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________________ आङ्गिरसस्मृति १७७ करे उच्छिष्ट, निर्माल्य, गङ्गामहिमा, महानदी, नदियों का रजस्वलात्व, पुण्यक्षेत्र ६१०-६४२ वमन ६४३-६४५ फिर श्राद्ध प्रकरण ६४६-६५० अनुमासिक में उच्छिष्ट वमन में व उच्छिष्ट के उच्छिष्ट स्पर्श में विचार ६५१-९५६ एक दूसरे के स्पर्श में ६६०-६६४ दर्शादि में छींक आने पर विचार ६६५-६७३ अपुत्र की सापिण्ड्यता ६७४-६७५ पति के साथ अनुगमन में पत्नी का एक साथ ही पिण्डदान ६७६-६७८ मत के ग्यारहवें दिन या दूसरे दिन सहगमन में श्राद्ध ९८३-६८८ यदि पत्नी ऋतुकाल में हो पति के मरण पर तो पति को तेल की कड़ाही में छोड़ दे और शुद्ध होने पर ही औवंदेहिक संस्कार ९८९-९६५ उसका पिण्ड संयोजन माता के सापिण्ड्य न होने का स्थल ९६७-६६८ दत्तपुत्र का पालक पिता का सापिण्ड्य होता है ६६६ दत्तपुत्र का औरसपिता के प्रति कृत्य १०००-१००५ अन्य गोत्र दत्त का सपिण्डीकरण में विधान १००६-१००८ कथा तृप्ति १००६-२२ श्राद्ध के दिन दान जप न करे १०२३-१०२७ दर्श में मृताह के श्राद्ध को पहले करे १०२८ मताह के दिन मातामहादि का श्राद्ध हो तो मन्वादिक श्राद्ध करे १०२६-१०३१ मताह में नित्यनैमित्तिक आ जायें तो नैमित्तिक पहले करे १०३२-१०३४ दर्श में बहुश्राद्ध हों तो दर्शादि को कर फिर कारुण्य श्राद्ध करे उसमें मत-मतान्तर १०३५-१०४४ किन्हीं का कल्प प्रकार १०४५-१०५६ भ्रष्टक्रिया का विधान, पतित की पच्चीस वर्ष के बाद क्रिया हो १०६०-१०७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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