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________________ वृद्धहारीत स्मृति पुत्रों का वर्णन इस तरह संक्षेप में राजधर्म और भागवत धर्म की जिज्ञासा लिखी है २२४-२६५ ५. भगवन्नित्यनैमित्तिक समाराधन विधिवर्णनम् : १०७५ राजा अम्बरीष ने मनु, भगु, वशिष्ठ, मारीचि, दक्ष, अङ्गिरा, पुलः, पुलस्त्य, अत्रि इनको जगत् गुरु कहकर प्रणाम किया और वह परमधर्म पूछा जिससे संसार के बन्धन से छुटकारा हो १-६ उत्तर में परमधर्म इस प्रकार बतायाः-भगवान वासुदेव में भक्ति और उनके नाम का जप, भगवान को उद्देश्य कर व्रतादि, स्वदार में प्रीति दूसरी स्त्री में लगन न हो. अहिंसा और भगवान का दास होकर रहना आदि । मेरा स्वामी भगवान है और मैं उनका दास हूं यह धारणा रखे। यही भगवत् प्राप्ति का मार्ग है और इसके अतिरिक्त सब नरक का मार्ग बताया है वैष्णव धर्म का माहात्म्य और अपने को भगवान का दास समझना १७-४० तप्त शंख चक्र का चिह्न जिन पर लगाया गया उन ब्रह्मचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी और यतियों का नित्य कर्म और वर्णाचार, पूजन, जप, उपासना का विधान ४१-२४६ यति एवं वानप्रस्थ का रहन-सहन तथा मन से अष्टोत्तर षट् मंत्र का जप, उनका धर्म, सन्ध्या का विधान, वैश्वदेव और भूत बलि का विधान, दिनचर्या संस्कार तथा पुत्रोत्पत्ति का विधान २४७-३०२ वैष्णवों को प्रातःकाल में स्नान कर लक्ष्मीनारायण के पूजन की विधि बताई है । भगवान को पायस चढ़ाकर पुष्पाञ्जलि देकर द्वादशाक्षर जप करने का विधान आया है ३०३-३१३ मन्दिर में जाकर पूजन और द्वादशाक्षर मन्त्र से पुष्पाञ्जली देना ३१४-३२७ वैशाख, श्रावण, कार्तिक, माघ, इन मासों में जिस प्रकार भगवान विष्ण, का पूजन तथा विष्णु के उत्सवों का वर्णन आया है और पुराण पाठ आदि भगवान के पूजन कीर्तन के अनेक प्रकार के विधान बताये हैं ३२८-५६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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