ४.४९ वृ.गौ. ६.७१ पु २० विश्वा ७.२० मनु ६.७९ बृह ११.५१ वृ परा २.८ पराशर १.४० औ ३.४३ दा ४४ वृ परा १०.२६६ आंपू ८६१ वृ हा ५.१२ वृ हा ५.२१९ वृ.गौ. ८.६४ लोहि ४०० कण्व ७५३ वृ. गौ. ६.१०५ व १.२८.१९ अत्रि ३.२० आंपू ८९२ वृ परा ८.३०० आंपू ४६६ लोहि ६८ आंपू ४६३ व १.१७.४९ ब्र. या. ३.४४ वृ परा ५.१७२ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी प्रेतमूढ्वा च दग्ध्वा प्रेतशुद्धि प्रवक्ष्यामि प्रेत श्राद्धे पृथक्पाकं प्रेतश्राद्धे बिनायेन प्रेत श्राद्धेषु सर्वत्र प्रेतस्पृक तैलनिर्णेक्ता प्रेतस्य प्रकार्याणि प्रेतस्य तु जलं देयं प्रेतस्य दहनार्थन्तु प्रेतस्य प्रेतपात्र प्रेताय च गृहद्वारि प्रेतार्थं पितृपात्रेषु ताहुतिस्तु कर्तव्या प्रेतीभूतञ्च यः शूद्र प्रेतीभूतन्तु यः शूद्र प्रतीभूतंच यः शूद्र प्रेतीभूतं च य शूद्र प्रेते राजनि सज्योतिर्यस्य फ फट्कारान्तां च कुर्वीत् वृ परा ८.२८५ मनु ५.५७ विश्वा ८.३१ विश्वा ८.३२ आंपू ६८४ वृ परा ७.१२ शंख १७.६१ संवर्त ३९ व २.६.३२५ ब्र. या. ७.६ औ ७.१० प्रेरयन् कूपवापीषु प्रेषयेच्च ततश्चारान् प्रेषितः पुरुषो वाऽपि प्रेष्यो ग्रामस्य राज्ञश्च प्रोक्तप्रतिग्रहाभावे प्रोक्तं ममेरितं तेन प्रोक्तं मातामह श्राद्धे पितृ प्रोक्तवानिदमत्युग्रं ज्ञानं प्रोक्तं स द्विगुणः सन्ने प्रोक्तेन चैतेन मुनीश वृ परा १०.१४९ वृ हा ७.७ कपिल १६४ बृह १२.८ नारद १२.३० प्रोक्षण चमसाज्येन वृ हा ६.१०२ आश्व २.२७ शाण्डि ५.३ प्रोक्षणं न्यपवत्राभ्यां प्रोक्षणाचमने कृत्वा प्रोक्षणात् कथितां प्रोक्षणातृणकाष्ठं च शंख १६.१२ मनु ५.१२२ औ ७.१६ आंपू ९५१ बृ.गौ. १४.२१ पराशर ३.५१ वृ परा ८.२४ वृ परा ८.२८६ मनु ५.८२ पराशर ९.३६ या १.३३२ बृ.य. ४.१३ मनु ३.१५३ वृ परा ६.२३६ वृ परा ४.४८ ४६५ फट्फट् कारेण जुहूयात् वृ परा ११.१७७ फणा सहस्र विस्फूर्ज फलत्येवेति धर्मज्ञा न फलत्रयमपूपं च गुडान्नं वृ परा ११.१३१ लोहि २५४ शाण्डि ४.१५९ औ ९.१४ फलादानन्तु विप्राणां फलदानां तु वृक्षाणां फलपुष्पद्रुमाणां हि फलपुष्पान्नरसज फलपुष्पाम्बुकाष्ठाद्यं फलबीज समुत्पत्ति फलं कतकवृक्षस्य फलं त्वनभिसन्धायं फलं यत्पूर्व मुद्दिष्टन्त फलं यद्विधिवत्प्रोक्त फलं वृक्षस्य राजानः फलमयानां गोवालरज्जवा फलमूलानि विप्राय फलमूलाशनात् पूज्यं फलमूलाशनैर्मेध्यैः फलमूलेक्षुदण्डे च फलमूलोदकादीनां फलमोदकहस्ताभिः मनु ११.१४३ वृ हा ६.१८९ या ३.२७५ शाण्डि ३.६ आंपू ६०१ मनु ६.६७ मनु ९.५२ बृ.गौ. १८.२९ वृ.गौ. १७.३४ शंखलि २३ बौधा १.५.३९ संवर्त ५५ बृहस्पति ७२ मनु ५.५४ औ २.२९ नारद १५.३ वृ हा ६.५३ वृ परा १२.११६ शाता ४.१६ फलस्नेहा यदा न स्यु फलहारी च पुरुषो फलहेतोरुपायेन कर्म फलाकृष्टां महीं दद्यात् फलाधिकानि वर्तन्ते फलानि पिण्याकमथो फलानीक्षञ्च शाकञ्च फलान्यत्ति स्थितं तत्र फलान्यत्ति स्थितस्तत्र फलान्यत्ति स्थितस्तत्र फलान्यपस्तिलान्भक्षा फ (प) लाशकृष्ण छत्रे फलाष्टकप्रमाणेन तण्डुले नारद ४.२ अत्रि ६.६ कण्व ३४० आंउ ८.१८ औ ७.५ अत्रिस १७९ अत्रिस १७७ अत्रिस १८१ व १.१३.७ भार १५.१४३ नारा ९.९ Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ स्मृति सन्दर्भ फालाहतमपि क्षेत्रं या २.१६१ बन्धुदत्तं तथा शुल्कं या २.१४७ फलैः भक्षैश्च ताम्बूलैः वृ हा ७.२५९ बन्धुपल्योमित्रपत्न्यः लोहि ४२० फलैः मूलैः कृष्टानैः वृ परा १२.१५९ बन्धुप्रिय वियोगांश्च मनु १२.७९ फलैः शलादुभिर्वापि आंपू ५०१ बन्धुभिर्बालवृद्धाद्यैः व २.६.१९८ फलैश्च भक्ष्यभोज्यैश्चं वृ हा ५.४३० बन्धुमध्ये व्रतं तासां पराशर ९.५९ फलैश्च भक्ष्यभोज्यैश्च वृ हा ६.६६ बन्धूनां तत्र भोक्तणां कण्व ५९२ फलोपयोगिनः सर्वे व परा १०.३७७ बन्धूनां ब्राह्मणानां च कण्व ६८९ फलोपलक्षौमसोम या ३.३६ बन्ध्याष्टमेऽधिवेद्याब्दे मनु ९.८१ फल्गुतीर्थे नरः स्नात्वां अत्रिस ५७ बन्ध्वबन्धुप्रभेदेन लोहि १७४ फालकृष्टां महीं दत्त्वा वृहस्पति ६ बर्हिर्लोकेश्वराः पूज्याः वृ हा ४.९७ फालाकृष्टा मही देया वृ.गौ. ६.१३३ बलत्वेन दशाहे तु ___दा ११५ फाल्गुनस्यत्वमावास्या ब्र.या. ६.२३ बलमूर्खस्य मौनत्वं शंखलि २९ बलंवीर्य तथा तेजस्त्रि बृ.या.२.१०१ बलाद्गृहीतो बद्धश्च बृ.य. ५.१८ बकं चैव वलाका च मनु ५.१४ बलादत्तं बलाद्भुक्तं मनु ८.१६८ बकवच्चिन्तयेदर्शान् मनु ७.१०६ बलाद्धासीकृतश्चौरैः या २.१८५ बकागस्यासनद्रोण भार १४.१० बलान् मलेच्छैस्तु देवल २६ बको भवति हृत्वाऽग्नि मनु १२.६६ बालान् वृद्धान भोजयित्वा वृ हा ८.१ ४० बना विवालाः शुष्काग्राः भार ५.११ बलिकर्मस्वधाहोम या १.१०२ बघ्नीयात्कण्ठदेशे नु शाण्डि ३.७७ बलिकियां समुत्सृज्य विश्वा ८.४३ बघ्नोयात् कन्यकाकंठे आश्व १५.३३ बलिर्नारायणीयश्च वृ परा १.५६ बदराऽऽम्रकपित्थैश्च । वृ परा १०.५८ बलिशेषस्य हवनं कात्या २८.७ बदराऽऽम्र कपित्थानि वृ परा १०.२२८ बलीयस्त्वेन धर्मस्य वृ परा ७.३९८ बद्धमेतं सुषुम्णायां बृ.या. ६.२४ बलोपधिविनिर्वृत्तान् या २.३२ बद्धस्य क्षिप्यमाणस्य वृ.गौ. ५.६ बहवः स्यूर्यदि स्वांशैः या २.५६ बद्धहस्तं तु गान्धर्व वाधू १३९ बहवोऽविनयान्नष्टा मनु ७.४० बद्धासनोऽचलांगस्तु वृ परा १२.२ ४९ बहिः कर्मणि कुण्डं च व्या २९० बधबन्धोपजीवी च औ ४.२१ बहिः प्राज्ञो विभुर्विश्व बृ.या. २.९० बधिर- क्लीब- निःस्वा वृ परा १२.२०२ बहिः प्राग प्रकुर्वीत ब्र.या. ७.१९ बधेनापि यदा त्वेतान् मनु ८.१३० बहिर्गच्छेत्तदागच्छेत्सायं कण्व ५७१ बध्यांश्च हन्युः सततं मनु १०.५६ बहिर्गत्वा तिलाम्भस्तु वृ परा ७.३१९ बध्यो राज्ञा स वै शूदो अत्रिस १९ बहिर्जानुरुपस्पृश्य शंख १०.१५ : बन्धनं पालनं रक्षा वृ परा ५.६ बहिः शौचं व्याख्यास्यामः बौधा १.५.४ बन्धनानि च र्वाणि मनु ९.२८८ बहिः संज्ञो मध्यसंज्ञ बृ.या. २.८५ बन्धने रोधने चैव लघुयम ४५ बहिस्कृतो दूरपड्क्ति कपिल ७६४ बन्धप्राशसुगुप्तांगो म्रियते पराशर ९.३२ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी बहुकालं विल्वपत्रैः बहुजन्म बहुक्लेश बहुज्ञातिमती साध्वी बहुत्वं परिगृह्णीयात् बहुत्वं यत्र मक्षूणां बहुदुग्धदा स्निग्धांच बहुद्वारस्य धर्मस्य बहुना किमुक्तेन बहुना किमुक्तेन बहुप्रजास्तु या नार्यो बहुप्रतिग्राह्यस्या बहुप्रोक्तेषु सर्वेषु बहुभिर्दीपदण्डैश्च बहुभिस्तु धनैर्युक्तं बहुभोक्ता दीनमुखो बहुवर्ष सहस्राणि बहुविप्रतिरस्कार बहुशः पूर्वमेवायं समाचारो बहुशिष्यधनाग्रामवती बहुश्रुताय दातव्यं बहूनां तु प्रोक्षणम् बहूनां न प्रदातव्या बहूनां प्रोक्षणाच्छुद्धिः बहूनामपि दोषाणां बहूनामपि बन्धूनामे बहूनाम्मार्जनं प्रोक्त बहूनां शस्त्रघातानां बहूनां शस्त्रघातानां बहून् वर्ष गणान् घोरान् बहूनामेकजातानामेक बहूनामेकं भार्याणामेका बहूनामेक लग्नानामेक बहून् हि याजयेद्यस्तु बहुनामेककार्येषु यद्येको बहिप्रद हित्वैव वृ हा ३.२०० वृ हा ४.७ कपिल ५१८ मनु ८.९३ वृ परा ९२.१३६ बहूवृचानां तु यत्कर्म बाधकं च करञ्जञ्च ब्र. या. ११.१२ बौधा १.१.१३ औ ४.३६ देवल ७० बाधकानि बहून्येव संभवं बाधयेयुर्विदमानास्त बांधवाश्च ततो राजा बार्हस्पत्यं सप्तमं प्रजा ५९ बौधा २.३.१० कण्व १६४ बालकृष्णं विधानेन बालक्रीडादिचरितैः कर्म बालखिल्यादिमुनयो बालखिल्या महात्मानो वृ हा ७.३१३ व २.२.९ अत्रि स ३४७ वृ.गौ. ४.५० आंपू १४७ शाण्डि १.६ बालखिल्यास्तु संभूत्वा बालघ्नांश्च कृतघ्नांश्च बालघ्नीनां तु रागेण परेषां बालदायादिकं रिक्थं कपिल ५५७ वृहस्पति ६१ बौधा १.६.४५ बृ.गौ. १४.३९ शंख १६.९ बौधा १.१.३५ दा ६६ व २.६.५२३ ४६७ व्या १९० बह्वर्च यजुषं चैव बहुवर्णैः पदावावय (दा) न विश्वा ६.४८ बहवः स्यु प्रतिभूवो वह्वीनामेक पत्नीनामेका नारद २.१०३ द १,१७.११ आव २४.१८ शाण्डि ३.१०६ कपिल २६१ कपिल ८४१ व २.५.१५ बृ.या. ४.६५ व २.६.२५१ शाण्डि ३.७५ वृ हा ३.२३६ वृ.गौ. २.७ कण्व ४६१ लिखित ७२ दा ९३ मनु १२.५४ व १.१७.१० दा ६७ अत्रिस २४२ वृ परा ७.३५८ लघुशंख ४० व २.६.५०३ बालप्रमूढास्वतन्त्र बालगोपालवेषं बालं सुवासिनी वृद्ध बालया वा युवत्या वा बालवत्सकधेनूनां बालवासा जही वाऽपि बालवृद्धातुराणां च बालवृद्धातुरान्दासानां बालश्चैव दशाहे तु बालः समानजन्मा बाल समानजन्मा बालसूर्य प्रकाशेन बालस्त्वन्तर्दशाहेतु बालस्त्वन्तर्दशाहे तु बालानां स्तन्यपानादि बालानामथ वृद्धानां बालुकानां कृता राशि मनु ११.१९१ लोहि ७०३ मनु ८.२७ नारद ५.९ वृ हा ५.१८९ या १.१०५ मनु ५.१४७ वृ परा १०.१७८. सा ३.२५३ मनु ८.७१ शाण्डि ४.१२२ लिखित ८९ मनु २,२०८ औ ३.२५ वृ गौ ६.९१ अत्रिस ९५ लघुशंख ६३ आप १.९ वृ.गौ. १०.९७ अत्रिस ३३६ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ स्मृति सन्दर्भ बालु रून्मनसाध्यत्वा व २.६.४ बुद्धिवृद्धिकराण्याशु मनु ४.१९ बालेदेशान्तरस्थे मनु ५.७८ बुद्धिश्च न विचेष्टेत शाण्डि ५.७३ बालोऽज्ञानादस्त्यात्स्त्ररी नारद २.१७० बुद्धिश्चपूजीयास्ते वृ हा ७.९८ बालोऽपि नावमन्तव्यो मनु ७.८ बुद्धीन्द्रियाणि पंचैषा मनु २.९१ बालो वद्धस्तथा रोगी आप ३.५ बुद्धीन्द्रियाणि सार्थानि या ३.१७७ बाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत् मनु ५.१४८ वुद्धेरुत्पत्तिव्यक्तात् या ३.१७९ बाल्ये पित्रोरधीना सा कपिल ४१२ बुद्धेर्बोधियिता यस्तु बृह ९.४४ बाष्कलैरेकमात्रास्तु बृ.या. २.१२७ बुद्धयहकारमनसां बृह ९.१८२ बाहयेटुङ्कुतेनैव वृ.गौ. ९.५२ बुधस्त्वाभरणं भावं दक्ष ७.२६ बाहुग्रीवानेत्रसक्थि विनाशे या २.२११ वुध्वा च सर्व तत्वेन मनु ७.६८ बाहु द्वौ च ततः स्पृष्ट्वा वृ.गौ. ८.२९ बुभुक्षितस्त्र्यहं स्थित्वा या ३.४३ बाहुभ्यां न नदी तरेत व १.१२.४३ बुरी (गुरु) भूतं च गर नीरं शाण्डि ५.१० बाहुभ्याञ्च शतं दद्याद् पराशर ५.१६ बृषणेकटिनाभ्योश्चा भार ६.७३ बाहुमात्रं वदन्त्येके वृ परा ११.७० बृहत्वाद् बृंहणत्वाच्च बृह ९.८३ बाहुमात्राः परिधय कात्या १५.१९ बृहस्पते अतीत्यत्र वृ परा ११.३१९ बाह्यस्तु विषयाक्षेप बृह ९.३ बृहस्पतेरिति गुरोरन्नात् वृ परा ११.६६ बितानपुष्पमालादि वृ हा ७.२ ४१ बौद्धः कापिलकुहको बृह १२.९ बिन्दुमाधवविश्वेश आंपू ५३८ ब्याध्रचर्म समास्तीर्य वृ हा ५.१२२ बिन्दुहीनं तु योजं वृथा विश्वा १.१०० ब्रजमानतथात्मानं मन्यते ब्र.या. १०.५ बिभर्ति शूदो यदियः भार १६.५८ ब्रह्मकर्मरताः शान्ता प्रजा ७० बिभीतकं तथा शिग्रु व २.५.५३ ब्रह्मकुर्चविधानेन कण्व २६३ बिभृयादपि (च) य (ने) न कण्व ५७८ ब्रह्मकूर्च प्रवक्ष्यासि वृ परा ९.२३ बिम्बप्रस्थापकाच्चैव शाण्डि ३.३० ब्रह्मकूर्च मिदं प्रोक्तं वृ परा ९.३४ बिम्बं दृष्टा त्यजेदयं विश्वा १.१९ ब्रह्मकूर्ची दहेत्सर्व वृ परा ९.३९ बिम्बं बिड्जञ्च निर्यासं वृहा ८.९९ ब्रह्मकूर्चीपवासं वा वृ हा ६.३७४ बिल्वापार्मागमरुवतुलसी भार १४.१९ ब्रह्मकूर्च्छपवासेन पराशर ६.२९ बिल्वैरामलकैर्वाऽपि शंख १८.७ ब्रह्मकेशवरुद्रादि देवता भार ६.१५५ बिशेषेण तु विप्राणाम् वृ.गौ. २.२९ ब्रह्मक्षत्रविशा काल ब्र.या. ८.९६ बीजमेके प्रशंसंति मनु १०.७० ब्रह्मक्षत्रविशा चैव बृ.या. ७.१५८ बोजराज पाशबीजं विश्वा ६.२७ ब्रह्मक्षत्रियविट्शूदा या १.१० बीजशक्त्यादिकीलानां विश्वा ६.६७ ब्रह्मक्षत्रिय विड्जाता वृ परा ८.३२३ बीजस्य चैव योन्याश्च मनु ९.३५ ब्रह्मक्षत्रियवैश्यनामेवं भार १८.१०१ बीजानामुप्तिविच्च स्यात् __ मनु ९.३३० ब्रह्मक्षय शतेनापि वृ परा १२.३६७ बीजापचारं तत् सर्व नारद १२ ३९ ब्रह्मखानिलजेजांसि या ३.१४५ बुद्धिमान् धर्मवित्किंतु आंपू ३५८ ब्रह्म गोवधादि प्रायश्चित विष्णु ५० Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ब्रह्मग्रन्थिसमायुक्तं ब्रह्मघ्नः कृच्छ्रं द्वादशरात्रं ब्रह्मघ्नं च सुरापं वा ब्रह्मघ्नं या सुरापं वा ब्रह्मघ्नश्च सुरापश्च ब्रह्मघ्नश्च सुरापश्च ब्रह्मघ्नादिसहावा ब्रह्मघ्नो ये स्मृता ब्रह्मघ्नवा सुरापोवा ब्रह्मचर्यनिवृत्तिस्सा ब्रह्मचर्यं दया क्षांतिर्थ्यानं ब्रहाचार्य परन्तीर्थं ब्रह्मचर्यमनाधाय मास ब्रह्मचर्य महत्वं च ब्रह्मचर्यमार्य भागा ब्रह्मचर्य्यं सदा रक्षेदत् ब्रह्मचर्य्यभधः शय्या ब्रह्मचर्यमित्यादीनान्तुलोप ब्रह्मचर्यादिकं भिक्षा ब्रह्मचर्यादि नियमो ब्रह्मचर्याश्रमादूर्ध्वम् ब्रह्मचर्ये तु यत्प्रीते ब्रह्मचर्ये स्थितो नैक ब्रह्मचर्य्ये स्थितोनैक ब्रह्मचर्योक्तमार्गेण ब्रह्मचारिण एवात्र ब्रह्मचारिणः शवकर्मणा ब्रह्मचारिणः शवकर्मणो ब्रह्मचारियतिभ्यश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्रह्मचारी गृहस्थश्च ब्र. या. २.३६ व १.२०.१३ वृ हा ४.१९४ वृ हा ८.२०० वृ परा ८.९४ संवर्त १०८ नारा ५.५२ मनु ८.८९ व २.५.६९ लोहि ९ या ३.३१२ बृ.गौ. २०.१४ अत्रिस ३०६ लोहि ४७१ ब्र. या. ८.११. दक्ष ७.३१ लहा ३.२ कपिल ३१२ आश्व १०.३५ ब्र.या. २.२०८ आउ ५.६ बृ.गौ. ७.६७ व्र. या. ८.६३ या १.३२ व २.३.१९८ आश्व १०.४७ बौधा २.१.३० व १.२३.५ संवर्त ९२ पु ७ शाण्डि १.१२१ मनु ६.८७ व्या १४ दक्ष १.३ वृ परा १२.१४७ ब्रह्मचारी गृहस्थो वा ब्रह्मचारी गृहे येषां हूयते ब्रह्मचारी च मौञ्जीव ब्रह्मचारी चरेद् भैक्षं ब्रह्मचारी चेत्सित्रयं ब्रह्मचारी चेन्मांस ब्रह्मचारी जितक्रोधो ब्रह्मचारी ततः शुद्धौ ब्रह्मचारी तुयः स्कन्देत् ब्रह्मचारी तु यो गच्छेत् ब्रह्म (व्रत) चारी तु ब्रह्मचारी तु योऽश्नीयान् ब्रह्मचारी भवेत्तत्र ब्रह्मचारी भवेद्भुक्त्वा ब्रह्मचारी मिताहारः ब्रह्मचारी यतिश्चापि ४६९ बृह ११.४४ पराशर ३.२५ आश्व १२.११ नारद ६.९ व १.२३.१ व १.२३.८ बृ.गौ. १७.४० ब्र. या. ८.९० संवर्त २८ संवर्त २५ मनु १६.१५९ संवर्त २६ ब्र. या. ४.१४९ दा ६१ संवर्त २१६ आंउ ९.९ अत्रिस २७ अत्रिस १६४ ब्रह्मचारी यतिश्चैवं ब्रह्मचारी यतिश्चैव ब्रह्मचारी यतिश्चैद ब्र. या. १३.१९ आंउ ९.११ बृ.गौ. १६.२९ कात्या २५.१३ ब्रह्मचारी शुना दष्ट ब्रह्मचारी सदा चापि ब्रह्मचारी समादिष्टो ब्रह्मचारी स्त्रियं गत्वा ब्रह्मचार्याचार्य परिचरेत ब्रह्मज्ञानं च संप्राप्य ब्रह्मणः प्रणवं कुर्यादा ब्र. या. ८.८५ व १.७.३ कण्व ६३१ मनु २.७४ ब्र.या. २.३ ब्रह्मणाकथिता पूर्व संस्काराणि ब्र.या. ८.८ ब्रह्मणादितम्पूर्वं ब्रह्मणा तत्समीकृत्य ब्रह्मणा पूज्यमानास्तु ब्रह्मणावस्थान् सर्वान् ब्रह्मणी में शर्मा श्चैव ब्रह्मणे च तथाहुत्वा ब्रह्मणे चाग्नये चैव ब्रह्मणे दक्षिणा देया शाण्डि २.४३ वृ.गौ. ९.३२ औ ८.६ ब्र.या. १०.१२४ बृ.गौ. २०.४३ बृ.गौ. १६.२५ कात्या १५.१ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० स्मृति सन्दर्भ ब्रह्मतत्त्वं न जानाति अत्रिस ३७९ ब्रह्मयज्ञे विशेषोस्ति भार ४.३५ ब्रह्मत्वं काश्यपो वृ हा ३.२३५ ब्रह्म यस्त्वननुज्ञातं मनु २.११६ ब्रह्मत्वं च प्रयातेभ्यो आश्व २३.९५ ब्रह्मयोनिर्हि विश्वस्य विष्णु म ३४ ब्रह्मत्वं च प्रयातेभ्यो आश्व २३.९६ ब्रह्मयोनिषु जातानामपि केषां कपिल २८ ब्रह्मदण्डहतानां तु न कार्य अत्रिस २१५ ब्रह्मराक्षस ग्रस्तं च वृ परा ११.१७४ ब्रह्मदण्डादियुक्तानां कात्या २ ४.१६ ब्रह्मराक्षसपूर्वाश्च पिशाचा भार १२.३८ ब्रह्मदेयानुसंतानो शंख १४.६ ब्रहारात्र्यां व्यतीतायां विष्णु १.१ ब्रह्मध्यान समायुक्तं व परा १२.२१५ ब्रहालोकं व्रजत्येव वृ.या. ४.५३ ब्रह्मध्यानार्घ्यमात्रो यः कण्व १८२ ब्रहालोकगतिक्रम्य बृह ९.१६९ ब्रह्मन् विधे विरिञ्चेति प्रजा २ ब्रहालोक मतिक्रम्य ब्रह्मनिष्ठान्महाभागा कण्व ७८ नहालोकमवप्येह तत् आपू ५४८ ब्रह्मपर्वस्तु विज्ञेयः ब्र.या. ८.७६ ब्रह्मलोकादयो लोकाः आंपू ३१७ ब्रह्मपालाशकौतांकी ब्र.या. १.३२ ब्रह्मलोके ततः कामम् ४.गौ. २.२० ब्रह्मपुरोहितं राष्ट्र व १.१९.४ ब्रह्मलोके प्रमोदन्ते व गौ. २.२६ ब्रह्मपुष्पं तु ब्र.या. १०.१ ४३ ब्रहावर्चसकामश्चेत् भार १९.४३ ब्रह्मप्रजापतिपितृस्वर्गों भार ४.१४ ब्रह्मवर्चसकामस्तु शंख १२.२२ ब्रह्मप्रज्ञा च मेधां च विश्वा १.५९ ब्रह्मवर्चसकामस्य मनु २.३७ ब्रह्मबीजसमुत्पन्नो व्यास ४.४१ ब्रह्मवर्चस्विन पुत्रान् या १.२६३ ब्रह्म ब्रह्मा ब्राह्मणाश्च वृहा ८.१७२ ब्रह्मावत्स्गतिमृत्यु त परा १२.३ ४४ ब्रह्मभूतस्य तस्यास्य आयू ११४ ब्रह्मविदोऽनेकविधाः बृ.या. २.६२ ब्रह्मभूतं हि संचिन्त्य बृह ९.११६ ब्राविद्भिरिति ध्यान भार १३.३५ ब्रह्ममेध इति प्रोक्तं वृ हा ६.१०७ ब्रह्मविद्येति विख्याता वृ परा ६.९३ ब्रह्ममेधक्रियाशुद्धः पूर्व कण्व ७९३ ब्रह्मविष्णुमहेशाश्च औ २.२३ ब्रह्ममेधस्तथा कृत्यं कण्व ५३२ ब्रह्मवीर्यसमुत्पन्नः कण्व २२७ ब्रह्मयज्ञन्ततः कुर्या ब्र.या. २.८९ बह्म वै चतुर्होतारः तेभ्यो कण्व ३९४ ब्रह्मयज्ञं च वै कुर्यात् आश्व १.११४ ब्रह्म वै स्वं महिमानं बौधा १.१०.२ ब्रह्मयज्ञः स विज्ञेयः दक्ष २.२६ ब्रह्मव्याकारभेदेन भार ६.२ ब्रह्मयज्ञाङ्गकस्नानं विश्वा १.९८ ब्रह्मशीर्षकमेतद्धि सर्व विश्वा ५.२२ ब्रह्मयज्ञादिकं कुर्यादन्यथा कपिल २६० ब्रह्मसूत्रं तयोहीन भार १५.५१ ब्रह्मयज्ञे जपेत्सूक्तं वाधू १५६ ब्रह्मसूत्र द्विजः कुर्यान्नि भार १६.४२ ब्रह्म यज्ञेति केतुंच चित्रं वृ परा ११.६४ ब्रह्मसूत्रमितिख्यातं भार १५.९८ ब्रह्मयज्ञे त्रिधाचामेच्छु विश्वा २.४७ ब्रह्मस्थानं च तन्मध्ये वृ परा ११.२१९ ब्रह्मयज्ञे त्रिराचामेच्छौतं विश्वा २.५१ ब्रह्मस्यब्राह्मणा यत्र दद्या व २.४.१ ३१ ब्रह्मयज्ञेन दर्शादिश्राद्धेषु लोहि ३२१ ब्रह्मसूत्रन्तु कण्टेन ब्र.या. २.१ ४५ ब्रह्मायज्ञेन वै तद्वत्तथांकारं व्या ३१८ ब्रह्मसूत्रं स्व के धेयो ब्र.या. २.९९ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४७१ ब्रह्मस्व त्रिषु लोकेषु वृहस्पति ४८ ब्रह्माणां शंखरं का सूर्य ल व्यास २.४० ब्रह्मस्वन्यासापहरणाम् बौधा २.१.५२ ब्रह्माणं श्वसञ्चानग्नि वृ.गौ. ८.७० ब्रह्मस्वं तु विषं घोरं व १.१७.७६ ब्रह्मांत्वेतान् सृजन् बृ.गौ. १५.१२ ब्रह्मस्वं पुत्रपौत्रघ्नं बौधा १.५.१२१ ब्रह्मादयश्च ये देवाः आश्व १.२० ब्रह्महत्याकृतं पापं वृ परा ४.७८ ब्रह्मादयोऽन्तरालस्य आश्व १.१२८ ब्रह्महत्याघहरणं नृह भार ६.७७ ब्रह्मादयो मयाहूता वृ परा २.१७५ ब्रह्महत्यामनि गोमायौ वृ परा १२.१४३ ब्रह्मदित्रिदशैः सर्वैः वृ परा ३.३३५ ब्रह्महत्यादिपापानि आगम्या विश्वा ३.५० ब्रह्मादिनां ततः पूजा कण्व ६६८ ब्रह्महत्यादि पापैस्तु वृ परा १०.२०३ ब्रह्मादिवर्णहा गोघ्नः वृ परा १०.५० ब्रह्महत्यादिभिर्मर्यो पराशर १२.४४ ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तमेवं बृह ९.१५३ ब्रह्महत्यादि वा गोघ्नो वृ.गौ. १०.११ ब्रह्माद्यानुपवीती तु बृ.या. ७.६७ ब्रह्महत्यामवाप्नोति बृ.गौ. १३.३४ ब्रह्माद्याः सनकाद्याश्च वृ हा ३.२१७ ब्रह्महत्याव्रतं चापि ब्र.या. १२.४८ ब्रह्माद्यैःप्रार्थनीयञ्च बहुजन्म कपिल ३५४ ब्रह्महत्यासमं ज्ञेयम दृ हा ६.१७० ब्रह्मान्तरिक्षसंज्ञो मनोरजः बृ.या. २.२८ ब्रह्महत्या सरापान मनु ११.५५ ब्रह्माप्तिर्जा यतो पुंसां व परा १२.३ ४६ ब्रह्महत्या सुरापानं वृ हा ६.१६८ ब्रह्मा मुखं शिक्षा रुद्रः भार १३.२३ ब्रह्महा क्षयरोगी स्यात् या ३.२०९ ब्रह्मारम्भेऽवसाने च मनु २.७१ ब्रह्महा च सुरापश्च बृ.या. ८.३८ ब्रह्मार्पणधिया नित्यं कृता कपिल ६५६ ब्रह्महा च सरापश्च मनु ९.२३५ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महवि बृह ९.११८ ब्रह्महा च सुरापायी लिखित ७६ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महवि ब्र.या. ४.४२ ब्रह्महा द्वादशसमाः मनु ११.७३ ब्रह्मार्पणं हविस्तत्स्या विश्वा ८.७२ ब्रह्महा नरकस्यान्ते शाता २.१ ब्रह्मार्ष तत्र विज्ञेयं वृ परा ३.३० ब्रह्महा प्रथमंचैव अत्रिस १६६ ब्रह्मावाने प्रारम्भ शंख ३.४ ब्रह्महा मद्यपः स्तेनो __ औ ८.१ ब्रह्मा विश्वसृजो धर्मो मनु १२.५० ब्रह्महा मद्यपः स्तेनो या ३.२२७ ब्रह्मा विष्णु शिव व्यास ३.२४ ब्रह्महा पातकिस्पर्श लिखित ७५ ब्रह्मा विष्णुश्च रुंदश्च पराशर १२.१९ ब्रह्महा वा दशाब्दानि औ ८.५ ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च बृ.या. २.२० ब्रह्महा स्वर्णहारी आंउ ७.८ ब्रह्मा विष्णुस्तथेशान् वृ परा ३.१३ ब्रह्महा हेमहारी वृ.या. ४.६२ ब्रह्माविष्णुहराश्चैव भार १३.३४ ब्रह्मा च विश्वेदेवाश्च व २.६.१८७ ब्रह्मा वै गार्हपत्योऽग्नि । बृ.गौ. १५.३२ ब्रह्माणं तर्पयेत् वृ.गौ. ७.६२ ब्रह्मासने निवेश्यैव वृ हा ५.२२३ ब्रह्माणं वरयेदस्मिन् आश्व २.३१ ब्रह्मास्त्रं बीजमित्याह विश्वा ५.१३ ब्रह्माणं विष्णुं रुदं कात्या १२.२ ब्रह्मास्त्रं ब्रह्मदण्डं विश्वा ५.२७ ब्रह्माणं वैधसैर्मन्त्रैः वृ परा ४.११३ ब्रह्माहं शङ्करश्चापि बृ.या. १९.५ ब्रह्माणं व्यानमित्येके व परा ६.११२ ब्रह्मष्ठानां भवेदेवं बृ.या. २.८७ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ ब्रह्मेश हरि सूर्याणां वृ परा १०.३६२ ब्राह्मणं न सगोत्रं च ब्रह्मेशार्कहरीणां तु वृ परा २.२६ ब्राह्मणं भिक्षुकं वाऽपि ब्रह्मनेति निहितन्नैव वृ हा २.३७ ब्राह्मणं भोज्येत्पश्चात् ब्रह्मेनोज्माता वेदनिन्दा मनु ११.५७ ब्राह्मणं स्वयमादाय ब्रह्मेनौदने च श्राद्धे च आप ९.२३ ब्राह्मणम नृतेनाभिशंस्य ब्रात्यताबान्धवत्यागो मनु ११.६३ ब्राह्मणराजन्यौ ब्रात्यात्तु जायते विप्रातन मनु १०.२१ ब्राह्मणवदात्रेय्या ब्राह्मघ्नस्तु वनं गच्छेत संवर्त १०९ ब्राह्मणस्यैव कर्फतद् ब्राह्मण कुले वा यल्लभेत व १.१०.१८ ब्राह्मणश्चापि यस्तेषां ब्राह्मणः क्षत्रियं हत्वा वृ परा ८.११७ ब्राह्मणश्चेदधि गच्छेत् । ब्राह्मणक्षत्रियवशः ब्र.या. ८.७४ ब्राह्मणश्चेद प्रेक्षापूर्व ब्राह्मणः क्षत्रियविशा प्रजा ४७ ब्राह्मणश्चैव राजा च ब्राह्मणक्षत्रियविशा बृ.य.४.३४ ब्राह्मणः स भवेच्चैव ब्राह्मणक्षत्रियविशा व १.२१.१४ ब्राह्मणः सम्भवेनैव ब्राह्मणक्षत्रियविशां नारद १३.४ ब्राह्मणसुवर्णहरणे ब्राह्मणक्षत्रियविशा मनु ९.१५५ ब्राह्मणस्तु कृषि कृत्वा ब्राह्मण क्षत्रियाभ्यां तु . मनु ८.२७६ ब्राह्मणस्तु त्रिरात्रेण ब्राह्मणः क्षत्रियो वापि वृद्धि मनु १०.११७ ब्राह्मणस्तु शुनः दृष्ट ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यः वृ.गौ. १६.३ ब्राह्मणस्तु शुना दष्टो ब्राह्मणः क्षत्रियोवैश्य व्यास १.५ ब्राह्मणस्तु शुना दृष्टो गह्मणः क्षत्रियो वैश्यः शंख १.६ ब्राह्मणस्तु सुरापस्व ब्रापणः पत्रियो वैश्यः वृ हा ८.२९८ ब्राह्मणस्त्वनधीयान ब्राह्मणाः क्षत्रियो वैश्यः विष्णु २.१ ब्राह्मणस्य चतुः षष्टिः ब्राह्मणः भत्रियो वैश्यः पराशर ११.२५ ब्राह्मणस्य चतुष्पष्टिं ब्राह्मणः क्षत्रियो वैश्यस्त्रयो मनु १०.४ ब्राह्मणस्य च यद्देयं ब्राह्मणत्य परित्राणाद् गवा या ३.२४३ ब्राह्मणस्य चातुवर्णेषु ब्राह्मणत्वं कुतस्तस्य भार १२.५१ ब्राह्मणस्य तथा भुक्त्वा ब्राह्मणन् स्वस्ति वाच्य व १.१३.२ ब्राह्मणस्य तपो ज्ञानं ब्राह्मणः पात्रतां याति या ३.३३२ ब्राह्मणस्य तु देवस्य ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् . औ १.२५ ब्राह्मणस्य तु विक्रेयं ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् मनु २.१२७ ब्राह्मणस्यतु सूक्तैश्च ब्राह्मणं क्षत्रियं वैश्यं शाण्डि ४.६७ ब्राह्मणस्य दशाहं ब्राह्मणं तदनुव्रज्य ब्र.या. ३.७० ब्राह्मणस्य प्रवक्ष्यामि ब्राह्मणं दशवर्ष तु शतवर्ष मनु २.१३५ ब्राह्मणस्य ब्रह्महत्या ब्राह्मणं न परीक्षेत व्या २७५ ब्राह्मणस्य मलद्वारे स्मृति सन्दर्भ वृ परा ७.११२ मनु ३.२४३ व २.३.८ वृ.गौ. ११.२ व १.२३.३३ व १.२.४४ बौधा २.१.१३ मनु २.१९० वृ.गौ. ९.१७ व १.३.१५ व १.२१.१७ नारद १८.४० व्यास ४.४७ मनु ११.८५ व १.२०.४५ पराशर २.९ आप ५.२ औ ९.८२ व १.२३.२६ वृ परा १.२ मनु ११.१५० मनु ३.१६८ मनु ८.३३८ नारद १८.११० नारद २.९६ विष्णु १८ शंख १७.४२ मनु ११.२३६ बृ.गौ. १४.४२ नारद २.६० वृ हा ५.३ ४८ या ३.२२ पराशर .१२.७ बौधा १.१०.१९ यम ७ Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राणान्तु श्लोकानुक्रमणी ब्राह्मणस्य मुख क्षेत्रं पराशर १.५५ ब्राह्मणाद्वैश्यकन्यायां ब्राह्मणस्य मुख क्षेत्र व्यास ४.४८ ब्राह्मणानां गृहाणान्तु ब्राह्मणस्य यदा भुंक्त पराशर ११.१७ ब्राह्मणानां परीवादं ब्राह्मणस्य यदोच्छिष्टं आप ५.५ ब्राह्मणानां पुरा सृष्टं ब्राह्मणस्य रुजः कृत्य __ मनु ११.६८ ब्राह्मणानां स्वस्य चापि ब्राह्मणस्य व्रणद्वारे पराशर ६.४५ ब्राह्मणानां हितार्थाय ब्राह्मणस्य व्रणद्वारे बौधा १.५.१ ४१ ब्राह्मणा नाममात्रेण ब्राह्मणस्य सदाकालं आप ९.३३ ब्राह्मणानामसान्निध्ये ब्राह्मणस्य सदा मुंक्ते आप ८.१२ ब्राह्मणानासनं वस्त्रं ब्राह्मणस्य सदा भुंक्ते अंगिरस ५५ ब्राह्मणानि च तेषां वै ब्राह्मणस्य हृते क्षेत्रे वृ.गौ. ६.१२७ ब्राह्मणानुपसेवेत नित्यं ब्राह्मणस्यानुपूर्येण मनु ९.१४९ ब्राह्मणान् अविचार्य एव ब्राह्मणस्यानुलोभ्येन नारद ६३.५ ब्राहाणान्नं तु वै भुक्त्वा ब्राह्मणस्यापराधेषु नारद १८.१०१ ब्राह्मणान्नं दच्छूद्रः ब्राह्मणस्यापरीहारो नारद १८.३३ ब्राह्मणान्नं परीक्षेत ब्राह्मणस्याष्टमे वर्षे आश्व १०.१ ब्राह्मणान्नं यदुच्छिष्टं ब्राह्मणस्यैव तद्विद्या कण्व ४६९ ब्राह्मणान् पर्युपासीत ब्राह्मणस्वं न हर्तव्य मनु ११.१८ ब्राह्मणान्न् दरिद्रत्वं ब्राह्मणः स्वर्णहारी या ३.२५६ ब्राह्मणान् बाधमानं तु ब्राह्मणस्वेन देहेन बृ.गौ. १९.३३ ब्राह्मणान् भोजयित्वा ब्राह्मणांश्च व्यतिक्रम्य पराशर ८.३६ ब्राह्मणान् भोजयेच्छक्त्या ब्राह्मणा एव च क्षेत्रं आंउ १२.१० ब्राह्मणान् भोजयेत ब्राह्मणाः कीदृशास्तत्र प्रजा ८ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणाः क्षत्रियावैश्याः नारद २.१३१ ब्राह्मणान्मोजयेत ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः वृ हा ३.२४८ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः वृ हा ३.६ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणाः च एव ये भूत्वा वृ.गौ. ३.१६ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणा जंगम तीर्थ पराशर ६.६० ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणा जंगम तीर्थ शाता १.३० ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणात् क्षत्रियाया बौधा १.९.३ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणातिक्रमोनास्ति बौधो १.५.९८ ब्राह्मणान् भोजयेत् ब्राह्मणातिक्रमोनास्ति व १.३.११ ब्राह्मणान ब्राह्मणाति क्रमोनास्ति व्यास ४.३५ ब्राह्मणान् भोजयेद् ब्राह्मणादिहते ताते कात्या १६.२० ब्राह्मणान् भोजयेद् ब्राह्मणादुग्रकन्यायां मनु १०.१५ ब्राह्मणान् भोजयेद् ४७३ मनु १०.८ बृ.गौ. १६.१९ वृ गौ. ३.६२ कण्व ६३६ कपिल ५३८ बृ.या. १.२१ वृ.गौ. ४.२३ कात्या २८.९ व्या १०६ कण्व ५१९ नारद १८.३२ वृ.गौ. ४.५१ अ १८ वृ परा ८.१८५ शंख १४.१ अत्रिस ७० मनु ७.३७ अंगिरस ५६ मनु ९.२ ४८ पराशर ८.४९ वृ हा ७.१८९ कात्या १८.४ लोहि ६१३ व २.४.११० अत्रि ५.५८ वृ परा ९.३८ वृ हा ६.१३४ वृ हा ५.१७२ वृ हा ५.३२९ वृ हा ५.३८७ वृ हा ७.२०१ ब्र.या. १०.२२ वृ हा ७.३०२ वृ हा ७.८८ बृ.गौ. १६.३२ । vidio Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ स्मृति सन्दर्भ ब्राह्मणान् वेदनिदुषः अत्रिस २४ ब्राह्मणेभ्यः प्रदानानि __ वृ.गौ. ५.६४ ब्राह्मणान् समनुज्ञाप्य आप ४.१२ ब्राह्मणेभ्यश्च दत्त्वाऽथ वृ हा ५.६३ ब्राह्मणा ब्रह्मयोनिस्था मनु १०.७४ ब्राह्मणे वाऽपरे वाऽपि औ ६.४९ ब्राह्मणाभिक्रमोनास्ति कात्या १५.९ ब्राह्मणे विप्रस्तीर्थे मनु २.५८ ब्राह्मणा मन्त्रिताश्चैव बृ.य. ५.८ ब्राह्मणेषु क्षमी स्निग्धेष्व या १.३३४ ब्राह्मणाय दरिदाय बृ.गौ. ६.९४ ब्राह्मणेषु चरेद्भक्ष्य ब्र.या. ८.४४ ब्राह्मणाय दरिदाय वृ.गौ. ७.१८ ब्राह्मणेषु तु विद्वांसो मनु १.९७ ब्राह्मणाय विशेषेण वृ.गौ. १२.३७ ब्राह्मणेषु तु विद्वांसो ब है ११.३७ ब्राह्मणायानि भाषन्ते पराशर ६.६१ ब्राह्मणेषु च यद्धत्तं व्यास ४.३९ ब्राह्मणा यानि भाषन्ते शाता १२७ ब्राह्मणैनैव मृद्धO व २.२३ ब्राह्मणायावगुर्यैव मनु ४.१६५ ब्राह्मणैः सह भोक्तव्यो वृ परा ४.१९९ ब्राह्मणा ये किकर्मस्था शंख १४.२ ब्राह्मणो जायमानो हि मनु १.९९ ब्राह्मणा येन जीवन्ति व्यास ४.४६ ब्राह्मणो ज्ञानतो मुंक्ते पराशर ६.३० ब्राह्मणार्थे गवार्थे वा मनु ११.८० ब्राह्मणो दशरात्रेण अत्रिस ८५ ब्राह्मणार्थे गवार्थे वा ___ औ ८.९ ब्राह्मणोद्वाहनंचैव शाता २.३० ब्राह्मणार्थे गवार्थे वा मनु १०.६२ ब्राह्मणो नैव भुंजीयाद् आश्व १.१७५ ब्राह्मणार्थे गवार्थे वा पराशर ८.४२ ब्राह्मणो नैव हन्तव्यः का १ ब्राह्मणार्थे विपन्नाना पराशर ३.३६ ब्राह्मणोऽपि निधिं सर्वः नारद ८.७ ब्राह्मणा वह्निहीनाश्च ब्र.या. ७.५३ ब्राह्मणो बिल्वपालाशौ ब्र.या. ८.१५ ब्राह्मणाः सर्वजगतां कण्व २०२ ब्राह्मणो बैल्वपालाशौ मनु २.४५ ब्राह्मणाः सर्ववर्णानां १.४७ ब्राह्मणो ब्राह्मणानां आंउ ५.८ ब्राह्मणी क्षत्रिया वैश्या देवल ३७ ब्राह्मणोब्राह्मणी गत्वा संवर्त १६५ ब्राह्मणी क्षत्रियां स्पृष्टा व परा ८.२२९ ब्राह्मणो भवत्यग्निरग्निर्वै व १.३०.२ ब्राह्मणी गमनेस्नात्वोद अत्रिस ४.३ ब्राह्मणो भूष्वेरतांस्तु वृ.गौ. ८.१६ ब्राह्मणी तु यदा गच्छेत् पराशर १०.३१ ब्राह्मणो यस्तु मद्भक्तो वृ.गौ. ६.१८१ ब्राह्मणी तु यदा गच्छेत् पराशर १०.३५ ब्राह्मणो विधिवत् स्नात्वावृ परा ११.१०८ ब्राह्मणी तु शुना दष्टा आंउ ९.१५ ब्राह्मणो वै ब्रह्मचर्य बौधा १.२.५३ ब्राह्मणीत्वमनुजाता ब्र.या. २.८७ ब्राह्मणो वैष्णवो विप्रो वृ हा ५.२२ ब्राह्मणी भोजयेन् देवल ३८ ब्राह्मणोऽस्य मुखं व १.४.२ ब्राह्मणी यद्यगुप्तां मनु ८.३७६ ब्राह्मणोऽहं भवानीह आश्व १०.३० ब्राह्मणी शूदसम्पर्के संवर्त १६७ ब्राह्मण्यनशनं कुर्यात् देवल ४३ ब्राह्मणेन तु कर्तव्यं लोहि १६ ब्राह्मण्यं गोपनीयं हि हि कण्व २५० ब्राह्मणे पूजिते नित्यम् वृ.गौ. ४.३६ ब्राह्मण्यं तच्च पूज्यं कण्व २६९ ब्राह्मणेभ्यः करादानं विष्णु ३ ब्राह्मण्यं तत्समीचीनमतितीक्ष्ण कपिल १० ब्राह्मणेभ्यः प्रकुर्वीत कण्व ६६१ ब्राह्मण्यं तस्य नष्टं आंपू ६६ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ब्राह्मण्यं ब्राह्मणे जातो ब्राह्मण्यं ब्राह्मणोहन्यात् ब्राह्मण्यमूलं नैव स्यान् ब्राह्मण्यसूचनायैवं ब्राह्मण्यस्य स्थापनार्थ भार १५.११ ब्राह्मण्या ब्राह्मणी स्पृष्टा वृ परा ८.२२८ ब्राह्मण्यां क्षत्रिया औ सं ५ या १.९३ ल हा १.१५ औ सं ७ नारद १३.१०८ व १.२१.२ व १.२१.४ व्यास १.९ व्यास १.१० आप ५.७ ब्राह्मण्यां क्षत्रियात् सूतो ब्राह्मण्यां ब्राह्मणेनैवं ब्राह्मण्यां वैश्य संर्सगा ब्राह्मण्यामपि चण्डाल ब्राह्मण्याः शिरसिवपनं ब्राह्मण्याः शिरसिवपनं ब्राह्मण्यां शूद्रजनित ब्राह्मण्यां शूद्र जनित ब्राह्मण्या सह योऽश्नीयाद् ब्राह्मण्येकान्तरं वेश्यात् ब्राह्मण्यो जीवपत्यस्तु ब्राह्मदैवार्षगान्धर्व ब्राह्मः पूर्वच्छुद्धो जायते ब्राह्मपश्चिमलेखायां ब्राह्मं प्राप्तेन संस्कार ब्राह्मराजन्यवैश्य ब्राह्मस्थानमिदं प्रोक्तं ब्राह्मस्य जन्मनः कर्ता ब्राह्मस्य तु क्षपाहस्य ब्राह्मादिषु विवाहेषु ब्राह्मादिषु विवाहेषु ब्राह्मान्नेन दरिद्रः ब्राह्ममान् मुहूर्तादारभ्य ब्राह्मान्मुहूर्तादारभ्य त्रिकाले ब्राह्मीसभामहानित्या ब्राह्मणे तीर्थेनाऽऽचामेत ब्राह्मण वा यौनेन ब्राह्मे मुहूर्त उत्थाय कण्व ४५० नारद १८.१५ कण्व १७९ आंपू ६३ नारद १३.११६ व २.४.५७ मनु ९.१९६ नारा ५.५५ वृ परा २.२२२ मनु ७.२ बौधा १.३.९ भार ५.३१ मनु २.१५० मनु १.६८ नारद १३.२९ मनु ३.३९ अ १५ राजा १६३ ३ भार ६.५८ बौधा १.५.१५ व ११.२० वृ परा ६. १४४ ब्राह्मे मुहूर्त उत्थाय ब्राह्मे मुहूर्त उत्थाय ब्राह्मे मुहूर्त्ते उत्थाय ब्राह्मे मूहुर्ते उत्थाय ब्राह्मे मुहूर्त्ते चोत्थाय ब्राह्मेमुहुर्ते चोत्थाय ब्राह्मे मुहूर्ते निद्रां च ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्धघेत ब्राह्मे मुहूर्ते संप्राप्ते ब्राह्म विवाह आहूय ब्राह्मनैर्मन्त्रैस्तु पूतन्तु ब्राह्मो दैव आर्षो गांधर्वः ब्राह्मो दैव तथैव आर्षः ब्राह्मो दैवस्तथाचार्षः ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः ब्राह्मोद्वाहविधानेन ब्राह्मौदने च सौमेच ब्राह्मणी तु शुनादष्टा ब्राह्यादीन्यथवाशक्तौ ब्रीहिभिश्च यवैर्माषरैद्भिः ब्रीहिमुद्गादिकं सर्व ब्रह्मक्षता अपि क्षुद्राः ब्रीह्यः शालयो मुद्राः ब्रूयात्कस्यानि कै ब्रूयुरस्तु स्वधेत्येवं ब्रुवन्तु च भवन्तो वै ब्रूहि वर्णाश्रमाणान्तु ब्रूहि साक्षिन्यथातत्त्वं ब्रूहिति ब्राह्मणं पृच्छेत् ब्रूहीत् युक्तश्च न भ मकराद्यष्टभिर्वर्णे भक्तदासश्च विज्ञेयस्तथैव भक्तप्रिय ! नमस्तेऽस्तु भक्तस्योपेक्षणात् सद्यो ४७५ विश्वा १.५ या १.११५ व २.६.३ वृ हा ८.४ व्यास ३.७१ भार ३.३ वाधू ५ मनु ४.९२ वाघू ४ या १.५८ अत्रिस ७९ व १.१.२९ शंख ४.२ ब्र. या. ८.१६९ मनु ३.२१ व्यास २.५ अत्रिस ३०० अत्रिस ६७ ल व्यास १.१० औ ३.१३७ शाण्डि ३.९० भार १४.७ मनु ९.३९ व २.३.६२ या १.२४४ आंपू ८९१ वृ हा १.४.१ व १.१६.२७ मनु ८.८८ मनु ८.५६ विश्वा १.७४ नारद ६.२६ बृ.गौ. १८.४० नारद ६.३४ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ भक्तानां पातकान्याश शाण्डि ४.२१७ भक्ष्याः पंचनखाः शंख १७.२२ भक्तानां यद्धितं देव विष्णु म ६५ भक्ष्याः पंचनखाः या १.१७७ भक्तावकाशदातारः नारद १५.१८ भक्ष्याभक्ष्ये तथा पेये दक्ष १.५ भक्तावकाशाग्न्युदक या २.२७९ भक्ष्याः श्वाविड्गोधाश बौधा १.५.१५२ भक्तिगद्गदया वाचा स्तु बृ.गौ. १८.४२ भक्ष्यास्तिलमयाः कार्या आंपू १०९८ भक्तिज्ञानक्रियावृद्धि शाण्डि ५.७ भक्ष्यैर्वा यदि वा भोज्यैः नारद १३.६६ भक्ति सा सात्विको वृ हा ५.८१ भगं ते वरुणो राजा या १.२८२ भक्तैस्सहाश्नतां तुष्टिर्न शाण्डि ४.२२८ भगमिन्द्रश्च वायुश्च ब्र.या. १०.१४ भक्त्या चैताः प्रदातव्याः वृ परा ११.२३० भगक्षसंयुक्ता चैते वृ परा १०.२६९ भक्त्या नीराजनं वृ हा ७.२९४ भगवज्जन्मदिवसे वृ हा ९.१३९ भक्त्या परमया युक्त इमां नारा ५.५३ भगवते श्रीमते चेत्येकार्थे वृ हा ३.१६७ भक्त्या पुलकितस्वाङ्ग शाण्डि ४.१७० भगवत्कर्मसिद्धयर्थ शाण्डि १.५५ भक्त्या योऽष्यर्चयेद्देवं वृ हा ५.७६ भगवत्पादतोयेन मोक्ष शाण्डि ४.१२९ भक्त्या वै देवदेवेश वृ हा ७.३१६ भगवत्पादपूजायां चरन् शाण्डि १.२९ भक्त्या सम्पूजयेद्देवं व २.६.२६३ भगवत्प्रापकैशबै शाण्डि ४.३३ भक्त्या सर्व प्रदत्तं वृ परा ५.१७५ भगवत्सन्निधौ वापि वृ हा ३.२३० भक्त्यैकादशवस्त्राद्यैः वृ परा ११.१६८ भगवद्भक्तियुक्तेभ्यो दद्यात् शाण्डि ३.४१ भक्त्योपकल्पयेदेकं व्यास ३.४१ भगवदभुक्तमन्नाद्यम शाण्डि ४.६२ भक्षणीयं च यद्वस्तु वृ परा १०.१०२ भगवद्भुक्तशेष यद्भुक्तं शाण्डि ४.१५१ मक्षणे चापि भक्ष्याणां कण्व ९८ भगवद्यागयोग्यं यत्त शाण्डि ४.१ ४४ भक्षणे प्रमादतोनीली आंगिरस १८ भगवद्भक्ति दीप्ताग्नि वृ हा ८.२८१ भक्षयन्नरके तिष्ठेत् वृ परा ६.३२६ भगवद्वाचक्रः प्रोक्तः बृ.या. २.१०३ भक्षयित्वा तु तद्ग्रास लघुयम ८ भगवद्वासुदेवस्य पादा शाण्डि ५.५८ भक्षयित्वोपविष्टानां या २.१६३ भगवन् केन दानेन अत्रिस १.३ भक्षयेद् यस्य नीलीन्तु आप ६.९ भगवन् केन दानेन अत्रिस ६.२ मक्षितं भगवत्पाद शाण्डि ४.१६५ भगवन् केन दानेन वृहस्पति २ भक्षिते मानुषे मांसे अ ७५ भगवन् तव गायत्री बृ.गौ. १९.२४ भक्ष्यं भक्ष्यविधौ प्रजा १५४ भगवन तव भक्तस्य बृ.गौ. १५.१ भक्ष्य भोज्यं च विविधं मनु ३.२२७ भगवन् ! त्वत्प्रसादं तु बृ.गौ. १८.४५ भक्ष्य भोज्यं तथा पेयं ब्र.या. ४.९० भगवन्तं प्रपन्नोऽस्पि विष्णु म २८ भक्ष्यं भोज्यमया शैला बृ.गौ. १२.५२ भगवन्त मनुद्दिश्य व हा ५.१८ भक्ष्यभोज्यादिकांश्चापि कण्व ६९० भगवन्! देवदेवश पंचमी बृ.गौ. १८.१५ भक्ष्यभोज्यापहरणे मनु ११.१६६ भगवन् ! ब्रह्मणा यत् वृ हा ५.१ भक्ष्यभोज्यैः फलै कण्व ६६९ भगवन् ब्राह्मणादीनामाचार वाधू २ भक्ष्यभोज्योपदेशैश्च मनु ९.२६८ भगवन्ब्रूहि तत्वेन व २.६.१ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४७७ भगवन् ब्रूहि विप्राणां व २.२.१ भतृणा च हता नारी व्या २०४ भगवन्भवता प्रोक्ता व २.१.२ भद्र कर्णेभिः संविधात् ब्र.या. ८.३५८ भगवन् ! भवता प्रोक्ता वृ हा ७.१ भद्रं नरैकहस्ताभि वृ परा १०.३०८ भगवन् भूतभव्येश ! विष्णु म १० भद्रंभदमिति याद मनु ४.१३९ भगवन्मन्दिरं चैव पुण्य शाण्डि ३.३२ मं नमोवलि वर्णाभं वृ परा ४.८३ भगवन्मन्दिरं वृद्धान् शाण्डि १.३१ भयं वा जायते शत्रो वृ परा ११.९० भगवन्मन्दिरे नित्यं मार्जना शाण्डि १.२८ भयं वितथतां जाल्म्यं वृ.गौ. ८.१११ भगवन् मंदिरे विष्णुं वृ हा ६.८६ भयकारुण्यहानं जरामयं व १.१९.२ भगवन्मन्दिरे वृद्धान् आंपू १३२ भगवन् मानवा सर्वे आप १.४ भयात् पातयते यस्तु नारद १९.१७ भगवन्मुनिनाथ त्वं मयि नारा २.१ भयादभ्युत्तरेतकश्चित आंउ ७.४ भगवन्मुनिशार्दूल नारा ५.१ भरणं क्लीवोन्मत्तानाम् व १.१७.४८ भगवन् मुनिशार्दूल नारा १.२ भर्तृभ्रातृपितृज्ञातिश्व या १.८२ भगवन् म्लेच्छनीता देवल २ भरणीयैरन्नपानप्रदान लोहि २५० भगवन्वेद वेदांश्च ब्र.या. १.२ भरणी प्रेतपक्षे तु व्या ३२६ भगवन् ! वैष्णवाधर्माः वृ.गौ. १.३ भरतो वर्णकैश्चित्रैः वृ परा १२.२०० भगवन् वैष्णावाः वृ हा २.१ भरद्वाजः क्षुधार्तस्तु मनु १०.१०७ भगवन् श्रोतुमिच्छामः सम्वर्त २ भरद्वाजं बलिंभीष्म वृ हा ७.२१० भगवन् सर्वधर्मज्ञ नारा ९.१ भरमैथुनमध्वानं औ ५.७ भगवन् ! सर्वधर्मज्ञ लहारीत १.५ भईख्याश्च मुनिश्चात्र वृ परा ११.३२५ भगवन् सर्वधर्मज्ञ वृ हा १.३ भर्ता चैव चरेत् कृच्छं पराशर १०.३४ भगवन्सर्वधर्मज्ञ सर्व भार १.६ मर्त्ता यत्पदमाप्नोति व २.५.७६ भगवन् ! सर्वपापघ्नं बृ.गौ. २०.२५ भर्तारं लंघयेद्या तु मनु ८.३७१ भगवन् ! सर्वमंत्राणां वृ हा ३.१ भर्तारमनुगच्छन्ती । आंपू ९८९ भगवन् सर्वयोगीश ६.या, १.५ भर्तारो वो भविष्यन्ति व परा ६.६३ भगवन् सर्ववर्णाना व्या १० भर्तुः पुत्रं विजानन्ति मनु ९.३२ भगवन् सर्ववर्णानां मनु १.२ पर्तुः पुत्रस्यपौत्रस्य नप्तुः कपिल ६४९ भगवान् इति शब्दोऽयं वृ हा ३.१६४ भर्तुः प्रियहिते युक्ता व २.५.१६ भगवान् याज्ञवल्क्यस्तु बृ.या. १.२२ भर्तुः भ्रातापितव्यश्च व २.५.१८ भगवान् वासुदेवोऽसौ वृ हा ३.१६९ भर्तुः शरीरशुश्रूषां लघुयम १८ भगास्थेकं तथा पृष्ठे या ३.८८ भर्तुरर्धशरीरा च सर्व लोहि १० भगिनी मातरं पुत्री वृ हा ४.२११ मर्तुरादेशवर्तिन्या कात्या १९.७ भगिन्यश्च प्रमुदिताः वृ हा ४.२ ४७ भर्तुरारोपितां निदां व २.५.२३ भगीरथप्रार्थनया तद् आंपू ९०७ भर्तुधनं च लोभात्स्त्री शाण्डि १.१४८ भग्ने कमण्डली बौधा १.४.८ मर्तुः शरीर शुश्रूषां मनु १.८६ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ भर्तुः शासनमुल्लंघ्यं भर्तुश्चित्यां समारोहे भतृतो वा तदा तां कुं भर्तृशासनमुल्लंघ्य भर्तृशुश्रूषणं नार्याः परमो भर्तृहिते यतमानाः भर्त्रा प्रीतेन यद्दत्तं भर्त्रा सपिण्डता स्त्रीणां भत्रीसह मृता भार्या भर्त्रा सह मृता या तु भर्त्रा स्नानं नित्यमेव भर्मणेयं यतः साध्या भल्लातकं कपित्थं भल्लातकाश्वपर्णानां भल्लेक्षणानिरत्नानि भवतः श्रोतुमिच्छामो भवति भिक्षां देहि भवतीति पदं चोक्त्वा भवत्कालेन निष्कर्षः भवत्पूर्व चरेद् भैक्षं भवत्पूर्वं चरेद्वैक्षं भवत्पूर्वा ब्राह्मणो भिक्षेत भवत्पूत ब्राह्मणो भवत्पूर्वी भिक्षामध्यां भवत्ययं वायुमखा भवत्ययि तथा त्यक्तपिता भवत्येव ततो यत्ना भवत्येव न सन्देह भवत्येव न संदेह भवत्येव न संदेह भवत्येव विशेषेण भवत्येव हि तत्पश्चात् भवदन्तस्तु वैश्यस्य भवंत्ति कर्माण्येतानि भवन्ति किल भूयोऽपि वृ परा ७.३६८ वृ परा ७.३७७ कपिल ५५६ आंगिरस ६९ लोहि ६५३ बौधा २.२.५४ नारद २.२४ वृ परा ७.३५२ वृ परा ७.३८९ वृ परा ७.३८७ लोहि ६४५ आंपू ४५४ वृ हा ५.२४१ वृ हा ५.२४८ भार ७.३७ व २७.१ वृ परा ६.१६३ आश्व १०.३७ लोहि ४६५ औ १.५३ मनु २.४९ बौधा १.२.१७ व १. ११.५० बाँधा १.२.१६ लोहि १५३ आंपू १०६३ कण्व ३५७ आंपू ९०५ कपिल २८८ कपिल ६१५ कपिल ५३९ आंपू १००८ ब्र.या. ८.४३ भार ८.१० लोहि २३१ भवन्ति चात्र श्लोकाः भवन्ति पितरस्तस्य स्मृति सन्दर्भ शंख १२.१३ अत्रि ५.१८ भवन्ति पुत्राः शुभवंश वृ परा ११.३४७ भवन्ति वै सुक्तिरसा भवन्तो छनुगृह्यन्तु भवन्त्यपि न संदेह कण्व ४५८ वृ.गौ. १०.३४ पू४१७ पराशर ५.२५ लोहि ८० कपिल ३७० भवत्येवावशात्तूष्णीं त्यक्त भवन्त्येवेति सर्वत्र निर्विवादो कपिल ११३ नृ.गौ. ७.७५ या ३.६४ भवन्त्यल्पायुपस्ते वै भवन्त्येवात्र सततमौर भवेच्च सुभगश्रीणां भवेजातिजातिसहस्रेषु भवेत् कर्मवशादेव भवेत्क्षीणंततस्तस्मात्तत्कर्म वृ.या. २.१३१ कपिल ६२४ भवेत् तु तत् क्षणात् उष्णम् वृ.गौ. २.३५ भवेत्तु शैशवेऽत्यंते कपिल ६३५ व २.५.६५ नारा ८.६ भवेत्पत्युत्पथि कृता न भवेत्स्वकर्ममात्रस्य भविता भवेत् स्थण्डिलशायी वा बृ.गौ. १६.३० भवेदजस्रः पत्नीकः श्रोत्रिय कपिल ६६२ भवेदपि प्रत्यवायी आंपू २५७ आंपू ३१३ आंपू ८२२ कण्व ५९ कण्व १३१ कण्व १०२ कण्व ७२ कण्व ६७० भवेदेवान्वहं भित्वा मुक्तोऽयं कपिल ६१७ भवेदेवेतिनिखिलाः प्राहुस्ते लोहि ४६ कपिल ३८० भार ९.४१ भवेद्दोषी नैव भवेदिति भवेद्विदेशगमनं संप्यन्नस्य भवेन्नरस्तेन कृतेन भवेन्नित्याहिताग्नित्वं भवेयुरेव तस्मात्तु भवेदेव न संदेहः भवेदेव न संदेहः भवेदेव न सन्देहः भवेदेव न संदेह भवेदेव न सन्देह भवेदेव न संदेहो न भवेदेव वरस्सेव्यो वृ परा ७.३७ कपिल ६६० आंपू ७१८ Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी भवेयुरेव नितरां भवेयुरेव सततं मूढ़ा भव्यानुहरणे पूर्व भस्मना कांस्यलौहाद्याः भस्मना तु भवेच्छुद्धि भस्मना शुद्धयते भस्मना शुद्धयते भस्मपंकरजः स्पर्श भस्मात्सर्षपाधैश्च भस्मास्थिरोमतुष भागधेयं च सकल भागधेयमयी कृत्वा तां भागांशादि प्रश्नमूल भागिनेयं दशविप्रेषु भागिनेयं भगिनीमर्ता भागीरथी फल्गुनी भाजनं लभनंयावद् भाजनानान्तु शैलानां भाजनेषु च तिष्ठत्सु भाजनोपस्करर्युक्तं धान्यं भाण्डपिण्डव्ययोद्धार भाण्डपूर्णानि यानानि माण्डं व्यसनमागच्छेद् भाण्डस्थम त्यजानान्तु भाण्डस्थितमभोज्येषु भाण्डस्थितमभोज्यान्नं भांडानां सेचन कुर्यात् मातृभा-भिगमनाद् भाद्रे कलिः द्वापरे भानात्सेकात् शोषाद मानौभौमे त्रयोदश्यां भान्तं वनिसमायुक्तं भारतं मानवोधर्मः भारतद्वाजकृता ये च भारद्वाजादययः सर्वे MEEEEEEEEEHREE ४७९ कपिल ७७८ भार्यागोधात्वनकुल ब्र.या. १२.६० कपिल ८५१ भार्याजितोऽनपत्यश्च वृ परा ७.८ कण्व ३४४ भार्यादिरग्निस्तस्मिन् बौधा २.२.८४ व २.६.४९३ भार्याधीनं सुखं पुंसां वृपरा ६.७० पराशर ६.३७ भार्या पुत्रश्च दासश्च मनु ८.२९९ आप ८.१ भार्या पुत्रश्च दासश्च मनु ८.४१६ पराशर ७.२३ भार्याः पुत्राश्च शिष्याश्च व १.१३.१८ __ या २.२१६ भार्या भोजनवेलाया वृ परा ६.१३७ व २.६.५३२ भार्यामरणपक्षे वा अत्रिस १०८ बौधा २.३.४३ भार्या मरणमापन्ना कात्या २०.१२ भार १२.४६ मार्यायै पूर्वमारिण्यै मनु ५.१६८ वृ परा ५.१७६ भार्यायां विद्यमानानां तद्रजो कपिल १९७ लोहि ४५४ भार्यायैपूर्वमालिरायै दत्वा कपिल १४० व्या १६० भार्या रजस्वला यस्य प्रजा ७४ व्या १५९ भार्यारतिः शुचिर्भूत्य या १.१२१ आंपू ५३९ मावदुष्टं क्रियादुष्टं वृ हा ८.१२१ ब्राया. ४.१०० भावदुष्टं न भुंजीयान्नो पराशर ६.३६ व २.६.५११ भावयन्ती महारुदं आंपू ८७२ परासर १२.३८ भावयन्तो जगन्नाथं शाण्डि ४.१७७ वृ.गौ. ७.१७ भावशुद्धेन मनसा तादृशेनान् लोहि ४०६ नारद ४.४ भावामितेति सूक्तेन वृहा ८.५० मनु ८.४०५ भाषयित्वा तु संमोहाद् अत्रि ५.५३ नारद ७.१० भाषाग्रध (न्थ) कुतर्काणामाग कपिल १९ पराशर ६.२८ भासकाककपोतानां पराशर ६.४ पराशर ११.२४ भासमण्डूककुक्कुर औ ९.४४ व परा ८.२१५ भास्कालोकनास्लील या १.३४ व २.५.३८ भृत्यानामुपरोधेन । मनु ११.१० शाता ५.२२ भौममाकाशगं वापि वृ परा ११.२६१ __ प्रजा २३ भिक्षवस्सर्ववर्णेषु मैक्षाचर्य नारा ७.२४ व २.६.४९६ भिक्षाच आहत्य शिष्टानां औ १.५२ व्या १६ भिक्षांच भिक्षवे दद्यात् ल हा ४६० विश्वा ५.१.४ भिक्षाचर्यमतः कुर्याद् ब्र.या. ८.४२ वृ गौ. ३.६० भिक्षाचर्या यतेः प्रोक्ता वृ परा १२.१२९ वृ.गौ. १.१८ भिक्षाटनमतः कृत्वा संवर्त २९ वृ हा ८.३४९ भिक्षादानं गृहस्थाय कपिल ९३८ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८० भिक्षाप्रदानात्परतः तत् कपिल ९४२ मुक्तवत्स्वथ विप्रेषु भिक्षांददाति यः साधु आश्व १.१५२ मुक्तवान्विहरेच्चैव भिक्षांदद्यात्प्रयत्नेन व २.६.२०३ मुक्तशेषस्य भक्तस्य भिक्षां वा भिक्षवे दद्यात् शाण्डि ४.१०१ भुक्तिकाले दण्डनीयः मिक्षामनभिशस्तेषु वृ परा ६.१६१ । मुक्तिरेव विशुद्धिः स्यात् भिक्षामप्युदपात्रं वा मनु ३.९६ मुक्तेषु तेषु स्ववशे भिक्षालब्धं च यद्रव्य व २.३.१२१ भुक्तोच्छिष्टं समादाय भिक्षार्थिनं गृहस्थं च कपिल ९३९ भुक्तोत्सृष्टं भगवता भिक्षार्थी च चरेद्यामं संवर्त ११० भुक्त्युभवश्च तन्मध्ये भिक्षाव्रतं द्विजातीनां वृ परा ६.१५९ मुक्त्वा गच्छति तत् भिक्षुका वन्दिनश्चैव मनु ८.३६० मुक्त्वा चास्पृश्य भिक्षुकैर्वा न प्रस्थव व १.२१.३६ मुक्त्वा चैव व्रतं तत्र भिद्यते मुखवर्णोऽस्य नारद २.१७४ भुक्त्वा चैव स्वयं भिधन्ते कवचाघोरा ब्र.या. २.१४ भुक्त्वा चैषां स्त्रियो भिन्दन्त्यवमता मंत्रं मनु ७.१५० मुक्त्वा चोभयतोदन्तं भिन्द्याच्चैव तडागानि मनु ७.१९६ मुक्त्वा तु संकटे विद्यात् भिन्नगोत्रस्य कथिता कपिल ११८ भुक्त्वा तु सुखमास्थाय भिन्नपाकादेवपूजावैश्व कपिल २५४ भुक्त्वाऽतोऽन्यतम् भिन्नभाण्डेतु योभुङ्क्ते बृ.गौ. १६.३८ मुक्त्वा त्रिरात्रं कुर्वीत भिन्नभावौ भवेतां तौ वृ परा १२.३५२ भुक्त्वा नयेदहः भिन्नभिन्नाः प्रकर्तव्याः आपू ६९८ मुक्त्वान्ते दिवमासाद्य भिन्नभिन्नोपनयनाः वैश्य कपिल २९८ मुक्त्वान्नं ब्राह्मणस्येह भिन्नं विशीर्ण तंतूर्ण भार १६.३१ मुक्त्वा पलाण्डु भिन्नवर्णास्तु सापिण्डय औ ६.५५ भुक्त्वा पात्रे यतिर्नित्यं भिन्नानि विकलाङ्गानि शाण्डि ३.१०० भुक्त्वा पीत्वा च भिन्ने पणे तु पंचाशत् पणे या २.२५१ भुक्त्वा भोगान् मिषट् मिथ्याचरन् या २.२४५ भुक्त्वा मासञ्चरेदेत भिषजा रोगिणा स्पृष्टः भार १८.३६ भुक्त्वा शय्यागतः मीतः अस्मि अहं महादेव ! वृ.गौ. ५.६१ मुक्त्वोच्छिष्ट स्त्वना भीतमत्तोन्मत्त प्रमत्त बौधा १.१०.११ भुक्त्वोच्छिष्टं तथा भुक्तं चान्नं त्रयोदश्यां ते ब्र.या. ९.१४ भुक्ते मुखमास्थाय भुक्तं प्रतिगृहीतं बौधा १.११.३१ मुंक्ते स यानि नरकान् भुक्तं भगवता यद्यद् शाण्डि ४.७२ भुजाधास्फालनं रज्जु मुक्तये सर्वभक्ष्यादी (न) कण्व ६०९ मुजानो हि यदा विप्रः मुक्तवत्सु च विप्रेषु संवर्त १३४ भुज्यतेऽनागमं यत्तु न स्मृति सन्दर्भ मनु ३.११६ मनु ९.२२१ वृ.गौ. ३.५४ कपिल ८६६ नारद २.७९ वृ.गौ. ३.७४ व २.६.२१६ शाण्डि ४.१५८ कण्व ६९५ बृह ११.६ शाता ३.६ औ ९.३५ आश्व १.१६१ लघुयम ३४ शंख १७.२८ कपिल ६११ दक्ष २.५१ मनु ४.२२२ शंख १७.४८ व्यास २.३० नारा ५.१९ अ १७ शंख १७.२० ल हा ६.१९ औ २.१ वृ हा ५.४०१ औ ९.३० वृ परा ८.१९९ आप ४.४ पराशर ७.३४ ल व्यास २.८५ ल व्यास २.६६ भार ८.४ पराशर ६.६३ नारद २.७७ Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४८१ भुज्यमानंयदाह्मन्नं ब्र.या. १२.१५ भूता यक्षा ग्रहाश्चैव बृ.गौ. २२.३८ भुज्यमानान् परैरर्थान् नारद २.६९ भूताविष्टनृपद्विष्टवर्ष नारद २.१६२ मुज्जते कपिलां ये तु वृ.गौ. ९.९ भूतास्तानां करपात्रेण वृ.गौ. ४.४३ मुंजते मानवाः पश्चान्न अत्रिस १९३ भूतृणं सुरसं शिग्रं शंख १४.१९ मुंजते ये तु शूदान्नं आप ८.७ भूतेभ्यश्च प्रजापत्यं ब्र.या. ८.२४ मुंजद्भिवां लिखद्भिवाः वृ.गौ. ५.३३ भूदांसिगाययुष्णिश्च भार ६.२९ मुंजंति क्रमशः श्राद्धे वृ परा ७.३० भूदीपाश्वन्न वस्त्रो या १.२१० भुजन्ति विप्रकोशेषु ब्र.या. ४.३२ भूधराः सागराः सर्वे वृ हा ७.२८८ मुझजानस्तरु त प्राण ब्र.या. ४.१०१ भूभिन्नमखिलं दातुं तयैव कपिल ५५० भुज्ञानस्य तु विप्रस्य लघुयम ४ भूभुर्वसुवरित्येतैः विश्वा ८.२७ भुंजानस्य तु विप्रस्य आप ९.१ भूः भुवः स्वःरिति ब्रह्म वृ.गौ. ४.२५ मुंजानेषु विप्रेषु सूतकं दा १३७ भूभृद्भूमौ परो देवः वृ परा १२.२ मुंजीतचेत् समूढात्मा ल व्यास २.६४ भूमावन्नं प्रतिष्ठाप्य आप ९.३७ मुंजीत पात्रपुटके पात्रे ल हा ६.१६ भूमावपि च लिप्तायां आप १०.२ मुंजीत वाग्यतो स्पृष्टं औ ५.६३ भूमावप्येककेदारे मनु ९.३८ मुंजीत स्वजनैः सार्धं ल व्यास २.६७ भूमिगैस्ते समाज्ञेया अत्रिस ५.२० मुजीतातिथि संयुक्तो ब्र.या. ७.४८ भूमिगैस्ते समाज्ञेयाः औ २.२८ मुनक्ति च पुनर्भोगान् व परा १०.१८४ भूमिदाता कुलेजाता वृहस्पति १८ मुवन पतिं चैव ब्र.या. २.१७१ भूमिदानफलं चैव वृ परा १०.१० मुविदर्भान् समास्तीर्य्य व्यास ३.३१ भूमिदानस्य पुण्यानि वृहस्पति १६ भूकदम्बं च कंल्हारी ब्र.या. १०.१४८ भूमिदानात्परो धर्म वृ परा १०.१८१ भूगर्भविधानेन पत नारा ३.१२ भूमिदानेन ये लोका दा ७ भूतच्छलानुसारित्वाद् नारद १.२४ भूमिदानेन ये लोका लिखित ३ भूतप्रवाचने पत्नी कात्या १८.२२ भूमिदानेन ये लोका लघुशंख ३ भूतं भव्यं भविष्यं च बृ.या. २.८४ भूमिदायान्तितं लोका वृ.गौ. ५.९१ भूक्ले कलिना सृष्टोः न कपिल ४९ भूमिदो भूमिमाप्नोति वृ.गौ. ११.२५ भूतले ब्राह्मणाः सन्तः आंपू ५३४ भूमिदो भूमिमाप्नोति मनु ४.२३० वृतविद्धा सिनीवाली न न.या. ९. भूमिदो भूमिहर्ता वृहस्पति ३० भूतात्मनस्वपोविचे या ३.३४ भूमिपृथिव्यन्तरिक्ष व परा ११.३३२ भूतानां पतयेषेति व्यास ३.३२ भूमिः भूमिमगान्माता बौधा १.४.९ भूतानां पति धर्मस्तु ब्र.या. २.१७० भूमिं निखातं यूपांश्च वृ परा ५.१२३ भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठः भूमि यः प्रतिगृहाति अ ८९ भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठाः बा ११.३६ भूमिं यः प्रतिगृह्णाति वृहस्पति " भूतानामात्मभूतस्य व पस १२.२९. भूमि यस्तु प्रगरणावि हा ४.१५८ संवर्व ५५ भूमि रास्यवः श्रेष्ठ वाभयदानन Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ भूमिं हि दीयमानाञ्च भूमिमाक्रमते प्रातः भूमिर्गाव स्तथा दाराः भूमिर्गोकर्णमात्रेण भूमिहर्त्री स्वयं राजा यत्नेन भूमे गंध तथा घ्राणं भूमे प्रतिग्रहं कुर्याद् भूमेग्रामादिरूपाया दत्तया भूमेस्तु संमार्जन भूमौ तु गार्हपत्यस्य भूमौ त्रीणी ततोत्पूय भूमौ निक्षिप्य तद् भूमौ निधाय तद्दव्यमाचान्तः भूमौ पिण्डद्वयं दद्यात् भूमौ यस्तर्पणं कुर्यात् भूमौ विपरिवर्तेत भूमौ हस्तौ प्रतिष्ठाप्य भूम्यास्तु संभार्जन भूरग्निचादि सूक्तस्य भूरश्वः कनकं गावो भूरादिकेन त्रितयेन मूरादिनामत्रिभृगुकुत्स भूरादिव्याहृतीनांतु मुनयो भूरादिसप्तकं न्यस्य भूराद्याश्चैव सत्ययान्ता भूराद्यास्तिस्र एवैता भूरितिन्यस्य शिरसि भूरितिव्यति पूर्वाः भूर्धारयति सत्येन भूर्भुवः सुवरित्येत् भूर्भुवः स्वत्रयोलोक भूर्भुवः स्वःमहाजन भूर्भुवः स्वः महः जन भूर्भुवस्वःमहाः जनस्तपः भूर्भुवः स्वरिति चैव वृ.गौ. ६.९६ बृ.गौ. ५.१०२ वृहस्पति ६८ वृ. गौ. ६.१०८ कपिल ५५४ या ३.७८ वृ परा १०.३२६ कपिल ४६८ बौधा १.५.६६ कण्व ३४२ ब्र. या. ८.२५७ औ २.३० अत्रि ५.१९ ब्र. या. ३.४३ व्या २५० मनु ६.२२ व्या ३३४ व १.३.५१ भार १७.२० वृ. गौ. १०.६४ वृपरा ४.११ भार ६.२८ भार ६.३० भार १९.२१ बृ.या. ३.६ कात्या ११.६ भार १९.२२ भार १९.२ नारद २.१९१ भार १६.१९ आंठ ३.२ बृ.या. ८.४ ब्र.या. २.५६ भूर्भुवः स्वरिति ज्ञेया भूर्भुवः स्वरिति यः भूर्भुवः स्वस्तथा भूर्या पितामहो भूर्लोकं पादयोर्मध्ये भूलग्न सव्यजानुः भूलग्नसव्यजानुश्च भूशुद्धिः मार्जनाद्दाहात् भूषणाच्छादनदीनि पात्र भूषणानां च पात्राणां भूषयित्वाप्रीणयित्वारत्ल भूषितोऽपि चरेद्धर्म भूस्त्री तस्याः प्रदानेऽस्या भृगुणा च मनोः प्रोक्तं भृगुपाते मृतेचैव भृगुरात्रिर्वशिष्ठश्च भृगु वह्नि प्रपाते च भृग्वग्निपतनं चाष्टौ भृग्वग्निमरणे चैव भृग्वग्न्यनशनम्भोभिः भृतकाध्यापकः कुष्ठी भृतकाध्यापकः क्लीवः भृतकाध्यापकश्चैव भूतकाध्यापको यश्च मृतकाध्यापनं चैव भृतकास्त्रिविधो ज्ञेय मृतादध्ययनादानं भृतानां वेतनस्योक्तो भृतावनिश्चितायां तु भृतिषड्भागमाभाष्य भृतोऽनार्तो न कुर्याद्यो भृत्यानां च मृतिं विद्याद् भृत्याय वेतनं दद्यात् भार ६.२७ मृत्याश्च द्विविधा ज्ञेया बृ.या. २.७७ मृदोंग्गुष्ठ कनिष्ठाभ्यां स्मृति सन्दर्भ बृ.या. ३.३ बृह ९.१०८ बृ. या. ३.९ या २.१२४ बृ. या. ५.५ वृ परा ७.१९३ वृ परा २.१८४ या १.१८८ लोहि ४७६ कपिल ५४७ कपिल ६८२ मनु ६.६६ कपिल ६४७ वृ हा ८.३४२ शाता ६.३६ भार १.३ वृ परा ८.४४ नारा ७.५ पराशर ३.१२ शंख १५.२१ प्रजा ८३ या १.२२३ ब्र. या. ४.१७ मनु ३.१५६ वृ हा ४.१६७ नारद ६.२० या ३.२३५ नारद ७.१ नारद ७.३ नारद ७.८ मनु ८.२१५ मनु ९.३३२ नारद ७.२ शाण्डि ४.९६ भार ४.३१ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी भृशं न ताडयेदेनं भेदकारी भवेच्चैव भेदं सर्वं परित्यज्य भेदयन्तं भीषयन्त भेरूण्डश्येनभःसञ्च भेषजकरणं ग्रामयाजनं भेषज स्नेहलवण मैक्षञ्चैव समादाय भैक्षाग्निकार्ये त्यक्त्वा मैक्षुण वर्तयेन्नित्यं भैक्षेण वर्तयेन्नित्यं मैक्ष्यं चरेद् यथापूर्व मैक्ष्यं द्रव्यं हि विप्राणां मैक्ष्यस्याचरणे दोषः भोजनस्य प्रधानत्वं भोजनं स्वापमुद्धोषं भोजना च मनान्नं भोजनाच्छादनैः पुष्प भोजनादिषु नासक्तां भोजनादौ च भुक्त्यन्ते भोजनाद्यं तथाद्दिव्यं भोजनाद्यतयोर्मूत्रशौच नारद ६.१३ अत्रिस ३४६ लोहि ५८२ लोहि ७०८ पराशर ६.८ बौधा २.१.६१ या २.२४८. संवर्त १११ या ३.२८१ मनु २.१८८ औ १.५९ व २.३.१३७ भैखाय नमस्तुभ्य भोगवन्तो द्विजश्रेष्ठा भोगांश्च दद्याद् विप्रोभ्यो भोगानुपाज्ययागधर्म भो गुरो ब्रूहि मंत्र में वृ हा २.१२७ भोजन आच्छादनं दत्वा वृ परा १०.२३१ भोजनं कदलीपत्रे भोजनं च मलोत्सर्ग भोजनं नैव कर्तव्यं भोजनं भगवत्कर्म भोजनं शयनं ध्यानं भोजनं शयनं स्नान भोजनस्य द्विजातीनां प्रजा ४३ बौधा १.२.५४ विश्वा १.४६ वृ.गौ. ७.८८ या १.३१५ शाण्डि ४.२ व्या १६७ आश्व १.३० आपू २८३ शाण्डि ४.१५५ भार १.१६ भोजनान्ते च संपन्न भोजनाभ्यंजनाद् भोजनाभ्यजनाद् वृ परा ६.२७० विश्वा २.३० शाण्डि ४.१५४ शाण्डि २.४० भोजनाभ्यञ्जनाद् भोजनायोपविष्टस्य भोजनासनमुत्सृज्य भोजने चैव पाने च भोजने तु प्रसक्तानां भोजने मैथुने भूत्रे भोजने मैथुने मूत्रे भोजने वर्त्तुलोग्रन्थि भोजनेष्वाजीर्णान्तम् भोजनोत्तिष्ठ पात्रे आश्व १५.६५ बृ.गौ. १३.२ कात्या २९.१० शाण्डि २.८० भोजयेद् गृहिणोभिक्षां ब्र. या. १३.२६ शाण्डि ३.१५६ व्या १४२ भोजनोत्तरनिर्माल्यं प्रक्षाल्य विश्र्वा १.९४ भोजयित्वा ततः पिण्डान्यथा व २.६.३८९ भोजयित्वा ततो विप्रान् भोजयित्वा ततो विप्रान् भोजयित्वा ततोविप्रान् भोजयित्वा द्विजान् भोजयित्वा द्विजान् भोजयित्वा महाभागान् भोजयित्वा यथा शक्त्या भोजयेच्चाऽऽगतान् काले भोजयेत् आत्मन श्रेष्ठान् भोजयेत्पायसान्नेश भोजयेदथवाऽप्येकं भोजयेदन्नपान्नाद्यै भोजयेदन्नपानाद्यै भोजयेद्ब्राह्मणाने दद्यात् भोगयेद् ब्राह्मणान् भोजयेद् ब्राह्मणान् भोजयेद् ब्राह्मणान् भोजयेद् ब्राह्मणान् भोजयेद्भोजनीयांस्तान् ४८३ आंपू ८०० व १.२.३५ मनु १०.९१ बौधा २.१.७६ वृ परा ६.३६५ ब. या. २.२०३ आंगिरस २५ अत्रि २७५ व्या ४४ व्या ४५ ब्र. या. २.३९ बौधा १.११.२८ वृ हा ५.५०२ वृ हा ६.४२८ व २.७.१०४ शंख १४.२४ आश्व ३.११ वृ हा ५.२३१ वृ हा ५.२३२ वृ हा ५.२२१ वृ.गौ. ६.७३ व २.६.३८८ शंख १४.१० व २.६.१९७ व २.६.३११ व्यास ३.४२ कपिल ८७५ वृ हा ५.५३३ वृ परा ८.८९ वृ परा ८.१३२ व २.६.२४२ शाण्डि ४.१०६ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ भोजयेद् योगिनं पूर्व भोजयेद्वापि जीवन्तं भोजयेद् वैष्णवान् भोजयेद् वैष्णवान् भोजयेद् वैष्णवान् भोजयेद् वैष्णवान् भोजितेन तु विप्रेण भोज्यानेव रसात्स्या मोज्यऽअलंकारवासोभि मोज्याशनास्तु सच्छूदा भो भो ब्रह्मन् वदस्वाद्य भो भो वेन महीपाल मोः शब्दं कोर्तयेदन्ते भ्रंशयित्वा बहिष्कृत्य भ्रमन्ति पितरस्तस्य भ्रमन्ति सर्वभूतानि भ्रष्टाद्वा पतिताद्वापि भ्रष्टानामपि तुच्छानां भ्रष्टाभ्रष्टयवाश्चैव तथैव भ्रष्टम्यां पतितायां वा भ्राजते च यदा भर्गः भ्राजते दीप्यते यस्माज् भ्राजते स्वेन रूपेण भ्रातरः कुर्वतेश्राद्धं भ्रातरश्च पृथक्कुर्युर्ना भ्राता पितृव्यो भ्रातृव्यः भ्रातुः पुत्रो भवेन्न्यूनः भ्रातुर्येष्ठस्य कुर्वीत भ्रातुर्येष्ठस्य भार्या भ्रातुर्योपसंग्राह्या भ्रातुर्मतस्य भार्यायां भ्रातुस्तथापिमूकस्य स्वयं भ्रातृजेषु विवाहो 'भ्रातृजो वाक्यतः भ्रातृणां यस्तु नेहेत औ ४.९ भ्रातृणामथदम्पत्यो । __ औ ५.८९ भ्रातृणामप्रजः प्रेयात् वृ हा ५.३१८ भ्रातृणामविभक्तानां वृ हा ५.३३८ भ्रातृणामविभक्ताना वृ हा ५.४२५ भ्रातृणामेक जातानामेक वृ हा ५.४७० भ्रातृपत्नीनां युवतीनां वृ परा ७.६५ भ्रातृपुत्र ज्ञातिपुत्रः बन्धुं शाण्डि १.१६ भ्रातृपुत्रशिष्येषु वृ परा ६.४२ भ्रातृपुत्रेषु तिष्ठत्सु वृ परा ८.३२४ भ्रातृभार्योपसंग्राह्या नारा ८.१ भ्रात्रादीनामपि तथा नारा ७.१६ भ्रात्रे भगिन्यै पुत्राय मनु २.१ २४ भ्रात्रे भगिन्यै पुत्राय लोहि ५४२ भ्रामयित्वा पुनर्वस्त्र व्या २७१ भ्रामरी गण्डमाली च शाण्डि १.४२ ध्रुवी-मण्डलमध्यमस्थं कपिल ९८० भ्रवोः ललाट सन्ध्योस्तु __ आंपू १३८ ध्रुवोललाटसन्ध्योस्तु अत्रिस २४० भ्रूणहत्या प्रसिद्धिं लोहि १६० भ्रूणहत्यामवाप्नोति बृह ९५० भ्रूणहत्यासमंचैतदुभयं बृह ९.५३ भ्रूणहत्यासमं पापं बृह ९.५४ भ्रूणहत्या सुरापानं व्या २८४ भ्रूणहनं वक्ष्यामो ६.या. ५.१६ भ्रूणहनावेक्षितं चैव प्रजा ६२ भ्रूणहा द्वादश समाः आंपू ४०५ वृ परा ७.४८ मकारं पारागाभं मनु ९.५७ मकारं मूधि विन्यस्य मनु २.१३२ मकारे पीडयमानायां मनु ३.१७३ मकारेवाच्यो जीवोसौ कपिल ३०६ मकारेस्तु भवेज्जीव आंपू ३.५९ मक्षिकामशकेनापि आंपू १२६ मक्षिका विप्रषश्छाया मनु ९.२०७ मघामूलाश्विनी ज्येष्ठा स्मृति सन्दर्भ या २.५: नारद १४.२२ मनु ९.२१ नारद १४.३५ मनु ९.१८२ बौधा १.२.३२ कपिल ७०२ बौधा १.२.४३ आंपू ३६० औ ३.३२ लोहि ४५० व्या २८५ कपिल १४६ भार ७.१०० मनु ३.१६१ ब्र.या. २.३० वृ परा ४.३ ४ व परा ४.१३२ __ वाधू १६६ व्यास २.४६ वृ.गौ. १२.१३ वृ.गौ. ९.५६ बृ.गौ. १६.३४ व १.२०.२६ मनु ४.२०८ बौधा २.१.२ वृ परा ४.८९ बृ.या. ५.३ बृ.या. २.३४ वृ हा ३.८२ वृ हा ३.५९ शंख १७.४७ मनु ५.१३३ ब्र.या. ८.२९९ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४८५ मघायुक्तत्रयोदश्यां वृ परा ७.२९३ मण्डलं ब्राह्मणं रुद्र संवर्त २२५ मघाशक शिव आदित्य आश्व ३.१५ मण्डलस्य प्रमाणं तु नारद १२.