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अपने शाखा के ब्राह्मण की ही श्लाध्यता श्राद्ध में अभोज्य
वरण
प्रसाद के लिए दर्भदान
मण्डल पूजा
गुल्फों के नीचे धोना
आचमन कर्ता के पहले भोक्ता का आचमन देवादि के भोजन की दिशा वरणत्रयकाल, विष्टर, अध्यं, आवाहन गन्धाक्षतादि
दान
अग्नीकरण फिर सङ्कल्प परिवेषण
परिवेषणेपौर्वापर्य वर्णन : ३०३३
मध्यम पिण्ड का परिमार्जन कर धर्मपत्नी को दे दे
श्राद्ध दिन में शूद्र भोजन निषिद्ध
पिता के भोजन के पात्र गाड़ दिए जायें
पौर्वापर्य में पहले सूप देना
रक्षोघ्न मन्त्र यदि असमर्थ हो तो दूसरे द्वारा बोला जाए
गरम ही परोसना चाहिए
मन्त्र बोले जाय मन्त्रों की विकलता नाश के लिए वेद का घोष शास्त्र - विरोधित्याज्य हैं
तिलोदक पिण्डदान नमस्कार अर्चन, पुत्रकलत्रादि के साथ पितृ आदि की प्रदक्षिणा व नमस्कार
आङ्गिरस स्मृति
७४१-७४२
७४३-७६८
७६६-७७४
७७५-७७६
७७७-७७६
७८०-७८१
कर्म के मध्य में ज्ञानाज्ञानकृत दोष का प्रायश्चित्त
उच्छिष्टादि श्राद्ध में सात पवित्र
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७८२-८०१
८०२-८०७
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८०८-८१४
८१५-८१८
८१६ -८२५
८२६-८४८
८४६-८६०
उद कुम्भ
८७५-८७७
प्रथम वर्ष तिल तर्पण न करे सपिण्डीकरण के बाद श्राद्धाङ्गतर्पण ८७८-८८२ श्राद्ध में निमन्त्रित ब्राह्मणों की पूजा का वर्णन
८८३-८६२
पितरों के निमित्त रजत और देवता के निमित्त स्वर्ण मुद्रा दे ।
उपस्थान और अनुब्रजनादि का कथन
८६१-८६८
८६६-८७२
८७३
८७४
८६३-८६७
585-808
६०५-६०६
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