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________________ शाण्डिल्य स्मृति पराविद्याप्राप्त्यर्थमधिकारिगुरुशिष्यवर्णनम् : २८०३ विद्या की प्राप्ति के लिए आचार्य का वरण और अधिकारी शिष्य का वर्णन १०२-११२ मन, वाणी भोर कर्म से भी शिष्य अपने गुरु का अहित न विचारे कभी उनके सामने प्रमाद न करे किसी भी प्रकार की उद्विग्नता उत्पन्न करने वाले भाव, विचार, इच्छा व कर्मों को न करे । शिष्य मूढ़ पापरत, ऋ र, वेदशास्त्र के विरोधी लोगों की सङ्गति न करे इससे भक्ति में विघ्न होता है ११३-१२२ २. प्रातःकृत्यवर्णनम् : २८०५ ऋषियों का प्रातः कृत्य के विषय में प्रश्न और महर्षि शाण्डिल्य द्वारा स्नान सन्ध्या आदि को लेकर विस्तार से प्रातःकाल के कर्तव्यों का वर्णन । शय्या को छोड़ने के बाद सर्व प्रथम भगवान् गोविन्द के दिव्य नामों का संकीर्तन करते हुए वस्त्र और दण्डादि कमण्डलु लेकर अपने मस्तक पर कपड़ा बांधकर मलमूत्र त्याग करने के लिए गांव के बाहर जावे । पेशाब, मैथुन स्नान, भोजन, दन्तधावन, यज्ञ और सामूहिक हवन में मौन धारण करने की विधि है। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रख कर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए। मल-मूत्र करने में जो स्थान वजित हैं उनका परिगणन १०-१२ मल-मूत्र त्याग के समय, देवता, शत्रु, शिष्य, अग्नि, गुरु, वृद्ध पुरुष और स्त्री को न देखे । अधिक समय तक मल-मूत्र न करे केवल भाकाश, दिशा, तारा, गृह और अभेध्य वस्तुओं को देखे १३-१४ मिट्टी से गुदा और लिङ्ग को जल से धोवे। फिर हाथ होकर दन्तधावन करे । स्नान के लिए तीर्थ, समुद्रादि, तालाब, कूप और झरने का जल विशेष प्रयोजनीय है १५-२० जल को अङ्गों से अधिक न पीटे न जल में कुल्ला किया जाय और देह का मल भी जल में न छोड़ा जाय फिर बाहर आकर सन्ध्या कर्म के लिए स्थान को धोवे और कपड़े बदले २१-२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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