१२ मंगल द्रव्य संयुक्तैरद्भिः वृ हा ६,४०२ मंडलस्योत्तरे भागे व्या १०३ मगलाचारयुक्त स्यात् मनु ४.१ ४५ मण्डलात्पश्चिमे भागे आंपू ७७९ मंगलाचारयुक्तानां नित्यं मनु ४.१ ४६ मण्डलात्पूर्वतो देवा । व्या १०४ मङ्गलाचार युक्ताश्च वृ.गौ. १०.१०२ मण्डलानि चतुः षष्टि ब्र.या. १.१२ मंगलानि कुतस्तस्य अत्रिस २१९ मंडलान्युपजीवन्ति अत्रि ५.२ मंगलार्थ स्वस्त्ययनं मनु ५.१५२ मण्डलाभ्यांच ऋग्म्यांच व २.३.१ ४७ मंगलाशासनं कुर्यात्तूर्य व २.६.२२९ मण्डले चतुरस्रे च व २.६.१९९ मङ्गल्य पावनो धन्यः बृ.या. २.२ मण्डले चतुरस्रेति व २.६.२९८ मंगल्यं ब्राह्मणस्य मनु २.३१ मण्डलेन तु संस्थाप्य ब्र.या. १०.८९ मज्जनं गोमयह्नदे गोदानं नारा ८.१३ मण्डले पात्रं संस्थाप्य ब्र.या.२.१६२ मज्जानं मृत्योर्जुहोमि व १.२०.३५ मण्डूकञ्चैव हत्वाच संवत १४७ मज्जेदोमित्युदाहृत्य वृ.गौ. ८.३३ मतानुगमनं नास्ति वृ परा ७.३७६ मठश्चैतेषु लब्धेषु भार १५.५५ मत्ताभियुक्तस्त्रीबाल नारद २.११४ मणिकं कलशान् वाऽपि वृ परा १०.१९ मतिपूवघ्नतस्तस्य बौधा २.१.७ मणिधनुरिति ब्रूयात् व १.१२.३१ चास्याः औ ९.१६ मणिनेकमुखाः सर्वा __ भार ७.४० मतिं शूदस्य यो वृ परा ६.२६२ मणिपाषाणशंखाश्च पराशर ७.२७ मति स्वार्थः सदारेषु वृ हा ५.१५ मणिप्रबालरलानां औ ९.२० शाण्डि २.७७ मणिभिर्मोक्षमाला च भार ७.१४ मत्कोपजातकालग्नौ मूर्द्धा नारा ४.६ मणिमुक्ताप्रवालादि व २.७.९७ मत्तक्रुद्धातुराणां च न मनु ४.२०७ मणिमुक्ताप्रवालानां मनु ९.३२९ मत्तेभकुम्भसंकाशौ विष्णु १.२५ मणिमुक्ताप्रवालानां मनु ११.१६८ मत्तोन्मत्तार्ताध्यधीनैः मनु ८.१६३ मणिमुक्ताप्रवालानि मनु १२.६१ मत्तोन्मत्तार्त व्यसनि या २.३३ मणिमुक्ता फलै युक्तं वृ परा १०.१६८ मत्या द्विमासमभ्यासे नारा १.२२ मणीनां राजतां कुर्यान् औसं ४० मत्यामत्या तथा पापात् नारा २.२ मण्डकान् विविधान् वृ हा ५.३५९ मत्या मद्यपाने त्वसुरायाः व १.२०.२२ मंडतां (लांत) र्गतायस्य भार २.२४ मत्वा चार्थवतः सर्वान वृ परा १२.५९ मण्डपस्य च वेद्याश्च वृ परा ११.२७३ मत्सुतागर्भसंभूतं शिशुमेनं कपिल ३७२ मण्डलं कारयित्वा तु बृ.गौ. १३.३ मत्स्यकूर्मादिभिश्चैव वृ हा ६.११२ मण्डलं चतुरस्रं वा __ औ ५.४६ मत्स्यकूर्मादिमूर्तीनां वृ हा ४.९३ मंडलं तस्य मध्यस्थ या ३.१०९ मत्संघातो निषादानां मनु १०.४८ मण्डलं पूर्वतः कृत्वा औ १.६४ मत्स्यं कूर्म च वाराहं वृ हा ७.१ ४२ मंडलं बाहुमात्रं च व्या ७८ मत्स्या नक्रादयः कार्या वृ परा ११.२२८ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६ मत्स्यानं पक्षिणां चैव मदनं कुटजादकं मदमात्सर्यमानाद्या दोषा मदर्चनपरः क्रोधलोभमोह मदीयां वहते चिन्तां मद्दालयषोडशत्वेगज मद्भक्तानां तु मानुष्ये मद्भक्ता मद्गतप्राणाः मद्भक्ता ये द्विजश्रेष्ठा मद्भक्तिः क्रियते तात मद्यगन्धं समाघ्राय मद्यपस्त्रीमुखं मोहादा मद्यपस्य निषादस्य मद्यपाऽसत्य वृत्ता मद्यपो रक्तपित्ती मद्यभाण्डगताः पीत्वा मद्यभाण्डाद् द्विज कश्चिद् मद्यभाण्डे स्थिता आपो मद्य वाऽपि सुरां वाऽपि मद्यमप्यानृतं श्राद्धे मद्य मासं तथैवोष्ट्र मद्यमांसादि निषेधं सर्व मद्यमांससमं प्रोक्तं मद्यमांसाशिनश्चान्ये मद्यमांसे च विमूत्र मद्यैर्मूत्रैः पुरीषैर्वा मद्यैः मूत्रैः पुरीषैर्वा मधुकं कुटजं ब्राह्म मधुचौरस्तु पुरुषो मधुदंशः पल गृध्रो मधुना कुशतोयेन मधुनाऽऽज्येन वा युक्तं मधुना पयसा चैव मधुना पूरितं पुण्यमत्य मधुपद्यात्मृतं (द्रव्यात्मकं ) मनु ८.३२८ मधुपर्क प्रदानेन व २.६.१७० शाण्डि ३.४४ बृ.गौ. १७.२६ विष्णु १.२१ आंपू ६९१ वृ.गौ. १.४३ बृ.गौ. २२.२१ बृ. या. १४.१४ वृ.गौ. १.४५ वृ हा ६.२६५ वृ.गौ. १९.३९ अत्रिस २१० मनु ९.८.० शाता ३.३ शंख १७.४३ अत्रिस ६९ व २०.२४ वृ हा ६.२७५ प्रजा १५१ वृ हा ६.३४९ विष्णु ५१ वृ हा ५.७० वृ हा ८.२६८ व २.६.४७७ मनु ५.१२३ व १.३.५५ वृ हा ५.२४९ शाता ४.१० या ३.२१५ भार ७.६० आश्व १५.५ या १.४१ कपिल ९१२ भार १४.३७ मधुपर्क क्षिपेत् किं* मधुपर्क विनारात्रौ मधुपर्क विधानं च ये मधुपर्कस्तथान्नाद्यं मधुपर्काय कौठजं मधुपर्के च यज्ञे च मधुपर्केच यज्ञो च मधुपर्के च सोमे च मधुपा सोमपाश्चैव मधुमध्वितियस्तत्र मधुमन्नं समासाद्य मधुमांसजनोच्छिष्टमु मधुमांसांजनोच्छिष्ट मधुमांसैश्च शाकैश्च मधुमा साशनं चैव मधुराणां तु सम्पर्को मधुवाताऋतयितिदेव मधुव्वाता ऋचा मध्यकाले तु मध्याहने मध्यच्छिन्ना यदा मध्यन्दिने जपान्ते च मध्यंदिने दृढङ्गो यः मध्यन्दिनेऽर्धरात्रे वा मध्यन्दिने यदश्नीयादष्टौ मध्यदिनेऽर्धरात्रे च मध्यप्रविष्टगोत्रस्य तत्त्वं मध्यमं तं ततः पिंड मध्यमं युग्मपिण्डौ मध्यमस्तु भवेद्विन्दु मध्यमस्थापयेच्चक्कु मध्यमस्य प्रचारं च मध्यमा अन्तमिका मध्यमांग्गुलमध्यस्त मध्यमानामिकांगुष्ठैः स्मृति सन्दर्भ वृ हा ५.२२२ आश्व १५.११ आश्व १.१४७ ब्र. या. ८. १९१ शाण्डि ४.४३ व २.६.२०१ मनु ५.४१ व १.४.६ पराशर ९.३५ ब्र. या १०.१२७ कात्या ३.७ ब. या. ४.१०९ ब्र. या ८.६४ या १.३३ व १.११.३७ व २.३.८८ शाण्डि ४.४० भार ७.७७ ब्र. या. ३.६७ विश्वा ८.३६ आंपू ५८ विश्र्वा ७.१३ वाधू २९८ मनु ७.१५१ वृ परा ९.७ मनु ४.१३१ कपिल ९७ औ ५.७५ ब्र. या. ५.२४ बृह ९.११ भार २.२३ मनु ७.१५५ वृ परा ६.१२१ भार २.५४ वृ हा ५.२५८ Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ श्लोकानुक्रमणी मध्यमानामिकादमें ब्र.या. २.३५ मनः शुद्धिरन्तः शौचम् मध्यमेकेन होमेन देव कपिल ६८१ मनः शौचं कर्मशौचं मध्यमेन पलाशस्य वृ परा ९.३० मनश्चैतन्य युक्तोऽसौ मध्यमैः युवाभिः वालैः वृ.गौ. ५.३० मनः सन्तापकरणं मध्यसंध्या च कर्तव्या - कण्व २४७ मनसश्च परा बुद्धि मध्यस्थ स्थापित या २.४६ मनसश्चात्मनश्चैव मध्यस्थ स्थापितं व हा ४.२३२ मनसश्चन्द्रमा जातः मध्यांग्गुलेमध्यरेखा भार ७.१०४ मनसः संयमः तज्ज्ञैः मध्यातिप्रस्थवाङ्मौना भार १५.१४५ मनसा कर्मणा वाचा मध्यामध्यस्पृशंतोपि ब्र.या. २.१९६ मनसा केवलं रात्र्यां मध्याह्ने मृत्तिकास्नानं विश्वा १.८८ मनसा गणनापूर्व मध्याह्नान्ते वैश्वदेवं विश्वा ८.३७ मनसा नैत्यकं कर्म मध्याह्ने च पुनः स्नायाद आश्व १.७५ मनसाऽपि जलेनापि मध्याह्नचलितो भानुः वृ परा ७.९७ मनसापि न कुर्वीत मध्याह्ने चैव सावित्री ब्र.या. २.४६ मनसापि हि दुष्टास्त्री मध्याह्न तु गते सूर्ये वृ परा ७.९५ मनसा भर्तुरतिचारे मध्याह्न ब्रह्मयज्ञो वै आश्व १.१०६ मनसि वाऽर्चयित्वास्मिन् मध्याह्नो नापाराह स्यात् लोहि ६४७ मनसीन्दुं दिशः श्रोते मध्ये तु पावनो देशो वृ परा १.४३ मनः सृष्टि विंकुरुते मध्ये तु भास्करं स्थाप्य ब्र.या. १०.९७ मनसेत्यादि मंत्रेण मध्ये तु मधुपर्कार्थे व २.६.८८ मनसैवार्चयित्वाऽथ मध्येतु वारुणं कुम्भं वृ हा ५.१२० मनसैवार्चयेद्देव मध्ये तु विषुवं ज्ञेयं वृ परा ६.१०० मनसैवोपचाराणि मध्ये तेषां तुलादीनां कपिल ९०५ मनस्था (खानि) स्थिरां मध्ये ब्रह्मसमारोप्य ब्र.या. १०.८७ मनिवर्ती यथा श्येनो मध्ये शाकुटकादीनी आंपू ५२९ मनुना चैवमेकेन मध्येस्कन्धभुजाभ्या वाधू १३८ मनुः पुत्रेभ्यो दायं मध्ये स्थाप्य ब्र.या. १०.१०६ मनुः प्रजापतिः यस्मिन् मध्यक्षद्वन्निति मंत्र आश्व २३.६९ मनुः भृगुः वशिष्ठश्च मध्यवाज्यतिलमिश्रेण व २.६.३७२ मनु मेकाग्रमासीनं मध्वाज्यं दधि संयोज्य शाण्डि ४.३९ मनुर्वा याज्ञवल्क्यस्तु मध्वाज्यशर्करायुक्तं शाता ६.१८ मनुष्यतर्पणं चैव स्नान मध्वासव मधूच्छिष्ट वृ परा ६.२८३ मनुष्यं ब्रह्मयज्ञञ्च मनः प्रसादजननं बृ.या. ७.१२६ मनुष्यमारणे क्षिप्रं मनः प्रसादनं कुर्यात् शाण्डि २.१८ मनुष्यविषशस्त्राम्बु बौधा १.५.३ बृ.गौ. २१.९ या ३.८१ वृ हा ६.२९२ बृह ९.१८५ दक्ष ७.१४ या ३.१२८ शंख ७.१४ वृ.गौ. १०.१३ शाण्डि ५.२६ विश्वा ३.४२ कात्या १९.२ वृ हा ८.२७२ आंपू ९७ वृ परा ६.५१ व १.२१.७ वृ हा ४.१३३ मनु १२.१२१ मनु १.७५ व २.६.५ वृ हा ५.२५४ वृ हा ३.४० वृ हा ३.२२८ विश्वा ८.२० का १० पराशर ९.५१ बौधा २.२.२ नारद १.१ वृ हा ५.३ मनु १.१ वृ परा ८.६० ___ वाधू ६२ ल व्यास २.५१ मनु ८.२९६ नारद २.१६५ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८८ मनुष्याकृतयो देवा मनुष्याकृतिदेवेषु नरः मनुष्याणां हरणे मनुष्याणां पशूनां च मनुष्याणां हितं धर्म मनुष्यान्मध्यमानुष्यं मनो ज्योतिरबोध्याग्निः वृ मनो बुद्धि तथैवा आत्मा मनो यस्य निषण्णं मनो युञ्ज्यात्तथोंकारे मनोवाक्कर्मभिः शातं मनो विभक्ता त्वग् मनोहराणि कान्तानि मनोहरे शुचौ देशे मनोहिरण्यगर्भस्य मन्त्रकर्मपरिभ्रष्टाः मन्त्रक्रियापरिज्ञानविकलो मन्त्राज्ञाः श्राद्धकार्याय शाण्डि ४.१८ शाण्डि ४.१७ मनु ११.१६४ मनु ८.२८६ वृ परा १.३ ब्र. या. ११.३ परा १९.१११ शंख ७.२७ वृ परा १२.३०३ बृ. या. २.१३९ मंत्रतंत्रादिवैकल्यरहितं मंत्रतस्तु समृद्धानि मंत्रतस्तु समृद्धानि मंत्र त्रिनेत्रं जुहुयात मंत्रदीक्षा विधानन्तु मंत्रद्वयन्तथाजवा मन्त्र द्वयेन पुष्पाणां मंत्रद्वयेनाभि मन्त्र्य तस्मिन् मंत्रन्यासं पुरा कृत्वा मंत्रः पुमान् क्रिया स्त्री मन्त्रपूतं तु यच्छ्राद्ध मंत्रपूता हरिद्वर्णः मन्त्रपूतो वेदजन्यः मंत्रं पंचविधं ज्ञात्वा मंत्रमुच्चार्य चतुर्थ्यन्तं मंत्रमूलं यतो राज्यमतो मंत्रमेकं जपेत्तत्र ल व्यास २.६० वृ परा ६.११४ वृ.गौ. ५.८३ व २.३.१७७ मनु _३.१९४ दा १२१ लोहि ६२९ लोहि ३५३ कपिल ४४४ मनु ३.६६ बौधा १.५.१०० वृ परा ११.२०१ वृ हा ८.२३८ व २.६.१३९ वृ हा ५.४०४ व २.३.१०३ वृ परा ४.११४ वृ हा ७.४२ आंपू ७३७ प्रजा ९८ लोहि ११ वृ परा ४.३७ आश्व २.५९ या १.३४४ आश्व ९.२१ मंत्रयन्त्रविहीनं यत्तिलकं मंत्ररत्नं त्रिवारं तु मंत्ररत्नविधानेन स्मृति सन्दर्भ विश्वा १०८ वृ हा ४.३१ वृ हा २.१४३ वृ हा ४.६५ वृ हा ६.१७ वृ हा ८.३०३ वृ हा ५.४०७ वृ हा २.१४७ वृ हा ५.५५१ वृ हा ५.४२८ मंत्ररत्न विधानेन मंत्ररत्न विधानेन मंत्ररत्नार्थविच्छान्त मंत्ररत्नेन जुहुयात् मंत्ररत्नेन तद् बिम्बं मंत्ररत्नेन वा नित्यं मंत्ररत्नेन वाऽभ्यर्च्य मन्त्ररत्न वै कुर्याद मंत्रराजं चतुष्षष्टि मंत्रराजं परार्ध च प्राणायामं मंत्रराजेन गायत्र्या मंत्रलोपादि होमान्तं मन्त्रवस्तु शूद्राणां मन्त्रशून्यकृतैः सर्वैः मंत्रसंस्कार विज्ञेयः मंत्र संस्कार विज्ञेया मंत्र संस्कारेण प्रोत्काः मंत्रसन्मार्जितजलं मनस्तदाहृदं मुग्धं रमते मन्त्रस्नानं विना विप्रो मंत्रस्वरै रक्षरैश्च मंत्रहीनं क्रियाहीनं मंत्राक्रियाजुष्टमेव मंत्राक्षराणि मनसा व २.७.३४ विश्वा ३.५४ विश्वा ३.५५ वृ हा ५.३५५ आश्व १५.५४ ब्र. या. ८.२२१ कण्व २३० ब्र. या. १०.६९ ब्र. या. १०.९४ ब्र. या. १०.१०५ वृ हा ६.३५३ शाण्डि ५.२८ विश्वा १.७६ वृ हा १७३ आश्व २३.१०९ वृ हा ७.४३ भार ६.२३ मंत्राणि सर्वाणि च सद् वृ परा १९.२०० मंत्राण्यमूनिद्रव्याणि भार ११.८८ लोहि २५२ व २.१.४२ आश्व २.३.११२ मन्त्राच्चारणाभावात्त मंत्राध्ययनकाले वा चक्रं मंत्रान् श्रृण्वन्त मंत्राम्नायेऽग्न इत्येतत् मंत्रार्णानि तु विन्यस्य मंत्रार्थ चिन्तनं योगो कात्या २५.१ वृ हा ३.९८६ वृ । ६.१४४ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी मंत्रार्थ तत्वविदुषं मंत्रेण अष्टोतरशतं मंत्रेण च सहस्रं तु मंत्रेण तस्य तत् मंत्रेणानेन गायत्रिं यथा मंत्रेणानेन दत्त्वा गां मंत्रेणानेन वै तत्र भूर्भुवः मंत्रेणायं प्रदातव्यं मंत्रेणाष्टोत्तरशतं मंत्रेणैव तु गायत्र्या मन्त्रेणैवभिमन्त्र्याऽथ मन्त्रेणैवाभिमन्त्रयाथ मंत्रेणैवाभिमंत्र्याथ मंत्रेणैवार्चनं कृत्वा मंत्रेप्यसावितिस्थाननाम मन्त्रैर्वा जुहुयादाज्यं मन्त्रैर्होमैर्मार्जनाभ्युक्षणै मंत्रैः शाकलहोमीयैरब्द मंत्रैश्चैव स्वशाखोक्तैः मन्त्रैस्तोत्रैश्च मन्त्रोच्चारणसामर्थ्याद्यभावे मंत्रोणोद् बुध्य हृदय मन्त्रो मन्त्रेश्वरश्शास्त्रं मंत्रो हि बीजं सर्वत्र मन्दं पठेच्च राजन्यो मंदारनागविजय श्वेत मन्दार पारिजातादि मन्देहानां विनाशाय मन्दोदराग्निर्भवति सति मन्निरोधाय सम्बन्धः मन्यन्ते वै पापकृतो मन्यमाना महाभागा मन्युदग्धस्य विप्राणां मन्युना स्यन्ति ते मन्युप्रहरणा विप्राश्चक्र वृ हा २.१४२ वृ हा ५.३६९ वृ हा ५.३९१ बृ. या. १.३९ भार ६.११२ भार १८.९५ ब्र. या. ८.३१५ व २.३.१८१ वृ हा ५.४५७ व २.६.१३४ व २.६.९२ व २.७.३२ वृ हा ४.३५ वृ हा ५.१७० कपिल ३१३ वृ हा ७.१५२ बृ.या. ८.३५ मनु ११.२५७ आश्व २४.१६ वृ.गौ. १०.३० कपिल ६८८ वृ हा ५.९३ शाण्डि ३.५४ वृ हा ७.४१ वृ परा १०.२८८ भार १४.९ वृ हा ३.३१२ वृ.गौ. ८.४६ शाता ३.८ लोहि ५३९ मनु ८.८५ लोहि ५८७ वृहस्पति ५१ वृ.गौ. ३.७० शंखलि ३१ ४८९ मन्यून् न उत्पादयेत् तेषाम् वृ.गौ. ३.६९ मन्वतारिं यदा राजा मन्वन्तर द्वयेनेह मन्वन्तरशतं विष्णु मन्वन्तराण्यसंख्यानि मन्वन्तरैः युगप्राप्त्या मनु ७.१७३ वृ परा १२.३६६ वृ हा ५.४०९ मनु १.८० या ३.१७३ मवंत्रि विष्णु हारीत या १.४ मम कोपः प्रशमितः तव नारा ५.५ वृ.गौ. १.६६ या ३.१५३ विश्वा ६.३० बृ.गौ. २१.२३ वृ.गौ. १०.२६ बृ.गौ. १५.९६ वृ.गौ. ७.१२१बृ.गौ. १५.९२ वृ.गौ. ७.१६ ब्र. या. ९.१९ बृ.गौ. १८.३० बृ.गौ. २०.४६ वृ हा ५.४९४ मम च एव अन्धकारस्य मम दारसुतामात्या मम प्राणा इरात्यादि मम मद्भक्त भक्तेषु ममलोकं व्रजेद्युक्तो मम लोकं सपत्नीका मम लोकावतीर्णश्च मम लोके प्रमोदन्ते मम लोकेषु रमते ममवल्लभ या चैताः न मम सालोक्य मायाति सूक्तं जपेद्यस्तु ममाग्र इति सूक्ताभ्यां ममापि संशयस्तत्र ममायमिति यो ब्रूयान् ममाश्रयो किचित्तु ममेति द्वयक्षरं मृत्युर्न ममेदमिति यो ब्रूयात् मयाकृते मूत्रपुरीषशौच मयाssख्यातं रुदित्वा मया ते कथितः सर्व्वे मया श्रद्दनानि यानि मया श्राद्धविधिः मयि तेज इतिच्छायां मयि भक्तिन्न कुर्वन्ति मयिसन्नयस्तकर्माणः मयि सायुज्यतां याति प्रजा १३ मनु ८. ३५ बृ.गौ. २२.३० वृ हा ३.९५ मनु ८.३१ विश्वा १.११२ वृ परा ७.३८ ल हा ७.१३ वृ.गौ. १.७० वृ परा ७.३९९ या ३.२७९ बृ.गौ. २२.१५ वृ.गौ. १२.१२ वृ.गौ. ६.१०६ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९० स्मृति सन्दर्भ मयैष धर्मोऽभिहितः अत्रिस १६ मला ह्येते मनुष्येषु नारद १६.१३ मयोमवायचत्वारिपशुभ्यः ब्र.या. ८.२३२ मलिनीकरणं तत्प्रशमनवर्णनम् विष्णु ४१ मरणं चाश्य कुर्वीरं नारद १ ४.२५ मलिनीकरणं प्राहुः दुर नारा १.१४ मरणाच्छुद्धिमाप्नोति वृ हा ६.२७६ मलिनो हि यथादर्शो या ३.१४१ मरणात् प्रभृति दिवस व १.४.१७ प्रलिम्लुचेऽपि कर्तव्यं वृ परा ७.१०६ मरणान्तं तथा चान्यद्दश दक्ष ६.३ मल्लापर्कषणं ग्रामे औसं १० मरणाब्धमाशौचं संयोगो लिखित ९२ मसूरांजनपुष्पं च वृ परा ७.२२८ मरणे तु यथा बालं बौधा १.५.१२९ मस्तकं संपुटं चैव शाण्डि २.७५ मरणेषु च द्यायै व २.६ ३९४ व २.६.३९४ मस्तके तु तथा शांग वृ हा २.२० मरीचं च मधुश्चैव __व्या ३१६ मस्तके भार्जनं कुर्यात् आश्व १.२५ मरीचं शीरकं चैव शाण्डि ३.११३ महतः परंअव्यक्तं शंख ७.३३ मरीचं हिंगु तैलानि प्रजा १२४ महता काष्ठानामुपद्याते बौधा १.६.२५ मरीचिपाः संभवन्ति कण्व ४६२ महतां श्ववायस बौधा १.६.४८ मरीचिमत्र्यङ्गिरसं ब्र.या. २.९६ महतोऽप्येनसो मासात् बृ.या. ४.५० मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ मनु १.३५ महत्तु वैदिकं कर्म कण्व ६३९ मरीचिमिश्रं दध्यन्नं वृ हा ४.११९ महत्या दीक्षया कर्म आंपू ३८ मरीचिमिश्र दध्यन्नं वृ हा ७.२७७ महत्वं व्यपदेश्यं च गुरु कपिल ८४३ मरीचिरत्रिरंगिरा व २.६.१ ४१ महत्सु चातिपापेषु वृ हा ६.२२२ मरीच्यादीन्मुनी श्चैव वृ.गौ. ८.५८ महत्सु सत्सु तिष्ठत्सुनरो कपिल ५१५ मरुतार्केण शुद्धयंति पराशर ७.३६ महद्भिः पातकैर्मुक्तो वृ हा ५.५४९ मरुतो यस्य हिक्षये वृ परा ११.३ ४४ महन्तो मे गुणाः वृ.गौ. १.५६ मरुतो वसवो रुदा पराशर १२.२१ महर्षि पितृदेवानां मनु ४.२५७ मरुत्मण्डलमध्यस्थात्रिः ब्र.या. १०.१३८ महर्षिभिश्च देवैश्च मनु ८.११० मरुदभ्य इति तु द्वारि मनु ३.८८ महाकुलप्रविष्टा चेत् । कपिल ५९५ मरुदैवतकं ज्ञेयं व परा ४.२२ महाकुलेषु चान्येषु वृ परा १२.२०३ मरुद्भिश्च क्षिपेद्वारि वृ परा ४.१६६ महागणपतेश्चैव ब्र.या. १०.२४ मर्त्य खान्तपि वा स्नाया शाण्डि २.४८ महाचारित्रंबन्धुत्वशुश्रूषा लोहि ५२ मर्मज्ञाः शुचयोऽलुब्धा या २.१९४ महात्मनः (त्मानं) सत्कुलीन् कपिल ८०८ मर्यादायाः प्रभेदेतु या २.१५८ महात्मानं चतुर्बाहुं वृ परा १२.२३२ मर्यादाया स्थितिश्चैव वृ.गौ. १२.४ महात्मनो नाशयंती लोहि १८३ मलद्वार्यस्य सततं तिष्ठन्ति कपिल ६१ महादवभृथाच्चापि शावा आंपू २६७ मलमूत्रवसापंके बृ हा ४.५ महादानं विदानं ब्र.या. ११.६६ मलापकर्षणार्थं तु शंख ८.६ महादानसमं लोके न अ १०० मलापकर्षणं स्नानं औ ३.२२ महादानादिकं व्यास ! वृ परा १०.२३४ मलापकर्षणार्थाय तद्धि आंपू २५५ महादानदिसंप्राप्तं गज लोहि ३९३ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९९ श्लोकानुक्रमणी महादानानि चामूनि तुला कपिल ९६४ महापातकसंयुक्तो महादाहकरोऽश्वत्थः आंपू ५३२ महापातक संयुक्तो महादीविस्थ कुंभेषु व २.७.६१ महापातकसंयुक्तो महादीक्षामध्यगतं __ आंपू ३५ महापातकसंयुक्तो महादेवः शिवोरुद्रः भार ११.५४ महापातक संयुक्तो महादिमलयाउरू वासौ भार १३.१४ महापातकसंस्पर्श महाधनपतिः श्रीमान् वृ.गौ. ६.७८ महापातकसंस्पर्श महाधुनीधुनीश्रोतः सरो भार ६.१२ महापातकसंस्पृष्ठः महाध्यानमिति प्रोक्तं भार १३.४३ महापातकिनश्चैव महानदीमल्पनदी यत्ना लोहि १०९ महापातकिनश्चोरा महान्त्यपि समृद्धानि मनु ३.६ महापातकिनाचैव तथा महानदी पुण्यतीर्थ भार १४.३९ महापातकिनामान्नं महानदीमुपस्पृश्य अत्रिस ५८ महापातकिसंयोगे महानदीस्नानाशतं आंपू १५२ महापातकिसंस्पर्श महानद्यांवैवम् बौधा १.६.४१ महापातकैः घोरैः महानवम्या द्वादश्यां ल हा ४.७१ महापातकोपपातकेभ्यो महानसेऽन्नं या कुर्यात कात्या १८.२३ महापापं चातिपांप महानाम्नीभ्यः स्वाहेति आश्व ११.५ महापापी महापापैरन्वितो महानाम्नीव्रतं कुर्यात् आश्व ११.१ महापापोपपापाभ्यां । महानिशा तु विज्ञेया पराशर १२.२४ महापितृयज्ञश्च पितृ महान्ति निष्क्रियाणीति आंपू ४९० महापुर्वासु चैसासु महान्तमव चात्मानं मनु १.१५ महाप्रस्थानमेकाग्रो याति महापथिकसामुदवणिक नारद २.१५८ महाबिन्ध्याटवीमार्गे महापदिः कदाचित्तु लोहि ३५९ महाभयेष्विदं ध्यानं महापराधाः सुकूराः आंपू ९०१ महाभागवतं दैत्यनाशकं महापशूनां चैव रत्नानां मनु ८.३२४ महाभागवतं विप्र महापातककर्तारश्चत्वारो लघुयम ३१ महाभागवतः स्पृष्टा महापातक चिह्न शाता १.३ महाभागवतं विप्रं महापातकजान् घोरान्नरकान् या ३.२०६ महाभागवत स्पर्शात् महापातकजैः घोरे १ हा ६.१६६ महाभागवतानाञ्च महापातकदुष्टा च व्यास २.४७ महाभागवताः पूज्या महापातकदुष्टोऽपि व्यास २.४८ महाभागवतो विप्रः महापातकनाशाय महारोग विना ३.४७ महाभागवतो विप्रः महापातक परामर्श वर्णनम् विष्णु ३५ महाभागवतो विप्र महापातक शुद्धयर्थं वृ परा ८.२१० महाभूतात्मकं चैव कात्या २३.४ संवत २०९ बृ.गौ.१९.२० अत्रिस ३६४ मनु ११.२५८ लघुशंख ४१ औ ९.५० अत्रिस २५८ मनु ११.२ ४० शाण्डि ३.१९ संवर्त १७५ वृ परा ८.१९४ संवर्त १२५ दा ९४ या ३.२२५ अत्रि ४.२ वृ हा ३.४९ व हा ८.३०० या ३.२८५ कण्व ४३८ व परा १०.२६१ वृ.गौ. ७.११० आंपू ५५९ वृ हा ३.३५२ वृ हा ३.३६७ व २.७.२२ व २.७.१०९ वृ हा २.७ वृहा ४.१६८ वृ हा ५.२२९ वृ हा ७.९९ वृ हा ५.८४ वृ हा ५.६७ वृ हा ६.१२ अ १०५ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ महाभूतान्यहंकारो वृ हा ३.१०३ महिषी गर्दमञ्चैव महाभूतानि सत्यानि या ३.१ ४९ महिषीघातने चैव महामणिविचित्रेण सुवर्णेन वृ.गौ. ७.१११ महीषीत्युच्यते भार्या सा महामते ! महाप्राज्ञ ! विष्णु म १ महिषीत्युच्यते भार्या महामन्त्रस्य तस्यान् कण्व २१० महिषों माहिषे दाने महामहतयोः स्थानात्पथः व १.१९.११ महिषैः च मृगैः च अपि महामाली जीवमाली आंपू ५२५ महिष्येण करण्यान्तु महामाहानामद्येवं व २.६.३०० महीपतीनां नाशौचं महायलः कुमाराणां वृ परा १२.१३ महीं सागरपर्यान्तां सशैल महायज्ञरतः शान्तो प्रजा ३२ महोक्षं वा महाजं वा महायज्ञविधानस्तु अत्रिस ९४ महोक्षो जनयेद् वत्सान् महारुद्रजपंचैव शाता २.३१ महोक्षोत्सृष्टपशवः महारोग गृहीतो वा वृ परा ७.२८३ महोत्सवविधिं कुर्याद् महारोग ग्रहैश्चैव वृ हा ६.४ महोत्सवहिं बिम्बं च महारौववाग्रयनयनं कपिल ७६१ महोत्सवे सर्वत्रार्थव महार्णवे नौरिव वृ.गौ. ९.७५ महोत्साहः स्थूल लक्ष्यः महालयः पाक्षिकोऽयं आंपू ६९४ महोपनिषदि प्रोक्तमूर्ध्व महालयश्च पनसस्त आंपू ४७७ मासं क्षीरौदनमधु महालया अष्टकाश्च तथा कपिल १५८ मांस क्षीरौदनमधु महालये गयाश्राद्ध व्या २६७ मांसं कीटादिभिर्जुष्टं महालये गयाश्राद्ध दा ७६ मांसं गृध्रोवपां मग्दस्तैलं महालये त्रयोदश्यां प्रजा १६७ मासं मृत्योर्जुहोमि महालये त्रिरात्रं स्यात् वाधू २१५ मांसमत्स्यतिल महालिङ्गस्य लिङ्गस्य कपिल ४४० मांसमधुधृतोषधि महावते प्रचलित रात्रौ लोहि ६८३ मांसस्य विक्रयं कृत्वा महावरुण देवाय जलानां वृ परा ११.९९ मांसेन लेपितं बद्धं महाविपिने (वने) भयंनास्ति भार १२.४२ मांसौदनतिलक्षौम महाविस्तररूपोडयमाचारः शाण्डि १.७ मागघो बुध इत्युक्तः महाव्यातिभिः पश्चाद् वृ परा २.१२७ मागधो माधुरश्चैव । महाव्यातिभः होमः मनु ११.२२३ माघकृष्णाष्टमी यस्यां महाव्यातिसंयुक्ता संवर्त २१५ माघमासन्तथा यस्तु महाव्रतं द्वितीये तु आश्व ११.२ माघमासे तु सप्तम्यां महासुमङ्गलीवृन्दगीत __लोहि ५०० मागमासे तु सप्तम्या महाहानि करा ब्र.या. ९.२९ माघमासे तु संप्राप्ते महिउष्ट्रगजाऽश्वानां वृ परा ८.१७३ माघे पंचदशी कृष्णा स्मृति सन्दर्भ वृ हा ४.१५५ शाता २.४८ बृ.या. ३.१७ यम ३६ शाता १.१७ वृ.गौ. ५.४२ वृ हा १.९५ या ३.२७ विष्णु १.१० या ९.१०९ नारद १३.५७ या २.१६६ वृ हा ६.१ वृ हा ६.१६ व २.६.२७४ . या १.३०९ _ वाधू १०२ या १.४६ कात्या १४.११ वृ परा ६.३२१ मनु १२.६३ व १.२०.३१ बौधा २.३.२८ विष्णु ३ शंख १७.५९ वृ परा १२.१८३ नारद २.५८ वृ परा ११.४१ अत्रिस ३८६ आंपू ७२७ बृ.गौ. १७.२० ल हा ४.७२ वृ हा ५.५१९ संवर्त २०३ प्रजा २२ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी माघेपञ्चदशी कृष्णा ब्र.या. ६.२१ मातापितृभ्यामुत्सृष्टं मनु ९.१७१ माघे वा मासि संप्राप्ते औ ३.५७ माता पितृभ्यामुत्सृष्टो बौधा २.२.२७ माजनं प्राणासंरोधो बृह १०.१ मातापितृविहीनन्तु दक्ष ३.३० माणिक्य गारुडैजैः वृ परा १०.२७ मातापितृविहीनो यस्त्यक्तो मनु ९.१७७ माणिक्याद्रिसमप्रमं वृ हा ३.३ ४९ मातापितृषु यद्दद्याद् व्यास ४.२९ माणिक्यानि विचित्राणि वृ परा १०.२१५ मातापितृसुतत्यागो वृ हा ६.१९१ मातरः प्रथम पूज्याः प्रजा १९३ मातापित्रोः परंतीर्थ व्यास ४.१२ मातरं गुरुपत्नी च बृ.य. ३.७ मातापित्रोरुपोष्टारं गुरु आंपू ७४९ मातरं गुरुपलीं च लघुयम ३५ मातापित्रोरेकदिवसे व्या १३७ मातरं च परित्यज्य देवल ६० मातापित्रोर्गुरो मित्रे दक्ष ३.१५ प्रातरं पितरं जायां मनु ८.२७५ मातापित्रो ताहे च आश्व १९.५ मातरं पितरं वाऽपि ___ अत्रिस ५१ मातापित्रोविहीनो यः बौधा २.२.३२ मातरं पितरं वाऽपि वृ.गौ. ११.७ माता पित्रौः सुतैः कार्य औ ७.२१ मातरं यदि गच्छेत पराशर १०.१० मातापित्रौः हस्तात् बौधा २.२.३० मातरं योऽधिगच्छेच्च संवर्त १६० माताभावे तु सर्वेषां नारद १३.२१ मातरं यो न जानाति आंपू १०.५३ मातामहं मातुलंच __ औ ४.१४ मातरं वा स्वसारं वा मनु २.५० मातामहं मातुलञ्च मनु ३.१४८ मातरं वा स्व सारं औ १.५४ मातामहस्य गोत्रेण मातुः कपिल ४०७ मातरं सर्वजगता व हा २.११८ मातामहस्य तत्पत्न्याः आंपू ७२४ मातरो जातिपल्यश्च लोहि ४०८ मातामहस्य तत्पल्याः कपिल १३१ मातर्वाग्देवि ! वरदे वृ परा २.२५ मातामहश्च दौहित्रो परा ७.१९ माता कुमारमादाय ब्र.या. ८.३ ४७ मातामहान् मातुलांश्च वृ परा २.१९९ माता चैव तु रुद्राणां ब्र.या. ८.२१४ मातामहान शास्त्र कण्व ७५८ माता चैव पिता चैव पराशर ७.८ मातामहांश्च सततं बृ.या. ७.७२ माता चैव पिता चैव यम २३ मातामहानामप्येवं व हा १.२४२ माता चैव पिता चैव वृ.य. ३.२२ मातामहानामप्येवं वृ परा ७.१६० माता चैव पिता चैव __ संवर्त ६७ मातामहानामप्येवं वृ घरा ७.२७३ माता पिता गुरुर्भार्या आश्व १.७४ मातामहाः सपत्नीकाः कपिल ३६७ माता पिता गुरुश्चैव शंख ३.२ मातामहाः सपत्नीका । व्या २९३ मातापिता गुरुणाम विष्णु ३१ माता मातामही गुर्वी औ १.२८ माता पिता वा दद्याता मनु ९.१६८ मातामही पितामही व हा ६.१८३ मातापित गुरुत्यागी या १.२२४ मातामहीर्पितृणान्तु ब्र.या. ३.२० मातापित्भ्यां जामीभिः मनु ४.१८० मातामहे व्यतीते तु शंख १५.१४ मातापितृभ्यां तद्गोत्रस्या कपिल ८० मातामहेषुयोदधाद। ब.या. ४.८६ मातापितृभ्यां दत्तो . बौधा २.२.२४ मातामहादयास्तिमः आश्व १.९८ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ स्मृति सन्दर्भ मातामा सहेच्छंति वृ परा ७.१३४ मातुः श्राद्धं तु पूर्व दा ८३ माता मातृष्वसा श्वश्रूः नारद १३.७३ मातुः श्राद्धं पृथक् आंसू ६६३ माताम्लेच्छत्व देवल ५९ मातुः सपत्नी सार्वभौमी व हा ६.१८५ माता रुदाणा मिति व २.६.३५९ मातुः सपिण्डीकरणं कात्या १६.२१ मातुः पत्नी स्वभगिनी ब्र.या. १२.५७ मातुः सपिण्डीकरणं लघुशंख १९ मातु पारिणेयं स्त्रियो व १.१७.४३ मातुस्तु यौतकं यत्स्यात् मनु ९.१३१ मातुः पितृश्वसुः पुत्रा ब्र.या. ८.१ ४९ मातृगामी भवेद्यस्तु शाता ५.१ मातुः प्रथमतः पिडं मनु ९.१ ४० मातृणां च पितृणां च वृ परा ७.३७४ मातुः प्रथमतः पिण्डं लिखित ५५ मातृणां पूजनम्पूर्व ब्र.या. ८.३ ४५ मातुः प्रथमतः पिण्डं कात्या १६.२३ मातृत्वकार्यका (क) रणे आंपू १०४० मातुः प्रथमतः पिण्डं लघुशंख २१ मातृपक्षाणं तर्पणं शंख १३.११ मातुरग्रेऽधिजननं द्वितीयं मनु २.१६९ मातृपाकं तु भुजीमात् व्या २२३ मातुरग्रे प्रमीतिः स्याद् दा १२६ मातृ-पितृनुपाध्यायान् वृ परा ६.२५१ मातुरेकोपविष्टस्य __ आश्व ९.८ मातृपितृ पराश्चैव प्रजा ७१ मातुरित्येके तत् बौधा १.५.१२६ मातृ पितृपरे चैव अत्रिस ३ ४० मातुर्मातामहीं चापि वृ.गौ. ८.६३ मातृभिः पितृभिः च एव वृ.गौ. ५.२२ मातुर्निवृत्ते रजसि नारद १४.३ मातृपित्रतिथिभ्रातृ या १.१५७ मातुर्यदग्रे जायन्ते या १.३९ मातृर्मातृष्वसृःश्वश्रू बृ.या. ७.८६ मातुलंकारं दुहितरः बौधा २.२.४९ मातृवत् परदारांश्च आप १०.११ मातुलत्वपितृव्यत्व आंपू १२८ मातृवद् वृत्तिमातिष्ठेन। औ ३.३३ मातुलपितृष्वसा भगिनी बौधा २.२.७१ मातृघ्नश्च पितृघ्नश्च आप ९.३० मातुलश्वशरभ्रातृ औ १.२७ मातृवर्गादितः कुर्यात् आश्व १८.५ मातुलः श्वशुरो बन्धुरन्यो वृ परा १२.५७ मातृवर्गेण तुलितं तत्पत्नी लोहि ३०१ मातुलस्य सुता वाऽपि औ ९.४ मातृवर्गों यत्र पूर्व आंपू ६६८ मातुलस्य च पौत्री व २.४.१० मातृश्राद्धं द्विजः कुर्याद् वृ परा ५.७९ मातुलस्यस्नुषा कन्या कपिल ६१० मातृष्वसां तथा चापि वृ.गौ. ८.६२ मातुलांश्च पितृव्यांश्च मनु २.१३० मातृष्वसा मातुलानी औ ३.३१ मातुलांश्च पितृव्यांश्च औ १.४३ मातृष्वसां मातुलानीं औ ९.२ मातुलानी सगोत्राञ्च पराशर १०.१४ मातृष्वसा मातुलानी मनु २.१३१ मातुलानी सनाभिञ्च संवर्त १५७ मातृष्वसभिगमने वामांगे शाता५.३१ मातुलान्यान्तु गमने शाता ५.३० मांत्रं पार्थेवमाग्नेयं वृ परा २.८५ मातुलिंगं नारिकेलं आश्व ३.९ मात्रा च स्वधनं दत्तं नारद १४.७ मातुले पक्षिणी रात्रिं शंख १५.१६ मात्रादि गमन पातक वर्णनम् विष्णु ३.४ मातुः श्राद्धं तु पूर्वस्मात् लगुशंख ३२ मात्रादित्रयसाम्येन तर्पणे कपिल ७२५ मातुः श्राद्धं तु पूर्व लिखित ४८ मात्रा द्वादशकं प्रोक्तं ब्र.या. २.४९ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी मात्राप्रमाणयोगेन मात्रायोगप्रमाणेन मात्रास्तिस्त्रो व्यक्ता मात्रा स्वस्रा दुहित्रा वा मा दम्या इति यो माधवश्योत्पल प्रख्य माधवस्तु गदा चक्रं माधवः स्यादुत्पलाभो माध्यंदिनस्य कृत्यस्य माध्यां कुर्वन् तिलैः माध्याह्निकं ततः कृत्वा माध्याह्निकं प्रकुर्वीत मानकूटं तालकूटं मानकूटं तुलाकूटं मानक्रियायामुक्तायामनुक्ते मानवं चात्रश्लोकं मानवं चात्र श्लोकं मानवं चात्र श्लोकं मानवः श्वखरोष्ट्राणां मानवांदुदुभाश्चैव मानसं प्रणवस्नानं मानसं मनसैवायमुपभुंक्ते मानसं वाचिकं चैव मानसं वाचिकं पापं मानसः शान्तिकजप मानसा वाचिका दोषाः मानसेऽपि जननमरण मानस्तोक इति ह्यक्त्वा मानितः पालितः सम्यक्त मानुषाणां हितं धर्म मानुषास्थि स्निग्धं मानुषी क्षीरपानेन मानुष्यं भावमापन्नं ये मानुष्यं लोकम् आगत्य मानुष्यस्य च लोकस्य बृ.या. ८.४८ बृ. या. ८.४९ बृ.या. २.१२ मनु २.२१५ बृ.गौ. १४.४१ वृ हा २.८१ वृ हा ७.११६ वृ हा ७.१०९ आंपू २५४ वृ परा १०.२५७ नारा ९.७ विश्र्वा १.९९ वृ हा ६.१७९ वृ हा ४.२०० कात्या ६.११ व १.३.२ व १.२०.२० व १.१३.६ संवर्त १९२ ब्र. या. १.१६ बृ.या. ७.१६७ मनु १२.८ बृ.य. ४.४९ संवर्त २२२ बृ.या. ७.१३४ वृ परा ८.६९ बौधा १.२१.४१ वृ परा २.१३३ लोहि २२० पराशर १.२ व १.२३.२१ वृ हा ६.२५१ वृ.गौ. १.४१ वृ.गौ. ६.८७ वृ.गौ. ५.२ ४९५ औ ९.९१ या ३.८ कात्या २२.५ या २.२४७ वृ परा ११.११७ बृ.या. ७.१६३ आंपू ४९४ आंपू ५१५ मानुष्यास्थि व संस्पृष्ट्वा मानुष्ये कदल स्तम्भ मानुष्ये कदलीस्तम्भे मानेन तुलया वाऽपि मानो महान्त इत्पूर्वीः मान्त्रं भौमं तथऽऽग्नेयं मान्धाता वाऽप्यलर्को मान्मथो मधुरस्रावा मान्या चेभ्रियते माम् अधः पातयेत् एव माम् अर्चयन्ति सक्ताः मांसभक्षयिताऽमुत्र मामकस्तनयो जातस्तावक मामर्चयन्ति भद्भक्तास्ते मामेव तस्माद्देवर्षे ध्याहि मायया मोहयामास मायाबीजं समुल्लिख्य मायावित्वं च मूकत्व मारुतं पञ्चदशकं मारुतं पुरुहूतं च गुरुं मारुतं मोगरं चैव मार्कण्डेयं चाम्बरीषं मार्कण्डेयश्च माण्डव्यः मार्कण्डेयश्च मौल्य मार्गक्षेत्रयोः विसर्गे मार्गशीर्ष समारभ्य मार्गशीर्षे तथा पौषे मार्गशीर्ष शुभे मासि मार्जनं च तथा कृत्वा मार्जनं तर्पणं श्राद्धं मार्जनं यज्ञपात्राणां मार्जनं वारुणैः मंत्रै मार्जनस्य च जप्यस्य मार्ज्जनाद्यज्ञपात्राणां मार्जनाद्वेश्मनां शुद्धिः कात्या २०.१३ वृ.गौ. ४.१४ वृ.गौ. ३.८९ मनु ५.५५ कपिल ७८७ वृ. गौ. ८.१०१ विष्णु म ९० आंपू २१५ विश्वा १.६९ वृ परा १२.१९९ बृ.या. ४.६७ मनु ११.१२२ दा ५२ वृ हा ७.२०९ भार १.४ वृ हा ३.२६६ व १.१६.८ आव ६.२ औ ३.७२ मनु ७.१८२ बृ.या. ७.१८६ व्या १५२ मनु,५.११६ ल व्यास १.२२ बृह. १०.२० पराशर, ७.२ शंख १६.८ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९६ स्मृति सन्दर्भ मार्जनान् मखपात्राणां वृ परा ६.३३४ मासःषु महाहर्षे शाण्डि ३.१३१ मार्जनीरजमेषण्डं लिखित ९४ मासवयनरूपेण विप्र कपिल ८५५ मार्जनीरेणुकेशाम्बु अत्रिस ३१७ मासवाचकंशब्दाः स्युस्त कण्व ४६ मार्जने चामिवेके आश्व १६.३ माससामान्यशब्दाः कण्व ४४ मार्जने विनियोगस्तु भार ६.४४ मासस्य वृद्धि गृहीयाद् व १.२.५५ मार्जनैः लेपनैः प्राप्य व्यास २.२१ मासादूवं दशाहन्तु वृ हा ६.३८७ मार्जयन्तेति मन्त्रेण आंपू ८५३ मासाद्वयगतं श्राद्धं व्या ३२७ मार्जयेदथ चांगानि आश्व १.१९ मासान्ते तु विशेषेण वृ हा ५.५४७ मार्जयेद्वस्त्रशेषेण नोत्तरीयेण वाधू ९४ मासान्ते भोजयेद् विप्रान् त हा ५.५५६ मार्जनाद् यज्ञपात्राणां शंख १६.६ मासाद्ध मासमेकं वा पराशर ४.८ मा रगोधानकुल या ३.२७० मासिकानि यश। दा २४ मार्जनकुलौहत्वा मनु ११.१३२ मासिकान्नं तु योऽश्नीयाद् मनु ११.१५८ मार्जरं चाथ नकुल औ ९.८ मासिके च सपिण्डे च वाधू १९९ मारिं मूषकं सर्प वृ परा ८.१६९ मासिके पक्षमेकं स्याद् वाधू २१४ मार्जरमशकस्पर्श कात्या २.१४' मासिकऽव्दे तु संप्राप्त दा ७३ माजरे निहते चैव शाता २.५४ मासि चैत्रे शुक्लपक्षे व २.६.२५७ मार्जिते पितरः सर्वे वृ परा २.१०० मासि भाद्रपदे शुक्ले वृ हा ५.५१६ मातर्यग्रे प्रमीतायां व २.६.४४३ मासि मासि रजस्तस्य ब्र.या. ८.१६३ मार्दवंीर्दयाक्षान्तिरद्रोह शाण्डि ३.६७ मासि मासि राजो ह्यासां व १.५.६ मालत्या शतपत्र्या वृ परा ७.१६३ मासिश्राद्धानि तान्येवं आंपू ६०७ मा शोकं कुरुतानित्ये कात्या २२.४ मासि पाठे तच्च कर्म कण्व ५०६ माषं गांदापयेद् दण्ड नारद १२.२८ मासे चैवं चतुर्थे तु आश्व ७.१ माषमुद्गं महामुद्गं शाण्डि ३.११४ मासे द्वितीये तृतीये वा ब्र.या. ८.३०३ माषमुद्गादि चूर्ण वा वृ हा ८.१०३ मासेन द्वापरे ज्ञेयः वृ परा १.३० माषः सर्वत्र नैवेद्यः ब्र.या. ३.४९ मासे नभसि न स्नायात् वृ परा २.१०९ माषादिचूर्णम॑द्भिर्वा शाण्डि ४.१६२ मासेनाश्नन् हविष्यस्य मनु ११.२२२ भाषानपूपान् विविधान् औ ५.५२ मासेऽन्यस्मिन्तिथी ब्र.या. ३.७५ माषानष्टौ तु महिषी या २.१६२ मासे पूर्णे तथा कुर्यात् आश्व ११.३ माषान्नं पायसं दद्या व्या २५२ मासे भाद्रपदे यो मां बृ.गौ. १८.२६ माषाः सर्वत्रयोज्याः स्युः व्या १४४ मासे मार्गाशिरे दानं वृ परा १०.२५० मासद्वयेऽपि तत्कार्य व्या ३२८ मासे यस्मिंस्तु योजातस्त व २.२.२७ मासं चैव मांसेन ब्र.या. ८.२८३ मासं सहसि यात्रार्थी वृ परा १२.२६ मासं सुरार्चनेनैव शाता ३.१५ मासैश्च वत्सरैश्चैव व २.२.२६ मासमाराहणं कुर्यात् औ ३.१२२ माहिषं मृतवत्सागो प्रजा १३० मासमेकं जपेद्गोष्ठे अ २१ मितं द्रोणाढकस्यान्नं पराशर ६.६६ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ४९७ मितश्च संमितश्चैव या १.२८५ मुक्ताङ्गुष्ठनिष्ठाभ्यां व्या ५१ भितसंभाषिणी हासरोदनो शाण्डि ३.१ ४१ मुक्तादाम लसज्ज्यो। व २.६.७७ मित्रच्छेदं गृहच्छेदं ७.गौ. १०.८९ मुक्ताफलशफा कार्या वृ परा १०.१११ मित्रद्रोहकृत पापं वृ परा ४.८१ मुक्ताफलाभदन्तालिं वृ हा ३.२२६ मित्र,पिशुनोव्याधि ब्र.ग. ४.१९ मुक्ता श्रू शोकाच्छुत्वा शाण्डि २.५५ मित्रध्रुक् पिशुनश्चैव औ ४.३२ मुक्ताहारी च पुरुषो शाता ४.५ मित्र-बन्धु--सपिण्डेभ्यः वृ परा ७.३५४ मुक्तिदान्येवं सर्वेषां वर्णा कपिल ९०४ मित्रस्य चर्षणीमत्र याजु विश्वा ७.१६ मुक्तिर्नात्र विरोधो कण्व ४४७ मित्रस्येत्यादिभिऋग्भिः भार ६.११८ मुक्तो न जायते भूयः बृह ९.१०८ मित्रादीनां च कर्तव्यं वृ परा ७.५० मुक्तो नवानिवासांसि व २.३.१९४ मित्रान् मृत्यानपत्यांश्च वृ परा २.२०० मुक्तो बन्धाद् भवेत तू हा ३.३७८ मित्राय गुरवे श्राद्धं आंपू ६८९ मुक्त्वाग्निः मृदित या २.१०९ मित्रावरुणको पादौ बृ.गौ. २०.३६ मुक्त्वा ग्रान्थिं विमुच्या भार १८.७९ मित्रे चैव सगोत्रे च वृ परा ७.१११ मुक्त्वा प्रयाति स ___ अ १४७ मित्रो धाता भगस्त्वष्टा बृह ९.८० मुखजानमूर्ध्वपुण्ड्रं तिलकं वाधू १०० मिथः संघातकरणमिहते नारद ११.५ मुखजा विषुषोमेध्या या १.१९५ मिथिलास्थः स योगीन्द्र या १.२ मुखबाहूरुपज्जाना मनु १०.४५ मिथिलास्थं महात्मानं बृ.या. १.१ मुखं हि सर्वदेवानां वृ हा ५.२ २६ मिथुनं च तथा कन्या वृ परा १०.३५८ मुखग्निः समाख्यात कण्व २०९ मिथो दायः कृतो येन मनु ८.१९५ मुखमेकं समालोक्य बृह ९.१६४ मिथ्यापवाद शुद्धयर्थं वृ हा ४.१९० मुखवासञ्च यो दद्यादन्त संवर्त ८५ मिथ्याभिशस्तपापञ्च या ३.२६२ मुखशब्दमकुर्वन्वै कण्व ९४ मिथ्यावदन् परीमाणं या २.२६५ मुखाऽवलोकने येन अ ५७ मिथ्याश्रमी च विप्रेन्द्रा औ ४.२७ मुख्यं कल्पममुख्य च कण्व ४ मिथ्यैतदिति गौतमः बौधा १.२५ मुकेचापगृहीते प्राणा ब्र.या. ८.११५ मिथ्यैतदिति हारीतः बौधा २.१.७० मुखे तस्य प्रदातव्य ब्र.या. १२.५९ मिलित्वा तात्किया पौर्वा लोहि ७१७ मुखेन वमितं चान्नं तुल्यं अत्रि ५.२२ मिश्रितं धेनुपयसा प्रजा १३१ मुखेन श्रमितं भुंक्ते दा ५५ मिष्टान्न भोजनं गानत्यजे व २.५.९ मुखेनैके धमन्त्यग्नि कात्या ९.१५ मीने रवौ हरेर्जीवे ब्र.या. ८.९९ मुख्यः कल्पः पावके कण्व ३७३ मीमांसते च यो वेदान् व्यास ४.४५ मुख्यकाले षोडशाब्द आंपू १८ मुकुन्दं कुंडलं हारं भार १२.२४ मुख्यकालो व्रतस्यैष वृ परा ६.१६८ मुक्तकेशा तु या नारी व्या ९१ मुख्यत्वेनैव कुर्वीत कण्व ६१९ मुक्तं ज्ञात्वा ततः स्नात्वा आंपू २९९ मुख्य तत्समनुष्ठानं कण्व ४०२ मुक्ताङ्गुष्ठकनिष्ठाभ्यां विश्वा २.८ मुख्यं यथापितुः श्राद्धं वृ परा ७.५७ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९८ मुख्याचारं परित्यज्य मुख्याचारो महान्श्रेष्ठो मुख्यानुबन्धनं त्यक्त्वा मुख्यो वैदिककृत्यानां मुख्यो साधारणो धर्म मुच्यते पातकैः सर्वैः मुच्यते ब्रह्महत्याया मुंच त्ववभृथैत् मुंजते ब्राह्मणा यावत् मुंजालाभे तु कर्तव्या मुंजोपवीताजिन दंड मुण्डितस्तु शिखावर्ण्यः मुण्डिनौ सूक्ष्मशिखिनौ मुण्डोऽममोपरिग्रह मुण्डो वा जटिलो वा मुदाश्चशंख चक्रादिन मुद्गान्नं च गुडान्नं मुद्गाभावे भाषमात्रैः मुद्राम्प्रद र्शयेत्पश्चा मुनयः केचिदिच्छन्ति मुनिः धर्म तनुः नाम मुनीनां व्यासमुख्यानां मुनीनामपि चेतांसि मुनीनामात्मविद्यानां मुनिप्रियो दन्तरिपुः शर्म मुनिभिः द्विरसनमुक्तं मुनिभिः सनकाद्यैश्च मुनिभिः सेवितत्वाच्च मुनिसाम्य मवाप्नोति मुन्यन्नानि पयः सोमो मुन्यन्नैर्विविधैर्मध्यैः मुमुक्षवोऽपि योगीशा मुमुक्षवो विरज्यन्ते मुमुक्षुभिर्वीतरागैरप्रमतैः मुमूर्षवस्तथा बाला · विश्वा १.३५ विश्वा १.३६ आंपू १२९ लोहि १०० आंपू २९७ वृ.गौ. १.४४ वृ हा ६.२३२ वृ परा २.१३४ वृ परा ७.२६१ मनु २.४३ वृ परा ६.३५१ वृ परा ८.९७ वृ हा ५.५० व १.१०.७ मनु २.२१९ व २.७.८९ शाण्डि ३.१२० लोहि ३५८ व २.६.८५ वृ परा ८.१३३ वृ परा ११.३२८ वृ परा ११.३४ वृ परा १०.१९८ पराशर ८.२० मुषलेन सह न्युब्ज मुष्टिं तु कल्पयन्धान्यं मुष्टिमात्रतृणं दत्त्वा रात्रौ मुष्टिमात्रैः कुशैरग्नै वृ हा ३.१९३ वृ परा १.४५ व्यास ३.५७ मनु ३.२५७ मनु ६.५ वृ परा १०.४ वृ परा १२.१७६ मुष्टिमात्रोपरिष्टात्तु मुष्ट्या वा निहता या मूकमात्रास्यकोप्येको विशेषो मूकस्य मंत्रसामान्याभावादेव मूकस्यापि च विप्रत्वं मूत्रपुरूषलोहितरेतः मूत्रपुरीषलोहित रेतः मूत्रपुरीषलोहितरेतः मूत्रपुरीषलोहितरेतः मूत्रपुरीषतोहितरेतः मूत्र पुरीषलोहितरेतः मूत्रपुरीषे कुर्वन्दक्षिणे मूत्रवद्रेतसः उत्सर्गे मूत्रशकृच्छुक्राभ्यव मूत्रेण कपिलायास्तु यस्तु मूत्रे मृदाऽद्भिः प्रक्षालनम् मूत्रोच्चारं द्विजः कृत्वा मूत्रोच्चारसमुत्सर्ग मूर्छितः पतितोवाऽपेि मूच्छितः पतितोवापि आंपू ५२७ मूच्छिते पतिते चापि कात्या १३.९ मूर्तीनान्तु हरे स्तस्य मूर्त्यन्तरमबिम्बे तु मूर्च्छन्तरेण संभुक्तं मूर्द्धातिकर्णवक्त्राणि मूर्धन्यपो निनयेत् मूर्धललाट साग्रप्रमाण मूर्धामव इत्यनेन मूर्ध्नि भाले नेत्र नासा मूर्ध्नि संस्पर्शनादेव शाण्डि ४.८१ मूलकं तिलपिष्टंच व २.२२ स्मृति सन्दर्भ कात्या २१.११ वृ परा ५.१६५ विश्वा १.५० आश्व २.१५ भार १८.२८ बृ.य. ४.१० कपिल ३२२ कपिल ३४८ कण्व २७१ बौधा १.४.७ बौधा १.६.१२ बौधा १.६.२९ बौधा १.६.३३ बौधा १.६.३६ बौधा १.६.३९ बौधा १.४.२२ बौधा १.५.८४ व १.२०.२३ वृ.गौ. ९.३७ बौधा १.५.८० आप ९.३६ मनु ४.५० लघुयम ४६ पराशर ९.११ आंगिरस ३४ वृ हा ५.१७९ वृ हा ५.१८० शाण्डि ४.७९ कात्या ७.८ व १.३१ बौधा १.२.१५ वृ हा ८.२५ वृ हा. ३.१७ औ २.२६ व २.६.१७५ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी मूलफल भैक्षेणाऽऽश्रम मूलमन्त्रं च मनसा मूलमंत्रमिदं प्राहुर्वाराहं मूलमन्त्रेणाभिमंत्र्य मूलस्तम्भो भवेद्वेदः मूलानि दक्षिणे हस्ते मूलानिशाकुटादीनि मूलेन षष्ठी मूलेनाष्टोत्तरशतं वार्येत मूलेनैव विनष्टेन मूल्याष्टभागे हीयेत मूल्यैश्चिकित्सां कुरुते मूषलोलूखले वा मूषिकोधान्याहारी मुहूर्तास्तत्र विज्ञेया मृगनाभि च कर्पूरं मृगपक्षिगणाढ्यंच मृगपक्षिमहासर्पयादसां मृगपक्षिभिराकीर्णे गं रुरुं वराहञ्च मृगयाक्षो दिवास्वप्नः (भृ) गराजं पीतपुष्पं [गश्वरशूकरोष्ट्राणां [च्चर्मतृणकाष्ठाम्बु [च्चर्ममणिसूत्रायः मयं गृहसम्पूर्ण [ण्मयं भाजनं सर्वं मयानां पात्राणां ण्मयानांच पात्राणां ण्मयानां पात्राणाम् मयेषु च पात्रेषु ण्मयेषु पात्रेषु मुक्तिका ण्मयेषु च पात्रेषु णामकृतचूडानां णालतन्तवं पश्चात् व १.९.४ विश्व १.८९ वृ हा ३.३३८ व २.६.१३७ बृह १२.२५ भार १८.५६ कण्व ६१६ ब्र. या. ९.४७ भार १४.४५ दक्ष २.४४ नारद १०.८ कात्या १५.१६ या ३.२१४ प्रजा १५९ वृ परा २.२१९ पराशर १.७ वृ हा ६.१९६ वृ परा १.८ पराशर ६. १३ मनु ७.४७ ब्र. या. १०.१४५ या ३.२०७ वृ हा ६.२०४ या २.२४९ प्रजा ५१ मृतवत्सोदितः सर्वोविधिरत्र मृतवस्त्रभृत्सु नारीषु मृतश्चेत्तस्य ते सर्वे मृतसंजननादूर्द्दउर्ध्वं मृतसूतकपुष्टांगीद्विजः मृतसूतकपुष्टांगो मृतसूतकपुष्टाङ्गो यस्तु मृतसूतकयोश्चान्नं मृतसूतके तु दासीनां मृतसूते तु दासीनां ब्र. या. ११.५७ शंख १६.१ बौधा १.६.३४ अत्रि ५.३४ बौधा १.१२.८ लिखित ५६ मृण्मयेन न चेष्वेव मृण्मयेषु च पात्रेषु मृतकञ्च श्वपाकं मृतकेन तु जातेन मृतके सूतके चैव मृतभार्य्याभिगमने मृतभार्यो यतिर्वणीं व्या १४१ लघुशंख २५ मनु ५.६७ वृ हा ५.३२१ मृतं भर्त्तारमादाय मृतं शरीर मुत्सृज्य मृतं शरीरमुत्सृज्य मृतवत्सा यथा गौश्च मृतस्य तस्य च अह्यंच मृतस्य प्रसूतो य क्लीब मृतस्यैतानि प्रोक्तानि मृतांगलग्नविक्रेतुः मृता द्वितीया तस्यास्तु मृतानां कथितास्सद्मि मृतानां स्नुषया पाकं यषा मृतानामग्निहोत्रेण मृतायान्तु द्वितीयायां मृतायामपि भार्य्यायां मृताः स्युः साक्षिणो यत्र मृताह एव कथितो नान् मृताहदिवसे पुण्ये मृताहनि तु कर्त्तव्यं ४९९ शाण्डि ३.९९ आत्रि स १५४ ब्र. या. १२.६३ यम ७५ आप ९.२८ शाता ५.३२ आंपू ३८३ व्यास २.५३ वृ.गौ. ११.३३ मनु ४.२४१ व्यास ४.२७ शाता ४.२९ मनु १०.३५ लोहि २२६ अत्रिस ९९ पराशर १२.३३ व्यास ४.६४ बृ. गौ. १४.१७ बृ.गौ. १६.३६ अत्रिस ८९ देवल ६ वृ.गौ. १.६१ बौधा २.२.२० आंपू ४७४ या २.३०६ लोहि ९४ लोहि ३१७ कपिल १९४ व्यास २.५६ कात्या २०.८ कात्या २०.९ नारद २.११५ आंपू १०.८३ आंपू ५४२ या १.२५६ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० मृताहस्तादृशः क्लृप्तः मृताहस्य परित्यागे मृताहोऽलङ्घनीयः स्याद् मृते जीवति या पत्यौ मृतेजीवति वा पत्यौ मृते पितरि कुयुस्तं मृते पितरि वै पुत्रः मृते भर्त्तरि नारीणां मृते भर्तरि या नारी मृते भर्त्तरि या नारी मृते भर्तरि या नारी मृते भर्त्तरि या नारी मृते भर्तरि यानारी मृते भर्तरि या प्राप्तान् मृते भर्तरि साध्वी स्त्री मृते भर्तरि तूष्णीकं सर्व मृते भर्तरि या नारी मृते भर्तरि या याति मृते भर्तर्यपुत्रायाः मृते वा स्वाभमिन पुनः मृतेस्तस्य परं प्रोष्य मृतेऽहनि तु कर्तव्यं मृतेऽहनि तु कर्तव्यं मृतेऽहनितुं कर्त्तव्यं मृत्तिकयास्थाप्यवरुणं मृत्तिका गोशकृत दर्भा मृत्तिका गोशकृदभानु मृत्तिका च समाविष्टा मृत्तिका पृथिवीन्यस्य मृत्तिकामक्षणं चैव मृत्तिका गोशकृद भानुपवीतं मृत्काष्ठोपललौषु मृत्तिकाः सप्तं न ग्राह्या मृत्तिकेहनमन्त्रादि कृत्वा मृत्तिके हरमे पापं आंपू ६३५ आंपू १५० आंपू ६३२ या १.७५ वृ हा ८. १९६ या २.१३७ औ ७.१९ व २.५.८३ दक्ष ४.१९ अंगिरस २१ वृ हा ८.२०३ पराशर ४.२६ व_२.६.४७० नारद १३.५१ मनु ५.१६० लोहि ५७७ वृ परा ७.३६१ वृ परा ७.३७० नारद १४.२७ नारद १२.१८ आंपू १०६० दा २५ औ ५.९३ ब्र.या. ७.२ ब्र.या. १०.१०२ व्या २४ व्या १७० ल व्यास २.१३ ब्र. या. १०.९० दा ५६ संवर्त ८४ मनु ५.१०८ मृत्तोयैः शुध्यते शोध्यं मृत्तोयैः शुद्धयते शोध्यं मृत्पात्रसंपुटं कृत्वा बृह ११.४९ कात्या २३.१२ मृत्यकाले मतिर्या स्यात्तां वृ परा १२.३५५ संवर्त १०५ मृत्युञ्च नाभिनन्देत वृ परा २.४१ शंख १५.७ मृत्युभीतैः पुरा देवैः मृत्युं समधिगच्छेच्चेन् मृत्युस्थानानि चैतानि मृत्योरिति उरौन्यस्य मृत्स्ना तथाकांस्यं मृदकूले च नद्यांतु मृदंग पटहादीनाम मृदञ्च गौमयं चैव मृदन्तरेण भूयश्च पूरयेत्तां मृदं गां दैवतं विप्रं मृदं यज्ञोपवीतं च मृदम्बुभिः स्वहात्राणि मृदाकुं काक संसर्ग मृदा चेलानाम् मृदा जलेन शुद्धिः स्यान्न मृदा शुभ्रेण च तथा मृदा शुभ्रेण सततं मृदुम्बुयोगजं सर्व मृदैकया शिरक्षाल्य मृद्गोमयतिलान् दर्भान् मृद्दारुशैललोहानां मृद्भाण्डदहनाच्छुद्धिः मृद्भाण्डासनखट्वाः मृद्भिरद्भिरनालस्यं मृद्भिरद्विश्च चरणौ मृद्भिरभ्युद्धृतैरद्भिर्य मृद्भिश्च शोधयेच्चुल्लीं ब्र. या. ५.२६ अत्रिस ३१८ मृषैव यावकान्नेत्रे कण्व १२९ वृ परा २.१३० मृष्यन्ति ये चोपपतिं मेखलाकिंकिणी माला स्मृति सन्दर्भ वृ परा ८.१३६ ब्र. या. २.१२९ ब्र. या. ४.५६ व २.६.१५ वृ परा ११.९७ वृ.गौ.८.२९ लोहि ६१२ मनु ४.३९ व्या २६ वृ परा २.१२२ वृ परा ११.१०३ बौधा १.५.४४ दक्ष ५.१० व २.३.४९ वृ हा २.५० वृ परा ५.१४० ल व्यास २.१२ बृ.या. ७.३ वृ हा ४.१८० पराशर ७.२८ नारद १५.१३ वृ परा ६.२१४ बृ.या. ७.७ व २.३.९२ व्यास २.२४ औ९.८९ मनु ४.२१७ वृ परा ११.१३६ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५०१ मेखलाचैव दण्डनच व २.३.४५ मोक्षकाले तथा दानं ब्र.या. २.२०० मेखला तत्र विन्यस्य ब्र.या. ८.१३ मोक्षदं तु समुद्दिष्टं बृह ११.३२ मेखला वेष्टयेमोन्मती व २.३.४८ मोक्षधर्ममना नित्यं सुखं शाण्डि ३.४६ मेखलामजिनं दण्डं मनु २.६४ मोक्षभूमिरितिख्यातमलामे शाण्डि १.७४ मेखला मजिनं दंडं आश्व १०.५९ मो (क्ष) षमाप्नोति लोहि १६७ मेघं धूपं प्रोन्नयन्ति वृ.गौ. ६.६५ मोक्षावाप्तिर्भवेत् पुंसां वृ परा १२.१३३ मेघेन्द्र चापसम्पातान् विष्णु १.१८ मोक्षो भवेत् प्रीति आप १०.७ मेदः शोणितपूर्दिः वृ.गौ. ५.३९ मोचनं कौतुकस्याथ कण्व ६७३ मेदसा तपयेद्देवान् या १.४४ मोचयेन् मन्दमन्दं वृ परा १२.२१७ मेदो मृत्योर्जुहोमि व १.२०.२३ मोदकान् पृथुकान् वृ हा ५.५३९ मेधातिथिरिहाप्यार्ष वृ परा ११.३३१ मोदते पतिना सार्द्ध व २.५.७४ मेधाम्मेऽश्विनौ देवा ब्र.या. ८.३९ मोदते ब्रह्मलोकेषु वृ.गौ. ७.२१ मेध्यामेध्यं स्पृशन्त्येव पराशर ७.३३ मोहजालमपास्येदं या ३.११९ मेरु धरित्री कुलपर्वताश्च वृ परा १०.२०१ मोहना (तू) क्षालानान् कण्व १३३ मेरुमन्दरतुल्यानि वाधू १५२ मोहात्तत्कृतपाकेन कृतं लोहि ४३४ मेरुरुत्तरतः स्थाप्य ब्र.या. १०.२६ मोहात् प्रमादात् संलोभाद् अत्रिस ६९ मेषककितुनश्चत्वारो भार २.२० मोहात् प्राणापरित्यागे आंपू १८७ मेषं च मेष संक्रान्तौ वृ परा १०.२७३ मोहादतद्दिनकृत श्राद्धं आपू २७३ मेषं च शशकं गोधा वृ परा ८.१७० मोहाद्दत्तो ज्येष्ठसुनुः स्वयं कपिल ७५८ मेषं सूर्योदये यत्र भार २.७ मोहाद् राजा स्वराष्ट्र य मनु ७.१११ मेषाऽजनो वृष दद्यात् वृ परा ८.१६५ मोहाद्वा लोभातस्तत्र पराशर ११.९ मेषादीनामनेनैव नक्षत्रस्य कण्व ६४ मोहाद्विरुढमाचार्य आंउ १०.१७ मेहनादि क्रियां कुर्यान् शाण्डि २.१५ मोहान्न कुरुते श्राद्ध आश्व २४.२७ मेहने चैकवारं स्याद् कण्व १२६ मौक्तिकान् वितनासाग्रं व हा ३.३११ मेहने मैथुने स्नाने भोजने शाण्डि २.८ मौक्तिकान्वितनासाग्रं वृ हा ५.१०९ मैत्र प्रसाधनं स्नानं मनु ४.१५२ मोजिकान्नं सूतिकानं शंख १७.४० मैत्राक्षिज्योतिकः प्रेतो मनु १२.७२ मौजी त्रिवृत्समा औ १.१४ मैत्रावरुणमन्य तथा वृ परा ४.२१ मौज्जी त्रिवृत् समा मनु २.४२ मैत्रीभ्यामहरुपतिष्ठते बौधा २.४.१४ मौजी धनुर्ध्या शणीति बौधा १.२.१३ मैत्रेयकं तु वैदेहो मनु १०.३३ मौजीवन्धो द्विजानान्तु शंख २.९ मैथुनं कुरुते यस्तु वृ.गौ. १९.४० मौज्यन्तेनातिहर्षेण आंपू ३०७ मैथुनं तु समासेव्य मनु ११.१७५ मौज्यां मोहेन चेद् कण्व ९० मैथुनं हसनं स्नेहसंलापं व २.५.२१ मौजी ब्राह्मणस्य व १.११.४७ मैथुने पादकृच्छं आप ४.९ मौण्ड्यं प्राणान्तिको मनु ८.३७९ मोकारं तु ललाटे तुं वृ परा ११.१२१ मौनव्रतं समाश्रित्य पराशर १२.३६ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ स्मृति सन्दर्भ मौनात्सौभाग्यम् व १.२९.५ य एतै (स्सह) संयोगी नारा १.११ मौनिन्मधोमुखी चक्षु व्यास २.३९ य एव धर्मो नृपते या १.३४२ मौलाञ्छास्त्रविदः शूरा मनु ७.५४ य एवमभ्यसेन्नित्यं वृ परा ४.६८ म्रियते च परार्थेषु ब्र.या. १२.४ य एवमेनं विन्दन्ति या ३.१९२ प्रियमाणोऽप्याददीत न मनु ७.१३३ य एवं कुरुते राजा अत्रिस २७ म्लेच्छ चण्डाल पतित वृ हा ६.२६३ य कण्टकैर्वितुदति या ३.५३ म्लेच्छदेशे तथा रात्रौ शंख १४.३० यः करोति सुभामिष्टं वृ हा ७.१३७ म्लेच्छ-लूताशनास्पर्शे वृ परा ८.३१२ यः करोत्येकरात्रेण पराशर ७.१० म्लेच्छव्याप्तानि सर्वाणि वृ परा १२.१०९ यः करोत्येकरात्रेण बृ.म. ३.१२ म्लेच्छान्त्यश्वपच नारा ५.८ यः कर्म कुरुते विप्रो वृ हा ५.२१ म्लेच्छान्नं म्लेच्छ देवल ४४ यः कश्चित् कस्यचिद्धर्मो बृह १२.२० म्लेच्छैनीतेन शूदैर्वा देवल १२ यः कश्चित् कस्यचिद्धर्मो मनु २.७ म्लेच्छैः सहोषितो देवल ५५ यः कश्चित् कुरुते धर्म ल हा ३.३ म्लेच्छैः हतानां देवल ४५ यः कश्चिदर्थो निष्णात या २.८६ म्लैच्छं होणं कौकणं लोहि ३९६ यः कुर्यात् तु बलात् वृ हा ४.१९२ य य कुर्यादाहुतः पञ्च बृ.गौ. १३.११ यः कृष्णाजिनमास्तीर्य वृ परा १०.१३९ य आतृणत्यवितथेन व १.२.१६ य कोऽपि भूमिदानं तत्तेभ्य कपिल ५१६ य आत्मत्यागिन व १.२३.१४ य कोरोति नरश्रेष्ठ वृ.गौ. ७.६१ य आत्मत्याग्यभिशालो व १.२३.११ य क्वचिन्मानवो लोके आश्व १.१८९ य आत्मव्यतिरेकेण दक्ष ७.११ यः क्षत्रियस्तथा वैश्यः यम ८ । आवणोत्यवितथं मनु २.१४४ यक्षरक्षः पिशाचांश्च मनु १.३७ य आहवेषु वध्यन्ते या १.३२४ यक्ष-रक्ष-पिशाचाद्या वृ परा ११.१२६ य आय द्विजाग्रयाय वृ परा १०.३० यक्षरक्ष- पिशाचान्नं मनु ११.९६ य इदं गरयिष्यन्ति अत्रिस ३९७ यक्षरक्षः पिशाचान्न वृ हा ६.२७४ य इदं धा यिष्यंति या ३.३२९ यक्षराक्षस भूतानामचनं वहा ६.१७६ य इदं श्रृणुयाद्वापि वृ परा १२.३७६ यज्ञराक्षसभूतानां वृ हा ७.१९२ य इदं श्रृणुयाद् भक्त्या वृ हा ८.३ ४४ यज्ञराक्षसभूतानि बृ.या. ७.१४१ य इदं श्रावयेद् विप्रान् या ३.३३३ यक्षराक्षसवेतालग्रह भार ६.१६७ य उत्पाघेह सस्यानि तृ परा ५.१०४ यः क्षिप्तोमर्षयत्यात मनु ८.३१३ य एतावन्त एतेन वृ परा ११.११९ यक्ष्मासान् कामयेन् अत्रिस १६५ य एताव्याहृतोर्तुत्वा वृ हा ३.८९ यक्ष्मी च पशुपालश्च मनु ३.१५४ य एते कथिताः सझिरन्ये कण्व ३९ यक्ष्य इत्येतद्वाक्येन आंपू २७० य एते तु गणा मुख्या मनु ३.२०० यक्ष्यत्यन्योऽश्वमेधेन वृ परा ६.१९४ य एतेऽन्ये त्वभोज्यान्नाः मनु ४.२२१ यस्यमाणं निवोध्वं व परा ८.५ य एतेऽभिहिता पुत्रा मनु ९.१८१ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०३ श्लोकानुक्रमणी यः चन्दनैः च अगुरु यः च यच्छति तीव्रोष्णम् यचा दत्ती मनोदत्ता यच्चध्यात्वा द्विज श्रेष्ठ यच्च पाणितले दत्तं यच्च पाणितले दत्तं यच्च भुंक्ते तु भुक्तं यच्च यस्योपरणं येन यच्च श्मश्रुषु केशेषु यच्चान्नमाद्यैकोदिष्ट यच्चान्यच्चमयानेक्ति यच्चान्यदखिलं भूयस्सद् यच्चान्यन् महापातकेभ्य यच्चास्य सुकृतं याच्चिद्धेति प्रतीच्यान्तु यच्चोक्तं दृश्यमानेऽपि यच्चोपास्य विमुच्येत यच्छन्ति ये कपिला यच्छाखयोपनीत यच्छास्त्रेणैव विहितं यच्छास्त्रेषु निषिद्ध यच्छिदं नरके घोरे यच्छिष्टं पितदायेभ्यो यच्छ्राद्धं कर्मणामादौ यच्छुच्वासर्वतापेभ्यो यजता जुवता चैव यजदेव भृथेष्टिं च यजनं याजनं चैव यजनं याजनं दानं यजनं याजनं विप्रे यजनाऽध्ययने दानं यजनाध्यापनादानात् यजनार्थं द्विजा सृष्टा यजनीयेऽहनि सोमश्चेद् यजन्ति केचित् त्रितयंत्रि वृ.गौ. ४.५६ यजमानेन सहिताः स्वर्ग बृ.गौ. १५.७० वृ.गौ. ३.५० यजुर्वेदस्य ये धर्मा ब्र.या. १.६ ब्र.या. ८.१५९ यजुर्वेदस्य वेदानां ब्र.या. १.१४ विष्णुम ३ यजुर्वेदस्योपवेदश्च ब्र.या. १.४६ दा ७१ यजुः शाखा तु देवानां व्या १४९ व्या १७७ यजुःशुक्ला च गुह्या बृह ९.१०५ आप ९.१७ यजुषां पिंडदाने तु व्या २११ नारद १८.१२ यजुषाः सामगाः पूर्वं व्या २७४ वृ परा २.९९ यजूंषि लब्ध्वा पुण्येन कण्व ४६४ वृ परा ६.२६१ यजूंषि शक्तितोऽधीते या १.४२ बृ.गौ. १९.१० यजूंध्यभ्यस्यमानेन बृ.या. १.११ लोहि ४०४ यजेच्छ्री भ्रूप्रकाशैश्च वृ हा ५.१६८ व १.२३.१९ यजेत पुरुषसूक्तेन शाता २.१६ मनु ७.९५ यजेत पुरुष सूक्तेन शाता ५.४ वृ हा ६.५६ यजेत पुरुषसूक्तेन शाता ५.११ कात्या १६.४ जेत पुरषसूक्तेन शाता ५.१८ बृ.या. १.१७ यजेत राजा क्रतुभि मनु ७.७९ वृ.गौ. ९.७४ यजेत वाश्वमेधेन पराशर १२.६४ वृ परा ६.३ ४९ यजेत वाऽश्वमेधेन मनु ११.७५ लोहि ४५७ यजेत वाश्वमेधेन वृहस्पति २२ वृ हा ४.१०६ यजेत विधिवद्विप्र कपिल ९८१ भार १८.१२९ यजेतव्यं पुरोक्तेन न कपिल ९८५ नारद १४.३२ यजेतैव सदा विष्णो कण्व ४८० कात्या २७.१ यजेद्गंगादिभिस्सद्यः बार १५.८३ नारा ५.३२ यजेयुहृदयाम्भोजे भोगै शाण्डि ४.१५ शाण्डि ४.२१८ यज्जपेद्यांसमारोप्य वृ हा ५.११६ वृ हा ६.७२ यज्जले शुष्कवस्त्रेण वृ परा २.२०२ आश्व १.६ यज्जाग्रतादिषट्के वृ परा ११.१८९ शंख १.२ यज्जातं तिलधान्यादि नारा १.१३ वृ परा ४.२१३ यज्ज्ञातिहत्तुष्टिकरदानं शिव कपिल ५१३ वृ परा ४.२१५ यज्वान् ऋषयो देवा मनु १२.४९ वृ हा ६.३११ यज्ञ अध्ययनं दानानि ल हा २.९ बृ.गौ. १५.७७ यज्ञकाले विवाहे च दक्ष ६.१७ कात्या २७.५ यज्ञकृच्छ्रसहस्रौद्यै भूमि कपिल ५५३ वृ हा ८.७८ यज्ञगर्म हिरण्यांग पंचयज्ञ विष्णु म ४३ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या . ) ५०४ यज्ञतंत्रे वितत ऋत्विजे __ व १.३१ यज्ञेषु पशुहिंसायां यज्ञ दानं जपो होम व्या ३८९ यज्ञैर्वा पशुबन्धैश्च यज्ञपात्रपवित्रार्थे द्रव्य बृ.गौ. १५.६१ यज्ञोदानं तपः कर्म यज्ञरूपं महात्मानं वृ हा ५.८९ यज्ञोऽनृतेन क्षरति यज्ञरूपं हरिं ध्यायन् वृ हा ६.६९ यज्ञोऽनृतेन क्षरति यज्ञवृक्ष समाकीर्ण वृ हा ६.९६ यज्ञोपवीतकारस्य पर यज्ञशालावृता वैषा भार १८.११६ यज्ञोपवीतञ्च कुशाः यज्ञश्चेत्प्रतिरुद्धः मनु ११.११ यज्ञोपवीतमित्यादि यज्ञसिद्ध्यर्थमनधान् ल हा १.१२ यज्ञोपवीतमित्युक्तं यज्ञसूत्र देवलक्ष्य भार १५.९६ यज्ञोपवीतं चाष्टाम्या यज्ञस्थः ऋत्विजः कन्यां ब्र.या. ८.१७१ यज्ञोपवीतं धृत्वैव यज्ञस्थऋत्विजे दैव या १.५९ यज्ञोपवीतं विधिवत् यज्ञस्यऋत्विजो दद्यात व २.१३ यज्ञोपवीतं संधार्य यज्ञस्यत्वेतिमन्त्रेण ब्र.या. ८.१४ यज्ञोपवीतं संधार्य यज्ञस्वरूपिणां वह्नौ वृ हा ४.१३७ यज्ञोपवीतशिल्पस्य यज्ञांगेभ्य आज्यं बौधा १.७.१० यज्ञोपवीतसूत्रेण यज्ञात्मन्यज्ञसम्भूत बृ.गौ. १८.३६ यज्ञोपवीतस्य भवेज्जातुं यज्ञा देवानामिति सूक्तेन वृ हा ८.६० यज्ञोपवीती देवानां यज्ञाद्वा सप्तसंस्थेषु अ १४० यज्ञोपवीतीना कार्य यज्ञानां तपसाञ्चैव या १.४० यज्ञोपवीती भुंजीत यज्ञान्तकृद्यज्ञगुह्य वृ हा ७.१८ यज्ञोपवीत्युदक मण्डलु यज्ञाय जग्धिर्मासस्येत्येषे __ मनु ५.३१ यज्ञो यज्ञपति यज्वा यज्ञार्थमर्थ मिक्षित्वा मनु ११.२५ यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञार्थमेव संसृष्टं वृ हा ७.१३ यत एतानि दृश्यन्ते यज्ञार्थ पशवः सृष्टा मनु ५.३९ यत एवमिति प्रोक्ते यज्ञार्थ ब्राह्मणैर्बध्या मनु ५.२२ यतः पत्नीमृतदिनं पितृ यज्ञियानां च पात्राणां व २.६.४९२ यतः पापाय भवति यज्ञे कर्मणि दाने च ब्र.या. ७.३५ यतः प्रवृत्तिभूतानां यज्ञे तु वितते सम्यम् मनु ३.२८ यतमपि वा नित्यं यज्ञेतु संभारयजूंषि कण्व ९२ यतयस्सर्ववर्णेसु भिक्षा यज्ञे दाने तथा श्राद्धे ब्र.या. ७.४६ यतये कांचनं दत्वा यज्ञेन तपसा दानैर्ये या ३.१९५ यतयो न प्रवेश्याः यज्ञेन देवेभ्य प्रजया व १.११.४३ यतश्च गोपा इत्यादि यज्ञे यज्ञमिति ऋचा वृ हा ५.५५५ यतश्च भयमाशंकेत्ततो यज्ञे विवाहकाले च औ ६.५८ यतात्मनोऽप्रमतस्य स्मृति सन्दर्भ प्रजा १४९ शंख ५.१५ विष्णु म ८६ मनु ४.२३७ बृ.गौ. ११.३१ भार १५.१०४ भार १.१७ भार १६.६ भार १५.१०० वृ परा ४.१३७ भार १५.२ भार १६.५४ भार १५.११० भार १६.३० भार १५.७३ कपिल ३०५ भार १५.३८ ल व्यास २.३८ कपिला २५५ ल व्यास २.७८ व १.१०.२४ व हा ७.१७ व हा १.१३ आश्व ३.१७६ कण्व ७५२ आंपू ४०० अ १०६ बृह ११.४६ शाण्डि ५.७७ नारा ७.११ पराशर १.५१ कण्व ६०८ वृ हा ५.५२१ मनु ७.१८८ मनु ११.२१६ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०५ श्लोकानुक्रमणी यः तान् पूजयति प्राज्ञो वृ.गौ. ४.३८ यत् किचितं पच्यते यति द्विजाभ्युपास्त्यादि वृ परा १.३८ यत्किंचित्पितरि प्रेते यति पात्राणि मृद्वेणु ___ या ३.६० यत्किंचित् पितरि प्रेते यतिभिस्त्रिभिरेकत्र वृ परा १२.१३५ यत्किंचित् स्नेहसंयुक्तं यतिर्यस्य गृहे भुंक्ते वृ परा ५.८३ यत्किंचिदपि कुर्वाणो यति वणि प्रदत्तास्ते कपिल ९४७ यत्किचिदपि दातव्यं यतिव्रतिब्रह्मचारि शंख १५.२२ यत्किचिदपि वर्षस्य यतिव्रत्यग्निहोत्री च वृ परा ४.२०३ यत्किंचिदपि वा तेषु यतिश्चब्रह्मचारी च भार १५.११३ यत् किंचिदेनः कुर्वन्ति यति सर्वातिथिर्वापि वृ.गौ. १२.११ यत्किंचिद्दश वर्षाणि यतिहस्तेजलं दद्याद् अत्रिस १६० यत्किंचिद्दशवर्षाणि यतिहस्ते जलं दद्याद् पराशर १.४७ यत्किंचिद्दीयते श्राद्ध यती च ब्रह्मचारी च पराशर १.४६ यत् किचिंद् दुष्कृतं यती च ब्रह्मचारी च वृ हा ५.३०४ यत्किंचिन्निखिला यतीनाम गृहस्थाना __ प्रजा ६७ यत्किंचिन्मधुना मिश्रं यतीना मनुकूलः स्यादेष वृ.गौ. १२.६ यत्कृतं दुष्कृन्तेन यतीनां ब्रह्मयज्ञविदुषो ब्र.या. १३.१८ यत् क्षीरसारैश्रव खंड यतीन् साधूवा गृहस्थान् व १.१०.१९ यत्क्षुरेणोति मंत्रेण यतेर्वा वर्णिनोदत्ताः कपिल ९४५ यत्क्षुरेणेति मंत्रण यतेस्तु मरणाच्छुद्धि वृ हा ६.३२० यत्खुराहतभूमेर्ये यतो पितामहत्यागः पति कपिल १२० यत् ग्रामयाचकर्णान्तम् यतोऽवश्यं गृहस्थेन आप १.५ यत्तत् कारणं अव्यक्तं यतो वाचो निवर्तन्ते बृ.या. २.५३ यत्तत्रिरप्रायकं श्राद्ध यतो विवाहं पुत्रस्य कण्व ६८६ यत्तद्गुह्ममिति प्रोक्तं यतो हि जगतो राजा कर्ता कपिल ४७० यत्तु क्षेत्रगतं धान्यं यत्करोत्येकरात्रेण मनु ११.१७९ यत्तु दत्तमजाननि यत् करोत्येकरात्रेण यम २६ यत्तु दुःखसमायुक्तं यत्कर्तव्यं तेन कर्म आंपू ७२३ यन्तु पाणितले दत्तं पूर्व यत् कर्म कुर्वतोस्य मनु ४.१६१ यत्तु वाणिजके दत्तं नेह यत्कर्म कृत्वा कुर्वश्च मनु १२.३५ यत्तु सातपवर्षेण यत्कालपक्वैः मधुरै व परा १०.३८३ यत्तु सातपवर्षण यत्किंचित्किल्विषं विप्रे वृ परा ७६७ यत्तु स्यान्मोहसंयुक्तं यत्किचित कुरुते वृहस्पति ७ यत्ते कृष्णेति मन्त्रेण यत् किंचित्क्रियते कण्व ४५५ त्ते केशेषु दौर्भाग्यं यत्किचित् क्रियते पराशर ९.५५ क्त्ते पवित्रमधिष्यं शंख १४.१४ मनु ९.२०४ या २.१२२ मनु ५.२४ बृ.गौ. १४.५ मनु ४.२२८ मनु ७.१३७ आंपू ५५४ मनु ११.२ ४२ नारद २.७० मनु ८.१४७ व्या २५८ देवल ८० कण्व २३३ मनु ३.२७३ बृ.गौ. १३.२७ वृ परा ७.२३५ व २.३.३४ आश्व ९.१६ वृ परा ५.१४ वृ.गौ. ३.२० मनु १.११ आपू ७३ कात्या ७.११ आंउ ८.१२ आंउ ६.१५ मनु १२.२८ व्या १२६ मनु ३.१८५ पराशर १२.११ बृ.या. ७.१६५ मनु १२.२९ आंपू ९५० या १.२८३ व हा २.३९ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ स्मृति सन्दर्भ यत्वगस्थिगतं पापं पराशर ११.