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________________ प्रायश्चित्त वर्णनम् : २३१ सान्तपन व्रत, कृच्छ्र व्रत, चान्द्रायण आदि का वर्णन तपमहस्वफल वर्णनम् : २३४ तपस्या से पाप नाश अक्षर प्रणव को जप करने से सर्वपाप क्षय १२. कर्मणा शुभाशुभफल वर्णनम् : २३७ वाचिक, शारीरिक और मानसिक कर्म का वर्णन वाणी के पाप से पक्षियों का जन्म, शरीर के पाप से स्थावर योनि और मन के पाप से शारीरिक दुःख होते हैं । सत्त्व रजस् और तमस् तीन गुणों से नाना प्रकार के पाप तीनों गुणों का सामान्य जीवों में लक्षण जिन कर्मों के करने से संकोच और लज्जा होती है। तमोगुण है जिस से संसार में ख्याति होती है उसे राजस् कहते तामसी कर्म की गति राजसी कर्म की गति सात्त्विक कर्म की गति कृतकर्मफल वर्णनम् : २४२ ब्राह्मणत्व हरने से ब्रह्मराक्षस की गति पृथक्-पृथक् वस्तुओं की चोरी करने से भिन्न-भिन्न गति चोरों को असि पत्र आदि नरक के दुःख प्रवृत्ति और निवृत्ति कर्मों का वर्णन Jain Education International धर्मनिर्णय कर्तृक पुरुष वर्णनम् : २४६ स्वराज्य की यथार्थ परिभाषा राज्य शासन, राष्ट्र और सेना के लिए वेदधर्म की आवश्यकता ब्राह्मण को तपस्या और ब्रह्मविद्या से मोक्ष घर्म की व्यवस्था कौन दे सकता है दस हजार पुरुषों की तुलना में एक आत्मज्ञानी का अधिक मान्य है आत्म ज्ञान अध्यात्म जीवन का निरूपण For Private & Personal Use Only मनुस्मृति २२३-२३१ २४२ २६६ ४-६ १०-२६ ३४ ३५ ३६ ४२-४४ ४७ ४५-४६ ६० ६१ ७५ ८८ ६ १ ६७-१०० १०४ १०८ ११३ ११६.१२६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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