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विष्णुस्मृति
१३. विषपरीक्षा वर्णनम् : ४३१
विष की परीक्षा - हिमालय के विष को सात जौं के बराबर घी में भिगोकर उसे दिखलावे । जिस पर जहर न चढ़े उसे शुद्ध । इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं ।
१४. कोषप्रकरण वर्णनम् : ४३१
कोषमान - किसी उम्र देवता के स्नान का उदक तीन अञ्जुली वह पीवे । दोतीन सप्ताह तक उसके घर में कोई रोग, मरण हो जाय तो उसे अशुद्ध समझे । इसके प्रकरण में प्रार्थना के मन्त्र लिखे हैं । १५. द्वादश पुत्र वर्णनम् : ४३२
बारह प्रकार के पुत्र - सबसे पहले औरस, क्षेत्रज, पुत्रिकापुत्र, भाई और पिता के न होने पर लड़की, पुनर्भव, कानीन, गूढ़ोत्पन्न, सहोढ़, दत्तक, क्रीत, स्वयं उपागत, अपविद्ध, परित्यक्त ये बारह प्रकार के पुत्र बतलाये गये हैं । इस अध्याय के अन्तिम श्लोकों में बतलाया है कि पुन्नाम नरक से जो पिता को बचाता है उसे पुत्र कहते हैं ।
१६. जातिवशात्पुत्रभेव वर्णनम् : ४:४
समान वर्णों से जो पुत्र उत्पन्न होते हैं वही पुत्र कहे जाते हैं । अब अनुलोम जो माता के वर्ण से प्रतिलोम ये अनार्य लड़के कहे जाते हैं । उनकी संज्ञा और संकर जाति का विवरण |
१७. पुत्राभावे सम्पत्ति विभाग ( ग्राह्य) वर्णनम् : ४३४
विभाग
- अगर पिता विभाग करे तो अपनी इच्छा से कर सकता है । सभी उपार्जित का विभाग करे और पति के विभाग में स्त्री का पूर्ण अधिकार है ।
१८. ब्राह्मणस्य चातुवर्णेषु जातपुत्राणां दायविभाग वर्णनम् : ४३६
२३
ब्राह्मण का चारों वर्णों में विवाह होता है और जो बटवारे का कहा गया है वह विभाग बतलाया गया है ।
१६. शवस्पर्शी (दाहसंस्कारार्थ) पुत्रवर्णनम् : ४३८
ब्राह्मण के अग्निदाह का निर्णय किया है ।
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