३६ यत्रदिङ् नियमो न कात्या १.९ यत्वग्नौ हूयते नैव वृ परा ४.१६० यत्र धर्मो धर्मेण नारद १.७२ यत्वस्यां स्याद्धनं मनु ९.१९७ यत्र धर्मो ह्यधर्मेण । मनु ८.१४ यत्नस्तु सङ्ग्रहेसभि शाण्डि १.७१ यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते मनु ३.५६ यत्नात्पिण्डंप्रगृणी ब्र.या. ४.११३ यत्रनोक्तो दमः सर्वे या २.२१६ यत्नात्संत्यादीप्या न मयात्ते कपिल ६५ यत्र भार्या गृहं तत्र वृ परा ६.७१ यत्नाधिनत्रयात्पूर्व आंपू १०२१ यत्र मातुर्विवाहे तु दानं कपिल ४०९ यत्लेन कीर्तितमापि भार १५.४० यत्र यत्र अस्थिताः वृ.गौ. ४.२१ यत्नेन धर्मपत्नीत्व __ लोहि ८५ यत्र यत्र च संकीर्ण दा १६६ यत्नेन धर्मो गृहमेधिविप्रै वृ परा ६.३८० . यत्र यत्र च संकीर्ण या ३.३०९ यत्नेन भोजयेच्छाद्धे मनु ३.१४५ यत्र यत्र च संकीर्ण लघुशंख ७१ यलेन राजा निश्चित्य लोहि ७११ यत्र यत्र च संकीर्ण लिखित ९६ यत्नेनैवाहयित्वैनं सभा कपिल ८२९ यत्र यत्र च संकीर्ण संवर्त १९८ यत्पाकत्रेति मंत्रेण आश्व २.६५ यत्र तत्र प्रदातव्यं लिखित ३२ यत्पापं शाम्यमानस्य ___ आंउ ६.६ यत्र यत्र स्वभावेन व्यास १.३ यत् पुण्यफलमाप्नोति मनु ३.९५ यत्र यत्र हतः शूर पराशर ३.३८ यत्पुरा पातितं बीज व्यास ४.५८ यत्र यत्रैक देवत्यावृत्तिस्तत्र कपिल २९० यत्पूजितं मया देवी भार ११.११४ यत्र यत्रोच्चार्यते स कण्व ५५ यत्पूर्वमृषिभि प्रोक्त आंउ १.८ यत्र यत्रोत्सवं विष्णो वृ हा ७.२९७ • यत् पूर्वं तु समुद्दिष्ट बृ.या. २.१३४ यत्र यातापुनर्नेह व परा १२.३३२ यत्पूर्वम्ब्रह्मणा प्रोक्त ब्र.या. १.४ यत्र वर्जयते राजा मनु ९.२४६ यत् प्रजापालने पुण्यं अत्रिस २९ यत्र वा तत्र वा काले व परा १०.३ ४७ यत् प्राग्द्वादशसाहस्रं मनु १.७९ यत्र वा तत्र त्वरया कृत्वा वृ.गौ. ९.५४ यत्फलं कपिलादाने व्यास ४.१० यत्र विप्रतिपत्ति स्याद् नारद १.३३ यत् फलं जपहोमादौ वृ परा ४.३ यत्र वेदास्तपो यत्र वृ परा ७.१६ यत्फलं लभ्यते राजन् वृ.गौ. ६.१३७ यत्र व्याहतिमि होम कात्या १८.१० यत्फलं विधिवत्प्रोक्तं बृ.गौ. १७.५२ यत्र श्यामो लोहिताक्षो मनु ७.२५ यत्फलं समवाप्नोति अत्रिस १३३ यत्र सभ्यो जन सर्वः नारद १.७९ यत्र कर्मणि चारब्धे वृ परा २.४५ यत्र स्थाने च यत्तीर्थ बृ.या. ७.१२ यत्र काष्ठमयो हस्ती व १.३.१२ यत्र स्थाने तु यत्तीर्थ वृ परा २.१२५ यत्र क्वपतितस्यान्नं अत्रिस ५.४ यत्र स्यात् कृच्छ्रमयस्त्वं कात्या ११.१३ यत्रगावो भूरिश्रृंगा वृ हा ७.३२७ यत्र हैमानि सद्यानि वृ परा १०.१९१ यत्र चैव तु लौहानामु व २.६.५१९ यत्राचल सरोरक्षा वृ परा १२.२७ यत्र तत्र भवेच्छा कात्या ५.११ यत्रानिबद्धोपीक्षेत मनु ८.७६ यत्र त्वेते परिध्वंसा मनु १०.६१ यत्रान्योत्याभिलाषेण वृ परा ६.९ Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी यत्रापवर्तते युग्यं यत्राशुचिस्थलं यत्रास्ते लिखिता गेहे यत्राहं न स्थितो राजन् यत्रैतेन्वेषयन्नित्यं यत्रैते भुंजते हव्यं यत्रैव प्रतिहन्यात्तत्र यत्रैवं नैऋतिंमध्यं यत्रोदेति सहस्रांशु यत्रोपदिश्यते कर्म यत् श्रृणेति शुचिर्भूत्वा यत् श्रुत्वा पुरुषः स्त्री वा यत् सद् विप्राय वृद्धाय वृ यत्संदिग्धं परास्वाद्य यत् सर्व प्राणि हृदयं यत् सर्वसारं सतुषं च यत्सर्वेणेच्छति ज्ञातुं यत्सोदकलशश्राद्धं स्यादु यत्सोर्द्धर्च्च समारभ्य यत् स्थूलं तादृशं ज्ञेयं यथलिंगान्तव यथा कथंचितं पिंडानां यथाकथंचित् पिंडानां यथाकथंचित्पुत्रस्य यथा कथंचिद् गणयेत् यथा कथंचिद्दत्वा यथा कथंचित् त्रिगुणः यथाकर्मविदो न यथाकर्मफलं प्राप्य यथाकामं महातेजाः यथा कामी भवेद् वापी यथाकालमधीयीत यथाकालं यथादेशं यता काठम यथा काष्ठमयो हस्ती मनु ८.२९३ बृ.या. ७.४८ वृ परा १०.१२० बृ.गौ. १९.२९ ब्र. या. ४.५० औ ४.१९ व १.२०.१५ भार २.७३ भार २.३ या ९.८ वृ.गौ. २.३ वृ.गौ. ६.६ परा १०.३२४ कपिल ४५३ ल हा ७.७ वृ परा ७.२४२ मनु १२.३७ आं पू ८७८ ब्र. या. ८.३१ बृह ११.२९ मनु १.३० देवल ९० मनु ११.२२१ आंपू ३१४ वृ परा ४.४३ या १.२०८ या ३.३१९ बौधा १.७.११ या ३.२१७ वृ.गौ. ६.३७ या १.८९ नारद ६.११ बृ.या. ७.१७१ पराशर ८.२३ मनु २.१५७ यथा काष्ठमयो हस्ती यता काष्टमयो हस्ती यथा कौटुम्बिक श्रीमान् यथा क्रमेण तन्मंत्रान् यथा खनन् खनित्रेण यथा गोवोदासीषु यथाऽग्निर्वायुना धूतो यथाग्निर्वै देवतानाम् यथाघमर्षणं सूक्तं यथाचरति धर्मं यथा चैवापरः पक्षः यथा जनित्री क्षीरेण यथा जातबलो वह्नि यता जातबलो वाग्नि यथा जातोग्निमान् यथात्मान तथा देवे यथात्मान तथा देवे यथात्मानं सृजत्यात्मा यथा त्रयाणां वर्णानां यथा त्वचं स्वां भुजगो यथा दहति चैधांसि यथादहनसंस्कारस्तथा यथा दारुमयो हस्ती यथा दुर्गाश्रतानेतान्नाप यता दृढं यथाशोभं यथादृश्यं तथाधार्य यथा देवे तथा देहे यथा द्विजा निराहन्ति यता धातृक्रमा यथाधीयीत तथा रात्रौ यथाध्ययनकर्माणि यथा नदीनदा सर्वे यथा नदीनदा सर्वे यथा नयत्यसृक् यथान्धकारं भुवनेषु ५०७ वाधू १७९ व्यास ४.३७ शाण्डि ४.८३ वृहा ४.६९ मनु २.२१८ मनु ९.४८ व १.२६.१४ बृ.या. ४.१४ ल व्यास २.२५ मनु १२.२० मनु ३.२७८ वृ.गौ. ६.१२० मनु १२.१०१ अत्रिस ३.२ आश्व १.७१ वृ हा ३.२९ ५.२०४ या ३.१८१ मनु १०.२८ बृ.गौ. ९.७८ वृ परा १२.३३५ पराशर ५.२३ बौधा १.१.११ मनु ७.७३ वृ परा ५.७६ भार १५.९२ वृ परा ४.१३५ वृ.गौ. ६.१२२ वृ परा १२.३३० व २.३.१५३ पराशर १२.७४ मनु ६.९० व १.८.१५ मनु ८.४४ वृ.गौ. ९.७९ 1 Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०८ यथान्नं मधुसंयुक्तं यथान्नं मधुसंयुक्तम् यथान्नं मधुसंयुक्तं यथान्नं मधुसर्पिभ्यां यथा निर्मन्थनादग्नि यथा निवेदितं पूर्व यथा पवेषु धान्येषु यथा पर्वतधातूनां यथा पुत्रस्य तातस्य चोभयो यथाप्रियातिथिं योग्यं यथा प्लवेनौपलेन यथाप्सु पतितः सद्य यथा फलेन युज्येत यथाबलं समभ्यर्च्य यथा बलिष्ठं मांसत्वान् यथा बातबलो वह्नि यथा बिभर्ति गौर्वत्सं यता ब्रह्मवधे पापं यथा भर्ता प्रभु स्त्रीणां यथा भवति तद्रीति यथा भस्म तथा मूर्खो यता मधु च पुष्येभ्यो यथा महाद् द्रदे लोष्टं यथा महाहृदं प्राप्यं यथा मातरमाश्रित्य यथा मृगस्य विद्धस्य यथा यथा च हस्वत्वं यथा यथा नरोधर्मं यथा यथा निषेवन्ते यथायथा मनस्तस्य यथा यथा हि पुरुष यथा यथा हि सद्वृत्त यथा यमः प्रवेष्टयं यथायुक्तो विवाहः यथायुक्तो विवाह यथा रथो विनाश्वै यता रथश्वनस्तु यथारुच्चशनं कुर्याद् यथाच क्रियते तस्य यथार्थकथनान्नित्यं यथार्थेन च सृष्टानां कण्व ७६२ नारद १.५४ यथार्पितान् पशून् गोपः अत्रिस २.१५ ल हा ७.१० व १.२६.१९ बृह ११.२४ अत्रिस ३६२ बृ.या. ८.३३ कपिल ४०५ शाण्डि ४.३० मनु ४.१९४ वृहस्पति १२ मनु ७.१२८ शाण्डि ३.८० प्रजा १५३ व १.२७.२ वृ. गौ. ६.१२१ बृ. य. ४.८ शंख ५.७ कपिल ४९७ यथाहमेतानभ्यर्च्य यथार्ह च यथाशक्ति यथार्ह बिभृयुस्सर्वे यथाल्पाल्पमदत्याद्य यथावदेव वाचा ते यथावर्ण यथाकाष्ठं वृ परा ६.२२० बृ.या. ४.१६ अत्रि ३.३ मनु १९.२६४ व १.८.१६ नारद १.३२ वृ परा ७.९२ मनु ११.२२९ मनु १२.७३ मनु ११.२३० मनु ४.२० मनु १०.१२८ मनु ९.३०७ बौधा १.११.१८ यथाविहंगो पक्षाम्यां यथा वीजानि रोहंति यथा वेगगतो वह्नि यथा वै शङ्कुना यथा व्योम्नि यथा यथाशक्ति जपेद्विद्वान् यथाशक्ति तपः कृत्वा यथाशक्त्याचरेत्सन्ध्यां यथाशक्त्युपवासी स्याद्य बौधा १.१२.१ यथा शल्यं भिषग्विद्वान् स्मृति सन्दर्भ यथावर्णानि वासांसि यथा वह्निश्च गोमांसं यता वा कन्यकादाने गोत्र यथा वायुं समाश्रित्य यथा वा श्रोत्रियजयः भवेत् यथा विकसिते पुष्पे यथाविधानेन पठन् यथाविधि तत कुर्यात् यथाविधेन द्रव्येण यथाविध्यधिगम्यैनां यथाविध्युक्तमार्गेण कुर्याद् यथाविभवसारेण बृह ११.२३ ल हा ७.९ कपिल ५७९ वृ परा ४.१३४ कण्व १३४ अ ५४ या २.१६७ मनु ८.३९१ साण्डि ४.९८ शाण्डि ३.७९ मनु ७.१२९ आंपू ८३० वृ परा ११.२१५ वृ परा ११.७८ वृ परा १२.६४ कपिल ५०२ मनु ३.७७ कपिल ८१७ वृ.गौ. ४.२९ या ३.११२ आश्व १.९ नारद २.४५ मनु ९.७० विश्वा १.५२ आश्व १०.४६ ब्र.या. ५.२५ वृहस्पति ११ अ १३० बृ.या. २.४२ शाण्डि ४.९१ विश्वा १.१७ शाण्डि १.९६ विश्वा १.३१ शाण्डि ४.२२५ नारद १.७८ Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५०९ यथाशक्ति चान्नेन व १.८.१३ यथेष्टाचरणाद ज्ञातौ औ ६.१९ यथाशास्त्रमधीत्यैव कण्व १७५ यथैतदग्नि होत्रे धर्मो बौधा १.६.३१ यथाशास्त्रमुपादान शाण्डि ३.१६३ यथैतदनुपेतेन सह बौधा १.१.२१ यथाशास्त्र कुत्वैवं मनु ४.९७ यथैतदभिचरणीयेष्विष्टि बौधा १.६.१० यथाशास्त्रं प्रयुक्तः या १.३५६ यथैतदेतत् परमं निश्शेष कपिल ९३५ यथाशास्त्रादिविहितै कण्व ४०४ यथैधस्तेजसा वहनि मनु ११.२४७ यथा शूद्रस्तथा मूर्यो वृ परा ६.२२१ यथैनं नाभिसन्दध्यु मनु ७.१८० यथाश्मनि स्थितं तोयं पराशर ८.१७ यथैव दृष्ट्वा भुजगा वृ.गौ. ९.७७ यथश्मनि स्थितं तोयं बौधा १.१.१५ यथैव शूद्रो ब्राह्मण्यां मनु १०.३० यथाश्वमेधः क्रतुराट् बृ.या. ७.१७७ यथैवात्मा तथा पुत्रः मनु ९.१३० यथाश्वमेध क्रतुराट मनु ११.२६१ यथैवात्मा परस्तद्वद् दक्ष ३.२० यथाश्वमेधः क्रतुराट शंख ९.१३ यथोक्तकार्ये राज्ये च वृ परा १२.१६ यथाऽश्वा रथहीनाः व १.२६.१८ यथोक्त पुष्पालाभे तु वृ हा ५.५६३ यथाश्वा रथहीनास्तु अत्रि २.१४ यथोक्तमार्तः सुस्थो मनु ८.२१७ यथाषण्डोऽफलं दानं पराशर ८.२५ यथोक्तवस्त्वसम्पत्ती कात्या १५.२१ यथा षण्डोऽफलः स्त्रीषु मनु २.१५८ यथोक्त विधिना चैता वृ परा ५.२० यथासनमपराधो व १.१६.४ यथोक्तविधिना देवान् आश्व २३.२९ यथासमाम्नातं च बौधा १.६.९ यथोक्तान्यपि कर्माणि मनु १२.९२ यथासम्भव मुक्तानि वृ परा ८.३ ४० यथोक्तेन नयन्तस्तु मनु ८.२५७ यथा सर्वगतो विष्णु वृ हा ३.७१ यथोक्तेन विधानेन नारद १९.३७ यथा सर्वाणि भूतानि मनु ९.३११ यथोक्तेन विधानेन नारद १९.४६ यथा सर्वासु अवस्थासु वृ.गौ. ३.६७ यथोक्तेनैव कल्पेन बौधा १.५.११२ यथास्थितस्सएवासौ शाण्डि ४.२० यथोत्पन्नेन कर्त्तव्यं अत्रिस ३८ यथा स्वायुधधृक् कात्या २१.१५ यथोदयस्थसूर्यस्तु तमः वृ.गौ. ६.१ २३ यथाहनि तथा प्रातः कात्या १०.१ यथोदितानि दुर्गाणि वृ परा १२.१४ यथाऽहमिन्द्रियैरात्मा शाण्डि ५.१९ यथोदितेन विधिना नित्यं मनु ४.१०० यथा हि क्षुधिता बाला बृह ९.१४८ यथोद्धरति निर्दाता मनु ७.११० यथा हि गौर्वत्सकृतं बृ.या. २.४६ यदक्षरं वेदविदो वदन्ति बृ.या. २.१०४ यथा हि सोमसंयोगा बौधा १.४.२३ यदक्षरेषु दैवत्यं वृ परा ४.१७ यथाहि क्षुधितो बालो ब्र.या, २.१८१ यदक्षरेषु यद्वर्ण यत्र वृ परा ४.७० यथा हि भरतो वर्णो . या ३.१६२ यदगम्याभिगमनाज्जायते शाता ५.२४ यथा टेकेन चक्रेण या १.३५१ यदग्निहोत्रं य पुण्यः बृ.गौ. १७.३० यथेदमुक्तवांछास्त्र पुरा . मनु १.११९ यदधीतेऽन्वहं शक्त्या बृ.या. ७.५९ यथेदं शावमाशौचं मनु ५.६१ यदधीते यद्यजते मनु ८.३०५ यथेरिणे बीजयुप्त्वा . मनु ३.१ ४२ यदनुष्ठानतः सर्वानुष्ठानं आंपू ६१९ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१० यदन्नं पिण्डदाने यदन्नं लेपरूपं तु यदन्नं साधितं साधु यदन्यगोषु वृषभो यदन्यत् कुरुते कर्म यदपित्यमेध्यांशं यदप्ययोधे लवणोदकत्वं यदप्सु मलनिक्षेपः यदमेध्यमशुद्ध वा यदर्वाचीमेनो भ्रूणहत्या यदलीकं कृतं सर्वं यदशक्यं त्यजेदेव यदशनं केस कीटोपहतं यदस्यान्यद् रश्मिशत यदस्येत्यनया हुत्वा यदना कुरुते यदाकरोत्तथैवाहं करिष्या यदाक्षराभिधानाना बलयो यदा च कश्चित् स्वं यदा च क्रयते पापः यदा चतुर्दशीयामं यदा च ते भवेच्चीर्ण यदा च न सकुल्या यदा चाग्नौ स्थितं यदा चेद्रोगवमनं तदा यदा जिगीषुर्धृतशस्त्र यदाणुमात्रिको भूत्वा यदातिथिगुरुप्राज्ञान् यदातु द्विगुणीभूतं यदा तु नैव कश्चित् यथा तु यानमतिष्ठे यदा तु वशतां याति यदा तु स्यात्परिक्षीणो यदा तेजः समालम्ब्य यदात्र न स्युर्ज्ञातारः ब्र. या. ४.११७ वृ परा ७.२६७ शाण्डि ४.९० मनु ९.५० दक्ष २.२० वधू ८१ वृ परा १२.७७ वृ परा २.२१४ बृ.या. २.१५३ बौधा २.१.८५ भार २१.११३ कपिल ३११ व १.१४.१८ या ३.१६८ आश्व २.६१ बृ.या. ८.३७ लोहि ५३३ भार ७.१२२ नारद १८.४४ वृ.गौ. १.३३ कात्या १६.२ आउ ३.११ नारद २.९७ नारद १८.४३ आंपू १७६ वृ परा १२.८९ मनु १.५६ नारद १८.२९ या २.६५ नारद १३.२२ मनु ७. १८१ वृ परा १२.५५ मनु ७.१९२ नारद १८.२६ नारद १२.११ यदा त्रयेण कुर्वीत यदा त्वामात्य द्विज यदा दृष्टस्तदा सूर्य यदानिरोधसंयोगा यदा परबलानां तु यदा प्रहृष्टा मन्येत यदा भवेत्तदा तत्र यदाभावेन भवति यदा भोजनकाले यदामन्येत भावेन यदावगच्छेदायत्यामं यदाबहसने पत्नीस्थालीपाका यदा विरोधात्संयोगा यदाश्रयति विद्यादि यदाश्रिताय सायज्ञं दानं यदा स देवो जागर्त्ति यदा स देवो जागर्ति यदा सम्यग् गुणोपेतं यदा स्वयं न कुर्यात्तु यदाह भगवान् धातुस्तेन यदाहारो भवेत्तेन यदि कर्तव्यधीः स्याच् यदि कर्ता ब्रह्मचारी यदि कालवशात् कर्तुं यदि कुर्वीत मोहेन यदि कुर्वीत मोहेन यदि गण्डूषकाले तु यदि गर्भोविपद्येत यदि गुर्वादिसच्चिन्ता यदि गोधूम शाखायां यदि चेद् ब्राह्मणो दुष्ट यदि चेद्वक्ष्यते सत्यं यदिच्चेद्दोषं संस्पृष्टि यदिच्छेद्धमिसंततिमिति यदि जातस्सुतः सोयं स्मृति सन्दर्भ वृ हा ३.१२० वृ परा १२.९२ आंपू ७६९ बृ. या. ८.२६ मनु ७.१७४ मनु ७.१९० आंपू ८२१ मनु ६.८० लघुयम ७ मनु ७.१७१ मनु ७.१६९ कपिल १९६ ब्र.या. २.६५ वृ हा ३.९ ब्र. या. ११.८ ब्र.या. २.६७ मनु १.५२ या १.३४८ मनु ८.९ वृ हा ४.२६५ शंख ६.३ आंपू ७९६ लोहि ४११ आश्व १५.५६ आंपू ९९ आंपू २४० कण्व ९६ पराशर ३.१७ कपिल ५८० वृ परा ११.९१ लोहि ६९८ आंउ ३.३ भार ७.१२०, बौधा १.४.२७ कपिल ३९९ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी यदि जानसि मां भक्तम् यदि जानासि मां भक्तं यदि जानासि ये भक्ति यदि जीवति स स्तेन यदि तज्ज्येष्ठभार्याया यदि तत्र भवेच्छोकः यदि तत्र भवेत काण्डं यदि तत्रापि सम्पश्येद् यदि दद्यात् समानंशान् यदि धर्मरति शान्तः यदि धर्मार्थाभ्यां प्रवासं यदि न क्षिपते तोयं यदि न क्षिपते तोयं यदि न क्षिपते तोयं यदि न क्षिपते तोयं यदि न प्रणयेद् राजा यदि नात्मानि पुत्रेषु यदिनाऽभ्युदयिकेषु युक्तः यदि नाम न धर्माय यदि निरुप्ते वैश्वदेवे यदि पंचाशदधिकसं यदि पत्न्यां प्रसूतायां यदि पश्येदृतंपूर्वं क्रूरवारे यदि पित्रा समाज्ञाप्तो यदिषुकृतकर्माणि वृ.गौ. १.१३ वृ परा १.१३ यदि तु प्रायशोऽधर्म यदि तूष्णीं समासीन यदि ते तु न तिष्ठेयुः मनु ७.१०८ यदि तेन हतः कोपि तस्मिन् लोहि ६९७ यदि तेषां तज्जलं यदि त्यक्तं तद्भवते यदित्वतिथिधर्मेण यदि त्वात्यन्तिकं वासं यदि दत्तस्वतनयान् यदि दत्तस्वतनये पराशर १.१२ संवर्त १२१ आंपू ४४४ आंउ १०.७ पराशर ९.३५ मनु ७.१७६ मनु १२.२१ भार १६.६० कण्व १५४ लोहि ३४९ मनु ३. १११ मनु २.२४३ आंपू ३४२ कण्व ७१३ पराशर ६.२६ बृ.या. १.१० लघुशंख ४४ लिखित ८५ यदि प्रक्षालनं त्यक्त्वा यदि प्रमादेन कृतमन्यथा यदि प्रविष्टं नरकं बद्ध्वा यदि बहूनां न शक्नुयाद यदि ब्राह्मणस्य ब्राह्मणी यदि ब्रूयाद्धेनुंमव्येत्येव यदि ब्रूयान्मणि धनुरित्येव यदि भारसहस्रम् तु यदि भार्या अशक्ते मनु ७.२० मनु ४.१७३ व १.१५.१० व्यास ४.२० व १.११.१० कपिल ९५४ पराशर ३.३२ अत्रिस ५.४३ विश्वा ८.५२ वृ परा ११.२ यदि भुक्तन्तु विप्रेण यदि मध्ये तत्कुलीनाः यदि मोहाज्ज्येष्ठपुत्रो यदि मोहेन तेनार्चे यदि मोहेन सा गच्छेत् यदि मोहेन सा पत्नी यदि राजा न सर्वेषां नियतं यदि वद्धे शिखे स्यातां यदि वाग्यमलोपः यदि वा त्र्यन्तिकं वासं यदि वा दाप्यमानानां ५११ कण्व १३२ कण्व ६९ या २.११७ ल हा ६.२२ व १.१७.६८ यदिवृत्याससूत्र हि यदि व्रजेत् प्रदक्षिणं यदि शब्दः समुत्पन्नः यदि संशय एव स्यात् यदि संसाधयेत्तत् यदि संध्यां प्रकुर्वीत यदि सर्वस्वदानेन वित्त नारा ८.८ यदि स स्वामिको ग्रामस्तदा कपिल ४८० यदि सा दातृवैकल्पादजः यदि सा स्यात्समीचीना यदि सा स्यादप्रगल्भा यदि स्त्री यावरजः श्रेयः यदि स्यात्तु मनुष्याणा यदिस्यादधिको विप्रः यदि स्थालौकिके व २.५.७१ बौधा २.३.१५ व १.१७.४४ बौध २.३.४६ बौधा २.३.३९ वृ.गौ. ४.३४ व्या २२४ पराशर ११.५ कण्व २७५ लोहि २६७ कण्व ५७५ लोहि १०८ लोहि ११२ नारद १८.१४ आश्व १५.४४ बृ.या. ७.१४८ औ ३.८३ नारद १८.७९ भार २.४६ व १.१२.४० कण्व १०१ मनु ८.२५३ मनु ८.२१३ कण्व १४९ व्यास २.७ लोहि ११९ लोहि १२० मनु २.२२३ वृ हा २.६५ औ ३.१२० ल व्यास २.५४ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ स्मृति सन्दर्भ यदि स्युः श्रोत्रियास्सन्तः कपिल ८६९ यदुस्तरं यदुरापं मनु ११.२३९ यदि स्वयं तदा सर्वां आपू ३०८ यद्देवा देव हेडेति ब्र.या. २.१६४ यदि स्वाश्चापराश्चैव मनु ९.८५ यद्देहक काकबलाक बृ.य. ३.६१ यदि हि स्त्री न रोचेत मनु ३.६१ यद्देहिनामत्र शरीर वृ परा ७.२३९ यदुक्तं च यथाकाले आश्व ९.१९ यद्धद्वयोरनयोर्वेत्थ मनु ८.८० यदुक्तं ब्रह्मणां पूर्व वृ हा २.३ यद्धनं यज्ञशीलानां मनु ११.२० यदुक्तं मनुना धर्म वृ हा ४.२५९ यद्ध्यानं मनसा विष्णो वृ परा २.८८ यदुक्तं यदहस्त्वेव कात्या १६.३ यध्यायति यत्कुरुते __ मनु ५.४७ यदुक्तं सर्वशास्त्रेषु वृ परा ४.१०८ यद्बालः कुरुते कार्य नारद २.३५ यदुच्चनीतोच्चरितै ल हा ४.४२ यद्भक्ष्यं स्यात्ततो मनु ६.७ यदुच्छिष्टमभोज्यं बौधा २.५.१७ यद्भुक्ते वेदविद् विप्रः व्यास ४.५५ यदुच्यते द्विजातीनां या १.५६ यद्यकर्तृकृतं कर्म आंपू १४८ यदुपनयति जनन्यां व १.२८ यद्यकामनया कर्म क्रियते कपिल ४४३ यदुपस्थकृतं पापं बौधा २.४.२५ यद्यकार्यशतं सायं व १.२७.१ यदेकमग्निहोत्रं वै स्पृष्टं बृ.गौ. १५.२ यद्यग्रिराग्निनान्येन कात्या १८.१२ यदेकरात्रेण करोति बौधा २.१.५९ यद्यत्तदेतखिलं यत्ना लोहि २१६ यदेतत्ततु कथितं आंपू ८७९ यद्यत्तु पैतृकं कर्म आंपू ६ ४९ यदेतत् परिसंख्या मनु १.७१ यद्यत् परवशं कर्म मनु ४.१५९ यदेतद्वर्तते हस्ते तत् भार १८.६८ यद्यत्र निखिलं द्रव्यं कण्व ५६६ यदेव तर्पयत्यद्भिः मनु ३.२८३ यद्यदारभते तत्तद्योक्त वृ परा ११.१९६ यदैव कुरुते स्नानं बृ.या. ७.१५७ यद्यदिष्टतमं द्रव्यं वृ.गौ. ७.१२९ यदैव स्युः प्रवासंस्था वृ परा ७.७२ यद्यदिष्टतमं लोके दक्ष ३.३२ यदैवाव्ययसम्पति वृ परा ६.३२५ यद्यदिष्टतमं लोके संवर्त ४६ यदैवाहवनीयं वै दक्षिण आंपू ८२३ यद्यद्ददाति विधिवत् मनु ३.२७५ यद्गर्हितेनार्जयन्ति मनु ११.१९४ यद् यद्भुक्तं द्विजैरन्नं वृ परा ७.२६४ यद्गृहे पातकोत्पत्ति वृ हा ६.३७५ यद्यदोचेत विप्रेभ्यः मनु ३.२३१ यद्ग्रामइत्यादि वृ परा १०.३३८ यद्यन्नमत्ति तेषां तु मनु ५.१०२ यद्दग्धं भवेन् भृत्स्ना व परा १२.१८६ यद्यन्मीमांस्यं स्यात् व १.३.४३ यद्ददाति गयाक्षेत्रे शंख १४.२७ यद्यन्यगोत्रस्तनयः संग्राह्यो कपिल ६८३ यद्ददाति गयास्थश्च या १.२६१ यद्यन्यथाकृतं तत्तु तदा कण्व ८२ यद्ददाति यदश्नाति व्यास ४.१७ यद्यन्यस्मै भोजनाय व्या ३५१ यद्ददाति विशिष्टेभ्यो व्यास ४.१६ यद्यन्यो गोषु वृषभो व १.१७.८ यद्दरिदजनस्यापि स्वर्ग बृ.गौ, १७.३ यद्यपि स्यात्तु सत्पुत्रो मनु ९.१५४ यदिवा विहितं शौचं ___ वाधू १६ यधप्यावश्यकास्तास्तु कण्व ६०५ यद्दीयतेस्मानुद्दिश्य चानेन कपिल ७२१ यद्यर्थिता तु दारैः स्यात् मनु ९.२०३ Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी यल्लोके महत्सर्वै यद्यश्नाति स्वयं मोहात् सम्पूर्ण सर्वांगो यद्यसौ वाह्येल्लोभाद् यद्यस्थसंचयं कर्म यद्यस्मि पापकृन्मात यद्यस्य विहितं चर्म यत् यद्याचामेद्भूमौ स्रावयित्वा यद्याहितोऽग्नेरतिथि मंत्रमण यद्युच्छिष्टाद्युपहतं मधुद्ध निषिञ्चेत्तु यशुद्धतं भाण्डगतं परुद्धा स्युरेतेनो यष्णयित्वा स्नानाय यद्येककर्तृकं श्राद्धमने यद्येकजातावहवः यद्येकत्र पचेदामं कपंक्त्या विषमं यद्येकपंक्त्या विषमं यद्येकपुत्रो दत्तश्चेदात्मानं यद्येकं भोजयेच्छ्राद्धे यद्येकरिक्थिनौ स्याता यद्येकवस्त्रो विप्रः यद्येवं स कथं ब्रह्मन् यद्येषांभवेविप्रः सूर्या यद्यौवने चरति विभ्रमेण यद्राष्ट्रं शूद्रभूयिष्ठं यद्रिस्याद्रोमसंसक्तं यद्वदन्ति तमोमूढा यद्वदन्ति तमोमूढा यद्वदन्ति तमो मूढा यद्वर्णा यत्सुता विद्वन यद्वस्तु स्यात्परप्राप्यं यद्वा गव्यं घृते छागं आंपू ३२१ शाण्डि १.६८ पराशर ९.२२ वृ परा ५.१२५ औ ३.१२५ या २.१०४ मनु २.१७४ बौधा १.५.१३ वृ.गौ. ९.८१ आंपू ८०७ भार १८.८७ बृ.या. ७.७३ लोहि ६४२ बौधा २.५.१४ कपिल ६२३ व्या १३९ नारद १४.४१ आश्व १.१७८ वृ परा ७.२५२ व्यास ४.६२ लोहि २७४ व १.११.२७ मनु ९.१६२ व्या ३४० या ३.१२९ भार ६.१०६ बौधा १.५.१०३ यद्वा तद्वा परद्रव्यं यद्वा तद्वापि होतव्यं यद्वा तस्यै प्रदद्यात्तु वह्नि यद्वा तातपितानाम यद्वातृणादिकं दद्याद् वृ परा १०.२१ यद् विप्रशिष्यप्रतिपादितेन् वृपरा १०.२४१ यद्वेदकृत्ययोग्यन्तत् ब्राह्मण्यं कपिल ३५५ यद्वेष्टितं काकबलाकचिल्लै यम ४४ यद्वेष्टितं कालवलाक यद्वेष्ठितशिरा भुंक्ते य न स्पृशन्ति दुःखाद्या यंत्रमंत्रवाहचिन्त्य यन्त्रिता गौश्चिकित्सार्थं यंत्रिते गोचिकित्साया यन्त्रेण गोचिकित्सार्थं यन्त्रेणे गोचिकित्सार्थे यंत्रेणे गोश्चिकित्सार्थे यन्न कारयते ततन्नान्यं यन्न वेदध्वनि ध्वान्तं यन्न सन्तं न चासन्तं यन्नाम्नातं स्वशाखायां यन्नावि किंचिद्दाशानां यन्नास्ति सर्वलोकस्य यन्नीललक्ष्मपृथुलं यन्मखानां च सर्वेषां यन्मधुरेति मंत्रेण यन्मया दूषितं तोयं यन्मया दूषितं तोयं मन्यया दूषितं तोय यन्मरणं तदवभृथमिति मनु ८.२२ आंपू ७८१ पराशर ८.१३ बौधा १.१.१२ यन्मूर्त्यवयवाः सूक्ष्म व १.३.८ वृ परा ११.३५ कपिल ४५५ यन्मेधरेत इत्याभ्यां यन्मे मनसा वाचा यन्मे माता प्रलुल्लुभे यन्मेवा चापि सकल्पं व्या ३१० ५१३ मनु १२.६८ वृ परा ४.१५७ कपिल १४३ आश्व ६.३ आप ९.९ मनु ३.२३८ वृ परा १२.२८० विष्णु १.५३ पराशर ९.४५ लघुशंख ६० आंउ १०.१३ संवर्त १३७ आप १.३२ बृ.य. ३.५६ अत्रिस ३१० व १.६.४० कात्या ३.३ मनु ८.४०८ दक्ष७.२३ आंपू २८१ कण्व ६३३ ब्र.या. ८.२०७ आश्व १.२१ विश्वा १.८४ वृ परा २.२१५ वृ हा ६.११४ मनु १.१७ या ३.२७८ बौधा २.५.६ मनु ९. २० ब्र. या. ११.२९ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१४ यन्विदं कारकं कुर्यात् यं इदं धारयेद्विप्र यं कट्यां तारकावर्ण यं तु कर्मणि यस्मिन् यं तु पश्येन्निधिं राजा यं दक्षिणस्थितं पिण्डं यः पठेत् स्वरहीनं यः पठेद् विधिवत यः पठेन्मामकं धर्म यः परार्थेपहरति स्वां यः पश्येत् श्रृणु यः पापात्मा येन सह यः पिता स च वै यः पिता स तु पुत्रः यः प्रत्यवसितोविप्रः यः प्रयच्छति विप्राय यः प्रयच्छति विप्राय यः प्रयच्छति विप्राय यः प्रवृत्ता श्रुतिं सम्यक् यः प्रहारं द्विजेन्द्राय यं प्राप्य विन वर्तन्ते यं ब्राह्मणस्तु शूद्रायां यं मातापितरौ क्लेशं यं यज्ञसंद्यैस्तपसा यं यं कामयते चित्ते यं यं कामयते चित्ते यम द्वारे पथे क्षेत्रे यमर्थं प्रतिभूर्दद्याद् वृ परा ६.२५४ बृह १२.४८ वृ परा ४.८२ मनु १.२८ मनु ८.३८ आंपू ९८३ वृ परा ६.३७१ वृ परा ६.३६९ बृ.गौ. २२.३२ नारद २.२०४ वृ परा १२.१९९ प्रायश्चित विष्णु ५४ " वृ परा ६.२०० वृ परा ६.१९१ यम ४८ वृ.गौ. ६.८९ वृ.गौ. ७.३३ वृ.गौ. ७.३८ वृ.गौ. ११.४ वृ.गौ. ४.४८ बृ.या. २.१९३५ मनु ९.१७८ मनु २.२२७ पराशर ३.४४ वृ हा ३.२०१ यया कया च विधया यया कया संख्याया यया रामेश्वरी तारा ययिच्चेत्पीटकंशत्रो यरैभ्युपायैरेनांसि यवगोधूमजाः सर्वे यव पिष्टेन निर्वाप्य यस तावदृढव्यो यवसस्राववोटव्यो यव सिद्धार्थ काश्चैव यवाग्वाः पयसो वापि य वाद्य संस्कृतान्नेन यवान् विधि तोपनोपयुंजान यवासंगुड़मेधाज्यनार्द्रकं यं यं पश्यति चक्षुयी वृ हा ३.३६३ वृ परा ४.९८ यं वदन्ति तमोभूता यं वाय्वात्मने गन्धान् यं हि व्रतानां वेदानां यं हे त्वाहतिसूक्तेन यमगीतं चात्र श्लोकं मनु १२.११५ विश्वा ३.१८ बृ.या. ७.३२ वृ हा ७.१३० व १.१९.३३ यमदीपं त्रयोदश्यां देतावित्र्य ब्र. या ९.५५ यवीयाज्येष्ठभार्यायां ब्र. या. ११.२७ नारद २.१०४ यवैर न्ववकीर्याथ भाजने यवैरमन्त्रकं नित्यं यमर्थमभियुंजीत न तं यमश्च धर्मराजश्च यमसूक्तं यमीं गाथां यमसूक्तेन कुर्वीत यमः स्कन्दो नैर्ऋतश्च यमान् सेवेत सततं यमान्सेवेत सततं न स्मृति सन्दर्भ नारद १.४९ वृ परा २.१९६ या ३.२ शाता ६.२२ वृ हा ४.१७१ अत्रिस ४७ यमायः सानुगायाथ यमाय सोमेति यमनैर्ऋतं यमायाथ च चित्राय यमिद्धो न दहत्यग्निरापो यमेन पूजिता यान्ति यमेव तु शुचिं विद्यान्नियतं यमेव विधा शुचिमप्रबलं यमेव ह्यतिवर्तेरन्नेते यमैश्च नियमैश्चैव यमोपि महिषारूढो योवैस्वतो देवो मनु ४.२०४ वृ परा ७.३१५ वृ हा ८.६७ आश्व १.१५६ मनु ८.११५ वृ.गौ. ५.८५ मनु २.११५ व १.२.१५ नारद १६.१२ बृह ९.३५ शाता २.१८ मनु ८.९२ आंपू ६५ आंपू ६९२ ब्र.या. १०.७७ बार ९.४४ मनु ११.२११ शंख १७.३४ वृ परा ११.९८ दा १०० लघुशंख ५१ ब्र. या. ८. १९५ आंसू २८५ वृ परा ७.७४ व १.२७.१५ व २.६.३०२ मनु, ९.१२० या १.२३० लोहि १७ Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी यवैश्च तण्डुलैर्वापि यवैश्चमधुसंयुक्तैर्दद्या यवो वेदा पुराणाञ्च यवोसि धान्यराजो यवोसि पुण्यामृत यवोसियवांश्चै नैऋत्पते यव्यद्वयं श्रावणादि यशः कीर्तिविवृध्यर्थं यः शब्दमय ओकार यशः शुचित्वं कुप्यानि यः शास्त्र दृष्टेन पथा यः शूद्रभजते नित्यं यः शूद्र भोजयेद् यः शूद्रयां च स्वयं यशोदां च सुभद्रा च यश्च कुपात् पिबेत्तोयं यश्च गृह्णाति विधिवत् यश्चतिष्ठात्यनाचान्तो यश्च धैर्येण दुष्टात्मा यश्च मासोपवासं वै यश्वेदं श्रृणुयाद् यश्चेदं श्राववेच्छ्राद्धे पश्चैतदालोच्य कृषि यश्चैतस्यां पृथिव्यां यश्चैतान् पालयेद् वृ हा ५.३८३ व २.६.३९० या ३.१८९ आश्व २३.२४ वृ परा ७.१८० ब्र. या. ८. १९९ कात्या १०.५ वृ हा ४.२१७ या २.१३२ वृ परा ७.३२४ वृ परा १२.८५ वृ परा ६.२९० यष्टव्या बहवः पुत्रा यष्ट्याघाते चरेत्कृच्छ्रे यष्ट्या तु पतिता या यः संक्रमे भानुदिने च यः संगतानि कुरुते यः समर्घमृणं गृह्य यः साक्ष्यं श्रावितोऽन्येत यः साधयन्तं छन्देन यः साहसं कारयति यः सिद्धमन्त्र सततं वृ यः सुवर्णं दरिद्राय ब्राह्मणाय यः सूतकाशौच विशुद्धि यः सोमलतिकां विप्रः यस्तडाकं नवं कुर्यात् यस्ततो जायते गर्भो यस्तत्र प्रकारोऽन्नस्य यस्तं भिन्दति ज्ञानेन यस्तर्पणं विना स्नाया यस्तल्पजः प्रमीतस्य यस्तस्यां नार्चयेद्देवां यस्तां विवाहयेत्कन्यां यस्तां विवाहयेत् कन्यां यस्तां समुद्वहेत कन्यां नारद ३.५ यस्तिलान् विक्रीणीते व्या ३६० यस्तीर्थयानं जप यज्ञ यस्तु कारयते भक्त्या यस्तु कृष्णाजिनं दद्यात् यस्तु क्रुद्ध पुमान् यस्तु गण्डूषसमये तर्जन्या यस्तु छायां श्वपाकस्य वृ परा ७.६३ वृ परा ६.२९९ वृ हा ५.४८८ आप २.१२ वृ पस १०.६३ बृ.गौ. १३.२० यश्च यस्ययदा दुःस्थः यश्चाग्नौकरणं दद्यात् वृ परा ७.२११ यश्चचाण्डाली द्विजो गच्छेत अत्रिस २६३ दक्ष ७.८ यश्चात्मनि रतो नित्यं यश्चापि धर्मसमयात् यश्चाप्यायुजं मास मश्चाप्युपास्ते सभ्यं यश्चाभिवादनो विप्र यश्चार्थ साधयेत्तेन यश्चास्योपादिशेद्धर्मं वृ परा ७.३५९ वृ.गौ. ७.१०५ या १.३०७ मनु ९.२७३ बृ. गौ १७.५४ वृ.गौ. १५.३९ यश्चैतान् प्राप्नुयात् यश्चैतैर्लक्षणैर्युक्तो यश्चैषां स्वामिनं कश्चिन् यः श्राद्धंकुरुते यः श्राद्धे भोजयेद् विप्रः व _१.१८.१३ वृ. गौ. १०.१५ वृ.गौ. २२.३५ वृ परा ५.१९३ बृ.गौ. १५.५५ वृ परा ५.४५ ५१५ मनु २.९५ अत्रिस ४२ नारद ६.२८ वृ हा ५.१९२ वृ हा २.४२ दा २० वृ परा ८.१३९ बृ.या. ४.४ वृ परा ७.२९४ मनु ३.१४० बौधा १.५.९३ या २.८४ मनु ८.१७६ या २.२३४ परा ११.३१३ वृ.गौ. १४१ वृ परा ८.५८ वृ.गौ. १९.४१ वृहस्पति ६२ व १.११.३५ कात्या ३.९ ब्र. या. ७.४५ विश्वा १.८३ मनु ९.१६७ वृ परा २.२९ बृ.य. ३.१९ यम २४ पराशर ७.९ बौधा २.१.७८ वृ परा १२.३२५ वृ.गौ.७.५१ वृ परा १०.१३६ पराशर १२.५० वाघू ३६ अत्रिस २८७ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ यस्तु तत्कारयेन् मोहात् यस्तु दोषवती कन्याम् यस्तु दोषवतों कन्यां यस्तु दोषवतों कन्यां यस्तु नारायणादन्यं स्तुपाणिगृहीताया यस्तु पाणितले भुङ्क्ते यस्तु पूर्वनिविष्टस्य यस्तु प्राणिवधं कृत्वा यस्तु भक्त्या शुचिर्भूत्वा यस्तु भग्नेषु सैनेषु यस्तु भाद्रपदं मासमेक यस्तु भुंक्ते पराशौचे यस्तु मीतः परावृत्तः यस्तु रज्जुं घटं यस्तु राजाश्रयेणैव मनु ९.८७ नारद १३.३३ मनु ८.२२४ मनु ९.७३ व २.२५ व १.१२.२१ व २.६.२०८ मनु ९.२८१ वृ परा ७.२९९ बृ.गौ. १८.१३ पराशर ३.४० बृ.गौ. १७.४९ शंख १५.२३ मनु ७.९४ मनु ८.३१९ बृ.गौ. १९.३६ यस्तुर्यमस्या द्विज यस्तुवेद मधीयानो यस्तु वेदोदितं धर्मं यस्तु संवत्सरं पूर्ण यस्तु सम्यक् द्विजोधीते यस्तु सर्वाणि भूतानि यस्तु सात्यमधर्मेण यस्तूद्धरेत्तज्ञानाद् स्तूपायतया कृत्यं यस्तेजयति तेजांसि यस्तेन सह सम्भाषे वृ परा ८.८२ यस्तेषां अन्यथा ब्रूयात् यस्तै स्तनमित्येव प्रक्षाल्य ब्र.या. ८.३२६ यस्त्यक्तमार्गाणि कलानि वृ परा १२.८६ यस्त्वधर्मेण कार्याणि मनु ८. १७४ मनु ८.३५५ यस्त्वनाक्षारितः पूर्वं यस्त्वात्मदोषदुष्टत्वाद यस्त्वाधायग्निशास्य नारद २.१७२ यस्त्वावसथे जुहुयात् कात्या २६.१७ बृ.गौ. १५.३८ वृ परा ४.१२ आंउ ८.२ वृ हा ८.१७४ अत्रिस ३२२ बृ.या. ७.६० वृ परा १२.२९६ का १६ वृ परा ७.२०० वृ हा ८.१६२ विष्णु म ३७ वृ.गौ. ९.१९ यस्त्वाश्रयं समाश्रित्य यस्त्वेकदेशं स य स्त्वेकपंक्त्या विषमं यस्त्वेतान्युक्लृप्तानि यस्त्वेनं प्रहरेत्कोपान् यः स्नात्वा पापसम्भीत यः स्नानमाचरेन्नित्यं यस्माच्च दुर्हुतान् यस्माच्च नयति ह्यग्रां यस्माज्जातास्त्रयो वेदा यस्मात् तस्मात्तु विभ्रन्तं यस्मात्तु सर्वकृत्येषु यस्मात् त्रयोप्याश्रमिणे यस्मात्पशुत्वमिच्छन्ति यस्मात् पुरोहितो यस्मात्सत्रात पुन्नाम्नो यस्मादण्वपि भूतानां यस्मादग्रे स भूतानां यस्मादत्यम्लवचनं यस्मादन्नात् प्रजाः सर्व्वाः यस्माद वैदिकं धर्म यस्मादस्मिन् प्रवर्तते यस्मादुत्पत्तिरेतेषां यस्मादेषां सुरेन्द्राणां यस्माद्वा त्रायते दुःख यस्माद्वीजप्रभावेण यस्माद्वेदाध्ययनतो यस्माल्लोकहितायाद्य यस्मिंस्ते संस्रवाः पूर्वं यस्मिनृक्षे च आधानं यास्मिन् कर्मणि यास्तु यस्मिन् कर्मण्यस्य यस्मिन् कस्मिन् हि यस्मिन् कुम्भे प्रियं यस्मिन्गृहेतु चण्डाल स्मृति सन्दर्भ पु५ व १.३.२५ बृ.गौ. १४.३० मनु ८.३३३ बृ.या. १९.३० वृ परा ८.१५९ वृ परा २.११५ बृ.गौ. १५.१६ बृ.गौ. १५.१५ वृ हा ७.५४ विष्णु १.३७ बृ. गौ. १५.१४ मनु ३.७८ बृ.गौ. १५.७३ आश्व १०.४० वृ परा ६.१८४ मनु ६.४० बृ.गौ. १५.३ आंपू ५७६ संवर्त ८२ वृहा ८.१८५ बृ.गौ. १५.३० मनु ३.१९३ मनु ७.५ बृ.गौ. १५.४३ मनु १०.७२ कण्व २३५ वृ.गं . गौ. १०.३९ या १.२४८ ब्र. या. ८.३०० मनु ८.२०८ मनु ११.२३४ वृ हा ५.२३० शाण्डि ४.५० व २.६.५३८ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५१७ यस्न्तिस्य च विश्रांति व परा ३.२२ यस्य त्रिवार्षिकं वित्त कण्व ४४३ यस्मिन् देशे य आचारो या १.३४३ यस्य त्रैवार्षिकं भक्तं मनु ११.७ यस्मिन् देशे यदा काले वाधू १७५ यस्य त्वेक गृहेमूर्यो कात्या १५.८ यस्मिन् देशे वसेद्योगी दक्ष ७.४७ यस्य दत्ता भवेत् कन्या कात्या ६.१३ यस्मिन्देशेषु ये विप्रा ब्र.या. ८.१५० यस्य दृश्येत सप्ताहाद् मनु ८.१०८ यस्मिन्देशे स्थितो कण्व २१ यस्य देहे सदाश्नति व्यास ४.५४ यस्मिन्नग्नोपचेदन्नं ब्र.या. २.१३६ यस्य न द्विगुणं दानं पराशर ९.५४ यस्मिन्नब्दे द्वादशैकश्च कात्या १६.८ यस्य नाश्नाति वासार्थो व १.८.६ यस्मिन्नहनिप्रेतः स्यात्त ब्र.या. ७.८ यस्य नोपहता पुंस नारद २.१५० यस्मिन्नृणं सन्नयति मनु ९.१०७ यस्य पटे पट्टसूते नीलीरक्तो अत्रिस २ ४४ यस्मिन्मंत्रे तु ये देवा वृ परा २.४३ यस्य पादौ च हस्तौ शंख ८.१५ यस्मिन्मासि भवेदीक्षा वृ हा २.९५ यस्य पुत्राः सदाचाराः प्रजा ७८ यस्मिन्यस्मिन्कृते कार्ये मनु ८.२२८ यस्य पूर्वेषां षण्णां न व १.१७.३८ यस्मिन् यास्मिन् विवादे मनु ८.११७ यस्य पूर्वेषाँ षण्णां न व १.१७.७२ यस्मिन् राशि गते सूर्ये लिखित ३४ यस्य प्रदानकर्तृत्वं कपिल ४५९ यस्मिन स्यात्संशयो नारद २.१२० यस्य प्रसादे पद्या मनु ७.११ यस्मै कस्मै तद् दिवसे कपिल २४४ यस्य मंत्र न जानन्ति मनु ७.१ ४८ यस्मै दद्यात्पिता त्वेनां मन ५.१५१ यस्य मंत्राण्यवीर्याणिव परा ११.७५ यस्मैदित्सा द्विजायं वृ परा १०.२९३ यस्य मित्रप्रधानानि मनु ३.१३९ यस्य आस्येन सदा वृ.गौ. ३.७२ यस्य यत्र च दिग्भागे वृ परा ११.३६ यस्य उच्चारण मात्रेण व हा ३.१५८ यस्य यम्याधिकं दृष्ट्वा । शाण्डि ४.८५ यस्य कस्यचिदेकस्य कण्व २९८ यस्य यस्य च वर्णस्य शंख १७.१३ यस्य कस्यादि संप्रोक्त कपिल ७७० यस्य यस्य तु मन्त्रस्ट बृ.या. १.४१ यस्य कायगतं ब्रह्म मनु ११.९८ यस्य यस्यभवेद्दवास्थः ब्र.या. १०.१५९ यस्य कार्यशतं साग्रं कृतं अत्रि ३.१ यस्य यस्य यदा वृहस्पति २७ यस्य क्षयाय पादं तु विश्वा ४.३ यस्य यस्य यदा भूमि वृ.गौ. ६.१३५ यस्य क्षेत्रस्य यावन्ति व परा ५.१६१ यस्य यस्य हियो भाव बृ.गौ. १४.६५ यस्य चाण्डालिसंयोगो दा ९५ यस्य यादृग्विधो भाव विष्णु म १९ यस्य चाण्डालिसंयोगे लघुशंख ४६ यस्य राजज्ञस्तु विषये मनु ७.१३४ यस्य चैव गृहे मूर्यो व १.३.१० यस्य वाङ्मनसी शुद्धे मनु २.१६० यस्य चैव गृहे मूर्यो __ व्यास ४.३३ यस्य विद्वान् हि वदत मनु ८.९६ यस्य वैवाहुतिं दद्यात् वृ.या. १.१८ यस्य विप्रस्य तन्मादं ब्र.या. ७.४१ यस्य च्छेदक्षतं गात्र पराशर ३.४१ यस्य वेदश्रुनिष्टा । बृ.गौ. २१.१२ यस्यतत्सवितुपूर्व भार ६.३८ यस्य वै वैष्णवं नाम वृ हा २.९७ यस्य ते सनयर्तचीथ जल कपिल ३२१ यस्य शूदस्तु कुरुते मनु ८.२१ Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१८ स्मृति सन्दर्भ यस्य संवत्सरार्वाक् दा ३२ यस्सन्ध्यां कालतः प्राप्तां विश्वा १.३० यस्य संवत्सरादर्वाक्स लिखित २३ यास्तत्र चोरान् गृहणीयात् नारद १८.६५ यस्य संवत्सरादर्वाक् ब्र.या. ७.४ या अन्या देवताः काश्चित् वृ परा ५.१२ यस्य संवत्सरादाक् वृ परा ७.३ ४४ या आता एकवणे या १.२८० यस्य स्तेनः पुरे नास्ति मनु ८.३८६ या ओषधी सर्वोषधी ब्र.या. ८.१९३ यस्य स्मृत्या च आश्व २३.१०८ या करोति शिरःस्नानं लोहि ६५१ यस्याकाशमयं कौष्ठ बृह ९.१७ याकारस्तु शिरः प्रोक्तं वृ परा ४.९७ यस्याग्नावन्यहोमः कात्या १८.१८ या काश्चिदेवता श्राद्धे वृ परा ७.२७७ यस्माद् अद्भुतानि वृ परा ११.८९ या कौमारं भर्तार व १.१७.२० यस्यान्नं तस्यते पुत्रा अत्रिस ५.१२ यागं दानं च योगं च व्या १९८ यस्या म्रियेत कन्याया मनु ९.६९ या गर्तादौ विपद्येत वृ परा ८.१ ४५ यस्यां दिशि बलिं दद्यात् कात्या २८.६ या गर्भिणी संस्कियते बौधा २.२.२९ यस्याः शिरसि ब्रह्माऽऽस्ते व परा ५.११ या गर्मिणी संस्क्रियते मनु ९.१७३ यस्यास्ति भीति पुरुषस्य वृ परा ९.४२ यागस्थक्षत्रविड्याती या ३.२५० यस्यास्तु न भवेद् भ्राता मनु ३.११ यागस्थं क्षत्रियं हत्वा शंख १७.४ यस्यास्तु न भवेद् भ्राता लिखित ५३ याचकानां दरिदाणामपि कण्व ५८० यस्यास्ते कुम्भितागऽजलं वृ परा १२.२१९ याचकानं नवश्रद्धमपि आंगिरस ६५ यस्याः स्यात्कांक्षित लोहि ५९३ या च क्लीबं पतितं व १.१७.२१ यस्यास्येन सदाऽश्नति मनु १.९५ याचनेनापि वर्तेत दैन्यं । शाण्डि ३.२० यस्येदमायुधं नास्ति बृ.या. ७.१६० याचयेत् प्रथमां भिक्षा आश्व १०.३६ यस्यैतल्लक्षणं नास्ति दक्ष १.१४ या च सप्रधनैव स्त्री नारद २.१८ स्यैताः कपिला सन्ति वृ.गौ. १०.१८ याचिता तत्र या भिक्षा आश्व १०.३९ यस्यैतानि न कुर्वीत दा २६ याचितो यः तु वै वृ.गौ. ३.४८ यस्यैतानि न कुर्वीत लघुशंख १३ याचेद्दण्डप्रमाणेन शाता १.२४ यस्यैतानि न कुर्वीत शंख १६ या चैषा कपिला देया वृ.या. ९.२ यस्यैतानि सुगुप्तानि ल हा ३.११ याच्चिद्धित्यादिपंच भार ६.१३९ यस्यैते निखिलादिव्या लोहि ५७४ याच्यमानस्तु यो दात्रा नारद ३.४ यस्योचुः साक्षिणः या २.८१ याजकान्नं नवश्राद्ध आप ९.२२ यः स्वकर्म परित्यज्य दक्ष २.३ याजनं योनिसम्बन्धं औ ८.३ यः स्वधर्मपरोनित्यं औ ७.२३ याजनं योनिसंबंध देवल ३४ यः स्वधर्मे स्थितो राजा वृ परा १२.८७ याजनाध्ययने राज्ञो यः स्वयं नियतो भूत्वा औ ३.९५ याजनाध्यापनाधौनात् अत्रिस ३.८ यः स्वयं साधयेदर्थ मनु ८.५० याजनाध्यापनाधौनात् व १.२७.९ यः स्वाध्यामधीतगऽब्दं मनु २.१०७ याजनाध्यापने दाने वृ हा ६.३५ यः स्वामिनाऽननुज्ञातं मनु ८.१५० याजनाध्यापने नित्यं मनु १०.११० Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी याजनाध्यापनेन प्रतिग्रह कपिल ६५४ या नष्टा पालदोषेण नारद १२.३१ याजनेमानं द्वितीय कण्व ५१४ यानस्य चैव यातुश्च मनु ८.२९० याज्ञवस्तुनि मुष्ट्याञ्च कात्या १८.२४ यानानां ये च वोढारः औसं ६ यातयामानिच्छन्दांसि बृ.या. १.२९ या नारी द्विजः चैतानि वृ परा १०.२२९ याति यानेन दिव्येन वृ.गौ. ५.१०३ यानि कानि च पापानि अ ४८ या तु कन्यां प्रकुर्यात् मनु ८.३७० यानि कानीह पापानि ब्र.या. ९.१२ यातुधाना विलुम्पन्ति औ ५.५७ यानि चैवं प्रकाराणि मनु ८.२५१ या तु बद्धा चिकित्सार्थं वृ परा ८.१ ४९ यानि तेषामशेषाणां ते अ १४४ याते यानुर्यथामासं व २.६.४५४ यानि दक्षिणतस्तानि वौधा १.१.२० याते रुदेति चूडायां वृ परा ११.११२ यानि दानानिवार्ष्णेय वृ.गौ. ७.४ यात्किंचित्कुरुते व १.२९.१७ यानि देवोक्त कर्माणि भार २.९ यात्यचोरोपि चोरत्वं नारद १.३६ यानि पंचदशाद्यानि कात्या २४.१० यात्रामात्रप्रसिद्ध्य मनु ४.३ यानि यस्य पवित्राणि लघुशंख २३ यात्रायां षष्ठमाख्यातं औ ३.१३० यानि यस्य पवित्राणि व्यास ४.५३ यात्रीमात्रतः स्याद्धि यावच्चेद् कपिल २४ यानियुक्तान्यत पुत्र मनु ९.१ ४७ यात्वित्यनुवाकेन हृदये भार १३.१० यानियोग्यानिवस्तूनि भार १३.३२ या दत्ता श्रोत्रियेभ्यो वै वृ.गौ ९. ४७ यानि राजप्रदेयानि . मनु ७.११८ यादसामधिपो देवो शाता ५.१३ यानि श्राद्धानि कार्याणि वृ परा ७.३९२ या दिव्या आप पयसा ब्र.या. ४.७८ यानुपाश्रित्य तिष्ठन्ति मनु ९.३१६ या दिव्या इति मंत्रेण औ ५.३६ यानेन पूर्व बाला वा आंपू ४४७ या दिव्या इति मंत्रेण या १.२३१ यानैः ते यान्तिस्वर्णाभैः वृ.गौ. ५.८१ या दिव्या इति मंत्रेण वृ परा ७.१८७ यानः तु वाहनैः दिव्यैः वृ.गौ. ५.८९ या दिव्या इति मंत्रेण वृ परा ७.१८८ यान्ति ते धर्मनगरम् वृ.गौ. ५.१०६ या दुस्त्यजा दुर्मतिभिर्या व १.३०.११ यान्ति वैवस्वतपुरम् वृ.गौ. ५.११९ यादृग्गुणेन भ; स्त्री मनु ९.२२ यान् प्रासान् क्षुधितो शंखलि ८ यादृत्कादृगवस्थासु ब्र.या. ११.६८ यान्यधस्तरणान्तानि कात्या ९.८ यादृशं तूप्यते बीजं मनु ९.३६ यान्यपैतृकयो कूर्चः भार १८.१०० यादृशं फलमाप्नोति मनु ९.१६१ यान्याहतानि वस्त्राणि भार १४.६२ यादृशं भजते हि स्त्री __ मनु ९.९ यान्युक्तानि मया सम्यक् बृ.गौ. २१.१७ यादृशं धनिभि कार्या मनु ८.६१ याः पण्यनार्योतिसकाम वृ परा १०.२३२ यादृशेन तु भावेन मनु १२.८१ या पत्या वा परित्यक्ता मनु ९.१७५ यादृशोस्य भवेदात्मा मनु ४.२५४ या पत्युः क्रीता सत्यथान्य व १.१.३७ यानशय्याप्रदो भायाँ मनु ४.२३२ याः पाल्याशास्त्रतो रंडाः कपिल ६१८ यानशय्याप्रदो भाऱ्या वृ.गौ. ११.२७ या पितृगृहेसंस्कृता व १.१७.२३ यानशय्यासनान्यस्य मनु ४.२०२ यां बलेन सहसा व १.१:३४ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० स्मृति सन्दर्भ या ब्राह्मणी सुरापी न व १.२१.१३ यावतो बान्धवान् नारद २.१८५ या भर्तुर्व्यभिचारेण वृ परा ७.३६६ यावतो बान्धवान् मनु ८.९७ याभिस्ताभिभिन्नाभि कपिल ५९९ यावत्कर्मसमाप्तिस्तु भार ९.२२ यामतः कर्मयाज्ञाश्च भार ६.१६५ यावत्कलाश्चन्द्रस्य कण्व २७ यामद्वयं शयानोहि दक्ष २.५४ यावत् तिष्ठति सा भूमि व परा १०.१८७ यामद्वयं सार्धयामद्वयं आंपू २८७ यावत् त्रयस्ते जीवे मनु २.२३५ यामधीत्य प्रयाणे तु विष्णुम १४ यावत्रिवर्ष पतितोप्या नारा ३.६ याममध्ये न होतव्यं विश्वा ८.४१ यावत् पिता च माता औ १.३५ यामार्थयामघटिका कण्व ३० यावत्पैतृकधर्माः स्यु आंपू ७१२ यामिन्याः पश्चिमे व्यास ३.२ यावत्प्रकृतिसंप्राप्तिपर्यन्तं कपिल १२१ यामिन्यां योगकाले शाण्डि ५.१ यावत्यां वापिता नीली आप ६.१० यामीस्ता यातना प्राप्य मनु १२.२२ यावत् सकृदाददीत बौधा २.१.९३ या मृता सूतको नारी दा १५० यावत्सकृदाददीत व १.२ ४.३ यां दिशं तु गतः सोमस्तां आंउ ९.१६ यावत् सप्तपदी मध्य आश्व १५.६० याम्य पश्चिम सौम्येषु वृ परा ४.३० यावत्समाप्यतेयज्ञ व २.६.४२२ याम्या तिथिर्भवेत्सा आंपू ६६० यावत् सम्पूर्ण सींग पराशर ९.२१ यां यां योनि तु जीवोयं मनु १२.५३ यावत् सम्यग् न भाव्यन्ते कात्या ९.३ यां रात्रिमजनिष्ठास्त्वं नारद २.२०२ यावत्सारो भवेद्दीनस्त वृ.गौ. ११.९ यां रात्रिमधिविन्ना स्त्री नारद २.९८२ यावदर्थमुपादय कात्या १७.१९ या रोगिणी स्यात्तु हिता मनु ९.८२ यावदर्थसंभाषी स्त्रीभि बौधा १.२.२२ यावच्च कन्यामृतवः व १.१७.६३ यावदर्धप्रसूता गौस्तावत् अत्रिस ३३१ यावच्छस्यं विनश्येत ___या २.१६४ यावदस्थि मनुष्यस्य लिखित ७ यावज्जीवं जपेद्यस्तु वृ हा ३.२८० यावदस्थि मनुष्याणां लघु यम ९१ यावज्जीवं तु यो नित्यं । वृ हा ३.१४८ यावदस्थीनि गंगायां दा ११ यावज्जीवं भावना कण्व २४८ यावदस्थीनि गंगाया लघुशंख ७ यावज्जीवाख्य संकल्प कण्व ५५३ यावदायाति तत्पर्व प्रजा २४ यावतः कर्मणः कर्तु कण्व ३१० यावदुदंकं गृह्णीयात् बौधा १.४.१५ यावतः पिण्डान् खलु आंपू ७३९ यावदुष्णं भवत्यन्नं यम ३८ यावतः संस्पृशेदंगैः मनु ३.१७८ यावदुष्णं भवत्यन्नं मनु ३.२३७ यावता बहुमोक्तुस्तु कात्या १५.२ यावदुष्णं भवत्यन्नं व १.११.२९ यावता होमनिर्वृत्ति कात्या २६.४ यावदुष्णम्मेवेदन्नं ब्र.या. ४.९६ यावतो ग्रसतेग्रासान् अत्रिस ३५५ यावदुष्णं भवेदन्नं बृ.गौ. ३.२७ यावतो ग्रसते ग्रासान् बृ.य. ३.२९ यावदेकः पृथक् द्रव्यः यम १३ यावतो ग्रसते ग्रासान् मनु ३.१३३ यावदेकः पृथग्भाव्यः वृ.य. २.८ यावतो ग्रसते ग्रासान् यम ४० यावदेकानुदिष्टस्य गंधो. मनु ४.१११ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५२१ याद गोपालने पुण्यमुक्तं वृ परा ५.४६ यावानबध्यस्य बधे मनु ९.२४९ यावद्ग्रामस्यमध्ये तु व २.६.४५६ यावानर्थ उदपाने यावद्देवान् ऋषिश्चैव बृ.या. ७.४० यावनवध्यस्य वधे नारद १८.९८ यावद्दिमतरमालिंग्य व २.५.७० या वा स्याद् वीरसूरा कात्या १९.४ यावद्वत्समुंख योनौ ब्र.या. ११.२३ या वेदबाह्य तु यत् बृह १२.२२ यावद् वत्सस्य पादौ या १.२०७ या वेदवाह्या श्रुतयो मनु १२.९५ यावद्वा कृष्णमृगो व १.१.१२ या वेदविहिता हिंसा मनु ५.४४ यावद्विप्रा न पूज्यन्ते यम ४३ याश्च षडित्योषधयः वृ हा ६.८ यावद्विभर्ति लोकान्वै वृ.गौ. ६.९३ याश्चैतः कपिलाः प्रोक्ता वृ.गौ. १०.३ यावन्तः पतिता विप्रा वृ.गौ. १०.७१ या संख्या पक्वपाकस्य दा ८२ यावन्तः प्रवरास्तस्य आश्व ९.१७ या सत्रा मुपकाराय भवे शाण्डि १.७२ यावन्तश्चर्तवस्तस्याः नारद १३.२६ या सन्ध्या सा जगत ल व्यास १.२५ यावन्ति खादन्ति फलानि वृ परा १०.३८१ या संध्या सा तु गायत्री बृ.या.६.१० यावन्ति चैव रोमाणि वृ.गौ. ६.१३९ या संध्योपास्तिविच्छंति भार ६.१७७ यावन्ति तस्य पत्राणि वृ.गौ. ७.४१ यासां नाददते शुल्कं मनु ३.५४ यावन्ति तस्य विप्रस्य भार १७.३१ यासायत्रिचरणा सात्रि भार ६.१५३ यावन्ति तेषां रोमाणि वृ.गौ, ९.६२ मासृम्पतितादिभ्य व २.६.१२५ यावन्ति धेन्वा रोमाणि वृ.गौ. १०.७ यास्तासां, स्युर्दुहित मनु ९.१९३ यावन्ति पशुरामाणि __ मनु ५.३८ या स्त्रीमृतं परिष्वज्य वृ हा ८.१९९ यावन्ति पापानि भवन्ति वृ परा ९.४० या स्यादनित्यच्चारण व १.१२.२२ यावन्ति रोमाणि भवन्ति वृ.गौ. ९.८० यास्याम परमां प्रीति वृ.गौ. ७.५९ यावन्ति शस्यमूल्यानि संवर्त ७५ या हृष्टमनसा नित्यं दक्ष ४.१३ यावन्तो अंगुलिभि वृ परा ११.६९ यी हशानदिग्दले पश्चात् भाग ११.४४ यावन्तोस्यां पृथिव्यां बृ.या, ६.९ यी हशानदिशिपीठस्य भार ११.३४ यावन्तोस्यां पृथिव्यां वाधू ११३ युक्त स्वाध्याये व १.८.११ याक्त्तो नियमाः प्रोक्ता भार ५.१८ युक्तं रूपं ब्रुवन्सम्यो नारद १.६७ यावन्त्यश्वष्टकास्तत्र वृ परा १०.३६८ युक्तत्वेनैककण्ठयाच्चेत लोहि २४ यावन्त्य विन्दते जायां व्यास २.१४ युक्तत्वनैव गृहन्ति लोहि ५१६ यावन्नापैत्यमेध्याक्ताद् मनु ५.१२६ युक्तिष्वप्यसमर्थासु नारद २.२१५ यावन्नृक्षाणि तिष्ठन्ति बृ.गौ. १९.२२ युक्ष कुर्वन दिनःषु मनु ३.२७७ यावन्मंत्रा यथोपास्तिरूप वृ परा २.१० युश्वाहीत्यनुनवाकश्च कण्व ५३८ यावन्मनुष्यः पृथिवीं वृ.गौ. ९.७६ युगकोटि सहस्राणि वृहा ६.१५७ यावन् मात्र शरीरं हि वृ.गौ. १.६८ युगक्रन्तिमनुश्राद्ध प्रेतं आंपू ६९० यावपेदोदनाद तु चायता व २.५.८ युगधर्मेण वर्णनां प्रजा ५२ या वसेन कक्षा कंटक कपिल १६७ युगपत्तु प्रलीयन्ते मनु १.५४ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ स्मृति सन्दर्भ युगं युगद्वयञ्चैव पराशर १२,४७ यूषात्वेतानिमंत्रणयान् व २.४.७२ युगाग्निर्युगभूतानि ब्र.या. ९.५ ये कार्यिकम्योर्थमेव मनु ७.१२४ युगादिषु च कर्तव्यं वृ परा ७.३ येन केनाप्युपायेन पल्या कपिल १६५ युगाद्यानां तथा पश्चान् लोहि ३४२ येन क्रान्तास्त्रयो लोका विष्णुम ४१ युगानुरुपतोयस्तु वृ परा ७.२५ ये क्षान्तदान्ताश्च वृ.गौ. ६.१७९ युगाब्दमासर्तुपक्ष कण्व ३८ येक्षेत्रिणो बीजवन्त मनु ९.४९ युगे युगे च ये धर्मास्तेषु पराशर ११.४८ ये खाण्ड मांस मधु वृ परा ७.३९८ युगे युगे च ये धर्मास्तत्र पराशर १.३३ येग्नयो दिविचेत्येतत् वृ परा २.१२८ युगे युगे च ये धर्मा व्या १२ ये च क्षीरं प्रयच्छन्ति वृ.गौ. ५.७३ युगे युगे च सामर्थ्य पराशर १.३४ ये च दानपरा सम्यग् या ३.१८५ युगेयुगे च सामर्थ्य व्या ११ ये च निन्दन्ति माम् वृ.गौ. ३.३० युगे युगेषु यो प्रोक्ता वृ परा १.४ ये च पापकृतो लोके ये अत्रिसं ६ युग्मानेव स्वस्ति कात्या ४.१० ये च पापकृतोलोके व्या ७ युग्मान् दैवे यथाशक्ति या १.२२७ ये च प्रव्रजिता विप्राः अत्रिस २१२ युग्मारात्रिषु कृतस्नाना ब्र.या. ८.२९० ये च मांन प्रपद्यन्ते वृ.गौ. ३.२९ युग्मासु पुत्रा जायन्ते मनु ३.४८ ये च मां सर्व रक्तत्वे वृ.गौ. १.४२ युज्यते मुनिभि सम्यक् वृ हा ३.९६ ये च मार्गोपदेष्टार वृ.गौ, १०.१०५ युतं तन्त्रं जपस्थाने विश्वा ६.८ ये च मास उपवासम् वृ.गौ. ५.११० युद्धलब्धा महीशस्य वृ हा ४.२२० ये च विप्रा निरीक्षन्ते वृ.गौ. ४.४६ युद्धे हत्वा बलात् वृ परा ६.१० ये च वेदश्रुतिकेचित् बृ.गौ. १५.९८ युधिष्ठिरोपि धर्मात्मा बृ.गौ. २२.४५ ये च स्युः संस्थिताः . .गौ. ४.२० युध्यन्ते भूभृतो ये च वृ परा १२.५३ ये चात्र विवदेरन् औ ५.२३ युवं वस्त्राणीति ऋचा व परा ८.३३ ये चेह ब्राह्मणाः कार्या व परा ११.२४३ युवानं पुंडरीकाक्षं वृ हा ५.२०१ ये चेहेति च वै मंत्र आश्व २३.५९ युवानं पुण्डरीकाक्षं वृ हा ५.२८६ ये चैतेषु पठंत्यज्ञा वृ परा ६.३६८ युवानीरु तथा भिक्षुः वृ परा १२.१३९ ये चैलधावाश्च वृ परा ६.२८२ युवा भद्रः सुशीलश्च वृ.गौ. ७.७ ये चैव पाद्ग्राहा . व १.१३.१४ युवा वग्रहमनुष्याणां व २.४.८० ये तत्र नोपसर्पन्ति सृताः नारद १८.६३ युवा सुवासेति ऋचा वृ हा ८.३२ ये तत्र नोपसयुमल मनु ९.२६९ युष्मत्साम्यं तत्परं कण्व ७२५ ये ताडयन्ति कार्मेषु वृ.गौ. १०.९४ युष्याकं श्राद्धयोग्य आंसू ५८० ये तां दत्वा तु यो भुंक्ते अत्रि ५.५२ युष्माकं सम्प्रवक्ष्यामि वृ परा ५.२ ये तासां प्रीतिमायान्ति वृ.गौ. १०.१९ युष्माभिन समाोते कण्व ७२६ ये तिलान् तिलयेत एव वृ.गौ. ४.७८ युष्मदीयान् परान् धर्मान् वृ.गौ. १.२६ ये तु तासु सदा ध्यात्दा वृ.गौ. २.१६ यूयमधप्रभृति वै समुदे नारा ७.८ ये तु त्वां धारयिष्यंति विष्णु १.६६ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२३ ہم رہ رہ श्लोकानुक्रमणी ये तु नित्यं प्रभाषन्ते वृ.गौ. ५.६७ येन यांस्तु गुणेनैषां मनु १२.३९ ये तु वै हेतुकं वाक्यं वृ हा ५.२७ येन येन तु भावेन मनु ४.२३४ ये तु सम्यस्थिता आंउ ६.१६ येन येन तु वर्णेन लघुयम ८५ ये तु स्नानार्थिस्तीर्थ वृ परा २.१०२ येन येन यथाङ्गेन नारद १८.९२ ये ते अपि सागरान्तयाम् वृ.गौ. ४.४० येन येन यथांगेन मनु ८.३३४ ये ते चाग्रासने स्थातुं बृ.गौ. १४.१३ ये नरा भर्तृ पिण्डार्थ औ १.४२ ये ते चान्ये च बहवः वृ.गौ. १.१० ये नरास्तेन वै यांति वृ परा १०.१०१ ये तोषयन्ति निरतं शाण्डि ४.५४ येन व्यावर्तते वायुः वृ परा १२.२१३ ये त्वां दृष्ट्वा नमस्यन्ति वृ.गौ. १०.४० येनांगेनावरो वर्णो नारद १६.२३ ये दन्तकाष्ठादीन लब्ध्वा औ ३.१० येनावपदिति प्रथम व २.३.३१ ये दहन्ति द्विजास्तन्तु पराशर ५.२४ येनास्मिन्कर्मणा लोके मनु १२.३६ ये दाम्भिका ये च वृ परा ६.२७९ येनास्य पितरो याता मनु ४.१७८ ये देवलनपराः संत्यक्त कपिल ३७७ ये नित्या भक्तिकाः बौधा २.३.२० ये देवलोकं पितृलोकमापुः वृ परा ७.२६६ ये नियुक्तास्तु कार्येषु मनु ९.२३१ ये देवास इमं मंत्र आश्व २३.५७ ये नृशंसा दुरात्मान विष्णु म १०१ ये द्विजानामपसदा ये मनु १०.४६ येनेकरूपाश्चाधस्ताद् या ३.१६९ ये धर्ममेव प्रथमञ्चरन्ति बृ.गौ. १४.३३ येनेन्द्राय सुमन्त्रेण ब्र.या. ८.१२ ये धर्मशास्त्रे विहिताश्च वृ परा ६.३७९ ये नैवविद्या न तपो न बृ.गौ. १४.३ ४ ये धीतवेदाः क्रियया वृ परा ६.२१० ये पठन्ति द्विजा वेदं पराशर ८.२८ येन केन चिदंगेन मनु ८.२७९ ये पठन्ति द्विजा वेदं वाधू १७८ येन केनचिदज्ञाता गर्भ लोहि १७२ ये पाकयज्ञाश्चत्वारो बृह १०.१३ येन केनचिदुच्छिष्टो आप ४.१३ ये पाकयज्ञाश्चत्वारो मनु २.८६ येन केन प्रकारेण लोहि ३८७ ये पाकयज्ञाश्चात्वारो व १.२६.११ येन केनापि वात्युक्तं आंपू ६२९ ये पाचयन्ति धरणीं शाण्डि ४.८७ येन केनाप्युपायेन आंपू ५५३ यो प्रतिग्रहिणः पूर्वं साक्षात् कपिल ४७७ येन केनाप्युपायेन कपिल७४५ ये प्रत्यवसिता विप्रा आप ९.७ येन गच्छन्ति विद्वांसः बृह १२.४३ ये प्रयच्छन्ति ते यान्ति वृ.गौ. ५.९० येन चैवां स्वयं उत्पादितं व १.१७.४५ ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्यः वृ.गौ. ५.९७ येन जानन्ति ते यांति वृ परा १२.३३६ ये प्रयच्छन्ति विप्रेभ्य वृ.गौ. ७.७९ येन दानस्य दत्तस्य वृ.गौ. ७.२९ ये ब्रह्मस्वं हरन्ति इह वृ.गौ. ५.४९ येन देवादि मन्त्रेण व २.२.२३ ये भुजते समीपस्था शाण्डि ४.१५० येना देवा पवित्रेति वृ.या. ७.१४ ये भूता विघ्नकर्तारस्ते विश्वा ६.५ येन भूरिश्चाणान्छद्यात् ब्र.या.८.३५३ येभ्यो वापि पिता बृ.या. ७.८० येम यत् क्रियते कर्म बृ.या. १.२४ ये मे कुले लुप्तपिंडा वृ परा २.२११ येन यदृषिणां दृष्टं वृ परा २.४४ ये यच्छन्ति दयादानं वृ परा १०.२ ४८ Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ स्मृति सन्दर्भ ये यत्र विहिताः श्राद्धे ब्र.या. ६.१५ ये सोम शस्त्रास्त्र वृ परा ६.२८० येयमूढ़ा धर्महेतोर्धर्म आंपू ४५१ ये स्पृशन्तस्तु खान्यद्भि वृ परा ७.१७३ येयंपूर्व बलि प्रोक्ता कण्व ३७८ ये स्पेनपतितक्लीवा मनु ३.१५० ये युक्तयोगास्तपसि बृ.गौ. १४.३२ ये स्वाध्यायमधीयोरन् वृ परा ६.३७२ ये ये जन्मस्वनेकेषु वृ परा १२.३ ४५ ये हरन्ति इह वस्त्राणि वृ.गौ. ५.४६ ये राष्ट्राधिकृता स्तेषां या १.३३८ यैः कर्मभि प्रचरितैः मनु १०.१०० ये वकब्रतिनो विप्रा मनु ४.१९७ यैः कृतः सर्वभक्षोग्नि मनु ९.३१४ ये वर्णाश्रमधर्मस्थास्ते लहारी १.१ यैः यैः नृपैः कृतं पूर्व वृ परा ११.२९९ येवासुदेव नार्चन्ति व २.१.१३ यैभुक्तं तत्र पक्वान्नं आप ३.३ ये वृत्ताः प्रथमदिवसे आंपू ६९६ यै युरूपायैरर्थं स्वं मनु ८.४८ ये व्यपेताः स्वधर्मेभ्य अत्रिस १७ यैश्चकैश्चिदृदृष्टमात्रै पू १०५५ ये शान्तदान्ताः श्रुति व १.६.२१ यो अर्थिने तृण काष्ठानि वृ परा १०.२३० ये शूदादधिगम्यार्थ मनु ११.४२ योऽकामां दूषयेत्कन्यां मनु ८.३६४ येषान्तटाकानि समाः वृ.गौ. ११.३६ योकारौ द्वौ धूम्रनीलौ व परा ४.९२ येषान्त पचते माताये बृ.या. ४.१०७ योकत्रदामकडोरैश्च पराशर ९.७ येषामेव पिता दद्यात्ते आंपू ७२२ योक्त्रं विमुच्य तां आंपू ८० येषां ज्येष्ठः कनिष्ठो मनु ९.२११ योकत्रेच गृहदाह वृ हा ६.३३० येषां च न कृताः पित्रा नारद १४.३३ योक्त्रेषु पादहीन पराशर ९.५ येषां तु यादृशं कर्म मनु १.४२ योगक्षेमार्थवृद्धिञ्च वृ हा ४.१ ४२ येषां द्विजानां गायत्री बृ.या. ८.९८ योगकर्म विधानम् विष्णु ६३ येषां द्विजानां सावित्री मनु ११.१९२ योगधर्मैकनिरतो ब्रह्मा शाण्डि ४.२१६ येषां द्विधा क्रिया लोके नारद १४.४० योगं कुर्यात्समाधाय शाण्डि ४.२०० येषां न माता न पिता बृ.या. ४.१२० योगंतदिष्ट्यने स्वर्गास ब्र.या. ११.११ येषां नोद्वहसंस्कारा वृ परा ७.७९ योगशास्त्रं प्रवक्ष्यामि ल हा ७.२ येषां वाप्यःश्चतुः वृ.गौ. ५.८० योगशास्त्रेषु यत्प्रोक्तं वृ परा १२.३०५ येषां व्रतानामन्तेषु कात्या २७.१५ योगस्तपो दमो दानं व १.६.२० येषु केषु च पापेषु वृ हा ४.२०१ योगस्थैर्लोचनैर्युक्त अत्रिस ३५२ येषु देशेषु यच्छक्यं ___ भार ५.४२ योगाचार्येण संचिन्त्य बृ.या. २.१५८ येषु येषु हि भावेषु वृ.गौ. ८.११३ योगात्सम्प्राप्यते ज्ञानं अत्रि १.१२ येषु श्राद्धेषु भुजीत बृ.या. ७.५१ योगात् संप्राप्यते व १.२५.८ ये सपिण्डीकृताः प्रेता औ ७.१८ योगाधमनविक्रीतं मनु ८.१६५ ये समाना इति द्वाभायं या १.२५४ योगाभ्यासबलेनैव ल हा ७.३ ये समाना इति द्वाभ्यां वृ परा ७.१३८ योगाभ्यास रतो नित्यं वृ परा १२.१०६ ये सिध्यन्ति च साङ्खयेन वृ.गौ. ८.१०३ योगामपालयत् दुह्यादति व परा ८.१ ४७ ये सोमपाननिरता __ औ ४.३ योगां पयश्विनी वृ परा ५.४३ Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५२५ योगावासः नमस्तुभ्यं विष्णु म ४२ यो ददाति द्विज श्रेष्ठं वृ परा १०.२३५ योगाश्रम परिश्रान्तं दक्ष ७.४६ यो ददाति वलीवई युक्तेन संवर्त ७९ योगिनामपि दिव्यानो कण्व १८९ यो ददाति स्वर्णरौप्यैः संवर्त ७७ योगिनामप्यशक्यं कण्व २५१ यो दद्यादवलिक्लेश शंखलि ५ योगिनांवर मत्स्वामिन् नार. ४.१ यो दद्यादिममध्यावं भार ६.१७४ योगिनो विविधै रूपैः वृ पर। ४.२०० यो दद्याद् दुर्लमानां च तृ परा १०.२२२ योगी व्रती पुत्रवान् स्याद् कपिल ६६९ ।। यो दद्याद् भक्तितो वृ परा १०.२१६ योगीश्वरं याज्ञवल्क्यं या १.१ यो दद्याद् विधिवत् वृ परा १०.१६९ योगीस्थ इदं श्रुत्वा ब्र.या. ८.१९० यो दद्याद्वेषवान् भोगी व पर। १०.२२० योगीगृह्यश्रममास्थाय दक्ष १.९ यो दद्यान् मधुरां वाचं वृ परा १०.२ ४६ योऽगृहीत्वा विवाहाग्नि अत्रस २५३ यो दहेदग्निहोत्रेण कात्या २०.११ यो गृह्णति कुरुक्षेत्रे वृ परा ६.२३० यो दातुं न विजानाति देवल ५७ योगेनं ध्यानमार्गेणं भार १३.३६ योद्यादृच्छिष्टमाज्य वृ परा ८.१८० यो गोभक्तिकरा नित्यं वृ परा ५.३४ यो द्रव्य देवता त्याग या ३.१२१ योग्निदेववीतये कुचित् व २.४.१०२ योधीतेहन्यमाने औ ३.५३ योग्नीपविध्येत् व १.२१.३० योधीतेहन्यहन्येतां मनु २.८२ योग्नीपविध्येद् गुरु व १.१.२३ योधीत्य विधिवद् औ ३.८२ योग्यानध्यापयोच्छिष्यान ल हा १.२१ यो धर्मः कर्म यच्चैषां नारद ११.३ योग्यान्मन्त्रानुच्चरेच्च __ कण्व ६११ यो न चेत्यभिवादस्य औ १.२१ यो ग्रामदेश संघाना मनु ८.२१९ यो न तिष्ठति नो याति वृ परा १२.२९४ योजनं तु हलस्याथ व परा ५.७७ योन दधद् द्विजातिभ्यो पराशर २.१३ यो जपेत् पावनी देवीम् वृ.गौ. ४.१९ योनधीत्य द्विजो बृह १२.२४ यो जपेद्वजसंज्ञात्वा भार ६.१५१ योनधीत्य द्विजो मनु २.१६८ योजयेच्छ्राद्धदानेन ब्र.या. ४.३८ योनधीत्य द्विजो व १.३.३ योजयेत्तु भवेदेव कण्व ७६६ योनधीत्य द्विजो व्या १५ योजयेत्तेन विधिना लोहि ३४ यो नरः प्रीणमत्यनैस्तस्य वृ.गौ. १२.३६ येजयेत्समिताद्यैस्तु लोहि ३५ योनरः स्नातितत्तीर्थ अत्रिस ५.७४ यो ज्येष्ठो ज्येष्ठवृत्ति मनु ९.११० योनचिषि जुहोत्यग्नौ कात्या ९.१२ यो ज्येष्ठो विनिकुर्वीत मनु ९.२१३ योन वेत्यीभवादस्य मनु २.१२६ यो ज्ञात्वा तु विधिं वृ परा ६.१२४ योनः सपनेति ऋचा वृ हा ८.६९ योतिथिं पूजयेद् वृ परा ४.२१० यो न हिंस्यादहं वृहस्पति ३५ यो दण्ड्यान् दण्डयेद् . या १.३५९ यो नाश्नाति द्विजो औ ५.६६ योदत्तादायिनो हस्ता मनु ८.३ ४० योनाहिताग्नि शतगुर मनु ११.१४ यो दत्वा सर्वभूतेभ्यः मनु ६.३९ योनिक्षेपं नार्पयति मनु ८.१९१ यो ददात्यर्थितोविप्रो संवर्त ९५ योनिक्षेपं याच्यमानो मनु ८.१८१ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२६ स्मृति सन्दर्भ योनिवकाद्वयोपेतं वृ परा ११.२७४ यो यदैषां गुणो देहे मनु १२.२५ यो निवेदयते मोहाद्देवाय आंपू २ ४२ यो यस्य धो वर्णस्य मनु ३.२२ योनिषु च गुर्वी सखी व १.२०.१८ यो यस्य प्रतिभूस्तिष्ठेद् मनु ८.१५८ योनिसंकरसंकीर्णा व्यास ४.७० योय स्यभिहितो धर्मः ल हा ७.१७ योनौ श्रियः श्री परमस्तेन वृ हा ३.१०७ यो यस्यहरते भूमि वृ परा ८.२६८ योन्नं वादधुषिकस्याद् वृ परा ६.२८७ यो यस्यैषां विवाहानां मनु ३.३६ योन्यतः कुरुते यत्नं व्यास १.२९ यो यस्यविहितो धर्म व्या ३० योन्यत्र कुरुते यत्नं औ ३.८० यो यावत् कुरुते या २.१९९ योन्यथा संतमात्मान् मनु ४.२५५ यो यावन्निनुवीतार्थ मनु ८.५९ योपचस्य कदर्यस्य वृ परा ६.१८६ यो येन पतितेनैव लिखित ७४ योप्यन्तिके दवीयांश्च वृ परा १२.२९५ यो येन पतितेनैषां मनु ११.१८२ यो बन्धनवधक्लेशान मनु ५.४६ यो येन सम्वसेत्तेषां वृ हा ६.२११ यो ब्रह्मचर्य व्रतचारिभेदो वृ परा १२.१७४ यो यो वर्णोपहीयेत यो नारद १८.६ यो ब्रह्मचारी विधिना ल हा ३.१५ योरक्षन्बलिमादत्ते मनु ८.३०७ यो ब्रह्मचारी स्त्रियमुपेयात् बौधा २.१.३५ यो रथं हयसंयुक्तं व परा १०.१५१ यो ब्रह्मघाती गुरुदारगामीवृ परा ११.२९५ योरयीत्यनुवाकेन व हा ५.३८२ ये ब्रह्ममेधानध्यायी कण्व ३९१ यो राज्ञः प्रतिगृह्णाति मनु ४.८७ योभार्यः सम्बलं चेतः प्रजा ७५ यो राज्ञः प्रतिगृह्मैव वाधू १६३ योभियुक्तः परेतः या २.२९ यो रुप्यं उत्तमं दद्याद् वृ परा १०.२१४ यो मुङ्क्ते अन्यथा वृ.गौ. १६.४१ योचितं प्रतिगृह्णाति मनु ४.२३५ यो भुङ्क्तेनुपनीतेन यो बृ.गौ. १६.४० योर्थं श्रावयितव्य स्यात् नारद २.१ ४१ यो मुंक्ते हि च शूदान्नं अंगिरस ४८ योलक्षकोटिंविदधाति वृ परा ११.२९४ यो मुजानोशुचिर्वापि लघुयम २ यो लक्षहोमं यदि वृ परा ११.३४६ यो भ्रातरं पितृसमं औ १.४० यो लोभादधमो जात्या मनु १०.९६ यो मन्येताजितोस्मीति कपिल ८२३ योलोमादसवर्णानामाध प्रजा ९१ यो मन्येताजितोस्मीति या २.३०९ योवमन्येत् ते तूमे बृह १२.२९ यो मामदत्वा पितृदेवताभ्यो बौधा २.३.२२ योवमन्येत ते मूले मनु २.११ यो मूल् विशादाचार ६.२२३ यो वर्जयेदनध्यायान् वृ परा ६.३६७ यो मोहादथवालस्या वाधू २२२ यो वः शिवतमोरसस्तस्मा ब्र.या.८.१११ यो यजेत तैर्वृथा पूजा भार १४.२६ यो वा प्रथममुपगतः बौधा २.३.१६ यो यज्ञे वर्तमाने तु वृ परा ६.५ यो वित्त प्रतिगृहणीते वृ.गौ. ११.२९ यो यत्तु वैष्णवं लिंग वृ हा ५.