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________________ वृहद पाराशर स्मृति ३३-३७ उन कन्यायों का वर्णन है जिनके साथ विवाह हो सकता है कन्यादान और कन्या के लक्षण जिनको दायविभाग मिल सकता है ३८-४० लक्ष्मीस्वरूपा स्त्री वर्णनम् : ७५८ गृहस्थी को स्त्रियों की इच्छा का अनुमोदन करना तथा उनको प्रसन्न रखना यह गृहस्थ की सम्पत्ति और श्रेय का साधन बताया है स्त्री पुरुष में जहां विवाद होता है वहां धर्म, अर्थ, काम सभी नष्ट ४१-४५ हो जाते हैं स्त्रियों को पतिव्रत पर रहना और इसका अनुशासन और पतिव्रता न रहने से नारकीय दारुण दुःखों का होना बताया है गृहस्थधर्म वर्णनम् स्त्री शक्तिरूपा है एवं शक्ति का स्त्रोत है । सारे संसार की उत्पादिका शक्ति भी स्त्री जाति ही है । उसका संरक्षण कुमार्यावस्था में पिता द्वारा तथा युवावस्था में पति द्वारा वाञ्छनीय है । वृद्धावस्था में पुत्र का कर्तव्य है कि उनकी शक्ति की देखरेख और सेवा करे । इस प्रकार मातृशक्ति की सद्उपयोगिता का ध्यान रखा जाए स्त्रियों की स्वाभाविक पवित्रता और स्त्रियों को इन्द्र के वरदान सहवास के नियम गृहस्थधर्म का आधार स्त्री ही है और गृह के यज्ञ कर्म स्त्री के ही साथ हो सकते हैं अतः उसी का सत्कार और मान करना चाहिए पितृ यज्ञ, अतिथि यज्ञ, स्वाहाकार व षट्कार और हन्तकार प्राणाग्निहोत्र विधि से भोजन करना वेदविद्विप्रस्य कलाज्ञस्य वर्णनम् : ७६३ जीव की कला प्राणाग्नि यज्ञ की विधि जिसमें इस बात का विषदीकरण किया गया कि नासिका के पन्द्रह अगुली तक संचरण करती जाती है इसी को षोडसी इसी को ब्रह्मविद्या कहते हैं जो इसे जाने ज्ञाता कहते हैं । इसी को तुरीय पद और इसी में सारा कला कहते हैं । उसी को वेद का Jain Education International For Private & Personal Use Only ५३ ४६.४७ ४८-५५ ५६-६१ ६२-६५ ६६-७६ ७७-८६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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