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________________ वृद्ध हारीत स्मृति १. पञ्चसंस्कार प्रतिपादनवर्णनम् : ६६४ राजा अम्बरीष हारीत ऋषि के आश्रम में गए। वहां जाकर हारीत से परम धर्म, वर्णाश्रम धर्म, स्त्रियों का धर्म तथा राजाओं के लिए मोक्ष मार्ग पूछा। उपर्युक्त प्रश्न के उत्तर में हारीत ने कहा कि मुझे जो ब्रह्माजी ने बताया है वह मैं आपको कहता हूं । नारायण वासुदेव विष्णुभगवान सृष्टि के विधाता हैं अतः उन भगवान का दास होना ही सबसे बड़ा धर्म है ७-१६ मैं विष्णु का दास हूं यही भावना चित्त में रखना । नारायण के जो दास नहीं होते हैं वे जीते जी चाण्डाल हो जाते हैं । इसलिए अपने को भगवान का दास समझकर जप पूजादि करे, नारायण का मन से ध्यान कर उनका संकीर्तन करे और शंख, चक्र, ऊर्धपुंड धारण करे यह दास के चिह्न हैं। जो वैष्णव शंख, चक्र धारण करता है वही पूज्य है और वही धन्य है २. वैष्णवानाम् पुण्ड नाम, मंत्र तथा पञ्जासंस्कारवर्णनम् : ९९७ पंच संस्कार शंखचक्र चिह्न धारण ऊर्धपुण्डादि की विधि, वैष्णव सम्प्रदाय की दीक्षा, उसका माहात्म्य, वैष्णव सम्प्रदाय की बालक की पंच संस्कार विधि बताई गई है ३. भगवन् मंत्रविधान वर्णनम् : १०१२ अम्बरीष राजा ने हारीत ऋषि से वैष्णव मन्त्रों का माहात्म्य तथा विधि पूछी ; इसके उत्तर में हारीत ने बड़े विचार के साप पंचविंशति अक्षर का मन्त्र, अष्टाक्षर मंत्र, द्वादशाक्षर १-१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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