२८ यो विप्रो धनलोभेन नारा १.३९ यो यत्र यत्र वा रेतः वृ. गौ. ४.११ यो विष्णुशेवमात्मानमन्यशेष व २.१.१० यो यत्रावाहिता श्राद्धे ब.या. ४.७३ यो वैश्यः स्याद् बहु मनु ११.१२ यो यथा निक्षिपेद्धस्ते मनु ८.१८० यो वै समाचरेद् विप्रः पराशर ४.७ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२७ श्लोकानुक्रमणी यो वै स्तेनः सुरापो व १.२७.१९ रक्तपुष्पैस्तथादुर्गा ब्र.या. १०.४७ योषा गर्भ विधत्ते या देवल ४८ रक्तवस्त्रप्रवालादि शाता ४.२७ 'योषितामुक्त शौचा) भार ३.१८ रक्तवस्त्रस्य विक्रेता बृ.य. ३.५२ योषितो नित्यकर्मोक्तं व्यास २.३७ रक्ता भवति गायत्री बृ.या. ६.१८ योषित्सर्वा जलौकेव दक्ष४.९ रक्तारविन्दसदृश वृ हा ३.२१ योन संवसत्येषां या ३.२१० रक्तेन्दीवरवर्णाभं व परा १२.२३२ योसत्प्रतिग्रहग्राही वृ परा ७.१० रक्तैश्च करवीरेश्व वृ हा ५.५२० यो सा उपांशुरित्युक्तं भार ६.२२ रक्तोदकं तत्रवत्स अ १२३ योसाधुम्योर्थमादाय मनु ११.१९ रक्तो वा यदि वा शुक्लः वृ परा ६.१९८ योसावतीन्द्रिग्राह्य मनु १.७ रक्षणादार्यवृत्तानां मनु ९.२५३ योसावादित्ये पुरुषः बृह ९.६० रक्षणधर्मेण भूतानि मनु ८.३०६ योसौ विस्तरशः प्रोक्तः बृ.या. ७.१६८ रक्षयेद्वारिणात्मानं कात्या ११.४ योस्मान् द्वेष्ट्रीत्युदाहृत्य वाधू ७९ रक्षाधिकारीदीशत्वाद् नारद १८.२१ योस्यात्मनः कारयिता मनु १२.१२ रक्षा च भस्मना वृ परा ५.१७१ योहंमन्यो द्विजाग्रयांस्तु वृ परा ७.६६ रक्षार्थ दक्षिणे हस्ते आश्व १५.३१ योहिंसकानि भूतानि मनु ५.४५ रक्षिता जीवलोकस्य वृ हा ३.६८ योहि तद् विधिना औ ५.८४ रक्षेत कन्यां पिता या १.८५ यो हितः सर्वसत्वेषु वृ परा ४.१५२ रक्षेदेवं स्वदेहादि पराशर ७.४५ योहि दद्यादनड्वाही द्वौ वृ.गौ. ७.१० रक्षोघ्नानि पवित्राणि आंपू ५४० यो हि यां देवतामिच्छे आंउ १२.१५ रक्षोनिरसनादन्यदचनं कण्व २४५ योहि वासयति दिवां औ १.३३ रक्षोभ्यो देवताभ्यश्च ब्र.या. ८.८७ योहि विष्णु परित्यज्य व हा ५.१९ रक्ष्यमाणोपि यत्राधि नारद २.१०८ योनाय सर्व विदधाति वृ परा १२.९५ रग्नि मावं जलंत्यक्त्वा व २.६.१४ यो ह्यग्नि सद्विजो लिखित ३० रंगवल्ल्यादिभि वृ हा ८.८९ यो हाविद्वान् समश्नाति बृह ९.१ ४९ रं गुह्ये हं तु जान्वीश्च व हा ३.३९१ यो यस्य धर्मामाचष्टे मनु ४.८१ रगोपजीवने दत्तम् वृ.गौ. ३.२२ रजकव्याधशैलूष आप ९.३१ रजकव्याध शैलूष आप १०.१२ रकार ऐश्वर्य वीजं वृ हा ३.२४२ रजकव्याधशैलूष या ३.२६० रक्तः कश्यपजो भानुः वृ परा १.३८ रजकश्चर्मकारश्च आंगिरस ३ रक्तचन्दनलिप्तांग शाता २.१४ रजकश्चर्मकारश्च यम ५४ रक्तचन्दन हरिदा ब्र.या. ३.५८ रजकश्चर्मकारश्च रक्तं निः सार्य विप्रस्य लघुयम ३३ वृ परा ८.२६७ रजकाक्तै श्वश्रुनकेरम व २.६.५१५ रक्तपद्यरुणा देवी वृ परा २.१४ रजकादि संस्पर्श वृ परा ८.२३६ रक्तपादांस्तथा जग्ध्वा औ ९.२९ रजकाधन्त्यजैः स्पृष्ट वृ परा ८.२६० रक्त पुष्पाणि मजुदर्भा ब्र.या. २.११३ Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ स्मृति सन्दर्भ रजकाद्यवुपानेन वृ परा ८..२१७ रजस्वला यदा स्पृष्टा लिखित ८७ रजकी चर्मकारी च पराशर ६.४१ रजस्वला यदि साता ___दा १४८ रजकी बुरुड़ी ज्याधी वृ हा ६.३०४ रजस्वलां स्पृशेधस्तु वृ.य. ३.५० रजक्याद्यभिगम्यो दृ परा ८..३२२ रजस्वलायां प्रेताया दा १४९ रजतादि समप्रख्रं वृ हा ३.३३४ रजस्वलायां भार्गाम व्या २४५ रजता शुध्यते नारी __ अत्रि ५.३८. रजस्वलायां मार्या व्या ३५६ रजः पश्यति या नारी बृ.य. ३.५७ रजस्वलायाः संस्पर्श आप ७.१४ रजसः परतस्सा तु यातुको विश्वा ८.६० रजस्वला सूतिका वा वृ हा ६.३६२ रजसा तमसा चैव या ३.१ ४० रजस्वले यदा नार्यावन्यो लघयम १३ रजसाभिप्लुतां नारी मनु ४.४१ रजोगुणपरीतात्मा जायते नारा ५.१८ रजसा शुध्यते नारी पराशर ७.४ रजोदर्शनतो याः स्यू व्यास २.४२ रजसा शुध्यते नारी आंगिरस ४२ रजोनीहारधूमाभ्र कात्या ९.४ रजसा शुध्यते नारी व १.३.५४ रजोवृष्टौ च यानादौ वृ परा ६.३६६ रजसोप्यश्नुते घोरं लोहि ४३८ रज्जुग्रंथिमधः कृत्वा आश्व २.२५ रजस्तमो मोहजातान् वाधू ११९ रज्ज्वेध्मं सकृदावेष्ट्य आश्व २.२४ रजस्वलाञ्च योगच्छेद् संवर्त १६३ रणार्जितेन क्तेिन वृ परा १२.५६ रजस्वला तत्पतिश्च कन्यको कपिल ७६३ रंडाकृतं भूमिदानं यत्त कपिल ६४२ रजस्वला तदा तस्यै आंपू ८६ रंडानां सततं धर्म कपिल ५७० रजस्वला तु या नारी वृ हा ६.३६७ रण्डापाकं महापापं विश्वा ८.६४ रजस्वला तु संस्पृष्टा आप ७.११ रण्डापाकं विषं दूरं विश्वा ८.६५ रजस्वला तु संस्पृष्टा लघुयम १२ रण्डापाकेन यो मोहदेव । कपिल ५३७ रजस्वला तु संस्पृष्टा लघुशंख ४९ रंडाभिस्तादृशीभिस्तु कृतं कपिल ६०४ रजस्वला तु संस्पृष्टा वृ परा ८.२३० रण्डा तथाविधां दृष्ट्वा । लोहि ६७६ रजस्वला तु सा प्रोक्ता अत्रि ५.६८ रंडा यदि स्नुषा तां वै। कपिल ६१२ रजस्वालादि संस्पर्श वृ परा ८.३१७ रंडाबहुविधाज्ञेयाः कपिल ५२५ रजस्वला नवैताः स्यु आंपू ९३२ रतश्चैव स्वयं तुष्टः दक्ष ७.९ रजस्वलानाथभुक्तौ बुद्धि आं पू ९४७ रतिर्मेधा स्वधा स्वाहा वृ गौ. १०.५३ रजस्वलामुखास्वादः वृ हा ६.१७४ रत्नगर्भाधरा प्रोक्ता ब्र.या. ११.३६ रजस्वलां त्यजेत् आप ७.७ रत्नानां चैव मुख्यानां नारद १८.८७ रजस्वलां सूतिकांच वृ हा ६.३ ४५ रत्नौघमपि वा स्तोयं शाण्डि ४.५३ रजस्वलां सूतिकां वै व २.६.४८९ रथकार अम्बष्ठं बौधा १.९.१ रजस्वला यदा स्पृष्टा आंगिरस ३९ रथचक्रेषु वेदांश्च वृ हा ६.२८ रजस्वला यदा स्पृष्टा अत्रिस २७६ रथदानं वस्त्रदानं कपिल ,४३० रजस्वला यदा स्पृष्टा अत्रिस २७७ रथन्तरं वृहज्ज्येष्ठ वृ परा ७.१८ रजस्वला यदा स्पृष्टा देवल ४० रथं हरेत चाध्वर्यु मनु ८.२०९ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५२९ रथाश्वगजधान्यानां बौधा २.३.६१ रसा रसैनिमातव्या न मनु १०.९४ रथाश्व हस्तिनं छत्र मनु ७.९६ रसा रसैमहतो व १.२.४२ रथे बिम्बे ध्वजे भग्ने वृ हा ६.४१२ रसा रसैः समाग्राह्या वृ परा ६.२५५ रथ्याकर्दमतोयानि वृ परा ८.३३९ रसा स्नेहा स्तथा गन्धा बृ.गौ. १५.५१ रथ्याकर्दमतोयेन शंख १६.१८ रहस्यकरणेप्येवं मास लघुयम ३२ स्थ्याकईमतोयानि ___यम ५२ रहस्य प्रायश्चित विधान विष्णु ५५ रथ्याकईमतोयानि या १.१९७ रहस्यमिदमय॑थं वृ.गौ. २०.२६ स्थ्याकर्दमतोयानि व २.६.४९९ रहस्यमेकं वक्ष्यामि कपिल ९१९ रथ्याघोषेण संतुष्टो बृह ११.८ रहस्यमेतद्विज्ञानं भक्तानां शाण्डि १.८ रथ्यां वाक्रम्यवाचामे शंख १६.२० रहस्यं सर्व शास्त्रेषु वृ परा ६.१२८ रमते तत्परेणैव स्वाधीना शाण्डि ५,२९ रहितः सर्व धर्मेम्यश्च्युतो वृ हा २.४३ रम्ये निवेश्य देवेशं व २.६.२७२ राक्षसाः च पिशाचाः च वृ.गौ. ३.२८ रम्यं पराव्यं आजीव्यं या १.३२१ राक्षसा दानवा दैत्या वृ.गौ. ८.४१ र (म्य) वस्तुषु निस्सनेहा शाण्डि ३.१ ४० राक्षसाश्च पिशाचाश्च ल हा ४.४६ रवातमात्र प्रकर्तव्यं वृ परा १०.३७० राक्षसीमुद्रिकादत्त तत्तोयं विश्वा ५.३५ रविचक्रार्धमात्रोऽपि ब्र.या. ९.१६ राक्षसो युद्धहरणात् व २.४.१५ रविमण्डलमध्यस्थे वृ परा ४.५४ राक्षसो युद्धहरणात् शंख ४.६ रविरश्मि समाकारा भार ७.३४ रागादज्ञानतो वापि नारद १.५८ रविशुक्रत्रयोदश्यां व्या १३३ रागाल्लोभाद् भयाद्वापि या २.४ रविसंक्रांतिवारेषु वृ परा २.११२ राजकर्मणि राज्ञा च . व २.६.४६० रविसोमग्रहे दद्यात् वृ परा १०.१५५ राजकर्मसु युक्तानां मनु ९.१२५ र वे महाफलं दानं वृ परा १०.३५६ राजकस्नातकयो व १.१३.२६ रवेरप्यंशवो ह्यस्मात् वृ परा २.७८ राजकार्ये नियुक्तस्य व्या २६६ रव्यापनेनानुतापेन मनु ११.२२८ राजग्राहगृहीतो वा नारद १२.३२ रव्यापयन्नेव तत्पा संवर्त ११२ राजतं वत्सकं कुर्याद् वृ परा १०.१०९ रश्मिरग्री रजच्छाया या १.१९३ राजतत्तुल्यतभृत्य कपिल ४५७ रसत्वमपि शुद्धत्वंभोवत्वं कपिल ९३ राजते चन्दने लिख्य ब्र.या. १०.६१ रसपूर्णन्तु यद् भाण्ड पराशर ६.४४ राजते चन्दने लिख्य ब्र.या. १०.६२ रसभेदकरा ये च ये वृ.गौ. १.८ राजतैर्भाजनैरेषामथो मनु ३.२०२ रसयुक्तं हविष्यं स्याद् विश्वा ८.७७ राजतो धननान्विच्छेत् __ मनु ४.३३ रसवत्फलवद्यत्नात् आंपू २ ४७ राजतो नवमस्तद्वद्दशमः अ ८६ रसस्य नव विज्ञेया या ३.१०५ राजत्विकस्नातकगुरून मनु ३.११९ रसानान्तु परित्याग वृ हा ६.३९३ राजदैवोपघातेन पण्ये या २.२५९ रसानामथवीजाना वृ.गौ. १०.१०६ राजधर्म वर्णनम् विष्णु ३ रसानि यानि मेध्यानि बृह ९.७४ राजधर्मवर्णनम् विष्णु ४ Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३० राजधर्म वर्णनम् राजधर्म वर्णनम् राजधर्मविधाने दण्ड वर्णनम् राजधर्मान्प्रवक्ष्यामि राजधर्मोयमित्येवं राजनि प्रहरेद्यस्तु राजनि स्थाप्यते योर्घः राजन्नयनयोर्मध्यं राजन्यग्रहभुत्तौ तु ब्राह्मणस्य राजन्यवेश्ययोश्चापि राजन्यवैश्यावप्येवं राजन्यवैश्यो तु मद्य राजन्यश्चेद् ब्राह्मणी राजन्येन ब्राहाण्यामुत्पन्न राजपत्नी महाभागा राजपत्न्यो ग्रासाच्छादनं राजपुत्रो न राज्याप्त्या राजप्रतिग्रहात्सर्व राजवार्त्तादि तेषान्तु राजसं तामसं चैव तज्ज्ञेयं राजसूयफलं प्राप्य राजहोमी सहस्रं विष्णु ३ विष्णु ४ विष्णु ५ मनु ७.१ वृ हा ४.२६२ नारद १६.२८ या २.२५४ बृ.गौ. १९.४ कपिल ३३८ लोहि १८ औ ६.३६ वृ हा ६.२७३ व १.२१.५ व १.१८.३ ब्र. प्र. ८.२९६ राजा-ऋत्विकादि राजा कृत्वा पुरे स्थानं राजा च जांगलं पशाव्यं राजा च प्रजाभ्य सुकृत राजानुमतभावेन राजाने कृनस्मृतः राजानो राजभृत्याश्च राजन्ते वसयाज्येभ्यः राजान्नं तेज आदत्ते राजप्रतिग्रहो मध्वा . राजान्नं तेज आदत्ते राजभि कृत (धृत) दंडास्तु मनु ८.३१८ राजान्नं तेज आदत्ते राजभिर्धृतदण्डास्तु राजान्नं हरते तेजः राजभिर्धृतदण्डास्तु राजान्नं हरते तेजः राजमंत्री सदः कार्याणि राजमहिष्याः पितृव्य नारद १८.१०६ व १.१९.३० व १.१६.२ राजा पिता च माता राजा व १.१९.२० शंख १४.२१ राजा प्रभुर्भूमिदाने तत्सम् राजा भवत्यनेनाश्च राजमाषान् सूरांश्च राजराजाचितो विप्रः राजत्विग्दीक्षितानाञ्च वृ.गौ. १७.१० दक्ष ६.५ व १.१९.२१ वृ परा ११.७ ब्रह्मचर्य ४.५८ अ ७४ दक्ष ९.३७ शाण्डि १.६४ वृ.गौ. ९.७३ वृ ३.१४२ विष्णु ३२ या २.१८८ विष्णु ३ विष्णु ३ राजा च श्रोत्रियश्चैव राजा चेत्तादृशी श्रुत्वा राजा तु धर्मेणानुशासयत् राजा तु धार्मिकान् सम्यान् राजा त्ववहित सर्वान् राजा दहति दंडेन राजाद्यैर्द्दशभि मास राजानः क्षत्रियाश्चैव राजानंच विशं शूद्र राजानं वा तथा वैश्यं राजानाश्चेन्नाभविष्यन् राजा न स्तेन महत राजानाम चरत्येयष राजा भवत्यनेनास्तु राजार्थे ब्राह्मणार्थे राजालब्ध्वा निधिं राजा वा राजपुत्रो वा राजा व राजपुत्रो वा राजा वा राजपुत्रो वा राजा वा राजमान्यो राजाश्रयेण यो मर्त्यो राजा सपुरुषः सभ्याः राजा स्तेनेन गन्तव्यो स्मृति सन्दर्भ मनु ३.१२० लोहि ६७८ व १.१.४३ नारद १.६८ नारद १८.५ वृहस्पति ५२ आंगरिस ६८ मनु १२.४६ वृ हा ६.३५७ व २.६.४५९ नारद १८.१६ औ ८.१८ नारद १८.२० व १.२.५३ र १८.१२३ औ ६.५६ या १.१३० आप ९.२७ मनु ४.२१८ वृ. गौ. ११.२१ अत्रिस ३०१ आंगिरस ७२ शंखलि २६ कपिल ६४३ बौधा १.१०.३१ मनु ८.१९ व १.२०.३६ या २.३५ पराशर ९.५३ लघुयम ५६ लघुशंख ५८ दा १०९ वाधू १७३ मनु १.१५ नारद १८.१०४ 7 Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५३१ राजा स्तेनेन गन्तव्यो मनु ८.३१४ राज्ञो हि रक्षाधिकृतः मनु ७.१२३ राजीवान् सिहं तुण्डाश्च शंख १७.२५ राणाधनी कौषमी च ब्र.या. १.२६ राज्यभ्रष्टं च राजानं वृ परा १०.२९९ रात्रयः कथितास्तस्य आपू १९ राज्यस्थः क्षत्रियश्चापि ल हा २.२ रात्राव. भवेच्छौच व २.३.९७ राज्यस्य षड्गुणान् वृ परा १२.२९ रात्रावहनि वा दानं आश्व १५.५९ राज्ञ एव तु दासः स्यात् नारद ६.३३ रात्रावेव समुत्पन्ने दा १४४ राज्ञ कोशापर्तृतश्च मनु ९.२७५ रात्रावेव समुत्पन्ने पराशर ३.२० राज्ञः पंचसहस्रं वृ परा ८.३०२ रात्रिं कुर्यात् त्रिभागन्तु अत्रि ५.४२ राज्ञः पंचागुलं न्यासं भार १६.२२ रात्रिं कृत्वा त्रिभागां दा १४७ राज्ञः प्रख्यात भांडानि मनु ८.३९९ रात्रिभिमीसतुलाभि लघुयम ७७ राज्ञश्च दधुरुद्धारं मनु ७.९७ रात्रिभिमीसतुल्याभि मनु ५.६६ राज्ञा चान्यस्त्रिमि पूज्यो दक्ष २.४५ रात्रिभि मास तुल्याभि शंख १५.४ राज्ञाञ्चानुमते चैव पराशर ८.३५ रात्रिशेषे द्वाभ्यां प्रभाते व १.४.२३ राज्ञा तथा कृताश्चेत्तु वृत्तयो कपिल ४६४ रात्रिसूक्तं च सौरं च वृ परा ११.२८४ राज्ञापमणि कोदाप्यः ___ या २.४३ रात्रौ कृताशनान्विप्राच्छ्राद्धे कपिल ६८ राज्ञा न प्रतिगृहणीयात् शाण्डि ३.२२ रात्री जागरणं कुर्यात् वृ हा ५.४४१ राज्ञान्यायेन यो दण्डो या २.३१० रात्री जागरणं कुर्यात् वृ हा ५.३४२ राज्ञान्यैः श्वधर्वापि अत्रिस ८० रात्रौ तु वमने जाते आंपू १७७ राज्ञा परीक्ष्यं न यथा नारद १३.११८ रात्रौ दानं न दातव्यं वृ परा १०.२८० राज्ञा परिगृहीतेषु नारद २.१३९ रात्रौ निमंत्र्य सम्पूज्य २.१२९ रात्रा निमत्र्य सम्पूज्य वृ हा ६.१२० राज्ञा प्रवर्तितान् धर्मान् नारद १८.१० रात्री श्राद्ध न कुर्वीत मनु ३.२८० राज्ञामत्ययिके कार्ये व १.१९.३२ रात्रौ होमं प्रकुवीत वृ हा ५.५४२ राज्ञातुं द्वादशाहः स्यात् वृ परा ८.३७ रात्र्या चापि संधीयवे बौधा २.४.२७ राज्ञाप्रतिग्रहस्त्याज्यो वृ.या. ४.५९ रात्र्यामजसयोगस्सन् शाण्डि ४.१९९ राशांप्रवजितां पार्टी लघुयम ३६ रामचन्द्र.समादिष्टं पराशर १२.६३ राज्ञा राजन् महातेजा वृ.गौ. ७.११३ रामोऽपिकृत्वा सौवर्णी कात्या २०.१० राज्ञा राजकुमारघ्नश्चौरेण शाता ६.९ राष्ट्र मनोवांछित वृष्टि वृ परा ११.२९३ राज्ञा विनीते दद्यात् शाता ६.३० राष्ट्रस्य संग्रहे नित्यं मनु ७.११३ रासीमावाशिष्यां वा १.य. ३.५ राष्ट्राए दासयेत्तचा वेदा कपिल ९४ राज्ञे दत्वा तु षड्भागं पराशर २.१४ राष्ट्रेषु रक्षाधिकृतान् मनु ९.२७२ राजो है च विशश्चका व २.४.८ राष्ट्रेषु राष्ट्राधिकृता नारद १८.७५ राशो निवेध पश्चातु कपिल ८३४ राहु केतुन्तु विन्यन्य ब्र.या. १०.६७ रामोनिष्टप्रवक्तारं या २.३०५ राहुश्च सैसकः कार्य वृ परा ११.५७ रासोबलार्थिनः षष्ठे ब्र.या. ८.९ राहुः सिहंलदेशोत्थो वृ परा ११.४२ राजो माहात्मिके स्थाने मनु ५.९४ रिक्थग्राही ऋणं वृ हा ४.२४२ Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३२ स्मृति सन्दर्भ रिपुगर्भस्य यो गर्भः विष्णु म ३९ रेचकं तद्विदस्तज्ज्ञा वृ परा १२.२१६ रीतिहत् पिंगलाक्ष शाता ४.४ रंचकेणोद्मवक्त्रेण वृ परा ६.१०४ रुक्मकुण्डले च बौधा २.३.३४ रेचकेन तृतीयेन। वृ परा १२.२३८ रुक्मस्तम्भनिभावूरू विष्णु १.२६ रेचकेनेश्वरं ध्याये बृ.या. ८.२५ रुक्माङ्गदं तत्सुतञ्च वृ हा ७.२०८ रेचकेनेश्वरं विद्या ब्र.या. २.६२ रुक्मांगदः शिवो ब्रह्मा वृ हा ७.८४ रेतः सेकः स्वयोनीषु मनु ११.५९ रुच्या वान्यतरः कुर्यादितरो या २.९८ रेतः स्पृष्टं शवस्पृष्टं आंगिरस ४५ रुद्रजाप्यानि कार्याणि वृ परा ४.५० रेतस्पृष्टं शवस्पृष्टं आप ८.४ रुद्रः प्रजापति शक्रः वृ.गौ. ६.११७ रेतोधा पुत्र नयति बौधा २.२.४० रुद्र मातर्वसुनुते सुता भार १८.९४ रेतो मज्जति यस्याप्सु वृ परा ६.४ रुद्रं जपेल्लक्षपुष्पैः । शाता १.१९ रेतो मूत्र पूरीषाणां औ २.२ रुदं समाश्रिता देवा वृ.गौ. २२.२९ रेतोविण्मूत्रसंस्पृष्टं अत्रिस २३३ रुद्र रुदिविधानेन वृ परा ४.१४७ रेवती वारुणी कांति वृ हा ७.१६५ रुद्ररूपो द्विजो यश्च वृ परा ११.१५० रे स्पर्श तुणिरूपं वृ परा ५.७२ रुद्रविधिं विधिश्रेष्ठं वृ परा ११.१९८ रोगनाशो भवेद् रुद्रो व हा ७.४८ रुद्राक्षादित्रिवीजानां भार ७.४४ रोगयुक्तं दुष्टबुद्धि आंपू ७४३ रुद्राग्नेययोर्मध्ये ब्र.या. १०.११९ रोगादिरहितो विप्रो आश्व २४.२० रुदान पुरुष सूक्तञ्च अ ३६ रोगार्तस्यौषधं पथ्यं वृ. परा १०.२ ४२ रुद्रान् प्रपद्ये वरदान् शंख ९.५ रोगी हीनातिरक्तांगः प्रजा ८२ रुद्रायेति विधानज्ञो वृ परा ११.१२० रोगी होनातिरिक्तांग या १.२२२ रुद्रार्चनाद् ब्राह्मणस्तु वृ हा २.४७ रोगेण यद्रजः स्त्रीणां अंगिरस ३६ रुद्राश्चाग्निश्च सर्पश्च शंख ९.७ रोगेण यदज स्त्रीणां आप ७.२ रुदैस्तयैकादशभिः शाता २.३२ रोगेण यदजः स्त्रीणां पराशर ७.१८ रुद्रौद्यौउत्तराशायमर्चये भार ११.५६ रोचन्त इति सायं व १.३.६२ रुविष स्तथारैभ्य ब्र.या. २.९८ रोदनं वर्जयित्वैव वृ हा ६.८१ रूपतो गन्धतो वापि वृ हा ८.१२२ रोदनादावणादागाद बृह ९.८४ रूपः दविण संयुक्तो वृ परा १०.२५८ रोधने कृच्छ्रपादे वे वृ परा ८.१ ४० रूपदविणहीनाश्च बृ.गौ. १४.६३ रोधने बन्धने चैव बृ.या. ४.९ रूपं देहि यशो देहि या १.२९१ रोधने बन्धने चैव यम ६७ रूपं हुताशनं यातु स्पर्शो विष्णु म ६६ रोधने बन्धने वापि । आंउ १०.३ रूपयौवनसम्पन्न विष्णु १.३० रोषबन्धनयोक्त्रञ्च पराशर ९.३१ रूपवेदांग तुरगसख्यं भार १४.३४ रोधबन्धनयोकत्राणि पराशर ९.४ रूपसत्वगुणोपेता मनु ३.४० रोमकूपैर्यदा गच्छेद् आप ६.५ रूप सौभाग्यसंयुक्ता वृ परा १२.२०४ रोमदर्शनसंप्राप्ते सोमो संवर्त ६५ रेकाभिरेकोष्ठाउक्तः मार ७.११ रोमसंग्रहणे विप्रः भार १८.८९ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५३३ रोमाणि प्रथमे पादे यम ७२ लक्षभूमौ भवेद्दिष्टि भार ९.३२ रोमाणि प्रथमे पादे लघुशंख ५६ लक्ष्यश्चैकादशप्रोक्ताश्चतुः ब्र.या. १०.३४ रोमाद्ये च फाल्गुनेवापि ब्र.या. ८.१०१ लक्ष संख्याहणं पुष्पं शाता १.१८ रोम्णा कोट्यश्च या ३.१०३ लक्षसूर्य प्रभाभास्वत् वृ परा ११.१३९ रोम्णां तु प्रथमे पादे दा १०६ लक्षहोममिमं विप्रा वृ परा ११.२४४ रोमणां पवित्रकरणे भार १८.८४ लक्षेण भष्महोमेन भार ९.३३ रोम्णां मध्यमं बध्वा भार १८.८८ लक्ष्मणं पश्चिमे भागे व हा ३.२६३ रोम्णि रोम्णि भ्रूणहत्या अ ४९ लक्ष्मणो नागराजश्च वृ हा ७.१६४ रोहिणी दण्डिनीयस्य ब्र.या. ८.१६५ लक्ष्मीधनकुचस्पर्श वृ हा ५.३११ रोहिणी विधवा भर्ता सा विश्वा ८.५९ लक्ष्मीनारायणध्यान __ कण्व ५७४ रोहिण्यां मंदवारे __ व २.७.६ लक्ष्मीपतित्वं तस्यैव वृ हा ३.७० रोहिण्या श्रवणे वापि व २.३.१७१ लक्ष्मीभ्रष्टाय यद्दतं वृ परा १०.२९८ रौद्र द्वाविंशकं प्रोक्तं बृ.या. ४.६९ लक्ष्मीमनपगमिनीमित वृ हा ३.६९ रौद्रन्तु राक्षसं पित्र्य कात्या २७.४ लक्ष्मीरूपामिमां कन्या आश्व १५.२६ रौदपित्र्यायासुरान् बृ.या. ७.१५१ लक्ष्मीबैलं यशस्तेज अत्रिस १४६ रौद्रभूतमिमं सर्वे द्विजं वृ परा ११.१२८ लक्ष्मी वसुधा वर्णनम् विष्णु ९९ रौद्रवैष्णवगायत्र्यां शाखा कपिल ९९५ लक्ष्मी सरस्वती चैव ब्र.या. १०.४५ रौद्री मकारसंज्ञा बृ.या. २.२९ लक्षम्या सह समासीनं वृ हा ७.१७२ रौप्यहैमानि पात्राणि प्रजा ११५ लक्ष्यं शस्त्र भृतां वा मनु ११.७४ रौरवं नरकं याति वृ हा ७.१५१ लग्नस्तु निश्चलस्तिष्ठेद् नारद १९.२८ रौरवाद्विप्रमुक्तास्तु बृ.गौ. १५.८० लघु गुरु वा यो दद्याद् ब्र.या. ११.५९ लताग्रपल्लवो बुघ्न कात्या २५.६ लब्धद्रव्येण लघुना येन लोहि ३४४ लकारश्चभकारश्च विश्वा ३.२७ लब्ध यज्ञाय य विप्रो वृ परा ६.३०० लक्षञ्चपेच्चं यो नित्यं तू हा ३.१४७ लब्यासनो ब्रह्मचारी भार ९.४७ लक्षणं द्विधमाख्यातं भार १५.२९ लब्धेन मधुना वापि लोहि ३६९ लक्षणे प्राग्गतायास्तु कात्या ६.९ लब्ध्वाज्ञामपसव्येन आश्व २३.१२ लक्षत्रयजपेधेतत्पुरश्च भार ९.२१ लभतेऽतस्तु सा प्रोक्ता आंपू ४५३ लक्षत्रयं वा गायत्र्या अ५१ लभते नात्र सन्देहो आंपू ८७३ लक्षद्वादशवारं तु गायत्री नारा १.३५ लभेतायु शतसमा वृ हा ३.१९७ लक्षद्वादश संज्ञञ्च ब्र.या. १०.३३ लभ्यन्ते श्राद्धदानेन ब्र.या. ४.१३० लक्षमात्रं जपेदेवी तस्मात् नारा १.३८ लं पृथिव्यात्मने घूपं विश्वा ३.२८ लक्षं चौकादशं चैव ब्र.या. १०.३१ ललनाद्वारिगच्छन्योगी वृ परा १२.२९० लक्षं तु जुहुयादाज्यं भार ९.३१ ललाटबाहुहृदयेष्वार्जवेन शाण्डि २.४४ लक्षद्वादशकं चैव कोटीनां ब्र.या. १०.३० ललाटादि कपालान्तं ब्र.या. २.३३ लक्ष ब्रह्मकटाई च ब्र.या. १०.३१ Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ ललाटादि शुभाङ्गेषु ललाटादिषु चांगेषु ललाटे कर्णयोरक्ष्णोः ललाटे केशवं ध्यायेन् ललाटेग्रे स्थित देवी ललाटदेशाद् रुधिरं ललाटे पृष्ठयो कण्ठे ललाटै यैः कृतं नित्यं लवणं क्षीर संयुक्तं लवणं च कटुद्रव्यं लवणं चोदकं हित्वा लवणं तिलकार्पासं लवणं मधु तैलञ्च लवणं मधु तैलं च लवणं मधु मांसश्च लवणानां गुडानां च लवणे सुसर्पिद लवणोदकं ततः क्षीरोदं लशुनपलाण्डुकेमुकगुंजन लशुनं गूंजनं चैव लाक्षाकृष्णागरु सर्पिः लाक्षालवणमांसानि लाक्षालवणसंमिश्रं कुसुम्भं लांगलं प्रवीर वद्वीर लांगुलं संप्रवक्ष्यामि लांगूले कृच्छ्रपादन्तु लाजाहुतीदशाप्रोक्ता लाजैः हरिद्राचूर्णेश्च लाभपूजानिमित्तं हिं लाभार्थो वणिजां सर्व लाभालाभौ च सततं लालनीया सदा भार्य्या लालास्वेदसमाकीर्णः लावण्य तित्तिरिशकुन्त लिखितं साक्षिणश्चात्र व २.७.१७ वृ हा ८.२३३ ब्र. या. १०.१५ व २.३.५१ वृ परा ५.३६ पराश ३.४३ वृ हा २.७३ व्या ३८ नारद २.६६ नारद २.१२२ नारद २.६५ व १.१६.७ बौधा २.१.१६ या २.२२९ कण्व २०५ दक्ष ५.८ वृ परा ४.३१ कण्व ४३१ विश्वा ७.१९ ब्र. या. ७.५४ मनु १२.५७ वृ परा ४.२२३ नारद २.१२१ कात्या २७.६ लेखयित्वा च संपूज्य ध्याना कपिल ३२५ शंख १७.१८ लेखयेद् वर्णकैः स्वैः स्वैः वृ परा ११.५८ ब्र. या. १०.१२८ नारद २.१२७ शंख १३.७ नारद २.११९ व १.१४.२८ लेखितः स्मारितश्चैव लेखे देशान्तरन्यस्ते लेख्यं तु द्विविधं ज्ञेयं लेख्यं देयं दद्यादृणे शुद्धे लेख्यस्य पृष्ठेभिलिखेद् लेपगन्धापकर्षणे नारद २.११२ नारद २.९९ या २.९५ व १.३.४७ ब्र. या. २.१८६ विश्वा ८.२ शाण्डि ४.८९ वृ हा ४.१५३ पराशर १.६३ लिखितं बलवान्नित्यं लिखितं लिखितेनैव लिखितं साक्षिणो भुक्ति लिखितं साक्षिणो भुक्ति लिंग वा सवृषणं लिंगस्यच्छेदने मृत्यै लिङ्गानां वचनानां वृ परा ५.६० पराशर ९.१८ ब्र.या. ८.२३० वृ हा ५.४९७ दक्ष ७.३८ मनु ५.५ भार १४.३१ या ३.४० अत्रिस ३७७ लेपभागश्चतुर्थाद्या व १.२.४० लिंगेप्यत्र समाख्याता लिप्यते न स पापेन लुठन्नमहीतले तूष्णी लुप्तं सूर्यं समालोक्य लूता विप्लव शीतलोश्च लूताहि सरटानां च लेखं यच्चान्यनामांक नारद ९.११ लोहि ५.८६ शंख ४.१५ वाघू ६८ लेपयदयतीरस्थ लोकत्रयहितार्थाय लोकनिस्तारणार्थन्तु सा लोकपालांस्तथावाहा लोकप्रकाशकश्चैव लोक संव्यवहारार्थं या लोक संग्रहणार्थं यथा लोक संग्रहणार्थं हि लोकात्मन् लोकनाथेश लोका द्वीपार्णवाश्चैव लोकानन्त्यं दिव्यं प्राप्ति नारद १.३ लोकानन्यान् सृजेयुर्ये प्रजा १३७ स्मृति सन्दर्भ व्या१ ७६ ल व्यास २.१४ विष्णु म २४ वृ.गौ. १०.४३ कण्व ६२७ मार ११.५८ मनु ८.१३१ बौधा १.१०.२९ बोधा १.५.१११ वृ.गौ. १८.३७ वृ.गौ. १०.५५ या १.७८ मनु ९.३१५ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी लोकानां तु विवृद्ध्य लोकानुसारस्त्वेकत्र गुरु लोके त्रीण्यपवित्राणि मनु १.३१ शाण्डि ४.२३६ बृ.गौ. २१.१९ मनु ५.९७ नारद १६.१९ नारद ९.२ नारद १८.५१ लोहि ७२० दक्ष ७.१ लोकेशाधिष्ठितो राजा लोकेस्मिन्द्वावक्तव्याव लोकेस्मिन् द्विविधं लोकेस्मिन् मंगलान्यष्टौ लोको यदा सुखी राजा तदा लोको वशीकृतो येन येन लोधनोपार्जुनैर्नागैः लोप्त्रादिरहिताश्चोरा लोभ स्वप्नोति क्रौर्य लोभात् कुर्याद् द्विजन्मा लोभात् सहस्रं दण्डस्तु लोभान्नास्ति नियोगः लोभान्मातृत्वमन्यासु लोभान् मोहाद् भयान् लोभान् मोहाद् भयान् लोमम्य स्वाहेत्यथवा लोमभ्यः स्वाहेत्येवं लोमानि मृत्युर्जुहोमि लोलिह्यमानं संदीप्तं लोष्ठमर्दी तृणच्छेदी लोष्टसस्य च यश्व लोहकर्म तथा रत्नं लोहकर्मस्थानां च गवां लोहपात्रेषु यत्पक्वं लोहशंकुमृजीषं च पंथानं लोहहारी च पुरुषः लोहानामपि सर्वेषां लोहितं मृत्योर्जुहीमि लोहितं सर्ववेदान्त लोहि १ लोहितान् वृक्षनिर्यासान् मनु ५.६ लोहितान् वृक्षनिर्यासान् वृ परा ७.२२३ लोहितो यस्तु वर्णेन व १.२०.२८ बृह ९.११४ मनु ४.७१ भार ३.१० पराशर १.६१ वृ परा ४.२२१ प्रजा ११३ मनु ४.९० शाता ४.१२ नारद १०.१० व १.२०.३० दा २१ वृ हा ५.४१२ नारद १८.६६ मनु १२.३३ वृ परा ६.२५९ मनु ८.१२० व १.१७.५७ आंपू १२२ मनु ८. ११८ वृ परा ८.७७ या ३.३०२ या ३.२४६ लोहितो यस्तु वर्णेन लोहितो यस्तु वर्णेन लौकिंकं वैदिकं तत्र नित्यं लौकिकं वैदिकं वापि लौकिकं वैदिकं वापि लौकिकं वैदिकं वापि लौकिकाग्नौ प्रकुर्वीतं लौकिकाग्नौ श्राद्धमात्र लौकिकाग्नौ सर्वजन लौकिके पापनाशाय लौकिकोक्तिवैदिकोक्ति लौहक कुम्भाकारश्च लौहानां वैदलानां च व वशतालादि पत्रैस्तु वंशद्वयविशुद्धत्वं अत्यन्ता वंशोद्धरणकर्तृत्व वकघाती दीर्घनसो वकार इति पञ्चैते वर्णाः वक्ता शतसहस्रेषु वक्त्राधिकन्तु यत्पिण्ड वक्त्रानिर्मार्जनं कृत्वा वक्त्रेण सान्तर्धानेन वको तालुनि दृक् वक्त्रे प्रदर्शयेत्देव्याः वक्त्वेर्थे न तिष्ठन्तं वक्रं तद्भवति ह्लादौ वक्रं तु भवति ह्यादौ वक्षश्यंध्योश्चमूर्ध्नाति वक्ष स्थले माधवञ्च वक्ष्यन्ति केचिद् भगवान् वक्ष्यमाणस्य सूत्र हि वक्ष्यमाणो विधि पुण्यः वक्ष्यामि वस्समासेन वक्ष्याम्यथाक्षमालायाः ५३५ लघुशंख ११ लिखित १४ लोहि ६१४ औ १.२३ मनु २.११७ वृ.गौ. १४.५६ आंपू - ४०१ लोहि ३०३ कण्व ७७० वृ परा ४.१६१ लोहि ३६३ ब्र.या. ८.३ शंख १७.१९ वृ हा ५.२३८ लोहि ५७१ लोहि १०१ शाता २.५६ विश्वा ३.१७ व्यास ४.५९ बृ.गौ. १३.१३ वृ परा २.३३ वृ हा ५.२६८ वृ परा ४.२९ भार ११.७६ नारद १.४१ बृ.या. २.८ बृह ९.१० भार ५.३२ वृ हा २.७६ वृ हा ३.१६५ शाण्डि १.१२ वृ परा ६.८८ शाण्डि ३.३ भार ७.५२ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ वंक्षणो वृषणो वृक्कौ वचनाद्यज्ञे चमसः वचनानां समत्वेन वज्र वैदूर्यमाणिक्य वटाश्वत्थार्कपत्रेषु वटाश्वत्थार्कपर्णानि वणिक् किरात कायस्थ वणिक् प्रभृतयो यत्र वत्सतन्ति च नोपारि वत्स प्रसवणे मेध्य वत्सन्तीं विततां वत्सं माता लोढि यथा वत्सरत्रितयं कुर्यात् वत्सस्य कुर्यादिति वत्सस्य ह्यभिशस्तस्य वत्सानां कण्ठवन्धेन वत्सः प्रसवणे मेध्य वत्सरादूर्ध्वसम्पूर्ण वत्स्नाच्येत् प्रहृता वदने प्रविशेद्येषां वदन्त एवं परमानन्दं वदन्ति कवयः केचिह्न वदन्ति कवयः केचिद् वदन्ति केचिद् वरुणस्य वदन्ति तद्विदः सर्वे वदन्ति दानं मुनयः वदन्ति न तथा ज्ञेयं वदन्ति न तथा ज्ञेयं वदन्ति ब्रह्मवेत्तारो वदन्ति मंत्रत्वार्थवेदिनो वदन्ति मुनय प्राच्या वदन्ति मुनयो गाथां वदन्ति मुनयो गाथां वदन्ति विप्रास्ते वदन्ति वदतां श्रेष्ठा या ३.९७ बौधा १.५.५१ आंपू ३९५ वृ हा ७.२८२ वृ परा ७.१२३ वृ हा ५.२४७ व्यास १.११ नारद ४.१ बौधा २.३.४२ बौधा १.५.५७ व १.१२.५ वृ हा ८.१७७ का ३ वृ परा १०.८० मनु ८.११६ लघुयम ५२ व १.२८.८ वृ हा ६.३९० व १.१७.६५ वृ परा ८.३३ कपिल ७६८ वृ परा ६.२४४ वृ परा ८.२३३ वृ परा ११.२४० वृ परा १०.१२८ वृ परा ९.४३ शाण्डि ४.२०४ शाण्डि ५.१५ वृ परा १२.२१० वृ परा ११.५९ वृ परा ८.९ वृ परा १०.१३५ वृ परा १०.२९४ वृ.गौ. १०.८६ वृ परा ११.१८ वदन्ति सर्वे नीतिज्ञा वदन्त्यपां पवित्रत्वं वदरीवनमासाद्य सङघीभूय वद सर्वमशेषेण वदामि धेनुं घृतपूरकल्प्यां वदूर्यमणिचित्राणि वदेत्पापी महाक्रूरस्तेन वदेद्वाचा केवलं वा वदोदितं स्वकं कर्म वधच्चित्रकृन्मख वधपानापहरणगमनाद्यैश्च वधः सर्वस्वहरणं वधूवस्त्रैन्ततांते तु दद्यात् वध्वाजलादुपस्तीर्थे वध्वारक्षांप्रकुर्वीत कण्व ६४० वध्वा सह गृहं गच्छेद् वध्वा सह वरो गच्छेत वध्वाहतस्य माङ्गल्यं वनवासिषु सर्वेषु भिक्षा वृ परा १२.१९८ वनस्थं च द्विजं हत्वा वनस्थो बालखिल्यो वनस्पतीतिगते सोमे वनस्पतीति सूक्तेन वनस्पतीनां सर्वेषां शख १७.७ वृ परा १२.१६३ वृ परा ५.९८ वृ हा ६.३३ वनस्पतीनोषधींश्च वनस्पतेति सूक्तेन वनस्पत्योषधीश्च वनाद् गृहाद्रा कृत्वेष्टि वने च पतिता या गौः वने दुष्टमृगान् हत्वा वनेषु तु वहत्यैवं वन्दिग्राहांस्तथा वाजि वन्दिग्राहेण या भुक्त्वा वन्ध्या तु वृषली ज्ञेया वन्ध्यात्वं जातपुत्राणां स्मृति सन्दर्भ वृ परा १२.४१ वृ परा ८.२६३ नारा ७.२९ वृ हा ५.५ वृ परा १०.७२ बृ.गौ. १२.४९ आंपू ३६६ कण्व २४९ मनु ४.१४ नारद २.१६४ नारा १.४० नारद १५.७ व २.४.८७ व २.४.५१ कण्व ५७७ आश्व १५.५१ आश्व १५.६६ मनु ८.२८५ बृ.या. ७.६४ वृ हा ८.३९ ब्र. या. ८.३१७ या ३.५६ बृ. य. ४.१२ औंस ३८ मनु ६.३३ या २.२७६ पराशर १०.२५ यम २५ लोहि ४२६ Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी वन्ध्या नवप्रसूता च न मार ७.६७ वरं लक्षणसंयुक्तं व २.४.३३ वन्ध्यापि प्रभवेदेव लोहि ५५० वरं वा रूपामुद्धरेज्ज्येष्ठः बौधा २.२.४ वन्ध्या स्त्रीजननी नारद १३.९६ वरं स्वधर्मो विगुणो न मनु १०.९७ वन्ध्याष्टमेधिवेत्तव्या वृ परा ६.६७ वरयेच्चतुरो विप्रान् आश्व १५.१६ वन्यैर्मुन्यशनैर्मेध्ये वृ परा १२.९७ वरास्त्रि प्रोक्षयेल्लाजा आश्व १५.३९ वपनं नास्य कर्तव्यं कात्या २५.१५ वरस्त्रीगणसंसेव्य वृ परा १०.१८५ वपनं मेखला दण्डो अत्रिस ७६ वर स्त्री भूषणैर्युक्तं वृ परा १०.२४ वपन मेखलादण्डो मनु ११.१५२ वराङ्गनासहस्राणि पराशर ३.४२ वपनं मेखला दण्डो व १.२०.२१ वराणि रलानि च हैम वृ परा १०.२१० वपनवतनियमलोपश्च बौधा २.१.२३ वराय गुणयुक्ताय वृ परा ६.६ व पावसावहननं नाभि या ३.९४ वराहन्तु तिलद्रोणं औ ९.१० वभूवुर्हि पुरोडाशा मनु ५.२३ वराहं यदि वा रोहं वृ परा ८.१७४ वमनेनातिसौलभ्यतृप्ति कपिल २१५ वरुणमाश्रित्यैतत्तै वरुण बौधा १.४.११ वमंतं जृम्भमाणं च व्या ३६३ वरुणं द्वितीयेति तृतीये व २.४.५३ वयः कर्म व वित्तञ्च वृ हा ४.१८८ वरुणवायव्ययोर्मध्ये ब्र.या. १०.१२९ वयं तद्गोत्रसंभूता अस्माकं लोहि २९३ वरुणस्य करे पाशः भार १८.१२४ वयं व विद्याः को वा आंपू ४९३ वरुणस्योत्तभनमासि वृ परा ११.२३३ वयं सोमं तमीशानमस्मे वृ परा ११.१२४ वरुणेन यथा पाशैर्वद्ध मनु ९.३०८ वयवीयैर्विगण्यन्ते या ३.१०४ वरुणो देवता मूत्रे देवल ६२ वयसः कर्मणोर्थस्य मनु ४.१८ वरेण्यं सवितुश्चापि कण्व१८६ वयसस्तु षोडशादूर्ध्व व २.५.२० वरो दास्याति पूर्वेण ब्र.या. ८.२६७ वयसा चर्यया विद्याज्ञाना कपिल ७०६ वर्गत्रयात्परं तेषां मूका लोहि २५१ वयसा यं कनिष्ठोपि पितृ कपिल ६८४ वर्गद्वयोद्धारकश्च सर्व । लोहि ३३३ वयसा लघवोपि वृ परा ८.७१ वगैश्च यादिक्षान्तणौः विश्वा ६.२८ वयः सुपर्णेति ऋचा वृ हा ८.२२ वर्जनं विषयासक्तेः वृ परा १२.१९ वयोःधिको दत्तसुतो आंपू ४१८ वर्जनीयमकृत्यन्तु सर्वेषां वृ हा ८.१६५ वयो बुद्ध्यर्थवाग्वेष या १.१२३ वर्जनीयाद्विजाह्येते का ४ वरगोत्रं समुच्चार्य आश्व १५.२७ वर्जनीयानि पुष्पानि वृ.गौ. ८.८० वरणीया विशेषण वृ परा ११.२६५ वर्जनीया प्रयत्नेन कण्व ४७३ वरदानं ततः प्रोक्कं ब्र.या. ८.२३९ वर्जयित्वा कृतानन्ये शाण्डि ४.१६ वरदाभययुक्ताभ्या व २.६.७९ वर्जयित्वा द्विजं पश्चाद् आंपू ७६२ वरः प्रत्यङ्मुखो भूत्वा व २.४.४० वर्जयित्वा मुक्तिफल औ १.३८ वरं ददाति भूतानां वृ.गौ. १२.४४ वर्जयित्वा मृदाशौचं शाण्डि २.१७ वरं प्राशयते सर्व सर्वे ब्र.या. ८.२१० वर्जयित्वैव पाषण्डान्. वृ हा ४.१६२ वरं यच्छन्ति संहृष्टा वृ परा ११.८२ वर्जयेत सन्निधौ नित्यं औ ३.१२ . Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३८ स्मृति सन्दर्भ वर्जयेदतिरिक्तांगी वृ परा ६.२८ वर्णानामाश्रमाणाञ्च वृ परा १.४१ वर्जयेदारनालञ्च वृ हा ४.१०८ वर्णानामाश्रमाणाञ्च व्यास ४.१५ वर्जयेदिन्धनार्थं तु शाण्डि ३.१०८ वर्णानां च गृहस्थानां वृ परा ५.१४६ वर्जयेद् दृष्टदुष्टं च शाण्डि ४.३१ वर्णानां तु त्रिधावृत्तिरः प्रजा ४८ वर्जयेद् दृष्टदोषांश्च वृ परा ५.१०८ वर्णानां प्रातिलोम्येन नारद ६.३७ वर्जयेद्धावनं चैव वृ परा ६.२७४ वर्णनां सान्तरालानां बृ.गौ. १४.४६ वर्जयेन्मधु मांसं च मनु ६.१४ वर्णापेतमविज्ञातं नरं मनु १०.५७ वर्जित पितृ देवैस्तु व्यास ४.६९ वर्णाश्रमाचारताः शास्त्रैक विष्णु १.४७ वर्जितः पितृर्मि लुब्ध व.गौ. ६.६० वर्णाश्रमाणां धर्माणां ब्र. या. १.३ वर्जित साक्षिलक्षण विष्णु ८ वर्णाश्रमेषु सर्वेषां वृ हा ८.२१७ वर्जितानि न देयानि वृ परा ७.२१९ वर्णाश्चत्वारो राजेन्द्र ल हा ७.१८ वजयित्वा मसूरान्नं ब्र.या. ३.५२ वर्णिनान्तु बधोयत्र या २.८५ वर्जयेन्मधु मांसञ्च मनु २.१७७ वर्णिना यतिनापत्सु दत्तोहं लोहि २८१ वर्यः पातकिना स्पृष्टः भार १८.३७ वर्णिना यतिना पाके कृता लोहि ४१८ वर्णक्रमविभागज्ञः स्वरमात्रा कपिल ३५ वर्णिने यतये कन्यादानं कपिल ९५८ वर्णगन्धरसैः दुष्टैर्वर्जितं शंख १६.१३ वर्णिनोऽध्ययनं त्वेकं कण्व ५०१ वर्णज्यैष्ठ्येन वह्वीभि कात्या ८.६ वर्णी गृही वनस्थो वा कण्व १२८ वर्णधर्मश्चतुर्णा यः पु८ वर्णेन च भवेच्छु बृ.या, २.१२१ वर्णधर्म स्मृतस्त्वेक पु३ वर्णेषु धर्मा विविधा ल हा २.१५ वर्णधर्मान् प्रवक्ष्यामि वृ परा ४.२१२ वर्तते चानुवाकेन चोत्तरेण कण्व ३९५ वर्णमेकं समाश्रित्य पु ४ वर्तते नगरे वाऽपि ब.गौ. १९.३७ वर्णत्रस्य श्रुश्रूषां ल हा २.११ वर्तते यश्च चौर्येण व परा ७.३६० वर्णयन्तः परं भाव __ कण्व४०७ वर्तमादौ विधिपूर्वकर्म विश्वा २.२३ वर्णवाद्येनं संस्पृष्ट अत्रिस २३६ वर्तन्ते भूतले तस्माद् आंपू ३ ४९ वर्णवयं समुच्चार्य व्या ९९ वर्तमानेन वर्तेत धर्म ब्र.या. ८.१४२ वर्णशूदस्य कृष्णा स्याद् भार १५.१८ वर्तमानोऽध्वनि श्रान्तो नारद १८.३७ वर्णसंकरदोषश्च तद्वृत्ति नारद १८.४ वर्तयश्च शिलोञ्छाभ्याम् मनु ४.१० वर्णसंकराद् उत्पन्नान् बौधा १.९.१६ वर्द्धते भूतलेऽतीष कपिल ३१ वर्णस्वराकारभेदात् नारद १८.७० वर्द्धमानं श्रिया दीप्त्या लोहि ३३४ वर्णाक्षरपदार्थानां बृ.गौ.१५.५९ वर्द्धर्मानां अमावस्या कात्या १६.१० वर्णाक्षरपदार्थानां बृ.गौ. १५.६० वर्ष कोटि महातेजा वृ.गौ. ६.१ ४३ वर्णात्मा सन्नवर्णस्तु वृ परा १२.२७० वर्षत्येव न गन्तव्य ब्र.या. ८.१३ वर्णानामानुलोम्येन दक्ष ४.१६ वर्ष ब्रह्मकृच्छ्रान् कुर्वीत वृ.गौ. ९.२१ वर्णानाम आश्रमाणाञ्च ल हा १.८ वर्ष वृदयाभिषेकादि लिखित ३५ वर्णानामाश्रमाणाञ्च ल हा ७.१ वर्षाकालेऽपि वर्ष बौधा १.११.२६ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी वर्षाजलाश्च खननजला वर्षाणां हि तटाकेषु वर्षादूर्ध्वं पापापनुतये वर्षेण एकेन यावन्ति वर्षे वर्षे तु कर्त्तव्यं वर्षे वर्षे तु कर्तव्यं वर्षे वर्षे तु कुर्वीत माता वर्षे वर्षे प्रकर्त्तव्यं वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन वर्हि पर्युक्षणं चैव वलस्य स्वामिनश्चैव वल्मीकस्थः श्मशानस्थः वल्मीकेथाऽग्नि वृक्षादौ ववस्थ - भिक्षु धर्मान्वै वशंगमाविति ब्रीहीं वशस्य स्वागतं तेऽस्तु वशाचोत्पन्न पुत्रा च वशपुत्रासु चैवं स्याद्रक्षणं वशिष्ठदक्ष सम्बर्त्त वशिष्ठ भरद्वाज गौतम वशिष्ठस्य मतेनैव वशिष्ठायैवकमनोः वशिष्ठाद्यैश्चमुनिभिः वशिष्ठोक्तो विधि वशे कृत्वेन्द्रियग्रामं वसतां कर्म सम्यग्वः वसतस्व कस्मात् वसन्तमाधवस्य त्वं आंपू ९३६ वृ.गौ. ७.१४ नारा २.५ वृ.गौ. ६.८१ ब्र.या. ३.२९ लिखित १९८ लघुयम ८९ २.३.१७४ मनु ५.५३ कात्या ९.९ मनु ७.१६७ पराशर ६.३ वलाकाटिट्टिभानाञ्च वलाद दासीकृता ये च देवल १७ अत्रिस १९६ वलान्नारी प्रभुक्ता बलिञ्च कर्म राजेन्द्र वलेन पराष्ट्राणि वल्कलबत्कृष्णाजिनानाम् बौधा १.६.१४ वृ.गौ. ८.१४ दक्ष ७.१८ वल्गुणीचटकानाश्च पराशर ६.६ भार १८.१६ भार ३.५ वृ परा १२.१४४ कात्या २९.१७ वसवश्च तथा रुद्रा वसवश्चापि रुद्राश्चा वसानस्त्रीन् पणान् वसाशुक्रमसृमज्जा वसा शुक्रमसृङ्मज्जा वसिष्ठविहितां वृद्धिं वसिष्ठसदृशा यूयं वसिष्ठाद्या वैष्णवाश्च वसिष्ठासस्ततो देवा वसीत चर्म चीरं वा वसुधा चिन्तयामास वसुधांप्रतिनारायणस्योक्ति वसुपुष्पोहारौघं वसु रुद्र अदितिसुता वसुरुद्र आदित्या अभी मनु ८.२८ वसूनवदन्ति वै पितॄन् ब्र.या. ७.६० भार ६.५२ बृ.या. २.१२९ भार १७.२३ वसून् रुद्रांस्तथादित्यान् वसून् रुद्रांस्तथादित्यान् वसून् रुद्रांतथादित्यान् वसेच्चतुर्भुज तत्र वसेत्तत्र द्विजातिस्तु वसेत् स नरके घोरे वसेद् रवि समं तत्र वसेद विकृतं वासः भार १२.३१ कात्या १.१८ मनु २.१०० लोहि ६२७ वृ परा १.१२ बौघा २.२.७० वृ परा १९.८६ आंपू ५९६ वसन्तिब्रह्म लोकेषु वसन्ति हृदये नित्यं वसन्ते ब्राह्मणस्य वसन्तो ग्रीष्मः शरद वृ परा १२.१७० वसन्त्येकक्षपां ग्रामे वसनंत्रिपणकक्रीतं त्रिमासानां लोहि ४५९ वसन्नावसथे भिक्षुमैथुनं दक्ष ७.४३ आंपू ६७४ बृह ९.१६३ वृ परा ७.१६९ आंपू ३२ वसवः पितरोऽत्रस्यू वसवश्च तथा रुद्रा ५३९ ब्र. या. ११.५० वृ परा ५.३३ बृ.गौ. १५.४७ बौधा १.२.१० या २.२४९ अत्रिस ३१ मनु ५.१३५ मनु ८.१ ४० आश्व २३.१०७ वृ हा ८.३५० आश्व २३.१११ मनु ६.६ विष्णु १.२० विष्णु १०० वृ हा ४.२०७ या १.२६९ प्रजा १८५ मनु ३.२८४ व २.६.१४० वृ परा २.१८८ बृ.या. ७.८१ वृ परा १०.१६५ वृ परा १.४२ या १.१८० वृ परा १०.१५६ औ १.८ वसेद् विष्णुपुरे तावद् वृ परा १०.२०० वसेरन्निय ताः सर्वे ५.६ Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्व ५४० स्मृति सन्दर्भ वस्तुतोत्र पुनर्वाच्मि आंपू १०३९ वनि सीतामखंचापि वृ परा १.५२ वस्तुभोगतया विष्णो वृ हा ८.१६४ वह्नौ च स्थाण्डिले वृ हा ३.१२६ वस्त्र अलंकार रत्नानि व्यास २.२६ वह्वच भोजयेच्छ्राद्धे व्या १८४ वस्त्रगोभूमिदानेन धन शाण्डि १.९१ वह्वचं तु परित्यज्य ___ व्या १८५ वस्त्र गोमिथुने दत्वा नारद १३.४१ वह्वः तु न जानन्ति वृ.गौ. ४.४१ वस्त्र चतुर्गुणीकृत्य वाधू ६१ वह्न भोजयेच्छ्राद्धे व्या १८३ वस्त्र तु मलिनं त्यक्त्वा अत्रि ५.६९ वह्वःन विना श्राद्ध व्या १८६ वस्त्राचैवोपवीताच वृ हा ४.८५ वढ्चस्तर्पणं कुर्य्याज्जले आश्व १.१०४ वस्त्रदाता सुवेशः स्याद् संवर्त ५२ वचो ब्रह्मचारी आश्व २४.८ वस्त्रनिष्पीडनं तोयं बृ.या. ७.४४ वाके प्रेणी ततोजप्त्वा ब्र.या. ८.३१९ वस्त्रनिष्पीडनाम्भो व्यास ३.२० वाकोवाक्यं पुराणञ्च या १.४५ वस्त्र पुष्प मणि स्वर्ण वृ हा ६.२६ वाक्यापारुष्यं तथैवोक्तं नारद १.१९ वस्त्रभूषणयोर्दाने समनुच्चारणे कपिल ८५ वाक्संबन्ध एतदेव व १.२१.८ वस्त्र पत्रमलंकारं मनु ९.२१९ वागक्षीकर्णनासादि सर्वा कपिल ८०७ वस्त्रयुग्मं ततोदद्यात् व्या १५० वागदंडोथ मनोदंड मनु १२.१० वस्त्र संस्पर्शेन तस्य वृ परा ८.३१३ वाग्दण्डं प्रथमं कुर्याद् मनु ८.१२९ वस्त्रहारी भवेत कुष्ठी शाता ४.२३ वाग्दुष्टः बालदमको वृ परा ७.१३ वस्त्रहीनेन यः ब्र.या. ८.२५० वाग्दुष्टात्तरस्कराच्चैव मनु ८.३ ४५ वस्त्रादीनि तथा अन्यत्र आश्व ११.६ वाग्दृषितामविज्ञातं व्यास ३.६० वस्त्राद्युत् त्रासते गौश्च वृ परा ८.१५६ वाग्दैवत्यैश्च चरुभिः मनु ८.१०५ वस्त्रालङ्कारपुष्पादिधूप व २.४.६९ वाग्भवं शक्तिबीजं च विश्वा ६.४५ वस्त्राट्कारभूषाद्यैः व २.४.१२४ वाग्यतः परिस्तीर्य्य ब्र.या. ८.२ ४९ वस्त्रालङ्कारयुक्तेन व २.७.१०१ वाग्यतः शेषमश्नीयाद् बह ९.१४२ वस्त्रैराभरणैर्दिव्यैर व २.७.८७ वाग्यतः शेषमश्नीयाद ब्र.या. २.१७८ वहि कलाभ्यां दृक्पालं भार ६.९४ वाग्यतो न्यस्तपात्रस्त्रीन् वृ परा ६.१३३ वहिद्यासाद्धार्य परिस्तीर्या व २.६.२८३ वाङ्मआस्येनसोश्चक्षु ब्र.या. ८.२११ वहि प्रदक्षिणं कुर्यात् ब्र.या. ३.६८ वाङ्मनो जलशौचानि वृ एरा ६.२१६ वहि प्रदक्षिणं कृत्वा ब्र.या. ४.१ ४१ वाङ्मयस्य तु सर्वस्य बृ.या. २.१२५ वहिर्मुखानि सर्वाणि दक्ष ७.१९ वाचं वा को विजानाति या ३.१५० वहिष्कृतश्च संत्यक्त . आंपू १०६४ वाचं विसृजतेवाधः ब्र.या. ८.४७ वहि सन्ध्यामुपासीत वृ परा ६.१४५ वाचयेज्जलमादाय वृ परा १०.३३५ वहि सन्ध्याः शतगुणं वृ हा ५.२८८ वाचयेत् परिपूर्ण वृ परा ७.२०२ वहूनां तु प्रोक्षणम् बौधा १.६.२६ वाचा दत्ता मनोदत्ता का ६ वह्नि जिह्वा भगवतो व हा ७.१४ वाचाऽमिघुष्टं गणान्नं व १.१४.४ वह्नि गार्हस्थ्यदं दिव्यं लोहि १४० वाचाऽभिशक्तो गोसेवा व १.२२.२ Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५४१ वाचा संस्कृतया वर्ति कपिल ४१ वानस्पत्ये विकल्पः बौधा १.५.३३ वाचि वाचस्पतये बृ.या. ७.१०३ वान्ताश्युल्कामुखः प्रेतो मनु १२.७१ विच्छिन्नवनिसंधानं आश्व १.६८ वान्तोविरिक्तः स्नात्वा मनु ५.१४४ विछिन्नवनिसंधाने आश्व १६.४ वापने लवने क्षेत्रे वृ परा ५.१२१ विच्छिन्नसंशयो भूत्वा नारा ९.१३ वापिकूप सहस्रेण वृहस्पति ३९ वाचो यत्र विभिद्यन्ते __दा १४० वापिता यत्र नीली आंगिरस २४ वाच्यग्नि मित्रमुत्सर्गे बृह ११.५४ वापीकूपजलानाञ्च औ ९.१७ वाच्या नियताः सर्वे मनु ४.२५६ वापी कूपतडागादि अत्रिस ४४ वाच्येके जुह्वति प्राण मनु ४.२३ वापीकूपतडागानाम् अत्रिस ३८० वाच्यो यज्ञेश्वरः प्रोक्तो बृ.या. २.४४ वापी कूप तडागानां आप २.११ वाजसनेयिनां प्रोक्ता ब्र.या. १.१८ वापी कूपतडागाना वृ हा ६.४३० वाजे वाजे इति हुक्त्वा वृ परा ७.२८० वापीकूपतडागानां संवर्त १८६ वाजे वाजेऽथ मंत्रेण आश्व २३.९३ वापीकूपतडागानि दा ८ वा-गो-वृषशालायां वृ परा ५.२२ वापी कूपतडागानि लघुयम ७० वाणञ्च खड्गखेटं च वृ हा ४.९५ वापी कूपतडागानि लघुशंख ४ वाणीम्भिश्च तथा शूद्रा शाण्डि ३.२९ वापी कूपतडागानि लिखित ४ वाणिज्यंकारयेद्वैश्य मनु ८.४१० वापी कूपतडागानि वृहस्पति ६३ वाचः पित्त तथा श्लेष्मा बृ.या. २.२५ वापी कूपतड़ागेषु पराशर ७.५ वातातिभेदाश्चैताश्चतै ब्रया, ९.१५ वापीकूपतडागेषु पराशर १२.४९ वाते पूतिगन्धे नीहारे बौधा १.११.२४ वपीकूपतडागेषु अ १४१ वादित्रगीतनृत्यधम् व २.५.१२ वापी तटाकादावल्पं व २.६.५३० वादित्रैर्नृत्यगीताधै व २.६.२६९ वाप्यो वीथ्यः सभा कूपा वृ.गौ. १२.५१ वादिनोनुमतेरा . नारद १९.७ वामतश्चासनं दद्यात् वृ परा ७.८६ वाधूलं मुनि आसीन वाधू १ वामदक्षिणकर्णस्थ उपवीतं विश्वा १.५१ वानप्रस्थश्चतुर्भेदो वृ परा १२.१५८ वामदेवादयः सर्वे सम्वर्त ३ वानप्रस्थब्रह्माचारीय व २.६.४४२ वामदेवादयो विप्राः आंपू ५३७ वानप्रस्थयति ब्रह्मचारिण या २.१४० वामदेवेन चात्मानं मन्त्रै वृ.गौ. ८.३७ वानप्रस्थयतीनां तु __ व्या ७३ वामनः कुन्दवर्णः वृ हा २.८६ वानप्रस्थाश्रम वर्णनम् विष्णु ९५ वामनं ब्राह्मणं दृष्ट्वा बृ.गौ. २०.२७ वानप्रस्थो जटिल व १.९.१ वामपाणी कुशं कृत्वा लिखित ४४ वानप्रस्थो दीक्षाभेदो व १.२१.३५ वामभागेस्मरेद्विष्णु भार ५.४४ वानप्रस्थो ब्रह्मचारी शंख ५.५ वाममार्त्तना केचिद कात्या १७.२१ वानप्रस्थो यतिश्चैव वाधू १४ वामस्कंधे जनं न्यस्य भार१९.२३ वानस्पत्यं मूलफलं मनु ८.३३९ वामस्थानितरांस्तद्वत आश्व २.२३ वानस्पत्यं मूलफलं वाघू १६५ वामहस्ते जलं धृत्वा व्या३३८ Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४२ स्मृति सन्दर्भ वामहस्ते तिलान् स्थाप्य ___दा १४ वारुकः कर्मजः शारि श्रीपर्ण आंपू ५०९ वामहस्ते दश प्रोक्ता व २.३.९४ वारुणञ्च आवगाहञ्च ल व्यास १.१३ वामाङ्कस्थाश्रिया सार्द्ध वृ हा ७.९५ वारुणं तत्प्रघासं च कण्व ६१५ वामांके संस्थितां व २.६.८० वारुणं योगिकं चैव ल व्यास १.११ वामां सम्प्रतपेत् वृ हा ८.२२९ वारुर्णाभ्यां रात्रि बौधा २.४.११ वामेन पुटेनैवत्वाम् व २.३.१०९ वारेषु शुक्रमान्वोश्च कण्व ६९२ वायव्यं काम्यपशवः कण्व ५३५ वार्ताकं शशणं व २.६.१७६ वायव्याभिमुखौ तत्र वृ परा ११.२२९ वार्ताकुं तण्डुलीयं औ ९.३२ वायव्यास्त्रेण नववारं विश्वा ५.३८ वाती त्रयीमप्यथ दंडनीति नारद १८.११९ वायव्येन युता शुक्ले वृपरा १०.२७० वार्षिकं पिंडवर्ज वृ परा ७.१०८ वायुबीजं स्मरेक्तत्र व २.६.६२ वार्षिकांश्चतुरो मासान् मनु ९.३०४ वायुभक्षो दिवा तिष्ठन् या ३.३११ वार्षिकांश्चतुरो वृ हा ५.३१५ वायुभूताश्च तिष्ठन्ति औ ५.५ वार्हस्पत्यञ्च मैत्रञ्च ब्र.या. ९.१८ वायुभूताश्च विप्राणां ब्र.या. ४.३० बालातपः प्रेतधूमो वयं मनु ४.६९ दायुभूतास्तु गच्छन्ति __वाधू ५९ बालाहतं तथा वर्ष व २.६.५४२ वायुरर्काष्ट तत नवम ब्र.या, ८.८० वाष्पाविलाः प्राप्तदुःखा कपिल २०० वायुराकाशप्येतु मनश्च विष्णु म ६८ वासः कौशेयवर्ज यद् नारद १५.१४ वायर्बाद्यो यथा देहे ब.या. ८.५१ वासदश्चन्द्रसालोक्य वृ.गौ. ११.२६ वायुस्तस्मात्समाधाय वृ.गौ. १२.४ वासनस्थमनाख्याय या २.६६ वायुः स्याज्जीवतः वृ हा ७.४७ वासन्तं ग्रीष्मकालीयं वृ परा ५.१३५ वायोः दशाक्षरं यत्तु वृ हा ३.३४५ वासन्त शारदैर्मेध्यै । मनु ६.११ वायोरपि विकुर्वाणाद् मनु १.७७ वास पश्वन्नपानानां नारद १५.४ वाय्वाग्निदिङ्मुखांतासता कात्या १७.२ वासश्चतुर्विधं प्रोक्तं प्रजा १०६ वाय्यग्निविप्रमादित्यमपः मनु ४.४८ वासश्च परिपायोष्ठी व १.३.३९ वाराणस्यां कुरुक्षेत्रे शंख १४.२९ वासना तन्तुना वाऽपि वृ हा ६.८३ वाराणस्यां प्रविष्टस्तु लिखित ११ वासांसि च यथाशक्त्या वृ परा ७.१६४ वाराणस्यां सुखासीनं व्यास १.१ वासांसि धावतो यत्र व परा ८.१८१ वाराहपर्वते चैव गयां औ ३.१३६ वासांसि मृतथैलानि मनु १०.५२ वाराहं नारसिहंच वृ हा ५.१८६ वासांसि वाससी वासो वाधू २०७ वाराह नारसिंह च वृ हा ६.१९ वासांसोन्दुप्रणाशे यो व परा ५.९९ वाराही च महेन्द्राणी ब्र.या. १०.१२३ वासिष्ठजोऽपि तं यात व परा ३.२६ वारिणा भस्मना वापि ब्र.या. २.१५८ वासुदेव इतिदन्तस्य शाण्डि ५.६२ वारिदस्तृप्तिमाप्नोति मनु ४.२२९ वासुदेव जगन्नाथ शाता २.२४ वारिमध्ये मनुष्यस्य नारद १९.२६ वासुदेवञ्ष राजेन्द्र व.गो. ८.९० वारिराजं विशांमध्ये ब्र.या. १०.१३१ वासुदेव तमो अन्धानां शंख ७.२० Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी वासुदेवं अनन्तंच सत्यं वासुदेवं जगन्नाथं वासुदेवं नमस्कृत्य वासुदेवं महात्मनं वासुदेवात्मकं सर्व वासुदेवार्चन वर्णन वासुदेवेन दानेषु कथितेषु वासुदेवो हयग्रीवस्तथा वासेभि समलंकृत्य वासो दद्याद्वयं हत्वा वासोदश्चन्द्रसालोक्य वासोभिर्भूषणैर्भयैर्धन वासोभिर्भूषणैः सम्यक् वासोभूषणपुष्पाणि गन्धं वासोक्त्तार्ण्यवृकलानाम् वासो वस्त्रदशां दद्याद् वास्तवे सानुगायेति वास्तोष्पतेति वै सूक्तं वाहकानाला तु वाहकेषुनलब्धेषु वाहनं ये प्रयच्छंति वाहयेद् दिवसस्याध वाहयेन्न पथि क्षेत्र में वाम्यामुक्तरञ्छतगुणं वाह्यमध्यात्मिकं वाऽपि वाह्यस्थित नासपुटेन वाह्यस्थितं नासापुटेन वाहेोर्विभावयेल्लिंगैः विंशतिवर्षतः पश्चात् विंशति सचतुष्का विंशतीशस्तु तत्सर्वं विंशतेर्दिवसादूर्ध्व विंशतेर्वर्षतः पश्चात् विंशावृत्या तु सा देवी विंशोत्तरं शतपणानं वृ हा ७.२४५ वृ हा ८.२७१ शंखलि १ विष्णु १.६० विष्णुम २३ विष्णु ४९ वृ. गौ. ७.१ वृ हा ५.११८ व २.४.४४ मनु ११.१३७ मनु ४.२३१ शाण्डि ४.४५ वृ हा ५.१४२ शाण्डि ४.१५२ बौधा १.६.१३ वृ परा ७.२६९ वृ परा ४.१६८ वृ हा ८.१० वृ हा ६.९४ व २.६.३२१ वृ.गौ. ७.३५ वृ परा ५.५ वृ परा ५.१२९ व _१.१९.१६ अत्रिस ३९ बृ.या. ८.१९ ब्र. या. २.५७ मनु ८.२५ नारा ४.२ शंख २.७ मनु ७.११७ अत्रि ५.६७ नारा ३.१९ ब्र. या. ४.५१ कपिल ८३१ विकरं निक्षिपेद्भूमौ विकरं भूमिदातव्यं विकर्म कुर्वते शूद्रा विकर्मणां च सर्वेषां विकर्म्मस्थो भवेद् विप्र विकलां भक्तिरत्रेति विकला व्याधिताश्चापि विकल्पत्वेननिर्दिष्टौ विकल्पेषु च सर्वेषु विकासयेच्च मंत्रेण विकास्य तस्य मध्य विकिरं तत्र विन्यस्य विकिरं नैव कुर्वीत विकीर्य फलकापृष्ठे विकुर्वाणाः स्त्रियो विकृतव्यवहाराणां विकृष्यमाणो क्षेत्रे चेत् विक्रयं मद्यमांसानाम विक्रयव्यपदेशेन विक्रयाद्यो धन किंचिद् विक्रीणन्ति य एतानि विक्रीणाति स्वतन्त्र विक्रीणीते तिलान्यस्तु विक्रीणीते परस्य स्वं विक्रीणीते परार्थं योजपं विक्रीतमापि विक्रेयं विक्रीयते परोक्ष यत् विक्रीय पण्यं मूल्येन विक्रीय पण्यं मूल्येन विक्रेता स्वामिनेऽर्थं च विक्रेतुर्दर्शनाच्छुद्धि विक्रोशन्त्यो यस्य विख्यातदोषः कुर्व्वीत विगतक्रोधसन्तापो विगतं तु विदेशस्थं ५४३ व्या १४६ ब्र. या. ४.११९ पराशर २.१६ व २.६.४४१ वृ हा ५.५४ शाण्डि ४.२११ बृ.गौ. १५.८७ लोहि ५०४ वृ परा ७.३५७ वृ हा ३.२२१ वृ परा १२.२८९ ब्र. या. ४.१२२ आंपू १०७७ शाण्डि ३.९२ वृ परा ६.५५ वृ परा ८.६३ नारद १२.२१ वृ परा ४.२२४ वृ परा २५८ मनु ८.२०१ वृ परा ६.२८५ नारद ६.३५ वृ परा ५.९० मनु ८. १९७ विश्वा ३.७१ या २.२५८ नारद ८.२ नारद ९.१ नारद ९.४ नारद ८.५ या २.१७३ मनु ७.१४३ या ३.३०० नारद १८.२७ मनु ५.७५ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४४ स्मृति सन्दर्भ विगुणोऽपि स्त्रीणां नारद १८.२२ विण्मूत्रभक्षणे चैव प्राजापत्यं संवर्त १८९ विघसाशी भवन्नित्यं मनु ३.२८५ विण्मूत्रभक्षणे विप्र. आप ५.१० विघातयोगेन विप्रोद्धरण ब्र.या. ११.५ विण्मूत्रांगारकेशास्थि मार १५.७१ विघ्नकर्तुः श्राद्धकाल कण्व २८२ विण्मूत्रोत्सर्गशुद्ध्यर्थ मनु ५.१३४ विघ्नमाचरते यस्तु आश्व १५.७९ वितत्य च कुशानेता भार १८.३१ विष्य तु हृतं चौरेन मनु ८.२३३ वितानपुष्पमालाध व हा ५.३२७ विचरन्ति महीमेतां वृ.गौ. १०.४४ वितानादि सुशोभासं व २.४.७६ विचित्रशुभ पर्यके वृ हा ३.३०५ वितानादि सुशोमाख्यां व २.७.५६ विचित्राणि च भक्ष्याणि वृ हा ५.५०१ विताने चन्द्रसूर्यो च वृ हा ७.२८७ विजिह्व जाठरायाऽग्ने वृ परा ६.११६ वित्त बन्धुर्वयः कर्म मनु २.१३६ विज्ञातं हन्ति तत्पापं वृ परा ४८० वित्त वार्धाषिकामां तु वृ परा १२.६२ विज्ञातव्यास्त्रयोऽप्येते शंख २.८ वित्तापेक्ष भवेदिष्टं । लघुयम ६९ विज्ञाते परिपूर्ण तु बृ.या. १.३५ वित्ते सति कृतं कर्म आश्व १०.४४ विज्ञानस्य तु विप्रस्य औ ९.७९ विदध्यादौत्र मन्यश्च कात्या १५.३ विज्ञाय चार्थमेतेषां ल व्यास २.७३ विदर्धितोपवीतानितद् भार १५.५३ विज्ञायते हि त्रिभि व १.११.४२ विदित्वा मुच्यते क्षिप्रं बृ.या. २.१५६ विज्ञायते हि त्वागिन ___ व १.७.६ विदित्वैव सदा स्नायात् । बृ.या. ७.९० विज्ञायते हि व व १.२०.३७ विदिशा देवपत्नीनां । लोहि ६४९ विज्ञायते हीन्द्रस्त्रि ___ व १.५.८ विदुर्यस्यैव देवत्वं नारद १८.५० विज्ञायते हागस्त्यो व १.१४.११ विदुषा ब्राह्मणेनेदं मनु १.१०३ विज्ञायते टेकेन व १.१५.८ विदेशगमनं चैव न व्या ३३३ विज्ञाय तत्त्वं एतेषां औ ३.१०४ विदेश मरणेऽस्थोनि कात्या २३.२ विज्ञेयानि च भक्ष्याणि वृ हा ४.११५ विदेशस्थे श्रुताहस्तु वृ परा ७.१४५ विटक्कं शिबिरं वेश्म भार २.६९ विद्धप्रजननः श्वित्रि वृ परा ७.६ विट् चास्य प्लवते नाप्सु नारद १३.१० विद्धौजामप्यकर्मण्यं शाण्डि ३.१२५ विट्छौचं प्रथमं कूर्यान् वाधू १३ विद्यन्ते च सुतृप्तानि वृ परा २.९४ विट्शूद्रयोरेवमेव मनु ८.२७७ ।। विद्यमानत्रयाणां स्यात् वृ परा ७.५२ विटस्व अध्ययन बौधा १.१०.४ विद्यमानधनैः यैः तु वृ.गौ. ५.५४ विडालकाकाधुच्छिष्ट मनु ११.१६० विद्यमानः पिता यस्य वृ परा ७.१ ४२ विडालकाकधुच्छिष्टं अत्रिस २९३ विद्यमानं मन्त्रमुखात् लोहि १३५ विडालमूषकोच्छिष्टे संवर्त १९० विद्यमाने तु पितरि श्राद्ध वृ परा ७.५३ विड्वराहखरना मनु ११.१५५ विद्यमानेऽपि लिखिते नारद २.६८ विणान् वा निंद्य नाशार कपिल ३९ विद्यमाने स्वहस्ते व २.६.२११ विण्मा (मू) त्रोत्सर्जना भार ३.१ विद्यमानो मन्यमानः कपिल ८२७ विण्मूत्रकरणात्पूर्वमाद वाधू १७ विद्यया याति विप्रत्वं अत्रि १४१ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी विधयैव समं कामं मनु २.११३ विद्यास्त्रीक्ति राज्यादि वृ हा ३.२७७ विधाकर्मवयोबन्धु या १.११६ विद्युतश्च तुरीयं तु वृ परा ४.१९ विधाकाआदिभिर्डीना दूषये कपिल ८४६ विधुता वृक्षपातेन वृ परा ७.१५० विद्या कर्म वयो बन्धु औ १.४९ विद्युतोऽशनिघाश्च मनु १.३८ विद्यागुरुष्वेदेव औ ३.२३ विद्युत् पातादि दाहाभ्यां वृ परा ८.१५० विधागुरुष्वेदेव मनु २.२०६ विद्युत्स्तनितवर्षेषु मनु ४.१०३ विधा जपश्च चिन्ता बृह ९.३८ विद्युत्स्त नितवर्षासु औ ३.६० विधातपः समायुक्तो व २.४.७ विधुद् वर्णो हृषीकेश वृ हा २.८८ विधातपः समृद्धेषु मनु ३.९८ विद्वत्स्तुत्यो राजमान्यो आंपू ५९९ विद्यातपोभ्यां संयुक्तं व १.२६.२० विद्वद्बहुज्ञातिशिष्यबन्धू कपिल ५९८ विधातपोभ्यां होनेन __ या १.२०२ विद्वद्धि सेवित सद्धि मनु २.१ विधात्वैतपोमुखान् पुत्रान् वृ परा ७.३२३ विद्वद्भोज्यमविद्वांसों अत्रिस २३ विधा त्वै ब्राह्मणं व १.२.१४ विदर्दभोज्यान्य व १.३.१३ विधादानफलं चैव व परा १०.१२ विद्वन्न दानं तत्सर्वं वृ परा १०.३२२ विद्यादारपरिभ्रष्टो ब्र.या. ८.२९२ विद्वन्मतमुपादाय कात्या २९.१२ विद्यादीन् ब्राह्मण कामान् कात्या १०.१२ विद्वांतु ब्राह्मणो दृष्ट्वा मनु ८.३७ विद्याधनं तु यद्यस्य मनु १.२०६ विद्वान् धूमादिरेको वृ परा १२.३२८ विद्याधिक्यं च संप्रेक्ष्य कपिल ८४४ विद्वाननग्निको विप्र वृ परा ८.२३ विद्यापस्तकहारी च किल शाता ५.२२ विधवागमने पापं बृ.य. ४.४३ विद्या प्रनष्टा पुनरभ्युपैति व १.१.३९ विधवा चैव या नारी बृ.य, ४.३९. विद्या ब्राह्मणमेत्याह मनु २.११४ विधवानाहिताग्नीनां जनानां लोहि ५२० विद्या मोक्षप्रदा च वृ परा १२.३३८ विधवापुनरुद्वाहं यथेच्छं नारा ७.९ विधांभक्त्या प्रयच्छेद्यः वृ परा १०.२३७ विधवाभिरनाथाभि वस्त्राय कपिल ९५६ विधायाः पञ्चभूतानि शाण्डि १.६३ विधवाया नाधिकारः लोहि १८९ विद्यार्थी प्राप्नुयाद विद्यां या ३३० विधवायां नियुक्तस्तु मनु ९.६० विद्यार्थी लभते विधां अत्रिस ३९८ विधवायां नियोगार्थे मर्नु ९.६२ विद्यावन्तं यशस्वन्तं ब्र.या. ८.१०० विधवायास्तदृशस्य लोहि ५७५ विद्या विसवयः संबंध व १.१३.२४ विधवावर्णिविधुरदूरभार्याय कपिल ७६२ विधाऽविद्याविचारं बृह १२.४७ विधातपोभ्यां संयुक्तं अत्रि २.१६ विद्याविर्धाशिरः पश्चाद् भार १३.२२ विधाता शासिता वक्ता मनु ११.३५ विधाविनयसम्पन्ने व्यास ४.५० विधानतस्तु प्रभवेत् तत्तु कपिल ८८६ विद्याविनीतः सम्पम्नो ब्र.या. ८.२९७ विधानमक्त्तथाख्यातं भार १८.१११ विद्या शिल्पं मृति सेवा मनु १०.११६ विधानमेतन्नोदेयं रहस्य भार ६.१८१ विद्याश्रीधनमाग्यैस्तु लोहि ६३ विधानं कृष्णमंत्रस्य वृ हा ३.२८६ विधा सिद्धिमवाप्नोति वृ हा ३.३८५ विधानं नारसिंहस्य वृ हा ३.३४१ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४६ स्मृति सन्दर्भ विधानं ब्रूहि पुरतो कर्मणां लोहि ६३२ विधिवान्नित्यशो विप्र वृ परा ६.७८ विधानं सर्वफलदं वृ हा ३.२०५ विधिहीने तथा पात्रे दक्ष ३.२७ विधानेन ततो यत्ना कण्व ५३९ विधुनोति हि यः केशान् पराशर १२.१४ विधानैरधुनाऽमुष्य वृ हा ३.२३२ विधुष्यतु हृतं चौरैन नारद ७.१८ विधाय प्रत्यहं पार्क विश्वा ८.२३ विधूमे न्यस्त मुसले शंख ७.२ विधाय प्रोषिते वृत्तिं मनु ९.७५ विधूमे सन्नमुसले मनु ६.५६ विधाय वृत्ति भार्यायाः मनु ९.७४ विधूलं मुनिमासीनं वाधू १ विधायाहत्य बहुशः पुनः शाण्डि ३.९५ विधेः प्राथमिकादस्माद् वृ हा ६.२ ४२ विधि ख्यातोन सन्देहो । __ आंपू ६५० विनयावनताऽपि स्त्री कात्या १९.८ विधिं तस्य प्रवक्ष्यामि ल हा ४.२३ विनश्येत्पात्रदौर्बल्य वृहस्पति ५९ विधिनाऽथकृतोदर्भः भार १८.१२५ विनष्टं मुक्र मुवं कात्या २०.१९ विधिनाधायित्वव व २.१.३९ विनागृहीतोयः प्रयुक्त भार १८.१२६ विधिनायश्चात्तश्राद्ध तत्परं कपिल २८० विना जुगुप्सां हीघोरां कपिल ८०० विधिनैव प्रकुर्णीतं आपू ७१६ विनादर्भेण यत्कर्म ल व्यास २.४ विधिनैव प्रतप्तेन वृ हा ५.३८ विना दर्भेश्च मंत्रैश्च व्या ३७६ विधिमोदक सिद्धानि शंख १८.६ विनाऽद्भिरप्सु वाऽप्यातः मनु ११.२०३ विधि पंचविधस्तूक्त नारद १६.७ विना द्विरप्सु वा कुर्यात् औ ९.८६ विधिप्रयत्नरचिता आंपू ९१५ विना न कथयेत्स्वपं शाण्डि ५.५३ विधि प्राणाऽग्निहोत्रस्य वृ परा १.५३ विनानन्यान्जपेन्मात्रा भार ७.१०८ विधिं प्राणाग्निहोत्रस्य वृ परा ६.१२३ विना पाकं तमेकं तु कार्या लोहि ४१७ विधिं विसृज्य यच्छौचं भार ३.२० विनापि साक्षिमि लेख्यं । या २.९१ विधियज्ञाज्जपयज्ञो बृ.या. ७.१३६ विना प्रवेशं यदि ते आंपू ३५३ विधियज्ञाज्जपयज्ञो बृह १०.१४ विनाभ्यनुज्ञातुष्णीकं लोहि ५०९ विधियज्ञाज्जपयज्ञो __ मनु २.८५ विनाभ्यनुज्ञांभर्तुया लोहि ६५२ विधियज्ञाः पाकयज्ञा वृ परा ४.५९ विना मासेन यः श्राद्ध ब्र.या. ४.९२ विधिरेष विवाहस्य आश्व १५.४२ विना मूर्भावसिक्तन्तु शाण्डि ३.३७ विधिद्देष द्विजातीनां वृ हा ५.७२ विनायकः कर्म विघ्नसिद्ध्यर्थ या १.२७१ विधिवत्कीपलादाने बृ.गौ. १७.८ विनायकस्य जननी या १.२९० विधिवत् प्रणव ध्यान वृ परा १२.२५६ विनायकादिशान्तीनां व परा १.५९ विधिवत् प्रतिगृह्णाति मनु ९.७२ विना यज्ञोपवीते तथा शंख १०.१४ विधिवत् सर्वदानानि वृ परा १.५७ विना यज्ञोपवीतेन भार १६.१० विधिवदर्चयेत् सर्वान्यो वृ परा ४.१ ४९ विना यज्ञोपवीतेन वृ परा ८.२९६ विधिवदर्पयेदन्नं देवं व २.६.२७३ विना यज्ञोपवीतेन व्या १९९ विधिवद्वह्नि संस्थाप्य ब्र.या. ८.१० विना रौप्य सुवर्णेन शंख १३.१३ विधिवद्वायु लिंगश्च वृ परा ११.९४ विना रौप्य सुवर्णाभ्यां वृ परा २.१८५ Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी विना विध्युक्तमार्गेण विनाश्य स्वकुलं याति विना श्रद्धांप्रमादाद्वा विना श्राद्धं विना यज्ञं बिना स्नानेन यो भुंक्ते विनियुक्तं तत्र सममात्र विनियोगं क्रमेणैव विनियोगं च संस्मृत्वा विनियोगः पयःप्पाने विनियोगं ब्राह्मणं च विनियोग समुद्दिष्ट विनिर्गतं स्थितं यत्त विनिर्वर्त्य यदा शूद्रा विनीवर्त्त यामितिवयं येना विनिसृते ततः शल्ये विनीततराणामुच्छिष्टं विनैतस्तु ब्रजेन्नित्यं विनैव वेदाध्ययनं ब्रह्म विन्दुप्राणाविसर्गैक्यं विन्दुमध्यगतो नादो भार ४.४० वृ. गौ. ६.१३१ वृ परा ४.१०३ प्रजा १४४ वाधू ७५ कपिल ९७७ भार १७.२ भार १७.२९ भार ६.१३३ बृ.या. १.३२ बृ.या. २.५ भार १५.३० पराशर ३.५३ ब्र.या. ८.३५१ देवल ५१ वृ हा ६.३५४ मनु ४.६८ कपिल ९४० विश्वा ३.५ वृ परा १२.३१५ विन्दैत विधिवत् विन्यसेत् कुशमूलानां विन्यसेत्ताञ्छमीपर्णैः विन्यसेत्ताञ्छमीपर्णैः विन्यसेद्दक्षनासायं वासुदेवं विन्यसेद् वास्तु मंत्रोऽयं वृ विन्यस्य चक्रन्यासं विन्यस्य मध्यमे त्वेकं विन्यस्य मंत्रवर्णानि विन्यस्य मूर्ध्नि विपरीत क्रमेणाश्न विपरीत पित्र्येषु विपरीतां दण्डयेद्वै विपरीतं पितृभ्यः विपरीतेषु पत्रेषु संख ४.१ आश्व २.१६ आश्व ९.१४ व २.३.३२ विश्वा २.१६ परा ११.११५ वृ हा ३.२२० नारा ५.४४ वृ हा ३.३०४ ल व्यास २.२४ वृ परा ९.३ बौधा १.७.३ वृ हा ४.२६१ बौधा १.५.८ व्या ३४७ विपरीत्तानियोग्यास्यु विपर्यये कुक्कुटः विपाकः कर्म्माणां प्रेत्य विप्रक्षत्रियविट्शूद्रा विप्रक्षत्रियवियोनि विप्रः क्षुत्कृत्य निष्टोव्य विप्रजन्म समासद्य विप्रत्वप्रकृतिं याति कण्व २७८ या ३.२९२ या २.२८१ विप्रत्वं दुर्लभं प्राप्तं वै बृ.गौ. १९.४२ विप्रत्वं परमाप्नोति वृषलो कपिल ८८४ विप्रत्वं श्राद्धसंध्याभ्यां कलौ कपिल २९६ विप्रदण्डोद्यमे कृच्छ्रः विप्रदुष्टां स्त्रियं चैव विप्रदुष्टां स्त्रियं भर्त्ता विप्रः पंचाशतं दंड्य विप्रपादच्युतैर्वापि तोयैः विप्रपादविनिर्मुक्त विप्रपादाभिषेके तु कर्त्ता विप्रापादोदकक्लिन्ना विप्रपीडाकरं छेद्यमंगम मनु ११.१७७ नारद १६.१५ बृ.गौ. २०.३३ व्या ३९२ व्या २४४ व्यास ४.९ या २.