SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ "अश्वत्थमेकं पिचुमन्दमेकं न्यग्रोधमेकं वश विचिणोश्च । षट् चम्पर्क तालशतत्रयं च पञ्चाम्रवृक्षं नरकं न पश्येत्" ॥ इतने वृक्षों को लगाने से नरक में नहीं जाते हैं । लगाये हुए वृक्षों ३८३ के फल पक्षी जितने दिन खाते हैं उतने दिन स्वर्ग में रहते हैं ३७६-३८२ जितने फूल के वृक्ष लगाता है उतने दिन तक स्वर्ग में रहता है। विभिन्न प्रकार के वृक्ष और पुष्पवाटिकायें अपने हाथ से लगाने से स्वर्ग गति का माहात्म्य है। ११. विनायकशान्तिविधि वर्णनम् : ६०३ शान्ति प्रकरण यथा - विनायक शान्ति का प्रकरण है जब तक विनायक शान्ति नहीं होती तब तक ये लिखित दुःस्वप्न दर्शन होते हैं यथा रात्रि में निशाचर, जलावगाहन इत्यादि इसके बाद उसके स्नान का वर्णन हवन का विधान भगवती पार्वती का स्तवन मन्त्र आचार्य दक्षिणा इत्यादि वृहद पाराशर स्मृति, ग्रहशान्तिविधि वर्णनम् : १०६ ग्रहशान्ति - ग्रहमण्डप, ग्रहों के जप मन्त्र, ग्रहों का पूजोपचार, ग्रहदान आदि नवग्रह का पूजन एवं माहात्म्य अद्भुत शान्ति वर्णनम् : ६११ घर के उपद्रव, एवं खेती में अपाय यथा सरसों के वृक्ष में तिल, एवं जल में अग्नि, ईंधन इत्यादि, गाय, बल के शब्द से बोले; कौवे गृह में जाने लगे, दिन में तारे दिखना, मकान पर गुद्ध इत्यादि का बैठना, ऐसे ऐसे उपद्रवों की शान्ति एवं उपचार रुद्रपूजाविधि वर्णनम् : ६१४ रुद्र की पूजा का विधान और उसके मंत्र शान्ति वर्णनम् : ६१६ रुद्र शान्ति का सम्पूर्ण विधान बताया है । तथा कीर्ति बढ़ती है उपद्रवों की शान्ति होती है । मृत्युञ्जय का हवन बिल्वपत्रों से Jain Education International रुद्र शान्ति से आयु For Private & Personal Use Only ३८६ १-८ ६-२१ २२-२५ २६-३० ३१-३३ ३४-६५ ८६-१०६ १०७-१५८ १५६-२०२ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy