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________________ ६८ वृहद पाराशर स्मृति सांसारिक ऐश्वर्य को विनाशवान समझकर उसमें आस्था न करें। भाग्य और पुरुषार्थ के सम्बन्ध में विवेचना की गई है । दुष्टों को दण्ड से दमन करना, राजा को प्रसन्नमूर्ति रहना चाहिए क्योंकि राजा सब देवताओं के अंश से बना हुआ है ७२-६५ __ वानप्रस्थ भिक्षा धर्म वर्णनम् : ९४७ वानप्रस्थी के नियम तथा उसके कर्तव्यों का वर्णन आया है । वान प्रस्थ को अपने यज्ञ की रक्षा के लिए राजा को कहना चाहिए वानप्रस्थी को यज्ञ आदि कर्म करने का विधान और उसको भिक्षा लाकर आठ ग्रास खाने का नियम ६६-१२० वेदान्त शास्त्र को पढ़कर यज्ञविधि को समाप्त कर संन्यास में जाने का नियम एवं संन्यासी के धर्म, दिनचर्या आदि का वर्णन तथा उसको निर्भयता, निर्मोह, निरहंकार, निरीह होकर ब्रह्म में अपनी आत्मा को लीन करना १२१-१४४ ___ चतुर्णामाश्रमाणां भेववर्णनम् : ६५१ ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी और संन्यासी के भेद बताए हैं । ब्रह्म चारी के भेद प्राजापत्य, नैष्ठिक इत्यादि गृहस्थ के चार भेदशालीन यायावर इत्यादि, वानप्रस्थ के भेद-वैखानस, उदुम्बर इत्यादि, संन्यासी के भेद-हंस, परमहंस, दण्डी इत्यादि तथा उनके धर्मों का निर्देश १४५-१७४ योग वर्णनम् : ९५४ गर्भ में देहरचना और उससे वैराग्य, यह बताया है कि आत्मा देह से भिन्न है । अनेक प्रकार के कर्मों का वर्णन दिखलाया है कि कर्म के अनुसार देह बनती है । शब्द ब्रह्म का वर्णन और प्राण, योग सिद्धि , दीर्घायु का वर्णन । प्राणायाम का वर्णन, पूरक, रेचक, कुम्भक और प्रत्याहार के अभ्यास का वर्णन, अग्नि, वायु जल के संयोग से शुद्धि १७५-२४२ प्रणवध्यान, ध्यानयोग, योगाभ्यास वर्णमम : ६६१ ज्ञान योग और परम मुक्ति का वर्णन, भगवान का ध्यान एवं प्रणव का ध्यान जानना और उसमें भक्ति का वर्णन, ध्यान के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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