२१८ व्या ११९ विप्रप्रदक्षिणा याचां विप्रप्रमाणं पूर्वोक्तं विप्रप्रसादात् धरणीधरः विप्रब्रुवो वा विप्रो वा विप्र भोज्यं पिण्डदानं विप्रमग्रासने कृत्वा विप्रमग्रासने कृत्वा विप्रयोगं प्रियेश्चैव विप्रयोगे शरीरस्य ५४७ भार ७.२७ बौघा १.८.१२ या ३.१३३ ब. य. ५.३ बृ.या. ४.७४ वृ परा ८.२९८ कण्व ४२८ विप्ररत्नापहारी चाप्यनपत्यःविप्रवद्विप्रविन्नासु विप्रवादपरीवादं न वदेत् विप्रवान्तावग्निनाशे पिण्डे विप्रशापहताये च अग्नि विप्रः शुध्यत्यपः वृ परा ११.२८० वृ.गौ. ४.५९ वाधू ५३ प्रजा १० बृ.गौ. १७.५० बृ.गौ. १८.६ मनु ६.६२ वृ.गौ. ८.१ शाता ४.२८ व्यास १.७ बृ.गौ. ८. १०० आंपू ९४६ ब्र. या. ५.२९ मनु ५.९९ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ विप्रश्च सम्माताचार विप्रश्चैव स्वयं कुर्याद् विप्रसंध्याकारकोऽपि विप्रसंध्यारोधनस्य विप्रसंध्याविधातस्य विप्रसेवैव शूद्रस्य विप्रस्तु ब्राह्मणी गत्वा विप्रः स्पृष्टोनिशायाञ्च विप्रः स्पृष्टो निशायां विप्रस्य करणं लक्ष्मी विप्रस्य जातमात्रस्य विप्रस्य त्रिषु वर्णेषु विप्रस्य दक्षिणे कर्णे विप्रस्य दक्षिणे कर्णे विप्रस्य दंड पालाशः विप्रस्य पादग्रहणं विप्रस्य पीतमित्युक्तं विप्रस्य वा पृथक् पंक्ति विप्रः स्वामपरे वे तु विप्रहस्तच्युतैस्तोयै विप्रहस्ते तथा काष्ठे विप्रहस्तेन मंत्रेण स्पर्शन विप्रांश्च भोजयेद् विप्राणामात्मनश्चापि विप्राणी अग्नि होत्रस्य विप्राणां ज्ञानतो ज्यैष्ठ्यं विप्राणां ज्ञानतो ज्यैष्ठ् विप्राणां भोक्तुकामाना विप्राणां भोजनात्पूर्व विप्राणी वेदविदुषां विप्रातिध्यसहमे तु विप्रातिथ्ये कृते राजन् विप्रा निन्दन्ति यज्ञान् च विप्रानुज्ञायतिरपि विप्रानेवार्चयेद्भक्तया स्मृति सन्दर्भ व परा ८.३०३ विप्रान् निमंत्रयेतच्छ्राद्ध आश्व २४.१५ आश्व १.१६५ विप्रान् मूर्दाभिषिक्तो या १.९१ कण्व २८० विप्राभावे धनाभावे लोहि ३३८ कण्व २८१ विप्राभ्यनुज्ञया कुर्यात् आंपू १४४ कण्व २८५ विप्रायद धाच्च वृहस्पति १० मनु १०.१२३ विप्रायाऽऽचमनार्थ व १.२९.१८ संवर्त १५४ विप्राहिक्षत्रियात्मानो या १.१५३ यम ६३ विग्रुषोष्टौ क्षिपेदूर्ध्व वाधू ११८ बृ.य. ३.६९ विप्रेणामंत्रितोऽविप्रः वृ परा ८.१८६ कण्व ५८४ विप्रे प्रीणाति तद्वत्स अ९ कण्व ५०२ विप्रेभ्यः कलशान् आश्व १०.६१ मनु १०.१० विप्रे मैथुनिनि स्नानं वृ परा ८.२७९ पराशर ७.४० विप्रे संस्थे व्रतादर्वाक् वृ परा ८.२१ वृ परा ८.२९९ विप्रैश्चतुः षष्ठिसंख्यैः कपिल ८८९ भार १५.१२२ विप्रो गर्भाष्टमे वर्षे व्यास १.१९ और ३.३० विप्रो दशाहमासीत संवर्त ३८ भार १५.११६ विप्रोद्वासनतः पश्चाद कपिल २४७ कपिल ३३९ विप्रो विप्रेण संस्कृष्ट अंगिरस ८ वृ परा ६.३७ विप्रोविप्रेण संस्पृष्ट आप ५.१४ बृ.गौ. १८.९ विप्रोष्य पादग्रहणमन्वहं मनु २.२१७ ब्र.या. ४.८४ विप्रोष्य स्वजनों वृ परा ८.२ ४१ कपिल २११ विफलं मन्त्रतेजस्स्यात्सत्यं विश्वा १.१०२ व २.३.१५ विभक्तदायानपि बौधा १.५.११४ ब.या. ४.१०४ विभक्तं भ्रातरं दीनं दरिद कपिल ६९५ वृ परा ६.१२९ ।। विभक्तष्वनुज जातो व हा ४.२५१ व्या ३५९ विभक्ताः पुत्रतज्ज्ञातिधन कपिल ७४२ मनु २.१५५ विभक्ता भ्रातरः सर्वे वाधू २१० बृ.गौ. १४.२६ विभक्ताः सह जीवन्तो मनु ९.२१० आंपू १०७२ विभक्तास्ते खलु तदा लोहि २२८ मनु ९.३३४ विभक्तेषु सुतो जात या २.१२५ बृ.गौ. १७.१८ विभक्त्यैव प्रथमया कण्व ११२ वृ.गौ. ६.५४ विमजरेन् सुता पित्रोः या २.११९ वृ.गौ. ३.३१ विमति सर्वभूतानि मनु, १२.९९ आंपू १४५ विभागधर्मसन्देहे । नारद १४.३६ बृ.गौ. २१.२६ विभागनिह्नवे शाति या २.१५२ Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी विभागं चेत् पिता कुर्यात् विभागा ज्ञातयस्सर्वे भिन्न विभागेच्छा पालकौर विभागे भ्रातरस्तुल्या विभागोऽर्थस्य पित्र्यस्य विभीतकेथ समिधः विभूतिधारणे मानस्तोकेऽयं विभृयाद् वेच्छतः विभृयादुपवीतन्तु बृ.या ७.५४ विभ्राट् बृहच्च इत्यादौ विभाडित्यनुवाकेन सूक्तेन विमानवरमारूढ़ पितृलोकं वृ.गौ. ६. १६० विमानैः सारसैयुक्तमारूढ़ बृ.गौ. १७.२७ वि मांसु तु विनिक्षिप्य विमुक्तपापान् आलोक्य विमुक्ताः सर्वपापेभ्यः व_२.६.५१६ वृ.गौ. २.१० वृ परा ५.१६८ पराशर ९.६१ विमुक्तो नरकात् विमृश्य धर्मविद्भिश्च विम्बं शिग्रु च कालिंगं विम्बानि स्थापयेद् वियोगः सर्वकरणैर्गुणैः विरजं चतुर्गुणं कृत्वा विरजां संस्मरेदप्सु विरतं च महापापात् विराट् सम्म्राट् महानेष विराट् सुताः सोमसदः विरुद्ध वर्जयेत कर्म विरोधान्विविधान् सम्यक् विरोधी यत्र वाक्यानां विलग्नशुक्लक्लीब विलसितकनकप्रभं विलिप्त शिरसस्तस्य विलोकनादिना कुर्यात् विलोक्य भर्तुर्वदनं विलोभयन्सदापृष्ट या २.११६ कपिल ४८८ लोहि ७८ आंपू ४१२ नारद १४.१ भार ९.४३ आश्व १.५९ नारद १४.५ वृ हा ५.३९ परा ११.१९५ वृ वृ हा ४.२६० वृ हा ८.१३१ वृ हा ४.२०६ विष्णु म ७० बृ.या. ८.३४ व २.६.४६ शाण्डि १.११० वृ परा १२.३४३ मनु ३.१९५ या १.१३९ लोहि २८४ कात्या २८.१७ व १.११.१५ विश्वा ६.२१ वृ परा ११.१२ कण्व ४७५ विल्वपत्र तथा पत्री विवत्सान्यवत्सयोश्च विभक्त्या स्मरस्थ्य विवर्णा दीनवदना विवस्त्रं स्वामिनम् इमम् विवहेन्मोहतो ज्ञाते विवहेरन् महानार्थ विवाहव्रतयज्ञेषु विवाहव्रतयज्ञेषु विवाहश्चेद् भवेद् रात्रौ विवाहाग्निमुपस्थाप्य विवाहात्पूर्वं दिवसे विवाहात् प्राक् पिता विवाहादि कर्मगणो विवाहादिविधि स्त्रीणां विवाहादौ न कर्त्तव्यं विवाहे खलयज्ञे च विवाहे च उपनयने विवाहे च तथा क्षौरे विवाहे चैव निर्वृत्ते विवाहे चैव संवृत्ते ५४९ ब्र. या. १०.१४२ बौधा १.५.१५७ विवादशून्यदत्ता या धरणी विवादे तादृशे शक्तः विवादेत्वधिकारित्वं न विवादे पिरनिर्जित्य विवादे शास्त्रतो जित्वा विवादे सोत्तरपणे विवादो नात्र कोऽप्यस्ति विवादोऽयं परं त्वत्र तन्मात्र विवाह चौलोपनयने विवाहदत्तमथवा यज्ञ विवाहनवनमध्ये तु विवाह वर्णनम् विवाहव्रतं बंधोर्ध्व व्यास २.४१ शाण्डि ३.१५७ विवाहे चोपनयने भार ५.४८ व्यास २.५२ वृ.गौ. ५.४४ आंपू २०६ आंपू ३५५ कपिल ६४५ कपिल ८६८ कपिल ६५१ औ ९.९४ वृ परा ८.२८२ नारद १.५ आंपू १००० कपिल ४२१ दा १३२ आंपू ३२७ व २.४.९५ विष्णु २४ दा ७९ दा १३४ दा १३१ आश्व १५.६१ व २.४.८४ कण्व ५५५ वृ परा ६.५९ कात्या ५.५ नारद १३,१ ब्र. या. ८.१८२ वृ परा ५.१७८ आश्व १९.४ ब्र. या. ८.२७६ लिखित २५ लघुयम ८६ आश्व १५.७१ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५० स्मृति सन्दर्भ विवाहे चोपनयने व्या १८ विशुद्धा विजितक्रोधा व २.५.८० विवाहे नियतं नान्दी आश्व १८.३ विशुद्धौरिन्द्रियैरेव बोटुं शाण्डि ५.२० विवाहे वितते तंत्रे अत्रि ५.४७ विशेषः कोऽपि भूपश्च आंपू २९२ विवाहे वितते यज्ञे आप ७.९ विशेषण तु विद्धांसः कपिल ५११ बिवाहोत्सवयज्ञेषु __ आप १०.१५ विशेषतः क्रतुषु च निरोधे कपिल ८३३ विवाहोत्सवयज्ञेषु आश्व १५.७२ विशेषतीर्थ सर्वेषां बृ.गौ. २०.७ विवाहोत्सवयज्ञेषु पराशर ३.३४ विशेषपतनीयानि वृ हा ६.१८८ विवाहोत्सव यज्ञेषु वृ परा ८.४६ विशेषपूज्यप्रतिपादनाय वृ परा १०.३ ४२ विवाहोत्सवऽयज्ञेषु वृ परा ८.३०६ विशेष परिपप्रच्छुः लोहि २ विवाहोत्सव यज्ञेष्वन् अत्रिस ९८ विशेषस्तु पुन यो शाता ६.२८ विवाहो मंत्रतस्तस्या व्यास १.१६ विशेषात्कर्मकालेषु कण्व ४७४ विविधंपरमं भूप वृ.गौ. ६.३५ विशेषाद् वुधयुक्तेषु वृ परा १०.३५२ विविध वाग्वञ्चनार्थं वृ परा १.३३ विशेषानयनकार्या पश्चात् कपिल ५७८ विवधाश्चैव संपीडा मनु १२.७६ विशेषेण प्रकर्तव्या कण्व ६७२ विवृणोति च मन्त्रार्था बृ.गौ. १४.६० विशेषेण प्रदत्ताश्चेत् कपिल ४६५ विवृद्धा यत्र पुरतः प्रजा १६० विशेषेण ब्रह्ममेधा कण्र ३९० विशनात् सर्वभूतानां बृह ९.८१ विशेषेण ब्रह्मविद्या कण्व ४८२ विशालवक्षसं रक्तहस्त वृ हा ३.२५६ विशेषेण श्राद्धदिने कपिल ५२ विशिराः पुरुषः कार्यों नारद १८.१०३ विशेषेण समाख्यातः कपिल ७३२ विशिष्टकुलसंजातसंस्कारै शाण्डि १.९४ विशेषेणाधुना प्रोक्ता आंपू ९३७ विशिष्टभोज्यमायात् शाण्डि ४.१३३ विश्रामयति यो विप्रं वृ.दौ, ७.२६ विशिष्टं कुत्रचिद्बीजं मनु ९.३४ विश्रामासनं संस्थाप्य ब्र.या. ८.२४८ विशिष्ट ज्ञान सम्पन्न व २.६.४५८ विश्वन्याप्यचिदात्मना विश्वा ६.४९ विशिष्टं वस्तु संपाद्य शाण्डि ४.५१ विश्वरूपं नमस्कृत्य आंउ १.१ विशिष्टं वैष्णवं नाम वृ परा २.१०४ विश्वरूपा विशेषेण भार ६.५९ विशिष्टान् वैष्णवान् वृ हा ६.१ विश्वरूपो मणिर्यद्वत वृ परा १२.३२२ विशिष्टो वैष्ववोविप्रो व २.६.१९५ विश्वस्तया घरादान् कपिल ७५४ विशीर्णानि सरंध्राणि भार १४.१६ विश्वास्तया समासीत कपिल ६२१ विशील कामक्त्तो वा मन ५४.१५४ विश्वस्तया समासीनो कपिल ६२० विशुद्धकोष्ठवृद्धाग्नि शाण्डि ४.१२५ विश्वस्ता प्राप्य भवति कपिल ६३६ विशुद्धतीरभूभागे शाण्डि २.२२ विश्वस्तायास्सनाथायाः लोहि ४८५ विशुद्धदन्तवदनो शाण्डि ३.६० विश्वस्थान प्रशस्तेति भार १५.२५ विशुद्धवदनो मन्त्री शाण्डि ५.१६३ विश्वस्य जगतो मित्रं वृ.या. ४.५ विशुद्धागमसंप्राप्त धरणी कपिल ६४ विश्वासाममित्रत्वात् भार.१८.७ विशुद्धावयसंजातो वृ परा ६.३१३ विश्वानभक्तिभाषांतु भार १०.३ Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी विश्वानीत्यष्टभि पादै विश्वान् देवान् पितृ विश्वामित्र ऋषिश्छन्दो विश्वामित्रऋषिश्छन्दो विश्वामित्रऋषिश्छन्दो विश्वामित्राश्च वालो विश्वामित्रो जमदग्नि विश्वामित्रो जमदग्नि विश्वामित्रो जमदग्नि विश्वेदेवा अपूज्या विश्वेदेवास आगत विश्वेदेवाः सकृनमंत्र विश्वेभ्यश्चैव देवेभ्यो विश्वेसा कर्मणां कर्ता विश्वेषां चैव देवानां विश्वैश्च देवैः साध्यैच्च विश्वैसि वैश्वानर विषघ्न (रुदकै) रगदै विषदः स्याच्छर्दिरोगी विष परीक्षा वर्णनम् विषप्रदास्यद रण्डोऽयं विषमेकाकिनं हंति विषया सक्त चित्तोहि विषयेन्द्रियसंयोग विषयेन्द्रियसंरोध विषयैरिन्द्रियैर्वापि न ये विषयैस्याभिभवो न विषवेगक्रमापेतं विषस्य पलषड्भाग विषाग्निदां पतिगुरू विषाग्नि दाहनं चैव विषाग्निश्यामशवला विषादप्यमृतं ग्रह विषादिनिहता ध्वन्ति विषाद्युपहतानाञ्च ५५१ आश्व २.४९ विषुवतं विजानीयात् वृ परा ६.१०२ आंपू ७९० विषुवायनसंक्रांति भार ११.१२० भार ६.३४ विषुवेत्यापि येनैव वृ.गौ.९.६७ दक्ष २.४० विष्ठावर्गेषु पापिष्ठो वृ.गौ. ९.१६ भार १७.१० विष्ठा वादधुषिकस्यान्नं वृ.गौ. ११.२३ भार १८.४५ विष्णवर्पितचतुर्भाग वृ हा ४.१२५ भार ६.३१ विष्णवे गुरवे वापि वृ परा १२.३ ४० भार १९.११ विष्णवे वामनायेति वृ हा ३.३७३ वृ परा २.६६ विष्णुक्रमाणं क्रमणं बृ.गौ. १५.६६ ब्र.या. ६.१३ विष्णुक्रान्तञ्च दूर्वाञ्च वृ हा ४.७२ ब्र.या. ४.७२ विष्णुचक्रांकितो विप्रो वृ हा ८.२९५ आश्व २३.२० विष्णुञ्च दक्षिणे कुक्षौ वृ.गौ. २.३.५२ मनु ३.९० विष्णुध्यान मनाः कुर्यात्तत वृ परा ७.३०९ बृह ९.९२ विष्णुध्यानरतानां च वृ परा ८.६ वृ परा ४.२३ विष्णुना तु पुरा गीतमेवं वाधू १९० मनु ११.२९ विष्णुन्तु दक्षिणे पूज्ये ब्र.या. २.१०७ बृह ९.१४४ विष्णुपत्नी नमस्तभ्यं विश्वा १.४५ मनु ७.२१८ विष्णु पादोद्भवं तीर्थ पीत्वा वाधू ३२ शाता ३.९ विष्णुप्रकाशकै राज्यं वृ हा ७.२९ विष्णु १३ विष्णुब्रह्मेश्वरास्तेषु वृ परा १२.२३१ लोहि ६८२ विष्णु भू वरुणो यत्र व परा १०.२९७ वृहस्पति ४७ विष्णुमुद्दिश्य विप्रेभ्यो व परा १०.३ ४८ दक्ष ७.१२ विष्णुं निरञ्जन शान्त ब.या. २.१०७ दक्ष ७.१३ विष्णुं वा भास्कर बृ.या. ७.९९ या ३.१५८ विष्णुं समर्चयेद्यस्तु ब्र.या. २.११६ विष्णु म ६४ विष्णुं सम्पूजयेद्देवं व २.३.३९ वृ परा ११.१७३ ।। विष्णुरादिरयं देव वृ परा ४.११६ नारद १९.३८ विष्णुरूपोऽतिथि सोयं वृ परा ४.१९७ नारद १९.३६ विष्णुब्रह्मा च रुद्रश्च बृ.या. ७.९८ ___ या २.२८२ विष्णुः सुरेशो घृति व परा १०.८२ वृ हा ६.१८१ विष्णुसूक्तैश्च जुहुयाद् वृ हा ५.४२९ संवर्त १७० विष्णुस्मरण संशुद्धो वृ परा २.१ ४५५ मनु २.२३९ विष्णु स्मृत्वा क्षिपेत् परा ७.३१६ शाता ६.७ विष्णो निवेदितं हव्यं वृ हा ८.२७५ औ ६.५९ विष्णोनुकम्वेति सूक्तेन व २.३.१८ Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५२ स्मृति सन्दर्भ विष्णोः प्रसाद तुलसी वृ हा ८.३१७ विहितो यस्य कस्यापि लोहि २६२ विष्णो रज्ञतया यस्तु वृ हा ८.१६३ विहिसोतादि सूक्तेन वृ हा ६.५९ विष्णोरनन्यशेषत्वं वृ हा ८.१ ४८ विहीमोतीरित्यतेन वृ हा ५.४८५ विष्णोरसाटमसीति व २.२.१८ वीक्ष्यान्धो नवते काणः मनु ३.१७७ विष्णोरायतनं ह्यापः बृ.या. ७.३० वीजयोनि विशुद्धा ये वृ.गौ, ३.८४ विष्णोराराधनाद् वेदं वृ हा ८.१७६ वीणाऽऽक्षमालिका वृ परा २.२४ विष्णोरावरणं हित्वा वृ हा ८.२९९ वीणावादन तत्वज्ञः या ३.११५ विष्णो र्जिष्णो हृषीकेश अ६१ वीतपुष्पफलाशानि भार १४.१७ विष्णोर्दास्यं परा वृ हा १.१९ वीभत्सवः शुचिकामा बोधा १.५.७१ विष्णोर्लोकमवाप्नोति वृ हा ३.२२९ वीरं धत्तेति तत्प्राश्य आंपू ८५६ विष्णोश्च वह्नश्च व परा ६.२३२ वीररण्डा कुण्डरण्डा लोहि ४९२ विष्णोः सहस्रनामानि वृ हा ६.३२६ वीरहणं परस्ताद्वक्ष्यामः व १.२०.१२ विष्वक् सेनाय धात्रे वृ हा ८.३ ४१ वीरहत्यां तु वा कुर्यात् तुला कपिल ९७० विसर्गबिन्दुदीर्घाणां कपिल ४२ वीरहत्यां दुर्निवार्यामुच्चरन्तं कपिल ४३ विसर्जनं सौमनस्यमाशिषः व्या २५५ वीरासनं च तिष्ठेत शंख १८.२ विसर्जयेत्ततो विप्रा ब्र.या. ४.१ ४५ वीरासनं वीरशय्यां वृहस्पति ७७ विसर्म्य ब्राह्मणांस्तांस्तु मनु ३.२५८ वीरासने सीमासीनं वृ हा ५.९५ विसूचिकामृते स्वादु शाता ६.४५ वुधन्तत्र समारोप्य ब्र.या. १०.५८ विसृजेत् पितृपात्रस्थं आश्व २३.९२ वृक श्वान श्रृगालैस्तु अत्रिस ६६ विसृज्य बान्धवजनं ल व्यास २.८८ वृकजम्बूकक्रक्षाणां पराशर ६.११ विसृज्य ब्राह्मणांस्तान् औ ५.७२ वृकं च जंवुकं हत्वा वृ परा ८.१७१ विसृज्य भगवत्कर्म शाण्डि १.३३ वृको मृगेभं व्याघ्रोऽश्व मनु १२.६७ विस्तीर्णपुयपर्यके वृ हा ४.६० वृक्षगुल्मलता वीरुच्छेदने या ३.२७६ विस्मृत्य यदि पात्र भार १८.८० वृक्ष पशुं कूपगृहान् वृ हा ८.१ ४५ विम्नब्धं ब्राह्मण शूदा मनु ८.४१७ वृक्षपूतानि पात्राणि भार १५.१४० विसम्भाहेतू द्वावत्र नारद २.१०० वृक्ष वृक्षहते दद्यात् शाता ६.४० विम्रस्येध्मं तथाबर्हि आश्व २.२९ वृक्षस्नेहोथवा ग्राह्य व्या ३०८ विहाय दुःखानि विमुच्य विष्णुम ११२ वृक्षाणां याज्ञियानान्तु बृ.गौ. १६.१८ विहायाग्नि सभार्यश्चेत् कात्या २०.२ वृक्षान् छित्वामही हत्वा । पराशर २.१२ विहितं यदकामानां आंउ १०.१८ वृक्षारूढ़े तु चाण्डाले आप ४.११ विहितं सकलं कर्म वृ हा ८.१५८ वृक्षारोहणवय॑ञ्च ब्र.या. ८.२८ विहितस्तु समासेन आंपू ४६२ वृक्षोषधितृणानां च बृह ९.१५४ विहीतस्यं परित्यागा आंपू ३०१ वृक्षौधस्थापनं मार्गे तीर्थ कपिल ५४९ विहीतस्याननुष्ठान् - ... या ३.२१९ वृत्तवृद्ध कथाभिश्च व्यास ३.६७ विहितेनैव पुत्रत्वं आंपू १२५ वृत्तिक्षेत्रगृहक्षोणी लोहि ५९८ पागा Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी वृत्तिन्तु न त्यजेद शंख ५.१७ वृद्धा तिथिगुरुप्राप्तौ वृत्तिमेवाभिकांक्षन्ते कपिल ५०६ वृद्धावादौ क्षयेचान्ते वृतिं तत्र प्रकुर्वीत मनु ८.२३९ वृद्धावादौ क्षयेचान्ते वृत्तिरुहं भुवं मोहाद्दत्वा कपिल ५०७ वृद्धिं च भ्रूणहत्यां च वृत्तिहीनं मनः कृत्वा दक्ष ७.१५ वृद्धिमदिवसे कार्य वृत्तीनां लक्षणं चैव मनु १.११३ वृद्धिं ता परमां प्राप्त वृत्ते कर्माणि भूयश्च आंपू २५ वृद्धिरेव भवेन्नूनं वृत्तो वै गार्हपत्योऽग्निरेव बृ.गौ. १५.३४ ।। वृद्धिश्राद्ध तृणश्राद्धं वृत्यर्थं यस्य चाधीतं ल व्यास २.८२ वृद्धिश्राद्धेषु मन्यन्ते वृत्याख्यस्य तरोरस्य वृ हा ८.१५९ वृद्धि सा कारिका दाम वृत्त्या शूद्रसमा तावद् शंख १.८ वृद्धेचादौ गयावाते वृत्रं शतक्रतुर्हन्ति वृ परा २.१५४ वृद्धे जनपदे राज्ञो धर्मः वृत्वाग्निकुण्ड विपुल वृ.गौ. ७.५५ वृद्धे श्राद्ध त्रयं कुर्यात्तत्र वृथा उष्णोदकस्नानं बृ.या. ७.१२० वृद्धैरसंस्कृतं धार्य वृथाकसरसंयावं __ मनु ५.७ वृद्धैश्चैव तु यत्प्रोक्तं वृथा च जीवितं येषाम् वृ.गौ. ३.१२ वृद्धोव्याधियुतोवापि वृथा च दश दानानि वृ.गौ. ३.११ वृद्धौक्षयेऽह्नि ग्रहणे वृथा चरति जन्मानि वृ.गौ. ३.२ वृद्धौ तु फलभूयस्त्व वृथा चाश्रोत्रिये दानं वृ परा २.१०८ वृद्धौ द्वादशदैवत्यान्न । वृथाटनमनन्तोषं व्यास १.२९ वृद्धौ प्राप्ते च यशः वृथा तीर्थे तु दत्त वृ.गौ. २२.१६ वृद्धौ सत्यां च तन्मासि वृथा तेनान्नपानेन व्या २२० वृन्ताकशाकमूलानि वृथापाकस्य भुंजान अत्रिस २५४ वृन्दावनसमीपे तु गोष्ठी वृथा भवन्ति राजेन्द्र वृ.गौ. ३.२७ वृषक्षुद्रपाशूनांच वृथाभवेत्कृतो विप्रैः भार ६.१०२ वृषणे द्वादशार्थन्तु वृथा मिथ्योपयोगेन अत्रिस २८९ वृषणौ पुनरुत्कृत्य वृथा श्राद्ध भवेत्तच्च विश्वा ८.७० वृषतभानोरुदये कन्या वृथासंकरजाताना ___ मनु ५.८९ वृषदाने शुभोऽनड्वान् वृथैवाऽऽत्मपरित्यागः वृ हा ६.२०० वृषन्द्रवाहना देवी वृद्धत्वे पुत्रगोत्री ब्र.या. ८.१८५ वृषभं गां सुवर्णा च वृद्ध प्रपितामहः सार्द्ध ब्र.या. ७.१५ वृषभं धेनुसंयुक्तं । वृद्ध भारि नृपस्नातस्त्री या १.११७ वृषभैकादशा गाश्च वृद्धयर्थमपि राष्ट्रस्य वृ हा ७.२६८ वृषमैश्च तथोत्खाते वृद्धांच नित्यं सेवेत मनु ७.३८ वृषमथोत्सृजेत्तत्र वृद्धाः च ब्राह्मणा पूज्या वृ.गौ. ३.७७ वृष युग्मं वृषं वापि भार १६.११ व्या ६६ व्या १९३ बौधा १.५.९४ वृ परा ७.११० लोहि ५४ कण्व ५८ आंपू ६.२८ वृ परा ७.१२० नारद २.८९ ब्र.या. ६.२ नारद १२.४० ब्र.या. ६.३ भार १६.३४ ब्र.या. २.५० व २.५.३१ प्रजा १७ वृ परा ११.५१ प्रजा १८३ प्रजा १९ व्या १९ वृ परा ५.१३६ व २.६.१२ या २.२३९ बृ.गौ. २०.५ वृ परा ८.११२ भार २.३८ शाता १.१४ वृ परा २.१८ आश्व ३.१० आश्व ४.१६ मनु ११.११७ अत्रिस ३१९ व २.६.२५५ ब्र.या. ११.३० Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५४ स्मृति सन्दर्भ वृषलानामपि तथा तत्रत्यानां कपिल ३८५ वेदञ्चैवाभ्यसेन्नित्यं ल हा १.२२ वृषलीपति दुष्कर्मा ब्र.या. ४.२१ वेदतत्वार्थत्त्वज्ञा यन्मां व्या ४ वृषलीफेनपीतस्य बृ.या. ३.१५ वेदतत्वार्थवेतृणां वृ परा ८.७ वृषलीफेनपीत्सय मनु ३.१९ वेदते भूमि हृदयं दिवि ब्र.या. ८.३२२ वृषलीफेनपीतस्य ___ यम २८ वेदधर्म पुराणाश्च औ ९.७३ वृषली यस्त गृह्णाति बृ.या. ३.१४ वेदनिन्दारतश्चैव औ ४.३४ वृषवद्गोद्वयं नर्देत वृ परा ११.९६ वेदपादो यूपदष्ट्राः विष्णु १.३ वृषादियुक्तं सीरं च वृ परा १०.६ वेदपारायणनैव मासमेकं वृ हा ५.५४० वृषान्तकप्रेक्षणयोः । कात्या २८.८ वेदपूर्ण मुख विप्र व्या १६१ वृषेण निहते दद्याद् शातां ६.३१ वेदपूर्णमुखं विप्रं व्यास ४.५२ वृषोत्सर्गस्य कर्तारं प्रजा ८९ वेद प्रदानात् पितेत्। व १.२.५ वृषोत्सर्गस्य कर्तारो प्रजा ८५ वेद प्रदानादाचार्य पितरं मनु २.१७१ वृषो धर्मो हि विज्ञेय बृ.गौ. २१.१३ । वेदप्रोक्ता क्रियास्सर्वा स्थानं कपिल ३६१ वृषो हि भगवान् धर्म मनु ८.१६ वेदमध्यापयेच्छिष्यान् ल व्यास २.७ वृष्टिं दिवीशः तद्धारेति वृ हा ८.५७ वेदमध्यापयेदेनं ब्र.या. ८.४९ वृष्ट्यम्बलेपनाश्चैव ब्र.या. १०.३९ वेदमंत्र विना नान्य कण्व ४७७ वृष्ट्यायुः पुत्रकामो वा ब्र.या. १०.२५ वेदमात्रानुक्तितस्तु आंपू ८०१ तु सिवनीनस्य अक्ष्णो ब्र.या. ८.१२० वेदमादित आरभ्य कात्या ११.१७ वृहता वृहणाजेय सर्व विष्णु १.५५ वेदमेव सदाभ्यस्येत मनु २.१६६ वृह तेच्छदिरसिकन्नं ब्र.या. ८.१२१ वेदमेव समभ्यस्ये वृह १२.४१ बुहत्तनुं वृहदग्रीवं वृ हा ३.३३३ वेदमेवाभ्यासे जपेन्नित्यं मनु ४.१ ४७ वृहत्पत्रक्षुद्रपशु __ कात्या ५.८ वेदं गृहीत्वा य कश्चित् अत्रिस ११ वृहस्पति मतं पुण्यं वृहस्पति ८१ वेदं धर्म पुराणञ्च औ ३.३४ वृहस्पतिं समाहूय - ब्र.या. १०.६० वेदं वेदौ तथा वेदा औ ३.८६ वृहस्पते अति अदर्य या १.३०१ वेदं समुच्चरन्तं तच्छूट कपिल ४५ वेणुपत्र दलाकारं ब्र.या. २.३१ वेदयज्ञादिहीनानां औ १.५५ वेणुवैदलभाण्डाना मनु ८.३२७ वेदयज्ञैरहीनानां मनु २.१८३ वेणुश्चतिन्तिडीप्लाक्षा विश्वा १.६२ वेदलांगलकृष्टेषु व्यास ४.५७ वेतनस्यानपाकर्म नारद १.१७ वेदवादौ समारभ्य वृ.गौ. ८.६८ वेतनस्यैव चादानं मनु ८.५ वेद विक्रयिणं यूपं बौधा १.५.१ ४० वेत्ति यो वेदतत्त्वार्थ ब्र.या. ४.८ वेदविक्रयिणश्चैते औ ४.२२ वेत्रचर्मकृतं चैव ताल शाण्डि ४.११४ वेद विक्रयिणे चैव व परा १०.३२० वेत्रासनस्थे पात्रे च शाण्डि ४.११८ वेद विच्चापि विप्रोऽस्य मनु ३.१७९ वेदः कृषिविनाशाय बौधा १.५.१०१ वेदविद्यावितानानि वृ परा ६.२६४ वेदज्ञातो द्विजातीनां व्या ७१ वेदविद्याव्रतस्नातः पराशर ५.३ Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५५५ वेदविक्रयिणनित्यं आंपू ७४७ वेदादौ यौ स्वरः बृ.या. २.५२ वेदवित्पठितव्यं च ल हा १.२३ वेदाध्ययनभेदाश्च कपिल ३५२ वेदविद्भयस्ततो यत्ना कण्व ४८६ वेदाध्यायनेऽनध्यायादि विष्णु ३० वेदविद्याव्रतस्नाता मनु ४.३१ वेदाध्यायाति तु यो विप्रः आंपू ७३६ वेद विद्वन् सदाचार वृ परा ६.२३३ वेदानधीत्य वेदौवा मनु ३.२ वेदविद्याव्रतस्नातः आंउ ५.५ वेदानां लेखिनश्चैव वृ.गौ. १०.९१ वेदवेदागतत्वज्ञो भगवान् वृ.मौ. ७.५४ वेदानुवचनं यज्ञो या ३.१९० वेदवेदांगविदुषा पराशर ८.२ वेदान्तगोचरं धर्म वृ हा ५.६ वेदवेदाङ्ग विद्विप्रः वृ.गौ. ६.१ ४४ वेदान्तपारगास्ते च तं वृ हा ५.४ वेदव्रतानि तत्काले व २.३.१ ४० वेदान्तं पठते नित्यं अत्रिस ३७४ वेदशब्देभ्य एवादौ मनु १.२२ वेदान्तरमधीत्यैव व्या ३८४ वेदशास्त्रपराश्चापि कण्व २७६ वेदान्तवाक्य श्रवणं कुर्वन्ती लोहि ५७९ वेदशास्त्रपुराणादि कपिल ४२८ वेदान्तविज्येष्ठसामा बृ.या. ३.४३ वेद शास्त्रविदो विप्रा वृ परा ८.६६ वे दान्तानां हि सर्वेषां बृह १२.४४ वेद शास्त्रार्थ तत्वज्ञ वृ.गौ. ६.७७ वेदान्त अन्यः पठेद् बृह १२.३६ वेदशास्त्रार्थ तत्वज्ञ अत्रिसं ३ वेदान्तभिहितं यच्च बृ.या. १.२३ वेदशास्त्रार्थ तत्वज्ञो मनु १२.१०२ वेदाविका परित्यज्य मार १३.३८ वेदशास्त्रार्थविच्छान्तः वृ परा ७.१७ वेदाः प्राणाभगवतो वृ हा ८.१७५ वेदशास्त्रेषु निपुणा व २.७.२१ वेदाभ्यासरतं क्षान्तं या ३.३१० वेदशून्येन तत्पित्रा कण्व २२९ वेदाभ्यासस्तपो ज्ञानं मनु १२.३१ वेदस्कन्धो हविर्गन्धो विष्णु १.७ वेदाभ्यासस्तपोज्ञानं मनु १२.८३ वेदः स्मृति सदाचार मनु २.१२ वेदाभ्यासेन वाग्दोषाः कण्व २१५ वेदस्याप्यनधीतस्य वृ हा ८.३३० वेदाभ्यासेन सततं मनु ४.१४८ वेदस्यैवगुणं वापि सद्यः अत्रि ४.१ वेदाभ्यासोऽन्वहं शक्त्या मनु ११.२ ४६ वेदहन्ता शास्त्रहन्ता लोहि ३८५ वेदाभ्यासोऽन्वहं शक्त्या व १.२७.७ वेदांश्चैव तु वेदाङ्गान् बृह १२.३५ वेदाभ्यासो ब्राह्मणस्य मनु १०.८० वेदाक्षर विहीनाय वृ.गौ. ३.३९ वेदाभ्यासो यथाशक्त्या अत्रि ३.६ वेदाक्षराणि यावन्ति वाधू १५७ वेदारतस्तुयोलोके कण्व २२२ वेदाक्षरैकशून्यस्य कण्व २६५ वेदारम्भावसाने च ब्र.या.८.६७ वेदाक्षरोच्चारणतः आंपू १५७ वेदार्थ तत्व विदुषे ल व्यास २.५९ वेदांगानि पुराणं वा औ ३.५८ वेदार्थवित् प्रवक्ता च मनु ३.१८६ वेदाचाररतो विप्रो वृ.गौ. ५.४ वेदार्थः स च विज्ञेया ब्र.या. १.३१ वेदाथर्वपुराणानि या १.१०१ वेदा वेदवती धात्री वृ हा ४.९२ वेदादिविद्याभूताशहु भार १३.१२ वेदाश्च सांगाः स्मृतय वृ हा ७.८५ वेदादौ यो भवेद्वर्ण बृह ११.९ वेदाश्चैवात्र चत्वार बृह ९.७३ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Į ५५६ वेदाश्छन्दांसि सर्वाणि वेदाः सहांगैस्सपुराण वेदास्त्यागश्च यज्ञाश्च वेदाहमेतं पुरुषं वेदिका पादमूले तु वृ परा ११.२१८ वेदी च कोटिहोमे स्यात् वृ परा ११.२७९ वृ हा ७.६१ अत्रिस ३८२ या ३.१७० वेदेनैव हरिं तस्माद् वेदैर्विहीनाश्च पठन्ति वेदैः शास्त्रैः सविज्ञानौः वेदैश्च ऋषिभिर्गीतं वेदोक्तमन्त्रतन्त्राणि वेदोक्तमन्त्रैरखिलैः वेदोक्तवायुर्मर्त्यानामाशिष अत्रिस ३५३ वेदोक्तविधिना विष्णु वेदोक्तेनैव मार्गेण वेदोक्तेनैव मार्गेण वेदोक्त विविधैर्मन्त्रैः वेदोऽखिलो धर्ममूलं वेदोच्चारणसामर्थ्य वेदोदितं स्वकं कर्म वेदोदितं स्वकं कर्म वेदोदितानां नित्यानां वेदोद्धृतपवित्र मंत्र वेदोऽधीतो ददच्छुद्धिं वेदोपकण्ठनिलयं वेदोपकरणे चैव वेद्यर्थं पृथिवी सृष्टा वेद्या दक्षिणतः कुण्डं वेद्याद्यैः ब्रह्मणस्पत्यै वेद्याश्च दक्षिणे भागे वेधसो वा राजा श्रेयान् वेधाद्वहि प्रतीकारी वेनो विनष्टोऽविनयान् वेशन्ने दीर्घिकायां वेश्मद्वारे निवासेषु कात्या १०.८ वृ परा ६.२०९ मनु २.९७ शंख ७.२२ लोहि १४ लोहि १५ मनु १.८४ वृ हा ८. १९१ कपिल ८९० बृ.गौ. २१.२७ वृ.गौ. १०.५६ मनु २.६ आंपू ८३५ औ ३.८७ व १.२७.८ मनु ११.२०४ विष्णु ५६ वृह ११.३० ब्र. या. १.१ मनु २.१०५ वृ. गौ. १५.६३ वृ हा ६.२० वृ हा ५.५०८ वृ हा ७.२४७ व १.१६.१९ वृ परा ५.६७ मनु ७.४१ कण्व ५५८ पराशर ९.४१ वेश्मन्यज्ञातचांडालो वेश्याञ्च ब्राह्मणोगत्वा वेश्याभिगमने पापं वैकल्यं स्पष्टमैवैतत् वैकुण्ठतर्पणं कुर्यात् वैकुण्ठतर्पणं कुर्य्याद् वैकुण्ठपार्षद हुत्वा वैकुण्ठ पार्षदं हुत्वा वैकुण्ठ पार्षदं हुत्वा वैकुण्ठ पार्षदं हुत्वा वैकुण्ठ पार्षदं होमं वैकुण्ठं पार्षदञ्चैव वैकुण्ठं पार्षदं हुत्वा वैखानसा कथं ब्रूयुः वैखानसेन केचित्तु वैखानसेस्तु ये विप्रा वैश्नान सैकदेशापि वैणञ्च रोमशञ्चैव वैणवं दण्डं धारयेत वैणवं दण्डं धारयेत् वैणवं दण्डं धारयेद् वैणवानां गोमयेन वैणवीं धारयेद्यष्टिं वैणाश्च वृद्धाश्च वैतानिकं च जुहुयाद् वैतानिकस्थलं त्यक्त्वा वैदिकञ्चैव यद्धव्यं वैदिकनै व विधिना वैदिकं च तथा सर्व वैदिकं तु जपं कुर्यात् वैदिकं कर्मयोगश्च वैदिकानामयोः स्याद वैदिकानि च नित्यानि वैदिकान्यपि कर्माणि वैदिके आगमे वापि स्मृति सन्दर्भ वृ परा ८.२०६ संवर्त १६४ लघुयम ३८ कपिल ३४७ वृ हा ६.१२२ वृ हा ५.१३४ वृ हा ५.३५८ वृ हा ५.४९६ वृ हा ६.१२७ वृ हा ७.३०१ वृ हा ५.१३२ वृ हा ६.४२५ वृ हा ७.२५१ वृ.गौ. ८.८५ औसं ४६ वृ हा ५.७४ कण्व ४६० वृ हा ७.२११ बौधा १.३.३ बौधा २.३.३३ व १.१२.३४ बौधा १.५.३८ मनु ४.३६ वृ परा ६.२७७ मनु ६.९ कण्व ३०० वृ.गौ. ८.९९ वृ हा७.२३८ बृ.य. ५.१५ वृ परा ४.१०६ वृ परा १२.२८५ कपिल ११६ औ ९.६७ कपिल ३२ ब्र.या. २.११४ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५७ वाऽपि श्लोकानुक्रमणी वैदिके कर्मयोगे तु मनु १२.८७ वैशेषिकं धनं ज्ञेयं वैदिके का (लो) किके कृत्ये कपिल ३३४ वैशेषिकं धनं ज्ञेयं वैदिकेन ततस्तानि कण्व ४७२ वैशेष्यात्प्रकृति श्रेष्ठ्या वैदिके लौकिके वाऽपि अत्रिस २५५ वैश्यकन्यासमुत्पन्नौ वैदिके लौकिके वाऽपि लिखित ३८ वैश्य कुसीदमुपजीवेत् वैदिकै कर्मभि पुण्यै मनु २.२६ वैश्यक्षत्रियविप्राणां वैदिकोऽयं विधि कण्व ७८९ वैश्यजीविकास्थाय वैदेहकादम्बष्ठायां बौधा १.९.१३ वैश्यदेवस्य सिद्धस्य वैदेही वैष्णवीमिष्ट्वा वृ हा ६.३९९ वैश्यपा धनगीताश्च वैधोऽवैद्याय नाकायो नारद १४.११ वैश्यं क्षेयं समागम्य वैधव्यं समनुप्राप्ता सत्पुत्र कपिल ५३३ वैश्यं तु द्वापरयुगं वैधव्य समवाप्नोति सा ५३१ वैश्यं प्रति तथैवैते वैधसाधनुरूपेण वृ परा ६.१४ वैश्यं वा क्षत्रियं वापि वैनतेयं मत्स्ययुग्मं व २.७.९१ वैश्यं शूद क्रियासक्तं वैनतेयांकितं स्तम्भ वृ हा ६.४३२ वैश्यं हत्वा द्विजश्चैवं वैभवीमथ वक्ष्यामि वृ हा ७.१३८ वैश्यवृत्तावविक्रेय वैयाघ्रमाक्ष सैहं वा पराशर ११.४० वैश्यवृत्तिमनात्तिष्ठन् वैरानुबन्धनं वैर्षमल शाण्डि १.५३ वैश्यवृत्तिरनुष्ठेया वैवस्वतकुलोत्पन्नो आश्व १.१३० वैश्यवृत्यापि जीवंस्तु वैवाहिकेऽग्नौ कुर्वीत कात्या १८.५ वैश्यवृत्या तु जीवेत वैवाहिकेऽग्नौ कुर्वीत मनु ३.६७ वैश्यवृत्यापि जीवन्नो वैवाहिको विधि स्त्रीणां मनु २.६७ वैश्यशूदावपि प्राप्तौ वैवाझमग्निभिन्धीत व १.८.३ वैश्यशूदोपचारञ्च वैशस्य चान्नमेवान्नं अत्रिस ३६८ वैश्यशूद्रो प्रयत्लेन वैशस्य चान्नमेवान्नं अत्रिस ५.११ वैश्यश्चेत् क्षत्रियां गुप्तां वैशाखं यस्तु वै मास बृ.गौ. १७.३२ वैश्यश्चेद् ब्राह्मणी वैशाखे पूजयेद् रामं वृ हा ५.३९४ वैश्यः सर्वस्यदण्डः वैशाखे मासि वैशाखे वृ.गौ. ७.४२ वैश्यस्तु कृतसंस्कार वैशाखे शुक्लपक्षे तु वृ परा १०.३५३ वैश्यस्य कीदृशी देव वैशाख्यां पूर्णिमायां वृ परा १०.१२३ वैश्यस्य तु तया भुक्त्वा वैशाख्यो पूर्णिमायां वृ परा १०.१४० वैश्यस्य धनसंयुक्तं वैशाख्यां पौर्णमास्यांन्तु अत्रि ३.१९ वैश्यहत्यान्तु संप्राप्त वैशाख्या पौर्णमास्यां व १.२८.१८ वैश्यहाब्दं चरेदेतद् वैशिष्ट्यं वैष्णवं वृ हा ८.३ ४० वैश्याच्छूदायां रथकार वैशिष्येण गुरोर्शात्वा वृ हा ८.२५९ वैश्यात् क्षत्रियाया नारद २.४८ नारद २.५० मनु १०.३ पराशर ११.२३ बौधा १.५.९० औ ६.३७ व १.२.२९ मनु ३.८४ वृ.गौ. १.२५ औ १.२६ वृ परा १.३७ मनु १०.७८ पराशर ६.१६ पराशर ६.१७ व परा ८.११९ नारद २.५७ मनु १०.१०१ बौधा २.२.८१ मनु १०.८३ औसं ३९ या ३.३९ मनु ३.११२ मनु १.११६ मु८.४१८ मनु ८.३८२ वे १.२१.३ मर्नु ८.३७५ मनु ९.३२६ वृ.गौ. २.१२ शंख १७.४ शंख २.३ संवत १२७ या ३.२६७ बौधा १.९.६ बाँधी १.९.८ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५८ वैश्यात्तु जायते ब्रात्यात् मनु १०.२३ वैश्वदेवः सदा कार्यो वैश्यादिषु प्रतिलोमं बौधा २.२.५७ वैश्वदेवस्य सिद्धस्य वैश्यानां तु नमोन्तस्य विश्वा २.२६ वैश्वदेवस्याकरणाद्दोषं वैश्यान्नेन तु शूदत्वं व्यास ४.६७ वैश्वदेवं प्रवक्ष्यामि वश्यान् मागध वैदेही मनु १०.१७ वैश्वदेवं विहीनाय वैश्यापत्रास्तु दोषयन्त नारद १३.११० वैश्वदेवाकृताद्दोषा वैश्यां च क्षत्रियो गत्वा वृ परा ८.२३९ वैश्वदेवाकृतान् वैश्यायान्तु तथाऽऽम्बष्ठो वृ हा ४.१ ४५ वैश्वदेवाख्याकाण्डानि वैश्यायां निधिना औसं ३१ वैश्वदेवाः च ये कुर्युः वैश्यायां शूदसंसर्गाज्जातो औसं २० वैश्वदेवावसाने तु वैश्याशूदयोस्तु राजन्यान् ___ या १.९२ वैश्वदेवावसाने ब्राह्मणो वैश्यासु विप्रक्षत्राम्यां व्यास १.८ वैश्वदेविक विप्राणां वैश्येन च यदा स्पृष्ट आप ५.१३ वैश्वदेवे च होमे च वैश्येन तु यदा स्पृष्ट अंगिरस १० वैश्वदेवेन जुहुयाद् वैश्येन ब्राह्मणामुत्पन्नो व १.१८.२ वैश्वदेवे तथा ब्रह्मयज्ञे वैश्यैर्वा देव देवेश बृ.गौ. १५.४ वैश्वदेवे तु निवृत्ते वैश्योऽजीवन् स्वर्धर्मेण मनु १०.९८ वैश्वदेवे सम्प्राप्तः वैश्योऽद्धि प्राशिताभिस्तु व १.३.३४ वैश्वदेवे तु संप्राप्ते वैश्यो वा यदि शूद्रो वृ परा ४.२०७ वैश्वदेवेत्वतिक्रान्ते वैश्यो विप्र नृपेष्वेषु वृ परा ६.१५८ वैश्वदेवेन ये हीना वैश्वदेवकृतान् दोषान् पराशर १.४८ वैश्वदेवेन होमेन वैश्वदेवप्रकरणस्य विश्वा ८.३३ वैश्वदेवैककरणं देवपूजा वैश्वदेवं क्वचित्कर्तु आश्व १.११८ वैश्वदेवोग्रतश्चैव वैश्वदेवं तत कुर्यात् ब्र.या. ४.१ ४६ वैश्वानरः प्रविशत्य वैश्वदेवं ततः कुर्यात् विश्वा ८.२८ वैश्वानराख्या गीताः च वैश्वदेवं ततः कुर्यात् ल हा ४.५५ वैश्वानरी व्रातपती वैश्वदेवं ततः कुर्यात् ब्र.या. २.६ वैश्वानरी व्रातपती वैश्वदेवं पुनः सायं आश्व १.१८४ वैश्यवत्वं कुलं सर्व वैश्वदेवं पुरा कृत्वा आश्व १.१४४ वैष्णवत्वं प्रयात्वत्र वैष्वदेवं द्विजः कुर्यात् आश्व १.१२१ वैष्णवः परमैकान्ती वैश्वदेवं प्रकुर्वीत विश्वा ३.६९ वैष्णवं पतिमादाय वैश्वदेवं भूतबलिं वृ हा ५.२९२ वैष्णवं परमं धर्म वैश्वदेवं विना पाको विश्वा ८.४९ वैष्णवःतु पूर्वाहणे वैष्वदेवं विनार्थेन . ल व्यास २.५७ वैष्णवाच्च गुरो वैष्वदेवं हुनेदादौ ततः विश्वा ८.७५ वैष्णवानान्तु विप्राणां स्मृति सन्दर्भ वृ परा ७.८२ _ व १.११.२ विश्वा ८.४५ वृ परा ४.१५५ वृ.गौ, ३.४१ विश्वा ८.५० ल हा ४.६२ कण्व ५१३ वृ.गौ. २.१७ वृ हा ५.१०६ कपिल ९६१ वृ परा ७.२१३ अत्रिस ३६९ व परा ४.१७५ आश्व १.१३९ मनु ३.१०८ व २.६.१९१ पराशर १.४५ कात्या २७.९ शंखलि २ आप ८.१४ कपिल २५८ वृ परा ७.८३ व १.११.१२ वृ.गौ. १.२२ बौधा १.१.३७ व १.२२.५ व हा ७.१५६ व २.६.३९८ वृ हा ८.३३८ वृ हा ८.२०२ वृ हा ६.१४१ व २.६.२३७ वृ हा ३.२७ वृ हा ८.३०२ ܬܩ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी वैष्णवानां तु हेतीनां वैष्णवान् भोजयेत् वैष्णवान् भोजयेद् वैष्णवान् भोजयेन् वैष्णवाप्सरसां संधैः वैष्णवी निष्कृतिर्दिव्या वैष्णवेषु च मंत्रेषु वैष्णवेष्टि प्रकुर्वीत वैष्णवेष्टि प्रकुर्वीत वैष्णवेष्टिम्बिधानेन वैष्णवै पंचसंस्कारैः वैष्णवैरनुवाकैर्वा प्रत्यहं वैष्णवैरनुवाकैश्च वैष्णवैरनुवाकैश्च वैष्ववैरनुवाकैश्च वैष्णवैरनुवाकैश्च वैष्णवैः वैदिकै पूर्वै वैष्णवैश्च सुहृद्भिश्च वैष्णवोद्यापनञ्चैव वैष्णवो वर्णवाह्योऽपि वैष्णवोऽहं प्रदो (दे) हीति वैष्णव्या चैव गायत्र्या वैष्णव्या चैव गायत्र्या वैष्णव्या चैव गायत्र्या वैष्णव्या चैव गायत्र्या वैष्णव्याचैव गायत्र्या वैष्वक् सैनी मिमां हुत्वा वैष्वक्सेनीं ततो वक्ष्ये वोटुं पंचाशिखञ्चैव वोढारौऽग्निप्रदातारः वोदने परमान्ने वा वोधोनमास्यत्तच्चाय व्यक्त एकगुणसस्मा व्यक्तायतनयोः पूजां व्यक्तायनसंस्थानं वृ हा २.२४ वृ हा ५.३७८ वृ हा ५.४८१ वृ हा ७.६५ वृ परा १०.१९९ कण्व ४७६ व २.३.११९ वृ हा ६.४१६ वृ हा ८.३३२ व २.६.४१५ वृ हा ६.४३३ वृ हा ५.५४३ वृ हा २.१०१ वृ हा ७.२५० वृ हा ५.३७९ वृ हा ५.५२३ वृ हा ८.३ वृ हा ५.२९८ ब्र. या. ८.१८३ वृ हा ८.३३९ शाण्डि ४.७० वृ हा ५.५२८ वृ हा ७.१०३ वृ हा ७.१७५ वृ हा ५.४१७ व २.६.४१० वृ हा ७.१९९ वृ हा ७.१८४ वृ हा ७.२१२ पराशर ४.३ व्या १९४ कपिल २७२ भार ६.२४ शाण्डि ४.६ शाण्डि ४.७ ५५९ वृ परा १.१ बृ. या. २.७३ व्यक्तोऽव्यक्तस्तथाज्ञश्च व्यङ्गान् काणान्च कुब्जान् वृ.गौ. ३.६८ व्यतिक्रमाद सम्पूर्ण व्यतिक्रमे तु कृच्छ्रः व्यतीपाते गजच्छाया व्यास १.३९ बौधा २.२.५५ कण्व १४५ वृ हा ५.३८१ या १.२१८ मनु २.७२ कपिल १२५ लोहि १४५ वृ.गौ. ९.४२ वृ परा ८.१२२ मनु ५.१६४ मनु ९.३० या १.७२ बृ.य. ४.३६ व्यास २.४९ मनु १०.२४ वृ हा ६.३१७ नारद १३.९३ शाण्डि ३.१४४ अत्रिस ३७० या २.१ नारद १९.२१ व १.१६.३० कपिल ८१० वृ हा ७.५७ दा ६० व १.२१.११ व १.२१.९ भार १९.३२ व्यास ३.२९ दक्ष ३.२८ मनु ७.५३ व्यक्ताव्यक्ताय व्यतीपाते तु संप्राप्ते व्यतीपातो ग जच्छाया व्यत्यस्तपाणिना कार्य व्यत्यासाद्वातञ्जलो यो व्यत्यासेन कृतं तच्च व्यपोह्यति नर पाप व्याभिचारात्तु ते हत्वा व्याभिचारात्तु भर्त्तु स्त्री व्याभिचारात्तु भर्त्तु स्त्री व्याभिचारादृतौ शुद्धि व्याभिचारादृतौ शुद्धि व्याभिचारेण दुष्टानां व्याभिचारेण वर्णानाम व्याभिचारे तु सर्वत्र व्याभिचारे स्त्रियो व्यये च मुक्तहस्ता च व्यवहारनुपूर्वे धर्मेण व्यवहारान् नृपः पश्येद् व्यवहाराभिशस्तोऽयं व्यवहारे मृते दारे व्यवहारेषु समतः संप्राप्ताः व्यवह्रियन्ते सततं व्यवायी रेतसो गर्ते व्यवाये तीर्थगमने व्यवाये तु संवत्सरं व्यस्तं पूर्वं प्रयोक्तव्यं व्यस्ताभिर्व्याहृतीभिश्च व्यसनप्रतिकाराय व्यसनस्य च मृत्योश्च Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० व्यसनासक्तचित्तस्य व्यसनासक्तचित्तस्य व्यवहारानुरूपेण धर्मेण व्यहारान् दिदृक्षुस्तु व्यवहारे गोसमैस्तु व्यंहैः व्यूह्य यथोक्तैर्वा व्याघात मपि चान्यानि व्याघ्रचर्मांबरधरां व्याघ्रं श्वानं तथा सिहं व्याघ्रहिगजभूपाल व्याघ्रादिभिर्गृहीतां व्याघ्रेण हन्यते जन्तु व्याधाञ्छाकुनिकान् व्याधितश्चैव मूर्खश्च ' व्याधितस्य कदर्यस्य व्याधितस्य दरिद्रस्य व्याधि प्रवाहे मृत्युश्च व्याधिव्यसन्नानि क्षान्ते व्याधेम्यों मेध्यामांसानि व्यापकानां च सर्वेषां व्यापकान्मंत्रत्वं व्यापका मंत्ररत्नञ्च व्यापन्नानां बहनान्तु व्यापन्ननां बहूनांच व्यापादयेत्तथात्मानं व्यापादितेषु बहुषु व्यापादो विषशस्त्राद्यै व्याप्त चतुर्थपादेन व्याममात्रं समुत्सृज्य व्यामिश्रयागनिर्मुक्ता व्याहमोहयन्वाक्यजालै व्यालग्राही यथा व्यालं व्यालग्राही यथा व्यालं व्यालैर्न कुलमाजर व्यावर्तेत ततः पश्चात् अत्रिस १०३ दक्ष ६.९ आप ८.१५ मनु ८. १ वृ परा ८.८१ वृपरा १२.४५ वृ.गौ. ८.८३ भार १२.१४ संवर्त १४२ शाता ६.२ वृ हा ६.३२७ शाता ६.८ मनु ८.२६० अ १३७ अत्रिस १०२ आंउ ९.१० अत्रिस ५.७२ पराशर ६.५० प्रजा १४३ वृ हा ८.२१८ व २.७.६८ वृ हा ७.१०० आप १.२७ पराशर ९.४६ औ ७.२ संवर्त १३५ नारद १५.५ भार ६.१४५ लघुशंख ३० शाण्डि ५.७६ लोहि ६२८ दक्ष ४.२० पराशर ४.२८ पराशर ११.६ वृ परा १०.३८ व्यावहासिक सूर्याणां व्यासवाक्यावसाने तु व्यास वाक्यावसाने व्यास शुकश्च प्रह्लादः व्यास सुस्वागतं ये च व्यासेनोक्तस्मृती स्वकीये व्याहतित्रितयं श्रेष्ठ व्याहृतिश्चतत आज्ये व्याहृतीनामथैततस्मिन् व्याहृतीनामाथन्यासं व्याहतोयहरंश्चैव व्याहृतीश्च यथाशक्ति व्याहृत्यादिशिरोऽन्त्येन व्याहत्यादी पदादौ व्याहृत्ये वैष्णवान् व्याहृत्यैककया युक्तै व्याहृत्योंकासहिता व्यूहाधिपत्यं कुर्वन्ती व्योमान्तं सततं ध्येयं व्रजन्तञ्च तथात्मानं व्रजन्ति वालसूर्यामैः व्रणद्वारे कृमिर्यस्य व्रणभङ्गे च कर्तव्य व्रणमंगे च कर्तव्यं व्रणसंजीतकीटेश्व व्रतकाले तादृशं तु व्यतीते व्रतच्छिद तपछि व्रतंत्र्यसमायुक्तं स्नात व्रतप्रवचने चापि सत्यो व्रत बन्धे विवाहे च व्रतं तु यावर्क कुर्यात् व्रतं द्वादशवर्षाणि चरेद् व्रतं वेदञ्चोभी समाप्य व्रतं समाचरेत् कृत्वा व्रतवदेवदैवत्ये स्मृति सन्दर्भ व २.६.५१० पराशर १.१८ वृ परा १.१९ वृ हा ७.८३ पराशर १.११ बृ. य. ५.१३ भार १९.३३ ब्र. या. ८.२८१ भार १९.३९ वृ परा ४.१३० बृ.या. ३.३० कण्व ६२४ विश्वा १.८० ब्र.या. २.८३ वृपरा १.१७५ विश्वा १.८२ बृ.या. ४.४३ लोहि ६७४ वृ परा १२.२७३ या १.२७४ वृ.गौ. ५.९५ व १.१८.१४ आंउ १०.९ पराशर ९.२० वृ परी ७.३०४ लोहिं ५११ पराशर ६.५९ ब्र.या. ८.९२ कपिल ३२० आश्व १७.३ शंख १८.११ वृं ही ६.३३२ ब्र. या. ८.९५ वृहा ६.२८३ मनु २. १८९ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी व्रतश्राद्धनिमित्तेन याचितो व्रतस्थमपि दौहित्र व्रतस्थो व्रतसिद्ध्यर्थं व्रतस्य धारणन् तीर्थ व्रतादृते नावासा व्रतादेशात् सपिण्डानां व्रतान्ते भोजयेद्विप्रान् व्रतान्ते भोजयेद्विप्रां व्रतान्ते मेदनीं दत्त्वा व्रतान्यथ प्रवक्ष्यामि व्रतिनं च कुलीनं च व्रतिनः शास्त्रपूतस्य व्रतीने कन्यकादानं रसदानं व्रते तस्मिन्समाप्ते व्रते तु क्रियमाणे वै व्रते तु सर्व वर्णानां व्रतोपवासदिवसे सूतके व्रतोपवासनियमान् व्रतोपेतो दीक्षितः स्यात् व्राण पूर्वमेवोक्तं व्रात्यस्तोमेन वा यजेद्वा व्रात्यानां याजनं कृत्वा व्रीह्म शालयो मुद्गा व्रीहयो यव- गोधूमा व्रीहयो यवः गोधूमा व्रीहीणामुपघाते प्रक्षाल्यं श शंसये तु न भोक्यव्य शकुनानां च विषुविष्किर शकृदापोशन पीतं शकृन्मूत्र हि यस्यास्तु शक्त परजने दाता शक्त प्रतिग्रहीतुं यो शक्तयः केशवादीनां शक्तयश्च समाख्याता कपिल १९५५ मनु ३.२३४ प्रजा ३४ बृ.गौ. २०.१२ बृ.या. ७.४३ औ ६.१८ बृ.गौ. १७.७ बृ.गौ. १७.२६ शाता २.३७ वृ परा ९.१ अत्रिस ३५४ अत्रिस ८४ कपिल ९६० व_२.४.९४ वृपरा ८.११४ देवल ६६ व २.४.११२ वृ हा ५.१४ बौधा १.७.२७ ब्र. या. ४.५ व १.११.५९ मनु ११. १९८ कात्या २६.१३ वृ परा ७.१५७ वृ परा ७.२३६ बौधा १.६.४४ पराशर ८.५ व २.१४.३६ व २.६.२०९ वृ परा ५.१५ मनु ११.९ वृ परा ६.२४० वृ हा ४.९० विश्वा ६.३८ शक्तयो विमलाद्याश्च शक्तस्यानीहमानस्य शक्तितोऽपचमानेभ्यो शक्ति चोभयत तीक्ष्णां शक्ति ज्ञात्वा शरीरस्य शक्तिराधारशक्तिश्च शक्तिविषये मुहूर्तमापि शक्ति श्री रुच्यते शक्ति साध्यानि कार्याणि शक्तिसूनोरनुज्ञातः शक्तिसूनौर्यथा सिद्धा शक्तिहीनो यथाशक्ति शक्तेनापि हि शूद्रेण शक्तेश्चेद्वारुणं शक्तो गुर्वीर्ह्यमेधावी शक्तो मोक्षयन शक्तौ सत्यां विधानेन शक्त्या कालेन च ततः शक्त्या च चतुरो वेदान् शक्त्या च वैष्णवैः शक्त्या दशावतराणां शक्त्याऽपुसंयमं शक्त्या मंत्रद्वयं शक्त्या वस्त्राणि देयानि शक्त्यावाषि च कर्तव्यं शक्त्या संपूज्य तानेव शक्यं तत् पुनरादातुं शक्रलोकावतीर्णश्च ५६१ व २.७.४० या २.११८ मनु ४.३२ वृ परा ८.१०९ वृ परा ९.२२ व_२.६.९९ बौधा १.२.२९ वृ हा ३.३२४३ कण्व ४४१ वृ परा १.६४ वृ परा ५.१२० शाण्डि ४.१४६ मनु १०.१२९ ल व्यास १.१५ औ ३.३६ या २.३०३ कपिल १६९ कपिल ६६ वृ हा ५.२१५ वृ हा २.१४५ वृ हा २.९६ वृ परा २.१६७ व_२.६.१६४ वृ परा ७.१३१ वृ परा १०.१३३ वृ हा ८.३११ नारद १८.४६ वृ.गौ. ७.४२ बृ.गौ. १९.६ अत्रिस १३८ अत्रिस ३.९ अत्रिस ५९ व २.१.२७.१० शक्रश्च पितरोरुद्रावसव शंकरस्यापि विष्णोर्वा शंकास्थाने समुत्पन्ने शंकास्थाने समुत्पन्ने शंकास्थाने समुत्पन्ने शंकुश्च खादिर कार्यो कात्या १७.३ शखं कुर्वन्ति नादैश्च बृ.गौ. १९.१७ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६२ स्मृति सन्दर्भ शंख चक्रगदाखड्ग वृ हा ३.१३५ शतमश्वानृते हंति बौधा १.१०.३६ शंखचक्र धनुर्वाण वृ हा ३.२८३ शतमश्वानृते हंति वृहस्पति ४४ शंखचक्रधनुर्वाण वृ हा ३.२६० शतमष्टोत्तरं तत्र यथा व २.४.७९ शंखचक्रांक न कुर्याद् व २.१.३५ शतमानस्तु दशभि या १.३६५ शंखचक्रेस्फुटं कुर्यात् व २.१.३७ शतरुद्र धर्मशिरं अत्रि ३.३१२ शंखचक्रोर्ध्व पुंड्रादि वृ हा १.२४ शतरुद्रियं अथर्वशिरः व १.२८.१४ वृ हा ५.७७ शतरुद्रीयं अथर्व शिरः । शंक ११.४ शङ्खचक्रोर्ध्व पुण्ड्रादि व २.७.२३ शतवर्षसहस्राणि वृ.गौ. ६.४४ शंखचक्रोध्वं पुण्ड्रादि वृ हा ८.२८२ शतवल्ली महावल्ली आंपू ५२१ शंखचक्रोवं पुण्ड्राधौ वृ हा ८.२८५ शतवारं सहस्रं वा वृद्धहा ४.५० शंख पद्य गदा चक्र वृ हा ३.२४ शतवारं सहस्रं वा वृ हा ५.१६२ शंख पुष्पीलतामूलं पराशर १०.२१ शताक्षरा समावर्त्य बृ.या. ४.४६ शंख प्रोक्तमिदं शास्त्र शंख १८.१६ शतानामपि मूढानां वचनं कपिल ८४८ शंखमस्तकसंक्काश भार ७.३१ शतानि पंच तु वरो नारद १८.८९ शंखादिनिधिभी राजकुलैरपि वृ हा ३.३२४ शतुकरो तु वैतस्यां व २.४.११९ शंखाभः शंखचक्रे कर वृ हा ३.३८२ शते दश पला वृद्धिरौर्णे या २.१८२ शंखे नैवभिषिच्याथ वृ हा ६.४२२ शतेन जन्मजनितं वृ परा ४.६१ शठं च ब्राह्मणं हत्वा अत्रिस २९० शत्रवोऽप्यत्र (पूज्या) कण्व ५८६ शणसूत्रा तु वैश्यस्य ब्र.या. ८.१९ शत्रुमित्र तथानुष्णमुष्णं लोहि ५८४ शण्डामर्क उपवीरः ब्र.या. ८.३२९ शत्रुमित्रोदासीमध्येमेषु विष्णु ३ शतकोटिसमा राजन् वृ.गौ. ७.१०८ शत्रुसेविनि मित्रे च मनु ७.१८६ शतजन्मसु तं विद्यात्साक्षद् कपिल ४० शत्रौ मित्रै समस्वान्त वृ परा १२.१०८ शतजन्मसु विप्रत्वं प्राप्तस्य कपिल ३४ शनकैस्तु क्रियालोपादिमाः मनु १०.४३ शतत्रयं तु श्लोकानाम बृ.या. ८.५६ शनैः कालेन महता धरा कपिल ८३६ शतद्वयं तु पिंडानां वृ परा ९.५ शनैनासापुटैर्वायुमुत् बृ.या. ८.४५ शत धारेण विन्यस्य ब्र.या. १०.११० शनैरुच्चारयन्मंत्र ल हा ४.४३ शतपत्रैश्च जातीभि वृ हा ५.५३७ शनैः शनैः क्रिया साध्वी शाण्डि ४.१४१ शतंजप्तवा तु सा देवी शंख १२.१५ शनैः शनैश्च कालेन आंपू ३३५ शतं तु विरजाहोम नारा ८.१२ शनैश्चर कला दिव्या ब्र.या. १०.८१ शतं त्रिलोकं त्रिशतं विश्वा ३.७६ शनैश्चरन्तु संस्थाप्य ब्र. या. १०.६५ शतं ब्राह्मणामाक्रुश्य _मनु ८.२६७ शनैः सम्माजनं ब्र.या. २.२२ शतं ब्राह्मणमाकुश्य नारद १६.१४ शन्न इत्यादि सूक्तैश्च वृ हा ५.४९० शतं वैश्ये दशशूद बौधा १.१०.२४ शन्न आपस्तु दुपदा वृ.या. ६.२८ शतं सहसं गोप्यं वा लोहि ६६१ शन्नोदेवी क्षिपेद्वारि व २.६.२९४ शतं स्त्री दूषणे दद्याद् या २.२९२ शन्नो देवीति चेत्यत्र वृ परा ११.३२१ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी शन्नो देवी रवे सूनुं शन्नो देवी समारभ्य शन्नो देवीस्त्वापो वा शपत्येनं प्रदातरं शपथं नाचरेत्पादं संस्पृश्य शपथानन्तरं कालान् शपथा हृयुषिदेवानां शपथैरतुल धोरै राज शप्तो यदि भवेदेष राज्यं शबराश्च पुलिन्दाश्च शब्दब्रह्मात् परं ब्रह्मां शब्दः स्पूर्शश्च रूपं शब्दः स्पर्शश्च रूपं शब्दस्पर्शादिभिश्चैव शब्दादीनां च पञ्चानाम् शब्दानजनयत्नेव शब्दे छन्दसि कल्पे च शब्देनान्नरसं क्षीरं शब्देनापोशनं पीत्वा शब्दो रूपं तथा स्पर्शो शं न आपस्तु वै मंत्र शमलप्रसवे स्पृष्टौ शमीपर्ण तिलै मिश्रितोयैः शमीपर्णेः तिलै स्तोयैः शमीपलाशशाखाभ्यां शमी पापोप शान्त्यर्थ सम्भवायमः पूर्व शम्भवायेति जुहुयात् शम्भुना लोकनाथेन सम्भुः पुण्यशिवश्री शम्भुं रविमुमां चन्द्र शम्या वेधाद्वहि शयनं च यथाकाले शयन विचार वर्णन शयनाद्यनेक विवेक वर्णन वृ परा- ११.६३ विश्वा ४.१४ नारा ६.६ आंपू ७३८ शाण्डि ५.४२ आंपू ३८९ नारद २.२१८ लोहि ६५ नारा ७.१४ वृ परा ८.३२१ बृ.या. २.४९ या ३.१८० मनु १२.९८ बृ.या. २.५६ बृह ९.१३४ आंपू २४९ आंउ ५.४ वृ हा ५.२७१ वृ परा ११.१५१ आंपू ५८९ कण्व ५६ व्या २३९ शंख ७.२५ वृ परा २.८६ भार १८.८१ व_२.६.३२६ व २.६.३३८ कात्या २३.११ वृ परा ११.४८ शरद्ग्रीष्मवसन्तेषु ब्र. या. १०.४८ वृ परा ११.४३ वृ परा ५.७३ शयनासनयानानां शयनासन संसर्ग शयानः पादुकस्थश्चे शयान प्रोष्ठपादौ वा आश्व १.५ विष्णु ६९ विष्णु ७० शयानः प्रौढपादश्च शयानः प्रौढपादश्च शयिते शयिता सुप्ते शयीत शुभशय्यायां शय्या च पादुके विद्यां शय्या च भोजनञ्चैव शय्या तप्तायसमयी शय्याभार्या शिशुः वस्त्र शय्यां गृहान् कुशान् शय्यासन दानाद् शय्यासनमलंकारं कामं शय्यासनेऽध्याचरिते शय्यासूक्तान्तमाज्येन शरः क्षत्रियया ग्राह्य शरच्छशाकं प्रभम् अश्वक्तं शरच्छ्रीको मङ्गलको शरणागतधाती च कूट शरणागत बाल स्त्री शरणागत परित्यज्य शरणागतं स्वामिनं शरण्यः पुरुषस्तीथमन्नं शरद् वसन्तयो केचिन् शरावान् पंच निक्षिप्य शरावैः द्रव्य सम्पूर्णे शरीरकर्षणात्प्राणा शरीरचिन्तां निर्वर्त्य शरीरजे कर्मदोषैर्याति शरीरपरितापेन शरीरं चैव वाचं च शरीरं चैव विश्वं च ५६३ शंख १६.७ व्यास ३.४८ भार ४.१३ व २.३.१६८ औ ३.६९ मनु ४.११२ लोहि ६६० वृ हा ५.३०० अ १४३ अ ३९ वृ हा ६.१६३ शंख १६.१५ मनु ४.२५० व १.२९.१२ मनु ९.१७ मनु २.११९ वृ हा ८.२५७ मनु ३.४४ वृहा ३.३८१ आंपू ५१४ बृ.या. ८.३९ या ३.२९८ मनु ११.१९९ वृ हा ६.१७१ बृ.गौ. २०.११ नारद १९.३३ कात्या २६.९ व २.३.२४ वृ हा ५.११७ मनु ७.११२ या १.९८ मनु १२.९ व १.२०.५२ मनु २.१९२ बृ.या. २.११८ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६४ स्मृति सन्दर्भ शरीरं धर्मसर्वस्वं शंख १७.६५ शशास पृथिवी सी नारा ७.७ शरीरं पीड्यते येन शुभेन अत्रिस ३७ शशिब्रह्ममहीजात भार १४.२० शरीरं बलामायुश्च बौधा १.१.१६ शशिव्रतं त्रयः क्राः भार ११.३ शरीरं यत् च तत् वृ.गौ. ५.१७ शश्वद्धधत्यतो दस्त मार १५.१०२ शरीरं शोषयेन्नित्यं शाण्डि ४.२२३ शश्वन्नांदिस्तदा कार्यों कपिल ७४ शरीरमाग्निना संयोज्यान व १.४.११ शस्तं स्नानं यथोद्दिष्ट बृ.या. ७.१६६ शरीरमापः सोमश्च बृ.या. २.९८ शस्त्रद्याते त्रिकृच्छ्राणि यम ७० शरीर शुद्धि विज्ञेया शंख ८.१० शस्त्र द्विजातिभिर्दार मनु ८.३ ४८ शरीरसंक्षये यस्य मन ___ या ३.१६१ शस्त्र वस्त्राश्म मृत्पिड वृ परा ८.१३४ शरीरस्यात्यये प्राप्ते पराशर ६.५४ शस्त्रवाहनरक्षोत्रं विश्वा ५.३० शरीरात् धार्यते जीवो वृ.गौ. ५.१६ शस्त्र विष सुरा च व १.१३.२३ शरीरान्निसृते प्राणे वृ परा १२.२२२ शस्त्रवेकाकिनं हंति वृहस्पति ४९ शर्कराः गुणखंडादि वृ परा ७.२३८ शस्त्रावपाते गर्भस्य या २.२८० शर्कराज्यसमोपेतं व २.३.१० शस्त्रासवं मधूच्छिष्टं या ३.३७ शर्कराज्येन संयुक्तं व २.३.२१ शस्त्रास्त्रभृत्वं क्षत्रस्य मनु १०.७९ शर्कराज्येन संयुक्तां व २.३.१७३ शस्त्रेण त्रीणि कृच्छ्राणि वृ परा ८.१३८ शर्करादधिमध्वाज्य व २.६.९७ शस्यादि दाहयेत्सर्वं वृ परा १२.३८ शर्करासूप लवणं व २.६.३ ४४ शस्येण निहतस्यैवं कपिल १२७ शर्मवद् ब्राह्मणस्य मनु २.३२ शाककन्दफलोपेतै शाण्डि ४.४२ शलाटुं पानसं पत्र आंपू ५५१ शाकपाकादिकं निन्धं आश्व १.१७७ शल्मल्येरंद्धकार्पासा भार ५.५ शाकपुष्पफलमूलौपधीनां बौधा १.५.७८ शल्लकीशशकागोधा पराशर ६.१० शाकमक्ष्यफलोपेतं आंपू २४४ शव इति मृताख्या व १.१८.८ शाकं च फाल्गुनाष्टम्यां कात्या १७.२३ शवं च वैश्यमज्ञानाद् पराशर ३.५० शाकं मांसं मृणालानि आप ८.१९ शवं वीथ्यां निपतितं आंपू २७ शाकं वाऽपि तृणं वापि वृ परा ४.१९१ शवसूतकमुत्पन्नं दा १२४ शाकमूलफलादिनि वृ हा ५.२६९ शवसूति समुत्पन्ने ब्र.या. १३.४ शाकमूलफलाशीस्याद् वृ हा ५.५२ शवसूति समुत्पन्ने ब्र.या. १३.५ शाकमूलफलैर्वापिजीवे व २.६.१२७ शवस्पर्शी (दाहसंस्कारा)वर्णनम् विष्णु १९ शाकयावकमैक्ष्याणि बृ.या. ७.१४४ शवस्पृष्ट तृतीयस्तु अत्रि स ९० शाकवस्त्रक्षालानाय भवेद्वागो कपिल ६२२ शवानुगमने चैवम् व १.२३.२२ शाकाभावे विशेषेण लोहि ३६२ शवेक्षणं स्वधाकारं आश्व १९.२ शाकाहारी च पुरुषो शाता ४.१८ शवे निपतिते गेहे कण्व २९६ शाके पत्रे फूले मूले अत्रिस ३७३ शशश्च मत्स्येष्वपि या १.१७८ शाके राजसमे युक्तं व २.३.१४४ शशास पूवर्वत् पृथ्वी नारा ७.२७ शाकैर्मूलैः फलैः पत्रैः आंपू १७५ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५६५ शाखाधिपे वलोपेते ब्र.या. ८.१०५ शाळाप्रवेशे वृषगौ वृ परा ५.५९ शाखाध्यायी महाभागः कण्व ७९० शात्नां विशाला विधिवत् नारा ५.३३ शाखा' भेदमिदं प्रोक्तं ब्र.या. १.३६ शालिका नालिकेत्यादि वृ हा ८.१३२ शाखांविदार्य तस्यास्तु भार ५.२३ शालीनःशणकार्पास वृ परा ५.९३ शाखामात्राक्षरावाप्ति मात्रेण कपिल ३३ शालीनख्यापि धृष्टस्त्री नारद १३.१७ शाखारंडकदोषज्ञ भार ७.११४ शाल्मलं काकतुण्डं च । अ ७९ . शाण्डिल्योऽपि नमस्कृत्य शाण्डि १.५ शाल्मीफलके श्लक्ष्णे मनु ८.३९६ शातुश्च शतदुश्च आंपू ९३१ शाल्यन्नं दधिसंयुक्तं व २.६.२६७ शांतं पद्यनासनारूढ़ वृ परा ४.७६ शाल्यन्नं दधिसंयुक्तं व हा ५.५५२ शान्ता दान्तां सुशीलाश्च ब्र.या. ३.३ शाल्याद्भवं समाख्यातं भार २.५३ शांतिकर्मविधानेन आश्व ३.१८ शावशौचस्यमध्ये तु “व २.६.४४८ शांतिकादीनि कर्माणि भार १८.५४ शावशोचस्य मध्ये तु व २.६.४४६ शांतिकामः शमीकाष्ठैः भार १९.४५ शावशौचे समुत्पन्ने व २.६.४४५ शांतिर्भवति पुष्टिश्च वृ परा ११.२६२ शावसूतक उत्पन्ने लिखित ९० शांतिवरुणदिक्पत्रे भार ११.४६ शावे शवगृहं गत्वा अत्रि ५.२८ शान्तीनामथ सर्वासां वृ परा ११.१ शाश्वर्ती श्रियमाप्नोति वृ हा ३.३२६ शान्तो घोरस्तथा मूढ बृ.या. २.२४ शासनं कारयेत् सम्यक् वृ हा ४.२२४ शान्त्यर्थेशान्ति ब्र.या. १०.१ शासनाद्वापि मोक्षाद् औ ८.१९ शाप अनुग्रह सामर्थ्य व्यास १.३७ शासनाद् वापि मोक्षाद् नारद १८.१०७ शापनि वरदे देवि ब्र.या. २.१७ शासनाद्वापिभोक्षाद् मनु ३१६ शापयाशपयिताश्चैव ब्र.या. १.१९ शासने वा विसर्गे वा बौधा २.१.२० शापरोदनहुकारं त्वं लोहि ४५५ शासितो गुरुण शिष्य वृ हा ८.२५४ शामावरटयादिक कम्बु वृ परा ७.२ ४० शास्त्रदृष्ट्या समालोच्य लोहि ५२७ शाम्यञ्च दीर्घवैरत्व बृ.गौ. २२.८ शास्त्रनिष्ठ शुक्र वाक्य प्रजा १४ शाययित्वा च शय्यायां वृ हा ६.६० शास्त्र मन्वादिकं चैव व २.३ शायित्शऽथ देवेशं वृ हा ७.२६५ शास्त्र मन्वादिकं चैव व २.३.१८९ शारद्यमुच्चकै मौ वृ परा ५.१३४ शास्त्रमात्रश्रमोऽतीव कण्व ४२९ शारीरश्चार्थ दण्डश्च नारद १८.१११ शास्त्रमार्गेण विधिना लोहि १६१ शांर्ग हैमवतं नारद १९.३४ शास्त्रविप्रहतानां च दा ८७ शार्दूल कृष्णगोकृत्ती भार ५.१५ शास्त्राणि भिन्नभिन्नानि कपिल ४१९ शावर तत स्वधामानं शंख १३.६ शास्त्रातिगः स्मृतो बौधा १.५.७७ शालग्रामशिलायान्तु वृ हा ५.१७७ शास्त्रानुकारी तत्वज्ञः वृ.गौ. २.२३ शालग्रामस्य शिलया व २.७.३ शास्त्राभ्यासपरस्यापि शाण्डि ४.१८९ शालाग्नौ पच्यते ह्यन्नं लिखित ३७ शास्त्राभ्यासपराणां च कर्म शाण्डि ४.१९१ - शाला द्विजेन्द्रा वृष गौ वृ परा ५.५७ शास्त्रायणमिदं श्रेष्ठं भार १.१३ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६६ स्मृति सन्दर्भ शास्त्रार्थज्ञापनैसद्भिः शाण्डि ४.१८० शिरो विवयं न स्नाया शाण्डि २.५७ शास्त्रार्थधर्मतत्त्वज्ञस्त्व आं पू ५६६ शिरोवेष्टन्तु यो भुंक्ते पराशर १.५० शास्त्रावतारो दिग्भेदः भार १.१४ शिरोहतसय ये वक्त्रे वृ परा १२.५२ शास्त्रावमानिनश्चैव शाण्डि ३.२४ शिलाटु नीलमित्युक्तं कात्या २५.७ शास्त्रविरोध भूजा भार ११.१०५ शिलातले पटे पात्रे व्या ९५ शास्त्रेण श्रवणं कृत्वा कण्व ७८२ शिलानप्युञ्छतो नित्यं मनु ३.१०० शिक्षयन्तमदुष्टं च य नारद ६.१७ शिलाप्रतिष्ठापनादि कृत्यं पू ९९४ शिक्षितोऽपि कृतं कालं नारद ६.१८ शिलोंच्छमप्याददीत मनु १०.११२ शिखण्डसम्मितान् वृ परा ९.९८ शिलोंच्छवृत्तिर्विप्रः वृ परा ६.३०१ शिखा कार्या प्रयत्नेन आंपू ६२ शिल्पकर्माणि चान्यानि औं सं ४४ शिखा तस्य तु रुद्रस्य वृ परा ११.१४७ शिल्पिनः कर्मजीविनश्च विष्णु ३ शिखादिरहिता शान्ता वृ परा १२.१७२ शिल्पिनं कारुकं शूद स्त्रियं पराशर ६.१५ शिखामात्र तथा पिंडान्पूर्व व्या १८२ शिल्पिन कारुका वैधा पराशर ३.२७ शिखायाः कवचं देहो भार ६.९१ शिल्पिन कारुकाश्चैव वृ परा ८.४७ शिग्रुवंर्द्धरशम्यश्च व २.६.२३ शिल्पेन व्यवहारेण मनु ३.६४ शिरःकण्ठाक्षिनासासदिम शाण्डि १.३९ शिवनेत्र समुत्पन्न ब्र.या. ११.४४ शिरः कंठे प्रावरणं मार ८.७ शिव ब्रह्मादयो देवा वृ हा ५.५११ शिरः कपालध्वजवान् वृ हा ६.२२५ शिवाघागम विद्याधैः __ औ सं ३७ शिरः कपाली ध्वजवान् या ३.२ ४२ शिवागिरसे दर्शनात् बौधा १.२.४६ शिर प्रमाणो विप्रस्य वृ परा ११.२१७ शिविका कारयित्वाऽथ वृ हा ६.९१ शिरः प्रावृत्यकं . पराशर १२.१५ शिशिर” च यो दद्याद् वृ परा १०.२२१ शिरश्वांसावुरश्चोरू वृ परा २.१३१ शिशोरभ्युक्षणं प्रोक्तं दा १२९ शिरसा शिरसा युक्तं विश्वा ५.२९ शिश्नस्योत्कृन्तनं कृत्वा औ ९.९९ शिरसा सह रुद्राणां वृ परा ११.१६१ शिश्नात् प्राशित्रमप्स्व बौधा २.१.३८ शिरसा सहितं देवीं बृ.या. ४.४० शिष्टः पुनरकामात्मा व १.१.५ शिरसो मुण्डनं नारद १५.९ शिष्टं सर्वं पूर्व मेव मया आंपू १०.१० शिरःस्नानं ग्रहणयो लोहि ६३८ शिष्टाः खलु विगतमत्सरा बौधा १.१.५ शिरः स्पृशेत् पिता तस्य आश्व १०.८ शिष्ट्वा वा भूमिदेवानां मनु ११.८३ शिरा शतानि सप्तैव या ३.१०० शिष्यसतीर्थ्यस ब्रह्मचारिषु बौधा १.५.१३५ शिरीषदाडिमार्काम्राकर भार ५.८ शिष्यस्य हृदयालंभ . ब्र.या. २.२२ शिरोदण्डास्त्र (सं) युक्तं विश्वा ५.३२ शिष्याणां शिक्षयावाऽपि शाण्डि ४.१८१ शिरो धर्मो हनू ब्रह्मा बृ.गौ. २०.३५ शिष्याणां सङ्ग्रहादेव शाण्डि १.१०६ शिरोब्रह्मा शिखारुतः भार ९.५ शिष्यानध्यापयेच्चापि ल हा ४.७० शिरोभि प्रणता भूमौ . वृ.गौ. १०.३१ शिष्यान्ते वासिदासिस्त्री नारद २.१० शिरोभिस्ते गृहीत्वोर्वी मनु ८.२५६ शिष्यान्तेवासिमृतका नारद ६.३ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५६७ शिष्याय ऋत्विजोदा ब्र.या. ८.२०९ शुक्लमृषभं दद्या .... ---- व १.२३.३ शिष्योभाऱ्या शिशुभ्रता दक्ष ४.१४ शुक्लया मूत्र गृणीत् लघुयम ७१ शीघ्रं पापनिनि मुक्तः वृ.गौ. ६.५७ शुक्लांबरं गृहस्थस्य भार १५.११९ शीघ्रं प्रवासयेद्देशात् आपू ३७६ शुक्लाम्बरधरं विष्णु वृ हा ५.१०३ शीतत्वं च भवेत् सर्वम् वृ.गौ. २.३६ शुक्लाम्बरधरो नीच केश या १.१३१ शीतलं सलिलं रम्यम् वृ.गौ. ५.८६ शुक्लेचाच्छादयेत् कक्षे न वृ.गौ. ८.४० शीतोदकं तु संस्कृत्य ब्र.या. ८.३ ४८ शुचये च द्विवेदाय वृ परा १०.१६३ शीतोदके त्वशक्तश्चेत् व २.३.१२९ शुचिकामाहिदेवाः शुचयश्च बौधा १.६.२ शीतांशावुदिते स्नात्वा वृ हा ५.४८५ शुचि गोतृप्तिकृत्तोयं या १.१९२ शीतोदके विनिक्षिप्य व २.२.२१ शुचि देशं विविक्तं मनु ३.२०६ शीर्षादि द्वादश मासान् विष्णु ९० शुचिदेशं समभ्युक्ष्य ल हा ४.२७ शीलभङ्गेन नारीणां व २.५.२ शुचिना सत्यसन्धेन __ मनु ७.३१ शीलोंछेनापि वा जीवेन् वृ हा ४.१६१ शुचिमध्वरं देवा बौधा १.६.१ शीलोञ्छेनापि वा जीवेन् वृ हा ४.१६१ शुचिमध्वरं देवा बौधा १.१२.९ शुक-भङगेन नारीणां व २.५.२ शुचिरक्रोधनः शान्तः औ ५.७९ शुक्र-टिटिभ-दात्यूहा वृ परा ६.३२२ शुचिरक्रोधनस्त्वन्यान् औ ६.३ शुक्रशारिकयो_ते नरः शाता २.५५ शुचिरुत्कृष्टशुश्रूषुः मनु ९.३३५ शुक्तानि च कषायांश्च मनु ११.१५४ शुचिर्वीप्युशुचिर्वापि विश्वा १.२५ शुक्तानि तथा जातोगुडः बौधा १.५.१६२ शुचिर्विप्रस्य पालाशः भार १५.१२१ शुक्ता रुक्षा परुषा बौधा २.३.४७ शुचिवस्त्रधरः सम्यक व २.३.१३० शुक्तिशंखौ तु चण्डालै व २.६.५०९ शुचि सन्नशुचिर्वाऽपि वृ परा १०.२८२ शुक्रक्षयकरा वन्ध्या बृ.या. ३.२४ शुचि स्नानरतोऽव्यग्र बृ.गौ. १८.४ शुक्र तत्रैव विन्यस्य ब्र.या. १०.६३ शुचीन प्राज्ञान् स्वधर्मज्ञान वृ परा १२.१० शुक्रः शनैश्चरो राहुः ब्र.या. १०.५० शुचीनामशुचीनां च नारद १८.४२ शुक्रः शुशुक्वेति वृ परा ११.३२० शुची वोहव्या मरुतः बौधा १६.४ शुक्रःशोणित संयोगात् वृ परा १२.१७८ शुचेरश्रद्दधानस्य बौधा १.५.७२ शुकशोणित सम्भूते __ वृ हा ४.४ शुचौ देशेतु संग्राह्या अत्रिस ३२० शुक्रियारण्यकजपो या ३.३०८ शुचौ देशेवहन्यामु व २.५.३७ शुक्लः कृष्णः कृष्णातर प्रजा ९९ शुचौ देशे शुचिर्भूत्वा व २.६.१७९ शुक्लपक्षः स्मृतस्तावत् भार १५.४३ शुद्धजाम्बूनदप्रख्यं व हा ५.४५३ शुक्लपक्षे तु द्वादश्यां वृ हा ७.१०६ शुद्धदारुमये पीठे वृ हा ५.२४२ शुक्लपक्षे तु सम्पूज्य वृ परा ७.३०७ शुद्धद्रव्ये समुत्पन्ने ब्र.या. ४.४ शुक्लं तत् पुरुष बृह ९.१११ शुद्ध प्रसारितं पण्यं शंख १६.१४ शुक्लं महतं वासो व १.११.४९ शुद्धभिर्विधनाभिर्यास्व भार १५.२२ शुक्लमाल्याम्बरधरं व २.३.११७ शुद्धभूमतौ जलं प्रोक्ष्य विश्वा ६.७ Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६८ स्मृति सन्दर्भ शुद्धं नितं च सिद्धं च शाण्डि ४.२३३ शुद्ध्येद्विप्रोदशाहेन मनु ५.८३ शुद्धं न्यापेन संप्राप्तं शाण्डि ४.७८ शुन्नकं विड्वराहं भार ५.१७ शुद्धं सत्वेन सुस्पष्ट कपिल ४५४ शुनकोपहते पात्रे हैमे व २.६.५०६ शुद्धमन्नमविप्रस्य आप ८.५ शुनः शेपो वै यूपेन व १.१७.३३ शुद्धमृण्मणिसंप्रोता भार १५.३७ शुना घ्रातावलीढस्य पराशर ५.६ शुद्धयते चाम्यता ब्र.या. १२.४१ शनां च पतितानां च मनु ३.९२ शुद्धयते द्विचतुर्मासै ब्र.या. १३.१ शुना च ब्राह्मी दृष्टा पराशर ५.७ शुद्धवत्योथ कूष्मांड्य वृ परा ७.२४६ शुना चैव तु संस्पृष्टः अत्रिस ७३ शुद्धः शौर्येकचितो . वृ परा ६.१९५ शुना चैव तु संस्पृष्टः अत्रिस ८१ शुद्धसत्वगुणोपेतं वृ हा २.५ शुना दष्टस्तु यो विप्रो बौधा १.५.१ ४६ शुद्धसत्वं दूरगर्व आंपू ५९० शुना पुष्पवती स्पृष्टा दा १५४ शुद्धः सन्नेव कुर्वीतं आंपू ४४ शुना स्मृष्टिरस्पृश्य कण्व ६२२ शुद्धस्फटिक संकाशं वृ परा १२.२३४ शुनो घ्राणावलीढस्य वृ परा ८.२७४ शुद्धस्वर्णमयैरत्नैः भार १२.२९ शुनोच्छिष्टं द्विजो औ ९.४६ शुद्धाभ श्चतुर्थेऽहनि व २.५.२६ शुनोपहतः सचेलोऽवगाहेत बौधा १.५.१ ४३ शुद्धाभर्तुश्चतुर्थेऽह्नि शंख १६.१७ शुन्धन्तां पितरः प्रोक्ष्य आंपू ८५२ शूद्धावगाहनं कृत्वा शाण्डि २.