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वृहद पाराशर स्मृति संसार लीन हो जाता है। इस बात को जानने से और कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता है
८७-६६ प्राणायाम के विधान, प्राणवायु के चलने के तीन मार्ग – इडा,
पिङ्गला, सुषुम्ना, नासिका के दो पुट होते हैं दाहिने को उत्तर और बायें को दक्षिण बीच भाग को विषुवृत्त कहते हैं । जो योगी प्रातः, सायं मध्याह्न और अर्धरात्रि में विषुवृत्त को जानता है उसको नित्यमुक्त कहा है। इस प्रकार प्राणायाम की विधि बताई है। पांच वायु (प्राण, उदान, व्यान, अपान, समान) का नाम लेकर स्वाहा शब्द लगावे, पांच आहुति ग्रास रूप में देवे और दांत नहीं लगावे तो इसे पंचाग्नि होत्र कहते हैं
६७-१०७ शरीर के जिस प्रदेश में जो अग्नि रहती है उसका वर्णन १०८-१११ प्राणाग्नि होम का विधान और मुद्रा का वर्णन
११२-१२१ प्राणाग्निहोत्र विधि का माहात्म्य
६२२-१२४ प्राणाग्निहोत्र के बाद जल पीने का नियम
१२५-१२७ प्राणायाम की विधि जानने का माहात्म्य और गृहपत्नी के लिए भोजन विधि
१२८-१३८ षोडश संस्कार माह्निकवर्णनम सायं सन्ध्या विधि और कुछ स्वा पाय करके शयन विधि १३६-१४० स्त्री के साथ संगम, योनि शुद्धि और गर्भाधान विवरण १४१-१४३ ब्राह्म मुहूर्त में उठकर सूर्योदय से पूर्व सन्ध्या विधिका वर्णन १४४-१४५ प्रात:काल सन्ध्या करने से मद्यपान तथा द्यूत का दोष दूर
१४६ सूर्योदय के पहले सन्ध्या का विधान । सीमन्त, अन्नप्राशन, जातकर्म, निष्क्रमण चूडाकर्म आदि संस्कारों का विधान
१४८-१५१ ब्रह्मचर्य वर्णनम् : -६८। उपनयन का समय, विधान और ब्रह्मचारी को भिक्षाधन तथा किससे भिक्षा लेवे उसका सविस्तार वर्णन
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