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मंत्र, हयग्रीव मंत्र तथा षोड़शाक्षर मंत्र आदि अनेक वैष्णव मंत्रों का उद्धरण, उनके विनियोग, न्यास ध्यान, जप विधि, शंख, चक्र पूजन और भगवान विष्ण ु के पूजन आदि का सुन्दर वर्णन किया है
४. प्राप्तकाल भगवत् समाराधन विधिवर्णनम् : १०५० प्रातःकाल उठने का विधान, शौच से निवृत्त हो वैष्णव धर्म के अनुसार तुलसी और आंवले की मिट्टी को अपने बदन पर लगाकर मार्जन करने और स्नान करने का विधान तथा मंत्रों का विधान बताया है
वृद्धहारीत स्मृति
विष्णु का पूजन और विष्णु को कौन-कौन पुष्प चढ़ाने चाहिए एवं षडक्षर मंत्र का विधान
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प्राप्तकाल भगवत् समाराधन विधौ कृषिवर्णनम् १०६५ पुराणों का पाठ, वैष्णव पूजा का विधान, तामस देवताओं का वर्णन और द्रव्य शुद्धि का वर्णन आया है। खेती करना, पशु का पालन करना सबके लिए समान धर्म बताया है । चोरी करना, परस्त्री हरण, हिंसा सबके लिए पाप है
प्राप्तकाल भगवत समाराधनविधौ राजधर्मवर्णनम् : १०६७ राजधर्म का वर्णन, दण्डनीति विधान - प्रायः वही है जो याज्ञवक्य में हैं । इसमें विशेषता यह है कि धर्मच्युत को सहस्र दण्ड विधान बताया है । स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले का अंगच्छेदन, सर्वस्वहरण और देश निष्कासन बताया है युद्ध का वर्णन और युद्ध में राज्य जीतकर उसे अपने आधीन कर राज्य समर्पित कर देना इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है एवं विजय की हुई भूमि सत्पात्र को देनी चाहिए । सत्पात्र के लक्षण - तपस्या और विद्या को सम्पन्नता है राज्यशासन का विधान कर लगाना, याचित, अनाहित और ऋणदान देने का विधान, पुत्र को पिता का ऋण देना, स्त्री धन की रक्षा, पतिव्रता स्त्री का पालन, व्यभिचारिणी को पति के धन का भाग न मिलने का वर्णन और बारह प्रकार के
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