२८ शुभकर्मकरा होते चत्वारः नारद ६.२३ शुद्धास्त्री चैव शुदश्च ब्र.या. ८.५५ शुभकर्मकृतं चान्नं कण्व ७८५ शुद्धि प्रकथिता सद् कण्व १३७ शुभदन्ती सुरूपौ च वृ परा १०.१६० शुद्धिं कुर्यात्सदा विद्वान शाण्डि ३.५८ शुभमेखलया युक्तं वृ परा ११.७१ शुद्धिं न ये प्रयच्छंति का १२ शुभस्य अयि अशुभस्य वृ.गौ. २.३ ४ शुद्धमात्मैशरणं बुद्धि लोहि १५२ शुभा पुष्पवती स्पृष्टा संवर्त १८१ शुद्धिमिच्छता मातापित्रो व १.४.१९ शुभाशुकृतं सर्वं प्राप्नोतीह वृ.गौ. ८.२ शुद्धिभिरमीषां तु वृ परा १३२ शुभाशुभक्रियार्थं च आश्व २.७६ शुद्धेषु व्यवहारेषु शुद्धिं नारद १.७१ शुभाशुभफलं कर्म मनु १२.३ शुद्धोदकैस्समापूर्य नारा ६.४ शुभ मूहुर्ते विमले व २.३.४२ शुद्धो भवेन्नचेत्तूष्णीं लोहि १५९ शुभे पात्रे च शुद्धानं व २.३.१२२ शुद्धो यस्तद् व्रतं औ ९.६४ शुभेः वरे वरेण्यहि वृ परा २.२१ शुद्ध्यते द्विजो दशाहेन औ ६.३४ शुभेऽनि शुभलग्ने । व २. ७.७ शुद्ध्यत्यावर्तितं पश्चाद् शंख १६.३ शुभैः भुक्ता फलैरन्यैः वृ परा १०.१५९ शुद्ध्यर्थ चात्मनो आश्व १.११६ शुभ्रवस्त्रैश्च सम्वेष्टच व २.७.३५ शुद्ध्यर्थमष्टमे चैव पराशर ४.११ शुभ्रसंभयलांगूला वृ परा १०.५७ शुद्ध्यासनं समाधाय शाण्डि ४.२०१ शुभ्राणि हाणि वृ परा १२.७१ शुद्ध्येत कारुहस्तस्थं . वृ परा ६.३३६ शुभ्रेणैव मृदा पश्चाद् वृ हा २.५७ शुद्ध्यदशुचिनः स्वान्तस्त वृ परा २.१४६ शुल्कं गृहीत्वा पण्यस्त्री नारद ७.२० Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी शुल्कस्थानं परिहरन्नकाले शुल्सस्थानं परिहन्नकाले शुक्लस्थानं वणिक् प्राप्तः शुल्कस्थानेषु कुशलाः शुल्के चापि मानवं शुल्केन ये प्रयच्छन्ति शुल्वस्याथ कुशायामा शुश्रूषकः पंचविधः शुश्रूषा च तथा नाम कीर्तन शुश्रूषाऽनुव्रज्या शुश्रूषा ब्राह्मणादीनां शुश्रूषभिरुपाध्याया शुश्रूषार्थं त्रयणार्थन्तु शुश्रूषित्वा नमस्कृत्वा शुष्ककर्णा निवध्यन्ते शुष्कगव्यं पुरीपं च शुष्कपर्युषितोच्छिष्टं शुष्कं तृणमयाज्ञिकं शुष्कं पर्युषितादीनि शुष्कमन्नम विप्रस्य शुष्क मांसमयं चान्नं शुष्काणि भुक्त्वा मांसानि शुष्कान्नं गोरसं स्नेहं शुष्कान् शलाटुकान् शूकरेण हते दद्यान् शूकरे निहते चैव शूद्रकन्यासमुत्पन्नो शूद्रः कालेन शुद्धयेत शूद्रक्षत्रिय विप्राणां शूद्रग्रामे तथन्येको शूद्र कटाग्निना दहेत शूद्र तु कारयेद्दास्यं शूद्रपाकं द्विजेभ्यश्च शूद्रः प्रव्रजितानांच शूद्रप्रेषणकर्त्तुश्च मनु ८,४०० नारद ४.१३ नारद ४.१२ मनु ८. ३९८ व १.१९.२४ बौधा १.११.२१ भार १८.११५ नारद ६ . २ वृ हा ८.७९ बौधा १.२.४१ वृ रा ४.२१६ वृ.गौ. १०.१०० बृ.गौ. १५.७८ आउ ११.५ वृ.गौ. ५.५० व २.५.५२ संवर्त ३१ बौधा १.५.७९ औ ९.५५ अंगिरस ४६ आप ९.१५ मनु ११.१५६ पराशर ११.१८ आपू १०१५ शाता ६.३४ शाता २.५० पराशर ११.२१ आंउ ५.११ औ ६.३८ बृ.गौ. १९.३५ बोधा २.२.५९ मनु ८. ४१३ वृ परा ७.६४ या २.२३८ बृ. गौ. १४.२० शूद्रवेश्मनि विप्रेण क्षीरं शूद्रयां वैश्यात् तु शूद्रवधेन स्त्रीवर्धी शूद्र विट्क्षत्रविप्राणां शूद्रः शुद्ध्ययति हस्तेन मनु ८.१०४ संवर्त २१ शूद्रश्च पाक रोगी बृ. या. ४.४९ ब्र. या. ८.१२५ शूद्रश्च रायश्च सदा शूद्रश्चेदागतस्तं कर्माणि बोधा २.३.१७ शूद्रश्चेद् ब्राह्मणी शूद्रस्तु यस्मिन् वा शूद्रस्तु वृत्तिमाकांक्षन शूद्रस्य तु सवर्णे शूद्रस्य दासिजः पुत्र शूद्रस्य द्विजशुश्रूषा शूद्रस्य द्विजशुश्रूषा शूद्रस्य द्विजशुश्रूषा शूद्रस्य द्विजशुश्रूषा शूद्रस्यविप्रसंसर्गाज्जात शूद्रस्यापि विशिष्टस्य शूद्रहन्ता च षण्मासं शूद्रहस्तेनऽश्नीयात् शूद्रांच पादयोः सृष्टा शूद्राणां द्विज शुश्रूषा शूद्राणां नोपवासः शूद्राणां नोपवासः शूद्राणां भाजने भुक्त्वा शूद्राणांमधिकं कुर्याद् शूद्राणाम्यमीषान्तु शूद्राणामार्याधिष्ठितानां शूद्राणां मासिकं कार्य शूद्राणां विधवानां च शूद्राणामपि भोज्यान्ना शूद्रादयोगवं वैश्या शूद्रादायोगवः क्षत्ता शूद्रादीनां तु रुद्राद्या ५६९ बृ. गौ. १४.२५ वृ हा ४.१४६ बौधा १.१०.२५ व १.२१.१ बृ.गौ. १४.५१ मनु १०.१२१ मु ९.१५७ वृ परा ७.३९६ या १.१२० शंखं १.५ वृ परा ४.२२२ पु ११ औसं ४१ वृ हा ६.११० ब्र. या. १२.४९ संवर्त ३० ल हा १.१३ पराशर १.६२ पराशर ११.२६ पराशर ६.४८संवर्त ३२ ल हा २.१३ व्यास ३.५० बोधा १.५.८९ मनु ५.१४० विश्वा २.२७ वृ परा ६.३१७ वृ हा ४.१४८ मनु १०.१२ व_२.१.१७ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० स्मृति सन्दर्भ शूदादेव तु शूदायां औसं ४९ शूदायोच्छिष्टमनुच्छिष्टं व १.११.७ शूद्राद् गृह्य शतं बौधा १.४.१२ शूदावेदी पतत्यत्रेरू मनु ३.१६ शूद्राद्यदि गां गृह्णीया अ६९ शुदा शचिकरैर्मुक्त औ २.१३ शूदाद्वश्यायां मागध बौधा १.९.७ शूद्री तु क्षत्रियो गत्वा वृ परा ८.२४४ शूदान्नं ब्राह्मणो भुक्त्वा शंख १७.३६ शूदी तु ब्राह्मणोगत्वा संवर्त १५३ शूदान्नं ब्राह्मणेऽश्रन्वै वृ परा ६.३०६ शूद्री तु ब्राह्मणो गत्वा वृ परा ८.२ ४२ शूद्रान्नं शूद्रसम्पर्क अंगिरस ४९ शूदे चान्द्रायणं बौधा २.२.५६ शूदान्नं शूदसम्पर्क आप ८.८ शूद्रेणतिलकं कृत्वा व्या २९ शूद्रान्नं शूद्रसम्पर्क पराशर १२.३२ शूद्रेण तु च संस्पृष्टो वृ परा ८.२५७ शूदान्नं सूतकस्यान्न पराशर ११.४ शूदेण ब्राह्मणाप्यामुत्पन्नो व १.१८.१ शूदान्नं सूतिकान्नं वा वृ हा ६.३८५ शूदेणं स्पृष्टमुच्छिष्टं अंगिरस ५४ शूद्रान्नरसपुष्टस्य पराशर १२.३१ शूदेषु दास गोपाल कुल या १.१६८ शूद्वान्नरसपुष्टस्य आंउ ८.७ शूदेषु पूर्वेषां परिचर्या बौधा १.१०.५ शूदान्नरसपुष्टांगो ___ व १.६.२५ शूदेषुयाजकं शूदपुष्टं आंपू ७४५ शूद्रान्नरसपुष्टाङ्गो बृ.गौ. १४.१८ शूदैव भार्या शूद्रस्य मनु ३.१३ शूदान्नाद्विरता सन्तः बृ.गौ. १५.९० शूदोच्छिष्टं तु यो भुक्ते वृ परा ७.६८ शूदान्निषाद्यांकुक्कुटः बौथा १.९.१५ शूदोच्छिष्टं तु यो भुंक्ते वृ परा ७.६९ शूद्रान्नेन तु मुक्तेन अंगिरस ५३ शूदो गुप्तगुप्तं वा मनु ८.३७४ शूदान्नेन तु मुक्तेन आप ८.१० शूद्रोऽप्यभोज्यं भुक्त्वान्नं पराशर ११.७ शूदान्नेन तु मुक्तेन व १.६.२७ शूदो ब्राह्मणतामेति मनु १०.६५ शूदान्नेनोदरस्थेन व्यास ४.६५ शूदोवर्णश्चतुर्थोऽपि व्यास १.६ शूदान्नेनोदरस्थेन व १.६.२६ शूद्रो वा प्रतिलोमो वृहा ५.२३३ शूदान्नेनोदरस्थेन आप ८.११ शूदो वेदफलं याति अत्रिस ५.१४ शूदापपात्रश्रवण बौधा १.११.३५ शून्य भूतस्तु यत्प्राण वृ परा १२.२६३ शूदापारशवं सूते नारद १३.११४ शून्यागाराण्यरण्यानि नारद १८.६० शूदापुत्र एव षष्ठो व १.१७.३५ शून्यायतनमेवापि न पश्ये शाण्डि ५.४६ शूदाभिजननम् बौधा २.१.५५ शून्योऽग्नि सत्यसंज्ञस्तु बृह ९.१२५ शूदांये चानुलोम्येन वृ परा ८.१२१ शूरानथ शुचीन प्राज्ञान वृ परा १२.१२ शूदांशयनमारोप्य मनु ३.१७ शूर्प पश्चान्निधायग्ने आश्व २.३४ शूदाप्येके मंत्र वर्ज व १.१.२५ शूर्पवातनखाग्रम्बुस्नानं अत्रिस ३१६ शूदायां पारशवः व १.१८.७ शूर्पवातो नखाबिन्दुः । दा १६५ शूदायां ब्राह्मणाज्जातः मनु १०.६४ शूलपाणिश्च भगवान् वृहस्पति १७ शूदायां विधिना विप्राज्जातः औसं ३६ शूली परोपतापेन शाता ३.१२ शूदायां वैश्यतश्चौर्यात् औसं ४५ शूले मत्सयानिवाक्षिप्य नारद २.१९६ शूदायां वैश्यसंसर्ग औसं ३ श्रृंगकर्णादि संयुक्तं वृ परा ८.१२९ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७१ श्लोकानुक्रमणी श्रृंगभंगे त्वस्थिभंगे अंगिरस ३० शृणुष्व राजन् विषुवे शृंगभंगेऽस्थिभंगे च पराशर ९.१९ शृणु राजन् समासेन शृंगकऽस्थिभट्गे च आंउ १०.११ शृणु वर्णक्रमेण एव श्रृंगभंगेस्थिभंगे आप १.२८ शृणुष्व अवहिते राजन् श्रृंगमध्ये तथा ब्रह्मा वृ.गौ. १०.४५ शृणुष्व भो इदं विप्र शृंगाग्रे कपिलायास्तु - वृ.गौ. ९.३४ शृणुष्वावहितोराज श्रृंगाग्रे सर्वतीर्थानि वृ परा ५.३५ शृण्वन् शून्येषु श्रृंगि च हते दद्याद् शाता ६.३५ शृण्वन् श्रोत्रसुखं नादं शृंगिणा शंकरद्रोही शाता ६.१२ शृतिस्मत्युक्त कर्माणि शृंगिबेरं कुलुत्यं शाण्डि ३.११५ शेन्ति मुठहास तलं श्रृंगे च कृष्णागरुदार वृ परा १०.७६ शेषक्रियायां लोकोऽनुरोध श्रृंगे हेममये तस्य वृ परा १०.१२६ शेषंज पायोनिञ्च शृणु गोकर्णमात्रस्य वृ.गौ. ६.१११ शेष भूतश्च जीवस्य शृणु देवि धरे धर्मा विष्णु १.६५ शेषं दंपतीमुंजीयाताम् शृणु धर्मविदां श्रेष्ठ वृ.गौ. ७.५ शेषमन्नं यथाकामं शृणुध्वमृषम सर्वे व २.६.२ शेषाहिफणरत्नांशु द शृणु पञ्च महायज्ञान् वृ.गौ. ८.८ शेषेणैव भवेच्छुद्धिरहः शृणु पाण्डव तत्वेन वृ.गौ. ८.२० शैलांश्चैव स्थितान् शृणु पाण्डवः तत्त्वेन व,गौ. ९.६ शैलूषशौण्डिकान्नद्धोन् शृणु पाण्डव तत्तवेन वृ.गौ. १६.२ शैलूषान्नन्तु पापानं शृणु पाण्डव तत्सर्व वृ.गौ.८.८६ शैल बौद्धस्कान्द शाक्त शृणु पाण्डव तत्सर्व बृ.गौ. २१.२ शैव पाषाण्ड पतितै शृणु पाण्डव यत्नेन वृ.गौ, २.२ शोकाक्रान्तोऽथवा श्रान्तः शृणु पाण्डव सत्य मे बृ.गौ. १८.२ शोचन्ति जामयो यत्र शृणु पुत्र। प्रवक्ष्येऽहं पराशक १.१९ शोचं मंगल मायासा शृणु मे विस्तरेणेह नारायण नारा ५.३१ शोणितशुक्रसंभवः शृणु राजन् प्रवक्ष्यामि वृ हा १.७ शोणितं यावतः पासून शृणु राजन् प्रवक्ष्यामि वृ हा ३.२ शोणितं यावतः पासून शृणु राजन् यथा न्यायम् वृ.गौ. ३.१० शोणितेन विना दुःखं शृणु राजन् यथातत्वम् वृ.गौ. ४.६ शोधयित्वा तु पात्राणि शृणु राजन् प्रवक्ष्यामि दहा ७.३ शोभते दक्षिणां गत्वा शृणु राजन् यथा तत्वम् वृ.गौ. ५.१० शोभनान् संभृतान् शृणु राजन् महत् पुण्य बृ.गौ. १५.१ शोभितं पुष्पमालाभि शृणु राजन् यथातथ्यं बृ.गौ. १८.४७ शोषयित्वार्कतापेन शृणु राजन् यथापूर्व वृ.गौ. १८.१२ शचक्रमश्चाधतथा वृ.गौ. १२.२ वृ.गौ. २.१५ वृ. गौ.६.५ आउं ३.१० वृ.गौ. ८.७४ वृ परा ८.१५२ शाण्डि ५.५२ भार १८.४२ व २.६.५२५ बौधा १.१३१ वृ हा ३.३६६ व हा ७.२२ व १.११.८ औ ३.९२ विष्णु १,४१ औ ६.२० वृ.गौ. ८.५६ व्यास ३.४६ वृ.गौ. ११.१६ वृ हा ८.१४२ वृ हा ८.१२८ अत्रिस ६४ मनु ३.५७ अत्रिस ३३ व १.१५.१ मनु ४.१६८ मनु ११.२०८ या २.२२१ व्यास २.२३ औ ५.१३ वृ परा १०.१८ व परा १०.१६२ पराशर ७.३१ भार ३.२ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७२ स्मृति सन्दर्भ शौचदेशमदागव्य भार ३.१३ श्रद्दधानं सदाचारं वृ हा २.९ शौचदेशमंमत्रावृदर्थ बौधा १.६.५२ श्रद्दधानः शुचिर्दान्तो व १.२९.२२ शौचं च द्विविधं प्रोक्तं दक्ष ५.३ श्रद्दधानः शुचिनित्यम् वृ.गौ. ६.८५ शौचं च पात्रशुद्धिश्च वृ परा ७.२९८ श्रदधानः शुभां विद्या मनु २.२३८ शौचं त द्विविधं प्रोक्तं वापू १९ श्रद्दधानस्य भोक्तव्यं व १.१४.१४ शौचं वाचं च मेध्यत्व व परा ६.६२ श्रद्दधानस्य तस्य इह वृ.गौ. २.४ शौचं विनासदाऽन्यत्र आश्व १.१३ श्रद्धयाच्छाद्य गृहिणी शाण्डि ३.८८ शौचं सुवर्ण नारीणां __आप ८.३ श्रद्धया परया हुत्वा शाण्डि ४.९५ शौचं सौवर्णरूप्यायां अंगिरस ४४ श्रद्धयेष्टं च पूर्त च मनु ४.२२६ शौचमिज्या तपोदानं अत्रिस ४९ श्रद्धातिरेकसंयुक्त शाणिड १.८२ शौचमूलं मन्त्रमूलं कण्व २५३ श्रद्धात्यागविहीनस्य ब्र.या. १३.३० शौचाचार विचारार्थ व्यास १.२५ श्रद्धापूतं प्रदातव्यं वृ परा ६.३०५ शौचाचारसमायुक्तो अत्रिस १३४ श्रद्धांमेधां च वै प्रज्ञा आश्व १०.५७ शौचादिकन्तु यत्कर्म वृ हा ५.३०७ श्रद्धामेधां च सावित्री व २.३.१४५ शौचादिकं समाचार व २.३.८५ श्रद्धामेधा च सावित्री व २.३.१४६ शौचार्थ मानसार्थञ्च ल ता ६.७ श्रद्धायां प्राणेविष्ठेति वृ हा ५.२५७ शौचे च सुखमासीन __ औ २.९ श्रद्धायुक्तः शुचिस्नात वृ.गौ. ३.३४ शौचे यत्नः सदा कार्य वाधू २० श्रद्धयुक्ता ते ह पासन्ते बृह ९.९०१ शौचे यत्नः सदाकार्य दक्ष ५.२ श्रद्धावन्तो यतात्मान विष्णु ८९ शौद सौतं राथकारं लोह ३९४ श्रद्धावान् भगवद्धर्म शाण्डि १.९० शौनकाद्याश्च मुनय औ १.१ श्रद्धाशीलोऽस्पृहय व १.८.९ शौर्यभार्याधने हित्वा नारद १४.६ श्रद्ध्या शक्तितो नित्यं व्यास ३.६९ शौल्किकैः स्थानपालेर्वा या २.१७६ श्रपयित्वौदनं कुर्याद् आश्व १०.५० श्मशानबलये चापि वेदिका कपिल ५९० श्रमायनाकार्याद्वित्प्राणांतं कपिल २३८ श्मशानमापो देवगृहं बौधा २.५.३ श्रयःसु गुरुववृत्ति मनु २.२०७ श्मशानमेतत् प्रत्यक्षं व १.१८.११ श्रवणं कीर्तनं सेवा वृ हा ८.३३६ श्मशाने चितिसंयुक्ते विश्वा ८.५८ श्रवणंमोक्षणचैव . बृ.गौ. १५.६७ श्मशाने शूदसंपर्के व्या २२१ श्रवणं श्रावणंचिन्ता शाण्डि ४.१९० श्मशानेष्वपि तेजस्वी मनु ९.३१८ श्रवणव्रतकालश्च विशेष वाधू १८३ श्मश्रुकेशान् वापयेद् व १.२४.६ श्रवणकर्म लुप्तञ्चेत कात्या २८.१२ श्मश्रूपपक्षकेशानां कण्व ३१७ श्रवणे स्याद् उपकर्म आश्व १२.१ श्यामं शान्तीकरं प्रोक्तं वाधू १०९ श्रवणैकादशी सर्व शाण्डि ४.२२६ श्यामरक्तं च देकारं वृ परा ४.८५ श्राद्धकर्ता च पूर्वेयुः व्या २७७ श्यामाकान् कोद्रवान् प्रजा १२६ श्राद्धकर्ता न भुंजीयात् आश्व २४.२२ श्यालकस्यसती दौहित्र कपिल ६०९ श्राद्धकालं च ब्रह्मन दा३ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी श्राद्धकाले गयां ध्यात्वा आश्व २३.१८ श्राद्धं कृत्वेतरश्राद्धे लघुशंख २८ श्राद्धकाले तथा दाने व्या ३४ श्राद्धंच पितरं घोरं अत्रिस ३८४ श्राद्धकाले तु यो दद्यात् अत्रिस ३२८ श्राद्धं तत्र प्रकुर्वीत ब्र.या. ५.१३ श्राद्धकाले यदा जाता बृ.या. ५.७ श्राद्धं तत्रैव कुर्वीत आंपू ५३ श्राद्धकाले यदा पत्नी . व्या ८३ श्राद्धं तस्य प्रकुर्वीत ब्र.या. ३.७६ श्राद्धकाले विशेषेण वृ हा ५.६६ श्राद्धं तैश्च न कर्तव्यं वृ परा ७.३७३ श्राद्धकालेषु पूज्यन्ते ये ब्र.या. ६.२० श्राद्धं दत्वा च भुक्त्वा व १.११.३४ श्राद्धकालेषु सर्वेषु आश्व २४.२६ श्राद्धं दत्वा च मुक्त्वा लिखित ५९ श्राद्धकाले स्वयं चेत्तु कण्व ८९ श्राद्धं दत्वा परं श्राद्ध औ ५.८० श्राद्ध तु विकिरं दत्वा वाधू २.४ श्राद्धं दानं चतुर्दश्यां ब्र.या. ५.२२ श्राद्धत्यागात् प्रत्यवायो आंपू १०७१ । श्राद्धं दानं तपो यज्ञो बृ.य. ४.२२ श्राद्धन्तु प्रत्यहं कृत्वा व २.६.३ ४७ श्राद्धं पत्यापि कार्य वृ परा ७.४७ श्राद्धपंक्तौ तु भुजानाव आंपू ९६० श्राद्धभुक्त्वा भवेत् ब्र.या. ४.१५० श्राद्धपाकक्रिया यास्ताः प्राह लोहि ४२५ श्राद्धं भुक्त्वा य उच्छिष्टं मनु ३.२ ४९ श्राद्धपाकं पुरस्कृत्य ब्र.या. ४.४० श्राद्धं व पितृयज्ञः स्यात् कात्या १३.४ श्राद्धपाकं समासाद्य ब्र.या. ४.८७ श्राद्धं वृद्धावचन्द्रे वृ परा ७.१ श्राद्धपाकेन दातव्यो ब्र.या. ३.७३ श्राद्धं वै क्रियते तद्वा आंपू ३१८ श्राद्धभुक्तः परं तेषां आंपू ८८४ श्राद्धं स्त्रीपुंसयो कार्य प्रजा १८६ श्राद्धभुक्तेः परं तेषा आंपू १०७३ श्राद्धरम्भेऽवसाने च व्या १०८ श्राद्धभुग वृषलीतल्पं मनु ३.२५० श्राद्धर्णमेतद् भवतां वृ परा ७.३६ श्राद्ध भोजनकाले तु औ ५.५१ श्राद्धवर्णनम् विष्णु ७३ श्राद्धं अग्निमतः का- कात्या २४.७ श्राद्धविमर्शः श्राद्धकाल विष्णु ७६ श्राद्ध कर्त्तव्यमेवेति कुर्वन्ति कपिल २५३ श्राद्धशेषं न शूदेभ्यो आंपू ८७४ श्राद्धं कुर्यात्तु शूदोऽपि व्या २८ श्राद्धसंपूर्णता ज्ञेया आंपू ९६५ श्राद्धं कुर्यात्प्रयत्नेन कण्व ७८८ श्राद्धसूतकभोजनेषु व १.२३.९ श्राद्धं कुर्वन् द्विजो वृ परा ७.११४ श्राद्धस्मृति प्रकुर्वन्वै आंपू १०१२ श्राद्धं कुर्वीत यलेन ब्र.या. ५.१० श्राद्धस्य ब्राह्मण कालः वृ.गौ. १०.८० श्राद्धं कृतं येन महालये प्रजा २० श्राद्धहास्ते उपविष्टाश्च ब्र.या. ४.६२ श्राद्धं कृत्वा तु मर्यो अत्रिस ३६७ श्राडाख्ये कारयेद्विद्वान् लोहि ३८४ श्राद्धं कृत्वा तु यो आंपू १०८५ श्राद्धांः तर्पण यामे आश्व १.११२ श्राद्धं कृत्वा तु विधिवत् __ व्या ६७ श्राद्धिकं तु पुत्रेण प्रज्ञातेन बृ.या. ५.१० श्राद्धं कृत्वा परदिने वाधू २०१ श्राद्धादित्यागदोषाय पात्रमेव लोहि १४३ श्राद्धं कृत्वा परदिने वाधू २०२ श्राद्धादीन्यपिकार्याणि न लोहि ३७० श्राद्धं कृत्वा परश्राद्ध लिखित ५८ श्राद्धाधिकारी कास्तन्निर्णयश्च विष्णु ७५ भादं कृत्वा प्रयत्नेन शंख १४.१२ श्राद्धाधिकारी पिण्डस्य आंपू ११० Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७४ स्मृति सन्दर्भ श्राद्धानां प्रकृतित्वेन आंपू ६१६ श्राद्धोपयोगिकं द्रव्यं आश्व २३.१० श्राद्धानां वकुतिद्दशीषद्देव कपिल १४४ श्राद्धोहोमस्तथा दानं वृ हा २.५९ श्राद्धानि कानिचिद्भूयो आपू ६८१ श्रान्चः कुद्धस्तमोभ्रान्त्या पराशर १२.५१ श्राद्धान्तरे कृते तस्मिन् व्या ३०२ श्रान्त सम्वाहनं रोगि या १.२०९ श्राद्धान्ते वामदेवाय महामंत्र कपिल २२५ श्रावण केनाग्निमाधाय व १.९.७ श्राद्धानां पादाभ्यां न स्पृशेत विष्णु ८१ श्रावणस्याष्टमीकृष्णा ब्र.या. ६.२४ श्राद्धान्यनेकश संति प्रजा ३७ श्रावणे वस्त्रदानेन वृ परा १०.२६५ श्राद्धारम्भे तथा पादे ब्र.या. ४.१ ४४ श्रावणे शुक्लपक्षे तु वृ परा १०.३ . . श्राद्धे अध्वाभवेदश्व ब्र.या. ४.४४ श्रावण्याग्रह्माण्यो व १.११.१० स्य द्विज वृ परा ७.२३२ श्रावण्यां पौर्णमास्यां बौधा १.५.१६३ श्राद्धे त्रिणि पवित्राणि ब्र.या. ३.५५ श्रावण्यां प्रौष्ठपद्यां मनु ४.९५ श्राद्धे दाने तथा होमे वृ हा २.५८ श्रावण्यां वा प्रदोषे कात्या २६.२ श्राद्धे दाने व्रते यज्ञे वृ हा ८.२९४ श्रावयित्वा तथान्येभ्यः २.१७६ श्राद्धे निमंत्रितो विप्रो ___ औ ५.९ श्रावयित्वा त्विदं शास्त्रं दक्ष ७.५४ श्राद्धे निमंत्रितो विप्रो प्रजा ९३ श्रावयिष्यति यः श्राद्धे वृ परा १२.३७५ श्राद्धे नोद्वासनीयानि व १.११.१८ श्रावयेच्छ्रद्दधानांश्च विष्णुम ८७ श्राद्धे पत्नी च वामांगे व्या ८८ श्रावयेधस्त्विदं भक्तया बृ.गौ. २२.३४ श्राद्धे पाकमुपक्रम्य वाधू २०३ श्रावयेयुः प्रसुग्मन्तासूक्तं आश्व १५.१९ श्राद्ध प्रशस्तः ब्राह्मण विष्णु ८३ श्रावितस्त्वातुरेणापि नारद २.८४ श्राद्धे ब्राह्मण परीक्षा विष्णु ८२ श्रितो निर्वल्कलो भार १५.१२९ श्राद्धे यज्ञे जपे होमे व्या ९२ श्रिय सत प्राणापदात वृ हा ३.२९७ श्राद्धे यज्ञे विवाहे च अत्रिस १३९ श्रिये जात इति ऋचा वृ हा ८.२३४ श्राद्धे यज्ञे विवाहे च ब्र.या. ६.११ श्रिये जात इत्यचैव वृ हा ५.२९५ श्राडे यज्ञे विवाहे च व्या १०१ श्रियेति पादेति ऋचा वृ हा ८.२१ श्राद्धविघ्न समुत्पन्ने व्या ३२२ श्रियै च भद्रकाल्यै वृ परा ४.१६७ श्राद्धे विवाहे यज्ञे च कण्व ८६ श्री कामः शान्तिकामो या १.२९५ श्राद्धे वृषोत्सर्ग विष्णु ८६ श्रीकारपूर्वो नृसिंहो वृ हा ३.३ ४७ श्राद्धेषु केषुचित्काल आंपू ५७५ श्री कृष्णं तुलसीपत्रैः वृ हा ५.४१४ श्राद्धेषु पायसं श्रेष्ठं ब्र.या. ४.१५८ श्रीकेशव जगन्नाथ व २.४.२७ श्राद्धे संकल्पिते चैव ब्र.या. ४.१२१ श्रीखण्डं दर्भसूत्र प्रजा ९६ श्राद्धे सप्त पवित्राणि आंपू ९०६ श्रीखण्डमर्च येच्छेष्ठं प्रजा ९७ श्राद्धे हवनकाले च दद्यात् लघुयम ९९ श्रीधर पुण्डरीकाख्य वृ हा २.८७ श्राद्धेऽह्नि वर्जयेत्काष्ठ व २.६.२६ श्रीधरं पूजयेत्तत्र वृ हा ७.२२५ श्राद्धेऽनि समुत्पन्ने दा ७४ श्रीधरं बाहुके वामे व २.३.५३ श्राद्धखन्तं समुत्पन्ने ब्र.या. १३.१७ श्रीपापाशनिबद्धाः ते वृ.गौ. ५.५५ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी श्री पौरुषाभ्यां सूक्ताभ्यां वृ हा ७.२५६ व २.६.४९५ श्रीफलारिष्टकयुतं श्रीफलैरंशुपट्टानां श्री भूमिसहितं देवं श्री भूमि सहितं देवं श्री भूसूक्ताभ्यामपि च श्रीमत्तोद गिरेर्मूर्ध्नि श्रीमद् अष्टाक्षरो मंत्रो श्रीमहाविष्णु मन्येरन् श्रीमान्प्रजापति प्राह सर्व श्रीमदेकायनं शास्त्र श्रुतं श्री राम इ नामेदं तस्य श्री लक्ष्मी कमला पद्मा श्रीलम् अध्ययनं दानम् श्रीवत्स कौस्तुभाम्यां श्रीवत्स कौस्तुभोरस्कं श्री वत्सकौस्तुभोरस्कं श्रीवत्स कौस्तुभोरस्कं श्री वत्सांकं जगद्वीज श्री वाचकादुकारात्तु श्री विष्णु प्रकाशकान्यैव श्री विप्रेण करा: चौरा श्री शब्दपूर्वको को नित्यं श्री सूक्तेन तदा दिव्यैः श्री स्येशाना जगतो श्रुचि प्रस्थापने श्रुतवृत्ते विदित्वास्य श्रुतशीले विज्ञाय श्रुतशौर्यतपः कन्या श्रुताःध्ययन समपन्ना श्रुताध्ययनसम्पन्ना श्रुता मे मानवा धर्म्मा श्रुतार्थस्योत्तरं लेख्यं श्रुतास्तु मानवा धर्मा श्रुता होते भवत्प्रोक्ता वृ परा ६.३३५ वृ हा ३.१२८ व २.७.५ वृ हा ८.६३ शाण्डि १.१ वृ हा ३.१५१ व २.१.९ लोहि ४४५ शाण्डि १.२ वृ हा ३.२४१ वृ हा ४.८९ वृ. गौ. ४.२४ वृ हा ३.२५९ वृ हा ५.१०२ वृ हा ३.३५६ वृ हा ३.२२ विष्णु म ८ वृ हा ७.३७ व २.६.१०९ वृ. गौ. १.९ कण्व १७ वृ हा ६.३९८ वृ हा ३.६४ वृ परा ६.३४१ मनु ७.१३५ बौधा १.९१.२ नारद २.४१ वृ परा ८.६९ या २.२ पराशर १.१३ या २.७ वृ परा १.१४ पराशर १.१६ श्रुतिज्ञं कुलजं शांतं श्रुतिद्वैधं तु यत्र स्यातत्र श्रुतिपारायणं यद्धा श्रुतिप्रोक्तानि दिव्यानि श्रुतिरात्मोद्भवा तात श्रुतिसंबन्धिनः कृत श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो श्रुतिस्मृतिपुराणानां श्रुतिस्मृतिपुराणानि श्रुतिस्मृतिपुराणार्था श्रुतिरथवांगिरसी कुर्याद् श्रुतिस्मृति ममैवाज्ञा श्रुतिस्मृतिविरुद्धं च श्रुतिस्मृति विहीतो श्रुति स्मृतिश्चविप्राणां श्रुतिस्मृतिषु या प्रोक्ता श्रुति स्मृति सदाचार श्रुतिस्मृतीतिहासाश्च श्रुतिस्मृत्युदितं कर्म श्रुतिस्मृत्युदितं धर्म श्रुति स्मृत्युदितं धर्म श्रुति स्मृत्युदितं धर्म श्रुतिस्मृत्युदितं सम्यड् श्रुत्यस्मृत्युदितं धर्म श्रुत्याचमनमेतद्धि श्रुत्युक्तमेतदेव स्याद् श्रुत्युक्तलिङ्लोट्तव्य श्रुत्यैव चांकयेद्गात्रे श्रुत्वा एवं सात्विकंदांनं श्रुत्वा तस्य तु देवर्षेर्वाक्यं श्रुत्वा तु परमं पुण्यं श्रुत्वा धर्म पुराध श्रुत्वा पश्चाच्छ्रोत्रिये श्रुत्वायोगीश्वरंवाक्यं ५७५ प्रजा ७६ मनु २.१४ आंपू १५५ कपिल २९ वृ परा १.१७ कण्व ३८५ मनु २.१० बृह १२.२८ व्यास १.४ विश्वा २.१० व २ ७.१३ मनु ११.३३ वाधू १८९ नारद १८.८ व १.१.३ अत्रिस ३४९ भार १८.२ या १.७ वृ हा ७.१७८ कण्व ६८ मनु २.९ वृ हा ६.१५१ वृ हा ८.१६७ मनु ४.१५५ लघुयम १ विश्वा २.४४ आंपू ६१७ आंपू ४ वृ हा २.३६ वृ.गौ. ४.१ विष्णु म १२ बृ.गौ. २२.४० वृ गौ. ६.१ आंपू २१६ ब्र. या. १०.२७ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७६ श्रुत्वा स्पृष्ट्वा च दृष्टा श्रुत्वेमानृषयो धर्मान् श्रुत्वैतत् नारदो वाक्य श्रुत्वैतद् याज्ञवल्क्योऽपि श्रुत्वैतानृषयो धर्मान् श्रुत्वैतानृषयो धर्मान् श्रुत्वैवं मुनयो धर्म श्रूयतामाहिताग्नेस्तु श्रूयमाणं हि नारीणां श्रेणिनैगमपाषण्डि श्रेणिषु श्रेणिपुरुषाः श्रेण्यादिषु च सर्वेषु श्रेयश्च लभते सोऽपि श्रेयसः श्रेयसोऽलाभे श्रेयसा सुखदुःखाभ्यां श्रेयसी कथिता सद्भि श्रेयः सुगुरुवद्वृत्ति श्रेयसो न भवेदेव तस्मान् श्रेष्ठामध्याः कनिष्ठा श्रेणीतटस्था पितरो श्रोतव्यः स तु वा कृष्ण श्रोतियाय वाऽग्रं श्रोतियायैव देयानि श्रोतुकामाः परं गुण्यम् श्रोत्रञ्च यशश्चैष श्रोतद्वयं च हृदयं श्रोत्रद्वयं च हृदये संस्पृशे श्रोत्रं त्वक् चक्षुषी श्रोत्रियं व्याधितार्त्तो श्रोत्रियं सुभगां गाञ्च श्रोत्रियः श्रोत्रियं साधुं श्रोत्रियस्यास्य तज्जग्धि श्रीत्रियस्य कदर्यस्य श्रीत्रियाद्या वचनतः श्रोत्रियाध्यापको भूत्वा मनु २.९८ या ३.३२८ विष्णुम ९५ या ३.३३४ मनु ५.१ अत्रिस ३९६ ल हा ७.१४ बृ.गौ. २०.२ व्या ३५३ या २.१९५ नारद २.१३२ नारद २.१३३ बृ. या. १.३६ मनु ९.१८४ या ३.१७१ लोहि ४७४ औ ३.२४ कपिल ८७३ भार ५.२४ वृ. गौ. १०.५० वृ.गौ. १.४ बौधा २.३.१८ मनु ३.१२८ वृ. गौ. १.१२ ब्र. या. ८.४० भार ४.३७ विश्वा २.४६ मनु २.९० मनु ८.३९५ कात्या १९.९ मनु ८.३९३ लोहि ३३९ मनु ४.२२४ नारद २.१३५ शाण्डि ३.४० श्रोत्रियाय कुलीनाय श्रोत्रियाय दरिद्राय श्रोत्रियाय दरिद्राय श्रोत्रियाय प्रयच्छन् श्रोत्रियाय महीं दत्वा यो श्रोत्रियायाऽऽगताय भागं श्रोत्रियायेव देयानि श्रोत्रियास्तापसावृद्धा श्रोत्रियास्तापसा वृद्धा श्रोतिये तूपसपन्ने श्रोत्रियेभ्यः परं नास्ति श्रोत्रियो रूपवान् शीलवान् श्रोत्रे चक्षुभ्रवोर्मध्ये श्रोत्रे नासाक्षिणी बद्ध्वा श्रौतं महर्षिभि प्रोक्तं श्रौतमेव विशिष्टं श्रौतः स्मार्त क्रिया कुर्यान्न श्रौतस्मार्त्तक्रिया हेतो श्रौतस्मार्तीनि कर्माणि श्रौतहोमे दशावृत्ति श्रतग्निहोत्रसंस्कार श्रोताग्नौ लोकिकेचापि श्रीतेन विधिना चक्रं श्रीतेनैव च मार्गेण श्रीतेनैव हरिं देवं श्रीतैश्च स्मार्तमंत्रैश्च श्लक्ष्णनासं रक्तगंड श्लाघयन्ती स्वासामर्थ्यं श्लेष्म रक्तसुरामांससर्पि श्लेष्मातकं कोविदारं श्लेष्मातककरंजाक्ष श्लेष्मातकस्य छायायां श्लेष्माश्रु वान्धवै श्लेष्माश्रु बान्धवैर्मुक्तं श्लेष्मौजसस्तावदेव स्मृति सन्दर्भ संवर्त ४९ वृ.गौ. ६. १६२ वृ.गौ. ३.३८ वृ.गौ. ६.३२ वृ.गौ. ६.१०२ व १.११.४ व १.३.९ या २.७१ नारद २.१३७ मनु ५.८१ वृ.गौ. ७.१३३ व १.१६.२३ बृ.या. ५.१० विश्वा १.७७ वृ हा ८.२ वृ हा ८.७७ भार १६.५१ या १.३१४ भार १८.३४ विश्वा ३.६६ पराशर ५.१४ ल व्यास २.५३ वृ हा ८.९९३ वृ हा ७.२९६ वृ हा ८.७५ परा ७.३७८ वृ हा ३.२२४ शाण्डि ३.१४७ भार १४.४२ व २.६.१७७ भार १५.१३६ औ ३.७३ कात्या २२.९ या ३.११ या ३.१०७ Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५७७ श्लोकत्रयमपि ह्यस्माद् या ३.३३१ श्वाचाण्डालपतितो व १.२३.२८ श्वकाकसूकरोष्ट्राद्यै वृ हा ८.१२९ श्वानचाण्डालवाराह ब्र.या. ४.४८ श्वकुक्कुटग्राम्यसूकर व १.२३.२५ श्वानं शूद्र तथोच्छिष्टं आश्व १.१६३ श्वक्रीडी श्येनजीवी मनु ३.१६४ श्वानं हत्वा द्विजः औ ९.७ श्वक्रोष्टुगर्दमोलूकसाम व २.३.१६२ श्वानौद्वौ श्यामशवलौ ब्र.या. २.१५० श्वक्रोष्टु गर्दभाउलूक या १.१४८ श्वाविच्छलाका शलली कात्या २५.८ श्वचण्डालपतित व १.११.६ श्वाविच्छल्लकशशक व १.१४.३० श्वचण्डालादिभि स्पृष्टोना वृ.गौ. १२.१५ श्वाविधं शल्यंकं गोधा मनु ५.१८ श्वच्छ्रितौ च यथा क्षीरं वृ.गौ. २१.१५ श्वासेन हि समायोगाद वृ परा १२.२२९ श्वः जंबुकः वृकाद्यैश्च वृ परा ८.२७३ श्वासैः बुभुक्षातृष्णा" वृ.गौ. ५.५६ श्वताश्च मृगा वन्या व १.३.४४ श्वित्रकुष्ठी तथा चैव यम २९ श्वदण्डध्वजशूलापस्मार लोहि ७०५ श्वित्रिणोहैतुकेभ्यश्च शाण्डि ३.२३ श्वपचं पवित्र स्पृष्ट्वा वृ हा ६.३ ४८ श्वित्री कुष्ठी तथा शूली बृ.या. ३.३४ श्वपाकं वापि चाण्डाल पराशर ६.२० श्वेत खुरविषाणाम्यां वृहस्पति २३ श्वपाकीमथ चाण्डाली पराशर १०.९ श्वेतवर्णा समुद्दिष्टा बृ.या. ४.२७ श्वपाकेभ्यः श्ववृत्तिभ्यः शाण्डि ३.३१ श्वेतस्त्रामश्व सारांगः भार ६.३३ श्वपाके श्वापि भुजानो बृह ९.१७९ श्वेतम्रगक्षमाला च वृ परा २.१९ श्वमि व्याप्रैः वृकैः ककैः वृ.गौ. ५.४१ श्वोभविष्यति मे श्राद्धं औ ५.२ श्वामिर्हतस्य यन्मांसं मनु ५.१३१ श्र्वभ्यश्च श्वपचानां ब्र.या. २.१ ४९ श्वमासं भक्षणं तेषां औसं १२ षष्टइलेष्मा पंच पित्तं या ३.१०६ श्वमांसमिच्छन्नार्तोऽत्तुं षट्कर्मभि कृषि प्रोक्ता वृ परा ५.१९५ मनु १०.१०६ श्वमार्जारनकुल व १.२३.२४ षट्कर्माणि कृषि ये तु वृ परा ५.१९४ श्वयोनेश्च परिभ्रष्टो वृ.गौ. ६.१३२ षट्कर्माणि च कुरिन्निति वृ परा १.४८ श्ववतां शौण्डिकानां षट् कर्माणि निजान्याहु ल हा १.१७ वृ परा ६.४८ श्वविष्टायां क्रिमिभूत्वा षट्कर्माणि नृणां तेषां वृहस्पति २९ श्ववृकाम्यां श्रृगालाधौ पराशर ५.१ षटकर्माणि ब्राह्मणस्य व १.२.१९ पराशर १.३८ षट्कर्माभिरतो नित्यं श्व शूकर शृगालादि । वृ परा ५.१७० श्वशृगालखरैर्दष्टो मनु ११.२०० षट्कर्माभिरतो नित्यं वृ परा २.३ श्वशृगालप्लवद्गायै षट् कर्मको भवेत्येषां लघुयम २५ मनु ४.९ श्वशूकरखरोष्ट्राणां मनु १२.५५ षट्कारयुक्तं स्वाहान्तं वृ हा ३.२८१ श्वश्चां विवदमानायां शाण्डि ३.१५० षट्कोणैश्च समायुक्तं व २.२.८ श्वश्वशुरयोः पित्रो लोहि २४० पत्रिशदाब्दिकं चर्य मनु ३.१ श्वसूकरहतं यत्स्या शाण्डि ४.१६१ षट् पञ्च जुहुयात्प्रायश्चिता वृ.गौ. १६.९ श्वस्पृष्टं सूतिकादृष्ट वृ हा ६.२५९ षट् पदैरङ्गुलिन्यास वृ हा ३.१६ षट् शतानि शतचैव पराशर ५.१५ ન ૪ २१६ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७८ स्मृति सन्दर्भ षट्सहस्रं जपित्वा व २.२.१३ षडात्रं वा त्रिरात्रं वा लघुयम ३ षट्स्वेतेषु हरे सम्यग् वृ परा ४.११८ षड्रात्रेणाथवा सप्त औ ६.४३ षडक्षरविधानेन वृ हा ७.९३ षड्वलामूर्धि विन्यस्य ब्र.या. ८.२७८ षडक्षरेण जुहुयादाज्यं वृ हा २.१६ षड्विंशत्यग्गुलै हस्तः भार २.६० षडक्षरेण मंत्रेण व २.२.१२ षड्विधस्तस्य तु बुधैर्दाना नारद ९.३ षडक्षरेण मंत्रेण व २.२.२५ षड्विधा ह्याततायिन व १.३.१७ षडक्षरेण मंत्रण वृ हा ५.४८७ षड्विधे क्रमशस्त्रीणि विश्वा ४.१७ षडक्षरेण मंत्रेण वृहा ५.४७७ षण्डस्य कुलटायाश्च शंख १७.३७ षडक्षरेण मंत्रण वृ हा ५.४३४ षण्णां तु कर्मणामस्य मनु १०.७६ षडक्षरेण साहसं तिलैर्वा व हा ५.४३९ षण्णामेषां तु पूर्वेषां मनु १२.८६ षडंग भवन्ति ऋत्विग व १.११.१ षण्णां षण्णां क्रमेणैव अत्रिस ३२ षडंगन्यासमित्युक्तं भार ६.९५ षण्मात्रिकं गोमूत्र देवल ६५ षडंगन्यासमित्युक्तं भार ६.९२ षण्मासमध्यप्राप्तेषु कण्व ६८२ षडंगमपियोऽधीते ब्र.या. १.३९ षण्मासाच्चाब्दिकं यच्च अ ११ षडंगविच्चतुर्वेदी वृ.गौ. ७.१०९ षण्मासानथयो भुङ्क्ते आंउ ८.८ षडंगवित् त्रिसुपर्णो शंख १४.५ षण्मासानिति मौदगल्य बौधा २.२.६७ षडंगं षट्पदं वर्ण बृह ११.१४ षण्मासान् केचिदिच्छन्ति वृ परा ८.२५० षडंग सहितोवेद सर्व ब्र.या. १.४० षण्मासांनछागमांसेन मनु ३.२६९ षडंगुलघटचापे मकरे __ भार २.४१ षण्मासे तु गते कार्या व परा ८.५४ षडंगेषु च विन्यस्य वृ हा ३.३८८ षष्टिं वर्ष सहस्राणि वृ हा ५.२२४ षडशीतिसहस्रणि वृ.गौ. ५.११ षष्टिवर्णात्मकं मन्त्र विश्वा ३.५६ षडशीत्या व्यतीतायां आंपू ६ ४७ षष्टिवर्ष सहस्रं स वृ हा ५.३६३ षडाधारेषु षट्कुक्षि विश्वा १.४१ षष्टिवर्ष सहस्राणि वृहस्पति २४ षडानुपूर्वा विप्रस्य ___मनु ३.२३ षडशीति सहस्राणां वृहस्पति ३२ षडाहुतिकमन्येन जुहुयाद् कात्या १९.१५ षष्टिवर्ष सहस्राणि वृ हा ५.४५० षडेते पुरुषोजहाद् ब्र.या. १२.१७ षष्टिवर्षात्परं तासामनाथानां कपिल ९५७ षड्गवं तु त्रिपादोक्तं अत्रिस २२२ षष्ठकाले तु योऽश्नाति वृ.गौ. ७.९८ षड्दैवत्यस्तु दर्शः __ आंपू ६६२ षष्ठं तु क्षेत्रजस्यांशं मनु ९.१६४ षड्दैवत्यानि कानि आंपू ६६१ षष्ठान्नकालता मांस मनु ११.२०१ षड्भागभृतो राजा बौधा १.१०.१ षष्ठान्नकालमासं औ ९.७१ षड्भागभृतो राजा बौधा १.१२.४ षष्ठिघ्न सोऽपि कालज्ञैः वृ परा १२.३६३ षड्भागो द्वादशश्चैव अत्रिस १६९ षष्ठिप्रस्थ तिलानां च ब्र.या. ११.३७ षड्भिराधैर?नेदन्नं इति विश्वा ८.४४ षष्ठे अन्न ग्रासनं शंख २.५ षड्भ्योऽन्नमन्वहं व्यास ३.३४ षष्ठे अष्टमे वा शंख २.२ षडात्रं नवरात्रं च वृ परा ८.२५ षष्ठे च सप्तमे चैव दक्ष २.५ Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५७९ षष्ठेन शुद्धयेतैकाह लिखित ९१ संयोज्य चैवं प्रक्षाल्य भार ३.१५ षष्ठेऽन्नप्राशनं कुर्यान् आश्व ८.१ संयोज्य वायुना सोमं या ३.१२२ षष्ठे मास्यान्नमश्नीया व्यास १.१८ संरक्षणार्थ जन्तूनां । मनु ६.६८ षष्ठ्यन्तेनासनं दद्यात् आंपू ७९१ संरक्षिता च भूत्वानां बृह ९.९१ षष्ठ्यंगुलीना द्वे या ३.८६ संरक्ष्यमाणो राज्ञा यं मनु ७.१३६ षष्ठ्यचष्टमीहरिदिनं वाधू १८२ संरम्भशाट्यानि दलेति वृ.गौ. ८.१ २७ षष्ठ्या प्रयुक्तं त्रिशतं वृ परा १०.३३९ संलंघ्यन् मित्रवाक्ययानि लोहि २११ षष्ठ्या स्नानन्तु वृ हा ५.२०६ संलब्ध कथितं श्रीमन् लोहि ३७२ षष्णवत्यात्मके देहे विश्वा ६.५९ संलापस्पर्थनादेव वृ हा ६.३०७ षण्मुखाधोमुखं चैव विश्वा ६.६२ संलापस्पर्शनि श्वास देवल ३३ पाण्मासिकेऽथ संसर्गे औ ८.३१ संवत्सरऋतुर्मासो कण्व २६ पाण्णत्तेमयादत्तमाहा भार ५.२५ सवत्सरतनुह्येषा बृ.या. ४.१८ षोडश निशास्तसामाद्य व २.४.१११ संवत्सरं चरेत कृच्छ्रे वृ परा ८.११३ षोडशर्तुनिशा स्त्रीणां या १.७९ संवत्सरं प्रतीक्षेत मनु ९.७७ षोडशश्राद्धतुलितं आंपू ४८८ संवत्सरं प्रयत्नेन आपू १९७ षोडशाक्षरकं ब्रह्म बृ.या. ४.८ संवत्सरं प्रेतपत्नी बौधा २.२.६६ षोडशान्तं पृथक्कृत्वां आंपू ९९५ संवत्सरं वा षणूमासान्. बृ.या. ४.८२ शोडशाब्दात्परं श्राद्धे प्रजा ८० संवत्सरं शूद्रस्य बौधा २.१.११ षोडशाब्दानि विप्रस्य वृ परा ६.१७६ संवत्सरविमोकाख्यं संतते कपिल १३० षोडशैव तु तस्याध वृ परा ५.६२ · संवत्सरस्यैकमपि चरेत् मनु ५.२१ षोडशैव तु पिण्डांस्ताने व २.६.३६० संवत्सराभिशस्तस्य मनु ८.३७३ षोडशैषेति केचितु औपू ६५८ संवत्सरावमं वा प्रतिकाण्डम् बौधा १.२.३ षोडश्योद्वासनं कुर्याच्छेषं व २.६.१६१ संवत्सरेण पतति देवल ३५ षोडश्योद्वासनं वृ परा ४.१३९ संवत्सरेण पतति बौधा २.१.८८ षोडा ता कथिता आपू ६५९ संवत्सरेण पतति मनु ११.१८१ ष्टोमं इत्येवं क्षेम बौधा २.३.८५ संवत्सरेण पतति व १.१.२२ ष्ठीवनासृक् शकृन् या १.१३७ संवत्सरेण पतति वाधू १८० संवत्सरेणार्धखिलं खिलं नारद १२.२३ संवत्सरे तु गव्येन मनु ३.२७१ संयताक्षश्वरेच्छान्त वृ परा ८.९८ संवत्सरो मासश्चतुविंशत्यहे व १.२२.८ संयतोपस्करा दक्षा या १.८३ संवत्सरोषितः शूद्रः ' देवल २१ संयत् वाक् चतुर्थषष्ठ व १.७.७ संवंशोध्यतंडुलाश्चाभि व २.५.४४ संयम नियमं वाऽपि व परा ८.६७ संवासं च प्रवक्ष्यामि देवल ७८ संयाने दशावाहवाहिनी व १.१९.१२ संवाह्यमानङ्घ्रियुगं विष्णु १.४३ संयोगं पतितैर्गत्वा मनु १२.६० संविभागावशिष्टेन. शाण्डि ४.१२९ संयोजयति यो मोहात् शाण्डि १.६५ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८० स्मृति सन्दर्भ संविशेत्तूर्य्यघोषण या १.३३१ संस्पर्शे भेद-भिल्लानां वृ परा ८.३१६ सशंका वालभावे तु दक्षु ४.११ संस्पृशद्वै शिरस्तद्वद् औ २.२२ संशयस्थासतु ये केचिन् नारद १९.१ संस्पृष्टं तद्भवेत्सूत्र भार १५.४२ संशये न तु भोक्तव्यं आंउ २.३ संस्पृष्टं नैव शुद्ध्यते शंख १६.२ संशयोऽतीव सुमहान् वर्त्तते कपिल ५ संस्मृत्य दुपदा देवी वृ परा २.१३७ संशुद्धः कर्षको येन वृ परा ५.१५७ संस्थितस्यानपत्याय मनु ९.१९० संशोधयेत् प्रतिदिनं वृ हा ८.८८ संस्थिते च संचारो बौधा १.७.१७ संशोध्य तण्डुलान वृ हा ८.१०८ संहताभि त्र्यंगुलिभि कात्या १.६ संशोध्य त्रिविधं मार्ग मनु ७.१८५ संहताङ्गलिना तोयं गृहीत्वा वाधू २३ संश्राव्य सर्वदा सर्वैः सर्व कपिल ८५० संहतान्योधयेद्ल्पान् मनु ७.१९१ संसक्तपदविन्यासः कात्या २८.५ संहत्य तिसृमि पूर्वमास्य दक्ष २.१५ संसक्तमूलो य शम्या कात्या ७.३ संहति अहं जगत सर्वम् वृ.गौ. १.६३ संसर्ग कुरुते मूढ़ लोहि ३६ संहीयते तयैवेति कण्व २०४ संसर्ग यदि गच्छेच्चेद् अत्रिस २७३ सः अनुपूर्वेण यातीमान् वृ.गौ. ४.४९ संसर्ग वर्जयेद्यतात् वृ परा ८.८ सः अन्तरात्म देहवताम् वृ.गौ. ५.१८ संसर्गस्तु तथा तेषां वृ हा ६.२१० स आत्मा चैव यज्ञश्च या ३.१२० संसर्गहोमो याक्तु ___ लोहि ११६ स एको निश्चलीभूत वृ परा १२.३०९ संसर्गी पञ्चमो ज्ञेयस्त बृ.या. ४.२३ स एव कर्मचण्डाल आंपू ६२६ संसारगमनं चैव त्रिविधं मनु १.११७ स एव कृतकृतयो हि कण्व १० संसृष्टा भ्रातरो यत्र आश्व २४.७ स एव नियमस्त्याज्यो पराशर ६.५६ संसृष्टिनस्तु संसृष्टी या २.१ ४१ स एव नियमो ग्राह्यो पराशर ६.५७ संसृष्टिनां तु यो माग नारद १४.२३ स एव पितृकृत्येषु आंपू ४३० संसेव्य चाश्रमान् विप्रो संवर्त १०६ स एवमेवाहरहर बौधा २.४.३० संस्कार प्रथम प्रोक्तो __ व २.७.१६ स एव सर्वं कथितः निग्रहा कपिल ४६२ संस्कारहीने च मृते शाखा ६.३३ स एव हेयोद्दिष्टस्य लिखित ३६ संस्कारा अतिपोरन् कात्या २५.१७ स एवानृतवादी स्यात् वृ परा ८.८३ संस्कारान्ते च विप्राणां देवल १३ स एष द्विपिताद्विगोत्रश्च बौधा २.२.२१ संस्कारा पंचकर्तव्या वृ हा ५.६१ स कन्यायाः प्रदानेन संवर्त ६२ संस्कारा पुरुषस्थते कात्या २६.१४ सकर्पूरं च ताम्बूलं व २.६.१८२ संस्कार्यः पुरषो वाऽपि आश्व १६.१ वृ हा ७.२७८ संस्कुर्यात्साग्निना आश्व १.५३ ब्र.या. ७.४२ संस्कृत स्यादब्राह्मण कण्व २३१ स कानीनः पुनरपि स्व लोहि १९४ संस्कृत्याथ पितृव्यस्य कण्व ७८३ स काम स्वर्गमाप्नोति अत्रिस ३३९ संस्थाप्य कलशाभ्यां भार १५.८२ सकामां कामयमानः व १.१.३३ संस्थाप्य जलसंस्कार भार ११.७१ सकामां दूषयंस्तुल्यो मनु ८.३६८ Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सकामानां प्रियंगृष्टि सकामायां तु कन्यायां सकामास्वनुलोमासु सकामेन सकामाया सकारे सूतकं विद्याद्वकारे स काल कुतपोनाम सकाशात्तु तथा पश्चात् सकाशाद् वासुदेवस्य स किन्नः धार्यते प्राणो सकीटकं स सुगंध स कुर्चाक्षतवलयम सकृच्च ब्राह्मणः प्राश्य सकृज्जप्त्वास्य पीनीयं सकृज्जप्त्वाऽस्यवामीयं सकृज्जप्त्वाऽस्यवामीयं सकृज्जलं तु प्रणवेनां सकृत् कष्णोति यो मनु ११.२५१ व १.२६.७ विश्वा २.४८ वृ हा ३.२८८ औ ८.३० या १.६५ सकृत् पापापनोदार्थ सकृत् प्रदीयते कन्या सकृत्प्रसिञ्चन्त्युदकं सकृत्याहूय कन्यां तु या ३.५ नारद १३.४० सकृत् सकृत् त्वपोदत्वा वृ परा ७.२६३ सकृदप्यष्टकादीनि कात्या २६.१५ मनु ९.४७ नारद १३.२८ बृ.या. ४.४५ वृ हा ३.४८ बौधा १.५.२२ आंपू ७८६ व २.४.११३ असि २९६ अत्रिस २०१ सकृदंशी निपतति सकृदंशो निपतति सदावर्तयेद्यस्तु सर्व सकृदुच्चरणान्नृणां सकृदुभयं शूद्रस्य सकृदेवेति तज्जामितयां सकृद्गच्छेत् स्त्रियं सकृद्विगुणगोमूत्र सकृद्भुक्ता तु या नारी सकृदभुक्ता तु या नारी सकृद् (कृषि) भूवाचक सकृद्भोजन संयुक्त वृ परा १०.८६ नारद १३.७२ या २.२९१ बौधा १.११.७ व्या ९८ ब्र. या. ४.६ लोहि ४९६ वृ परा १०.११० वृ परा १२.२२९ भार १४.४१ भर ७.८२ वृ परा ८.२६४ अत्रि २.५ पराशर १०.२६ वृ हा ३.२९४ वृ हा ७.३१२ ५८१ नारद १३.८९ तु आश्व २.५४ या ३.२३१ संवर्त १६२ वृ.गौ. ५.९९ बृ.गौ. १८.४९ वृ.गौ. ७.७२ बौधा २.१.३६ सकृद्वा गर्भाधानाद् सक्तुलाजान्न हो सखि भार्या कुमारीषु सखिभार्य्यं कुमारीञ्च स गच्छति तम् अध्वानम् गच्छेदक्षिणामूर्ति स गच्छेद्विसदनं सेव्य स गर्दभं पशुमालभेत स गर्भो दीयतेऽन्यस्मै सगुणे निर्गुणश्चासौ स गुरुर्यः क्रियाकृत्वा स गुरुर्यः क्रियां कृत्वा सगृह्णतद्विजश्रेष्ठोः सगोत्रज्ञातिदायादसामन्त सगोत्रदत्ततनयकलंत्र सगोत्रनामशर्माहं भौ सगोत्रश्चेदयंत्वत्रतनयः सगोत्रस्त्रीप्रसंगेन सगोत्राद्भ्रश्यते नारी सगोत्रांचेदमत्योप सगोत्रेणेतरेणापि तावुभौ सगोत्रेभ्यो विशेषेण दद्यात् सगोत्रेष्वथवा कार्यो सगोत्यसंमतः सूनुर्य सगौरसर्षपै क्षौमं सघृतं यावकं प्राश्य सघृता सयवाश्चापि स घोषो ब्राह्मणैः कर्तुं संकरापात्रकृत्यासु संकरे जातयस्त्वेताः सङ्कर्षणोथ प्रद्युम्नो संकलीकरणे चात्र संकल्पञ्च विधाने संकल्पमूलः कामो वै संकल्पं तद्द्वयंचापि देवल ५२ विष्णु म ५२ शंख ३.१ ब्र. या. ८.६५ भार ७.४८ लोहि ४८३ कपिल ६३७ भार ६.२१ कपिल ६९२ शाता ५.३३ लघुयम ७८ बौधा २.१४६ लोहि १७१ कपिल ५०८ आंपू ३०५ आंपू ४२७ या १.१८७ अत्रिस २६८ वृ परा ११.६८ आपू ८१९ मनु ११.१२६ मनु १०.४० बृ.या. २.१०२ आंपू १६८ कपिल ३०४ मनु २.३ कण्व १५८ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८२ संकल्पं तु यदा कुर्यान्न संकल्पं व्यवसायं संकल्पासनदानेषु संकल्पितस्य यज्ञस्य संकल्पे ह्यत्यजन्सर्वा संकल्पेऽध्यवसायश्च संकल्पोऽध्यवसायश्च सङ्कल्पो निखिलं संकल्प्य जलधेनुं संकषणो गदां शंखं संकीर्णतां यदा पश्येद् संकीर्णयोनयो ये तु संक्रमध्वजयष्टीनां संक्रान्तावुपरागे च संक्रान्तिमात्राः कथिता संक्रांतिरर्कवारश्च संक्रातिरहि पक्षस्तत्र संक्रातिवर्जित कालः संक्रान्तिष्वाखिलास्वेवं संक्रान्तौ च व्यतीपाते संक्रान्त्यां पक्षयोरन्ते दा ७८ बृ.या. २.१३६ ब्र. या. ४.६८ कपिल ९७९ कण्व ६६ दक्ष ७.३२ बृ. या. ८.५४ कण्व २४४ वृ परा १०.९४ वृ हा ७.१२१ वृ परा ४.४९ मनु १०.२५ मनु ९.२८५ लिखित १९ आंपू ६५६ वृ परा ६.२९८ वृ परा ७.१०१ वृ परा ७.१०२ आंपू ६४४ प्रजा २५ स चतुष्पाच्चतुः वाधू १६० वृ परा २.६२ भार ९.११ स चार्वाक् तर्पणात् स चेत्तु पति संरुद्ध स चेद्वयाधीयीत काम स चेद्वयाधीयीत सचेलं वाग्यतः स्नात्वा सचैलन्तूभयो स्नानं सचैलं वाग्यतः स्नात्वा सचैलस्नातमाहूय लोहि २४१ स चैव हि महापापी लोहि ५६७ स चोक्तो देवदेवेन सच्छत्रस्त्वातपे कुर्यात् सच्छूद्र तं विजानीय स जप्यः सर्वदा सद्भि सजले चाञ्चलौ तस्य सजातिजानन्तरजा सजातीयेष्वयं प्रोक्तं कपिल ७५३ कपिल ८९३ विश्वा ८.३५ ब्र. या. ९.२३ आंपू २८४ लोहि ५६४ कपिल ७५२ ल हा ६.९ लोहि २०९ आश्व १०.३१ संक्षोभायासृजद् ब्रह्मा संख्यारेकाभिरथवा भूमौ सङ्गच्छते कदाचित्तु संगच्छेत कर्म कर्तुं संगच्छते ज्ञात्यभावेतत् संगच्छते विशेषेण न तु सङ्गमान्ते ब्रह्मयज्ञं कुर्यात् संगमे न हि भोक्तव्यं संगवे तु न तु प्रातः सङ्गृहीतस्स तु शिशु संगृणवीयाच्च तनयं मध्यस्थं संगृह्य कृतसंन्यासो सगृह्यचोभयत्रापि भ्रष्टं संगृह्य पाणी पाणीभ्यां संगृह्या स्थापये संगृह्याहुतिमेकांच संग्रहेण प्रवक्ष्येऽद्य संग्रामे अट्टमार्गे संग्रामे तानि लीयन्ते संग्रामे न निवर्तेत संग्रामे प्रहतानांच संग्रामे वा हतोलक्षः संग्रामे व हतो लक्ष्यभूत संग्रामेष्वनिवर्तीत्वं सङ्ग्राह्येष्वाद्य एकः स च गोकर्णमात्रेण स चंडाल इति ज्ञेयः स च तां प्रतिपद्येत स्मृति सन्दर्भ आंपू १०१४ आश्व २३.४९ नारा ५.१० दा १६३ वृहस्पति ५६ बौधा १.१०.९ पराशर ९.४४ ब्र. या. १२.४० या ३.२४७ मनु ७.८८ लोहि २६५ वृ.गौ. ६.१०७ भार १६.३८ नारद १३.८१ नारद १.८ कात्या १३.५ मनु ८.२९५ बौधा २.१.३१ व १.२३.६ आंउ २.७ व २.६.४८४ पराशर ८.९ या २.९९ वृ हा ३.८० ल हा १.११ कण्व ६४९ औसं ५० वृ परा ३.१८ आम्व १०.१५ मनु १०.४१ या २.१३६ स जीव इति विख्यातः बृ परा १२.२३० स जीवति एवैको दक्ष २.३२ स जीवत् पितृको नान्दी स जीवन्नेव शूद्रः स्यान्मृतः आश्व १५.६८ दक्ष २.१९ Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सजीवपक्वमांसं च सजीवं न च चण्डालो स (त्वं) जीवशरदश्चैव सजोषा इन्द्रपर्यन्ता सज्जातिं रूप - वित्तं सज्ञाता ज्ञातवा पापी स ज्ञेय परमो धर्मो स ज्ञेयस्तं विदित्वेह संचयं कुरुते यस्तु संचित्य व्याहृती सप्त संजयन्ति च ये विप्रान् संजातइति सन्तोषपूर्वकं संजातमात्रः परमः सर्व संजातस्तनयस्सो ऽयमौरसो संजातेष्वखिलेप्वेवं संजाते सद्य एवास्य संजीवनं महावीचिं संज्ञया ज्ञायते देशो संज्ञानां सर्वसत्वानां सततं किं जपन् जप्यं सततं तैलदाने न सततं बालवत्साभिर्गोभि सततं ब्रह्मविष्णुभ्यां सततं ब्राह्मणो भक्त्या सततं ब्राह्मणो भक्त्या सततं भिन्नजातीनां सततं सूचनादेतद्यज्ञ स तत्पापविशुद्ध्यर्थं स तत्र कामं क्रीडित्वा स तमादाय सप्तैव स तरिष्यत्यचिरादापद्द्भ्यो स तस्मै दुष्कृतं दत्वा सताद् विप्र प्रसूतायां स ताननुपरिक्रामेत् स तानुवाच धर्मात्मा शंख १७.३५ वृ हा ५.५५ ब्र. या. ८.३१४ कण्व ५२० वृ परा ६.२१ ब्र. या. १२.५२ अत्रिस १४३ बृह ९.१९५ वृ परा १०.२९२ वृ परा १२.२६० वृ.गौ. ४.५५ लोहि २१८ लोहि २१९ कपिल ६९७ कण्व ६२५ कपिल ८६७ मनु ४.८९ बृ.गौ. १४.५० विष्णु म ३२ विष्णु म २ वृ परा २.२१८ वृ परा ५.३० भार१ २.३३ भार १३.३३ भार १३.३३ कपिल ३४० भार १५.१०१ शाता २.४६ वृ.गौ. ७.३६ या २.१०८ ब्र.या. ११.६५ व २.१९३ औसं ४ मनु ७.१२२ मनु ५.३ स तानुवाच धर्मात्मा सतां अमनुग्रहो नित्यमसता सतां गुरुणां महतां सतां चित्तसमाधानकार्याय सतां यजुस्सामऋचः सतिकन्दद्वयं चैव व २.६.१७१ लोहि ४२७ आंपू ४४९ आंपू ४४० व २.६.४०४ ब्र. या. ४.१२७ आंपू ११०९ कपिल ५०५ शाण्डि ३.६१ शाण्डि ४.३५ सती श्वसुरयोश्राद्धे कृततप्ता कपिल १९५ स तु धर्म प्रसंगेन वृ हा ८.१८० स तु पापविशुद्ध्यर्थं शाता ५.२७ स तु श्राद्धंयदा कुर्यात् प्रजा ४१ स तु सोमघृतैर्देवां या १.४३ स तेन पुण्यदानेन स तेन पुण्यदानेन स तेन पुण्यस्नानेन वृ.गौ. ७.८ वृ.गौ. ७.१५ वृ.गौ. ९.३६ स ते वक्ष्यत्यशेषेण विष्णु १.३२ तै पृष्टस्तथा सतै (चै) लस्य पितुःस्नानं सतोऽपि नित्यं दुर्मार्ग स तोयां पथिके विप्रे सत्कर्म सततं कुर्याद् सत्कुशान्विधिनाहृत्य सत्कृत्य भिक्षवे भिक्षा सत्क्रियाचरणव्याजदुष्ट सत्क्रियां देशकालौं सत्क्रियां देश कालौ च सत्तंडुलतिलान्लक्षं सति कर्त्रन्तरेभूयो न सति चेत्तनये तल्पे सति तत्तत्सुते तस्मात् सति प्रभाते द्वादश्यां सतिलमुदकं पित्र्यं सतिलैर्विद्यते श्राद्धं सति वंशे वृत्तिदाने क्रयो सतीनां योषितां देहो सतीवप्रियभर्त्तारं जननीव ५८३ मनु १२.२ नारद १८.१७ कपिल ३८४ लोहि ३०५ कण्व ४६५ मनु १.४ कपिल ७५ लोहि ६८० ब्र. या. ११.५४ शाण्डि ४.१७८ भार ७.४६ या १.१०८ लोहि ७०९ मनु ३.१२६ व १.११.२५ भार ९.३५ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८४ सत्त्वप्रवर्तनात्सोऽयं सत्त्वं ब्रह्मणि कालेन सत्त्वं रजस्तमश्चैव सत्त्वं रजस्तमश्चैव सत्त्वाराजससम्मिश्रो जायते सत्त्वोत्कटा सुराश्चापि सत्पट्टसूत्रलांगूला सत्पत्न्या विधवाया वा सत्पात्रे समनुज्ञातं सत्प्रकाशे तु न तमो सत्यधर्मार्यवृत्तेषु सत्यन्यातनये तावन् सत्यप्येकनिवासे तु सत्यमर्थं च संपश्येद् सत्यम स्तेय मक्रोघो सत्यमात्मा मनुष्यस्य सत्यमुक्त्वा तु विप्रेषु सत्यमेव परं दानं नारा ५.१५ शाण्डि ५.३० या ३.१८२ मनु १२.२४ नारा ५.२० दक्ष ७.२७ वृपरा १०.११५ लोहि ५६६ आंउ ८.१३ शाण्डि ४.२१३ मनु ४. १७५ आंपू ४३९ वृ परा ८.१४ मनु ८.४५ या ३.६६ नारद २.२०१ मनु ११.१९७ नारद २.१९२ ब्र. या. ८. २८ लोहि ५८१ आश्व १.१५५ आंपू ८२४ नारद २.१९३ मनु ४.१३८ नारद २.१९४ सत्यमेव हि क्तव्यं सत्यं ज्ञानमनन्तं च सत्यं त्वर्तेन मंत्रेण सत्यं त्वर्तेन विधिना सत्यं देवाः समासेन सत्य ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न सत्यं ब्रूनृतं त्यक्त्वा सत्यं मृगवधजीवः निर्धनिको सत्यं यद्धि द्विजं दृष्ट्वा सत्यं युक्तं सदा ब्रूयात् सत्यं साक्ष्ये ब्रुवन् सत्यवाक् शुद्धचेता सत्यवाचाच यस्सप्तो सत्यवादी ड्रीमाननहंकार सत्यवान् क्रोधरहित सत्यशौचयुतान् सत्यष्टचीनदेवांग कपिल ४८ बृ.गौ. १४.११ वृ परा ६. २५० मनु ८.८१ प्रजा ३८ व २.४.६८ बौधा १.२.२० वृ.गौ. ७.८९ वृ हा ४.२२६ भार ११.१२ सत्यसन्धः शुचिनित्य सत्यसन्धो जितक्रोधः सत्यांशक्तौब्रीहि यवमाष सत्या न भाषा भवति सत्यानृतं तु वाणिज्यं सत्यानृतं तु वाणिज्यं सत्यानृताभ्यां जीवंत सत्यामन्यां सवर्णायां सत्यामर्थस्य सम्पत्तौ सत्याय विष्णवे चेति सत्यासत्यन्यथा सत्येन द्योतते वह्नि सत्येन पूयते वाणी सत्येन पूयते साक्षी सत्येन माभिरक्षत्वं सत्येन शापयेद विप्रं सत्येन शापयेद् विप्रं सत्येनैव विशुध्यन्ति सत्येनोत्तमसूक्तेन सत्यैः परहितैस्यार्थे सत्यैरसे तत्समोऽयं सत्रयाजी शतायुश्च सत्रात्प्रोचोऽनुवाकां सत्रिणो व्रतिनस्तावत् सत्रेण यजते वाथ जपे सत्वचन्दनकाष्ठं स त्वप्सु तं घटं प्रास्य सत्वं ज्ञानं तमोऽज्ञानं सत्वं रजस्तमश्चैव सत्वाश्चैव प्रयत्नेन सत्वैत्यमौन अधिकं न सत्वे त्वनुदिवादित्ये सत् सद्ममेघिद्विजना सत्सु साधुषु तिष्ठत्सु सत्स्वौरसेषु मुख्य स्मृति सन्दर्भ वृ.गौ. २.२४ वृ.गौ. ६.८४ कपिल ६२८ मनु ८.१६४ मनु ४.६ व्या ३७३ व्या ३७२ या ९.८८ वृ परा ६.३०४ बृ.गौ. १६.८ या २,२०७ आंउ ३.१ वृ परा ८.३३८ मनु ८.८३ या २.११० नारद २.१७८ मनु ८.११३ आंउ ३.४ वृ हा ५.४६७ शाण्डि १.२२ आंपू ४२० वृ. गौ. ६.१७२ कण्व ५२२ औ ६.५७ अ ७२ ल व्यास १.१७ मनु ११.९८८ मनु १२.२६ बृ.या. २.१९ बृ. या. २.९३ ब्र. या. ८.३०२ वृ परा २.८३ वृ परा १०.३६१ लोहि ५१९ आंपू ४६८ Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देह श्लोकानुक्रमणी ५८५ स दग्धकिल्विषो बृह ९.१२१ सद्ब्राह्मणाय दातव्यं भार १२.६० सदर्थग्राहकं सूक्ष्मज्ञान शाण्डि १.५८ सद्भक्तानामन्यानां पूर्जार्थं शाण्डि १.३६ स दशं आहतंधौतम ब्र.या. २.२५ सद्भक्तिपूतया नित्यं शाण्डि ३.५३ सदसस्पति मद्भुतमृचा व २.३.७४ सद्भक शाण्डि २.६ सदस्यदूषकं तुष्णीं ग्राम कपिल ८२४ सद्भिराचरितं यत्स्याद् मनु ८.४६ सदाकर्त्तव्यं कर्माणि भार १२.५३ सद्भिरुक्तं विधानेन कण्व ४१२ सदाघनरसांतस्थस्सदा भार १८.१७ सद्धि सोःयं विगर्हःस्यात् कपिल ८१५ सदाचारपरो विप्र आश्व २ ४.३१ सद्भिस्समासु विवद्न् लोहि २८२ सदाचारस्य विप्रस्य पराशर १२.५४ सद्यउत्थापयित्यैव तत्र लोहि ६०९ सदा चैवं प्रकुर्वीत ब्र.या. ४.३९ सद्य एव प्रकर्तव्यं आंपू १०७४ सदा चोद्यमिना भाव्यं वृ परा १२.६६ सद्य एव ब्राह्मणेभ्यो आंपू ५५० सदातुष्टस्सदाशान्तः कण्व ७.९२ सद्य एव विमुक्तः स्यात् आंपू १६० सदा त्रिषवणं स्नानात् आंउ १२.२ सद्य पक्षालको वा स्यान् मनु ६.१८ सदानेनैव कुर्वीत आंपू १८८ सद्यः पतति मांसेन अत्रिस २१ सदा प्रहष्टया भाव्यं मनु ५.१५० सद्यः पतति मांसेन मनु १०.९२ सदा प्रियहिते युक्तः वृ परा १२.२१ सद्यः पतति मांसेन व १.२.३१ सदा ब्राह्मणजातीनां कण्व ४५३ सद्यः पापहरं राहुः वृ परा २.९१ सदाऽरण्यत्समिध बौधा १.२.१९ सद्यः प्राप्ता भवन्त्येव कपिल ७६९ स दारिद्रमवाप्नोति विश्वा १.३४ सद्यः शापप्रदानायोधुक्ता आपू ७१५ सदारोऽन्यान पुनरान् कात्या १९.१३ सद्य शुद्धि पशूनां च व २.६.५०१ सदासेवी च खल्वाटः ब्र.या. ४.१६ सद्यः शूदत्वमायान्ति बृ.गौ. १५.७५ सदास्तान्ब्राह्मणांस्तत्र व २.४.८९ सद्यः शौचं तथै काहोद्वित्रि दक्ष ६.२ स दिवं याति पूतात्मा बृ.गौ. १६.४८ सद्यः शौचं भवेत्तस्य औ ६.२४ सदुष्टांव्यसनासक्तां व्यास २.५१ सद्यः शौचं विधातव्यं वृ परा ८.१५ सदृशं तु प्रकुर्याधं मनु ९.१६९ सद्यः शौचं विधातव्यं वृ परा ८.३५ सदृशं यं सकामं बौधा २.२.२५ सद्य शौचं सपिण्डानां औ ६.१५ सदृशस्त्रीषु जातानां मनु ९.१२५ सद्यश्चण्डालता सा स्याद् लोहि १४६ स देशो वैष्णव प्रोक्तः व २.६.४२५ सद्यस्कमेतन्त्रितयं भार १४.५४ सदैक रूप रूपत्वात व हा ३.२०७ सद्यस्काले भवेयद् आश्व २.३ सदैव प्राण संरोधः वृ परा १२.१३१ सद्यस्ततस्सर्ववंश लोहि ५२४ सदैविकानि ख्यातानि आपू ६८३ सद्यस्तु प्रौढ़बालायामन्यथा पु २८ सदैवैतत्समं दानं लक्ष्मी कपिल ९३४ सद्यस्त्वयित्वै शास्त्री कपिल ७५६ सदोपवीतिना भाव्यं कात्या १.४ सद्यो देशान्तरे पित्रो। आंपू ५१ सदोपवीती वैव स्यात् औ १.७ सद्यो नष्टा भवेयुर्हि । आपू ८३३ सद्धर्मानुसन्धानमिति शाण्डि ४.२०३ सद्योनि शंसये पापे न. पराशर ८.४ Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८६ सद्यो निसंशय पापो सद्योमूल पण्य मति सद्यो विलयमायान्ति सद्यो हैन्यमवाप्नोति सद्वक्ता शासयेच्छिष्ठां सद्वाक्येन विनिश्चित्य सत्ता वर्त मन्तीह सद्वृत्तिर्वसुधा रूपा सद्वृत्त्यबलवानंविश्वर्य सधर्म चरितः प्राजापत्य स धर्मस्तु कृतो ज्ञेय स न कंचिद्याचेतान्यत्र सनकादि मनुष्याश्च सनकादिमनुष्येभ्यो सनकाद्यैः स्तूयमानं स नरः क्षुत्पिपासात स नरः सर्वदो भूप सनादमुच्चरेद्विप्रो संनियम्योन्द्रिग्रामं स निवेश्यै करात्रन्तु स नेतुं न्यायतोऽशक्यो स नैष्ठिको ब्रह्मचारी सन्तप्तहृदयं भक्त्या संततिस्तु पशुस्त्रीणां सन्तति स्त्रीपशुष्वेव सन्तर्प्य मूलमंत्रेण संतानवर्धनं पुत्रमुद्यतं सन्तानस्य विशुद्ध्यर्थ संतानेप्सु त्रयोदश्यां सन्ति ताश्च प्रवक्ष्यामि संतिष्ठते तु तैः सार्धं संतिष्ठेद्वा सदा सौम्यो सन्तिह्यवयवास्तेन भ्राता संतुष्टस्ततारयेद्दुर्गं संतुष्टस्वान्तको नित्यं आंउ २.२ आंपू ५२६ आंपू ९०२ आंपू ४३६ वृ हा २.१३८ लोहि ५७८ अ १३ लोहि ४९५ भार ९.३९ व २.४.१४ आंउ १.६ व १.१२.२ वृ परा ५.१७७ ब्र. या. २.१४८ वृ हा ३.३७२ ब्र. या. ९.७ वृहस्पति १४ वृ परा ६.१०६ संवर्त ११३ वृ हा ६.४२१ या १.३५५ व्यास १.४० शाण्डि १.१११ या २.४० या २.५८ वृ हा ५.३७३ व १.११.३८ वृ परा ६.२६ वृ परा ७.२९२ लोहि ४९१ बृ.या. १.३७ बृ. गौ. १५.९५ कपिल ७३६ ब्र. या. ११.६९ वृ परा १२.१०१ सन्तुष्टाय विनीताय सन्तुष्टे ब्राह्मणस्तीर्थं सन्तुष्टो भार्यया भर्ता सन्तोऽपि न प्रमाणं सन्तोषं परमास्थाय सन्तोषं परमास्थाय संत्कार्यस्य च वै यस्य संत्तितद्वदनाकाराः ऋजु संत्यज्य ग्राम्यमाहारं संत्याज्य एव सततं संदिग्धलेख्य शुद्धि सन्दिग्धान्नाश्रमे नाव संदिग्धार्थ स्वतंत्रो संदिग्धेऽर्थेभिशस्तानां संदिग्धेषु तु कार्येषु संदेहे चोत्पन्ने दूरे संघातं लोहितोदञ्च संधि च विग्रहं चैव सन्धिञ्च विग्रहं संधिं तु द्विविधं विद्याद् संधिते तु परे सूक्ष्मे संधिनीक्षीरमवत्साक्षीरं सन्धिन्यनिर्द्दशाऽवत्सगो संधि भित्वातु ये चौर्य संधिन्यमेध्यं भक्षित्वा संधिविग्रहयानासन सन्धिवेलाद्वि आहुत्यौ संधि सर्वसुराणां च संधौ संध्यामुपासीत सन्ध्यज्ञानमिति प्राज्ञा सन्ध्यायोरुभयो कार्या सन्ध्यपयोरुभयोर्नित्यं सन्ध्ययोरुभयोर्विप्रो सन्ध्योर्भोजनार्थे च संध्यश्च संपत्तावहो स्मृति सन्दर्भ वृहस्पति ५७ बृ.गौ. २०.१० मनु ३.६० नारद २.८२ मनु ४.१२ व २.५.६१ आश्व १७.४ भार ७.२५ मनु ६.३ कण्व १३८ या २.९४ शाण्डि ४.१८६ या २.१६ नारद १९.३ नारद २.१२४ व १.१५.७ या ३.२२३ मनु ७.१६० या १.३४७ मनु ७.१६२ बृ. या. ६.२१ व १.१४.२९ या १.१७० मनु ९.२७६ शंख १७.३० विष्णु ३ ब्र. या. ८.३२८ बृ.या. ६.२० बृ. या. ६.२५ शाण्डि ५.१७ शाण्डि ५.६ शाण्डि २.६६ बृ.या. ४.४९ व्या ३४३ बौधा २.४.१७ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५८७ सन्ध्योयोस्तु जपेन्नित्यं बृ.गौ. १८.५ सन्ध्यालोपाच्च चकितः कात्या ११.१६ संध्ययोः स्नानतो कण्व २७० सन्ध्यावन्दनवेलायां विश्वा ५.१ सन्ध्या उपास्य श्रृणु या १.३३० सन्ध्यावन्दनवेलायां विश्वा ५.५ सन्ध्याकाले तु समप्राप्ते वृ हा ५.१०१ संध्याविनाशयेज्जप्यं व्या २१८ सन्ध्याकाले होमकाले विश्वा ३.८ सन्ध्या सायन्तनी वृ परा २.२२ सन्ध्यागर्जितनिर्घात या १.१ ४५ संध्यास्तमिते संध्या व १.१३.५ संध्यागर्जितनिर्घात व २.३.१५५ संध्यास्नानत्रयं ब्र.या. १३.२३ सन्ध्याचार विहीनां वृ परा ८.३६ सन्ध्यास्नानमुभाम्याञ्च दक्ष २.३८ संध्यात्रयंच्चाभिनयक्रियया कपिल ३२८ सन्ध्या स्नानं जपश्चैव वृ परा २.७ सन्ध्यात्रये च निदायां विश्वा २.५३ सन्ध्यास्नानं जपोहोमः दक्ष ३.८ सन्ध्यात्रये पूर्वमूखो विश्वा १.२६ सन्ध्यास्नानं जपो पराशर १.३९ सन्ध्यादि प्रमुखाः सर्वा भार १.७ सन्ध्या स्नानं जपो ब्र.या. १२.३३ संध्यादीना यथा प्रोक्तं भार ६.१२५ सन्ध्यास्नानं परित्यज्य विश्वा १.२७ संध्याद्यानंत्तरं विप्रः भार ७.७ संध्यास्नानरतो नित्यं __ औ ३.९० सन्ध्याद्वयेऽप्युपस्थान कात्या ११.११ संध्यास्नाने जपेहोमे ब्र.या. २.३८ संध्या न वन्दिता बृ.या. ४.७५ संध्यास्वाह कर्णस्था भार ३.७ संध्यापरं तु होमः कण्व २८७ संध्याहीना- व्रतभ्रष्टाः बृ.या. ४.५६ संध्यापुरस्ताद्गायत्रि भार ६.११५ सन्ध्याहीनोऽशुचि ल व्यास १.२७ सन्ध्या प्रणामाश्च जपः __ भार १.१५ संध्याहीनोऽशुर्नित्य व्य २१५ सन्द्या प्राचैव ध्येया विश्वा ३.२२ संध्योपास्ति विना विप्रः भार ६.१६१ संध्याप्रारम्भकालेषु विश्वा २.७ सन्नपश्वावदानानां कात्या २९.१४ सन्ध्याप्रारम्भसमये विश्वा ३.३३ सन्निकृष्टमतिक्रम्य औ ३.११९ संध्याभावे सर्वलोक कण्व २०० सन्निकृष्टमधीयानं कात्या १५.७ सन्धामथ प्रवक्ष्यामि वृ परा २.९ सन्निकृष्टमधीयानं व्यास ४.३६ सन्ध्यामन्वास्य वृ हा ७.३२ सन्निधावेष वै कल्प मनु ५.७४ सन्ध्यामुपास्य विधिवत व २.६.५५ सन्निरुध्येन्द्रियग्राम या ३.६१ सन्ध्या चोपास्य मनु ९.२२३ सन्निरुध्येन्द्रियग्राम या ३.२०० सन्ध्यांप्राक्प्रातरेवं ब्र.या. ८.५७ सन्निहत्य तडागानि वृ परा १०.३६९ सन्ध्यां प्राक् प्रातरेवं या १.२५ संन्यसेत्सर्वकर्मणि व १.१०.५ संध्यां प्रातः सनक्षत्र सम्वर्त ६ संन्यस्ते पतिते ताते आंपू १०८ सन्ध्या स्नानं जपं होम अतिम ३७२ संन्यस्य सर्वकर्माणि मनु ६.९५ सन्ध्यायाञ्च प्रभाते __ दक्ष । १८ सन्यस्य सर्वकर्माणि वृ परा ७.१ ४४ संध्या येन न विज्ञाता ब्र.या. २.८५ संन्यासं च समुद्रञ्च वृ हा २.१२८ सन्ध्या येन न विज्ञाता वृ परा २.८४ सन्यासं च समुद्रञ्च वृ हा ८.२१९ संध्या येन न विज्ञाता वृ.या. ६.२ संन्यासाश्रम बर्णनम् विष्णु ९६ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in H ५८८ स्मृति सन्दर्भ संन्यासीनां नियम विष्णु ९७ सपिण्डानां प्रकथिता कपिल ७३५ संन्यासीबहुभक्षश्च वाधू २११ सपिण्डाभावे सकुल्य बौधा १.५ सन्यासेन मृता ये वै वृ परा ८.३४ सपिण्डी करणंकार्य शंख ४१२ संन्यासो युद्ध संस्थश्च वृ परा ८.३१ सपिण्डीकरणं तस्य ब्र.या. ७.१३ स पञ्चविंशत्यध्याये भार १.२० सपिण्डी करणं तस्य ब्र.या. ७.१८ सपणश्चेद् विवादः या २.१८ सपिण्डीकरणं प्रोक्तं औ ७.१५ सपतिं वनितां साध्वीं लोहि ६६७ सपिण्डीकरण श्राद्ध औ ७.१७ सपत्नीका हि पितरस्त्रयस्ते कपिल ८७ सपिण्डीकरणादूज़ दा २७ सपत्नीको ब्रह्ममेधा कण्व ३८९ सपिण्डी करणादूज़ ब्र.या. ३.२४ सपत्नी जननी नित्यतर्पणे आपू ३९७ सपिण्डीकरणादूर्व ब्र.या. ७.२२ सपत्नीतनयं दृष्ट्वा लोहि ३२० सपिण्डीकरणादूर्व लघुशंख १५ सपत्नीतनयात्तस्या लोहि ३२४ सपिण्डीकरणादूर्ध्व लघुशंख १६ सपल्या वाऽसपल्या आंपू ९७९ सपिण्डीकरणादूर्ध्व लिखित १७ सप (वि) त्रकरञ्चैव प्रसन्नो शाण्डि ४.३ सपिण्डीकरणादूर्ध्व वृ परा ७.३३६ सपत्रपुष्पादि कृता कण्व ४.३ सपिण्डीकरणादूज़ व परा ७.३३७ सपद्यसंपुटं चित्र बृह ९.१७३ सपिण्डीकरमादूज़ वृ परा ७.३ ४० सपन्नामित्या भुदयिकेषु व १.३.६४ सपिण्डीकरणादूर्ध्व वृ परा ७.३ ४१ स परस्य प्रियोनित्यं सपिण्डीकरणाद् कात्या २४.१३ सपर्याणौ कशायुक्तौ वृ परा १०.१५४ सपिण्डी करणाभावे कपिल १०० सपवित्रकरे तस्मिन् भार ४.२२ सपिण्डी करणे काले वृ परा ७.१३५ सपवित्रांचतुर्हस्तां भार १२.१६ सपिण्डीकरणेचाहे न शंख ४.१३ सपवित्रेण हस्तेन वाधू २६ सपिण्डीकरणे तस्मिन् कपिल २५२ सपवित्रेण हस्तेन व्या २३५ सपिण्डीकरणे सम्यक कण्व ७०८ सपवित्रे निषिच्याऽऽज्य आश्व २.३६ सपिण्डे क्षत्रिये शुद्धि शंख १५.१९ सपवित्रौ सदर्भावा व्या ३०१ सपिण्डे ब्राह्मणे वर्णा शंख १५.२० सपाद्यार्थ्यगन्धधूपदीप आंपू ६८५ सपिण्डेष्वादशाहम् बौधा १.५.१०७ स पापात्मा महाघोरे भार १८.१३१ सपिण्डेष्वादशाहम् बौधा १.१२.११ सपिण्डता च पुरुषे रषे ६.५२ स पुण्यकृत्तमो लोके वृ परा ६.१८८ सपिण्डता तु कर्तव्या वृ परा ७.३ ४२ स पुत्र पशुदाराणां व २.१.३६ सपिण्डता तु पुरुषे ___ मनु ५.६० स पुत्र सकलं कर्म औ १.३६ सपिण्डता तु पुरुषे शंख १५.२ सपुत्रा तस्करा शुद्धा व २.५.७ सपिण्डता त्वा सप्त बोध १.५.१०८ स पुत्रो देवरसुतो भवितव्यो लोहि ५५८ सपिण्डदानं सौभाग्यं प्रजा ३५ स पुनर्दिविध प्रोक्तः नारद, ३.३ सपिण्डानां न्तु सर्वेषां अत्रिस ८६ स पुष्पमण्डपे रम्ये व २.२.६ सपिण्डानां त्रिरात्रं औ ६.२५ स पूजितो वास्पृष्टो वृ.गौ. ३.८७ वाधू Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५८९ सपूज्ये वा अपूज्ये ब्र.या. ८.१८४ सप्तर्षिलोकपर्यन्तं वालुका कपिल ९२९ स पृष्टः केशवः च एव वृ.गौ. २.