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________________ नारदीय मनुस्मृति १. व्यवहार दर्शन विधिः : २५० विषय उस समय सब मनु प्रजापति आदि जिस समय राज्य कर रहे सत्यवादी थे और जब धर्म का ह्रास हुआ तो नियन्त्रण के लिए व्यवहार की प्रतिष्ठा की गई । इसी के लिए राजा दण्ड नीति का धारण करने वाला बनाया गया व्यवहार के निर्णय में साक्षी और लेख दो बातें रक्खी गईं । जब दो पक्षों में विवाद हो तो साक्षी और लेख का विधान हुआ जितने प्रकार के व्यवहार और वाद-विवाद होते हैं उनका वर्णन विवाद का मौलिक कारण काम और क्रोध विवाद के निर्णय की विधि अर्थ शास्त्र और धर्मशास्त्र के बीच मतभेद में धर्मशास्त्र की मान्यता कोई भी सन्देह हो तो राजा द्वारा निर्णय कराये जाने का विधान विनयन का प्रकार लेख और गवाही (साक्षी) की सत्यता की जांच राजा को व्यवहार के निर्णय में सहायता के लिए संसद (जूरी) का विधान सभासद् (निर्णय सभा के ) का नियम । ठीक बात को छिपाकर या बढ़ाकर बोलने का पाप सभासद को बात बढ़ाने और छिपाने में पाप का संस्पर्श सभा का वर्णन २. ऋणादानं प्रथमं विवादपदम् : २५८ ऋण के सम्बन्ध में समय चले जाने पर भी पुत्र को बाप का ऋण चुका देना चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only श्लोक १-२ ३-६ ६-२० २१ २५-३२ ३३-३४ ४० ४४-५० ५१-६४ ६८-७२ ७३ ७४ ५० १ ८-६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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