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________________ वृद्धहारीत स्मृति ६. भगवतः यात्रोत्सवर्णनम् : ११२७ भगवान के महोत्सव की विधियां जो कि अपने आचार के अनु सार की जाती हैं जिनसे अनावृष्टि आदि उत्पात तथा महारोग दूर होते हैं । संवत्सर प्रति संवत्सर या प्रति ऋतु में महोत्सव करने का विधान, इन महोत्सवों में मण्डप के सजाने की विधि और नगर कीर्तन यज्ञ आदि की विधि, किस दशा में किस सूक्त का पाठ करना बताया गया है । भगवान को नीराजन कर शय्या में सुलाना उसके मंत्र, विस्तार से बृहत्पूजन की विधि, श्राद्ध का वर्णन और श्राद्ध करने पर नारायणबलि का विधान सात्विक, राजसिक, तामसिक प्रकृति का वर्णन और पाप के अनुसार नरक की गति और उन नरकों के नाम १५६-१७१ महापातकादि प्रायश्चित्त वर्णनम् ११४३ पापों का वर्णन १७२ महापाप जिनका कि अग्नि में जलने के अतिरिक्त और कोई प्राय श्चित्त नहीं। द्वादशाक्षर मंत्र के जप से पापों का नाश और शुद्धि १७३-२४५ रहस्य प्रायश्चित्तवर्णनम् ११५३ सम्पूर्ण प्रकार के पापों की गणना बतला कर उनका प्रायश्चित, व्रत, जप, दान आदि बताया है। इसी प्रकार गुप्त पापों से छुटकारा जिस तरह हो सके उनका प्रायश्चित्त और दान तथा भगवान का मन्त्र जप आदि २४६-३५० महापापादि प्रायश्चित्त प्रकरण वर्णनम् ११६० रजस्वला के स्पर्श से लेकर बड़े-बड़े पापों की निवृत्ति के लिए वापी कूप, तड़ाग, वृक्ष लगाने का माहात्म्य और वैकुण्ठनाथ विष्णु भगवान के पूजन का माहात्म्य ३५१-४४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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