१४ सप्त वित्तागमाधर्म्या मनु १०.११५ स पृष्टः स्मृतिमान् व्यास १.२ सप्त व्याहृतयः प्रोक्ताः बृ.या. ३.५ स पृष्ठो मुनिभिर्व्यासो वृ परा १.५ सप्तव्याहृतयश्चैव नवपाद विश्वा २.४१ सप्तऋषींश्च विन्यस्य ब्र.या. १०.११२ सप्तव्याति पूर्वी तां भार ६.१६ सप्तकस्यास्य वर्गस्य मनु ७.५२ सप्तव्यातिभिर्होमो संवर्त २०८ सप्तकांचनसंकाशा वृ हा ३.२६ सप्तव्याहृतिभिश्वापि विश्वा ३.४ सप्तकूटानिधान्यानि ब्र.या. ८.२३१ सप्तव्यातिभिश्चैव विश्वा २.४३ सप्तकृत्याभिमंत्र्याथ भार ९.२९ सप्तसंशुद्धिसंयुक्ता शाण्डि १.८८ सप्तचाऽऽज्याहुतीर्तुत्वा आश्व १३.३ सप्तांगस्येह राज्यस्य मनु ९.२९६ सप्त च्छन्दांसि यान्यासा बृ.या. ३.१३ सप्तानां प्रकृतीनां तु मनु ९.२९५ सप्तजन्मकृतं पापं अत्रि ५.७५ सप्तान्ता देवदेवस्य बृ.या. ३.१२ सप्त जन्मनि नग्नत्वं ब्र.या. ३.७४ सप्तापि व्याहृतीय॑स्या व परा ४.३२ सप्त तावन् मूर्धन्यानि कात्या २९.२ सप्ताचिषं ततो ध्याये ब्र.या. २.१६६ सप्तत्यू_तु चेत्तस्या ___आंपू ६१ सप्तावरण संयुक्तां वृ हा ७.३३ सप्तद्वीपसमं प्रान्तं वृ.गौ. ६.९५ सप्ताश्वासि ऋतिर्वायुः __ भार २१८ सप्तधान्यन्तु सफलं शाता ६.२० सप्ताहेन तु कृच्छ्रोऽयं अत्रिस ११९ सप्त पञ्च धवा प्रोक्ता कपिल ७२ सप्तैताव्याहतीरेता भार १९.२८ सप्तपर्णपृश्निपर्णी ल हा ४.७ सप्तैते कथिता दोषाः भार ७.२९ सप्तमं वामकुक्षौतु व २.६.१५४ सप्तैते पाकयज्ञाः कण्व ५०० सप्तमाद्दशमाद्वापि या ३.३ सप्तैते स्वर्गलोका वै वृ परा २.६७ सप्तमी कृष्णपिङ्गाक्षी वृ.गौ. ९.४९ स प्रणाश्य फलं तेषां वृ परा ६.१३० सप्तमीदशमी त्रयोदश शाण्डि २.५१ स प्रनष्टप्रसूर्नित्यं आंपू ७२० सप्तमी पितृतोज्ञेया ब्र,या. ८.१ ४७ सप्रयत्नेनोच्चरेच्च कण्व ६१४ सप्तमीविद्धा च ब्र.या. ९.३९ सप्रवासा समुच्चेदा भार ५.१२ सप्तमी शर्कराधेनुर्दधि अ ३२ स प्राप्नुयाद् गृहस्थोऽपि वृ परा २.२२४ सप्तमे शमगा कन्या ब्र.या. ८.२९३ सफलं जायते सर्वमिति बृ.या. ५.१७ सप्तमो विकृतबीज बौधा १.८.१५ सफला बदरीशाखा कात्या २८.१० सप्तम्यन्तेन च तिथौ कण्व २५ स ब्रह्मचारिण्येकाहमतीते मनु ५.७१ सप्तरात्रं व्रतं कुर्याद् शंख १७.३१ स ब्रह्मदो हि राजेन्द्र वृ.गौ. ६.१३६ सप्तर्षयस्तथा सेन्द्राः नारद २.२१९ स ब्रह्मा परमभ्येति बृ.या. ४.४८ सप्तर्षयोऽथवेतासां मार १९.१० समर्तृकाणां नारीणां व हा ६.३७२ सप्तर्षयो ध्रुवश्चैते वृ हा ३.१८१ सभर्तृका सती वाऽपि वृ हा ८.२१० सप्तर्षि अरुन्धती कण्व ३४९ स भवेत सर्वविद्यानां बृह १०.२१ सप्तर्षि नागवीक्ष्यन्त या ३.१८७ सभागारांश्चरेद्भक्ष्यं शंख ७.३ Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० सभान्तः साक्षिणः प्राप्तानर्थि सभाप्रपापूयशाला सभा प्रापापूयशालां सभाभ्यनुज्ञा च परावश्यकी सभामेव प्रविश्याग्रयां सभां वा न प्रवेष्टव्या सभायां निर्भयं चोरः प्रसिद्ध सभायां पक्षपाती व सभायां व्यवहारेषु सभायां स्पर्शने चैव सभा वा न प्रवेष्टव्या सभा विप्रगृहाश्चापि सभाः समवायांश्च सभासु वै प्रलपतो सद्यो समिक कारयेद् द्यूतं स भूमिस्तेयपायेन समकालमिषु मुक्तमानयेत समक्षदर्शनात् साक्षी समक्षर्शनात्साक्ष्यं समगोपुच्छलोमानि समघ योऽन्नमादाय समजानुद्वयो ब्रह्मा समञ्जान्वितित चाऽऽरम्य समत्वेतया प्राश्य समत्वमागतस्यापि समत्वं परमं ब्रह्म समत्वेन दयां कुर्यान् समदृष्टया प्रपश्यन्ती समनुष्ठाय तत्पश्चात समनुष्ठेय एवेति समन्तस्य फलं प्राह समंताद्धरितः स्निग्धः समन्ताद्धूसरोगाधः मनु ८.७९ नारद १८.५९ मनु ९.२६४ कण्व ६१ मनु ८.११ मनु ८.१३ कपिल ७६६ शाता ३.२२ लोहि २७८ देवल ५८ नारद १.७३ बृ.गौ. १३.२३ व १.१२.३६ लोहि २९५ नारद १७२ वृ परा ५.१२७ या २.१११ नारद २.१२५ मनु ८.७४ आंपू ५७ प्रजा ८८ व्यास ३.१४ आश्व १५.५८ आश्व १५.५३ समद्विगुणसाहस्रं दक्ष ३.२५ समनुष्ठयेमेवेति सर्वशास्त्र कपिल १०४ कण्व ४१० स मंत्रिण प्रकुर्वीत समभागः सदा प्रोक्त समभागो ग्रहीतव्य समभूमिस्तले दण्ड समभ्यर्च्य ततः पिण्डान् कण्व ४४६ वृ.गौ. ९.४४ भार १८.१४ भार १८.१३ सममब्राह्मणे दानं सममब्राह्मणे दानं सममब्राह्मणे दानं दा ७५ समवसाय धर्माश्चारे समवायेन वणिजां समवाये निर्धनानां सर्व वृ परा १२.२११ बृ.गौ. २२.१८ समशः सर्वेषामविशेषात लोहि ५८५ सममितरे विभजेरन् सममेव लभन्तेऽशमौर समं सर्वाश्रमस्थस्य 'समय क्रिया वर्णनम् समयस्यानपाकर्म विवादः समये वाप्यधिश्रित्य समरीचानि कार्याणि समर्घ धनमुत्सृज्य समर्घं धान्यमुदधृत्य समर्चनं प्रकुरुते दैहित्रोऽयं समर्थो यस्य यस्तु समर्पणं यत्र कुत्र त्यक्त्वा समवर्णाद्विजादीनां समवर्णासु समवर्णे द्विजातीनां (वा) जाताः समष्ट्या बहवो भूयः एकं समष्वेवं परस्त्री समः सर्वेषु भूतेषु समस्त कर्मणामादि समस्त दक्षिणायुक्तान् समस्त भुवनाभार समस्तयज्ञभोक्तारं समस्तयाऽथव्याहत्या स्मृति सन्दर्भ या १.३१२ आंपू ३७७ बृ.या. ५.२२ भार २.२२ ब्र. या. ४.१२९ दक्ष ३.२६ मनु ७.८५ व्यास ४.४० बौधा २.२.७ आंपू ४१३ भार १६.५६ विष्णु ९ नारद १.१८ कपिल २२८ शाण्डि ३.११७ बृ.या. ३.२३ व १.२.४६ लोहि ३१९ वृ परा ६.३२९ लोहि ४७५ नारद १६.१६ मनु ९.१५६ मनु ८.२६९ बौधा २.१.६७ या २.२६२ कपिल ४९६ बौधा २.२.३ कपिल ८४० या २.२१७ व १.१६.५ भार ४.१ वृ परा १२.१२४ वृ परा ११.१३८ वृ हा ८.१७३ भार ११.९३ Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५९१ समस्तयोगभोक्तारं वृ हा ८.१७० समाप्ति वाचयित्वाथ व २.३.१५२ समस्तशीतांशु गुण वृ परा १२.९३ समाप्ते चोत्सवे विष्णो वृ हा ६.४१ समस्तसंहितायान्तु व २.३.१७५ समाप्ते तु ततस्तस्मिन् वृ परा ११.२५८ समस्तसप्ततंतुभ्यः जप भार ६.१६४ समाप्ते तु व्रते तस्मिन् वृ.गौ. ७.१०२ समस्तसंपत्समवाप्ति आंउ १२.१६ समाप्ते ब्रह्मचर्ये च ब्र.या. ८.१ ४४ समस्ताभरणोपेता स्वर्ग भार १२.११ समाप्ते यदि जानीयान् कात्या ३.५ समस्येदिक्षुदंडानि भार १४.५५ समाप्तेऽर्थे ऋणी नाम या २.८८ स महीमाखिला भुंजन् __ मनु ९.६७ समाप्तेषु तु मासेषु वृ.गौ. ७.५६ समाक्षरयुतं नाम भवेत् आश्व ६.४ समाप्य च व्रतं यस्तु वृ परा ६.१६६ समागतं समाप्याऽऽदौ आंपू ३१ समाप्य पुष्पयोगेन वृ हा ७.१०२ समागतश्च समये विवादे कपिल ८६३ समाप्य विधिवद्भ्यः लोहि ४४१ समागतो यतोमूलः स्थावरो लोहि ५१७ समाप्य वेदं गुरवे व २.३.१८८ समागतात्पुनः प्रोक्तः आपूं ८५१ समामासतदर्धाहो या २.८७ समागत्यातिचपलात् आंपू ५८७ समाम्नायैकदेशं तु गुह्यो बृह ११.१२ समागमस्तु यत्रैषा कात्या १०.१० समायान्ति मनोवेग आंपू ८६७ समाचरति यो भग्न वृ परा १०.३६५ समार्घन्तु समुदधृत्य यम ३७ समाचरेत्ततः स्वस्य आंपू २२३ समालभेद् द्विजानज्ञस्त वृ परा ७.१३० स मात्रा स च विन्दुश्च वृ परा १२.२६६ समालिंगेत स्त्रियं संवर्त १२२ समादिव ततो मुदः ब्र.या. २.८० समालिप्य जगन्नाथ शाण्डि ४.१७६ समादीनामुपायानां मनु ९.१०९ समालोक्यैवं शास्त्राणि आंपू ११०८ समाननकार्या त (अ) ज्ञात कण्व ७०१ समाक्त्तस्य वै मौजी आश्व १४.९ समानपंक्तौयदि ते भोजिताः कपिल ३ ४३ समावृत्तश्च गुरवेप्रदाय नारद ६.१४ समानमपि वादं य श्रुतं कपिल ४७९ समाश्लिष्टं श्रिया दिव्या वृ हा ३.१९२ समानमु (मु) क्तिर्मर्यादात्त कपिल ३ ४१ समासन्नेऽपि तज्ज्ञाने शाण्डि ५.६७ समानमृत्युना यस्तु वृ परा ७.३८२ समासाद्योगशास्त्रञ्च लहारीत १.६ समानं खल्बशौचं शंख १५.१० स मा सिञ्चत्वायुषा बौधा २.१.४३ समानं सम्पुटी ब्र.या. २.१७७ समासीनं महात्मानं वृ हा ५.३६६ समानरूपा देवानां बृ.गौ. १५.८५ समासीनस्तु कुर्वीत तू हा ३.३०२ समानविद्येऽनुमृते औ ३.७४ समाहरति यद् द्रव्यं वृ हा ६.२८४ समाननोदकसंज्ञाश्च ततो आंपू ६७७ समाहितमना भूत्वा आश्व १.२७ समा पंक्ति कदाचिन्न कर्म कपिल ३४२ समाहितमना भूत्वा बृ.या. २.३६ समायेत् कर्मफलं वृ हा ६.२३० समाहृतीका सप्रणवां अत्रि १.१६ समापय्य ततः पश्चात् वृ परा १०.२८७ समाहृत्य तु तद्भक्षं औ १.५८ समाप्तमिति नो वाच्यं आप ३.११ समाहृत्य तु तद्भक्षं मनु २.५१ समाप्तावुत्तमादिर्यन्मत्र वृ परा १२.२९८ समितं यद्गृहस्थेन दक्ष ७.४५ Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९२ स्मृति सन्दर्भ समित्पुष्पोदकादानेष्व नारद १८.३५ समुत्सृष्ट इतिप्रोक्ते बाधकं कपिल ३७५ समित्प्रतपनेऽयं ते आश्व १.६२ समुद्गपरिवर्तञ्च या २.२५० समिदाज्यैर्या आहुतीर्ये वृ हा ७.६० समुद्धरत पाताद्य कण्व ७२८ समिदात्मसमारूढ़ो वाधू १५४ समुद्धरति प्रेतत्वं ब्र.या. ३.१५ समिदादिषु होमेषु कात्या ८.२१ समुद्धत्य विधानेन कण्व ३१९ समिद्धार्युदकुम्भ बोधा १.२.३० समुद्रघृत्य समुद्धृत्य कण्व ६३८ समिद्भि पिप्पलैश्चापि । वृ हा ५.४१६ समुद्दिश्य प्रयत्नेन कण्व २६२ समिद्धि विल्वपत्रैर्वा वृ हा ७.३१५ समुद्दिश्यस्वकार्य य तूष्णी कपिल ८२६ समिधोऽग्नावादधीत व्यास १.३४ समुधुक्काय पातुं तज्जलं आपू ५६२ समिधोऽष्टादशेध्मस्य कात्या ८.२० समुद्र ज्येष्ठ मंत्रेण वृ हा ८.१३ समिष्टयजूंषि तत्पश्चात् कण्व ५१८ समुद्रयान कुशलादेश मनु ८.१५७ समीकरणेमेतेषां वस्त्रकंचुक कपिल ६२९ समुद्रसंयानम् बौधा २.१.५१ समीक्ष्यपुत्रं पौत्रं वा वृ परा १२.१२२ समुद्रादूर्मीति सूक्तेन वृ हा ८.५४ समीक्ष्य वरयेत्सम्य आपू ७७२ समुन्नयेस्ते सीमां नारद १२.४ समीक्ष्य स घृतः सम्यक् मनु ७.१९ समुपस्ययित्वाथ पित्रा आंपू ८२५ समीचीनमहासंध्या कण्व २६४ स मूढ़ो नरकं याति यावदा वाधू १२६ समीचीनं तदेव स्यात् लोहि ३९९ स मूल शुकतुल्यानि वृ परा १०.१७४ समीचीनं तिलैः कुर्यात् । आंपू ११०० समूलसत्यनाशे तु नारद १२.२६ समीचीनव्रीहिमाषमुद्गप्रमुख कपिल ६४ समूहकार्य आयातान् या २.१९२ समीचीनानि वस्तूनि आंपू १०१७ समूहकार्यप्रहितो या २.१९३ समीचीनां तु कृत्वमा कण्व २१४ समृद्धानां द्विजातीनां वृ.गौ. ३.५१ समीपज्ञातीदुष्टिश्चेद् भूदान् कपिल ४८६ समेखलो जटी दण्डी । समीपस्थानतिक्रम्य व्या २३१ स समीरणं च निश्वास मार १३.२० समे रहसि भूभागो भार ३.८ स मुक्त सर्वपापेभ्यो वृ.गौ. ६.१४२ समेऽध्वनि द्वयोर्यत्र नारद १५.२४ स मुक्त्वा विष्णुलोक वृ परा १०.२१३ समेष्वर्धं पादं वा वृ हा ६.२७९ समुच्चयं तु धर्माणो बृ.गौ. १४.१ समैर्हि विषमं यस्तु मनु ९.२८७ समुच्चरन्तः परमं कण्व १९५ समोऽतिरिक्तो होनो वा नारद ४.३ समुच्चार्याऽथ च श्रोत्र दक्षिणं कपिल ५३ समोत्तमाधमै राजा मनु ७.८७ समुच्चार्यास्तत्र देवाः कपिल ३६६ समोहं सर्वभूतेषु विष्णु म ६० समुत्थांयाऽभिवाद्यैनं कपिल ३ सत्पत्कामी जपेन्नित्यं वृ हा ३.३२३ समुत्पत्तिं च मांसस्य __ मनु ५.४९ सम्पत्तावर्थ पात्राणां वृ परा ७.४० समुत्पन्ने यदास्नाने अत्रिस ३१३ संपन्नं च रक्षयेद् व १.१६.६ समुत्सृजते ये शुक्र ब्र.या. १२.५५ सम्पन्नमिति तृप्ताः कात्या ३.१० समुत्सृजेदाजमार्गे मनु ९.२८२ सम्पन्नमिति पृच्छार्थो ब्र.या. ६.७ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ५९३ सम्पन्नमिति यद्वाक्यं शाता १.२९ संप्रार्थ्य यत्नात्संबोध्य लोहि ६० सम्पन्नेऽसुरसंथाने विष्णु म १८ सम्प्राश्य तिलपिण्याकं वृ परा ९.२० सम्परीक्ष्यो विशेषेण ब्र.या. ८.१५३ संप्रीतिजन के स्थित्वा । शाण्डि १.८० संपर्काज्जायते दोषो __दा १२२ संप्रीत्वा भुज्यमानानि मनु ८.१४६ सम्पर्काज्जायते दोषो पराशर ३.३३ संप्रोक्षयेत्तत्प्रतिमा भार ११.७२ सम्पर्काद् दुष्यते विप्रो । पराशर ३.२६ सम्प्रोक्ष्यपरिषिच्याप व २.६.२०४ संपादयन्ति यत्नेन आंपू ५३५ सम्प्रोक्ष्याभि शुचौ वृ हा ८.१०७ सम्पादयन्ति यद्विप्रा आप ३.१२ सम्प्रोक्ष्य मंत्ररलेन वृ हा ८.११२ संपादयन्ति यद्विप्रा देवल ७१ सम्प्रोदय मंत्ररेत्नेन वृ हा ८.१३८ संपादवृथातीव कण्व ४३० सम्बत्सरन्तु गव्येन औ ३.१४२ संपादितस्य भवति नासद् लोहि ३८९ संबंध कोऽपि सुस्पष्ट कपिल ७३८ संपादिता भविष्यन्ति आंपू ३१९ संबंध नाचरेभिक्ति शाण्डि १.११८ सम्पाद् चापि गार्हस्थ्यं कपिल ८०१ संबंधं नामगोत्र च आश्व १.१०२ सम्पीड्य नरकं याति वृहस्पति ४२ सम्बन्धाच्चैव संसर्गात् वृ हा ६.३७६ सम्पूज्य जगतामीशं व २.६.३६५ सम्बन्धो भवतां को वा लोहि २९१ संपूज्य मधुपर्केण शाण्डि ४.४१ संबुध्य किल वक्तव्याः सर्वे कपिल ३५६ संपूज्य माने विप्रेन्द्र वृ हा ८.३१३ संभवांश्च वियोनीषु मनु १२.७७ संपूज्य यदवाप्नोति वृ हा ५.४५१ संभवेत् त्रिषु लोकेषु भार १२.५८ सम्पूर्ण विधिना तस्मिन् वृ हा ५.१२४ संमान्त्यथ मृताहस्य आंपू ७५ सम्पूज्य वैष्णवै वृ हा ५.४९३ सम्भारान् शोधयेत् पराशर १०.३८ संपूज्याऽऽवरणं सर्वं वृ हा २४६ संभावितो वा विप्रो वै वृ.गौ. ३.८२ सम्पूर्ण व्रतचर्य च ब्र,या. ८.१०७ संभूते च नवे धान्ये आश्व २४.२५ संपृष्टतः कुशलस्तेन वृ हा १.२ सम्भूय कुर्वतामर्घ या २.२५२ सम्प्रणीतः श्मशानेषु पराशर ८.२९ सम्भूय वाणिजां पण्यं __ या २.२५३ संप्रवक्ष्याम्यहं भूय पराशर २.२ संभूय स्वानि कर्माणि मनु ८.२११ संप्राप्तमपि तच्छ्राद्ध ___ आंपू ३९ सम्भोगे दृश्यते मनु ८.२०० संप्राप्तमवशाईवात्संप्राप्तं लोहि ४०३ सम्भोजनी साभिहिता मनु ३.१ ४१ संप्राप्तान्यैकदा वापि शिष्ट कपिल २८२ सम्भ्राम्यते विधिवशात् वृ परा १२.३२६ संप्राप्ताय त्वतिथये मनु ३.९९ सम्मानयेत् समस्तांश्च वृ परा १२.४६ संप्राप्तास्मदुरितक्षय कण्व ५३ सम्मानाद् ब्राह्मणो नित्यं मनु २.१६२ सम्प्राप्ते च चतुर्थेऽह्नि व २.३.७७ सम्मिश्रा या चतुर्दश्या कात्या १६.९ सम्प्राप्ते पार्वणश्राद्धे वृ परा ७.८४ समीग्र कुशसमृज्य सुवादं ब्र.या. ८.२६३ सम्प्राप्य निरय गच्छेत् वृ हा ४.२१३ सम्मार्जनोपाजनेन मनु ५.१२४ सम्प्राप्य परमं धाम वृ हा ७.३२३ सम्मार्जयति यश्चापि. व परा १०.३६६ संप्रार्थिता सर्वशिष्य कपिल ५५८ सम्मानर्जयेत् ततः शिष्यं वृ हा २.११० Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९४ स्मृति सन्दर्भ संमार्जितान् कुशान् आश्व २.४५ स यदाऽगति स्यात बौधा २.१.३२ सम्यक् कारयितुं आंपू ४६१ स यदि प्रतिपद्येत मनु ८.१८३ सम्यक् त्रिपूर्वपर्यन्त कण्व ७२२ स याति कामगं लोकं बृ.गौ. १९.१४ सम्यक् पितृत्व माप्नोति आंपू ४६७ य याति मम लोकं वै वृ.गौ. ७.१०० सम्यक् पूर्ण फलप्राप्त्यै। आश्व २.६७ स याति मामकं लोकं वृ.गौ. ७.६४ सम्यक् प्रजा पालयित्वा वृ.गौ. २.२२ स याति रथमुख्येन वृ.गौ. ७.७६ सम्यक् प्रवाहारयेद्वा कण्व ५४० स याति वारुणं लोकं वृ.गौ. ७.६९ सम्यक्श्लक्ष्णतरे व २.६.२२८ स योगी परमेकान्तं वृ हा ५.५८ सम्यगाचम्य ता देवं विश्वा ५.२३ स रण्डानां स्वकीयानां कपिला ६१६ सम्यगाचारवक्तारं औ १.३९ सरःसु देवखातेषु शंख ८.११ सम्यगालोच्य संकल्प्ये कण्व ५० सरस्वती च हुंकारे व परा ५.३८ सम्यगालोचनीयोऽतो आंपू ८४६ सरस्वती चेत्या भार ७.७५ सम्यगुक्तप्रकारेणन्या भार ६.६६ सरस्वती दृषद्वत्योर्देव मनु २.१७ सम्यगुक्तं मया तेऽद्य वृ हा ८.७४ स राजसो मनुष्येषु वृ हा ६.१५९ सम्यगुच्चारणाच्चैव कण्व २२३ स राजा पुरुषोदण्ड मनु ७.१७ सम्यक् षोडशसंख्याकं कण्व ५३३ सरित्समुद्रतोयैक्ये प्रजा ५३ सम्यग्जप्त्वा ब्रह्म कण्व २३८ सरित् सरसि वापीषु व्यास ३.६ सम्यग्ज्ञानमिदं प्राज्ञा शाण्डि ४.२०६ सरित सरसोश्चैव बृ.या. ७.६३ सम्यग्दर्शनसम्पन्न मनु ६.७४ सरित्सु देवखातेषु शख ८.७ सम्यग्धर्मार्थकामेषु व्यास २.१८ सरिदद्भिस्तटाकेषु भार १६.४९ सम्यग्भवति नास्त्यत्र लोहि ३४५ सरिद्वरं नदी स्नानं लहा ४.२६ सम्यङ् निविष्ट देशस्तु मनु ९.२५२ सरोग विकलक्लीवही ब्र.या. ४.१२ सम्यङ्ग लवणशाकानि कण्व ५८९ सरोजबीजगाग्गेय भार ७.९ सम्बत्ससरकृतं पापं विश्वा ४.२२ सरोभूनूतनास्निग्धं भार १५.१०८ सम्बत्सरकृतं पापं वृ.गौ, ९.४३ सरोमं प्रथमे पादे आप १.३३ सम्बत्सरञ्चरेत कृच्छं औ ९.६८ सरोषम् अवधूतं च वृ.गौ. ३.४२ सम्बत्सरात्परं यत्नात्कृत लोहि ७०० सर्कव्यता जाति भ्रंशकरण विष्णु ३८ सम्बत्सरे च षण्मासे ब्र.या. ८.३२ सर्गप्रलयकाले तु न बृह ११.७ सम्बत्सरेण पतति औ ८.२ सर्गादे कारणात्वाच्च वृ हा ३.१७२ सम्बत्सरे ततः पूर्णे बृ.गौ. १८.८ सर्गादौ ब्राह्मणा श्रेष्ठा व २.१.५ सम्बन्धिने च यत् दानम् वृ.गौ. ३.४० सर्गादौ लोककर्ताऽसौ वृ हा ५.२ सम्बर्त मेकमासीनमात्म सम्वत १ सर्गादौ स यथाकाशं या ३.७० सम्बतेत ॥ भायी अत्रिस १८३ सर्पदंशे नागवलिर्देय - शाता ६.२९ सम्बर्धयन्ति चाव्याग्राः वृ.गौ. ५.८८ सर्पराजो मुनिस्तत्र वृ परा ११.३३८ स यज्ञ दान तप सामखिलं व्यास ३.११ सर्पवात नखाग्रान्त लघुशंख ६९ Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सर्पविप्रहतानां च लिखित ६६ सर्वत्र त्रिपदा ज्ञेया वृ परा ४.१०० सर्पहत्वा माषमात्रं औ ९.१०३ सर्वत्र दानग्रहणे औ ९.१०९ सर्व एव विकर्मस्था मनु ९.२१४ सवत्रं दृष्ट्वा देवेशं शाण्डि २.७६ सर्व एवाभिषिक्तस्य व १.१५.१७ सवत्र धर्मोमध्यस्थ कदाचित् कपिल ७४८ सर्वकण्टक पापिष्ठं मनु ९.२९२ सर्वत्र प्रावशन्तो ये व परा ८.९१ सर्व कर्मणां चैवाऽऽरम्भेषु बौधा २.४.५ सर्वत्र मार्जनं कर्म बृ.या. ७.१७९ सर्वकर्म निवृत्तिर्वा शाण्डि ५.२१ सर्वत्रारम्भदिवसे उपवासो व २.६.४२३ सर्वकर्मसु चाप्येवं शुभा कपिल ८४ सर्वत्राऽज्यं प्रशस्तं वृ हा ५.५६५ सर्व कर्मेदमायत्तं मनु ७.२०५ सर्वत्रापि च वतन्ते कण्व २०१ सर्वकामप्रदत्वाच्च वृ हा ३.२९८ सर्वत्राप्रतिहतगुरुवाक्यो बौधा १.२.२१ सर्वकामप्रदं नृणामायुर वृ हा ३.१७८ सर्वत्रावैष्णावान् विप्रान् वृ हा ६.१ ४९ सर्वकामफला वृक्षा नद्यः अत्रिस ३.१८ सर्वत्रैवं विजनीयात् आपू ८०५ सर्वकामसमृद्धात्मा वृ परा १०.४१ सर्वत्रैवं समाख्याता आंपू ६९३ सर्वकामसमृद्ध्यर्थं भार १.१९ सर्वत्रैवं हृदाध्यायन् भार ७.८७ सर्वकामा स्त्रियो वाऽपि बृ.गौ. २१.३२ सर्वत्रैवाविशेषेण कुर्वीत लोहि ७ सर्वकालं हिते सर्वे वृ.गौ. ९.११ सर्वत्रोंरमुच्चार्य व्या २६८ सर्वकालं हि सर्वेषाम् वृ.गौ. ६.२० सर्वथा दत्ततनयः क्योज्येष्ठ कपिल ६८५ सर्वकृत्यं संध्ययैव कण्व १९९ सर्वथाऽनुष्ठितं सिद्ध भार १३.२ सर्वक्रतुस्वरूपश्च सर्व कपिल ८७६ सर्वथाऽन्नं यदा न वृ परा ७.३०१ सर्वक्रतूनां सम्पति धर्म कपिल ५६४ सर्वथैव योन्यास्तास्तेषु कपिल ५४२ सर्वखल्यादिका श्वादि तथा कपिल १४२ सर्वधाचमनं तद्धि नामकं कण्व ११७ सर्वगन्धोदकैस्तीर्थ दृ परा १०.२५४ सर्वदा दूर विध्वस्त वृ हा ७.३३५ सर्वज्ञातिमहाबन्धुजनमृत्या कपिल ५५९ सर्वदानमथं ब्रह्म या १.२१२ सर्वतः प्रतिगृह्णीयाद् मनु १०.१०२ सर्वदानानि सर्वेश्च कपिल ४२७ सर्वतश्चाधिपत्ये ब्र.या. ३.३६ सर्वदानेष्वभय दान महत्व विष्णु ९२ सर्वतीर्थतटात्पुण्याद अत्रि ५.६४ सर्वदा भगवद्धयानं शाण्डि १.५७ सर्वतीर्थानि पुण्यानि शंख ८.१३ सर्वदा सर्वसंवृद्धो आंपू ६०० सर्वतीर्थान्युपस्पृश्य अत्रिस ४ सर्वदुखसमुत्थानाद् बृ.या. २.१२० सर्वतीर्थान्युपस्पृश्य व्या सर्वदुखःहरः श्रीमान् वृ हा ३.४४ सर्वतीर्थाभिषेकं तु वृ परा २.७२ सर्वदेवपदस्पृष्टतद् कण्व ६५६ सर्वं तु समवेक्ष्येदं मनु २.८. सर्वदैवं समाख्यातो आंपू ४३८ सर्वतेजोमयी दोषा वृ.गौ. ९.२७ सर्वद्वाराणि संयम्य बृ.या. २.३९ सव” धर्मषड्भागो मनु ८.३०४ सर्वधर्मज्ञः धर्माङ्ग धर्मयोने विष्णु १.५४ सवळ्धुरं पुरोहितं बौधा १.१०.७ सर्वधर्मार्थत्त्वज्ञ दक्ष १.१ सर्वत्र जीवनं रक्षेज्जीवन् शंख १७.६४ सर्वधर्मोत्तराः पुण्या वृ.गौ. १.५ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९६ स्मृति सन्दर्भ सर्वधान्य समायुक्तं ब्र.या. ११.५८ सर्वभूम्यनृते हंति वृहस्पति ४५ सर्वन्तु राजवृत्तस्य औसं ३० सर्वमंगलवाद्यैश्च कण्व ५६१ सर्वपण्यैर्व्यवहरणम् बौधा २.१.५४ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं बृ.या. २.१५५ सर्वपापक्षयकरी वरदा शंख १२.२० सर्वमंत्र पवित्रस्तु वृ पग ८.१२ सर्वपापप्रशमनं सर्वदुःख शाण्डि ४.६० सर्वमन्त्राधिराजेन बृ.या. २.१५२ सर्वपापप्रशमनी प्रायश्चित नारा १.३ सर्वमन्नमुपादाय व्या २०९ सर्वपापप्रसक्तोऽपि अत्रि ४.१० सर्वमेतज्जगद्धातुर्वासुदेव शाण्डि १.४६ सर्वपापविनिर्मुक्तः अत्रि स ३६५ सर्व अन्नं उपादाय या १.२४१ सर्वपापविनिर्मुक्त वृ परा २.९३ सर्व कारयितव्यं स्पात् आंपू ४७१ सर्वपापविनिर्मुक्त विश्वा ४.२८ सर्वं कृत्वाधभूज्जीत भार ९.१३ सर्वपापविनिर्मुक्तः वृ परा ११.२९० सर्वं कृत्वा विधानेन वृ हा ६.१३९ सर्वपापविनिर्मुक्तो वृ हा ३.१५६ सर्व गंगासमं तोयं पराशर १२.२७ सर्वपाप विनिर्मुक्तो वृ हा ५.३७२ सर्वं गङ्गासमं तोयं वाधू ५४ सर्वपापविशुद्धात्मा संवर्त ७१ सर्व गवादिकं दानं तृ परा ६.२२७ सर्वपापविशुद्धात्मा व २.१.२१ सर्वं च तान्तवं रक्तं मनु १०.८७ सर्वपापसमायुक्तो वृ परा १०.५१ सर्वं च तिलसम्बद्धं । मनु ४.७५ सर्वपापहरं दिव्यं सर्व व्या ६ सर्व च तिलसंबंध शाण्डि ५.८ सर्वपापहरं नित्यं सर्व अत्रिस ५ सर्व ज्ञात्वा विधास्यानि आंपू ५८३ सर्वपापापनोदाय वृ परा ४.१९३ सर्वं तत्प्रीतये कुर्यात्त कण्व ४५६ सर्वपापापनोदार्थ वृ परा २.१३५ सर्वं परवशं दुःखं मनु ४.१६० सर्वपापानिर्मुक्तो वृ हा ८.३ ४५ सर्व प्रागुक्तमेवास्य वृ परा १२.२४६ सर्वपापै विनिर्मुक्त वृ परा १०.६१ सर्व व कारयिष्यामीत्युक्ति लोहि ६३३ सर्वपीडाविनिर्मुक्त कण्व ६२९ सर्वं वापि चरेद् ग्राम औ १.५७ सर्वप्रकाराल्लोकेषु त्रिषु भार १२.४३ सर्वं वापि हरेद् राजा नारद १८.१०० सर्वप्राणन कुर्यादै लोहि ३५० सर्व वा रिक्थजातं मनु ९.१५२ सर्वबन्ध्वागमाश्चापि कण्व ३४६ सर्व व्याहृतिभिर्दधात् आंपू ८०२ सर्वमात्मानि संपश्येत् मनु १२.११८ सर्व शरीरक्लेशाय येषु शाण्डि ५.३३ सर्वभावविनिमुक्तः क्षेत्रज्ञ दक्ष ९.२० सर्व सम्पूर्णतामेति । वृ हा ६.५० सर्वभूतम् अयं च एव वृ.गौ. ६.२१ सर्व सम्यक्परित्याज्यं आंपू ८५० सर्वभूतहितः शान्त त्रिदंडी या ३.५८ सर्वं स्वं ब्राह्मणस्येदं मनु १.१०० सर्वभूतहिते श्रीमन् बृ.गौ. १७.२ सर्वयज्ञतपोदानतीर्थवेदेषु भार ११.११९ सर्वभूतहितौ मैत्र शंख ७.८ सर्वयज्ञमयं ध्यायेद वृ हा ५.९१ सर्वभूतात्मभूतात्मा वृ परा १२.२९७ सर्वयज्ञमहातीर्थ 'आंपू ४९९ सर्वभूताधिपो राजन् बृ.गौ. १५.१७ सर्वरत्नानि राजा तु मनु ११.४ सर्वभूतेषु चात्मानं मनु १२.९१ सर्वलक्षणसम्पन्न . व २.६.७४ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्ववाहननाशार्थ श्लोकानुक्रमणी ५९७ सर्वधर्मान् परित्यज्य बृह ११.१ सर्वसिद्धिमवाप्नोति वहा ३.३१९ सर्वलक्षणसम्पन्न वृ हा ५.९० सर्व स्त्रियां विमंत्र वृ परा ६.१५१ सर्वलक्षणसम्पन्न वृ हा ५.१.१४ सर्वस्य धातरमचिन्त्य सर्वलक्षणसंपन्न भार १२.२८ सर्वस्य प्रभवो विप्रा या १.१९९ सर्वलक्षणहीनोऽपि मनु ४.१५८ सर्वस्यास्य तु सर्गस्य मनु १.८७ सर्वलक्षणहीनोऽपि व १.६.८ सर्वस्व बीजमापो हि वृ परा ५.११५ सर्वलोकैकवन्द्यत्वं कण्व १७३ सर्वस्वमपि यो दद्यात् अत्रिस ३२४ सर्ववर्णेषु तुल्यासु मनु १०.५ सर्वस्वं तस्य गृणवीया आंपू ३६७ सर्ववर्णेषु भिक्षणां नारा ७.४ सर्वस्वं वा तस्य दत्वा कण्व ७३८ सर्वं वापि चरेद् ग्राम मनु २.१८५ सर्वस्व वा वेदविदे औ ८.११ विश्वा ५.२१ सर्वस्वं वेदविदुषे मनु ११.७७ सर्वविघ्नपशान्त्यर्थं वृ परा ४.१७७ सर्वस्वं स्त्री तु कन्यां नारद १८.८८ सर्ववेदनिधिशास्त्रनिपुणो कपिल ६८६ सर्वस्वहरणं कृत्वा तयो कण्व ७४४ सर्ववेदपवित्राणि अत्रिस ३.१० सर्वस्वहरणं कृत्वा वृ हा ४.१९३ सर्ववेद पवित्राणि व १.२८.१० सर्वस्वोपस्करैर्युक्ता वृ परा ८.३३३ सर्ववेद पवित्राणि शंख १०.२१ सर्वा आहुतयः कार्या लोहि २२ सर्व वेदप्रणीतानि बृह १२.३७ सर्वा आह्लादमवाप्नोति वृ परा १०.९९ सर्ववेदमयं तत्र मंडपं व हा ७.३२८ सर्वाकरेष्वधीकारो मन् १९.६४ सर्ववेदमयाचिन्त्य वृ हा ३.३८० सर्वाक्षरमयं दिव्यरत्नपीठं वृ हा ५.९४ सर्ववेदव्रतं कृत्वा वृ हा ५.६२ सर्वाङ्गं निश्चलं धार्य वृ परा १२.२ ४० सर्ववेदान्तत्वार्थ वृ हा ५.७ सर्वांग विकलो यस्तु वृ परा ११.२६६ सर्ववैदिककृत्यानां कण्व ३ सर्वाङ्ग समुस्पृश्य व २.७.९५ सर्वव्यञ्जनसंयुक्तं ल हा ६.१५ सर्वाङ्गणि यथा कूर्मो बृ.या. ८.५३ सर्वव्यापी य एकस्तु वृ परा १२.३२० सर्वाङ्गोपाङ्गसहिता कण्व १८ सर्वशास्त्रार्थगमनं अत्रिस ३६३ सर्वारिंग प्रणवैनैव भार ५.३६ सर्वशास्त्रोक्तमार्गेण यथा लोहि ३०७ सर्वाग्गुलीभिरीशस्य भार ४.३२ सर्वश्चाण्डालतां याति पितृ कपिल १७४ सर्वाचार्य सर्वबन्धः कण्व ३९९ सर्वश्राद्धानि काम्यानि लोहि २९९ सर्वाणि कुर्याच्छ्रद्धानि आंपू ७३३ सर्वश्राद्धेषु पितरः आंपू ११०३ सर्वाणि चास्य देवपितृ बौधा १.३.१२ सर्वश्रादेषु सर्वत्र रण्डापाको लोहि ४२१ सर्वाणि पृथगेव स्यु आंपू ७३१ सर्वसंहारसर्वज्ञ वृ.गौ. ६.२ सर्वाणि फलशाकानि वृ परा १०.२२६ सर्वसत्वकृतं कर्म वृ.गौ. ६.२३ सर्वाणि भूतानि ममान्तराणि बृह १२.४९ सर्वसत्वहिते युक्त वृ परा ५.१८५ सर्वाणि रक्तपुष्पाणि व परा ७.१२५ सर्वसाम्यन्नैव भजे न योग्यो कपिल ३३० सर्वाणि स्वानि वक्त्राणि वृ परा ७.१७४ सर्वसाम्यं भवेन्नैव तेषां कपिल ३०० सर्वोण्यनुष्ठितेऽस्मिन् आपू ६२२ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९८ ५मृति सन्दर्भ सर्वाण्यन्यानि दानानि कपिल ५०१ सर्वासामेकपतीनामेका मनु ९.१८३ सर्वाण्यपि च वित्तानि व परा १२.६० सर्वासामेव जातीनां । संवर्त १४३ सर्वाण्यसभावितानि विश्वा ३.५३ सर्वासामेव योगेन शंख १०.९ सर्वाण्यापि कृतान्ये आंपू ६२४ सर्वासा देवपत्नीनां लोहि ६४८ सर्वाण्येतानि शिष्टानां आंपू ८४२ सर्वास्मादन्नमुद्धृत्य कात्या ३.१३ सर्वातिथ्यन्तुः यः कुर्यात् वृ.गौ. ६.८३ सर्वे कण्टकिनः पुण्या लहा ४.९ सर्वातिथ्यन्तु यः कुर्यात् वृ.गौ. ६.७९ सर्वेऽक्षयान्ता निचया कात्या २२.८ सर्वात्मा कथ्यते बृह ९.८९ सर्वेण तु प्रयत्लेन मनु ७.७१ सर्वाद्यन्तेषु सत्रेषु आंपू १७० सर्वेतस्यादृता धर्मा मनु २.२३४ सर्वान कामान वाप्नोति वृ हा ७.२७२ सर्वे तु नरके यान्ति व २.४.३७ सर्वान् रसानपोहेत मनु १०.८६ सर्वे तु वशमायन्ति भार १२.४१ सर्वानिलांस्तथा खानि वृ परा १२.२५१ सर्वे ते पुत्रिका प्रोक्ता ब्र.या. ४.२३ सर्वान् कामानवाप्नोति वृ परा ११.२८९ सर्वे ते प्रत्यवसिता यम ३ सर्वान् कामानवाप्नोति वृ हा ५.४६१ सर्वेधर्मा धर्मपल्या लोहि १०२ सर्वान् कामानवाप्नोति वृ हा ५.५१८ सर्वे धर्मास्स एवस्था कपिल ८७७ सर्वान् कामानवाप्नोति वृ हा ७.२३४ सर्वेन्द्रियसमाहारो पु २१ सर्वान्केशान्समुच्छ्रित्य बृ.या. ४.१७ सर्वेन्द्रियैरपि सदा योगो शाण्डि ४.२०७ सर्वान् केशान् समुद्धृत्य यम ७४ सर्वेन्द्रियैरपि सदा योगो शाण्डि ५.१८ सर्वान्केशान्समुद्धृत्य लघुयम ५४ सर्वेऽपि क्रमशस्त्वेते मनु ६.८८ सर्वान् पणान् तान्स्वीकृत्य कपिल ८५७ सर्वेऽपि भगवान्मंत्रा वृ हा ५.१९० सर्वान्परित्यजेदर्थान् मनु ४.१७ सर्वेप्रस्रवणाः पुण्या शंख ८.१४ सर्वान् पितृगणान् ब्र.या. २.२०७ सर्वे ब्रह्म वदिष्यान्ति वाधू १८१ सर्वान् मुंजीत नरकान् वृ परा ६.२९२ सर्वे ब्रह्मसमारोप्य ब्र.या. १०.९२ सर्वाभरणसंयुक्तां होम भार १२.६ सर्वेभ्यश्चैव देवेभ्यो वृ हा ८.७० सर्वाभिरंगुष्ठयोगेन श्रौत्रे शाण्डि २.३२ सर्वेभ्यःस्मातकर्मभ्यः कपिल २७८ सर्वाभ्यो देवताभ्यश्ये भार ६.१२२ । सर्वे मिलित्वा कुर्वन्ति कपिल ४७३ सर्वायास विनिर्मुक्तैः व्या २६९ सर्वे मेषादिशब्दास्ते कण्व ४७ सौरभपरित्यागो __सर्वे विप्रहतानां च लघुशंख ३५ सर्वार्थ पादश्य हरश्च वृ परा १२.८३ सर्वे वेदा यत्पद बृ.या. २.३७ सर्वार्थो वेदगर्भस्थः वृ हा ३.४६ सर्वे शिलोच्चयाः सर्वो व १.२२.७ सर्वावयवसम्पूर्ण वृ परा ६.३४ सर्वेश्च वैष्णवै वृ हा ८.२ ४८ सर्वावयवसंपूर्णा ध्याता बृ.या. ४.३२ सर्वेश्च वैष्णवै वृ हा ५.१३९ सर्वावस्थासु नारीणां व्यास २.५४ सर्वे श्रद्धावसाने च ब्र.या. ३.६९ सर्वावस्थोऽपि यो ब्र.या. ६.४ सर्वेषान्तु प्रदानानां वृ.गौ. ११.२८ सर्वसिद्धिप्रदा नृणां वृ हा ३.९७ सर्वेषामपि चैतेषं मनु १२.८४ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सर्वेषामपि चैतेषाम् बृह ११.३८ सर्वेषां जप्यसूक्तानां सर्वेषामपि चैतेषां मनु ६.८९ सर्वेषां जीवनं प्रोक्तं सर्वेषामपि चैतेषां मनु १२.८५ सर्वेषां तु विदित्वैषां सर्वेषामपि तुभ्यं मनु ९.२०२ सर्वेषां तु विशिष्टेन सर्वेषामपि पुष्पाणां वृ.गौ. ८.७६ सर्वेषां तु स नामानि सर्वेषामपि लोकानां कण्व १९८ सर्वेषां देवतादीनामन्नं सर्वेषामप्याभावे तु मनु ९.१८८ सर्वेषां धनजातानाम् सर्वेषामर्दिनो मुख्या मनु ८.२१० सर्वेषां निश्चितं यत् सर्वेषामल्पमूल्यानां नारद १८.८४ सर्वेषां पाप मृत्यूना सर्वेषामविशेषेण एकोद्दिष्ट कपिल १२८ सर्वेषां ब्राह्मणो विद्याद् सर्वेषामादिपूर्तिस्तु शाण्डि ४.१० सर्वेषां शावमाशौचं सर्वेषामाश्रमाणाञ्च वृ परा १.६ सर्वेषां शृण्वतां मध्ये सर्वेषामेव जन्तूना विश्वा ३.२१ सर्वेषां सत्यं क्रोधो सर्वेषामेव जन्तूनां विश्वा ३.३२ सर्वेषां स्रावमाशौचं सर्वेषामेव दानानां अत्रिस ३.१७ सर्वेषु चैव लोकेषु सर्वेषामेव दानानां संवर्त ७६ सर्वेषु श्रुतिरुत्कृष्टा सर्वेषामेव दानानां अत्रिस ३३८ सर्वेष्टिफल. भाग्यापाद सर्वेषामेव दानानां अत्रिस ३६६ सर्वेष्वथ विवादेषु सर्वेषामेव दानानां मनु ४.२३३ सर्वेष्वपि च कृत्येषु सर्वेषामेव दानाना वृ.गौ. ११.१० सर्वेष्वापि च तीर्थेषु सर्वेषामेव दानानां वृहस्पति ३४ सर्वेष्विपि च वेदैकपार रोषु सर्वेषामेव दानानाम् संवर्त ८१ सर्वेष्वेव विवादेष सर्वेषामेव धर्माणां शाण्डि ५.७५ सर्वेष्वेव सोमभक्षेष्व सर्वेषामेव पापानां पराशर ११.५३ सर्वेष्वेषु निमित्तेषु सर्वेषामेव भूतानाम् बृह ९.५२ सर्वेसपुत्रतुलिता जिताः सर्वेषामेवं मंत्राणां वृ हा ३.३ सर्वैरस्थ्ना संचयन सर्वेषामेव यागाना औ ३.१०९ सर्वैरेव च वध्वा सर्वेषामेव योगानाम् ल व्यास २.७७ । सर्वैश्च भगवन् मंत्रै सर्वेषामेव वर्णानां विश्वा ४.९ सर्वेश्च वैष्णवैः सर्वेषामेवं वेदानाम् ब्र.या. १.४५ सर्वैश्च वैष्णवैः सर्वेषामेव वर्णानाम् नारद २.५१ सर्वैश्च वैष्णवैः सर्वेषामेव शौचनामर्थ मनु ५.१०६ सर्वेश्च वैष्णवै सर्वेषां आश्रमाणा आश्व १५.१ सर्वेश्च वैष्णवै सर्वेषां कर्मणामाद्या आपू १११० सर्वैश्च वैष्णवै सर्वेषां चैव देवानां बृ.या. ३.२२ सर्वेश्वर्यप्रदं नृणां ५९९ वृ परा ३.४ वृ परा ४.२१७ मनु ७.२०२ मनु ७.५८ मनु १.२१ वृ परा ५.११२ मनु ९.११४ आंउ ३.९ वृ परा ७.३२१ मनु १०.२ मनु ५.६२ कपिल ५९ व १.४.४ पराशर ३.३१ बृ.या. ३.११ कण्व २८४ वृ परा ६.९० या २.२३ कपिल ९९६ आंपू १९८ कपिल १३ बृ.या. ५.२४ बौधा १.६.३२ वृ हा ५.५६८ कपिल ६६८ औ ७.११ व १.१३.२७ वृ हा ५.४९५ वृ हा २.१ ४४ व हा ५.३२४ वृ हा ५.५३१ वृ हा ६.७६ वृ हा ६.२१ वृ हा ७.२१८ वृ हा ३.२३३ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०० स्मृति सन्दर्भ सर्वैश्वर्यप्रदं पथ्य वृ हा ३.४ सवत्सां वस्त्रसंयुक्ता वृ परा १०.३५ सर्वैश्वर्यफलं त्यकत्वा वृ हा ८.१५५ सवनत्रयं तु यः कुर्यात् बृ.या. ७.१२५ सर्वोत्तमा धर्मपत्नी लोहि २९ सवनस्थां स्त्रिय हत्वा पराशर १२.६७ सर्वो दण्डजितो लोको मनु ७.२२ सवनात् पावनाच्चैव बृह ९.५६ सर्वोपकरणानां च सर्वेषां शाण्डि १.३२ सवमन्त्रप्रयोगेषु ओमित्यादौ बृ.या. २.१५१ सर्वोपयोगेन पुनः व १.११.९ सवर्णामनुरूपं च कुल रूप नारद १३.२३ सर्वोपायैस्तथा कुर्यान्नीतिज्ञ मनु ७.१७७ सवर्णाश्च सवर्णायाम बृ.या. ४.४६ सर्वोपस्करंसंयुक्तं वृ परा १०.२३ सवर्णाऽग्रे द्विजातीनां मनु ३.१२ सर्वोषधि समायुक्ता शाता २.४ सवर्णा पुत्रान्ततरा । बौधा २.२.१२ सर्वौषधि समायुक्त वृ परा ११.२५७ सवर्णायां संस्कृतायां बौधा २.२.१४ सर्वोषधैः ब्र.या. १०.९ सवर्णा वृत्तिधर्म वर्णन विष्णु २ सर्वोषधैः सर्वगंधैः या १.२७८ सवर्णाश्रम वृत्तिधर्मवर्णन विष्णु २ साकामेति मंत्रेणार्य ब्र.या. ८.२०० सवर्णेभ्यः सवर्णासु या १.९० सर्वात्मकः सर्वसुहत् वृहा १.१२ सवर्णेषु तु नारीणां आप ७.२१ सर्वान् कामानवाप्नोति या १.१८१ सवर्णो ब्राह्मणीपुत्र नारद १३.११२ सर्लान केशान् समुद्धृत्य । आप १.३४ सवषामुपवासानां यज्ञे । बृ.गौ. १८.११ सावयवसंपूर्णा ल हा ४.२ सवासाजल माप्लुत्य अ६० सर्वाश्रयां निजे देहे या ३.१४३ सवासा जलमाप्लुत्य नारद १२.१४ सर्वे धर्मा कृते जाता पराशर १.१७ सविताने गन्ध पुष्प वृहा ५.२९३ सङ्घनार्हन्तिते श्राद्धे ब्र.या. ४.२२ सविता च जयन्तश्च ब्र.या. १०.११४ सर्षपाणि च निक्षिप्य वृ हा ७.२८४ सविताचाश्विनीपूषा भार १७.२६ सर्षपावरुणा चैव स्वाहान्ते ब्र.या. ८.३३१ सविता देवता हत्या बृ.या. ४.४ सर्षपा षट् यवोमध्य मनु ८.१३४ सवितारं द्विजंदष्ट भार ३.१२ सर्षपे तिलशाखा चेत्तिल वृ परा ११.९२ सविता श्रियः प्रसविता बृह ९.८७ सर्वेषामपि वह्नीनां संसर्ग लोहि ३१ सवितुर्मण्डलगतां ल व्यास १.२६ स लक्षणानि तान्याहु भार १५.१३ सवितु शक्रदिकृत्रे भार ७.८५ सलज्जा शुभनासां वृ परा ६.३५ सवितृद्योतनाच्चैव सावित्री वाधू ११६ सलिलेन तु यः स्नायात् बृ.गौ. २०.३१ सवितृ प्रकाशकरणां मार ६.१ ४९ स लुब्धो नरकं याति वृ.गौ. ६.४३ स विद्यादस्य कृत्येषु मनु ७.६७ सलेखसाक्षिवर्णनम् विष्णु ७ स विपत्ति समाप्नोति विश्वा ६.५८ सल्यपापेन निन्दित्वा वृ.गौ. ३.६३ स विप्रः स शुचि स्नातो आश्व १.२२ सवंषा गोशतं यत्र सुखं वृ.गौ. ६.११३ स विमानेन शुभ्रेण वृ.गौ. ७.९२ सव क्रतुफलं लब्ध्वा बृ.गौ. १८.१४ स विष्णु प्रीणनाद्यति वृ परा १०.३९ सव च वेदा ऋषिभिः बृ.गौ. १ ४.२७ सवीर्याः सफलाः पूज्या ब्र.या. १०.१४० स वत्सरोमतुल्यानि या १.२०६ सवृष गोसहस्रं वृहस्पति ९ Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सवेद साग्निरेकाहाद् स वै दुर्ब्राह्मणो ज्ञेयः सवै दुर्ब्राह्मणो सवै दुर्ब्राह्मणो नाम स वै द्वादशवर्षाणि स वैष्णवो भवेद्विप्र सवैस्तु वैष्णवैः सूक्ते सव्यबाहुं समुद्धृत्य सव्यं कृत्वा गृहीतेन सव्यं च पादयो न्यस्य सव्यं जानु ततोऽन्वाच्य सव्यं तु देवमस्थान सव्यस्य पाणेरंगुष्ठ सव्यहस्तिस्थते दर्भे सव्यहस्तानुलग्नेन सव्यांसे च स्थिते सूत्रे सव्याहृतिकां गायत्री सव्याहृतिकां सप्रणवा सव्याहृतिकां सप्रणवां सव्याहृतिकां सप्रणवा सव्याहृतिकां सप्रणवां सव्याहृतिकां सप्रणवां स व्याहतिका सप्रणवा सव्याहृतिप्रणवका सव्याहृतिप्रणवकाः सव्याहृतिं सप्रणवां सव्याहृतिं सप्रणवां सव्याहृतिं सप्रणवां सव्याहृतिं सप्रणवां सव्याहृतिं सप्रणवां सव्याहृती सप्रणवां सव्याहृती सप्रणवाः सव्याहृत सप्रणवां सव्याहृती सप्रणवां सव्ये च प्रणौ व्रजं स्तिष्टं वृ परा ८.१८ औ ४.२० कण्व ४२४ विश्वा ५.६ ब्र.या. २.३७ व २.३३ वृ हा ७.१४९ औ १.११ आश्व २३.३४ वृ परा ११.११८ बृ.या. ७.७१ व्या १०७ आव १.८४ वृ परा ८. १९८ आश्व १.१०३ आश्व १.९१ या १.२३८ व २.३.१०८ व २.६.१४७ वृ.गौ. ८.३४ वृ.गौ. ८.३८ शंख १२.१४ व १.२६.५ मनु ११.२४९ बृ. या. ८.२८ बृ.या. ७.२९ बृ.या. ८.२ ब्र. या. २.५२ ब्र.या. २.५५ सव्येतराभ्यां पाणिभ्यां सव्ये तु शंखं विभृयादिति सव्येन जुहुयात्तत्र सव्येन तर्पयेद्देवान् सव्येन देवतार्थं तु सव्येनपाङ्मुखोदेवान् सव्येन पाणिना कार्य सव्येन पाणिनेत्यवं सव्येनोदकसंस्पर्शः सव्ये पाणौ कुशान् कृत्वा सव्ये पृच्छत्यनुज्ञातो सव्येषु सव्यं स्पृष्टव्यो सव्योत्तराम्यां पाणिभ्या सव्रतश्च शुना दष्टस्त्रिरात्र सव्रतस्तु शुना दष्टस्त्रिरात्र सव्रती मंत्रपूतश्च स व्रात्यः सन् परित्याज्यो सशर्करं पायसान्नं सशर्करं पायसान्नं सशान्ति कुरुते तस्मात्परं सशिखं वपनं काथमा सशिखं वपनं कुर्यात् सशिखं वपनं कृत्वा सशिखं वपनं कृत्वा सशिखं वपनं कृत्वा सशिखं वपनं कृत्वा सशिरः कर्तुं पक्षान्तं ततः ससत्रे दानधर्मे च पक्व स सन्तर्प्य पितृन् स संदिग्धमति कर्म शंख ७.१३ स सन्धार्थः प्रयत्नेन व १.२५.१३ अत्रि २.७ ब्र. या २.६३ अत्रि २९५ व १.३२ स संन्यासी च योगी च ससमुद्रगुहा तेन स सम्यक् पालितो स सर्वकामतृप्तात्मा ६०१ व १.४.१२ वृहा २.४० ब्र.या. ४.८२ आश्व १.९३ वृ परा ७.२७ व्या ३८० औ १.२२ कात्या १७.१७ ब्र. या. ८.२६२ कात्या ११.२ व्या १२२ बृ.गौ. १४.५७ व्या ३१९ अत्रिस ६८ पराशर ५.४ पराशर ३.२८ वृ परा ६. १५२. वृ हा ५.४६९ वृ हा ५.४३६ कण्व ३५८ कात्या २५.१४ पराशर १०.६ नारा ९.४ पराशर ८.३८ पराशर १०.२० वृ परा ८.१२७ बृ.गौ. १६.४ आंउ ९.५ वृ परा ६.८१ या ३.१५२ मनु ३.७९ वृ हा ५.५७ वृ परा १०.१३७ या २.२०३ वृ.गौ. ६.९० Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ स्मृति सन्दर्भ स सर्वपापान्निर्मुक्ताः भार ६.१७१ सहस्रच्छिद्रसंकीर्ण बृह ९.९५ स सर्वपापमुक्तःस्यात् विश्वा २.३९ सहस्रजप्ता कुंमांभ सेवन भार ९.२८ स सर्ववेदयज्ञौध कण्व ३९८ सहस्रदलपङ्कजे सफला विश्वा १.१ ससहायस्सावकाशः शाण्डि ५.४५ सहस्रदलमध्यस्था विश्वा १.४२ स साक्षान्मुनिभिः वृ परा ६.३२७ सहस्रदः सहसाढ्यो ब्रह्म लोहि ५५३ स सात्त्विक शमयुत वृ हा ६.१५८ सहस्रनामपठनं कुर्याद् व २.७.६९ स सुरां वै पिवेद् व्यक्ता वृ हा ५.२७० सहसनामभि कृत्वा वृ हा ५.३१७ ससुवर्णगुहा तेन व १.२८.२१ सहस्रनामभि विष्णो वृ हा ५.१५५ ससूत्रवस्त्रान् सच्छिद्रान् नारा ६.२ सहस्रनामभि स्तुत्वा वृ हा ५.१७३ स सूर्ये ज्योतिरित्युक्तं बृह ९.१०७ सहस्रनामभिःस्तुत्वा व २.३.३ स स्नातः सर्वतीर्थेषु बृ.या. ७.१७ सहस्रनामभि स्तुत्वा वृ हा ५.३७० स स्नातः सर्वतीर्थेषु वृ हा ५.१८२ सहस्रनामभि स्तुत्वा वृ हा ५.४९१ सस्यभागः प्रदातव्यो वृ परा ५.१५० सहस्रनामभि स्तुत्वा वृ हा ५.५२५ सस्यान्ते नवसस्येष्टया मनु ४.२६ सहस्रनामभि स्तुत्वा वृ हा ७.१४८ सस्योपरि न्यसेत शाता ५.१७ सहस्रन्तु जपेन् मंत्र व हा ३.२८४ स स्वर्गलोके ऋधित्वा वृ.गौ. २.३१ सहसपरमां देवी अत्रि २.१२ स स्वीकार्यों हि निखिलैः कपिल ५३४ सहस्रपरमां देवीं कण्व २६७ स स्वीकृतः श्राद्धतिथि आंपू १०४६ सहस्रपरमा देवीं ल व्यास १.३१ सह कमण्डलुनोत्पन्न बौधा १.४.२१ सहस्र परमां देवी ल हा ४.४८ सहगोत्रजा ब्राह्मणानां व्या ७० सहस्र परमां देवीं व १.२६.१६ सहपिण्डक्रियायां तु मनु ३.२४८ सहस्रपरमां देवीं श्वा ७.३ सह प्रतिष्ठायाभिपदे भार १५.८४ सहस्रपरमां नित्यां भार ७.१ सह वापऽपि व्रजेधुक्तः मनु ७.२०६ सहस्रपोषं लभते भार ९.२५ सह वै देहनाच्चेत्या भार १५.६ सहस्रमूर्द्धा विश्वात्मा वृ हा १.१४ सह सर्वाः समुत्पन्नाः मनु ७.२१४ सहस्रं अभिषेकं च वृ हा ६.४०८ सहसा क्रियते कर्म नारद १५.१ सहस्रं जुहुयात् नित्यं वृ हा ३.१४५ सहस्रकरपन्नेत्रः सूर्य बृह ९.१९३ सहस्रं जुहुयाद् वह्नौ वृ हा ७.२८० सहस्रकरपन्मूर्ति बृह ९.८५ सहस्रं दक्षिणा ऋषभे व १.२४.८ सहस्रकर वद् भ्राजन् वृ परा ११.१३२ सहस्रं परमां देवीम् वृ.गौ. ४.३२ सहस्रकलशस्नान नारा ६.१ सहस्रं ब्राह्मणो दण्डं मनु ८.३८३ सहस्रकलशस्नान नारा ८.११ सहसं ब्राह्मणो दंड्यो मनु ८.३७८ सहस्रकलशानां तु स्थापनं नारा ५.३० सहस्रं मूलमंत्रण वृ हा ५.४२३ सहस्र किरणं शीशं वृ हा ७.१५९ सहसं मूलमंत्रण वृ हा ५.५५४ सहस्रकृत्वः सावित्री वृ.गौ. ८.४५ सहस्रं विभवे कुर्याद् कण्व ७२० सहस्रकृत्वस्त्वभ्यस्य मनु २.७९ सहस्रं शतवारं वा वृ हा ५.३१३ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६०३ सहस्रं शतवारं वा वृ हा ५.५२२ साक्षातं समनोयुक्तमुदकं कात्या २९.१८ सहनं हि सहस्राणां ब्र.या. ४.२६ साक्षात् ब्रह्म समभ्येति वृ परा १०.२३९ सहनं हि सहस्राणां मनु ३.१३१ साक्षादन्नस्य भुक्तिन आंपू ४९ सहस्रयुगपर्यन्ता वृ.गौ. १.६४ साक्षादभिमुखं देवं शाण्डि ४.२ ४ सहस्रशिरसे तुभ्यं सहस्राक्ष बृ.गौ. १८.३८ साक्षाद् द्रव्यविशुद्धं यत् शाण्डि १.६९ पहनशीर्षसूक्तेन वृ हा ५.३८५ साक्षाद् विष्णुः धर्मराजः प्रज! १९७ सहस्रशीर्षा इत्यादि वृ परा ११.१९० साक्षान्नारायण सोऽयं कपिल ३७ सहस्रशीर्षाजापी तु या ३.३०४ साक्षिणं त्वे वमुद्दिष्टं बौधा १.१०.३२ सहस्रशीर्षेति ऋचा वृ हा ८.३९ साक्षिणश्च स्वहस्तेन या २.८९ सहस्रसंख्यया होम भार १९.४८ साक्षिण श्रावयेद या २.७५ सहस्रांशुरथे तिष्ठन् वृ परा २.८२ साक्षिण (ज्ञातार) संति मनु ८.५७ सहस्राक्ष शतं धारं या १.२८१ साक्षिणां पुरतो नूनं _आंपू ३८८ सहस्रात्मा मयायो या ३.१२६ साक्षित्वं प्रातिभाव्यं च नारद १४.३९ सहस्रारं हु फडित्येवं वृ हा ३.३८६ साक्षिप्रश्नविधानञ्च मनु १.११५ सहस्रार्क शतोद्यामं वृ हा ७.१९६ साक्षिविप्रतिपत्तौ तु नारद २.२०६ सहस्रार्थि तुलादीनि या २.१०२ साक्षिषूभयतः सत्सु या २.१७ सहसे द्वेशतेन्यूनं ब्र.या. १.२१ साक्षी दृष्ट श्रुतादन्यद् मनु ८.७५ सहाभिगमनेनैव प्रातःकाल - शाण्डि २.२ साक्षी साक्ष्यसमुद्देशे नारद २.१८३ सहासनमभिप्रेप्सुः नारद १६.२४ साक्षेपं निष्ठुरं ज्ञेयं नारद १६.३ सहासनमभिप्सुरुत् मनु ८.२८१ साक्ष्यभावे तु चत्वारो मनु ८.२५८ सहि देवः परं ब्रह्म भार १६.२१ साक्ष्यभावे प्रणिधिभि मनु ८.१८२ स हि संतानाय पूर्वेषाम् व १.१५.४ साक्ष्येऽनृतं वदन्पाशैः . मनु ८.८२ सहेमपद्दनीलाभ वृ परा ११.१३७ साक्ष्युद्दिष्टो यदि प्रेया। नारद २.१ ४५ सहोढग्रहणात् स्तेयं नारद १५.१७ सागरान् सरितः शैलान् वृ.गौ. ६.९८ सहोदजस्तथाप्यन्यः लोहि १९३ साग्निकरैग्निपूर्व तु। व्या १२३ सहोढान् विभृशेच्चोरान् नारद १८.६८ साग्निकैरपि कार्य वृ परा ७.४४ सहोदर समुत्पन्ना व्या ६९ साग्नि सत्पंच यज्ञान्यो वृ परा ८.१९० सहोदराणां पुत्राणां वाधू २०५ साऽग्रकल्पशतं यावत् अ ५० सहोभौ चरतां धर्ममिति मनु ३.३० साग्रंसम्वत्सरं तत्र वृ हा ५.४३१ स हाश्रमैर्विजियास्यः ग ३.१९१ साग्रेषु कुक्षौ हृदये व हा ३.३४४ सांयम्प्रातश्चजुहुयाद व २.५.१०६ सांकर्यशून्यशुद्धैकगोत्रणा कपिल ९२ सा कथं ब्राह्मणेभ्यो वृ.गौ. ९३ सांख्यं योगं पञ्चरात्र बृह १२.४ सा कन्या वृषली ज्ञेया प्रजा ८६ सांख्ययोगाश्च ये चान्ये विष्णु म ५३ साकिन्यादिग्रहैर्यस्ता शाता ६.३ सांख्यस्य कर्ता कपिल बृह १२.५ साकिन्यादिमृते चैवं शाता ६.४१ सांख्यायनस्य गोत्रैषा भार १३.२४ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ साङ्गानपि तथा वेदानि साङ्गाश्च चतुरो वेदान् सांगोपांगोन् तु यो वेदान् सा चतुर्भिस्त्रीभिर्वापि सा च प्रोक्तं रत्नं च सा चापि धर्मपत्नीत्वं वृ.गौ. ८.५४ वृ.गौ. १२.२४ वृ.गौ. ६.६६ वृ परा १०.१०६ व २.३.११८ लोहि ८२ सा चेत्पुनः प्रदष्येनु सा चेदक्षयोनि स्याद् साचेद्भौमयुता स्नाया सा जन्मजन्मनि तथा सा जयन्तीति विख्याता साज्यं धूपं घृतं साज्यैश्च व्रीहिभि साज्यैस्तिलैः पायसेन सातत्यं कर्म विपाणा सा तिथि सकलाज्ञेया सात्वर्ध्यपूर्वकर्ता स्याद् सात्वतं विधिमास्थाय सात्विकं कीदृशं दानम् सात्विकं राजसं च एव सात्विकस्य विशुद्ध्यैव सात्विकानान्तु वक्ष्यामि सात्विकानां तु दानानां सात्विकानि पुराणानि सादकुर्म्मादिकाव्येवं सा ददर्शामृतनिधि सा दंपती समा नित्यं सर्वं सादयित्वा तु गृह्णीयात्तत्तु वृ.गौ. सादयेदुभयं वाप्सु सा दुर्गतिं यत्येव सा देवी दुपदा नाम साद्रा क्षताश्चदूर्वाश्च साधनं चैव हिंसाया विषो साधनं प्रवदाम्यद्य तदाद्य साधयेदिति सर्वेषां संमति मनु ११.१७८ मनु ९.१७६ भार ५.२७ कपिल १९३ व २.६.२४९ दा ५४ वृ हा ३.१९९ वृ हा ५.३१६ वृ. या. ६.७ ब्र. या. ९.८ कण्व १७० कण्व ४५२ वृ.गौ. ३.५ वृ.गौ. ३.३६ शाण्डि १.७० नारा ५.१२ वृ.गौ. ३.४५ वृ परा ४.१ ४६ कपिल १४८ विष्णु १.३४ कपिल ५९६ साधारणस्तु सर्वासु साधुनामुपकाराय व्यापृतं साधुवृत्ति द्विजौकस्तु साध्यैः सप्तभिराख्यातं साध्वाचारा न तावत् साध्वाचारा न सा तावद् साध्वीनामिह नारीणां साध्वीनामेष नारीणाम साध्वीनां तु नरो दत्वा साध्वी प्रवजिता राज्ञी साध्वीषु च सतीष्वे सानुकूलैः ग्रहैर्यानि सानुष्ठाना द्विजाः प्रोक्ता सान्तरालक संयुक्तं सान्तरालं द्विज कुर्यात् सान्तरालं भवेत् पुंड्रं सान्तानिकं यक्ष्यमाणमध्वगं सान्तर्धानमुखेनापि सान्निध्यं मृतकाले सापत्नी जननी पत्न्योरन्वहं सा पत्नी या विनीता सापदेशं हरन् कालं सापिण्डे कालकामौ तौ सापिण्ड्रयमनुयाने तु साऽपितज्ज्ञैः शुभा कार्या सा प्रशस्ता वरारोहा सा भर्तृलोकानाप्नोति सा भार्य्या या वहेदग्नि सामगानैर्नृत्तगीतै सामगायजुषापूर्व्व २०.४१ कात्या २३.६ वृ हा ८.२६९ वृ परा ४.१०१ सामगा हस्तनक्षत्र सामध्वनावृग्यजुषी व २.४.३१ शाण्डि ३ . ३९ कपिल ५६२ सामन्तकुलिकादीनां सामन्तविरोधे लेख्य लोहि ३७३ सामन्तानामभावे तु स्मृति सन्दर्भ वृ हा ६.३०० शाण्डि १.१०४ वृ परा १२.१६८ भार २.५२ अंगिरस ३७ आप ७३ वृ हा ८.२०१ व २.५.६७ वृ परा ८.१२३ वृ हा ६.१८२ लोहि १८१ वृ परा ११.८४ वृ परा ११.२६४ औंस २ व २.६.५० वृ हा ४.३६ मनु ११.१ वृ हा ८.११३ आंपू ४७९ कपिल ७३० अ ६५ नारद १.५१ प्रजा १८० आंपू ९७६ वृ परा ५.६५ वृ.गौ. ४.९ व २.५.६ शंख ४.१४ व २.६.२५५ ब्र. या. ३.९ ब्र. या. ९.४६ मनु ४.१२३ या २.२३६ व १.१६.१० मनु ८.२५९ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सामन्ता वा सनग्रामा सामन्ताश्चेन्मृषा ब्रूयुः सामभिश्चापराह्णे वै सामर्थ्येन तु या नारी सामवेदेन चोद्गाता सामवेदे स विज्ञेयो सामस्वरण मन्त्र च या २.१५५ मनु ८.२६३ बृह ९.१०४ कपिल १९२ बृ.गौ. २२.२६ वृ परा ३.२१ आश्व ४.१३ सामाद्युपायसाध्यत्वाच्चतु सामानाधिकरण्यत्वात् सामान्यनारी बुद्ध्या वै सामान्य द्रव्य प्रसभ हरणात् सामान्यधीते प्रीणाति सामान्यपि पठन् सामान्यमस्वतंत्र त्वमेषां सामान्यमिदमित्येवं सामान्यं याचितं न्यास सामान्याचमानार्थ्याणं सामान्यामृतमित्येवं सामान्यार्थ समुत्थाने सामाह मृत्थिमित्याद्यैः सामुद्रययश्च समुद्रेषु सामुद्रशुल्को वरं सा मृतापि गतैकत्वं सा मृतापि हि पत्यै सामेषु दुःखितानां च साम्ना दानेन भेदेन सांवत्सरिकमाप्तैश्च साम्यं कण्टकतस्तस्य साम्यं लक्ष्मीवर प्रोक्तं सायमागतमतिथिं सायमादि प्रातरन्तेमकं सायंकाले तु विप्राणां सायंकाले समस्तं सायं तु त्रिमुहूर्तः सायंत्वन्नस्य सिद्धस्य नारद १.१२ वृ हा ३.६५ कपिल ७२८ या २.२३३ औ ३.४४ कात्या १४.१० नारद ६.४ भार १८.६१ दक्ष ३.१७ भार ११.३१ मार ११.२९ या २.१२३ वृ परा ६.६५ विष्णु १.१४ बौधा १.१०.१५ ब्र. या. ७.१० दा ३६ वृ परा ६.३६१ मनु ७.९९८ मनु ७.८० आंपू ५८१ वृ हा ३.७८ व १.८.४ कात्या १८.१ ल हा ६.१२ आश्व १.६६ प्रजा १५७ मनु ३.१२९ सायं प्रातञ्च जुहुयाद् सायं प्रातः तु ये सन्ध्याम् सायं प्रातः द्विज संध्यां सायं प्रातः द्विजातीनाम सायं प्रातद्विजातीनाम सायं प्रातर्द्दिवा सन्ध्यां सायं प्रातर्यदशनीयं सायंप्रातर्होमकाले धर्म सायं प्रातः वैश्वदेव सायं प्रातश्च जुहुयात् सायं प्रातश्च जुहुयात् सायं प्रातश्चरेद् भैक्षं सायं प्रातः सदा संध्यां सायं प्रातः सदासंध्यां सायं प्रातस्तस्य ६०५ शंख ५.१४ वृ.गौ. ४.१८ औ १.१६ लहा ४.६९ संवर्त १२ वृ.गौ. १०.१०७ बौधा २.३.१४ लोहि ४० कात्या १३.१० वृ परा १२.९८ ल हा ४.४ ल हा ३.६ बौधा २.४.२० भार ६.१८० कण्व ५५१ संवर्त ११ अत्रिस ६३ कण्व ३६३ सायं प्रातस्तु भिक्षेत सायं प्रातस्तु यः संध्यां सायं प्रातस्ततो नित्यं सायं प्रातस्त्वहोरात्र सायं प्रातः हुताशाः च सायं भानोरस्तमयाद् सायं मंत्रवदाचम्य सायं संध्यां तथोपास्य सायं संध्यामुपस्थाय सायाह्न सूर्यमालोक्य सायाहूने समनुप्राप्ते सायाने समनुप्राप्ते वृ हा ५.३४७ सायुज्यनाम (मि) कां मुक्ति कण्व ४६७ सारंगशम्बरवाहंक प्रजा १३८ लोहि ५३१ नारद १.६ सारण्डा तत्र भूदानं ग्रहदानं सारस्तु व्यवहाराणां सारस्वतानि दौर्गाणि सारासारं च भाण्डानां सारूप्यमीश्वरस्याऽऽशु सार्वकालिकधर्मोऽयं वृ परा ३.३ मनु ९.३३१ वृ हा ७.३१९ कण्व ८५ आप ९.४१ वृ.गौ. २.१८ विश्वा ७.१८ ल हा ४.१७ भार ६.१५८ बौधा २.२६ विश्वा ७.४ नारा ९.८ Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ स्मृति सन्दर्भ सार्द्ध स यज्ञ सद्ध्यानं व हा ३.११६ सा सर्वसाधारणतो कण्व ४०५ सार्थज्ञानं सुसन्यास व २.७.१८ सासस्य कृष्णपक्षादौ व १.२३.४० सार्थ समुदं संन्यासं वृ हा ३.५३ सा सुवर्णधरा धेनुः अत्रिस ३.२२ सार्वभौतिकमन्नाद्यं दक्ष २.३१ सा सूये चैव हृदये बृह ९.१०० सार्ववर्णिकमन्नाद्य मनु ३.२ ४४ सा स्त्रीगर्मिणीप्रोक्ता ब्र.या. ८.१३४ सावधानो भवेद्भक्त्या शाण्डि ४.२१ साहसस्तेयपारुष्य या २.१२ सा विज्ञातेति विख्याता कपिल ५२९ साहसे वर्तमान यु यो मनु ८.३४६ सावित्रन्तु जपेत्वत्र व २.६.४७३ साहसेषु च सर्वेषु नारद २.१६८ सावित्रं नादिकेतश्च कण्व ५२८ साहसेषु च सर्वेषु मनु ८.७२ सावित्रश्च जयन्तश्च । वृ परा २.१९१ साहसेषु य एवोक्तास्त्रिषु नारद १५.२० सावित्रान् शांतिहोमांश्च । मनु ४.१५० सा हि परगामिनी व १.१३.२१ सावित्रीजाप्यानिरतः शंख १२.३० सिंह कर्कटयोर्मध्ये आंपू ९१७ सावित्रीञ्च जपेन्नित्यं संवर्त १३३ सिंह युक्तेन यानेन वृ.गौ, ७.१०७ सावित्रीञ्च यथाशक्ति वृ.गौ. ८.५९ सिंह व्याघ्र महानाग वृ हा ६.१६४ सावित्रीपतिता व्राता ब्र.या. ८.९७ सिंहव्याघ्रवराहोष्ट्रमृग व २.३.१६५ सावित्री परितः पूज्या वृ हा ७.९७ सिंहव्याघ्रादयोऽऽरण्यां वृ पर ११.१२७ सावित्रीमात्रसारैस्तु __आंउ ४.५ सिंहस्कन्धानुरूपांसं वृ हा ३.२५५ सावित्री च जपेत व १.२०.५ सिंहस्कन्धानुरूपांसं व हा ३.३५५ साविर्वीच जपेन्नित्यं मनु ११.२२६ सिकतावस्त्रवर्मास्थि व २.६.२५ सावित्री मंत्ररत्लञ्च वृ हा ३.२७५ सिकतोपरि दातव्या वृ परा ११.२ ४९ सावित्रीमात्रसारोऽपि मनु २.११८ सिक्तावलोकये दन्तं वृ.हौ. ८.७२ सावित्री यो न जानाति बृ.या. ४.७६ सिच्यमानेन तोयेन वृ परा २.१८० सावित्री वा जपेद् विद्वान् ल व्यास २.१९ सिंचेद् दूर्वारसं तस्य आश्व ४.६ सावित्री वित्पुत्रौ व २.३.६० सितरक्त सुवर्णागि भार ७.२६ सावित्री वै जपेत् ल व्यास २.२८ सितवस्त्रधरः शान्तो व परा १०.९६ सावित्री व्याहृती आंउ १२.३ सितवस्त्र युगच्छन्नं परा १०.८९ सावित्री शतरुद्रीयं औ ३.८५ सितार्दवाससा युक्ता प्रजा ६१ सावित्र्यष्टसहसं तु व १.२७.१८ सिताऽसिता कद्रनीलाः बृह ९.१६८ सावित्र्यादीन् दशाऽऽज्येन आश्व १२.८. सिद्धवते ब्राह्मणस्यैव लोहि १६६ सावित्र्या वाऽपि शुद्ध्येते वृ हा ६.२१४ सिद्धिर्भवति वा नेति शाण्डि १.९२ सावित्र्यश्चापि गायत्र्या पराशर ८.१२ सिद्धान्तानां च सर्वेषां बृ.या. १.६ सावित्र्याश्चैव माहात्म्यं बृह ९.४० सिद्धान्तानां तु सर्वेषां बृ.या. २.१३ सा वै पुत्रैस्तदुद्भूत आंपू २०५ सिद्धापि नात्र विशय लोहि ४६६ साशीति पणसाहस्री या १.३६६ सिद्धाब्रह्मर्षयश्चैव वृ.गौ. १०.२८ सा संध्या वृषली . ब्र.या. २.४५ सिद्धा मंत्रा द्विजेन्द्रस्य वृ परा ११.१६२ Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सिद्धार्थकानां कल्केन सिद्धासनसमं नास्ति सिद्धे योगे त्यजन् सिद्धैब्रह्मर्षिभिश्चैव सिध्यत्येव न सन्देह सिन्दूरारुणभं भांति सिन्धुतीरेऽथ बल्मीके सिन्धु तीरे सुखासीनं सिन्धुद्वीप ऋषिश्छन्दो सिंधुद्वीपो भवेदा सिन्धु सौवीरि सौराष्ट्र सिन्धु स्नानं गया श्राद्धं सीतक्षामांबरधरां प्रसन्ने सीताद्रव्यापहरणे सीमावृक्षांश्च कुर्वीत सीमासन्धिप्रदेशेषु सीमैषा परमा विद्वन सोम्नोऽपवादे क्षेत्रेषु सीम्नो विवादे क्षेत्रस्य सीरस्यैकस्य वा सीराजन्ति इत्यादौ शंख १६.१० विश्वा ३.३० बृह ९.१९७ वृ.गौ. ७.१२३ कण्व २४० वृ परा ६. १४७ वाधू १०८ देवलं १ सी ताभि स्नापये सीतामरुन्धतीं लक्ष्मीं सीतां पूज्य वृषौ सीते सौम्ये कुमारि त्वं सीदद्भि कुप्यमिच्छद्भि सीदन्ति चाग्निहोत्राणि सीदमानं कुटुम्बाय सीमान्तश्चाष्टये मासि सीमान्तश्चैव केशान्तं सीमान्तोन्नयने नै व पुत्रादि सीमान्तरं प्रविष्टा सीमां प्रति समुत्पन्ने सीमायामविषायां सीमाविवादधर्मश्च वृ परा २.५१ बृ. या. ७.१७८ देवल १६ वाधू २१६ भार १२.१० मनु ९.२९३ व २.३.३५ कण्व ७७ वृ परा ५.८७ वृ परा ५.११९ मनु १०.११३ पराशर ९.३२ वृ.गौ. ६.१६९ व्यास १.१७ ब्र.या. ८.२१७ कपिल ७७ लोहि ४३ मनु ८.२४५ मनु ८.२६५ मनु ८.६ मनु ८.२४६ न लोहि १०७ वृ परा १२.२८४ वृ हा ४.२५४ या २.१५३ वृ परा १०.१८० वृ परा ५.८६ सीसकेंचासित्रे लिख्य सीसं आभरणं तस्य सीसहारी च पुरुषो सुकूर्वैश्च शुर्यैदेशे सुकृतं यत्वया किंचित् ६०७ ब्र. या. १०.६४ औसं ९ शाता ४.७ सुकृतांशान्वा एष सुकेशी सुशिखो वा स्याद् सुक्षेत्रे वापयेद् बीजं सुखदोषनिमित्तेन स्पृष्टा सुखदोषेण परणं तद्भर्ता सुखं दुखं भवं भावं सुखं न कृषितोऽन्यत्र सुखं वाञ्छन्ति सर्वे सुखं वा यदि वा दुःखं सुखं ह्यवमतः शेते सुखाभ्युदधिकं चैव सुखासनं च यो दद्यात् सुखासनानि यानानि सुखासीनं मुनिवरं सुखासीना निबोध त्वं सुखेन देहमुत्सृज्य सुखोष्णं कारयित्वे पाक सुखोष्णतजलै स्नानं सुगन्धद्रव्यसंयुक्त सुगन्धद्रव्यसद्वस्त्र सुगन्धपुष्पधूपाद्यैः सुगन्ध पुष्पै विविधै सुगन्धवस्त्रालंकारगीतदीनां सुगंधाक्षत पुष्पाणि सुगन्धा सुन्दरी विद्यां सुगन्धिन्तु मुखोन्यस्य सुगुप्तकृत्यविज्ञानं सुजनैः सेव्यते यस्तु सुतप्रदानोत्तरक्षणमात्रेणैव सुतभ्रातृपितृव्याणां नारा ५.३९ या २.७७ बौधा २.१७९ वृ हा ५.५१ व्यास ४.४९ कपिल ५३० लोहि ४३७ लोहि ५८३ वृ परा ५.१८६ दक्ष ३.२३ दक्ष ३.२१ मनु २.१६३ मनु १२.८८ वृ परा १०.१५० कृपरा १०.९ बृ. या. १.३ विष्णु १.६७ वृ हा ७.३१८ कपिल २६२ वृ हा ४.८२ व २.६.८६ लोहि ६६५ व २.३.१४९ वृ परा ६.१२३ कपिल ५७२ भार ११.८ वृ हा ४.९१ ब्र.या. २.१२८ वृ परा १२.१५ वृ हा ७.५५ कपिल ७७४ आंपू १०३५ Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०८ सुतं बन्धुषु वान्येषु सुतविन्यस्तपत्नी कस्तया सुत संस्कारकर्माणि आश्व १७.१ सुताष्व (स्व) स्य पितृष्वस्य कपिल १८५ सुतृप्तः सुप्रभः सौम्य सुतोरणवितानाढ्यां सुतो वैदेहकश्चैव वृ. गौ. ७.६८ वृ हा ७.२५४ भनु १०.२६ सुत्रामादि दिशां पालान् वृ परा ११.१२५ वृ परा १२.११२ वृ परा ४.१६५ व्यास ३.२२ वृ हा ६.२४ वृ हा ८.१३७ सुत्रामाऽनलवायूनां सुत्राणे तस्य पुंभ्यश्च सुदत्त तत्पुनस्तेषां सुदध्यन्नं फलयुतं सुदर्शनं पांचजन्यं सुदर्शनोर्ध्वपुंड्राणां सुदर्शनोर्ध्व पुण्ड्रादि सुदीर्घयंत्रान् सूप सुदीर्घेणापि कालेन सुधाब्धिममृतं बीजं सुधा नवगृहस्थस्य सुधानवगृहस्थस्य सुधावस्तूनि वक्ष्यामि सुधावस्तूनि वक्ष्यामि सुधावीजं सुदीर्घन्तु सुनन्दा च सुशीला च सुनासा कर्ण गंडाश्च सुपक्वं रसयुक्तं राजान्नं सुपर्णाश्च पिशाचांश्च सुपात्रं सर्वदा नाना शुभ सुपिरायाः कर्षणम् सुपुष्प मण्डपे रम्ये सुपूर्वामपि पूर्वा सुप्तां मत्तांप्रमत्तां सुप्तां मत्तांप्रमत्तां सुप्ता वापि प्रमत्ता सुप्तोऽपि योगयुक्तः आंपू ३३७ या ३.४५ व २.२९ वृ हा ५.३५ वृ हा ५.४२२ नारद २.१४६ वृ हा ४.१२१ दक्ष ३.१ ब्र. या. १२.२६ दक्ष ३.४ ब्र.या. १२.२९ वृ हा ३.३७४ वृ हा ३.३१५ वृ परा १०.१९४ विश्वा ८.७९ वृ परा २.१७४ कपिल ८८१ बौधा १.६.१८ व_२.४.१२३ बौधा २.४.१५ बौधा १.११९ मनु ३.३४ वृ परा ६.११ दक्ष ७.१० स्मृति सन्दर्भ सुप्त्वा क्षिप्त्वा च निष्ठीव्य शाण्डि २.६० सुप्त्वा क्षुत्वा च मुक्त्वा सुप्त्वा भुक्त्वा रुदित्वां सुप्त्वा भुक्त्वा मनु ५.१४५ आंपू २५९ व १.३.३८ सुप्रक्षालितपादपाणिराचान्त बौधा २.३.२५ सुप्रतीकं धराधारं . कण्व ६५८ वृ.गौ. ७.५२ सुप्रीता सम्प्रयच्छन्ति सुप्रेक्षमणिय्यारत्नेषु सुबद्धजत्रुजान्वस्थि भार ७.२४ सुबुद्धां येऽवलिप्तांगां सुबर्णरोप्यस्फटिकं सुबीजं चैव सुक्षेत्रे सुब्रह्मण्यमनाधृष्यं सुब्राह्मण श्रोत्रिय सुभगो रूपवान् शूरः सुभ्रू युगं सुविम्बोष्ठं सुमंगला सुनन्दा सुमङ्गलीनां कथितं सुमङ्गलीनां तत्स्नानं सुमंगलीरियंवधुरिमाः सुमध्योरुनितम्बाश्च सुमन्तुजैमिनीकृताः सुमित्र इत्युदाहृत्य सुमित्रा न आप ओषधयः सुमुखं संपुटं चैव विततं सुमुखं संपुटं विस्तीर्ण सुरभिर्ज्ञाननवैराग्ये योनि सुरभिर्वेष्णवी माता नम सुरभीणि च पुष्पानि सुरभीणि च पुष्पाणि सुरभीनागकर्णाद्यै सुरया लिप्तदेहोऽपि सुराकामद्यूतकृतं सुराकामद्यूतकृतं सुघटप्रपातोयं नारद १३.९ वृपरा ८.१४४ भाग ११.६७ मनु १०.६९ विष्णु ९.५९ बौधा २.३.२४ वृ.गौ. ७.७४ वृ हा ३.३०८ वृ हा ४.९६ आंपू ७९० लोहि ६४१ ब्र. या. ८.२३५ वृ परा १०.१९५ वृ. गौ. १.१९ वाधू ७८ बौधा २.५.८ विश्वा ६.६१ भार ६.६० विश्वा ६.७० शाता ५.२६ व २.६.१२१ वृ हा ६.१८ वृ परा ७.१२४ वाघू ३९ वृहा ४.२४० या २.४८ संवर्त १८४ Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सुराणामचनं कुर्याद् सुराणामितरेषां तु सुराधाने तु यो भाण्डे सुरानापि विधानेन मन्त्रै सुरान्तं मायेद्भूमौ सुरान्यमद्यपानेन सुरापश्च विशुध्येत सुरापः श्यावदन्तः स्यात् सुरापस्तु सुरां तप्ता सुरापस्तुसुरां तप्तां सुरापः स्वर्णहारी तु सुरापानेन स्तुल्यं मनु सुरापी व्याधिता धूर्ता सुरामूत्र-पुरीषाणां सुरांपस्य प्रवक्ष्यामि सुरांपीत्वा द्विजो मोहाद् सुरां पीत्वोष्णया कायं सुराम्बघृतगोमूत्र सुरां वै मलमन्नानां सुरां स्पृष्ट्वा द्विज सुरायाः प्रतिषेधस्तु सुरायाः संप्रानेन गोमांस सुरालये जले वापि सुरा वै मलमन्नादे सुर्मि वा ज्वलन्ती सुलक्षणं युवानं च सुलमोयं तमेवातः सुवर्णचौरः कौनख्यं सुवर्णताक्षयसूक्ताभ्यां सुवर्णदानं गोदानं सुवर्णदानं गोदानं सुवर्णदानं गोदानं सुवर्णधेनुमार्याय सुवर्णनाभं कृत्वा सुवर्णनामं यो दद्यात् ६०९ बृ.या. ७.९. सुवर्णमिका कस्ता शाता ५.५ वृ हा ५.७१ सुवर्णपुतिन त्या शाता ५.१२ बौधा ३.१.२६ सुवर्णपुत्रिकां कृत्वा शाता ५.१९ लोहि ३७४ सुवर्णमणिमुक्ता शंख १२.५ विश्वा ४.१६ सुवर्णमणिरत्नानि बृ.गौ. ६.९७ यम ११ सुवर्ण गां गुणवती शाण्डि ४.४७ शंख १२.१७ सुवर्ण रजतञ्चैव पात्रिकं वृ.गौ. १५.७६ शाता ३.१ सुवर्ण रजतं वस्त्रं अत्रि ६.५ औ ८.१२ सुवर्ण रजतं वस्त्रं वृहस्पति ५ संवर्त ११६ सुवर्णरजतायैवर्वा वृ हा ५.११३ वृ हा ६.३ ४० सुवर्णरजताभ्यां वा बौधा १.५.१४७ अत्रि ५.७ सुवर्णशतनिष्कन्तु शाता १.१६ __ या १.७३ सुवर्ण शृङ्गी रूप्यखुरा वृ.गौ. ९.६८ वृ परा ८.२११ सुवर्णस्तेयकृतिप्रो मनु ११.१०० वृ परा ८.१०५ सुवर्णस्य क्षयो नास्ति नारद १०.११ मनु ११.९१ सुवर्णागुलिकं हत्वा भार १८.१२८ बौधा २.१.२१ सुवर्णाम्बरधान्यानि आश्व १०.४३ या ३.२५२ सुवाससायवनिकां वृ हा २९६ • मनु ११.९४ - सुवासितेन तैलेन व २.६.१०५ औ ९.८१ सुवासिनी कुमारीश्च मनु ३.११४ वृ हा ६.२६९ सुवासिनी कुमारीश्च ल हा ४.६४ बृ.या. २.३ सुवासिन्यो दोलयित्वा वृ हा ५.५०९ शाता ३.१४ सुवेष-भूषणैस्तत्र वृ परा ७.१६५ वृ हा ६.२७१ सुशयने शयीताथ वृ परा ६.११ बौधा २.१.१५ सुशीतलं पानकं च व २.४.२५ वृ परा १०.१५७ सुशीलन्तु परं धर्म वृ हा ८.१९५ कण्व ४३६ सुशीला च सुवर्णा च वृ परा १०.३०४ मनु ११.४९ सुषुम्ना चेश्वरी नाडी वृ परा ६.९९ वृ हा ६.४२४ सुसंवृद्धा नास्य तत्र कपिल ७३४ देवल ७३ सुसन्तरेयां हेलार्थ लोहि ११३ संवर्त २०१ सुसमाधिहृदो यूयं औ १.३ वृहस्पति ४ सुसहायमतिप्रौढं शूरं वृ परा १२.५८ वृ परा १०.११६ सुसुखः सुप्रसन्न आत्मा वृ.गौ. ६.