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वृहद पाराशर स्मृति
तड़ागादि विधि वर्णनम् : ६२३
तड़ाग, कूप, वापी, इनकी प्रतिष्ठा का विधान । उपर्युक्त दूषित होने पर इनकी शुद्धि का विधान और माहात्म्य होमविधि वर्णनम् : ६२७
लक्ष होम, कोटि होम की विधि इन दोनों में कितने ब्राह्मण और कैसा कुण्ड इनका वर्णन तथा लक्ष और कोटि होम का आहवनीयद्रव्य, अभिषेक मन्त्र, अभिषेक विधान, आचार्य ऋत्विक् इनकी दक्षिणा का विधान और इसका माहात्म्य । सब प्रकार की आपत्तियों को दूर करने वाला और राष्ट्र के सब उपद्रवों को दूर करने वाला होता है
पुत्रार्थ पुरुषसूक्त विधान वर्णनम् : ६३२
जिस स्त्री के सन्तान न हो अथवा मृतवत्सा हो उसको सन्तति के लिए त्रैमासिक यज्ञ जो कि शुक्ल पक्ष में अच्छे दिन पर दम्पति द्वारा उपवास कर पुत्र कामना के लिए किया जाता है उसकी विधि एवं मन्त्र
शान्ति विधि वर्णनम् : ९३४
प्रत्येक ग्रह के मंत्र एवं ऋषि पूजन विधान, वैदिक सूक्तों का वर्णन ३१४-३४७ १२. राजधमं वर्णनम् : ६३८
राजा को देवता के समान बताया गया है
राजा को प्रजा की रक्षा का विधान तथा राजा को राज्य संचालन के लिए षडगुण, सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संश्रय, द्वेधीकरण तथा रहस्यों की रक्षा तथा अपने समीप कैसे पुरुषों को रखना इसका वर्णन
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राजा को जहां तक हो लड़ाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि युद्ध से सर्वनाश होता है
जब युद्ध से न बचे उस समय व्यूह रचना आदि का वर्णन पुरुषार्थ और भाग्य दोनों को समान दृष्टिकोण रखकर कार्य करना
चाहिए
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