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लोहितस्मृति
इसी प्रकार धर्मपत्नी से उत्पन्न पुत्र ही कर्मादि करने में ज्येष्ठता प्राप्त करेंगे क्योंकि दूसरी, तीसरी आदि से उत्पन्न पुत्र तो कामज है
अपुत्राया दत्तकविधानवर्णन २७०७
दत्तपुत्र की जातपुत्र के समान स्नेहभाजनता एवं सम्पत्ति अधिकार जिनके पुत्र न हों उन्हें अपने पुत्र के लिये प्रस्ताव करने वाले की प्रशंसा
जिसका पुत्र दत्तक लिया जाय उसे समाज के प्रमुख व्यक्तियों के सामने इष्ट, भाई-बन्धुओं को बुलाकर बिना पुत्र के माता को विधि-विधान से देना चाहिये। जो पुत्र समाज के गोत्र कुल में से दत्तकरूप में लिया जाय वास्तव में वह अपने पुत्र तुल्य है और अपुत्रक माता-पिता के लिये सर्वथा देवपंत्र्य कार्य के लिये ग्राह्य है । उस पुत्र का औरस पुत्रों के समान ही सारा अधिकार होता है
ज्येष्ठ पत्नी का ही सम्पूर्ण गृह्य अग्नि एवं पाक यज्ञादि में अधिकार एवं नित्य, नैमित्तिक तथा काम्य सभी कर्मों में उसी की
प्रधानता है
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यदि दत्तक पुत्र लेने के बाद उन माता-पिता के सन्तान हो जाय तो वह चतुर्थं भाग का स्वामी होने का अधिकार रखता है जब आदि धर्मपत्नी के न रहने व पुत्र न होने पर दूसरी पत्नी से जो पुत्र होगा वही ज्येष्ठत्व का अधिकारी होगा और अब - शिष्ट स्त्रियों की सन्तान कामज रहेगी
आत्मज सन्तान की ही औरसत्ता कही गई है
यदि कोई धर्मपत्नी के सन्तान न हुई उसने पति की इच्छा से दत्तक पुत्र लिया और संयोगवश फिर सन्तान हो गई तो दत्तक पुत्र को ज्येष्ठ पुत्र के रूप में बराबर भाग मिलेगा । यदि दत्तकपुत्र और औरस पुत्र उपस्थित हो तो औरस पुत्र को ही पिता-माता के और्ध्वदेहिक कर्म करने का अधिकार है ८६-६८ धर्मपत्न्याः गृह्याग्निकृत्येप्राबल्यम् २७१०
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