७० व १.२८.२० सुसूक्ष्मशुक्लवसनां विष्णु १.२९ अत्रि ३.२९ सुस्नातं स्वनुलिप्तं शाण्डि ४.३० Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१० सुस्नातस्तु प्रकुर्वीत सुस्निग्धकण्ठास्ताल सुस्निग्धनीलकुटिल सुस्निग्धनीलकेशान्तं सुस्निग्ध शादलश्यामं सुदोमंत्रवन्तश्च सुद्यम्पायसान्नंच सूक्तं रौद्र च सौम्यंच सूक्तस्तोत्रजपेत्युक्त्वा . सूक्तानि वैष्णवान्येव सूक्तेन विष्णुविधिना सुक्षेत्रे वापयेद्वीजं सूक्ष्मतां चान्ववेक्षेत सूक्ष्मधर्मार्थतत्वज्ञः सूक्ष्मं तत् गुह्य सूक्ष्मेभ्योऽपि प्रंसगेभ्य स्मृति सन्दर्भ ल हा १.२६ सूतके त समुत्पन्ने लघुयम ७५ शाण्डि ४.१६९ सूतकेन न लिप्येत बृ.या. ४.२१ वृ हा ५.२०३ सूतके मृतके चैव अत्रि ५.३५ व २.३.११६ सूतके मृतके चैव दक्ष ६.११ वृ हा ३.२५४ सूतके मृतके चैव बृ.या. ४.१८ व २.४.४१ सूतके मृतके चैव व २.६.४६६ व २.६.२६५ सूतके मृतके वापि वाधू १३२ वृ परा ११.२८५ सूतके मृतके वाऽपि वृ हा ८.१०६ व्या २५४ सूतके मृतके होममने व २.४.१०४ वृ हा ५.५६४ सूतके मृतशौचे वा वृ परा ८.४२ वृ पुरा ४.१ ४२ सूतके वर्तमानेऽपि वृ.गौ. ३.५५ पराशर १.५६ सूतकेषु यदा विप्रो अंगिरस ५९ मनु ६.६५ सूतके समनुप्राप्ते ___व्या । _कण्व ४०० सूतके सूतकं स्पृष्ट्वा अत्रि ५.३२ बृह ११.३१ सूतके सूतकं स्पष्ट्वा अत्रि ५.२५ मनु ९.५ सूतश्च मागधश्चोभौ नारद १३.११५ - नारद १.३५ सूतस्वीकरणे याऽऽरांत्सिथता आंपू ३९० भार १५.९९ सूताद्याः प्रतिलोमास्तु नारद १३.१११ वृ.गौ, ५.४३ सूतानामश्वसारथ्य मनु १०.४७ विश्वा ८.२९ सूतिकाद्यैस्तु भुक्तानि व २.६.५०५ दक्ष ६.१ सूतिप्रजननस्थानयुग्मं E. मतिपजननस्थानयग्मं आंप ३८E प्रजा १७२ सूतिप्रजननस्थानापन्न । आंपू ३८५ आंपू १६९ सूते तेन स्पर्शः गोत्रिणस्तु ब्र.या. १२.१० अत्रि ५.३६ सूतैश्च वैष्णवैर्मन्त्रैः वहा ४.१३० दा ६३ सूत्याशौचे मृताशौचे ___ आंपू ४५ __ आंपू ५० सूत्रकार्पासकिण्वानां मनु ८.३२६ आंपू २७४ सूत्रमं वाविधं शस्तं भार २.३६ अत्रि स ९३ सूत्र प्रसाद्ययामायां भार २.७६ वृ परा ८.२२१ सूत्र यत्तद्भवेन्मध्यं भार २.२७ व्या २२९ सूत्रस्यैव भवेन्मन्त्रः आंपू ५६ संवर्त २४ सूत्राणां (शिं) क्षया कण्व ४७० वृ परा ८.५९ सूत्राणि च ततः प्राज्ञैः भार २.२८ कात्या २४.१ सूत्रेण ग्रथितं सूच्या विश्वा १.८९ कात्या २४.४ सूत्रोदितान् मयीत्यादान् आश्व १०.२५ आंउ ८.१९ सूनिकस्य नृपायान्तु औसं १५ सूचनात्स्वधरस्यैव सूचीसुतीक्ष्णतृणिमि सूतकद्वयसंप्राप्तौ नित्य सूतकं तु प्रवक्ष्यामि सूतकादिनिमित्तेन सूतकादिषु सर्वेषु सूतकाद् द्विगुणं शावं सूतकांतरितं श्राद्धं सूतकान्ते पुनः प्राप्त सूतकान्ते शून्यतिथि सूतकान्नमधर्माय सूतकान्नं द्विजो भुक्त्वा सूतकान्नं नवश्राद्ध सूतकान्नं नवश्राद्ध सूतकाशौचयोरुक्तः सूतके कर्मणां त्यागः सूतके च प्रवासे वा सूतके तु यदा विप्रो Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी सूनिहस्ताच्च गोमांस सून्यादीनां चतुर्णां च पर्णोऽसीतिष् क्रमं सूपशाकान्वित कृत्वा सूपान्नं कृसरान्नं सूपेन परमान्नेन सूर्यक्षेत्रेदशैतेषां मंत्राणां सूर्यमण्डल पर्यन्तं : सूर्यमण्डल यवराशि सूर्यमध्यस्थि सोमस्तस्य सूर्यमुदयास्तमये न सूर्यश्वमेति मंत्रेणं सूर्यः सोमो महीपुत्र सूर्येस्यान्तर्गत सूक्ष्मं सूर्यस्याभिमुखो जप्त्वा सूर्यस्यास्थमयात्पूर्व सूर्यस्योदयनं प्राप्यं सूर्योदयनं प्राप्य सूर्याचन्द्रमसोः प्रील्यै सूर्यादीनां तु कर्तृत्व सूर्याभ्युदितः सूर्याभि सूर्यायेदं नममेति ! सूर्ये कन्यागते कूर्याच्छाद्धं सूर्येण ह्यभिनिमुक्तः सूर्येन्दुपप्लवे यद्वै सूर्यो न इति सूक्तेन सूर्योषधतारेश नक्षत्र सूर्यकोटिप्रतीकाशं सूर्य्यराशिनिपातेन सूर्य्यश्वमेति मंत्रेण सूर्यास्ते तर्पयित्वा सूर्येऽस्तशैलम प्राप्ते सृजते आत्मनात्मान सृजेद्वाचा नरेमालां सृष्टमात्रो जगत्सर्व वृ परा ८.१८९ वृ परा २४६ सृष्ट्युत्पतिवर्णनम् सेकद्वारं पिधानां च सेचनं प्रोक्षणे नस्तो सेतुकेदारमर्यादा सेतुबन्ध पथे भिक्षां सेतुस्तु द्विविधो ज्ञेयं सेनापति बलाध्यक्षौ सेनापते सूत्रवत सेनेशवैनतेयादि सेवकाश्चपि विप्राणां सेवेक पूर्व संध्यायाः सेवेतेमांस्तु नियमान् सेवेनैः कुसुमैर्दिव्यै सेव्यमानस्य यत्पापं सेव्यमानोऽप्सरसंधै सैकोद्दिष्टं दैवहीनं मनु १२.१०० सैनापत्यं च राज्यं सैषा भ्रूणहत्या एवैषा सोऽग्नि र्भवति वायुश्च व १.५.९ मनु ७.७ व १.१.१७ सोङ्कारं ब्राह्मणो ब्रूयान्न वृ परा १०.२८९ सोकारया वै गायत्र्या सोङ्कारां चैव गायत्री सोचेत मनसा नित्यं वृ परा ७.२४५ कण्व ३६५ अत्रि ३५८ मनु २.२२६ बृ.गौ. १९.१९ आस्व १.५६ भार ६.१०७ सोत्तरीयं च कौपीनं सोत्तरीयं त्रयं वाऽपि सोतरोऽनुत्तरश्चैव सोदकं च कमण्डलुम् सोदकान् द्विगुणं श्रुग्नान् सोदकाभ्यां पवित्राभ्यां सोदकुम्भं प्रदद्यात्तु हा ३.३७० आप २.७ व २.३.११३ व २.३.७२ सोदकुम्भस्य नान्द्याश्च सोदर्या विभजेरंस्तं सोsध्वनः पारमाप्नोति सोऽनुभूयासुखोदर्कान् सोऽपनीय समस्तानि ब्र. या. ८.३०० कण्व ७६४ वृ हा ५.३९२ कण्व ३३६ भार ७.५१ कपिल ९२८ कपिल ९२८ विष्णु ५१ बौधा २.३.३७ वृ परा २.३७ या १.२९६ वृ.या. २.१६ वृ हा ४.४८ भार ६.९ अत्रि ४.७ बृ.या. ८.४१ भार ४.३० कण्व ३२ कात्या ९.१ विष्णु म २० शाण्डि ४.२४२ बृ. गौ. १५.१८ ६११ विष्णु १ वृ परा ५.१६९ कण्व ७७५ नारद १२.१ पराशर १२.५९ नारद १२.१५ मनु ७.१८९ वृ हा ४.९९ वृ हा ६.४२० बृ. या. ४.६१ भार ६.१० मनु २.१७५ व २.३.१६ बृ.गौ. १४.६४ वृ परा १०.२८ प्रजा १८९ वृ परा २.३९ बौधा १.५.१०४ व २.६.४८ वृ हा ५.४३ नारद १.४ बौधा १.३.४ वृ परा ७.१९० आश्व २.२८ वृ हा ६.१४७ आंपू २६६ मनु ९.२१२ शंख ७.३१ मनु १२.१८ वृ परा ४.१०२ Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१२ सोपानत्कं कृतघ्नं सोपानत्कश्च यो भुंक्ते सोपास्या सद् द्विजै सोऽपिक्षत्रिय एव सोsपि पाप विशुद्ध्यर्थं सोऽप्येकश्चेदवाप्नोति सोऽभिध्याय शरीरात् सोमक्षये द्विजो याति सोमन्तत्रैवविन्यस्य सोमपांश्चैव दस्तु सोमपानसमाभिक्षा सोमपा नाम विप्राणां व्या ३६२ ल व्यास २.८३ वृ परा २.१२ औंस २९ शाता २.२७ आंपू १२७ मनु १.८ वृ परा ५.१०० ब्र.या. १०.५४ वृ. गौ. ८.६० वृ परा ६.१६० मनु ३.१९७ मनु ३.१.९८ वृ हा ८.७१ वृ परा ६.३४२ वृ.गौ. ५.७९ ब्र.या. ४.२० सोमपास्तु कवे पुत्रा सोम पूषेति ऋचा सूर्य्या सोम भास्करयोर्भाभि सोममण्डलसङ्काशैर्यानै सोमविक्रयकारी च सोमविक्रयिणे विष्ठा सोम शौचं ददत्तासां सोमः शौचं ददौ तासां सोमसंस्थास्सप्तसंस्थाः सोमसदोऽग्निष्वात्ताश्च सोमसून सुराचार्यो सोमाग्न्यार्कानिलेन्द्राणां सोमानमित्योदनेन सोमापूषणेत्यंचा सोमाय वै पितृमते सोमार्काग्निगतन्तेजो सोऽमृतं नित्यमश्नाति सोमेन सह राज्ञेति सोमेष्टि पशुयज्ञं सोमो ग्रहगणश्चव सागराः सोमोवस्यातिश्चाग्नि सोमोऽस्य राजा भवतीति सोऽयमर्थः कल्पसूत्रैः मनु ३.१८० बौधा २.२.६४ या १.७१ लोहि १०३ वृ परा ७.१६७ वृ परा ११.५६ मनु ५.९६ वृ हा ६.१०४ वृ हा ८.४४ औ ५.४३ विष्णु म ५० वृ परा २.२२५ वृ परा ७.१८५ वृ परा ६.३०३ बृ.गौ. १९.७ व २.६.१८६ व १.१.४६ कपिल ३८ सोऽयमेव प्रधानोऽग्नि सोऽयं तस्मादाहित सोऽयं नित्यत्वधार्यत्व सोऽयं वै समभागी सोऽयं हि पितृभि प्रीत सोऽवाविशरास्तु पापात्मा सोऽश्वमेधसमं पुण्यं सोषैरूदक गोमूत्रै सोऽसहायेन मूढेन सोsस्पृष्टैना विशेत्रत्र सोऽस्मत्प्रीतिकरः श्रीमान् सोऽस्य कार्याणि संपश्येत् सोऽहं दासो भगवतो सोऽहं भावेन संपूज्य सौगान्धिकस्य हरणाद् सौत्तरीयं गृहस्थस्य सौत्रामणिस्तत्परं स्यात् सौत्रामण्यच्छिद्रन सौत्रामण्यावभृतके सौदर्शनी प्रवक्ष्यामि सौदर्शनेन मंत्रेण सौदर्शनेन मंत्रेण सौदर्शिनी च सेनेशी सौदर्शिनीं तु संस्थाप्य सौपर्णमथवैराजं सौभाग्यं अम्बिके देहि सौभाग्यं कर्मसिद्धिञ्च सौभाग्यायुर्यशो नाश सौमनस्यमस्त्विति सौमारौद्रं तु वहवेनाः सौम्यं च वैष्णवं रुद्र सौम्ययाम्यायनद्वन्दे सौम्ययाम्यायने नूनं सौम्यवेषप्रशान्तं च पाप सौम्ये मुहूर्ते तत्प्राश्यं स्मृति सन्दर्भ लोहि १३८ कण्व ३११ लोहि ४ लोहि १८७ आंपू ११०१ वृ.गौ. ६.१२९ वृ परा ५.२७ या १.१८६ मनु ७.३० वृ परा ६.९१ वृ.गौ. ७.६० मनु ८.१० वृ हा ५.१६ विश्वा ६.२४ शाता ४.२० भार १५.१०७ कण्व ४९७ कण्व ५३७ वृ परा २.५३ वृ हा ७.१९३ वृ हा ६.६१ वृ हा ७.२०३ वृ हा ७.५ नारा ३.१० वृ परा ११.२८६ वृ परा ११.२७ कात्या १४.७ शाण्डि ५.५१ कात्या ४.६ मनु ११.२५५ आश्व २३.९ आंपू ६४३ आंपू ६४१ शाण्डि १.१०५ वृ.गौ. १०.२३ Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६१३ सौरमेयी तथा मुद्रा व २.६.९० स्तम्भेषु वेदान् मंत्राश्च वृ हा ५.५०५ सौरभेयी द्विवक्त्रां वृ परा १०.७ स्तुतिभि पुष्कलाभिश्च वृ हा ६.५८ सौरमेयोर्जनलाग्न्योश्च वृ परा ६.२६९ स्तुतिभि पुष्कलाभिश्च वृ हा ७.३३० सौरान मंत्रान् यथोत्साहं ल व्यास २.३४ स्तुतिभि ब्रह्मपूर्वाभिर्य बृ.गौ. २१.१४ सौराष्ट्र देति सूक्तेन वृ हा ५.४६४ स्तुत्वा नत्वा ततः आश्व १.४९ सीरेण चानुवाकेन वृ हा ५.२१३ स्तुवतो दुहिता त्वं वै वौधा २.२.९० सौलभ्याधारणामूलं कण्व ३४३ स्तुवन्ति वेदास्तस्यात्र वृ हा ८.२६६ सौवर्ण पृथिवीदान व परा ११.१५४ स्तुवन्ति सततं ये च बृ.गौ. २२.२७ सौवर्णमाज्यं लाजांश्च वृ हा ५.१ ४७ स्तूयमानं हरिं ध्यात्वा वृ हा ७.७८ सौवर्ण क्षीरपूर्णं तु वृ परा १०.१३१ स्तृतादुपासनात् सोऽयमौपा वृ.गौ. १५.१९ सौवर्ण रजितं तानं ___ भार ११.९ स्तेनः कुनखी भवन्ति व १.२०.४९ सौवर्ण राजतं तानं बृ.या ७.११४ स्तनगायनयोश्चान्नं मनु ४.२१० सौवर्ण राजतं ताम्र ब्र.या. ४.५५ स्तेनः प्रकीर्य केशान् सैध्रकंदौधा २.१.१७ सौवर्णराजताजनां या १.१८२ स्तेनाः साहसिकाश्चण्डाः नारद २.१३८ सौवर्णाराजताम्या शंख १३.१४ स्तेनेष्वलभ्यमानेषु नारद १५.२६ सौवर्णरौप्य वासोऽश्म __२.६.४९१ स्तेनोऽनुप्रवेशान्न व १.१९.२६ सौवर्ण रौप्यमहिणी ब्र.या. ११.१८ स्तेयं कृत्वा सुवर्णस्य वृ परा ८.१०८ सौवर्णानि च पात्राणि व २.६.५०४ स्तेयं कृत्वा सुवर्णस्य संवर्त १२० सौवर्णाच्च प्रसूनात्तु वृ.गौ. ८.७८ स्तोकशः सीरिभि तृ परा ५.१८२ सौवर्णायसतानेषु अत्रिश १५६ स्तोत्रपाटश्च सन्तोष्य शाण्डि ४.१६७ सौवर्णायसतानेषु अत्रिस १५९ स्तोमवाहीनि भाण्डानि नारद ७.२३ सौवर्णिकस्य वैश्यस्य वृ.गौ. ११.१७ स्त्रवत्यनोकृतं पूर्व बृ.या. २.१४९ सौवर्णेन पात्रेण शंख १३.९ स्त्रिद्देवता मंत्रजपे भार ७.४९ सौवर्णे राजते वाऽपि आश्व ५.२ स्त्रियः पवित्रं अतुलं बौधा २.२.६३ सौवीरः तिक्तै लवणादि वृ परा ७.२३१ स्त्रियः पवित्रं अतुलं व १.२८..४ सौहार्दाद् वीक्षणाद् वृ हा ६.१६९ स्त्रियम्बिना आकामे ब्र.या. ८.८२ स्कन्दश्चदुग्धेविन्यस्य ब्र.या. १०.८५ स्त्रियं रिरंसुर्दविणं वृ परा ६.२१७ स्कन्धयाः स्पर्शनादश्य शंख १०.१३ स्त्रियं श्वश्वा पतिर्मात्रा वृ परा ७.३४८ स्कंधेन दूराच्च वृ परा ५.५१ स्त्रियं स्पृशेददेशे य: नारद १३.६५ स्कन्धेनादाय मुशलं मनु ८.३१५ स्त्रियं स्पृशेददेशे मनु ८.३५८ स्कन्धेनाऽऽदाय मुसलं बौधा २.१.१९ स्त्रियश्च यत्र पूज्यंते वृ परा ६.४४ स्तनयिलु वर्षविधुत बौधा १.११.२५ स्त्रियस्तु न बलात्कार्या नारद १९.२५ स्तनयस्तुधियोन्यास भार ६.८४ स्त्रियस्तुष्टा श्रियः व परा ६.४५ स्तनोर बाहु हस्तान वृ परा ११.२० स्त्रियस्सनाथाः कथिताः कपिल ६५३ स्तंभपूजां चतुर्दिक्षु कण्व ६६७ स्त्रियाधनन्तु ये मोहात् अंगिरस ७१ Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१४ स्मृति सन्दर्भ स्त्रियाऽप्यसम्भवे कार्य मनु ८.७० स्त्रीणां शीलाभियोगे नारद २.२१७ स्त्रियामर्तुर्वच कार्य व २.५.१७ स्त्रीणां संक्षिप्तधर्मवर्णनम् विष्णु २५ स्त्रियां तु यद्भवेद्वित्त मनु ९.१९८ स्त्रीणां सर्वक्रियारम्भे ब्र.या. ८.२८९ स्त्रियां तु रोचमानायां मनु ३.६२ स्त्रीणां साक्ष्यं स्त्रियः मनु ८.६८ स्त्रिया म्लेच्छस्य अत्रिस १८२ स्त्रीणां सुखोद्यमक्रूरं मनु २.३३ स्त्रियाश्च पुरुषस्यापि वृ परा ६.४७ स्त्रीणां सौभाग्यतो कात्या १९.६ स्त्रियाताश्चैकवर्णा न ब्र.या. १०.११ स्त्रीद्रव्य वृत्तिकामो या २.२८४ स्त्रियोऽपि स्युस्तथाभूता वृ परा ७.१६६ स्त्रीधनं तदपत्याना नारद १४.९ स्त्रियाऽप्येतेन कल्पेन मनु १२.६९ । स्त्रीधनभ्रष्टसर्वस्वा नारद १३.९४ स्त्रियो रत्नान्यथो विद्या मनु २.२ ४० स्त्री धनं च नरेन्द्राणां नारद २.७५ स्त्रियो वृद्धाश्च बालाश्च पराशर ७.३७ स्त्रीधनानि च ये मोहाद् आप ९.२६ स्त्रीकृतान्यप्रमाणानि नारद २.२२ स्त्रीधनानि तु ये मोहाद मनु ३.५२ स्त्रीकृतेषु न विश्वासः शाण्डि ३.१५३ स्त्रीधर्मयोगं तापस्यं मनु १.११४ स्त्रीक्षीरमाजिकं पीत्वा संवर्त १८८ स्त्रीनिषिद्धा शतं दद्यात् या २.२८८ स्त्रीगृहे गोगृहे वाथ वृ.गौ. ७.१२५ स्त्रीपात्र पतिपात्रे तु वृ परा ७.३८३ स्त्रीघातः शुद्ध्यते ऽप्येवं अत्रि स १७० स्त्रीपिण्डं भर्तृपिण्डेन स्त्री जनन्यस्त्रियः सर्वा वृ परा १.३४ स्त्रीपुंसयोस्तु संयोगे या ३.७२ स्त्रीजाते सर्वकार्येककर्तृत्वा कपिल ४११ स्त्रीपुंसयोस्तु सम्बन्धाद् नारद १३.२ स्त्रीजिताश्चानपत्याश्च वृ परा ८.४१ स्त्रीपुं धर्मो विभागश्च मनु ८.७ स्त्रीजीविते यत् दत्तम् वृ.गौ. ३.२१ स्त्री पुन्नपुंसक चेति वृ परा ३.१६ स्त्रीणामपि पृथक् श्राद्ध वृ परा ७.१३३ स्त्रीबालवृद्धातुराणामन्येषां शाण्डि १.२४ स्त्रीणामप्यर्चनीयः वृ हा ८.८० स्त्रीबालोन्मत्त वृद्धानां मनु ९.२३० स्त्रीणामष्टगुणः कामो वृ परा ६.५३ स्त्रीभिः भर्तृवच कार्य या १.७७ मनु ५.७२ स्त्रीमि हास्य कामजल्पं वृ हा ६.२०७ स्त्रीणामाजन्मशर्मार्थं वृ परा ६.१७ स्त्रीमध मांस लवण वृ हा ४.१७६ स्त्रीणामुद्वाह एको वै वृ परा ६.१७८ स्त्रीमुखं च सदा शुद्धं वृ परा ६.३३७ स्त्रीणायेमकशफोष्ट्रीणां वृ परा ६.३१९ स्त्रीयदा बालभावेन औ ९.१०१ स्त्रीणां कुरुते श्राद्ध व्या ११२ स्त्रीवृद्धबालकितव या २.७२ स्त्रीणां च बाल वृद्धानां वृ परा ८.७५ स्त्रीशूदपतितांश्चैव बृ.या. ७.१४७ स्त्रीणां च बाल-वृद्धानां वृ परा ८.९२ स्त्रीशूद्र पतिनानां शंख १८.१३ स्त्रीणां चूड़ान्न आदानात् पराशर ३.२४ स्त्री शूद विट् क्षत्र बधो या ३.२३६ स्त्रीणां चैव तु शूदाणां देवल ६१ स्त्रीशूदस्य तु शुद्ध्यर्थं पराशर १२.४ स्त्रीणां तु साक्षिणः स्त्रिय व १ १६.२४ स्त्रीष्वनन्तरजातासु मनु १०.६ स्त्रीणां रजस्वलानां यम ५६ स्त्रीषु रात्री बहिग्रामा नारद ९.१ स्त्रीणां रजस्वलानां वृ.या. ३.६४ स्त्रीसंपर्कादिकं सर्व वृ.वा. ५.२ जी Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी स्त्र्याम्यमात्यौ पुरं राष्ट्र मनु ९.२९४ स्थालीपाकस्य चाऽऽरम्भ आश्व २.१ स्त्र्यालोकालम्भविगम या ३.१५७ स्थाली पाकादथपुनस्त कण्व ५४९ स्थगरं सुरभि यं कात्या १७.५ स्थालैः सह चतुः षष्टि या ३.८५ स्थण्डिलेऽग्नि प्रतिष्ठाप्य वृ हा ५.१६४ स्थाल्यादीनि च पात्राणि आश्व २.६८ स्थण्डिलेऽभ्यर्चेनं वृ हा ५.११२ स्थावरंजङ्गमं श्रेष्ठं बृ.गौ. २०.१६ स्थलगो नार्दवासास्तु वृ परा २,२०६ स्थावरं न्यायमार्गेण लोहि ५४४ स्थलजोद कानि मनु ६.१३ स्थावरा कृमिकोटश्च मनु १२.४२ स्थलस्थेन तु कर्तव्यं व्या ३७५ स्थावरे क्रय दानादिकृत्ये । कपिल ६४० स्थानपालांल्लोकपालान विष्णु १.१६ स्थाविर्ये मोक्षामातिष्ठेत् वृ.गौ. १२.५ स्थानं तपस्विनां यच्च भार १५.५८ स्थितः अस्मि सर्वतः वृ.गौ. १.५८ स्थानं द्विजन्मा विधिवत् वृ परा १२.२५२ स्थितयोः परगोत्रत्वे लोहि २९४ स्थानं वीरासनं सक्त आंउ १२.४ स्थितः हि एकगुणाख्ये वृ.गौ. १.५५ स्थानलाभनिमित्तं हि नारद २.८६ स्थितायां येयमूढ़ा आंपू ४५२ स्थानादन्यत्र वा गच्छन् नारद १९.२७ स्थितो यत्र यथोक्तश्च । वृ परा ३२० स्थानान्तरगते बिम्बे वृ हा ६.४०० स्थितौ तस्याश्च वृ परा ५.३७ स्थानासनफलमवाप्नोति बौधा २.४.२३ स्थित्वापठन् स्मरन् भार १५.६७ स्थानासनाधं विचरेद औ ८.२८ स्थित्वा यथावदाचम्य भार ५.२८ स्थानासनाभ्यां विहरेद मनु ११.२२५ स्थित्वा समाहितमनाः भार १५.६० स्थानासेध कालकृतः नारद १.४२ स्थिरभेष्वर्कसंक्रान्तिहूया आंपू ६४० स्थापयित्वा चरुवह्नौ व २.६.२८२ स्थिरांगं नीरुजं तृप्त वृ परा ५.४ स्थापयित्वा तु भदभक्त्या वृ.गौ. ७.४३ स्थिरांग निरुजं दृप्तं पराशर २.५ स्थापयेत कुम्भमेकातु शाता ५.९ स्थूणाप्ररोहणं यत्साद वृ परा ११.१०२ स्थापयेत्क्षेत्रयध्येषु शाण्डि ३.७८ स्थूल फलस्य तूलस्य भार १५.७४ स्थापयेत्पादहस्तादि शाण्डि ३.८४ स्थूलसूत्रवतामेषा नारद १०.१४ स्थानीय मान्ततस्तस्मि वृ.गौ. ८.८८ स्थूलो वैश्वानरो नित्यं बृ.या. २.९२ स्थापितं प्रथमं पात्र आश्व २३.३८ स्थैर्घ्यं चतुर्थे त्वंगानां या ३.८० स्थाप्या भौमकला युक्तं ब्र.या. १०.७५ स्नपयित्वा चरु तत्र व २.३.७३ स्थाली च प्रोक्षणां दीं आश्व २.१८ स्नपयित्वाचरेत्तत्र व २.४.११६ स्थालीपाकं चाऽऽग्रयणं आश्व ३.१२ स्नातकव्रतलोपे च दिन वाधू १२८ स्थालीपाकं ततः शस्तं ब्र.या. ८.३४१ स्नातकानां तु नित्यं व १.१२.१२ स्थाली पाकं ततो हुत्वा ब्र.या. ८.३२ स्नातकाय सुशीलाय आश्व १५.३ स्थालीपार्क तथा धानं लोहि १३३ स्नातः कृतजप्यस्तदनु शंख १३.९ स्थालीपाकं पशुस्थाने कात्या १७.२५ स्नातं शिष्यं समानीय वृ हा २.११ म्बाला पितृश्राद्ध लोहि १२३ स्नातं शिष्यं समाहूय त हा २.५१ स्वालपाप गृमाश्च .गौ. १५.२३ स्नातं शिष्यं समाहूय वा २.१०८ Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ स्नात शुचिर्धीतवास संवर्त २०७ स्नात्वाऽऽमलक्या नद्यां वृ हा ५.३ ४१ स्नातः संतपणं कृत्वा शंख १३.१७ स्नात्वा यथोक्तं औ ४.१ स्नातः स्नाताय विप्राय वृ परा १०.२५२ स्नात्वा रजस्वला चैव अंगिरस ३५ स्नातस्नानं वा कुर्वीत कण्व १६१ स्नात्वा विधायार्चनं वृ परा ११.३२ स्नातस्य भोत्युत्ते ब्र.या. ८.१२४ स्नात्वा विष्णु समभ्यर्च्य व २.३.१७२ स्नातस्य सार्षपं तैलं या १.२८४ स्नात्वा वै संस्पृशेल्लिङ्गं ब्र.या. १२.५४ स्नाता रजस्वला या पराशर ७.१७ स्नात्वा शुक्लांबरधरः भार ११.५ स्नातुं प्रयान्तं विबुधा कण्व १५३ स्नात्वा शुक्लाम्बरधर वृ हा ३.४१ स्नातृसंचिन्तितं सर्वे वृ परा २.१०१ स्नात्वा शुचिद्विजोवात्र भार १८.९३ स्नात्व ब्र.या. २.१९९ स्नात्वा शुद्ध प्रसन्नात्मा वृ हा ८.२२० स्नात्वाऽक्षततिलै ल हा ४.३२ स्नात्वा शुद्धः शुचौ देशे भार १३.४ स्नात्वाग्निहोत्रजेनैव भार ५.४३ स्नात्वाश्वमेधावभृथे औ ८.२१ स्नात्वाचम्य ततः औ ९.९३ स्नात्वा संकल्प्य विधिना कण्व १४७ स्नात्वा च विधिवत्तत्र संवर्त २११ स्नात्वा सन्तर्प्य ल व्यास १.२१ स्नात्वा तिलोदकं व २.६.३ ४८ स्नात्वा सन्तर्प्य वृ हा ५.३४४ स्नात्वातीरं समागत्य व्या ६८ स्नात्वा सन्तर्प्य वृ हा ६.४४ स्नात्वा तु सूर्यमचिष्य ब्र.या. ८.८३ स्नात्वा संध्यासपर्यादि भार १८.२२ स्नात्वा तेनैव विधिना आपू ४८७ स्नात्वा संपूज्य देवेशं वृ हा २.९३ स्नात्वा त्रिषवणं नित्यं आप ९.३९ स्नात्वा सम्प्राश्य औ ६.४४ स्नात्वा नद्यांतडागे वृ हा ५.५५० स्नात्वा संप्रोक्ष्य पतितां शाण्डि २.६१ स्नात्वा नद्यां विधानेन । वृ हा ७.३०६ स्नात्वा स्नात्वा पुनः अत्रि ५.६२ स्नात्वा नधुकैश्चैव अत्रिस १८४ स्नात्वा स्नात्वा स्पृशेदेनं अत्रि ५.७० मात्या नित्यक्रियां आश्व १२.५ स्नात्वा स्वस्त्ययनं व २.३.१९१ स्नात्वानुपहतः प्यादौ भार ६.१४ स्नात्वैव वाससी बृ. या. ७.३८ स्नात्वाऽपरेनि कुर्वीत व २.३.२० स्नात्वैवं सर्वभूतानि बृ.या. ७.११५ स्नात्वा परेऽनि विधिना वृ हा ७.१४१ स्नापनं तस्य कर्तव्यं या १.२७७ स्नात्वा पीत्वा क्षुते पराशर १२.१७ स्नामन्दैवतैमन्त्रै बृह १०.२ स्नात्वा पीत्वा भुते या १.१९६ स्नान आर्द धरणीञ्चैव वृ हा ६.३५२ स्नात्वा पीत्वा च भुक्त्वा वृ परा ६.३४४ स्नानकर्मव्यशत्तस्तुधौतं व २.६.५३ स्नात्वा पीत्वा जलं वृ हा ६.३७९ स्नानकाले तु संप्राप्ते वृ हा ५.८६ स्नात्वा पीत्वा तथा भुक्त्वा संवर्त २० स्नानतः सर्वकर्माणि आंपू १६५ स्नात्वापीत्वा शतं भार ९.१५ स्नान द्वये नित्यमेव कण्व ५२ स्नात्वा पूर्ववदभ्यर्च्य वृ हा ७.२६४ स्नानदव्याणि च तथा भार ११.२४ स्नात्वा मध्याह्नसमये वृ हा ५.४२७ स्नानपानक्षुतस्पाप भार ४.३८ स्नात्वा मंत्रवदाचम्य ल हा ४.१२ स्नानमन्येषु कुर्वीत वन्य ८.१०५ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी स्नानमन्दैवतैः कुर्यात् व्यास ३.८ स्नानवस्त्रेणहस्तेन यो वाधू ९२ स्मानमब्दैवतैर्मन्त्रैः या १.२२ स्नानवस्त्रोपवीतेषु वृ हा ५.२०९ स्नानमात्र त कथितं आप ६७९ स्नानशत्रष्टितोयेन व २.६.१०८ स्नानमूलमिदं ब्राहां आंपू १६६ स्नानसंध्याग्निहोत्रादि कण्व ३२२ स्नानमूलाः क्रियाः सर्वाः वाधू ६९ स्नान सन्ध्याविहीना ब्र.या. १३.२७ स्नानमूलाः क्रियाः सर्वाः वाधू ९७ स्नानहीनो मलाशी बृ.या.. ४.५२ स्नान मौनोपावासेज्या या ३.३१३ स्नानहोमजपातिथ्यं बृ.या. ७.१२७ स्नानकालं च तद्धयान भार ९.४ स्नानचमनपानार्थ शाण्डि ४.१५३ स्नानं कृत्वा प्रारंभेच्च आंपू १६४ स्नानार्थण दयीदनु व २.६.१०३ स्नानं कृत्वावस्त्र वाधू ९५ स्नानादनन्तरं तावद् दक्ष २.१३ स्नानं गोदानिकं कण्व ४२२ स्नानादिकञ्च संप्राप्य लहा ४.२८ स्नानं तौ वरुण शक्ति __व्या १०० स्नानादि कृत कृत्य व हा ३.२४९ स्नानं त्रिषवणं कुर्वान् वृ हा ६.२२९ स्नानाद्याचार कृत्य विष्णु ६४ स्नानं त्रिषवणं चास्य संवर्त १३२ स्नानानि पंच पुण्यानि पराशर १२.९ स्नानं दानं जपंहोम अंगिरस १४ स्नानान्तं पूर्ववत् कृत्वा कात्या २३.१० स्नान दानं जपं होम ___ अत्रिस ३२३ स्नानान्तर देवपूजा वर्णन विष्णु ६५ स्नानं दानं जपो ध्यानं बृ.या. ७.१२८ स्नानार्थ प्रस्थितं विप्रं विश्वा १.८७ स्नानं दानं तपोहोम आए ६.३ स्नानार्थं मृतिका शुद्धा व २.६.१ ३२ स्नान नद्यादिबन्धेषु वृ चरा १०४ स्नानार्थ मृदमानीय ल हा ४.२४ स्नानं नैमितिक ज्ञेयं वाधू ५१ स्नानार्थ विप्रमायान्तं पराशर १२.१२ स्नानं प्रधानं भक्तानां शाण्डि २.१ स्नाना यदि मुंजीत औ ९.५४ स्नानं ब्राहाणसंस्पर्श अत्रिस २८४ स्लाने दाने च दे वृ परा ११.२८७ स्नानमन्तर्जले चैव बृ.या. ७.१६९ स्नाने दाने जपे होमे वाधू २१२ स्नानमब्दैवतैमन्त्रै बृ.या. ६.२९ स्नाने दाने भवेत् ब्र.या. २.१९२ स्नानमब्दैवतैर्मन्य बृ.या. ७.१ स्नाने दीपे तथा दाये व २.६.११८ स्नानमूलाः क्रिया बृ.या. ७.११६ स्नानेनैव भवेच्छुद्धि औ ६.४८ स्नानं मन्त्र तथा संध्या ब्र.या. ८.५६ स्नाननेनैव विशुद्धि व २.६.४८३ स्नानं रजस्वलायास्तु आप ७.१ स्नानोदकाय पाकाय कण्व ६०२ स्नानं वारुणिकं चैव आश्व १.१०८ स्नानोपवासनियम कपिल ५४८ स्नानं सन्ध्या मुक्तकाले विश्वा ३.७५ स्नापनं तस्यकर्त्तव्यं ब्र.या. १०.८ स्नानं सन्ध्यां जपं होमं वाधू २२४ स्नापयित्वा तदा कन्या आप ७.१० स्नानं संध्या जपो आश्व १.३ स्नापयित्वा विधानेन आंपू ७८ स्नानं स्पृष्टेन येन वृ परा ८.३११ स्नानपयेत् पञ्चगव्येन दा १५२ स्नातवस्त्रन्तु निष्पीड्य ल हा ४.५९ स्नापयेत्पञ्चगव्येन व २.७.१०८ स्नातवोचक कुर्याद वाधू ५ स्नापयेइम्पतीः पश्चात् शाता ३.५ Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ स्मृति सन्दर्भ स्नापयेद्विधिवत्पश्चात् व २.७.४८ स्पृश्यमस्पृशन्त्येवा शाण्डि १.१४ स्नापयेन् मंत्र रत्नेन वृ हा ५.१ ४० स्पृश्यास्तु सर्वमेवैते औ ६.६ स्नानपयेद्विषुवे भक्त्या वृ.गौ. १०.२५ स्पृष्टमन्त्यादिजातीनां व २.६.५१७ स्नाप्य पंचामृतैः वृ हा ५.१ ४१ स्पृष्टमन्नन्तु भुजानो बृ.गौ. १६.४५ स्नायाज्जलेन देवानां शाण्डि २.२१ स्पृष्टमात्र त्यजेत्तीर्थ व २.६.५२९ स्नायान्नदीषु शुद्धाषु ल व्यास १.३ स्पृष्टं रजस्वलाऽन्योन्यं अत्रिस २७८ स्नावानि मृत्योर्जुहोमि व २.२०.३२ स्पष्टं रजस्वलाऽन्योन्यं अत्रिस २७९ स्निग्धंपथ्यं तथा शुद्धं व २.५.५७ स्पृष्टं रजस्वलाऽन्योन्यं अत्रिस २८० स्निग्धं रम्यं गृहीत्वा व २.७.४ स्पृष्टं रजस्वलाऽन्योन्यं अत्रिस २८१ स्निग्धवर्ण महाबाहु वृ हा ५.९७ स्पृष्टा रजस्वला कौश्चित् यम ६२ स्नुषादुहितृपुत्राधान्य शाण्डि ३.७२ स्पृष्टा रजस्वला चैव यम ६१ स्नुषानामपि पुत्राणां पितृ कपिल २०६ स्पृष्टाश्च गाव शमयंति वृ परा ५.१० स्नुषायाकैकमधुरा पितर कपिल १८७ स्पृष्टास्पृष्टा नष्टसुता कपिल ५२६ स्नुषावापि सगोत्रा वृ परा ७.२८२ स्पृष्टेन तेन संस्नायाद् वृ परा ८.२०२ स्नुषा वा सोदरोवापि कपिल ६०५ स्पृष्टे लोचनयुग्मे शंख १०.१२ स्नेहपाशगणैवध्वा वृ.गौ. १.६२ स्पृष्ट्वा चोझ च दग्ध्वा पराशर ५.११ स्नेहाद्वा यदि वा __दा ११४ स्पृष्ट्वा दत्त्वा च मदिरां मनु ११.१४९ स्नेहाद्वा यदि वा पराशर ६.५३ स्पृष्ट्वा द्वादशसंख्या मार ७.१०५ स्नेहाद्वाद यदि वा लघुशंख ६२ स्पृष्ट्वा नधुदके स्नात्वा अत्रिस १८९ स्नेहाद्वा यदि वा लिखित ७७ स्पृष्ट्वा पादौ नमस्कुर्याद् आश्व १४.७ स्नेहांश्च घृततैलादीन् वृ परा ८.२०७ स्पृष्ट्वापो वीक्षमाणो कात्या १४.५ स्नेहेना वृ परा १२.४७ स्पृष्ट्वा भुवं पदाग्रेण शाण्डि ४.११५ स्नप्नेऽवगाहयेत्यर्थे ब्र.या. १०.३ स्पृष्ट्वा रजस्वला देवल ४१ स्पर्शनं चैव सर्वत्र व २.५.२५ स्पृष्ट्वा रजस्वला देवल ४२ स्पर्शमात्रः प्रकर्तव्य आंपू ४७२ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं पराशर ७.१३ स्पर्शमात्रेषु खननं व २.६.५१४ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं । पराशर ७.१४ स्पर्शमात्रेषु चण्डालैः व २.६.५१३ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं पराशर ७.१५ स्पर्शनाद्भिदूषिता बृ.या. ७.१५३ स्पपष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं पराशर ७.१६ स्पष्टमेव प्रभवति आंपू २२९ स्पष्टवा रजस्वलान्योन्यं वृ.या. ३.६५ स्पष्टं प्रत्यक्षमेस्त्तु न सर्वे कपिल ३ ४६ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं बृ.या. ३.६६ स्पस्तमथप्यंतसणचेद्या व २.४.५८ स्पृष्ट्वा रजस्वलाडयोन्यं बृ.या. ३.६७ स्पृशन्ति बिन्दवः बौधा १.५.१०५ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं । बृ.या. ३.६८ स्पृशन्ति बिन्दवः मन ५.१४२ यम् ५८ स्मृशन्ननामिकाग्रेण कात्या २८.१९ स्पृष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं यम ५९ स्रोदुच्छिष्टमुच्छिष्ट आश्व १.१६२ स्पष्ट्वा रजस्वलान्योन्यं बम ६० M रजस्वलाल्यो Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी स्पृष्ट्वा रजस्वला यान्तु ___यम ५७ स्यातां विप्रादिवर्णेषु भार १६.१७ स्पृष्ट्वाकृत्वा स्सावित्र्या भार ११.८५ स्यातां संव्यवहार्यो नारद १५.१० स्पृष्ट्वा सचैलं स्नात्वा वृ हा ६.३५६ स्यात्साहसं त्वन्वयवत् मनु ८.३३२ स्पृष्ट्वा स्नानत्वा हेम अत्रिस १९० स्यादेतत् त्रिगुणं औ ९.८३ स्पृष्ट्वैतानशुचि मनु ४.१४३ स्याद् यस्य दुहिता नारद १४.२६ स्फटिकेन्द्राक्षपद्या! ल व्यास २.३० स्यादोम्बीजं नमः वृ हा ३.२१८ स्फटिकेन्द्राक्षरुद्रः बृ.या. ७.१३७ स्युः पाल्या यत्रततस्ते वृ परा ५.१०६ स्पयशुपजिनधान्यानां या १.१८४ स्योनापृथिवीति व २.६.१३५ स्फ्यादीनां यज्ञपात्राणां वृ परा ६.३३३ स्योनापृथिवीति भौमं वृ परा ११.६१ स्मयं कृत्वा जगभर्ती कपिल ६ स्योनापृथिवीति मंत्रस्य वृ परा ११.३२४ स्मरणीयो न वाच्योऽयं लोहि १९५ म्रक्चन्दनादि ताम्बूलं वृ हा ५.२७८ स्मरन्नारायणं तिष्ठत् भार ५.४० प्रवद्यद् ब्राह्मणं तोयं अत्रिस ३९२ स्मार्तकर्माणि कुर्वीत ___ लोहि २६ सवन्तीष्वनिरुद्धासु बौधा २.३.६ स्मात वैवाहिके वह्नौ व्यास २.१७ स्वन्त्यादिष्वथाचम्य बृ.या. ७.१११ स्मार्तानां द्विगुणं कुर्यात् विश्वा १.५५ स्वेश्लाक्षिता शीघ्र व्या स २.३८ स्मार्तो द्वितीय बौधा १.१.३ स्रष्टा धाता विधाता वृ हा १.१० स्मिग्धासांदासुविदला 'भार ५.१३ स्रष्टा नियन्ता शरणं वृ हा ३.१०६ स्मृतयश्च पुराणानि प्रजा ४ स्रष्टो मोक्तासि कूटस्थो विष्णु म ६१ स्मृतिमत्साक्षिसाम्यं नारद २.२०७ सावं गर्भस्य विद्वासो वृ परा ८.३९ स्मृतिमान्मेधावी व १.२९.१० मावे मातुस्त्रिरात्र स्यात् दा १२७ स्मृतिसारं प्रवक्ष्यामि दा ४ मुक्खुवाज्याहुतेः शेष आश्व २.६२ स्मृतौ प्रधानतः प्रतिपति बौधा १.१०.३८ मुक्खुवौ हस्तमात्रौ आश्व २.२१ स्मृत्याचारव्यपेतेन या २.५ मुवस्य बिलमारम्य आश्व २.४२ स्मृत्युक्तमंत्रै विधिवत वृ परा ११.३३ सुवाग्रे घ्राणवत खातं . कात्या ८.१३ स्मृत्युक्तं वाथ सूत्रोक्तं कण्व ७० मुवेण चाऽऽज्यमादाय आश्व २३.५० स्मृत्युक्तविधिनाऽऽचम्य आश्व १.१०५ स्रोतसा भेदको यश्च मनु ३.१६३ स्मृत्यो विरोधेन्यायस्तु या २.२१ स्रोतसां सन्मुखोमज्जे ब्र.या. २.१८ स्मृत्वा जपेत् त्रिसंध्यासु वृ हा ३.३१८ स्वऋष्युक्तस्थले वाऽपि भार १६.२३ स्मृत्वात्रविक्रमं रूपं वृ हा ३.३७७ स्वकर्म ख्यापयंश्चैव वृ हा ६.२८० स्मृत्वा ब्रह्मैक्यसंधानं कण्व ७९ स्वकर्मणामनुषठानात् बृह ११.४५ स्यकारं विन्यसेत् वृ परा ४.८७ स्वकर्मणि च संप्राप्ते ल हा १.२९ स्यन्दनादिषु यानेषु वृ हा ६.४२ स्वकर्मणि द्विजस्थिष्ठन् नारद १८.४८ स्यन्दनाश्वैः समे मनु ७.१९२ स्वकर्मनिरतचैव वृ.गौ. ६.१७५ स्याच्वेद गोव्यसनं नारद ७.१३ स्वकर्मपरको भवे नारा ९.१२ स्याच्वेत्रियोगिनो व १.१७.५६ स्वकर्मस्थान् नृपो लोकान् वृ परा १२.८ Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२० स्वकर्म्मणा च वृषभै स्वकार्याय पुरा प्रोक्तां स्वकाले सायमाहुल्या स्वकीयशाखिनो मुख्य स्वकीयदेवताध्यानं पूजा स्व कुलं नरकं याति स्वगुरु पूजयत्येवमुप स्वगृह्येोक्तविधानेन स्वगृह्यक्तविधानेन स्वगोत्रनाम शर्माहं स्वगोत्रनामशर्मेति स्वगोत्रं भोजयेद्यस्तु स्वगोत्रम्मुख्यतो ज्ञेयं स्वगोत्रागतपुत्रस्य स्वगोत्राद्ग्रश्यते नारी स्वगोत्राद् भ्रश्यते नारी स्वगोत्रा सुभगानारी स्वगोत्रिणां सपिण्डानां स्वगोत्रिणो स्वान्यभ्रात्रे स्वगोत्री स्वसुताश्चैव स्वगोत्रे प्रवरेभिन्ने स्वगोत्रैककृतं भूमिदानं स्वगोत्रो वान्यगोत्र स्वग्रामज्ञातिसामन्तादाया स्वर्ग्यञ्च दशभिर्युक्तं स्वच्छन्दतः प्रदेयानि स्वच्छन्दं विधवागामि स्वच्छं सुशीतलं स्वजनस्यार्थे यदि स्वजनैः ज्ञातिभिस्सद्भिः स्वजनै दूषितः सद्भि स्वजातवुत्तमो दण्ड स्वजातिजायागमने स्वजातिमुद्वहेत् कन्यां स्वजातीपुरुषा जाता आप ८.१६ आंपू ३७१ कात्या २७.७ प्रजा ७२ कपिल ६७० ब्र. या. ८. १६४ विश्वा १.३७ वृ हा ६.१०३ वृ हा ६.१९६ भार ६.१११ ब्र. या. ४.७६ वृ परा ७.११३ कपिल ५०३ कण्व ७३१ लिखित २६ कपिल ४१० प्रजा ५७ कपिल ४८४ कपिल ४१५ ब्र. या. १२.५६ व्या १६२ लोहि ५१८. दा १४१ कपिल ५०० वृपरा २.११७ आंपू १०८८ या २.२३७ भार १४.४३ वा.१.१६.३२ लोहि ६०३ कपिल ८६२ या २.२८९ शाता ५.३६ वृ परा ६.३३ मार १६.३७ स्वजात्याति क्रमे पुंसामुक्तं स्वजीवनप्रकारं यो बाल्ये स्वज्ञानं हृदि सर्वेषां स्वत आत्मनि देवेश स्वतन्त्रांवातिहासा स्वतंत्रा सर्व एवैते स्वतंत्रोऽपि हि यत्कार्य स्वदक्षिणश्रुतिन्यस्य ब्रह्म स्वदत्तांपरदन्तां वा स्वदत्तां परदत्तां वा स्वदारे यस्य संतोष स्मृति सन्दर्भ नारद १३.७० आंपू १०५२ पु २३ शाण्डि ४.८० व लोहि ६७९ नारद २.३४ नारद २.३६ शाण्डि २.९ अ ९२ स्वदासमिच्छेद् यं स्वदितमिति पित्र्येषु स्वदेशघातिनो ये स्युस्तथा वृ.गौ. ६.१२६ व्यास ४.४ नारद ६.४० व १.३.६३ नारद १८.६७ विष्णु ३ या २.२५५ बृ.या. २.५५ शंख ७.१७ नारद ३.१ स्वदेश पण्याच्च स्वदेशपण्ये तु शतं स्वदेहमरणिं कृत्वा स्वदेहमरणि कृत्वा स्वद्रव्यं यत्र विस्रम्भान् स्वधरात्यन्तिके देशे स्वधर्मेण अर्जितायान्नम् स्वधर्मेण यथा नृणां स्वधर्मो राज्ञ पालनं स्वधर्मो विजयस्तस्य स्वधाकारेण निनयेत् स्वधानिनयनादेव मन्त्र स्वधा पितृभ्य इत्यन्नं स्वधा वर्जन्यभानेवमेक स्वधावाचन लोपो ऽस्ति स्वधाशब्दं पितृस्थाने स्वधाऽस्त्वित्येव तं स्वघोच्यतामिति ब्रूयादृस्तु वृ परा ७.२७६ व्यास ३.१८ ब्र. या. ५.८ आंपू ७८८ मनु ३.२५२ भार ९५.९१ स्वनाभिसदृशं ज्ञेयं स्वनामग्रहणेशिष्य स्वपल्यानीतसद्दीव वृ परा १२.४३ वृ.गौ. ६.३३ ल हा ७.१९ व १.१९.१ मनु १०.११९ कात्या १३.१३ लोहि ४२८ आश्व १.१२९ ब्र.या. ८.२३ कपलि २४६ Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६२१ स्वपात्रगतभिस्सैकग्रह लोहि ५१३ स्वयमेव तु दद्यान् मनु ८.१८६ स्वपात्रस्थोर्णकबल लोहि ४९७ स्वयमेव तु दातव्यं व २.४.९२ स्वपादं पाणिनां विप्रो आश्व १.१२ स्वयमेव विधानेन व्या ३६५ स्वपितुः पितृकृत्येषु कात्या १६.१२ स्वयमेव श्राद्धहेतो आंपू १०५८ स्वपितुर्वर्गसाम्येन जननी लोहि ३१८ स्वयं उत्पादित व १.१७.१३ स्वपितृभ्यः पिता दद्यात् कात्या १८.२१ स्वयं उपागतश्चतुर्थ व १.१७.३२ स्वपुत्रं न्यस्य तातैक कण्व ७०९ स्वयञ्च पाराणां कुर्य्यात वृ हा ५.५०३ स्वपुत्रं प्रददेत्ताभ्यां लोहि ६१ स्वयंकृतश्च कार्यार्थ मनु ७.१६४ स्वपुत्रस्वपितुर्गोत्रे कण्व ७१८ स्वयंकृष्टे तथा क्षेत्रे पराशर २.७ स्वपेद्भूमावप्रमत्ता व्यास २.४० स्वयं क्रीतश्च कथित लोहि १९२ स्वप्ने सिक्त्वा ब्रह्मचारी मनु २.१८१ स्वयं च वाहितैः क्षेत्र वृ परा ६.१ स्वप्याद् भूमौ शुची .. या ३.५१ स्वयं च वैदिकाश्चेति वदन्त कपिल ३० स्वभर्तृत्वैकसंबंधमात्रेण कपिल ५८४ स्वयं नीत्वा य यद्यान्नं वृ परा १०.३.३ स्वभाव एष नारीणां मनु २.२१३ स्वयं नीत्वा तु यत् दानं वृ.गौ. ३.३५ स्वभावयुक्तमव्याप्तम् लघुयम ९७ स्वयं नीत्वा विशेषण वृ.गौ. ३.८५ स्वभावाद् यत्र विचरेत् संम्वर्त ४ स्वयं पल्या भक्षयित्वा आंपू ५५७ स्वभावाद् विकृति या २१५ स्वयं भुक्त्वा हवि शेष वृ हा ५.३७५ स्वभावाभिरनुष्णाभि वृ परा ११४ स्वयंभूरित्युपस्थाय बृ.या. ७.१०२ स्वभाविमातभूराद्या वृ परा २.२० स्वयंभूर्यम् उवाच व परा ११.२४२ स्वभावेन हि विप्राणां व परा ५.१५४ स्वयं मृतं वृथा मांसं शंख १७.२९ स्वभावेनैव यब्रूयुः मनु ८.७८ स्वयं यद्यसमर्थश्च आंपू ८१७ स्वभ्रातृजादिपुत्रेषु पुत्रमेक कपिल ६७२ स्वयं वा अपि कर्त्तव्यातु ब्र.या. ८.३२१ स्वमण्डलादसौ सूर्य या ३.१२३ स्वयं वा पच्यते व्या २२२ स्वमनोऽभिमतं तीर्थ वृ परा २.१२१ स्वयं वा पूजयेद्भक्त्य' वृ.गौ.७.४४ स्वमप्यर्थ तथा नष्टं नारद ८.८ स्वयं वा शिश्नवृष्णा . मनु ११.१०५ स्वमातमहवर्गस्य कपिल ३६८ स्वयं वा शिश्नवृषणे औ ८.२४ स्वमांसं परमांसेन मनु ५.५२ स्वयं विप्रतिपन्ना वा व १.२८.२ स्वमेव ब्राह्मणो मुंक्ते मनु १.१०१ स्वयम्बिवुद्धश्च पटेचत्र विष्णु म ८२ स्वं कुटुम्बाविरोधेन या २.१७८ स्वयं विशीर्ण विदलं । नारद २.६१ स्वंताततात गोत्रस्य कण्व ७१० स्वयं व्रतं चरेत् देवल ३२ स्वम्मुवे नमस्कृत्य शंख १.१ स्वयं होमासमर्थस्य कात्या २१.१ स्वं लभेतान्यविक्री या २.१७५ स्वरतो वर्णतः सम्यक् वृ परा २.१५५ स्वं स्वं चरित्र शिक्षन्ते बृ.गौ. १४..४८ स्वरन्ध्रगोप्तान् वीक्षिक्यां या १.३११ स्वयमुक्तेरनिर्दिष्ट नारद २.१३६ स्वरवर्णसमीचीन ....... कण्व २११ स्ववमुक्तेरनुदिष्टः नारद २.१४० स्वरवर्णादिलोपोत्य , आब २.६६ Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२२ स्वरान्तं व्यंजनांत स्वराष्ट्रकृत धर्मस्य स्वाराष्ट्रे न्यायवृत्तः स्वरिति सामवेदः स्वरूपदर्शनादप्सु स्वरूपमात्मनोज्ञात्वा स्वरूपं जीवपरया स्वरूपादि त्रिवर्गस्य स्वरेण वर्णेन च स्वर्गद्वार विधानं वै स्वर्ग मौक्षञ्च कीर्तिञ्च स्वर्ग हापत्यमोजश्च स्वर्गस्थानां च सर्वेषां स्वर्गस्ताः पितरस्तस्य स्वर्गस्थाः पितरस्तस्य स्वर्गः स्वप्नश्च स्वर्गाण्यपि यशस्यानि स्वर्गार्थमुभयार्थ स्वर्गास्वर्गमहातेजा स्वर्गेऽपिदुर्लभं होतद् स्वर्गे स्वर्ग गतानान्तु स्वर्गीकसां पितॄणां स्वर्णस्तेयी च गोष्नी स्वर्ण रौप्यं च स्वर्णलाङ्गसंज्ञ तदपरं स्वर्ण शृङ्गी रौप्यखुरा स्वर्णस्तेऽपि तद्वत्स्या स्वर्णस्तेयी सकृद्विप्रो स्वर्णाद्याख्यातविधिना स्वर्णेन रत्नैरुचिरं स्वर्णोक्तवर्णायुवती स्वर्धुन्यम्भः समानि स्यु स्वर्भूर्भुव इति प्रोक्तो स्वर्यातस्य ह्यपुत्रस्य स्वर्लोकं कटिदेशे वृ परा २.१५३ वृ हा ४.१८१ मनु ७.३२ वृ हा ३.८७ व्या ३७ या ३.१७५ वृ.गौ. ८.९४ वा मनु १०.१२२ वृ.गौ. ७.११६ दक्ष ४.६ वृ.गौ. १५.८४ वृ परा ६.८२ च अत्रि ४.५ व २.६.६६ वृ हा १.५ वृ हा ३.९१ वृ परा ४.१९२ वृ.गौ. १२.३५ ब्र.या. ११.६७ या १.२.६५ वृ हा ६.१३८ वाधू ५० व_२.६.२७८ स्ववृत्त्योपार्जितं ब्र. या. ११.४१ कपिल ९२९ वृ. गौ. १०.६२ नारा १.१८ औ ८.१५ भार १५.१४६ भार १५.१०९ स्वर्लोक कटिदेशे स्वलंकृत समाचान्त स्वलंकृते मंडलेऽस्मिन् स्वलंकृतेषु विधिषु स्वललाटे पुनः ध्यायेत स्वल्पगंथप्रभूतार्थं स्वल्पत्वात्पतना भार १८.९२ कात्या १०.१४ वृ हा ७.५१ कण्व ७४७ वृ परा ४.३३ स्वल्पमन्नमुपादाय स्वल्पैरप्यन्नपानादाद्यै स्ववर्णवैष्णवानेव स्ववंशेऽस्याधिकारं च स्ववशे तस्य तिष्ठन्ति स्वविधानां तथा शान्ति स्ववीर्याद्राजवी योच्च स्ववृषं या परित्याज्या स्वशक्तयातः प्रदातव्यं स्वशक्त्या तर्पयित्वै स्वशरीरं भवेदार्थ स्वशरीरं हि गृध्राणाम् स्वशाखा विधिना स्वसुता अग्रजा तावन् स्वसुतागमने चैव स्वसृघाती तु बधिरो स्वसैन्ये गरदानादि स्वस्तरे सर्व्वमासाद्य स्वस्ति नोमिनीता स्वस्ति भवत्विति स्मृति सन्दर्भ वृ परा ४.१३१ वृ हा ११२ वृ हा ५.२४४ वृ हा ६.३६ वृ परा ११.१४४ शंखलि ११ वृ हा ६.२१३ ब्र.या. ४.१०६ शाण्डि ४.१०० वृ वृ हा ६.९२ लोहि ५२६ ब्र. या. ७.४४ परा १९.२८८ मनु ११.३२ व्यास ३.५१ कात्या ३.२ स्वशाखाश्रयमुत्सृज्य स्वशाखोक्तः प्रसुस्विन्नो कात्या १५.१३ स्वशाखोवत्तं परित्यज्य स्वशिल्पमिच्छन्नाहर्तु स्वसम्वेद्यं हितद् ब्रह्म व्या १७४ नारद ६.१५ दक्ष ७.२४ लोहि ४२२ स्वसा माता तथा श्वश्रूर्मात स्वसारं मातरं चापि यम २७ वृ परा ११.२६० वृ हा ५.२३५ भार ५.३८ वृ.गौ. ५.११४ ब्र.या. २.९३९ वृ परा ६.९६२ अत्रिस ३०२ शाता ५.१५ शाता २.२६ वृ परा १२.३५ कात्या १७.६ आश्व ७.२ ब्र. या. ४.१४० Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६२३ स्वस्ति गंदादिभिभक्त्या भार ११.४७ स्वादानाद्वर्णसंसर्गात् मनु ८.१७२ स्वस्तिवाचनपूर्वेण वृ हा ६.६४ स्वागुश जपेन्मत्र ब्र.या. ४.१४३ स्वस्ति वाचन पूर्वेण वृ हा ७.२८ स्वादुषं स इति ऋचा वृ हा ८.६६ स्वस्ति वाच्य द्विजैर्नीत प्रजा ४५ स्वादुषं सद इत्युक्त्वा आश्व २३.१०० स्वस्थकाले त्विदं सर्व दक्ष ६.१८ स्वाधीनां कारयेन्नारी शाण्डि ३.१५२ स्वस्थमृत्यु पिता यस्य ब्र.या. ५.२३ स्वाध्यायकाले गमनं शाण्डि ४.१८३ स्वस्थस्य मूढ़ा कुर्वन्ति पराशर ६.५५ स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च वृ हा ७.२० स्वस्मिन् यस्मागद् वृ परा ६.१७९ । स्वाध्यायतत्परश्शश्वत् शाण्डि ४.२२७ स्वस्य दक्षिणतः कन्या व २.४.४६ स्वाध्यायमभ्यसेत् वृ परा ६.१४० स्वस्य वामेऽञ्जली आश्व २.७१ स्वाध्यायं च यथाशक्ति बृ.या. ७.५८ स्वस्य शाखोक्तदंडा भार १५.१२४ स्वाध्यायं भोजनं होमं ब्र.या. १०.१५५ स्वस्य शाखोदितं प्राण विश्वा ६.३२ स्वाध्यायं श्रावयोत्पित्र्ये मनु ३.२३२ स्वस्यांग्गुष्ठेन्यसे भार ६.७१ स्वाध्यायं श्रावयेदेषां औ ५.६७ स्वस्वगृह्योदितैर्मत्रैः भार १६.१५ स्वाध्यायं श्रावये देषां ब्र.या. ४.१०२ स्वस्वनाम चतुर्थ्यत्त भार ६.११६ स्वाध्याय योगसम्पत्या शाण्डि ५.७१ स्वस्वनाम चतुर्थ्यतं भार ११.६३ स्वाध्यायाधजनाच्चैव बृ.या. १.३१ स्वस्वमंत्रेण सकलान् भार ११.६४ स्वाध्यायध्ययनच्चापि कण्व ४५१ स्वस्वमिनोरुकारेण वृ हा ३.८३ स्वाध्यायाध्ययनं व १.२.२० स्वस्वीकृतश्राद्धतिथि आंपू १०५९ स्वाध्यायाध्यायिनां व १.२६.१५ स्वस्वोक्त वर्णसूत्रेण भार १५.१३५ स्वाध्यायिनं कुलेजातं व १.३.२१ स्वागतेन च यो विप्रं वृ.गौ. ७.३० स्वाध्यायेन व्रतैीमैः मनु २.२८ स्वागतेनलोराजन्नासनेन वृ.गौ. ७.३१ स्वाध्यायेनक्र्येतर्षीन् मनु ३.८१ स्वागतेनाग्नयः प्रीता व्यास ४.११ स्वाध्याये नित्ययुक्तः मनु ३.७५ स्वागतेनाग्नयस्तुष्टा ल हा ४.५७ स्वाध्याये नित्ययुक्तः ___ मनु ६.८ स्वागते स्वस्तिवचने व्या १०९ स्वाध्याये भोजने विप्रः । भार १८.७४ स्वाचान्तः प्रयतोदेव शाण्डि ३.७३ स्वाध्यायैस्तर्पणैश्चैव ब.गौ. १४.५४ स्वाचार्य पूज्य तद्भक्त्या भार ११.१६ स्वाध्यायोत्थं योनिमंतं व १.६.२८ स्वाजातौ विहितास्साद्भि लोहि १६३ स्वानंशान् यदि दास्ते नारद १४.४२ स्वातन्त्र्याद् विप्राणश्यन्ति नारद १४.३० स्वानि कर्माणि कुर्वाणा अत्रिस १२ स्वातन्त्र्येण विनश्यंति वृ परा ६.६० स्वानि कर्माणि कुर्वाणा ___ मनु ८.४२ स्वातं वापी तथा कूप बृ.य. ४.१ स्वाभिप्रायकृतं कर्म आंउं १.१० स्वाती मृगेऽयरौहिण्यां ब्र.या. ८.२१८ स्वाम्यः स्वाभ्यस्तु मनु ९.११८ स्वात्मानमेव चात्मानं वृ परा १२.२८२ स्वामित्वेन सुहृत्वेन शाण्डि ४.३६ .स्वात्मेश्वराय हरये वृ हा ८.२६४ स्वामित्वं च तदाधिक्यं लोहि ७० स्वात् स्वागतंइति ब्र.या. ४.६० स्वामिना स्वामिनं कार्यकाले लोहि ७१३ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२४ स्वामिने याऽनिवेधैव या २.१६० स्वीयानामेव वस्तूनां लोहि ४७९ स्वामिन्यवस्थिते गेहे शाण्डि ४.२०९ स्वेक्षेत्रजौ पुत्रौ पितृ मनु ९.१६६ स्वामि प्रधानं नय-दुर्ग वृ परा १२.७९ स्वेऽग्नावेव भवेद्धोमो कात्या १९.१४ स्वां प्रसूतिं चरित्रं ___ मनु ९.७ स्वेदजं दंशमशकं मनु १.४५ स्वाम्यमात्यो जनोदुर्ग या १.३५३ स्वेन भर्ना सह श्राद्धं लघुयम ८० स्वाम्यं परस्वरूपं वृ हा १.१७ स्वेभ्यः स्वेभ्यस्तु मनु १२.७० स्वाम्युक्तवर्त्मना सर्वे कपिल ४७४ स्वेषु स्वेषु च कालेषु शाण्डि ३.९ स्वायम्भुवस्यास्य मनो मनु १.६१ स्वे स्वे धर्मे निविष्ठानां मनु ७.३५ स्वायम्भुवाद्या सप्तैते मनु १.६३ स्वै वैणैर्वा पटे लेख्या या १.२९८ स्वायोग्यता लोपयित्वा लोहि ६२५ स्वैरिण्यब्राह्मणी वेश्या नारद १३.७८ स्वारामोद्भूत कुसुमै भार १४.२२ स्वारोचिषश्चोत्तमश्च मनु १.६२ स्वार्थकसाधकं लुब्ध शाण्डि १.११६ हंसभासबर्हिणचक्रवाक बौधा १.१०.२८ स्वासनार्थं ततोदर्भा भार ११.१३ हंसमन्त्र समुच्चार्य गायत्री विश्वा ७.६ स्वासनासीनं संस्थाप्यं वृ परा ११.११ हंसं काकं बलाकञ्च संवत १४४ स्वासीम्नि दद्याद् हंसं तुर्य परं ब्रह्म इति बृ.या. २.११५ या २.२७५ स्वाहाकारं विना यस्तु विश्वा ८.५३ हंसं मद्गुं बकं काकं शंख १७.२३ हंसं श्येनं कपि गृधं स्वाहाकारवषट्कार कात्या १३.१२ वृ परा ८.१६३ स्वाहाकार शिर प्रोक्तं हंसयुक्तौः वृ हा ७.१५ विमानैः तु वृ.गौ. ५.७५ हंसयुक्तैः विमानः ते वृ.गौ. ५.१०५ स्वाहाकारों व षट्कारो व परा ६.८३ स्वाहा कुर्य्यान्न चात्रान्ने कात्या १७.१४ हंस शुचि मध्याहे ब्र.या. २.७६ स्वाहामपि च संप्रार्थ्य बु.या. ७.२८ आंपू ८८९ हंस शुचिषदिति स्वाहां स्वाधां वैश्वदेवे विश्वा ८.५१ हंस शुचिषदिति बौधा २.१.३३ स्वाहा स्यादभतयज्ञेऽपि आश्व १.१३३ हंस शुचि षदित्यादि वृ परा २.६१ स्वाहोदानाय सोकारं वृ परा ६.११८ हंस शुचिषु इत्येतत् ल व्यास २.२७ स्वीकरोति यदा वेदं हंस श्येनकपि क्रव्याज या ३.२७२ दक्ष १.७ पराशर ६.२ स्वीकुर्यादाशिषश्चापि हंससारस क्रौंचाश्च कण्व ६७४ स्वीकुर्याद् भ्रातृपुत्रादीन् हंस सारसः चक्रवाकः वृ परा ८.१६४ कण्व ७३७ स्वीकुर्वतां तत्परं च हंससारसयुक्तेन याति वृ.गौ. ५.११६ कण्व ६६३ स्वीकृत्य दण्डयित्वा लोहि २३६ हंसासिहासनं वह्नि विश्वा ६.६० भार १२.४ स्वीकृत्य शिरसा गृह्य हंसस्थां कांस्यका रक्तां आंपू ८८७ स्वीकत्यार्षद्वयं तेन आंपू ३ ४६ हतं दैवं च पित्र्यं दा ४२ हतं दैवं च पित्र्यं दा ४३ स्वीयमेव भवेन्नूनं लोहि २३० स्वीयसन्तातिविच्छत्तौ लोहि ५५५ हतं दैवं च पित्र्यं दा ४५ स्वीयस्य दानं कुर्यास्तु कपिल ४४७ हतः शूरो विपद्येत वृ परा ८.३० हतानां नृपगोविप्रैः या ३.२१ Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६२५ हताभ्यां दशशाखाम्या वृ हा ८.४१ हरिता यज्ञिया दर्भाः वृ परा ७.३३२ हतेषु रुधिरं दृश्यं पराशर ९.५० हरिता वै सपिंजलाः शुष्का कात्या २.३ हत्यान्यासं पुरा कृत्वा वृ परा ४.१२४ हरिदश्वो हयग्रीव आंपू ५१३ हत्वाकण्ठतालुगाभिस्तु या १.२१ हरिदया कुंकुमेन व २.६.१०७ हत्वा गर्भमविज्ञातमेतदेव ११.८८ हरिद्वाजलकुम्भेन कण्व६५४ हत्वा च शूदहत्याया अत्रिस २२५ हरिदामिश्रसलिलदेवता कण्व ६७१ इत्वा छित्वा च भित्वा मनु ३.३३ हरिदामिश्रिते नैव कण्व ६४५ हत्वा त्र्यहं पिवेत् क्षीरं अक्षि २२६ हरिदांविकिरन्तो वै वृ हा ७.२७५ हत्वा द्विजं तथा सर्प शंख १७.११ हरिदांविकिरन्मार्गे व २.६.३२४ हत्वा नकुलमार्जार पराशर ६.९ हरिद्रालाजपुष्पाणि वृ हा ६.९३ हत्वाऽपि स इमाल्लोकान् व १.२७.३ हिरदाशाककुकाष्टा भार २.१६ हत्वा लोकानपीमांस्त्री बृ.या. ७.१७५ हरिदासहितेनैव स्नात्वा व २.५.३२ हत्वा लोकानपीमांस्त्रीन् मनु ११.२६२ हरिदासार संम्भूतां व २.३.५५ हत्वा हंसं बलाकञ्च औ ९.११ हरिंध्यायन्नगदः स्यादेनसः वृ हा ५.२१२ हत्वा हंसं बलाकां च मनु ११.१३६ हरिं सम्पूजेत्तत्र भक्त्या व २.४.९० हन्तते कथयिष्यामि ब्र.या. १०.२९ हरिर्वं सूर्य संकाश वृ हा ७.११४ हन्तं ते कथयिष्यामि विष्णु म १३ हरिश्चन्द्रादिभिधैरैः कपिल ९२३ हन्ति जातानजातांश्च नारद २.१८७ हरिश्चन्द्रौ ह वै राजा व १.१७.३१ हन्ति जातानजातांश्च मनु ८.९९ हरिस्तु शंखं चक्रं च वृ हा ७.१२६ हन्तुकामोऽपमृत्यु च शंख १२.२१ हरेत्तत्र नियुक्तायां जात मनु ९.१४५ हन्त्यष्टमी हपाध्यायं बौधा १.११.४३ हरेदाजा धर्मपरः हरन्सद्यः कपिल ८५९ हन्त्याज्ञानं ततो हंस बृह ९.१०२ हरेः पादाकृतिं रम्य वाधू १०४ हन्यात् पवित्र हस्तरथं भार १८.७७ हरे प्रसादतीर्थाधं यत्नेन वृ हा ८.१४७ हयग्रीवं जगद्योनि वृ हा ७.१४३ हरेरनन्यशरणो वृ हा ४.१६९ हयमेधाय न शुद्धि वृ हा ६.२२१ हरेर्दास्यैकंपरमां वृ हा ७.३३७ हयैः गजै स्यन्दनैश्च वृ हा ६.३४ हरेर्नैवेद्यशेषेण व २.६.१८४ हयो चैवशुभैः वस्त्र वृ परा १०.१५३ हरेर्नोगतया कुर्यान्न वृ हा ७.२१ हरते दुष्कृतं तस्य __ औ ३.३५ हर्दिकं च ऋचा कला ब्र.या. १०.५७ हरते हरयेद्यस्तु वृहस्पति ३७ हर्यर्पित हरिदादि व २.६.३२२ हरतो हारयतस्तम ___ अ ९१ हर्पितहविष्यान्न वृ हा ५.३६१ हरन्ति रसमन्नस्य अत्रि ५.३ हर्यश्व वह्नि-यम- वृ परा १२.८८ हरन्ति स्पर्शनात् पापं वृ परा ५.१३ हर्यर्पितैश्च हृद्यान्नैः व २.६.३७१ हरन्त्यरक्षितं यस्माद् वृ परा ५.१७३ हर्षयेद् ब्राह्मणांस्तुष्टो . मनु ३.२३३ हरिणे निहते खंजः शाता २.५१ हलमष्टगवं धर्म षड्गवं आप १.२३ हरिता यज्ञिया दर्भाः कात्या २.२ हलमष्टगवं धर्म्य पराशर २.३ Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्मृति सन्दर्भ हलानकोटी रथचक्रमध्ये ब्र.या. ११.४९ हस्तत्रयेषुरेवत्यां मृगे ब्र.या. ८.१०३ हलाभियोगादिषु तु कात्या ५.७ हस्तदत्त न गृहणीयात व हा ५.२७५ हसे वा शकटे चैव दा १०१ हस्तदत्तानि चान्नानि व्या ३४८ हलेवा शकटे चैव लघुशंख ५२ हस्तदत्तास्तु ये स्नेहा लघुशंख २६ हवनं च प्रयत्नेन बृ.या. ४.३८ हस्तदत्तास्तु ये स्नेहा व १.१४.२६ हवनं भोजनं दानं बौधा २.३.६७ हस्तरात्रे च धौते व्या २०१ हविरन्तं सर्वकर्म कण्व ७७७ हस्तप्रक्षालनदूर्व व्या १४७ हविर्गुणा न वक्तव्याः बृ.या. ३.२८ हस्तप्रक्षालनादूर्व व्या १०५ हविर्गुणा न वक्तव्याः यम ३९ हस्तं प्रक्ष्याल्य यस्त्वाप अत्रिस १४९ हविर्गुणा न वक्तव्या व १.११.३० हस्तस्यव्यवधानेन व्या ८० हविर्ब्राह्मण कामाय ब्र.या. ९.२८ हस्तादूर्ध्व रवि यावत कात्या ९.२ हविर्यच्चिरात्राय मनु ३.२६६ हस्तावलीढनं कुर्यात् दा ४९ हविश्च जुहुयादग्न आश्व १.१३२ हस्ति कृष्णाजिना व परा ६.२२८ हविषापाशुकेनैव नित्य कण्व ३५९ हस्तिगोश्वोष्ट्रदमकों मनु ३.१६२ हविष्मतीरिमा आप वृ परा २.१३६ हस्निच्छायासु यद्दत्त शंख १४.३१ हविष्मत्या स्नापयित्वा अत्रि ५.४८ हास्तिनं तुरंग हत्वा व परा ८.१६१ हविष्मांस्तु यमभ्यस्य अत्रि २.६ हस्तिनश्चतुरंगाश्च मनु १२.४३ हविष्यञ्व सकृदमुक्त्वा वृ हा ६.१३७ हस्ते चोत्पद्यमाने वाब २.३.१ ४१ हविष्यन्तीयमभ्यस्य व १.२६.८. हस्तेनान्नादिमि कुर्गा ब्र.या. २.१ ४६ हविष्य भोजनो वाऽसौ तृ परा ११.१६० हस्तेनेत्य यत्तोय वृहा ८.१२४ हविष्यमन्नमुद्गान्नं वृ हा ७.१ ४६ हस्ते वदते चैव दा ५० हविष्यं भूमिपुत्रस्य वृ परा ११.७६ हस्तैश्चतुर्भिद्दडंस्यात् । मार २.४८ हविष्यं वाग्यतोस व २.६.३६२ हस्तौ कृत्वा सुसंयुक्ती लघुयम ९३ हरिव्यमुग्वाऽनुप्सरेत् मनु ११.७८. हस्ता तः। प्रयोक्तव्यो भार २.६३ हविष्यस्य द्विजोऽभावे वृ परा ४.१५६ हस्तौ पादावुपस्थञ्च शंख ७.२६ हलिष्यान्नं स्वयं वृ हा ५.४०० हस्तौ पायुरुपस्थश्च या ३.९२ हुविध्यानेन वै मांसं या १.२५८ हस्तौ सुसंयती कार्यो संवर्त १० हविव्यान् प्रातराशास्त्री व १.२७.१६ हस्तश्वरथयानानि व्यास ४५६ हविष्येषु यवामुख्यान कात्या ९.१० हाटकक्षितिगोरलगज कपिल ९४४ हवीष्यान्तीमभ्यस्य मनु ११.२५२ हाटकं कलधौतं भार ११.१० हव्यकव्य विदो ये चते वृ.गौ. १०.१०९ हानि तस्य तु कुर्वीत सर्वत ३७ हव्यं देवा न गृह्णन्ति दा ५८ हारकुण्डलकेयूर वृ हा ३.२३ हव्या गोघृतं ग्राहा व्या ३०६ हारिदबलतच्चूर्ण कण्व ३५५ हसन्यासं च यो भुङ्क्ते बृ.या. ३.३३ हारीतं सर्वधर्मज्ञ ल हारीत १.४ हस्तचित्रविष्टानुराधा भार १५.४६ हारीतस्तानुवाचाथ तैरेवं ल हा १.७ Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२७ श्लोकानुक्रमणी हारीतोऽप्युदाहरति व १.२.११ हिरण्यगर्भसक्तेन हास्यकारं नटं नाट्य आंपू ७५८ हिरण्यगर्भसूक्तेन हास्येऽअपि बहवो यत्र अत्रिस ३११ हिरण्यगर्भसूक्तेन हिंसा पवादवदांश्च शंख ३.११ हिरण्यगर्भस्याष तु हिंसायां निष्कृतिरियं शाता २.५७ हिरण्यगर्भः कपिलैरपान् हिंसारतं च कपटं अत्रि स ३४४ हिण्यगर्भी विष्णुश्च हिंसा स्तेया मृषावादो बृ.गौ. २२.९ हिरण्यदन्तेत्यनेन हिंसाहिंने मृदुकूरे __ मनु १.२९ हिरण्यदानं गोदान हिंम्रयंस्तुविधानस्त्री वृ हा ६.३३६ हिरण्यधान्य वस्त्राणां हिंनयन्त्रप्रयोक्तारं वृ हा ४.२१२ हिरण्यभूमि संप्राप्त्या हिंसा भवन्ति क्रव्यादा मनु १२.५९ हिरण्यभूमि लाभेम्यो हिकारं नासिकाग्रे तु वृ परा ४.९० हिरण्यमायुरन्नं च हितप्रियोक्तिभि वक्ता व्यास ४.६१ हिरण्यं चापि देवानां हिता नाम हि ता नाड्य बृह ९.१९४ हिरण्यं तुलसी तत्र हिताय सर्वलोकानां पृष्ट नारा ५.३ हिरण्यं दक्षिणायुक्तं हित्वा शिखोर्ध्वपुण्ड्रे व हा ५.६० हिरण्यं भूमिमश्वं हित्वा स्वस्य द्विजो आश्व २४.१९ हिरण्यं व्यापृतानीतं हीनजाति परिक्षीण __या २.४ हिरण्यरत्नकौशेय होनजातौ प्रजायन्ते या ३.२१३ हिरण्यवर्ण पुरुष हीनवर्णा तु या नारी शंख १५.९ हिरण्यवर्णा इतिचतुर्णी होनांगश्चातिरिक्तांगो औ ४.३१ हिरण्यवर्णो वेकेणेः हिनांगोवधिरो मूकोवकः ब्र.या. ८.३०१ हिरण्यशकलान्यस्य हिमवच्छतसंकाशं विष्णु १.३५ हिरण्य श्रृंगं वरुणं हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्यं मनु २.२१ हिरण्यादिचतनश्च हिरण्मयं च रत्नानि व २.७.६० हिरण्यार्थेऽनृते हंति हिरण्मय स भूतेभ्यो वृ हा ७.५० हिरण्याश्च रथंस्तदवद्धे हिरण्मयस्य गर्भाऽभूत बृह ९.६४ हिरण्याश्वारथं गृह्म हिरण्यकामधेनुं तु प्रति नारा १.२८ हिरण्याश्वस्य च तथा हिरण्यकामधेन्वादि अ १२६ हीनक्रियं निष्पुरुष हिरण्यकेभी भावोज्य ब्र.या, १.२४ होनगायत्रिका व्रात्या हिरण्यकेश विश्वाक्ष विष्णु १.५२ होनजातिस्त्रियं मोहाद हिरण्यकेशेति ऋचा वृ हा ८.३६ हीनन्तु प्रतिलोमा हिरण्यगर्भग्रहणे त्वष्ट नारा १.२६ होनं दु नैव कर्तव्यं हिरण्यगर्भदानस्य कपिल ८९६ होनं न विनियुंजीत हिरण्यगर्भसंज्ञस्य कपिल ४३९ होनवणे च य कुर्याद वृ हा ५.१२८ वृ हा ५.२९४ वृ हा ६.४८ वृ परा ११.३३७ बृ.या. २.६७ बृह ९.६२ वृ हा ८.२३ अत्रिस ६.४ नारद २.९२ मनु ७.२०८ या १.३५२ मनु ४.१८९ आंपू ८९४ व २.७.३० वृ परा १०.२०७ मनु ४.१८८ या १.३२८ नारद १५.१५ बृह ९.४५ भार १७.१६ ब्र.या. ८.२२४ कात्या २१.५ बौधा २.५.५ कण्व २४३ बौधा १.१०.३५ अ १०३ . नारा १.३० नारा १.२९ मनु ३.७ वृ परा ६.१६९ मनु ३.१५ त हा ४.१७७ वृ परा १०.१०७ वृ परा ४.३८ अत्रिस ३१२ Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ स्मृति सन्दर्भ हीनाट्ग (स्यात्) स्वयं भार १८.१८ हुत्वाऽथ पौरुषसूक्तं वृ हा ५.४५९ हीनांगं व्याधिसंयुक्तं वृ परा ५.३ हुत्वा मार्जयित्वाधैर व २.४.८५ होनांगाततिरिक्तांगान् मनु ४.१ ४१ हुत्वाऽथमूलमंत्रेण वृ हा २.५२ हीनातिरक्तं कर्तव्यं वृ परा ५.७५ हुत्वाऽथ वैष्णवै मंत्र वृहा ६.१२६ हीयते सातियाज्ञानि शाण्डि ५.३५ हुत्वा दत्वा च मुक्त्वा विश्वा ८.८१ हुंकारं ब्राह्मणस्योक्त्वा पराशर ११.४९ हुत्वानुमंत्रणं कुर्यात् औ ३.१०८ हुंकारं ब्राह्मणस्योक्त्वा मनु ११.२०५ हुत्वानुमंत्रणं कुर्यात् ल व्यास २.७६ हुंकारं ब्राह्मणस्योक्त्वा शंख १७.६० हुत्वा पुष्पांजलि वृहा ५.३३६ हुत भुक् पवनो जीव वृ परा १२.२६१ हुत्वा पुष्पाणि दत्वा च वृ हा ७.३०३ हुतं दत्त तथाजप्तं ब्र.या. २.२९ हुत्वा प्रयताजलि बोधा २.१.४२ हुतशेषमशेषाणां पात्रे व परा ७.२१४ हुत्वाभिषेचनं कुर्य्यान् शाता १.२० हुतशेषं न दातव्यं व्या २९९ हुत्वा मन्त्रेण जुहुयाइश व २.६.३३५ हुतशेषं प्रदद्यातु या १.२३६ हुत्वा मंत्रेण साहसं वृ हा ७.२३२ हुतशेषं स्वयं भुक्त्वा वृ हा ५.४६० हुत्वा लाजांस्तथा होमं आशव १५.४१ हुतशेषं हवि प्राश्य वृ हा ५.१७५ हुत्वा वैष्णवेनैव व हा ७.२०२ हुतशेषं हविश्चाऽऽज्यं आश्व २.७७ हुत्वा व्यातिभि २.३.१८० हुताग्निहोत्र कृतवैश्वदेव बौधा २.३.२३ हुत्वा सुगन्धि पुष्पाणि वृ हा ५.४८० हुताग्निहोत्रमसीनं अविसं १ हुत्वा स्त्रिया मुखंतत्र ब्र.या. ८.२८२ हुताग्निहोत्रमासीन अत्रि १.२ हुवेत्तदाहुतिस्सर्वास्तद्गोत्रा कपिल ३९६ हुताग्निहोत्र विधिवत् व्या २ हूयते च पुनर्वाभ्यां । विष्णु म ३५ हुतायां सायमा हुत्यां कात्या २१.२ हृतं प्रणष्टं यो दव्यं या २.१७५ हुताशतप्तं लोहस्य नारद १९.१५ हताधिकारां मलिनां या १.७० हुताशनवदास्यानि सुस्थि । भार १२.२० हत्कण्ठतालुकाभिश्च व्या ४९ हुताशनेन संस्पृष्टं पराशर ६.९ हत्तापः कीतिमरण वृ परा २.११८ हुतेन शाम्पते पाप बौधा २.३.६९ हत्वा धनानि दीनानां आंपू २६१ हुत्वाऽऽयं जुहुयात् वृहा ८.२४७ हृदयं गमाभिरभिः व १.३.३३ हुत्वाऽग्नीन् सूर्य देवत्यान् या १.९९ हृदयंगमभिरभिः व २.३.१०२ हुत्वाग्नौ विधिवतमंत्री . ल व्यास २.८८ हृदय धर्मशास्त्राणि भार १३.१७ हुत्वाग्नौ विधिवतो. मनु ११.१२० हृदयं सर्वलोकानां वृ.या. ३.१९ हुत्वा चरु घृतयुतं वृ हा ७.१५४ हृदयस्थस्य योगे न शंख ७.१५ हुत्वा जप्त्वा तथा स्तुत्वा शाण्डि ५.५ हृदयस्थे जगन्नाये शाण्डि ४.१९८ हुत्वाऽऽज्यं विधिवत् व परा ११.३०७ हृदयादि चतुर्वर्ण क्रमेणव विश्वा ६.५७ हुत्वा ततः समभ्यर्थ्य व २.३.१९२ हृदयादिषडंगेषु व हा ३.१८८ हुत्या तु मंत्ररलेन वृ हा ७.३११ ७.३११ हृदयादि षडङ्गेषु हृदयादि षडङ्गेषु व २.६.० हुत्वाऽथ कृष्णवमानं वृ परा ४.१८६ दये दक्षिणाग्निश्च वृपरा ६.११० या Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लोकानुक्रमणी ६२९ हृदये सर्वतीर्थानि बृ.गौ. २०.१७ हेमपुरुष संयुक्तां शय्या वृ परा ११.२३१ दये सर्वभूतानां जीवं बृह ९.२२ हेमभूमि तिलान् गाश्च वृ परा ६.२२५ इंदि कर्तुः च तद्वाक्यं वृ.गौ. २.९ हेममात्रमुपादय रूप्यं या ३.१४७ हदि ध्यानं सदा यस्मात वृ.या. २.१२३ हेमराजत शंखाना वृ परा ६.३३२ दिनाभौ तथा वाह्वी आश्व १०.२६ हेमरूप्यमयेपात्रे प्रजा १११ हदि निसृतनाडीनां वृ परा १२.२८६ हेमभंगफैरौप्यः या १.२०४ इदिस्था देवता सर्वा शंख ७.१६ हेमस्तेयी सुरापश्च शंख १७.३ इदिस्थाय च भूतानां विष्टम ८१ हेमहस्तिरथस्यैव ग्रहणे नारा १.३१ हद्गगतं तु चतुः प्राश्य न शण्डि २.३० हेमादिशिखरे रम्ये भार १.१ हृद्गताभिरफेनाभिः संवर्त १९ हेम्नातु सहयद्दत्तं शंख १३.१५ हृद्गगाभि पूयते विप्र औ २.१५ हेयभूतश्च स्मात लोहि २१३ हृद्गाभि पूयते विप्र मनु २.६२ हेषाशब्दकुर्बाणा वृ परा २.७९ हृद्गगाभि पूयते विप्र संख १०.४ हेषाशब्दमकुर्वाणाः वृ परा २.७९ धर्कश्चन्द्रमा सूर्यः शंख ७.१८ हैमं रौप्यं च तानं च शाण्डि ४.११० इधवाक्यं कृतज्ञ च शाण्डि १.१०२ हैमराजत कांस्येषु व्यास ३.६१ उद्यवेषा सदाभतरा शाण्डि ३.१३९ हैमे सिंहासने देवीं भार १३.२५ हृद्यवेषविशुद्धान्तैर्भगवद् शाण्डि १.१२० हैमैरेकादशकोटि शत भार ७.१३ इधाकाशगता सूक्ष्म बृ.या. ६.२३ हैरण्यगर्भ तदान (नं) गोमूत्र कपिल ९०९ धाकशागतो यो हि बृह ९.१६७ हैरण्यमण्डं संदीप्त बृह ९.६५ हृद्याकाशनिविष्टस्तु बृह ९.१५ हो इत्येष विवादो वै बृ.गौ. १५.४२ हयाकाशे तु यो जीवः बृह ९.२५ होतव्यं विधिवदाजन् बृ.गौ. १५.८८ हृद्यैः पुष्पैश्च जातीभि वृ हा ५.३३२ होतव्ये हुते चैव कात्या ९.१४ हव्योम्नि तपते होष बृह ९.२४ होमकालः प्रपद्येत आश्व १.६३ इज्जिह्वा क्रोडमस्थीनि कात्या २९.४ होमकाले मार्ग मध्ये कण्व ५५२ मूर्धाश्च शिखायाञ्च व हा ३.११९ होमद्वयात्यये दर्श कात्या २७.१० हषीकेशं त्रयीनाथं वृ हा ८.२७३ होमं धेनुं प्रसूताञ्च वृ हा ६.३३३ इष्टि पुष्टिस्तथा कात्या १.१२ होमपात्रमनादेशे कात्या ८.११ हेतुशास्त्राणि योऽधीते बृह १२.३० होमं कृत्वाऽथपूर्वेषु आश्व २३.२ हेमकाल्पित श्रृंगा च वृ परा १०.३६ होमं पुष्पांजलि वाऽपि वृ हा ७.६८ हेमधेनुप्रदानेन वृ परा १०.११८ होमं विना हापस्थानं कण्व ३६४ हेमनामं च तं कुर्यात् वृ परा १०.१३० होमशेष समाप्याथ आंपू ९० हेमन्तवनराजन्य आंपू ५९७ होम शेवं समाप्याथ व २.३.६९ हेमन्तशिरोश्च वृ परा ६.२९३ होमशेष समाप्याथ व २.३.१९३ हेमन्ते शिशिरे चैका वृ परा ६.२९४ होमशेषं समाप्याथ व २.६.३५८ हेमन्ते शिशिरे चैवं व २.३.१५९ होमशेष समाप्याथ वृ हा २.२१ Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३० होमशेषं समाप्याथ होमशेषं समाप्याथ होमश्चरेत्पुरतः काले होमः सद्य प्रकर्त्तव्यः व्याहती होमस्तत्र तु कर्त्तव्यः होमानि नैव संतप्त होमान्ते दक्षिणं दद्यात् होमान्ते ब्रह्मणे दद्यात् होमाभावे यथेच्छंस्यात् होमार्थे चाग्निहोत्रस्य होमे च शान्तिके होमे जप्ये विशेषेण होमेनैव तदा ज्ञेया वृ वृ हा ६.४९ वृ हा ८.२३५ आश्व १.६७ कपिल ३८७ संवर्त ४४ व २.१.३८ परा ११.३१२ आश्व २.७८ लोहि ६४६ वृ. गौ. ९.६४ ब्र. या. १०.१३९ ल व्यास १.८ आंपू ९.६६ होमे प्रदाने भोज्ये च होमोक्तधान्यजान्नं होमो दैवेवलिर्भूत होमो दैवोवलिर्भीत होष्यामीत्येव संकल्प्य हानुलोमा विवाह्यास्तु हुलादनी पावनी कामा ह्रस्वदीर्घप्लुतैर्युक्ता प्रणवं ड्रासयेच्च कलाहानौ ड्रासवृद्धी तु सततं ड्रासो न विद्येत यस्य ड्रीवेरं चन्दनं मुस्ता स्मृति सन्दर्भ मनु ३.२४० भार ११.१०६ ब्र. या. २.९ शंख ५.४ कण्व २९२ व २.४.९ आंपू ९२२ विश्वा २.३२ शंख १८.१२ बृ. या. ६.११ देवल २३ वृ हा ४.१०१ Page #636 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