SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ वृहद पाराशर स्मृति कृषिकृच्छुद्धिकरण तथा कृषिकर्मकरण स सीतायज्ञ वर्णनम् : ७५० "कृषेरन्यतमोऽधर्मो न लभेत्कृषितोऽन्यतः । न सुखं कृषितोऽन्यत्र यदि धर्मेण कर्षति" ॥ कृषि के तुल्य दूसरा कोई धर्म नहीं कोई व्यवहार इतना लाभदायक नहीं। यदि धर्मानुकूल कृषि की जाए तो बड़ा सुख है । १५६-१६५ ६. कन्या विवाह वर्णनम : ७५५ कन्याओं के आठ प्रकार के विवाह होते हैं। अपनी जाति में वर के लक्षण देखकर वस्त्राभूषण से सुसज्जित कर जो कन्या दी जाती है उसको ब्राह्म विवाह कहते हैं। लड़के का लक्षण, तथा नपुंसक का पहचान । यज्ञ करते हुए यज्ञ करने वाले को वस्त्राभूषण से सुसज्जित जो कन्या दी जाती है इसे दैव विवाह कहते हैं। वर कन्या के समान हो और गुणवान, विद्वान हो ऐसे पुरुष को दो गाय के साथ जो कन्या दी जाती है वह आर्ष विवाह होता है। कन्या और वर स्वेच्छा से धर्मचारी हो वह मनुष्य विवाह होता है। जिस जगह पर वर से रुपए की संख्या लेकर कन्या दी जाती है उसे दैत्य विवाह कहते हैं। जहां वर कन्या दोनों अपनी इच्छा पूर्वक विवाह कर ले उसे गान्धर्व विवाह कहते हैं। जहां हरण करके कन्या ले जाई जावे उसे राक्षस विवाह कहते हैं। सोई हुई कन्या को जो मद्य इत्यादि के नशे में जबरदस्ती ले जाया जाए उसे पैशाच विवाह कहते हैं १-१७ विवाह के पहले जिन बातों का विचार करना चाहिए उनका निर्देश किया गया है । १ वर, २ कन्या की जाति, ३ वयस, ४ शक्ति, ५ आरोग्यता, ६ वित्त सम्पत्ति, ७ सम्बन्ध बहुपक्षता तथा अथित्व विवाहे वरगुण वर्णनम् वर के लक्षण १६-२१ सगोत्र की कन्या से विवाह २२ जहां कन्या नहीं देनी चाहिए २३-२७ उन लड़कियों के लक्षण लिखे हैं जिनके साथ विवाह नहीं करना है और कन्यादान करने का जिनका अधिकार है उनका वर्णन २८-३२ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy