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भोजन करने के अनन्तर दिन में कोई इतिहास, पुराण आदि की पुस्तकें पढ़नी चाहिये
प्रातःकाल एवं सायंकाल केवल दो समय ही गृहस्थी को भोजन करना चाहिये और बीच में कुछ नहीं खाना चाहिये अध्याय काल ( वह दिन जिनमें पुस्तकों को नहीं पढ़ना) का वर्णन गृहस्थी को सुवर्ण गौ एवं पृथिवी का दान करना चाहिये ५. वानप्रस्थाश्रम धर्मवर्णनम : ६८८ वानप्रस्थ आश्रम के नियम बताये हैं जोकि अन्य धर्मशास्त्रों में समान रूप से बताए गए हैं
६. संन्याश्रम धर्मवर्णनम् : ६८६
वानप्रस्थ के बाद संन्यास में जाना चाहिए और संन्यास में जाने के बाद लड़कों के साथ भी स्नेह की बातें न करे
संन्यासी को दंड, कौपीन तथा खड़ाऊ आदि धारण करने का नियम संन्यासी को भिक्षा के नियम और धातु के पात्र में खाने का दोष संन्यासी को संन्ध्या जप का विधान, भगवान का ध्यान जीव मात्र पर समदृष्टि रखने का आदेश
७. योगवर्णनम् : ६६२
वर्णाश्रम धर्म कहकर जिससे मोक्ष हो और पाप नाश हो ऐसे योगाभ्यास की क्रिया रोज करनी चाहिए
लघुहारीत स्मृति
प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान बतला कर सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में जो भगवान हैं उनका ध्यान करना लिखा है । जिस प्रकार बिना घोड़े के रथ नहीं चल सकता उसी प्रकार बिना तपस्या के केवल विद्या से शान्ति नहीं होती है । विद्या और तपस्या से योग में तत्पर होकर सूक्ष्म और स्थूल दोनों देह को छोड़कर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है। हारीत ऋषि कहते हैं कि मैंने संक्ष ेप से ४ वर्ण एवं ४ आश्रमों के धर्म इस उद्देश्य से बताए हैं कि मनुष्य अपने वर्ण और आश्रम के धर्म पालन से भगवान मधुसूदन का पूजन कर वैष्णव पद को पहुंच जाता है
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